नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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135- आपका इरशादे गिरामी

(जब आपके और उस्मान के दरम्यान इख़तेलाफ़ पैदा हुआ

और मग़ीरा बिन अख़स ने उस्मान से कहा के मै। उनका काम तमाम कर सकता हूँ तो आपने फ़रमाया।)

ऐ बदनस्ल मलऊन के बच्चे! और उस दरख़्त के फ़ल जिसकी न कोई असल है और न फ़ूरूअ। तू मेरे लिये काफ़ी हो जाएगा? ख़ुदा की क़सम जिसका तू मददगार हो उसके लिये इज़्ज़त नहीं है और जिसे तु उठाएगा वह खड़े होने के क़ाबिल न होगा। निकल जा, अल्लाह तेरी मन्ज़िल को दूर कर दे। जा अपनी कोशिशे कर ले, ख़ुदा तुझ पर रहम न करेगा अगर तू मुझ पर तरस भी खाए।

136- आपका इरशादे गिरामी

(बैअत के बारे में)

मेरे हाथों पर तुम्हारी बैअत कोई नागहानी हादसा नहीं है और मेरा और तुम्हारा मामला एक जैसा भी नहीं है। मैं तुम्हें अल्लाह के लिये चाहता हूँ और तुम मुझे अपने फ़ाएदे के लिये चाहते हो। लोगों! अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिशात के मुक़ाबले में मेरी मदद करो, ख़ुदा की क़सम मैं मज़लूम को ज़ालिम से उसका हक़ दिलवाऊगा और ज़ालिम को उसकी नाक में नकेल डाल कर खींचूंगा ताके उसे चश्मए हक़ पर वारिद कर दूँ चाहे वह किसी क़द्र नाराज़ क्यों न हो।

(((- मैदाने जंग में नकबत व रूसवाई के इहतेमाल के साथ किसी मर्द मैदान के भेजने का मशविरा उस नुक्ते की तरफ़ इशारा है के मैदाने जेहाद में सेबाते क़दम तुम्हारी तारीख़ नहीं है और न यह तुम्हारे बस का काम है लेहाज़ा मुनासिब यही है के सिकी तजुर्बेकार शख़्स को माहेरीन की एक जमाअत के साथ रवाना कर दो ताके इस्लाम की रूसवाई न हो सके और मज़हब का वक़ार बरक़रार रहे। उसके बाद तुम्हें “फ़ातहे आज़म”का लक़ब तो बहरहाल मिल ही जाएगा के जिसके दौर में इलाक़ा फ़तेह होता है तारीख़ उसी को फ़ातेह का लक़ब देती है और मुजाहेदीन को यकस नज़र अन्दाज़ कर देती है।

यह भी अमीरूल मोमेनीन (अ0) का एक हौसला था के शदीद इख़्तेलाफ़ात और बेपनाह मसाएब के बावजूद मशविरा से दरीग़ नहीं किया और वही मशविरा दिया जो इस्लाम और मुसलमानों के हक़ में था। इसलिये के आप इस हक़ीक़त से बहरहाल बाख़बर थे के अफ़राद से इख़तेलाफ़ मक़सद और मज़हब की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी हर मुसलमान पर आएद होती है चाहे वह बरसरे इक़्तेदार हो या न हो।)))

137- आपका इरशादे गिरामी

(तल्हा व ज़ुबैर और उनकी बैअत के बारे में)

ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने न मेरी किसी वाक़ेई बुराई की गिरफ़्त की है और न मेरे और अपने दरम्यान इन्साफ़ से काम लिया है। वह ऐसे हक़ का मुतालबा कर रहे हैं जिसको ख़ुद उन्होंने नज़र अन्दाज़ किया है और ऐसे ख़ून का बदला चाहते हैं जिसको ख़ुद उन्होंने बहाया है। अगर मैं इस मामले में शरीक था तो एक हिस्सा उनका भी होगा और अगर यह तन्हा ज़िम्मेदार थे तो मुतालबा ख़ुद उन्हीं से होना चाहिये और मुझसे पहले उन्हें अपने खि़लाफ़ फै़सला करना चाहिये।

(अल्हम्दो लिल्लाह) मेरे साथ मेरी बसीरत है न मैंने अपने को धोके में रखा है और न मुझे धोका दिया जा सका है। यह लोग एक बाग़ी गिरोह हैं जिनमें मेरे क़राबतदार भी हैं और बिच्छू का डंक भी हैं और फिर हक़ाएक़ की परदापोशी करने वाला शुबा भी है, हालांके हक़ बिल्कुल वाज़ेअ है और बातिल अपने मरकज़ से हट चुका है और इसकी ज़बान शोर व शख़ब के सिलसिले में कट चुकी है। ख़ुदा की क़सम मैं उनके लिये ऐसा हौज़ छलकाउंगा जिससे पानी निकालने वाला भी मैं ही हूँगा। यह न उससे सेराब होकर जा सकेंगे और न इसके बाद किसी तालाब से पानी पीने के लाएक़ रह सकेंगे।

(सिलए बैअत) तुम लोग “कल”बैअत-बैअत का शोर मचाते हुए मेरी तरफ़ इस तरह आए थे जिस तरह नई जनने वाली ऊंटनी अपने बच्चों की तरफ़ दौड़ती है। मैंने अपनी मुट्ठी बन्द कर ली मगर तुमने खोल दी। मैंने अपना हाथ रोक लिया मगर तुमने खींच लिया। ऐ ख़ुदा, तू गवाह रहना के इन दोनों ने मुझसे क़तअ ताल्लुक़ करके मुझ पर ज़ुल्म किया है और मेरी बैअत तोड़ कर लोगों को मेरे खि़लाफ़ भड़काया है। अब तू इनकी गिरहों को खोल दे और जो रस्सी उन्होंने बटी है उसमें इस्तेहकाम न पैदा होने दे और उन्हें उनकी उम्मीदों और उनके आमाल के बदतरीन नताएज को दिखला दे। मैंने जंग से पहले उन्हें बहुत रोकना चाहा और मैदाने जेहाद में उतरने से पहले बहुत कुछ मोहलत दी, लेकिन इन दोनों ने नेमत का इन्कार कर दिया और आफ़ियत को रद कर दिया।

(((-कारोबार ज़ूलैख़ा के दौर से निसवानी फ़ितरत में दाखि़ल हो गया है के जब दुनिया की निगाहें अपनी ग़लती की तरफ़ उठने लगें तो फ़ौरन दूसरे की ग़लती का नारा लगा दिया जाए ताके मसलए शुबह हो जाए और लोग हक़ाएक़ का सही इदराक न कर सकें, क़त्ले उस्मान के बाद यही काम आएशा ने किया के पहले लोगों को क़त्ले उस्मान पर आमादा किया। उसके बाद ख़ुद ही ख़ूने उस्मान की दावेदार बन गईं और फिर उनके साथ मिलकर यही ज़नाना एक़दाम तलहा व ज़ुबैर ने भी किया। इसीलिये अमीरूल मोमेनीन ने आखि़रे कलाम में अपने मर्दे मैदान होने का इशारा दिया है के मर्दाने जंग इस तरह की निस्वानी हरकात नहीं किया करते हैंं बल्कि शरीफ़ औरतें भी अपने को ऐसे किरदार से हमेशा अलग रखती हैं और हक़ का साथ देती हैं और हक़ पर क़ायम रह जाती हैं उनके किरदार में दोरंगी नहीं होती है।-)))

138-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मुस्तक़बिल के हवादिस का इशारा है)

वह बन्दए ख़ुदा ख़्वाहिशात को हिदायत की तरफ़ मोड़ देगा जब लोग हिदायत को ख़्वाहिशात की तरफ़ मोड़ रहे होंगे और वह राय को क़ुरआन की तरफ़ झुका देगा जब लोग क़ुरान को राय की तरफ़ झुका रहे होंगे।

(दूसरा हिस्सा) यहाँ तक के जंग अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी दांत निकाले हुए और थनों को पुर किये हुए, लेकिन इस तरह के इसका दूध पीने में शीरीं मालूम होगा और अन्जाम बहुत बुरा होगा। याद रखो के कल और कल बहुत जल्द वह हालात लेकर आने वाला है जिसका तुम्हें अन्दाज़ा नहीं है। इस जमाअत से बाहर का वाली तमाम अम्माल की बदआमालियों का मुहासेबा करेगा और ज़मीन तमाम जिगर के ख़ज़ानों को निकाल देगी और निहायत आसानी के साथ अपनी कुन्जियां उसके हवाले कर देगी और फिर वह तुम्हें दिखलाएगा के आदिलाना सीरत क्या होती है और मुर्दा किताब व सुन्नत को किस तरह ज़िन्दा किया जाता है।

(तीसरा हिस्सा) मैं यह मन्ज़र देख रहा हूँ के एक शख़्स (दाई बातिल) शाम में ललकार रहा है और कूफ़े के गिर्द उसके झण्डे लहरा रहे हैं और इसकी तरफ़ काट खाने वाली ऊंटनी की तरह मुतवज्जो है और ज़मीन पर सरों का फर्श बिछा रहा है। उसका मुंह खुला हुआ है और ज़मीन पर इसकी धमक महसूस हो रही है। वह दूर-दूर तक जूलानियां दिखलाने वाला है और शदीदतरीन हमले करने वाला है। ख़ुदा की क़सम वह तुम्हें एतराफ़े ज़मीन में इस तरह मुन्तशिर देगा के सिर्फ़ उतने ही आदमी बाक़ी रह जाएंगे जैसे आंख में सुरमा, और फिर तुम्हारा यही हष्र रहेगा। यहां तक के अरबों की गुमषुदा अक़्ल पलट कर आ जाए लेहाज़ा अभी ग़नीमत है मज़बूत तरीक़े, वाज़ेअ आसार और इस क़रीबी अहद से वाबस्ता रहो जिसमें नबूवत के पाएदार आसार हैं और यह याद रखो के शैतान अपने रास्तों को हमवार रखता है ताके तुम उसके हर क़दम पर बराबर चलते रहो।

139- आपका इरशादे गिरामी

(शूरा के मौक़े पर)

(याद रखो) के मुझसे पहले हक़ की दावत देने वाला, सिलए रहम करने वाला और जूदो करम का मुज़ाहिरा करने वाला कोई न होगा। लेहाज़ा मेरे क़ौल पर कान धरा और मेरी गुफ़्तगू को समझो के अनक़रीब तुम देखोगे के इस मसले पर तलवारें निकल रही हैं। अहद व पैमान तोड़े जा रहे हैं और में से बाज़ गुमराहों के पेशवा हुए जा रहे हैं और बाज़ जाहिलों के पैरोकार।

140- आपकाइरशादेगिरामी

(लोगों को बुराई से रोकते हुए)

देखो, लो लोग गुनाहों से महफ़ूज़ हैं और ख़ुदा ने उन पर इस सलामती का एहसान किया है उनके शायाने शान यही है के गुनाहगारों और ख़ताकारों पर रहम करें और अपनी सलामती का शुक्रिया ही इन पर ग़ालिब रहे और उन्हें इन हरकात से रोकता रहे। चे जाएक इन्सान ऐब लगाने वाला अपने किसी भाई की पीठ पीछे बुराई करे और उसके ऐब बयान करके तान व तिशना करे (ख़ुद ऐबदार हो और अपने भाई का ऐब बयान करे और उसके ऐब की बिना पर उसकी सरज़निश भी करे)। यह आखि़र ख़ुदा की उस परदा पोशी को क्यों नहीं याद करता के परवरदिगार ने उसके जिन उयूब को छिपाकर रखा है वह उससे बड़े हैं जिन पर यह सरज़निश कर रहा है और उस ऐब पर किस तरह मज़म्मत कर रहा है जिसका ख़ुद मुरतकब होता है और अगर बैनिया इसका मुरतकब नहीं होता है तो इसके अलावा दूसरे गुनाह करता है जो इससे भी अज़ीमतर हैं और ख़ुदा की क़सम अगर इससे अज़ीमतर नहीं भी हैं तो ज़रूर ही हैं और ऐसी सूरत में बुराई करने और सरज़निश करने की जराअत बहरहाल इससे भी अज़ीमतर है।

(((-इन्सानियत उस अहद ज़र्रीं के लिये सरापा इन्तज़ार है जब ख़ुदाई नुमाइन्दा दुनिया के तमाम हुक्काम का मुहासेबा करके अद्ल व इन्साफ़ का निज़ाम क़ायम कर दे और ज़मीन अपने तमाम ख़ज़ाने उगल दे। दुनिया में राहत व इतमीनान का दौरे दौरा हो और दीने ख़ुदा इक़्तेदारे कुल्ली का मालिक हो जाए।-)))

बन्दए ख़ुदा- दूसरे के ऐब बयान करने में जल्दी न कर शायद ख़ुदा ने उसे माफ़ कर दिया हो और अपने नफ़्स को मामूली समझ के उसके बारे में महफ़ूज़ तसव्वुर न करना शायद के ख़ुदा इसी पर अज़ाब कर दे। (अपने छोटे से छोटे गुनाह को भी मामूली न समझना शायद के इस पर तुझे अज़ाब हो) हर शख़्स को चाहिये के दूसरे के ऐब बयान करने से परहेज़ करे के उसे अपना ऐब भी मालूम है और अगर ऐब से महफ़ूज़ है तो इस सलामती के शुक्रिया ही में मशग़ूल रहे।

141- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें ग़ीबत के सुनने से रोका गया है और हक़ व बातिल के फ़र्क़ को वाज़ेअ किया गया है।)

लोगों! जो शख़्स भी अपने भाई के दीन की पुख़्तगी और तरीक़ाए कार दुरूस्तगी का इल्म रखता है उसे उसके बारे में दूसरों के अक़वाल पर कान नहीं धरना चाहिये के कभी-कभी इन्सान तीरअन्दाज़ी करता है और इसका तीर ख़ता कर जाता है और बातें बनाता है और बातिल बहरहाल फ़ना हो जाता है और अल्लाह सबका सुनने वाला भी है और गवाह भी है। याद रखो के हक़ व बातिल में सिर्फ़ चार अंगुल का फासला होता है।

लोगों ने अर्ज़ की हुज़ूर इसका क्या मतलब है? तो आपने आँख और कान के दरम्यान चार उंगलियाँ रख कर फ़रमाया बातिल वह है जो सिर्फ़ सुना-सुनाया होता है और हक़ वह है जो अपनी आँख से देखा हुआ होता है।

142- आपका इरशादे गिरामी

(नाअहल के साथ एहसान करने के बारे में)

याद रखो के ग़ैर मुस्तहक़ के साथ एहसान करने वाले और ना अहल के साथ नेकी करने वाले के हिस्से में कमीने लोगों की तारीफ़ और बदतरीन अफ़राद की मदह व सना ही आती है और वह जब तक करम करता रहता है जेहाल (जाहिल) कहते रहते हैं के किस क़द्र करीम और सख़ी है यह शख़्स, हालाँके अल्लाह के मामले में यही शख़्स बख़ील भी होता है।

देखो अगर ख़ुदा किसी शख़्स को माल दे तो उसका फ़र्ज़ है के क़राबतदारों का ख़याल रखे। मेहमान नवाज़ी करे। क़ैदियों और ख़स्ता हालों को आज़ाद कराए। फ़क़ीरों और क़र्ज़दारों की इमदाद करे। अपने नफ़्स को हुक़ूक़ की अदायगी और मसाएब पर आमादा करे के इसमें सवाब की उम्मीद पाई जाती है और उन तमाम ख़सलतों के हासिल करने ही में दुनिया की शराफ़तें और करामतें हैं और उन्हीं से आखि़रत के फ़ज़ाएल भी हासिल होते हैं। (इन्शा अल्लाह)

(((-अगर यह बात सही और यक़ीनन सही है के माल वही बेहतर होता है जिसका माल और अन्जाम बेहतर होता है तो हर शख़्स का फ़र्ज़ है के अपने माल को उन्हें मवारिद में सर्फ़ करे जिसकी तरफ इस ख़ुतबे में इशारा किया गया है वरना बेमहल सर्फ़ से जाहिलों और बदकिरदारों की तारीफ़ के अलावा कुछ हाथ आने वाला नहीं है और इसमें न ख़ैरे दुनिया है और न ख़ैरे आखि़रत। बल्कि दुनिया और आखि़रत दोनों की तबाही और बरबादी का सबब है। परवरदिगार हर शख़्स को इस जेहालत और रियाकारी से महफ़ूज़ रखे-)))

128- आपका इरशादे गिरामी

(बसरा के हवादिस की ख़बर देते हुए)

ऐ अहनफ़! गेया के मैं उस शख़्स को देख रहा हूँ जो एक ऐसा लशकर लेकर आया है जिसमें न गर्द व ग़ुबार है और न शोर वग़ोग़ा है, न लजामों की खड़खड़ाहट है और न घोड़ों की हिनहिनाहट, यह ज़मीन को उसी तरह रोन्द रहे हैं जिस तरह शुर्तमुर्ग़ के पैर।

सय्यद रज़ी - हज़रत ने इस ख़बर में साहबे रन्ज की तरफ़ इशारा किया है (जिसका नाम अली बिन मोहम्मद था और उसने सन225 हि0 में बसरा में ग़ुलामों को मालिकों के खि़लाफ़ मुत्तहिद किया और हर ग़ुलाम से उसके मालिक को 500 कोड़े लगवाए।

अफ़सोस है तुम्हारी आबाद गलियों और उन सजे सजाए मकानात के हाल पर जिन के छज्जे गिदों के पर और हाथियों के सूंड़ के मानिन्द हैं उन लोगों की तरफ़ से जिनके मक़तूल पर गिरया नहीं किया जाता है और उनके ग़ाएब को तलाश नहीं किया जाता है, मैं दुनिया को मुंह के बल औन्धा कर देने वाला और इसकी सही औक़ात का जानने वाला और उसकी हालत को उसके शायाने शान निगाह से देखने वाला हूँ।

(तुर्कों के बारे में) मैं एक ऐसी क़ौम को देख रहा हूँ जिनके चेहरे चमड़े से मन्ढी ढाल के मानिन्द हैं, रेशम व दीबा के लिबास पहनते हैं और बेहतरीन असील घोड़ों से मोहब्बत रखते हैं, उनके दरम्यान अनक़रीब क़त्ल की गर्म बाज़ारी होगी जहाँ ज़ख़्मी मक़तूल के ऊपर से गुज़रंेगे और भागने वाले क़ैदियों से कम होंगे। (यह तातारियों के फ़ित्ने की तरफ़ इशारा है जहां चंगेज़ ख़ाँ और उसकी क़ौम ने तमाम इस्लामी मुल्कों को तबाह व बरबाद कर दिया और कुत्ते, सुअर को

अपनी ग़िज़ा बनाकर ऐसे हमले किये के शहरों को ख़ाक में मिला दिया) यह सुनकर एक शख़्स ने कहा के आप तो इल्मे ग़ैब की बातें कर रहे हैं तो आपने मुस्कुराकर इस कलबी शख़्स से फ़रमाया ऐ बरादरे कल्बी! यह इल्मे ग़ैब नहीं है बल्के साहेबे इल्म से तअल्लुम है।

(((- बनी तमीम के सरदार अहनफ़ बिन क़ैस से खि़ताब है जिन्होंने रसूले अकरम (स0) की ज़ेयारत नहीं की मगर इस्लाम क़ुबूल किया और जंगे जमल के मौक़े पर अपने इलाक़े में उम्मुल मोमेनीन के फ़ित्नों का दिफ़ाअ करते रहे और फिर जंगे सिफ़फ़ीन में मौलाए कायनात के साथ शरीक हो गए और जेहाद राहे ख़ुदा का हक़ अदा कर दिया।-)))

इल्मे ग़ैब क़यामत का और उन चीज़ों का इल्म है जिनको ख़ुदा ने क़ुराने मजीद में शुमार कर दिया है के अल्लाह के पास क़यामत का इल्म है बारिश के बरसाने वाला वही है और पेट में पलने वाले बच्चे का मुक़द्दर वही जानता है। उसके अलावा किसी को नहीं मालूम है के वह क्या कमाएगा और किस सरज़मीन पर मौत आएगी। परवरदिगार जानता है के रह्म का बच्चा लड़का है या लड़की, हसीन है या बदसूरत, सख़ी है या बख़ील, शफ़ी है या सईद, कौन जहन्नम का कुन्दा बन जाएगा और कौन जन्नत में अम्बियाए कराम का हमनशीन होगा। यह वह इल्मे ग़ैब है जिसे ख़ुदा के अलावा कोई नहीं जानता है। इसके अलावा जो भी इल्म है वह ऐसा इल्म है जिसे अल्लाह ने पैग़म्बर (स0) को तालीम दिया है और उन्होंने मुझे इसकी तालीम दी है और मेरे हक़ में दुआ की है के मेरा सीना उसे महफ़ूज़ कर ले और उस दिल में उसे महफ़ूज़ कर दे जो मेरे पहलू में हो।

129-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(नाप तौल के बारे में)

अल्लाह के बन्दों! तुम और जो कुछ इस दुनिया से तवक़्क़ो रखते हो सब एक मुक़र्ररा मुद्दत के मेहमान हैं और ऐसे क़र्जदार हैं जिनसे क़र्ज़ का मुतालबा हो रहा हो, उम्रें घट रही हैं और आमाल महफ़ूज़ किये जा रहे हैं, कितने दौड़ धूप करने वाले हैं जिनकी मेहनत बरबाद हो रही है और कितने कोशिश करने वाले हैं जो मुसलसल घाटे का शिकार हैं। तुम ऐसे ज़माने में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हो जिसमें नेकी मुसलसल मुंह फेरकर जा रही है और बुराई बराबर सामने आ रही है। शैतान लोगों को तबाह करने की हवस में लगा हुआ है, इसका साज़ व सामान मुस्तहकम हो चुका है उसकी साज़िशे आम हो चुकी हैं और उसके शिकार उसके क़ाबू में हैं। तुम जिधर चाहो निगाह उठाकर देख लो सिवाए उस फ़क़ीर के जो फ़क़्र की मुसीबत झेल रहा है और उस अमीर के जिसने नेमते ख़ुदा की नाषुक्री की है और उस कंजूसी के जिसने हक़क़े ख़ुदा में बुख़्ल ही को माल के इज़ाफ़े का ज़रिया बना लिया है और उस सरकश के जिसके कान नसीहतों के लिये बहरे हो गए हैं और कुछ नज़र नहीं आएगा। कहां चले गए वह नेक और स्वालेह बन्दे और किधर हैं वह शरीफ़ और करीमुन्नफ़्स लोग, कहां हैं वह अफ़राद जो कस्ब माश में एहतियात बरतने वाले थे और रास्तों में पाकीज़ा रास्ता इख़्तेयार करने वाले थे, क्या सब के सब इस पस्त और ज़िन्दगी को मकदर बना देने वाली दुनिया से नहीं चले गये और क्या तुम्हें ऐसे अफ़राद में नहीं छोड़ गए जिनकी हिक़ारत और जिनके ज़िक्र से एराज़ की बिना पर होंठ सिवाए इनकी मज़म्मत के किसी बात के लिये आपस में नहीं मिलते हैं। इन्ना लिल्लाह व इन्ना इलैहे राजेऊन। फ़साद इस क़द्र फ़ैल चुका है के न कोई हालात का बदलने वाला है और न कोई मना करने वाला और न ख़ुद परहेज़ करने वाला है तो क्या तुम इन्हीं हालात के ज़रिये ख़ुदा के मुक़द्दस जवार में रहना चाहते हो और उसके अज़ीज़तरीन दोस्त बनना चाहते हो। अफ़सोस! अल्लाह को जन्नत के बारे में धोका नहीं दिया जा सकता है और न उसकी मर्ज़ी को इताअत के बग़ैर हासिल किया जा सकता है। अल्लाह लानत करे उन लोगों पर जो दूसरों को नेकियों का हुक्म देते हैं और ख़ुद अमल नहीं करते हैं। समाज को बुराइयों से रोकते हैं और ख़ुद उन्हीं में मुब्तिला हैं।

130- आपका इरशादे गिरामी

(जो आपने अबूज़र ग़फ़्फ़ारी से फ़रमाया जब उन्हें रब्ज़ा की तरफ़ शहर बदर कर दिया गया)

अबूज़र! तुम्हारा ग़ैज़ व ग़ज़ब अल्लाह के लिये है लेहाज़ा उससे उम्मीद वाबस्ता रखो जिसके लिये यह ग़ैज़ व ग़ज़ब इख़्तेयार किया है। क़ौम को तुमसे अपनी दुनिया के बारे में ख़तरा था और तुम्हें उनसे अपने दीन के बारे में ख़ौफ़ था लेहाज़ा जिसका उन्हें ख़तरा था वह उनके लिये छोड़ दो और जिसके लिये तुम्हें ख़ौफ़ था उसे बचाकर निकल जाओ। यह लोग बहरहाल उसके मोहताज हैं जिसको तुमने उनसे रोका है और तुम उससे बहरहाल बेनियाज़ हो जिससे इन लोगों ने तुम्हें महरूम किया है। अनक़रीब यह मालूम हो जाएगा के फ़ायदे में कौन रहा और किससे हसद करने वाले ज़्यादा हैं। याद रखो के किसी बन्दए ख़ुदा पर अगर ज़मीन व आसमान दोनों के रास्ते बन्द हो जाएं और वह तक़वाए इलाही इख़्तेयार कर ले तो अल्लाह उसके लिये कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल देगा। देखो तुम्हें सिर्फ़ हक़ से उन्स और बातिल से वहशत होनी चाहिए तुम अगर इनकी दुनिया को क़ुबूल कर लेते तो यह तुमसे मोहब्बत करते और अगर दुनिया में से अपना हिस्सा ले लेते तो तुम्हारी तरफ़ से मुतमइन हो जाते।

131- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अपनी हुकूमत तलबी का सबब बयान फ़रमाया है और इमामे बरहक़ के औसाफ़ का तज़किरा किया है।)

अगर वह लोग जिनके नफ़्स मुख़्तलिफ़ हैं और दिल मुतफ़र्रिक़, बदन हाज़िर हैं और अक़्लें ग़ायब, मैं तुम्हें मेहरबानी के साथ हक़ की दावत देता हूँ और तुम इस तरह फ़रार करते हो जैसे शेर की डकार से बकरियां। अफ़सोस तुम्हारे ज़रिये अद्ल की तारीकियों को कैसे रौशन किया जा सकता है और हक़ में पैदा हो जाने वाली कजी को किस तरह सीधा किया जा सकता है। ख़ुदाया तू जानता है के मैंने हुकूमत के बारे में जो एक़दाम किया है उसमें न सलतनत की लालच थी और न माले दुनिया की तलाश, मेरा मक़सद सिर्फ़ यह था के दीन के आसार को उनकी मन्ज़िल तक पहुंचाऊं और शहरों में इस्लाह पैदा कर दूँ ताके मज़लूम बन्दे महफ़ूज़ हो जाएं और मोअत्तल हुदूद क़ाएम हो जाएं। ख़ुदाया तुझे मालूम है के मैंने सबसे पहले तेरी तरफ़ रूख़ किया है और उसे क़ुबूल किया है और तेरी बन्दगी में रसूले अकरम (स0) के अलावा किसी ने भी मुझ पर सबक़त नहीं की है।

तुम लोगों को मालूम है के लोगों की आबरू, उनकी जान, उनके मनाफ़े, इलाही एहकाम और इमामते मुस्लेमीन का ज़िम्मेदार न कोई बख़ील हो सकता है के वह अमवाले मुस्लेमीन पर हमेशा दांत लगाए रहेगा और न कोई जाहिल हो सकता है के वह अपनी जेहालत से लोगो को गुमराह कर देगा और न कोई बद अख़लाक़ हो सकता है के वह बद अख़लाक़ी के चरके लगाता रहेगा और न कोई मालियात का बद दियानत हो सकता है के वह एक को माल दे देगा और एक को महरूम कर देगा और न कोई फैसले में रिश्वत लेने वाला हो सकता है के वह हुक़ूक़ को बरबाद कर देगा और उन्हें इनकी मन्ज़िल तक न पहुंचने देगा और न कोई सुन्नत को मुअत्तल करने वाला हो सकता है के वह उम्मत को हलाक कर देगा।

132- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें लोगों को नसीहत फ़रमाई है और ज़ोहद की तरग़ीब दी है)

शुक्र है ख़ुदा का उस पर भी जो दिया है और उस पर भी जो ले लिया है। उसके इनआम पर भी और उसके इम्तेहान पर भी वह हर मख़फ़ी के अन्दर का भी इल्म रखता है और हर पोशीदा अम्र के लिये हाज़िर भी है। दिलों के अन्दर छिपे हुए इसरार और आँखों के चोरी छिपे इशारों को बख़ूबी जानता है और मैं इस बात की गवाही देता हूं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स0) उसके भेजे हुए रसूल हैं और इस गवाही में बातिन ज़ाहिर से और दिल ज़बान से हम आहंग है।

ख़ुदा की क़सम वह शै जो हक़ीक़त है और खेल तमाशा नहीं है, हक़ है और झूठ नहीं है वह सिर्फ़ मौत है जिसके दाई ने अपनी आवाज़ सबको सुना दी है और जिसका हंकाने वाला जल्दी मचाए हुए है लेहाज़ा ख़बरदार लोगों की कसरत तुम्हारे नफ़्स को धोके में न डाल दे, तुम देख चुके हो के तुमसे पहले वालों ने माल जमा किया, इफ़लास से ख़ौफ़ज़दा रहे, अन्जाम से बेख़बर रहे, सिर्फ़ लम्बी-लम्बी उम्मीदों और मौत की ताख़ीर के ख़याल में रहे और एक मरतबा मौत नाज़िल हो गई और उसने उन्हें वतन से बेवतन कर दिया। महफ़ूज़ मक़ामात से गिरफ़तार कर लिया और ताबूत पर उठवा दिया जहां लोग कान्धों पर उठाए हुए, उंगलियों का सहारा दिये हुए एक-दूसरे के हवाले कर रहे थे। क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दूर दराज़ उम्मीदें रखते थे और मुस्तहकम मकानात बनाते थे और बेतहाशा माल जमा करते थे के किसी तरह उनके घर क़ब्रों में तब्दील हो गए और सब किया धरा तबाह हो गया। अब अमवाल विरसे के लिये हैं और अज़वाज दूसरे लोगों के लिये। न नेकियों में इज़ाफ़ा कर सकते हैं और न बुराइयों के सिलसिले में रिज़ाए इलाही का सामान फ़राहम कर सकते हैं। याद रखो जिसने तक़वा को शआर बना लिया वही आगे निकल गया और उसी का अमल कामयाब होगा, लेहाज़ा तक़वा के मौक़े को ग़नीमत समझो और जन्नत के लिये उसके आमाल अन्जाम दे लो। यह दुनिया तुम्हारे क़याम की जगह नहीं है। यह फ़क़त एक गुज़रगाह है के यहाँ से हमेशगी के मकान के लिये सामान फ़राहम कर लो, लेहाज़ा जल्दी तैयारी करो और सवारियों को कूच के लिये अपने से क़रीबतर कर लो।

133- आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमें अल्लाह की अज़मत और क़ुरआन की जलालत का ज़िक्र है और फिर लोगों को नसीहत भी की गई है)

(परवरदिगार) दुनिया व आख़ेरत दोनों ने अपनी बागडोर उसी के हवाले कर रखी है और ज़मीन व आसमान ने अपनी कुन्जीयात उसी की खि़दमत में पेश कर दी है। उसकी बारगाह में सुबह व शाम सरसब्ज़ व शादाब दरख़्त सजदारेज़ रहते हैं और अपनी लकड़ियों से चमकदार आग निकालते रहते हैं और उसी के हुक्म के मुताबिक़ पके हुए फल पेश करते रहते हैं।

(((- इन्सानी ज़िन्दगी में कामयाबी का राज़ यही एक नुक्ता है के यह दुनिया इन्सान की मन्ज़िल नहीं है बल्कि एक गुज़रगाह है जिससे गुज़रकर एक अज़ीम मन्ज़िल की तरफ़ जाना है और यह मालिक का करम है के उसने यहाँ से सामान फ़राहम करने की इजाज़त दे दी है और यहाँ के सामान को वहाँ के लिये कारआमद बना दिया है। यह और बात है के दोनों जगह का फ़र्क़ यह है के यहाँ के लिये सामान रखा जाता है तो काम आता है और वहाँ के लिये राहे ख़ुदा में दे दिया जाता है तो काम आता है। ग़नी और मालदार दुनिया सजा सकते हैं लेकिन आख़ेरत नहीं बना सकते हैं। वह सिर्फ़ करीम और साहबे ख़ैर अफ़राद के लिये है जिनका शआर तक़वा है और जिनका एतमाद वादाए इलाही पर है।-)))

(क़ुराने हकीम) किताबे ख़ुदा निगाह के सामने है वह नातिक़ है जिसकी ज़बान आजिज़ नहीं होती है और वह घर है जिसके अरकान मुनहदिम नहीं होते हैं, यही वह इज़्ज़त है जिसके ऐवान व अन्सार शिकस्त ख़ोरदा नहीं होते हैं।

(रसूले अकरम स0) अल्लाह ने आपको उस वक़्त भेजा जब रसूलों का सिलसिला रूका हुआ था और ज़बानें आपस में टकरा रही थीं। आपके ज़रिये रसूलों के सिलसिले को तमाम किया और वही के सिलसिले को मौक़ूफ़ किया तो आपने भी उससे इन्हेराफ़ करने वालों और उसका हमसर ठहराने वालों से जम कर जेहाद किया। (दुनिया) यह दुनिया अन्धे की बसारत की आख़री मन्ज़िल है जो उसके मावरा कुछ नहीं देखता है जबके साहेबे बसीरत की निगाह उस पार निकल जाती है और वह जानता है के मन्ज़िल उसके मावदा है। साहबे बसीरत उससे कूच करने वाला है और अन्धा इसकी तरफ़ कूच करने वाला है। बसीर इससे ज़ादे राह फ़राहम करने वाला है और अन्धा इसके लिये ज़ादे राह इकट्ठा करने वाला है।

(मोअज़) याद रखो के दुनिया में जो शै भी है उसका मालिक सेर हो जाता है और उकता जाता है अलावा ज़िन्दगी के, के कोई शख़्स मौत में राहत नहीं महसूस करता है और यह बात उस हिकमत की तरह है जिसमें मुर्दा दिलों की ज़िन्दगी, अन्धी आंखों की बसारत, बहरे कानों की समाअत और प्यासे की सेराबी का सामान है और इसी में सारी मालदारी है और मुकम्मल सलामती है।

यह किताबे ख़ुदा है जिसमें तुम्हारी बसारत और समाअत का सारा सामान मौजूद है। इसमें एक हिस्सा दूसरे की वज़ाहत करता है और एक दूसरे की गवाही देता है। यह ख़ुदा के बारे में इख़्तेलाफ़ नहीं रखता है और अपने साथी को ख़ुदा से अलग नहीं करता है, मगर तुमने आपस में कीना व हसद पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया है और इसी घूरे पर सब्ज़ा उग आया है। उम्मीदों की मोहब्बत में एक-दूसरे से हम-आहंग हो और माल जमा करने में एक-दूसरे के दुशमन हो, शैतान ने तुम्हें सरगर्दां कर दिया है और फ़रेब ने तुमको बहका दिया है। अब अल्लाह ही मेरे और तुम्हारे नफ़्सों के मुक़ाबले में एक सहारा है।

(((-अगरचे दुनिया में ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश आम तौर से आख़ेरत के ख़ौफ़ से पैदा होती है के इन्सान अपने आमाल और अन्जाम की तरफ़ से मुतमईन नहीं होता है और इसी लिये मौत के तसव्वुर से लरज़ जाता है लेकिन इसके बावजूद यह ख़्वाहिश ऐब नहीं है बल्कि यही जज़्बा है जो इन्सान को अमल करने पर आमादा करता है और इसी के लिये इन्सान दिन और रात को एक कर देता है। ज़रूरत इस बात की है के इस ख़्वाहिशे हयात को हिकमत के साथ इस्तेमाल करे और उससे वैसा ही काम ले जो हिकमत सही और फ़िक्रे सलीम से लिया जाता है वरना यही ख़्वाहिश वबाले जान भी बन सकती है।-)))

134- आपका इरशादे गिरामी

(जब उमर ने रोम की जंग के बारे में आपसे मशविरा किया)

अल्लाह ने साहेबाने दीन के लिये यह ज़िम्मेदारी ले ली है के वह उनके हुदूद को तक़वीयत देगा और उनके महफ़ूज़ मक़ामात की हिफ़ाज़त करेगा, और जिसने उनकी उस वक़्त मदद की है जबके वह क़िल्लत की बिना पर इन्तेक़ाम के क़ाबिल नहीं थे और अपनी हिफ़ाज़त का इन्तेज़ाम भी न कर सकते थे, वह अभी भी ज़िन्दा है और उसके लिये मौत नहीं है। अगर ख़ुद दुशमन की तरफ़ जाओगे और उनका सामना करोगे और निकबत में मुब्तिला हो गए तो मुसलमानों के लिये आख़ेरी शहर के अलावा कोई पनाहगाह न रह जाएगी और तुम्हारे बाद मैदान में कोई मरकज़ भी न रह जाएगा जिसकी तरफ़ रूजू कर सकें लेहाज़ा मुनासिब यही है के किसी तजुर्बेकार आदमी भेजो और उसके साथ साहेबाने ख़ैर व महारत की एक जमाअत को कर दो। उसके बाद अगर ख़ुदा ने ग़लबा दे दिया तो यही तुम्हारा मक़सद है अगर इसके खि़लाफ़ हो गया तो तुम लोगों का सहारा और मुसलमानों के लिये एक पलटने का मरकज़ रहोगे।


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