दीनियात और नमाज़

दीनियात और नमाज़0%

दीनियात और नमाज़ लेखक:
कैटिगिरी: मसाइल

दीनियात और नमाज़

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना फरमान अली साहब क़िबला
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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दीनियात और नमाज़

दीनियात और नमाज़

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

शराऐते पेश नमाज़

1-मर्द हो , 2-बालिग़ हो , 3-आक़िल हो , 4-शिया असनाये अशरी हो , 5-हलाल ज़ादा हो , 6-नमाज़ दुरूस्त पढ़ सकता हो , 7-आदील हो ,अदालत एक हालत नफ़सानी और रूहानी है जिसका लाज़िम तक़वा व परहेज़गारी है ,यानी अवाम का पाबन्द और नवाही को मुरतक़िब ना हो।

तरीक़ा-ए-नमाज़े जमाअत

नमाज़े जमाअत सिर्फ़ दो आदमियों यानी एक पेश नमाज़ और एक मुक़तदी(पीछे नमाज़ पढ़ने वाला) से हो सकती है।

पेश नमाज़ की नियत करने के बाद मुक़तदी नियत करे की फ़लां नमाज़ पढ़ता हूँ मैं पीछे इस पेश नमाज़ के अदा वाजिब क़ुर्बतनइलल्लाह ,और पहली और दूसरी रकअत में हम्द और दूसरा सूरा ख़ुद न पढ़े बल्कि पेश नमाज़ के पढ़ने को सुनता रहे। अख़फाकी नमाज़ (ज़ोहर व अस्र) में जब इमाम क़रअत करे तो बेहतर है कि मामूम ज़िकरे ख़ुदा में मशग़ूल रहे बल्कि अक़वा यह है कि जहरी नमाज़(नमाज़े फ़ज्र ,मग़रिब व एशा) में भी जब इमाम करअत करे और उसकी आवाज़ सुनाई न दे तो मामूम ज़िक्रे ख़ुदा (आहिस्ता आहिस्ता सुब्हानल्लाह सुब्हानल्लाह पढ़ता रहे) में मशग़ूल रहें। अगर जहरी नमाज़ में क़रअत या हमहमा सुन रहा हो ,तो ख़ामोश रहना और सुनना वाजिब है। और अगर सुनने में ना आये तो बहतर बल्कि अहवत यह है कि ख़ामोश खङा होकर इमाम की क़राअत सुनने की कोशिश करता रहे। बाक़ि रूकूउ व सजदों के तमाम उमूर पेश नमाज़ के पीछे ख़ुद बजा लाये। अगर मुक़तदी किसी वजह से पहली रकअत में शामिल नहीं हो सका और दुसरी रकअत में रूकुउ से पहले शामिल हुआ है तो जिस वक़्त पेश नमाज़ तशहुद पढ़े तो मुक़तदी को चाहिये की वो ज़ानुओ को ज़मीन से उठा कर और हाथों को ज़मीन पर टेक कर चुप बैठा रहे और बजाये तशहुद सुब्हानल्लाह पढ़ता रहे और इमाम के खङे होने के साथ ही खङा हो जाये। तीसरी रकअत में जब पेश नमाज़ सलाम अदा करे तो मुक़तदी सलाम शुरू करने के एन वक़्त पर उठ कर अपनी तीसरी रकअत अदा करे। अगर नमाज़ चार रकअती हो तो मुक़तदी जल्द से तशहुद अदा करके पेश नमाज के साथ क़याम में शामिल हो जाये। क्योंकि हालते रूकूउ व सजदों में पेश नमाज़ के साथ शामिल होना ज़रूरी है।

नमाज़ जमात के चन्द ज़रूरी मसाएल

1नमाज़ जमाअत में पेश नमाज़ को तय्यन होना लाज़मी है।

2पेश नमाज़ पहले दो रूकन पैदर पै अमदन बजा लाये तो ऐहतेयात वाजिब यह है कि नमाज़ को तमाम करने के बाद दोबारा पढ़ें।

3नमाज़ ज़ोहर और अस्र की पहली और दूसरी रकअत में मामूम अलहम्द और सूरा ना पढ़ें बल्कि सुब्हानल्लाह कहना मुस्तहब है।

4इमाम नमाज़ में पेशाब पैख़ाना नहीं रोक सकता तो एहतेयात वाजिब है कि इसकी इक़तेदा न करे इसी तरह जिसको जुज़ाम और बरस हो वह भी इमामे जमाअत नहीं बन सकता।

5मामूम नमाज़ जमाअत में अलहदम्द और दुसरे सूरे के अलावा बाक़ी तमाम ज़िक्र ख़ुद पढ़े।

6पहली सफ़ के मामूम तकतीब से तकबीरातुल एहराम कहें जबकि दूसरी और बाक़ी सफ़ वाले अपने आगे वाले की तकबीर के बाद तकबीरातुल एहराम कह सकते हैं।

नमाज़े जुमा

इस्लाम दीन-ए-सियासत है कि जिसके एहकाम सियासते इलाही के मज़हर में मस्जिद में नमाज़े जमाअत के इजतेमाअत और हफ़्ते में एक दफह नमाज़-ए-जुमा का इजतेमा इस बात का सबूत है। इन दीनी और सयासी इजतेमाआत की वजह से मुसलमान एक दूसरे के हालात से वाक़िफ़ होने अलावा दीनी इजतेमाइ और अक़तसादी मसायल से भी आगाही नसीहत और रोज़ मर्राह के मसायल बयान होने चाहिये।

नमाज़े जुमा वली-ए-अस्र (अ 0)की ग़ैबत में वाजिब तख़ीरी है यानि जुमें के दिन इन्सान ज़ोहर के बजाय जुमा पढ़ सकता है। लेकिन जुमा अफ़ज़ल है और नमाज़ ज़ोहर अहवत है और एहतेयात यह है कि दोनो को जमा किया जाये और जो नमाजे जुमा वाजिब की नियत से पढ़ता है उस पर ज़ोहर पढ़ना वाजिब नहीं है। ताहम एहतियात मुस्तहब है कि नमाज़े ज़ोहर भी पढ़े। नमाज़े जुमा के वही शरायत हैं जो नमाज़े जमाअत के हैं।

इसी तरह इमामे जुमा और इमामे जमाअत के शरायत यकसा हैं।

नमाज़े जुमा वाजिब होने की शर्ते

1बालिग़ हो , 2मर्द हो , 3मुसाफ़िर ना हो , 4अंधा ना हो , 5सही व सालीम हो , 6ज़ईफ़ और बुढ़ा ना हो , 7.महल नमाज़े जुमा घर से दो फ़रसख के फ़ासले से ज़्यादा न हो।

नमाज़े जुमा जमाअत के बग़ैर नहीं हो सकती। जमाअत के लिये कमअज़्कम पाँचे आदमियों का होना ज़रूरी है और इसका वक़्त वही है जो नमाज़े ज़ोहर का वक़्ते फ़ज़ीलत है। इस नमाज़ में पहले पेश नमाज़ उन दो ख़ुतबों को पढ़े या उनकी मिस्ल दो ख़ुतबे पढ़े जिसमें हम्द व सनाऐ परवरदिगार और दुरूद व सलाम मोहम्मद व आले मोहम्मद और वाअज़ व नसीहतें मोमिनो के लिये हों। पहले ख़ुत्बे को किसी मुख़तसर सूरतों या आयात के साथ ख़त्म करें नमाज़ी इन ख़ुत्बों को ज़रूर सुने।

इस नमाज़ में दो क़ुनूत सुन्नत हैं। एक पहली रकअत में रूकूउ से पहले और दूसरी रकअत में रूकुउ के बाद। दोनों क़ुनूत में जो दुआ याद हो पढ़ें बाक़ी उमूर के लिये मुजताहिद की तरफ़ जिसकी तक़लीद में हैं रूजूअ करें।

नोट- नमाज़े जुमा एक फ़रस्ख़ यानी साढ़े पाँच कि 0मी 0के अन्दर दो जगह नहीं हो सकती। अगर एक मक़ाम पर दो नमाज़े पढ़ी जायेंगी जो पहले पढ़ी जाऐगी वो दुरूस्त हैं और दूसरी बातिल और अगर दोनों एक वक़्त में पढ़ी गईं हो तो दोनों बातिल हैं।

रोज़ा

माहे रमज़ान के पूरे महिने के रोज़े हर मर्द और औरत पर वाजिब हैं जबकि बालिग़ व आक़िल हो ,औरत नौ बरस और मर्द पनद्रह बरस में बालिग़ होता है। रोज़ा सुबह सादिक़ से अव्वल वक़्त मग़रिब तक यानी शाम को मशरिक़ की तरफ़ सुर्ख़ी जाती रहे और सियाही मशरिक़ से बलन्द होकर सिर से गुज़र जाये।

रोज़े की नीयत

पहली शब तमाम महीने की इस तरह नीयत करें की रोज़ा रख़ूगां तमाम माहे रमज़ान का वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह मगर बेहतर है कि हर शब नियत कर लिया करे। और गरम पानी से इफ़्तार करना बेहतर है ,बाद सुरा हम्द व इन्नाअन्ज़लनाहो कहे यह दुआ पढ़े।

दुआ-ए-इफ़तार

अल्ला हुम्मा लका सुमतो व अलारिज़्के का अफ़तरतो व अलैका तवक्कलतो।

अहकामे ज़िबह

जानवर को मुसलमान ज़िब्हा करे ,मर्द हो या औरत ,बालिग़ हो या ना बालिग़ ,ताहिर हो या नजिस ,क़िब्ला रूख़ लोहे की तेज़ धार से ज़िब्हा करते वक़्त बिस्मिल्लाह वल्लाह अकबर तीन बार कहे बल्कि जब तक रंग ना कटे उस वक़्त तक पढ़ता रहे।

तरीक़ा-ए-फातेहा

अव्वल व आख़ीर तीन बार दुरूद व सूरा पढ़कर इस तरह कहे कि इसका सवाब फलां इमाम (अ 0)को हदिया किया ,और इसके एवज़ में जो सवाब हासिल हुआ उसको मैंने फला की रूह को बख़्श दिया। सिवाये मोमिन के ग़ैर की फ़ातेहा मसलन शेख़ सददू वग़ैरा बिदअत और ना जायेज़ हैं।

शक्कियाते नमाज़

अगर दो रकअती नमाज़ मस्लन सुबह या तीन रकअती नमाज़ मस्लन मग़रीब या चार रकअती नमाज़ की अव्वल दो रकअतो के दरमियान शक हो और ज़रा ताम्मुल से शक रफ़ा ना हो तो नमाज़ बातिल है और नये सिरे से नमाज़ पढ़ना लाज़िम है ,और अगर चार रकअती में रूकुउ से पहले या दोनो सजदों के कामिल करने से पहले यह शक हो की दुसरी रकअत हो या तीसरी तो भी हर सूरत में नमाज़ बातिल है अगर यही शक सजते कामिल करने के बाद हो तो इस सूरत में नमाज़ी सही है। और इसको तीसरी रकअत समझ कर नमाज़ ख़त्म करे ,बाद अज़ा दो रकअत बैठ कर या एक रकअत खङे होकर पढ़े और नीयत करे कि नमाज़े एहतियात पढ़ता हूँ क़ुर्बतनइलल्लाह इस नमाज़ में सिर्फ़ सूराए हम्द आहिस्ता पढ़ी जाती है। दुसरे सूरे और क़ुनूत कुछ नहीं ,बाक़ी सब अमल बादसतूर हैं। अगर क़ब्ले रूकूउ या क़ब्ले अकमाले सजदा तीन दो और चार में शक हो तो भी नमाज़ बातिल है ,और सजदों की तकमील के बाद यह सूरत वाक़ेअ हो तो चार पर बिना रखे यानी चौथी रकअत समझ कर नमाज़ तमाम करे ,फ़िर दो रकअत नमाज़े एहतियात सिर्फ़ सूरा हम्द के साथ बग़ैर क़ुनूत खङा होकर पढ़े ,अगर तीन या चार के दरमियान शक हो ख्वाह किसी हालत में हो चार पर बिना रख कर नमाज़ ख़त्म करे। फिर दो रकअत नमाज़े एहतेयात मज़कूर बैठ कर या एक रकअत खङे होकर पढ़े ,सूरत अव्वल बेहतर है ,और अगर चार पाँच के दरमियान शक हो ,अगर रूकू से पहले है तो उसी वक़्त बैठ जायें और तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करें ,एक रकअत खङे होकर या दो रकअत बैठ कर नमाज़े एहतेयात बजा लायें और दो सजदे सहो के भी बजा लायें ,और अगर शक वक़्ते तस्बीहाते अरबअ सूर-ए-हम्द शुरू कर चुका हो तो दो सजदे सहो और भी करे ,और अगर रूकूउ के बाद और सजदो से पहले या सजदों के दरमियान चार पाँच में शक हो तो चार पर बिना रख कर नमाज़ ख़त्म करे ,बाद अज़ा दो सजदे करे और फिर एहतेयातन नमाज़ को अदा भी करे ,अगर सजदे के बाद चार और पाँच में शक हो तो इसी तरह बैठा रहे और तशहुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे और दो सजदे सहो के बजा लाये नमाज़ सही है ,और दूबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है।

शक के अहकाम

शक की चन्द क़िस्में हैं-

1.तहारत के सहो (शक) हो ,मस्लन एक शख़्स अपने आपको बा वुज़ू ख़्याल करके नमाज़ पढ़ने लगे और असनाए नमाज़ में याद आजाये की वुज़ू न था तो उसकी नमाज़ बातिल है और ग़ुस्लो तयम्मुम का भी हुक्म है।

2.नजासत के दूर करने में सहो हो ,मस्लन मेरा बदन और लिबास नजिस था ,नमाज़ बातिल है।

3.क़िब्ले में सहो हो ,अगर नमाज़ पढ़ते हुए तहक़ीक़ हो जाये कि जितनी नमाज़ पढ़ी है वो पुश्त बा क़िब्ला या उससे दायें या बायें रूख़ करके नमाज़ पढ़ी है ,नमाज़ बातिल है।

4.मकान में सहो हो ,मस्लन एक जगह को मुबाह समझ कर नमाज़ शुरू की ,असनाऐं नमाज़ में मालूम हुआ कि वह जगह ग़स्बी है ,इस हालत में अगर कोई अमर मुब्तले नमाज़ को बजा लाये बग़ैर मकाने मुबाह में जा सकता हो तो वहाँ चला जाये और बाक़ी नमाज़ वहाँ जाकर तमाम करे और अगर मुमकिन ना हो तो नमाज़ तोड़ दे और मुबाह मकान में जाकर शुरू से नमाज़ पढ़ें।

5.लिबास में सहो हो ,अगर असनाऐ नमाज़ में मालूम हो जाये की लिबास ऐसी चीज़ का बना हुआ है कि जिसमें नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है ,और इसके पहले ख़बर ना थी ,अब अगर वह मुब्तले नमाज़ को बजा लाये हुये बग़ैर ,उस नमाज़ उतार सकता है तो उतार कर बाक़ी नमाज़ तमाम करे ,और अगर ना उतार सकता हो तो नमाज़ क़ता करके अज़ सरे नौ बे ऐब लिबास पहन कर नमाज़ शुरू करे।

अगर सहवन नमाज़ में कमी हो जाये और बाद में याद आये अगर वह रूकन है और वह अभी दुसरे रूकन में दाख़िल नहीं हुआ तो वापस होकर उस रूकन को बजा लाये ,और अगर दूसरे रूकन में दाख़िल हो चुका है तो नमाज़ बातिल है और अगर वह कम शुदा जुज़वे रूकन नहीं है और अभी उसके बजा लाने का मौक़ा है तो उसको बजा लाये ,और अगर मौक़ा गुज़र गया तो कुछ हर्ज नहीं है ,अगर ज़्यादती हो जाये और वह ज़्यादती रूकन है तो नमाज़ बातिल है ,और अगर रूकन नहीं है तो नमाज़ बातिल नहीं है ,बाद नमाज़ दो सजदे सहो के करें।

सजदे सहो

अव्वल नियत करें की सजदे सहो करता हूँ बवजह फ़लां शक के क़ुर्बतन इलल्लाह। फिर अल्लाहो अकबर कहें और दो सजदे नमाज़ की तरह बजा लायें मगर मजदे में ज़िक्र करें बिस्मिल्लाहे व बिल्लाहे सलल्लाहो अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद दोनों सजदें करकें बैठे और तशहुद पढ़ें और सलाम में सिर्फ़ आख़री सलाम यानी अस्सलामों अलैकुम व रहमुल्लाहे व बराकातूह।

ग़ुस्ले जनाबत

उसकी दो सूरतें हैं ( 1).सोते जागते में मनी का निकलना। ( 2).जिमा करना ,ख़्वाह इन्जाल हो या ना हो ,इन दोनो सूरतों में नहाना वाजिब है ,इस नहाने को ग़ुस्ले जनाबत कहते हैं ,इस ग़ुस्ल के बाद नमाज़ वग़ैरा के लिये वुज़ू की ज़रूरत नहीं हैं ,इस ग़ुस्ल के दो तरीक़े हैं- ( 1).तरतीबी , (2).इरतेमासी।

ग़ुस्ले जनाबत तरतीबी

पहले बदन को नजासत से पाक करें ,बाद इसके नियत करें कि ग़ुस्ले जनाबत करता हूँ वास्ते दूर होने हदस और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह इसके बाद सर पर पानी डाले और सर व गर्दन को इस तरह धोयें कि कान और बालों की जङ तक पानी पहुँच जायें फिर दाहिने जानिब गर्दन से पैर की उंगलियों तक मये तलवा। इसी तरह बायें जानिब को धोयें ,और बेहतर यह है कि दाहिनें तरफ़ धोते वक़्त कुछ हिस्सा बायें तरफ़ धोते वक़्त कुछ हिस्सा दाहिने तरफ़ का भी ले।

ग़ुस्ले जनाबत इरतेमासी

पहले बदन को नजासत से पाक करें ,इसके बाद नियत करें ग़ुस्ले जनाबत इरतेमासी करता हूँ वास्ते दूर होने हदस और मुबाह होने नमाज़ के वाजिब क़ुर्बतन इलल्लाह और फ़ौरन ग़ोता लगायें।

औरतों के ग़ुस्ल

औरतों को ग़ुस्ले जनाबत के अलावा और तीन ग़ुस्ल इस तरीक़े से वाजिब हैं मगर इन ग़ुस्लों के साथ नमाज़ वग़ैरा के लिये वुज़ू ज़रूरी है , (हैज़ ,निफ़ास ,इसतहाज़ा)।

हैज़

औरतों को बालिग़ होने के बाद हर महिने में ख़ून अक्सर सियाह गर्मी के साथ उछल कर तीन दिन से कम और दस दिन से ज़्यादा नहीं आता ,इसको ख़ूने हैज़ कहते हैं इसके बन्द होने के बाद ग़ुस्ल वाजिब है।

निफ़ास

बच्चा पैदा होने के बाद एक या दो इन्तेहा दस दिन तक ख़ून आता है वह निफ़ास है। जब बन्द हो जाये फ़ौरन ग़ुस्ल वाजिब है। इसके बाद नमाज़ व रोज़े पर अमल करना चाहिये ,छठी चिल्ले का इन्तेज़ार करना और औरतों को ख़वाम ख़ाह नजिस फ़र्ज़ करना ग़लत है। हैज़ व निफ़ास के ज़माने तक नमाज़ माफ़ है मगर पाक होने के बाद रोज़े की क़ज़ा लाज़िम है।

इस्तेहाज़ा

जो ख़ून हैज़ व निफ़ास के अलावा बिमारी के तौर पर अक्सर ज़र्दी माइल ठंठा रक़ीक़ ग़ैरे- मुतअय्यन ज़माने तक आया करे इस को इसतेहाज़ा कहते हैं। इसकी तीन हालतें हैं-

(1).कलीला , (2).मुतवास्सिता , (3),कसीरा।

(1).कलीला- जब ख़ून से रूई न भरे तो नमाज़ के पाँचो वक़्त रूई बदलना ,तहारत करना और वुज़ू करना लाज़िम है।

(2).मुतवस्सिता- जब ख़ून से पूरी रूई भर जाये तो पाँचो वक़्त रूई बदलना ,तहारत करना ,वुज़ू करना ,नमाज़े सुब्हा के वक़्त ग़ुस्ल करना वाजिब है। और अगर रोज़ा रखना हो तो इसी ग़ुस्ल को क़ब्ल सुबह सादिक़ करना चाहिये।

(3).कसीरा- जब ख़ून इतना आये की रूई भर कर बाहर निकल जाये तो अलावा पाँचो वुज़ू के रूई बदलना ,तहारत करना ,ग़ुस्ले नमाज़े सुबह और ग़ुस्ले नमाज़े ज़ोहरैन और ग़ुस्ले मग़रबैन के वास्ते वाजिब हैं ,इसतेहाज़ा की हालत में नमाज़ रोज़ा तर्क करना जायज़ नहीं है ,हाँ अगर रोज़ाना ग़ुस्ल नुकसान करे तो तयम्मुम कर लिया करे।

असबाबे नहूसत व ग़ुरबत

(1)ख़ङे होकर पेशाब करना।

(2)रात को झाङू देना।

(3)जल्दी नमाज़ पढ़ना।

(4)पेशाब करने की जगह वुज़ू करना।

(5)मुंह से चिराग़ बुझाना।

(6)दामन या आस्तीन से मुंह पोछना।

(7)हक़ीर जानकर रिज़्क़ की मंज़िलत ना करना।

(8)हमाम में पेशाब करना या मिस्वाक करना।

(9)लहसुन प्याज़ के छिलके जलाना।

(10)क़ब्र पर ज़्यादा बैठना।

(11)चौखट पर बैठना।

(12)बकरियों के दरमियान से निकलना।

(13)दांत से नाख़ून काटना।

(14)इज़्हारे हिरस करना।

(15)फ़कीरों से बे तवज्जीह करना।

(16)क़लम के छिलको पर पाँव रखना।

(17)मकङी का जाला घर में रखना।

(18)हालते जनाबत में खाना पीना।

(19)खङे होकर कंघी करना।

(20)कूङा घर में रखना।

(21)झूठी क़समें खाना।

(22)ज़िना करना।

(23)दरमियान मग़राबैन और क़ब्ले तुलू आफ़ताब सोना।

(24)गाना बजाना।

(25)अज़ीज़ो से बदकारी करना।

(26)पानी रात को खुला रखना।

असबाबे ख़ैरो बरकत

(1)दस्तरख़ान का दाना चुन कर अदब से खाना।

(2)ख़ुदा का शुक्र करना।

(3)सच बोलना।

(4)बा वुज़ू होना।

(5)ख़्यानत से बचना।

(6)बहुत अस्तग़फ़ार करना।

(7)रोज़ी की तलाश में सुबह जाना।

(8)मोमिन की हाजत रवाई करना।

(9)घर साफ़ करना।

(10)सफाई से रहना।

(11)बाद नमाज़ दुआऐ पढ़ना।

(12)अज़ीज़ो और वालेदैन के साथ एहसान करना।

(13)तिलावते क़ुरआन करना।

(14)बा तहारत रहना।

(15)सुबह को सूराऐ यासीन और तबारकल्लज़ी और एशा के वक़्त सुराऐ वाक़ेआ पढ़ना।

(16)नमाज़ पंजगाना बा ख़ुज़ू व ख़ुशू पढ़ना।

(17)क़ब्ले ग़ोरूब चिराग़ जलाना।

(18)मस्जिद में अज़ान देना।

(19)मस्जिद में झाङू देना रौशनी करना।

(20)बहुत सवेरे उठना।

(21)याक़ूत या फ़िरोज़े की अंगूठी पहनना।

(22)खाने के क़ब्ल और खाने के बाद हाथ धोना।

(23)मोमिन ज़िन्दा और मुर्दा के लिये दुआ करना।

(24)ज़कात देना।

(25)मजलिसें अज़ा और कारे ख़ैर में सर्फ़ करना।

ज़ियारते हज़रत रसूले ख़ुदा (स.)

अस्सलामो अलैका या नबीयल्लाह अस्सलामो अलैका या रसूलुल्लाह अस्सलामो अलैका या हुज्जतुल्लाह अस्सलामो अलैका या बाएसलहुदा अस्सलामो अलैका या हबीबल्लाह अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

ज़िरारते हज़रत इमाम अली रिज़ा (अ.)

अस्सलामो अलैका या ग़रीबल ग़ोरबा अस्सलामो अलैका या मोईनज़ ज़ोअफ़ा-ए अस्सलामो अलैका या शमसश शोमूस अस्सलामो अलैका या अनीसन नोफ़ूस अस्सलामो अलैका अय्योहल मदफ़ूने बेअरज़े तूस अस्सलामो अलैका या मोग़ीशस शीअते वज़्ज़वारे फ़ी यौमिल जज़ा अस्सलामो अलैका या सुलतानल अरबे वल अजम अस्सलामो अलैका या अबल हसन अली इब्ने मुसर रिज़ा व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

ज़ियारते हज़रत इमाम हुसैन (अ.)

अस्सलामो अलैका या अबा अबदिल्लाह ,अस्सलामो अलैका वा अला जद्देका व अबीक ,अस्सलामो अलैका व अला उम्मेका व अख़ीक ,अस्सलामो अलैका व अलल आइम्मते मिन्म बनीक ,अस्सलामो अलैका या साहेबद दम अतिस साकेबा ,अस्सलामो अलैका या साहेबल मसीवतिर रातेबते लक़द असबह केताबुल्लाहे फ़ीक़ा मह ज़ूरन व रसूलुल्लाहे फ़ीक़ा मौतूरा ,अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

ज़ियारते हज़रत इमामे ज़माना (अ.)

अस्सलामो अलैका या साहेबल असरे वज़-ज़मान ,अस्सलामो अलैका या ख़लीफ़ातर रहमान ,अस्सलामो अलैका या इमामल इन्से वल जान ,अस्सलामो अलैका या मज़हरल ईमान ,अस्सलामो अलैका या शरीकल क़ुरआन ,अस्सलामो अलैका या इमामे ज़मानेना हाज़ा अज्जलल्लाहो फ़रजक व सहलल्लाहो मख़राजक ,अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।

दुआ बराए क़ुबुले हाजत

या अबा अबदिल्लाहे अशहदो अन्नक तशहदो मक़ामी व तसअमो कलामी व अन्नक हय्युन इन्द रब्बेका तुरज़क़ो फ़स अल रब्बेका व रब्बी फ़ी क़ज़ा-ए- हवा-ए-ज़ी।

नमाज़े शब

हज़रत रसूले अकरम (स.) और आप के अहलेबैत (अ.) से नमाज़े शब की फ़ज़ीलत में मोतादिद रवायत मर्वी है जिन में इस नमाज़ के अज्र व सवाब का ज़िक्र किया गया है।

यह ग्यारह रकअत नमाज़ है जिसमें आठ रकअत नमाज़े शब ,दो रकअत नमाज़े शिफ़ा और एक रकअत नमाज़े वित्र कहलाती है। इसका वक़्त आधी रात से सुबह सादिक़ तक है। इसके लिये अफ़ज़ल सहर का वक़्त है। पहले दो-दो रकअत करके चार नमाज़ बिल्कुल नमाज़े सुब्हा कि तरह अदा करें और इसकी नियत यह होगी ,दो रकअत नमाज़ शब पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह ,आठ रकअत ख़त्म करने के बाद यह दुआ करना ख़ूब है। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद वरहमनी व सबबितनी अला दीनके व दीने नबीयेका वला तेज़िग़ क़ल्बी बाद इज़ हदयतनी व हबली मिललदुनका रहमतन इन्नक अन्तल वहाब।

इसके बाद दो रकअत नमाज़े शिफ़ा बिल्कुल नमाज़े सुबह ही की तरह अदा करें ,इसकी नियत यह होगी ,दो रकअत नमाज़ शिफ़ा पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह याद रहे की इस नमाज़ में दुआए क़ुनूत नहीं है। इसके बाद एक रकअत की आख़री नमाज़ पढ़ें। इसकी नियत यह होगी एक रकअत नमाज़े वित्र पढ़ता/ पढ़ती हूँ कुर्बतन इलल्लाह फिर तकबीरातुल एहराम अल्लाहो अकबर कह कर नमाज़ शुरू करें ,सूराऐ हम्द के बाद सूराऐ क़ुल हो वल्लाहो अहद या जो सूरा चाहें पढ़ें ,फिर क़ुनूत पढ़ें दुआए कशायश से शुरू करें जो यह है- ला इलाहा इलल्लाहुल हलीमुल करीम ला इलाहा इलल्लाहुल अलीयुल अज़ीम सुब्हानल्लाहे रब्बीस समावातिस सबऐ व रब्बील अरज़ीन्स सबए व मा फीहिन्ना व मा बैनाहुन्न व रब्बिल अरशील अज़ीम वलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन। इसके बाद रूकूउ करके दो सजदे बजा लायें और फिर तशहुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करें ,इस तरह कुल ग्यारह रकअत नमाज़े तहज्जुद अदा हो गई। नमाज़ के बाद तसबीहे फ़ात्मा ज़हरा (स. अ.) पढ़ें ,सजदा शुक्र बजा लायें और जो चाहें दुआ माँगे की अख़री शब की दुआ क़ुबूल होती है।

[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताब नमाज़ और दीनियात पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी 01:05:2015]]