नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा0%

नहजुल बलाग़ा लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
कैटिगिरी: विज़िट्स: 177369
डाउनलोड: 12812

कमेन्टस:

नहजुल बलाग़ा
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 53 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 177369 / डाउनलोड: 12812
आकार आकार आकार
नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

30- आपका इरशादे गिरामी

(क़त्ले उस्मान की हक़ीक़त के बारे में)

याद रखो अगर मैंने इस क़त्ल का हुक्म दिया होता तो यक़ीनन मैं क़ातिल होता और अगर मैंने मना किया होता तो यक़ीनन मैं मददगार क़रार पाता, लेकिन बहरहाल यह बात तयषुदा है के जिन बनी उमय्या ने मदद की है वह अपने को उनसे बेहतर नहीं कह सकते हैं जिन्होंने नज़रअन्दाज़ कर दिया है आर जिन लोगों ने नज़रअन्दाज़ कर दिया है वह यह नहीं कह सकते के जिसने मदद की है वह हमसे बेहतर था। अब मैं इस क़त्ल का ख़ुलासा बता देता हूँ, “उस्मान ने खि़लाफ़त को इख़्तेयार किया तो बदतरीन तरीक़े से इख़्तेयार किया और तुम घबरा गए तो बुरी तरह से घबरा गए और अब अल्लाह दोनों के बारे में फ़ैसला करने वाला है।”

(((यह तारीख़ का मसला है के उसमान ने सारे मुल्क पर बनी उमय्या का इक़्तेदार क़ायम कर दिया था और बैतुलमाल को बेतहाशा अपने ख़ानदान वालों के हवाले कर दिया था जिसकी फ़रयाद पूरे आलमे इस्लाम में शुरू हो गई थी और कूफ़ा और मिस्र तक के लोग फ़रयाद लेकर आ गये थे। अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने दरमियान में बैठकर मसालेहत करवाई और यह तय हो गया के मदीने के हालात की ज़रूरी इस्लाह की जाए और मिस्र का हाकिम मोहम्मद बिन अबीबक्र को बना दिया जाए , लेकिन मुख़ालेफ़ीन के जाने के बाद उस्मान ने हर बात का इन्कार कर दिया और दाई मिस्र के नाम मोहम्मद बिन अबीबक्र के क़त्ल का फ़रमान भेज दिया। ख़त रास्ते में पकड़ लिया गया और जब लोगों ने वापस आकर मदीने वालों को हालात से आगाह किया तो तौबा का इमकान भी ख़त्म हो गया और चारों तरफ़ से मुहासरा हो गया। अब अमीरूल मोमेनीन (अ0) की मुदाख़ेलत के इमकानात भी ख़त्म हो गए थे और बाला आखि़र उस्मान को अपने आमाल और बनी उमय्या की अक़रबा नवाज़ी की सज़ा बरदाश्त करना पड़ी और फिर कोई मरवान या माविया काम नहीं आया।)))

31- आपका इरशादे गिरामी

जब आपने अब्दुल्लाह बिन अब्बास को ज़ुबैर के पास भेजा के इसे जंग से पहले इताअते इमाम (अ0) की तरफ़ वापस ले आएँ।

ख़बरदार तल्हा से मुलाक़ात न करना के इससे मुलाक़ात करोगे तो उसे उस बैल जैसा पाओगे जिसके सींग मुड़े हुए हों। वह सरकश सवारी पर सवार होता है और उसे राम किया हुआ कहते है। तुम सिर्फ़ ज़ुबैर से मुलाक़ात करना इसकी तबीअत क़द्रे नर्म है -4-। उससे कहना के तुम्हारे मामूज़ाद भाई ने फ़रमाया है के तुमने हेजाज़ में मुझे पहचाना था और ईराक़ में आकर बिल्कुल भूल गए हो। आखि़र यह नया सानेहा क्या हो गया है। सय्यद रज़ी- “माअदा मिम्माबदा”यह फ़िक़रा पहले पहल तारीख़े ग़ुरबत में अमीरूल मोमेनीन (अ0) ही से सुना गया है।

32- आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमें ज़माने के ज़ुल्म का तज़किरा है और लोगों की पांच क़िस्मों को बयान किया गया है औश्र इसके बाद ज़ोहद की दावत दी गई है)

ऐ लोगो! हम एक ऐसे ज़माने में पैदा हुए हैं जो सरकश और नाषुक्रा है। यहाँ नेक किरदार बुरा समझा जाता है और ज़ालिम अपने ज़ुल्म में बढ़ता ही जा रहा है। न हम इल्म से कोई फ़ायदा उठाते हैं और न जिन चीज़ों से नावाक़िफ़ हैं उनके बारे में सवाल करते हैं और न किसी मुसीबत का उस वक़्त तक एहसास करते हैं जब तक वह नाज़िल न हो जाए। लोग इस ज़माने में चार तरह के हैं। बाज़ वह हैं जिन्हें रूए ज़मीन पर फ़साद करने से सिर्फ उनके नफ़्स की कमज़ोरी और उनके असलहे की धार की कुन्दी और उनके असबाब की कमी ने रोक रखा है। बाज़ वह हैं जो तलवार खींचते हुए अपने शर का ऐलान कर रहे हैं और अपने सवार प्यादे को जमा कर रहे हैं। अपने नफ़्स को माले दुनिया के हुसूल और लशकर की क़यादत या मिम्बर की बलन्दी पर उरूज के लिये वक़्फ़ कर दिया है और दीन को बरबाद कर दिया है और यह बदतरीन तिजारत है के तुम दुनिया को अपने नफ़्स की क़ीमत बना दो या अज्र आखि़रत का बदल क़रार दे दो। बाज़ वह हैं जो दुनिया को आखि़रत के आमाल के ज़रिये हासिल करना चाहते हैं और आखि़रत को दुनिया के ज़रिये नहीं हासिल करना चाहते हैं, उन्होंने निगाहों को पहचान लिया है। क़दम नाप-नाप कर रखते हैं। दामन को समेट लिया है और अपने नफ़्स को गोया अमानतदारी के लिये आरास्ता कर लिया है और परवरदिगार की परदेदारी को मासियत का ज़रिया बनाए हुए हैं। बाज़ वह हैं जिन्हें हुसूले इक़्तेदार से नफ़्स की कमज़ोरी और असबाब की नाबूदी ने दूर रखा है और जब हालात ने साज़गारी का सहारा नहीं दिया तो इसी का नाम क़नाअत रख लिया है। यह लोग अहले ज़ोहद का लिबास ज़ेबे तन किये हुए हैं जबके इनकी शाम ज़ाहिदाना है और न सुबह। (पांचवी क़िस्म)- इसके बाद कुछ लोग बाक़ी रह गये हैं जिनकी निगाहों को बाज़गष्त की याद ने झुका दिया है और इनके आंसुओं को ख़ौफ़े महशर ने जारी कर दिया है। इनमें बाज़ आवारा वतन और दौरे इफ़तादा हैं और बाज़ ख़ौफ़ज़दा और गोशानशीन हैं। बाज़ की ज़बानों पर मोहर लगी हुई है और बाज़ इख़लास के साथ महवे दुआ हैं और दर्द रसीदा की तरह रन्जीदा हैं। उन्हें ख़ौफ़े हुक्काम ने गुमनामी की मन्ज़िल तक पहुँचा दिया है।

((( इन्सानी मुआशरे की क्या सच्ची तस्वीर है, जब चाहिये अपने घर, अपने महल्ले, अपने शहर, अपने मुल्क पर एक निगाह डाल लीजिये। इन चारों क़िस्में बयकवक़्त नज़र आ जाएंगी। वह शरीफ़ भी मिल जाएंगे जो सिर्फ़ हालात की तंगी की बिना पर शरीफ़ बने हुए हैं वरना बस चल जाता तो बीवी बच्चों पर भी ज़ुल्म करने से बाज़ नहीं आते। व्ह तीस मार ख़ाँ भी मिल जाएंगे जिनका कुल शरफ़ फ़साद फ़िल अर्ज़ है और किसी को अपनी अहमियत व अज़मत का ज़रिया बनाए हुए हैं के हमने भरी महफ़िल में फ़लाँ को कह दिया और फ़लाँ अख़बार में फ़लाँ के खि़लाफ़ यह मज़मून लिख दिया या अदालत में यह फ़र्ज़ी मुक़दमा दायर कर दिया। वह मुक़द्दस भी मिल जाएंगे जिनका तक़द्दुस ही इनके फ़िस्क़ व फ़जूर का ज़रिया है। दुआ-तावीज़ के नाम पर नामहरमों से खि़लवत इख़्तेयार करते हैं और औलियाअल्लाह से क़रीबतर बनाने के लिये अपने से क़रीबतर बना लेते हैं। चादरें ओढ़ाकर दुआएं मंगवाते हैं और तन्हाई में बुलाकर जादू उतारते हैं। वह फाक़ामस्त भी मिल जाएंगे जिन्हें हालात की मजबूरी ने क़नाअत पर आमादा कर दिया है वरना इनकी सही हालत का अन्दाज़ा दूसरों के दस्तरख़्वानों पर बख़ूबी लगाया जा सकता है। तलाश है इन्सानियत को इस पांचवीं क़िस्म की जो सिवाए पन्जेतने पाक के और किसी के आस्ताने पर नज़र नहीं आती है। काश दुनिया को अब भी होश आ जाए।)))

और बेचारगी ने इन्हें घेर लिया है, गोया वह एक खारे समन्दर के अन्दर ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं जहां मुंह बन्द हैं और दिल ज़ख़्मी है। इन्होंने इस क़द्र मौग़ता किया है के थक गये हैं और वह इस क़द्र दबाए गए हैं के बाला आख़िर दब गये हैं और इस क़द्र मारे गये हैं के इनकी तादाद भी कम हो गयी है। लेहाज़ा अब दुनिया को तुम्हारी निगाहों में कीकर के छिलकों और ऊवन के रेज़ों से भी ज़्यादा पस्त होना चाहिये, और अपने पहलेवालों से इबरत हासिल करनी चाहिये। क़ब्ल इसके के बाद वाले तुम्हारे अन्जाम से इबरत हासिल करें। इस दुनिया को नज़रअन्दाज़ कर दो, यह बहुत ज़लील है यह उनके काम नहीं आई है जो तुमसे ज़्यादा इससे दिल लगाने वाले थे। सय्यद रज़ी- बाज़ जाहिलों ने इस ख़ुतबे को माविया की तरफ़ मन्सूब कर दिया है जबके बिला शक यह अमीरूल मोमेनीन का कलाम है और भला क्या राबेता है सोने और मिट्टी में और शीरीं और शूर में इस हक़ीक़त की निशानदेही फ़न्ने बलाग़त के माहिर और बा-बसीरत तनक़ीदी नज़र रखने वाले आलिम अमरू बिन बहरल जाख़त ने भी की है जब इस ख़ुतबे को “अलबयान व अलतबययन”में नक़्ल करने के बाद यह तबसेरा किया है के बाज़ लोगों ने इसे माविया की तरफ़ मन्सूब कर दिया है हालांके यह हज़रत अली (अ0) के अन्दाज़े बयान से ज़्यादा मिलता जुलता है के आप ही इस तरह लोगों के एक़साम , मज़ाहेब और क़हर व ज़िल्लत और तक़या व ख़ौफ़ का तज़केरा किया करते थे वरना माविया को कब अपनी गुफ़्तू में ज़ाहिदों का अन्दाज़ या आबिदों का तरीक़ा इख़्तेयार करते देखा गया है।

33- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(अहले बसरा से जेहाद के लिये निकलते वक़्त, जिसमें आपने रसूलों की बाअसत की हिकमत और फिर अपनी फ़ज़ीलत और ख़वारिज की रज़ीलत का ज़िक्र किया है)

अब्दुल्लाह बिन अब्बास का बयान है के मैं मक़ाम ज़ीक़ार में अमीरूल मोमेनीन (अ0) की खि़दमत में हाज़िर हुआ जब आप अपनी नालैन की मरम्मत कर रहे थे। आपने फ़रमाया इब्ने अब्बास! इन जूतियों की क्या क़ीमत है ? मैंने अर्ज़ की कुछ नहीं! फ़रमाया के ख़ुदा की क़सम यह मुझे तुम्हारी हुकूमत से ज़्यादा अज़ीज़ हैं मगर यह के हुकूमत के ज़रिये मैं किसी हक़ को क़ायम कर सकूँ या किसी बातिल को दफ़ा कर सकूँ। इसके बाद लोगों के दरमियान आकर ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया- अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उस वक़्त मबऊस किया जब अरबों में कोई न आसमानी किताब पढ़ना जानता था और न नबूवत का दावेदार था। आपने लोगों को खींच कर उनके मुक़ाम तक पहुँचाया और उन्हें मन्ज़िले निजात से आशना बना दिया। यहाँ तक के इनकी कजी दुरूस्त हो गई और इनके हालात इसतवार हो गये।

((( अमीरूल मोमेनीन (अ0) के ज़ेरे नज़र ख़ुतबे की फ़साहत व बलाग़त अपने मक़ाम पर है। आपका यह एक कलमा ही आपकी ज़िन्दगी और आपके नज़रियात का अन्दाज़ा करने के लिये काफ़ी हैं। ख़ुसूसियत के साथ इस सूरतेहाल को निगाह में रखने के बाद के आप जंगे जमल के मौक़े पर बसरा की तरफ़ जा रहे थे और हज़रत आइशा आपके खि़लाफ़ जंग की आग उस प्रोपगन्डा के साथ भड़का रही थीं के आपने हुकूमत व इक़तेदार की लालच में उसमान को क़त्ल करा दिया है और तख़्ते खि़लाफ़त पर क़ाबिज़ हो गए हैं। ज़्ारूरत थी के आप तख़्ते हुकूमत के बारे में अपने नज़रियात का एलान कर देते। लेकिन यह काम ख़ुतबे की शक्ल में होता तो इसकी अमली शक्ल का समझना हर इन्सान के बस का काम नहीं था लेहाज़ा क़ुदरत ने एक ग़ैबी ज़रिया फ़राहम कर दिया जहाँ आप अपनी जूतियों की मरम्मत कर रहे थे और इब्ने अब्बास सामने आ गए। सूरतेहाल ने पहले तो इस अम्र की वज़ाहत की के आप तख़्ते खि़लाफ़त पर “क़ाबिज़”होने के बाद भी ऐसी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे के आपके पास सही व सालिम जूतियाँ भी नहीं थीं और फिर शिकस्ता और बोसीदा जूतियों की मरम्मत भी किसी सहाबी या मुलाज़िम से नहीं कराते थे बल्कि यह काम भी ख़ुद ही अन्जाम दिया करते थे। ज़ाहिर है के ऐसे शख़्स को हुकूमत की क्या लालच हो सकती है और उसे हुकूमत से क्या सुकून व आराम मिल सकता है। इसके बाद आपने दो बुनियाद नुकात का एलान फ़रमाया-1. मेरी निगाह में हुकूमत की क़ीमत जूतियों के बराबर भी नहीं है के जूतियां तो कम से कम मेरे क़दमों में रहती हैं और तख़्ते हुकूमत तो ज़ालिमों और बेईमानों को भी हासिल हो जाता है। 2. मेरी निगाह में हुकूमत का मसरफ़ सिर्फ़ हक़ का क़याम और बातिल का इज़ाला है वरना इसके बग़ैर हुकूमत का कोई जवाज़ नहीं है।)))

आगाह हो जाओ के ब ख़ुदा क़सम मैं इस सूरते हाल के तबदील करने वालों में शामिल था यहाँतक के हालात मुकम्मल तौर पर तब्दील हो गए और मैं न कमज़ोर हुआ और न ख़ौफ़ज़दा हुआ और आज भी मेरा यह सफ़र वैसे ही मक़ासिद के लिये है। मैं बातिल के शिकम को चाक करके इसके पहलू से वह हक़ निकाल लूंगा जिसे इसने मज़ालिम की तहों में छिपा दिया है। मेरा क़ुरैश से क्या ताल्लुक़ है, मैंने कल इनसे कुफ्र की बिना पर जेहाद किया था और आज फ़ित्ना और गुमराही की बिना पर जेहाद करूंगा। मैं इनका पुराना मद्दे मुक़ाबिल हूँ और आज भी इनके मुक़ाबले पर तैयार हूँ। ख़ुदा की क़सम क़ुरैश को हमसे कोई अदावत नहीं है मगर यह के परवरदिगार ने हमें मुन्तख़ब क़रार दिया है और हमने उनको अपनी जमाअत में दाखि़ल करना चाहा तो वह इन अश्आर के मिस्दाक़ हो गए। हमारी जाँ की क़सम यह शराबे नाबे सबाह यह चर्ब चर्ब ग़िज़ाएं हमारा सदक़ा हैं हमीं ने तुमको यह सारी बलन्दियां दी हैं वगरना तेग़ो सिनां बस हमारा हिस्सा हैं।

(((इस मक़ाम पर यह ख़याल न किया जाए के ऐसे अन्दाज़े गुफ़्तगू से अवामुन्नास में मज़ीद नख़वत पैदा हो जाती है और इनमें काम करने का जज़्बा बिल्कुल मुरदा हो जाता है और अगर वाक़ेअन इमाम अलैहिस्सलाम इसी क़द्र आजिज़ आ गए थे तो फिर बार-बार दुहराने की क्या ज़रूरत थी। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया होता। जो अन्जाम होने वाला था हो जाता और बाला आखि़र लोग अपने कीफ़र किरदार को पहुँच जाते? इसलिये के एक जज़्बाती मष्विरा तो हो सकता है मुन्तक़ी गुफ़्तगू नहीं हो सकती है। उकताहट और नाराज़गी एक फ़ितरी रद्दे अमल है जो अम्रे बिलमारूफ़ की मन्ज़िल में फ़रीज़ा भी बन जाता है। लेकिन इसके बाद भी एतमामे हुज्जत का फ़रीज़ा बहरहाल बाक़ी रह जाता है। फ़िर इमाम (अ0) की निगाहें इस मुस्तक़बिल को भी देख रही थीं जहां मुसलसल हिदायत के पेशेनज़र चन्द अफ़राद ज़रूर पैदा हो जाते हैं और उस वक़्त भी पैदा हो गए थे यह और बात है के क़ज़ा व क़द्र ने साथ नहीं दिया और जेहाद मुकम्मल नहीं हो सका। इसके अलावा यह नुक्ता भी क़ाबिले तवज्जो है के अगर अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने सुकूत इख़्तेयार कर लिया होता तो दुशमन इसे रज़ामन्दी और बैअत की अलामत बना लेते और मुख़्लेसीन अपनी कोताही अमल का बहाना क़रार दे लेते और इस्लाम की रूह अमल और तहरीक दुनियादारी मुरदा होकर रह जाती।)))

34-आपकेख़ुतबेकाएकहिस्सा

(जिसमें ख़वारिज के क़िस्से के बाद लोगोंं को अहले शाम से जेहाद के लिये आमादा किया गया है और उनके हालात पर अफ़सोस का इज़हार करते हुए इन्हें नसीहत की गई है)

हैफ़ है तुम्हारे हाल पर, मैं तुम्हें मलामत करते करते थक गया। क्या तुम लोग वाक़ेअन आख़ेरत के एवज़ ज़िन्दगानी दुनिया पर राज़ी हो गए हो और तुमने ज़िल्लत को इज़्ज़त का बदल समझ लिया है? के जब मैं तुम्हें दुशमन से जेहाद की दावत देता हूँ तो तुम आँखें फिराने लगते हो जैसे मौत की बेहोशी तारी हो और ग़फ़लत के नशे में मुब्तिला हो। तुम पर जैसे मेरी गुफ़्तगू के दरवाज़े बन्द हो गए हैं के तुम गुमराह होते जा रहे हो और तुम्हारे दिलों पर दीवानगी का असर हो गया है के तुम्हारी समझ ही में कुछ नहीं आ रहा है। तुम कभी मेरे लिये क़ाबिले एतमाद नहीं हो सकते हो और न ऐसा सुतून हो जिस पर भरोसा किया जासके और न इज़्ज़त के वसाएल हो जिसकी ज़रूरत महसूस की जा सके तुम तो उन ऊंटों जैसे हो जिनके चरवाहे गुम हो जाएं के जब एक तरफ़ से जमा किये जाते हैं तो दूसरी तरफ़ से भड़क जाते हैं। ख़ुदा की क़सम! तुम बदतरीन अफ़राद हो जिनके ज़रिये आतिशे जंग को भड़काया जा सके। तुम्हारे साथ मक्र किया जाता है और तुम कोई तद्बीर भी नहीं करते हो। तुम्हारे इलाक़े कम होते जा रहे हैं और तुम्हें ग़ुस्सा भी नहीं आता है। दुशमन तुम्हारी तरफ़ से ग़ाफ़िल नहीं है मगर तुम ग़फ़लत की नींद सो रहे हो। ख़ुदा की क़सम सुस्ती बरतने वाले हमेशा मग़लूब हो जाते हैं और ब-ख़ुदा मैं तुम्हारे बारे में यही ख़याल रखता हूँ के अगर जंग ने ज़ोर पकड़ लिया और मौत का बाज़ार गर्म हो गया तो तुम फ़रज़न्दे अबूतालिब से यूँही अलग हो जाओगे जिस तरह जिस्म से सर अलग हो जाता है।(((यह दयानतदारी और ईमानदारी की अज़ीमतरीन मिसाल है के कायनात का अमीर मुसलमानों का हाकिम, इस्लाम का ज़िम्मेदार क़ौम के सामने खड़े होकर इस हक़ीक़त का एलान कर रहा है के जिस तरह मेरा हक़ तुम्हारे ज़िम्मे है इसी तरह तुम्हारा हक़ मेरे ज़िम्मे भी है। इस्लाम में हाकिम हुक़ूक़ुल इबाद से बलन्दतर नहीं होता है और न उसे क़ानूने इलाही के मुक़ाबले में मुतलक़ुलअनान क़रार दिया जा सकता है। इसके बाद दूसरी एहतियात यह है के पहले अवाम के हुक़ूक़ को अदा करने का ज़िक्र किया। इसके बाद अपने हुक़ूक़ का मुतालबा किया और हुक़ूक़ के बयान में भी अवाम के हुक़ूक़ को अपने हक़ के मुक़ाबले में ज़्यादा अहमियत दी। अपना हक़ सिर्फ़ यह है के क़ौम मुख़लिस रहे और बैयत का हक़ अदा करती रहे और एहकाम की इताअत करती रहे जबके यह किसी हाकिम के इम्तेयाज़ी हुक़ूक़ नहीं हैं बल्के मज़हब के बुनियादी फ़राएज़ हैं। इख़लास व नसीहत हर शख़्स का बुनियादी फ़रीज़ा है। बैअत की पाबन्दी मुआहेदा की पाबन्दी और तक़ाज़ाए इन्सानियत है। एहकाम की इताअत एहकामे इलाहिया की इताअत है और यही ऐन तक़ाज़ाए इस्लाम है। इसके बरखि़लाफ़ अपने ऊपर जिन हुक़ूक़ का ज़िक्र किया गया है वह इस्लाम के बुनियादी फ़राएज़ में शामिल नहीं हैं बल्कि एक हाकिम की ज़िम्मेदारी के शोबे हैं के वह लोगों को तालीम देकर इनकी जेहालत का इलाज करे और उन्हें महज़ब बनाकर अमल की दावत दे और फिर बराबर नसीहत करता रहे और किसी आन भी इनके मसालेह व मनाफ़ेअ से ग़ाफ़िल न होने पाए।)))

ख़ुदा की क़सम अगर कोई शख़्स अपने दुशमन को इतना क़ाबू दे देता है के वह इसका गोश्त उतार ले और हड्डी तोड़ डाले और खाल के टुकड़े- टुकड़े कर दे तो ऐसा शख़्स आजिज़ी की आखि़री सरहद पर है और इसका वह दिल इन्तेहाई कमज़ोर है जो इसके पहलूओं के दरम्यान है। -2- तुम चाहो तो ऐसे ही हो जाओ लेकिन मैं ख़ुदा गवाह है के इस नौबत के आने से पहले वह तलवार चलाऊंगा के खोपड़ियां टुकड़े- टुकड़े होकर उड़ती दिखाई देंगी और हाथ पैर कट कर गिरते नज़र आएंगे। इसके बाद ख़ुदा जो चाहेगा वह करेगा। ऐ लोगो एक हक़ तुम्हारे ज़िम्मे है और एक हक़ तुम्हारा मेरे ज़िम्मे है। तुम्हारा हक़ मेरे ज़िम्मे यह है के मैं तुम्हें नसीहत कर दूं और बैतुलमाल का माल तुम्हारे हवाले कर दूँ और तुम्हें तालीम दूँ ताके तुम जाहिल न रह जाओ और अदब सिखाऊं ताके बाअमल हो जाऊँ और मेरा हक़ तुम्हारे ऊपर यह है के बैयत का हक़ अदा करो और हाज़िर व ग़ाएब हर हाल में ख़ैर ख़्वाह रहो। जब पुकारूं तो लब्बैक कहो और जब हुक्म दूँ तो इताअत करो।