नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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32-आपका मकतूबे गिरामी (माविया के नाम)

तुमने लोगों की एक बड़ी जमाअत को हलाक कर दिया है के उन्हें अपनी गुमराही से धोके में रखा है और अपने समन्दर की मौजों के हवाले कर दिया है जहां तारीकियां उन्हें ढांपे हुए हैं और शुबहात के थपेड़े उन्हें तहो बाला कर रहे हैं नतीजा यह हुआ के वह राहे हक़ से हट गए और उलटे पांव पलट गए और पीठ फेरकर चलते बने और अपने हसब व नसब पर भरोसा कर बैठे अलावा उन चन्द अहले बसीरत के जो वापस आ गए और उन्होंने तुम्हें पहचानने के बाद छोड़ दिया और तुम्हारी हिमायत से भाग कर अल्लाह की तरफ़ आ गए जबके तुमने उन्हें दुश्वारियों में मुब्तिला कर दिया था और राहे एतदाल से हटा दिया था, लेहाज़ा ऐ माविया, अपने बारे में ख़ुदा से डरो और शैतान से जान छुड़ाओ के यह दुनिया बहरहाल तुमसे अलग होने वाली है और आखि़रत बहुत क़रीब है- वस्सलाम

33- आपका मकतूबे गिरामी (मक्के के गवर्नर कसम बिन अब्बास के नाम)

अम्माबाद! मेरे मग़रिबी इलाक़े के जासूस ने मुझे लिख कर इत्तेला दी है के मौसमे हज के लिये शाम की तरफ़ से कुछ ऐसे लोगों को भेजा गया है जो दिलों के अन्धे, कानों के बहरे और आंखों के महरूमे ज़िया हैं, यह हक़ को बातिल से मुश्तबा करने वाले हैं और ख़ालिक़ की नाफ़रमानी करके मख़लूक़ को ख़ुश करने वाले हैं इनका काम दीन के ज़रिये दुनिया को दोहना है और यह नेक किरदार, परहेज़गार अफ़राद की आखि़रत को दुनिया के ज़रिये ख़रीदने वाले हैं जबके ख़ैर उसका हिस्सा है जो खैर का काम करे और शर उसके हिस्से में आता है जो शर का अमल करता है। देखो अपने मनसबी फ़राएज़ के सिलसिले में एक तजुर्बेकार, पुख़्ताकार, मुख़लिस, होशियार इन्सान की तरह क़याम करना जो अपने हाकिम का ताबेअ और अपने इमाम का इताअतगुज़ार हो और ख़बरदार कोई ऐसा काम न करना जिसकी माज़ेरत करना पड़े और राहत व आराम में मग़रूर न हो जाना और न शिद्दत के मवाक़े पर कमज़ोरी का मुज़ाहेरा करना, वस्सलाम

34-आपकामकतूबेगिरामी

(मोहम्मद बिन अबीबकर के नाम, जब यह इत्तेलाअ मिलीके वह अपनी माज़ूली और मालिके अश्तर के तक़र्रूर से रंजीदा हैं और फिर मालिके अश्तर मिस्र पहुंचने से पहले इन्तेक़ाल भी कर गए)

अम्माबाद! मुझे मालिके अश्तर के मिस्र की तरफ़ भेजने के बारे में तुम्हारी बदली की इत्तेलाअ मिली है। (((-तबरी का बयान है के हत्तात मजाशई एक जमाअत के साथ माविया के दरबार में वारिद हुआ माविया ने सबको एक एक लाख इनाम दिया और हत्तात को सत्तर हज़ार तो उसने एतराज़ किया, माविया ने कहा के मैंने इनसे इनका दीन ख़रीदा है, हत्तात ने कहा के तो मुझसे भी ख़रीद लीजिये? यह सुनना था के माविया ने एक लाख पूरा कर दिया। अब्दुल्लाह बिन अब्बास के भाई थे और मक्के पर हज़रत के गवर्नर थे जो हज़रत की शहादत तक अपने ओहदे पर फ़ाएज़ रहे और उसके बाद माविया के दौर में समरक़न्द में क़त्ल कर दिये गए। मोहम्मद बिन अबीबकर जनाबे असमा बिन्ते उमैस के फ़रज़न्द थे जिन्होंने पहले हज़रत जाफ़रे तय्यार से अक़्द किया और उनसे जनाबे अब्दुल्लाह बिन जाफ़र पैदा हुए। इसके बाद अबूबक्र से अक़्द किया जिससे मोहम्मद की विलादत हुई और आखि़र में मौलाए कायनात (अ0) से अक़्द किया जिससे यहया पैदा हुए और इस तरह मोहम्मद अबूबक्र के फ़रज़न्द और हज़रत के परवरदा थे। उन्हें मिस्र का गवर्नर बनाया , इसके बाद माविया और अम्र व आस के ख़तरे के पेशे नज़र उनकी जगह मालिके अश्तर का तक़रूर किया लेकिन माविया ने उन्हें रास्ते ही में ज़हर दिलवा दिया और इस तरह मोहम्मद अपने ओहदे पर बाक़ी रह गए लेकिन उन्हें माज़ूली से जो सदमा हुआ था उसके तदारूक में हज़रत ने यह ख़त इरसाल फ़रमाया।-)))

हालांके मैंने यह काम इसलिये नहीं किया के तुम्हें काम में कमज़ोर पाया था या तुमसे ज़्यादा मेहनत का मुतालेबा करना चाहा था बल्कि अगर मैंने तुमसे तुम्हारे ज़ेरे असर इ़क़्तेदार को लिया भी था तो तुम्हें ऐसा काम देना चाहता था जो तुम्हारे लिये मशक़्क़त के एतबार से आसान हो और तुम्हें पसन्द भी हो।

जिस शख़्स को मैंने मिस्र का गवर्नर क़रार दिया था वह मेरा मर्दे मुख़लिस और मेरे दुश्मन के लिये सख़्त क़िस्म का दुश्मन था। ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल करे जिसने अपने दिन पूरे कर लिये और अपनी मौत से मुलाक़ात कर ली। हम उससे बहरहाल राज़ी हैं, अल्लाह उसे अपनी रिज़ा इनायत फ़रमाए और उसके सवाब को मुज़ाएफ़ कर दे। अब तुम दुश्मन के मुक़ाबले में निकल पड़ो और अपनी बसीरत पर चल पड़ो जो तुमसे जंग करे उससे जंग करने के लिये कमर को कस लो और दुश्मन राहे ख़ुदा की दावत दे दो। इसके बाद अल्लाह से मुसलसल मदद मांगते रहो के वही तुम्हारे लिये हर मुहिम में काफ़ी है और वही हर नाज़िल होने वाली मुसीबत में मदद करने वाला है। इन्शाअल्लाह।

35-आपका मकतूबे गिरामी (अब्दुल्लाह बिन अब्बास के नाम - मोहम्मद बिन अबीबक्र की शहादत के बाद)

अम्माबाद! देखो मिस्र पर दुश्मन का क़ब्ज़ा हो गया है और मोहम्मद बिन अबीबक्र शहीद हो गए हैं (ख़ुदा उन पर रहमत नाज़िल करे) मैं उनकी मुसीबत का अज्र ख़ुदा से चाहता हूँ के वह मेरे मुख़लिस फ़रज़न्द और मेहनतकश गवर्नर थे। मेरी तेग़े बर्रान और मेरे दिफ़ाई सुतून, मैंने लोगों को उनसे मुलहक़ हो जाने पर आमादा किया था और उन्हें हुक्म दिया था के जंग से पहले उनकी मदद को पहुंच जाएं और उन्हें ख़ु़फिया और एलानिया हर तरह दावते अमल दी थी और बार-बार आवाज़ दी थी लेकिन बाज़ अफ़राद बादिले नख़्वास्ता आए और बाज़ ने झूटे बहाने कर दिये, कुछ तो मेरे हुक्म को नज़र अन्दाज़ करके घर ही में बैठे रह गए, अब मैं परवरदिगार से दुआ करता हूं के मुझे उनकी तरफ़ से जल्द कशाइशे अम्र इनायत फ़रमा दे के ख़ुदा की क़सम अगर मुझे दुश्मन से मुलाक़ात करके वक़्ते शहादत की आरज़ू न होती और मैंने अपने नफ़्स को मौत के लिये आमादा न कर लिया होता तो मैं हरगिज़ यह पसन्द न करता के उन लोगों के साथ एक दिन भी दुश्मन से मुक़ाबला करूं या ख़ुद उन लोगों से मुलाक़ात करूं।

36- आपका मकतूबे गिरामी (अपने भाई अक़ील के नाम जिसमें अपने बाज़ लश्करों का ज़िक्र फ़रमाया हैऔर यह दर हक़ीक़त अक़ील के मकतूब का जवाब है)

पस मैंने उसकी तरफ़ मुसलमानों का एक लश्करे अज़ीम रवाना कर दिया और जब उसे इस अम्र की इत्तेलाअ मिली तो उसने दामन समेट कर फ़रार इख़्तेयार किया और शरमिंदा होकर पीछे हट गया तो हमारे लशकर ने उसे रास्ते मे जा लिया जबके सूरज डूबने के क़रीब था, नतीजा यह हुआ के दोनों में एक मुख़्तसर झड़प हुई और एक साअत न गुज़रने पाई थी के उसने भाग कर निजात हासिल कर ली जबके उसे गले से पकड़ा जा चुका था और चन्द सांसों के अलावा कुछ बाक़ी न रह गया था। (((-मसऊदी ने मेरूजुल ज़हब में सन35 हिजरी के हवादिस में इस वाक़ेए को नक़ल किया है के “माविया ने अम्र व इब्नुलआस की सरकर्दगी में4 हज़ार का लशकर मिस्र की तरफ़ रवाना किया और इसमें माविया बिन ख़दीज जैसे और दीगर अफ़राद को भी शामिल कर दिया , मुक़ामे मसनात पर मोहम्मद बिन अबीबक्र ने इस लशकर का मुक़ाबला किया लेकिन असहाब की बेवफ़ाई की बिना पर मैदान छोड़ना पड़ा। इसके बाद दोबारा मिस्र के इलाक़े में रन पड़ा और आखि़र में मोहम्मद बिन अबीबक्र गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जीते जी एक गधे की खाल में रखकर नज़रे आतिश कर दिया गया, जिसका हज़रत को बेहद सदमा हुआ और आपने इस वाक़ेए की इत्तेलाअ बसरा के गवर्नर अब्दुल्लाह बिन अब्बास को की और अपने मुकम्मल जज़्बात का इज़हार फ़रमा दिया यहां तक के अहले इराक़ की बेवफ़ाई की बुनियाद पर आरज़ूए मौत तक का तज़किरा फ़रमा दिया के गोया ऐसे अफ़राद की शक्ल भी नहीं देखना चाहते हैं जो राहे ख़ुदा में जेहाद करना न जानते हों और यह मौलाए कायनात का दर्से अमल हर दौर के लिये है के जिस क़ौम में जज़्बए क़ुरबानी नहीं है, अली अ0 न उन्हें देखना पसन्द करते हैं और न उन्हें अपने शियों में शामिल करना चाहते हैं।-)))

इस तरह बड़ी मुश्किल से उसने जान बचाई लेहाज़ा अब क़ुरैश और गुमराही में इनकी तेज़रफ़्तारी और तफ़रिक़े में इनकी गर्दिश और ज़लालत में इनकी मुंहज़ोरी का ज़िक्र छोड़ दो के इन लोगों ने मुझसे जंग पर वैसे ही इत्तेफ़ाक़ कर लिया है जिस तरह रसूले अकरम (स0) से जंग पर इत्तेफ़ाक़ किया था , अब अल्लाह ही क़ुरैश को इनके किये का बदला दे के इन्होंने मेरी क़राबत का रिश्ता तोड़ दिया और मुझसे मेरे मांजाए की हुकूमत सल्ब कर ली।

और यह जो तुमने जंग के बारे में मेरी राय दरयाफ़्त की है तो मेरी राय यही है के जिन लोगों ने जंग को हलाल बना रखा है उनसे जंग करता रहूं यहां तक के मालिक की बारगाह में हाज़िर हो जाऊँ। मेरे गिर्द लोगों का इजतेमाअ मेरी इज़्ज़त में इज़ाफ़ा नहीं कर सकता है और न उनका मुतफ़र्रिक़ हो जाना मेरी वहशत में इज़ाफ़ा कर सकता है और मेरे बरादर अगर तमाम लोग भी मेरा साथ छोड़ दे तो आप मुझे कमज़ोर और ख़ौफ़ज़दा न पाएंगे और न ज़ुल्म का इक़रार करने वाला, कमज़ोर और किसी क़ाएद के हाथ में आसानी से ज़माम पकड़ा देने वाला और किसी सवार के लिये सवारी की सहूलत देने वाला पाएंगे बल्कि मेरी वही सूरतेहाल होगी जिसके बारे में क़बीलए बनी सलीम वाले ने कहा है “अगर तू मेरी हाल के बारे में दरयाफ़्त कर रही है तो समझ ले के मैं ज़माने के मुश्किलात में सब्र करने वाला और मुस्तहकम इरादे वाला हूँ, मेरे लिये नाक़ाबिले बरदाश्त है के मुझे परेशान हाल देखा जाए और दुश्मन ताने दे या दोस्त इस सूरते हाल से रंजीदा हो जाए।”

37- आपका मकतूबे गिरामी (माविया के नाम)

ऐ सुबहान अल्लाह! तू नई नई ख़्वाहिशात और ज़हमत में डालने वाली हैरत व सरगर्दानी से किस क़द्र चिपका हुआ है जबके तूने हक़ाएक़ को बरबाद कर दिया है और दलाएल को ठुकरा दिया है जो अल्लाह को मतलूब और बन्दों पर उसकी हुज्जत हैं। (((-मौलाए कायनात (अ0) ने सरकारे दो आलम (स0) को “इब्ने उम्मी’के लफ़्ज़ से याद फ़रमाया है इसलिये केसरकारे दो आलम (स0) मुसलसल आपकी वालदा माजिदा जनाबे फ़ातिमा बिन्ते असद को अपनी माँ के लफ़्ज़ से याद फ़रमाया करते थे “ इस मक़ाम पर आपने अपनी ज़ात को “इब्ने अबीक’कह कर याद किया है और भाई नहीं कहा है ताके जनाबे अक़ील इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो हो जाएं के हम और आप एक ऐसे बाप के फ़रज़न्द हैं जिनकी ज़िन्दगी में ज़िल्लत के क़ुबूल करने और ज़ुल्म व सितम के सामने घुटने टेक देने का कोई तसव्वुर नहीं था तो आज मेरे बारे में क्या सोचना है और जेहादे राहे ख़ुदा के बारे में मेरी राय क्या दरयाफ़्त करता है, जब मेरा बाप उसके बाप के मुक़ाबले में हमेशा जेहाद करता रहा तो मुझे माविया के मुक़ाबले में हमेशा जेहाद करने में क्या तकल्लुफ़ हो सकता है आखि़रकार वह अबूसुफ़ियान का बेटा है और मैं अबूतालिब का फ़रज़न्द हूँ। इसी के साथ आपने इस हक़ीक़त का भी एलान कर दिया के मुक़ाबला करने वाले दो तरह के होते हैं बाज़ का एतमाद लश्करों और सिपाहियों पर होता है और बाज़ का एतमाद ज़ाते परवरदिगार पर होता है, लश्करों पर एतमाद करने वाले पीछे हट सकते हैं लेकिन ज़ाते वाजिब पर एतमाद करने वाले मैदान से क़दम पीछे नहीं हटा सकते हैं न उनका ख़ुदा किसी के मुक़ाबले में कमज़ोर हो सकता है और न वह किसी क़िल्लत व कसरत से मरऊब हो सकते हैं।-))) रह गया तुम्हारा उस्मान और उनके क़ातिलों के बारे में झगड़ना तो इसका मुख़्तसर जवाब यह है के तुमने उस्मान की मदद उस वक़्त की है जब मदद में तुम्हारा फ़ायदा था और उस वक़्त लावारिस छोड़ दिया जब मदद में इनका फ़ायदा था- वस्सलाम

38-आपका मकतूबे गिरामी (मालिके अश्तर की विलायत के मौक़े पर अहले मिस्र के नाम)

बन्दए ख़ुदा! अमीरूल मोमेनीन अली (अ0) की तरफ़ से उस क़ौम के नाम जिसने ख़ुदा के लिये अपने ग़ज़ब का इज़हार किया जब उसकी ज़मीन में इसकी मासियत की गई और उसके हक़ को बरबाद किया गया। ज़ुल्म ने हर नेक व बदकार और मुक़ीम व मुसाफ़िर पर अपने शामियाने तान दिये और न कोई नेकी रह गई जिसके ज़ेरे साया आराम लिया जा सके और न कोई ऐसी बुराई रह गई जिससे लोग परहेज़ करते।

अम्माबाद! मैंने तुम्हारी तरफ़ बन्दगाने ख़ुदा में से एक ऐसे बन्दे को भेजा है जो ख़ौफ़ के दिनों में सोता नहीं है और दहशत के औक़ात में दुश्मनों से ख़ौफ़ज़दा नहीं होता है और फ़ाजिरों के लिये आग की गर्मी से ज़्यादा शदीदतर है और इसका नाम मालिक बिन अश्तर मज़हजी है लेहाज़ा तुम लोग उसकी बात सुनो और उसके अना व अम्र की इताअत करो जो मुताबिक़े हक़ हैं के वह अल्लाह की तलवारों में से एक तलवार है जिसकी तलवार कुन्द नहीं होती है और जिसका वार उचट नहीं सकता है, वह अगर कूच करने का हुक्म दे तो निकल खड़े हो और अगर ठहरने के लिये कहे तो फ़ौरन ठहर जाओ इसलिये के वह मेरे अम्र के बग़ैर न आगे बढ़ सकता है और न पीछे हट सकता है। न हमला कर सकता है और न पीछे हट सकता है। मैंने उसके मामले में तुम्हें अपने ऊपर मुक़द्दम कर दिया है और अपने पास से जुदा कर दिया है के वह तुम्हारा मुख़लिस साबित होगा और तुम्हारे दुश्मन के मुक़ाबले में इन्तेहाई सख़्तगीर होगा।

39-आपका मकतूबे गिरामी (अम्र इब्ने आस के नाम)

तूने अपने दीन को एक ऐसे शख़्स की दुनिया का ताबे बना दिया है जिसकी गुमराही वाज़ेह है और उसका परदाए उयूब चाक हो चुका है, वह शरीफ़ इन्सान को अपनी बज़्म में बिठाकर ऐबदार और अक़्लमन्द को अपनी मसाहेबत से अहमक़ बना देता है, तूने उसके नक़्शे क़दम पर क़दम जमाए हैं (((-इब्ने अबेल हदीद ने बिलाज़री के हवाले से नक़्ल किया है के उस्मान के मुहासरे के दौर में माविया ने शाम से एक फ़ौज यज़ीद बिन असद क़सरी की सरकर्दगी में रवाना की और उसे हिदायत देदी के मदीने के बाहर मुक़ाम ज़ी ख़शब में मुक़ीम रहें और किसी भी सूरत में मेरे हुक्म के बग़ैर मदीने में दाखि़ल न हों चुनांचे फ़ौज उसी मुक़ाम पर हालात का जाएज़ा लेती रही और क़त्ले उस्मान के बाद वापस शाम बुला ली गई, जिसका खुला हुआ मफ़हूम यह था के अगर इन्क़ेलाबी जमाअत कामयाब न हो सके तो इस फ़ौज की मदद से उस्मान का ख़ात्मा करा दिया जाए और उसके बाद ख़ूने उस्मान का हंगामा खड़ा करके अली (अ0) से खि़लाफ़त सल्ब कर ली जाए। हक़ीक़ते अम्र यह है के आज भी दुनिया में उस शामी सियासत का सिक्का चल रहा है और इक़्तेदार की ख़ातिर अपने ही अफ़राद का ख़ात्मा किया जा रहा है ताके अपने जराएम की सफ़ाई दी जा सके और दुश्मन के खि़लाफ़ जंग छेड़ने का जवाज़ पैदा किया जा सके।

अफ़सोस के आलमे इस्लाम ने यह लक़ब ख़ालिद बिन अलवलीद को दे दिया है जिसने जनाबे मालिक बिन नवीरा को बेगुनाह क़त्ल करके उसी रात उनकी ज़ौजा से ताल्लुक़ात क़ायम कर लिये और इस पर हज़रत उमर तक ने अपनी बराहमी का इज़हार किया लेकिन हज़रत अबूबक्र ने सियासी मसालेह के तहत उन्हें “सैफ़ुल्लाह”क़रार देकर इतने संगीन जुर्म से बरी कर दिया- इन्नल्लाह .....)))

और उसके बचे खुचे की जुस्तजू की है जिस तरह के कुत्ता शेर के पीछे लग जाता है के उसके पन्जों की पनाह में रहता है और उस वक़्त का मुन्तज़िर रहता है जब शेर अपने शिकार का बचा खुचा फेंक दे और वह उसे खा ले, तुमने तो अपनी दुनिया और आखि़रत दोनों को गंवा दिया है, हालांके अगर हक़ की राह पर रहे होते जब भी यह मुद्दआ हासिल हो सकता था। बहरहाल अब ख़ुदा ने मुझे तुम पर और अबू सुफ़ियान के बेटे पर क़ाबू दे दिया तो मैं तुम्हारे हरकात का सही बदला दे दूंगा और अगर तुम बच कर निकल गए और मेरे बाद तक बाक़ी रह गए तो तुम्हारा आइन्दा दौर तुम्हारे लिये सख़्त तरीन होगा। वस्सलाम

40-आपका मकतूबे गिरामी (बाज़ गवर्नरो के नाम)

अम्माबाद! मुझे तुम्हारे बारे में एक बात की इत्तेलाअ मिली है, अगर तुमने ऐसा किया है तो अपने परवरदिगार को नाराज़ किया है। अपने इमाम की नाफ़रमानी की है और अपनी अमानतदारी को भी रूसवा किया है। मुझे यह ख़बर मिली है के तुमने बैतुलमाल की ज़मीन को साफ़ कर दिया है और जो कुछ ज़ेरे क़दम था उस पर क़ब्ज़ा कर लिया है और जो कुछ हाथों में था उसे धा गए हो लेहाज़ा फ़ौरन अपना हिसाब भेज दो और यह याद रखो के अल्लाह का हिसाब लोगों के हिसाब से ज़्यादा सख़्त है- वस्सलाम।

41- आपका मकतूबे गिरामी (बाज़ गवर्नरो के नाम)

अम्माबाद, मैंने तुमको अपनी अमानत में शरीककार बनाया था और ज़ाहिर व बातिन में अपना क़रार दिया था और हमदर्दी और मददगारी और अमानतदारी के एतबार से मेरे घरवालों में तुमसे ज़्यादा मोतबर कोई नहीं था, लेकिन जब तुमने देखा के ज़माना तुम्हारे इब्ने उम पर हमलावर है और दुश्मन आमादाए जंग है और लोगों की अमानत रूसवा हो रही है और उम्मत बेराह आौर लावारिस हो गई है तो तुमने भी अपने इब्ने उम से मुंह मोड़ लिया और जुदा होने वालों के साथ मुझसे जुदा हो गए और साथ छोड़ने वालों के साथ अलग हो गए और ख़यानतकारों के साथ ख़ाइन हो गए, न अपने इब्ने उम का साथ दिया और न अमानतदारी का ख़याल किया, गोया के तुमने अपने जेहाद से ख़ुदा का इरादा भी नहीं किया था।

(((-यह बात तो वाज़ेह है के हज़रत ने यह ख़त अपने किसी चचाज़ाद भाई के नाम लिखा है लेकिन उससे कौन मुराद है? इसमें शदीद इख़्तेलाफ़ पाया जाता है, बाज़ हज़रात का ख़याल है के अब्दुल्लाह बिन अब्बास मुराद हैं वह बसरा के गवर्नर थे लेकिन जब मिस्र में मोहम्मद बिन अबीबक्र का हश्र देख लिया तो बैतुलमाल का सारा माल लेकर मक्के चले गए और वहीं ज़िन्दगी गुज़ारने लगे जिस पर हज़रत ने अपनी शदीद नाराज़गी का इज़हार फ़रमाया और इब्ने अब्बास के तमाम कारनामों पर ख़ते नस्ख़ खींच दिया और बाज़ हज़रात का कहना है के इब्ने अब्बास जैसे जब्र अलामता और मुफ़स्सिरे क़ुरान के बारे में इस तरह के किरदार का इमकान नहीं है लेहाज़ा इससे मुराद उनके भाई उबैदुल्लाह बिन अब्बास हैं जो यमन में हज़रत के गवर्नर थे लेकिन बाज़ हज़रात ने इस पर भी एतराज़ किया है के यमन के हालात में इनकी ख़यानतकारी का कोई तज़किरा नहीं है तो एक भाई को बचाने के लिये दूसरे को निशानाए रूस्तम क्यों बनाया जा रहा है। अब्दुल्लाह बिन अब्बास लाख आालिम व फ़ाज़िल व मुफ़स्सिरे क़ुरान क्यों न हों, इमामे मासूम नहीं हैं और बाज़ मामलात में इमाम या मुकम्मल पैरो इमाम के अलावा कोई साबित क़दम नहीं रह सकता है चाहे मर्दे आमी हो या मुफ़स्सिरे क़ुरान!-))))

और गोया तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से कोई हुज्जत नहीं थी और गोया के तुम इस उम्मत को धोका देकर उसकी दुनिया पर क़ब्ज़ा करना चाहते थे और तुम्हारी नीयत थी के इनकी ग़फ़लत से फ़ायदा उठाकर उनके अमवाल पर क़ब्ज़ा कर लें। चुनान्चे जैसे ही उम्मत से ख़यानत करने की ताक़त पैदा हो गई तुमने तेज़ी से हमला कर दिया और फ़ौरन कूद पड़े और इन तमाम अमवाल को उचक लिया जो यतीमों और बेवाओं के लिये महफ़ूज़ किये गये थे जैसे कोई तेज़ रफ़्तार भेड़िया शिकस्ता या ज़ख़्मी बकरियों पर हमला कर देता है, फिर तुम उन अमवाल को हेजाज़ की तरफ़ उठा ले गए और इस हरकत से बेहद मुमतईन और ख़ुश थे और इसके लेने में किसी गुनाह का एहसास भी न था जैसे (ख़ुदा तुम्हारे दुश्मनों का बुरा करे) अपने घर की तरफ़ अपने मां बाप की मीरास का माल ला रहे हो। ऐ सुबहान अल्लाह, क्या तुम्हारा आखि़रत पर ईमान ही नहीं है और क्या रोज़े क़यामत के शदीद हिसाब का ख़ौफ़ भी ख़त्म हो गया हैं, ऐ वह शख़्स जो कल हमारे नज़दीक साहेबाने अक़्ल में शुमार होता था, तुम्हारे यह खाना पीना किस तरह गवारा होता है जबके तुम्हें मालूम है के तुम माले हराम खा रहे हो और हराम ही पी रहे हो और फिर अयताम (यतीमों) मसाकीन, मोमेनीन और मुजाहेदीन जिन्हें अल्लाह ने यह माल दिया है और जिनके ज़रिये उन शहरों का तहफ़्फ़ुज़ किया है, उनके अमवाल से कनीज़ें ख़रीद रहे हो और शादियां रचा रहे हो।

ख़ुदारा, ख़ुदा से डरो और उन लोगों के अमवाल वापस कर दो के अगर ऐसा न करोगे और ख़ुदा ने कभी तुम पर इख़्तेयार दे दिया तो तुम्हारे बारे में वह फ़ैसला करूंगा जो मुझे माज़ूर बना सके और तुम्हारा ख़ातेमा इसी तलवार से करूंगा जिसके मारे हुए का कोई ठिकाना जहन्नुम के अलावा नहीं है।

ख़ुदा की क़सम, अगर यही काम हसन (अ0) व हुसैन (अ0) ने किया होता तो उनके लिये भी मेरे पास किसी नर्मी का इमकान नहीं था और न वह मेरे इरादे पर क़ाबू पा सकते थे जब तक के उनसे हक़ हासिल न कर लूँ और उनके ज़ुल्म के आसार को मिटा न दूं।

ख़ुदाए रब्बुल आलमीन की क़सम मेरे लिये यह बात हरगिज़ ख़ुशकुन नहीं थी अगर यह सारे अमवाल मेरे लिये हलाल होते और मैं बाद वालों के लिये मीरास बनाकर छोड़ जाता, ज़रा होश में आओ के अब तुम ज़िन्दगी की आखि़री हदों तक पहुंच चुके हो और गोया के ज़ेरे ख़ाक दफ़्न हो चुके हो और तुम पर तुम्हारे आमाल पेश कर दिये गए हैं। इस मन्ज़िल पर जहां ज़ालिम हसरत से आवाज़ देंगे, और ज़िन्दगी बरबाद करने वाले वापसी की आरज़ू कर रहे होंगे और छुटकारे का कोई इमकान न होगा। (((-हज़रत अली (अ0) के मुजाहिदात के इम्तियाज़ात में से एक इम्तियाज़ यह भी है के जिसकी तलवार आप पर चल जाए वह भी जहन्नमी है और जिस पर आपकी तलवार चल जाए वह भी जहन्नमी है इसलिये के आप इमामे मासूम और यदुल्लाह हैं और इमामे मासूम से किसी ग़लती का इमकान नहीं है और अल्लाह का हाथ किसी बेगुनाह और बेख़ता पर नहीं उठ सकता है। काश मौलाए कायनात के मुक़ाबले में आने वाले जमल व सिफ़्फ़ीन के फ़ौजी या सरबराह इस हक़ीक़त से बाख़बर होते और उन्हें इस नुक्ते का होश रह जाता तो कभी नफ़्से पैग़म्बर (स0) से मुक़ाबला करने की हिम्मत न करते। यह किसी ज़ाती इम्तियाज़ का एलान नहीं है , यही बात परवरदिगार ने पैग़म्बर (स0) से कही के तुम शिर्क इख़्तेयार कर लोगे तो तुम्हारे आमाल भी बरबाद कर दिये जाएंगे और यही बात पैग़म्बरे इस्लाम (स0) ने अपनी दुख़्तरे नेक अख़्तर के बारे में फ़रमाई थी और यही बात मौलाए कायनात (अ0) ने इमाम हसन और इमाम हुसैन (अ0) के बारे में फ़रमाई है , गोया के यह एक सही इस्लामी किरदार है जो सिर्फ़ उन्हीं बन्दगाने ख़ुदा में पाया जाता है जो मशीयते इलाही के तर्जुमान और एहकामे इलाही की तमसील हैं वरना इस तरह के किरदार का पेश करना हर इन्सान के बस का काम नहीं है।-)))

70-आपका मकतूबे गिरामी

(आमिले मदीना सहल बिन हनीफ़ अन्सारी के नाम, जब आपको ख़बर मिली के एक क़ौम माविया से जा मिली है)

अम्माबाद! मुझे यह ख़बर मिली है के तुम्हारे यहाँ के कुछ लोग चुपके से माविया की तरफ़ खिसक गए हैं तो ख़बरदार तुम इस अदद के कम हो जाने और इस ताक़त के चले जाने पर हरगिज़ अफ़सोस न करना के इन लोगो की गुमराही और तुम्हारे सुकूने नफ़्स के लिये यही काफ़ी है के वह लोग हक़ व हिदायत से भागे हैं और गुमराही और जेहालत की तरफ़ दौड़ पड़े हैं यह अहले दुनिया हैं लेहाज़ा इसी की तरफ़ मुतवज्जेह हैं और दौड़ लगा रहे हैं, हालांके उन्होंने इन्साफ़ को पहचाना भी है, सुना भी है और समझे भी हैं और उन्हें मालूम है के हक़ के मामले में हमारे यहाँ तमाम लोग बराबर की हैसियत रखते हैं इसीलिये यह लोग ख़ुदग़र्ज़ी की तरफ़ भाग निकले, ख़ुदा उन्हें ग़ारत करे और तबाह कर दे।

ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने ज़ुल्म से फ़रार नहीं किया है और न अद्ल से मुलहक़ हुए हैं, और हमारी ख़्वाहिश सिर्फ़ यह है के परवरदिगार इस मामले में दुश्वारियों को आसान बना दे और नाहमवारी को हमवार कर दे।

71-आपका मकतूबे गिरामी

(मन्ज़र बिन जारुद अबदी के नाम जिसने बाज़ आमाल में ख़यानत से काम लिया)

अम्माबाद! तेरे बाप की शराफ़त ने मुझे तेरे बारे में धोके में रखा और मैं समझा के तू उसी के रास्ते पर चल रहा है और उसी के तरीक़े पर गामज़न है, लेकिन ताज़ा तरीन अख़बार से अन्दाज़ा होता है के तूने ख़्वाहिशात की पैरवी में कोई कसर नहीं उठा रखी है और आख़ेरत के लिये कोई ज़ख़ीरा नहीं किया है, आखे़रत को बरबाद करके दुनिया को आबाद कर रहा है और दीन से रिश्ता तोड़कर क़बीले से रिश्ता जोड़ रहा है। अगर मेरे पास आने वाली ख़बरें सही हैं तो तेरे घरवालों का ऊंट और तेरे जूते का तस्मा भी तुझसे बेहतर है और जो तेरा जैसा हो उसके ज़रिये न रखने को बन्द किया जा सकता है न किसी अम्र को नाफ़िज़ किया जा सकता है और न उसके मरतबे को बलन्द किया जा सकता है न उसे किसी अमानत में शरीक किया जा सकता है, न माल की जमाआवरी पर अमीन समझा जाऐ लेहाज़ा जैसे ही मेरा यह ख़त मिले फ़ौरन मेरी तरफ़ चल पड़ो, इन्शाअल्लाह।

सय्यद रज़ी- मन्ज़र बिन अलजारूदः यह वही शख़्स है जिसके बारे में अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने फ़रमाया था के यह अपने बाज़ुओं को बराकर देखता रहता है और अपनी चादरों में झूम कर चलता है और जूती के तस्मों को फूंकता रहता है (यानी इन्तेहाई मग़रूर और मुतकब्बिर क़िस्म का आदमी है)

72-आपका मकतूबे गिरामी

(अब्दुल्लाह बिन अब्बास के नाम)

अम्माबाद! न तुम अपनी मुद्दते हयात से आगे बढ़ सकते हो और न अपने रिज़्क़ से ज़्यादा हासिल कर सकते हो, और याद रखो के ज़माने के दो दिन होते हैं, एक तुम्हारे हक़ में और एक तुम्हारे खि़लाफ़ और यह दुनिया हमेशा करवटें बदलती रहती है लेहाज़ा जो तुम्हारे हक़ में है वह कमज़ोरी के बावजूद तुम तक आ जाएगा और जो तुम्हारे खि़लाफ़ है उसे ताक़त के बावजूद तुम नहीं टाल सकते हो।

73-आपका मकतूबे गिरामी

(माविया के नाम)

अम्माबाद! मैं तुमसे ख़त व किताबत करने और तुम्हारी बात सुनने में अपनी राय की कमज़ोरी और अपनी दानिशमन्दी की ग़लती का एहसास कर रहा हूँ और तुम बार-बार मुझसे अपनी बात मनवाने और ख़त व किताबत जारी रखने की कोशिश करने में ऐसे ही हो जैसे कोई बिस्तर पर लेटा ख़्वाब देख रहा हो और उसका ख़्वाब ग़लत साबित हो या कोई हैरतज़दा मुंह उठाए खड़ा हो और यह क़याम भी उसे महंगा पड़े और यही न मालूम हो के आने वाली चीज़ इसके हक़ में मुफ़ीद है या मुज़िर, तुम बिलकुल यही शख़्स नहीं हो लेकिन इसी के जैसे हो और ख़ुदा की क़सम के अगर किसी हद तक बाक़ी रखना मेरी मसलेहत न होता तो तुम तक ऐसे हवादिस आते जो हड्डियों को तोड़ देते और गोश्त का नाम तक न छोड़ते और याद रखो के यह शैतान ने तुम्हें बेहतरीन काम की तरफ़ रूजू करने और उमदा तरीन नसीहतों के सुनने से रोक रखा है और सलाम इसके अहल पर।

74- आपका मुआहेदा (संधी)

(जिसे रंबीया और अहले यमन के दरम्यान तहरीर फ़रमाया है और यह हश्शाम की तहरीर से नक़्ल किया गया है)

यह वह अहद है जिस पर अहले यमन के शहरी और देहाती और क़बीलए रंबीया के शहरी और देहाती सबने इत्तेफ़ाक़ किया है के सबके सब किताबे ख़ुदा पर साबित रहेंगे और उसी की दावत देंगे, जो उसकी तरफ़ दावत देगा और उसके ज़रिये हुक्म देगा उसकी दावत पर लब्बैक कहेंगे, न उसको किसी क़ीमत पर फ़रोख़्त करेंगे और न उसके किसी बदल पर राज़ी होंगे।

(((-अरब के वह क़बाएल जिनका सिलसिलाए नसब क़हतान बिन आमिर तक पहुंचता है उन्हें यमन से ताबीर किया जाता है और जिन का सिलसिला रंबीया बिन नज़ार से मिलता है उन्हें रंबीया के नाम से याद किया जाता है, दौरे जाहेलीयत में दोनों में शदीद इख़्तेलाफ़ात थे लेकिन इस्लाम लाने के बाद दोनों मुत्तहिद हो गए, वलहम्दो लिल्लाह।-)))

इस अम्र के मुख़ालिफ़ और इसके नज़र अन्दाज़ करने वाले के खि़लाफ़ मुत्तहिद रहेंगे और किसी सरज़न्श करने वाले की सरज़न्श पर इस अहद को तोड़ेंगे और न किसी ग़ैज़ व ग़ज़ब से राह में मुतासिर होंगे, और न किसी क़ौम को ज़लील करने या गाली देने का वसीला क़रार देंगे, इसी बात पर हाज़ेरीन भी क़ायम रहेंगे और ग़ायबीन भी इसी पर कम अक़्ल भी कारबन्द रहेंगे और आलिम भी, इसी की पाबन्दी साहेबाने दानिश भी करेंगे और जाहिल भी, फिर इसके बाद उनके ज़िम्मे अहदे इलाही और मीसाक़े परवरदिगार की पाबन्दी भी लाज़िम हो गई है और अहदे इलाही के बारे में रोज़े क़यामत भी सवाल किया जाएगा- कातिब अली (अ0) बिन अबी तालिब |

75-आपका मकतूबे गिरामी

(माविया के नाम, अपनी बैअत के इब्तेदाई दौर में जिसका ज़िक्र वाक़दी ने किताबुल जमल में किया है)

बन्दए ख़ुदा, अमीरूल मोमेनीन अली (अ0) की तरफ़ से माविया बिन अबी सुफ़ियान के नाम

अम्माबाद! तुम्हें मालूम है के मैंने अपनी तरफ़ से हुज्जत तमाम कर दी है और तुमसे किनारा कशी कर ली है मगर फिर भी वह बात होकर रही जिसे होना था और जिसे टाला नहीं जा सकता था, यह बात बहुत लम्बी है और इसमें गुफ़्तगू बहुत तवील है लेकिन अब जिसे गुज़रना था वह गुज़र गया और जिसे आना था वह आ गया। अब मुनासिब यही है के अपने यहां के लोगों से मेरी बैअत ले लो और सबको लेकर मेरे पास हाज़िर हो जाओ, वस्सलाम।

76-आपकी वसीयत

(अब्दुल्लाह बिन अब्बास के लिये, जब उन्हें बसरा का वाली क़रार दिया)

लोगों से मुलाक़ात करने में उन्हें अपनी बज़्म में जगह देने में और उनके दरम्यान फ़ैसला करने में वुसअत से काम लो और ख़बरदार ग़ैज़ व ग़ज़ब से काम न लेना के यह शैतान की तरफ़ से हलकेपन का नतीजा है और याद रखो के जो चीज़ अल्लाह से क़रीब बनाती है वही जहन्नम से दूर करती है और जो चीज़ अल्लाह से दूर करती है वही जहन्नम से क़रीब बनाती है।

77-आपकी वसीयत

(अब्दुल्लाह बिन अब्बास के नाम- जब उन्हें ख़वारिज के मुक़ाबले में एतमामे हुज्जत के लिये इरसाल फ़रमाया)

देखो उनसे क़ुरान के बारे में बहस न करना के उसके बहुत से वुजूह व एहतेमालात होते हैं और इस तरह तुम अपनी कहते रहोगे और वह अपनी कहते रहेंगे, बल्कि उनसे सुन्नत के ज़रिये बहस करो के इससे बच कर निकल जाने का कोई रास्ता न होगा।

78-आपका मकतूबे गिरामी

(अबू मूसा अशअरी के नाम)

-हकमीन के सिलसिले में इसके एक ख़त के जवाब में जिसका तज़़़किरा सईद बिन यहया ने “मग़ाज़ी’में किया है)

कितने ही लोग ऐसे हैं जो आखे़रत की बहुत सी सआदतों से महरूम हो गए हैं, दुनिया की तरफ़ झुक गए हैं और ख़्वाहिशात के मुताबिक़ बोलने लगे हैं मैं उस अम्र की वजह से एक हैरत व इस्तेजाब की मन्ज़िल में हूँ जहां ऐसे लोग जमा हो गए हैं जिन्हें अपनी ही बात अच्छी लगती है, मैं उनके ज़ख़्म का मदावा तो कर रहा हूँ लेकिन डर रहा हूँ के कहीं यह मुनजमिद ख़ून की शक्ल न इख़्तेयार कर ले।

और याद रखो के उम्मते पैग़म्बर (स0) की शीराज़ाबन्दी और उसके इत्तेहाद के लिये समझ से ज़्यादा ख़्वाहिशमन्द कोई नहीं है जिसके ज़रिये मैं बेहतरीन सवाब और सरफ़राज़ी आखि़रत चाहता हूँ और मैं बहरहाल अपने अहद को पूरा करूंगा चाहे तुम इस बात से पलट जाओ जो आखि़री मुलाक़ात तक तुम्हारी ज़बान पर थी , यक़ीनन बदबख़्त वह है जो अक़्ल व तजुर्बे के होते हुए भी इसके फ़वाएद से महरूम रहे, मैं तो इस बात पर नाराज़ हूँ के कोई शख़्स हर्फ़े बातिल ज़बान पर जारी करे या किसी ऐसे अम्र को फ़़ासिद कर दे जिसकी ख़ुदा ने इस्लाह कर दी है लेहाज़ा जिस बात को तुम नहीं जानते हो उसको नज़रअन्दाज़ कर दो के शरीर लोग बड़ी बातें तुम तक पहुंचाने के लिये उड़कर पहुंचा करेंगे, वस्सलाम।

79-आपका मकतूबे गिरामी

(खि़लाफ़त के बाद, लशकर के सरदारो के नाम)

अम्माबाद! तुमसे पहले वाले सिर्फ़ इस बात से हलाक हो गए के उन्होंने लोगों के हक़ रोक लिये और उन्हें रिश्वत देकर ख़रीद लिया और उन्हें बातिल का पाबन्द बनाया तो सब उन्हीं के रास्तों पर चल पड़े।


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