दीनियात और नमाज़

दीनियात और नमाज़0%

दीनियात और नमाज़ लेखक:
कैटिगिरी: मसाइल

दीनियात और नमाज़

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना फरमान अली साहब क़िबला
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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दीनियात और नमाज़

दीनियात और नमाज़

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दीनियात और नमाज़

लेखकः मौलाना फरमान अली साहब

मुक़्द्देमा

बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इस एक अकेले ने सारे जहांन में ज़मीन का फ़र्श बिछाया ,उस पर रंग बिरंगे के गुलबूटे छापे ,आसमान का शामयाना बनाया ,उसमें सीतारों की चमकीली चमकियां टांकी ,आफ़ताब व महताब की कंदीले लटकाई। एक को रौशन और दूसरे को बुझा कर रात दिन की सैर कराता है ,अपनी क़ुदरत के तमाशे दिखाता है। इसका वज़ीर बेनज़ीर है ,यह उसकी कहानी है और क़ुदरती क़िस्सों को हमें यूँ कह सुनाता है।

उसूल-ए-दीन

यानी दीन की जड़े पाँच हैं

(1)तौहीद , (2)अदल , (3)नबूव्वत , (4)इमामत , (5)क़यामत

तौहीद- यानी ख़ुदा एक है ,क्योंकि अगर कई ख़ुदा होते तो जहांन के इन्तेज़ाम में बखेङा होता ,एक ख़ुदा कुछ कहता और दूसरा कुछ कहता ,इससे आपस में तकरार होती और कोई चीज़ पैदा ना हो सकती।

अदल- यानी ख़ुदा इंसाफ़वर है ,ज़ालिम नहीं है क्योंकि ज़ुल्म करना बूरी चीज़ है और ख़ुदा हर बुराई से पाक है।

नबूव्वत- ख़ुदा ने एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर पैदा किये ,अव्वल हज़रत आदम (अ 0),आख़ीर इनके हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स 0)हैं ,बाद हज़रत के ना कोई पैग़म्बर हुआ है ना होगा।

इमामत- यानी हर पैग़म्बर ने अपने बाद किसी को अपना नाएब मुर्क़रर किया है ,इसी तरह हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा (स 0)ने भी अपना नाएब मुर्क़रर फ़रमाया और वोह सब बरहक़ हैं और मासूम हैं ,इन सबका हुक्म बजा लाना भी हम लोगों पर वाजिब है।

क़यामत- यानी एक रोज़ ऐसा होगा कि सब के सब मर जायेगें ,सिवाये ज़ाते ख़ुदा के कुछ बाक़ी ना रहेगा। ना आसमान ना ज़मीन ,ना आफ़ताब ना महताब ,फिर ख़ुदा उनके बदनों में रूह को दाख़िल करेगा ,और हिसाब वग़ैरा के बाद नेकों को बहिश्त में और बदों को दोज़ख़ में भेजेगा।

इमाम बारह हैं

(1)पहले इमाम हज़रत अली अ 0।

(2)दूसरे इमाम हज़रत हसन अ 0।

(3)तीसरे इमाम हज़रत हुसैन अ 0।

(4)चौथे इमाम हज़रत ज़ैनुलआबिदीन अ 0।

(5)पाँचवे इमाम हज़रत मोहम्मद बाक़िर अ 0।

(6)छठे इमाम हज़रत जाफ़र सादिक़ अ 0।

(7)सातवे इमाम हज़रत मुसा काज़िम अ 0।

(8)आठवें इमाम हज़रत अली रिज़ा अ 0।

(9)नवे इमाम हज़रत मोहम्मद तक़ी अ 0।

(10)दसवें इमाम हज़रत अली नक़ी अ 0।

(11)ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन असकरी अ 0।

(12)बारहवें इमाम हज़रत महेदी आख़िरूज़्ज़ामन अ 0।

बारहवें इमाम- बारहवें इमाम अभी तक ज़िन्दा हैं मगर ख़ुदा के हुक्म से हम लोगों की नज़रों से पोशीदा हैं और यूँही पोशीदा रहेगें। जब ख़ुदा का हुक्म होगा तब दुनिया में ज़ाहिर होगें ,उस वक़्त सब लोग एक दीन और मज़हब पर होंगे ,इसी हाल पर दुनिया बरसो क़ायम रहेगी।

चौदह मासूम

जनाबे रसूले ख़ुदा (स. अ.) और जनाबे फ़ात्मा ज़हरा (अ.) और बारह इमाम (अ.) हैं।

सिफ़ात-ए-सुबूतिया

जो बातें ख़ुदा में पाई जाती हैं वो आठ हैं।

(1)क़दीम: यानी हमेंशा से है और हमेंशा रहेगा।

(2)क़ादिर: यानी हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

(3)आलिम: यानी हर चीज़ का जानने वाला है।

(4)मुदरिक: यानी बग़ैर आँख ,कान वग़ैरा के हर चीज़ दर्याफ़्त करने वाला है।

(5)हई: यानी हमेशा से है और हमेशा ज़िन्दा रहेगा।

(6)मुरीद: यानी हर काम अपने इरादे और अख़त्यार से करता है।

(7)मुतकल्लिम: यानी जिस चीज़ में चाहे कलाम पैदा करे।

(8)सादिक़ यानी: वो हर बात में सच्चा है।

सिफ़ात-ए-सलबिया

जो बातें ख़ुदा में नहीं पाई जाती हैं आठ है।

(1)मुरक्कब नहीं: यानी किसी चीज़ से मिलकर नहीं बना।

(2)जिस्म नहीं: हाथ और पाँव वग़ैरा नहीं रखता।

(3)मकान नहीं उसके रहने की एक जगह नहीं बल्कि हर जगह मौजूद है।

(4)हुलूल नहीं: यानी किसी में समाता नहीं।

(5)मरई नहीं: यानी दिखने में नहीं आता।

(6)महले हवादिस नही: यानी वो एक हाल से दुसरे हाल की तरफ़ नहीं बदलता।

(7)शरीक अपना नहीं रखता।

(8)यह सिफ़तें उसकी ज़ात से अलग नहीं बल्कि सब ऐन ज़ात हैं।

नाम-ए-आमाल

यानी दो फ़रीश्तें ख़ुदा की तरफ़ से हर शख़्स पर मोक़र्रर हैं ,इसके सब काम अच्छे और बुरे लिखते हैं ,एक फ़रिश्ता अच्छे कामों को और दूसरा बुरे कामों को।

सवाल मुनकिर व नकीर

यानी क़ब्र में मुर्दे को दफ़्न करने के बाद तो फ़रिश्ते आते हैं और मुर्दो की रूह को ब हुक्में ख़ुदा फिर जिस्म में दाख़िल करके पूछते हैं।

सवाल                              जवाब

तेरा ख़ुदा कौन है ?               परवरदिगार

तेरा दीन क्या है ?                इस्लाम

तेरा पैग़म्बर कौन है ?             हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स 0)

तेरा इमाम कौन है ?              हज़रत अली ता बारह इमाम (अ 0)

तेरा क़िब्ला क्या है ?              क़ाबा मोहतरम

बस जो शख़्स ईमानदार है और इन बातों का एतेक़ाद दिल से रखता है ,और ठीक-ठीक साफ़-साफ़ जवाब देता है तब वोह फ़रिश्ते उसको बहिश्त की ख़ुशख़बरी देकर चले जाते हैं ,और जो शख़्स इन बातों का जवाब ठीक नहीं देता उसको फ़रिश्ते आग के गुर्ज़ मारते हैं और दोज़ख़ की ख़बर देकर चले जाते हैं।

हिसाब

यानी क़यामत के रोज़ हर शख़्स की बदी और नेकी देखी जाऐगी ,जिसने जो कुछ अच्छा या बुरा काम किया है उसका हिसाब होगा और उसके मवाफ़िक जज़ा या सज़ा पाऐगा।

मीज़ान

यानी बरोज़े क़यामत हर शख़्स के आमाल ख़ुदा की क़ुदरत के तराज़ू में तोले जायेगे ,अगर नेक कामों का पल्ला भारी होगा तो उसको अच्छा बदला मिलेगा ,और जिसके बुरे कामों का पल्ला भारी होगा उसको सज़ा मिलेगी।

सिरात

ये एक पुल का रास्ता है ,बाल से ज़्यादा बारीक और तलवार की धार से ज़्यादा तेज़ ,और आग से ज़्यादा गर्म दोज़ख़ पर क़ायम किया जायेगा। इस पर से लोगों को गुज़रना होगा ,जो लोग कामिल ईमान रखते हैं ,जिन्होंने ख़ुदा और उसके रसूल (स 0)और इमामों की पुरी ताबेदारी की है वह लोग मिस्ल हवा के उस पर से गुज़र जाऐगें। जिन लोगों ने इसके ख़िलाफ़ किया हैं और गुमराह रहें हैं उन से इस पर ना चला जायेगा और दोज़ख़ में गिरेगें।

बहिश्त

ऐसी पाकीज़ा व लतीफ़ आरास्ता ऐश व आराम की जगह है कि यहाँ के बादशाहों को इसके सौवें हिस्से में से एक हिस्सा भी नसीब नहीं ,वहाँ किसी तरह की फ़िक्र और ग़म और बिमारी और दुख नहीं ,जो दाख़िल होगा वो हमेंशा की ज़िन्दगी पाकर ऐश व आराम से रहेगा।

दोज़ख़

ऐसी सख़्त अज़ाब की जगह है कि जितनी अज़ीयतें ,दुख और दर्द रंज ,आफ़ते यहाँ पेश आती हैं ,इन सब से हज़ार दर्जे ज़्यादा वहाँ हमेंशा के लिये होगी।

शिफ़ाअत

यानी क़यामत के दिन जनाबे रसूले ख़ुदा (स 0)और उनके अहलेबैत अतहार (अ 0)गुनाहगार बन्दों की सिफ़ारिश करेगें जो लोग उनकी मोहब्बत और ताबेदारी से बाहर रहे हैं वह शिफ़ाअत से महरूम रहेंगे और जो ताबेदारी में सर गर्म रहे हैं ख़ुदा उनको बख़्श देगा।

कलमा

ला इलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदु रसूलुल्ला अलीयुन वलीयुल्लाहे वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़ली फ़तहू बिला फ़स्ल ।

(तरजुमा: अल्लाह के अलावा कोई और ख़ुदा नहीं ,मोहम्मद अल्लाह के पैग़म्बर हैं। अली अल्लाह के वली हैं और रसूले ख़ुदा के वसी हैं और बिला फ़स्ल रसूल के ख़लीफ़ा हैं।)

दुरूद

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन व आले मुहम्मद ।

(तरजुमा: ऐ अल्लाह अपने रसूल मोहम्मद मुस्तफ़ा (स 0)और उनकी औलादे ताहेरा पर दरूद भेज।)

फ़ुरू-ए-दीन

यानी दीन की शाख़ें ,और वो छ: हैं।

(1)नमाज़

(2)रोज़ा

(3)ख़ुम्स

(4)हज

(5)जिहाद

औक़ाते नमाज़

 हर रोज़ पाँच वक़्त की नमाज़ वाजिब है ,सुबह की दो रकअत ,ज़ोहर की चार रकअत ,अस्र की चार रकअत ,मग़रिब की तीन रकअत ,ऐशा की चार रकअत ,इन नमाज़ों के पढ़ने की तरकीब यह कि नमाज़ पढ़ने के क़ब्ल हर तरह की नजासत से बदन और कपङो का पाक होना और वुज़ू या ग़ुस्ल या ज़रूरत पर तयम्मुम कर लेना ज़रूरी है।

वुज़ू की तरकीब

पाक पानी से पहले दोनो हाथों को गट्टे तक दो मर्तबा धोयें ,फिर तीन मर्तबा कुल्ली करें ,फिर तीन मर्तबा नाक में पानी डालें ,फिर वुज़ू की नियत इस तरह करें कि वुज़ू करता हूँ मैं वास्ते दूर होने हदस के और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह  साथ ही नियत के एक चुल्लू पानी मुंह पर डालें ,इस तरह की इब्तेदाई पेशानी से ठुड्डी के नीचे तक और चौङाई में दोनों कानों की जङ के क़रीब तक धोये इसके बाद दाहिने हाथ की कोंहनी कुछ ऊपर से उंगलियों के सिरे तक धोयें ,इसके बाद बाँए हाथ को भी इसी तरह धोयें ,इसके बाद सिर का मसह करें ,यानि हाथ की उंगलियाँ तालू से बालों के इन्तेहा तक खीचें ,इसके बाद दाहिने हाथ से दाहिने पाँव का और बायें हाथ से बायें पाँव का यानी दोनो पाँव की उंगलियों से गट्टे तक मसह करें।

तयम्मुम

अगर पानी ज़रर करता हो ,या ना मिलता हो ,या ग़स्बी हो ,और वक़्ते नमाज़ हो तो ग़ुस्ल या वुज़ू के बदले तयम्मुम करना चाहिये पहले नियत करें कि तयम्मुम करता हूँ या करती हूँ बदले ग़ुस्ल या वुज़ू के वास्ते मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह और इसके बाद फ़ौरन दोनों होथों को एक मर्तबा ख़ाक पर मारें ,बाद इसके हाथों को मिलाकर पेशानी के ऊपर से नाक तक खींचे ,इसके बाद बायें हथेली से दाहिने हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे इसके बाद बायें हाथ की पुश्त पर गट्टे से उंगलियों के सिरे तक मसह करे ,मिट्टी पाक हो ,कोई चीज़ इसमें मिली न हो और हाथ से अंगूठी वग़ैरा उतार दें।

अज़ान

वुज़ू के बाद जब नमाज़ का इरादा करें तो पहले इस तरह चार मर्तबा बा आवाज़ बलन्द अल्लाहो अकबर (ख़ुदा बुज़ुर्ग है) कहें ,फिर दो मर्तबा अश्हदो अल्ला इलाहा इलल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक ख़ुदा कोई नहीं ब जुज़ अल्लाह के) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना मोहम्मदर रसूलुल्लाह (गवाही देता हूँ ब तहक़ीक मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं) फिर दो मर्तबा कहें अश्हदो अन्ना अमीरल मोअमेनीना व इमामल मुत्तक़ीना अलीयव वली युल्लाह वसीयो रसूलिल्लाहे व ख़लीफ़तोहू बिला फ़स्ल (गवाही देता हूँ की ब तहक़ीक अली अ 0मोमिनों के अमीर और मुत्तक़ियों के इमाम ,अल्लाह के वली हैं पैग़म्बरे ख़ुदा के वसी और ख़लीफ़ बिला फ़स्ल हैं) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अलस्सलाह (नमाज़ के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अललफ़लाह (फ़लाहयत के लिये आमादा हो) फिर दो मर्तबा कहें हय्या अला ख़ैरिल अमल (बेहतरीन अमल के लिये आमादा हों) फिर दो मर्तबा कहें अल्लाहो अकबर (अल्लाह बुज़ुर्ग है) फिर दो मर्तबा कहें ला इलाहा इलल्लाह (अल्लाह के सिवाये कोई माबूद नहीं)।

बाद इसके बैठ जायें और यह दुआ पढ़े

अल्लाहुम्मज अल क़लबी बार रवं व अमली सार रवं व ऐशी क़ार रवं व रिज़्क़ी दारवं व औलादी अबरारवं वज अलली इन्दा क़ब्रे नबीय्येका मुहम्मदिन सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम मुसतक़र रवं वाक़रारन बे रहमते का या अरहमर राहेमीन ।

(तर्जुमा: ऐ पालने वाले मेरे क़ल्ब को नेक और मेरे ऐश को बरक़रार और अमल को जारी रख और मेरे रिज़्क़ को और हमेशगी और मेरी औलाद को नेकोकारी अत फ़रमा ,और मेरे लिये अपने नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) की क़ब्र के नज़दीक अता करना ,और इन पर अल्लाह की रहमत और दुरूद और इनकी आल पर सलाम इसतक़रार और बरक़रारी अपनी रहमत के साथ अता फ़रमा ऐ बहुत रहम वाले)

दुआ पढ़ने के बाद इस तरह अक़ामत कहें

अक़ामत

अल्लाहो अकबर दो मर्तबा बाद इसके सब अरकान अज़ान की तरह बजा लायें मगर हय्या अला ख़ैरिल अमल के बाद दो मर्तबा क़द क़ामतिस्सलाह को ज़्यादा करे और ला इलाहा इल्लल्लाह एक मर्तबा कहे। इसके बाद नमाज़ शुरू करें.

तरकीब नमाज़

अक़ामत के बाद सीधा खङा हो क़िब्ला की तरफ़ मुंह करके और इस तरह नियत करें नमाज़ पढ़ता हूँ मैं (जैसे) सुबह की दो रकअत वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह इसके साथ ही तकबीर कहें यानी अल्लाहु अकबर ब आवाज़ बलन्द कहें ,इसके बाद हम्द बिस्मिल्लाह के साथ पढ़ें।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

अलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन ,अर रहमानिर रहीम ,मालिके यौमिद्दीन ,ईय्याका नअबोदो व इय्याका नसताईन ,एहदिनस्सिरातल मुस्तक़ीम ,सिरातल्लज़ीना अन अमता अलैहिम ग़ैरिल मग़ज़ूबे अलैहिम वलज़्ज़ल्लीन ।

(तर्जुमा : सब तारीफ़े अल्लाह के लिये जो तमाम आलमों का पालने वाले है जो बङा रहम करने वाला है ,क़यामत के दिन का मालिक है। हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझसे ही मदद चाहते हैं। हम को सीधी राह पर बाक़ी रख उन लोगों की राह पर जिनपर अपनी नेमतें नाज़िल फ़रमाई ,न उन लोगों की राह जिन पर तूने अपना ग़ज़ब नाज़ील किया और न गुमराहों की।)

बाद अलहम्द के जो सूरा चाहे पढ़े इख़्तेयार है।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

इन्ना अनज़लनाहो फ़ी लैलतिल क़द्र वमा अदरका मा लैलतुल क़द्र लैलतुल क़द्रे ख़ैरूम मिन अलफ़े शहर ,तनज़्ज़लुल मलाएकतो वर रूहो फ़ीहा बेइज़्ने रब्बेहिम मिन कुल्ले अमरिन सलामुन हियाहत्ता मतलाईल फ़ज्र ।

(तर्जुमा- ब तहक़ीक़ हमने क़ुर्आन को शबे क़द्र में नाज़ील किया ,और तू नहीं जानता कि शबे क़द्र कैसी शब है ,शबे बेहतर है हज़ारो महीनों से। अपने परवरदिगार के हुक्म से इस शब में मलायेका और रूह नाज़िल होते हैं ,यह शब आबीदों के लिये हर अमल बाअसे सलामती है यहा तक की तुलूए सुबह हो।)

फिर अल्लाहु अकबर कह कर रूकूउ में जाये और तीन मर्तबा सुबहाना रब्बेयल अज़ीमे व बेहमदेह कहे। (यानी तस्बीह करता हूँ मैं अपने उस परवरदिगार बुज़ुर्ग की और हम्द उसकी।) फिर सिधा खङे हो और समे अल्लाहोलेमन हमेदह कहे (ख़ुदा वन्दे आलम उसका कलाम सुनता है जो उसकी हम्द करता है) फिर अल्लाहो अकबर कह कर सजदे में जायें और तीन मर्तबा कहें सुब्हाना रब्बेयल आला व बेहमदेह (तस्बीह करता हूँ अपने परवरदिगार की जो सबसे ज़्यादा बुज़ुर्ग है और हम्द उसकी) बाद इसके सर उठायें और अल्लाहो अकबर कह कर बैठें और एक मर्तबा असतग़ फ़ेरूल्लाहा रब्बी व अतूबो इलैह कहें (बख़्शीश चाहता हूँ अपने परवरदिगार से अपने गुनाहों की) फिर अल्लाहो अकबर कहें और दोबारा सजदें में जायें और तीन बार कहें सुब्हाना रब्बेयल आला व बेहमदेह और सजदे से सर उठायें और अल्लाहो अकबर कहें और बैठे ,बाद उसके बेहोलिल्लाहे व क़व्वतेही अक़ूमो व अक़ुद (यानी उसी अल्लाह की क़ुव्वत और मदद से खङा होता हूँ और बैठता हूँ) कह के सीधा खङा हो। रकअत अव्वल तमाम हुई।

 दूसरी रकअत

मिस्ल रकअत अव्वल बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम कह कर सूरा हम्द पढ़ें। इसके बाद सुरा क़ुल होवल्लाहो अहद ,पढ़े।

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान रहीम है।

क़ुल होवल्लाहो अहद ,अल्ला हुस्समद ,लम यलिद वलम यूलद ,वलम यकुल्लाहू कोफ़ोवन अहद ।

(तर्जुमा- कहदो ऐ रसूल अल्लाह एक है और वह बेनियाज़ है। कोई उससे पैदा नहीं हुआ और न वह किसी से पैदा हुआ और न कोई उसका मिस्ल है।) इसके बाद दोनो हाथों को मुंह के बराबर उठायें और यह दुआ-ए-क़ुनूत पढ़े।

रब्बनग़फ़िरली वले वालेदय्या व लिलमोमिनीना ,यौमा यक़ूमुल हिसाब अल्लाहुम्मग़फ़िरलना वरहमना व आफ़ेना व अफ़ोअन्ना फ़िद्दुनिया वल आख़ेरह इन्नाका अला कुल्ले शैइन क़दीर।

(तर्जुमा- ऐ हमारे पालने वाले क़यामत के दिन हमको और हमारे वालदैन और तमाम मोमिनों को बख़्श दें। परवरदिगार हमारी और तमाम मोमिनों की बख़्शीश कर और दुनिया और आख़ेरत में आफ़ियत अता फ़रमा ब तहक़ीक़ की तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।)

इसके बाद दुरूद पढ़ कर मिस्ल रकअत अव्वल के रूकूउ और दोनों सजदे बजा लाये ,जब सजदे से सर उठाये अल्लाहो अकबर कह कर दो ज़ानू बैठे और तशहुद पढ़ें।

अशहदो अल्लाइलाहा इल्लल्लाह वहदहूलाशरीका लहू व अशहदो अन्ना मुहम्मदन अबदोहू व रसूलोह।

(तर्जुमा- गवाही देता हूँ कि कोई ख़ुदा सिवाये अल्लाह के नहीं है ख़ुदा एक है और इसका कोई शरीक नहीं और गवाही देता हूँ की मोहम्मद मुस्तफ़ा (स 0अ 0)इसके बन्दे और रसूल हैं।) इसके बाद दुरूद पढ़ें ,अगर नमाज़ दो रकअत है तो यूँ सलाम पढ़ें।

अस्सालो अलैका अय्योहन्नबीयो व रहमतुल्लाहे व बराकातूह ,अस्सलामो अलैना व अला एबादिल्लाहिस्सालिहीन ,अस्सालामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरादातूह।

(तर्जुमा- ऐ पैग़म्बरे ख़ुदा आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमतें और बरकतें हो सलाम हो हम पर और ख़ुदा के नेक बन्दों पर और सलाम हो सब पर और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकत।)

अगर नमाज़ सह (तीन) रकअती हो या चार रकअती तो सलाम न पढ़ें ,और तशहुद पढ़ कर उठ खङा हो और फ़क़्त सूरा हम्द या जो सूरा याद हो पढ़े और रूकूउ और दोनों सजदे मिस्ल साबिक़ बजा लाये अगर नमाज़ सह रकअती है तो बाद तीसरी रकअत के और अगर चार रकअती है तो बाद चौथी रकअत के तशहुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे फिर तीन मर्तबा अल्लाहो अकबर हाथों को कानो तक लेजा कर कहें।

इसके बाद दुरूद और तसबीह जनाबे सय्यदा (स 0अ 0) 34मर्तबा अल्लाहो अकबर और 33मर्तबा अलहम्दो लिल्लाह और 33मर्तबा सुब्हानल्लाह पढ़े। इस के बाद दुआयें और क़ुरआन मजीद और जोशनीन वग़ैरा पढ़ें और बावास्ता पंजतन पाक (अ 0)और बाराह इमाम (अ 0)बरादरान मोमिन ज़िन्दा और मुर्दा के लिये दुआ-ए-ख़ैर करें और अपनी हाजतें ख़ुदा से तलब करे और बाद इसके ज़ेयारत इमाम हुसैन (अ 0)रोज़-ए-अक़दस की तरफ़ इशारा करके पढ़ें।

नमाज़ जमाअत

इस्लाम एक कामिल और एजतेमाई दीन है। यही वजह है कि इस्लाम नमाज़े जमाअत को बहुत अहमियत देता है। क्योंकि नमाज़े जमाअत मज़हरे वहदत व उल्फ़त व नज़म व ज़ब्त और क़ुव्वते (ताक़त) मुसलेमीन है।

हदीस में आया है कि अगर एक आदमी इमाम जमाअत की एकतेदा करे तो हर रकअत का सवाब एक सौ पचास नमाज़ों का है। अगर दो आदमी हों तो छ: सौ नमाज़ो का सवाब है। इसी तरह जितने मुक़्तदी ज़्यादा होते जायेगें ,सवाब में इज़ाफ़ा होता जायेगा। लेकिन जब या इससे ज़्यादा मुक़्तदी हो जायें तो अगर तमाम आसमान कागज़ बन जाये ,तमाम दरया सियाही बन जाये ,तमाम दरख़्त क़लम बन जायें और तमाम जिन व इन्स व मलायका लिखने वाले हों तो एक रकअत का भी सवाब नहीं लिख सकते। लापरवाही की वजह से जमाअत में हाज़िर ना होना जाएज़ नहीं है। और बग़ैर उज्र के नमाज़े जमाअत तर्क करना मुनासिब नहीं है( 1)।

((1)इमाम ख़ुमैनी ,आक़ाए ख़ुई ,आक़ाए गुलपाएगानी ,आक़ाए मोहम्मद अली अराक़ी)