नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इमामअलीकेअक़वाल(कथन) 1-50

1. फ़ित्ना व फ़साद में उस तरह रहो जिस तरह ऊंट का वह बच्चा जिसने अभी अपनी उम्र के दो साल ख़त्म किये हैं के न तो उसकी पीठ पर सवारी की जा सकती है और न उसके थनों से दूध दोहा जा सकता है।

2. जिसने लालच को अपनी आदत बनाया, उसने अपने को हलका किया और जिसने अपनी परेशान हाली का इज़हार किया वह ज़िल्लत पर आमादा हो गया, और जिसने अपनी ज़बान को क़ाबू में न रखा उसने ख़ुद अपनी बेवक़अती का सामान कर लिया।

3. बुख़ल नंग व आर है, और बुज़दिली नुक़्स व ऐब है, और ग़ुरबत मर्दे अक़्लमंद व दाना की ज़बान को दलाएल की क़ूवत दिखाने से आजिज़ बना देती है और मुफ़लिस अपने शहर में रह कर भी ग़रीबुल वतन होता है और इज्ज़ व दरमान्दगी मुसीबत है और सब्र शुजाअत है और दुनिया से बेताल्लुक़ी बड़ी दौलत है और परहेज़गारी एक बड़ी सिपर है।

4. तस्लीम व रज़ा बेहतरीन मसाहेब और इल्म शरीफ़ तरीन मीरास है और अमली दमली औसाफ़े नौ बनू खि़लअत हैं और फ़िक्र साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ आईना है।

5. अक़्लमन्द का सीना उसके भेदों का मख़ज़न होता है, और कुशादा रूई मोहब्बत व दोस्ती का फन्दा है और तहम्मुल व बुर्दबारी ऐबों का मदफ़न है (या इस फ़िक़रे के बजाए हज़रत ने यह फ़रमाया) सुलह व सफ़ाई ऐबों को ढांपने का ज़रिया है।

6. जो शख़्स अपने को बहुत पसन्द करता है वह दूसरों को नापसन्द हो जाता है और सदक़ा कामयाब दवा है और दुनिया में बन्दों के जो आमाल हैं वह आख़ेरत में उनकी आंखों के सामने होंगे।

((( क़ुरान में इरशादे इलाही यूं है उस दिन लोग गिरोह गिरोह (क़ब्रों से) उठ खड़े होंगे ताके वह अपने आमाल को देखें तो जिसने ज़र्रा बराबर भी नेकी की होगी उसे देख लेगा और जिसने ज़र्रा बराबर भी बुराई की होगी वह उसे देख लेगा)))

7. यह इन्सान ताअज्जुब के क़ाबिल है के वह चर्बी से देखता है, और गोश्त के लोथड़े से बोलता है और हड्डी से सुनता है और एक सूराख़ से सांस लेता है।

8. जब दुनिया किसी की तरफ़ मुतवज्जेह हो जाती है तो यह दूसरे के महासिन (नेकीयां) भी उसके हवाले कर देती है और जब उससे मुंह फिराती है तो उसके महासिन भी ले लेती है।

(((-यह इल्मुल इज्तेमाअ का नुक्ता है जहां इस हक़ीक़त की तरफ़ तवज्जो दिलाई गई है के ज़माना ऐबदार को बेऐब भी बना देता है और बेऐब को ऐबदार भी बना देता है और दोनों का फ़र्क़ दुनिया की तवज्जो है जिसका हुसूल बहरहाल ज़रूरी है।)))

9. लोगों के साथ ऐसा मेल-जोल रखो के अगर मर जाओ तो लोग गिरया करें और ज़िन्दा रहो तो तुम्हारे मुश्ताक़ रहें।

(((यह भी बेहतरीन इज्तेमाई नुक्ता है जिसकी तरफ़ हर इन्सान को मुतवज्जो रहना चाहिये)))

10. जब दुश्मन पर क़ुदरत हासिल हो जाए तो मुआफ़ कर देने ही को इस क़ुदरत का शुक्रिया क़रार दो।

(((यह अख़लाक़ी तरबीयत है के इन्सान में ताक़त का ग़ुरूर नहीं होना चाहिये)))

11. आजिज़ तरीन इन्सान वह है जो दोस्त बनाने से भी आजिज़ हो और उससे ज़्यादा आजिज़ वह है जो रहे पुराने दोस्तों को भी बरबाद कर दे।

12. जब नेमतों का रूख तुम्हारी तरफ़ हो तो नाशुक्री के ज़रिये उन्हें अपने तक पहुंचने से भगा न दो।

(((परवरदिगारे आलम ने यह एख़तेलाफ़ी निज़ाम बना दिया है के नेमतों की तकमील शुक्रिया ही के ज़रिये हो सकती है लेहाज़ा जिसे भी इसकी तकमील दरकार है उसे शुक्रिया का पाबन्द होना चाहिये)))

13. जिसे क़रीबी छोड़ दें उसे बेगाने मिल जाएंगे।

14. हर फ़ित्ने में पड़ जाने वाला क़ाबिले इताब नहीं होता।

(((जब साद बिन अबी वक़ास, मोहम्मद इब्ने मुसल्लेम और अब्दुल्लाह इब्ने उमर ने असहाबे जमल के मुक़ाबले में आपका साथ देने से इन्कार किया तो इस मौक़े पर यह जुमला फ़रमाया, मतलब यह है के यह लोग मुझसे ऐसे मुनहरिफ़ हो चुके हैं के उन पर न मेरी बात का कुछ असर होता है और न उन पर मेरी इताब व सरज़न्श (नाराज़गी) कारगर साबित होती है)))

15. सब मुआमले तक़दीर के आगे सरनिगूँ हैं यहाँ तक के कभी तदबीर के नतीजे में मौत हो जाती है।

16. पैग़म्बर सल्लल्लाहो अजलैहे वआलेही वसल्लम की हदीस के मुताल्लिक़ के “बुढ़ापे को (खि़ज़ाब के ज़रिये) बदल दो, और यहूद से मुशाबेहत इख़्तेयार न करो’आप (अ0) से सवाल किया गया तो आपने फ़रमाया के पैग़म्बर पैग़म्बर सल्लल्लाहो अजलैहे वआलेही वसल्लम ने यह उस मौक़े के लिये फ़रमाया था जबके दीन (वाले) कम थे और अब जबके इसका दामन फै़ल चुका है , और सीना टेक कर जम चुका है तो हर शख़्स को इख़्तेयार है।

(((मक़सद यह है के चूंके इब्तिदाए इस्लाम में मुसलमानों की तादाद कम थी इसलिये ज़रूरत थी के मुसलमानों की जमाअती हैसियत को बरक़रार रखने के लिये उन्हें यहूदियों से मुमताज़ रखना जाए, इसलिये आँहज़रत ने खि़ज़ाब का हुक्म दिया के जो यहूदियों के हाँ मरसूम नहीं है, इसके अलावा यह मक़सद भी था के वह दुश्मन के मुक़ाबले में ज़ईफ़ व सिन रसीदा दिखाई न दें)))

17-उन लोगों के बारे में के जो आपके हमराह होकर लड़ने से किनाराकश रहे, फ़रमाया उन लोगों ने हक़ को छोड़ दिया और बातिल की भी नुसरत नहीं की।

(((यह इरशाद उन लोगों के मुताल्लुक़ है के जो अपने को ग़ैर जानिबदार ज़ाहिर करते थे जैसे अब्दुल्लाह बिन उमर, साद इब्ने अबी वक़ास, अबू मूसा अशअरी, अहनफ़ इब्ने क़ैस, और अन्स इब्ने मालिक वग़ैरह, बेशक इन लोगों ने खुल कर बातिल की हिमायत नहीं की, मगर हक़ की नुसरत से हाथ उठा लेना भी एक तरह से बातिल को तक़वीयत पहुंचाना है इसलिये इनका शुमार मुख़ालेफ़ीने हक़ के गिरोह ही में होगा।)))

18- जो शख़्स उम्मीद की राह में बगटूट दौड़ता है वह मौत से ठोकर खाता है।

19- ब-मुरव्वत लोगों की लग्ज़िशों से दरगुज़र करो (क्योंके) इनमें से जो भी लग्ज़िश खाकर गिरता है तो अल्लाह उसके हाथ में हाथ देकर उसे ऊपर उठा लेता है।

20- ख़ौफ़ का नतीजा नाकामी और शर्म का नतीजा महरूमी है और फ़ुरसत की घड़ियां (तेज़रौ) अब्र की तरह गुज़र जाती हैं, लेहाज़ा भलाई के मिले हुए मौक़ों को ग़नीमत जानो।

(((जो बिला वजह ख़ौफ़ज़दा हो जाएगा वह मक़सद को हासिल नहीं कर सकता है और जो बिला वजह शर्माता रहेगा वह हमेशा महरूम रहेगा। इन्सान हर मौक़े पर शर्माता ही रहता तो नस्ले इन्सानी वजूद में न आती।)))

21- हमारा एक हक़ है जो मिल गया तो ख़ैर वरना हम ऊँट पर पीछे ही बैठना गवारा कर लेंगे चाहे सफ़र कितना ही तवील क्यों न हो।

सय्यद रज़ी - यह बेहतरीन लतीफ़ और फ़सीह कलाम है के अगर हक़ न मिला तो हम ज़िल्लत का सामना करना पड़ेगा के रदीफ़ में बैठने वाले आम तौर से ग़ुलाम और क़ैदी वग़ैरा हुआ करते हैं।

(((यानी हम हक़ से दस्तबरदार होने वाले नहीं हैं जहां तक ग़ासिबाना दबाव का सामना करना पड़ेगा करते रहेंगे)))

22-जिसे उसके आमाल के पीछे हटा दें उसे नसब आगे नहीं बढ़ा सकता है।

23-बड़े-बड़े गुनाहों का कुफ़्फ़ारा यह है के इन्सान सितम रसीदा की फ़रयादरसी करे और रंजीदा इन्सान के ग़म को दूर करे।

(((सितम रसीदा वह भी है जिसके खाने पीने का सहारा न हो और वह भी है जिसके इलाज का पैसा या स्कूल की फ़ीस का इन्तेज़ाम न हो)))

24- फ़रज़न्दे आदम (अ0)! जब गुनाहों के बावजूद परवरदिगार की नेमतें मुसलसल तुझे मिलती रहें तो होशियार हो जाना।

(((अक्सर इन्सान नेमतों की बारिश देख कर मग़रूर हो जाता है के शायद परवरदिगार कुछ ज़्यादा ही मेहरबान है और यह नहीं सोचता है के इस तरह हुज्जत तमाम हो रही है और ढील दी जा रही है वरना गुनाहों के बावजूद इस बारिशे रहमत का क्या इमकान है? )))

25-इन्सान जिस बात को दिल में छिपाना चाहता है वह उसकी ज़बान के बेसाख़्ता कलेमात और चेहरे के आसार से नुमायां हो जाती है।

(((ज़िन्दगी की बेशुमार बातें हैं जिनका छिपाना उस वक़्त तक मुमकिन नहीं है जब तक ज़बान की हरकत जारी है और चेहरे की ग़ुम्माज़ी (हाव-भाव) सलामत है, इन दो चीज़ों पर कोई इन्सान क़ाबू नहीं कर सकता है और उनसे हक़ाएक़ का बहरहाल इन्केशाफ़ हो जाता है)))

26- जहां तक मुमकिन हो मर्ज़ के साथ चलते रहो (और फ़ौरन इलाज की फ़िक्र में लग जाओ)

27- बेहतरीन ज़ोहद - ज़ोहद का मख़फ़ी रखना और इज़हार न करना है (के रियाकारी ज़ोहद नहीं है निफ़ाक़ है)

28- जब तुम्हारी ज़िन्दगी जा रही है और मौत आ रही है तो मुलाक़ात बहुत जल्दी हो सकती है।

29- होशियार रहो होशियार! के परवरदिगार ने गुनाहों की इस क़द्र पर्दापोशी की है के इन्सान को यह धोका हो गया है के शायद माफ़ कर दिया है।

30- आपसे ईमान के बारे में सवाल किया गया तो फ़रमाया के ईमान के चार सुतून हैं, सब्र, यक़ीन, अद्ल, और जेहाद

((वाज़ेह रहे के इस ईमान से मुराद ईमाने हक़ीक़ी है जिस पर सवाब का दारोमदार है और जिसका वाक़ेई ताल्लुक़ दिल की तस्दीक़ और आज़ा व जवारेह के अमल व किरदार से होता है वरना वह ईमान जिसका तज़किरा “या अय्योहल्लज़ीना आमलू”में किया गया है इससे मुराद सिर्फ़ ज़बानी इक़रार और अदआए ईमान है वरना ऐसा न होता तो तमाम एहकाम का ताल्लुक़ सिर्फ़ मोमेनीन मुख़लेसीन से होता और मुनाफ़ेक़ीन इन क़वानीन से यकसर आज़ाद हो जाते)))

फ़िर सब्र के चार शोबे हैं - शौक़, ख़ौफ़, ज़ोहद और इन्तज़ारे मौत, फ़िर जिसने जन्नत का इश्तेयाक़ पैदा कर लिया उसने ख़्वाहिशात को भुला दिया और जिसे जहन्नम का ख़ौफ़ हासिल हो गया उसने मोहर्रमात से इजतेनाब किया, दुनिया में ज़ोहद इख़्तेयार करने वाला मुसीबतों को हलका तसव्वुर करता है और मौत का इन्तेज़ार करने वाला नेकियों की तरफ़ सबक़त करता है।

(((सब्र का दारोमदार चार चीज़ो पर है, इन्सान रहमते इलाही का इश्तेयाक़ रखता हो, और अज़ाबे इलाही से डरता हो ताके इस राह में ज़हमतें बरदाश्त करे, इसके बाद दुनिया की तरफ़ से लापरवाह हो और मौत की तरफ़ सरापा तवज्जो हो ताके दुनिया के फ़िराक़ को बरदाश्त कर ले और मौत की सख़्ती के पेशे नज़र ही सख़्ती को आसान समझ ले)))

यक़ीन के भी चार शोबे हैं - होशियारी की बसीरत, हिकमत की हक़ीक़त रसी, इबरत की नसीहत और साबिक़ बुज़ुर्गों की सुन्नत, होशियारी में बसीरत रखने वाले पर हिकमत रोशन हो जाती है और हिकमत की रोशनी इबरत को वाज़ेह कर देती है और इबरत की मारेफ़त गोया साबिक़ अक़वाम से मिला देती है।

(((यक़ीन की भी चार बुनियादें हैं, अपनी हर बात पर मुकम्मल एतमाद रखता हो, हक़ाएक़ को पहचानने की सलाहियत रखता हो, दीगर अक़वाम के हालात से इबरत हासिल करे और सॉलेहीन के किरदार पर अमल करे, ऐसा नहीं है तो इन्सान जेहले मरकब में मुब्तिला है और इसका यक़ीन फ़क़त वहम व गुमान है यक़ीन नहीं है।)))

अद्ल के भी चार शोबे हैं - तह तक पहुंच जाने वाली समझ, इल्म की गहराई, फ़ैसले की वज़ाहत और अक़्ल की पाएदारी।

जिसने फ़हम की नेमत पा ली वह इल्म की गहराई तक पहुंच गया और जिसने इल्म की गहराई को पा लिया वह फ़ैसले के घाट से सेराब होकर बाहर आया और जिसने अक़्ल इस्तेमाल कर ली उसने अपने अम्र में कोई कोताही नहीं की और लोगों के दरम्यान क़ाबिले तारीफ़ ज़िन्दगी गुज़ार दी।

जेहाद के भी चार शोबे हैं, अम्रे बिल मारूफ़, नहीं अनिल मुनकर, हर मक़ाम पर सिबाते क़दम और फ़ासिक़ों से नफ़रत व अदावत। लेहाज़ा जिसने अम्रे बिल मारूफ़ किया उसने मोमेनीन की कमर को मज़बूत कर दिया और जिसने मुनकरात से रोका उसने काफ़िरों की नाक रगड़ दी, जिसने मैदाने क़ताल में सिबाते क़दम का मुज़ाहेरा किया वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया और जिसने फ़ासिक़ों से नफ़रत व अदावत का बरताव किया परवरदिगार इसकी ख़ातिर इसके दुश्मनों से ग़ज़बनाक होगा और उसे रोज़े क़यामत ख़ुश कर देगा।

(((जेहाद का इन्हेसार भी चार मैदानों पर है, अम्रे बिल मारूफ़ का मैदान, नहीं अनिल मुनकर का मैदान, क़त्ताल का मैदान और फ़ासिक़ों से नफ़रत व अदावत का मैदान, इन चारों मैदानों में हौसलाए जेहाद नहीं है तो तन्हा अम्र व नहीं से कोई काम चलने वाला नहीं है और न ऐसा इन्सान वाक़ेई मुजाहिद कहे जाने के क़ाबिल है)))

और कुफ्ऱ के भी चार सुतून हैं, बिला वजह गहराइयों में जाना, आपस में झगड़ा करना, कजी और इन्हेराफ़ और इख़्तेलाफ़ और अनाद। जो बिला सबब गहराई में डूब जाएगा वह पलट कर हक़ की तरफ़ नहीं आ सकता है और जो जेहालत की बिना पर झगड़ा करता रहता है वह हक़ की तरफ़ से अन्धा हो जाता है, जो कजी का शिकार हो जाता है उसे नेकी बुराई, और बुराई नेकी नज़र आने लगती है और वह गुमराही के नशे में चूर हो जाता है और जो झगड़े और अनाद में मुब्तिला हो जाता है उसके रास्ते दुश्वार, मसाएल नाक़ाबिले हल और बच निकलने के तरीक़े तंग हो जाते हैं।

(((कुफ्ऱ इनकारे ख़ुदाई की शक्ल में हो या इन्कारे रिसालत की शक्ल में इसकी असास शिर्क पर हो या इन्कार हक़ाएक़ व वाज़ेहाते मज़हब पर, हर क़िस्म के लिये चार में से कोई न कोई सबब ज़रूर होता है, या इन्सान उन मसाएल की फ़िक्र में डूब जाता है जो उसके इमकान से बाहर हैं। या सिर्फ़ झगड़े की बुनियाद पर किसी अक़ीदे को इख़्तेयार कर लेता है या इसकी फ़िक्र में कजी पैदा हो जाती है और या वह अनाद और ज़िद का शिकार हो जाता है, और खुली हुई बात यह है के इनमें से हर बीमारी वह है जो इन्सान को राहे रास्त पर आने से रोक देती है और इन्सान सारी ज़िन्दगी कुफ्ऱ ही में मुब्तिला रह जाता है, बीमारी की हर क़िस्म के असरात अलग-अलग हैं लेकिन मजमूई तौर पर सबका असर यह है के इन्सान हक़रसी से महरूम हो जाता है और ईमान व यक़ीन की दौलत से बहरामन्द नहीं हो पाता है।)))

इसके बाद शक के चार शोबे हैः कट हुज्जती, ख़ौफ़, हैरानी और बातिल के हाथों सुपुर्दगी, ज़ाहिर है के जो कट हुज्जती को शोआर बना लेगा उसकी रात की सुबह कभी न होगी और जो हमेशा सामने की चीज़ों से डरता रहेगा वह उलटे पांव पीछे ही हटता रहेगा, जो शक व शुबह में हैरान व सरगर्दां रहेगा उसे शयातीन अपने पैरों तले रौंद डालेंगे और जो अपने को दुनिया व आख़़ेरत की हलाकत के सुपुर्द कर देगा वह वाक़ेअन हलाक हो जाएगा।

(((शक ईमान व कुफ्ऱ के दरम्यान का रास्ता है जहां न इन्सान हक़ का यक़ीन पैदा कर पाता है और न कुफ्ऱ ही का अक़ीदा इख़्तेयार कर सकता है और दरम्यान में ठोकरें खाता रहता है और इस ठोकर के भी चार असबाब या मज़ाहिर होते हैं, या इन्सान बिला सोचे समझे बहस शुरू कर देता है, या ग़लती करने के ख़ौफ़ से परछाइयों से भी डरने लगता है, या तरद्दुद और हैरानी का शिकार हो जाता है या हर पुकारने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कहने लगता हैः

“चलता हूँ थोड़ी दूर हर एक राहरौ के साथ, पहचानता नहीं हूं की राहबर को मैं’)))

31. ख़ैर का अन्जाम देने वाला असल ख़ैर से बेहतर होता है और शर का अन्जाम देने वाला असल शर से भी बदतर होता है।

32. सख़ावत करो लेकिन फ़ुज़ूल ख़र्ची न करो और कमखर्ची इख़्तेयार करो लेकिन कंजूसी मत बनो।

33. बेहतरीन मालदारी और बेनियाज़ी यह है के इन्सान उम्मीदों को तर्क कर दे।

34. जो लोगों के बारे में बिला सोचे-समझे वह बातें कह देता है जिन्हें वह पसन्द नहीं करते हैं, लोग उसके बारे में भी वह कह देते हैं जिसे जानते तक नहीं हैं।

35. जिसने उम्मीदों को आज़ाद किया उसने अमल को बरबाद किया।

(((इसमें कोई शक नहीं है के यह दुनिया उम्मीदों पर क़ायम है और इन्सान की ज़िन्दगी से उम्मीद का शोबा ख़त्म हो जाए तो अमल की सारी तहरीक सर्द पड़ जाएगी और कोई इन्सान कोई काम न करेगा लेकिन इसके बाद भी एतदाल एक बुनियादी मसला है और उम्मीदों की दराज़ी बहरहाल अमल को बरबाद कर देती है के इन्सान आखे़रत से ग़ाफ़िल हो जाता है और आख़ेरत से ग़ाफ़िल हो जाने वाला अमल नहीं कर सकता है।)))

36- (शाम की तरफ़ जाते हुए आपका गुज़र अम्बार के ज़मींदारों के पास से हुआ तो वह लोग सवारियों से उतर आए और आपके आगे दौड़ने लगे तो आपने फ़रमाया) यह तुमने क्या तरीक़ा इख़्तेयार किया है? लोगों ने अर्ज़ की के यह हमारा एक अदब है जिससे हम शख्सियतों का एहतेराम करते हैं, फ़रमाया के ख़ुदा गवाह है इससे हुक्काम को कोई फ़ायदा नहीं होता है और तुम अपने नफ़्स को दुनिया में ज़हमत में डाल देते हो और आख़ेरत में बदबख़्ती का शिकार हो जाओगे और किस क़द्र ख़सारे के बाएस है वह मशक़्क़त जिसके पीछे अज़ाब हो और किस क़द्र फ़ायदेमन्द है वह राहत जिसके साथ जहन्नम से अमान हो।

(((इस इरशादे गिरामी से साफ़ वाज़ेह होता है के इस्लाम हर तहज़ीब को गवारा नहीं करता है और इसके बारे में यह देखना चाहता है के इसका फायदा क्या है और आखि़रत में इसका नुक़सान किस क़द्र है, हमारी मुल्की तहज़ीब में फ़र्शी सलाम करना, ग़ैरे ख़ुदा के सामने रूकूअ की हालत तक झुकना भी है जो इस्लाम में क़तअन जाएज़ नहीं है, किसी ज़रूरत से झुकना और है और ताज़ीम के ख़याल से झुकना और है, सलाम ताज़ीम के लिये होता है, लेहाज़ा इसमें रूकूअ की हुदूद तक जाना सही नहीं है)))

37-आपने अपने फ़रज़न्द इमाम हसन (अ0) से फ़रमायाः बेटा मुझसे चार और फ़िर चार बातें महफ़ूज़ कर लो तो उसके बाद किसी अमल से कोई नुक़सान न होगा।

(((चार और चार का मक़सद शायद यह है के पहले चार का ताल्लुक़ इन्सान के ज़ाती औसाफ़ व ख़ुसूसियात से है और दूसरे चार का ताल्लुक़ इज्तेमाई मुआमलात से है और कमाले सआदतमन्दी यही है के इन्सान ज़ाती ज़ेवरे किरदार से भी आरास्ता रहे और इज्तेमाई बरताव को भी सही रखे)))

बेहतरीन दौलत व सरवत अक़्ल है और बदतरीन फ़क़ीरी हिमाक़त, सबसे ज़्यादा वहशतनाक अम्र ख़ुद पसन्दी है और सबसे शरीफ़ हस्बे ख़ुश एख़लाक़ी, बेटा! ख़बरदार किसी अहमक़ की दोस्ती इख़्तेयार न करना के तुम्हें फ़ायदा भी पहुंचाना चाहेगा तो नुक़सान पहुंचा देगा और इसी तरह किसी बख़ील से दोस्ती न करना के तुम से ऐसे वक़्त में दूर भागेगा जब तुम्हें इसकी शदीद ज़रूरत होगी और देखो किसी फ़ाजिर का साथ भी इख़्तेयार न करना के वह तुमको हक़ीर चीज़ के एवज़ भी बेच डालेगा और किसी झूटे की सोहबत भी इख़्तेयार न करना के वह मिस्ले सराब है जो दूर वाले को क़रीब कर देता है और क़रीब वाले को दूर कर देता है।

(((दूसरे मुक़ाम पर इमाम अलैहिस्सलाम ने इसी बात को आक़िल व अहमक़ के बजाए मोमिन और मुनाफ़िक़ के नाम से बयान फ़रमाया है और हक़ीक़ते अम्र यह है के इस्लाम की निगाह में मोमिन ही को आक़िल और मुनाफ़िक़ ही को अहमक़ कहा जाता है, वरना जो इब्तिदा से बेख़बर और इन्तिहा से ग़ाफ़िल हो जाए न रहमान की इबादत करे और न जन्नतत के हुसूल का इन्तेज़ाम करे इसे किस एतबार से अक़्लमन्द कहा जा सकता है और उसे अहमक़ के अलावा दूसरा कौन सा नाम दिया जा सकता है यह और बात है के दौरे हाज़िर में ऐसे ही अफ़राद को दानिशमन्द और दानिशवर कहा जाता है और उन्हीं के एहतेराम के तौर पर दीन व दानिश की इस्तेलाह निकाली गई है के गोया दीनदार, दीनदार होता है और दानिश्वर नहीं। और दानिशवर दानिशवर होता है चाहे दीनदार न हो और बेदीनी ही में ज़िन्दगी गुज़ार दे)))

38-मुस्तहबाते इलाही में कोई क़ुरबते इलाही नहीं है अगर उनसे वाजिबात को नुक़सान पहुंच जाए।

(((मक़सद यह है के परवरदिगार ने जिस अज्र व सवाब का वादा किया है और जिसका इन्सान इस्तेहक़ाक़ पैदा कर लेता है वह किसी न किसी अमल ही पर पैदा होता है और मर्ज़ कोई अमल नहीं है, लेकिन इसके अलावा फ़ज़्ल व करम का दरवाज़ा खुला हुआ है और वह किसी भी वक़्त और किसी भी शख़्स के शामिले हाल किया जा सकता है, इसमें किसी का कोई इजारा नहीं है।)))

39- अक़्लमन्द की ज़बान उसके दिल के पीछे रहती है और अहमक़ का दिल उसकी ज़बान के पीछे रहता है।

सय्यद रज़ी- यह बड़ी अजीब व ग़रीब और लतीफ़ हिकमत है जिसका मतलब यह है के अक़्लमन्द इन्सान ग़ौर व फ़िक्र करने के बाद बोलता है और अहमक़ इन्सान बिला सोचे समझे कह डालता है गोया के आक़िल की ज़बान दिल की ताबेअ है और अहमक़ का दिल उसकी ज़बान का पाबन्द है।

40-अहमक़ का दिल उसके मुंह के अन्दर रहता है और अक़्लमन्द की ज़बान उसके दिल के अन्दर।

41- अपने एक सहाबी से एक बीमारी के मौक़े पर फ़रमाया “अल्लाह ने तुम्हारी बीमारी को तुम्हारे गुनाहों के दूर करने का ज़रिया बना दिया है के ख़ुद बीमारी में कोई अज्र नहीं है लेकिन यह बुराइयों को मिटा देती है और इस तरह झाड़ देती है जैसे दरख़्त से पत्ते झड़ते हैं, अज्र व सवाब ज़बान से कुछ कहने और हाथ पांव से कुछ करने में हासिल होता है और परवरदिगार अपने जिन बन्दों को चाहता है उनकी नीयत की सिदाक़त और बातिन की पाकीज़गी की बिना पर दाखि़ले जन्नत कर देता है।

सय्यद रज़ी- हज़रत ने बिलकुल सच फ़रमाया है के बीमारी में कोई अज्र नहीं है के यह कोई इस्तेहक़ाक़ी अज्र वाला काम नहीं है, एवज़ तो उस अमल पर भी हासिल होता है जो बीमारियों वग़ैरह की तरह ख़ुदा बन्दे के लिये अन्जाम देता है लेकिन अज्र व सवाब सिर्फ़ उसी अमल पर होता है जो बन्दा ख़ुद अन्जाम देता है और मौलाए कायनात ने इस मक़ाम पर एवज़ और अज्र व सवाब के इसी फ़र्क़ को वाज़ेह फ़रमाया है जिसका इदराक आपके इल्मे रौशन और फ़िक्र साएब के ज़रिये हुआ है।

(((-मक़सद यह है के परवरदिगार ने जिस अज्र व सवाब का वादा किया है और जिसका इन्सान इस्तेहक़ाक़ पैदा कर लेता है वह किसी न किसी अमल ही पर पैदा होता है और मर्ज़ कोई अमल नहीं है, लेकिन इसके अलावा फ़ज़्ल व करम का दरवाज़ा खुला हुआ है और वह किसी भी वक़्त और किसी भी शख़्स के शामिले हाल किया जा सकता है, इसमें किसी का कोई इजारा नहीं है।)))

42- आपने ख़बाब बिन अलारत के बारे में फ़रमाया के ख़ुदा ख़बाब इब्ने अलारत पर रहमत नाज़िल करे। वह अपनी रग़बत से इस्लाम लाए, अपनी ख़ुशी से हिजरत की और बक़द्रे ज़रूरत सामान पर इक्तेफ़ा की। अल्लाह की मर्ज़ी से राज़ी रहे और मुहाहिदाना ज़िन्दगी गुज़ार दी।

(((-हक़ीक़ते अम्र यह है के इन्सानी ज़िन्दगी का कमाल यह नहीं है के अल्लाह से राज़ी हो जाए, यह काम निस्बतन आसान है के वह (अल्लाह) जल्दी राज़ी होने वाला है। कभी मामूली अमल से भी राज़ी हो जाता है और कभी बदतरीन अमल के बाद भी तौबा से राज़ी हो जाता है। सबसे मुश्किल काम बन्दे का ख़ुदा से राज़ी हो जाना है के वह किसी हाल में ख़ुश नहीं होता है और इक़तेदारे फ़िरऔन व दौलते क़ारून पाने के बाद भी या मग़रूर हो जाता है या ज़्यादा का मुतालेबा करने लगता है। अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने ख़ेबाब के इसी किरदार की तरफ़ इशारा किया है के वह इन्तेहाई मसाएब के बावजूद ख़ुदा से राज़ी रहे और एक हर्फ़े शिकायत ज़बान पर नहीं लाए और ऐसा ही इन्सान वह होता है जिसके हक़ में तौबा की बशारत दी जा सकती है और वह अमीरूल मोमेनीन (अ0) की तरफ़ से मुबारकबाद का मुस्तहक़ होता है।)))

43- ख़ुशाबहाल उस शख़्स का जिसने आख़ेरत को याद रखा, हिसाब के लिये अमल किया। बक़द्रे ज़रूरत पर क़ानेअ रहा और अल्लाह से राज़ी रहा।

44- अगर मैं इस तलवार से मोमिन की नाक भी काट दूं के मुझसे दुश्मनी करने लगे तो हरगिज़ न करेगा और अगर दुनिया की तमाम नेमतों मुनाफ़िक़ पर उण्डेल दूँ के मुझसे मोहब्बत करने लगे तो हरगिज़ न करेगा। इसलिये के इस इक़ीक़त का फ़ैसला नबीए सादिक़ की ज़बान से हो चुका है के “या अली (अ0)! कोई मोमिन तुमसे दुश्मनी नहीं कर सकता है और कोई मुनाफ़िक़ तुमसे मोहब्बत नहीं कर सकता है। ”

45- वह गुनाह जिसका तुम्हें रन्ज हो, अल्लाह के नज़दीक उस नेकी से बेहतर है जिससे तुममें ग़ुरूर पैदा हो जाए।

(((अगरचे गुनाह में कोई ख़ूबी और बेहतरी नहीं है, लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है के गुनाह के बाद इन्सान का नफ़्स मलामत करने लगता है और वह तौबा पर आमादा हो जाता है और ज़ाहिर है के ऐसा गुनाह जिसके बाद एहसासे तौबा पैदा हो जाए उस कारे ख़ैर से यक़ीनन बेहतर है जिसके बाद ग़ुरूर पैदा हो जाए और इन्सान अख़्वाने शयातीन की फ़ेहरिस्त में शामिल हो जाए)))

46- इन्सान की क़द्र व क़ीमत उसकी हिम्मत के एतबार से होती है और उसकी सिदाक़त उसकी मर्दान्गी के एतबार से होती है, शुजाअत का पैमाना हमीयत व ख़ुद्दारी है और उफ़्फ़त का पैमाना ग़ैरत व हया।

(((क्या कहना उस शख़्स की हिम्मत का जो दावते ज़ुलशीरा में सारी क़ौम के मुक़ाबले में तनो तन्हा नुसरते पैग़म्बर (स0) पर आमादा हो गया और फ़िर हिजरत की रात तलवारों के साये में सो गया और मुख़्तलिफ़ मारेकों में तलवारों की ज़द पर रहा और आखि़रकार तलवार के साये ही में सजदए आखि़र भी अदा कर दिया , इससे ज़्यादा क़द्रो क़ीमत का हक़दार दुनिया का कौन सा इन्सान हो सकता है)))

47- कामयाबी दूर अन्देशी से हासिल होती है और दूर अन्देशी फ़िक्र व तदब्बुर से। फ़िक्र व तदब्बुर का ताल्लुक़ इसरार की राज़दारी से है।

48-शरीफ़ इन्सान के हमले से बचो, जब वह भूका हो और कमीने के हमले से बचो जब उसका पेट भरा हो।

49-लोगों के दिल सहराई जानवरों जैसे है। जो उन्हें सधा लेगा उसकी तरफ़ झुक जाएंगे।

(((मक़सद यह है के इन्सान दिलों को अपनी तरफ़ माएल करना चाहता है तो उसका बेहतरीन रास्ता यह है के बेहतरीन अख़लाक़ व किरदार का मुज़ाहेरा करे ताके यह दिले वहशी राम हो जाए वरना बदएख़लाक़ी और बदसुलूकी से वहशी जानवर के मज़ीद भड़क जाने का ख़तरा होता है इसके राम हो जाने का कोई तसव्वुर नहीं होता है।)))

50-तुम्हारा ऐब उसी वक़्त तक छिपा रहेगा जब तक तुम्हारा मुक़द्दर साज़गार है।