नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
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नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

खुतबातेइमामअली(उपदेश)

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम (अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) के मुन्तख़ब ख़ुतबात का सिलसिला-ए-कलाम)

1.आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमेंआसमानवज़मीन की खि़ल्क़त की इब्तेदा और खि़ल्क़त-ए-आदम (अ.स.) के तज़किरे के साथ हज्जे बैतुल्लाह की अज़्मत का भी ज़िक्र किया गया है) यह ख़ुत्बा हम्द-व-सनाए परवरदिगार, खि़ल्क़ते आलम, तख़लीक़े मलाएका, इन्तेख़ाबे अम्बिया, बअसत सरकारे दो आलम (स.), अज़मते क़ुरान और मुख़्तलिफ़ एहकामे शरइया पर मुष्तमिल है।

सारी तारीफ़ें उस अल्लाह के लिये हैं जिसकी मिदहत तक बोलने वालों के तकल्लुम की रसाई नहीं है और इसकी नेमतों को गिनने वाले शुमार नहीं कर सकते हैं। इसके हक़ को कोशिश करने वाले भी अदा नहीं कर सकते हैं। न हिम्मतों की बुलन्दियां इसका इदराक कर सकती हैं और न ज़ेहानतों की गहराइयां इसकी तह तक जा सकती हैं। इसकी सिफ़त ज़ात के लिये न कोई मुअय्यन हद है न तौसीफ़ी कलेमात। न मुक़र्ररा वक़्त है और न आखि़री मुद्दत। इसने तमाम मख़लूक़ात को सिर्फ़ अपनी क़ुदरते कामेला से पैदा किया है और फिर अपनी रहमत ही से हवाएं चलाई हैं और ज़मीन की हरकत को पहाड़ों की मीख़ों से संभाल रखा है। दीन की इब्तेदा इसकी मारेफ़त से है और मारेफ़त का कमाल इसकी तसदीक़ से है, तसदीक़ का कमाल तौहीद का इक़रार है और तौहीद का कमाल इख़लास अक़ीदा है और इख़लास का कमाल ज़ाएद बर ज़ात सिफात की नफ़ी है के सिफ़त का मफ़हूम ख़ुद ही गवाह है के वह मौसूफ़ से अलग कोई शै है और मौसूफ़ का मफ़हूम ही यह है के वह सिफ़त से जुदागाना कोई ज़ात है। इस के लिए अलग से सिफ़ात का असबात एक शरीक का असबात है और इसका लाज़मी नतीजा ज़ात का ताअदुद है और ताअदुद का मक़सद इसके लिए अजज़ाअ का अक़ीदा है और अजज़ाअ का अक़ीदा सिर्फ़ जिहालत है मारेफ़त नहीं है और जो बेमारेफ़त हो गया उसने इशारा करना शुरू कर दिया और जिसने इसकी तरफ़ इशारा किया उसने इसे एक सिम्त में महदूद कर दिया और जिसने महदूद कर दिया उसने इसे गिनती का एक शुमार कर लिया (जो सरासर खि़लाफ़े तौहीद ज़ात है)।

जिसने यह सवाल खड़ा किया के वह किस चीज़ में है उसने इसे किसी के ज़हन में क़रार दे दिया और जिसने यह कहा के वह किसके ऊपर क़ाएम है उसने नीचे का इलाक़ा ख़ाली करा लिया। इसकी हस्ती हादिस नहीं है और इसका वजूद अदम की तारीकियों से नहीं निकला है। वह हर शै के साथ है लेकिन मिल कर नहीं, और हर शै से अलग है लेकिन जुदाई की बुनियाद पर नहीं। वह फाएल है लेकिन हरकात व आलात के ज़रिये नहीं और वह उस वक़्त भी बसीर था जब देखी जाने वाली मख़लूक़ का पता नहीं था। वह अपनी ज़ात में बिलकुल अकेला है और इसका कोई ऐसा साथी नहीं है जिसको पाकर उन्स महसूस करे और खोकर परेशान हो जाने का एहसास करे।

ख़ुतबे का पहला हिस्सा ज़ाते वाजिब की अज़मतों से मुताल्लिक है जिसमें इसकी बुलन्दियों और गहराईयों के तज़किरे के साथ इसकी पायां नेमतों की तरफ़ भी इशारा किया गया है और यह वाज़ेअ किया गया है के इसकी ज़ाते मुक़द्दस ला महदूद है और इसकी इब्तेदा व इन्तेहा का तसव्वुर भी मुहाल है। अलबत्ता इसके अहानात की फ़ेहरिस्त में सरे फेहरिस्त तीन चीज़ें हैं-

1. उसने अपनी क़ुदरते कामेला से मख़लूक़ात को पैदा किया है।

2. उसने अपनी रहमते शामला से साँस लेने के लिए हवाएं चलाई हैं।

3. इन्सान के क़रार व इस्तेक़रार के लिए ज़मीन की थरथराहट को पहाड़ों की मेख़ों के ज़रिये रोक दिया है वरना इनसान का एक लम्हा भी खड़ा रहना मुहाल हो जाता और इसके हर लम्हे गिर पड़ने और उलट जाने का इमकान बरक़रार रहता।

दूसरे हिस्से में दीन व मज़हब का ज़िक्र किया गया है के जिस तरह कायनात का आग़ाज़ ज़ाते वाजिब से है उसी तरह दीन का आग़ाज़ भी इसकी मारेफ़त से होता है और मारेफ़त में हस्बे ज़ैल काम का लेहाज़ रखना ज़रूरी है। दिल व जान से इसकी तस्दीक़ की जाए। फ़िक्रो नज़र से इसकी वहदानियत का इक़रार किया जाए और ख़ालिक़ व मख़लूक़ के इम्तेयाज़ इसके सिफ़ात को ऐन ज़ात तसव्वुर किया जाए वरना हर ग़लत अक़ीदा इन्सान को इस जेहालत से दो चार कर देगा और हर महमल सवाल के नतीजे में मारेफ़त से ‘शुरूहोने वाला सिलसिला जेहालत पर तमाम होगा और यह बदबख़्ती की आख़री मन्ज़िल है। इसकी अज़्मत के साथ इस नुक्ते का भी ख़्याल रखना ज़रूरी है के वह जुमला आमाल की निगरानी कर रहा है और अपनी यकताई में किसी के वहम व गुमान का मोहताज नहीं है। इसने मख़लूक़ात को अज़ ग़ैब ईजाद किया और इनकी तख़लीक़ की इब्तेदा की बग़ैर किसी फ़िक्र की जूलानी के और बग़ैर किसी तजुरबे से फ़ायदा उठाए हुए या हरकत की ईजाद किये हुए या नफ़्स के उफ़्कार की उलझन में पड़े हुए। तमाम अशयाअ को इनके औक़ात के हवाले कर दिया और फ़िर इनके इख़्तेलाफ़ात में तनासब पैदा कर दिया। सब की तबीयतें मुक़र्रर कर दीं और फ़िर इन्हें शक्लें अता कर दीं। इसे यह तमाम बातें ईजाद के पहले से मालूम थीं और वह उनके हुदूद और उनकी इन्तेहा को ख़ूब जानता था। उसे हर शै के ज़ाती एतराफ़ आ भी इल्म था और इसके साथ शामिल हो जाने वाली चीज़ो का भी इल्म था।

इसके बाद उसने फ़िज़ा की वुस्अतें, इसके एतराफ व एकनाफ़ और हवाओं के तबक़ात ईजाद किये और उनके दरम्यान वह पानी बहा दिया जिसकी लहरों में तलातुम था और जिसकी मौजें तह ब तह थीं और उसे एक तेज़ व तन्द हवा के कान्धे पर लाद दिया और फिर हवा को उलटने पलटने और रोक कर रखने का हुक्त दे दिया और इसकी हदों को पानी की हदों से यूँ मिला दिया के नीचे हवा की वुसअतें थीं और ऊपर पानी का तलातुम।

इसके बाद एक और हवा ईजाद की जिसकी हरकत में कोई तौलीदी सलाहियत नहीं थी और इसे मरकज़ पर रोक कर इसके झोंकों को तेज़ कर दिया और इसके मैदान को वसीअतर बना दिया और फ़िर उसे हुक्म दिया के इस बहरज़खार को मथ डाले और मौजूद को उलट पलट कर दे। चुनांचे इसने सारे पानी को एक मष्कीज़ह की तरह मथ डाला और उसे फ़िज़ाए बसीत में इस तरह लेकर चली के अव्वल को आखि़र पर उलट दिया और साकिन को मुतहर्रिक पर पलट दिया और इसके नतीजे में पानी की एक सतह बलन्द हो गई और इसके ऊपर एक झाग की तह बन गई। फिर इस झाग को फैली हुई हवा और खुली हुई फ़िज़ा में बलन्द कर दिया और इससे सात आसमान पैदा कर दिये जिसकी निचली सतह एक ठहरी हुई मौज की तरह थी और ऊपर का हिस्सा एक महफ़ूज़ सिक़त और बलन्द इमारत के मानिन्द था। न इसका कोई सतून था जो सहारा दे सके और न कोई बन्धन था जो मुनज़्ज़म कर सके।

फ़िर उन आसमानों को सितारों की ज़ीनत से मुजय्यन किया और उनमें ताबन्दह नजूम की रौशनी फैला दी और उनके दरमियान एक ज़ौफ़गन चिराग़ और एक रौशन माहताब रवां कर दिया जिसकी हरकत एक घूमने वाले फ़लक और एक मुतहर्रक छत और जुम्बिश करने वाली तख़्ती में थी।

तख़्लीक़े कायनात के बारे में अब तक जो नज़रियात सामने आए हैं इनका ताल्लुक़ दो मौज़ूआत से हैः

एक मौज़ू यह है के इस कायनात का मादा क्या है? तमाम अनासर अरबह हैं या सिर्फ़ पानी से यह कायनात ख़ल्क़ हुई है या कुछ दूसरे अनासर अरबह भी कार फ़रमा थे या किसी गैस से यह कायनात पैदा हुई है या किसी भाप और कोहरे ने इसे जनम दिया है, दूसरा मौज़ू यह है के इसकी तख़लीक़ वफ़अतन हुई है या यह क़दर रेज आलमे वजूद में आई है और इसकी उम्र दस बिलयन साल है60 हज़ार बिलयन साल है ?

चुनान्चे हर शख़्स ने अपने अन्दाज़े के मुताबिक़ एक राय क़ाएम की है और उसी राय की बिना पर इसे मोहक़क़िक का दरजा दिया गया है। हालांके हक़ीक़ते अम्र यह है के इस क़िस्म के मौज़ूआत में तहक़ीक़ का कोई इमकान नहीं है और न कोई हतमी राय क़ायम की जा सकती है। सिर्र्फ़ अन्दाज़े हैं जिन पर सारा कारोबार चल रहा है और ऐसे माहौल में हर शख़्स को एक नई राय क़ायम करने का हक़ है और किसी को यह चैलेन्ज करने का हक़ नहीं है के यह राय आलात और वसाएल से पहले की है लेहाज़ा इसकी कोई क़ीमत नहीं है।

अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ने अस्ल कायनात पानी को क़रार दिया है और इसी की तरफ़ क़ुरआन मजीद ने भी इशारा किया है और आपकी राय दीगर आराय के मुक़ाबले में इसलिये भी अहमियत रखती है के इसकी बुनियाद तहक़ीक़, इन्केशाफ़, तजुरबा और अन्दाज़ा पर नहीं है बल्कि यह इस मालिक का दिया हुआ बेपनाह इल्म है जिसने इस कायनात को बनाया है और खुली बात है के मालिक से ज़्यादा मख़लूक़ात से बाख़बर और कौन हो सकता है।

अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने अपने बयान में तीन नुकात की तरफ़ तवज्जोह दिलाई है (1) असल कायनात पानी है और पानी को क़ाबिले इस्तेमाल हवा ने बनाया है। (2) इस फ़िज़ाए बेसत के तीन रूख़ हैं , बलन्दी जिसको अजवाए कहा जाता है और एतराफ़ जिसे इरजार से ताबीर किया जाता है और तबक़ात जिन्हें सकाइक का नाम दिया जाता है, आम तौर से ओलमाए फलक को अकब के हर मजमूए को सिक्कह का नाम देते हैं जिसमें एक अरब से ज़्यादा सितारे पाए जाते हैं जिस तरह के हमारे अपने निज़ाम शम्सी का हाल है के इसमें एक अरब से ज़्यादह सितारों का इन्केशाफ़ किया जा चुका है। (3) आसमानी मख़लूक़ात में एक मरकज़ी शै है जिसे इसकी हरकत की बिना पर चिराग़ कहा जाता है और एक इसके गिर्द हरकत करने वाली ज़मीन है और एक ज़मीन के गिर्द हरकत करने वाला सितारा है जिसे क़मर कहा जाता है और ओलमाए फ़लक इस ताबेअ दर ताबेअ को क़मर कहते हैं कोकब नहीं कहते हैं।

फिर इसने बलन्द तरीन आसमानों के दरमियान शिगाफ़ पैदा किये और इन्हें तरह तरह के फ़रिश्तो से भर दिया जिनमें से बाज़ सजदे में हैं तो रूकूअ की नौबत नहीं आती है और बाज़ रूकूअ में हैं तो सर नहीं उठाते हैं और बाज़ सफ़ बान्धे हुए हैं तो अपनी जगह से हरकत नहीं करते हैं बाज़ मशग़ूले तस्बीह हैं तो खस्ताहाल नहीं होते हैं। सब के स बवह हैं के न इनकी आँखों पर नीन्द का ग़लबा होता है और न अक़्लों पर सहो व निस्यान का, न बदन में सुस्ती पैदा होती है और न दिमाग़ में निस्यान की ग़फ़लत।

इनमें से बाज़ को वही का अमीन और रसूलों की तरफ़ क़ुदरत की ज़बान बनाया गया है जो इसके फ़ैसलों और एहकाम को बराबर लाते रहते हैं और कुछ इस के बन्दों के मुहाफ़िज़ और जन्नत के दरवाज़ों के दरबान हैं और बाज़ वह भी हैं जिनके क़दम ज़मीन के आखि़री तबक़े में साबित हैं और गर्दनें बलन्दतरीन आसमानों से भी बाहर निकली हुई हैं। इनके एतराफ़ बदन इक़तारे आलम से वसीअतर हैं और इनके कान्धे पर पायहाए अर्ष के उठाने के क़ाबिल हैं। इनकी निगाहें अर्षे इलाही के सामने झुकी हुई हैं और वह इसके नीचे परों को समेटे हुए हैं। उनके और दीगर मख़लूक़ात के दरमियान इज़्ज़त के हिजाब और क़ुदरत के पर्दे हाएल हैं। वह अपने परवरदिगार के बारे में शक्ल व सूरत का तसव्वुर भी नहीं करते हैं और न इसके हक़ में मख़लूक़ात के सिफ़ात को जारी करते हैं। वह न इसे मकान में महदूद करते हैं और न इसकी तरफ़ इशबाह व नज़ाएर से इशारह करते हैं।

तख़लीक़ेजनाबेआदम(अ) कीकैफ़ियत

इसके बाद परवरदिगार ने ज़मीन के सख़्त व नरम और शूर व शीरीं हिस्सों से ख़ाक को जमा किया और इसे पानी से इस क़दर भिगोया के बिल्कुल ख़ालिस हो गयी और फ़िर तरी में इस क़दर गूंधा के लसदार बन गई और इसे एक ऐसी सूरत बनाई जिसमें मोड़ भी थे और जोड़ भी। आज़ा भी थे और जोड़बन्द भी, फिर इस क़दर सुखाया के मज़बूत हो गई और इस क़द्र सख़्त किया के खनखनाने लगी और यह सूरते हाल एक वक़्ते मुअय्यन और मुद्दत-ए-ख़ास तक बरक़रार रही जिसके बाद इसमें मालिक ने अपनी रूहे कमाल फूंक दी और इसे ऐसा इन्सान बना दिया जिसमें ज़ेहन की जूलानियां भी थीं और फ़िक्र के तसर्रूफात भी काम करने वाले आज़ा व जवारेह भी थे और हरकत करने वाले अददात व आलात भी, हक़ व बातिल में फ़र्क़ करने वाली मारेफ़त भी थी और मुख़्तलिफ़ ज़ाएक़ों, ख़ुशबुओं, रंग व रोग़न में तमीज़ करने की सलाहियत भी। इसे मुख़्तलिफ़ क़िस्म की मिट्टी से बनाया गया जिसमें मवाफ़िक़ अजज़ा भी पाए जाते थे और मुतज़ात अनासिर भी और गरमी, सरदी, तरी ख़ुश्की जैसे कैफ़ियात भी।

फ़िर परवरदिगार ने मलाएका से मतालेबा किया के इसकी अमानत को वापस करें और इसकी ममहूदह वसीयत पर अमल करें यानी इस मख़लूक़ के सामने सर झुका दें और इसकी करामत का इक़रार कर लें। चुनांचे इसने साफ़ साफ़ एलान कर दिया के आदम को सजदा करो और सबने सजदा भी कर लिया सिवाए इबलीस के, के उसे ताअस्सुब ने घेर लिया और बदबख़्ती ग़ालिब आ गई और इसने आग की खि़ल्क़त को वजह-ए-इज़्ज़त और ख़ाक की खि़ल्क़त को वजह-ए-ज़िल्लत क़रार दे दिया। मगर परवरदिगार ने उसे ग़ज़बे इलाही के मुकम्मल इस्तहक़ाक़, आज़माइश की तकमील और अपने वादे को पूरा करने के लिये यह कहकर मोहलत दे दी के तुजे रोज़ वक़्ते मआलूम तक के लिये मोहलत दी जा रही है।

ऐ इन्सान की कमज़ोरी के सिलसिले में इतना ही काफ़ी है के अपनी असल के बारे में इतना भी मालूम नहीं है जितना दूसरी मख़लूक़ात के बारे में इल्म है। वह न अपने मादा की असल से बाख़बर है और न अपनी रूह की हक़ीक़त से। मालिक ने इसे मुतज़ाद अनासिर से ऐसा जामेअ बना दिया है के जिस्मे सग़ीर में आलमे अकबर समा गया है और बक़ौल शख्से इसमें जमादात अजया कोन व फ़साद, नबातात जैसा नमू, हैवान जैसी हरकत और मलाएका जैसी इताअत व हयात सब पाई जाती है और औसाफ़ के ऐतबार से भी इसमें कुत्ते जैसी ख़ुशामद, मकड़ी जैसे ताने बाने, क़न्ज़र जैसे अस्लहे, परिन्दों जैसा तहफ़्फ़ुज़, हशरातुल अर्ज़ जैसा तहफ़्फ़ुज़, हिरन जैसी उछल कूद, चूहे जैसी चोरी, मोर जैसा ग़ुरूर, ऊंट जैसा कीना ख़च्चर जैसी शरारत, बुलबुल जैसा तरन्नुम, बिच्छू जैसा डंक, सब कुछ पाया जाता है।

इसके बाद परवरदिगार ने आदम (अ) को एक ऐसा घर में साकिन कर दिया जहां ज़िन्दगी ख़ुश गवार और मामून व महफ़ूज़ थी और फिर इन्हें इबलीस और इसकी अदावत से भी बाख़बर कर दिया। लेकिन दुशमन ने इनके जन्नत के क़याम और नेक बन्दों की रिफ़ाक़त से जल कर इन्हें धोका दे दिया और इन्होंने भी अपने यक़ीने मोहकम को शक और अज़्मे मुस्तहकम को कमज़ोरी के हाथों फ़रोख़्त कर दिया और इस तरह मसर्रत के बदले ख़ौफ़ को ले लिया और इबलीस के कहने में आकर निदामत का सामान फ़राहम कर लिया। फिर परवरदिगार ने इनके लिये तौबा का सामान फ़राहम कर दिया और अपने कलेमाते रहमत की तलक़ीन कर दी और इनसे जन्नत में वापसी का वादा करके इन्हें आज़माइश की दुनिया में उतार दिया जहां नस्लों का सिलसिला क़ायम होने वाला था।

अम्बिया-ए-कराम का इन्तेख़ाब

इसके बाद उसने इनकी औलाद में से इन अम्बियाओं का इन्तेख़ाब किया जिनसे वही की हिफ़ाज़त और पैग़ाम की तबलीग़ की अमानत का अहद लिया इसलिये के आखि़री मख़लूक़ात ने अहदे इलाही को तबदील कर दिया था। इसके हक़ से नावाक़िफ़ हो गये थे। इसके साथ दूसरे ख़ुदा बना लिये थे और शैतान ने इन्हें मारेफ़त की राह से हटाकर इबादत से यकसर जुदा कर दिया था।

परवरदिगार ने इनके दरमियान रसूल भेजे, अम्बिया का तसलसुल क़ाएम किया ताके वह उनसे फ़ितरत की अमानत को वापस लें और इन्हें भूली हुई नेमतों परवरदिगार को याद दिलाएं। तबलीग़ के ज़रिये इन पर तमाम हुज्जत करें और इनकी अक़्ल के दफ़ीफ़ों को बाहर लाएं और उन्हें क़ुदरते इलाही की निशानियां दिखलाईं। यह सदों पर बलन्दतरीन छत, यह ज़ेरे क़दम गहवारा, यह ज़िन्दगी के असबाब, यह फ़ना करने वाली अजल, यह बूढ़ा बना देने वाले इमराज़ और यह पै दर पै पेश आने वाले हादसात।

इसने कभी अपनी मख़लूक़ात को नबीए मुरसल या किताब मुनज़्ज़ल या हुज्जतल अज़्म या तरीक़ वाज़ेअ से महरूम नहीं रखा है। ऐसे रसूल भेजे हैं जिन्हें न अदद की क़िल्लत काम से रोक सकती थी और न झुटलाने वालों की कसरत, इनमें जो पहले था उसे बाद वाले का हाल मालूम था और जो बाद में आया उसे पहले वाले ने पहुंचवा दिया था और यूं ही सदियां गुज़रती रहीं औश्र ज़माने बीतते रहे। आबा व अजदाद जाते रहे और औलाद व अहफ़ाद आते रहे।

बैसत रसूले अकरम (स0)

यहां तक के मालिक ने अपने वादे को पूरा करने और अपने नबूवत को मुकम्मल करने के लिये हज़रत मोहम्मद (स0) को भेज दिया जिनके बारे में अम्बिया से अहद लिया जा चुका था और जिनकी अलामतें मशहूर और विलादत मसऊद व मुबारक थी। इस वक़्त अहले ज़मीन मुतफ़र्रिक़ मज़ाहिब , मुन्तशिर ख़्वाहिशात और मुख़्तलिफ़ रास्तों पर गामज़न थे। कोई ख़ुदा को मख़लूक़ात की शबीह बता रहा था। कोई इसके नामों को बिगाड़ रहा था, और कोई दूसरे ख़ुदा का इशारा दे रहा था। मालिक ने आपके ज़रिये सबको गुमराही से हिदायत दी और जेहालत से बाहर निकाल लिया।

इसके बाद उसने आपकी मुलाक़ात को पसन्द किया और इनआमात से नवाज़ने के लिये इस दारे दुनिया से बलन्द कर लिया। आपको मसाएब से निजात दिला दी और निहायत एहतेराम से अपनी बारगाह में तलब कर लिया और उम्मत में वैसा ही इन्तेज़ाम कर दिया जैसा के दीगर अम्बिया ने किया था के उन्होंने भी क़ौम को लावारिस नहीं छोड़ा था जिसके लिये कोई वाज़ेए रास्ता और मुस्तहकम निशान न हो।

क़ुरआन और एहकामे शरीया

उन्होंने तुम्हारे दरमियान तुम्हारे परवरदिगार की किताब को छोड़ा है जिसके हलाल व हराम फराएज़ व फ़ज़ाएल, नासिख़ व मन्सूख़, रूख़सत व अज़ीमत, ख़ास व आम, इबरत व इमसाल, मुतलक़ व मुक़ीद, मोहकम व मुतशाबेह सबको वाज़ेह कर दिया था, मोजमल की तफ़सीर कर दी थी, गुत्थियों को सुलझा दिया था। इसमें बाज़ आयात हैं जिनके इल्म का अहद लिया गया है और बाज़ से नावाक़फ़ीयत को मुआफ़ कर दिया गया है। बाज़ एहकाम के फ़र्ज़ का किताब में ज़िक्र किया गया है और सुन्नत से इनके मनसूख़ होने का इल्म हासिल हुआ है। या सुन्नत में इनके वजूब का ज़िक्र हुआ है जबके किताब में तर्क करने की आज़ादी का ज़िक्र था, बाज़ एहकाम एक वक़्त में वाजिब हुए हैं और मुस्तक़बिल में ख़त्म कर दिये गए हैं। इसके मोहर्रमात में बाज़ पर जहन्नुम की सज़ा सुनाई गई है और बाज़ गुनाहे सग़ीरा हैं जिनकी बख़्शिशकी उम्मीद दिलाई गई है। बाज़ एहकाम हैं जिनका मुख़्तसर भी क़ाबिले क़ुबूल है और ज़्यादा की भी गुन्जाइश पाई जाती है।

ज़िक्रे बैतुल्लाह

परवरदिगार ने तुम लोगों पर हज्जे बैतुलहराम को वाजिब क़रार दिया है जिसे लोगों के लिये क़िबला बनाया है और जहां लोग प्यासे जानवरों की तरह बे ताबाना वारिद होते हैं और वैसा उन्स रखते हैं जैसे कबूतर अपने आशियाने से रखता है। हज्जे बैतुल्लाह को मालिक ने अपनी अज़मत के सामने झुकने की अलामत और अपनी इज़्ज़त के ईक़ान की निशानी क़रार दिया है। इसने मख़लूक़ात में से इन बन्दों का इन्तेख़ाब किया है जो इसकी आवाज़ सुन कर लब्बैक कहते हैं और उसके कलेमात की तसदीक़ करते हैं। उन्होंने अम्बिया के मवाफ़िक़ में वक़ूफ़ किया है और तवाफ़ अर्श करने वाले फ़रिश्तो का अन्ताज़ अख़्तियार किया है। यह लोग अपनी इबादत के मुआमले में बराबर फ़ायदे हासिल कर रहे हैं और मग़फ़ेरत की वादागाह की तरफ़ तेज़ी से सबक़त कर रहे हैं।

परवरदिगार ने काबे को इस्लाम की निशानी और बेपनाह अफ़राद की पनाहगाह क़रार दिया है। इसके हज को फ़र्ज़ किया है और इसके हक़ को वाजिब क़रार दिया है। तुम्हारे ऊपर उस घर की हाज़िरी को लिख दिया है और साफ़ ऐलान कर दिया है के “अल्लाह के लिये लोगों की ज़िम्मादारी है के इसके घर का हज करें जिसके पास भी इस राह को तय करने की इस्तेताअत पाई जाती हो।”

2- सिफ़्फ़ीन से वापसी पर आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

जिसमें बाअसते पैग़म्बर के वक़्त लोगों के हालात आले रसूल (स0) के औसाफ़ और दूसरे अफ़राद के कैफ़ियात का ज़िक्र किया गया है।

मैं परवरदिगार की हम्द करता हूँ इसकी नेमतों की तकमील के लिये और इसकी इज़्ज़त के सामने सरे तस्लीम ख़म करते हुए हैं इसकी नाफ़रमानी से तहफ़्फ़ुज़ चाहता हूँ और इससे मदद मांगता हूँ के मैं इसी की किफ़ायत व किफ़ालत का मोहताज हूँ। वह जिसे हिदायत दे दे वह गुमराह नहीं हो सकता है और जिसका वह दुशमन हो जाए उसे कहीं पनाह नहीं मिल सकती है।

जिसके लिये वह काफ़ी हो जाए वह किसी का मोहताज नहीं है। इस हम्द का पल्ला हर बावज़न शै से गरांतर है और यह सरमाया हर ख़ज़ाने से ज़्यादा क़ीमती है। मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नहीं है और यह वह गवाही है, जिसके इख़लास का इम्तेहान हो चुका है और जिसका निचोड़ अक़ीदे का जुज़ बन चुका है। मैं इस गवाही से ताहयात वाबस्ता रहूँगा और इसी को रोज़े क़यामत के हौलनाक मराहेल के लिये ज़ख़ीरा बनाऊंगा। यही ईमान की मुस्तहकम बुनियाद है और यही नेकियों का आग़ाज़ है और इसी में रहमान की मरज़ी और शैतान की तबाही का राज़ मुज़म्मर है।

और मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद (स0) अल्लाह के बन्दे और इसके रसूल हैं। उन्हें परवरदिगार ने मशहूर दीन , मासूर निशानी, रोशन किताब, ज़िया-ए-पाश नूर, चमकदार रौशनी और वाज़ेह अम्र के साथ भेजा है ताके शुबहात ज़ाएल हो जाएं और दलाएल के ज़रिये हुज्जत तमाम की जा सके, आयात के ज़रिये होशियार बनाया जा सके और मिसालों के ज़रिये डराया जा सके।

यह बअसत उस वक़्त हुई है जब लोग ऐसे फ़ितनों में मुब्तिला थे जिनसे रीसमाने दीन टूट चुकी थी। यक़ीन के सुतून हिल गए थे। उसूल में शदीद इख़्तेलाफ़ था और काम में सख़्त इन्तेशार। मुश्किलात से निकलने के रास्ते तंग व तारीक हो गये थे। हिदायत गुमनाम थी और गुमराही बरसरे आम, रहमान की मआसियत हो रही थी और शैतान की नुसरत, ईमान यकसीर नज़रअन्दाज़ हो गया था, इसके सुतून गिर गए थे औश्र आसार नाक़ाबिले शिनाख़्त हो गए थे, रास्ते मिट गए थे और शहराहें बेनिशान हो गई थीं। लोग शैतान की इताअत में इसी के रास्ते पर चल रहे थे और इसी के चश्मों पर वारित हो रहे थे। उन्हीं की वजह से शैतान के परचम लहरा रहे थे और इसके अलम सरबलन्द थे। यह लोग ऐसे फ़ितनों में मुब्तिला थे जिन्होंने इन्हें पैरों तले रोन्द दिया था और समों से कुचल दिया था और ख़ुद अपने पन्जों के बल खड़े हो गए थे। यह लोग फ़ितनों में हैरान व सरगरदां और जाहिल व फ़रेब खा़ेरदा थे। परवरदिगार ने उन्हें इस घर (मक्का) में भेजा जो बेहतरीन मकान था, लेकिन बदतरीन हमसाए जिनकी नींद बेदारी थी और जिनका सुरमा आंसू, वह सरज़मीन जहाँ आलिम को लगाम लगी हुई थी और जाहिल मोहतरम था।

आले रसूले अकरम (स0)

यह लोग राज़े इलाही की मन्ज़िल और अम्रे दीन का मिलजा व मावा हैं। यही इल्मे ख़ुदा के मरकज़ और हुक्मे ख़ुदा की पनाहगाह हैं। किताबों ने यहीं पनाह ली है और दीन के यही कोहे गराँ हैं। उन्हीं के ज़रिये परवरदिगार ने दीन की पुश्त की कजी सीधी की है और उन्हीं के ज़रिये इसके जोड़ बन्द के राशे का इलाज किया है।

एक दूसरी क़ौम

उन लोगों ने फ़िजोर का बीज बोया है और इसे ग़ुरूर के पानी से सींचा है और नतीजे में हलाकत को काटा है। याद रखो के आले मोहम्मद (स0) पर इस उम्मत में किसी का क़यास नहीं किया जा सकता है और न इन लोगों को उनके बराबर क़रार दिया जा सकता है जिन पर हमेशा इनकी नेमतों का सिलसिला जारी रहा है। आले मोहम्मद (स0) दीन की असास और यक़ीन का सतून हैं। उनसे आगे बढ़ जाने वाला पलट कर उन्हीं की तरफ़ आता है और पीछे रह जाने वाला भी उन्हीं से आकर मिलता है। उनके पस हक़्क़े विलायत के ख़ुसूसियात हैं और इन्हीं के दरमियान पैग़म्बर (स0) की वसीयत और उनकी विरासत है।

अब जबके हक़ अपने अहल के पास वापस आ गया है और अपनी मन्ज़िल की तरफ़ मुन्तक़िल हो गया है।

3- आपकेएकख़ुतबेकाहिस्सा

(जिसे शक़शक़िया के नाम से याद किया जाता है)

आगाह हो जाओ के ख़ुदा की क़सम फ़ुलां शख़्स (इब्ने अबी क़हाफ़ा) ने क़मीस खि़लाफ़त को खींच तान कर पहन लिया है हालांकि इसे मालूम है के खि़लाफ़त की चक्की के लिये मेरी हैसियत मरकज़ी कील की है। इल्म का सैलाब मेरी ज़ात से गुज़र कर नीचे जाता है और मेरी बलन्दी तक किसी का ताएर-ए-फ़िक्र भी परवाज़ नहीं कर सकता है। फिर भी परवाज़ नहीं कर सकता है। फिर भी मैंने खि़लाफ़त के आगे परदा डाल दिया और इससे पहलू तही कर ली और यह सोचना ‘शुरूकर दिया के कटे हुए हाथों से हमला कर दूँ या इसी भयानक अन्धेरे पर सब्र कर लूँ जिसमें सिन रसीदा बिलकुल ज़ईफ़ हो जाए और बच्चा बूढ़ा हो जाए और मोमिन मेहनत करते करते ख़ुदा की बारगाह तक पहुंच जाए।

तो मैंने देखा के इन हालात में सब्र ही क़रीन-ए-अक़्ल है तो मैंने इस आलम में सब्र कर लिया के आँखों में मसाएब की खटक थी और गले में रन्ज व ग़म के फन्दे थे। मैं अपनी मीरास को लुटते देख रहा था। यहां तक के पहले ख़लीफ़ा ने अपना रास्ता लिया और खि़लाफ़त को अपने बाद फ़ुलाँ के हवाले कर दिया, बक़ौल आशया-

“कहां वह दिन जो गुज़रता था मेरा ऊँटों पर, कहाँ यह दिन के मैं हय्यान के जवार में हूँ।”हैरत अंगेज़ बात तो यह है के वह अपनी ज़िन्दगी में इस्तीफ़ा दे रहा था और मरने के बाद के लिये दूसरे के लिए तय कर गया। बेशक दोनों ने मिलकर शिद्दत से इसके थनों को दोहा है और अब एक ऐसी दरष्त और सख़्त मन्ज़िल में रख दिया है जिसके ज़ख़्म कारी हैं और जिसको छूने से भी दरष्ती का एहसास होता है। लग़्िज़षों की कसरत है और माज़रतों की बोहतात।

(( ख़ुत्बा शक़शक़िया के बारे में बाज़ मुतास्सिब और नाइन्साफ़ मुसन्नेफ़ीन ने यह फ़ितना उठाने की कोशिश की है के यह ख़ुत्बा अमीरूल मोमेनीन अ0 का नहीं है और इसे सय्यद रज़ी रह0 ने हज़रत अली अ0 के नाम से वाज़ेअ कर दिया है। हालांके यह बात रिवायत और विरायत दोनों के खि़लाफ़ है। रिवायत के ऐतेबार से इसके नाक़िल हज़रात में वह अफ़राद भी हैं जो सय्यद रज़ी रह0 की विलादत से पहले दुनिया से जा चुके हैं , और विरायत के एतबार से यह अन्दाज़े तन्क़ीद व तज़लम साहबे मुसीबत के अलावा दूसरा शख़्स इख़्तेयार ही नहीं कर सकता है और हर शख़्स को अपने ऊपर वारिद होने वाले मसाएब के खि़लाफ़ आवाज़ उठाने का हक़ हासिल है फिर जबके सारे वाक़ेआत तारीख़ के मुसालमात में भी हैं तो इन्कार की क्या वजह हो सकती है। ख़लीफ़ए अव्वल का ज़बरदस्ती लिबासे खि़लाफ़त पहन लेना इस एतराफ़ के साथ के मैं तुम लोगों से बेहतर नहीं हूँ। मेरे साथ एक शैतान लगा रहता है। मुझे माफ कर दो। हज़रत अली अ0 का यह मरतबा के वह इल्मी सैलाब का सरचश्मा और इन्सानी फ़िक्र से बालातर शख़्सियत हैं , आपका खि़लाफ़त से किनाराकश होकर सब्र व तहम्मुल की पॉलीसी पर अमल करना। अबूबक्र का इस्तीफ़ा के एलान के बाद भी उमर को नामज़द कर देना और दोनों का मुकम्मल तौर पर खि़लाफ़त से इस्तेफ़ादह करना और हज़रत उमर का दरष्त मिज़ाज होना वह तारीख़ी हक़ाएक़ हैं जिनसे इन्कार करने वाला नहीं पैदा हुआ है तो फिर किस बुनियाद पर ख़ुतबे को जाली या ज़ई क़रार दिया जा रहा है और क्यों हक़ाएक़ की परदापोशी की नाकाम कोशिश की जा रही है। ))

इसको बरदाश्त करने वाला ऐसा ही है जैसे सरकश ऊंटनी का सवार के महार खींच ले तो नाक ज़ख़्मी हो जाए और ढील दे दे तो हलाकतों में कूद पड़े। तो ख़ुदा की क़सम लोग एक कजरवी, सरकशी, तलवन मिज़ाजी और बेराहरवी में मुब्तिला हो गए हैं और मैंने भी सख़्त हालात में तवील मुद्दत तक सब्र किया यहाँ तक के वह भी अपने रास्ते चला गया लेकिन खि़लाफ़त को एक जमाअत में क़रार दे गया जिनमें एक मुझे भी शुमार कर गया जबके मेरा इस शूरा से क्या ताअल्लुक़ था। मुझमें पहले दिन कौन सा ऐब व रैब देखा था के आज मुझे ऐसे लोगों के साथ मिलाया जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद मैंने इन्हीं की फ़िज़ा में परवाज़ की और यह नज़दीक फ़िज़ा में उड़े तो वहाँ भी साथ रहा और ऊचे उड़े तो वहां भी साथ रहा मगर फिर भी एक शख़्स अपने कीने की बिना पर मुझ से मुनहरिफ़ हो गया और दूसरा दामादी की तरफ़ झुक गया और कुछ और भी नाक़ाबिले ज़िक्र असबाब व अशख़ास थे जिसके नतीजे में तीसरा शख़्स सरगीन और चारा के दरमियान पेट फुलाए हुए उठ खड़ा हुआ और इसके साथ इसके अहले ख़ानदान भी खड़े हो गए जो माले ख़ुदा को इस तरह हज़म कर रहे थे जिस तरह ऊंट बहार की घास को चर लेता है, यहां तक के इसकी बटी हुई रस्सी के बल खुल गए और उसके आमाल ने उसका ख़ात्मा कर दिया और शिकमपुरी ने मुंह के बल गिरा दिया।

इस वक़्त मुझे जिस चीज़ ने दहशत ज़दा कर दिया वह यह थी के लोग बिज्जू की गरदन के बाल की तरह मेरे गिर्द जमा हो गए और चारों तरफ से मेरे ऊपर टूट पड़े यहां तक के हसन (अ) व हुसैन (अ) कुचल गए और मेरी रिदा के किनारे फट गए। यह सब मेरे गिर्द बकरियों के गलह की तरह घेरा डाले हुए थे लेकिन जब मैंने ज़िम्मेदारी सम्भाली और उठ खड़ा हुआ तो एक गिरोह ने बैअत तोड़ दी और दूसरा दीन से बाहर निकल गया और तीसरे ने फिस्क़ इख़्तेयार कर लिया जैसे के इन लोगों ने यह इरशाद-ए-इलाही सुना ही नहीं है के “यह दारे आख़ेरत हम सिर्फ़ उन लोगों के लिये क़रार देते हैं जो दुनिया में बलन्दी और फ़साद नहीं चाहते हैं और आक़ेबत सिर्फ़ अहले तक़वा के लिये है।”हाँ हाँ ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने यह इरशाद सुना भी है और समझे भी हैं। लेकिन दुनिया उनकी निगाहों में आरास्ता हो गई और इसकी चमक दमक ने उन्हें लुभा लिया।

(( इसमें कोई शक नहीं है के उसमान के तसरफ़ात ने तमाम आलमे इस्लाम को नाराज़ कर दिया था। हज़रत आयशा उन्हें लोअसल यहूदी क़रार देकर लोगों को क़त्ल पर आमादा कर रही थीं। तलहा इन्हें वाजिबुल क़त्ल क़रार दे रहा था। ज़ुबैर दरपरदा क़ातिलों की हिमायत कर रहा था लेकिन इन सबका मक़सद उम्मते इस्लामिया को ना अहल से निजात दिलाना नहीं था बल्कि आइन्दा खि़लाफ़त की ज़मीन को हमवार करना था और हज़रत अली इस हक़ीक़त से मुकम्मल तौर पर बाख़बर थे। इसीलिये जब इन्क़ेलाबी गिरोह ने खि़लाफ़त की पेशकश की त आपने इन्कार कर दिया के क़त्ल का सारा इल्ज़ाम अपनी गरदन पर आ जाएगा और इस वक़्त तक क़ुबूल नहीं किया जब तक तमाम इन्सार व महाजेरीन ने इस अम्र का इक़रार नहीं कर लिया के आपके अलावा उम्मत का मुश्किलकुशा कोई नहीं है और इसके बाद भी मिम्बरे रसूल (स) पर बैठकर बैअत ली ताके जानशीनी का सही मफ़हूम वाज़े हो जाए। यह और बात है के इस वक़्त भी साद बिन अबी क़ास और अब्दुल्लाह बिन उमर जैसे अफ़राद ने बैअत नहीं की और हज़रत आएशा को भी जैसे ही इस “हादसे”की इत्तेलाअ मिली उन्होंने उस्मान की मज़लूमियत का एलान ‘शुरूकर दिया और तलहा व ज़ुबैर की महरूमी का इन्तेक़ाम लेने का इरादा कर लिया। आपके हज़रत अली (अ) से इख़्तेलाफ़ की एक बुनियाद यह भी थी के हुज़ूर (स) ने औलादे अली (अ) को अपनी औलाद क़रार दे दिया था और क़ुराने मजीद ने उन्हें अब्नाअना का लक़ब दे दिया था और हज़रत आएशा मुस्तक़िल तौर पर महरूमे औलाद थीं लेहाज़ा उनमें यह जज़्ब-ए-हसद पैदा होना ही चाहिए था।))

आगाह हो जाओ वह ख़ुदा गवाह है जिसने दाने को शिगाफ़्ता किया है और ज़ीरूह को पैदा किया है के अगर हाज़िरीन की मौजूदगी और अन्सार के वजूद से हुज्जत तमाम न हो गई होती और अल्लाह का अहले इल्म से यह अहद न होता के ख़बरदार ज़ालिम की शिकमपुरी और मज़लूम की गरन्गी पर चैन से न बैठना तो मैं आज भी इस खि़लाफ़त की रस्सी को इसी की गरदन पर डाल कर हका देता और इसके आखि़र को अव्वल ही के कासे से सेराब करता और तुम देख लेते के तुम्हारी दुनिया मेरी नज़र में बकरी की छींक से भी ज़ादा बेक़ीमत है।

कहा जाता है के इस मौक़े पर एक इराक़ी बाशिन्दा उठ खड़ा हुआ और उसने आपको एक ख़त दिया जिसके बारे में ख़याल है के इसमें कुछ फ़ौरी जवाब तलबे मसाएल थे। चुनान्चे आपने इस ख़त को पढ़ना ‘शुरूकर दिया और जब फ़ारिग़ हुए तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ की के हुज़ूर बयान जारी रहे। फ़रमाया के अफ़सोस इब्ने अब्बास यह तो एक शक़शक़ा था जो उभरकर दब गया। (शक़शक़ा ऊंट के मुंह में वह गोश्त का लोथड़ा है जो ग़ुस्से और हैजान के वक़्त बाहर निकल आता है।)

इब्ने अब्बास कहते हैं के बख़ुदा क़सम मुझे किसी कलाम के नातमाम रह जाने का इस क़द्र अफ़सोस नहीं हुआ जितना अफ़सोस इस अम्र पर हुआ के अमीरूल मोमेनीन (अ) अपनी बात पूरी न फ़रमा सके और आपका कलाम नातमाम रह गया।

सैयद शरीफ़ (र) फ़रमाते हैं के अमीरूल मोमेनीन (अ) के इरशाद “इन शनक़लहा.......” का मफ़हूम यह है के अगर नाक़े पर मेहार खींचने में सख़्ती की जाएगी और वह सरकशी पर आमादा हो जाएगा तो उसकी नाक ज़ख़्मी हो जाएगी और अगर ढीला छोड़ दिया जाए तो इख़्तेयार से बाहर निकल जाएगा। अरब “अशनक़लनाक़ा”इसी मौक़े पर इस्तेमाल करते हैं जब इसके सर को मेहार के ज़रिये खींचा जाता है और वह सर उठा लेता है। इस कैफ़ियत को “शन्क़हा”से भी ताबीर करते हैं जैसा के इब्ने अलसकीत ने “इस्लाहलमन्तक़”में बयान किया है। लेकिन अमीरूल मोमेनीन (अ) ने इसमें एक ‘लाम‘का इज़ाफ़ा कर दिया है “अशनक़लहा”के बाद के जुमले “असलस लहा”से हम आहंग हो जाए और फ़साहत का निज़ाम दरहम बरहम न होने पाए।

4- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो फ़सीह तरीन कलेमात में शुमार होता है और जिसमें लोगों को नसीहत की गई है और इन्हें गुमराही से हिदायत के रास्ते पर लाया गया है।)

(तल्हा व ज़ुबैर की बग़ावत और क़त्ले उस्मान के पस मन्ज़र में फ़रमाया) तुम लोगों ने हमारी ही वजह से तारीकियों में हिदायत का रास्ता पाया है और बलन्दी के कोहान पर क़दम जमाए हैं और हमारी ही वजह से अन्धेरी रातों से उजाले की तरफ़ बाहर आए हो।

वह कान बहरे हो जाएं जो पुकारने वाले की आवाज़ न सुन सकें और वह लोग भला धीमी आवाज़ को क्या सुन सकेंगे जिनके कान बलन्द तरीन आवाज़ों के सामने भी बहरे ही रहे हों। मुतमईन दिल वही होता है जो यादे इलाही और ख़ौफ़े ख़ुदा में मुसलसल धड़कता रहता है। मैं रोज़े अव्वल से तुम्हारी ग़द्दारी के अन्जाम का इन्तेज़ाम कर रहा हूँ और तुम्हें फ़रेब ख़ोरदा लोगों के अन्दाज़ से पहचान रहा हूँ। मुझे तुमसे दीनदारी की चादर ने पोशीदा कर दिया है लेकिन सिद्क़ नीयत ने मेरे लिये तुम्हारे हालात को आईना कर दिया है। मैंने तुम्हारे लिये गुमराही की मन्ज़िलों में हक़ के रास्तों पर क़याम किया है जहां तुम एक दूसरे से मिलते थे लेकिन कोई राहनुमा न था और कुँआ खोदते थे लेकिन पानी नसीब न होता था। आज मैं तुम्हारे लिये अपनी इस ज़बाने ख़ामोश को गोया बना रहा हूँ जिसमें बड़ी क़ूवते बयान है। याद रखो के उस शख़्स की राय गुम हो गयी है जिसने मुझ से रू गरदानी की है। मैंने रोज़े अव्वल से आज तक हक़ के बारे में कभी शक नहीं किया है। (मेरा सकूत मिस्ले मूसा (अ) है) मूसा को अपने नफ़्स के बारे में ख़ौफ़ नहीं था, उन्हें दरबारे फ़िरऔन में सिर्फ़ यह ख़ौफ़ था के कहीं जाहिल जादूगर और गुमराह हुक्काम अवाम की अक़्लों पर ग़ालिब न आ जाएं। आज हम सब हक़ व बातिल के रास्ते पर आमने-सामने हैं और याद रखो जिसे पानी पर ऐतमाद होता है वह प्यासा नहीं रहता है।