नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

15- आपके कलाम का एक हिस्सा

(इस मौज़ू से मुताल्लिक़ के आपने उस्मान की जागीरों को मुसलमानों को वापस दे दिया)

ख़ुदा की क़सम अगर मैं किसी माल को इस हालत में पाता के उसे औरत का मेहर बना दिया गया है या कनीज़ों की क़ीमत के तौर पर दे दिया गया है तो भी उसे वापस कर देता इसलिये के इन्साफ़ में बड़ी वुसअत पाई जाती है और जिसके लिये इन्साफ़ में तंगी हो उसके लिये ज़ुल्म में तो और भी तंगी होगी।

16- आपके कलाम का एक हिस्सा

(उस वक़्त जब आपकी मदीना में बैअत की गई और आपने लोगों को बैअत के मुस्तक़बिल से आगाह करते हुए उनकी क़िस्में बयान फ़रमाईं)

मैं अपने क़ौल का ख़ुद ज़िम्मेदार और उसकी सेहत का ज़ामिन हूँ और जिस श़ख़्स पर गुज़िश्ता अक़वाम की सज़ाओं ने इबरतों को वाज़ेअ कर दिया हो उसे तक़वा शुबहात में दाखि़ल होने से यक़ीनन रोक देगा। आगाह हो जाओ आज तुम्हारे लिये वह आज़माइशी दौर पलट आया है जो उस वक़्त था जब परवरदिगार ने अपनु रसूल (स) को भेजा था। क़सम है उस परवरदिगार की जिसने आप (अ) को हक़ के साथ मबऊस किया था के तुम सख़्ती के साथ तहो बाला किये जाओगे। तुम्हें बाक़ाएदा छाना जाएगा और देग की तरह चमचे से उलट-पलट किया जाएगा यहाँ तक के असफ़ल आला हो जाए और आला असफ़ल बन जाए और जो पीछे रह गए हैं वह आगे बढ़ जाएं और जो आगे बढ़ गए हैं वह पीछे आ जाएं। ख़ुदा गवाह है के मैंने न किसी कलमे को छिपाया है और न कोई ग़लत बयानी की है और मुझे उस मन्ज़िल और उस दिन की पहले ही ख़बर दे दी गई थी।

याद रखो के ख़ताएं वह सरकश सवारियां हैं जिन पर अहले ख़ता को सवार कर दिया जाए और उनकी लगाम को ढीला छोड़ दिया जाए और वह सवार को ले कर जहन्नुम में फान्द पड़ें और तक़वा उन रअम की हुई सवारियों के मानिन्द है जिन पर लोग सवार किये जाएं और उनकी लगाम इनके हाथों में दे दी जाए तो वह अपने सवारों को जन्नत तक पहुँचा दें।

दुनिया में हक़ व बातिल दोनों हैं और दोनों के अहल भी हैं। अब अगर बातिल ज़्यादा हो गया है तो यह हमेशा से होता चला आया है और अगर हक़ कम हो गया है तो यह भी होता रहा है और उसके खि़लाफ़ भी हो सकता है। अगरचे ऐसा कम ही होता है के कोई शै पीछे हट जाने के बाद दोबारा मन्ज़रे आम पर आजाए। ((मालिके कायनात ने इन्सान को बेपनाह सलाहियतों का मालिक बनाया है और इसकी फ़ितरत में ख़ैर व शर का सारा इरफ़ान वदलीत कर दिया है लेकिन इन्सान की बदक़िस्मती यह है के वह उन सलाहियतों से फ़ाएदा नहीं उठाता है और हमेशा अपने को बेचारा ही समझता है जो जेहालत की बदतरीन मन्ज़िल है के इन्सान को अपनी ही क़द्र व क़ीमत का अन्दाज़ा न हो सके। किसी शाएर ने क्या ख़ूब कहा हैः अपनी ही ज़ात का इन्सान को इरफ़ाँ न हुआ; ख़ाक फिर ख़ाक थी औक़ात से आगे न बढ़ी ))

सय्यद रज़ी- इस मुख़्तसर से कलाम में इस क़दर ख़ूबियां पाई जाती हैं जहां तक किसी की दाद व तारीफ़ नहीं पहुँच सकती है और इसमें हैरत व इस्तेजाब का हिस्सा पसन्दीरगी की मिक़दार से कहीं ज़्यादा है। इसमें फ़साहत के वह पहलू भी हैं जिनको कोई ज़बान बयान नहीं कर सकती है और उनकी गहराईयों का कोई इन्सान इदराक नहीं कर सकता है और इस हक़ीक़त को वही इन्सान समझ सकता है जिसने फन्ने बलाग़त का हक़ अदा किया हो और उसके रगो रेशे से बाख़बर हो। और उन हक़ाएक़ को अहले इल्म के अलावा कोई नहीं समझ सकता है।

इसी ख़ुतबे का एक हिस्सा जिसमें लोगों को तीन हिस्सों पर तक़सीम किया गया है-

वह शख़्स किसी तरफ़ देखने की फ़ुरसत नहीं रखता जिसकी निगाह में जन्नत व जहन्नम का नक़्शा हो। तेज़ रफ़तारी से काम करने वाला निजात पा लेता है और सुस्त रफ़तारी से काम करके जन्नत की तलबगारी करने वाला भी उम्मीदवार रहता है लेकिन कोताही करने वाला जहन्नम में गिर पड़ता है। दाहिने बाएं गुमराहियों की मंज़िलें हैं और सीधा रास्ता सिर्फ़ दरमियानी रास्ता है इसी रास्ते पर रह जाने वाली किताबे ख़ुदा और नबूवत के आसार हैं और इसी से शरीअत का नेफ़ाज़ होता है और इसी की तरफ़ आक़ेबत की बाज़गश्त है। ग़लत अद्आ करने वाला हलाक हुआ और इफ़तरा करने वाला नाकाम व नामुराद हुआ। जिसने हक़ के मुक़ाबले में सर निकाला वह हलाक हो गया और इन्सान की जेहालत के लिये इतना ही काफ़ी है के इसे अपनी ज़ात का भी इरफ़ान न हो। जो बुनियाद तक़वा पर क़ाएम होती है उसमें हलाकत नहीं होती है और इसके होते हुए किसी क़ौम की खेती प्यास से बरबाद नहीं होती है। अब तुम अपने घरों में छिप कर बैठ जाओ और अपने बाहेमी काम की इस्लाह करो। तौबा तुम्हारे सामने है -3-। तारीफ़ करने वाले का फर्ज़ है के अपने रब की तारीफ़ करे और मलामत करने वाले को चाहिए के अपने नफ़स की मलामत करे।

17- आपका इरशादे गिरामी

(उन ना-अहलों के बारे में जो सलाहियत के बग़ैर फै़सले का काम शुरू कर देते हैं और इसी ज़ैल में दो बदतरीन इक़साम मख़लूक़ात का ज़िक्र भी है)

क़िस्मे अव्वल- याद रखो के परवरदिगार की निगाह में बदतरीन ख़लाएक़ दो तरह के अफ़राद हैं (( जाहिल इन्सानों की हमेशा यह ख़्वाहिश होती है के परवरदिगार उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे और वह जो चाहें करें किसी तरह की कोई पाबन्दी न हो हालांकि दरहक़ीक़त यह बदतरीन अज़ाबे इलाही है। इन्सान की फ़लाहो बहबूद इसी में है के मालिक उसे अपने रहम व करम के साये में रखे वरना अगर उससे तौफ़ीक़ात को सल्ब करके उसके हाल पर छोड़ दिया तो वह लम्हों में फ़िरऔन, क़ारून, नमरूद, हज्जाज और मुतवक्किल बन सकता है। अगरचे उसे एहसास यही रहेगा के उसने कायनात का इक़तेदार हासिल कर लिया है और परवरदिगार उसके हाल पर बहुत ज़्यादा मेहरबान है।))

वह शख़्स जिसे परवरदिगार ने इसी के रहम व करम पर छोड़ दिया है और वह दरमियानी रास्ते से हट गया है। सिर्फ़ बिदअत का विल्दावा है और गुमराही की दावत पर फ़रेफ़ता है। यह दूसरे अफ़राद के लिये एक मुस्तक़िल फ़ितना है और साबिक़ अफ़राद की हिदायत से बहका हुआ है। अपने पैरोकारों को गुमराह करने वाला है ज़िन्दगी में भी और मरने के बाद भी। यह दूसरों की ग़ल्तियों का भी बोझ उठाने वाला है और उनकी ख़ताओं में भी गिरफ़तार है।

क़िस्मे दोम- वह शख़्स जिसने जेहालतों को समेट लिया है और उन्हीं के सहारे जाहिलों के दरम्यान दौड़ लगा रहा है ((क़ाज़ियों की यह क़िस्म हर दौर में रही है और हर इलाक़े में पाई जाती है। बाज़ लोग गांव या शहर में इसी बात को अपना इम्तेयाज़ तसव्वुर करते हैं के उन्हें फ़ैसला करने का हक़ हासिल है अगरचे उनमें किसी क़िस्म की सलाहियत नहीं है। यही वह क़िस्म है जिसने दीने ख़ुदा को तबाह और ख़ल्क़े ख़ुदा को गुमराह किया है और यही क़िस्म शरीह से शुरू होकर उन अफ़राद तक पहुंच गई है जो दूसरों के मसाएल को बाआसानी तय कर देते हैं और अपने मसले में किसी तरह के फ़ैसले से राज़ी नहीं होते हैं और न किसी की राय को सुनने के लिये तैयार होते हैं)) फ़ित्नों की तारीकियों में दौड़ रहा है और अम्न व सुलह के फ़वाएद से यकसर ग़ाफ़िल है। इन्साननुमा लोगों ने इसका नाम आलिम रख दिया है हालाँके इसका इल्म से कोई ताल्लुक़ नहीं है। सुबह सवेरे इन बातों की तलाश में निकल पड़ता है जिनका क़लील इनके कसीर से बेहतर है। यहां तक के जब गन्दे पानी से सेराब हो जाता है और महमिल और बेफ़ाएदा बातों को जमा कर लेता है तो लोगों के दरमियान क़ाज़ी बन कर बैठ जाता है और इस अम्र की ज़िम्मेदारी ले लेता है के जो काम दूसरे लोगों पर मुश्तबह हैं वह उन्हें साफ़ कर देगा। इसके बाद जब कोई मुबहम मसला आ जाता है तो इसके लिए बे सूद और फ़रसूदा दलाएल को इकट्ठा करता है और उन्हीं से फ़ैसला कर देता है। यह शबाहत में इसी तरह गिरफ़तार है जिस तरह मकड़ी अपने जाले में फंस जाती है। इसे यह भी नहीं मालूम है के सही फ़ैसला किया है या ग़लत। अगर सही किया है तो भी डरता है के शायद ग़लत हो और अगर ग़लत किया है तो भी यह उम्मीद रखता है के शायद सही हो। ऐसा जाहिल है जो जिहालतों में भटक रहा हो और ऐसा अन्धा है जो अन्धेरों की सवारी पर सवार हो। न इल्म में कोई हतमी बात समझा है और न किसी हक़ीक़त को परखा है। रिवायात को यूं उड़ा देता है जिस तरह तेज़ हवा तिनकों को उड़ा देती है। ख़ुदा गवाह है के यह इन फ़ैसलों के सादिर करने के क़ाबिल नहीं है जो उसपर वारिद होते हैं और इस काम का अहल नहीं है जो उसके हवाले किया गया है। जिस चीज़ को नाक़ाबिले तवज्जो समझता है उसमें इल्म का एहतेसाल भी नहीं देता है और अपनी पहुंच के मावराए किसी और राय का तसव्वुर भी नहीं करता है। अगर कोई मसला वाज़े नहीं होता है तो उसे छिपा देता है के उसे अपनी जिहालत का इल्म है।

नाहक़ बहाए हुए ख़ून इसके फै़सलों के ज़ुल्म से फ़रयादी हैं और ग़लत तक़सीम की हुई मीरास चिल्ला रही है। मैं ख़ुदा की बारगाह में फ़रयाद करता हूं ऐसे गिरोह जो ज़िन्दा रहते हैं तो जेहालत के साथ और मर जाते हैं तो ज़लालत के साथ। इनके नज़दीक कोई मताअ किताबे ख़ुदा से ज़्यादा बेक़ीमत नहीं है अगर इसकी वाक़ई तिलावत की जाए और कोई मताअ इस किताब से ज़्यादा क़ीमती और फ़ाएदामन्द नहीं है अगर उसके मफ़ाहिम में तहरीफ़ कर दी जाए। इनके लिए मारूफ़ से ज़्यादा मुन्किर कुछ नहीं है और मुन्किर से ज़्यादा मारूफ़ कुछ नहीं है। ((याद रहे के अमीरूल मोमेनीन (अ) ने मसले के तमाम एहतेमालात का सद बाब कर दिया है और अब किसी राय परस्त इन्सान के लिए फ़रार करने का कोई रास्ता नहीं है और उसे नमसब में राय और क़यास इस्तेमाल करने के लिये एक न एक महमिल बुनयाद को इख़्तेयार करना पड़ेगा। इसके बग़ैर राय और क़यास का कोई जवाज़ नहीं है।))