बहलोल दाना

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बहलोल दाना लेखक:
कैटिगिरी: मुसलमान बुध्दिजीवी

बहलोल दाना

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यदा आबेदा नरजिस
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बहलोल दाना

बहलोल दाना

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

बोहलोल दाना

लेखिकाः सैय्यदा आबिदा नरजिस

अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क

यह बादशाहो का सा मेजाज़ रखने वाले लोग गोया बादशाहो जैसे एहतेराम के मुस्तहक़ हैं।

इन गुदड़ी पोश बादशाहों के ग़ुलाम भी अपनी गुदड़ीयों में जमशेद और ख़क़ान का सा वेक़ार छिपाये फ़िरते हैं।

उन्होने आज दुनिया भर की नेमतो को नज़र अन्दाज़ कर दिया है और कल यह जन्नत को आँख उठा कर भी नहीं देखेंगें

इन बर्हना –पा फकीरो को हिक़ारत की निगाह से न देखो। कि अक़्ल के नज़दीक यह उन आँखो से ज़्यादा मोहतरम हैं जिन में ख़ौफे इलाही से आँसू चमकते हैं।

हाँ। अगर आदम (अ.स.) ने जन्नत को गेंहू के दो दानो के एवज़ बेच दिया था।

तो सच जानो के यह दीवाने जन्नत को एक जौं के एवज़ भी नहीं ख़रीदेंगें।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

नज्रे-कारेईन

बोहलोल तारिख़ का एक ऐसा यगान-ए। रोज़गार किरदार है। जिसे आले मौ 0 (अ.स.) के मोजिज़े से ताबीर किया जाये तो ग़लत नहीम होगा।

इस नाम के कई और लोग भी गुज़रे हैं। लेकिन बोहलोल से मुराद उमूमन वही शख़्स लिया जाता है। जिसने दीवानगी का मफ़हूम बदल दिया और दानिशे बुर्हानी के माना समझाये। तारिख़ के सफहात में यह वाहिद दीवाना है। जो दाना-ए-राज़ है और यह तन्हा पागल कहलवाने वाला है। जो दानिशमन्दो को हिकमत व-दानिश सिखाता है।

उसने एक ऐसी अनोखी राह चुनी थी। जो आज तक किसी के क़दमों से पामाल नहीं हुई।

बोहलोल की (बे) पर पेश ( ') और 0 पर जज़म ( ^) है। यह नाम हँसमुख ; सच्चे और हाज़िर जवाब लोगो के लिये इस्तेमाल होता है। बोहलोल की इन ही ख़ूबियों ने उसका असली नाम फरमोश कर दिया था। वह हर जगह बोहलोल ही कहलाता था। जिस तरह वह अपने दौर में एक मक़बूल शख़्सियत था। उस तरह हर दौर में एक पंसदीदा किरदार रहा। उसकी हिकायत दिलचस्पी और शौक़ से कही और सुनी जाती है।

उसका अस्ल नाम वहब बिन अमरौ और जाये विलादत कूफा बयान की गई है।

वह बग़दाद के सरवतमन्दो में से था। बाज़ रवायत में उसे हारून रशीद का क़रीबी रिश्तेदार औऱ बरादरे मादरी लिखा गया है। वह इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के शार्गिदो में से था। उसने उनके फरज़न्द इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) का ज़माना भी देखा है।

क़ाज़ी नूरूल्लाह शूस्त्री के बक़ौल वह हारून रशीद के अहद के दानिशमन्दों में से गुज़रा है। जो किसी मसलहत के तहत दीवाना बन गया था।

(मजालिसुल मोमेनीन)