नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
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नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

152- आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमें परवरदिगार के सिफ़ात और आइम्माए ताहेरीन (अ0) के औसाफ़ का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी तख़लीक़ से अपने वजूद का, अपनी मख़लूक़ात के जादिस होने से अपनी अज़लियत का और उनकी बाहेमी मुशाबेहत से अपने बेनज़ीर होने का पता दिया है। उसकी ज़ात तक हवास की रसाई नहीं है और फिर भी परदे उसे पोशीदा नहीं कर सकते हैं।

मौज़ू सानेअ से और हदबन्दी करने वाला महदूद से और परवरिश करने वाला परवरिश पाने वाले से बहरहाल अलग होता है। वह एक है मगर अदद के एतबार से नहीं। वह ख़ालिक़ है मगर हरकत व ताब के ज़रिये नहीं, वह समीअ है लेकिन कानों के ज़रिये नहीं और वह बसीर है लेकिन न इस तरह के आंखों को फैलाए।

वह हाज़िर है मगर छुआ नहीं जा सकता और वह दूर है लेकिन मसाफ़तों के एतबार से नहीं, वह ज़ाहिर है लेकिन देखा नहीं जा सकता है और वह बातिन है लेकिन जिस्म की लताफ़तों की बिना पर नहीं। वह चीज़ो से अलग है अपने क़हर व ग़लबे और क़ुदरत व इख़्तेयार की बिना पर और मख़लूक़ात उससे जुदागाना है ख़ुज़ू व खुशु और उसकी बारगाह में बाज़गश्त की बिना पर। जिसने उसके लिये अलग से औसाफ़ का तसव्वुर किया उसने उसे आदाद मुअय्यन में लाकर खड़ा कर दिया और जिसने ऐसा किया उसने उसे हादस बनाकर उसकी अज़लियत का ख़ात्मा कर दिया और जिसने यह सवाल किया के वह कैसा है उसने अलग से औसाफ़ की जुस्तजू की और जिसने यह दरयाफ़्त किया के वह कहाँ है? उसने उसे मकान में महदूद कर दिया। वह उस वक़्त से आलिम है जब मालूमात का पता भी नहीं था और उस वक़्त से मालिक है जब ममलूकात का निशान भी नहीं था और उस वक़्त से क़ादिर है जब मक़दूरात परदए अदम में पड़े थे।

(आइम्माए (अ0) दीन) देखो तुलूअ करने वाला तालेअ हो चुका है और चमकने वाला रौशन हो चुका है , ज़ाहिर होने वाले का ज़हूर सामने आ चुका है, कजी सीधी हो चुकी है और अल्लाह एक क़ौैम के बदले दूसरी क़ौम और एक दौर के बदले दूसरा दौर ले आया है। हमने हालात में इन्क़ेलाब का उसी तरह इन्तेज़ार किया है जिस तरह क़हत ज़दा बारिश का इन्तेज़ार करता है। आइम्मा दर हक़ीक़त अल्लाह की तरफ़ से मख़लूक़ात के निगरां और अल्लाह के बन्दों पर उसकी मारेफ़त का सबक़ देने वाले हैं। कोई शख़्स जन्नत में क़दम नहीं रख सकता है जब तक वह उन्हें न पहचान ले और आइम्मा हज़रात उसे अपना न कह दें और कोई शख़्स जहन्नुम में जा नहीं सकता है मगर यह के वह इन हज़रात का इन्कार कर दे और वह भी उसे पहचानने से इन्कार कर दें। परवरदिगार ने तुम लोगों को इस्लाम से नवाज़ा है और तुम्हें उसके लिये मुन्तख़ब किया है। इसलिये के इस्लाम सलामती का निशान और उम्मत का सरमाया है। अल्लाह ने इसके रास्ते का इन्तेख़ाब किया है। इसके दलाएल को वाज़ेअ किया है। ज़ाहिरी इल्म और बातिनी हुकूमतों के मानिन्द इसके ग़राएब फ़ना होने वाले और इसके अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं हैं। इसमें नेमतों की बहार और ज़ुल्मतों के चिराग़ हैं। नेकियों के दरवाज़े इसकी कुन्जियों से खुलते हैं और तारीकियों का इज़ाला इसी के चराग़ों से होता है। इसने अपने हुदूद को महफ़ूज़ कर लिया है। उसने अपनी चरागाह को आम कर दिया है। इसमें तालिबे शिफ़ा के लिये शिफ़ा और उम्मीदवार किफ़ायत के लिये बेनियाज़ी का सामान मौजूद है।

153- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(गुमराहों और ग़ाफ़िलों के बारे में)

(गुमराह) यह इन्सान अल्लाह की तरफ़ से मोहलत की मन्ज़िल में है, ग़ाफ़िलों के साथ तबाहियों के गढ़े में गिर पड़ता है और मक्कारों के साथ सुबह करता है। न इसके सामने सीधा रास्ता है और न क़यादत करने वाला पेशवा।

(ग़ाफ़ेलीन) यहाँ तक के जब परवरदिगार ने उनके गुनाहों की सज़ा को वाज़ेअ कर दिया और उन्हें ग़फ़लत के पर्दों से बाहर निकाल दिया तो जिससे मुंह फिराते थे उसी की तरफ़ दौड़ने लगे और जिसकी तरफ़ मुतवज्जो थे उससे मुंह फिराने लगे। जिन मक़ासिद को हासिल कर लिया था उससे भी कोई फ़ायदा नहीं उठाया और जिन हाजतों को पूरा कर लिया था उनसे भी कोई नतीजा नहीं हासिल हुआ!

देखो मैं तुम्हें और ख़ुद अपने नफ़्स को भी इस सूरते हाल से होशियार कर रहा हूँ। हर शख़्स को चाहिये के अपने नफ़्स से फ़ायदा उठाए। साहेबे बसीरत वही है जो सुने तो ग़ौर भी करे और देखे तो (हक़ीक़तों पर) निगाह भी करे और फिर इबरतों से फ़ायदा हासिल करके उस रौशन रास्ते पर चल पड़े जिसमें गुमराही के गड्ढ़े में गिरने से परहेज़ करे और शुबहात में पड़कर गुमराह न हो जाए। हक़ से बेराह होने और बात में रद्दो बदल करने और सच्चाई में ख़ौफ़ खाने से गुमराहियों की मदद करके ज़ियाँकार न बने। (हक़ के खि़लाफ़ गुमराहों की इस तरह मदद न करे के हक़ की राह से इन्हेराफ़ कर ले या गुफ़्तगू में तहरीफ़ से काम ले या सच बोलने का शिकार हो रहा हो।)

मेरी बात सुनने वालों! अपनी मदहोशी से होश में आ जाओ और अपनी ग़ज़ब (ग़फ़लत) से बेदार हो जाओ। सामाने दुनिया मुख़्तसर कर लो और उन निशानियों पर ग़ौरो फ़िक्र करो जो बातें तुम्हारे पास पैग़म्बर उम्मी (स0) की ज़बान मुबारक से आई हैं उनमें और जिनका इख़्तेयार करना ज़रूरी है (उनमें अच्छी तरह ग़ौरो फ़िक्र) करो के उनसे न कोई चारा है और न कोई गुरेज़ की राह। जो इस बात की मुख़ालफ़त करे उससे इख़्तेलाफ़ करके दूसरे रास्ते पर चल पड़ो और उसे उसकी मर्ज़ी पर चलने दो (के वह अपने नफ़्स की मर्ज़ी पर चलता है) , फ़ख़्रो मुबाहात को छोड़ दो, तकब्बुर को ख़त्म कर दो (बुराई के सर को नीचा कर दो) और अपनी क़ब्र को याद रखो के इसी रास्ते से गुज़रना है और जैसा करोगे वैसा ही मिलेगा और जैसा बोओगे वैसा ही काटना है जो आज भेज दिया है कल उसी का सामना करना है। अपने क़दमों के लिये ज़मीन लो और उस दिन के लिये सामान पहले से भेज दो, होशियार होशियार ऐ सुनने वालों और मेहनत (कोशिश करो), मेहनत (कोशिश करो) ऐ ग़फलत वालों! मुझ जैसे बाख़बर की तरह कोई (दूसरा) न बताएगा।

देखो! क़ुराने मजीद में परवरदिगार के मुस्तहकम उसूलों में जिस पर सवाब व अज़ाब और रिज़ा व नाराज़गी का दारोमदार है। यह बात है के इन्सान इस दुनिया में किसी क़द्र मेहनत क्यों न करे और कितना ही मुख़लिस क्यों न हो जाए अगर दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना चाहे और दर्ज ज़ैल ख़सलतों से तौबा न करे तो उसे यह जद्दो जेहद और एख़लास अमल कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता है। इबादत इलाही में किसी को शरीक क़रार दे अपने नफ़्स की तस्कीन के लिये किसी को हलाक कर दे, एक के काम पर दूसरों को लगा दे, दीन में कोई बिदअत ईजाद करके उसके ज़रिये लोगों से फ़ायदा हासिल करे, लोगों के सामने पालीसी इख़्तेयार करे, या दो ज़बानों के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे उस हक़ीक़त को समझ लो के हर शख़्स अपनी नज़र की दलाली पाता है। ;(यह चीज़ है के किसी बन्दे को चाहे वह जो कुछ जतन करवा ले दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना ज़रा फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता जबके वह इन ख़सलतों में से किसी एक ख़सलत से तौबा किये बग़ैर मर जाए एक यह के फ़राएज़े इबादत में किसी को इसका शरीक ठहराया हो या किसी को हलाक करके अपने ग़ज़ब को ठन्डा किया हो, या दूसरे के किये पर ऐब लगाया हो या दीन में बिदअतें डाल कर लोगों से अपना मक़सद पुरा किया हो या लोगों से दो रूख़ी चाल चलता हो या वह ज़बानों से लोगों से गुफ़्तगू करता हो इस बात को समझो इसलिये के एक नज़ीर दुसरी नज़ीर की दलील हुआ करती है।)

यक़ीनन चोपायों का सारा हदफ़ उनका पेट होता है और दरिन्दों का सारा निशाना दूसरों पर ज़ुल्म होता है और औरतों का सारा ज़िन्दगानी मक़सद दुनिया की ज़ीनत और फ़साद पर होता है। लेकिन साहेबाने ईमान ख़ुज़ू व खुशु रखने वाले, (मोमिन वह है जो तकब्बुर व ग़ुरूर से दूर हों) ख़ौफ़े ख़ुदा रखने वाले और उसकी बारगाह में तरसाँ और लरज़ाँ रहते हैं।

154 - आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमें फ़ज़ाएले अहलेबैत (अ0) का ज़िक्र किया गया है)

अक़्लमन्द वह है जो दिल की आंखों से अपने अन्जाम कार को देख लेता है और उसके नशेब व फ़राज़ को पहचान लेता है। दावत देने वाला दावत दे चुका है और निगरानी (निगेहदाष्त) करने वाला निगरानी का फ़र्ज़ अदा कर चुका है। अब तुम्हारा फ़रीज़ा है के दावत देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कहो और निगराँ (निगेहदाष्त करने वाले) के नक़्शे क़दम पर चल पड़ो।

यह लोग फ़ित्नों के दरयाओं में डूब गए हैं और सुन्नत को छोड़कर बिदअतों को इख़्तेयार कर लिया है। मोमेनीन गोशा व किनार में दबे हुए हैं और गुमराह और इफ़तेराए परवाज़ मसरूफ़े कलाम हैं।

दर हक़ीक़त हम अहलेबैत ही देन के निशान और उसके साथी, इसके एहकाम के ख़ज़ानेदार और इसके दरवाज़े हैं, ज़ाहिर है के घरों में दाखि़ल दरवाज़ों के बग़ैर नहीं हो सकता है वरना इन्सान चोर कहा जाता है।

इन्हीं अहलेबैत (अ0) के बारे में क़ुरआने करीम की अज़ीम आयात हैं और यही रहमान के ख़ज़ानेदार हैं , यह जब बोलते हैं तो सच बोलते हैं और जब क़दम आगे बढ़ाते हैं तो कोई इन पर सबक़त नहीं ले जा सकता है। हर ज़िम्मेदार क़ौम का फ़र्ज़ है के अपने क़ौम से सच बोले और अपनी अक़ल को गुम न होने दे और फ़रज़न्दाने आख़ेरत में शामिल हो जाए के उधर ही से आया है और उधर ही पलट कर जाना है। यक़ीनन दिल की आंखों से देखने वाले और देख कर अमल करने वाले के अमल की इब्तेदा उसके इल्म से होती है के इसका अमल उसके लिये मुफ़ीद है या इसके खि़लाफ़ है। अगर मुफ़ीद है तो इसी रास्ते पर चलता रहे और अगर मुज़िर है तो ठहर जाए के इल्म के बग़ैर अमल करने वाला ग़लत रास्ते पर चलने वाले के मानिन्द है के जिस क़द्र रास्ते तय करता जाएगा मन्ज़िल से दूरतर होता जाएगा और इल्म के साथ अमल करने वाला वाज़ेअ रास्ते पर चलने के मानिन्द है। लेहाज़ा हर आंख वाले को यह देख लेना चाहिये के वह आगे बढ़ रहा है या पीछे हट रहा है और याद रखो के हर ज़ाहिर के लिये उसी का जैसा बातिन भी होता है लेहाज़ा अगर ज़ाहिर पाकीज़ा होगा तो बातिन भी पाकीज़ा होगा और अगर ज़ाहिर ख़बीस हो गया तो बातिन भी ख़बीस हो जाएगा। रसूले सादिक़ ने सच फ़रमाया है के “अल्लाह कभी कभी किसी बन्दे को दोस्त रखता है और उसके अमल से बेज़ार होता है और कभी अमल को दोस्त रखता है और ख़ुद उसी से बेज़ार रहता है।

याद रखो के हर अमल सब्ज़े की तरह गिरने वाला होता है और सब्ज़ा पानी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और पानी भी तरह तरह के होते हैं लेहाज़ा सिंचाई पाकीज़ा पानी से होगी तो पैदावार भी पाकीज़ा होगी और फल भी शीरीं होगा और अगर सिंचाई ही ग़लत पानी से होगी तो पैदावार भी ख़बीस होगी और फल भी कड़वे होंगे।

155- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें चिमगादड़ की अजीब व ग़रीब खि़लक़त का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी मारेफ़त की गहराइयों से औसाफ़ आजिज़ हैं और जिसकी अज़मतों ने अक़्लों को आगे बढ़ने से रोक दिया है तो अब इसकी सल्तनतों की हदों तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रह गया है।

वह ख़ुदाए बरहक़ व आशकार है, उससे ज़्यादा साबित और वाज़ेह है जो आंखों के मुशाहिदे में आ जाता है, अक़्लें उसकी हदबन्दी नहीं कर सकती हैं के वह किसी की शबीह क़रार दे दिया जाए और ख़यालात उसका अन्दाज़ा नहीं लगा सकते हैं के वह किसी की मिसाल बना दिया जाए। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी नमूने और मिसाल के और किसी मुशीर के मश्विरे या मददगार की मदद के बनाया है। उसकी तख़लीक़ उसके अम्र से तकमील हुई है और फिर उसी की इताअत के लिये सर ब सुजूद है और बिला तौक़फ़ उसकी आवाज़ पर लब्बैक कहती है और बग़ैर किसी इख़्तेलाफ़ के सामने सरनिगूं होती है।

उसकी लतीफ़तरीन सनअत और अजीबतरीन खि़लक़त का एक नमूना वह है जो उसने अपनी दक़ीक़तरीन हिकमत से चमगादड़ की तख़लीक़ में पेश किया है के जिसे हर “शै को वुसअत देने वाली रोशनी सुकेड़ देती है और हर ज़िन्दा को सुकेड़ देने वाली तारीकी वुसअत अता कर देती है। किस तरह उसकी आँखें चकाचैन्द हो जाती है के रौशन आफ़ताब की शुआओं से मदद हासिल करके अपने रास्ते तय कर सके और खुली हुई आफ़ताब की रोशनी के ज़रिये अपनी जानी मन्ज़िलों तक पहुंच सके (हालांके वह हर ज़िन्दा “शै की आंखों पर नक़ाब डालने वाला है और क्यूंके चमकते हुए सूरज में इनकी आंखें चुन्धिया जाती हैं के वह उसकी नूरपाश शुआओं से मदद ले कर अपने रास्तों पर आ जा सकें और नूरे आफ़ताब के फैलाव में अपनी जानी पहचानी हुई चीज़ों तक पहुंच सकें)। नूरे आफ़ताब ने अपनी चमक दमक के ज़रिये उसे रौशनी के तबक़ात में आगे बढ़ने से रोक दिया है और रोशनी के उजाले में आने से रोक कर मख़फ़ी मक़ामात पर छिपा दिया है। दिन में इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और रात को चिराग़ बनाकर वह तलाशे रिज़्क़ में निकल पड़ती है। इसकी निगाहों को रात की तारीकी नहीं पलटा सकती है और इसको रास्ते में आगे बढ़ने से शदीद ज़ुलमत भी नहीं रोक सकती है। इसके बाद जब आफ़ताब अपने नक़ाब को उलट देता है और दिन का रौशन चेहरा सामने आ जाता है और आफ़ताब की किरने बिज्जू के सूराख़ तक पहुंच जाती हैं तो इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और जो कुछ रात की तारीकियों में हासिल कर लिया है उसी पर गुज़ारा शुरू कर देती है। क्या कहना उस माबूद का जिसने इसके लिये रात को दिन और वसीलए मआश बना दिया है और दिन को वज्हे सुकून व क़रार मुक़र्रर कर दिया है और फिर उसके लिये ऐसे गोश्त के पर बना दिये हैं जिसके ज़रिये वक़्ते ज़रूरत परवाज़ भी कर सकती है। गोया के यह कान की लौएं हैं जिनमें न पर हैं और न करयां मगर इसके बावजूद तुम देखोगे के कानों की जगहों के निशानात बिल्कुल वाज़ेअ हैं और इसके ऐसे दो पर बन गए हैं जो न इतने बारीक हैं के फट जाएं और न इतने ग़लीज़ हैं के परवाज़ में ज़हमत हो। इसकी परवाज़ की शान यह है के अपने बच्चे को साथ लेकर सीने से लगाकर परवाज़ करती है, जब नीचे उतरती है तो बच्चा साथ होता है और जब ऊपर उड़ती है तो बच्चा हमराह होता है और उस वक़्त तक उससे अलग नहीं होता है जब क उसके आज़ाअ मज़बूत न हो जाएं और उसके पर उसका बोझ उठाने के क़ाबिल न हो जाएं और वह अपने रिज़्क़ के रास्तों और मसलहतों को ख़ुद पहचान न ले। पाक व बेनियाज़ है वह हर “शै का पैदा करने वाला जिसने किसी ऐसी मिसाल का सहारा नहीं लिया जो किसी दूसरे से हासिल की गई हो।

156- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अहले बसरा से खि़ताब करके उन्हें हवादिस से बाख़बर किया गया है)

ऐसे वक़्त में अगर कोई शख़्स अपने नफ़्स को सिर्फ़ ख़ुदा तक महदूद रखने की ताक़त रखता है तो उसे ऐसा ही करना चाहिये। फिर अगर तुम मेरी इताअत करोगे तो मैं तुम्हें इन्शा अल्लाह जन्नत के रास्ते पर चलाउंगा चाहे इसमें कितनी ही ज़हमत और तल्ख़ी क्यों न हो।

रह गई फ़लां ख़ातून की बात तो उन पर औरतों की जज़्बाती राय का असर हो गया है और इस कीने ने असर कर दिया है जो उनके सीने में लोहार के कढ़ाव की तरह खौल रहा है।

(((-इस लफ़्ज़ से मुरद मुसल्लम तौर पर हज़रत आइशा की ज़ात है लेकिन आपने उन्हें नाम के साथ क़ाबिले ज़िक्र नहीं क़रार दिया है और उनकी दो अज़ीम कमज़ारियों की तरफ़ मुतवज्जो किया है, एक यह है के इनमें आम औरतों की जज़्बाती कमज़ोरी पाई जाती है जो अक्सर एहकामे दीन और मर्ज़ीए परवरदिगार पर ग़ालिब आ जाती है जबके अज़वाजे रसूल (स0) को इस कमज़ोरी से बलन्दतर होना चाहिए , और दूसरी बात यह है के इनके दिल में कीना पाया जाता है के इनके बारे में रसूले अकरम (स0) के वह इरशादात नहीं हैं जो हज़रत अली (अ0) के बारे में हैं और उन्हें क़ुदरत ने क़ाबिले औलाद न बनाकर नस्ले अली (अ0) को नस्ले पैग़म्बर (स0) बना दिया है।-)))

उन्हें अगर मेरे अलावा किसी और के साथ इस बरताव की दावत दी जाती तो कभी न आतीं लेकिन उसके बाद भी मुझे उनकी साबेक़ा हुरमत का ख़याल है। इनका हिसाब बहरहाल परवरदिगार के ज़िम्मे है।

ईमान का रास्ता बिल्कुल वाज़ेह और इसका चिराग़ मुकम्मल तौर पर नूर अफ़्षाँ है। ईमान ही के ज़रिये नेकियों का रास्ता हासिल किया जाता है और नेकियों ही के ज़रिये से ईमान की पहचान होती है। ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म से मौत का ख़ौफ़ हासिल होता है और मौत ही पर दुनिया का रास्ता है। (ईमान की राह सब राहों से वाज़ेअ और सब चिराग़ों से ज़्यादा नुरानी है ईमान से नेकियों पर इस्तेदलाल किया जाता है और नेकियों से ईमान पर दलील लाई जाती है, ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म की बदौलत मौत से डराया जाता है और दुनिया से आख़ेरत हासिल की जाती है।) और दुनिया ही के ज़रिये आख़ेरत हासिल की जाती है और आखि़रत ही में जन्नत को क़रीब कर दिया जाएगा और जहन्नम को गुमराहों के लिये बिल्कुल नुमायां किया जाएगा। मख़लूक़ात के लिये क़यामत से पहले कोई मन्ज़िल नहीं है। उन्हें इस मैदान में आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ बहरहाल दौड़ लगाना है।

(क दूसरा हिस्सा) वह अपनी क़ब्रों से उठ खड़े हुए और अपनी आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ चल पड़े। हर घर के अपने अहल होते हैं जो न घर को बदलते हैं और न उससे मुन्तक़िल हो सकते हैं।

यक़ीनन अम्रे बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर यह दो ख़ुदाई इख़्लाक़ हैं और यह न किसी की मौत को क़रीब बनाते हैं और न किसी की रोज़ी को कम करते हैं। तुम्हारा फ़र्ज़ है के किताबे ख़ुदा से वाबस्ता रहो के वही मज़बूत रसीमाने हिदायत और रौशन नूरे इलाही है। इसी में मनफ़अत बख़्श शिफ़ा है और इसी में प्यास बुझाने वाली सेराबी है। वही तमस्सुक करने वालों के लिये वसीलए अज़मत किरदार है और वही राबेता रखने वालों के लिये ज़रियए निजात है। उसी में कोई कजी नहीं है जिसे सीधा किया जाए और उसी में इन्हेराफ़ नहीं है जिसे दुरूस्त किया जाए, मुसलसल तकरार उसे पुराना नहीं कर सकती है और बराबर सुनने से उसकी ताज़गी में फ़र्क़ नहीं आता है जो इसके ज़रिये कलाम करेगा वह सच्चा होगा और जो इसके मुताबिक़ अमल करेगा वह सबक़त ले जाएगा।

इस दरम्यान एक शख़्स खड़ा हो गया और उसने कहा या अमीरूल मोमेनीन (अ0) ज़रा फ़ित्ना के बारे में बतलाएं ? क्या आपने इस सिलसिले में रसूले अकरम (स0) से दरयाफ़्त किया है ? फ़रमाया जिस वक़्त आयत शरीफ़ नाज़िल हुई “क्या लोगों का ख़याल यह है के उन्हें ईमान के दावा ही पर छोड़ दिया जाएगा और उन्हें फ़ित्नों में मुब्तिला नहीं किया जाएगा”तो हमें अन्दाज़ा हो गया के जब तक रसूले अकरम (स0) मौजूद हैं फ़ित्ना का कोई अन्देशा नहीं है लेहाज़ा मैंने अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह यह फ़ित्ना क्या है जिसकी परवरदिगार ने आपको इत्तेलाअ दी है ? फ़रमाया या अली (अ0)! यह उम्मत मेरे बाद फ़ित्ने में मुब्तिला होगी। मैंने अर्ज़ की क्या आपने ओहद के दिन जब कुछ मुसलमान राहे ख़ुदा में शहीद हो गए और मुझे शहादत का मौक़ा नसीब नहीं हुआ और मुझे यह सख़्त तकलीफ़ महसूस हुई , तो क्या यह नहीं फ़रमाया था के या अली (अ0)! बशारत हो, शहादत तुम्हारे पीछे आ रही है? फ़रमाया बेशक! यूं कहो उस वक्त तुम्हारा सब्र कैसा होगा? मैंने अर्ज़ की के या रसूलल्लाह यह तो सब्र का मौक़ा नहीं है बल्कि मसर्रत और शुक्र का मौक़ा है।

(((-इन फ़िक़रों को देखने के बाद कोई शख़्स ईमान व अमल के राबते को नज़र अन्दाज़ नहीं कर सकता है और न ईमान को अमल से बे नियाज़ बना सकता है। ईमान से लेकर आख़ेरत तक इतना हसीन तसलसुल किसी दूसरे इन्सान के कलाम में नज़र नहीं आ सकता है और यह मौलाए कायनात की एजाज़े बयानी का एक बेहतरीन नमूना है।

अम्र बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर के बारे में पैदा होने वाले “शैतानी वसवसों का जवाब इन कलेमात में मौजूद है और इन दोनों की अज़मत के लिये इतना ही काफ़ी है के न सिर्फ़ इन कामों में मालिक भी बन्दों के साथ शरीफ़ है बल्के उसने पहले अम्र व नहीं किया है। इसके बाद बन्दों को अम्र व नहीं का हुक्म दिया है। इस कुल्ले ईमान का किरदार जो ज़िन्दगी को हदफ़ और मक़सद नहीं बल्कि वसीलाए ख़ैरात तसव्वुर करता है और जब यह अन्दाज़ा हो जाता है के ज़िन्दगी की क़ुरबानी ही तमाम ख़ैरात, ज़कात का मक़सद है तो इस क़ुरबानी के नाम पर सजदए शुक्र करता है और लफ़्ज़े सब्र व तहम्मूल को बरदाश्त नहीं करता है।-)))

बन्दगाने ख़ुदा! उस दिन से डरो जब आमाल की जांच पड़ताल की जाएगी और ज़लज़लों की बोहतात होगी के बच्चे तक बूढ़े हो जाएंगे। याद रखो ऐ बन्दगाने ख़ुदा! के तुम पर तुम्हारे ही नफ़्स को निगराँ बनाया गया है और तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे लिये जासूसों का काम कर रहे हैं और कुछ बेहतरीन मुहाफ़िज़ हैं जो तुम्हारे आमाल और तुम्हारी सांसों की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। उनसे न किसी तारीक रात की तारीकी छिपा सकती है और न बन्द दरवाज़े उनसे ओझल बना सकते हैं। और कल आने वाला दिन आज से बहुत क़रीब है। आज का दिन अपना साज़ व सामान लेकर चला जाएगा और कल का दिन उसके पीछे आ रहा है, गोया हर शख़्स ज़मीन में अपनी तन्हाई की मन्ज़िल और गढ़े के निशान तक पहुंच चुका है। हाए वह तन्हाई का घर, वहशत की मन्ज़िल और ग़ुरबत का मकान, गोया के आवाज़ तुम तक पहुंच चुकी है और क़यामत तुम्हें अपने घेरे में ले चुकी है और तुम्हें आखि़री फ़ैसले के लिये क़ब्रों से निकाला जा चुका है। जहां तमाम बातिल बातें ख़त्म हो चुकी हैं और तमाम हीले बहाने कमज़ोर पड़ चुके, हक़ाएक़ साबित हो चुके हैं और उमूर पलट कर अपनी मन्ज़िल पर आ गए हैं। लेहाज़ा इबरतों से नसीहत हासिल करो। तग़य्युराते ज़माना से इबरत का सामान फ़राहम करो और फिर डराने वाले की नसीहत से फ़ायदा उठाओ।