नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

42-आपका मकतूबे गिरामी

(बहरीन के गवर्नर अम्र बिन अबी सलमा मख़जू़मी के नाम जिन्हें माज़ूल करके नोमान बिन अजलान अज़्ज़रक़ी को मोअय्यन किया था)

अम्माबाद! मैंने नोमान बिन अजलान अज़्ज़र्क़ी को बहरीन का गवर्नर बना दिया है और तुम्हें उससे बेदख़ल कर दिया है लेकिन न इसमें तुम्हारी कोई बुराई है और न मलामत, तुमने हुकूमत का काम बहुत ठीक तरीक़े से चलाया है और अमानत को अदा कर दिया है लेकिन अब वापस चले आओ न तुम्हारे बारे में कोई बदगुमानी है न मलामत, न इल्ज़ाम है न गुनाह, असल में मेरा इरादा शाम के ज़ालिमों से मुक़ाबला करने का है लेहाज़ा मैं चाहता हूं के तुम मेरे साथ रहो के मैं तुम जैसे अफ़राद से दुश्मन से जंग करने और सुतूने दीम क़ायम करने में मदद लेना चाहता हूँ, इन्शाअल्लाह।

43-आपका मकतूबे गिरामी (मुस्क़ला बिन हबीरा अलशीबानी के नाम जो अर्द शीर ख़ुर्रह में आपके गवर्नर थे)

मुझे तुम्हारे बारे में एक ख़बर मिली जो अगर वाक़ेअन सही है तो तुमने अपने परवरदिगार को नाराज़ किया है और अपने इमाम की नाफ़रमानी की है, ख़बर यह है के मुसलमानों के माले ग़नीमत को जिसे उनके नैज़ों और घोड़ों ने जमा किया है और जिसकी राह में इनका ख़ून बहाया गया है, अपनी क़ौम के उन बद्दुओं में तक़सीम कर रहे हो जो तुम्हारे हवाख़्वाह हैं। क़सम उस ज़ात की जिसने दाने को शिगाफ़्ता किया है और जानदारों को पैदा किया है। अगर यह बातसही है तो तुम मेरी नज़रों में इन्तेहाई ज़लील हो गए हो और तुम्हारे आमाल का पल्ला हल्का हो जाएगा, लेहाज़ा ख़बरदार अपने रब के हुक़ूक़ को मामूली मत समझना और अपने दीन को बरबाद करके दुनिया आरास्ता करने की फ़िक्र न करना के तुम्हारा शुमार उन लोगों में हो जाए जिनके आमाल में ख़सारे के अलावा कुछ नहीं है।

याद रखो! जो मुसलमान तुम्हारे पास या मेरे पास हैं उन सबका हिस्सा उस माले ग़नीमत एक ही जैसा है और इसी ऐतबार से वह मेरे पास वारिद होते हैं और अपना हक़ लेकर चले जाते हैं।

44-आपका मकतूबे गिरामी

(ज़ियाद बिन अबिया के नाम जब आपको ख़बर मिली के माविया उसे अपने नसब में शामिल करके धोका देना चाहता है)

मुझे मालूम हुआ है के माविया ने तुम्हें ख़त लिखकर तुम्हारी अक़्ल को फ़िसलाना चाहा है और तुम्हारी धार को कुन्द बनाने का इरादा कर लिया है, लेहाज़ा ख़बरदार होशियार रहना, यह शैतान है जो इन्सान के पास आगे, पीछे, दाहिने बायें हर तरफ़ से आता है ताके उसे ग़ाफ़िल पाकर उस पर टूट पड़े और ग़फ़लत की हालत में उसकी अक़्ल सल्ब कर ले। (((-अमीरूल मोमेनीन (अ0) का उसूले हूकूमत था के गवर्नरो पर हमेशा कड़ी निगाह रखते थे और उनके तसर्रूफ़ात की निगारानी किया करते थे और जहां किसी ने हुदूदे इस्लामिया से तजावुज़ किया , फ़ौरन तम्बीही ख़त तहरीर फ़रमा दिया करते थे और यही वह तजेऱ् अमल था जिसकी बिना पर बहुत से अफ़राद टूट कर माविया के साथ चले गए और दीन व दुनिया दोनों को बरबाद कर लिया, हबीरह उन्हीं अफ़राद में था और जब हज़रत ने उसके तसर्रूफ़ात पर तन्क़ीद फ़रमाई तो मुनहरिफ़ होकर शाम चला गया और माविया से मुलहक़ हो गया लेकिन आपका किरदार शाम के अन्धेरे में चमकता रहा और आज तक दुनिया को इस्लाम की रौशनी दिखला रहा है।-)))

वाक़ेया यह है के अबू सुफ़ियान ने अम्र बिन अलख़त्ताब के ज़माने में एक बेसमझी बूझी बात कह दी थी जो शैतानी वसवसों में से एक वसवसे की हैसियत रखती थी जिससे न कोई नसब साबित होता है और न किसी मीरास का इसतेहक़ाक़ पैदा होता है और इससे तमस्सुक करने वाला एक बिन बुलाया शराबी है जिसे धक्के देकर निकाल दिया जाए या प्याला है जो ज़ीने फ़रस में लटका दिया जाए और इधर-उधर ढलकता रहे। सय्यद रज़ी- इस ख़त को पढ़ने के बाद ज़ियाद ने कहा के रब्बे काबा की क़सम अली (अ0) ने उस अम्र की गवाही दे दी और यह बात उसके दिल से लगी रही यहां तक के माविया ने उसके भाई होने का इदआ कर दिया। वाग़ल उस शख़्स को कहा जाता है जो बज़्मे शराब में बिन बुलाए दाख़िल हो जाए और धक्के देकर निकाल दिया जाए। और नूत मजबेज़ब वह प्याला वग़ैरा है जो मुसाफ़िर के सामान से बान्ध कर लटका दिया जाता है और वह मुसलसल इधर उधर ढलकता रहता है।

45-आपका मकतूबे गिरामी

(अपने बसरा के गवर्नर उस्मान बिन हुनैफ़ के नाम जब आपको इत्तेलाअ मिली के वह एक बड़ी दावत में शरीक हुए हैं)

अम्माबाद! इब्ने हुनैफ़! मुझे यह ख़बर मिली है के बसरा के बाज़ जवानों ने तुमको एक दावत में बुलाया था जिसमें तरह-तरह के ख़ुशगवार खाने थे और तुम्हारी तरफ़ बड़े-बड़े प्याले बढ़ाए जा रहे थे और तुम तेज़ी से वहां पहुंच गए थे। मुझे तो यह गुमान भी नहीं था के तुम ऐसी क़ौम की दावत में शिरकत करोगे जिसके ग़रीबों पर ज़ुल्म हो रहा हो और जिसके दौलतमन्द मदओ किये जाते हों, देखो जो लुक़मे चबाते हो उसे देख लिया करो और अगर उसकी हक़ीक़त मुश्तबा हो तो उसे फेंक दिया करो और जिसके बारे में यक़ीन हो के पाकीज़ा है उसी को इस्तेमाल किया करो। याद रखो! के हर मामूम का एक इमाम होता है जिसकी वह इक़्तेदा करता है और उसी को नूरे इल्म से कस्बे ज़िया करता है और तुम्हारे इमाम ने तो इस दुनिया में सिर्फ़ दो बोसीदा कपड़ों और दो रोटियों पर गुज़ारा किया है। मुझे मालूम है के तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते हो लेकिन कम से कम अपनी एहतियात, कोशिश, उफ़्फ़त और सलामत रवी से मेरी मदद करो, ख़ुदा की क़सम मैंने तुम्हारी दुनिया से न कोई सोना जमा किया है और न उस माल व मताअ में से कोई ज़ख़ीरा इकट्ठा किया है और न इन बोसीदा कपड़ों के बदले कोई और मामूली कपड़ा मुहय्या किया है। (((-उस्मान बिन हुनैफ़ अनसार के क़बीलए औस की एक नुमायां शख़्सियत थे और यही वजह है के जब खि़लाफ़ते दोम में ईराक़ के वाली की तलाश हुई तो सबने बिलाइत्तेफ़ाक़ उस्मान बिन हुनैफ़ का नाम लिया और उन्हें अर्ज़े इराक़ की पैमाइश और इसके ख़ेराज की तअय्युन का ज़िम्मेदार बना दिया गया। अमीरूलमोमेनीन (अ0) ने अपने दौरे हुकूमत में उन्हें बसरा का वाली बना दिया था और वह तल्हा व ज़ुबैर के वारिद होने तक बराबर मसरूफ़े अमल रहे और इसके बाद उन लोगों ने सारे हालात ख़राब कर दिये और बाला आखि़र हज़रत की शहादत के बाद कूफ़े मुन्तक़िल हो गए और वहीं इन्तेक़ाल फ़रमाया। उस्मान के किरदार में किसी तरह के शक व शुब्हे की गुन्जाइश नहीं है लेकिन अमीरूल मोमेनीन (अ0) का इस्लामी निज़ामे अमल यह था के हुक्काम को अवाम के हालात को निगाह में रख कर ज़िन्दगी गुज़ारनी चाहिये और किसी हाकिम की ज़िन्दगी को अवाम के हालात से बालातर नहीं होनी चाहिये जिस तरह के हज़रत ने ख़ुद अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी है और मामूली लिबास व ग़िज़ा पर पूरा दौरे हुकूमत गुज़ार दिया है।-)))

और न एक बालिश्त पर क़ब्ज़ा किया है और न एक बीमार जानवर से ज़्यादा ग़िज़ा हासिल किया है। यह दुनिया मेरी निगाह में कड़वी छाल से भी ज़्यादा हक़ीर और बेक़ीमत है, हां हमारे हाथों में उस आसमान के नीचे सिर्फ़ एक फ़िदक था मगर उस पर भी एक क़ौम ने अपनी लालच का मुज़ाहिरा किया और दूसरी क़ौम ने उसके जाने की परवाह न की और बहरहाल बेहतरीन फ़ैसला करने वाला परवरदिगार है और वैसे भी मुझे फ़िदक या ग़ैरे फ़िदक से क्या लेना देना है जबके नफ़्स की मन्ज़िल असली कल के दिन क़ब्र है जहां की तारीकी में तमाम आसार मुन्क़ता हो जाएंगे और कोई ख़बर न आएगी, यह एक ऐसा गढ़ा है जिसकी वुसअत ज़्यादा भी कर दी जाए और खोदने वाला उसे वसीअ भी बना दे तो बाला आखि़र पत्थर और ढेले उसे तंग बना देंगे और तह ब तह मिट्टी उसके शिगाफ़ को बन्द कर देगी। मैं तो अपने नफ़्स को तक़वा की तरबियत दे रहा हूँ ताके अज़ीम तरीन ख़ौफ़ के दिन मुतमइन होकर मैदान में आए और फिसलने के मुक़ामात पर साबित क़दम रहे। मैं अगर चाहता तो इस ख़ालिस शहद, बेहतरीन साफ़ शुदा गन्दुम और रेशमी कपड़ों के रास्ते भी पैदा कर सकता था लेकिन ख़ुदा न करे के मुझ पर ख़्वाहिशात का ग़लबा हो जाए और मुझे हिर्स व लालच अच्छे खानों के इख़्तेयार करने की तरफ़ खींच कर ले जाएं जबके मुमकिन है के हेजाज़ या यमामा में ऐसे अफ़राद भी हों जिनके लिये एक रोटी का सहारा न हुआ और शिकम सेरी का कोई सामान न हो। भला यह कैसे हो सकता है के मैं शिकम सेर होकर सो जाऊं और मेरी इतराफ़ भूके पेट और प्यासे जिगर तड़प् रहे हों। क्या मैं शाएर के शेर का मिस्दाक़ हो सकता हूं—”तेरी बीमारी के लिये यही काफ़ी है के तू पेट भर कर सो जाए और तेरे इतराफ़ वह जिगर भी हों जो सूखे चमड़े को भी तरस रहे हों”

के न मेरा नफ़्स इस बात से मुतमईन हो सकता है के मुझे “अमीरूल मोमेनीन”कहा जाए और मैं ज़माने के नाख़ुशगवार हालात में मोमेनीन का शरीके हाल न बनूं और मामूली ग़िज़ा के इस्तेमाल में उनके वास्ते नमूना न पेश कर सकूं। मैं इसलिये तो नहीं पैदा किया गया हूं के मुझे बेहतरीन ग़िज़ाओं का खाना मशग़ूल कर ले और मैं जानवरों के मानिन्द हो जाऊं के वह बन्धे होते हैं तो उनका कुल मक़सद चारा होता है और आज़ाद होते हैं तो कुल मशग़ला इधर-उधर चरना होता है जहां घास फूस से अपना पेट भर लेते हैं और उन्हें इस बात की फ़िक्र भी नहीं होती है के उनका मक़सद क्या है, क्या मैं आज़ाद छोड़ दिया गया हूँ, या मुझे बेकार आज़ाद कर दिया गया है या मक़सद यह है के मैं गुमराही की रस्सी में आन्ध कर खींचा जाऊं। (((-आज दुनिया के ज़ोहद व तक़वा का बेशतर हिस्सा मजबूरियों की पैदावार है और इन्सान को जब दुनिया हासिल नहीं होती है तो वह दीन के ज़ेरे साया पनाह ले लेता है और ज़िक्रे आखि़रतत से अपने नफ़्स को बहलाता है लेकिन अमीरूल मोमेनीन (अ0) का किरदार इससे बिलकुल मुख़्तलिफ़ है , आपके हाथों में दुनिया व आखि़रत का इख़्तेयार था, आपके बाज़ुओं में ज़ोरे ख़ैबर शिकमी और आपकी उंगलियों में क़ूवते रद्दे शम्स थी लेकिन इसके बावजूद फ़ाक़े कर रहे थे ताके इस्लाम में रियासत और हुकूमत ऐश परस्ती का ज़रिया न बन जाए और एहकाम अपनी सहूलियत का एहसास करें और अपनी ज़िन्दगी को ग़ुरबा के मेयार पर गुज़ारें ताके इनका दिल न टूटने पाए और इनके नफ़्स में ग़ुरूर न पैदा होने पाए, मगर अफ़सोस के दुनिया से यह तसव्वुर यकसर ग़ायब हो गया और रियासत व हुकूमत सिर्फ़ राहत व आराम और अय्याशी व ऐश परस्ती का वसीला बन कर रह गई। इन हालात की जुज़ी इस्लाह ग़ुलामाने अली (अ0) के इस्लामी निज़ाम से हो सकती है और कुल इस्लाह फ़रज़न्दग अली (अ0) के ज़ुहूर से हो सकती है। इसके अलावा बनी उमय्या और बनी अब्बास पर नाज़ करने वाले सलातीन इन हालात की इस्लाह नहीं कर सकते हैं। इन्सान और जानवर का नुक़्तए इम्म्तेयाज़ यही है के जानवर के यहाँ खाना और चारा मक़सदे हयात है और इन्सान के यहाँ यह अशया वसीलाए हयात हैं , लेहाज़ा इन्सान जब तक मक़सदे हयात और बन्दगीए परवरदिगार का तहफ़्फ़ुज़ करता रहेगा इन्सान रहेगा और जिस दिन इस नुक्ते से ग़ाफ़िल हो जाएगा उसका शुमार हैवानात में हो जाएगा।-)))

या भटकने की जगह पर मुंह उठाए फिरता रहूँ, गोया मैं देख रहा हूँ के तुम में से बाज़ लोग यह कह रहे हैं के जब अबूतालिब के फ़रज़न्द की ग़िज़ा ऐसी मामूली है तो उन्हें ज़ोफ़ ने दुश्मनों से जंग करने और बहादुरों के साथ मैदान में उतरने से बिठा दिया होगा। तो यह याद रखना के जंगल के दरख़्तों की लकड़ी ज़्यादा मज़बूत होती है और तरो ताज़ा दरख़्तों की छाल कमज़ोर होती है। सहराई झाड़ का ईन्धन ज़्यादा भड़कता भी है और इसके शोले देर में बुझते भी हैं। मेरा रिश्ता रसूले अकरम (स0) से वही है जो नूर का रिश्ता नूर से होता है या हाथ का रिश्ता बाज़ुओं से होता है। ख़ुदा की क़सम अगर तमाम अरब मुझसे जंग करने पर इत्तेफ़ाक़ कर लें तो भी मैं मैदान से मुंह नहीं फेर सकता और अगर मुझे ज़रा भी मौक़ा मिल जाए तो मैं इनकी गर्दनें उड़ा दूंगा और इस बात की कोशिश करूंगा के ज़मीन को इस उलटी खोपड़ी और बेहंगम डील-डौल वाले से पाक कर दूँ ताके खलियान के दानों में से कंकर पत्थर निकल जाएं। (इस ख़ुतबे का आखि़री हिस्सा) ऐ दुनिया मुझसे दूर हो जा , मैंने तेरी बागडोर तेरे ही कान्धे पर डाल दी है और तेरे चंगुल से बाहर आ चुका हूँ और तेरे जाल से निकल चुका हूं और तेरे फिसलने के मुक़ामात की तरफ़ जाने से भी परहेज़ करता हूँ। कहाँ हैं वह लोग जिनको तूने अपनी हंसी मज़ाक़ की बातों से लुभा लिया था और कहां हैं वह क़ौमें जिनको अपनी ज़ीनत व आराइश से मुब्तिलाए फ़ितना कर दिया था, देखो अब वह सब क़ब्रों में रहन हो चुके हैं और लहद में दुबके पड़े हुए हैं। ख़ुदा की क़सम अगर तू कोई देखने वाली शै और महसूस होने वाला ढांचा होती तो मैं तेरे ऊपर ज़रूर हद जारी करता के तूने अल्लाह के बन्दों को आरज़ूओं के सहारे धोका दिया है और क़ौमों को गुमराही के गढ़े में डाल दिया है, बादशाहों को बरबादी के हवाले कर दिया है और उन्हें बलाओं की मन्ज़िल पर उतार दिया है जहां न कोई वारिद होने वाला है और न सादिर होने वाला। अफ़सोस! जिसने भी तेरी लग़ज़िश गाहों पर क़दम रखा वह फिसल गया और जो तेरी मौजों पर सवार हुआ वह ग़र्क़ हो गया, बस जिसने तेरे फन्दों से किनाराकशी इख़्तेयार की उसको तौफ़ीक़ हासिल हो गई, तुझसे बचने वाला इस बात की परवाह नहीं करता है के मन्ज़िल किस क़द्र तंग हो गई है। इसलिये के दुनिया इसकी निगाह में सिर्फ़ एक दिन के बराबर है जिसके एख़्तेताम का वक़्त हो चुका है। (((-बाज़ अफ़राद का ख़याल है के इन्सानी ज़िन्दगी में ताक़त का सरचश्मा इसकी ग़िज़ा होती है और इन्सान की ग़िज़ा जिस क़द्र लज़ीज़ और ख़ुश ज़ायक़ा होगी इन्सान उसी क़द्र हिम्मत और ताक़त वाला होगा हालांके यह बात बिल्कुल ग़लत और महमिल है। ताक़त का ताल्लुक़ लज़्ज़त व ज़ायक़े से नहीं है, क़ूवते नफ़्स और हिम्मते क़ल्ब से और इससे बालातर ताईदे परवरदिगार से के दस्ते क़ुदरत से सेराब होने वाला सहराई दरख़्त ज़्यादा मज़बूत होता है और इमकानात के अन्दर तरबियत पाने वाले अशजार इन्तेहाई कमज़ोर होते हैं के दस्ते बशर वह ताक़त नहीं पैदा कर सकता है जो दस्ते क़ुदरत से पैदा होती है। लफ़्ज़ों में यह बात बहुत आसान है लेकिन सजी सजाई दुनिया को तीन मरतबा तलाक़ देकर अपने से जुदा कर देना सिर्फ़ नफ़्से पैग़म्बर (स0) का कारनामा है और उम्मत के बस का काम नहीं है। यह काम वही अन्जाम दे सकता है जो नफ़्स के चंगुल से आज़ाद हो , ख़्वाहिशात के फन्दों में गिरफ़्तार न हो और हर तरह की ज़ीनत व आराइश को अपनी निगाहों से गिरा चुका हो।-)))

तू मुझसे दूर हो जा, मैं तेरे क़ब्ज़े में आने वाला नहीं हूँ के तू मुझे ज़लील कर सके और न अपनी ज़माम तेरे हाथ में देने वाला हूँ के जिधर चाहे खींच सके, मैं ख़ुदा की क़सम खाकर कहता हूँ, और इस क़सम में मशीयते ख़ुदा के अलावा किसी सूरत को मुस्तशना नहीं करता। मैं इस नफ़्स को ऐसी तरबीयत दूंगा के एक रोटी पर भी ख़ुश रहे अगर वह बतौरे तआम और नमक बतौरे अदाम मिल जाए और मैं अपनी आंखों के सोने को ऐसा बना दूंगा जैसे वह चश्मा जिसका पानी तक़रीबन ख़ुश्क हो चुका हो और सारे आंसू बह गए हों, क्या यह मुमकिन है जिस तरह जानवर चारा खाकर बैठ जाते हैं और बकरियां घास से सेर होकर अपने बाड़े में लेट जाती हैं उसी तरह अली (अ0) भी अपने पास का खाना खाकर सो जाए , उसकी आंखें फूट जाएं जो एक तवील ज़माना गुज़ारने के बाद आवारा जानवर और चराए हुए हैवानात की पैरवी करने लगे। खुशा नसीब उस नफ़्स के लिये जो अपने रब के फ़र्ज़ को अदा कर दे और सख्तियो के आलम में सब्र से काम ले, रातों को अपनी आंखों को खुला रखे यहां तक के नीन्द का ग़लबा होने लगे तो ज़मीन को बिस्तर बना ले और हाथों को तकिया, इन लोगों के दरम्यान जिनकी आंखों को ख़ौफ़े महशर ने बेदार रखा है और जिन के पहलू बिस्तरों से अलग रहे हैं उनके होंटों पर ज़िक्रे ख़ुदा के ज़मज़मे रहे हैं और उनके तूले अस्तग़फ़ार से गुनाहों के बादल छट गए हैं यही वह लोग हैं जो अल्लाह के गिरोह में हैं और याद रखो के अल्लाह का गिरोह ही कामयाब होने वाला है। इब्ने हनीफ़! अल्लाह से डरो, और तुम्हारी यह रोटियां तुम्हें हिर्स व लालच से रोके रहें ताके आतिशे जहन्नमसे आज़ादी हासिल कर सको।

(((-कहां दुनिया में ऐसा कोई इन्सान है जो साहबे जाहो जलाल, इक़्तेदार व बैतुलमाल हो, दुनिया में उसका सिक्का चल रहा हो और आलमे इस्लाम के ज़ेरे नगीं हो और इसके बाद या तो रातों को बेदारी और इबादते इलाही में गुज़ार दे या सोने का इरादा करे तो ख़ाक का बिस्तर और हाथ का तकिया बना ले, सलातीने ज़माना और हुक्कामे मुस्लेमीन तो इस सूरते हाल का तसव्वुर भी नहीं कर सकते हैं। इस किरदार के पैदा करने का क्या सवाल पैदा होता है।

वाज़ेह रहे के यह मौलाए कायनात की शख़्सी ज़िन्दगी का नक़्शा नहीं है, यह हाकिमे इस्लामी और ख़लीफ़तुल्लाह का मन्सबी किरदार है जिसे अवामी मफ़ादात आौर इस्लामी मुक़द्देरात का ज़िम्मेदार बनाया जाता है। इसके किरदार को ऐसा होना चाहिये और इसकी ज़िन्दगी में इसी क़िस्म की सादगी दरकार है, इन्सान के नफ़्से क़ुद्सी के पैदा करने का अज़म मोहकम करे वरना न इस्लामी तख़्त व इक़तेदार को छोड़कर ज़ुल्म व सितम की बिसात पर ज़िन्दगी गुज़ार दे और अपने को आलमे इस्लाम का हाकिम कहने और इरादा न करे वमा तौफ़ीक़ी इल्ला बिल्लाह-)))

46-आपका मकतूबे गिरामी (बाज़ गवर्नर के नाम)

अम्माबाद! तुम उन लोगों में हो जिनसे मैं दीन के क़याम के लिये मदद लेता हूँ और गुनहगारों की नख़वत को तोड़ देता हूँ और सरहदों के ख़तरात की हिफ़ाज़त करता हूँ लेहाज़ा अपने अहम उमूर में अल्लाह से मदद तलब करना और अपनी शिद्दत में थोड़ी नर्मी भी शामिल कर लेना, जहां तक नर्मी मुनासिब हो नर्मी ही से काम लेना और जहां सख़्ती के अलावा कोई चाराए कार न हो वहां सख़्ती ही करना, रिआया के साथ तवाज़ो से पेश आना और कुशादारवी का बरताव करना, अपना रवैया नर्म रखना और नज़र भर के देखने या कनखियों से देखने में भी बराबर का सुलूक करना और इशारा व सलाम में भी मसावात से काम लेना ताके बड़े लोग तुम्हारी नाइन्साफ़ी से उम्मीद न लगा बैठे और कमज़ोर अफ़राद तुम्हारे इन्साफ़ से मायूस न हो जाएं। वस्सलाम

47- आपकी वसीयत (इमाम हसन (अ0) और इमाम हुसैन (अ0) से- इब्ने मुलजिम की तलवार से ज़ख़्मी होने के बाद)

मैं तुम दोनों को यह वसीयत करता हूं के तक़वाए इलाही इख़्तेयार किये रहना और ख़बरदार दुनिया लाख तुम्हें चाहे उससे दिल न लगाना और न उसकी किसी शै से महरूम हो जाने पर अफ़सोस करना, हमेशा हर्फ़े हक़ कहना और हमेशा आखि़रत के लिये अमल करना और देखो ज़ालिम के दुश्मन रहना और मज़लूम के साथ रहना। मैं तुम दोनों को और अपने तमाम अहल व अयाल को और जहां तक मेरा यह पैग़ाम पहुंचे, सब को वसीयत करता हूं के तक़वाए इलाही इख़्तेयार करें, अपने उमूर को मुनज़्ज़म रखें, अपने दरम्यान ताल्लुक़ात को सुधारे रखें के मैंने अपने जद्दे बुज़ुर्गवार से सुना है के आपस के मामलात को सुलझाकर रखना आम नमाज़ और रोज़े से भी बेहतर है। देखो यतीमों के बारे में अल्लाह से डरते रहना और उनके फ़ाक़ों की नौबत न आजाए और वह तुम्हारी निगाहों के सामने बरबाद न हो जाएं और देखो हमसाये के बारे में अल्लाह से डरते रहना के उनके बारे में तुम्हारे पैग़म्बर (स0) की वसीयत है और आप (स0) बराबर उनके बारे में नसीहत फ़रमाते रहते थे यहां तक के हमने ख़याल किया के शायद आप वारिस भी बनाने वाले हैं। (((- यह इस बात की अलामत है के इस्लाम का बुनियादी मक़सद मुआशरे की इस्लाह समाज की तन्ज़ीम और उम्मत के मामलात की तरतीब है और नमाज़ रोज़े को भी दर हक़ीक़त इसका एक ज़रिया बनाया गया है वरना परवरदिगार किसी की इबादत और बन्दगी का मोहताज नहीं है और इसका तमामतर मक़सद यह है के इन्सान पेश परवरदिगार अपने को हक़ीर व फ़क़ीर समझे और इसमें यह एहसास पैदा हो के मैं भी तमाम बन्दगाने ख़ुदा में से एक बन्दा हूँ और जब सब एक ही ख़ुदा के बन्दे हैं और उसी की बारगाह में जाने वाले हैं तो आपस के तफ़रिक़े का जवाज़ क्या है और यह तफ़रिक़ा कब तक बरक़रार रहेगा। बालाआखि़र को एक दिन उसकी बारगाह में एक दूसरे का सामना करना है। इसके बाद अगर कोई शख़्स इस जज़्बे से महरूम हो जाए और शैतान उसके दिल व दिमाग़ पर मुसल्लत हो जाए तो दूसरे अफ़राद का फ़र्ज़ है के इस्लामी क़दम उठाएं और मुआशरे में इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ की फ़िज़ा क़ायम करें के यह मक़सदे इलाही की तकमील और इरतेक़ाए बशरीयत की बेहतरीन अलामत है , नमाज़ रोज़ा इन्सान के ज़ाती आमाल हैं, और समाज के फ़साद से आंखें बन्द करके ज़ाती आमाल की कोई हैसियत नहीं रह जाती है। वरना अल्लाह के मासूम बन्दे कभी घर से बाहर ही न निकलते और हमेशा सजदए परवरदिगार ही में पड़े रहते।-)))

देखो! अल्लाह से डरो क़ुरआन के बारे में के इस पर अमल करने में दूसरे लोग तुमसे आगे न निकल जाएं और अल्लाह से डरो नमाज़ के बारे में के वह तुम्हारी दीन का सुतून है। और अल्लाह से डरो अपने परवरदिगार के घर के बारे में के जब तक ज़िन्दा रहो उसे ख़ाली न होने दो के अगर उसे छोड़ दिया गया तो तुम देखने के लाएक़ भी न रह जाओगे। और अल्लाह से डरो अपने जान और माल और ज़बान से जेहाद के बारे में और आपस में एक दूसरे से ताल्लुक़ात रखो। एक दूसरे की इमदाद करते रहो और ख़बरदार एक दूसरे से मुंह न फे़र लेना, और ताल्लुक़ात तोड़ न लेना और अम्रे बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुनकिर को नज़र अन्दाज़ न कर देना के तुम पर इशरार की हुकूमत क़ाएम हो जाए और तुम फ़रयाद भी करो तो उसकी समाअत न हो।

ऐ औलादे अब्दुल मुत्तलिब! ख़बरदार मैं यह न देखूं के तुम मुसलमानों का ख़ून बहाना शुरू कर दो सिर्फ़ इस नारे पर के “अमीरूल मोमेनीन (अ0) मारे गए हैं ”मेरे बदले में मेरे क़ातिल के अलावा किसी को क़त्ल नहीं किया जा सकता है।

देखो अगर मैं इस ज़रबत से जानबर न हो सका तो एक ज़रबत का जवाब एक ही ज़रबत है और देखो मेरे क़ातिल के जिस्म के टुकड़े न करना के मैंने ख़ुद सरकारे दो आलम (स0) से सुना है के ख़बरदार काटने वाले कुत्ते के भी हाथ पैर न काटना। (((- कौन दुनिया में ऐसा शरीफ़ुन्नफ़्स और बलन्द किरदार है जो क़ानून की सरबलन्दी के लिये अपने नफ़्स का मवाज़ना अपने दुश्मन से करे और यह एलान कर दे के अगरचे मुझे मालिक ने नफ़्सुल्लाह और नफ़्से पैग़़म्बर (स0) क़रार दिया है और मेरे नफ़्स के मुक़ाबले में कायनात के जुमला नफ़्सों की कोई हैसियत नहीं है लेकिन जहां तक इस दुनिया में क़सास का ताल्लुक़ है मेरा नफ़्स भी एक ही नफ्स शुमार किया जाएगा और मेरे दुश्मन को भी एक ही ज़र्ब लगाई जाएगी ताके दुनिया को यह एहसास पैदा हो जाए के मज़हब की तरजुमानी के लिये बलन्द किरदार की ज़रूरत होती है और समाज में ख़ूरेज़ी और फ़साद के रोकने का वाक़ई रास्ता क्या होता है , यही वह अफ़राद हैं जो खि़लाफ़ते इलाहिया के हक़दार हैं और उन्हीं के किरदार से इस हक़ीक़त की वज़ाहत होती है के इन्सानियत का काम फ़साद और ख़ूरेज़ी नहीं है बल्कि इन्सान इस सरज़मीन पर फ़साद और ख़ूरेज़ी की रोक थाम के लिये पैदा किया गया है और इसका मन्सब वाक़ेई खि़लाफ़ते इलाहिया है।)))

48- आपका मकतूबे गिरामी (माविया के नाम)

बेशक बग़ावत और दरोग़ गोई इन्सान को दीन और दुनिया दोनों में ज़लील कर देती है और इसके ऐब को नुक्ताए चीनी करने वाले के सामने वाज़ेह कर देती है। मुझे मालूम है के तू इस चीज़ को हासिल नहीं कर सकता है जिसके न मिलने का फ़ैसला किया जा चुका है के बहुत सी क़ौमों ने हक़ के बग़ैर मक़सद को हासिल करना चाहा और अल्लाह को गवाह बनाया तो अल्लाह ने उनके झूठ को वाज़ेह कर दिया (((-आपने माविया को होशियार करना चाहा है के यह ख़ूने उस्मान का मुतालबा कोई नया नहीं है, तुझसे पहले अहले जमल यह काम कर चुके हैं और उनका झूठ वाज़ह हो चुका है, और वह दुनिया व आखि़रत की रूसवाई मोल ले चुके हैं, अब तुझे दोबारा ज़लील व ख़्वार होने का शौक़ क्यों पैदा हुआ है, तेरा रास्ता रूसवाई और ज़िल्लत के सिवा कुछ नहीं है-))) उस दिन से डरो जिस दिन ख़ुशी सिर्फ़ उसी का हिस्सा होगी जिसने अपने अमल के अन्जाम को बेहतर बना लिया है और निदामत उसके लिये होगी जिसने अपनी मेहार शैतान के इख़्तेयार में दे दी और उसे खींचकर नहीं रखा। तुमने मुझे क़ुरानी फ़ैसले की दावत दी है हालांके तुम उसके अहल नहीं थी और मैंने भी तुम्हारी आवाज़ पर लब्बैक नहीं कही है बल्कि क़ुरान के हुक्म पर लब्बैक कही है।

49- आपका मकतूबे गिरामी (माविया ही के नाम)

अम्माबाद! दुनिया आखि़रत से रूगरदानी कर देने वाली है और इसका साथी जब भी कोई चीज़ पा लेता है तो इसके लिये हिर्स के दूसरे दरवाज़े खोल देती है और वह कभी कोई चीज़ हासिल करके उससे बेनियाज़ नहीं हो सकता है जिसको हासिल नहीं कर सका है, हालांके उन सबके बाद जो कुछ जमा किया है उससे अलग होना है और जो कुछ बन्दोबस्त किया है उसे तोड़ देना है और तू अगर गुज़िश्ता लोगों से ज़रा भी इबरत हासिल करता तो बाक़ी ज़िन्दगी को महफ़ूज़ कर सकता था। वस्सलाम

50- आपका मकतूबे गिरामी (लशकर के सरदारो के नाम)

बन्दए ख़ुदा, अमीरूल मोमेनीन अली बिन अबीतालिब (अ0) की तरफ़ से सरहदों के मुहाफ़िज़ों के नाम , याद रखना के वाली पर क़ौम का हक़ यह है के उसने जिस बरतरी को पा लिया है या जिस फ़ारिग़ुल बाली की मन्ज़िल तक पहुंच गया है उसकी बिना पर क़ौम के साथ अपने रवैये में तबदीली न पैदा करे और अल्लाह ने जो नेमत उसे अता की है उसकी बिना पर बन्दगाने ख़ुदा से ज़्यादा क़रीबतर हो जाए और अपने भाइयों पर ज़्यादा ही मेहरबानी करे।

याद रखो मुझ पर तुम्हारा एक हक़ यह भी है के जंग के अलावा किसी मौक़े पर किसी राज़ को छिपाकर न रखूं और हुक्मे शरीअत के अलावा किसी मसले में तुम से मशविरा करने से पहलूतही न करूं, न तुम्हारे किसी हक़ को उसकी जगह से पीछे हटाऊँ और न किसी मामले को आखि़री हद तक पहुंचाए बग़ैर दम लूँ और तुम सब मेरे नज़दीक हक़ के मामले में बराबर हो, इसके बाद जब मैं इन हुक़ूक़ को अदा करूंगा तो तुम पर अल्लाह के लिये शुक्र और मेरे लिये इताअत वाजिब हो जाएगी और यह लाज़िम होगा के मेरी दावत से पीछे न हटो और किसी इस्लाह में कोताही न करो, हक़ तक पहुंचने के लिये सख्तियों में कूद पड़ो के तुम इन मामलात में सीधे न रहे तो मेरी नज़र में तुम से टेढ़े हो जाने वाले से ज़्यादा कोई हक़ीर व ज़लील न होगा उसके बाद मैं उसे सख़्त सज़ा दूंगा और मेरे पास कोई रिआयतत न पाएगा, तो अपने ज़ेरे निगरानी अम्रा से यही अहद व पैमान लो और अपनी तरफ़ से उन्हें वह हुक़ूक़ अता करो जिनसे परवरदिगार तुम्हारे उमूर की इस्लाह कर सके, वस्सलाम।

(((-यह इस्लामी क़ानून का सबसे बड़ा इम्तियाज़ है के इस्लाम हक़ लेने से पहले हक़ अदा करने की बात करता है और किसी शख़्स को उस वक़्त तक साहबे हक़ नहीं क़रार देता है जब तक वह दूसरों के हुक़ूक़ अदा न कर दे और यह साबित न कर दे के वह ख़ुद भी बन्दए ख़ुदा है और एहकामे इलाहिया का एहतेराम करना जानता है, इसके बग़ैर हुक़ूक़ का मुतालेबा करना बशर को मालिक से आगे बढ़ा देने के मुरादिफ़ है के अपने वास्ते मालिके कायनात भी क़ाबिले इताअत नहीं है और दूसरों के वास्ते अपनी ज़ात भी क़ाबिले इताअत है, यह फ़िरऔनियत और नमरूदियत की वह क़िस्म है जो दौरे क़दीम के फ़राअना में भी नहीं देखी गई और आज के हर फ़िरऔन में पाई जा रही है, कल फ़िरऔन अपने को फ़राएज़ से बालातर समझता था और आज वाले फ़राएज़ को फ़राएज़ समझते हैं और इसके बाद भी अदा करने की फ़िक्र नहीं करते हैं।-)))

51-आपका मकतूबे गिरामी (टैक्स वसूल करने वालों के नाम)

बन्दए ख़ुदा, अमीरूल मोमेनीन अली (अ0) की तरफ़ से ख़ेराज वसूल करने वालों की तरफ़

अम्माबाद! जो शख़्स अपने अन्जामकार से नहीं डरता है वह अपने नफ़्स की हिफ़ाज़त का सामान भी फ़राहम नहीं करता है, याद रखो तुम्हारे फ़राएज़ बहुत मुख़्तसर हैं और उनका सवाब बहुत ज़्यादा है और अगर परवरदिगार ने बग़ावत और ज़ुल्म से रोकने के बाद उस पर अज़ाब भी न रखा होता तो उससे परहेज़ करने का सवाब ही इतना ज़्यादा था के उसके तर्क करने में कोई शख़्स माज़ूर नहीं हो सकता था, लेहाज़ा लोगों के साथ इन्साफ़ करो, उनके ज़रूरियात के लिये सब्र व तहम्मुल से काम लो के तुम रिआया के ख़ज़ानेदार, उम्मत के नुमाइन्दे और आइम्मा के सफ़ीर हो, ख़बरदार किसी शख़्स को उसकी ज़रूरत से रोक न देना और उसके मतलूब की राह में रूकावट न पैदा करना और ख़ेराज वसूल करने के लिये उसके सरदी या गर्मी के कपड़े न बेच डालना और न उस जानवर या ग़ुलाम पर क़ब्ज़ा कर लेना जो उसके काम आता है और किसी को पैसे की ख़ातिर मारने न लगना और किसी मुसलमान या काफ़िर ज़मी के माल को हाथ न लगाना मगर यह के उसके पास कोई ऐसा घोड़ा या असलहा हो जिसे दुश्मनाने इस्लाम को देना चाहता है तो किसी मुसलमान के लिये यह मुनासिब नहीं है के यह अशयाअ दुश्मनाने इस्लाम के हाथों में छोड़ दे और वह इस्लाम पर ग़ालिब आ जाएं। देखो किसी नसीहत को बचाकर न रखना, न लशकर के साथ अच्छे बरताव में कमी करना और न रिआया की इमदाद में और न दीने ख़ुदा को क़ौत पहुंचाने में, अल्लाह की राह में उसके तमाम फ़राएज़ को अदा कर देना के उसने हमारे और तुम्हारे साथ जो एहसान किया है उसका तक़ाज़ा यह है के हम उसके शुक्र की कोशिश करें और जहां तक मुमकिन हो उसके दीन की मदद करें के क़ौत भी तो बालाआखि़र ख़ुदाए अज़ीम का अतिया है।