नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

135- आपका इरशादे गिरामी

(जब आपके और उस्मान के दरम्यान इख़तेलाफ़ पैदा हुआ

और मग़ीरा बिन अख़स ने उस्मान से कहा के मै। उनका काम तमाम कर सकता हूँ तो आपने फ़रमाया।)

ऐ बदनस्ल मलऊन के बच्चे! और उस दरख़्त के फ़ल जिसकी न कोई असल है और न फ़ूरूअ। तू मेरे लिये काफ़ी हो जाएगा? ख़ुदा की क़सम जिसका तू मददगार हो उसके लिये इज़्ज़त नहीं है और जिसे तु उठाएगा वह खड़े होने के क़ाबिल न होगा। निकल जा, अल्लाह तेरी मन्ज़िल को दूर कर दे। जा अपनी कोशिशे कर ले, ख़ुदा तुझ पर रहम न करेगा अगर तू मुझ पर तरस भी खाए।

136- आपका इरशादे गिरामी

(बैअत के बारे में)

मेरे हाथों पर तुम्हारी बैअत कोई नागहानी हादसा नहीं है और मेरा और तुम्हारा मामला एक जैसा भी नहीं है। मैं तुम्हें अल्लाह के लिये चाहता हूँ और तुम मुझे अपने फ़ाएदे के लिये चाहते हो। लोगों! अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात के मुक़ाबले में मेरी मदद करो, ख़ुदा की क़सम मैं मज़लूम को ज़ालिम से उसका हक़ दिलवाऊगा और ज़ालिम को उसकी नाक में नकेल डाल कर खींचूंगा ताके उसे चश्मए हक़ पर वारिद कर दूँ चाहे वह किसी क़द्र नाराज़ क्यों न हो।

(((- मैदाने जंग में नकबत व रूसवाई के इहतेमाल के साथ किसी मर्द मैदान के भेजने का मशविरा उस नुक्ते की तरफ़ इशारा है के मैदाने जेहाद में सेबाते क़दम तुम्हारी तारीख़ नहीं है और न यह तुम्हारे बस का काम है लेहाज़ा मुनासिब यही है के सिकी तजुर्बेकार शख़्स को माहेरीन की एक जमाअत के साथ रवाना कर दो ताके इस्लाम की रूसवाई न हो सके और मज़हब का वक़ार बरक़रार रहे। उसके बाद तुम्हें “फ़ातहे आज़म”का लक़ब तो बहरहाल मिल ही जाएगा के जिसके दौर में इलाक़ा फ़तेह होता है तारीख़ उसी को फ़ातेह का लक़ब देती है और मुजाहेदीन को यकस नज़र अन्दाज़ कर देती है।

यह भी अमीरूल मोमेनीन (अ0) का एक हौसला था के शदीद इख़्तेलाफ़ात और बेपनाह मसाएब के बावजूद मशविरा से दरीग़ नहीं किया और वही मशविरा दिया जो इस्लाम और मुसलमानों के हक़ में था। इसलिये के आप इस हक़ीक़त से बहरहाल बाख़बर थे के अफ़राद से इख़तेलाफ़ मक़सद और मज़हब की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी हर मुसलमान पर आएद होती है चाहे वह बरसरे इक़्तेदार हो या न हो।)))

137- आपका इरशादे गिरामी

(तल्हा व ज़ुबैर और उनकी बैअत के बारे में)

ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने न मेरी किसी वाक़ेई बुराई की गिरफ़्त की है और न मेरे और अपने दरम्यान इन्साफ़ से काम लिया है। वह ऐसे हक़ का मुतालबा कर रहे हैं जिसको ख़ुद उन्होंने नज़र अन्दाज़ किया है और ऐसे ख़ून का बदला चाहते हैं जिसको ख़ुद उन्होंने बहाया है। अगर मैं इस मामले में शरीक था तो एक हिस्सा उनका भी होगा और अगर यह तन्हा ज़िम्मेदार थे तो मुतालबा ख़ुद उन्हीं से होना चाहिये और मुझसे पहले उन्हें अपने खि़लाफ़ फै़सला करना चाहिये।

(अल्हम्दो लिल्लाह) मेरे साथ मेरी बसीरत है न मैंने अपने को धोके में रखा है और न मुझे धोका दिया जा सका है। यह लोग एक बाग़ी गिरोह हैं जिनमें मेरे क़राबतदार भी हैं और बिच्छू का डंक भी हैं और फिर हक़ाएक़ की परदापोशी करने वाला शुबा भी है, हालांके हक़ बिल्कुल वाज़ेअ है और बातिल अपने मरकज़ से हट चुका है और इसकी ज़बान शोर व शख़ब के सिलसिले में कट चुकी है। ख़ुदा की क़सम मैं उनके लिये ऐसा हौज़ छलकाउंगा जिससे पानी निकालने वाला भी मैं ही हूँगा। यह न उससे सेराब होकर जा सकेंगे और न इसके बाद किसी तालाब से पानी पीने के लाएक़ रह सकेंगे।

(सिलए बैअत) तुम लोग “कल”बैअत-बैअत का शोर मचाते हुए मेरी तरफ़ इस तरह आए थे जिस तरह नई जनने वाली ऊंटनी अपने बच्चों की तरफ़ दौड़ती है। मैंने अपनी मुट्ठी बन्द कर ली मगर तुमने खोल दी। मैंने अपना हाथ रोक लिया मगर तुमने खींच लिया। ऐ ख़ुदा, तू गवाह रहना के इन दोनों ने मुझसे क़तअ ताल्लुक़ करके मुझ पर ज़ुल्म किया है और मेरी बैअत तोड़ कर लोगों को मेरे खि़लाफ़ भड़काया है। अब तू इनकी गिरहों को खोल दे और जो रस्सी उन्होंने बटी है उसमें इस्तेहकाम न पैदा होने दे और उन्हें उनकी उम्मीदों और उनके आमाल के बदतरीन नताएज को दिखला दे। मैंने जंग से पहले उन्हें बहुत रोकना चाहा और मैदाने जेहाद में उतरने से पहले बहुत कुछ मोहलत दी, लेकिन इन दोनों ने नेमत का इन्कार कर दिया और आफ़ियत को रद कर दिया।

(((-कारोबार ज़ूलैख़ा के दौर से निसवानी फ़ितरत में दाखि़ल हो गया है के जब दुनिया की निगाहें अपनी ग़लती की तरफ़ उठने लगें तो फ़ौरन दूसरे की ग़लती का नारा लगा दिया जाए ताके मसलए शुबह हो जाए और लोग हक़ाएक़ का सही इदराक न कर सकें, क़त्ले उस्मान के बाद यही काम आएशा ने किया के पहले लोगों को क़त्ले उस्मान पर आमादा किया। उसके बाद ख़ुद ही ख़ूने उस्मान की दावेदार बन गईं और फिर उनके साथ मिलकर यही ज़नाना एक़दाम तलहा व ज़ुबैर ने भी किया। इसीलिये अमीरूल मोमेनीन ने आखि़रे कलाम में अपने मर्दे मैदान होने का इशारा दिया है के मर्दाने जंग इस तरह की निस्वानी हरकात नहीं किया करते हैंं बल्कि शरीफ़ औरतें भी अपने को ऐसे किरदार से हमेशा अलग रखती हैं और हक़ का साथ देती हैं और हक़ पर क़ायम रह जाती हैं उनके किरदार में दोरंगी नहीं होती है।-)))

138-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मुस्तक़बिल के हवादिस का इशारा है)

वह बन्दए ख़ुदा ख़्वाहिशात को हिदायत की तरफ़ मोड़ देगा जब लोग हिदायत को ख़्वाहिशात की तरफ़ मोड़ रहे होंगे और वह राय को क़ुरआन की तरफ़ झुका देगा जब लोग क़ुरान को राय की तरफ़ झुका रहे होंगे।

(दूसरा हिस्सा) यहाँ तक के जंग अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी दांत निकाले हुए और थनों को पुर किये हुए, लेकिन इस तरह के इसका दूध पीने में शीरीं मालूम होगा और अन्जाम बहुत बुरा होगा। याद रखो के कल और कल बहुत जल्द वह हालात लेकर आने वाला है जिसका तुम्हें अन्दाज़ा नहीं है। इस जमाअत से बाहर का वाली तमाम अम्माल की बदआमालियों का मुहासेबा करेगा और ज़मीन तमाम जिगर के ख़ज़ानों को निकाल देगी और निहायत आसानी के साथ अपनी कुन्जियां उसके हवाले कर देगी और फिर वह तुम्हें दिखलाएगा के आदिलाना सीरत क्या होती है और मुर्दा किताब व सुन्नत को किस तरह ज़िन्दा किया जाता है।

(तीसरा हिस्सा) मैं यह मन्ज़र देख रहा हूँ के एक शख़्स (दाई बातिल) शाम में ललकार रहा है और कूफ़े के गिर्द उसके झण्डे लहरा रहे हैं और इसकी तरफ़ काट खाने वाली ऊंटनी की तरह मुतवज्जो है और ज़मीन पर सरों का फर्श बिछा रहा है। उसका मुंह खुला हुआ है और ज़मीन पर इसकी धमक महसूस हो रही है। वह दूर-दूर तक जूलानियां दिखलाने वाला है और शदीदतरीन हमले करने वाला है। ख़ुदा की क़सम वह तुम्हें एतराफ़े ज़मीन में इस तरह मुन्तशिर देगा के सिर्फ़ उतने ही आदमी बाक़ी रह जाएंगे जैसे आंख में सुरमा, और फिर तुम्हारा यही हष्र रहेगा। यहां तक के अरबों की गुमषुदा अक़्ल पलट कर आ जाए लेहाज़ा अभी ग़नीमत है मज़बूत तरीक़े, वाज़ेअ आसार और इस क़रीबी अहद से वाबस्ता रहो जिसमें नबूवत के पाएदार आसार हैं और यह याद रखो के शैतान अपने रास्तों को हमवार रखता है ताके तुम उसके हर क़दम पर बराबर चलते रहो।

139- आपका इरशादे गिरामी

(शूरा के मौक़े पर)

(याद रखो) के मुझसे पहले हक़ की दावत देने वाला, सिलए रहम करने वाला और जूदो करम का मुज़ाहिरा करने वाला कोई न होगा। लेहाज़ा मेरे क़ौल पर कान धरा और मेरी गुफ़्तगू को समझो के अनक़रीब तुम देखोगे के इस मसले पर तलवारें निकल रही हैं। अहद व पैमान तोड़े जा रहे हैं और में से बाज़ गुमराहों के पेशवा हुए जा रहे हैं और बाज़ जाहिलों के पैरोकार।

140- आपकाइरशादेगिरामी

(लोगों को बुराई से रोकते हुए)

देखो, लो लोग गुनाहों से महफ़ूज़ हैं और ख़ुदा ने उन पर इस सलामती का एहसान किया है उनके शायाने शान यही है के गुनाहगारों और ख़ताकारों पर रहम करें और अपनी सलामती का शुक्रिया ही इन पर ग़ालिब रहे और उन्हें इन हरकात से रोकता रहे। चे जाएक इन्सान ऐब लगाने वाला अपने किसी भाई की पीठ पीछे बुराई करे और उसके ऐब बयान करके तान व तिशना करे (ख़ुद ऐबदार हो और अपने भाई का ऐब बयान करे और उसके ऐब की बिना पर उसकी सरज़निश भी करे)। यह आखि़र ख़ुदा की उस परदा पोशी को क्यों नहीं याद करता के परवरदिगार ने उसके जिन उयूब को छिपाकर रखा है वह उससे बड़े हैं जिन पर यह सरज़निश कर रहा है और उस ऐब पर किस तरह मज़म्मत कर रहा है जिसका ख़ुद मुरतकब होता है और अगर बैनिया इसका मुरतकब नहीं होता है तो इसके अलावा दूसरे गुनाह करता है जो इससे भी अज़ीमतर हैं और ख़ुदा की क़सम अगर इससे अज़ीमतर नहीं भी हैं तो ज़रूर ही हैं और ऐसी सूरत में बुराई करने और सरज़निश करने की जराअत बहरहाल इससे भी अज़ीमतर है।

(((-इन्सानियत उस अहद ज़र्रीं के लिये सरापा इन्तज़ार है जब ख़ुदाई नुमाइन्दा दुनिया के तमाम हुक्काम का मुहासेबा करके अद्ल व इन्साफ़ का निज़ाम क़ायम कर दे और ज़मीन अपने तमाम ख़ज़ाने उगल दे। दुनिया में राहत व इतमीनान का दौरे दौरा हो और दीने ख़ुदा इक़्तेदारे कुल्ली का मालिक हो जाए।-)))

बन्दए ख़ुदा- दूसरे के ऐब बयान करने में जल्दी न कर शायद ख़ुदा ने उसे माफ़ कर दिया हो और अपने नफ़्स को मामूली समझ के उसके बारे में महफ़ूज़ तसव्वुर न करना शायद के ख़ुदा इसी पर अज़ाब कर दे। (अपने छोटे से छोटे गुनाह को भी मामूली न समझना शायद के इस पर तुझे अज़ाब हो) हर शख़्स को चाहिये के दूसरे के ऐब बयान करने से परहेज़ करे के उसे अपना ऐब भी मालूम है और अगर ऐब से महफ़ूज़ है तो इस सलामती के शुक्रिया ही में मशग़ूल रहे।

141- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें ग़ीबत के सुनने से रोका गया है और हक़ व बातिल के फ़र्क़ को वाज़ेअ किया गया है।)

लोगों! जो शख़्स भी अपने भाई के दीन की पुख़्तगी और तरीक़ाए कार दुरूस्तगी का इल्म रखता है उसे उसके बारे में दूसरों के अक़वाल पर कान नहीं धरना चाहिये के कभी-कभी इन्सान तीरअन्दाज़ी करता है और इसका तीर ख़ता कर जाता है और बातें बनाता है और बातिल बहरहाल फ़ना हो जाता है और अल्लाह सबका सुनने वाला भी है और गवाह भी है। याद रखो के हक़ व बातिल में सिर्फ़ चार अंगुल का फासला होता है।

लोगों ने अर्ज़ की हुज़ूर इसका क्या मतलब है? तो आपने आँख और कान के दरम्यान चार उंगलियाँ रख कर फ़रमाया बातिल वह है जो सिर्फ़ सुना-सुनाया होता है और हक़ वह है जो अपनी आँख से देखा हुआ होता है।

142- आपका इरशादे गिरामी

(नाअहल के साथ एहसान करने के बारे में)

याद रखो के ग़ैर मुस्तहक़ के साथ एहसान करने वाले और ना अहल के साथ नेकी करने वाले के हिस्से में कमीने लोगों की तारीफ़ और बदतरीन अफ़राद की मदह व सना ही आती है और वह जब तक करम करता रहता है जेहाल (जाहिल) कहते रहते हैं के किस क़द्र करीम और सख़ी है यह शख़्स, हालाँके अल्लाह के मामले में यही शख़्स बख़ील भी होता है।

देखो अगर ख़ुदा किसी शख़्स को माल दे तो उसका फ़र्ज़ है के क़राबतदारों का ख़याल रखे। मेहमान नवाज़ी करे। क़ैदियों और ख़स्ता हालों को आज़ाद कराए। फ़क़ीरों और क़र्ज़दारों की इमदाद करे। अपने नफ़्स को हुक़ूक़ की अदायगी और मसाएब पर आमादा करे के इसमें सवाब की उम्मीद पाई जाती है और उन तमाम ख़सलतों के हासिल करने ही में दुनिया की शराफ़तें और करामतें हैं और उन्हीं से आखि़रत के फ़ज़ाएल भी हासिल होते हैं। (इन्शा अल्लाह)

(((-अगर यह बात सही और यक़ीनन सही है के माल वही बेहतर होता है जिसका माल और अन्जाम बेहतर होता है तो हर शख़्स का फ़र्ज़ है के अपने माल को उन्हें मवारिद में सर्फ़ करे जिसकी तरफ इस ख़ुतबे में इशारा किया गया है वरना बेमहल सर्फ़ से जाहिलों और बदकिरदारों की तारीफ़ के अलावा कुछ हाथ आने वाला नहीं है और इसमें न ख़ैरे दुनिया है और न ख़ैरे आखि़रत। बल्कि दुनिया और आखि़रत दोनों की तबाही और बरबादी का सबब है। परवरदिगार हर शख़्स को इस जेहालत और रियाकारी से महफ़ूज़ रखे-)))