असबाबे नहूसत व ग़ुरबत
(1)ख़ङे होकर पेशाब करना।
(2)रात को झाङू देना।
(3)जल्दी नमाज़ पढ़ना।
(4)पेशाब करने की जगह वुज़ू करना।
(5)मुंह से चिराग़ बुझाना।
(6)दामन या आस्तीन से मुंह पोछना।
(7)हक़ीर जानकर रिज़्क़ की मंज़िलत ना करना।
(8)हमाम में पेशाब करना या मिस्वाक करना।
(9)लहसुन प्याज़ के छिलके जलाना।
(10)क़ब्र पर ज़्यादा बैठना।
(11)चौखट पर बैठना।
(12)बकरियों के दरमियान से निकलना।
(13)दांत से नाख़ून काटना।
(14)इज़्हारे हिरस करना।
(15)फ़कीरों से बे तवज्जीह करना।
(16)क़लम के छिलको पर पाँव रखना।
(17)मकङी का जाला घर में रखना।
(18)हालते जनाबत में खाना पीना।
(19)खङे होकर कंघी करना।
(20)कूङा घर में रखना।
(21)झूठी क़समें खाना।
(22)ज़िना करना।
(23)दरमियान मग़राबैन और क़ब्ले तुलू आफ़ताब सोना।
(24)गाना बजाना।
(25)अज़ीज़ो से बदकारी करना।
(26)पानी रात को खुला रखना।
असबाबे ख़ैरो बरकत
(1)दस्तरख़ान का दाना चुन कर अदब से खाना।
(2)ख़ुदा का शुक्र करना।
(3)सच बोलना।
(4)बा वुज़ू होना।
(5)ख़्यानत से बचना।
(6)बहुत अस्तग़फ़ार करना।
(7)रोज़ी की तलाश में सुबह जाना।
(8)मोमिन की हाजत रवाई करना।
(9)घर साफ़ करना।
(10)सफाई से रहना।
(11)बाद नमाज़ दुआऐ पढ़ना।
(12)अज़ीज़ो और वालेदैन के साथ एहसान करना।
(13)तिलावते क़ुरआन करना।
(14)बा तहारत रहना।
(15)सुबह को सूराऐ यासीन और तबारकल्लज़ी और एशा के वक़्त सुराऐ वाक़ेआ पढ़ना।
(16)नमाज़ पंजगाना बा ख़ुज़ू व ख़ुशू पढ़ना।
(17)क़ब्ले ग़ोरूब चिराग़ जलाना।
(18)मस्जिद में अज़ान देना।
(19)मस्जिद में झाङू देना रौशनी करना।
(20)बहुत सवेरे उठना।
(21)याक़ूत या फ़िरोज़े की अंगूठी पहनना।
(22)खाने के क़ब्ल और खाने के बाद हाथ धोना।
(23)मोमिन ज़िन्दा और मुर्दा के लिये दुआ करना।
(24)ज़कात देना।
(25)मजलिसें अज़ा और कारे ख़ैर में सर्फ़ करना।
ज़ियारते हज़रत रसूले ख़ुदा (स.)
अस्सलामो अलैका या नबीयल्लाह अस्सलामो अलैका या रसूलुल्लाह अस्सलामो अलैका या हुज्जतुल्लाह अस्सलामो अलैका या बाएसलहुदा अस्सलामो अलैका या हबीबल्लाह अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।
ज़िरारते हज़रत इमाम अली रिज़ा (अ.)
अस्सलामो अलैका या ग़रीबल ग़ोरबा अस्सलामो अलैका या मोईनज़ ज़ोअफ़ा-ए अस्सलामो अलैका या शमसश शोमूस अस्सलामो अलैका या अनीसन नोफ़ूस अस्सलामो अलैका अय्योहल मदफ़ूने बेअरज़े तूस अस्सलामो अलैका या मोग़ीशस शीअते वज़्ज़वारे फ़ी यौमिल जज़ा अस्सलामो अलैका या सुलतानल अरबे वल अजम अस्सलामो अलैका या अबल हसन अली इब्ने मुसर रिज़ा व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।
ज़ियारते हज़रत इमाम हुसैन (अ.)
अस्सलामो अलैका या अबा अबदिल्लाह
,अस्सलामो अलैका वा अला जद्देका व अबीक
,अस्सलामो अलैका व अला उम्मेका व अख़ीक
,अस्सलामो अलैका व अलल आइम्मते मिन्म बनीक
,अस्सलामो अलैका या साहेबद दम अतिस साकेबा
,अस्सलामो अलैका या साहेबल मसीवतिर रातेबते लक़द असबह केताबुल्लाहे फ़ीक़ा मह ज़ूरन व रसूलुल्लाहे फ़ीक़ा मौतूरा
,अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।
ज़ियारते हज़रत इमामे ज़माना (अ.)
अस्सलामो अलैका या साहेबल असरे वज़-ज़मान
,अस्सलामो अलैका या ख़लीफ़ातर रहमान
,अस्सलामो अलैका या इमामल इन्से वल जान
,अस्सलामो अलैका या मज़हरल ईमान
,अस्सलामो अलैका या शरीकल क़ुरआन
,अस्सलामो अलैका या इमामे ज़मानेना हाज़ा अज्जलल्लाहो फ़रजक व सहलल्लाहो मख़राजक
,अस्सलामो अलैका व रहमतुल्लाहे व बराकातोह।
दुआ बराए क़ुबुले हाजत
या अबा अबदिल्लाहे अशहदो अन्नक तशहदो मक़ामी व तसअमो कलामी व अन्नक हय्युन इन्द रब्बेका तुरज़क़ो फ़स अल रब्बेका व रब्बी फ़ी क़ज़ा-ए- हवा-ए-ज़ी।
नमाज़े शब
हज़रत रसूले अकरम (स.) और आप के अहलेबैत (अ.) से नमाज़े शब की फ़ज़ीलत में मोतादिद रवायत मर्वी है जिन में इस नमाज़ के अज्र व सवाब का ज़िक्र किया गया है।
यह ग्यारह रकअत नमाज़ है जिसमें आठ रकअत नमाज़े शब
,दो रकअत नमाज़े शिफ़ा और एक रकअत नमाज़े वित्र कहलाती है। इसका वक़्त आधी रात से सुबह सादिक़ तक है। इसके लिये अफ़ज़ल सहर का वक़्त है। पहले दो-दो रकअत करके चार नमाज़ बिल्कुल नमाज़े सुब्हा कि तरह अदा करें और इसकी नियत यह होगी
,दो रकअत नमाज़ शब पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह
,आठ रकअत ख़त्म करने के बाद यह दुआ करना ख़ूब है। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद वरहमनी व सबबितनी अला दीनके व दीने नबीयेका वला तेज़िग़ क़ल्बी बाद इज़ हदयतनी व हबली मिललदुनका रहमतन इन्नक अन्तल वहाब।
इसके बाद दो रकअत नमाज़े शिफ़ा बिल्कुल नमाज़े सुबह ही की तरह अदा करें
,इसकी नियत यह होगी
,दो रकअत नमाज़ शिफ़ा पढ़ता/पढ़ती हूँ क़ुर्बतन इलल्लाह याद रहे की इस नमाज़ में दुआए क़ुनूत नहीं है। इसके बाद एक रकअत की आख़री नमाज़ पढ़ें। इसकी नियत यह होगी एक रकअत नमाज़े वित्र पढ़ता/ पढ़ती हूँ कुर्बतन इलल्लाह फिर तकबीरातुल एहराम अल्लाहो अकबर कह कर नमाज़ शुरू करें
,सूराऐ हम्द के बाद सूराऐ क़ुल हो वल्लाहो अहद या जो सूरा चाहें पढ़ें
,फिर क़ुनूत पढ़ें दुआए कशायश से शुरू करें जो यह है- ला इलाहा इलल्लाहुल हलीमुल करीम ला इलाहा इलल्लाहुल अलीयुल अज़ीम सुब्हानल्लाहे रब्बीस समावातिस सबऐ व रब्बील अरज़ीन्स सबए व मा फीहिन्ना व मा बैनाहुन्न व रब्बिल अरशील अज़ीम वलहम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन। इसके बाद रूकूउ करके दो सजदे बजा लायें और फिर तशहुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करें
,इस तरह कुल ग्यारह रकअत नमाज़े तहज्जुद अदा हो गई। नमाज़ के बाद तसबीहे फ़ात्मा ज़हरा (स. अ.) पढ़ें
,सजदा शुक्र बजा लायें और जो चाहें दुआ माँगे की अख़री शब की दुआ क़ुबूल होती है।
[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताब नमाज़ और दीनियात पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।
सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी
01:05:2015]]