मुक़्द्देमा
बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इस एक अकेले ने सारे जहांन में ज़मीन का फ़र्श बिछाया
,उस पर रंग बिरंगे के गुलबूटे छापे
,आसमान का शामयाना बनाया
,उसमें सीतारों की चमकीली चमकियां टांकी
,आफ़ताब व महताब की कंदीले लटकाई। एक को रौशन और दूसरे को बुझा कर रात दिन की सैर कराता है
,अपनी क़ुदरत के तमाशे दिखाता है। इसका वज़ीर बेनज़ीर है
,यह उसकी कहानी है और क़ुदरती क़िस्सों को हमें यूँ कह सुनाता है।
उसूल-ए-दीन
यानी दीन की जड़े पाँच हैं
(1)तौहीद
, (2)अदल
, (3)नबूव्वत
, (4)इमामत
, (5)क़यामत
तौहीद- यानी ख़ुदा एक है
,क्योंकि अगर कई ख़ुदा होते तो जहांन के इन्तेज़ाम में बखेङा होता
,एक ख़ुदा कुछ कहता और दूसरा कुछ कहता
,इससे आपस में तकरार होती और कोई चीज़ पैदा ना हो सकती।
अदल- यानी ख़ुदा इंसाफ़वर है
,ज़ालिम नहीं है क्योंकि ज़ुल्म करना बूरी चीज़ है और ख़ुदा हर बुराई से पाक है।
नबूव्वत- ख़ुदा ने एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर पैदा किये
,अव्वल हज़रत आदम (अ
0),आख़ीर इनके हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स
0)हैं
,बाद हज़रत के ना कोई पैग़म्बर हुआ है ना होगा।
इमामत- यानी हर पैग़म्बर ने अपने बाद किसी को अपना नाएब मुर्क़रर किया है
,इसी तरह हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा (स
0)ने भी अपना नाएब मुर्क़रर फ़रमाया और वोह सब बरहक़ हैं और मासूम हैं
,इन सबका हुक्म बजा लाना भी हम लोगों पर वाजिब है।
क़यामत- यानी एक रोज़ ऐसा होगा कि सब के सब मर जायेगें
,सिवाये ज़ाते ख़ुदा के कुछ बाक़ी ना रहेगा। ना आसमान ना ज़मीन
,ना आफ़ताब ना महताब
,फिर ख़ुदा उनके बदनों में रूह को दाख़िल करेगा
,और हिसाब वग़ैरा के बाद नेकों को बहिश्त में और बदों को दोज़ख़ में भेजेगा।
इमाम बारह हैं
(1)पहले इमाम हज़रत अली अ
0।
(2)दूसरे इमाम हज़रत हसन अ
0।
(3)तीसरे इमाम हज़रत हुसैन अ
0।
(4)चौथे इमाम हज़रत ज़ैनुलआबिदीन अ
0।
(5)पाँचवे इमाम हज़रत मोहम्मद बाक़िर अ
0।
(6)छठे इमाम हज़रत जाफ़र सादिक़ अ
0।
(7)सातवे इमाम हज़रत मुसा काज़िम अ
0।
(8)आठवें इमाम हज़रत अली रिज़ा अ
0।
(9)नवे इमाम हज़रत मोहम्मद तक़ी अ
0।
(10)दसवें इमाम हज़रत अली नक़ी अ
0।
(11)ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन असकरी अ
0।
(12)बारहवें इमाम हज़रत महेदी आख़िरूज़्ज़ामन अ
0।
बारहवें इमाम- बारहवें इमाम अभी तक ज़िन्दा हैं मगर ख़ुदा के हुक्म से हम लोगों की नज़रों से पोशीदा हैं और यूँही पोशीदा रहेगें। जब ख़ुदा का हुक्म होगा तब दुनिया में ज़ाहिर होगें
,उस वक़्त सब लोग एक दीन और मज़हब पर होंगे
,इसी हाल पर दुनिया बरसो क़ायम रहेगी।
चौदह मासूम
जनाबे रसूले ख़ुदा (स. अ.) और जनाबे फ़ात्मा ज़हरा (अ.) और बारह इमाम (अ.) हैं।
सिफ़ात-ए-सुबूतिया
जो बातें ख़ुदा में पाई जाती हैं वो आठ हैं।
(1)क़दीम: यानी हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा।
(2)क़ादिर: यानी हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
(3)आलिम: यानी हर चीज़ का जानने वाला है।
(4)मुदरिक: यानी बग़ैर आँख
,कान वग़ैरा के हर चीज़ दर्याफ़्त करने वाला है।
(5)हई: यानी हमेशा से है और हमेशा ज़िन्दा रहेगा।
(6)मुरीद: यानी हर काम अपने इरादे और अख़त्यार से करता है।
(7)मुतकल्लिम: यानी जिस चीज़ में चाहे कलाम पैदा करे।
(8)सादिक़ यानी: वो हर बात में सच्चा है।
सिफ़ात-ए-सलबिया
जो बातें ख़ुदा में नहीं पाई जाती हैं आठ है।
(1)मुरक्कब नहीं: यानी किसी चीज़ से मिलकर नहीं बना।
(2)जिस्म नहीं: हाथ और पाँव वग़ैरा नहीं रखता।
(3)मकान नहीं उसके रहने की एक जगह नहीं बल्कि हर जगह मौजूद है।
(4)हुलूल नहीं: यानी किसी में समाता नहीं।
(5)मरई नहीं: यानी दिखने में नहीं आता।
(6)महले हवादिस नही: यानी वो एक हाल से दुसरे हाल की तरफ़ नहीं बदलता।
(7)शरीक अपना नहीं रखता।
(8)यह सिफ़तें उसकी ज़ात से अलग नहीं बल्कि सब ऐन ज़ात हैं।
नाम-ए-आमाल
यानी दो फ़रीश्तें ख़ुदा की तरफ़ से हर शख़्स पर मोक़र्रर हैं
,इसके सब काम अच्छे और बुरे लिखते हैं
,एक फ़रिश्ता अच्छे कामों को और दूसरा बुरे कामों को।
सवाल मुनकिर व नकीर
यानी क़ब्र में मुर्दे को दफ़्न करने के बाद तो फ़रिश्ते आते हैं और मुर्दो की रूह को ब हुक्में ख़ुदा फिर जिस्म में दाख़िल करके पूछते हैं।
सवाल जवाब
तेरा ख़ुदा कौन है
? परवरदिगार
तेरा दीन क्या है
? इस्लाम
तेरा पैग़म्बर कौन है
? हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स
0)
तेरा इमाम कौन है
? हज़रत अली ता बारह इमाम (अ
0)
तेरा क़िब्ला क्या है
? क़ाबा मोहतरम
बस जो शख़्स ईमानदार है और इन बातों का एतेक़ाद दिल से रखता है
,और ठीक-ठीक साफ़-साफ़ जवाब देता है तब वोह फ़रिश्ते उसको बहिश्त की ख़ुशख़बरी देकर चले जाते हैं
,और जो शख़्स इन बातों का जवाब ठीक नहीं देता उसको फ़रिश्ते आग के गुर्ज़ मारते हैं और दोज़ख़ की ख़बर देकर चले जाते हैं।
हिसाब
यानी क़यामत के रोज़ हर शख़्स की बदी और नेकी देखी जाऐगी
,जिसने जो कुछ अच्छा या बुरा काम किया है उसका हिसाब होगा और उसके मवाफ़िक जज़ा या सज़ा पाऐगा।
मीज़ान
यानी बरोज़े क़यामत हर शख़्स के आमाल ख़ुदा की क़ुदरत के तराज़ू में तोले जायेगे
,अगर नेक कामों का पल्ला भारी होगा तो उसको अच्छा बदला मिलेगा
,और जिसके बुरे कामों का पल्ला भारी होगा उसको सज़ा मिलेगी।
सिरात
ये एक पुल का रास्ता है
,बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार की धार से ज़्यादा तेज़
,और आग से ज़्यादा गर्म दोज़ख़ पर क़ायम किया जायेगा। इस पर से लोगों को गुज़रना होगा
,जो लोग कामिल ईमान रखते हैं
,जिन्होंने ख़ुदा और उसके रसूल (स
0)और इमामों की पुरी ताबेदारी की है वह लोग मिस्ल हवा के उस पर से गुज़र जाऐगें। जिन लोगों ने इसके ख़िलाफ़ किया हैं और गुमराह रहें हैं उन से इस पर ना चला जायेगा और दोज़ख़ में गिरेगें।
बहिश्त
ऐसी पाकीज़ा व लतीफ़ आरास्ता ऐश व आराम की जगह है कि यहाँ के बादशाहों को इसके सौवें हिस्से में से एक हिस्सा भी नसीब नहीं
,वहाँ किसी तरह की फ़िक्र और ग़म और बिमारी और दुख नहीं
,जो दाख़िल होगा वो हमेंशा की ज़िन्दगी पाकर ऐश व आराम से रहेगा।
दोज़ख़
ऐसी सख़्त अज़ाब की जगह है कि जितनी अज़ीयतें
,दुख और दर्द रंज
,आफ़ते यहाँ पेश आती हैं
,इन सब से हज़ार दर्जे ज़्यादा वहाँ हमेंशा के लिये होगी।
शिफ़ाअत
यानी क़यामत के दिन जनाबे रसूले ख़ुदा (स
0)और उनके अहलेबैत अतहार (अ
0)गुनाहगार बन्दों की सिफ़ारिश करेगें जो लोग उनकी मोहब्बत और ताबेदारी से बाहर रहे हैं वह शिफ़ाअत से महरूम रहेंगे और जो ताबेदारी में सर गर्म रहे हैं ख़ुदा उनको बख़्श देगा।
कलमा
ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदु रसूलुल्ला अलीयुन वलीयुल्लाहे वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़ली फ़तहू बिला फ़स्ल ।
(तरजुमा: अल्लाह के अलावा कोई और ख़ुदा नहीं
,मोहम्मद अल्लाह के पैग़म्बर हैं। अली अल्लाह के वली हैं और रसूले ख़ुदा के वसी हैं और बिला फ़स्ल रसूल के ख़लीफ़ा हैं।)
दुरूद
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद ।
(तरजुमा: ऐ अल्लाह अपने रसूल मोहम्मद मुस्तफ़ा (स
0)और उनकी औलादे ताहेरा पर दरूद भेज।)
फ़ुरू-ए-दीन
यानी दीन की शाख़ें
,और वो छ: हैं।
(1)नमाज़
(2)रोज़ा
(3)ख़ुम्स
(4)हज
(5)जिहाद
औक़ाते नमाज़
हर रोज़ पाँच वक़्त की नमाज़ वाजिब है
,सुबह की दो रकअत
,ज़ोहर की चार रकअत
,अस्र की चार रकअत
,मग़रिब की तीन रकअत
,ऐशा की चार रकअत
,इन नमाज़ों के पढ़ने की तरकीब यह कि नमाज़ पढ़ने के क़ब्ल हर तरह की नजासत से बदन और कपङो का पाक होना और वुज़ू या ग़ुस्ल या ज़रूरत पर तयम्मुम कर लेना ज़रूरी है।
वुज़ू की तरकीब
पाक पानी से पहले दोनो हाथों को गट्टे तक दो मर्तबा धोयें
,फिर तीन मर्तबा कुल्ली करें
,फिर तीन मर्तबा नाक में पानी डालें
,फिर वुज़ू की नियत इस तरह करें कि वुज़ू करता हूँ मैं वास्ते दूर होने हदस के और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह साथ ही नियत के एक चुल्लू पानी मुंह पर डालें
,इस तरह की इब्तेदाई पेशानी से ठुड्डी के नीचे तक और चौङाई में दोनों कानों की जङ के क़रीब तक धोये इसके बाद दाहिने हाथ की कोंहनी कुछ ऊपर से उंगलियों के सिरे तक धोयें
,इसके बाद बाँए हाथ को भी इसी तरह धोयें
,इसके बाद सिर का मसह करें
,यानि हाथ की उंगलियाँ तालू से बालों के इन्तेहा तक खीचें
,इसके बाद दाहिने हाथ से दाहिने पाँव का और बायें हाथ से बायें पाँव का यानी दोनो पाँव की उंगलियों से गट्टे तक मसह करें।
तयम्मुम
अगर पानी ज़रर करता हो
,या ना मिलता हो
,या ग़स्बी हो
,और वक़्ते नमाज़ हो तो ग़ुस्ल या वुज़ू के बदले तयम्मुम करना चाहिये पहले नियत करें कि तयम्मुम करता हूँ या करती हूँ बदले ग़ुस्ल या वुज़ू के वास्ते मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह और इसके बाद फ़ौरन दोनों होथों को एक मर्तबा ख़ाक पर मारें
,बाद इसके हाथों को मिलाकर पेशानी के ऊपर से नाक तक खींचे
,इसके बाद बायें हथेली से दाहिने हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे इसके बाद बायें हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे
,मिट्टी पाक हो
,कोई चीज़ इसमें मिली न हो और हाथ से अंगूठी वग़ैरा उतार दें।
अज़ान
वुज़ू के बाद जब नमाज़ का इरादा करें तो पहले इस तरह चार मर्तबा बा आवाज़ बलन्द अल्लाहो अकबर (ख़ुदा बुज़ुर्ग है) कहें
,फिर दो मर्तबा अश्हदो अल्ला इलाहा इलल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक ख़ुदा कोई नहीं ब जुज़ अल्लाह के) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना मोहम्मदर रसूलुल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना अमीरल मोअमेनीना व इमामल मुत्तक़ीना अलीयव वली युल्लाह वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़लीफ़तोहू बिला फ़स्ल (गवाही देता हूँ की ब तहक़ीक अली अ
0मोमिनों के अमीर और मुत्तक़ियों के इमाम
,अल्लाह के वली हैं पैग़म्बरे ख़ुदा के वसी और ख़लीफ़ बिला फ़स्ल हैं) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अलस्सलाह (नमाज़ के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अललफ़लाह (फ़लाहयत के लिये आमादा हो) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अला ख़ैरिल अमल (बेहतरीन अमल के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें अल्लाहो अकबर (अल्लाह बुज़ुर्ग है) फिर दो मर्तबा कहें ला इलाहा इलल्लाह (अल्लाह के सिवाये कोई माबूद नहीं)।
बाद इसके बैठ जायें और यह दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मज अल क़लबी बार रवं व अमली सार रवं व ऐशी क़ार रवं व रिज़्क़ी दारवं व औलादी अबरारवं वज अलली इन्दा क़ब्रे नबीय्येका मुहम्मदिन सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम मुसतक़र रवं वाक़रारन बे रहमते का या अरहमर राहेमीन ।
(तर्जुमा: ऐ पालने वाले मेरे क़ल्ब को नेक और मेरे ऐश को बरक़रार और अमल को जारी रख और मेरे रिज़्क़ को और हमेशगी और मेरी औलाद को नेकोकारी अत फ़रमा
,और मेरे लिये अपने नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) की क़ब्र के नज़दीक अता करना
,और इन पर अल्लाह की रहमत और दुरूद और इनकी आल पर सलाम इसतक़रार और बरक़रारी अपनी रहमत के साथ अता फ़रमा ऐ बहुत रहम वाले)
दुआ पढ़ने के बाद इस तरह अक़ामत कहें
अक़ामत
अल्लाहो अकबर दो मर्तबा बाद इसके सब अरकान अज़ान की तरह बजा लायें मगर हय्या अला ख़ैरिल अमल के बाद दो मर्तबा क़द क़ामतिस्सलाह को ज़्यादा करे और ला इलाहा इल्लल्लाह एक मर्तबा कहे। इसके बाद नमाज़ शुरू करें.