220-आपका इरशादे गिरामी
(ख़ुदा की राह में चलने वाले इन्सानों के बारे में)
ऐसे शख़्स ने अपनी अक़्ल को ज़िन्दा रखा है और अपने नफ़्स को मुर्दा बना दिया है। इसका जिस्म बारीक हो गया है और इसका भारी भरकम तनो तोश हल्का हो गया है इसके लिये बेहतरीन ज़ोपाश नूरे हिदायत चमक उठा है और उसने रास्ते को वाज़ेह करके इसी पर चला दिया है। तमाम दरवाज़ों ने उसे सलामती के दरवाज़े और हमेशगी के घर तक पहुंचा दिया है और इसके क़दम तमानीयते बदन के साथ अम्न व राहत की मन्ज़िल में साबित हो गए हैं के इसने अपने दिल को इस्तेमाल किया है और अपने रब को राज़ी कर लिया है।
221- आपका इरशादे गिरामी
(जिसे अलहाकोमुत्तकासोर की तिलावत के मौक़े पर इरशाद फ़रमाया)
ज़रा देखो तो इन आबा व अजदाद पर फ़ख़्र करने वालों का मक़सद किस क़़द्र बईदुज़ अक़्ल है और यह ज़ियारत करने वाले किस क़द्र ग़ाफ़िल हैं और ख़तरा भी किस क़द्र अज़ीम है। यह लोग तमाम इबरतों से ख़ाली हो गए हैं और इन्होंने मुर्दों को बहुत दूर से ले लिया है और आखि़र यह क्या अपने आबा व अजदाद के लाशों पर फ़ख़्र कर रहे हैं, या मुर्दो की तादाद से अपनी कसर में इज़ाफ़ कर रहे हैं? या उन जिस्मों को वापस लाना चाहते हैं जो रूहों से ख़ाली हो चुके हैं और हरकत के बाद साकिन हो चुके हैं। उन्हें तो फ़ख़्र के बजाए इबरत का सामान होना चाहिये था और उनको देखकर इन्सान को इज़्ज़त के बजाय ज़िल्लत की मन्ज़िल में उतरना चाहिये था मगर अफ़सोस के इन लोगों ने उन मुर्दों को चुन्धियाई हुई आंखों से देखा है और उनकी तरफ़ से जेहालत के गढ़े में गिर गए हैं।
(((- यह सिलसिलए तफ़ाख़ुर हर दौर में रहा है और आज भी बरक़रार है के इन्सान सामाने इबरत को वजहे फ़ज़ीलत क़रार दे रहा है और इस तरह मुसलसल वादीए ग़फ़लत में मन्ज़िल से दूरतर होता चला जा रहा है। काश उसे इसक़द्र शऊर होता के आबा व अजदाद की बोसीदा लाशें या क़ब्रें बाइसे इफ़्तेख़ार नहीं हैं। बाइसे इफ़्तेख़ार इन्सान का अपना किरदार है और दर हक़ीक़त किरदार भी इस क़ाबिल नहीं है के उसे सरमायए इफ़्तेख़ार क़रार दिया जा सके। इन्सान के लिये वजहे इफ़्तेख़ार सिर्फ़ एक चीज़ है के इसका मालिक परवरदिगार है जो सारी कायनातत से बालातर है जैसा के मौलाए कायनात ने अपनी मुनाजात में इशारा किया है के “ख़ुदाया! मेरी इज़्ज़त के लिये यह काफ़ी है के मैं तेरा बन्दा हूँ और मेरे फ़ख़्र के लिये यह काफ़ी है के तू मेरा रब है। अब इसके बाद मेरे लिये किसी शै की कोई हक़ीक़त नहीं है। सिर्फ़ इल्तिजा यह है के जिस तरह तू मेरी मर्ज़ी का ख़ुदा है, उसी तरह मुझे अपनी मर्ज़ी का बन्दा बना ले। -)))
उनके बारे में गिरे पड़े मकानों और ख़ाली घरों से दरयाफ़्त किया जाए तो यही जवाब मिलेगा के लोग गुमराही के आलम में ज़ेरे ज़मीन चले गए (और) तुम जेहालत के आालम में इनके पीछे चले जजा रहे हो, इनकी खोपड़ियों को रौन्द रहे हो और उनके जिस्मों पर इमारतें खड़ी कर रहे हो, जो वह छोड़ गए हैं उसी को चर रहे हो और जो वह बरबाद कर गए हैं उसी में सुकूनत पज़ीद हो। तुम्हारे और उनके दरम्यान के दिन तुम्हारे हाल पर रो रहे हैं और तुम्हारी बरबादी का नौहा पढ़ रहे हैं।
यह हैं तुम्हारी मन्ज़िल पर पहले पहुंच जाने वाले और तुम्हारे चश्मों पर पहले वारिद हो जाने वाले। जिनके लिये इज़्ज़त की मन्ज़िलें थीं, फ़ख़्र व मुबाहात की फ़रावानियां थीं, कुछ सलातीने वक़्त थे और कुछ दूसरे दर्जे के मनसबदार, लेकिन सब बरज़ख़ की गहराइयों में राह पैमाई कर रहे हैं। ज़मीन उनके ऊपर मुसल्लत कर दी गई है। उसने इनका गोश्त खा लिया है और ख़ून पी लिया है अब वह क़ब्र की गहराइयों में ऐसे जमा दिये गये हैं जिनमें नमो नहीं है और ऐसे गुम हो गए हैं के ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। न हौलनाक मसाएब का विरूद उन्हें ख़ौफ़ज़दा बना सकता है और न बदले हालात उन्हें रन्जीदा कर सकते हैं। न उन्हें ज़लज़लों की परवाह है और न गरज और कड़क की इत्तेलाअ। ऐसे ग़ायब हुए हैं के इनका इन्तेज़ार नहीं किया जा रहा है और ऐसे हाज़िर हैं के सामने नहीं आते हैं। कल सब यकजा थे अब मुन्तशिर हो गए हैं और सब एक दूसरे के क़रीब थे और अब जुदा हो गए हैं। उनके हालात की बेख़बरी और उनके दयार की ख़ामोशी तूले ज़मान और बोअद मकान की बिना पर नहीं है बल्कि उन्हें मौत का वह जाम पिला दिया गया है जिसने उनकी गोयाई को गूंगेपन में और उनकी समाअत को बहरेपन में और उनकी हरकात को सुकून में तब्दील कर दिया है। उनकी सरसरी तारीफ़ हो सकती है के जैसे नीन्द में बेख़बर पड़े हों के हमसाये हैं लेकिन एक-दूसरे से मानूस नहीं हैं और अहबाब हैं लेकिन मुलाक़ात नहीं करते हैं। उनके दरम्यान बाहमी तआरूफ़ के रिश्ते बोसीदा हो गए हैं और बिरादरी के असबाब मुन्क़ता हो गए हैं। अब जब इकट्ठा होने के बावजूद अकेले हैं और दोस्त होने के बावजूद एक दूसरे को छोड़े हुए हैं। न किसी रात की सुबह से आश्ना हैं और न किसी सुबह की शाम ही पहचानते हैं। दिन व रात में जिस साअत में भी दुनिया से गए हैं वही उनकी अबदी साअत है।
(((;- यह सूरते हाल किसी सुकून और इतमीनान का इशारा नहीं है बल्कि दर असल इन्सान की मदहोशी और बदहवासी का इज़हार है के साहबे अक़्ल व शऊर भी जमादात की शक्ल इख़्तेयार कर गया है और सूरते हाल यह हो गई है के इधर से जुमला हालात से बेख़बर हो गया है लेकिन उधर के हालात से बेख़बर नहीं है। सुबह व शाम अरवाह के सामने जहन्नुम पेशे नज़र किया जाता है और बेअमल और बदकिरदार इन्सान एक नई मुसीबत से दो चार हो जाता है। दर हक़ीक़त मौलाए कायनात ने इन फ़ोक़रात में मरने वालों के हालात का ज़िक्र नहीं किया है बल्कि ज़िन्दा अफ़राद को इस सूरते हाल से बचाने का इन्तेज़ाम किया है के इन्सान इस अन्जाम से बाख़बर है और चन्द रोज़ा दुनिया के बजाए अबदी आक़ेबत और आखि़रत का इन्तेज़ाम करे जिससे बहरहाल दो चार हाोना है और इससे फ़रार का कोई इमकान नहीं है।-)))
और दारे आखि़रत के ख़तरात को उससे ज़्यादा देख लिया है और उनको उससे भी कहीं ज़्यादा हौलनाक पाया जितना उन्हें डर था और वहाँ के आसार को उससे अज़ीम देखा जितना के वह अन्दाज़ा लगाते थे। (मोमिनों और काफ़िरों की) मन्ज़िले इन्तेहा को जाए बाज़गश्त दोज़ख़ व जन्नत तक फेला दिया गया है। वह (काफ़िरों के लिये) हर दरजा ख़ौफ़ से बलन्दतर और (मोमिनों के लिये) हर दर्जा उम्मीद से बालातर है, अगर वह बोल सकते होते जब भी देखी हुई चीज़ों के बयान से उनकी ज़बानें गंग हो जातीं अगरचे उनके निशानात मिट चुके हैं और उनकी ख़बरों का सिलसिला क़ता हो चुका है, लेकिन उन्हें देखती और गोशे अक़्ल वह ख़ुर्द उनकी सुनते हैं (यह लोग अगर बोलने के लाएक़ भी हैं तो उन हालात की तौसीफ़ नहीं कर सकते थे जिनका मुशाहेदा कर लिया है और अपनी आंखों से देख लिया है अब अगर इनके आसार गुम भी हो गए हैं और इनकी ख़बरें मुनक़ता भी हो गई हैं तो इबरत की निगाहें बहरहाल उन्हें देख रही हैं) वह बोले मगर नत्क़ व कलाम के तरीक़े पर नहीं बल्कि उन्होंने ज़बाने हाल से कहा शगुफ्ता चेहर बिगड़ गए, नर्म व नाज़ुक बदन मिट्टी में मिल गए और हमने बोसीदा कफ़न पहन रखा है और क़ब्र की तंगी ने हमें आजिज़ कर दिया है। ख़ौफ़ व दहशत का एक-दूसरे से विरसा पाया है और ख़ामोश मन्ज़िलें वीरान हो चुकी हैं जिस्म के महासिन महो हो चुके हैं और जानी-पहचानी सूरतें भी तबदील हो गई हैं। मन्ज़िले वहशत में क़याम तवील हो गया है और किसी कर्ब से राहत की उम्मीद नहीं है और न किसी तंगी में वुसअत का कोई इमकान है। अब अगर तुम अपनी अक़्लों से इनकी तस्वीरकशी करो या तुम से ग़ैब के परदे उठा दिये जाएं और तुम उन्हें इस आलम में देख लो के जब कीड़ों की वजह से उनके कान समाअत को खोकर बहरे हो चुके हैं और उनकी आंखें ख़ाक का सुरमा लगाकर अन्दर को धंस चुकी हैं और उनके मुंह में ज़बानें तलाक़त व रवानी दिखाने के बाद पारा-पारा हो चुकी हैं और सीनों में दिल चैकन्ना रहने के बाद बेहरकत हो चुके हैं और उनके एक-एक अज़ो को नई बोसीदगियों ने तबाह करके बद हैसियत बना दिया है और इस हालत में के वह (हर मुसीबत सहने के लिये) बिला मज़ाहमत आमादा हैं। उनकी तरफ़ आफ़तों का रास्ता हमवार कर दिया है, न कोई हाथ है जो उनका बचाव करे और न (बख़्शने वाले) दिल हैं जो बेचैन हो जाएं अगर तुम अपनी अक़्लों में उनका नक़्शा जमाओ या यह के तुम्हारे सामने से उन पर पड़ा हुआ परदा हटा दिया जाए तो अलबत्ता तुम उनके दिलों के अन्दोह और आंखों में पड़े हुए ख़स व ख़ाशाक को देखोगे के उन पर शिद्दत व सख़्ती की ऐसी हालत है के वह बलन्दी नहीं और ऐसी मुसीबत व जान गाही है के हटने का नाम नहीं लेती
उफ! यह ज़मीन कितने अज़ीज़तरीन बदन और हसीनतरीन रंग खा गई (जिनको दौलत व राहत की ग़िज़ा मिल रही थी) जो रंज की घड़ियों में भी मसर्रत अंगेज़ चेहरों से दिल बहलाते थे, अगर कोई मुसीबत उन पर आ पड़ती थी तो अपने ऐश की ताज़गियों पर ललचाए रहने और खेल तफ़रीह पर फ़रेफ़्ता होने की वजह से ख़ुश व क़त्तियों के सहारे ढूंढते थे इसी दौरान में के वह ग़ाफ़िल व मदहोश करने वाली ज़िन्दगी की छांव में दुनिया को देख कर हस रहे थे और दुनिया उन्हें देखकर क़हक़हे लगा रही थी (और अपने लहू व लाब पर फ़रेक़्ता होने की बिना पर तसल्ली का सामान फ़राहम कर लिया करते थे। यह अभी ग़फ़लत में डाल देने वाले ऐश के सरमायए दुनिया को देखकर मुस्करा रहे थे और दुनिया इन्हें देखकर हंस रही थी)
(((-अमीरूल मोमेनीन (अ0) की तस्वीरकशी पर एक लफ़्ज़ के भी इज़ाफ़े की गुन्जाइश नहीं है और अबूतुराब से बेहतर ज़ेरे ज़मीन का नक़्शा कौन खींच सकता है। बात सिर्फ़ यह है के इन्सान इस संगीन सूरते हाल का अन्दाज़ा करे और इस तसवीर को अपनी निगाहे अक़्ल व बसीरत में मुजस्सम बनाए ताके उसे अन्दाज़ा हो के इस दुनिया की हैसियत और औक़ात क्या है और इसका अन्जाम क्या होने वाला है। हक़ीक़ते अम्र यह है के ज़ेरे ज़मीन ख़ाक का ढेर बन जाने वाले कैसे कैसी ज़िन्दगियां गुज़ार गए हैं और किस किस तरह की राहत पसन्दियों से गुज़र चुके हैं। लेकिन आज मौत उनकी हैसियत का इक़रार करने के लिये तैयार नहीं है और क़ब्र उनके किसी क़िस्म के एहतेराम की क़ाएल नहीं है। यह तो सिर्फ़ ईमान व किरदार या साहबे क़ब्र व बारगाह के जवार का असर है के इन्सान फ़िशारे क़ब्र और बोसीदगी जिस्म से महफ़ूज़ रह जाए। वरना ज़मीन अपने टुकड़े को असल से मिला देने में किसी तरह के तकल्लुफ़ से काम नहीं लेती है।-)))
के अचानक ज़माने ने उन्हें कांटों की तरह रौन्द दिया और उनके सारे ज़ोर तोड़ दिये और क़रीब ही से मौत की नज़रें उन पर पड़ने लगीं और ऐसा ग़म व अन्दोह उन पर तारी हुआ के जिससे वह आशना न थे और ऐसे अन्दरूनी क़लक़ में मुब्तिला हुए के जिससे कभी साबेक़ा न पड़ा था और इस हालत में के वह सेहत से बहुत ज़्यादा मानूस थे, उनमें मर्ज़ की कमज़ोरियां पैदा हो गईं तो अब उन्होंने अपनी चीज़ों की तरफ़ रूजू किया जिनका तबीबों ने उन्हें आदी बना रखा था के गर्मी के ज़ोर को सर्द दवाओं से फ़रो किया जाए और सर्दी को गर्म दवाओं से हटाया जाए। मगर सर्द दवाओं ने गर्मी को बुझाने के बाद और भड़का दिया और गर्म दवाओं ने ठण्डक को हटाने के बजाय इसका जोश और बढ़ा दिया और न इन तबीअतों में मख़लूत होने वाली चीज़ों उनके मिज़ाज नुक़्ताए एतदाल पर आए बल्कि इन चीज़ों ने हर अज़ो माऊफ़ का आज़ार और बढ़ा दिया। यहां तक के वह चारागर सुस्त पड़ गए, तीमारदार (मायूस होकर) सुस्त हो गए और इलाज करने वाले ग़फ़लत बरतने लगे, घरवाले मर्ज़ की हालत बयान करने से आजिज़ आ गए और मिज़ाज पुरसी करने वालों के जवाब से ख़ामोशी इख़्तेयार कर ली और उससे छुपाते हुए इस अन्दोहनाक ख़बर के बारे में इख़्तेलाफ़ राए करने लगे। एक कहने वाला यह कहता था के इसकी हालत जो है सो ज़ाहिर है और एक सेहत व तन्दरूस्ती के पलट आने की उम्मीद दिलाता था और एक इसकी (होने वाली) मौत पर उन्हें सब्र की तलक़ीन करना और इससे पहले गुज़र जाने वालों की मुसीबतें उन्हें याद दिलाता था। इसी असना में के वह दुनिया से जाने और दोस्तों को छोड़ने के लिये पर तोल रहा था के नागाह गुलूगीर फनदों में से एक ऐसा फनदा उसे लगा के उसके होश व हवास पाशाने व परेशान हो गए और ज़बान की रूतूबत (तरी) ख़ुश्की में तब्दील हो गई और कितने ही मुबहम सवालात थे के जो अब वह जानता था मगर बयान करने से आजिज़ हो गया और कितनी ही दिल सोज़ सदाएं उसके कान से टकराईं के जिनके सुनने से बहरा हो गया और वह आवाज़ या किसी ऐसे बुज़ुर्ग की होती थी जिसका यह बड़ा एहतेराम करता था, या किसी ऐसे छोटे की होती थी जिस पर यह मेहरबान व शफ़क़ था। मौत की सख्तियां इतनी हैं के मुश्किल है के दाएरए बयान में आ सकें या अहले दुनिया की अक़्लों के अन्दाज़े पर पूरी उतर सकें।
(((-हाए वह बेकसी का आलम के न मरने वाला दर्दे दिल की तर्जुमानी कर सकता है और न रह जाने वाले इसके किसी दर्द का इलाज कर सकते हैं। जबके दोनों आमने-सामने ज़िन्दा मौजूद हैं तो इसके बाद किसी से क्या तवक़्क़ो रखी जाए जब एक मौत की आग़ोश में सो जाएगा और दूसरा कन्जे लहद के हालात से भी बेख़बर हो जाएगा और उसे मरने वाले के हालात की भी इत्तेलाअ नहीं होगी। क्या यह सूरते हाल इस अम्र की दावत नहीं देती है के इन्सान इस दुनिया से इबरत हासिल करे और अहले दुनिया पर एतमाद करने के बजाय अपने ईमान व किरदार और औलियाए इलाही की नुसरत व हिमायत हासिल करने पर तवज्जो दे के इसके अलावा कोई सहारा नहीं है।)))
222- आपका इरशादे गिरामी
(जिसे आयते करीम “योसब्बेह लहू फीहा ..................तेजारता वला यबआ अन ज़िकरिल्लाह” (उन घरों में सुबहो शाम तस्बीहे परवरदिगार करने वाले वह अफ़राद हैं जिन्हें तिजारत और कारोबार यादे ख़ुदा से ग़ाफ़िल नहीं बना सकते हैं) की तिलावत के बाद फ़रमाया)
बेशक परवरदिगार (अल्लाह सुबहानहू) ने अपने ज़िक्र को दिलों के लिये सैक़ल क़रार दिया है जिसकी बिना पर वह बहरेपन के बाद सुनने लगते हैं और अन्धेपन के बाद देखने लगते हैं और अनाद और ज़िद (दुश्मनी) के बाद फ़रमाबरदार हो जाते हैं और ख़ुदाए अज़्ज़ व जल (जिसकी नेमतें अज़ीम व जलील हैं) के लिये हर दौर में और हर अहदे फ़ितरत में ऐसे बन्दे रहे हैं जिनसे उसने उनके उफ़कार के ज़रिये राज़दाराना गुफ़्तगू की है और उनकी अक़्लों के वसीले से उनसे कलाम किया है और उन्होंने अपनी बसारत, समाअत और फ़िक्र की बेदारी के नूर की रौशनी हासिल की है। उन्हें अल्लाह के मख़सूस दिनों की याद अता की गई है और वह उसकी अज़मत से ख़ौफ़ज़दा रहते हैं। इनकी मिसाल बियाबानों के राहनुमाओं जैसी है के जो सही रास्ते पर चलता है उसकी रूश की तारीफ़ करते हैं और उसे निजात की बशारत देते हैं और जो दाहिने बाएं चला जाता है उसके रास्ते की मज़म्मत करते हैं और उसे हलाकत से डराते हैं और इसी अन्दाज़ से यह ज़ुल्मतों के चिराग़ और शबाहत के रहनुमा हैं।
बेशक ज़िक्रे ख़ुदा के भी कुछ अहल हैं जिन्होंने इसे सारी दुनिया का बदल क़रार दिया है और अब उन्हें तिजारत या ख़रीद फ़रोख़्त उस ज़िक्र से ग़ाफ़िल नहीं कर सकती है। यह उसके सहारे ज़िन्दगी के दिन काटते हैं और ग़ाफ़िलों के कानों में मोहर्रमात के रोकने वाली आवाज़ें दाखि़ल कर देते हैं। लोगों को नेकियों का हुक्म देते हैं और ख़ुद भी इसी पर अमल करते है। बुराइयों से रोकते हैं और ख़ुद भी बाजज़ रहते हैं गोया उन्होंने दुनिया मेंरहकर आखि़रत तक का फ़ासला तय कर लिया है और पस पर्दाए दुनिया जो कुछ है सब देख लिया है और गोया के उन्होंने बरज़ख़ के तवील व अरीज़ ज़माने के मख़फ़ी हालात पर इत्तेला हासिल कर ली है और गोया के क़यामत ने उनके लिये अपने वादों को पूरा कर दिया है और उन्होंने अहले दुनिया के लिये इस पर्दे को उठा दिया है। के अब वह उन चीज़ों को देख रहे हैं जिन्हें आम लोग नहीं देख सकते हैं और उन आवाज़ों को सुन रहे हैं जिन्हें दूसरे लोग नहीं सुन सकते हैं। अगर तुम अपनी अक़्ल से उनकी इस तसवीर को तैयार करो जो उनके क़ाबिले तारीफ़ मक़ामात और क़ाबिले हुज़ूर मजालिस की है। जहां उन्होंने अपने आमाल के दफ़्तर फैलाए हुए हैं और अपने हर छोटे बड़े अमल का हिसाब देने के लिये तैयार हैं जिनका हुक्म दिया गया था और उनमें कोताही हो गई है या जिनसे रोका गया था और तक़सीर हो गई है और अपनी पुश्त पर तमाम आमाल का बोझ उठाए हुए हैं लेकिन उठाने के क़ाबिल नहीं हैं और अब रोते रोते हिचकियाँ बन्ध गई हैं और एक दूसरे को रो-रो कर उसके सवाल का जवाब दे रहे हैं और निदामत और एतराफ़े गुनाह के साथ परवरदिगार की बारगाह में फ़रयाद कर रहे हैं। तो वह तुम्हें हिदायत के निशान और तारीकी के चिराग़ नज़र आएंगे जिनके गिर्द मलाएका का घेरा होगा और उन पर परवरदिगार की तरफ़ से सुकून व इतमीनान का मुसलसल नुज़ूल होगा और उनके लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिये गए होंगे और करामतों की मन्ज़िलें मुहैया कर दी गई होंगी।
(((-इन हक़ाएक़ का सही इज़हार वही कर सकता है जो यक़ीन की इस आखि़री मंज़िल पर फ़ाएज़ हो जिसके बाद खुद यह एलान करता हो के अब अगर पर्दे हटा भी दिये जाएं तो यक़ीन में किसी तरह का इज़ाफ़ा नहीं हो सकता और हक़ीक़ते अम्र यह है के इस्लाम में अहले ज़िक्र सिर्फ़ साहेबाने इल्म व फ़ज़ल का नाम नहीं है बल्कि ज़िक्रे इलाही का अहल बनाकर उन अफ़राद को क़रार दिया गया है जो तक़वा और परहेज़गारी की आखि़री मन्ज़िल पर हों और आखि़रत को अपनी निगाहों से देखकर सारी दुनिया को राह व चाह से आगाह कर रहे हों। मलाएका मुक़र्रबीन में उनके गिर्द घेरे डाले हों लेकिन इसके बाद भी अज़मत व जलाले इलाही के तसव्वुर अपने आमाल को बेक़ीमत समझ कर लरज़ रहे हों और मुसलसल अपनी कोताहियों का इक़रार कर रहे हों। -)))
ऐसे मक़ाम पर जहां मालिक की निगाह उनकी तरफ़ हो और वह उनकी सई से राज़ी हो और उनकी मन्ज़िल की तारीफ़ कर रहा हो। वह मालिक को पुकारने की फ़रहत से बख़्िशश की हवाओं में सांस लेते हों। उसके फ़ज़्ल व करम की एहतियाज के हाथों रेहन (गिरवीं) हों और उसकी अज़मत के सामने ज़िल्लत के असीर हों। ग़म व अन्दोह के तूले ज़मान ने उनके दिलों को मजरूह कर दिया हो और मुसलसल गिरया ने उनकी आंखों को ज़ख़्मी कर दिया हो। मालिक की तरफ़ रग़बत के हर दरवाज़े को खटखटा रहे हों और उससे सवाल कर रहे हों जिसके जूदो करम की वुसअतों में तंगी नहीं आती है और जिसकी तरफ़ रग़बत करने वाले कभी मायूस नहीं होते हैं। देखो अपनी भलाई के लिये ख़ुद अपने नफ़्स का हिसाब करो के दूसरों के नफ़्स का हिसाब करने वाला कोई और है।
223-आपका इरशादे गिरामी
(जिसे आयत शरीफ़ “ या अय्योहल इन्सान मा ग़र्रका बे रब्बेकल करीम...” (ऐ इन्सान तुझे ख़ुदाए करीम के बारे में किस शै ने धोके में डाल दिया है? ) के ज़ैल में इरशाद फ़रमाया है)
देखो यह इन्सान जिससे यह सवाल किया गया है वह अपनी दलील के एतबार से किस क़द्र कमज़ोर है और अपने फ़रेबखोरदा होने के एतबार से किस क़द्र नाक़िस माज़ेरत का हामिल है। यक़ीनन उसने अपने नफ़्स को जेहालत की सख्तियो में मुब्तिला कर दिया है।
ऐ इन्सान! सच बता, तुझे किस शै ने गुनाहों की जराअत दिलाई है और किस चीज़ ने परवरदिगार के बारे में धोके में रखा है और किस अम्र ने नफ़्स की हलाकत पर भी मुतमईन बना दिया है, क्या तेरे इस मर्ज़ का कोई इलाज और तेरे इस ख़्वाब की कोई बेदारी नहीं है और क्या अपने नफ़्सपर इतना भी रहम नहीं करता है जितना दूसरों पर करता है के जब कभी आफ़ताब की हरारत में किसी को तपता देखता है तो साया कर देता है या किसी को दर्द व रन्ज में मुब्तिला देखता है तो उसके हाल पर रोने लगता है तो आखि़र किस शै ने तुझे ख़ुद अपने मर्ज़ पर सब्र दिला दिया है। और अपनी मुसीबत पर सामाने सुकून फ़राहम कर दिया है और अपने नफ़्स पर रोने से रोक दिया है जबके वह तुझे सबसे ज़्यादा अज़ीज़ है, और क्यों रातों रात अज़ाबे इलाही के नाज़िल हो जाने का तसव्वुर तुझे बेदार नहीं रखता है जबके तू उसकी नाफ़रमानियों की बिना पर उसके क़हर व ग़लबे की राह में पड़ा हुआ है।
अभी ग़नीमत है के अपने दिल की सुस्ती का अज़्म रासिख़ से इलाज कर ले और अपनी आंखों में ग़फ़लत की नीन्द का बेदर्दी से मदावा कर ले अल्लाह का इताअत गुज़ार बन जा। उसकी याद से उन्स हासिल कर और उस अम्र का तसव्वुर कर के किस तरह वह तेरे दूसरों की तरफ़ मुंह मोड़ लेने के बावजूद वह तेरी तरफ़ मुतवज्जेह रहता है। तुझे माफ़ी की दावत देता है। अपने फ़ज़्ल व करम में ढांप लेता है हालांके तू दूसरों की तरफ़ रूख़ किये हुए है। बलन्द व बाला है वह साहेबे क़ूवत जो इस क़द्र करम करता है और ज़ईफ़ व नातवां है तू इन्सान जो उसकी मासीयत की इस क़द्र जराअत रखता है जबके उसी के ऐबपोशी के हमसाये में मुक़ीम है और उसी के फ़ज़्ल व करम की वुसअतों में करवटें बदल रहा है। वह न अपने फ़ज़्ल व करम को तुझसंे रोकता है और न तेरे परदाएराज़ को फ़ाश करता है।
(((-हक़ीक़ते अम्र यह है के इन्सान आखि़रत की तरफ़ से बिलकुल ग़फ़लत का मुजस्समा बन गया है के दुनिया में किसी को तकलीफ़ में नहीं देख पाता है और उसकी दादरसी के लिये तैयार हो जाता है और आखि़रत में पेश आने वाले ख़ुद अपने मसाएब की तरफ़ से भी यकसर ग़ाफ़िल है और एक लम्हे के लिये भी आफ़ताबे महशर के साये और गर्मी क़यामत की तश्नगी का इन्तेज़ाम नहीं करता है। बल्कि बाज़ औक़ात इसका मज़ाक़ भी उड़ाता है “इन्ना लिल्लाहे .....”-)))
यह तो पलक झपकने के बराबर भी इसकी मेहरबानियों से ख़ाली नहीं है, कभी नई नई नेमतें अता करता है, कभी बुराइयों की परदापोशी करता है और कभी बलाओं को रद कर देता है जबके तू इसकी मासियत कर रहा है तो सोच अगर तू इताअत करता तो क्या होता?
ख़ुदा गवाह है के अगर यह बरताव दो बराबर की क़ूवत व क़ुदरत वालों के दरम्यान होता और तू दूसरे के साथ ऐसा ही बरताव करता तो ख़ुद ही सबसे पहले अपने नफ़्स के बदअख़लाक़ और बदअमल होने का फ़ैसला कर देता लेकिन अफ़सोस?
मैं सच कहता हूं के दुनिया ने तुझे धोका नहीं दिया है तूने दुनिया से धोका खाया है, उसने तो नसीहतों को खोल कर सामने रख दिया है और तुझे हर चीज़ से बराबर आगाह किया है। उसने जिस्म पर जिन नाज़िल होने वाली बलाओं का वादा किया है और क़ूवत में जिस कमज़ोरी की ख़बर दी है उसमें वह बिलकुल सही और वफ़ाए अहद करने वाली है। न झूठ बोलने वाली है और न धोका देने वाली। बल्कि बहुत से उसके बारे में नसीहत करने वाले हैं जो तेरे नज़दीक नाक़ाबिले एतबार हैं और सच-सच बाोलने वाले हैं जो तेरी निगाह में झूठे हैं।
अगर तूने उसे गिर पड़े मकानात और ग़ैर आबाद मन्ज़िलों में पहचान लिया होता तो देखता के वह अपनी याद देहानी और बलीग़तरीन नसीहत में तुझपर किस क़द्र मेहरबान है और तेरी तबाही के बारे में किसी क़द्र कंजूसी से काम लेती है। यह दुनिया उसके लिये बेहतरीन घर है जो इसको घर बनाने से राज़ी न हो और उसके लिये बेहतरीन वतन है जो इसे वतन बनाने पर आमादा न हो, इस दुनिया के रहने वालों में कल के दिन नेक बख़्त वही होंगे जो आज इससे गुरेज़ करने पर आमादा हों। देखो जब ज़मीन को ज़लज़ला आ जाएगा और क़यामत अपनी अज़ीम मुसीबतों के साथ खड़ी हो जाएगी और हर इबादतगाह के साथ उसके इबादत गुज़ार, हर माबूद के साथ उसके बन्दे और हर क़ाबिले इताअत के साथ उसके मुतीअ व फ़रमाबरदार मुलहक़ कर दिये जाएंगे तो कोई हवा में शिगाफ़ करने वाली निगाह और ज़मीन पर पड़ने वाले क़दम की आहट ऐसी न होगी जिसका अद्ल व इन्साफ़ के साथ पूरा बदला न दे दिया जाए। उस दिन कितनी ही दलीलें होंगी जो बेकार हो जाएंगी और कितने ही माज़ेरत के रिश्ते होंगे जो कट के रह जाएंगे। लेहाज़ा मुनासिब है के अभी से इन चीज़ों को तलाश कर लो जिनसे बहाना क़ायम हो सके और तुम्हारी हुज्जतें साबित हो सकें। जिस दुनिया में तुमको नहीं रहना है उसमें से वह ले लो जो तुम्हारे लिये हमेशा बाक़ी रहने वाली हैं निजात की रोशनी की चमक देख लो और आमादगी की सवारियों पर सामान बार कर लो।
224- आपका इरशादे गिरामी
(जिसमें ज़ुल्म से बराअत व बेज़ारी का इज़हार फ़रमाया गया है।)
ख़ुदा गवाह है के मेरे लिये सादान की ख़ारदार झाड़ी पर जाग कर रात गुज़ार लेना या ज़न्जीरों में क़ैद होकरर खींचा जाना इस अम्र से ज़्यादा अज़ीज़ है के रोज़े क़यामत परवरदिगार से इस आलम में मुलाक़ात करूं के किसी बन्दे पर ज़ुल्म कर चुका हूँ या दुनिया के किसी मामूली माल को ग़स्ब किया हो, भला किसी शख़्स पर भी उस नफ़्स के लिये किस तरह ज़ुल्म करूंगा जो फ़ना की तरफ़ बहुत जल्द पलटने वाला है और ज़मीन के अन्दर बहुत दिनों तक रहने वाला है।
ख़ुदा की क़सम मैंने अक़ील को ख़ुद देखा है के उन्होंने फ़क़्र व फ़ाक़े की बिना पर तुम्हारे हिस्से गन्दुम में से तीन किलो का मुतालेबा किया था जबके उनके बच्चों के बाल ग़ुरबत की बिना पर परागन्दा हो चुके थे और उनके चेहररों के रंग यूँ बदल चुके थे जैसे उन्हें तेल छिड़क कर सियाह बनाया गया हो और उन्होंने मुझसे बार-बार तक़ाज़ा किया और मगर अपने मुतालबे को दोहराया तो मैंने उनकी तरफ़ कान धर दिये और वह यह समझे के शायद मैं दीन बेचने और अपने रास्ते को छोड़कर उनके मुतालबे पर चलने के लिये तैयार हो गया हूँ। लेकिन मैंने उनके लिये लोहा गरम किया और फिर उनके जिस्म के क़रीब ले गया ताके इससे इबरत हासिल करें। उन्होंने लोहा देखकर यूँ फ़रयाद शुरू कर दी जैसे कोई बीमार अपने दर्द व अलम से फ़रयाद करता हो और क़रीब था के उनका जिस्म इसके दाग़ देने से जल जाए। तो मैंने कहा रोने वालियां आपके ग़म में रोएं ऐ अक़ील! आप इस लोहे से फ़रयाद कर रहे हैं जिसे एक इन्सान ने फ़क़त हंसी मज़ाक़ में तपाया है और मुझे उस आग की तरफ़ खींच रहे हैं जिसे ख़ुदाए जब्बार ने अपने ग़ज़ब की बुनियाद पर भड़काया है। आप अज़ीयत से फ़रयाद करें और मैं जहन्नुम से फ़रयाद न करूं।
इससे ज़्यादा ताज्जुब ख़ेज़ बात यह है के एक रात एक शख़्स (अशअस बिन क़ैस) मेरे पास शहद में गुन्धा हुआ हलवा बर्तन में रखकर लाया जो मुझे इस क़द्र नागवार था जैसे सांप के थूक या क़ै से गून्धा गया हो। मैंने पूछा के यह कोई इनआम है या ज़कात या सदक़ा जो हम अहलेबैत पर हराम है? उसने कहा के यह कुछ नहीं है, यह फ़क़त एक हदिया है! मैंने कहा के पिसरे मुर्दा औरतें तुझको रोएं तू दीने ख़ुदा के रास्ते से आकर मुझे धोका देना चाहता है, तेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है या तू पागल हो गया है या हिज़यान का शिकार रहा है, आखि़र है क्या? ख़ुदा गवाह है के अगर मुझे हफ़्त अक़लीम की हुकूमत तमाम ज़ेरे आसमान दौलतों के साथ दे दी जाए और मुझसे यह मुतालबा किया जाए के मैं किसी च्यूंटी पर सिर्फ़ इस क़द्र ज़ुल्म करूँ के उसके मुंह से उस छिलके को छीन लूँ जो वह चबा रही है तो हरगिज़ ऐसा नहीं कर सकता हूँ। यह तुम्हारी दुनिया मेरी नज़र में उस पत्ती से ज़्यादा बेक़ीमत है जो किसी टिड्डी के मुंह में हो और वह उसे चबा रही हो। भला अली (अ0) को इन नेमतों से क्या वास्ता जो फ़ना हो जाने वाली हैं और उस लज़्ज़त से क्या ताल्लुक़ जो बाक़ी रहने वाली नहीं है। मैं ख़ुदा की पनाह चाहता हूँ
, अक़्ल के ख़्वाबे ग़फ़लत मे पड़ जाने और लग़्ज़िशों की बुराइयों से और मैं उसी से मदद का तलबगार हूँ।
(((-जनाबे अक़ील आपके बड़े भाई और हक़ीक़ी (सगे) भाई थे लेकिन इसके बावजूद आपने यह आदिलाना बरताव करके वाज़ेह कर दिया के दीने इलाही में रिश्ता व क़राबत का गुज़र नहीं है। दीन का ज़िम्मेदार वही शख़्स हो सकता है जो माले ख़ुदा को माले ख़ुदा तसव्वुर करे और इस मसले में किसी तरह की रिश्तेदारी और ताल्लुक़ को शामिल न करे। अमीरूल मोमेनीन (अ0) के किरदार का वह नुमायां इम्तियाज़ है जिसका अन्दाज़ा दोस्त और दुश्मन दोनों को था और कोई भी इस मारेफ़त से बेगाना न था।-)))
225-आपकी दुआ का एक हिस्सा
(जिसमें परवरदिगार से बेनियाज़ी का मुतालबा किया गया है)
ख़ुदाया मेरी आबरू को मालदारी के ज़रिये महफ़ूज़ फ़रमा और मेरी मन्ज़िलत को ग़ुरबत की बिना पर निगाहों से न गिरने देना के मुझे तुझसे रिज़्क़ (रोज़ी) मांगने वालों से से मांगना पड़े या तेरी बदतरीन मख़लूक़ात से रहम की दरख़्वास्त करना पड़े और इसके बाद मैं हर अता करने वाले की तारीफ़ करूं और हर इन्कार करने वाले की मज़म्मत में मुब्तिला हो जाऊ जबके इन सब के पसे पर्दा अता व इनकार दोनों का इख़्तेयार तेरे ही हाथ में है और तू ही हर शै पर क़ुदरत रखने वाला है।
226-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा
(जिसमें दुनिया से नफ़रत दिलाई गई है)
यह एक ऐसा घर है जो बलाओं में घिरा हुआ है और अपनी ग़द्दारी में मशहूर है न इसके हालात को दवाम है और न इसमें नाज़िल होने वालों के लिये सलामती है। इसके हालात मुख़्तलिफ़ और इसके अतवार बदलने वाले हैं। इसमें पुरकैफ़ ज़िन्दगी क़ाबिले मज़म्मत है और इसमें अम्न व अमान का दूर दूर पता नहीं है। इसके बाशिन्दे वह निशाने हैं जिन पर दुनिया अपने तीर चलाती रहती है और अपनी मुद्दत के सहारे उन्हें फ़ना के घाट उतारती रहती है।
बन्दगाने ख़ुदा! याद रखो इस दुनिया में तुम और जो कुछ तुम्हारे पास है सबका वही रास्ता है जिस पर पहले वाले चल चुके हैं जिनकी उम्रें तुमसे ज़्यादा तवील और जिनके इलाक़े तुमसे ज़्यादा आबाद थे। उनके आसार (पाएदार निशानियां) भी दूर दूर तक फैले हुए थे। लेकिन अब उनकी आवाज़ें दब गई हैं उनकी हवाएं उखड़ गई हैं। इनके जिस्म बोसीदा हो गए हैं। इनके मकानात ख़ाली हो गए हैं और इनके आसार मिट गए हैं। वह मुस्तहकम क़िलों और बिछी हुई मसनदों को पत्थरों और चुनी हुई सिलों और ज़मीन के अन्दर लहद वाली क़ब्रों में तबदील कर चुके हैं। उनके सहनों की बुनियाद तबाही पर क़ायम है और जिनकी इमारत मिट्टी से मज़बूत की गई है। इन क़ब्रों की जगहें तो क़रीब-क़रीब हैं लेकिन इनके रहने वाले सब एक-दूसरे से ग़रीब और अजनबी हैं। ऐसे लोगों के दरम्यान हैं जो बौखलाए हुए हैं और यहों के कामों से फ़ारिग़ होकर वहाँ की फ़िक्र में मशग़ूल हो गए हैं। न अपने वतन से कोई उन्स रखते हैं और न अपने हमसायों से कोई राबेता रखते हैं।
(((-यह फ़िक़रात बेऐनेही इसी तरह इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) की मकारमे इख़लाक़ में भी पाए जाते हैं जो इस बात की अलामत है के अहलेबैत (अ0) का किरदार और उनका पैग़ाम हमेशा एक अन्दाज़ का होता है और इसमें किसी तरह का इख़्तेलाफ़ व इन्तेशार नहीं होता है।
इस ख़ुतबे में दुनिया के हस्बे ज़ैल ख़ुसूसियात का तज़किरा किया गया हैः1- यह मकान बलाओं में घिरा हुआ है। 2- इसकी ग़द्दारी मारूफ़ है। 3- इसके हालात हमेशा बदलते रहते हैं। 4- इसकी ज़िन्दगी का अन्जाम मौत है। 5- इसकी ज़िन्दगी क़ाबिले मज़म्मत है। 6- इसमें अम्न व अमान नहीं है। 7- इसके बाशिन्दे बलाओं और मुसीबतों का हदफ़ हैं।-)))
बल्कि बिल्कुल क़रीब व जवार और नज़दीक तरीन दयार में हैं और ज़ाहिर है के अब मुलाक़ात का क्या इमकान है जबके बोसीदगी ने उन्हें अपने सीने से दबाकर पीस डाला है और पत्थरों और मिट्टी ने उन्हें खाकर बराबर कर दिया है और गोया के अब तुम भी वहीं पहुंच गए हो जहां वह पहुंच चुके हैं और तुम्हें भी इसी क़ब्र ने गिर्द रख लिया है और इसी अमानतगाह ने जकड़ लिया है। सोचो! उस वक़्त क्या होगा जब तुम्हारे तमाम मुआमलात आखि़री हद को पहुंच जाएंगे और दोबारा क़ब्रों से निकाल लिया जाएगा, उस वक़्त हर नफ़्स अपने आमाल का ख़ुद मुहासेबा करेगा और सबको मालिके बरहक़ की तरफ़ पलटा दिया जाएगा और किसी की कोई इफ़तर परवाज़ी काम आने वाली नहीं होगी।
(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)
227-आपकी दुआ का एक हिस्सा
(जिसमें नेक रास्ते की हिदायत का मुतालेबा किया गया है)
परवरदिगार तू अपने दोस्तों के लिये तमाम उन्स फ़राहम करने वालों से ज़्यादा सबबे उन्स और तमाम अपने ऊपर (तुझ पर) भरोसा करने वालों के लिये सबसे ज़्यादा हाजतरवाई के लिये हाज़िर है। तू उनकी बातिनी कैफ़ियतों को देखता और उनके छिपे हुए भेदों पर निगाह रखता है और उनकी बसीरतों की आखि़री हदों को भी जानता है। उनके इसरार तेरे लिये रौशन और उनके क़ुलूब तेरी बारगाह में फ़रियादी हैं। जब ग़ुरबत उन्हें मुतवहश (घबराहट) करती है तो तेरी याद उन्स का सामान फ़राहम कर देती है और जब मसाएब उन पर उन्डेल दिये जाते हैं तो वह तेरी पनाह तलाश कर लेते हैं इसलिये के उन्हें इस बात का इल्म है के तमाम मामलात की ज़माम तेरे हाथ में है और तमाम उमूर का फ़ैसला तेरी ही ज़ात से सादर (वाबस्ता) होता है।
ख़ुदाया! अगर मैं अपने सवालात को पेश करने से आजिज़ हूँ और मुझे अपने मुतालेबात की राह नज़र नहीं आती है तो तू मेरे मसालेह की रहनुमाई फ़रमा और मेरे दिल को हिदायत की मन्ज़िलों तक पहुंचा दे के यह बात तेरी हिदायतों के लिये कोई अनोखी नहीं है और तेरी हाजत रवाइयों के सिलसिले में कोई निराली नहीं है। ख़ुदाया मेरे मामलात को अपने अफ़्व व करम पर महमूल (तय) करना और अद्ल व इन्साफ़ पर महमूल (तय) न करना।