नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
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नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

157- आपका इरशादे गिरामी

तमाम हम्द उस ख़ुदा के लिये है जिसने हम्द को अपने ज़िक्र का इफ़तेताहिया, अपने फ़ज़्ल व एहसान के बढ़ाने का ज़रिया और अपनी नेमतों और अज़मतों का दलीले राह क़रार दिया है।

ऐ अल्लाह के बन्दों! बाक़ी मान्दा लोगों के साथ भी ज़माने की वही रौशन रहेगी जो गुज़र जाने वाले के साथ थी। जितना ज़माना गुज़र चुका है वह पलट कर नहीं आएगा और जो कुछ उसमें है वह भी हमेशा रहने वाला नहीं, आखि़र में भी इसकी कारगुज़ारियां वही होंगी जो पहले रह चुकी हैं और इसके झण्डे एक दूसरे के अक़ब में हैं। गोया तुम क़यामत के दामन से वाबस्ता हो के वह तुम्हें धकेलकर इस तरह लिये जा रही है जिस तरह ललकारने वाला अपनी ऊंटनियों को, जो शख़्स अपने नफ़्स को संवारने के बजाए चीज़ों में पड़ जाता है वह तीरगियों में सरगर्दां और हलाकतों में फंसा रहता है और शयातीन उसे सरकशियों में खींच कर ले जाते हैं और उसकी बदआमालियों को उसके सामने सज (सजा) देते हैं आगे बढ़ने वालों की आखि़री मंज़िल जन्नत है और अमदन कोताहियां करने वालों की हद जहन्नम है।

अल्लाह के बन्दों! याद रखो के तक़वा एक मज़बूत क़िला है और फ़िस्क़ व फ़ुजूर एक (कमज़ोर) चारदीवारी है के जो न अपने रहने वालों से तबाहियों को रोक सकती है और न उनकी हिफ़ाज़त कर सकती है। देखो तक़वा ही वह चीज़ है के जिससे गुनाहों का डंक काटा जाता है और यक़ीन ही से मुफ़तबाए मक़सद की कामरानियां हासिल होती हैं। ऐ अल्लाह के बन्दों। अपने नफ़्स के बारे में के जो तुम्हें तमाम नफ़्सों से ज़्यादा अज़ीज़ व महबूब है अल्लाह से डरो! उसने तुम्हारे लिये हक़ का रास्ता खोल दिया है और उसकी राहें उजागर कर दी हैं। अब या तो अनमिट बदबख़्ती होगी या दाएमी ख़ुश बख़्ती व सआदत, दारे फ़ानी से आलिमे बाक़ी के लिये तौशा मुहय्या कर लो, तुम्हें ज़ादे राह का पता दिया जा चुका है और कूच का हुक्म मिल चुका है और चल चलाओ के लिये जल्दी मचाई जा रही है, तुम ठहरे हुए सवारों के मानिन्द हो के तुम्हें यह पता नही के कब रवानगी का हुक्म दिया जाएगा, भला वह दुनिया को लेकर क्या करेगा जो आख़ेरत के लिये पैदा किया गया हो, और उस माल का क्या करेगा जो अनक़रीब उससे छिन जाने वाला है और उसका मज़लेमा व हिसाब उसके ज़िम्मे रहने वाला है।

अल्लाह के बन्दों! ख़ुदा ने जिस भलाई का वादा किया है उसे छोड़ा नहीं जा सकता और जिस बुराई से रोका है उसकी ख़्वाहिश नहीं की जा सकती। अल्लाह के बन्दों! उस दिन से डरो के जिसमें हमलों की जांच पड़ताल और ज़लज़लों की बोहतात होगी और बच्चे तक इसमें बूढ़े हो जाएंगे।

अल्लाह के बन्दों! यक़ीन रखो के ख़ुद तुम्हारा ज़मीर तुम्हारा निगेहबान और ख़ुद तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे निगरान हैं और तुम्हारे हमलों और सांसों की गिनती को सही-सही याद रखने वाले (करामा कातिबैन) हैं उनसे न अन्धेरी रात की अन्धयारियां छिपा सकती हैं और न बन्द दरवाज़े तुम्हें ओझल रख सकते हैं बिला शुबह आने वाला “कल”आज के दिन से क़रीब है।

“आज का दिन”अपना सब कुछ लेकर जाएगा और “कल”उसके अक़ब में आया ही चाहता है। गोया तुममें से हर शख़्स ज़मीन के इस हिस्से पर के जहां तन्हाई की मन्ज़िल और गड्ढे का निशान (क़ब्र) है पहुंच चुका है और क़यामत तुम पर छा गई है और आख़ेरी फ़ैसला सुनने के लिये तुम (क़ब्रों से) निकल आए हो बातिल के परदे तुम्हारी आंखों से हटा दिये गये हैं और तुम्हारे हीले बहाने दब चुके हैं और हक़ीकतें तुम्हारे लिये साबित हो गई हैं और तमाम चीज़ें अपने-अपने मक़ाम की तरफ़ पलट पड़ी हैं, इबरतों से पन्द व नसीहत और ज़माने के उलटफेर से इबरत हासिल करो, और डराने वाली चीज़ों से फ़ायदा उठाओ।

158- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रसूले ख़ुदा की बासत और क़ुरान की फ़ज़ीलत के साथ बनी उमय्या की हुकूमत का ज़िक्र किया गया है)

अल्लाह ने पैग़म्बर को उस वक़्त भेजा जब रसूलों का सिलसिला रूका हुआ था और क़ौमें गहरी नींद में मुब्तिला थीं और दीन की मुस्तहकम रस्सी के बल खुल चुके थे, आपने आकर पहले वालों की तस्दीक़ की और वह नूर पेश किया जिसकी इक़्तेदा की जाए और वह यही क़ुरान है। उसे बुलवाकर देखो और यह ख़ुद नहीं बोलेगा, मैं इसकी तरफ़ से तर्जुमानी करूंगा, याद रखो के इसमें मुस्तक़बिल का इल्म है और माज़ी की दास्तान है। तुम्हारे दर्द की दवा है और तुम्हारे कामो की तन्ज़ीम का सामान है। (इसका दूसरा हिस्सा) उस वक़्त कोई शहरी या देहाती मकान ऐसा न बचेगा जिसमें ज़ालिम ग़म व अलम को दाखि़ल न कर दें और उसमें सख्तियो का गुज़र न हो जाए। उस वक़्त इनके लिये न आसमान में कोई माफ करने वाला होगा और न ज़मीन में मददगार, तुमने इस अम्र के लिये नाअहलों का इन्तेख़ाब किया है और उन्हें दूसरे के घाट पर उतार दिया है और अनक़रीब ख़ुदा ज़ालिमों से इन्तेक़ाम लेगा। खाने के बदले में खाने से, पीने के बदले में पीने का यूं के इन्हें खाने के लिये ख़ेज़ाल का खाना और पीने के लिये एलवा का और ज़हर हलाहल का पीना, ख़ौफ़ का अन्दरूनी लिबास और तलवार का बाहर का लिबास होगा, यह ज़ालिम लोगों की सवारियां और गुनाहों के बारे बरादार ऊंट हैं, लेहाज़ा मैं बार-बार क़सम खाकर कहता हूं के बनी उमय्या मेरे बाद इस खि़लाफ़त को इस तरह थूक देंगे, (थूक देना पड़ेगा) जिस तरह बलग़म को थूक दिया जाता है और फिर जब तक शब व रोज बाक़ी हैं इसका मज़ा चखना और उससे लज़्ज़त हासिल करना नसीब न होगा।

(((- मालिके कायनात ने इन्सान की फ़ितरत के अन्दर एक सलाहियत रखी है जिसका काम है नेकियों पर सुकून व इत्मीनान का सामान फ़राहम करना और बुराइयों पर तम्बीह व सरज़निश करना, अर्फ़ आम में इसे ज़मीर से ताबीर किया जाता है जो उस वक़्त भी बेदार रहता है जब आदमी ग़फ़लत की नींद सो जाता है और उस वक़्त भी मसरूफ़े तम्बीह रहता है जब इन्सान मुकम्मल तौर पर गुनाहों में डूब जाता है। यह सलाहियत अपने मक़ाम पर हर इन्सान में वदीअत की गई है। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है के अच्छाई और बुराई का इदराक भी कभी फ़ितरी होता है जैसे एहसान की अच्छाई और ज़ुल्म की बुराई, और कभी इसका ताल्लुक़ समाज, मुआशरा या दीन व मज़हब से होता है। तो जिस चीज़ को मज़हब या समाज अच्छा कह देता है ज़मीर उससे मुतमईन हो जाता है आर जिस चीज़ को बुरा क़रार दे देता है इस पर मज़म्मत करने लगता है और उस मदह या ज़म का ताअल्लुक़ फ़ितरत के एहकाम से नहीं होता है बल्कि समाज या क़ानून के एहकाम से होता है।-)))

159- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रिआया के साथ अपने हुस्ने सुलूक का ज़िक्र फ़रमाया है)

मैं तुम्हारे हमसाये में निहायत दरजए ख़ूबसूरती के साथ रहा और जहां तक मुमकिन हुआ तुम्हारी हिफ़ाज़त और निगेहदाष्त करता रहा और कजी ज़िल्लत की रस्सी और ज़ुल्म के फन्दों से आज़ाद कराया के मैं तुम्हारी मुख़्तसर नेकी का शुक्रिया अदा कर रहा था और तुम्हारी उन तमाम बुराईयों को जिन्हें मैंने देख लिया था उससे चश्म पोशी कर रहा था (जो मेरी आंखों के सामने और मेरी मौजूदगी में होती थीं)।

160- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(अज़मते परवरदिगार)

उसका अम्र फ़ैसलाकुन और सरापा हिकमत है और उसकी रिज़ा मुकम्मल अमान और रहमत है, वह अपने इल्म से फ़ैसला करता है और अपने हिल्म की बिना पर माफ़ कर देता है। (हम्दे ख़ुदा) परवरदिगार तेरे लिये इन तमाम चीज़ों पर हम्द है जिन्हें तू ले लेता है या अता कर देता है और जिन बलाओं से निजात देता है या जिन में मुब्तिला कर देता है, ऐसी हम्द जो तेरे लिये इन्तेहाई पसन्दीदा हो और महबूबतरीन हो और बेहतरीन हो। (तेरे नज़दीक हर सताइश से बढ़ चढ़ कर हो) ऐसी हम्द जो सारी कायनात को ममलूक कर दे (भर दे) और जो तूने चाहा है उसकी हद तक पहुंच जाए (जहां तक चाहे पहुंच जाए), ऐसी हम्द के जिसके आगे तेरी बारगाह तक पहुंचने से न कोई हिजाब है और न उसके लिये कोई बन्दिश? ऐसी हम्द के जिसकी गिनती न कहीं पर टूटे और न इसका सिलसिला ख़त्म हो, हम तेरी अज़मत व बुज़ुर्गी की हक़ीक़त को नहीं जानते मगर इतना के तू ज़िन्दा व कारसाज़ (आलम) है न तुझे ग़ुनूदगी होती है और न नींद आती है, न तारे नज़र तुझ तक पहुंच सकता है और न निगाहें तुझे देख सकती हैं तूने नज़रों को पा लिया है और उम्रों का अहाता कर लिया है और पेशानी के बालों को पैरों (से मिलाकर) गिरफ़्त में ले लिया है, यह तेरी मख़लूक़ क्या है जो हम देखते हैं और इसमें तेरी क़ुदरत (की कारफ़रमाइयों) पर इसकी तौसीफ़ करते हैं हालांके दर हक़ीक़त वह (मख़लूक़ात) जो हमारी आंखों से ओझल है और जिस तक पहुंचने से हमारी नज़रें आजिज़ और अक़्लें दरमान्दा हैं और हमारे और जिन के दरम्यान ग़ैब के परदे हाएल हैं इससे कहीं ज़्यादा बा अज़मत है जो शख़्स (वसवसों से) अपने दिल को ख़ाली करके और ग़ौर व फ़िक्र (की क़ूवतों) से काम लेकर यह जानना चाहे के तूने क्योंकर अर्ष को क़ायम किया है और किस तरह मख़लूक़ात को पैदा किया है और क्योंकर आसमानों को फ़िज़ा में लटकाया है और किस तरह पानी के थपेड़ों पर ज़मीन को बिछाया है। तो उसकी आंखें थक कर और अक़्ल मग़लूब होकर और कान हैरान व सरासीमा और फ़िक्र गुमगष्ता राह होकर पलट आएगी।

इसी ख़ुतबे का एक जुज़ यह है वह अपने ख़याल में इसका दावेदार बनता है के उसका दामने उम्मीद अल्लाह से वाबस्ता है, ख़ुदाए बरतर की क़सम वह झूठा है (अगर ऐसा ही है) तो फिर क्यों उसके आमाल में इस उम्मीद की झलक नुमायां नहीं होती जबके हर उम्मीदवार के कामों में उम्मीद की पहचान हो जाया करती है। सिवाये उस उमीद के जो अल्लाह से लगाई जाए के उसमें खोट पाया जाता है और हर ख़ौफ़ व हेरास जो (दूसरों से हो) एक मुसल्लमए हक़ीक़त रखता है, मगर अल्लाह का ख़ौफ़ ग़ैर यक़ीनी है और अल्लाह से बड़ी चीज़ों का और बन्दों से छोटी चीज़ों का उम्मीदवार होता है फिर भी जो आजिज़ी का रवैया बन्दों से रखता है वह रवय्या अल्लाह से नहीं बरतता तो आखि़र क्या बात है के अल्लाह के हक़ में इतना भी नहीं किया जाता जितना बन्दों के लिये किया जाता है क्या तुम्हें कभी इसका अन्देशा हुआ है के कहीं तुम इन उम्मीदों (के दावों ) में झूटे तो नहीं? या यह के तुम महले उम्मीद ही नहीं समझते। यूंही इन्सान अगर उसके बन्दों में से किसी बन्दे से डरता है तो जो ख़ौफ़ की सूरत इसके लिये इख़्तेयार करता है अल्लाह के लिये वैसी सूरत इख़्तेयार नहीं करता, इन्सानों का ख़ौफ़ तो उसने नक़द की सूरत में रखा है और अल्लाह का डर सिर्फ़ टाल मटोल और (ग़लत सलत) वादे यूंही जिसकी नज़रों में दुनिया अज़मत पा लेती है और उसके दिल में इसकी अज़मत व वुसअत बढ़ जाती है तो वह उसे अल्लाह पर तरजीह देता है और उसकी तरफ़ मुड़ता है और उसी का बन्दा होकर रह जाता है। तुम्हारे लिये रसूलल्लाह (स0) का क़ौल व अमल पैरवी के लिये काफ़ी है और उनकी ज़ात दुनिया के ऐब व नुक़्स और उसकी रूसवाइयों और बुराइयों की कसरत दिखाने के लिये रहनुमा है। इसलिये के इस दुनिया के दामनों को उससे समेट लिया गया और दूसरों के लिये उसकी वुसअतें मुहय्या कर दी गईं और इस (ज़ाले दुनिया की छातियों से) आपका दूध छुड़ा दिया गया अगर दूसरा नमूना चाहो तो मूसा कलीमुल्लाह हैं के जिन्होंने अपने अल्लाह से कहा के परवरदिगार! तू जो कुछ भी इस वक़्त थोड़ी बहुत नेमत भेज देगा मैं उसका मोहताज हूं। ख़ुदा की क़सम उन्होंने सिर्फ़ खाने के लिये रोटी का सवाल किया था , चूंके वह ज़मीन का साग पात खाते थे और लाग़री और (जिस्म पर) गोश्त की कमी की वजह से उनके पेट की नाज़ुक जिल्द से घास पात की सब्ज़ी दिखाई देती थी, अगर चाहो तो तीसरी मिसाल दाऊद (अ0) की सामने रख लो , जो साहबे ज़बूर और अहले जन्नत के क़ारी हैं, वह अपने हाथ से खजूर की पत्तियों की टोकरियां बनाया करते थे और अपने साथियों से फ़रमाते थे के तुममें से कौन है जो इन्हें बेच कर मेरी दस्तगीरी करे (फिर) जो उसकी क़ीमत मिलती उससे जौ की रोटी खा लेते थे, अगर चाहो तो ईसा इब्ने मरयम (अ0) का हाल कहो के जो (सर के नीचे) पत्थर का तकिया रखते थे सख़्त और खुरदुरा लिबास पहनते थे और (खाने) में सालन के बजाय भूक और रात के चिराग़ की जगह चान्द और सर्दियों में साये के बजाये (उनके सर पर) ज़मीन के मशरिक़ व मग़रिब का साएबान होता था और ज़मीन जो घास फूस चैपायों के लिये उगाती थी वह उनके लिये फल फूल की जगह थी न उनकी बीवी थीं जो उन्हें दुनिया (के झंझटों) में मुब्तिला करतीं और न बाल बच्चे थे के उनके लिये फ़िक्र व अन्दोह का सबब बनते और न माल व मताअ था के उनकी तवज्जो को मोड़ता और न कोई लालच थी के उन्हें रूसवा करती। उनकी सवारी उनके दोनों पांव और ख़ादिम उनके दोनों हाथ थे। तुम अपने पाक व पाकीज़ा नबी (स0) की पैरवी करो चूंके उनकी ज़ात इत्तेबाअ करने वाले के लिये नमूना और सब्र करने वाले के लिये ढारस है। उनकी पैरवी करने वाला और उनके नक़्शे क़दम पर चलने वाला ही अल्लाह को सबसे ज़्यादा महबूब है जिन्होंने दुनिया को (सिर्फ़ ज़रूरत भर) चखा और उसे नज़र भर कर नहीं देखा वह दुनिया में सबसे ज़्यादा शिकम तही में बसर करने वाले और ख़ाली पेट रहने वाले थे। उनके सामने दुनिया की पेशकश की गई तो उन्होंने उसे क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया और (जब) जान लिया के अल्लाह ने एक चीज़ को बुरा जाना है तो आप (अ0) ने भी उसे बुरा ही जाना और अल्लाह ने एक चीज़ को हक़ीर समझा है तो आपने भी उसे हक़ीर ही समझा और अल्लाह ने एक चीज़ को पस्त क़रार दिया है तो आप ने भी उसे पस्त ही क़रार दिया। अगर हम में सिर्फ़ यही एक चीज़ हो के हम उस “शै को चाहने लगें जिसे अल्लाह और रसूल (स0) बुरा समझते हैं तो अल्लाह की नाफ़रमानी और उसके हुक्म से सरताबी के लिये यही बहुत है। रसूलल्लाह (स0) ज़मीन पर बैठकर खाना खाते थे और ग़ुलामों की तरह बैठते थे , अपने हाथ से जूती टांकते थे और अपने हाथों से कपड़ों में पेवन्द लगाते थे और बेपालान के गधे पर सवार होते थे और अपने पीछे किसी को बिठा भी लेते थे, घर के दरवाज़े पर (एक दफ़ा) ऐसा पर्दा पड़ा था जिसमें तसवीरें थें तो आपने अपनी अज़वाज में से एक को मुख़ातब करके फ़रमाया इसे मेरी नज़रों से हटा दो, जब मेरी नज़रें इस पर होती हैं तो मुझे दुनिया और इसकी आराइशे याद आ जाती हैं। आपने दुनिया से दिल हटा लिया था और उसकी याद तक अपने नफ़्स से मिटा डाली थी और यह चाहते थे के उसकी सज धज निगाहों से पोशीदा रहे ताके न उससे उम्दा उम्दा लिबास हासिल करें और न उसे अपनी मन्ज़िल ख़याल करें और न उसमें ज़्यादा क़याम की आस लगाएं। उन्होंने इसका ख़याल नफ़्स से निकाल दिया और दिल से उसे हटा दिया था और निगाहों से उसे ओझल रखा था, यूंही जो शख़्स किसी “शै को बुरा समझता है तो न उसे देखना चाहता है और न उसका ज़िक्र सुनना गवारा करता है। रसूलल्लाह (स0) (के आदात व ख़साएल) में ऐसी चीज़ें हैं के वह तुम्हें दुनियां के उयूब व क़बाएह का पता देंगी जबके आप (स0) इस दुनिया में अपने ख़ास अफ़राद समेत भूके रहा करते थे और बावजूद इन्तेहाई क़र्ब मन्ज़िलत के इसकी आराइशे इनसे दूर रखी गईं। चाहे के देखने वाला अक़्ल की रौशनी में देखे के अल्लाह ने उन्हें दुनिया न देकर उनकी इज़्ज़त बढ़ाई है या अहानत की है अगर कोई यह कहे के अहानत की है तो उसने झूठ कहा है और बहुत बड़ा बोहतान बान्धा और अगर यह कहे के इज़्ज़त बढ़ाई है तो उसे यह जान लेना चाहिये के अल्लाह ने दूसरों की बे इज़्ज़ती ज़ाहिर की जबके उन्हें दुनिया की ज़्यादा से ज़्यादा वुसअत दे दी और उसका रूख़ अपने मुक़र्रबतरीन बन्दे से मोड़ रखा। पैरवी करने वाले को चाहिये के इनकी पैरवी करे और उनके निशाने क़दम पर चले और उन्हीं की मन्ज़िल में आए वरना हलाकत से महफ़ूज़ नहीं रह सकता। क्यूंकि अल्लाह ने इनको (क़ुर्ब) क़यामत की निशानी और जन्नत की ख़ुशख़बरी सुनाने वाला और अज़ाब से डराने वाला क़रार दिया है। दुनिया से आप (स0) भूके निकल खड़े हुए और आखि़रत में सलामतियों के साथ पहुंच गए। आप (स0) ने तामीर के लिये कभी पत्थर पर पत्थर नहीं रखा , यहाँ तक के आखि़रत की राह पर चल दिये और अल्लाह की तरफ़ बुलावा देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कही। यह अल्लाह का हम पर कितना बड़ा एहसान है के उसने हमें एक पेशरौ व पेशवा जैसी नेमत बख़्शी के जिनकी हम पैरवी करते हैं और क़दम ब क़दम चलते हैं (इन्हीं की पैरवी में) ख़ुदा की क़सम मैंने अपनी इस क़मीज़ में इतने पैवन्द लगाए हैं के मुझे पैवन्द लगाने वाले से शर्म आने लगी है, मुझसे एक कहने वाले ने कहा के क्या आप इसे उतारेंगे नहीं? तो मैंने उसे कहा के मेरी (नज़रों से) दूर हो के सुबह के वक़्त ही लोगों को रात के चलने की क़द्र होती है और वह उसकी मदहा करते हैं।

(((-जब इन्सान उन्हीं मख़लूक़ात के इदराक से आजिज़ हों के सामने आ रही हैं जो इदराक व एहसास के हुदूद के अन्दर हैं तो उन मख़लूक़ात के बारे में क्या कहा जा सकता है जो इन्सानी हवास की ज़द से बाहर हैं और जिन तक अक़्ल की रसाई नहीं है और जब मख़लूक़ात की हक़ीक़त तक इन्सानी फ़िक्र की रसाई नहीं है तो ख़ालिक़ की हक़ीक़त का इरफ़ान किस तरह मुमकिन है और इन्सान इसकी हम्द का हक़ किस तरह अदा कर सकता है। इन्सान की निजात व आख़ेरत के दो बुनियादी रूकन हैं एक ख़ौफ़ और एक उम्मीद, इस्लाम ने क़दम-क़दम पर इन्हीं दो चीज़ों की तरफ़ तवज्जो दिलाई है और इन्हें ईमान और अमल का ख़ुलासा क़रार दिया है। सूरा मुबारकए हम्द जिस में सारा क़ुरान सिमटा हुआ है। इसमें भी रहमान व रहीम उम्मीद का इशारा और मालिके यौमिद्दीन ख़ौफ़ का, लेकिन अफ़सोसनाक बात यह है के इन्सान न वाक़ेअन ख़ुदा से उम्मीद रखता है और न उससे ख़ौफ़ज़दा होता है। उम्मीदवार होता तो दुआओं और इबादतों में दिल लगता के इनमें तलब ही तलब पाई जाती है और ख़ौफ़ज़दा होता तो गुनाहों से परहेज़ करता के गुनाह ही इन्सान को अज़ाबे अलीम से दो-चार कर देते हैं। दुनिया की हर उम्मीद और इसके हर ख़ौफ़ का किरदार से नुमायां हो जाना और आख़ेरत की उम्मीद वहम का वाज़ेअ न होना इस बात की अलामत है के दुनिया इसके किरदार में एक हक़ीक़त है और आख़ेरत सिर्फ़ अलफ़ाज़ का मजमूआ और तलफ़्फ़ुज़ की बाज़ीगरी है और इसके अलावा कुछ नहीं है। वाज़ेअ रहे के पर्दे वाले वाक़ेए का ताल्लुक़ अज़वाज की ज़िन्दगी और उनके घरों से है। इसका अहलेबैत (अ0) के घर से कोई ताल्लुक़ नहीं है जिसे बाज़ रावियों ने अहलेबैत (अ0)की तरफ़ मोड़ दिया है ताके उनकी ज़िन्दगी में भी ऐश व इशरत का इसबात कर सकें। जबके अहलेबैत (अ0) की ज़िन्दगी तारीख़े इस्लाम में मुकम्मल तौर पर आईना है और हर शख़्स जानता है के इन हज़रात ने तमामतर इख़्तेयारात के बावजूद अपनी ज़िन्दगी इन्तेहाई सादगी से गुज़ारी है और सारा माले दुनिया राहे ख़ुदा में ख़र्च कर दिया है- पैग़म्बरों की ज़िन्दगी की मिसाल का मतलब यह नहीं है के मुसलमान को आवारावतन और ख़ानाबदोश होना चाहिये और ख़ेमों और छोलदारियों में ज़िन्दगी गुज़ार देना चाहिये , इसका मक़सद सिर्फ़ यह है के मुसलमान को दुनिया की अहमियत व अज़मत का क़ायल नहीं होना चाहिये और उसे सिर्फ़ बतौर ज़रूरत और बक़द्र ज़रूरत इस्तेमाल करना चाहिये वह मुकम्मल तौर से क़ब्ज़े में आ जाए तो इन्सान को बाइज्ज़त नहीं बना सकती है और सौ फ़ीसदी हाथों से निकल जाए तो ज़लील नहीं कर सकती है, इज़्ज़त व ज़िल्लत का मेयार माल व दौलत और जाह व मन्सब नहीं है, इसका मेयार सिर्फ़ इबादते इलाही और इताअते परवरदिगार है जिसके बाद मुल्क दुनिया की कोई हैसियत नहीं रह जाती है।)))

161-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रसूले अकरम (स0) के सिफ़ात , अहलेबैत (अ0) की फ़ज़ीलत और तक़वा व इत्तेबाअ रसूल (स0) की दावत का तज़किरा किया गया है)

परवरदिगार ने आपको रोशन नूर, वाज़ेह दलील, नुमायां रास्ता और हिदायत करने वाली किताब के साथ भेजा है। आपका ख़ानदान बेहतरीन ख़ानदान, और आपका शजरा बेहतरीन शजरा है, जिसकी शाख़ें मोअतदिल हैं (सीधी हैं) और समरात दस्त-रस के अन्दर (झुके हुए) हैं। आपकी जाए विलादत मक्के मुकर्रमा है और मक़ामे हिजरत अर्ज़े तय्यबा। यहीं से आपका ज़िक्र बलन्द हुआ है और यहीं से आपकी आवाज़ फै़ली है। परवरदिगार ने आपको किफ़ायत करने वाली हुज्जत, शिफ़ा देने वाली नसीहत, गुज़िश्ता तमाम उमूर की तलाफ़ी करने वाली दावत के साथ भेजा है, आपके ज़रिये ग़ैर मारूफ़ शरीअतों को ज़ाहिर किया है और महमिल बिदअतों का क़िला क़मा कर दिया है और वाज़ेह एहकाम को बयान कर दिया है लेहाज़ा अब जो भी इस्लाम के अलावा किसी रास्ते को इख़्तेयार करेगा उसकी शक़ावत साबित हो जाएगी और रसीमाने हयात बिखर जाएगी और मुंह के बल गिरना सख़्त हो जाएगा और अन्जामकार दाएमी हुज़्न व इल्म और शदीदतरीन अज़ाब होगा।

मैं ख़ुदा पर इसी तरह भरोसा करता हूं जिस तरह उसकी तरफ़ तवज्जो करने वाले करते हैं और उससे उस रास्ते की हिदायत तलब करता हूँ जो उसकीजन्नत तक पहुंचाने वाला और उसकी मन्ज़िले मतलूब की तरफ़ ले जाने वाला है।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही और इसकी इताअत की वसीयत करता हूं के इसी में कुल निजात है और यही हमेशा के लिये मरकज़े निजात है। उसने तुम्हें डराया तो मुकम्मल तौर से डराया और (जन्नत की) रग़बत दिलाई तो मुकम्मल रग़बत का इन्तेज़ाम किया, तुम्हारे लिये दुनिया आर उसकी जुदाई, उसके फ़ना व ज़वाल और उससे इन्तेक़ाल सबकी तौसीफ़ कर दी है लेहाज़ा उसमें जो चीज़ अच्छी लगे उससे एराज़ करो (पहलू बचाए रखो) के साथ जाने वाली “शै बहुत कम है (जान लो) यह (दुनिया का) घर ग़ज़बे इलाही से क़रीबतर और रिज़ाए इलाही से दूरतर है।

बन्दगाने ख़ुदा! हम-व-ग़म और इसके इष्ग़ाल से चश्मपोशी कर लो (इसकी फ़िक्रों और उसके धन्दों से आंखें बन्द कर लो) तुम्हें मालूम है के इससे बहरहाल जुदा होना है और इसके हालात बराबर बदलते रहते हैं इससे इस तरह एहतियात करो जिस तरह एक ख़ौफ़ज़दा और अपने नफ़्स का मुख़लिस और जाँफ़ेशानी के साथ कोशिश करने वाला एहतियात करता है और उससे इबरत हासिल करो उन मनाज़िर के ज़रिये जो तुमने ख़ुद देख लिये हैं के गुज़िश्ता नस्लें हलाक हो गईं, उनके जोड़ बन्द अलग-अलग हो गए, उनकी आंखें और उनके कान ख़त्म हो गए, उनकी शराफ़त और इज़्ज़त चली गई, उनकी मसर्रत और नेमत का ख़ात्मा हो गया। औलाद का क़ुर्ब फ़िक़दान में तब्दील हो गया और अज़वाज की सोहबत फ़िराक़ में बदल गई। अब न बाहमी सिफ़ाख़रत रह गई है और न नस्लों का सिलसिला, न मुलाक़ातें रह गई हैं और न बात-चीत। (उनका शरफ़ व वक़ार मिट गया, उनकी मसर्रतें और नेमतें जाती रहीं और बाल बच्चों के क़रीब के बजाए अलाहेदगी और बीवियों से हमनशीनी के बजाए उनसे जुदाई हो गई। अब न वह फ़ख़्र करते हैं और न उनके औलाद होती है, न एक दूसरे से मिलते मिलाते हैं और न आपस में एक दूसरे के हमसाया बन कर रहते हैं।)

लेहाज़ा बन्दगाने ख़ुदा! डरो उस शख़्स की तरह जो अपने नफ़्स पर क़ाबू रखता हो, अपनी ख़्वाहिशात को रोक सकता हो और अपनी अक़्ल की आंखों से देखता हो, मसएल बिलकुल वाज़ेह है, निशानियां क़ायम हैं, रास्ता सीधा है और सिरात बिल्कुल मुस्तक़ीम है।

162- आपका इरशादे गिरामी

(उस शख़्स से जिसने यह सवाल कर लिया के लोगों ने आपको आपकी मन्ज़िल से किस तरह हटा दिया)

ऐ बरादरे बनी असद! तुम बहोत तंग हौसला हो और ग़लत रास्ते पर चल पड़े हो, लेकिन बहरहाल तुम्हें क़राबत (-1-) का हक़ भी हासिल है और सवाल का हक़ भी है और तुमने दरयाफ़्त भी कर लिया है तो अब सुनो! हमारे बलन्द नसब रसूले अकरम (स0) से क़रीबतरीन ताल्लुक़ के बावजूद क़ौम ने हमसे इस हक़ को इसलिये छीन लिया के इसमें एक ख़ुदग़र्ज़ी थी जिस पर एक जमाअत (-2-) के नफ़्स मर मिटे थे और दूसरी जमाअत ने चश्मपोशी से काम लिया था लेकिन बहरहाल हाकिम अल्लाह है और रोज़े क़यामत उसी की बारगाह में पलट कर जाना है। इस लूट मार का ज़िक्र छोड़ो जिसका शोर चारों तरफ़ मचा हुआ था (-3-) अब ऊंटनियों की बात करो जो अपने क़ब्ज़े में रह कर निकल गई हैं (((-1-शायद इस अम्र की तरफ़ इशारा हो के सरकारे दो आलम (स0) की एक ज़ौजा ज़ैनब बिन्त जहश असदी थीं और उनकी वालेदा असीमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब आपकी फूफी थीं। -2- इसमें दोनों इहतमालात पाए जाते हैं , या उस क़ौम की तरफ़ इशारा है जिसने हक़्क़े अहलेबैत (अ0) का तहफ़्फ़ुज़ नहीं किया और तग़ाफ़ुल से काम लिया। या ख़ुद अपने करदार की बलन्दी की तरफ़ इशारा है के हमने भी चश्म पोशी से काम लिया और मुक़ाबला करना मुनासिब नहीं समझा और इस तरह ज़ालिमों ने मन्सब पर मुकम्मल तौर से क़ब्ज़ा कर लिया।

-3- यह अम्र अलक़ैस का मिसरा है जब उसके बाप को क़त्ल कर दिया गया तो वह इन्तेक़ाम के लिये क़बाएल की कमक तलाश कर रहा था एक मक़ाम पर मुक़ीम था के लोग उसके ऊंट पकड़ ले गए, उसने मेज़बान से फ़रयाद की, मेज़बान ने कहा के मैं अभी वापस लाता हूं सबूत में तुम्हारी ऊंटनियां ले जाता हूँ और इस तरह ऊंट के साथ ऊंटनी पर भी क़ब्ज़ा कर लिया-)))

अब आओ इस मुसीबत को देखो जो अबूसुफ़ियान के बेटे की तरफ़ से आई है के ज़माने ने रूलाने के बाद हंसा दिया है और बख़ुदा इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है। ताज्जुब तो इस हादिस (मुसीबत) पर है जिसने ताज्जुब (की हद) का भी ख़ात्मा कर दिया है और कजी को बढ़ावा दिया है। क़ौम ने चाहा था के नूरे इलाही को उसके चिराग़ ही से रूपोश कर दिया जाए (अल्लाह के रौशन चिराग़ का नूर बुझाना चाहा) और फ़व्वारे को चश्मा (सरचश्मए हिदायत) ही से बन्द कर दिया जाए। मेरे और अपने दरम्यान ज़हरीले घूंटों की आमेज़िश कर दी के अगर मुझसे और क़ौम के दरम्यान से इब्तेला की ज़हमतें ख़त्म हो गईं तो मैं उन्हें ख़ालिस हक़ के रास्ते पर चलाऊंगा और अगर कोई दूसरी सूरत हो गई तो तुम्हें हसरत व अफ़सोस से तुम्हें जान नहीं देनी चाहिये। अल्लाह इनके आमाल से ख़ूब बाख़बर है।

163-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

सारी तारीफ़े उस अल्लाह के लिये हैं जो बन्दों का ख़ल्क़ करने वाला, ज़मीन का फर्श बिछाने वाला, वदियों में पानी का बहाने वाला और टीलों को सरसब्ज़ व शादाब बनाने वाला है। उसकी औलियत की कोई इब्तेदा नहीं है और इसकी अज़लियत की कोई इन्तेहा नहीं है। वह इब्तेदा से है और हमेशा रहने वाला है। वह बाक़ी है और उसकी बक़ा की कोई मुद्दत नहीं है। पेशानियां उसके सामने सजदारेज़ और लब उसकी वहदानियत का इक़रार करने वाले हैं। उसने तख़लीक़ के साथ ही हर “शै के हुदूद मुअय्यन कर दिये हैं ताके वह किसी से मुशाबेह न होने पाएं। इन्सानी औहाम उसके लिये हुदूद व हरकात और आज़ा व जवारेह का तअय्युन नहीं कर सकते हैं। इसके लिये यह नहीं कहा जा सकता है के वह कब से है और न यह हद बन्दी की जा सकती है के कब तक रहेगा वह ज़ाहिर है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है के किस चीज़ से और बातिन है लेकिन यह नहीं सोचा जा सकता है के किस चीज़ में? वह न कोई ढांचा है के ख़त्म हो जाए और न किसी हिजाब में है के महदूद हो जाए। ज़ाहेरी इत्तेसाल की बुनियाद पर चीज़ो इससे क़रीब नहीं हैं और जिस्मानी जुदाई की बिना पर दूर नहीं है। इसके ऊपर बन्दों के हालात में से न एक का झीकना मख़फ़ी है और न अलफ़ाज़ का दोहराना। न बलन्दी का दूर से झलकना पोशीदा है और न क़दम का आगे बढ़ना, न अन्धेरी रात में और न छाई हुई अन्धियारियों में जिन पर रोशन चान्द अपनी किरनों का साया डालता है और रौशन आफ़ताब तुलूअ व ग़ुरूब में और ज़माने की इन गर्दिषों में जो आने वाली रात की आमद और जाने वाले दिन के गुज़रने से पैदा होती हैं। वह हर इन्तेहा व मुद्दत से पहले है और हर एहसाए और शुमार से मावराए है। वह इन सिफ़ात से बलन्दतर है जिन्हें महदूद समझ लेने वाले इसकी तरफ़ मन्सूब कर देते हैं चाहे वह सिफ़तों के अन्दाज़े हों या इतराफ़ व जवानिब की हदें। मकानात में क़याम हो या मसाकिन में क़रार, हदबन्दी उसकी मख़लूक़ के लिये है और उसकी निस्बत इसके ग़ैर की तरफ़ होती है।

(((यह मकतबे अहलेबैत (अ0) का ख़ासा है के हमेशा हक़ के रास्ते पर चलना चाहिये और दूसरों को भी इसी रास्ते पर चलाना चाहिये और इस राह में किसी तरह की ज़हमत व मुसीबत की परवाह नहीं करना चाहिये , चुनांचे बाज़ मोअर्रेख़ीन के बयान के मुताबिक़ जब दौरे उमर बिन ख़त्ताब में सलमान फ़ारसी को मदाएन का गवर्नर बनाया गया और उन्होंने कारोबार की निगरानी का क़ानून नाफ़िज़ किया तो अरबाबे सरवत व तिजारत ने खलीफ़ा से शिकायत कर दी और उन्होंने फ़िलज़ोर जनाबे सलमान को माज़ूल कर दिया के कहीं निगरानी और मुहासेबा का तसव्वुर सारे मुल्क में न फैल जाए के अरबाबे मसालेह व मुनाफ़ेअ बग़ावत पर आमादा हो जाएं और हुकूमत को हक़ की राह पर चलने के लिये ख़ातिर ख़्वाह क़ीमत अदा करना पड़े। (फ़ी ज़लाल नहजुल बलाग़ा (2/447) -)))

उसने अष्याए की तख़लीक़ न अज़ली मवाद से की है और न अबदी मिसालों से, जो कुछ भी ख़ल्क़ किया है ख़ुद ख़ल्क़ किया है और उसकी हदें मुअय्यन कर दी हैं और हर सूरत को हसी बना दिया है। कोई “शै भी इसके हुक्म से सरताबी नहीं कर सकती है और न किसी की इताअत में उसका कोई फ़ायदा है। उसका इल्म माज़ी के मरने वाले अफ़राद के बारे में वैसा ही है जैसा के रह जाने वाले ज़िन्दों के बारे में है। और वह बलन्दतरीन आसमानों के बारे में वैसा ही इल्म रखता है जिस तरह के पस्त तरीन ज़मीनों के बारे में रखता है।

(दूसरा हिस्सा) ऐ वह इन्सान जिसे हर एतबार से दुरूस्त बनाया गया है और रहम के अन्धेरों और पर्दा दर पर्दा ज़ुल्मतें मुकम्मल निगरानी के साथ ख़ल्क़ कया गया है। तेरी इब्तेदा ख़ालिस मिट्टी से हुई है और तुझे एक ख़ास मरकज़ में ख़ास मुद्दत तक रखा गया है। तू शिकमे मादर में इस तरह हरकत कर रहा था के न आवाज़ का जवाब दे सकता था और न किसी को सुन सकता था। इसके बाद तुझे वहाँ से निकाल कर उस घर में लाया गया जिसे तूने देखा भी नहीं था और जहां के मुनाफ़ेअ के रास्तों से बाख़बर भी नहीं था। बता तुझे पिस्ताने मादर से दूध हासिल करने की हिदायत किसने दी है और ज़रूरत के वक़्त मवारिद तलब व इरादे का पता किसने बताया है? होशियार, जो शख़्स एक साहबे हैसियत व आज़ाए मख़लूक़ के सिफ़ात के पहचानने से आजिज़ होगा वह ख़ालिक़ के सिफ़ात को पहचानने से यक़ीनन ज़्यादा आजिज़ होगा और मख़लूक़ात के हुदूद के ज़रिये उसे हासिल करने से यक़ीनन दूरतर होगा।

(((- अमीरूल मोमेनीन (अ0) के अलावा दुनिया का कोई दूसरा इन्सान होता तो इस मौक़े को ग़नीमत तसव्वुर करके एहतेजाज करने वालों के हौसले मज़ीद बलन्द कर देता और लम्हों में उस्मान का ख़ात्मा करा देता लेकिन आपने अपनी शरई ज़िम्मेदारी और इस्लामी सहूलियत का ख़याल करके इन्क़ेलाबी जमाअत को रोका और चाहा के पहले एतमामे हुज्जत कर दिया जाए ताके उस्मान को इस्लाहे अम्र का तवक़ोअ मिल जाए और बनी उमय्या मुझे नस्ले उस्मान का मुलज़िम न ठहराने पाएं। वरना उस्मान के दौर के मज़ालिम आलम आष्कार थे। उनके बारे में किसी तहक़ीक़ और तफ़तीश की ज़रूरत नहीं थी। जनाबे अबूज़र का शहरबदर करा दिया जाना , जनबो अब्दुल्लाह बिन मसऊद की पस्लियों का तोड़ दिया जाना, जनबो अम्मारे यासिर के शिकम को जूतियों से पामाल कर देना, वह मज़ालिम हैं जिन्हें सारा आलमे इस्लाम और बालनहूस मदीनतुर्ररसूल ख़ूब जानता था और यही वजह है के आपने दरम्यान में पड़ कर इस्लाह हाल के बारे में यह फ़ारमूला पेश किया के मदीने के मामेलात की फ़िलफ़ौर इस्लाह की जाए और बाहर के लिये बक़द्रे ज़रूरत मोहलत ले ली जाए लेकिन ख़लीफ़ा को इस्लाह नहीं करना थी नहीं की, और आखि़रश वही अन्जाम हुआ जिसके पेशे नज़र अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने इस क़द्र ज़हमत बरदाश्त की थी और जिसके बाद बनी उमय्या को नए फ़ित्नों का मौक़ा मिल गया और उनसे अमीरूल मोमेनीन (अ0) को भी दो चार होना पड़ा था।-)))

164- आपका इरशादे गिरामी

(जब लोगों ने आपके पास आकर उस्मान के मज़ालिम का ज़िक्र कियाऔर उनकी फ़हमाइश और तम्बीह का तक़ाज़ा किया तो आपने उस्मान के पास जाकर फ़रमाया)

लोग मेरे पीछे मुन्तज़िर हैं और उन्होंने मुझे अपने और तुम्हारे दरम्यान वास्ता क़रार दिया है और ख़ुदा की क़सम मैं नहीं जानता हूँ के मैं तुमसे क्या कहूं? मैं कोई ऐसी बात नहीं जानता हूं जिसका तुम्हें इल्म न हो और किसी ऐसी बात की निशानदेही नहीं कर सकता हूं जो तुम्हें मालूम न हो। तुम्हें तमाम वह बातें मालूम हैं जो मुझे मालूम हैं और मैंने किसी अम्र की तरफ़ सबक़त नहीं की है के उसकी इत्तेलाअ तुम्हें करूं और न कोई बात चुपके से सुन ली है के तुम्हें बाख़बर करूं। तुमने वह सब ख़ुद देखा है जो मैंने देखा है और वह सब कुछ ख़ुद भी सुना है जो मैंने सुना है और रसूले अकरम (स0) के पास वैसे ही रहे हो जैसे मैं रहा हूँ। इब्ने अबी क़हाफ़ा और इब्निल ख़त्ताब हक़ पर अमल करने के लिये तुमसे ज़्यादा ऊला नहीं थे के तुम उनकी निस्बत रसूलल्लाह से ज़्यादा क़रीबी रिश्ता रखते हो।

तुम्हें वह दामादी का शरफ़ भी हासिल है जो उन्हें हासिल नहीं था लेहाज़ा ख़ुदारा अपने नफ़्स को बचाओ के तुम्हें अन्धेपन से बसारत या जेहालत से इल्म दिया जा रहा है। रास्ते बिल्कुल वाज़ेअ हैं और निशानाते दीन क़ायम हैं। याद रखो ख़ुदा के नज़दीक बेहतरीन बन्दा वह इमामे आदिल है जो ख़ुद हिदायत याफ़्ता हो और दूसरों को हिदायत दे। जानी पहचानी सुन्नत को क़ायम करे और मजहोल बिदअत को मुर्दा बना दे। देखो ज़िया बख़्श सुन्नतों के निशानात भी रौशन हैं और बिदअतों के निशानात भी वाज़ेह हैं और बदतरीन इन्सान ख़ुदा की निगाह में वह ज़ालिम पेशवा है जो ख़ुद भी गुमराह हो और लोगों को भी गुमराह करे। पैग़म्बर से मिली हुई सुन्नतों को मुर्दा बना बना दे आर क़ाबिले तर्क बिदअतों को ज़िन्दा कर दे। मैंने रसूले अकरम (स0) को यह फ़रमाते हुए सुना है के रोज़े क़यामत ज़ालिम रहनुमा को इस आलम में लाया जाएगा के न कोई उसका मददगार होगा और न उज़्र ख़्वाही करने वाला और उसे जहन्नम में डाल दिया जाएगा और वह इस तरह चक्कर खाएगा जिस तरह चक्की। इसके बाद उसे क़ारे जहन्नम में जकड़ दिया जाएगा। मैं तुम्हें अल्लाह की क़सम देता हूं के ख़ुदारा तुम इस उम्मत के मक़तूल पेशवा न बनो इसलिये के दौरे क़दीम से कहा जा रहा है के इस उम्मत में एक पेशवा क़त्ल किया जाएगा जिसके बाद क़यामत तक क़त्ल व के़ताल का दरवाज़ा खुल जाएगा और सारे उमूर मुश्तबा हो जाएंगे और फ़ित्ने फैल जाएंगे और लोग हक़ व बातिल में इम्तियाज़ न कर सकेंगे और इसी में चक्कर खाते रहेंगे और तहो बाला होते रहेंगे। ख़ुदारा मरवान की सवारी न बन जाओ के वह जिधर चाहे खींच कर ले जाए के तुम्हारा सिन ज़्यादा हो चुका है और तुम्हारी उम्र ख़ात्मे के क़रीब आ चुकी है। उस्मान ने इस सारी गुफ़्तगू को सुनकर कहा के आप उन लोगों से कह दे के ज़रा मोहलत दें ताके मैं उनकी हक़ तलफ़ियों का इलाज कर सकूं ? आपने फ़रमाया के जहां तक मदीने के मामेलात का ताल्लुक़ है उनमें किसी मोहलत की कोई ज़रूरत नहीं है और जहां तक बाहर के मामलात का ताल्लुक़ है उनमें सिर्फ़ इतनी मोहलत दी जा सकती है के तुम्हारा हुक्म वहां पहुंच जाए।

(((-दर हक़ीक़त रहनुमा और ज़ालिम वह दो मुतज़ाद अलफ़ाज़ हैं जिन्हें किसी आलमे शराफ़त व करामत में जमा नहीं होना चाहिये, इन्सान को रहनुमाई का शौक़ है तो पहले अपने किरदार में अदालत व शराफ़त पैदा करे उसके बाद आगे चलने का इरादा करे। इसके बग़ैर रहनुमाई का शौक़ इन्सान को जहन्नम तक पहुंचा सकता है रहनुमा नहीं बना सकता है। जैसा के सरकारे दो आलम (स0) ने फ़रमाया है और इस अज़ाब की शिद्दत का राज़ यही है के रहनुमा की वजह से बेशुमार लोग मज़ीद गुमराह होते हैं और उसके ज़ुल्म से बेहिसाब लोगों को ज़ुल्म का जवाज़ फ़राहम हो जाता है और सारा मुआशेरा तबाह व बरबाद होकर रह जाता है। उस्मान का दौर पहला दौर था जब साबिक़ की ज़ाहिरदारी भी ख़त्म हो गई थी और खुल्लम खुल्ला ज़ुल्म का बाज़ार गर्म हो गया था। इसलिये इतना शदीद रद्दे अमल देखने में आया और न इसके बाद से तो आज तक सारा आलमे इन्सान उन्हीं ख़ानदान परवरियों का शिकार है और अवाम की सारी दौलत एक-एक ख़ानदान के अय्याश शहज़ादों पर सर्फ़ हो रही है और मदीने के मुसलमानों में भी ग़ैरत की हरकत नहीं पैदा हो रही है तो बाक़ी आलमे इस्लाम और दूसरे इलाक़ों का क्या तज़किरा है।-)))

165-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मोर की अजीब व ग़रीब खि़लक़त का तज़किरा किया गया है)

अल्लाह ने अपनी तमाम मख़लूक़ात को अजीब व ग़रीब बनाया है चाहे वह ज़ी हयात हों या बेजान, साकिन हों या मुतहर्रिक और इन सब के ज़रिये अपनी लतीफ़ सनअत और अज़ीम क़ुदरत के शवाहिद क़ायम कर दिये हैं जिनके सामने अक़्लें बकमाले एतराफ़ व तस्लीम सर ख़म किये हुए हैं और फिर हमारे कानों में उसकी वहदानियत के दलाएल। इन मुख़तलिफ़ सूरतों के परिन्दों की तख़लीक़ की शक्ल में गूंज रहे हैं जिन्हें ज़मीन के गड्ढों, दरों के शिगाफ़ों, पहाड़ों की बलन्दियों पर आबाद किया है जिनके पर मुख़्तलिफ़ क़िस्म के और जिनकी हैसियत जुदागाना अन्दाज़ की है उन्हें तसख़ीर की ज़माम के ज़रिये हरकत दी जा रही है और वह अपने परों को वसीअ फ़िजा के रास्तों और कुशादा हवा की वुसअतों में फड़फड़ा रहे हैं। उन्हें आलमेे अदम से निकाल कर अजीब व ग़रीब ज़ाहेरी सूरतों में पैदा किया है और गोश्त व पोस्त में ढके हुए जोड़ों के सरों से उनके जिस्मों की साख़्त क़ायम की है। बाज़ को उनके जिस्म की संगीनी ने हवा में बलन्द होकर तेज़ परवाज़ से रोक दिया है और वह सिर्फ़ ज़रा ऊंचे होकर परवाज़ कर रहे हैं और फिर अपनी लतीफ़ क़ुदरत और दक़ीक़ सनअत के ज़रिये उन्हें मुख़तलिफ़ रंगों के साथ मुनज़्ज़म व मुरत्तब किया है के बाज़ एक ही रंग में डूबे हुए हैं के दूसरे रंग का शाएबा भी नहीं है और बाज़ एक रंग में रंगे हैं लेकिन इनके गले का तौक़ दूसरे रंग का है। (ताउस) इन सब में अजीब तरीन खि़लक़त मोर की है जिसे मोहकम तरीन तवाज़ुन के सांचे में ढाल दिया है और उसके रंगों में हसीन तरीन तंज़ीम क़ायम की है उसे वह रंगीन पर दिये हैं जिनकी जड़ों को एक दूसरे से जोड़ दिया है और वह दम दी है जो दूर तक खींचती चली जाती है। जब वह अपनी मादा का रूख़ करता है तो उसे फैला लेता है और अपने सर के ऊपर इस तरह साया फ़िगन कर लेता है जैसे मक़ामे दारैन की किश्ती का बादबान जिसे मल्लाह इधर उधर मोड़ रहा हो। वह अपने रंगों पर इतराता है और इसकी जुम्बिशो के साथ झूमने लगता है अपनी मादा से इस तरह जफ़ती खाता है जिस तरह मुर्ग़ और उसे इस तरह हामेला बनाता है जिस तरह ख़ुश व हैजान में भरे हुए जानवर। मैं इस मसले में तुम्हें मुशाहेदे के हवाले कर रहा हूँ। न उस शख़्स की तरह जो किसी कमज़ोर सनद के हवाले कर दे और अगर गुमान करने वालों का यह गुमान सही हो ताके वह उन आंसुओं के ज़रिये हमल ठहराता है जो उसकी आंखों से बाहर निकल कर पलकों पर ठहर जाते हैं और मादा उसे पी लेती है उसके बाद अण्डे देती है और उसमें नर व मादा का कोई इत्तेसाल नहीं होता है सिवाई उन फूट पड़ने वाले आंसूओं के तो यह बात कौए के बाहेमी खाने पीने के ज़रिये हमल ठहराने से ज़्यादा ताअज्जुब ख़ेज़ न होती।

(((-इल्मुल हैवान के माहिर रॉबर्टसन का बयान है के दुनिया में एक अरब क़िस्म के परिन्दे पाए जाते हैं और सब अपने-अपने मक़ाम पर अजीब व ग़रीब खि़लक़त के मालिक हैं सबसे बड़ा परिन्दा शुतुर्मुग़ है और सबसे छोटा तनान जिसका तूल पांच सेन्टीमीटर होता है लेकिन एक घन्टे में80-90 किलोमीटर परवाज़ कर लेता है और एक सेकेन्ड में 50 से लेकर 200 मरतबा अपने परों को हरकत देता है।

बाज़ परिन्दों का एक क़दम छः मीटर के बराबर होता है और ज़मीन पर80 किलोमीटर फ़ी घन्टे की रफ़्तार से चल सकते हैं और बाज़ छः हज़ार मीटर की बलन्दी पर परवाज़ कर सकते हैं , बाज़ पानी के अन्दर18 मीटर की गहराई तक चले जाते हैं और बज़ सिर्फ़ समन्दरों के इस पार से उस पार तक चक्कर लगाते रहते हैं।

लेकिन इन सबसे ज़्यादा हैरत अंगेज़ अमीरूल मोमेनीन (अ0) की निगाह में मोर की खि़लक़त है जिसको मुख़्तलिफ़ रंगों में रंग दिया गया है और मुख़्तलिफ़ ख़ुसूसियात से नवाज़ दिया गया है यह और बात है के बेहतरीन परों के साथ नाज़ुक तरीन पैर भी दिये गए हैं ताके इसमें भी ग़ुरूर न पैदा हो और इन्सान को भी होश आ जाए के जिसके वजूद का एक रूख़ रंगीन होता है और इसका दूसरा रूख़ कमज़ोर भी होता है लेहाज़ा ग़ुरूर व इस्तेकबार का कोई इमकान नहीं है , बल्कि तक़ाज़ाए शराफ़त यह है के हसीन रूख़ का शुक्रिया अदा करे के यह भी मालिक का करम है इसका अपना कोई हक़ नहीं है जिसे मालिक ने अदा कर दिया हो।

यह एक हसीन तरीन फ़ितरत है के नर अपनी मादा के पास जाए तो हुस्न व जमाल के साथ जाए ताके उसे भी इन्स हासिल हो और वह भी अपने नर के जमाल पर फ़ख़्र कर सके ऐसा न हो के अमल फ़क़त एक जिन्सी अमल रह जाए और सुकूने नफ़्स का कोई रास्ता न निकल सके -)))

तुम इसकी रंगीनी पर ग़ौर करो तो ऐसा महसूस करोगे जैसे परों की दरम्यानी तीलियां चान्दी की सलाइयां हों और इन पर जो अजीब व ग़रीब हाले और सूरज की शुआओं जैसे जो परो-बाल आग आए हैं वह ख़ालिस सोने और ज़मर्द के टुकड़े हैं और अगर उन्हें ज़मीन के नबातात से तशबीह देना चाहोगे तो यह कहोगे के यह हर मौसमे बहार के फूलों (1) का एक शुगूफ़ा है और अगर लिबास से तशबीह देना चाहोगे तो कहोगे के यह नक़्शे दारे हुल्लों या ख़ुशनुमा यमनी चादरों जैसे हैं और अगर ज़ेवरात ही से तशबीह देना चाहोगे तो इस तरह कहोगे के यह रंग-बिरंग के नगीने हैं जो चान्दी के दाएरों में जड़ दिये गए हैं। यह जानवर अपनी रफ़्तार एक मग़रूर और मुतकब्बिर शख़्स की तरह ख़राम नाज़ से चलता है और अपने बालो पर अपनी दुम को देखता रहता है। अपने फ़ितरी लिबास की ख़ूबसूरती और अपनी चादरे हयात की रंगीनी को देखकर क़हक़हे लगाता है और इसके बाद जब पैरों पर नज़र पड़ जाती है तो इस तरह बलन्द आवाज़ से रोता है जैसे फ़ितरत की सितमज़रीफ़ी की फ़रयाद कर रहा हो और अपने वाक़ेई दर्दे दिल की शहादत दे रहा हो इसलिये के इसके पैर दोग़ले मुर्ग़ों के पैरों की तरह दुबले पतले और बारीक होते हैं। और इसकी पिण्डली के किनारे पर एक हल्का सा कांटा होता है और इसकी गरदन पर बालों के बदले सब्ज़ रंग के मुनक़्क़श परों का एक गुच्छा होता है। इसकी गरदन का फैलाव सुराही की गरदन की तरह होता है और इसके गर्दन की जगह से लेकर पेट तक का हिस्सा यमनी वस्मा जैसा सब्ज़ रंग या उस रेशम जैसा होता है जिसे सैक़ल किये हुए आईने पर पहना दिया गया हो। ऐसा मालूम होता है के वह स्याह रंग की ओढ़नी में लिपटा हुआ है लेकिन वह अपनी आब व ताब की कसरत और चमक-दमक की शिद्दत से इस तरह महसूस होती है जैसे इसमें तरो ताज़ा सब्ज़ी अलग से शामिल कर दी गई हो।

इसके कानों के शिगाफ़ मुत्तसिल बाबूना के फूलों जैसी नोके क़लम के मानिन्द एक बारीक लकीर होती है और वह अपनी सफ़ेदी के साथ उस जगह की स्याही के दरम्यान चमकती रहती है। शायद ही कोई रंग ऐसा हो जिसका कोई हिस्सा इस जानवर को न मिला हो मगर इस लकीर की सैक़ल और इसके रेशमीं पैकर की चमक दमक सब पर ग़ालिब रहती है। इसकी मिसाल उन बिखरी हुई कलियों के मानिन्द होती है जिन्हें न बहार की बारिशो ने पाला हो और न गर्मी के सूरज की शुआओं ने, व कभी-कभी अपने बाल व पर से जुदा भी हो जाता है और इस रंगीन लिबास को उतार कर बरहना हो जाता है। इसके बाल व पर झड़ जाते हैं और दोबारा (2) फिर उग आते हैं।

(((- (1) कहा जाता है के सिर्फ़ फ़िलपीन में दस हज़ार क़िस्म के फूल पाए जाते हैं तो बाक़ी कायनात का क्या ज़िक्र है।

(2) बाज़ अफ़राद का ख़याल है के मोर के बदन में तक़रीबन हज़ार से चार हज़ार तक पर होते हैं और वह उन्हीं परों को देख कर अकड़ता रहता है और सहरा में रक़्स करता रहता है। यह और बात है के अपने कमाल का मुज़ाहिरा वहां करता है जहां कोई क़द्रदान नहीं होता है और न इससे इस्तेफ़ादा करने वाला होता है। सिर्फ़ अपनी ज़ात की तस्कीन और अपनी अना की तसल्ली का सामान फ़राहम करता है और यही फ़र्क़ है इन्सान और हैवान में के इन्सानी कमालात अना की तस्कीन और तसल्ली के लिये नहीं हैं इनका मसरफ़ ख़ल्क़े ख़ुदा को फ़ायदा पहुंचाना और समाज को फ़ैज़याब करना है। लेहाज़ा इन्सान अपने कमालात से मुआसेरा को मुसतफ़ैज़ करता है तो इन्सान है वरना एक मोर है जो सहरा में नाचता रहता है और अपने नफ़्स को ख़ुश करता रहता है। यह और बात है के यह ख़ुशी भी दाएमी नहीं होती है और उसे भी चन्द लम्हों में पैरों की हिक़ारत ख़त्म कर देती है और एक नया सबक़ सिखा देती है के उमूमी अफ़ादियत तो काम भी आ सकती है और उसे दवाम भी मिल सकता है लेकिन ज़ाती तस्कीन की न कोई हक़ीक़त है और न उसे दवाम नसीब हो सकता है।-)))

यह बालो-पर इस तरह गिरते हैं जैसे दरख़्त की शाख़ों से पत्ते गिरते हैं और फिर दोबारा यूँ उग आते हैं के बिल्कुल पहले जैसे हो जाते हैं। न पुराने रंगों से कोई मुख़्तलिफ़ रंग होता है और न किसी रंग की जगह तबदील होती है। बल्कि अगर तुम इसके रेषों में किसी एक रेशे पर भी ग़ौर करोगे तो तुम्हें कभी गुलाब की सुर्खी नज़र आएगी ज़मरू की सब्ज़ी और फिर कभी सोने की ज़र्दी, भला उस तख़लीक़ की तौसीफ़ तक फ़िक्रों की गहराइयां किस तरह पहुंच सकती हैं और इन दक़ाएक़ को अक़्ल की जोदत किस तरह पा सकती है या तौसीफ़ करने वाले इसके औसाफ़ को किस तरह मुरत्तब कर सकते हैं।

जबके इसके छोटे से एक जुज़ए ने औहाम को वहां तक रसाई से आजिज़ कर दिया है और ज़बानों को उसकी तौसीफ़ से दरमान्दा कर दिया है।

पाक व बेनियाज़ है वह मालिक जिसने अक़्लों को मुतहीर कर दिया है इस एक मख़लूक़ की तौसीफ़ से जिसे निगाहों के सामने वाज़ेह कर दिया है और निगाहों ने उसे महदूद और मुरत्तब व मुरक्कब व मुलव्वन शक्ल में देख लिया है और फिर ज़बानों को भी इसकी सिफ़त का ख़ुलासा बयान करने और इसकी तारीफ़ का हक़ अदा करने से आजिज़ कर दिया, और पाक व पाकीज़ा है वह ज़ात जिसने च्यूंटी और मच्छर से लेकर इनसे बड़ी मछलियों और हाथियों तक के पैरों को मज़बूत व मुस्तहकम बनाया है और अपने लिये लाज़िम क़रार दे लिया है के कोई ज़ीरूह ढांचा हरकत करेगा मगर यह के उसकी असल वादागाह मौत होगी और उसका अन्जाम कार फ़ना होगा।

अब अगर तुम इन बयानात पर दिल की निगाहों से नज़र डालोगे तो तुम्हारा नफ़्स दुनिया की तमाम शहवतों, लज़्ज़तों और ज़ीनतों से बेज़ार हो जाएगा और तुम्हारी फ़िक्र उन दरख़्तों के पत्तों की खड़खड़ाहट में गुम हो जाएगी जिनकी जड़ें साहिले दरिया पर मुश्क के टीलों में डूबी हुई होती हैं और उन तरो ताज़ा मोतियों के गुच्छों के लटकने और सब्ज़ पत्तियों के ग़िलाफ़ों में मुख़्तलिफ़ क़िस्म के फलों के निकलने के नज़ारों में गुम हो जाएगी जिन्हें बग़ैर किसी ज़हमत के हासिल किया जा सकता है।

(((-क्या इबरतनाक है यह ज़िन्दगी के एक तरफ़ राहतें, लज़्ज़तें, आराइशे, ज़ेबाइशे हैं और दूसरी तरफ़ मौत का भयानक चेहरा! इन्सान एक नज़र इस आराइश व ज़ेबाइश की तरफ़ करता है और दूसरी नज़र उसके अन्जाम की तरफ़। बिल्कुल ऐसा महसूस होता है के एक तरफ़ मोर के पर हैं और दूसरी तरफ़ पैर, परों को देखकर ग़ुरूर पैदा होता है और पैरों को देखकर औक़ात का अन्दाज़ा हो जाता है।

इन्सान अपनी ज़िन्दगी के हक़ाएक़ पर नज़र करे तो उसे अन्दाज़ा होगा के इसकी पूरी हयात एक मोर की ज़िन्दगी है जहां एक तरफ़ राहत व आराम, आराइश व ज़ेबाइश का हंगामा है और दूसरी तरफ़ मौत का भयानक चेहरा।

ज़ाहिर है के जो इन्सान इस चेहरे को देख ले उसे कोई चीज़ हसीन और दिलकश महसूस न होगी और वह इस पुरफ़रेब दुनिया से जल्द अज़ जल्द निजात हासिल करने की कोशिश करेगा।-)))

और वहां वारिद होने वालों के गिर्द महलोल के आंगनों में साफ़ व शफ़ाफ़ शहद और पाक व पाकीज़ा शराब के दौर चल रहे होंगे। वहाँ वह क़ौम होगी जिसकी करामतों ने उसे खींचकर हमेशगी की मन्ज़िल तक पहुंचा दिया है और उन्हें सफर की मज़ीद ज़हमत से महफ़ूज़ कर दिया है। ऐ मेरी गुफ़्तगू सुनने वालों! अगर तुम लोग अपने दिलों को मशग़ूल कर लो इस मन्ज़िल तक पहुंचने के लिये जहां यह दिलकश नज़ारे पाए जाते हैं तो तुम्हारी जान इश्तियाक़ के मारे अज़ख़ुद निकल जाएगी और तुम मेरी इस मजलिस से उठकर क़ब्रों में रहने वालों की हमसायगी के लिये आमादा हो जाओगे ताके जल्द यह नेमतें हासिल हो जाएं। अल्लाह हमें और तुम्हें दोनों को अपनी रहमत के तुफ़ैल इन लोगों में क़रार दे जो अपने दिल की गहराइयों से नेक किरदार बन्दों की मन्ज़िलों के लिये सई कर रहे हैं।

(((- (बाज़ अल्फ़ाज़ की वज़ाहत) क़ला कशती के बादबान को कहा जाता है और दारी मक़ाम दारैन की तरफ़ मन्सूब है जो साहिल बहर पर आबाद है और वहां से ख़ुशबू वग़ैरा वारिद की जाती है। अन्जा यानी मोड़ दिया जिसका इस्तेमाल इस तरह होता है के अन्जतुन्नाक़ता यानी मैंने ऊंटनी के रूख़ को मोड़ दिया।

नौती मल्लाह को कहा जाता है, ज़फ़ती ज़फ़ूना यानी पलकों के किनारे, ज़फ़तान यानी दोनों किनारे)))

166- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(दावते इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़) तुम्हारे छोटों को चाहिये के अपने बड़ों की पैरवी करें और बड़ों का फ़र्ज़ है के अपने छोटों पर मेहरबानी करें और ख़बरदार तुम लोग जाहेलियत के इन ज़ालिमों जैसे न हो जाना जो न दीन का इल्म हासिल करते थे और न अल्लाह के बारे में अक़्ल व फ़हम से काम लेते थे। उनकी मिसाल अण्डों के छिलकों जैसी है जो शुतुरमुर्ग़ के अण्डे देने की जगह पर रखे हों के उनका तोड़ना तो जुर्म है लेकिन परवरिश करना भी सिवाए शर के कोई नतीजा नहीं दे सकता है।

(एक और हिस्सा) यह लोग बाहेमी मोहब्बत के बाद अलग-अलग हो गए और अपनी असल से जुदा हो गए। बाज़ लोगों ने एक शाख़ को पकड़ लिया है और अब उसी के साथ झुकते रहेंगे यहां तक के अल्लाह उन्हें बनी उमय्या के बदतरीन दिन के लिये जमा कर देगा जिस तरह के ख़रीफ़ में बादल के टुकड़े जमा हो जाते हैं फिर उनके दरम्यान मोहब्बत पैदा करेगा फिर उन्हें तह ब तह अब्र के टुकड़ों की तरह एक मज़बूत गिरोह बना देगा। फिर उनके लिये ऐसे दरवाज़ों को खोल देगा के यह अपने उभरने की जगह से शहरे सबा के दो बाग़ों के उस सैलाब की तरह बह निकलेंगे जिनसे न कोई चट्टान महफ़ूज़ रही थी और न कोई टीला ठहर सका था न पहाड़ की चोटी उसके धारे को मोड़ सकी थी और न ज़मीन की ऊंचाई। अल्लाह उन्हें घाटियों के नशेबों में मुतफ़र्रिक़ कर देगा और फिर उन्हें चश्मों के बहाव की तरह ज़मीन में फैला देगा।

उनके ज़रिये एक क़ौम के हुक़ूक़ दूसरी क़ौम से हासिल करेगा और एक जमाअत को दूसरी जमाअत के दयार में इक़्तेदार मुहैया करेगा। ख़ुदा की क़सम उनके इख़्तेदार व इख़्तेयार के बाद जो कुछ भी उनके हाथों में होगा वह इस तरह पिघल जाएगा जिस तरह के आग पर चर्बी पिघल जाती है।

(आखि़र ज़माने के लोग) ऐ लोगो! अगर तुम हक़ की मदद करने में कोताही न करते और बातिल को कमज़ोर बनाने में सुस्ती का मुज़ाहिरा न करते तो तुम्हारे बारे में वह क़ौम लालच न करती जो तुम जैसी नहीं है और तुम पर यह लोग क़वी न हो जाते, लेकिन अफ़सोस के तुम बनी इसराईल की तरह गुमराह हो गए और मेरी जान की क़सम मेरे बाद तुम्हारी यह हैरानी और सरगर्दानी दो चन्द हो जाएगी (कई गुना बढ़ जाएगी) चूंके तुमने हक़ को पसे पुश्त डाल दिया है। क़रीबतरीन से क़तए ताअल्लुक़ कर दिया है और दूर वालों से रिश्ता जोड़ लिया है। याद रखो के अगर तुम दाई हक़ का इत्तेबाअ कर लेते तो वह तुम्हें रसूले अकरम (स0) के रास्ते पर चलाता और तुम्हें कजरवी की ज़हमतों से बचा लेता और तुम उस संगीन बोझ को अपनी गर्दनों से उतारकर फेंक देते।

167-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(इब्तेदाए खि़लाफ़त के दौर में)

परवरदिगार ने इस किताबे हिदायत को नाज़िल किया है जिसमें ख़ैर व शर की वज़ाहत कर दी है लेहाज़ा तुम ख़ैर के रास्ते को इख़्तेयार करो ताके हिदायत पा जाओ और शर के रूख़ से मुंह मोड़ लो ताके सीधे रास्ते पर आ जाओ।

फ़राएज़ का ख़याल रखो और उन्हें अदा करो ताके वह तुम्हें जन्नत तक पहुंचा दें। अल्लाह ने जिस हराम को हराम क़रार दिया है वह मजहोल नहीं है और जिस हलाल को हलाल बनाया है वह मुष्तबह नहीं है। उसने मुसलमान की हुरमत को तमाम मोहतरम चीज़ों से अफ़ज़ल क़रार दिया है और मुसलमानों के हुक़ूक़ को उनकी मन्ज़िलों में इख़लास और यगाँगत से बान्ध दिया है। अब मुसलमान वही है जिसके हाथ और ज़बान से तमाम मुसलमान महफ़ूज़ रहें मगर यह के किसी हक़ की बिना पर उन पर हाथ डाला जाए और किसी मुसलमान के लिये मुसलमान को तकलीफ़ देना जाएज़ नहीं है मगर यह के उसका वाक़ेई सबब पैदा हो जाए।

उस अम्र की तरफ़ सबक़त करो जो हर एक के लिये है और तुम्हारे लिये भी है और वह है मौत। लोग तुम्हारे आगे जा चुके हैं और तुम्हारा वक़्त तुम्हें हँका कर ले जा रहा है। सामान हल्का रखो ताके अगले लोगों से मुलहक़ हो जाओ इसलिये के इन पहले वालों के ज़रिये तुम्हारा इन्तेज़ार किया जा रहा है।

अल्लाह से डरो उसके बन्दों के बारे में भी और शहरों के बारे में भी। इसलिये के तुमसे ज़मीनों और जानवरों के बारे में भी सवाल किया जाएगा। अल्लाह की इताअत करो और नाफ़रमानी न करो। ख़ैर को देखो तो फ़ौरन ले लो और शर पर नज़र पड़ जाए तो किनाराकश हो जाओ।

(((-इस क़ानून में मुसलमान की कोई तख़सीस नहीं है। मुसलमान वही होता है जिसके हाथ या उसकी ज़बान से किसी फ़र्दे बशर को अज़ीयत न हो और उसके शर से लोग महफ़ूज़ रहें। लेकिन यह उसी वक़्त तक है जब किसी के बारे में ज़बान खोलना या हाथ उठाना शर शुमार हो वरना अगर इन्सान इस अम्र का मुस्तहक़ हो गया है के उसके किरदार पर तन्क़ीद न करना या उसे क़रार वाक़ेई सज़ा न देना दीने ख़ुदा की तौहीन है तो कोई शख़्स भी दीने ख़ुदा से ज़्यादा मोहतरम नहीं है। इन्सान का एहतेराम दीने ख़ुदा के तुफ़ैल में है। अगर दीने ख़ुदा ही का एहतेराम न रह गया तो किसी शख़्स के एहतेराम की कोई हैसियत नहीं है।-)))

168- आपका इरशादे गिरामी

(जब बैअते खि़लाफ़त के बाद बाज़ लोगों ने मुतालेबा किया के काश आप उस्मान पर ज़्यादती करने वालों को सज़ा देते)

भाईयों! जे तुम जानते हो मै। उससे नावाक़िफ़ नहीं हूँ लेकिन मेरे पास इसकी ताक़त कहाँ है? अभी वह क़ौम अपनी ताक़त व क़ूवत पर क़ायम है। वह हमारा इख़्तेयार रखती है और हमारे पास इसका इख़्तेयार नहीं है और फिर तुम्हारे ग़ुलाम भी उनके साथ उठ खड़े हुए हैं और तुम्हारे देहाती भी इनके गिर्द जमा हो गए हैं और वह तुम्हारे दरम्यान इस हालत में हैं के तुम्हें जिस तरह चाहें अज़ीयत पहुंचा सकते हैं। क्या तुम्हारी नज़र में जो कुछ तुम चाहते हो उसकी कोई गुन्जाइश है। बेशक यह सिर्फ़ जेहालत और नादानी का मुतालबा है और इस क़ौम के पास ताक़त का सरचश्मा मौजूद है। इस मामले में अगर लोगों को हरकत भी दी जाए तो वह चन्द फ़िरक़ों में तक़सीम हो जाएंगे। एक फ़िरक़ा वही सोचेगा जो तुम सोच रहे हो और दूसरा गिरोह उसके खि़लाफ़ राय का हामिल होगा। तीसरा गिरोह दोनों से ग़ैर जानिबदार बन जाएगा लेहाज़ा मुनासिब यही है के सब्र करो यहां तक के लोग ज़रा मुतमईन हो जाएं और दिल ठहर जाएं और इसके बाद देखो के मैं क्या करता हूँ। ख़बरदार कोई ऐसी हरकत न करना जो ताक़त् को कमज़ोर बना दे और क़ूवत को पामाल कर दे और कमज़ोरी व ज़िल्लत का बाएस हो जाए। मैं जहां तक मुमकिन होगा इस जंग को रोके रहूँगा। इसके बाद जब कोई चाराएकार न रह जाएगा तो आखि़री इलाज दाग़ना ही होता है।

169-आपका इरशादे गिरामी

(जब असहाबे जमल बसरा की तरफ़ जा रहे थे)

अल्लाह ने अपने रसूले हादी को बोलती किताब और मुस्तहकम अम्र के साथ भेजा है। उसके होते हुए वही हलाक हो सकता है जिसका मुक़द्दर ही हलाकत हो और नई नई बिदअतें और नए-नए शुबहात ही हलाक करने वाले होते हैं मगर यह के अल्लाह ही किसी को बचा ले और परवरदिगार की तरफ़ से मुअय्यन होने वाला हाकिम ही तुम्हारे उमूर की हिफ़ाज़त कर सकता है लेहाज़ा उसे ऐसी मुकम्मल इताअत दे दो जो न क़ाबिले मलामत हो और न बददिली का नतीजा हो। ख़ुदा की क़सम या तो तुम ऐसी इताअत करोगे या फिर तुमसे इस्लामी इक़्तेदार छिन जाएगा और फिर कभी तुम्हारी तरफ़ पलट कर न आएगा यहां तक के किसी ग़ैर के साये में पनाह ले ले।

देखो यह लोग मेरी हुकूमत से नाराज़गी पर मुत्तहिद हो चुके हैं और अब मैं उस वक़्त तक सब्र करूंगा जब तक तुम्हारी जमाअत के बारे में कोई अन्देशा न पैदा हो जाए।

(((- उस्मान के खि़लाफ़ क़यामक रने वाले सिर्फ़ मदीने के अफ़राद होते जब भी मुक़ाबला आसान था, चे जाएका बक़ौल तबरी इस जमाअत में छः सौ मिस्री भी शामिल थे और एक हज़ार कूफ़े के सिपाही भी आ गए थे और दीगर और दीगर इलाक़े के मज़लूमीन ने भी मुहिम में शिरकत कर ली थी। ऐसे हालात में एक शख़्स जमल व सिफ़फ़ीन के मारेके भी बरदाश्त करे और इनत माम इन्क़ेलाबियों का मुहासेबा भी शुरू कराए यह एक नामुमकिन अम्र है और फिर मुहासिबे के अमल में उम्मुल मोमेनीन और माविया को भी शामिल करना पड़ेगा के क़त्ले उस्मान की मुहिम में यह अफ़राद भी बराबर के शरीक थे बल्कि उम्मुल मोमेनीन ने तो बाक़ायदा लोगों को क़त्ल पर आमादा किया था।

ऐसे हालात में मसला इस क़द्र आसान नहीं था जिस क़द्र बाज़ सादा लोह अफ़राद तसव्वुर कर रहे थे या बाज़ फ़ित्ना परवाने उसे हवा दे रहे थे-)))

इसलिये के अगर वह अपनी राय की कमज़ोरी के बावजूद इस अम्र में कामयाब हो गए तो मुसलमानों का रिश्तए नज़्म व नस्क़ बिल्कुल टूटकर रह जाएगा। उन लोगों ने इस दुनिया को सिर्फ़ न लोगों से हसद की बिना पर तलब किया है जिन्हें अल्लाह ने ख़लीफ़ा व हाकिम बनाया है। अब यह चाहते हैं के मुआमलात को उलटे पांव जाहेलीयत की तरफ़ पलटा दें। तुम्हारे लिये मेरे ज़िम्मे यही काम है के किताबे ख़ुदा और सुन्नते रसूल (स0) पर अमल करूं उनके हक़ को क़ायम करूं और उनकी सुन्नत को बलन्द व बाला क़रार दूँ।

170-आपका इरशादे गिरामी

(दलील क़ायम हो जाने के बाद हक़ के इतेबाअ के सिलसिले में जब अहले बसरा ने बाज़ अफ़राद को उस ग़र्ज़ से भेजा के अहले जमल के बारे में हज़रत के मौक़ूफ़ को दरयाफ़्त करें ताके किसी तरह का शुबह बाक़ी न रह जाए तो आपने जुमला उमूर की मुकम्मल वज़ाहत फ़रमाई ताके वाज़ेह हो जाए के आप हक़ पर हैं। इसके बाद फ़रमाया के जब हक़ वाज़ेह हो गया तो मेरे हाथ पर बैअत कर लो। उसने कहा के मैं एक क़ौम का नुमाइन्दा हूँ और उनकी तरफ़ रूजूअ किये बग़ैर कोई एक़दाम नहीं कर सकता हूँ- फ़रमाया के)

तुम्हारा क्या ख़याल है अगर इस क़ौम ने तुम्हें नुमाइन्दा बनाकर भेजा होता के जाओ तलाश करो जहां बारिश हो और पानी की कोई सबील हो और तुम वापस जाकर पानी और सब्ज़ा की ख़बर देते और वह लोग तुम्हारी मुख़ालफ़त करके ऐसी जगह का इन्तेख़ाब करते जहां पानी का क़हत और ख़ुश्कसाली का दौरे दौरा हो तो उस वक़्त तुम्हारा एक़दाम क्या होता? उसने कहा के मैं उन्हें छोड़कर आबो दाना की तरफ़ चला जाता। फ़रमाया फिर अब हाथ बढ़ाओ और बैअत कर लो के चश्मए हिदायत तो मिल गया है। उसने कहा के अब हुज्जत तमाम हो चुकी है और मेरे पास इन्कार का कोई जवाज़ नहीं रह गया है और यह कह कर हज़रत के दस्ते हक़ पर बैअत कर ली। (तारीख़ में इस शख़्स को कलीब जर्मी के नाम से याद किया जाता है)

171- आपका इरशादे गिरामी

(जब असहाबे माविया से सिफ़्फ़ीन में मुक़ाबले के लिये इरादा फ़रमाया)

ऐ परवरदिगार जो बलन्दतरीन छत और ठहरी हुई फ़िज़ा का मालिक है। जिसने इस फ़िज़ा को शब व रोज़ के सर छिपाने की मन्ज़िल और शम्स व क़मर के सेर का मैदान और सितारों की आमद व रफ़्त की जूलाँगाह क़रार दिया है। इसका साकिन मलाएका के उस गिरोह को क़रार दिया है जो तेरी इबादत से ख़स्ताहाल नहीं होते हैं। तू ही इस ज़मीन का भी मालिक है जिसे लोगों का मुस्तक़र बनाया है और जानवरों, कीड़ों मकोड़ों और बेशुमार मुरई और ग़ैर मुरई मख़लूक़ात के चलने-फिरने की जगह क़रार दिया है।

तू ही इन सरबफ़लक पहाड़ों का मालिक है जिन्हें ज़मीन के ठहराव के लिये मेख़ का दरजा दिया गया है और मख़लूक़ात का सहारा क़रार दिया गया है।

(((-यह इस्तेदलाल अपने हुस्न व जमाल के अलावा इस मानवीयत की तरफ़ भी इशारा है के इस्लाम में मेरी हैसियत एक सरसब्ज़ व शादाब गुलिस्तान की है जहां इस्लामी एहकाम व तालीमात की बहारें ख़ेमाज़न रहती हैं और मेरे अलावा तमाम अफ़राद एक रेगिस्तान से ज़्यादा कोई हैसियत नहीं रखते हैं। किस क़द्र हैरत की बात है के इन्सान सब्ज़ाजार और चश्मए आबे हयात को छोड़कर फिर रेगिस्तानों की तरफ़ पलट जाए और तष्नाकामी की ज़िन्दगी गुज़ारता है। जो तमाम अहले शाम का मुक़द्दर है।-)))

अगर तूने दुशमन के मुक़ाबले में ग़लबा इनायत फ़रमाया तो हमें ज़ुल्म से महफ़ूज़ रखना और हक़ के सीधे रास्ते पर क़ायम रखना और अगर दुशमन को हम पर ग़लबा हासिल हो जाए तो हमें शहादत का शरफ़ अता फ़रमाना और फ़ित्ना से महफ़ूज़ रखना।

(दावते जेहाद) कहाँ हैं वह इज़्ज़त व आबरू के पासबान और मुसीबतों के नुज़ूल के बाज़ नग व नाम की हिफ़ाज़त करने वाले साहेबाने इज़्ज़त व ग़ैरत। याद रखो ज़िल्लत व आर तुम्हारे पीछे है और जन्नत तुम्हारे आगे।

(((-बाज़ हज़रात का ख़याल है के यह बात शूरा के मौक़े पर साद बिन अबी वक़ास ने कही थी और बाज़ का ख़याल है के सक़ीफ़ा के मौक़े पर अबू उबैदा बिन अलजराह ने कही थी और दोनों ही इमकानात पाए जाते हैं के दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी और दोनों अमीरूलमोमेनीन (अ0) की मुख़ालफ़त पर मुत्तहिद थे।

-इससे मुदार तल्हा व ज़ुबैर हैं जिन्होंने ज़ौजए रसूल (स0) का इतना भी एहतेराम नहीं किया जितना अपनी घर की औरतों का किया करते थे-)))

172-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(हम्दे ख़ुदा) सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसके सामने एक आसमान दूसरे आसमान को और एक ज़मीन दूसरी ज़मीन को छुपा नहीं सकती है।

(रोज़े शूरा) एक शख़्स (1) ने मुझसे यहाँ तक कह दिया के फ़रज़न्द्र अबूतालिब! आप में इस खि़लाफ़त की लालच पाई जाती है ? तो मैंने कहा के ख़ुदा की क़सम तुम लोग ज़्यादा हरीस हो हालांके तुम दूर वाले हो। मैं तो उसका अहल भी हूँ और पैग़म्बर (स0) से क़रीबतर भी हूँ। मैंने इस हक़ का मुतालबा किया है जिसका मैं हक़दार हूँ लेकिन तुम लोग मेरे और उसके दरम्यान हाएल हो गए हो और मेरे ही रूख़ को उसकी तरफ़ से मोड़ना चाहते हो। फिर जब मैंने भरी महफ़िल में दलाएल के ज़रिये से कानों के पर्दों को खटखटाया तो होशियार हो गया और ऐसा मबहूत हो गया के कोई जवाब समझ में नहीं आ रहा था।

(क़ुरैश के खि़लाफ़ फ़रियाद) ख़ुदाया! मैं क़ुरैश और उनके अन्सार के मुक़ाबिल में तुझसे मदद चाहता हूँ के इन लोगों ने मेरी क़राबत का रिश्ता तोड़ दिया और मेरी अज़ीम मन्ज़िलत को हक़ीर बना दिया। मुझसे इस अम्र के लिये झगड़ा करने पर तैयार हो गए जिसका मैं वाक़ेअन हक़दार था और फिर यह कहने लगे के आप से ले लें तो भी सही है और इससे दस्तबरदार हो जाएं तो भी बरहक़ है। (असहाबे जमल के बारे में) यह ज़ालिम इस शान से बरामद हुए के रसूल (स0) को यूँ खींच कर मैदान में ला रहे थे जैसे कनीज़ें ख़रीद व फ़रोख़्त के वक़्त ले जाई जाती हैं। इनका रूख़ बसरा की तरफ़ था। इन दोनों ने (2) अपनी औरतों को घर में बन्द कर रखा था और ज़ौजाए रसूल (स0) को मैदान में ला रहे थे। जबके इनके लशकर में कोई ऐसा न था जो पहले मेरी बैअत न कर चुका हो और बग़ैर कसी ख़बर व इकराह के मेरी इताअत में न रह चुका हो। यह लोग पहले मेरे आमिले बसरा (3) और ख़ाज़ने बैतुलमाल जैसे अफ़राद पर हमलावर हुए तो एक जमाअत को गिरफ़्तार करके क़त्ल कर दिया और एक को धोके में तलवार के घाट उतार दिया। ख़ुदा की क़सम अगर यह तमाम मुसलमानों में सिर्फ़ एक शख़्स को भी क़सदन क़त्ल कर देते तो भी मेरे वास्ते पूरे लशकर से जंग करने का जवाज़ मौजूद था के दीगर अफ़राद हाज़िर रहे और उन्होंने नापसन्दीदगी का इज़हार नहीं किया और अपनी ज़बान (4) या अपने हाथ से दिफ़ाअ नहीं किया और फिर जबके मुसलमानों में से इतने अफ़राद को क़त्ल कर दिया है जितनी उनके पूरे लशकर की तादाद थी।

(((-(1) बाज़ हज़रात का ख़याल है के यह बात शूरा के मौक़े पर साद बिन अबी वक़ास ने कही थी और बाज़ का ख़याल है के सक़ीफ़ा के मौक़े पर अबू उबैदा बिन अलजराह ने कही थी और दोनों ही इमकानात पाए जाते हैं के दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी और दोनों अमीरूल मोमेनीन (अ0) की मुख़ालफ़त पर मुत्तहिद थे। (2) उससे मुराद तल्हा व ज़ुबैर हैं जिन्होंने ज़ौजए रसूल (स0) का इतना भी एहतेराम नहीं किया जितना अपने घर की औरतों का किया करते थे।

(3) जनाबे उस्मान बिन ख़ैफ़ का मुसला कर दिया और उनके साथियों की एक बड़ी जमाअत को तहे तेग़ कर दिया। (4) फ़िक़ही एतबार से दिफ़ाअ न करने वालों का क़त्ल जाएज़ नहीं होता है लेकिन यहां वह लोग मुराद हैं जिन्होंने इमामे बरहक़ के खि़लाफ़ ख़ुरूज करके फ़साद फ़िल अर्ज़ का इरतेकाब किया था और यह जुर्म जवाज़े क़त्ल के लिये काफ़ी होता है।-)))

173- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(रसूले अकरम (स0) के बारे में और इस अम्र की वज़ाहत के सिलसिले में के खि़लाफ़त का वाक़ेई हक़दार कौन है ?)

पैग़म्बरे इस्लाम (स0) वहीए इलाही के अमानतदार और ख़ातमुल मुरसलीन थे रहमते इलाही की बशारत देने वाले और अज़ाबे इलाही से डराने वाले थे।

लोगों! याद रखो उस अम्र का सबसे ज़्यादा हक़दार वही है जो सबसे ज़्यादा ताक़तवर और दीने इलाही का वाक़िफ़कार हो। इसके बाद अगर कोई फ़ित्ना परवाज़ फ़ित्ना खड़ा हो जाएगा तो पहले उसे तौबा की दावत दी जाएगी, उसके बाद अगर इन्कार करेगा तो क़त्ल कर दिया जाएगा। मेरी जान की क़सम अगर उम्मत का मसल तमाम अफ़रादे बशर के इज्तेमाअ के बग़ैर तय नहीं हो सकता है तो इस इज्तेमाअ का तो कोई रास्ता ही नहीं है। होता यही है के हाज़िरीन का फ़ैसला ग़ायब अफ़राद पर नाफ़िज़ हो जाता है और न तो हाज़िर को अपनी बैअत से रूजू करने का हक़ होता है और न ग़ायब को दूसरा रास्ता इख़्तेयार करने का जवाज़ होता है। याद रखो के मैं दोनों तरह के अफ़राद से जेहाद करूंगा। उनसे भी जो ग़ैरे हक़ के दावेदार होंगे और उनसे भी जो हक़दार को उसका हक़ न देंगे। बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वाए इलाही की वसीयत करता हूँ के यह बन्दों के दरम्यान बेहतरीन वसीयत है और पेशे परवरदिगार अन्जाम के ऐतबार से बेहतरीन अमल है। देखो! तुम्हारे और अहले क़िबला मुसलमानों के दरम्यान जंग का दरवाज़ा खोला जा चुका है। अब इस अलम को वही उठाएगा जो साहेबे बसीरत व सब्र होगा और हक़ के मराकज़ का पहचानने वाला होगा। तुम्हारा फ़र्ज़ है के मेरे एहकाम के मुताबिक़ क़दम आगे बढ़ाओ और मैं जहांँ रोक दूं वहाँ रूक जाओ और ख़बरदार किसी मसले में भी तहक़ीक़ के बग़ैर जल्दबाज़ी से काम न लेना के मुझे जिन बातों का तुम इन्कार करते हो उनमें ग़ैर मामूली इन्के़लाबात का अन्देशा रहता है। याद रखो- यह दुनिया जिसकी तुम आरज़ू कर रहे हो और जिसमें तुम रग़बत का इज़हार कर रहे हो और जो कभी कभी तुमसे अदावत करती है और कभी तुम्हें ख़ुश कर देती है। यह तुम्हारा वाक़ेई घर और तुम्हारी वाक़ेई मन्ज़िल नहीं है जिसके लिये तुम्हें ख़ल्क़ किया गया है और जिसकी तरफ़ तुम्हें दावत दी गई है और फिर यह बाक़ी रहने वाली भी नहीं है और तुम भी उसमें बाक़ी रहने वाले नहीं हो। यह अगर कभी धोका देती है तो दूसरे वक़्त अपने शर से होशियार भी कर देती है, लेहाज़ा इसके धोके से बचो और इसकी तम्बीह पर अमल करो। इसकी लालच को नज़र अन्दाज़ करो और इसकी तख़वीफ़ का ख़याल रखो। इसमें रहकर इस घर की तरफ़ सबक़त करो जिसकी तुम्हें दावत दी गई है और अपने दिलों का रूख़ उसकी तरफ़ से मोड़ लो और ख़बरदार तुममें से कोई शख़्स इसकी किसी नेमत से महरूमी की बुनियाद पर कनीज़ों की तरह रोने न बैठ जाए। अल्लाह से उसकी नेमतों की तकमील का मुतालेबा करो, उसकी इताअत पर सब्र करने और इसकी किताब के एहकाम की मुख़ालफ़त करने के ज़रिये।

याद रखो अगर तुमने दीन की बुनियाद को महफ़ूज़ कर दिया तो दुनिया की किसी “शै की बरबादी भी तुम्हें नुक़सान नहीं पहुंचा सकती है और अगर तुमने दीन को बरबाद कर दिया तो दुनिया में किसी “शै की हिफ़ाज़त भी फ़ायदा नहीं दे सकती है। अल्लाह हम सबके दिल को हक़ के रास्ते पर लगा दे और सबको सब्र की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।

(((-अलम लशकरे क़ौम की सरबलन्दी की निशानी और लशकर के वेक़ार व इज़्ज़त की अलामत होता है। लेहाज़ा इसको उठाने वाले को भी साहबे बसीरत व बरदाश्त होना ज़रूरी है वरना अगर परचम सरनिगूँ हो गया तो न लशकर का कोई वेक़ार रह जाएगा और न मज़हब का कोई एतबार रह जाएगा।

सरकारे दो आलम (स0) ने इन्हें ख़ुसूसियात के पेशे नज़र ख़ैबर के मौक़े पर एलान फ़रमाया था के कल मैं उसको अलम दूंगा जो कर्रार , ग़ैरे फ़र्रार, मोहिब्बे ख़ुदा व रसूल (स0) , महबूबे ख़ुदा व रसूल (स0) और मर्दे मैदाँ होगा के इसके अलावा कोई शख़्स अलमबरदारी का अहल नहीं हो सकता है!-)))