बहलोल दाना

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बहलोल दाना लेखक:
कैटिगिरी: मुसलमान बुध्दिजीवी

बहलोल दाना

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यदा आबेदा नरजिस
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बहलोल दाना
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बहलोल दाना

बहलोल दाना

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

बोहलोल के घर चोरी

बोहलोल अपने वीरान खण्डर में वापिस आया। तो देखा उसमें क़दमों के निशान हैं। यूँ मालूम होता था। जैसे कोई यहाँ आया है। उसने फ़ौरन एक ख़ास जगह पर देखा। ताज़ा खुदी हुई मिट्टी जिसको हमवार किया गया था। बता रही थी के उसके अन्दाज़ा सही था। उसने अपनी छड़ी से मिट्टी को हटाया उसकी जमाशुदा रक़म ग़ायब थी।

बोहलोल कुछ रक़म किसी हंगामी ज़रूरत के लिये मिट्टी में छिपाकर रखता था। ग़ालेबन किसी ने उसे रक़म छुपाते हुए ताड़ लिया था। उसने अपनी गुदड़ी उठीई और चल पड़ा और नज़दीक ही वाक़ेअ मोची की दुकान पर पहुँचा और बड़ी ख़ुश-तबई से उसे सलाम किया।

आओ। आओ बोहलोल। कैसे आना हुआ। मोची ने ख़ुशी से पूछा।

मैंने सोचा के तुमसे मिल आऊँ। फिर तुमसे एक काम भी है। बोहलोल ने कहा।

कैसा काम है। मोची ने पूछा। तुम एक अच्छे इन्सान हो मुझ जैसे दीवाने का साथ भी ख़ुश-अख़लाक़ी से पेश आते हो। मैं तुमसे एक मशविरा लेना चाहता हूँ। बोहलोल ने कहा।

यह तुम्हारी मेहरबानी है के तुम ऐसा समझते हो। मोची ने ख़ुश होकर कहा।

बोहलोल ज़रा क़रीब हुआ और बोला। तुम तो जानते हो के मैं वीरानों खण्डरों और ख़ाली मकानों में ही रहता हूँ। मैं जहाँ भी रहा। वहाँ थोड़ी बहुत रक़म अपने बुरे वक़्त के लिये बचा कर ज़मीन में दफ़्न कर दी। तुम ज़रा हिसाब लगाकर मुझे बता दो के ये रक़म कुल कितनी होती है।

हाँ-हाँ क्यों नहीं। तुम बताओ मैं हिसाब कर देता हूँ। मोची ने फ़ेराख़दिली से कहा।

ख़ुदा तुम्हारा भला करे। शहर के मशरिक़ी गोशे में जो खण्डर है। वहाँ मैंने शायद सौ सिक्के दबा रखे हैं। कब्रिस्तान में तक़रीबन ढ़ाई सौ सिक्के होगें और एक मकान के सहन में तो पूरे पाँच सौ हैं। हाँ याद आया नहर के किनारे भी पचास सिक्के दफ़्न हैं। तो यह सब मिलाकर कुल कितने हुए। बोहलोल पूछा।

अगर यह सिक्के सोने के है तो इनकी मालियत दो हज़ार के लगभग ज़रूर है। मोची ने हिसाब लगाकर बताया।

बोहलोल कुछ देर सोचता रहा फिर सर उठाकर बोला। यार मैं-चाहता हूँ कि इन सब जगहों मे तमाम सिक्के निकाल लाऊँ और इस वीराने में छुपा दूँ। यहाँ आमद-व-रफ़्त कम है मेरा ख़याल है यह जगह ज़्यादा महफ़ूज़ है।

यह तो बहुत अच्छा ख़्याल है। तमाम रक़म एक जगह रखें ताकि जब ज़रूरत पड़े तो निकालने में आसानी हो। मोची ने दिल ही दिल में ख़ुश होते हुए मशविरा दिया।

बोहलोल अपनी छड़ी के सहारे उठा। अच्छा तो भाई मैं चलता हूँ। आज ही यह काम कर लूँ तो अच्छा है। सारे सिक्के निकाल कर ले आऊँ और यहां गाड़ दूँ। मेरे लिये दुआ करना।

हाँ-जाओ अल्लाह तुम्हारा निगेहबान हो। मोची ने उसे अलविदा कहा।

वह चला गया। तो मोची ने सोचा के उसने बोहलोल के जो सिक्के ज़मीन खोदकर चुराये थे।

उन्हे वापिस रख आये ताकि जब बोहलोल अपने बाक़ी सिक्के लेकर आयो तो उसे शक न हो। और वह अपनी बाक़ी दौलत भी यहाँ गाड़ दे। उसके बाद वह मौक़ा देखकर सारी रक़म निकाल लेगा।

वह जल्दी से गया और उसी जगह बोहलोल की रक़म दबाकर वापिस आ गया।

बोहलोल कहीं शाम को वापिस आया। उसने मिट्टी हटाकर अपनी सारी रक़म निकाल ली और वह वीराना छोड़ कर चला गया। मोची बेचारा उसका इन्तेज़ार ही करता रह गया।

वह अपनी रक़म निकाल कर उस वीराने से निकला और कोई दूसरा ठीकाना तलाश करने लगा।

इत्तेफ़ाकन उसे एक शिकस्ता मकान नज़र आया जो ख़ाली पड़ा था। तमाम शहर जानता था के वह वीरानों से मानूस है। और ऐसी ही जगहों पर रहता है। इसलिये उमूमन कोई उसे परेशान नहीं करता था। उसकी बे-सर-व सामानी ही उसका असासा था उसने उस शिकस्ता मकान का एक गोशा साफ़ किया और वहाँ डेरा जमा लिया।

मकान का सजदा

अभी उसे वहाँ बसेरा किये ज़्यादा देर नहीं हुई थी के टूटे दरवाज़े से एक शख़्स अन्दर दाख़िल हुआ उसने सलाम किया और बोला। वाह-वाह। बहुत ख़ूब। यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई है के बोहलोल जैसा नामवर शख़्स मेरा नया किरायेदार है।

बोहलोल सीधा हो बैठा। मुझे भी इस आलीशान मकान के मालिक से मिलकर बे-हद ख़ुशी हुई है।

मुझे उम्मीद है कि आप इस माह का किराया अदा कर देंगें। मालिक मकान ने कहा।

बोहलोल ने मकान की लरज़ती हुई छत और शिकस्ता दीवारों की जानिब इशारा किया। जनाब ने अपने इस शानदार महल की हालत का मुलाहिज़ा फ़रमाया है कि ज़रा सी हवा चले तो इसकी छत और दीवारे बोलने लगती है।

बेशक-बेशक आप दुरूस्त फ़रमाते हैं। आप जैसा बुज़ुर्ग यह भी जानता होगा कि तमाम मौजूदाते-आलम ख़ुदा की हम्द व सना करते हैं। यह जो आवाज़ आप सुनते हैं यह इस मकान की तसबीह करने की सदा है। वह बोला।

बोहलोल ने अपना असा सँभाला और फ़ौरन ही उठ ख़ड़ा हुआ और बोला। हज़रत आप जैसे दानिशमन्द इन्सान को यह तो मालूम होगा कि मौजूदात हम्द व सना और तसबीह व तहलील के बाद सजदा भी करते है और मैं आपके इस मकान के सजदा करने से पहले ही यहाँ से रूख़सत हो जाना चाहता हूँ। उसने गुदड़ी सँभाली और मकान से बाहर निकल आया।

मुसाफिर आलिम

हारून ने अपनी सी कोशीश की कि किसी तरह बोहलोल पर गिरफ़्त की जा सके लेकिन उसकी हाज़िर दिमाग़ी , उसकी पुर-हिकमत गुफ़्तुगु और आवाम के साथ उसकी क़ुर्बत ने उसे इसका मौक़ा नहीं दिया। वह अपने जासूसो को उसके पीछे लगाये रखता ताकि उसकी सरगर्मियों से बा-ख़बर रहे। किसी वक़्त सख़्ती से उसकी बाज़ पुर्स करता। लेकिन अक्सर मुश्किल मौक़ो पर बोहलोल ही काम आता।

एक बार एक सय्याह बग़दाद में आया। उसने घाट-घाट का पानी पिया था। वह मुल्कों-मुल्कों घूमा था जब वह हारून के दरबार में हाज़िर हुआ तो उसने ख़लीफ़ा के वज़ीरों और दानिशवरों से कुछ सवालात किये लेकिन कोई भी उसका जवाब न दे सका।

हारून अपने मुक़र्रबीन की नालाएक़ी पर बहुत शर्मिन्दा हुआ। सय्याह रूख़्सत हुआ तो वह अपने वज़ीरो और मुशीरों पर बरस पड़ा। तुम सब लोग मेरे लिये बायसे नंग-व-आर हो। आज इस सय्याह ने तुम्हे कैसा आजिज़ किया। यूँ मालूम होता था जैसे तुम इसके मुक़ाबले में तिफ़्ले मकतब हो।

दरबारियों के सर शर्म से झुक गये। उनके पास अपनी सफ़ाई में कहने के लिये कुछ भी नहीं था इताबेशाही और जोश में आया। कल इस सय्याह को दरबार में तलब किया जायेगा अगर तुम लोग उसके सवालों का जवाब न दे सकें तो तुम्हारी सब जायदाद और माल व दौलत उसके हवाले कर दिया जायेगा।

हारून ने दरबार बर्ख़ास्त कर दिया। दरबारियों में खलबली मच गयी उनकी परेशानी का कोई ठीकाना नहीं था। वे सब एक जगह जमा होकर सोचने लगे के बागशाह के इताब से क्योंकर बचा जा सकता है। आख़िर एक शख़्स को अचानक याद आया और ख़ुशी से बोला।

दोस्तों। इस मुश्किल को हल करने के लिये हमारे पास बोहलोल जो मौजूद है। मुझे यक़ीन है के वह सय्याह को ला-जवाब कर देगा।

और उसके सब सवालों के जवाबात ठीक-ठीक देगा।

बाक़ी सब लोगों की भी जान में जान आयी और वे सब मिलकर बोहलोल के पास पहुँचे। उसे तमाम माजरा सुनाया। तो उसने उन्हे तसल्ली दी के वह अगले दिन दरबार में पहुँचकर सय्याह के सवालों के जवाबात ज़रूर देगा।

अगले रोज़ दरबार आरास्ता हुआ। वज़ीर , मीर , मुशीर सोने की कुर्सियों पर बैठे। हारून अपने ज़र-निगार तख़्त पर मुतामक्किन हुआ।

सय्याह को भी एक कुर्सी पेश की गई। हारून ने अहलेदरबार पर निगाह डाली और बोला तुममे से कौन इस मोअज़्ज़िज़ सय्याह के सवालों का जवाब देगा।

अहलेदरबार ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे की तरफ़ देखा के बोहलोल का नाम किस तरह ले। कहीं उसका नाम हारून को ना-गवार न गुज़रे कि उसी वक़्त बोहलोल की आवाज़ गूँजी।

यह दीवाना हाज़िर है। अहले दरबार को ज़हमत करने की ज़रूरत नहीं। वह अपनी लाठी पटख़्ता। दुदड़ी शाने पे डाले दाख़िले दरबार हुआ और सय्याह के क़हीब जा बैठा।

हारून कुछ हिचकिचाया। लेकिन पहलू में बैठे वज़ीर ने उसके कान में कुछ कह दिया। जिससे उसके चेहरे पर इत्मीनान की झलक नज़र आयी। सय्याह ने बोहलोल की हैबते कज़ाई की तरफ़ देखा और क़द्रे ताज्जुब से बोला। क्या मैं आपसे सवालात करूँ।

ब-सर-व-चश्म। बोहलोल ने मुस्तैदी से जवाब दिया। वह सय्याह उठा और अपनी छड़ी से ज़मीन पर एक दायरा ख़ींच दिया।

बोहलोल ने फ़ौरन उठ कर अपने असे से उस दायरे के दरमियान में एक लकीर खींच कर उसे दो हिस्सों में बाँट दिया।

सय्याह के चेहरे पर मुस्कुराहट आयी और उसने एक और दायरा खींच दिया। बोहलोल ने इस मर्तबा दायरे को चार हिस्सों में बाँटा और एक हिस्से पर छड़ी रखकर खटखटाई। सय्याह ने क़द्रे हैरत से उसकी जानिब देखा और ज़मीन पर अपना हाथ उल्टी तरफ रखकर उंगलियाँ आसमान की तरफ़ उठा दी। बोहलोल ने उठकर अपना हाथ ज़मीन पर इस तरह रखा के उसके हाथ की पुश्त ऊपर थी।

सय्याह अपनी नशिस्त पर आ बैठा और तौसीफ़ी लहजे में बोलाः मरहबा। आफ़रीन

आली-जहा मैं आपको मुबारकबाद देता हूँ के आपके यहाँ ऐसा दानिशमन्द-आलिम मौजूद है जिसपर फ़ख़्र किया जा सकता है ऐसे शख़्स की क़द्र की जानी चाहिये।

क्या बोहलोल ने तुम्हारे सब सवालों का जवाबात ठीक-ठीक दिये है।

हारून ने पूछा।

यक़ीनन। उसने किसी बहुत अज़ीम दर्सगाह से तालीम हासिल की है जो उसके पास इतना इल्म है के यह मेरे इशारे फ़ौरन समझ गया है। सय्याह बोला।

बोहलोल मुस्कुराया। उस अज़ीम दर्सगाह का नाम मत पूछना क्योंकि उसे सभी जानते हैं।

बोहलोल का इशारा सब समझ रहे थे।

लेकिन सय्याह कुछ नहीं समझा और चाहता था कि कोई सवाल करें कि हारून ने फ़ौरन पूछ लिया।

अगर तुम इन इशारों को खोलकर बयान करो तो अहलेदरबार भी महज़ूज़ हो सकेंगें और सीख भी लेंगें।

सय्याह बोला। आपने देखा के मैंने ज़मीन पर दायरा खींचा था। मेरा मक़सद ज़मीन का कुरा दिखाना था। आपका आलिम फ़ौरन समझ गया और उसने दायरे के दो बराबर हिस्से करके मुझ पर ज़ाहिर कर दिया कि वह ज़मीन के गोल होने पर यक़ीन रखता है और उसके असरार व राज़ो से भी वाक़िफ़ है। उसने इस लकीर से खत्ते-इस्तेवा को दिखाया जिससे ज़मीन शुमाली और जुनूबी कुरे में बँट गई।

फिर उसने देखा के मैंने एक और दायरा खींचा। आपके आलिम ने उसके चार हिस्से बनाये। और उसने चार हिस्से कर के मुझे समझा दिया के ज़मीन में तीन हिस्से पानी और एक हिस्सा ख़ुश्की है। और जब मैंने हाथ की ऊँगलियों से ज़मीन पर नबातात की तरफ़ इशारा किया तो उसने बारिश और सूरज की निशानदेही की जो नबातात की बालीदगी और नशो नुमा का ज़रीया हैं। मैं एक बार फ़िर कहता हूँ के आपको ऐसे दानिशमन्द पर फख़्र करना चाहिये।

मशहूर फ़क़ीह

हारून को अन्दाज़ा हो गया था के बोहलोल एक बे-ज़रर और मुफ़ीद इन्सान है। उसकी शेग़ुफ़्ता-बातों की हिकमत तफ़न्नुने तबअ का ज़रिया भी बनती थी। वह बग़दाद शहर का एक पंसदीदा और हरदिल अज़ीज़ किरदार था। जब भी हारून उसके साथ सख़्ती करना चाहता। उसकी शोख़ी में छुपी हुई दानिशमन्दी उसे साफ़ बचा ले जाती। बोहलोल की तमाम ज़िन्दगी इसी आँख-मिचोली में गुज़री। हारून कोशीश करता रहा के उसे किसी तरह फाँस ले या उसका क़िस्सा तमाम कर दे।

मगर जिसे अल्लाह रखे उसे कौन चखे। बोहलोल अपनी दीवानगी का लिबादा औढ़े उसके और उसके वज़ीरो के सामने खड़ा उन्हें आईना दिखाता रहा। वह अपने पागलपन की आढ़ में न सिर्फ़ अपनी जान बचाता रहा। बल्कि उन्हें इल्म-व-हिकमत की तालीम भी देता रहा और अपने जुनून का सहारा लेकर अवाम की मुशकिलें हल करता रहा।

एक मर्तबा ख़ुरासान का एक मशहूर फ़क़ीह बग़दाद आया। हारून को भी उससे मुलाक़ात का इश्तियाक़ हुआ। उसने उसे दरबार में बुलाया। गर्म-जोशी से उसका ख़ैर मक़दम किया और बड़ी क़द्र व-मंज़िलत के साथ अपने पास बैठाया।

फ़क़ीह इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई पर फ़ूले नहीं समा रहा था और हारून पर अपने इल्म की धाक बैठाने की कोशीश कर रहा था के अचानक बोहलोल कहीं से फिरता-फिराता दरबार में आ निकला।

उसने सलाम किया। हारून ने उसे बैठने के लिये कहा। फ़क़ीह ने उसका मामूली लिबास बोसीदा गुदड़ी और धूल में अटी हुई जूतीयाँ देखी और क़द्रे हैरत से बोला। आप बहुत मेहरबान और फेराख़दिल है के मामूली लोगो को भी अपने दरबार में जगह देते हैं।

बोहलोल अपनी जगह से उठा और अपना असा खटखटाता उसके क़रीब पहुँचा और बोला।

क़िबला। ग़ुस्ताख़ी माफ़ आप अपने नाक़िस इल्म पर क्यों इतना मग़रूर हैं। आप मेरी ज़ाहिरी हालत का ख़्याल न कीजिये और मेरे साथ इल्मी मुबाहिसा करने के लिये तैयार हो जाइये ताकि आपको पता चल जाये के आप तो कुछ भी नहीं जानते।

फ़क़ीह ने एक निगाहे ग़लत अन्दाज़ उस पर डाली। मैंने सुना है के तू पागल है और मैं पागलों से मुबाहिसा नहीं किया करता।

मैंने कब कहा के मैं पागल नहीं हूँ। मैं तो अपने पागलपन का ख़ुद इक़रार करता हूँ

मगर आप हैं के आपको अपनी कम इल्मी का कुछ पता ही नहीं। बोहलोल ने मज़े से कहा।

हारून ने क़हर-आलूद निगाहों से बोहलोल की तरफ़ देखा।

बोहलोल ख़ामोश रहो। तुम्हे मालूम नहीं के यह ख़ुरासान के नामूर फ़क़ीह हैं।

इस लिये तो चाहता हूँ के यह मुझसे इल्मी मुबाहिसा कर लें बोहलोल ने इत्मीनान से कहा।

हारून भी इल्मी मुबाहिसों और मुनाज़िरों का शायक़ था। वह उस फ़क़ीह से बोला। क्या मुज़ाएक़ा है। तुम्हें बोहलोल की दावत क़ुबूल कर लेनी क़ुबून कर लेनी चाहिये।

तो फिर मेरी एक शर्त होगी। फ़क़ीह बोला। इजाज़त है। तुम जैसी चाहे शरायत तज कर लो हारून ने इजाज़त दी।

फ़क़ीह बोला। मेरी शर्त यह है कि मैं बोहलोल से एक मोअम्मा पूछूँगा। अगर इसने दुरूस्त जवाब दे दिया तो इसे एक हज़ार अशर्फ़ियाँ दूँगा और अगर यह नाकाम रहा तो मुझे एक हज़ार अशर्फ़िया देने का पाबंद होगा।

बोहलोल मुस्कुराया। हम फ़क़ीरो के पास माले दुनियाँ कहाँ हाँ मैं ख़ुद को आपके सुपुर्द कर सकता हूँ के आप मुझसे एक ग़ुलाम की तरह काम लें और एक हज़ार अशर्फ़ियाँ पूरी कर लें और अगर मैं एक हज़ार अशर्फ़ी जीत गया। तो वह तो नादारों और मोहताजों का हिस्सा है ही। के अमीरूल मोमेनीन अली-ए-मुर्तज़ा (अ.स.) फ़रमाते हैं के जहाँ भी दौलत ज़रूरत से ज़्यादा है। वहाँ यक़ीनन किसी हक़दार का हक़ ज़ाया हो रहा है

मुझे मन्ज़ूर है। और क्या तुम तैयार हो के मेरा मोअम्मा हल करो। फ़क़ीह ने कहा।

ब-सर-व-चश्म। बोहलोल ने जवाब दिया।

आली-जहा। आपकी भी इजाज़त है। फ़क़ीह ने हारून से पूछा।

इजाज़त है हारून ने शाहाना तमकेनत से कहा।

फ़क़ीह ने अपना मोअम्मा पेश किया। एक घर में एक औरत अपने शरई शौहर के साथ बैठी है। उसी घर में एक शख़्स नमाज़ पढ़ रहा है और दूसरा रोज़े से है। अचानक दरवाज़े पर दस्तक होती है और एक ऐसा शख़्स अन्दर दाख़िल हुआ जिसके आ जाने से शौहर और बीवी एक दूसरे पर हराम हो गये। नमाज़ पढ़ने वाले की नमाज़ बातिल हो गयी। और रोज़ेदार का रोज़ा भी बातिल हो गया। क्या तुम बता सकते हो के बाहर से आने वाला शख़्स कौन है।

दरबार में सन्नाटा सा छा गया। लोग एक दूसरे का मुँह तकने लगे। बोहलोल ने बर्जस्ता कहा। । घर में दाख़िल होने वाला शख़्स उस औरत का पहला शौहर है। जो सफ़र पर गया हुआ था। जिसके बारे में यह ख़बर मिली थी के दौराने सफ़र इन्तेक़ाल कर गया है। उस औरत ने हाकिमे शरअ की इजाज़त से उसी मर्द से अक़्द कर लिया था जो उसके बराबर बैठा हुआ था। उन्होने दो अश्ख़ास को उजरत दी थी के वह मरहूम शौहर की क़ज़ा नमाज़े अदा करें और रोज़े रखें। इसी अस्ना में पहला शौहर सफ़र से वापिस आ गया। क्योंकि उसकी मौत की ख़बर ग़लत थी। चुनाँचें उसके आते ही दूसरा शौहर उस औरत पर हराम हो गया। उन दोनो अश्ख़ास के नमाज़ और रोज़े बातिल हो गये। जो शौहर को मुर्दा समझकर पढ़ी और पढ़ी और रखे जा रहे थे।

मरहबा। मरहबा। बहुत ख़ूब बोहलोल बाज़ औक़ात तुम्हारी दीवानगी फ़र्ज़ानो को भी मात दे देती है। हारून ने सताएश (तारीफ़) की।

बाक़ी वज़ीर और अमीर भी दादे तहसीन देने लगे। शोर कुछ कम हुआ। तो बोहलोल कहने लगा।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

क्या आली-जहा की इजाज़त है के मैं भी हज़रत फ़क़ीह से सवाल करूँ

इजाज़त है हारून ने कहा।

क्या आप तैयार है बोहलोल ने पूछा।

ज़रूर पूछो। फ़क़ीह ने निख़्वत से कहा। फ़र्ज़ करें के हमारे पास एक मटका शीरा और एक मटका सिरका मौजूद है। हम उससे सेकन-जबीन तैयार करने के लिये एक प्याला सिरका और एक प्याला शीरा मट्को से निकालते हैं और दोनों को किसी बर्तन में मिला देते है। उस वक़्त पता चलता है के उसमें तो एक चूहा मरा पड़ा है। क्या आप बता सकते हैं के वह मरा हुआ चूहा सिरके के मट्के में था या शीरे के मट्के में।

हारून महज़ूज़ हुआ। अहलेदरबार भी मुस्कुराये सब की निगाहें फ़क़ीह पर लगी हुई थीं के वह इस मोअम्मे को किस तरह हल करता है। वह गहरी सोच में मुस्तग़रक हो गया और बहुत देर तक एक लफ़्ज़ भी न बोल सका।

हारून इतना इन्तेज़ार न कर सका और बोला। बोहलोल ने तुम्हारा मोअम्मा हल करने में एक लम्हा भी नहीं लगाया। तुम्हे भी उसके सवाल का जवाब इसी तरह देना चाहिये।

फ़क़ीह नादिम सा हो गया। उसकी निगाहें झुक गयी। उसे अपनी कम इल्मी का एअतेराफ़ करना पड़ा।

आली-जाह। मैं यह मोअम्मा नहीं कर सकता। उसकी पेशानी पसीने से भरी थी।

हारून ने बोहलोल की तरफ़ देखा। बोहलोल बेहतर यही है के तुम ख़ुद इस मोअम्मे को हल कर दो।

बोहलोल मुस्कुराया। क्या हज़रत फ़क़ीह अब भी अपनी ना-समझी के क़ायल हुए है या नहीं।

फ़क़ीह बोला। बोहलोल तुमने मुझे एहसास दिला दिया है के इल्म की कोई हद नहीं। किसी की ज़ाहिरी-हालत को देखकर उसे कमतर ख़याल नहीं करना चाहिये।

तो सुनिये जनाब के हमें चाहिये के उस चूहे को सेकन-जबीन से निकाल कर अच्छी तरह धो लें।

फिर उसका पेट चाक करें। अगर उसके पेट में सिरका हुआ। तो समझे के वह सिरके के मटके में था। अगर शीरा हुआ। तो फिर उसने शीरे में ड़ुबकी लगाकर जान दी है। लिहाज़ा जो कुछ भी उसके पेट में हो उस शय के मटके को ज़ाया कर देना चाहिये।

अहलेदरबार इश ,इश कर उठे। हीरून बहुत महज़ूज़ हुआ। उसने बोहलोल को आफ़रीन कही।

फ़क़ीह ने सर झुकाया और एक हज़ार अशर्फ़ियाँ उसके सामने ढ़ेर कर दीं। बोहलोल ने तमाम अशर्फ़ियाँ समेट कर अपनी झोली में ड़ाल लीं। और महल से निकलते ही उसे ज़रूरतमन्दों में बाँट ने लगा जब वह अपने बसेरे पर पहुँचा तो उसकी झोली ख़ाली थी।

हारून के सवाल

कुछ दिन गुज़रे थे कि हारून ने बोहलोल को तलब किया। वह उसके महल में पहुँचा। तो देखा के वह शराब के नशे में मख़्मूर दजला के किनारे अपने शानदार महल के झरोके में बैठा शोर मचाती लहरों का तमाशा देखने में महो है। बोहलोल। उस रोज़ तो तूने बेचारे फ़क़ीह का नातेक़ा बन्द कर दिया था। इत्तेफ़ाक़न तेरा दाव लग गया था और वह अहमक़ भी निरा गाउदी निकला मगर आज मैं तूझे आजीज़ करके रहूगा और इस झरोके में से तुझे दजला में फिकवा दूँगा और अगर तू इसी तरह दजला की मौजों में ग़ोते खायेगा जिस तरह तेरे मोअम्मे में चूहा शीरे और सिरके के मटके में डुबकियाँ लगाता रहा।

अगर मैंने मोअम्मा बूझ लिया तो बोहलोल ने कहा।

तो फिर एक हज़ार अशर्फ़ियाँ इनाम में मिलेंगी। उसने बड़ी शान से कहा।

जनाबे-आली। मुझे अशर्फ़ियों की कतअन कोइ ज़रूरत नहीं। हाँ मेरी एक और शर्त है अगर वह मन्ज़ूर हो। तो कोई बात भी है बोहलोल बोला। बयान करो हारून ने हुक्म दिया।

अगर मैंने मोअम्मे का सही जवाब दिया। तो उसके बदले में सौ क़ैदियों को रिहा करना होगा। मगर वह जिनके नाम मैं बताऊँगा। बोहलोल ने अपनी शर्त पेश की।

हारून हँसा। यह बात तो बाद की है। मगर मुझे मन्ज़ूर है। पहले तुम मोअम्मा तो बूझ लो। देखो। तुम्हे ग़ोते दिलाने के लिये दजला की मौजें कितनी बेक़रार है।

मौजों की बेक़रारी की ज़बान तो वही समझ सकते हैं। जो दरियाओं का रूख़ मोड़ देने की ताक़त रखते हैं। आप अपना मोअम्मा पूछें। बोहलोल ने कड़े लहजे में कहा।

हारून गोया हुआ। अगर किसी शख़्स के पास एक बकरी , एक भेड़िया और घास का गठ्ढ़ा है और वह चाहता है के दरिया पार करे। तो उसे क्या तरीक़ा इख़्तेयार करना चाहिए के न बकरी घास को खाये और न भेड़िया बकरी को।

बोहलोल ने एक लम्हा भी नहीं सोचा और बर्जास्ता कहा। उस शख़्स को चाहिये के भेड़िये और घास को किनारे पर छोड़े और बकरी को दरीया के पार ले जाये। फिर वह वापिस आकर घास को ले जाये और घास को तो उस किनारे पर छोड़ दे। लोकिन बकरी को वापिस ले जाये। अब बकरी को तो उस किनारे पर छोड़ दे। लेकिन भेड़िये को पार ले जाये। वापिस आकर वह बकरी को ले जा सकता है। इस तरह न बकरी घास खायेगी। न भेड़िया बकरी को खा सकेगा।

हारून हैरान हुआ। बहुत ख़ूब। बोहलोल आज तो सितारे तुम्हारे हक़ में थे।

सितारे नाहक़ कुछ भी नहीं करते क्योंकि वह तो हक़ को पहचानते हैं। अब आली-जहा भी मेरे हक़ को पहचानें और अपना वायदा पूरा करें। बोहलोल ने जुर्अत से कहा।

दुरूस्त-मुझे अपना वादा याद है तुम मंशी को उन क़ैदियों के नाम लिखवा दो। वह दरोग़-ए-ज़िन्दान को दे देगा , ताकि उन क़ैदियों को रिहा कर दे। हारून ने फ़ेराख़दिली से कहा।

बोहलोल ने उन अश्ख़ास के नाम लिखवा दिये और चला आया। हारून का नशा उतरा। तो उसके मुक़र्रब ने उसे वह फ़ेहरिस्त दिखाई। जो बोहलोल ने लिखवाई थी और बोला।

हुज़ूर ने बोहलोल के साथ कुछ ज़्यादा ही फ़य्याज़ी का बर्ताव किया है अगर आप इस फ़ेहरिस्त को एक मर्तबा मुलाहिज़ा फ़रमा लें तो बहुत मुनासिब होगा।

हारून ने फ़ेहरिस्त देखी। तो होश में आ गया। ओ बोहलोल तू कैसा ग़ज़ब का शरीर और फ़सादी है। ये सब तो उन लोगों के नाम हैं। जिन्हें बग़ावत के जुर्म में क़ैद किया गया है। ये लोग मूसा बिन जाफ़र (अ.स.) के दोस्तदार है। और ख़िलाफ़त हाश्मियों का हक़ समझतें हैं।

आली जहा मैं भी इस फ़ेहरिस्त को देख कर खटक गया था। इसलिये मैंने यही मुनासिब समझा के हुज़ूर इस पर एक निगाह डाल लें। ये सब के सब तो बाग़ी है। मुक़र्रब ने कहा।

मगर हम वादा कर चुके हैं। ऐसा न हो के वह दीवाना हमें बदनाम करे। हारून ने फ़िक्र मन्दी से कहा।

इसमें परेशान होने की ज़रूरत नहीं हुज़ूर दस आदमियों की रिहाई का हुक्म सादिर फ़रमायें। जिनका जुर्म कम संगीन है। सिफ़र हम साथ ख़ुद बढ़ा लेंगें। मुक़र्रब ने होशियारी से कहा।

हारून मुस्कुराया। इस दीवाने के साथ यही होना चाहिये ।

एक रोज़ बोहलोल अपने फ़क़्र की शान में मस्त क़दम उठाता। हारून के महल में पहुँचा और बेबाकी से आगे बढ़ता। हारून के बराबर जा बैठा। हारून के निख़्वत और ग़ुरूर को उसकी यह अदा पसन्द नहीं आयी उसने सोचा कि किसी तरह उसको ज़िच करे। इसलिये उससे मुख़ातब होकर बोला।

क्यों बोहलोल। मेरे मोअम्मे का जवाब दोगे।

ज़रूर दूँगा। बशर्ते के आप अपने क़ौल पर पूरे उतरें और पहले की तरह वायदा ख़िलाफ़ी न करें। बोहलोल ने वाज़ेह किया।

और तुम भी सुन रखो के अगर तुमने मेरे मोअम्मे को फ़ौरन हल कर लिया तो तुम्हारा इनाम एक हज़ार अशर्फ़ी होगा। और अगर तुम जवाब न दे सके तो तुम्हारी दाढ़ी की ख़ैर नहीं उसे मुंडवाने और गधे की सवारी के लिये तैयार हो जाओ।

मुझे अशर्फ़ियाँ क्या करना है। मेरी शर्त तो कुछ और है। बोहलोल ने बोला।

शर्त बयान की जाये। हारून ने कहा।

मेरी शर्त यह है के अगर मैंने मोअम्मे को हल कर लिया। तो आली-जहा मक्खियों को हुक्म दे दें के वे मुझे न सताया करें। मक्खियाँ मुझे बहुत तंग करती है। बोहलोल ने बड़ी सनंजीदगी से दरख़ास्त की अहलेदरबार के होंठों पर मुस्कुराहट आयी। लेकिन वह हारून के ख़ौफ़ से ज़ब्त कर गये।

हारून बग़लें झाँकनें लगा और उसे कहना पड़ा। किसी-किसी वक़्त तो तुम्हारी अक़्ल बिल्कुल ही ख़ब्त हो जाती है। मक्खियाँ तो मेरी मुतीअ नहीं हैं। जो उनपर हुक्म चलाऊँ।

अफ़सोस के हमारा बादशाह मक्खियों के मुक़ाबले में भी आजीज़ है। तो उसके इक्तेदार का क्या फ़ायदा बोहलोल ने मेज़ाहिया लहजे में कहा।

दरबारियों की आँखों से हैरत और हँसी झाँकने लगी। वे नज़रो ही नज़रो में बोहलोल की इस जुर्अत की दाद देने लगे। हारून भी शर्मिन्दा-सा हो गया और उसके जवाब में कुछ भी नहीं कह सका। तो बोहलोल ने उसकी ख़िफ़्फ़त मिटाने को कहा। अच्छा। अब मैं कोई शर्त नहीं रखता और तुम्हारे मोअम्मे का जवाब देता हूँ। हारून पूछा। वह कौन-सा दरख़्त है। जिसकी उम्र एक साल है। उसमें बारह शाख़ें हैं। हर शाख़ पर तीस-तीस पत्ते लगे हुए है और उन पत्तों का एक रूख़ रौशन है और दूसरा तारीक

बोहलोल ने हस्बे-आदत फ़ौरन जवाब दिया। यह दरख़्त महीना दिन और रात का है। इसलिये के साल में बारह महीने होते हैं। हर महीने में तीस दिन होते हैं जो आधे दिन हैं और आधे रात हैं ।

हारून को बे साख़्ता दाद देनी पड़ी। अहलेदरबार भी उसकी तारीफ़ करने लगे ।

बोहलोल सरे राह खड़ा था। देखा कि हारून की सवारी आ रही है। उसने मुँह के गिर्द दोनो हाथ रखे और ज़ोर से पुकारा। हारून। हारून। हारून हारून।।। इस आवाज़ पर चौंका। उसे ग़ुस्सा भी आया उसने अपने ख़ुद्दाम से पूछा। यह कौन ग़ुस्ताख़ है। जो मुझे इस तरह पुकार रहा है।

हुज़ूर। यह दीवाना बोहलोल है। मालूम होता है के आज इसका दिमाग़ बिल्कुल ही काम नहीं कर रहा है किसी ग़ुलाम ने बोहलोल को बादशाह के इताब से बचाने की कोशिश की।

हारून ने सवारी ठहराने को कहा और बोला। बुलाओ उसको। बोहलोल क़रीब आया तो ग़ुस्से से बोला-तू जानता है के मैं कौन हूँ।

बिल्कुल जानता हूँ। बोहलोल ने सर हिलाया। आप ऐसे इन्सान है कि अगर मशरिक़ में किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म हुआ। तो बाज़ पुर्स आप से होगी।

हारून लरज़ गया। उसकी आँखों के गोशे नम हो गये। उसका ग़ुस्सा फ़रो हो गया और वह नर्मी से बोला। बोहलोल तूने ऐसी बात कही है जो मेरे दिल पर जाकर लगी है। तेरी कोई हाजत हो तो बयान करो।

मेरी हाजत यह है के आप मेरे गुनाह माफ़ करके मुझे जन्नत में दाखिल कर दें। बोहलोल ने कमाले सन्जीदगी से कहा।

गिर्द व पेश खड़े लोग मुस्कुराने लगे। हारून ने ऐतेराफ़ किया। बोहलोल। तुमने ऐसी बात कही है जो मेरे बस में नहीं। हाँ मैं तुम्हारे क़र्ज़े चुका सकता हूँ।

नहीं। आप यह भी नहीं कर सकते। बोहलोल ने ज़ोर देकर कहा।

क्यों। हारून ने तुर्शी से सवाल किया एक क़र्ज़ा दूसरे क़र्ज़े से अदा नहीं हो सकता आप तो ख़ुद आवाम के क़र्ज़दार है। आप उनका क़र्ज़ वापिस करें। यह मुनासिब नहीं के उनका माल मुझे दे डालें।

बोहलोल के अन्दाज़ में सच था।

हारून मुज़तरिब हुआ और बात बदलने को बोला। तो फिर ठीक है। मैं हुक्म देता हूँ के तुम्हें कुछ जायदाद दे दी जाय ताकि तुम्हारी गुज़र बसर सुहूलत से हो

बोहलोल हँसा। सब का राज़िक़ ख़ुदा है। हम सब बन्दे उसी से वज़ीफ़ा पाते हैं। ऐसा तो मुमकिन नहीं के वह बादशाह को तो फ़ेराख़ी से रिज़्क़ अता करे और इस दीवाने को भूल जाये।

हारून ला जवाब सा हो गया।

अमीन-मामून

हारून बोहलोल से बोला। मैं अमीन व मामून के मकतब जा रहा हूँ। ज़रा उनके उस्ताद से उनकी तालीम की बाबत मालूम करूँगा। आओ तुम भी मेरे साथ चलो।

बोहलोल राज़ी हो गया और सवारी मकतब पहुँची। उस्ताद दौड़ा हुआ आया और हारून को सलाम किया। खुशनसीबी है कि ख़लीफ़ा इस नाचीज़ के मकतब में तशरीफ़ लाये हैं।

हम अमीन और मामून की तालीम के बारे में मालूम करने आये हैं के दोनो कैसे तालिबे इल्म हैं। हारून ने कहा।

जान की अमान पाऊँ तो कुछ अर्ज़ करूँ। उस्ताद बोला।

हाँ तुम्हें अमान है। हमें दोनो की तालीमी कैफ़ियत सही-सही बताओ। हारून बोला।

आली-जहा। आपका बेटा अमीन। औरतों की सरदार , मल्का ज़ुबैदा जैसी क़ाबिल और ज़हीन ख़ातून का बेटा है। लेकिन कुन्द ज़ेहन है।

मगर इस के बर-अक्स आपका बेटा मामून बहुत ज़ेहीन दानिशमन्द और बा-वेक़ार है।

यह तुमने अजीब बात कही है। मैं इसे तसलीम नहीं कर सकता।

हारून ने हैरत से कहा।

मैं इसका सुबूत मोहय्या कर सकता हूँ। उस्ताद ने जवाब दिया।

यक़ीनन। तुम्हे शहज़ादो के बारे में इतनी बड़ी बात बिला सुबूत नहीं कहनी चाहिये।

हारून ने ना-गवारी से कहा।

मैंने यह बात तजुर्बे के बाद कही है। उस्ताद बोला।

इस वक़्त अमीन और मामून थोड़ी तफ़रीह लेने बाहर गये है। मैं यह काग़ज़ मामून के (बैठने की जगह) फ़र्श के नीचे रखता हूँ और अमीन के बैठने की जगह यह ईंट रख रहा हूँ।

जब वे आ जायें। तो आप मुलाहेज़ा फ़रमाइये के मेरी राय किस हद तक दुरूस्त है।

थोड़ी ही देर में अमीन और मामून वापिस आ गये। हारून को देखकर दोनों हैरान हुए और उसे आदाब किया। हारून ने उन्हें बैठने-की इजाज़त दी , हारून दोनों का ब-ग़ौर मुशाहेदा कर रहा था।

मामून बैठते ही कुछ मुज़तरिब सा हुआ उसने कुछ परेशान होकर छत की तरफ़ देखा।

फिर दायें बायें देखा-और कई बार पहलू बदला। और बेचैन-सा नज़र आने लगा। उस्ताद ने शफ़्फ्क़त से पूछा।

क्यों मामून। ख़ैरियत तो है। मैं तुम्हे कुछ परेशान सा देख रहा हूँ।

उस्तादे मोहतरम। मैं अपने बैठने की जगह पर कुछ तबदीली सी महसूस कर रहा हूँ। मामून ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।

कैसी तबदीली। उस्ताद ने पूछा।

ऐसा महसूस होता है उस्तादे मोहतरम। जौसे मेरे बैठने की जगह एक काग़ज़ भर ऊँची हो गई है। या छत कागज़ भर निची हो गई है। मामून बोला।

अमीन। क्या तुम्हें भी ऐसा ही महसूस होता है। जैसे तुम्हारा भाई कहे हैं। उस्ताद ने अमीन को मुख़ातब किया।

नही। ऐसी तो कोई बात नहीं। अमीन ने जवाब दिया।

उस्ताद ने माना-ख़ेज़ निगाहों से हारून की तरफ़ देखा और बोला। आली-जाह पसन्द फ़रमायें। तो दूसरे कमरे में तशरीफ़ रखे

हारून ने इजाज़त दी और उस्ताद के साथ दूसरे कमरे में चला आया। बोहलोल थी उनके हमराह था। उस्ताद ने मुतमईन लहजें में कहा।

अलहम्दोलिल्लाह। के मैंने आपके सामने अपनी राय का सुबूत भी पेश कर दिया।

हैरत है। हैरत है। अमीन की मां अरब की ज़ेहीन औरतों में से है। कोई उसका हमसर नहीं। लेकिन उसका बेटा। हारून ने जैसे अपने आप से कहा। समझ में नहीं आता के इसका क्या सबब है।

बोहलोल आगे बढ़ा। इसका सबब मुझे मालूम है। अगर आली जाह को नागवार न हो। तो बयान करूँ।

बयान करो। मैं सख़्त तरीन उल्झन में हूँ। हारून ने कहा।

बोहलोल बोला। औलाद की दानिशमन्दी और ज़ेहानत के असबाब दो हैं। अव्वल यह के औरत और मर्द के दरमियान रग़बत और फ़ितरी ख़्वाहिश हो। तो उनकी औलाद ज़ेहीन , होशियार और अक़्लमन्द होती है। दोम यह के मर्द और औरत मुख़्तलिफ़ ख़ून और नस्ल से ताल्लुक़ रखते हों। तो उनकी औलाद में अक़्ल व दानिश की फ़रावनगी होगी।

कोई दलील दो। हारून ने ग़ौर करते हुए कहा।

इसकी मिसाल दरख़्तों और जानवरो में नज़र आती है। मसलन अगर फल के दरख़्त में दूसरे फलदार दरख़्त का पेवंद लगाया जाये। तो निहायत लज़ीज़ और उमदा फल पैदा होते हैं। इसी तरह गधे और घोड़े के मिलाप से ख़च्चर पैदा होता हैं जिसकी होशियारी , ताक़त और फुर्ती का जवाब नहीं। अब आली-जाह समझ सकते हैं के। अमीन में जो ज़ेहानत की कमी महसूस होती है

इसका सबब् उसकी वालिदा और आपकी रिश्तेदारी है। जबकि मामून की माँ मुख़्तलिफ़ नस्ल और क़बीले से ताल्लुक़ रखती है। ख़ून के लिहाज़ से आपमें और उसमें जो फ़र्ख़ है वही सबब् मामून की ज़ेहानत और दानिशमन्दी का भी है।

हारून उसकी बात पर ग़ौर करता रहा उस्ताद भी क़ायल नज़र आता था। लेकिन मुँह से कुछ नहीं कह रहा था। कि मबादा ख़लीफ़ा उसे ग़ुस्ताख़ी तसव्वुर करें। हारून ने बोहलोल की तरफ़ देखा और हस्बे आदत उसके कमाल को कमतर करने के लिये बोला। हो न तुम दीवाने। पागल बेचारा ऐसी बातों के अलावा कर भी क्या सकता है।