बहलोल दाना

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बहलोल दाना लेखक:
कैटिगिरी: मुसलमान बुध्दिजीवी

बहलोल दाना

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यदा आबेदा नरजिस
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बहलोल दाना
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बहलोल दाना

बहलोल दाना

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

नानबाई

कल बग़दाद के बड़े बाजार में एक फकीर नानबाई की दुकान के सामने से गुज़र रहा था। उसने तरह-तरह के खाने चुल्हो पर चढ़ा रखे थे। ज़िससे भाँप निकल रही थी। उन खानो की ख़ुश्बू उन खानो की लज़्जत का पता दे रही थी और इर्द-गिर्द गुज़रने वालो को अपनी तरफ मुतावज्जेह कर रही थी

बेचारे फकीर का दिल भी ललचाया। लेकिन ग़रीब की गिरह में माल कहाँ था। जो इन खानो की लज़्ज़त खरीद सकता। मगर वहाँ से हटने को भी उसका दिल नहीं चाहता था। खानो की खुश्बू उसकी भूक बड़ा रही थी। बिल आख़िर उसने अपने थैले में से सूखी रोटी निकाली और खाने की देग़ की भाँप से नर्म करके उसे खाने लगा , जिसमें खाने की ख़ुश्बू बसी हुई थी।

नानबाई चुपचाप यह तमाशा देखता रहा। जब फकीर की रोटी ख़त्म हो गई और वह चलने लगा। तो नानबाई ने उसका रास्ता रोक लिया। क्यों ओ मुस्टण्डे। कहाँ भागा जाता है। ला मेरे पैसे निकाल।

कौन से पैसे फकीर ने हक दक हो कर पूछा। अच्छा कौन से पैसे।

उसने अल्फाज़ चबाकर उगले। अभी जो तूने मेरे खाने की भाँप के साथ रोटी खाई है। वह क्या तेरे बाप की थी। उसकी क़ीमत कौन चुकायेगा

अजीब इन्सान हो , तुम। वह भाँप तो उड़कर हवा में मिल रही थी। अगर मैंने उसके साथ रोटी खाकर ख़ुद को बहलाने की कोशीश की है तो उसमें तेरा क्या चला गया है जिसकी मैं क़ीमत अदा करूँ। फकीर ने परेशान होकर कहा।

बस।बस। अब इधर-उधर की बाते मत कर। मैं तेरी जान हर्गिज़ न छोडूँगा। मैं अपना माल वसूल कर रहूँगा। नानबाई ने उसका गरेबान पकड़ लिया। फकीर बेचारा परेशान हो गया के इस हट्टे-कट्टे नानबाई से किस तरह जान छुड़ाये। उनकी तकरार बढ़ती जा रही थी कि बोहलोल उधर से गुज़रा और उनके क़रीब रूककर उनकी बाते सुनने लगा। फकीर ने अपना हमदर्द समझकर यह बात उसे सुनाई। तो वह बोहलोल नानबाई से बोला। भाई यह बात बताओ के क्या इस ग़रीब आदमी ने तुम्हारा खाना खाया है।

नहीं। खाना तो नहीं खाया। मगर मेरे खाने की भाँप से फायदा तो उठाया है। मैंने उसी की क़ीमत माँगी है। लेकिन इसकी समझ में यह बात ही नहीं आती। नानबाई ने बताया।

बिल्कुल दुरूस्त कह रहे हो बरादर। बिल्कुल दुरूस्त। बोहलोल ने सर हिलाया और अपनी जेब से मुटठी भर सिक्के निकाले। वह एक-एक करके उन सिक्को को ज़मीन पर गिराता जाता और कहता जाता। नानबाई।नानबाई। यह ले पैसों की आवाज़ पकड़ ले। यह ले अपने खाने की भाँप की क़ीमत इन सिक्को की खनक से वुसूल कर ले। ले-ले। यह सिक्को की आवाज़ तेरे खाने की ख़ुश्बू की क़ीमत है। इसे अपने गुल्लक में डाल ले इर्द-गिर्द खड़े हुए लोग हँस-हँस कर दोहरे हो गये।

नानबाई अपनी ख़िफ़्फ़त मिटाने को बोला। यह पैसे देने का कौन-सा तरीक़ा है। बोहलोल ने जवाब दिया। अगर तू अपने खाने की भाँप और ख़ुश्बू बेचेगा। तो उसकी क़ीमत तुझे सिक्कों की आवाज़ की सूरत में ही अदा की जायेगी।

बहुत ख़ूब हारून खुश होकर हंसा। वल्लाह यह किसी दीवाने का फ़ैसला तो मालूम नहीं होता। इसमें तो ग़ैरे मामूली दानिश छिपी हुई है। लगता है उसकी दीवानगी ने उसकी दानिश को कोई नुकसान नही पहुँचाया।

आली-जाह। बजा फरमाते हैं। बोहलोल हरकते तो पागलों किसी करता है मगर उसकी बातों में उसकी दानिश बोलती है। अगर इजाज़त हो तो मैं भी एक वाक़ेआ हुज़ूर की समाअत की नज़्र करूँ। एक दूसरे दरबारी ने कहा। इजाज़त है। हारून ने इजाज़त दी।

सोने का सिक्का

अभी चन्द दिन पहले की बात है के उसने न जाने कहाँ से एक सोने का सिक्का पाया था। वह उसके साथ बच्चों की तरह खेल रहा था। कभी वह उसको उंगली पर नचाता था। कभी रेत से साफ करता और कभी पहिये की तरह घुमाता।

एक नौ सरबाज़ उसका यह खेल देख रहा था। उसने उसे पागल समझ कर कहा। तुम्हे इस एक सिक्के से खेलने में मज़ा तो नहीं आ रहा होगा। तुम यही सिक्का मुझे दे दो। मैं इसके बदले में तुम्हे दस सिक्के दूँगा। उसने जेब से सिक्के निकाल कर बोहलोल को दिखाये।

ठीक है। मैं यह सिक्का तुम्हे अभी दे देता हूँ मगर एक शर्त पर। बोहलोल ने कहा।

वह क्या। नौ सरबाज़ ने पूछाः पहले तू गधे की तरह ढ़ीचूँ ढ़ीचूँ की आवाज़ निकाल। बोहलोल ने शर्त रखी।

उस धोखेबाज़ ने सोचा इस दीवाने के सामने गधे की आवाज़ निकालने में क्या हर्ज है। इस लिये वह शुरू हो गया और गधे की तरह रेंकने लगा।

बोहलोल हसाँ। अजब गधे हो भाई। तुमने मेरे सोने के सिक्के को फौरन पहचान लिया और मैं गधा भी नहीं। तो भला मैं तुम्हारे ताँबे के सिक्के को क्यों न पहचानता। वह नौ सर बाज़ इस क़द्र शर्मिन्दा हुआ के उसे भागते ही बनी।

हारून को भी हँसी आ गई और बोला। शोखी तो ख़ैर उसकी तबियत मे शुरू से ही बहुत हैं। हमें उसके बारे में कुछ और भी बताओ ताकि हम जान सकें के उसकी दीवानगी किस मंज़िल पर है

ज़िल्ले सुब्हानी। इजाज़त हो तो मैं बयान करूँ। एक दरबारी ने अदब से कहा। बयान करो। हारून ने इजाज़त दी हुज़ूर। अभी कुछ ज़्यादा दिन नहीं हुए कि उसने एक अजीब फैसला किया और वह भी इस तरह के क़ाज़ी को उसके सामने सरे तसलीम ख़म करना पड़ा। दरबारी ने कहना शुरू किया।

हुआ इस तरह के बोहलोल ने राह चलते दो बच्चो को रोते और फ़रियाद करते देखा वह उनके सामने रूक गया और उनके सर पर हाथ फेर कर बोला। बच्चो तुम क्यो परेशान हो

बड़ा लड़का बोला। हम फ़लाँ शख़्स के बेटे हैं। हमारा बाप हज को गया था। उसने चलने से पहले एक हज़ार अशर्फि क़ाज़ी के पास ब-तौर अमानत रखवाई थी और कहा था के ज़िन्दगी मौत का कोई भरोसा नहीं। अगर मैं सफरे हज से वापिस न आया तो तुम मेरे बच्चो को उसमें से जो तुम्हारा दिल चाहे दे देना और अगर ख़ुदा मुझे वापिस ले आया तो मैं अपनी अमानत तुमसे वापिस ले लूँगा। मगर अफसोस के क़ज़ा हो गया। हम यतीम और बेआसरा हो गये हमने अपने बाप की अमानत क़ाज़ी से माँगी तो वह कहने लगा कि तुम्हारे बाप ने मेरे साथ जो क़ौल किया था। उसके मुताबिक़ जो मेरा दिल चाहेगा। वह तुम्हे दूँगा।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

इस लिए यह सौ अशर्फिया ले जाना चाहो तो ले लो। उसने उन लोगो की गवाही भी पेश कर दी। जिन के सामने यह क़ौल हुआ था। हम लोग बहुत परेशान हैं। यतीम हैं हमारा कोई आसरा नहीं।

बोहलोल ने उनके सर पर हाथ रखा और बोला। बेटा परेशान न हो। अपने आँसू पोछ लो औऱ मेरे साथ चलो मैं खुद क़ाज़ी से बात करता हूँ।

वह लड़के उसके साथ चल पड़े। बोहलोल उन्हे लेकर क़ाज़ी के पास आया और बोला। ऐ क़ाज़ी। तू इन यतीम बच्चो का हक़ उन्हे क्यो नहीं देता।

अच्छा। तो यह चालाक लड़के अब तुम्हे अपना हिमायती बना कर लाये हैं। हालाँकि इन के बाप ने कई लोगो के सामने मुझे ये इख़्तेयार दिया था के मैं जो कुछ चाहूँ उन्हे दे दूँ। अब मैं सौ अशर्फियाँ उन्हे देता हूँ। तो यह लेने से इन्कार करते हैं और मुझे वैसे ही शहर भर में बदनाम करते फिरते हैं। क़ाज़ी ने ठाट से जवाब दिया।

बोहलोल ने बड़े इत्मीनान से कहा।

क़ाज़ी जी। आपने बिल्कुल दुरूस्त फरमाया है। यह क़ौल ज़रूर हुआ है। लेकिन इस क़ौल से तो यह साबित होता है के आप जो चाहते हैं वह नौ सौ अशर्फियाँ हैं और यही इन बच्चो के मरहूम बाप ने कहा था के जो आपका दिल चाहे वह आप उसके बच्चो को दे दें। तो क़िबला क़ाज़ी साहब।

चूँकि आप नौ सौ अशर्फियाँ चाहते है। इस लिये यही उसके बच्चो को दे दें।

क़ाज़ी तो अंगुश्त-ब-दन्दां बोहलोल का मुँह तकता रह गया।

हाज़िरीन ने बोहलोल की ताईद की और उसे उन यतीम बच्चो का हक़ देते ही बनी।

अच्छा। तो उसने शहर के क़ाज़ी को आजिज़ कर दिया और कहलाता दीवाना है। हारून रशीद ने ज़ोर देकर कहा।

आली जहा। वह पागलो की सी हरकते भी करता है कभी अपने असा को घोड़ा बनाकर उस पर सवारी करता है तो कभी बच्चो के साथ मिलकर मिट्टी से खेलता है। रेत के घरावदें बनाता है। हाँ नमाज़ के वक़्त मस्जिद में पहुँच जाता है अभी पिछले जुमे को उसने एक ऐसा शिग़ोफा छोड़ा के हँस-हँस कर नमाज़ीयों के पेट में बल पड़ गये। वज़ीर ने बताया।

बयान करो वह क्या बात है। हारून ने कहा।

जूते

गुज़श्ता जुमे को वह नमाज़ पढ़ने मस्जिद में आया। तो ग़लिबन चोरी के डर से उसने अपने जूते एक कपड़े में बाँध कर अपनी अबा में छिपा लिये। यहाँ के मक़ामी लोग तो बोहलोल को जानते हैं एक ऐसा शख्स जो उसे पहचानता नहीं था। उसने उसे बग़ल में कोई चीज़ दाबे हुए देखकर कहा।

मालूम होता है के आपके पास कोई क़ीमती किताब है जिसे आपने इतनी हिफाज़त से रखा हुआ है।

बोहलोल ने बड़ी सन्जीदगी से जवाब दिया। आप ने दुरूस्त अन्दाज़ा लगाया। बहुत क़ीमती किताब है।

उस शख़्स ने पूछाः क्या आप बताना पसन्द फरमायेगें के यह कौन-सी किताब है।

जी हाँ। क्यों नहीं। यह फलसफे की किताब है। बोहलोल ने बताया।

फलसफे की किताब। सुब्हानअल्लाह आपने किस कुतुब फ़रोश से ख़रीदी है।

जनाब यह मैंने मोची से ख़रीदी है। बोहलोल ने मज़े में जवाब दिया। जो लोग उसकी हरकतो से वाक़िफ थे। उन्हे हँसी ज़ब्त करना मोहाल हो गई।

हारून भी मुस्कुराया। तो मौसूफ की दीवानगी। फर्ज़ानो को शर्माती है। हमें उसकी इस रविश पर शक है।

कहीं यह लोगो की आँखो में धूल तो नहीं झोंक रहा है।

आपने बजा फरमाया आला हज़रत अल्लाह ताला ने आपको बेहतरीन अक़्ल व दानिश से नवाज़ा है। ख़याल आपके ही ज़हने रसा में आ सकता है। किसी ख़ुशाम्दी ने फौरन हाँ में हाँ मिलायी।

तुम सब नमक हराम हो। लगता है के वह कोई साज़िश कर रहा है और तुम लोगो को कोई ख़बर ही नहीं। उसके बारे में फ़ौरन पता चलाओ के उसकी दीवानगी के पसे परदा कौन से मक़ासिद पौशीदा हैं और उसे कल दरबार में तलब करो।

वरना तुम सब की गरदन मार दी जायेगी।

हारून ने जलाले शाही से हुक्म जारी किया और दरबार बर्ख़ास्त हो गया।

ख़लीफा का एक कारिन्दा फ़ौरन ही बोहलोल की तलाश में रवाना कर दिया गया बोहलोल उसे कहीं भी नहीं मिला। न वह उस वीरान खण्डर में था। जो उसका बसेरा था। न ही कब्रिस्तान में जहाँ वह अक्सर व बेश्तर किसी सोच में डूबा बैठा रहता था। किसी ने बताया के वह मस्जिद की तरफ़ जाते हुए देखा गया है।

अबुहनिफा

कारिन्दा भी मस्जिद की तरफ चल पड़ा। अभी वह रास्ते ही में था के उसने देखा के बोहलोल अपने जूते हाथ में पकड़े। छड़ी बग़ल में दबाये। गिरता पड़ता मस्जिद से बाहर निकला और जिस तरफ़ उसका मुँह उठा। सरपट भागता चला गया।

उसके पीछे एक शोर बलन्द हुआ। लेना-पकड़ना देखो जाने न पाये। पकड़ो। इस दीवाने को पकड़ो। इस ग़ुस्ताख की खबर लो। कुछ नौजवान तालिबे इल्म मस्जिद से निकले और वावेला करते बोहलोल का पीछा करने लगे।

बोहलोल अपनी ही अबा में उलझता और छड़ी सँभालता। जूतो को बग़ल में दबाता। मुड़-मुड़ कर देखता। उनकी पहुँच से दूर निकलने की कोशीश कर रहा था। लेकिन बिल-आख़िर उन नौजवानो की सुबुक रफ़्तारी ने उसको जा लिया। वह उसकी ठुकाई करने लगे।

औ ग़ुस्ताख। तेरी यह जुर्अत के तूने हमारे उस्ताद को मिट्टी का ढेला मारा हम तुझे ज़िन्दा नहीं छोड़ेगें। हम तेरी जान ले लेंगे। गँवार दीवाने।

हाँ-हाँ। मैंने उसको मारा है। मैं कब इन्कार करता हूँ। लेकिन उसे लगा कहाँ हैं। अगर उसे लगा भी है। तो उसे कोई तकलीफ नहीं हुई। तुम बेकार शोर मचा रहे हो। हटो पीछे। छोड़ो मुझे। बोहलोल दुहाई देने लगा।

हारून का कारिन्दा दौड़कर क़रीब पहुँचा और बीच बचाओ कराते हुए बोला

भाईयों। तुम लोग क्यों इस पागल के पीछे पड़े हो। कुछ इन्साफ से काम लो तुम लोग इतने सारे हो और यह अकेला। आख़िर हुआ क्या है। यह पूछें के क्या नहीं हुआ। इस दीवाने ने हमारे उस्तादे मोहतारम इमाम अबुहनीफ़ा को मिट्टी का ढेला खींच मारा। जो उनकी पेशानी पर लगा। हम इसको हर्गिज़ नहीं छोड़ेगें। वह फिर बोहलोल के गिर्द हो गये।

हारून के कारिन्दे ने उन्हे रोक दिया। मगर हुआ क्या था। क्या उनके साथ बोहलोल का कोई झगड़ा हुआ था।

एक तालिबे इल्म बोला: क्या बात कर रहें हैं आप। हमारे उस्तादे मोहतरम की शान इस से बालातर है के वह इस जैसे के साथ झगड़ा करें। वह तो हमें मामूल के मुताबिक़ दर्स दे रहे थे। के यह कमबख़्त न जाने कहाँ से नमूदार हो गया और उनकी पेशानी पर ढेला ख़ींच मारा। आप दरमियान् से हट जायें। यह पागल है या दीवाना। आज तो हम इसको ऐसा सबक़ सिखा कर छोड़ेगें के सारा पागलपन भूल जायेगा। एक लड़के ने अपनी बात खत्म करके फिर बोहलोल की तरफ देखकर दाँत किचकिचाये।

क्यों बोहलोल। क्या यह लड़के ठीक कह रहे हैं कारिन्दे ने बोहलोल से पूछा।

हाँ। मैंने उसको मारा है। मगर उसे लगा तो नही। न ही उसे कोई तकलीफ हुई। पूछ लो उससे मेरे पीछे क्यों पड़े हो। बोहलोल ने बड़ी बेनियाज़ी से जवाब दिया।

देखी। आपने इसकी ढिटाई उस्तादे मोहतरम पेशानी पकड़े बैठे हैं और यह कहता है के उन्हे ढेला लगा ही नहीं। मैं अभी इसका दिमाग़ दुरूस्त करता हूँ। वह तालिबे इल्म फिर बोहलोल पर झपटा।

हारून के कारिन्दे ने उसका बाज़ू पकड़ लिया बात सुनो लड़के। सब जानते हैं के यह दीवाना है फिर ख़लीफा का रिश्तेदार भी है। तुम इसे मार कर क़ानून को हाथ में न लो। इसे क़ाज़ी के पास ले जाओ। वही सही फैसला करगा।

बात लड़के की समझ में आ गयी। वह बोहलोल को पकड़ कर क़ाज़ी के पास ले गये और उसे तमाम माजरा कह सुनाया। तो बोहलोल बोला। ज़रा अपने उस्तादे मोहतरम को भी तो बुला लाओ। मुद्दई के बग़ैर तुम दावा किस तरह पेश कर सकते हो

बोहलोल दुरूस्त कहता है। तुम अपने उस्ताद को बुला लाओ। क्योंकि मुद्दई तो वही हैं फिर हम देख भी लेंगे के ज़र्ब कितनी शदीद् है

क़ाज़ी ने हुक्म दिया।

तालिबे इल्म गये और अबु हनीफा को बुला लाये। बोहलोल ने क़ाज़ी से कहा। क़ाज़ी जी। क़ाज़ी जी क्या मैं इन लड़को के उस्तादे मोहतरम से बात कर सकता हूँ।

हाँ शौक़ से। क़ाज़ी ने इजाज़त दी। बोहलोल ने उन्हे मुख़ातब किया। मेरे अज़ीज़म मैंने तुझ पर कौन सा ज़ुल्म किया है।

अजीब मसख़रे हो तुम। अभी तुमने सबके सामने मेरी पेशानी पर मिट्टी का ढेला मारा। अबु हनीफ़ा ने ग़ुस्से से कहा।

तो भाई। उससे तुझे क्या फ़र्क़ पड़ता है। तू भी मिट्टी से बना है और वह ढेला भी मिट्टी का था। अभी तू ख़ुद ही तो अपने शार्गिदों को समझा रहा था के इमाम जाफरे सादिक़ (अ.स.) जो यह फरमाते हैं के इब्लीस को जहन्नम का अज़ाब दिया जायेगा , वह दुरूस्त नहीं है। वह आग से बना है। और उसको आग भला क्या तकलीफ पहुँचायेगी।

तू भी ख़ाकी और मिट्टी के ढेले से बना है फ़िर भला मिट्टी के ढेले ने तुझे क्या तकलीफ पहुँचाई।

फ़ुज़ूल बाते मत करो। तुमने वह ढेला इतनी ज़ोर से मारा है के मेरी पेशानी और सर में दर्द हो रहा है।

अबु हनीफा ने नागवारी से कहा। आप भी ग़लत बयानी न करें आला हज़रत अगर आपकी पेशानी में दर्द है। तो वह हमें नज़र क्यों नहीं आता। बोहलोल ने हाथो-हाथ जवाब दिया।

ओ हो। किस अहमक़ से पाला पड़ा है। अक़्लमन्द आदमी। क्या कभी दर्द भी किसी को नज़र आया है। अबू हनीफ़ा ने नापसन्दीदगी से जवाब दिया।

क़िब्ला उस्ताद साहब। अभी तो आप अपने शार्गिदों से फरमां रहे थे। कि इमाम जाफरे सादिक़ (अ.स.) जो फरमाते हैं कि ख़ुदा को देखना मुमकिन नहीं। मैं इस बात को नहीं मानता। भला जो चीज़ मौजूद है। उसे नज़र आना चाहिये। इसलिये ख़ुदा को देखना मुमकिन है। तो अगर आपके सरे मुबारक में दर्द हो रहा है। तो उसे हमें भी दिखाइये। बोहलोल ने शग़ुफ्तगी से कहा।

अबु हनीफा ज़ीच हो गये और क़ाज़ी से बोले क़ाजी साहब। यह दीवाना तो यूँ हीं इधर-उधर की हाँक रहा है। इसने सबके सामने मुझे पत्थर मारा है। आप गवाहिइयाँ लेकर इसे सज़ा दें और कार्यवाही ख़त्म करें।

या हज़रत। अगर मुझ नाचीज़ ने आपको मिट्टी का ढेला मार भी दिया है तो इसमें मुझ दीवाने की क्या तक़सीर। अभी आप ही तो अपने शार्गिदों से फरमां रहे थे कि आपको इमाम जाफरे सादिक़ (अ.स.) के इस क़ौल से भी इख़्तेलाफ़ है कि वह फरमाते हैं के अच्छा या बुरा काम करने वाला खुद उसका ज़िम्मेदार है और उसके लिये जवाब देह है। जबकि आप फरमाते हैं के हर फ़ेल अल्लाह की तरफ से होता है। और बन्दा उसका ज़िम्मेदार नहीं।

इस लिये ढेला मैंने आपको नहीं मारा। यह काम तो ख़ुदा ने मुझसे करवाया है। अब भला मैं किस तरह इस काम के लिये सज़ा का मुस्तेहक़ ठहरा। जो मैंने नहीं किया। ख़ुदा-रा क़ाज़ी साहब आप ही इन्साफ कीजिए।

अबु हनीफा ला जवाब से हो गये। क़ाज़ी जो दोनों की दिलचस्प बहस से महज़ूज़ हो रहा था। बोलाः बोहलोल ने अपना मुक़द्दमा जीत लिया है।

बोहलोल ने इत्मीनान से गहरी साँस ली। पाँव में जूते पहने और छड़ी सँभाल कर अदालत से बाहर निकल आया। वह अपनी धुन में बड़बड़ा रहा था। आले मोहम्मद (अ.स.) की तक़ज़ीब करने वालो को मुहँ की खानी पड़ती है उलूमे-अहलेबैत (अ.स.) को झुटलाने वालो के मुक़द्दर में जीत नहीं।

हारून का कारिन्दा उसके पीछे-पीछे चला उसने दो एक बार उसे मुतावज्जे करने की कोशिश की। लेकिन वह अपनी धुन में मस्त चलता चला गया और उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। हारून का कारिन्दा कुछ फासला रखकर उसका पीछा करता रहा।

बोहलोल कभी अपने आप से बातें करने लगता। कहीं खड़ा होकर अपनी छड़ी से ज़मीन कुरेदता। कहीं राह चलते बच्चो के सर पर हाथ फेर कर कोई मेज़ाहिया फ़िक़रा कस देता कहीं दीवार से टेक लगाकर अपने ख़्यालो में डूब जाता।

इसी तरह चलते-चलते आधा दिन बीत गया। सूरज सर पर आ गया। बोहलोल अपने खण्डर में दाखिल हुआ और टूटी हुई दीवार के साथ कमर लगाकर सुसताने लगा। उसने आँखे बन्द कर लीं और फर्शे ख़ाक पर टाँगे पसार लीं।

कारिन्दा जो बहुत देर से उसके ताक़्क़ुब में था। उसने सोचा कि दिन बीत चला है। खाने का वक़्त है। लेकिन बोहलोल ने खाना नहीं खाया। बेहतर यही है के वह उसके लिये खाना ले आये ताकि उससे बात करने का बहाना हो जाये। उसे खुद भी भूक लगी थी। वह बाज़ार गया। एक होटल में बैठकर खुद खाना खाया और कुछ उम्दा खाना खरीद कर एक खुश् नुमा खान में रखा और बोहलोल के खण्डर में वापिस आ गया।

बोहलोल अपने आप में मगन न जाने ख़यालात की कौन सी गुंत्थियाँ सुलझा रहा था।

खलीफा का खाना

हारून का कारिन्दा आगे बढ़ा और बोहलोल को मुतावज्जेह करने के लिये इत्तेलाई अन्दाज़ में खन्कारा। बोहलोल ने आँखे खोलकर उसकी तरफ देखा। उसने सलाम किया। बोहलोल ने जवाब दिया तो वह बोला। जनाब बोहलोल साहब खलीफा हारून ने आपके लिये यह खाना भेजा है। उसने खाने का ख़ान उसके आगे ही रख दिया।

बोहलोल हँसा। वाह-वाह। इस्लामी ममलेकत के बादशाह मुझ जैसे कम हैसियत दीवानों का भी ख़याल रखते हैं।

ख़लीफ़ा हारून की रेआया परवरी तो ज़र्बुल-मसल है।

कारिन्दे ने फौरन कहा।

बोहलोल ने अपने दायें बायें देखा और उस कुत्ते को चुमकारा जो खण्डर में एक जानिब बैठा हुआ था। कुत्ता दुम हिलाता क़रीब आ गया। बोहलोल ने खाने का ख़ुश् नुमा ख़ान उठाया और कुत्ते सामने रख दिया। कुत्ता बे-सबरी से मुँह मारने लगा।

ख़ुदा की पनाह। बोहलोल यह क्या करते हो। ख़लीफ़ा का खाना तुमने कुत्ते के सामने रख दिया। मुलाज़िम ने दुहाई दी।

हशिश्त। चुप-चाप। ख़ामोश रहो। मुँह बन्द रखो अगर इस कुत्ते ने सुन लिया के यह खाना का ख़लीफ़ा का है। तो यह भी नहीं खायेगा।

मुलाज़िम अपनी हँसी नही रोक सका और बोला बोहलोल तुम भी अजीब मसखरे हो। मैं तुम्हरे लिये ख़लीफ़ा का यह पैग़ाम भी लाया हूँ के कल उन्होने तुम्हे दरबार में तलब किया है। बहतर है के कल तुम ख़ुद ही हाज़िरे दरबार हो जाना।

बोहलोल ने कोई जवाब नहीं दिया और वह काररिन्दा वापिस चला गया।

बादशाह की मसनद

अगले रोज़ बोहलोल का रूख़ हारून के महल की जानिब था। उसने पेवन्द लगे कपड़े पहन रखे थे। दोश पर गुदड़ी थी और हाथ में असा। दरबान का मालूम था कि वह हारून का रिश्तेदार हैं और उसे हारून ने तलब किया है। इसलिये उसने इसे अन्दर जाने की इजाज़त दे दी।

वह अपनी फटी हुई जूतियाँ चटखाता। बड़ी बे-तक्ल्लुफी से अन्दर दाखिल हुआ। दीवाने ख़ास में पहुँचा। वज़ीरों की कुर्सीयाँ भी ख़ाली पड़ी हैं। शायद अभी दरबार आरास्ता नही हुआ था। वह क़ीमती क़ालीन को रौंदता। बादशाह की मसनद पर जा पहुँचा। और मज़े से उस पर ब्राजमान हो गया।

अभी उसे बैठे हुए चन्द लम्हे भी नहीं हुए थे के दरबार के पहरेदार दौड़ते हुए आये। उन्हे इत्तेलाअ थी के हारून इसी तरफ आ रहा है। यह देख कर वह दंग रह गये के बादशाह की ज़रीं मसनद पर बोहलोल फटे हाल बैठा है। उन्हे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं आया। वे बदहवासी में आगे बढ़े। एक ने बोहलोल का दामन पकड़ कर ख़ींचा। दूसरे ने कोड़ा बोहलोल की पुश्त पर रसीद किया।

ओ दीवाने। तेरी यह जुर्अत के तू बादशाह की मसनद पर बैठे। उतर नीचे।

हाय। बोहलोल ने तड़र कर नारा मारा। हाय-हाय। उफ़। यह दुहाई देने लगा।

मुँह बन्द करो। शोर मत मचाओ उतरो बादशाह की मसनद पर से उतरो। पहरेदार ने उसकी पुश्त पर मुसलसल कोड़े बर्साते हुए दुरूश्तों से कहा।

दूसरे ने ज़ोर लगाया और बोहलोल को मसनद पर खींच कर फर्श पर गिरा दिया। बोहलोल सर हीटने लगा। हाय अफसोस सद अफसोस। आह-आह उफ़।

उफ़ वह बलन्द आवाज़ में मुसलसल रोता जा रहा था।

पहरेदारो की जान पर बनी थी। लेकिन वह किसी तरह ख़ामोश होने का नाम ही नहीं लेता था। उसी वक़्त हारून की आमद की इत्तेलाअ नक़ीबो ने दी और चन्द लम्हो बाद वह दीवाने ख़ास में दाखिल हुआ। उसने बोहलोल को इस तरह रोते चिल्लाते और फर्याद करते देखा तो हैरान रह गया। उसने आगे बढ़कर बोहलोल को फर्श पर से उठाना चाहा लेकिन वह नहीं उठा और उसी तरह रोते हुए। अफ़सोस। अफ़सोस और हाय। हाय पुकारता रहा।

यह सब क्या हो रहा है। हारून ने डाँट कर पूछा। आली जहा। यह दीवाना हुज़ूर की मसनद पर जा बैठा था और उतरने का नाम नहीं लेता था। इस लियें हमें थोड़ी सी सख़्ती करनी पड़ी।

पहरे दारो ने डरते। डरते बताया। हाय। यह थोड़ी सी सख़्ती थी। अरे ज़ालिमों। तुमने तो मेरी कमर उधेड़कर रख दी है। हाय अफ़सोस। उफ़-उफ़ बोहलोल ने फरयाद करते हुए उन्हे टोका।

हारून ने निगाहे इताब उन पर डाली। तुम लोग देखते नहीं के यह दीवाना है

पहरेदार आयें बायें शायें करने लगे। हारून ने बोहलोल की दिलजूई करते हुए उसे फ़र्श से उठाया और तसल्ली दी लेकिन वह मुसलसल रोता जा रहा था।

हारून ने बड़ी तशवीश से पूछा। बोहलोल इस तरह क्यों रो रहे हो। क्या तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँची है।

हाँ। मुझे बहुत तकलीफ़ पहुँची है। लेकिन मैं अपने हाल पर नहीं तुम्हारे हाल पर रो रहा हूँ। हाय अफसोस। हाय अफसोस। बोहलोल ने तास्सुफ से कहा।

मेरे हाल पर। हारून को ताज्जुब हुआ क्या गुज़रती होगी। मैं तो तुम्हारी मसनद पर चन्द लम्हे ही बैठा हूँ। तो इतनी मार खाई के सारी पुश्त छलनी हो गई और तू न जाने कब से इस मसनद पर बैठ रहा है। उफ़ तुझे अपने अन्जाम की कोई फ़िक्र नहीं।

हारून लम्हे भर को काँप गया। लेकिन उसने यूँही ज़ाहिर किया। जैसे उसकी बात नहीं समझा और बोहलोल से बोला। तुम मेरे हाल पर अफ़सोस करते हो और मैं तुम्हारे हाल पर। तुम अच्छे भले तो थे। फिर तुम्हें न जाने क्या हुआ है। जो यूँ दीवाने बने फुरते हो

बोहलोल मुस्कुराया। तुम जानते हो के ख़ुदा की सबसे बड़ी नेमत अक़्ल है।

ख़्वाजा अब्दुल्लाह अन्सारी अपनी मुनाजात में फ़रमाते हैं के ऐ ख़ुदा। जिसको तुने अक़्ल दी। उसे क्या कुछ नहीं दिया और जिसे अक़्ल नहीं दी। उसे क्या दिया

तुमने वह हदीस तो सुनी होगी जब ख़ुदा इरादा करता है के बन्दे से अपनी नेमतें वापिस ले लें तो सबसे पहले बन्दे से जो चीज़ वापिस लेता है वह अक़्ल है। अक़्ल रिज़्क़ में शुमार होती है। अफ़सोस के ख़ुदा ने मुझसे यह नेमत वापिस ले ली है

लेकिन इससे शाही ख़ानदान की किस क़द्र ज़िल्लत हो रही है। तुम्हे इसका भी कुछ अन्दाज़ा है। सब जानते है के तुम मेरे रिश्तेदार हो और तुम हो के इस हुलिये में जगह-जगह फिरते हो। कुछ नहीं तो मेरे मनसब और मर्तबे का ही ख़याल करो। हारून ने सरज़निश के अन्दाज़ में कहा।

बोहलोल और हारून

बोहलोल ने सर उठाया और बोला। हारून तू अगर किसी जंगल बयाबान में रास्ता भटक जाये। तेरा प्यास से दम निकल रहा हो। और तुझे कहीं पानी न मिले। तो तू एक घूँट पानी के एवज़ क्या कुछ देने पर तैयार हो जायेगा।

अजीब दीवाने हो तुम। भला इस वक़्त इसका क्या ज़िक्र। हारून ने ना-गवारी से कहा।

बोहलोल हँसा। मेरी बात का जवाब तो दो ज़ाहिर है। उस वक्त मेरे पास जो भी मालो दौलत होगा वह सब दे दूँगा। हारून ने बेपरवाई से जवाब दिया।

अगर पानी का मालिक इस क़ीमत पर राज़ी न हो। फिर बोहलोल ने पूछा।

तो मैं उसे अपनी आधी सलतनत दे दूँगा। हारून ने फ़ेराख़दिली से कहा।

अच्छा। बोहलोल ने बड़े इत्मीनान से कहा। अगर यह एक घूँट पानी पीकर तेरी जान बच जाये। लेकिन तुझे पेशाब रूक जाने की बीमारी लाहक़ हो जाये। और किसी तरह दूर न हो।

तेरी जान पर बन जाये और तुझे पता चले के कोई शख़्स से तेरी इस बीमारी का इलाज कर सकता है। तो तू उसे क्या देगा।

मैं उस शख़्स को अपनी बाक़ी आधी सलतनत भी दे दूँगा। जान है तो जहान है।

हारून बोला।

तो फिर इसी बादशाही पर ग़ुरूर करते हो। जिसकी क़ीमत पानी के दो घूँट से ज़्यादा नहीं। बोहलोल ने बर्जस्ता कहा।

हारून ख़फ़ीफ़ सा हो गया। बोहलोल तुम दीवाने हो गये हो। मगर तुम्हारी आदते नहीं बदलीं। तुम्हे अपने खानदान का कोई पास नहीं। पैग़म्बरे ख़ुदा (स 0) के चचा अब्बास के बेटे अब्दुल्लाह बिन अब्बास कितने मर्तबे के हामिल हैं लेकिन तुम अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को तरजीह देते हो।

मुझे अपनी जान का ख़ौफ न हो। तो मैं यही कहूँगा के तुम ठीक कहतो हो। बोहलोल ने जवाब दिया।

हारून चौंका और उसके ख़यालात जानने के लिये बोला। तुम्हे हर तरह से अमान है लेकिन तुम्हे दलील से अपनी बात को हक़ साबित करना पड़ेगा।

बोहलोल सीधा होकर बैठा और वाज़ेह लफ़्ज़ो में बोला। मेरे ख़याल में पैग़म्बरे ख़ुदा (स 0) के बाद अली (अ.स.) तमाम मुसलमानो से अफ़ज़ल हैं। क्योकिं वह सच्चे मोमिन थे। उनकी तमाम आदात पसंदीदा थी और इताअते ख़ुदा और रसूल (स.अ. ) में उनसे ज़र्रा बराबर भी कोताही नहीं हुई। उन्होने तमाम ख़ुदाई अहकामात पर इस तरह हर्फ़ ब हर्फ़ अमल किया कि उसके मुक़ाबले में न सिर्फ़ अपनी जान बल्कि औलाद की जान को भी कुछ नही समझते थे। वह बहुत बहादुर और निडर थे। तमाम जंगो में सबसे आगे रहते थे। उन्होने कभी दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई।

इस बारे में उन से सवाल भी किया गया था के आप जंग में अपनी जान का ख़याल क्यों नहीं रखते। अगर कोई पीछे से हमला करके आप की जान ले ले। तो फिर।

उन्होने जवाब दिया। मेरी लड़ाई ख़ुदा के दीन की ख़ातिर है। उसमें मुझे किसी लालच , फायदे और ज़ाती ग़रज़ का ख़याल नहीं। मेरी जान खुदा के हाथ में है। मैं अगर मर जाऊँगा तो ख़ुदा की राह में मरूँगा और इससे बढ़कर और क्या सआदत होगी।

जब वह मुसलमानो के ख़लीफ़ा थे तो अपना तमाम वक़्त मुसलमानों के कामों और ख़ुदा की इबादत में सर्फ करते थे।

बैतुल माल से एक दीनार भी बेकार नहीं उठाते थे। यहाँ तक के उनके भाई अक़ील ने जो अयालदार थे। उनसे दर्ख़ास्त की के बैयतुल माल से जो उनका हक़ उन्हे मिलता है। उससे कुछ ज़्यादा उन्हे दिया करें।

अमीरूल। मोमेनीन ने उनकी दर्ख़ास्त रद कर दी।

आप तमाम हुक्काम से यह भी फ़रमाते थे के लोगो पर ज़ुल्म न किया जाये। उनके मामलात के फ़ैसले अदल व इन्साफ़ से किये जायें। जो हाकिम ज़रा सा भी ज़ुल्म व सितम करता था। उससे बाज़-पुर्स में सख़्ती करते थे और उसे फ़ौरन मनसब से हटा देते थे। चाहे वह उनका क़रीबी अज़ीज़ ही क्यों न हो। उसे माफ़ नहीं करते थे।

जैसा के अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने जिस वक़्त वह बसरे के हाकिम थे। बैतुल माल की कुछ रक़म ज़ाती कामों में ख़र्च करली थी। आपने उनसे वह रक़म वापिस माँगी और उनके इस फ़ेल पर उन्हे सख़्त तम्बीह की और एक आख़िरी तारीख़ मुक़र्रर कर दी ताकि उससे पहले पहले इब्ने अब्बास वह रक़म वापिस कर दें।

लेकिन इब्ने अब्बास उस मुक़र्ररह तारीख़ तक रक़म नहीं लौटा सके। अली (अ.स.) ने उन्हे कूफ़े में हाज़िर होने का हुक्म दिया। इब्ने अब्बास जानते थे के अली (अ.स.) ऐसे ख़लीफ़ा नहीं है जो दर गुज़र कर देगें और चश्म पोशी से काम लेगें। इस लिये भाग कर वह मक्के चले गये और ख़ुदा के घर में जा बैठे ताकि अली (अ.स.) के मुहासिबों से बच जाये।

हारून शरमिंदा सा हो गया। लेकिन ढटाई से बोला। अगर अली (अ.स.) इतने ही अज़ीम और अवाम दोस्त थे। तो फ़िर क़त्ल क्यों हुए।

हक़ की राह पर चलने वालो को अक्सर शहीद किया गया है। हज़ारों पैग़म्बर और ख़ुदा के नेक बन्दे इसी तरह ख़ुदा की राह में क़त्ल हुए है। बोहलोल ने बर्जस्ता जवाब दिया।

हारून कोई उज़्र न तलाश कर सका तो बोला। अच्छा बोहलोल अब अली (अ.स.) की शहादत का हाल भी सुना दो।

बोहलोल ने सर्द आह भरी और बोला। इमाम ज़ैनुल आबेदीन से रवायत है कि जिस रात अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम क़त्ले अली (अ.स.) के इरादे से मस्जिद में आया। उस वक़्त एक शख़्स और भी उसके साथ था-कुछ देर वे दोनो बाते करते रहे फिर सहने मस्जिद में सो गये।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

जब अली (अ.स.) मस्जिद में दाख़िल हुए तो आपने सोतो को जगाया ताकि नमाज़ पढ़े ये दोनो मलऊन भी बेदार हो गये। अली (अ.स.) नमाज़ के लिये ख़ड़े हो गये। आपने सजदे में सर रख़ा तो इब्ने मुल्जिम ने तलवार आपके सर पर मारी। यह ज़र्ब उसी जगह लगी जहाँ अमरौ बिन अब्देवुद ने गज़व-ए-खंदक में वार किया था। उस बदबख़्त के वार से आपके सर से अबरू तक गहरा ज़ख़्म पड़ गया।

उसकी तलवार ज़हर में बुझी हुई थी इसलिये आप जांबर न हो सके और तीसरे दिन शहादत पायी। आख़री वक़्त अपने बेटों से मुख़ातब होकर फ़र्माया। ख़ुदा के चाहने वालो के लिये इस फ़ानी दुनिया से अम्बिया और औसिया का साथ बेहतर है। अगर मैं इस ज़ख़्म से मर जाऊँ तो मेरे क़ातिल को भी एक ही ज़र्ब लगाना क्योंकि उसने मुझपर सिर्फ़ एक वार किया है और-हाँ-उसका बदन टुकड़े टुकड़े न करना।

यह फ़रमा कर आप कुछ देर के लिये बेहोश हो गये। जब होश में आये तो अपनी वसियत जारी रखी। फ़रमाने लगे मैंने इस वक़्त रसूले ख़ुदा (स 0) को देखा के मुझसे फ़रमा रहें है के कल तुम हमारे पास होगे।

उस वक़्त आसमान का रंग बदल गया। ज़मीन हिलने लगी – मोमिनों की आह-व-बुका से फ़िज़ायें गूँजने लगीं।

अवामुन्नास के नाला व शियु से कान पड़ी आवाज़ सुनाई नहीं देती थी। इस बारे में एक शायर ने क्या ख़ूब कहा है।

आज की रात मुशरिको ने ज़ुल्म का झण्डा बुलन्द कर दिया है। शहादते अली (अ.स.) से दीन के अरकान पर सख़्त वार हुआ है। इस एक वार से जो मोमिनों के बाप को लगा है। ईमान का पूरा का पूरा घर उजड़ गया।

आसमान के मकीनों ने इस ग़म में अपने ताजे सआदत उतार फेके हैं।

दुनिया वालो को बहता पानी कड़वा लगने लगा है। आबे हयात में ज़हर घोल दिया गया है।

ज़ालिमों रसूलुल्लाह के दामाद को शहीद करके उनके दिल में ग़म के तीर पेवस्त कर दियें हैं।

उन्होने अली (ए) मुर्तुज़ा का सर ही दो पारा नहीं किया बल्कि ख़ुदा के हाथ (हज़रत का लक़ब) को भी काट डाला है।

जब से अली (अ.स.) की पेशानी पर दुश्मन की तलवार लगी है चाँद और सूरज की पेशानियाँ भी दाग़दार हो गयीं हैं। यूँ मालूम होता है जैसे शक़्क़ुल-क़मर का मोजिज़ा दोबारा दुनिया पर ज़ाहिर हो गया है।

अली (अ.स.) की पेशानी चाँद की तरह दो टुकड़े हो गयी है। ज़ैनब व उम्मे कुलसूम (अ.स.) के नाला व फ़र्याद की आवाज़े बलन्द हुँई।

हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) ने अपने अमामे शिद्दते ग़म से ज़मीन पर उतार फ़ेंके।

बोहलोल का हर्फ़ दर्द-व-अलम में डूबा हुआ था। हारून भी उसकी तासीर में खो सा गया।

और बहुत देर तक उसके होठों से एक हर्फ़ भी नहीं निकला और उसका सर झुका रहा

बोहलोल ने अपनी गुदड़ी सँभाली और अपने आँसू पोछता हुआ उठ खड़ा हुआ।

अच्छा हारून। अब मुझे इजाज़त दे।

हारून चौंका। ठहरो। तुम हमारे महल में आये हो। यह मुनासिब नहीं के यहाँ से ख़ाली हाथ जाओ।

उसने मुलाज़िमो को हुक्म दिया के बोहलोल के लिये अशर्फ़ियाँ और दीनार लाये जायें।

नहीं हारून। मुझे इन अशर्फ़ियों की हाजत नहीं। तुमने यह माल जिन लोगो से लिया है। उन्हें दे दो। अगर तुमने क़ौम का माल नहीं लौटाया। तो एक दिन ऐसा ज़रूर आयेगा। जब ख़लीफ़ा से इसका तक़ाज़ा किया जायेगा। उस रोज़ ख़लीफ़ा ख़ाली हाथ होगा और उसके पास शर्मिन्दगी और पछतावे के सिवा कुछ नहीं होगा। बोहलोल इतना कहकर चल दिया। हारून लरज़ गया और वहीं पशेमान सा बैठा रह गया।