बहलोल दाना

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बहलोल दाना लेखक:
कैटिगिरी: मुसलमान बुध्दिजीवी

बहलोल दाना

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यदा आबेदा नरजिस
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बहलोल दाना
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बहलोल दाना

बहलोल दाना

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पढ़ा लिखा गधा

बोहलोल बाज़ार से गुज़र रहा था के एक शख़्स ने दामन पकड़ लिया। बोहलोल ने उसकी तरफ़ देखा। क्या बात है भाई। मुझे क्यों रोका है।

वह परेशानी से बोला। जनाब शेख़ बोहलोल ख़ुदा के लिये मेरी मदद किजिये। वरना मैं बे मौत मारा जाऊँगा।

क्यों ख़ैरियत तो है। बोहलोल ने पूछा। बस ख़ैरियत ही तो नहीं है। मेरी इस ज़बान ने मुझे आज मरवा दिया है। मैंने अपनी मौत का सामान ख़ुद अपने हाथों किया है। वह तास्सुफ़ से कहने लगा।

बताओ तो सही के क्या हुआ है। बोहलोल ने इस्तेफ़्सार किया।

क्या बताऊँ जनाब। अपनी हिमाक़त का हाल अपनी ज़बान से किस तरह कहुँ। दर अस्ल हुआ यूँ के हाकिमे कूफ़ा की ख़िदमत में किसी ने बेहद ख़ूबसूरत गधा पेश किया। सब लोग उसकी तारीफ़ करने लगे। कोई कहता था के यह बहुत आलानस्ल का गधा है। कोई कहता था के इसे ख़ूब सधाया गया है। कोई कहता था के यह बहुत चाक़ और चौबंद और तैयार है। मेरे मुँह से कहीं निकल गया के यह गधा तो इतना दानिशमन्द है के इसे पढ़ाया जा सकता है।

बस मेरा इतना कहना था के हाकिमे कूफ़ा ने मेरी बात पकड़ ली। मेरे मुख़ालिफ़ो ने इसे और हवा दी। यहाँ तक के हाकिमे कूफ़ा ने मुझे हुक्म दे दिया। के मैं गधे को पढाऊँ और अपना क़ौल सच कर के दिखाऊँ अगर मैं इसमें कामयाब हो गया। तो मुझे इनाम व इकरारम दिया जायेगा। और अगर मैं कामयाब न हुआ। तो मेरी गर्दन मार दी जायेगी। मैं सख़्त मुसीबत में हूँ।

भाई बोहलोल। मेरी जान पर बनी है। ख़ुदा के लिये कोई सूरत पैदा करो के मै बच जाऊँ।

बोहलोल बोला। भाई ग़म न कर। मैं तूझे एक तरकीब बता दूँगा आगे जो अल्लाह को मन्ज़ूर।

मुक़र्ररा मुदद्त के बाद हाकिमे कूफ़ा ने उसे तलब किया। वह गधे को लेकर उसके दरबार में पहुँचा। सारा दरबार भरा हुआ था और लोग बड़े शौक़ से देख रहे थे के पढ़ा लिखा गधा क्योंकर अपने फ़न का मुज़ाहिरा करता है।

उस शख़्स ने गधे के सामने किताब रखी। गधा सफ़े उलटने लगा। आहिस्ता-आहिस्ता वह तमाम सफ़े उलट गया और जब किताब बन्द कर चुका। तो उसने ज़ोर से पुकारा ढ़ीचूँ। ढीचूँ। ढीचूँ।

( आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

हाज़ेरीन और हाकिम हैरान रह गये। उन्होने तस्लीम कर लिया कि गधा तमाम किताब पढ़ चुका है और अपनी ज़बान में उसका ऐलान कर रहा है। हाकिम ने उस शख़्स को भारी इनाम् न इकराम् दिया। वह ख़ुश-ख़ुश वापिस आया और बोहलोल की ख़िदमत में पहुँचा।

जनाब शेख़ बोहलोल। यह इनाम् व इकराम्। यह सब आपका हक़ है। अगर आप मुझे यह तरकीब न बताते तो मैं अपनी जान से भी जाता।

नहीं भाई। यह इनाम् व इकराम् तुम्हें ही मुबारक हो। मैंने तो सिर्फ़ तरकीब बताई थी। गधे के साथ मेहनत तो तुमने की है।

बोहलोल ने बे नियाज़ी से कहा।

क़रीब ही ख़ड़ा हुआ एक शख़्स बोला। भाई वह तरकीब क्या है। जिसने गधे को सारी किताब पढ़वा दी।

वह शख़्स हँसा और बोला। अब तो मेरी जान बच गयी है सो तरकीब को बता देने में कोई हर्ज भी नहीं। के जिसको अपने गधे को पढ़वाना हो। वह इस तरीक़े से पढ़ाये।

हाँ भाई बताओ। दूसरा शख़्स पूछने लगा।

सुनो भाई। वह किताब जो गधे को पढ़ानी हो। उसके दरमियान जौ रख दो। गधे को दिन भर भूखा रखो। और शाम को वही किताब उसके सामने रख दो। भूखा गधा किताब के सफ़े उलटता जायेगा और जौ खाता जायेगा। इस तरह आठ-दस दिन यह अमल दोहराओगे। तो गधा इसका आदी दो जायेगा के इसकी ख़ुराक किताब के सफ़ो के दरमियान है। अब जिस वक़्त भी गधे से किताब पढ़वाने का मुज़ाहिरा करवाना हो। तो उसे भूखा रखो। और किताब के दरमियान जौ भी न रखो। अब गधा यही समझेगा के सफ़ो के दरमियान जौ रखे हुए हैं। वह भूख से बेताब होकर सफ़े उलटता जायेगा।

आख़िरी सफ़े तक जब उसे जौ नहीं मिलेंगे। तो वह ढीचूँ –ढीचूँ करके एलान कर देगा के उसने सारी किताब पढ़ ली है ।

हिन्दुस्तानी सौदागर

एक कारवा सराय में भटियारे और हिन्दुस्तानी सौदागर का झगड़ा था। दोनो में ज़बर्दस्त तू। तुकार हो रही थी। बाक़ी मुसाफ़िर जो सराय में बैठे हुए थे। उन्होने आकर पूछा के क्या मामला है। भटियारे ने ग़ुस्से से कहा

देखिये जनाब। यह अजीब शख़्स है खाना खा लिया और क़ीमत अदा करते हुए इसे मौत आती है। हम यूँही मुफ़्त ख़ोरों के पेट भरने लगे। तो कल को भीक माँगते फिरेंगें।

एक मुसाफ़िर ने सौदागर की तरफ़ देखा। जनाब आप ख़ासे माक़ूल और आसूदा हाल नज़र आते हैं। आख़िर आप इस ग़रीब आदमी के पैसे क्यों नहीं अदा कर देते।

क़िब्ला मैं तो पैसे देने के लिये तैयार हूँ। बल्कि मैंने तो इसके साथ यह भलाई की के पिछले खाने के पैसे भी अदा करना चाहता हूँ। जो मैं इत्तेफ़ाक़न भूल गया था। लेकिन यह कुछ और ही हिसाब बता रहा है। यूँ लगता है। जैसे सारे मुसाफ़िरों की क़ीमत यह मुझसे ही वुसूल करना चाहता है। सौदागर ने अपना मौक़िफ़ बयान किया।

भलाई किस बात की। भटियारा तुनक कर बोला। एक तो पहले रक़म ही अदा नहीं की। उसी का मुझपर एहसान जताते हो। खाना खाया है। तो क़ीमत भी अदा करो। और ख़ाह-म-ख़ाह झगड़ा न बढ़ाओ।

तकरार बढ़ी। तो कोई क़स्बे के मुक़द्दम को भी बुला लाया। उसने दोनों से कुन वाक़ेआ बयान करने को कहा।

सौदागर बोला। जनाब। मामला यह है के पिछले साल भी मैं इस सराय में ठहरा था। मैंने खाने में एक मुर्ग़ी और चन्द अण्डे खाये थे। मगर जल्दी में होने की वजह से मैं उसकी क़ीमत अदा नहीं कर सका। मैंने इससे उस खाने का हिसाब पूछा है। तो एक हज़ार दिनार माँगता है। आप ही इन्साफ़ से बाताइये के क्या एक मुर्ग़ी और चन्द अण्डो की क़ीमत एक हज़ार दीनार होती है।

मुक्द्दम ने भटियारे से कहा। क्यों साहब आप इस सिलसिले में क्या कहते हैं।

भटियारे ने गले को साफ़ किया और बड़े ग़ुस्से से बोला। जनाबे आली। अभी तो मैंने बड़ी फ़य्याज़ी से काम लिया है। के कहीं गड़बड़ न हो और मैं किसी का देनदार न बनूँ। आप ज़रा इन्साफ़ से ग़ौर फ़रमायें के इन हज़रत ने पिछले साल बड़े शौक से एक मुर्ग़ी और छ: अण्डे डटकर खाये थे। अब अगर वह मुर्ग़ी ज़िन्दा होती और मैं छ: अण्डे उसके नीचे रख देता। तो उनमें से चूज़े निकल आते। और चूज़े बड़े होकर अण्डे देते। तो मैं उनमें से भी अण्डे निकलवाता। आप अक़्लमन्द हैं ख़द ही हिसाब लगा लें के एक साल में वह मुर्ग़ी और छ: अण्डे हज़ारों मुर्ग़ी और चूज़ों में बदल जाते यह सारा मुनाफ़ा महज़ इस वजह से मेरे हाथों से निकल गया के इन हज़रत ने वह मुर्ग़ी अण्डे खा लिये थे अब मैंने उसी हिसाब से क़ीमत सिर्फ़ एक हज़ार दीनार लगाई है। तो इन्हें अदा करते हुए तकलीफ़ होती है। और मुझसे झगड़ा करने पर तुल गये है।

मुक़द्दम भटियारे का दोस्त था। इसलिये उसने फ़ैसला भटियारे के हक़ में दे दिया और उसे हुक्म दिया के वह भटियारे को एक हज़ार दीनार अदा करे।

सौदागर बेचारा बहुत परेशान था के इतनी रक़म कहाँ से अदा करे के मुसाफ़िरों में से एक शख़्स बोला। के हज़रात। अगर कोई एक तेज़ रफ़तार सवारी मोहय्या कर दे। तो मैं अभी बग़दाद से क़ाज़ी को लेकर आता हूँ। फिर वह जो फ़ैसला कर दे। उसे मान लिया जाये।

बाक़ी मुसाफ़िरों ने उसकी हिमायत की। सौदागर बोला। भाई आप मेरा ख़च्चर ले जायें यह बहुत तेज़ रफ़्तार है। और ख़ुदा के लिये क़ाज़ी साहब को लेकर आये। यह क़स्बा तो अधेंर नगरी है। मैं इतनी रक़म इसको अदा कर दूँ। तो क्या ख़ुद भीक माँग कर अपने मुल्क वापिस जाऊँ। ख़ुदा आपका भला करे। मेरी मद्द कीजिये।

उस शख़्से ने ख़च्चर लिया और बर्क़ रफ़्तारी से बग़दाद की तरफ़ रवाना हो गया। शहर चन्द कोस के फ़ासले पर था। वह जल्दी ही वापिस आ गया और बोला। क़ाज़ी साहब ख़ुद मसरूफ़ थे। उन्होनें आधे घण्टे तक आने का वायदा किया है। आप लोग इन्तेज़ार कीजिये।

एक-एक करके मिनट गिने जाने लगे बेचैनी में उस रास्ते की तरफ़ देखने लगे। जिस तरफ़ से क़ाज़ी साहब को आना था। आधा घण्टा गुज़र गया। फिर एक घण्टा हुआ। लोगो की बेचैनी बढ़ी। सौदागर की परेशानी का ठीकाना नहीं था और भटियारा मूँछों को ताव देता। ख़ुश-ख़ुश फिर रहा था। वक़्त और गुज़रा और डेढ़ घण्टा हो गया।

अचानक बग़दाद की तरफ़ से आने वाले रास्ते पर एक टोपी नज़र आयी। फिर गुदड़ी में लिपटा एक दुखेश नमुदार हुआ।

क़ाज़ी साहब आ गये। क़ाज़ी साहब तशरीफ़ ले आये। उस मुसाफ़िर ने ख़ुशी से नारा मारा।

लोग एहतेरामन उठ गये और उन्होंने हैरत से उस दुखेश को देखा जिसका नाम बोहलोल था। वह गधे से उतरा और अपना असा टेकता दरमियान में आ बैठा। और बोला। हज़रात मैं माज़ेरत ख़ा हूँ के मुझे यहाँ पहुँचने में ताख़ीर हो गई। मुझे इस झगड़े की इत्तेलाअ मिल गई थी। मगर मैं जल्दी नहीं आ सकता था। दर अस्ल मैं मुक़्द्दमों के फ़ैसले करने के अलावा। काश्तकारी भी करता हूँ। आज जब आपका पैग़ाम मुझे मिला तो मैं गेहूँ के बीज उबाल रहा था। क्योंकि आप जानते हैं के गेहूँ के बीज उबाल लिये जायें। तो पैदावार अच्छी होती है। बस वह बीज उबालते उबालते ही मुझे इतनी देर हो गई। मैं एक बार फिर आपसे माफ़ी की ख़ास्तगार हूँ।

मुक़द्दम और हाज़ेरीन हैरान हुए। भटियारे ने ग़ुस्से से कहा। जनाब आप कैसे क़ाज़ी हैं। जो गेहूँ के बीजों को उबाल कर बोते हैं। आपको मुक़द्दमें का फ़ैसला करना है।

क्यों नहीं जनाब। मैं बिल्कुल दुरूस्त फ़ैसला करूगाँ। इन्शाल्लाह। और गेहूँ उबालने पर आपको ताअज्जुब क्यों है। आपके यहाँ तो भुनी हुई मुर्ग़ीयाँ भी अण्डों पर बैठती और चूज़े निकालती हैं। तो उबले हुए गेहूँ क्यों न हरे होंगे।

लोग चौंक गये। मुक़द्दम भी अपनी जानिबदारी पर शर्मिन्दा हुआ और बोला। सुब्हानल्लाह। हुज़ूर आपने तो बात ही बात में फ़ैसला कर दिया।

नहीं अभी फ़ैसला होना बाक़ी है। और वह यह है के भटियारें और सौदागर अपने दिल से रंजिश निकाल दें और दोनों गले मिलें और भटियारा आईंदा भुनी हुई मुर्ग़ियों की औलादों की क़ीमत मुसाफ़िरों से न वुसूल किया करें।

शेख़ जुनैद बग़दादी

शेख़ जुनैद बग़दादी। बग़दाद की गलियों में अपने मुरीदों के हमराह चले जा रहे थे। अचानक उन्होंने मुड़कर कहा। आओ सहरा की जानिब के मुझे वहाँ किसी से मिलना है।

मुरीदों को हैरत हुई। लेकिन उनमें सवाल करने की जुर्अत नहीं थी। वह ख़ामोशी से उनके अक़ब में चलते गये। देखा के ईंट के सरहाने सर रखे एक दुरवेश महवे-इस्तेराहत है। वह अपने आप में इस क़द्र मगन था के उसे शेख़ और उसके मुरीदों के क़दमों की चाप भी सुनाई नहीं दी।

शेख़ ने अदब से सलाम किया।

हज़रत बोहलोल। मेरा सलाम क़ुबूल फ़रमाइये।

बोहलोल ने निगाह उठाई। सलाम का जवाब दिया और बोला। तुम कौन हो।

हुज़ूर मैं जुनैद बग़दादी हूँ।

शेख़ ने तअर्रूफ़ कराया।

अच्छा। मैं समझा। तुम ही अबुल क़ासिम हो। बोहलोल ने सवाल किया।

जी। आप दुरूस्त समझे। शेख़ ने अदब से कहा।

सुना है। तुम लोगों को रूहानी तालीम देते हो। बोहलोल ने पूछा।

जी हाँ। एक नाचीज़ अपनी सी कोशीश करता है। शेख़ ने आजिज़ी से जवाब दिया।

लोगों को तो तुम रूहानी तालीम देते हो। क्या तुम्हें खाना खाने का तरीक़ा मालूम है। बोहलोल ने पूछा।

शेख़ चौंके और सँभल कर बोले। मैं बिस्मिल्लाह कहकर शुरू करता हूँ। अपने सामने से खाता हूँ। छोटे लुक़्में लेता हूँ।

खाने में शरीक लोगों के निवाले नहीं गिनता खाना खाते हुए अल्लाह की हम्द करता हूँ और खाना शुरू करने से पहले और ख़त्म करने से पहले हाथ धोता हूँ।

वाह भाई। क्या कहने। बोहलोल सर झिटक कर उठा और अपना दामन झाड़कर बोला। तुम तो ख़िल्क़त के मुर्शिद बने फ़िरते हो और तुमको अभी तक खाना खाना भी नहीं आता। उसने इतना कहा और आगे बढ़ गया।

शेख़ के मुरीदों को उसका इस तरह कहना बहुत ना-गवार गुज़रा। उन में से एक ग़ुस्से से बोला। पीर व मुर्शिद। यह बोहलोल तो बिल्कुल पागल है। आप इसकी बात का ख़्याल न करे।

शेख़ ने सर हिलाया। यह पागल ज़रूर है। मगर हज़ार दानिशमन्दों पर भारी है। अस्ल हक़ायक़ इसी के पास है। आओ चलो। इससे हमें बहुत कुछ सीखना है।

मुरीद बा-दिले। न-ख़ास्ता शेख़ के साथ चल पड़े। बोहलोल अपनी धुन में मस्त चलता चला गया। शेख़ ने उसे न पुकारा न रोका। यहाँ तक की वह एक वीराने में जा बैठा।

शेख़ मोहतात क़दमो से से उसके क़रीब पहुँचे और उसे फिर सलाम किया।

बोहलोल ने निगाह उठाई और पूछा। तुम कौन हो।

मैं शेख़ बग़दादी हूँ। जो खाना खाना भी नहीं जानता। उन्होंने एअतेराफ़ किया।

बोहलोल ने बेनियाज़ी से कहा। खाना खाना तो तुमको आता नहीं। क्या बात करना आता है।

जी। मेरा ख़्याल है के मैं किसी हद तक बात करना जानता हूँ। शेख़ ने झिझक कर जवाब दिया।

सुब्हानल्लाह बताओ। तुम किस तरह गुफ़्तुगू करते हो। बोहलोल ने पूछा

मैं एअतेदाल की हद तक बात करता हूँ। बे मौक़ा और बहुत ज़्यादा नहीं बोलता। सामेईन की अक़्ल और गुफ़्तुगू के मुताबिक गुफ़्तुगू करता हूँ। दुनिया वालो को अल्लाह और उसके रसूल (स 0 अ 0) की तरफ़ बुलाता हूँ मैं इतना नहीं बोलता के सुनने वाले बेज़ार हो जायें। मैं इतनी गुफ़्तुगू में ज़ाहिरी और बातिनी उलूम की बारीकियों का लिहाज़ भी रखता हूँ।

शेख़ ने कोशीश की इस मर्तबा कोई कसर न रह जाये।

अजीब शख़्स हो तुम। बोहलोल बेज़ारी से उठ ख़ड़ा हुआ।

खाना खाना तो दरकिनार। तुम को तो बात करने की भी तमीज़ नहीं है।

उसने अपना दामन झटका और आगे बढ़ गया।

मुरीदों को सख़्त ना-गवार गुज़रा। उन्होंने घूर कर दूर जाते हुए बोहलोल की तरफ़ देखा और ग़ुस्से से बोले।

ये शेख़। यह दीवाना किस क़द्र ग़ुस्ताख़ है। इसको आपके इल्म और मर्तबे का क्या अन्दाज़ा इसे अपने हाल पर छोड़िये और तशरीफ़ ले चलिये।

नहीं। शेख़ बग़दादी ने कहा। यह दीवाना दानाई का ख़ज़ाना अपने पास रखता है। और मुझे उसी की हाजत है। आओ मेरे साथ।

वे फिर बोहलोल के पीछे चल दिये। कुछ दूर तक बोहलोल अपने ख़याल में मगन चलता चला गया। फिर उसने मुड़कर देखा और बोला। शेख़ बग़दादी। तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो। न तुमको खाना खाना आता है। न गुफ़्तुगू के आदाब जानते हो। शायद सोने के तौर तरीक़ा भी तुमको नहीं आता होगा।

जैसा मुझे आता है। मैं आपको बताता हूँ। शेख़ ने अदब से कहा।

बताओ। बोहलोल ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा।

शेख़ भी बैठ गये और बोले। मै जब इशा की नमाज़ पढ़कर औराद् और वाज़ाएफ़ से फ़ारिग़ हो जाता हूँ। तो सोने के कपड़े पहने लेता हूँ। और उन आदाब को जो रसूलल्लाह और दीन के बुज़ुर्गो के तुफ़ैल हम तक पहुँचे हैं। मल्हूज़े ख़ातिर रखता हूँ।

कमाल है। बोहलोल ने कहा। इन हज़रत को तो सोना भी नहीं आता। उसने उठना चाहा। लेकिन शेख़ बग़दादी ने दामन पकड़ लिया और मिन्नत करने लगा।

जनाब शेख़ बोहलोल। ख़ुदा के लिये तशरीफ़ रखिये और मुझे वे सब तालिम कीजिये जो मैं नहीं जानता।

बोहलोल मुस्कुराया। शेख़। पहले तुम सब जानन् का दावा रखते थे। इसलिये मैंने तुम से किनारा किया। अब तुमने अपनी ना-वाक़फ़ियत का एअतेराफ़ कर लिया है। तो तुमको सिखाने में कोई हर्ज नहीं तो सुनो।

मैं हमा-तन गोश हूँ। शेख़ बग़दादी ने तवज्जोह से कहा।

तुमने खाना खाने के आदाब में जो कुछ बयान किया। वो सब फ़ुरूआत हैं। जबकि उसूल की अहमयित मुसल्लम है। तो खाना खाने के अस्ल आदाब यह है के जो कुछ खाया जाये। वह हलाल और जाएज़ हो। अगर हराम ग़िज़ा को एक हज़ार आदाब के साथ भी खाया जाये। तो वह बे फ़ायदा है और दिल की तारीकी का सबब बनता है। बोहलोल ने बयान किया।

सुब्हानल्लाह। आपने ने मेरी आँखें खोल दी है। जुनैद ने कहा।

बोहलोल ने अपनी बात जारी रखी। बात करने में सबसे पहले क़ल्ब की पाकीज़गी और नियत का दुरूस्त होना ज़रूरी है और वह गुफ़्तुगू ख़ुदा की ख़ुशनूदी के लिये होनी चाहिये। अगर किसी दुनियावी काम की ग़रज़ से होगी। तो चाहे कैसे ही अल्फ़ाज़ चुने जायें। वह मुसीबत ही मुसीबत है इसलिये ख़ामोशी ही में आफ़ियत है।

सोने के बारे में जो कुछ तुमने बयान किया है। वे भी फ़ुरूआत हैं। उसकी अस्ल यह है के सोते वक़्त दिल में किसी भी मुसलमान से बुग़्ज़ , किना और हसद न हो। दिल में दुनिया और माले दुनिया का लालच न हो। और सोते हुए ख़ुदा की याद दिल में हो।

शेख़ बग़दादी ने बे साख़्ता उठकर बोहलोल के हाथ का बोसा दिया। और उसे दुआएं देते हुए रूख़सत हुए। उनके जो मुरीद बोहलोल को दीवाना और पागल समझ रहे थे। उन्हें अपने अमल पर ख़जेलत व शर्मिन्दगी हुई उन्होंने नये सिरे से अपने क़ल्ब की रौशनी को देखना शुरू किया।

अब्दुल्लाह मुबारक

अब्दुल्लाह मुबारक के दिल में बोहलोल से मिलने का शौक़ हुआ। किसी ने बताया के वह सहरा में मिलेगा। अब्दुल्लाह सहरा की तरफ़ रवाना हुआ। एक जगह उसने बोहलोल को देखा के नंगे सर नंगे पाँव या होवा-या होवा पुकार रहा है। वह क़रीब गया और सलाम किया। बोहलोल ने सलाम का जवाब दिया।

अब्दुल्लाह मुबारक बोला। या शेख़ मुझे कुछ नसीहत कीजिए। मुझे बाताइये के ज़िन्दगी को गुनाहों से कैसे पाक करूँ। अपने सरकश नफ़्स से किस तरह बाज़ी ले जाऊँ और क्योंकर राहे निजात इख़्तेयार करूँ।

बोहलोल ने सादगी से कहा। भाई जो ख़ुद आजिज़ और परेशान है। उससे कोई दूसरा क्या उम्मीद रख सकता है। मैं तो दीवाना हूँ। तू जाकर किसी अक़्लमन्द को तलाश कर जो तेरी फ़रमाइश पूरी कर सके।

अब्दुल्लाह ने सीने पर हाथ रखा। बोहलोल इसलिय तो यह नाचीज़ आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ है के सच्ची बात कहने की जुर्अत तो सिर्फ़ दीवाने रखते है।

बोहलोल ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और ख़ामोश हो गया। अब्दुल्लाह मिन्नत और ख़ुशामद करने लगा। जब उसने बहुत मजबूर किया। तो बोहलोल बोला।

अब्दुल्लाह मेरी चार शर्ते हैं। अगर तुम क़ुबूल कर लो। तो मैं तुम्हें राहे निजात दिखा दूँगा।

ब-सर-व-चश्म। चार क्या मैं आपकी चार हज़ार शर्ते मानने को तैयार हूँ के राहे निजात तो इसमें सस्ती है। अब्दुल्लाह ने बे-सबरी से कहा।

तो फिर सुन। बोहलोल कहने लगा। मेरी पहली शर्त यह है के जब तू कोई गुनाह करे या ख़ुदा के हुक्म की ना-फ़रमानी करे। तो उसका रिज़्क़ भी मत खा।

अब्दुल्लाह घबराया। यह किस तरह मुमकिन है के कोई ख़ुदा का रिज़्क़ न खाये।

बोहलोल बोला। तो फिर अक़्लमन्द आदमी ख़ुदा की बन्दगी का दावा भी न करो। यह कहाँ का इन्साफ़ है के जिसका खाओ उसी की नमक हरामी करो।

अब्दुल्लाह ने एअतेराफ़ किया। आप सच फ़रमाते हैं। दूसरी शर्त बयान कीजिये।

दूसरी शर्त यह है के जब तू कोई गुनाह करना चाहे। तो ख़ुदा की ज़मीन से निकल जा। के यह दुनिया महज़रे ख़ुदा है। बोहलोल ने कहा।

उफ़ ख़ुदाया। यह शर्त तो बिल्कुल ही ना-क़ाबिले अमल है। ज़मीन के सिवा बन्दा कहाँ रह सकता है। अब्दुल्लाह मुबारक चिल्लाया।

बोहलोल बोला। अब्दुल्लाह इतना परेशान क्यों हो रहा है। क्या तुझमें ज़र्रा बराबर भी इन्साफ़ नहीं है। क्या तेरे ख़याल में यह सही है के बन्दा जिसके मुल्क में रहे। जिसका रिज़्क़ खाये और जिसकी बन्दगी का दावा करे। उसकी ना-फ़रमानी भी करे।

अब्हुल्लाह नादिम हुआ। बोहलोल बेशक आपने सच फ़रमाया। अब तीसरी शर्त भी बयान कीजिये।

बोहलोल बोला। भाई तीसरी शर्त यह है के जब तू कोई गुनाह करने का इरादा करे। या ख़ुदा की ना-फ़रमानी करना चाहे। तो किसी ऐसी जगह जाकर कर जहाँ ख़ुदा तुझे न देख सके न ही तेरे हाल से वाक़िफ़ हो सके। जब तुझे कोई ऐसी जगह मिल जाये जहाँ तुझे ख़ुदा न देखे तो फिर जो तेरा दिल चाहे कर।

अब्दुल्लाह बे हद परेशान हुआ।

जनाब शेख़ बोहलोल। यह शर्त भी वैसी ही कठिन और ना-क़ाबिले अमल है। ख़ुदा तो हाज़िर व नाज़िर है। वह आलिमुल ग़ैब है। वह सब कुछ जानता और देखता है। तो फिर ऐसी कौन सी जगह है जो उससे पोशीदा और ओझल है।

तो अब्दुल्लाह जब तू यह जानता है। के वह हाज़िर व नाज़िर है। तो फिर क्या किसी बन्दे को ज़ेब देता है के वह ख़ुदा की ज़मीन पर रहे। उसका रिज़्क़ खाये और उसके सामने ही उसकी ना-फ़रमानी करे और फिर भी उससे बन्दगी का दावा हो। हालांकि अल्लाहताला क़ुर्आने पाक में फ़रमाता है। यह ख़याल न करो के अल्लाह उस अमल से ग़ाफ़िल है। जो ज़ालिम करते हैं।

अब्दुल्लाह ने पशेमानी से कहा। बोहलोल मैं ला-जवाब हूँ। अब आप अपनी चौथी शर्त बयान करें।

बोहलोल कहने लगा। चौथी शर्त यह है के जिस वक़्त मलकुल-मौत अचानक तेरे पास आये। ताकि ख़ुदा के अम्र को पूरा करें और तेरी रूह क़ब्ज़ करके के ले जाएँ तो तू उस घड़ी मलकुल मौत से कहना। ऐ मलकुल मौत। ज़रा तू ठहर मैं अपने अज़ीज़ो से रूख़सत हो लूँ। और वह तूशा अपने साथ ले लूँ। जो आख़ेरत में मेंरी निजात का सबब हो। तो फिर मेरी रूह क़ब्ज़ करना।

मलकुल मौत कब किसी को मोहलत देता है शेख़ बोहलोल। यह आपने कैसी कड़ी शर्त लगा दी है। अब्दुल्लाह मुबारक ने फ़रियाद की।

तो फिर ऐ दानिशमन्द इस दीवाने की बात सुन। जब तू जानता है के मौत से किसी को मफ़र नहीं। मलकुल मौत किसी को मोहलत नहीं देता। गुनाहों के बीच में किसी वक़्त भी मलकुल मौत सामने आ खड़ा होता है। फिर एक साँस की भी मोहलत नहीं मिलती। जैसा ख़ुदावन्दे आलम ने फ़रमाया है।

जिस वक़्त मौत आयेगी। तो न घड़ी भर की देर होगी , न जल्दी। तो ऐ अब्दुल्लाह तू कब ग़फ़लत से होशियार होगा। देख ग़ुरूरू से दूर रह और आख़ेरत की फ़िक्र न कर। लम्बा सफ़र सामने है और उम्र बहुत मुख़तसर है। जो काम और अमले ख़ैर आज हो सकता है। वह आज कर लो। क्या ख़बर तू कल को न देख सके जो वक़्त हाथ में है वही ग़नीमत है। अमाले ख़ैर की सूरत में आज ही आख़ेरत का तूशा अपने हाथ ले ले। ऐसा न हो कल पछताना पड़े।

अब्दुल्लाह का सर झुकता चला गया और उसकी ज़बान गुंग हो गयी।

बोहलोल ने कहा। अब्दुल्लाह तुमने ख़ुद ही मुझसे नसीहत करने की फ़रमाइश की थी। जो तुम्हें राहे निजात दिखा दे। तुमने अब सर क्यों झुका लिया है। तुम्हारी ज़बान पर ताला क्यों पड़ गया है। तुम आज मेरे सामने ला-जवाब क्यों हो गये हो। तो कल जब रोज़े महशर तुमसे पूछ-ताछ होगी। तो क्या जवाब दोगे। यहाँ इस दुनिया में ही अपना हिसाब साफ़ करो। ताकि कल के ख़ौफ़ से पनाह में रहो।

अब्दुल्लाह ने झुका हुआ सर उठाया और सच्चाई से बोला। जनाब शेख़ बोहलोल मैंने आपकी नसीहत को दिल व जान से सुना है और उसे हिर्ज़े जान बना लूँगा। आपने मुझे अपना मुरीद बना लिया है। लोग तो आपको यूँही दीवाना कहते हैं। वरना कौन नहीं जानता के आले मोहम्मद (अ.स.) की सोहबत और मोहब्बत ने आपको यग़ान-ए-रोज़गार बना दिया है आप पागल नहीं। आले मोहम्मद (अ.स.) के दीवाने है।

बोहलोल ने अपनी गुदड़ी उठाई और यह कहता हुआ चल पड़ा।

बन्दे को लाज़िम है के जो कुछ करे ख़ुदा के हुक्म से करे और जो कुछ कहे सुने ख़ुदा के हुक्म से। क्योंकि वह बन्दगी का दावा रखता है और ख़ुद को ख़ुदा का बन्दा कहता है।

(तमाम)

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन फाउनडेशन को को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवेस नक़वी 18.4.2015]