29-आपका मकतूबे गिरामी (अहले बसरा के नाम)
तुम्हारी तफ़रिक़ा परवाज़ी और मुख़ालफ़त का जो आलम था वह तुमसे मख़फ़ी नहीं है लेकिन मैंने तुम्हारे मुजरिमों को माफ़ कर दिया, भागने वालों से तलवार उठा ली, आने वालों को बढ़कर गले लगा लिया, अब इसके बाद भी अगर तुम्हारी तबाह कुन आराए और तुम्हारे ज़ालिमाना उफ़कार की हिमाक़त तुम्हें मेरी उलफ़त और अहद शिकनी पर आमादा कर रही है तो याद रखो के मैंने घोड़ों को क़रीब कर लिया है, ऊंटों पर सामान बार कर लिया है और अगर तुमने घर से निकलने पर मजबूर ककर दिया तो ऐसी मारेका आराई करूंगा के जंगे जमल फ़क़त ज़बान की चाट रह जाएगी। मैं तुम्हारे इताअत गुज़ारों के शरफ़ को पहचानता हूँ और मुखलेफ़ीन के हक़ को जानता हूँ, मेरे लिये यह मुमकिन नहीं है के मुजरिम से आगे बढ़कर बेख़ता पर हमला कर दूँ या अहद शिकन से तजावुज़ करके वफ़ादार से भी तारिज़ करूं (वफ़ादार को भी लपेट लूं)।
30 - आपका मकतूबे गिरामी (माविया के नाम)
जो कुछ साज़ व सामान तुम्हारे पास है उसमें अल्लाह से डरो और जो उसका हक़ तुम्हारे ऊपर है उस पर निगाह रखो, उस हक़ की फ़ुरक़त की तरफ़ पलट आओ (उन हक़ को पहचानो) जिससे नावाक़फ़ीयत क़ाबिले माफ़ी नहीं है, देखो इताअत के निशानात वाज़ेह, रास्ते रौशन, शाहेराहें सीधी हैं और मन्ज़िले मक़सूद सामने है जिस पर तमाम अक़्ल वाले वारिद होते हैं। (((पहले अहले बसरा ने वफ़ादारी का एलान किया तो हज़रत ने उस्मान बिन हनीफ़ को गवर्नर बनाकर भेज दिया, इसकेबाद आइशा वारिद हूईं तो अक्सरीयत मुनहरिफ़ हो गई और जंगे जमल की नौबत आ गई लेकिन आपने आम तौर से सबको माफ़ कर दिया और आइशा भी मदीने वापस चली गईं, लेकिन माविया ने फ़िर दोबारा वरग़लाना शुरू कर दिया तो आपने यह तन्बीही ख़त रवाना फ़रमाया के जंगे जमल तो सिर्फ़ मज़ा चखाने के लिये थी, जंग तो अब होने वाली है लेहाज़ा होश में आजाओ और माविया के बहकाने पर राहे हक़ से इन्कार न करो-)))
और पस्त फ़ितरत इसकी मुख़ालफ़त करते हैं, जो इस हदफ़ से मुनहरिफ़ हो गया वह राहे हक़ से हट गया और गुमराही में ठोकरें खाने लगा, अल्लाह ने उसकी नेमतों को सल्ब कर लिया और अपना अज़ाब उस पर वारिद कर दिया, लेहाज़ा अपने नफ़्स का ख़याल रखो और उसे हलाकत से बचाओ के परवरदिगार ने तुम्हारे लिये रास्ते को वाज़ेह कर दिया है और वह मन्ज़िल बता दी है जहां तक उमूर को जाना है, तुम निहायत तेज़ी से बदतरीन ख़सारे और कुफ्ऱ की मन्ज़िल की तरफ़ भागे जा रहे हो, तुम्हारे नफ़्स ने तुम्हें बदबख़्ती में डाल दिया है और गुमराही में झोंक दिया है, हलाकत की मन्ज़िलों में वारिद कर दिया है और सही रास्तों को दुश्वार गुज़ार बना दिया है।
31-आपका वसीयत नामा (जिसे इमाम हसन (अ0) के नाम सिफ़्फ़ीन से वापसी पर मक़ामे हाज़ेरीन में तहरीर फ़रमाया है)
यह वसीयत एक ऐसे बाप की है जो फ़ना होने वाला और ज़माने के तसरूफ़ात का इक़रार करने वाला है जिसकी उम्र ख़ातमे के क़रीब है और वह दुनिया के मसाएब के सामने सिपरअन्दाख़्ता है। मरने वालों की बस्ती में मुक़ीम है और कल यहाँ से कूच करने वाला है। उस फ़रज़न्द के नाम जो दुनिया में वह उम्मीदें रखे हुए है जो हासिल होने वाली नहीं हैं और हलाक होने वालों के रास्ते पर गामज़न है बीमारियों का निशाना और रोज़गार के हाथों गिरवी है, मसाएबे ज़माने का हदफ़ और दुनिया का पाबन्द है, उसकी फ़रेब कारियों का ताजिर और मौत का क़र्जदार है, अजल का क़ैदी और रंज व ग़म का साथी, मुसीबतों का हमनशीं है और आफ़तों का निशाना, ख़्वाहिशात का मारा हुआ और मरने वालों का जानशीन।
अम्माबाद! मेरे लिये दुनिया के मुंह फेर लेने, ज़माने के ज़ुल्म व ज़्यादती करने और आखि़रत के मेरी तरफ़ आने की वजह से जिन बातों का इन्केशाफ़ हो गया है उन्होंने मुझे दूसरों के ज़िक्र और अग़यार के अन्देशे से रोक दिया है, मगर जब मैं तमाम लोगों की फ़िक्र से अलग होकर अपनी फ़िक्र में पड़ा तो मेरी राय ने मुझे ख़्वाहिशात से रोक दिया और मुझ पर वाक़ेई हक़ीक़त मुनकशिफ़ हो गई जिसने मुझे इस मेहनत व मशक़्क़त तक पहुंचा दिया जिसमें किसी तरह का कील नहीं है और इस सिदाक़त तक पहुंचा दिया जिसमें किसी तरह की ग़लत बयानी नहीं है। ((-बाज़ शारहीन का ख़याल है के यह वसीयतनामा जनाब मोहम्मद हनफ़िया के नाम है और सय्यद रज़ी अलैहिर्रहमा ने इसे इमाम हसन (अ0) के नाम बताया है
, बहरहाल यह एक आम वसीयतनामा है जिससे हर बाप को इस्तेफ़ादा करना चाहिये और अपनी औलाद को इन्हीं ख़ुतूत पर वसीयत व नसीहत करना चाहिये वरना इसका मुकम्मल मज़मून न मौलाए कायनात पर मुनतबिक़ होता है और न इमामे हसन (अ0) पर
, और न ऐसे वसीयतनामे किसी एक फ़र्द से मख़सूस हुआ करते हैं। यह इन्सानियत का अज़ीमतरीन तसव्वुर है जिसमें अज़ीमतरीन बाप ने अज़ीमतरीन बेटे को मुख़ातब क़रार दिया है ताके दीगर अफ़रादे मिल्लत इससे इस्तेफ़ादा करें बल्कि इबरत हासिल करें।))
मैंने तुमको अपना ही एक हिस्सा पाया बल्कि तुमको अपना सरापा वजूद समझा के तुम्हारी तकलीफ़ मेरी तकलीफ़ है और तुम्हारी मौत मेरी मौत है इस लिये मुझे तुम्हारे मुआमलात की इतनी ही फ़िक्र है जितनी अपने मुआमलात की होती है और इसीलिये मैंने यह तहरीर लिख दी है जिसके ज़रिये तुम्हारी इमदाद करना चाहता हूँ चाहे मैं ज़िन्दा रहूं या मर जाऊं।
फ़रज़न्द! मैं तुमको ख़ौफ़े ख़ुदा और उसके एहकाम की पाबन्दी की वसीयत करता हूँ, अपने दिल को उसकी याद से आबाद रखना और उसकी रीसमाने हिदायत से वाबस्ता रहना के उससे ज़्यादा मुस्तहकम कोई रिश्ता तुम्हारे और ख़ुदा के दरम्यान नहीं है। अपने दिल को मोएज़ा से ज़िन्दा रखना और उसके ख़्वाहिशात को ज़ोहद से मुर्दा बना दिया। उसे यक़ीन के ज़रिये क़वी रखना और हिकमत के ज़रिये नूरानी रखना, ज़िक्रे मौत के ज़रिये क़ाबू में करना और फ़ना के इक़रार पर उसे ठहराना, दुनिया के हवादिस से आगाह रखना और ज़माने के हमले और लैल व नहार के तसर्रूफ़ात से होशियार रखना। उस पर गुज़िश्ता लोगों के अख़बार को पेश करते रहना और पहले वालों पर पड़ने वाले मसाएब को याद दिलाते रहना, उनके दयार व आसार में सरगर्मे सफ़र रहना और यह देखते रहना के उन्होंने क्या किया है और कहां से कहां चले गए हैं, कहां वारिद हुए हैं और कहां डेरा डाला है।
फिर तुम देखोगे के वह अहबाब की दुनिया से मुन्तक़िल हो गए हैं और दयारे ग़ुरबत में वारिद हो गए हैं और गोया के अनक़रीब तुम भी उन्हीं में शामिल हो जाओगे लेहाज़ा अपनी मन्ज़िल को ठीक कर लो और ख़बरदार आखि़रत को दुनिया के एवज़ में फ़रोख़्त न करना, जिन बातों को नहीं जानते हो उनके बारे में बात न करना और जिस चीज़ का तुमसे ताल्लुक़ नहीं हो उनके बारे में गुफ़्तगू न करना। जिस रास्ते में गुमराही का ख़ौफ़ हो उधर क़दम आगे न बढ़ाना के गुमराही के तहय्युर से पहले (सरगर्दानियां देखकर) ठहर जाना, हौलनाक मरहलों में वारिद हो जाने से बेहतर है नेकियों का हुक्म देते रहना ताके उसके अहल में शुमार हो और बुराइयों से अपने हाथ और ज़बान की ताक़त से मना करते रहना और बुराई करने वालों से अपने इमकान भर दूर रहना, राहे ख़ुदा में जेहाद का हक़ अदा कर देना और ख़बरदार इस राह में किसी मलामतगर की मलामत की परवाह न करना, हक़ की ख़ातिर जहां भी हो सख्तियो में कूद पड़ना और दीन का इल्म हासिल करना, अपने नफ़्स को नाख़ुशगवार हालात में सब्र का आदी बना देना और याद रखना के बेहतरीन अख़लाक़ हक़ की राह में सब्र करना है, अपने तमाम उमूर में परवरदिगार की तरफ़ रूजू करना के इस तरह एक महफ़ूज़तरीन पनाहगाह का सहारा लोगे और बेहतरीन मुहाफ़िज़ की पनाह में रहोगे, परवरदिगार से सवाल करने में मुखलिस रहना के अता करना और महरूम कर देना उसी के हाथ में है, मालिक से मुसलसल तलबे ख़ैर करते रहना और मेरी वसीयत पर ग़ौर करते रहना, इससे पहलू बचाकर गुज़र न जाना के बेहतरीन कलाम वही है जो फ़ायदेमन्द हो और याद रखो के जिस इल्म में फ़ायदा न हो उसमें कोई ख़ैर नहीं है और जो इल्म सीखने के लायक़ न हो उसमें कोई फ़ायदा नहीं है।
फ़रज़न्द! मैंने देखा के अब मेरा सिन बहुत ज़्यादा हो चुका है और मुसलसल कमज़ोर होता जा रहा हूँ लेहाज़ा मैंने फ़ौरन वसीयत लिख दी और इन मज़ामीन को दर्ज कर दिया के कहीं ऐसा न हो के मेरे दिल की बात तुम्हारे हवाले करने से पहले मुझे मौत आ जाए या जिस्म के नुक़्स की तरह राय को कमज़ोर तसव्वुर किया जाने लगे या वसीयत से पहले ही ख़्वाहिशात के ग़लबे और दुनिया के फ़ितने तुम तक न पहुंच जाएं के तुम भड़क उठने वाले मुंहज़ोर ऊंट की तरह हो जाओ क्योंके कमसिन का दिल उस ख़ाली ज़मीन के मानिन्द होता है जिसमें जो बीज डाला जाता है उसे क़ुबूल कर लेती है,
लेहाज़ा क़ब्ल इसके के तुम्हारा दिल सख़्त हो जाए और तुम्हारा ज़ेहन दूसरी बातों में लग जाए मैंने तालीम देने के लिये क़दम उठाया ताके तुम अक़्ले सलीम के ज़रिये उन चीज़ों के क़ुबूल करने के लिये आमादा हो जाओ के जिनकी आज़माइश और तजुर्बे की ज़हमत से तजुर्बेकारों ने तुम्हें बचा लिया है इस तरह तुम तलाश की ज़हमत से मुस्तग़नी और तजुर्बे की कुलफ़तों से आसूदा हो जाओगे और तजुर्बे व इल्म की वह बातें (बेताब व मशक़्क़त) तुम तक पहुंच रही हैं के जिन पर हम मुत्तेलाअ हुए और फिर वह चीज़ें भी उजागर होकर तुम्हारे सामने आ रही हैं के जिन में से कुछ मुमकिन है, हमारी नज़रों से ओझल हो गई हों, ऐ फ़रज़न्द! अगरचे मैंने इतनी उम्र नहीं पाई जितनी अगले लोगों की हुआ करती थीं फिर भी मैंने उनकी कारगुज़ारियों को देखा, उनके हालात व वाक़ेआत में ग़ौर किया और उनके छोड़े हुए निशानात में सैर व सयाहत की यहां तक के गोया मैं भी उन्हीं में का एक हो चुका हूँ।
बल्कि उन सबके हालात व मालूमात जो मुझ तक पहुच गए हैं उनकी वजह से ऐसा है के गोया मैंने उनके अव्वल से लेकर आखि़र तक के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी है, चुनान्चे मैंने साफ़ को गन्दे और नफ़े को नुक़सान से अलग करके पहचान लिया है और अब सबका निचोड़ तुम्हारे लिये मख़सूस कर रहा हूँ और मैंने ख़ूबियों को चुन चुन कर तुम्हारे लिये समेट दिया है और बे-मानी चीज़ों को तुमसे जुदा रखा है और चूंके मुझे तुम्हारी हर बात का उतना ही ख़याल है जितना शफ़ीक़ बाप को होना चाहिये और तुम्हारी एख़लाक़ी तरबीयत भी पेशे नज़र है। लेहाज़ा मुनासिब समझा है के यह तालीम व तरबीयत इस हालत में हो के तुम नौ उम्र और बिसाते दहर पर ताज़ा वारिद हो और तुम्हारी नीयत खरी और नफ़्स पाकीज़ा है और मैंने चाहा था के पहले किताबे ख़ुदा एहकाम शरा और हलाल व हराम की तालीम दूँ और उसके अलावा दूसरी चीज़ों का रूख़ करूं लेकिन यह अन्देशा पैदा हुआ के कहीं वह चीज़ें जिनमें लोगों के अक़ाएद व मज़हबी ख़यालात में इख़्तेलाफ़ है तुम पर उसी तरह मुश्तबा न हो जाएं जैसे उन पर मुश्तबा हो गई हैं, बावजूद यक इन ग़लत अक़ायद का तज़किरा तुमसे मुझे नापसन्द था मगर इस पहलू को मज़बूत कर देना तुम्हारे लिये मुझे बेहतर मालूम हुआ, इससे के तुम्हें ऐसी सूरते हाल के सिपुर्द कर दूँ जिसमें मुझे तुम्हारे लिये हलाकत व तबाही का ख़तरा है और मैं उम्मीद करता हूँ के अल्लाह तुम्हें हिदायत की तौफ़ीक़ देगा और सही रास्ते की राहनुमाई करेगा, इन वजह से तुम्हें यह वसीयत नामा लिखता हूँ।
बेटा याद रखो के मेरी इस वसीयत से जिन चीज़ों की तुम्हें पाबन्दी करना है उनमें सबसे ज़्यादा मेरी नज़र में जिस चीज़ की अहमियत है वह अल्लाह का तक़वा है और यह के जो फ़राएज़ अल्लाह की तरफ़ से तुम पर आएद हैं उन पर इक्तेफ़ा करो और जिस राह पर तुम्हारे आबाओ अजदाद और तुम्हारे घराने के अफ़राद चलते रहे हैं उसी पर चलते रहो क्योंके जिस तरह तुम अपने लिये नज़र व फ़िक्र कर सकते हो उन्होंने उस नज़र व फ़िक्र में कोई कसर उठा न रखी थी, मगर इन्तेहाई ग़ौर व फ़िक्र ने भी उनको उसी नतीजे पर पहुंचाया, के जो उन्हें अपने फ़राएज़ मालूम हों, उन पर इकतेफ़ा करें और ग़ैर मुताल्लुक़ चीज़ों से क़दम रोक लें लेकिन अगर तुम्हारा नफ़्स इसके लिये तैयार न हो के बग़ैर ज़ाती तहक़ीक़ से इल्म हासिल किये हुए जिस तरह उन्होंने हासिल किया था, इन बातों को क़ुबूल करे तो बहरहाल यह लाज़िम है के तुम्हारे तलब का अन्दाज़ सीखने और समझने का हो, न शुबहात में फान्द पड़ने और बहस व नज़ाअ में उलझने का और इस फ़िक्र व नज़र को शुरू करने से पहले अल्लाह से मदद के ख़्वास्तगार हो, और उससे तौफ़ीक़ व ताईद की दुआ करो, और हर उस वहम के शाएबे से अपना दामन बचाओ के तुम्हें शुबह में डाल दे या गुमराही में छोड़ दे, और फिर अगर तुम्हें इत्मीनान हो जाए के तुम्हारा दिल साफ़ और ख़ाशा (असर लेने की सलाहियत वाला) हो गया है और तुम्हारी राय ताम व कामिल हो गई है और तुम्हारे पास सिर्फ़ यही एक फ़िक्र रह गई है (तुम्हारा ज़ौक़ व शौक़ एक नुक्ते पर जम गया है) तो जिन बातों को मैंने वाज़ेह किया है उनमें ग़ौर व फ़िक्र करना वरना अगर हस्बे मन्शा फ़िक्र व नज़र का फ़राग़ (आसूदगी) हासिल नहीं हुआ है तो याद रखो के इस तरह सिर्फ़ शबकोर ऊंटनी की तरह हाथ पैर मारते रहोगे; और अन्धेरे में भटकते रहोगे और दीन का तलबगार वह नहीं है जो अन्धेरों में हाथ पांव मारे और बातों को मख़लूत कर दे, इससे तो ठहर जाना ही बेहतर है।
फ़रज़न्द! मेरी वसीयत को समझो और यह जान लो के जो मौत का मालिक है वही ज़िन्दगी का मालिक है और जो ख़ालिक़ है वही मौत देने वाला है और जो फ़ना करने वाला है वही दोबारा वापस लाने वाला है और जो मुब्तिला करने वाला है वही आफ़ियत देने वाला है और यह दुनिया इसी हालत में मुस्तक़र रह सकती है जिसमें मालिक ने क़रार दिया है यानी नेमत, आज़माइश, आखि़रत की जज़ा या वह बात जो तुम नहीं जानते हो, अब अगर इसमें से कोई बात समझ में न आए तो उसे अपनी जेहालत पर महमूल करना के तुम इब्तिदा में जब पैदा हुए हो तो जाहिल ही पैदा हुए हो, बाद में इल्म हासिल किया है और इसी बिना पर मजहूलात की तादाद कसीर है जिसमें इन्सानी राय मुतहय्यरा रह जाती है (अभी कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं के जिनसे तुम बेख़बर हो के उनमें पहले तुम्हारा ज़ेह्न परेशान होता है) और निगाह बहक जाती है और बाद में सही हक़ीक़त नज़र आती है, लेहाज़ा उस मालिक से वाबस्ता रहो जिसने पैदा किया है, रोज़ी दी है और मोतदिल बनाया है, उसी की इबादत करो, उसी की तरफ़ तवज्जो करो और उसी से डरते रहो, बेटा! यह याद रखो के तुम्हें ख़ुदा के बारे में इस तरह की ख़बरें कोई नहीं दे सकता है जिस तरह रसूले अकरम (स0) ने दी हैं। लेहाज़ा उनको बख़ुशी अपना पेशवा और राहे निजात का क़ाएद तस्लीम करो
, मैंने तुम्हारी नसीहत में कोई कमी नहीं की है और न तुम कोशिश के बावजूद अपने बारे में इतना सोच सकते हो जितना मैंने देख लिया है।
फ़रज़न्द! याद रखो अगर ख़ुदा के लिये कोई शरीक भी होता तो उसके भी रसूल आते और उसकी भी सल्तनत और हुकूमत के भी आसार दिखाई देते और इसके अफ़आल व सिफ़ात का भी कुछ पता होता, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है लेहाज़ा ख़ुदा एक है जैसा के उसने ख़ुद बयान किया है, उसके मुल्क में उससे कोई टकराने वाला नहीं है और न उसके लिये किसी तरह का ज़वाल है। वह औलियत की हुदूद के बग़ैर सबसे अव्वल है और किसी इन्तेहा के बग़ैर सबसे आखि़र तक रहने वाला है। वह इस बात से अज़ीमतर है के उसकी रूबूबियत का असबाते फ़िक्र व नज़र के अहाते से किया जाए। अगर तुमने इस हक़ीक़त को पहचान लिया है तो इस तरह अमल करो जिस तरह तुम जैसे मामूली हैसियत, क़लील ताक़त, कसीर आजिज़ी और परवरदिगार की तरफ़ इताअत की तलब, इताब के ख़ौफ़ और नाराज़गी के अन्देशे में हाजत रखने वाले क्या करते हैं, उसने जिस चीज़ का हुक्म दिया है वह बेहतरीन है और जिससे मना किया है वह बदतरीन है।
फ़रज़न्द! मैंने तुम्हें दुनिया, उसके हालात, तसर्रूफ़ात, ज़वाल और इन्तेक़ाल सबके बारे में बाख़बर कर दिया है और आखि़रत और उसमें साहेबाने ईमान के लिये मुहैया नेमतों का भी पता बता दिया है और दोनों के लिये मिसालें बयान कर दी हैं ताके तुम इबरत हासिल कर सको और इससे होशियार रहो।
याद रखो के जिसने दुनिया को बख़ूबी पहचान लिया है उसकी मिसाल उस मुसाफ़िर क़ौम जैसी है जिसका क़हतज़दा मन्ज़िल से दिल उचाट हो जाए और वह किसी सरसब्ज़ व शादाब इलाक़े का इरादा करे और ज़हमते राह, फ़िराक़े अहबाब, दुश्वारी सफ़र, बदमज़गिए तआम वग़ैरा जैसी तमाम मुसीबतें बरदाश्त कर ले ताके वसीअ घर और क़रार की मन्ज़िल तक पहुंच जाए के ऐसे लोग उन तमाम बातों में किसी तकलीफ़ का एहसास नहीं करते और न इस राह में ख़र्च को नुक़सान तसव्वुर करते हैं और उनकी नज़र में इससे ज़्यादा महबूब कोई शै नहीं है जो उन्हें मन्ज़िल से क़रीबतर कर दे और अपने मरकज़ तक पहुंचा दे।
और इस दुनिया से धोका खा जाने वालों की मिसाल उस क़ौम की है जो सरसब्ज़ व शादाब मक़ाम पर रहे और वहां से दिल उचट जाए तो क़हत ज़दा इलाक़े की तरफ़ चली जाए के इसकी नज़र में क़दीम हालात के छट जाने से ज़्यादा नागवार और दुश्वारगुज़ार कोई शै नहीं है के अब जिस मन्ज़िल पर वारिद हुए हैं और जहां तक पहुंचे हैं वह किसी क़ीमत पर इख़्तेयार करने के क़ाबिल नहीं है।
बेटा! देखो अपने और ग़ैर के दरम्यान मीज़ान अपने नफ़्स को क़रार दो और दूसरे के लिये वही पसन्द करो जो अपने लिये पसन्द कर सकते हो और इसके लिये भी वह बात नापसन्द करो जो अपने लिये पसन्द नहीं करते हो, किसी पर ज़ुल्म न करना के अपने ऊपर ज़ुल्म पसन्द नहीं करते हो और हर एक के साथ नेकी करना जिस तरह चाहते हो के सब तुम्हारे साथ नेक बरताव करें और जिस चीज़ को दूसरे से बुरा समझते हो उसे अपने लिये भी बुरा ही तसव्वुर करना, लोगों की उस बात से राज़ी हो जाना जिससे अपनी बात से लोगों को राज़ी करना चाहते हो, बिला इल्म कोई बात ज़बान से न निकालना अगरचे तुम्हारा इल्म बहुत कम है और किसी के बारे में वह बात न कहना जो अपने बारे में पसन्द न करते हो।
याद रखो के ख़ुदपसन्दी राहे सवाब के खि़लाफ़ और अक़्लों की बीमारी है लेहाज़ा अपनी कोशिश तेज़तर करो और अपने माल को दूसरों के लिये ज़ख़ीरा न बनाओ और अगर दरम्यानी रास्ते की हिदायत मिल जाए तो अपने रब के सामने सबसे ज़्यादा ख़ुज़ूअ व ख़ुशूअ से पेश आना।
और याद रखो के तुम्हारे सामने वह रास्ता है जिसकी मसाफ़त बईद और मशक़्क़त शदीद है इसमें तुम बेहतरीन ज़ादे राह की तलाश और बक़द्रे ज़रूरत ज़ादे राह की फ़राहमी से बेनियाज़ हो सकते हो अलबत्ता बोझ हलका रखो और अपनी ताक़त से ज़्यादा अपनी पुश्त पर बोझ मत लादो के यह कराँबारी एक वबाल बन जाए और फिर जब कोई फ़क़ीर मिल जाए और तुम्हारे ज़ादे राह को क़यामत तक पहुंचा सकता हो और कल वक़्ते ज़रूरत मुकम्मल तरीक़े से तुम्हारे हवाले कर सकता हो तो उसे ग़नीमत समझो और माल उसी के हवाले कर दो क्योंके हो सकता है के फिर तुम ऐसे शख़्स को ढूंढो और न पाओ और जो तुम्हारी दौलतमन्दी की हालत में तुमसे क़र्ज़ मांग रहा है उस वादे पर के तुम्हारी तंगदस्ती के वक़्त अदा कर देगा तो उसे ग़नीमत जानो।
याद रखो! तुम्हारे सामने एक दुश्वारगुज़ार खाई है जिसमें हलका फुलका आदमी गरांबार आदमी से कहीं अच्छी हालत में होगा अैर सुस्त रफ़्तार तेज़ क़दम दौड़ने वाले की बनिस्बत बुरी हालत में होगा और इस राह में ला मुहाला तुम्हारी मन्ज़िल जन्नत होगी या दोज़ख़। लेहाज़ा उतरने से पहले जगह मुन्तख़ब कर लो और पड़ाव डालने से पहले इस जगह को ठीक ठाक कर लो, क्यूंके मौत के बाद ख़ुशनूदी हासिल करने का मौक़ा न होगा और न दुनिया की तरफ़ पलटने की कोई सूरत होगी। यक़ीन रखो के जिसके क़ब्ज़े में क़ुदरत में आसमान व ज़मीन के ख़ज़ाने हैं उसने तुम्हें सवाल करने की इजाज़त दे दखी है और क़ुबूल करने का ज़िम्मा लिया है और हुक्म दिया है के तुम मांगो के वह दे, रहम की दरख़्वास्त करो ताके वह रहम करे, उसने अपने ऊपर तुम्हारे दरम्यान दरबान खड़े नहीं किये जो तुम्हें रोकते हों न तुम्हें उस पर मजबूर किया है के तुम किसी को इसके यहां सिफ़ारिश के लिये लाओ तब ही काम हो और तुमने गुनाह किये हों तो उसने तुम्हारे लिये तौबा की गुन्जाइश ख़त्म नहीं की है, न सज़ा देने में जल्दी की है और न तौबा व अनाबत के बाद वह कभी ताना देता है (के तुमने पहले यह किया था, वह किया था) न ऐसे मौक़े पर उसने तुम्हें रूसवा किया के जहां तुम्हें रूसवा ही होना चाहिये था और न उसने तौबा के क़ुबूल करने में (कड़ी शर्तें लगाकर) तुम्हारे साथ सख़्तगीरी की है, न गुनाह के बारे में तुमसे सख़्ती के साथ जिरह करता है और न अपनी रहमत से मायूस करता है बल्कि उसने गुनाह से किनाराकशी को भी एक नेकी क़रार दिया है और बुराई एक हो तो उसे एक (बुराई) और नेकी एक हो तो उसे दस (नेकियों) के बराबर ठहराया है, उसने तौबा का दरवाज़ा खोल रखा है जब भी उसे पुकारो वह तुम्हारी सुनता है और जब भी राज़ व नियाज़ करते हुए उससे कुछ कहो वह जान लेता है। तुम उसी से मुरादें मांगते हो और उसी के सामने दिल के भेद खोलते हो, उसी से अपने दुख दर्द का रोना रोते हो और मुसीबतों से निकालने की इल्तिजा करते हो और अपने कामों में मदद मांगते हो और उसकी रहमत के ख़ज़ानों से वह चीज़ें तलब करते हो जिनके देने पर और कोई क़ुदरत नहीं रखता, जैसे उम्रों में दराज़ी, जिस्मानी सेहत व तवानाई और रिज़्क़ में वुसअत और इस पर उसने तुम्हारे हाथ में अपने ख़ज़ानों के खोलने वाली कुन्जियां दे दी हैं इस तरह के तुम्हें अपनी बारगाह में सवाल करने का तरीक़ा बताया, इस तरह जब तुम चाहो दुआ के ज़रिये उसकी नेमत के दरवाज़ों को खुलवा लो, उसकी रहमत के झालों को बरसा लो, हाँ बाज़ औक़ात क़ुबूलियत में देर हो तो उससे नाउम्मीद न हो, इसलिये के अतिया नीयत के मुताबिक़ होता है और अकसर क़ुबूलियत में इसलिये देर की जाती है के साएल के अज्र में इज़ाफ़ा हो, और उम्मीदवार को अतिये और ज़्यादा मिलें और कभी यह भी होता है के तुम एक चीज़ मांगते हो और वह हासिल नहीं होती मगर दुनिया या आखि़रत में इससे बेहतर चीज़ें तुम्हें मिल जाती हैं या तुम्हारे किसी बेहतर मफ़ाद के पेशे नज़र तुम्हें इससे महरूम कर दिया जाता है इसलिये के तुम कभी ऐसी चीज़ें भी तलब कर लेते हो के अगर तुम्हें दे दी जाएं तो तुम्हारा दीन तबाह हो जाए। लेहाज़ा तुम्हें बस वह चीज़ तलब करना चाहिये जिसका जमाल पाएदार हो अैर जिसका वबाल तुम्हारे सर न पड़ने वाला हो, रहा दुनिया का माल तो न यह तुम्हारे लिये रहेगा और न तुम उसके लिये रहोगे।
याद रखो! तुम आखि़रत के लिये पैदा हुए हो न के दुनिया के लिये, फ़ना के लिये ख़ल्क़ हुए हो न बक़ा के लिये, मौत के लिये बने हो न हयात के लिये, तुम एक ऐसी मन्ज़िल में हो जिसका कोई ठीक नहीं है और एक ऐसे घर में हो जो आखि़रत का साज़ो सामान मुहैय्या करने के लिये है और सिर्फ़ मन्ज़िले आखि़रत की गुज़रगाह है। तुम वह हो जिसका मौत पीछा कये हुए है जिससे कोई भागने वाला बच नहीं सकता है और उसके हाथ से निकल नहीं सकता है, वह बहरहाल उसे पा लेगी। लेहाज़ा उसकी तरफ़ से होशियार हो के वह तुम्हें किसी बुरे हाल में पकड़ ले और तुम ख़ाली तौबा के लिये सोचते ही रह जाओ और वह तुम्हारे और तौबा के दरम्यान हाएल हो जाए के इस तरह गोया तुमने अपने नफ़्स को हलाक कर दिया।
फ़रज़न्द! मौत को बराबर याद करते रहो और इन हालात को याद करते रहो जिन पर अचानक वारिद होना है और जहां तक मौत के बाद जाना है ताके वह तुम्हारे पास आए तो तुम एहतियाती सामान कर चुके हो और अपनी ताक़त को मज़बूत बना चुके हो और वह अचानक आकर तुम पर क़ब्ज़ा न कर ले और ख़बरदार अहले दुनिया को दुनिया की तरफ़ झुकते और इस पर मरते देख कर तुम धोके में न आ जाना के परवरदिगार तुम्हें इसके बारे में बता चुका है और वह ख़ुद भी अपने मसाएब सुना चुकी है और अपनी बुराइयों को वाज़ेह कर चुकी है। दुनियादार अफ़राद सिर्फ़ भौंकने वाले कुत्ते और फाउण्डेशऩ खाने वाले दरिन्दे हैं जहां एक-दूसरे पर भौंकता है और ताक़त वाला कमज़ोर को खा जाता है और बड़ा छोटे को कुचल डालता है, यह सब जानवर हैं जिनमें बाज़ बन्धे हुए हैं और बाज़ आवारा, जिन्होंने अपनी अक़्लें गुम कर दी हैं और नामालूम रास्ते पर चल पड़े हैं गोया दुश्वार गुज़ार वादियों में मुसीबतों में चरने वाले हैं जहां न कोई चरवाहा है हो सीधे रास्ते पर लगा सके और न कोई चराने वाला है जो उन्हें चरा सके। दुनिया ने इन्हें गुमराही के रास्ते पर डाल दिया है और इनकी बसारत को मिनाराए हिदायत के मुक़ाबले में सल्ब कर लिया है और वह हैरत के आलम में सरगर्दां हैं और नेमतों में डूबे हुए हैं, दुनिया को अपना माबूद बना लिया है और वह उनसे खेल रही है और वह इससे खेल रहे हैं और सबने आखि़रत को यकसर भुला दिया है।
ठहरो! अन्धेरे को छटने दो, ऐसा महसूस होगा जैसे क़ाफ़िले आखि़रत की मन्ज़िल में उतर चुके हैं और क़रीब है के तेज़ रफ्तार अफ़राद अगले लोगों से मुलहक़ हो जाएं।
फ़रज़न्द! याद रखो के जो शब व रोज़ की सवारी पर सवार है वह गोया सरगर्मे सफ़र है चाहे ठहरा ही क्यों न रहे और मसाफ़त क़ता कर रहा है चाहे इत्मीनान से मुक़ीम ही क्यों न रहे। यह बात यक़ीन के साथ समझ लो के तुम न हर उम्मीद को पा सकते हो और न अजल से आगे जा सकते हो, तुम अगले लोगों के रास्ते ही पर चल रहे हो लेहाज़ा तलब में नर्म रफ़्तारी से काम लो और कस्बे माश में मयानारवी इख़्तेयार करो, वरना बहुत सी तलब इन्सान को माल की महरूमी तक पहुंचा देती है और हर तलब करने वाला कामयाब भी नहीं होता है और न हर एतदाल से काम लेने वाला महरूम ही होता है, अपने नफ़्स को हर तरह की पस्ती से बलन्दतर रखो चाहे वह पस्ती पसन्दीदा चीज़ो तक पहुंचा ही क्यों न दे इसलिये के जो इज़्ज़ते नफ़्स दे दोगे उसका कोई बदल नहीं मिल सकता और ख़बरदार किसी के ग़ुलाम न बन जाना जबके परवरदिगार ने भी आज़ाद क़रार दिया है। देखो उस चीज़ में कोई ख़ैर नहीं है जो शर के ज़रिये हासिल हो और वह आसानी आसानी नहीं है जो दुश्वारी के रास्ते से मिले। (((-बेहतरीन फ़लसफ़ाए हयात और बलीग़तरीन मोएज़ा है अगर इन्सान फ़िक्रे सलीम और अक़्ले मुस्तक़ीम रखता हो, हर गुज़रने वाला दिन और हर बीत जाने वाली रात इन्सान की ज़िन्दगी में से एक हिस्सा कम कर देती है और इस तरह इन्सान मुसलसल सरगर्मे सफ़र है अगरचे मकानी एतबार से अपनी जगह पर मुक़ीम है और हरकत भी नहीं कर रहा है, हरकत सिर्फ़ मकान ही में नहीं होती है, ज़मान में भी होती है और यही हरकत इन्सान को सरहदे मौत तक ले जाती है-)))
ख़बरदार लालच की सवारियां तेज़ रफ़्तारी दिखलाकर तुम्हें हलाकत के चश्मों पर न वारिद कर दें और अगर मुमकिन हो के तुम्हारे और ख़ुदा के दरम्यान कोई साहबे नेमत न आने पाए तो ऐसा ही करो के तुम्हें तुम्हारा हिस्सा बहरहाल मिलने वाला है और अपना नसीब बहरहाल लेने वाले हो और अल्लाह की तरफ़ से थोड़ा भी मख़लूक़ात के बहुत से ज़्यादा बेहतर होता है। अगरचे सब अल्लाह ही की तरफ़ से होता है।
ख़ामोशी से पैदा होने वाली कोताही की तलाफ़ी कर लेना गुफ़्तगू से होने वाले नुक़सान के तदारूक से आसानतर है, बरतन के अन्दर का सामान मुंह बन्द करके महफ़ूज़ किया जाता है और अपने हाथ की दौलत का महफ़ूज़ कर लेना दूसरे के हाथ की नेमत के तलब करने से ज़्यादा बेहतर है। मायूसी की तल्ख़ी को बरदाश्त करना लोगों के सामने हाथ फैलाने से बेहतर है और पाकदामनी के साथ मेहनत मशक़्क़त करना फ़िस्क़ व फ़ुजूर के साथ मालदारी से बेहतर है।
हर इन्सान अपने राज़ को दूसरों से ज़्यादा महफ़ूज़ रख सकता है और बहुत से लोग हैं जो उस अम्र के लिये दौड़ रहे हैं जो उनके लिये नुक़सानदेह है। ज़्यादा बात करने वाला बकवास करने लगता है और ग़ौर व फ़िक्र करने वाला बसीर हो जाता है। अहले ख़ैर के साथ रहो ताके उन्हीं में शुमार हो और अहले शर से अलग रहो ताके उनसे अलग हिसाब किये जाओ। बदतरीन इनआम माले हराम है और बदतरीन ज़ुल्म कमज़ोर आदमी पर ज़ुल्म है। नर्मी नामुनासिब हो तो सख़्ती ही मुनासिब है। कभी कभी दवा मर्ज़ बन जाती है और मर्ज़ दवा और कभी कभी ग़ैर मुख़लिस भी नसीहत की बात कर देता है और कभी-कभी मुख़लिस भी ख़यानत से काम ले लेता है। देखो ख़बरदार, ख़्वाहिशात पर एतमाद न करना के यह अहमक़ों का सरमाया हैं अक़्लमन्दी तजुर्बात के महफ़ूज़ रखने में है और बेहतरीन तजुर्बा वही है जिससे नसीहत हासिल हो, फ़ुरसत से फ़ायदा उठाओ क़ब्ल इसके के रन्ज व अन्दोह का सामना करना पड़े, हर तलबगार मतलूब को हासिल भी नहीं करता है और हर ग़ायब पलट कर भी नहीं आता है।
फ़साद की एक क़िस्म ज़ादे राह का ज़ाया कर देना और आक़ेबत को बरबाद कर देना भी है, हर अम्र की एक आक़ेबत है और अनक़रीब वह तुम्हें मिल जाएगा जो तुम्हारे लिये मुक़द्दर हुआ है। तिजारत करने वाला वही होता है जो माल को ख़तरे में डाल सके, कभी थोड़ा माल ज़्यादा (तमाले फ़रावां) से ज़्यादा बाबरकत होता है। उस मददगार में कोई ख़ैर नहीं है जो ज़लील हो और वह दोस्त बेकार है जो बदनाम हो। ज़माने के साथ सहूलत का बरताव करो जब तक इसका ऊंट क़ाबू में रहे और किसी चीज़ को उससे ज़्यादा की उम्मीद में ख़तरे में मत डालो, ख़बरदार कहीं दुश्मनी और अनाद की सवारी तुमसे मुंहज़ोरी न करने लगे।
अपने नफ़्स को अपने भाई के बारे में क़तअ ताल्लुक़ के मुक़ाबले में ताल्लुक़ात, आराज़ के मुक़ाबले में मेहरबानी, कंजूसी के मुक़ाबले में अता, (जब वह दोस्ती तोड़े तो तुम उसे जोड़ो, वह मुंह फेर ले तो तुम आगे बढ़ो और लुत्फ़ व मेहरबानी से पेश आओ, वह तुम्हारे लिये कन्जूसी करे तो तुम उस पर ख़र्च करो), दूरी के मुक़ाबले में क़ुरबत, शिद्दत के मुक़ाबले में नर्मी और जुर्म के मौक़े पर माज़ेरत के लिये आमादा करो गोया के तुम उसके बन्दे हो और उसने तुम पर कोई एहसान किया है और ख़बरदार एहसान को भी बेमहल न क़रार देना और न किसी न अहल के साथ एहसान करना, अपने दुश्मन के दोस्त को अपना दोस्त न बनाना के तुम अपने दोस्त के दुश्मन हो जाओ और अपने भाई को मुख़लिसाना नसीहत करते रहना चाहे उसे अच्छी लगें या बुरी, ग़ुस्से को पी जाओ के मैंने अन्जामकार के एतबार से इससे ज़्यादा शीरीं कोई घूंट नहीं देखा है और न आक़ेबत के लेहाज़ से लज़ीज़तर, और जो तुम्हारे साथ सख़्ती करे उसके लिये नरम हो जाओ शायद कभी वह भी नरम हो जाए, अपने दुश्मन के साथ एहसान करो के इसमें दो में से एक कामयाबी और शीरींतरीन कामयाबी है और अगर अपने भाई से क़तअ ताल्लुक़ करना चाहते हो तो अपने नफ़्स में इतनी गुंजाइश रखो के अगर उसे किसी दिन वापसी का ख़याल पैदा हो तो वापस आ सके।
जो तुम्हारे बारे में अच्छा ख़याल रखे उसके ख़याल को ग़लत न होने देना, बाहेमी रवाबित की बिना पर किसी भाई के हक़ को ज़ाया न करना के जिसके हक़ को ज़ाया कर दिया फिर वह वाक़ेअन भाई नहीं है और देखो तुम्हारे घरवाले तुम्हारी वजह से बदबख़्त न होने पाएं और जो तुमसे किनाराकश होना चाहते हैं उसके पीछे न लगे रहो, तुम्हारा कोई भाई क़तअ ताल्लुक़ात में तुम पर बाज़ी न ले जाए और तुम ताल्लुक़ात मज़बूत कर लो और ख़बरदार बुराई करने में नेकी करने से ज़्यादा ताक़त का मुज़ाहिरा न करना और किसी ज़ालिम के ज़ुल्म को बहुत बड़ा तसव्वुर न करना के वह अपने को नुक़सान पहुंचा रहा है और तुम्हें फ़ायदा पहुंचा रहा है और जो तुम्हें फ़ायदा पहुंचाए उसकी जज़ा यह नहीं है के तुम उसके साथ बुराई करो।
और फ़रज़न्द!! याद रखो के रिज़्क़ की दो क़िस्में हैं, एक रिज़्क़ वह है जिसे तुम तलाश कर रहे हो और एक रिज़्क़ वह है जो तुमको तलाश कर रहा है के अगर ततुम उस तक न जाओगे तो वह ख़ुद तुम तक आ जाएगा। ज़रूरत के वक़्त ख़ुज़ूअ व ख़ुशू का इज़हार किस क़द्र ज़लीलतरीन बात है और बे नियाज़ी के आलम में बदसलूकी किस क़द्र क़बीह हरकत है। इस दुनिया में तुम्हारा हिस्सा इतना ही है जिससे अपनी आक़ेबत का इन्तेज़ाम कर सको, और किसी चीज़ के हाथ से निकल जाने पर परेशानी का इज़हार करना है तो हर उस चीज़ पर भी फ़रयाद करो जो तुम तक नहीं पहुंची है। जो कुछ हो चुका है उसके ज़रिये इसका पता लगाओ जो होने वाला है के मामलात तमाम के तमाम एक ही जैसे हैं और ख़बरदार उन लोगों में न हो जाओ जिन पर उस वक़्त तक नसीहत असरअन्दाज़ नहीं होती है जब तक पूरी तरह तकलीफ़ न पहुंचाई जाए इसलिये के इन्साने आक़िल अदब से नसीहत हासिल करता है और जानवर मारपीट से सीधा होता है,, दुनिया में वारिद होने वाले हुमूम व आलाम को सब्र के अज़ाएम और यक़ीन के हुस्न के ज़रिये रद कर दो, याद रखो के जिसने भी एतदाल को छोड़ा वह मुनहरिफ़ हो गया, साथी एक तरह का शरीके नसब होता है और दोस्त वह है जो ग़ीबत में भी सच्चा दोस्त रहे। ख़्वाहिश अन्धेपन की शरीक कार होती है। बहुत से दूर वाले ऐसे होते हैं जो क़रीब वालों से क़रीबतर होते हैं और बहुत से क़रीब वाले दूर वालों से ज़्यादा दूरतर होते हैं।
(((-इस मसले का ताल्लुक़ दुनिया में इख़लाक़ी बरताव से है जहां ज़ालिमों को इस्लामी इख़लाक़ात से आगाह किया जाता है और कभी लश्करे माविया पर बन्दिश आब को रोक दिया जाना जाता है और कभी इब्ने मुलजिम को सेराब कर दिया जाता है। वरना अगर दीन व मज़हब ख़तरे में पड़ जाए तो मज़हब से ज़्यादा अज़ीज़तर कोई शै नहीं है और ज़ालिमों से जेहाद भी वाजिब हो जाता है। इसमें कोई शक नहीं है के इन्सान की ज़िन्दगी में बेशुमार ऐसे मौक़े आते हैं जहां यह एहसास पैदा होता है के जैसे इन्सान रिज़्क़ की तलाश में नहीं है बल्कि रिज़्क़ इन्सान को तलाश कर रहा है और इन्सान जहां जहां जा रहा है उसका रिज़्क़ उसके साथ जा रहा है। और परवरदिगार ने ऐसे वाक़ेआत का इन्तेज़ाम इसीलिये किया है के इन्सान को इसकी रज़्ज़ाक़ियतत और ईफ़ाए वादा का यक़ीन हो जाए और वह रिज़्क़ की राह में इज़्ज़ते नफ़्स या दारे आखि़रत को पहुंचने के लिये तैयार न हो-)))
ग़रीब वह है जिसका कोई दोस्त न हो, जो हक़ से आगे बढ़ जाए उसके रास्ते तंग हो जाते हैं और जो अपनी हैसियत पर क़ायम रहता है उसकी इज्ज़त बाक़ी रह जाती है तुम्हारे हाथों में मज़बूत तरीन वसीला तुम्हारा और ख़ुदा का रिश्ता है, और जो तुम्हारी परवाह न करे वही तुम्हारा दुश्मन है। कभी कभी मायूसी भी कामयाबी बन जाती है जब हर्स व लालच मूजिबे हलाकत हो, हर ऐब ज़ाहिर नहीं हुआ करता है और न हर फ़ुरसत का मौक़ा बार-बार मिला करता है, कभी कभी ऐसा भी होता है के आंखों वाला रास्ते से भटक जाता है और अन्धा सीधे रास्ते को पा लेता है, बुराई को पसे पुश्त डालते रहो के जब भी चाहो उसकी तरफ़ बढ़ सकते हो। जाहिल से क़तअ ताल्लुक़ आक़िल से ताल्लुक़ात के बराबर है, जो ज़माने की तरफ़ से मुतमईन हो जाता है ज़माना उससे ख़यानत करता है और जो इसे बड़ा समझता है उसे ज़लील कर देता है हर तीरअन्दाज़ का तीर निशाने पर नहीं बैठता है जब हाकिम बदल जाता है तो ज़माना बदल जाता है, रफ़ीक़ सफ़र के बारे में रास्ते पर चलने से पहले दरयाफ़्त करो और हमसाये के बारे में अपने घर से पहले ख़बरगीरी करो, ख़बरदार ऐसी कोई बात न करना जो मज़हकाख़ेज़ हो चाहे दूसरों ही की तरफ़ से नक़्ल की जाए।
ख़बरदार औरतों से मशविरा न करना के उनकी राय कमज़ोर और उनका इरादा सुस्त होता है, उन्हें परदे में रखकर उनकी निगाहों को ताक झांक से महफ़ूज़ रखो के परदे की सख़्ती उनकी इज़्ज़त व आबरू को बाक़ी रखने वाली है और उनका घर से निकल जाना ग़ैर मोतबर अफ़राद के अपने घर में दाखि़ल करने से ज़्यादा ख़तरनाक नहीं है, अगर मुमकिन हो के वह तुम्हारे अलावा किसी को न पहचानें तो ऐसा ही करो और ख़बरदार उन्हें उनके ज़ाती मसाएल से ज़्यादा इख़्तेयारात न दो इसलिये के औरत एक फूल है आौर हाकिम व मुतसर्रफ़ नहीं है। उसके पास व लेहाज़ को उसकी ज़ात से आगे न बढ़ाओ और उसमें दूसरों की सिफ़ारिश का हौसला न पैदा होने दो, देखो ख़बरदार ग़ैरत के मवाक़े के अलावा ग़ैरत का इज़हार मत करना के इस तरह अच्छी औरत भी बुराई के रास्ते पर चली जाएगी और बेऐब भी मशकूक हो जाती है।
अपने हर ख़ादिम के लिये एक अमल मुक़र्रर कर दो जिसका मुहासेबा कर सको के यह बात एक दूसरे के हवाले करने से कहीं ज़्यादा बेहतर है। अपने क़बीले का एहतेराम करो के यही तुम्हारे लिये परवाज़ का मरतबा रखते हैं और यही तुम्हारी असल हैं जिनकी तरफ़ तुम्हारी बाज़गश्त है और तुम्हारे हाथ हैं जिनके ज़रिये हमला कर सकते हो। अपने दीन व दुनिया को परवरदिगार के हवाले कर दो और उससे दुआ करो के तुम्हारे हक़ में दुनिया व आखि़रत में बेहतरीन फ़ैसला करे, वस्सलाम। (((-इस कलाम में मुख़्तलिफ़ अहतेमालात पाए जाते हैं -- एक एहतेमाल यह है के उस दूर के हालात की तरफ़ इशारा है जब औरतें99 फ़ीसदी जाहिल हुआ करती थीं और ज़ाहिर है के पढ़े लिखे इन्सान का किसी जाहिल से मश्विरा करना नादानी के अलावा कुछ नहीं है। दूसरा एहतेमाल यह है के इसमें औरत की जज़्बाती फ़ितरत की तरफ़ इशारा है के इस मशविरे में जज़्बात की फ़रमानी का ख़तरा ज़्यादा है लेहाज़ा अगर कोई औरत इस नुक़्स से बलन्दतर हो जाए तो इससे मश्विरा करने में कोई हर्ज नहीं है। तीसरा एहतेमाल यह है के इसमें उन मख़सूस औरतों की तरफ़ इशारा हो जिनकी राय पर अमल करने से आलमे इस्लाम का एक बड़ा हिस्सा तबाही के घाट उतर गया है और आज तक उसी तबाही के असरात देखे जा रहे हैं।-)))