तरजुमा कुरआने करीम

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तरजुमा कुरआने करीम कैटिगिरी: तरजुमा

तरजुमा कुरआने करीम

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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तरजुमा कुरआने करीम

तरजुमा कुरआने करीम

हिंदी

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36 सूरए यासीन

सूरए यासीन “व इज़ा कील लहुम ” आयत के सिवा पूरा सूरा मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी तेरासी (83) आयतें हैं

खु़दा के नाम से (शुरू करता) हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    यासीन (1)

    इस पुरअज़ हिकमत कु़रान की क़सम (2)

    (ऐ रसूल) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो (3)

    (और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो (4)

    जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (खु़दा) का नाज़िल किया हुआ (है) (5)

    ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे खु़दा से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए (6)

    तो वह दीन से बिल्कुल बेख़बर हैं उन में अक्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीन्न बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएँगे नहीं (7)

    हमने उनकी गर्दनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिए हैं और ठुड्डियों तक पहुँचे हुए हैं कि वह गर्दनें उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते) (8)

    हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते (9)

    और (ऐ रसूल) उनके लिए बराबर है ख़्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं (10)

    तुम तो बस उसी शख़्स को डरा सकते हो जो नसीहत माने और बेदेखे भाले खु़दा का ख़ौफ़ रखे तो तुम उसको (गुनाहों की) माफी और एक बाइज़्ज़त (व आबरू) अज्र की खु़शख़बरी दे दो (11)

    हम ही यक़ीन्न मुर्दों को ज़िन्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उनको) और उनकी (अच्छी या बुरी बाक़ी माँदा) निशानियों को लिखते जाते हैं और हमने हर चीज़ का एक सरीह व रौशन पेशवा में घेर दिया है (12)

    और (ऐ रसूल) तुम (इनसे) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अता किया) वालों का क़िस्सा बयान करो जब वहाँ (हमारे) पैग़म्बर आए (13)

    इस तरह कि जब हमने उनके पास दो (पैग़म्बर योहना और यूनुस) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुठलाया जब हमने एक तीसरे (पैग़म्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मद्द दी तो इन तीनों ने कहा कि हम तुम्हारे पास खु़दा के भेजे हुए (आए) हैं (14)

    वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही जैसे आदमी हो और खु़दा ने कुछ नाज़िल (वाज़िल) नहीं किया है तुम सब के सब बस बिल्कुल झूठे हो (15)

    तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो) (16)

    हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे खु़दा का पहुँचा देना फर्ज़ है (17)

    वह बोले हमने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतेला हुए) तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रूर संगसार कर देगें और तुमको यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा (18)

    पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शुगूनी (तुम्हारी करनी से) तुम्हारे साथ है क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे बदफ़ाली कहते हो नहीं) बल्कि तुम खु़द (अपनी) हद से बढ़ गए हो (19)

    और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख़्स (हबीब नज्जार) दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो (20)

    ऐसे लोगों का (ज़रूर) कहना मानो जो तुमसे (तबलीख़े रिसालत की) कुछ मज़दूरी नहीं माँगते और वह लोग हिदायत याफ्ता भी हैं (21)

    और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उसकी इबादत न करूँ हालाँकि तुम सब के बस (आखि़र) उसी की तरफ लौटकर जाओगे (22)

    क्या मैं उसे छोड़कर दूसरों को माबूद बना लूँ अगर खु़दा मुझे कोई तकलीफ पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (इस मुसीबत से) छुड़ा ही सकेंगें (23)

    (अगर ऐसा करूँ) तो उस वक़्त मैं यक़ीनी सरीही गुमराही में हूँ (24)

    मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो ;मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डालाद्ध (25)

    तब उसे खु़दा का हुक्म हुआ कि बेहिश्त में जा (उस वक़्त भी उसको क़ौम का ख़्याल आया तो कहा) (26)

    मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख़्श दिया और मुझे बुर्ज़ुग लोगों में शामिल कर दिया काश इसको मेरी क़ौम के लोग जान लेते और ईमान लाते (27)

    और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए न तो आसमान से कोई लशकर उतारा और न हम कभी इतनी सी बात के वास्ते लशकर उतारने वाले थे (28)

    वह तो सिर्फ एक चिंघाड थी (जो कर दी गयी बस) फिर तो वह फौरन चिराग़े सहरी की तरह बुझ के रह गए (29)

    हाए अफसोस बन्दों के हाल पर कि कभी उनके पास कोई रसूल नहीं आया मगर उन लोगों ने उसके साथ मसख़रापन ज़रूर किया (30)

    क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला और वह लोग उनके पास हरगिज़ पलट कर नहीं आ सकते (31)

    (हाँ) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा हो कर हमारी बारगाह में हाज़िर किए जाएँगे (32)

    और उनके (समझने) के लिए मेरी कु़दरत की एक निशानी मुर्दा (परती) ज़मीन है कि हमने उसको (पानी से) ज़िन्दा कर दिया और हम ही ने उससे दाना निकाला तो उसे ये लोग खाया करते हैं (33)

    और हम ही ने ज़मीन में छुहारों और अँगूरों के बाग़ लगाए और हमही ने उसमें पानी के चशमें जारी किए (34)

    ताकि लोग उनके फल खाएँ और कुछ उनके हाथों ने उसे नहीं बनाया (बल्कि खु़दा ने) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते (35)

    वह (हर ऐब से) पाक साफ है जिसने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और खु़द उन लोगों के और उन चीज़ों के जिनकी उन्हें ख़बर नहीं सबके जोड़े पैदा किए (36)

    और मेरी क़ुदरत की एक निशानी रात है जिससे हम दिन को खींच कर निकाल लेते (जाएल कर देते) हैं तो उस वक़्त ये लोग अँधेरे में रह जाते हैं (37)

    और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ये (सबसे) ग़ालिब वाक़िफ (खु़दा) का (बाँद्दा हुआ) अन्दाज़ा है (38)

    और हमने चाँद के लिए मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आखि़र माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है (39)

    न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है (चाँद ,सूरज ,सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं (40)

    और उनके लिए (मेरी कु़दरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुर्ज़ुगों को (नूह की) भरी हुयी कश्ती में सवार किया (41)

    और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कशतियाँ) जहाज़ पैदा कर दी (42)

    जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं (43)

    मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक़्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है (44)

    और जब उन कुफ़्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक़्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए (45)

    (तो परवाह नहीं करते) और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे (46)

    और जब उन (कुफ़्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खु़दा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खु़दा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ़्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख़्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख़्याल के मुवाफ़िक़) खु़दा चाहता तो उसको खु़द खिलाता कि तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो (47)

    और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग (अपने दावे में सच्चे हो) तो आखि़र ये (क़यामत का) वायदा कब पूरा होगा (48)

    (ऐ रसूल) ये लोग एक सख़्त चिंघाड़ (सूर) के मुनतज़िर हैं जो उन्हें (उस वक़्त) ले डालेगी (49)

    जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होगें फिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पायेंगे और न अपने लड़के बालों ही की तरफ लौट कर जा सकेगें (50)

    और फिर (जब दोबारा) सूर फूँका जाएगा तो उसी दम ये सब लोग (अपनी-अपनी) क़ब्रों से (निकल-निकल के) अपने परवरदिगार की बारगाह की तरफ चल खड़े होगे (51)

    और (हैरान होकर) कहेगें हाए अफसोस हम तो पहले सो रहे थे हमें ख़्वाबगाह से किसने उठाया (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिसका खु़दा ने (भी) वायदा किया था (52)

    और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख़्त चिंघाड़ होगी फिर एका एकी ये लोग सब के सब हमारे हुजू़र में हाज़िर किए जाएँगे (53)

    फिर आज (क़यामत के दिन) किसी शख़्स पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते थे (54)

    बेहश्त के रहने वाले आज (रोजे़ क़यामत) एक न एक मशग़ले में जी बहला रहे हैं (55)

    वह अपनी बीवियों के साथ (ठन्डी) छाँव में तकिया लगाए तख़्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं (56)

    बेिहश्त में उनके लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार) हैं और जो वह चाहें उनके लिए (हाज़िर) है (57)

    मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम का पैग़ाम आएगा (58)

    और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (इनसे) अलग हो जाओ (59)

    ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है (60)

    और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है (61)

    और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे (62)

    ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था (63)

    तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ (64)

    आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खु़द उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें (65)

    और अगर हम चाहें तो उनकी आँखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे (66)

    और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके) (पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें (67)

    और हम जिस शख़्स को (बहुत) ज़्यादा उम्र देते हैं तो उसे खि़लक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं (68)

    और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कु़रान है (69)

    ताकि जो ज़िन्दा (दिल आक़िल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफ़िरों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे) (70)

    क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए (71)

    और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं (72)

    और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते (73)

    और लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर (फर्ज़ी माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मद्द मिले हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मद्द कर ही नहीं सकते (74)

    और ये कुफ़्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाज़िरी ली जाएगी (75)

    तो (ऐ रसूल) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं (76)

    क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे़ से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है (77)

    और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी खि़लक़त (की हालत) भूल गया और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियाँ (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) ज़िन्दा कर सकता है (78)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि उसको वही ज़िन्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार ज़िन्दा कर (रखा) (79)

    और वह हर तरह की पैदाइश से वाक़िफ है जिसने तुम्हारे वास्ते (मिखऱ् और अफ़ार के) हरे दरख़्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो (80)

    (भला) जिस (खु़दा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाक़िफ़कार है (81)

    उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि “हो जा ” तो (फौरन) हो जाती है (82)

    तो वह ख़ुद (हर नफ़्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कु़दरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे (83 )

 

37 सूरए साफ़्फ़ात (लाईन)

सूरए साफ़्फ़ात मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी एक सौ बयासी (182) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    (इबादत या जिहाद में) पर बाँधने वालों की (क़सम) (1)

    फिर (बदों को बुराई से) झिड़क कर डाँटने वाले की (क़सम) (2)

    फिर कु़रान पढ़ने वालों की क़सम है (3)

    तुम्हारा माबूद (यक़ीनी) एक ही है (4)

    जो सारे आसमान ज़मीन का और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है (सबका) परवरदिगार है (5)

    और (चाँद सूरज तारे के) तुलूउ व (गु़रूब) के मक़ामात का भी मालिक है हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आरइश (जगमगाहट) से आरास्ता किया (6)

    और (तारों को) हर सरकश शैतान से हिफ़ाज़त के वास्ते (भी पैदा किया) (7)

    कि अब शैतान आलमे बाला की तरफ़ कान भी नहीं लगा सकते और (जहाँ सुन गुन लेना चाहा तो) हर तरफ़ से खदेड़ने के लिए शहाब फेके जाते हैं (8)

    और उनके लिए पाएदार अज़ाब है (9)

    मगर जो (शैतान शाज़ व नादिर फरिश्तों की) कोई बात उचक ले भागता है तो आग का दहकता हुआ तीर उसका पीछा करता है (10)

    तो (ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि उनका पैदा करना ज़्यादा दुश्वार है या उन (मज़कूरा) चीज़ों का जिनको हमने पैदा किया हमने तो उन लोगों को लसदार मिट्टी से पैदा किया (11)

    बल्कि तुम (उन कुफ़्फ़ार के इन्कार पर) ताज्जुब करते हो और वह लोग (तुमसे) मसख़रापन करते हैं (12)

    और जब उन्हें समझाया जाता है तो समझते नहीं हैं (13)

    और जब किसी मौजिजे़ को देखते हैं तो (उससे) मसख़रापन करते हैं (14)

    और कहते हैं कि ये तो बस खुला हुआ जादू है (15)

    भला जब हम मर जाएँगे और ख़ाक और हड्डियाँ रह जाएँगे (16)

    तो क्या हम या हमारे अगले बाप दादा फिर दोबारा क़ब्रों से उठा खड़े किए जाँएगे (17)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ (ज़रूर उठाए जाओगे) (18)

    और तुम ज़लील होगे और वह (क़यामत) तो एक ललकार होगी फिर तो वह लोग फ़ौरन ही (आँखे फाड़-फाड़ के) देखने लगेंगे (19)

    और कहेंगे हाए अफसोस ये तो क़यामत का दिन है (20)

    (जवाब आएगा) ये वही फैसले का दिन है जिसको तुम लोग (दुनिया में) झूठ समझते थे (21)

    (और फ़रिश्तों को हुक्म होगा कि) जो लोग (दुनिया में) सरकशी करते थे उनको और उनके साथियों को और खु़दा को छोड़कर जिनकी परसतिश करते हैं (22)

    उनको (सबको) इकट्ठा करो फिर उन्हें जहन्नुम की राह दिखाओ (23)

    और (हाँ ज़रा) उन्हें ठहराओ तो उनसे कुछ पूछना है (24)

    (अरे कमबख़्तों) अब तुम्हें क्या होगा कि एक दूसरे की मदद नहीं करते (25)

    (जवाब क्या देंगे) बल्कि वह तो आज गर्दन झुकाए हुए हैं (26)

    और एक दूसरे की तरफ मुतावज्जे होकर बाहम पूछताछ करेंगे (27)

    (और इन्सान शयातीन से) कहेंगे कि तुम ही तो हमारी दाहिनी तरफ से (हमें बहकाने को) चढ़ आते थे (28)

    वह जवाब देगें (हम क्या जानें) तुम तो खु़द ईमान लाने वाले न थे (29)

    और (साफ़ तो ये है कि) हमारी तुम पर कुछ हुकूमत तो थी नहीं बल्कि तुम खु़द सरकश लोग थे (30)

    फिर अब तो लोगों पर हमारे परवरदिगार का (अज़ाब का) क़ौल पूरा हो गया कि अब हम सब यक़ीनन अज़ाब का मज़ा चखेंगे (31)

    हम खु़द गुमराह थे तो तुम को भी गुमराह किया (32)

    ग़रज़ ये लोग सब के सब उस दिन अज़ाब में शरीक होगें (33)

    और हम तो गुनाहगारों के साथ यूँ ही किया करते हैं ये लोग ऐसे (शरीर) थे (34)

    कि जब उनसे कहा जाता था कि खु़दा के सिवा कोई माबूद नहीं तो अकड़ा करते थे (35)

    और ये लोग कहते थे कि क्या एक पागल शायर के लिए हम अपने माबूदों को छोड़ बैठें (अरे कम्बख्तों ये शायर या पागल नहीं) (36)

    बल्कि ये तो हक़ बात लेकर आया है और (अगले) पैग़म्बरों की तसदीक़ करता है (37)

    तुम लोग (अगर न मानोगे) तो ज़रूर दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखोगे (38)

    और तुम्हें तो उसके किये का बदला दिया जाएगा जो (जो दुनिया में) करते रहे (39)

    मगर खु़दा के बरगुजीदा बन्दे (40)

    उनके वास्ते (बेहिश्त में) एक मुक़र्रर रोज़ी होगी (41)

    (और वह भी ऐसी वैसी नहीं) हर क़िस्म के मेवे (42)

    और वह लोग बड़ी इज़्ज़त से नेअमत के (लदे हुए) (43)

    बाग़ों में तख़्तों पर (चैन से) आमने सामने बैठे होगे (44)

    उनमें साफ सफेद बुर्राक़ शराब के जाम का दौर चल रहा होगा (45)

    जो पीने वालों को बड़ा मज़ा देगी (46)

    (और फिर) न उस शराब में ख़ु़मार की वजह से) दर्द सर होगा और न वह उस (के पीने) से मतवाले होंगे (47)

    और उनके पहलू में (शर्म से) नीची निगाहें करने वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली परियाँ होगी (48)

    (उनकी) गोरी-गोरी रंगतों में हल्की सी सुखऱ्ी ऐसी झलकती होगी (49)

    गोया वह अन्डे हैं जो छिपाए हुए रखे हो (50)

    फिर एक दूसरे की तरफ मुतावज्जे पाकर बाहम बातचीत करते करते उनमें से एक कहने वाला बोल उठेगा कि (दुनिया में) मेरा एक दोस्त था (51)

    और (मुझसे) कहा करता था कि क्या तुम भी क़यामत की तसदीक़ करने वालों में हो (52)

    (भला जब हम मर जाएँगे) और (सड़ गल कर) मिट्टी और हड्डी (होकर) रह जाएँगे तो क्या हमको दोबारा ज़िन्दा करके हमारे (आमाल का) बदला दिया जाएगा (53)

    (फिर अपने बेहश्त के साथियों से कहेगा) (54)

    तो क्या तुम लोग भी (मेरे साथ उसे झांक कर देखोगे) ग़रज़ झाँका तो उसे बीच जहन्नुम में (पड़ा हुआ) देखा (55)

    (ये देख कर बेसााख्ता) बोल उठेगा कि खु़दा की क़सम तुम तो मुझे भी तबाह करने ही को थे (56)

    और अगर मेरे परवरदिगार का एहसान न होता तो मैं भी (इस वक़्त) तेरी तरह जहन्नुम में गिरफ़्तार किया गया होता (57)

    (अब बताओ) क्या (मैं तुम से न कहता था) कि हम को इस पहली मौत के सिवा फिर मरना नहीं है (58)

    और न हम पर (आख़ेरत) में अज़ाब होगा (59)

    (तो तुम्हें यक़ीन न होता था) ये यक़ीनी बहुत बड़ी कामयाबी है (60)

    ऐसी (ही कामयाबी) के वास्ते काम करने वालों को कारगुज़ारी करनी चाहिए (61)

    भला मेहमानी के वास्ते ये (सामान) बेहतर है या थोहड़ का दरख़्त (जो जहन्नुमियों के वास्ते होगा) (62)

    जिसे हमने यक़ीनन ज़ालिमों की आज़माइश के लिए बनाया है (63)

    ये वह दरख़्त हैं जो जहन्नुम की तह में उगता है (64)

    उसके फल ऐसे (बदनुमा) हैं गोया (हू बहू) साँप के फन जिसे छूते दिल डरे (65)

    फिर ये (जहन्नुमी लोग) यक़ीनन उसमें से खाएँगे फिर उसी से अपने पेट भरेंगे (66)

    फिर उसके ऊपर से उन को खू़ब खौलता हुआ पानी (पीप वग़ैरह में) मिला मिलाकर पीने को दिया जाएगा (67)

    फिर (खा पीकर) उनको जहन्नुम की तरफ यक़ीनन लौट जाना होगा (68)

    उन लोगों ने अपन बाप दादा को गुमराह पाया था (69)

    ये लोग भी उनके पीछे दौड़े चले जा रहे हैं (70)

    और उनके क़ब्ल अगलों में से बहुतेरे गुमराह हो चुके (71)

    उन लोगों के डराने वाले (पैग़म्बरों) को भेजा था (72)

    ज़रा देखो तो कि जो लोग डराए जा चुके थे उनका क्या बुरा अन्जाम हुआ (73)

    मगर (हाँ) खु़दा के निरे खरे बन्दे (महफूज़ रहे) (74)

    और नूह ने (अपनी कौ़म से मायूस होकर) हमें ज़रूर पुकारा था (देखो हम) क्या खू़ब जवाब देने वाले थे (75)

    और हमने उनको और उनके लड़के वालों को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से नजात दी (76)

    और हमने (उनमें वह बरकत दी कि) उनकी औलाद को (दुनिया में) बरक़रार रखा (77)

    और बाद को आने वाले लोगों में उनका अच्छा चर्चा बाक़ी रखा (78)

    कि सारी खु़दायी में (हर तरफ से) नूह पर सलाम है (79)

    हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर अता फरमाते हैं (80)

    इसमें शक नहीं कि नूह हमारे (ख़ास) ईमानदार बन्दों से थे (81)

    फिर हमने बाक़ी लोगों को डुबो दिया (82)

    और यक़ीनन उन्हीं के तरीक़ो पर चलने वालों में इबराहीम (भी) ज़रूर थे (83)

    जब वह अपने परवरदिगार (कि इबादत) की तरफ (पहलू में) ऐसा दिल लिए हुए बढ़े जो (हर ऐब से पाक था (84)

    जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग किस चीज़ की परसतिश करते हो (85)

    क्या खु़दा को छोड़कर दिल से गढ़े हुए माबूदों की तमन्ना रखते हो (86)

    फिर सारी खु़दाई के पालने वाले के साथ तुम्हारा क्या ख़्याल है (87)

    फिर (एक ईद में उन लोगों ने चलने को कहा) तो इबराहीम ने सितारों की तरफ़ एक नज़र देखा (88)

    और कहा कि मैं (अनक़रीब) बीमार पड़ने वाला हूँ (89)

    तो वह लोग इबराहीम के पास से पीठ फेर फेर कर हट गए (90)

    (बस) फिर तो इबराहीम चुपके से उनके बुतों की तरफ मुतावज्जे हुए और (तान से) कहा तुम्हारे सामने इतने चढ़ाव रखते हैं (91)

    आखि़र तुम खाते क्यों नहीं (अरे तुम्हें क्या हो गया है) (92)

    कि तुम बोलते तक नहीं (93)

    फिर तो इबराहीम दाहिने हाथ से मारते हुए उन पर पिल पड़े (और तोड़-फोड़ कर एक बड़े बुत के गले में कुल्हाड़ी डाल दी) (94)

    जब उन लोगों को ख़बर हुयी तो इबराहीम के पास दौड़ते हुए पहुँचे (95)

    इबराहीम ने कहा (अफ़सोस) तुम लोग उसकी परसतिश करते हो जिसे तुम लोग खु़द तराश कर बनाते हो (96)

    हालाँकि तुमको और जिसको तुम लोग बनाते हो (सबको) खु़दा ही ने पैदा किया है (ये सुनकर) वह लोग (आपस में कहने लगे) इसके लिए (भट्टी की सी) एक इमारत बनाओ (97)

    और (उसमें आग सुलगा कर उसी दहकती हुयी आग में इसको डाल दो) फिर उन लोगों ने इबराहीम के साथ मक्कारी करनी चाही (98)

    तो हमने (आग सर्द गुलज़ार करके) उन्हें नीचा दिखाया और जब (आज़र ने) इबराहीम को निकाल दिया तो बोले मैं अपने परवरदिगार की तरफ जाता हूँ (99)

    वह अनक़रीब ही मुझे रूबरा कर देगा (फिर ग़रज की) परवरदिगार मुझे एक नेको कार (फरज़न्द) इनायत फरमा (100)

    तो हमने उनको एक बड़े नरम दिले लड़के (के पैदा होने की) खु़शख़बरी दी (101)

    फिर जब इस्माईल अपने बाप के साथ दौड़ धूप करने लगा तो (एक दफा) इबराहीम ने कहा बेटा खू़ब मैं (वही के ज़रिये क्या) देखता हूँ कि मैं तो खु़द तुम्हें ज़िबाह कर रहा हूँ तो तुम भी ग़ौर करो तुम्हारी इसमें क्या राय है इसमाईल ने कहा अब्बा जान जो आपको हुक्म हुआ है उसको (बे तअम्मुल) कीजिए अगर खु़दा ने चाहा तो मुझे आप सब्र करने वालों में से पाएगे (102)

    फिर जब दोनों ने ये ठान ली और बाप ने बेटे को (ज़िबाह करने के लिए) माथे के बल लिटाया (103)

    और हमने (आमादा देखकर) आवाज़ दी ऐ इबराहीम (104)

    तुमने अपने ख़्वाब को सच कर दिखाया अब तुम दोनों को बड़े मरतबे मिलेगें हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर देते हैं (105)

    इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी बड़ा सख़्त और सरीही इम्तिहान था (106)

    और हमने इस्माईल का फ़िदया एक ज़िबाहे अज़ीम (बड़ी कु़र्बानी) क़रार दिया (107)

    और हमने उनका अच्छा चर्चा बाद को आने वालों में बाक़ी रखा है (108)

    कि (सारी खु़दायी में) इबराहीम पर सलाम (ही सलाम) हैं (109)

    हम यूँ नेकी करने वालों को जज़ाए ख़ैर देते हैं (110)

    बेशक इबराहीम हमारे (ख़ास) ईमानदार बन्दों में थे (111)

    और हमने इबराहीम को इसहाक़ (के पैदा होने की) खु़शख़बरी दी थी (112)

    जो एक नेकोसार नबी थे और हमने खु़द इबराहीम पर और इसहाक़ पर अपनी बरकत नाज़िल की और इन दोनों की नस्ल में बाज़ तो नेकोकार और बाज़ (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सरीही सितम ढ़ाने वाला (113)

    और हमने मूसा और हारून पर बहुत से एहसानात किए हैं (114)

    और खु़द दोनों को और इनकी क़ौम को बड़ी (सख़्त) मुसीबत से नजात दी (115)

    और (फिरऔन के मुक़ाबले में) हमने उनकी मदद की तो (आखि़र) यही लोग ग़ालिब रहे (116)

    और हमने उन दोनों को एक वाज़ेए उलम तालिब किताब (तौरेत) अता की (117)

    और दोनों को सीधी राह की हिदायत फ़रमाई (118)

    और बाद को आने वालों में उनका ज़िक्रे ख़ैर बाक़ी रखा (119)

    कि (हर जगह) मूसा और हारून पर सलाम (ही सलाम) है (120)

    हम नेकी करने वालों को यूँ जज़ाए ख़ैर अता फरमाते हैं (121)

    बेशक ये दोनों हमारे (ख़ालिस ईमानदार बन्दों में से थे) (122)

    और इसमें शक नहीं कि इलियास यक़ीनन पैग़म्बरों में से थे (123)

    जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग (ख़ुदा से) क्यों नहीं डरते (124)

    क्या तुम लोग बाल (बुत) की परसतिश करते हो और खु़दा को छोड़े बैठे हो जो सबसे बेहतर पैदा करने वाला है (125)

    और (जो) तुम्हारा परवरदिगार और तुम्हारे अगले बाप दादाआं का (भी) परवरदिगार है (126)

    तो उसे लोगों ने झुठला दिया तो ये लोग यक़ीनन (जहन्नुम) में गिरफ्तार किए जाएँगे (127)

    मगर खु़दा के निरे खरे बन्दे महफूज़ रहेंगे (128)

    और हमने उनका ज़िक्र ख़ैर बाद को आने वालों में बाक़ी रखा (129)

    कि (हर तरफ से) आले यासीन पर सलाम (ही सलाम) है (130)

    हम यक़ीनन नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (131)

    बेशक वह हमारे (ख़ालिस) ईमानदार बन्दों में थे (132)

    और इसमें भी शक नहीं कि लूत यक़ीनी पैग़म्बरों में से थे (133)

    जब हमने उनको और उनके लड़के वालों सब को नजात दी (134)

    मगर एक (उनकी) बूढ़ी बीबी जो पीछे रह जाने वालों ही में थीं (135)

    फिर हमने बाक़ी लोगों को तबाह व बर्बाद कर दिया (136)

    और ऐ एहले मक्का तुम लोग भी उन पर से (कभी) सुबह को और (कभी) शाम को (आते जाते गुज़रते हो) (137)

    तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते (138)

    और इसमें शक नहीं कि यूनुस (भी) पैग़म्बरों में से थे (139)

    (वह वक़्त याद करो) जब यूनुस भाग कर एक भरी हुयी कश्ती के पास पहुँचे (140)

    तो (एहले कश्ती ने) कु़रआ डाला तो (उनका ही नाम निकला) यूनुस ने ज़क उठायी (और दरिया में गिर पड़े) (141)

    तो उनको एक मछली निगल गयी और यूनुस खु़द (अपनी) मलामत कर रहे थे (142)

    फिर अगर यूनुस (खु़दा की) तसबीह (व ज़िक्र) न करते (143)

    तो रोज़े क़यामत तक मछली के पेट में रहते (144)

    फिर हमने उनको (मछली के पेट से निकाल कर) एक खुले मैदान में डाल दिया (145)

    और (वह थोड़ी देर में) बीमार निढाल हो गए थे और हमने उन पर साये के लिए एक कद्दू का दरख़्त उगा दिया (146)

    और (इसके बाद) हमने एक लाख बल्कि (एक हिसाब से) ज़्यादा आदमियों की तरफ (पैग़म्बर बना कर भेजा) (147)

    तो वह लोग (उन पर) ईमान लाए फिर हमने (भी) एक ख़ास वक़्त तक उनको चैन से रखा (148)

    तो (ऐ रसूल) उन कुफ़्फ़ार से पूछो कि क्या तुम्हारे परवरदिगार के लिए बेटियाँ हैं और उनके लिए बेटे (149)

    (क्या वाक़ई) हमने फरिश्तों की औरतें बनाया है और ये लोग (उस वक़्त) मौजूद थे (150)

    ख़बरदार (याद रखो कि) ये लोग यक़ीनन अपने दिल से गढ़-गढ़ के कहते हैं कि खु़दा औलाद वाला है (151)

    और ये लोग यक़ीनी झूठे हैं (152)

    क्या खु़दा ने (अपने लिए) बेटियों को बेटों पर तरजीह दी है (153)

    (अरे कम्बख्तों) तुम्हें क्या जुनून हो गया है तुम लोग (बैठे-बैठे) कैसा फैसला करते हो (154)

    तो क्या तुम (इतना भी) ग़ौर नहीं करते (155)

    या तुम्हारे पास (इसकी) कोई वाज़ेए व रौशन दलील है (156)

    तो अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो अपनी किताब पेश करो (157)

    और उन लोगों ने खु़दा और जिन्नात के दरम्यिान रिश्ता नाता मुक़र्रर किया है हालाँकि जिन्नात बखू़बी जानते हैं कि वह लोग यक़ीनी (क़यामत में बन्दों की तरह) हाज़िर किए जाएँगे (158)

    ये लोग जो बातें बनाया करते हैं इनसे खु़दा पाक साफ़ है (159)

    मगर खु़दा के निरे खरे बन्दे (ऐसा नहीं कहते) (160)

    ग़रज़ तुम लोग खु़द और तुम्हारे माबूद (161)

    उसके खि़लाफ (किसी को) बहका नहीं सकते (162)

    मगर उसको जो जहन्नुम में झोंका जाने वाला है (163)

    और फरिश्ते या आइम्मा तो ये कहते हैं कि मैं हर एक का एक दरजा मुक़र्रर है (164)

    और हम तो यक़ीनन (उसकी इबादत के लिए) सफ बाँधे खड़े रहते हैं (165)

    और हम तो यक़ीनी (उसकी) तस्बीह पढ़ा करते हैं (166)

    अगरचे ये कुफ्फार (इस्लाम के क़ब्ल) कहा करते थे (167)

    कि अगर हमारे पास भी अगले लोगों का तज़किरा (किसी किताबे खु़दा में) होता (168)

    तो हम भी खु़दा के निरे खरे बन्दे ज़रूर हो जाते (169)

    (मगर जब किताब आयी) तो उन लोगों ने उससे इन्कार किया ख़ैर अनक़रीब (उसका नतीजा) उन्हें मालूम हो जाएगा (170)

    और अपने ख़ास बन्दों पैग़म्बरों से हमारी बात पक्की हो चुकी है (171)

    कि इन लोगों की (हमारी बारगाह से) यक़ीनी मदद की जाएगी (172)

    और हमारा लश्कर तो यक़ीनन ग़ालिब रहेगा (173)

    तो (ऐ रसूल) तुम उनसे एक ख़ास वक़्त तक मुँह फेरे रहो (174)

    और इनको देखते रहो तो ये लोग अनक़रीब ही (अपना नतीजा) देख लेगे (175)

    तो क्या ये लोग हमारे अज़ाब की जल्दी कर रहे हैं (176)

    फिर जब (अज़ाब) उनकी अंगनाई में उतर पडे़गा तो जो लोग डराए जा चुके हैं उनकी भी क्या बुरी सुबह होगी (177)

    और उन लोगों से एक ख़ास वक़्त तक मुँह फेरे रहो (178)

    और देखते रहो ये लोग तो खु़द अनक़रीब ही अपना अन्जाम देख लेगें (179)

    ये लोग जो बातें (खु़दा के बारे में) बनाया करते हैं उनसे तुम्हारा परवरदिगार इज़्ज़त का मालिक पाक साफ है (180)

    और पैग़म्बरों पर (दुरूद) सलाम हो (181)

    और कुल तारीफ खु़दा ही के लिए सज़ावार हैं जो सारे जहाँन का पालने वाला है (182)

 

 

38 सूरए सआद

सूरए सआद मक्का में नाज़िल हुआ और उसकी 88 आयतें हैं

खु़दा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    सआद नसीहत करने वाले कुरान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) 1

    मगर ये कुफ्फ़ार (ख्वाहमख्वाह) तकब्बुर और अदावत में (पड़े अंधे हो रहें) हैं 2

    हमने उन से पहले कितने गिरोह हलाक कर डाले तो (अज़ाब के वक्त) ये लोग चीख़ उठे मगर छुटकारे का वक्त ही न रहा था 3.

    और उन लोगों ने इस बात से ताज्जुब किया कि उन्हीं में का (अज़ाबे खुदा से) एक डरानेवाला (पैग़म्बर) उनके पास आया और काफिर लोग कहने लगे कि ये तो बड़ा (खिलाड़ी) जादूगर और पक्का झूठा है 4.

    भला (देखो तो) उसने तमाम माबूदों को (मटियामेट करके बस) एक ही माबूद क़ायम रखा ये तो यक़ीनी बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है 5.

    और उनमें से चन्द रवादार लोग (मजलिस व अज़ा से) ये (कह कर) चल खड़े हुए कि (यहाँ से) चल दो और अपने माबूदों की इबादत पर जमे रहो यक़ीनन इसमें (उसकी) कुछ ज़ाती ग़रज़ है 6.

    हम लोगों ने तो ये बात पिछले दीन में कभी सुनी भी नहीं हो न हो ये उसकी मन गढ़ंत है 7.

    क्या हम सब लोगों में बस (मोहम्मद ही क़ाबिल था कि) उस पर कुरान नाज़िल हुआ ,नहीं बात ये है कि इनके (सिरे से) मेरे कलाम ही में शक है कि मेरा है या नहीं बल्कि असल ये है कि इन लोगों ने अभी तक अज़ाब के मज़े नहीं चखे 8.

    (ऐ रसूल) तुम्हारे ज़बरदस्त फ़य्याज़ परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने क्या इनके पास हैं 9.

    या सारे आसमान व ज़मीन और उन दोनों के दरमियान की सलतनत इन्हीं की ख़ास है तब इनको चाहिए कि रास्ते या सीढियाँ लगाकर (आसमान पर) चढ़ जाएँ और इन्तेज़ाम करें 10.

    (ऐ रसूल उन पैग़म्बरों के साथ झगड़ने वाले) गिरोहों में से यहाँ तुम्हारे मुक़ाबले में भी एक लशकर है जो शिकस्त खाएगा 11.

    उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और फिरऔन मेंख़ों वाला (पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं 12.

    और समूद और लूत की क़ौम और जंगल के रहने वाले (क़ौम शुऐब ये सब) यही वह गिरोह है (जो शिकस्त खा चुके) 13.

    सब ही ने तो पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा अज़ाब ठीक आ नाज़िल हुआ 14.

    और ये (काफिर) लोग बस एक चिंघाड़ (सूर के मुन्तज़िर हैं जो फिर उन्हें) चश्में ज़दन की मोहलत न देगी  15.

    और ये लोग (मज़ाक से) कहते हैं कि परवरदिगार हिसाब के दिन (क़यामत के) क़ब्ल ही (जो) हमारी क़िस्मत को लिखा (हो) हमें जल्दी दे दे 16.

    (ऐ रसूल) जैसी जैसी बातें ये लोग करते हैं उन पर सब्र करो और हमारे बन्दे दाऊद को याद करो जो बड़े कूवत वाले थे बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े रूजू करने वाले थे 17.

    हमने पहाड़ों को भी ताबेदार बना दिया था कि उनके साथ सुबह और शाम (खुदा की) तस्बीह करते थे 18.

    और परिन्दे भी (यादे खुदा के वक्त सिमट) आते और उनके फरमाबरदार थे 19.

    और हमने उनकी सल्तनत को मज़बूत कर दिया और हमने उनको हिकमत और बहस के फैसले की कूवत अता फरमायी थी 20.

    (ऐ रसूल) क्या तुम तक उन दावेदारों की भी ख़बर पहुँची है कि जब वह हुजरे (इबादत) की दीवार फाँद पडे  21.

    (और) जब दाऊद के पास आ खड़े हुए तो वह उनसे डर गए उन लोगों ने कहा कि आप डरें नहीं (हम दोनों) एक मुक़द्दमें के फ़रीकैन हैं कि हम में से एक ने दूसरे पर ज्यादती की है तो आप हमारे दरमियान ठीक-ठीक फैसला कर दीजिए और इन्साफ से ने गुज़रिये  और हमें सीधी राह दिखा दीजिए 22.

    (मुराद ये हैं कि) ये (शख्स) मेरा भाई है और उसके पास निनान्नवे दुम्बियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ एक दुम्बी है उस पर भी ये मुझसे कहता है कि ये दुम्बी भी मुझी को दे दें और बातचीत में मुझ पर सख्ती करता है 23.

    दाऊद ने (बग़ैर इसके कि मुदा आलैह से कुछ पूछें) कह दिया कि ये जो तेरी दुम्बी माँग कर अपनी दुम्बियों में मिलाना चाहता है  तो ये तुझ पर ज़ुल्म करता है और अक्सर शुरका (की) यकीनन (ये हालत है कि) एक दूसरे पर जुल्म किया करते हैं  मगर जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसा नहीं करते) और ऐसे लोग बहुत ही कम हैं (ये सुनकर दोनों चल दिए)  और अब दाऊद ने समझा कि हमने उनका इमितेहान लिया (और वह ना कामयाब रहे) फिर तो अपने परवरदिगार से बख्शिश की दुआ माँगने लगे और सजदे में गिर पड़े और (मेरी) तरफ रूजू की (सजदा) 24.

    तो हमने उनकी वह ग़लती माफ कर दी और इसमें शक नहीं कि हमारी बारगाह में उनका तक़र्रुब और अन्जाम अच्छा हुआ 25.

    (हमने फरमाया) ऐ दाऊद हमने तुमको ज़मीन में (अपना) नाएब क़रार दिया तो तुम लोगों के दरमियान बिल्कुल ठीक फैसला किया करो और नफ़सियानी ख्वाहिश की पैरवी न करो बसा ये पीरों तुम्हें ख़ुदा की राह से बहका देगी इसमें शक नहीं कि जो लोग खुदा की राह में भटकते हैं उनकी बड़ी सख्त सज़ा होगी क्योंकि उन लोगों ने हिसाब के दिन (क़यामत) को भुला दिया 26.

    और हमने आसमान और ज़मीन और जो चीज़ें उन दोनों के दरमियान हैं बेकार नहीं पैदा किया ये उन लोगों का ख्याल है जो काफ़िर हो बैठे तो जो लोग दोज़ख़ के मुनकिर हैं उन पर अफ़सोस है 27

    क्या जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनको हम (उन लोगों के बराबर) कर दें जो रूए ज़मीन में फसाद फैलाया करते हैं या हम परहेज़गारों को मिसल बदकारों के बना दें 28.

    (ऐ रसूल) किताब (कुरान) जो हमने तुम्हारे पास नाज़िल की है (बड़ी) बरकत वाली है ताकि लोग इसकी आयतों में ग़ौर करें  और ताकि अक्ल वाले नसीहत हासिल करें 29.

    और हमने दाऊद को सुलेमान (सा बेटा) अता किया (सुलेमान भी) क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह हमारी तरफ रूजू करने वाले थे  30.

    इत्तोफाक़न एक दफ़ा तीसरे पहर को ख़ासे के असील घोड़े उनके सामने पेश किए गए 31.

    तो देखने में उलझे के नवाफिल में देर हो गयी जब याद आया तो बोले कि मैंने अपने परवरदिगार की याद पर माल की उलफ़त को तरजीह दी यहाँ तक कि आफ़ताब (मग़रिब के) पर्दे में छुप गया  32.

    (तो बोले अच्छा) इन घोड़ों को मेरे पास वापस लाओ (जब आए) तो (देर के कफ्फ़ारा में) घोड़ों की टाँगों और गर्दनों पर हाथ फेर (काट) ने लगे 33.

    और हमने सुलेमान का इम्तेहान लिया और उनके तख्त पर एक बेजान धड़ लाकर गिरा दिया फिर (सुलेमान ने मेरी तरफ) रूजू की 34.

    (और) कहा परवरदिगार मुझे बख्श दे और मुझे वह मुल्क अता फरमा जो मेरे बाद किसी के वास्ते शायाँह न हो इसमें तो शक नहीं कि तू बड़ा बख्शने वाला है 35.

    तो हमने हवा को उनका ताबेए कर दिया कि जहाँ वह पहुँचना चाहते थे उनके हुक्म के मुताबिक़ धीमी चाल चलती थी 36.

    और (इसी तरह) जितने शयातीन (देव) थे इमारत बनाने वाले और ग़ोता लगाने वाले सबको (ताबेए कर दिया)  37.

    (और इसके अलावा) दूसरे देवों को भी जो ज़ंज़ीरों में जकड़े हुए थे 38.

    ऐ सुलेमान ये हमारी बेहिसाब अता है पस (उसे लोगों को देकर) एहसान करो या (सब) अपने ही पास रखो 39.

    और इसमें शक नहीं कि सुलेमान की हमारी बारगाह में कुर्ब व मज़ेलत और उमदा जगह है 40.

    और (ऐ रसूल) हमारे (ख़ास) बन्दे अय्यूब को याद करो जब उन्होंने अपने परवरदिगार से फरियाद की कि मुझको शैतान ने बहुत अज़ीयत और तकलीफ पहुँचा रखी है 41.

    तो हमने कहा कि अपने पाँव से (ज़मीन को) ठुकरा दो और चश्मा निकाला तो हमने कहा (ऐ अय्यूब) तुम्हारे नहाने और पीने के वास्ते ये ठन्डा पानी (हाज़िर) है 42.

    और हमने उनको और उनके लड़के वाले और उनके साथ उतने ही और अता किए अपनी ख़ास मेहरबानी से और अक्लमंदों के लिए इबरत व नसीहत (क़रार दी) 43.

    और हमने कहा ऐ अय्यूब तुम अपने हाथ से सींको का मट्ठा लो (और उससे अपनी बीवी को) मारो अपनी क़सम में झूठे न बनो हमने अय्यूब को यक़ीनन साबिर पाया वह क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े झुकने वाले थे  44.

    और (ऐ रसूल) हमारे बन्दों में इबराहीम और इसहाक़ और याकूब को याद करो जो कुवत और बसीरत वाले थे 45.

    हमने उन लोगों को एक ख़ास सिफत आख़ेरत की याद से मुमताज़ किया था 46.

    और इसमें शक नहीं कि ये लोग हमारी बारगाह में बरगुज़ीदा और नेक लोगों में हैं 47.

    और (ऐ रसूल) इस्माईल और अलयसा और जुलकिफ़ल को (भी) याद करो और (ये) सब नेक बन्दों में हैं 48.

    ये एक नसीहत है और इसमें शक नहीं कि परहेज़गारों के लिए (आख़ेरत में) यक़ीनी अच्छी आरामगाह है 49.

    (यानि) हमेशा रहने के (बेहिश्त के) सदाबहार बाग़ात जिनके दरवाज़े उनके लिए (बराबर) खुले होगें 50.

    और ये लोग वहाँ तकिये लगाए हुए (चौन से बैठे) होगें वहाँ (खुद्दामे बेहिश्त से) कसरत से मेवे और शराब मँगवाएँगे 51.

    और उनके पहलू में नीची नज़रों वाली (शरमीली) कमसिन बीवियाँ होगी 52.

    (मोमिनों) ये वह चीज़ हैं जिनका हिसाब के दिन (क़यामत) के लिए तुमसे वायदा किया जाता है 53.

    बेशक ये हमारी (दी हुई) रोज़ी है जो कभी तमाम न होगी 54.

    ये (परहेज़गारों का अन्जाम) है और सरकशों का तो यक़ीनी बुरा ठिकाना है 55.

    जहन्नुम जिसमें उनको जाना पड़ेगा तो वह क्या बुरा ठिकाना है 56.

    ये खौलता हुआ पानी और पीप और इस तरह अनवा अक़साम की दूसरी चीज़े हैं 57.

    और इस तरह अनवा अक़साम की दूसरी चीज़े हैं 58.

    (कुछ लोगों के बारे में) बड़ों से कहा जाएगा ये (तुम्हारी चेलों की) फौज भी तुम्हारे साथ ही ढूँसी जाएगी उनका भला न हो ये सब भी दोज़ख़ को जाने वाले हैं 59.

    तो चेले कहेंगें (हम क्यों) बल्कि तुम (जहन्नुमी हो) तुम्हारा ही भला न हो तो तुम ही लोगों ने तो इस (बला) से हमारा सामना करा दिया तो जहन्नुम भी क्या बुरी जगह है 60.

    (फिर वह) अर्ज़ करेगें परवरदिगार जिस शख्स ने हमारा इस (बला) से सामना करा दिया तो तू उस पर हमसे बढ़कर जहन्नुम में दो गुना अज़ाब कर 61.

    और (फिर) खुद भी कहेगें हमें क्या हो गया है कि हम जिन लोगों को (दुनिया में) शरीर शुमार करते थे हम उनको यहाँ (दोज़ख़) में नहीं देखते 62.

    क्या हम उनसे (नाहक़) मसखरापन करते थे या उनकी तरफ से (हमारी) ऑंखे पलट गयी हैं 63.

    इसमें शक नहीं कि जहन्नुमियों का बाहम झगड़ना ये बिल्कुल यक़ीनी ठीक है 64.

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस (अज़ाबे खुदा से) डराने वाला हूँ और यकता क़हार खुदा के सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं  65.

    सारे आसमान और ज़मीन का और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान हैं (सबका) परवरदिगार ग़ालिब बड़ा बख्शने वाला है 66.

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये (क़यामत) एक बहुत बड़ा वाक़िया है 67.

    जिससे तुम लोग (ख्वाहमाख्वाह) मुँह फेरते हो 68.

    आलम बाला के रहने वाले (फरिश्ते) जब वाहम बहस करते थे उसकी मुझे भी ख़बर न थी 69.

    मेरे पास तो बस वही की गयी है कि मैं (खुदा के अज़ाब से) साफ-साफ डराने वाला हूँ 70.

    (वह बहस ये थी कि) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से कहा कि मैं गीली मिट्टी से एक आदमी बनाने वाला हूँ 71.

    तो जब मैं उसको दुरूस्त कर लूँ और इसमें अपनी (पैदा) की हुई रूह फूँक दो तो तुम सब के सब उसके सामने सजदे में गिर पड़ना 72.

    तो सब के सब कुल फरिश्तों ने सजदा किया 73.

    मगर (एक) इबलीस ने कि वह शेख़ी में आ गया और काफिरों में हो गया 74.

    ख़ुदा ने (इबलीस से) फरमाया कि ऐ इबलीस जिस चीज़ को मैंने अपनी ख़ास कुदरत से पैदा किया (भला) उसको सजदा करने से तुझे किसी ने रोका क्या तूने तक़ब्बुर किया या वाकई तू बड़े दरजे वालें में है 75.

    इबलीस बोल उठा कि मैं उससे बेहतर हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया और इसको तूने गीली मिट्टी से पैदा किया (कहाँ आग कहाँ मिट्टी) 76.

    खुदा ने फरमाया कि तू यहाँ से निकल (दूर हो) तू यक़ीनी मरदूद है 77.

    और तुझ पर रोज़ जज़ा (क़यामत) तक मेरी फिटकार पड़ा करेगी 78.

    शैतान ने अर्ज़ की परवरदिगार तू मुझे उस दिन तक की मोहलत अता कर जिसमें सब लोग (दोबारा) उठा खड़े किए जायेंगे 79.

    फरमाया तुझे मोहलत दी गयी 80.

    एक वक्त मुअय्यन के दिन तक की 81.

    वह बोला तेरी ही इज्ज़त व जलाल की क़सम सब के सब को ज़रूर गुमराह करूँगा 82

    सिवा उनमें से तेरे ख़ालिस बन्दों के 83

    खुदा ने फरमाया तो (हम भी) हक़ बात (कहे देते हैं) और मैं तो हक़ ही कहा करता हूँ 84

    कि मैं तुझसे और जो लोग तेरी ताबेदारी करेंगे उन सब से जहन्नुम को ज़रूर भरूँगा 85

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो तुमसे न इस (तबलीग़े रिसालत) की मज़दूरी माँगता हूँ और न मैं (झूठ मूठ) बनावट करने वाला हूँ 86

    ये (क़ुरान) तो बस सारे जहाँन के लिए नसीहत है 87

    और कुछ दिनों बाद तुमको इसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी 88

 

39 सूरए जु़मर

सूरए जु़मर मक्का में नाज़िल हुआ और उसकी पचहत्तर (75) आयतें हैं

खु़दा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    (इस) किताब (क़ुरान) का नाज़िल करना उस खु़दा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है (1)

    (ऐ रसूल) हमने किताब (कु़रान) को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया है तो तुम इबादत को उसी के लिए निरा खुरा करके खु़दा की बन्दगी किया करो (2)

    आगाह रहो कि इबादत तो ख़ास खु़दा ही के लिए है और जिन लोगों ने खु़दा के सिवा (औरों को अपना) सरपरस्त बना रखा है और कहते हैं कि हम तो उनकी परसतिश सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि ये लोग खु़दा की बारगाह में हमारा तक़र्रब बढ़ा देगें इसमें शक नहीं कि जिस बात में ये लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) खु़दा उनके दरम्यिान इसमें फै़सला कर देगा बेशक खु़दा झूठे नाशुक्रे को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (3)

    अगर खु़दा किसी को (अपना) बेटा बनाना चाहता तो अपने मख़लूक़ात में से जिसे चाहता मुन्तखिब कर लेता (मगर) वह तो उससे पाक व पाकीज़ा है वह तो यकता बड़ा ज़बरदस्त अल्लाह है (4)

    उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को बजा (दुरूस्त) पैदा किया वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है और वही दिन को रात पर तह ब तह लपेटता है और उसी ने सूरज और महताब को अपने बस में कर लिया है कि ये सबके सब अपने (अपने) मुक़रर्र वक़्त चलते रहेगें आगाह रहो कि वही ग़ालिब बड़ा बख़्शने वाला है (5)

    उसी ने तुम सबको एक ही शख़्स से पैदा किया फिर उस (की बाक़ी मिट्टी) से उसकी बीबी (हौव्वा) को पैदा किया और उसी ने तुम्हारे लिए आठ क़िस्म के चारपाए पैदा किए वही तुमको तुम्हारी माँओं के पेट में एक क़िस्म की पैदाइश के बाद दूसरी क़िस्म (नुत्फे जमा हुआ खू़न लोथड़ा) की पैदाइश से तेहरे तेहरे अँधेरों (पेट) रहम और झिल्ली में पैदा करता है वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की बादशाही है उसके सिवा माबूद नहीं तो तुम लोग कहाँ फिरे जाते हो (6)

    अगर तुमने उसकी नाशुक्री की तो (याद रखो कि) खु़दा तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है और अपने बन्दों से कुफ्र और नाशुक्री को पसन्द नहीं करता और अगर तुम शुक्र करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा फिर तुमको अपने परवरदिगार की तरफ लौटना है तो (दुनिया में) जो कुछ (भला बुरा) करते थे वह तुम्हें बता देगा वह यक़ीनन दिलों के राज़ (तक) से खू़ब वाक़िफ है (7)

    और आदमी (की हालत तो ये है कि) जब उसको कोई तकलीफ पहुँचती है तो उसी की तरफ रूजू करके अपने परवरदिगार से दुआ करता है (मगर) फिर जब खु़दा अपनी तरफ से उसे नेअमत अता फ़रमा देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है और बल्कि खु़दा का शरीक बनाने लगता है ताकि (उस ज़रिए से और लोगों को भी) उसकी राह से गुमराह कर दे (ऐ रसूल ऐसे शख़्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ्र (की हालत) में चैन कर लो (8)

    (आखि़र) तू यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा क्या जो शख़्स रात के अवक़ात में सजदा करके और खड़े-खड़े (खु़दा की) इबादत करता हो और आख़ेरत से डरता हो अपने परवरदिगार की रहमत का उम्मीदवार हो (नाशुक्रे) काफिर के बराबर हो सकता है (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जाननेवाले लोग बराबर हो सकते हैं (मगर) नसीहत इबरतें तो बस अक़्लमन्द ही लोग मानते हैं (9)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों अपने परवरदिगार (ही) से डरते रहो (क्योंकि) जिन लोगों ने इस दुनिया में नेकी की उन्हीं के लिए (आख़ेरत में) भलाई है और खु़दा की ज़मीन तो कुशादा है (जहाँ इबादत न कर सको उसे छोड़ दो) सब्र करने वालों ही की तो उनका भरपूर बेहिसाब बदला दिया जाएगा (10)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके खु़दा ही की बन्दगी करो (11)

    और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहल मुसलमान हूँ (12)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफरमानी करूँ तो मैं एक बड़ी (सख़्त) दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूँ (13)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं अपनी इबादत को उसी के वास्ते ख़ालिस करके खु़दा ही की बन्दगी करता हूँ (अब रहे तुम) तो उसके सिवा जिसको चाहो पूजो (14)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि फिल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपना और अपने लड़के वालों का क़यामत के दिन घाटा किया आगाह रहो कि सरीही (खुल्लम खुल्ला) घाटा यही है कि उनके लिए उनके ऊपर से आग ही के ओढ़ने होगें (15)

    और उनके नीचे भी (आग ही के) बिछौने ये वह अज़ाब है जिससे खु़दा अपने बन्दों को डराता है तो ऐ मेरे बन्दों मुझी से डरते रहो (16)

    और जो लोग बुतों से उनके पूजने से बचे रहे और ख़ुदा ही की तरफ रूजु की उनके लिए (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है (17)

    तो (ऐ रसूल) तुम मेरे (ख़ास) बन्दों को खु़शख़बरी दे दो जो बात को जी लगाकर सुनते हैं और फिर उसमें से अच्छी बात पर अमल करते हैं यही वह लोग हैं जिनकी खु़दा ने हिदायत की और यही लोग अक़्लमन्द हैं (18)

    तो (ऐ रसूल) भला जिस शख़्स पर अज़ाब का वायदा पूरा हो चुका हो तो क्या तुम उस शख़्स की ख़लासी दे सकते हो (19)

    जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं (और) बाला ख़ानों पर बालाख़ाने बने हुए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं ये खु़दा का वायदा है (और) वायदा खि़लाफी नहीं किया करता (20)

    क्या तुमने इस पर ग़ौर नहीं किया कि खु़दा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में चश्में बनाकर जारी किया फिर उसके ज़रिए से रंग बिरंग (के गल्ले) की खेती उगाता है फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह ज़र्द दिखायी देती है फिर खु़दा उसे चूर-चूर भूसा कर देता है बेशक इसमें अक़्लमन्दों के लिए (बड़ी) इबरत व नसीहत है (21)

    तो क्या वह शख़्स जिस के सीने को खु़दा ने (क़ुबूल) इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी पर (चलता) है मगर गुमराहों के बराबर हो सकता है अफसोस तो उन लोगों पर है जिनके दिल खु़दा की याद से (ग़ाफ़िल होकर) सख़्त हो गए हैं (22)

    ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं ख़ुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यावी ये) किताब नाज़िल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं और उनके दिल खु़दा की याद की तरफ बा इतमेनान मुतावज्जे हो जाते हैं ये खु़दा की हिदायत है इसी से जिसकी चाहता है हिदायत करता है और खु़दा जिसको गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं (23)

    तो क्या जो शख़्स क़यामत के दिन अपने मुँह को बड़े अज़ाब की सिपर बनाएगा (नाज़ी के बराबर हो सकता है) और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जैसा कुछ करते थे अब उसके मज़े चखो (24)

    जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर भी न हुयी (25)

    तो खु़दा ने उन्हें (इसी) दुनिया की ज़िन्दगी में रूसवाई की लज़्ज़त चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी उससे कहीं बढ़कर है काश ये लोग ये बात जानते (26)

    और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें (27)

    (हम ने तो साफ और सलीस) एक अरबी कु़रान (नाज़िल किया) जिसमें ज़रा भी कजी (पेचीदगी) नहीं (28)

    ताकि ये लोग (समझकर) खु़दा से डरे ख़ुदा ने एक मिसाल बयान की है कि एक शख़्स (ग़ुलाम) है जिसमें कई झगड़ालू साझी हैं और एक ज़ालिम है कि पूरा एक शख़्स का है उन दोनों की हालत यकसाँ हो सकती हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें अक्सर इतना भी नहीं जानते (29)

    (ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो (30)

    और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगड़ोगे (31)

    तो इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (तूफान) बाँधे और जब उसके पास सच्ची बात आए तो उसको झुठला दे क्या जहन्नुम में कााफिरों का ठिकाना नहीं है (32)

    (ज़रूर है) और याद रखो कि जो शख़्स (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिसने उसकी तसदीक़ की यही लोग तो परहेज़गार हैं (33)

    ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए परवर दिगार के पास (मौजूद) है ,ये नेकी करने वालों की जज़ाए ख़ैर है (34)

    ताकि ख़ुदा उन लोगों की बुराइयों को जो उन्होने की हैं दूर कर दे और उनके अच्छे कामों के एवज़ जो वह कर चुके थे उसका अज्र (सवाब) अता फरमाए (35)

    क्या ख़ुदा अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है (ज़रूर है) और (ऐ रसूल) तुमको लोग ख़ुदा के सिवा (दूसरे माबूदों) से डराते हैं और ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई राह पर लाने वाला नहीं है (36)

    और जिस शख़्स की हिदायत करे तो उसका कोई गुमराह करने वाला नहीं। क्या ख़दा ज़बरदस्त और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रूर है) (37)

    और (ऐ रसूल) अगर तुम इनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ये लोग यक़ीनन कहेंगे कि ख़ुदा ने ,तुम कह दो कि तो क्या तुमने ग़ौर किया है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर ख़ुदा मुझे कोई तक़लीफ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उसके नुक़सान को (मुझसे) रोक सकते हैं या अगर ख़ुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी रोक सकते हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि ख़ुदा मेरे लिए काफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं (38)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) अमल किए जाओ मै (39)

    भी (अपनी जगह) कुछ कर रहा हूँ ,फिर अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर वह आफत आती है जो उसको (दुनिया में) रूसवा कर देगी और (आखि़र में) उस पर दायमी अज़ाब भी नाज़िल होगा (40)

    (ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है ,पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं (41)

    ख़ुदा ही लोगों के मरने के वक़्त उनकी रूहें (अपनी तरफ़) खींच बुलाता है और जो लोग नहीं मरे (उनकी रूहें) उनकी नींद में (खींच ली जाती हैं) बस जिन के बारे में ख़ुदा मौत का हुक्म दे चुका है उनकी रूहों को रोक रखता है और बाक़ी (सोने वालों की रूहों) को फिर एक मुक़र्रर वक़्त तक के वास्ते भेज देता है जो लोग (ग़ौर) और फिक्र करते हैं उनके लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं (42)

    क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) सिफारिशी बना रखे है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगरचे वह लोग न कुछ एख़तेयार रखते हों न कुछ समझते हों (43)

    (तो भी सिफारिशी बनाओगे) तुम कह दो कि सारी सिफारिश तो ख़ुदा के लिए ख़ास है- सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत उसी के लिए ख़ास है ,फिर तुम लोगों को उसकी तरफ लौट कर जाना है (44)

    और जब सिर्फ अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल मुतनफ़िफ़र हो जाते हैं और जब ख़ुदा के सिवा और (माबूदों) का ज़िक्र किया जाता है तो बस फौरन उनकी बाछें खिल जाती हैं (45)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ ख़ुदा (ऐ) सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले ,ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले हक़ बातों में तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं तू ही उनके दरमियान फैसला कर देगा (46)

    और अगर नाफरमानों के पास रूए ज़मीन की सारी काएनात मिल जाएग बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी हो तो क़यामत के दिन ये लोग यक़ीनन सख़्त अज़ाब का फ़िदया दे निकलें (और अपना छुटकारा कराना चाहें) और (उस वक़्त) उनके सामने ख़ुदा की तरफ से वह बात पेश आएगी जिसका उन्हें वहम व गुमान भी न था (47)

    और जो बदकिरदारियाँ उन लोगों ने की थीं (वह सब) उनके सामने खुल जाएँगीं और जिस (अज़ाब) पर यह लोग क़हक़हे लगाते थे वह उन्हें घेरेगा (48)

    इन्सान को तो जब कोई बुराई छू गयी बस वह लगा हमसे दुआएँ माँगने ,फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता करते हैं तो कहने लगता है कि ये तो सिर्फ़ (मेरे) इल्म के ज़ोर से मुझे दिया गया है (ये ग़लती है) बल्कि ये तो एक आज़माइश है मगर उन मे के अक्सर नहीं जानते हैं (49)

    जो लोग उनसे पहले थे वह भी ऐसी बातें बका करते थे फिर (जब हमारा अज़ाब आया) तो उनकी कारस्तानियाँ उनके कुछ भी काम न आई (50)

    ग़रज़ उनके आमाल के बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़े और उन (कुफ़्फ़ारे मक्का) में से जिन लोगों ने नाफरमानियाँ की हैं उन्हें भी अपने अपने आमाल की सज़ाएँ भुगतनी पड़ेंगी और ये लोग (ख़ुदा को) आजिज़ नहीं कर सकते (51)

    क्या उन लोगों को इतनी बात भी मालूम नहीं कि ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी फराख़ करता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग करता है इसमें शक नहीं कि क्या इसमें ईमानदार लोगों के (कुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं (52)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे (ईमानदार) बन्दों जिन्होने (गुनाह करके) अपनी जानों पर ज़्यादतियाँ की हैं तुम लोग ख़ुदा की रहमत से नाउम्मीद न होना बेशक ख़ुदा (तुम्हारे) कुल गुनाहों को बख़्श देगा वह बेशक बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (53)

    और अपने परवरदिगार की तरफ रूजू करो और उसी के फरमाबरदार बन जाओ (मगर) उस वक़्त के क़ब्ल ही कि तुम पर जब अज़ाब आ नाज़िल हो (और) फिर तुम्हारी मदद न की जा सके (54)

    और जो जो अच्छी बातें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हई हैं उन पर चलो (मगर) उसके क़ब्ल कि तुम पर एक बारगी अज़ाब नाज़िल हो और तुमको उसकी ख़बर भी न हो (55)

    (कहीं ऐसा न हो कि) (तुममें से) कोई शख़्स कहने लगे कि हाए अफ़सोस मेरी इस कोताही पर जो मैने ख़ुदा (की बारगाह) का तक़र्रुब हासिल करने में की और मैं तो बस उन बातों पर हँसता ही रहा (56)

    या ये कहने लगे कि अगर ख़ुदा मेरी हिदायत करता तो मैं ज़रूर परहेज़गारों में से होता (57)

    या जब अज़ाब को (आते) देखें तो कहने लगे कि काश मुझे (दुनिया में) फिर दोबारा जाना मिले तो मैं नेकी कारों में हो जाऊँ (58)

    उस वक़्त ख़ुदा कहेगा ( हाँ ) हाँ तेरे पास मेरी आयतें पहुँची तो तूने उन्हें झुठलाया और शेख़ी कर बैठा और तू भी काफिरों में से था (अब तेरी एक न सुनी जाएगी) (59)

    और जिन लोगों ने ख़ुदा पर झूठे बोहतान बाँधे - तुम क़यामत के दिन देखोगे उनके चेहरे सियाह होंगें क्या गुरूर करने वालों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रूर है) (60)

    और जो लोग परहेज़गार हैं ख़ुदा उन्हें उनकी कामयाबी (और सआदत) के सबब निजात देगा कि उन्हें तकलीफ छुएगी भी नहीं और न यह लोग (किसी तरह) रंजीदा दिल होंगे (61)

    ख़ुदा ही हर चीज़ का जानने वाला है और वही हर चीज़ का निगेहबान है (62)

    सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास है और जो लोग उसकी आयतों से इन्कार कर बैठें वही घाटे में रहेगं (63)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि नादानों भला तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे की इबादत करूँ (64)

    और (ऐ रसूल) तुम्हारी तरफ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यक़ीनन ये वही भेजी जा की है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकारत हो जाएँगे और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे (65)

    बल्कि तुम ख़ुदा ही कि इबादत करो और शुक्र गुज़ारों में हो (66)

    और उन लोगों ने ख़ुदा की जैसी क़द्र दानी करनी चाहिए थी उसकी ( कुछ भी ) कद्र न की हालाँकि ( वह ऐसा क़ादिर है कि) क़यामत के दिन सारी ज़मीन (गोया) उसकी मुट्ठी में होगी और सारे आसमान (गोया) उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए हैं जिसे ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे पाकीज़ा और बरतर है (67)

    और जब (पहली बार) सूर फँूका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पड़ेंगें) मगर (हाँ) जिस को ख़ुदा चाहे वह अलबत्ता बच जाएगा) फिर जब दोबारा सूर फूँका जाएगा तो फौरन सब के सब खड़े हो कर देखने लगेंगें (68)

    और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी और (आमाल की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी और पैग़म्बर और गवाह ला हाज़िर किए जाएँगे और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर ( ज़र्रा बराबर ) ज़ुल्म नहीं किया जाएगा (69)

    और जिस शख़्स ने जैसा किया हो उसे उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा ,और जो कुछ ये लोग करते हैं वह उससे ख़ूब वाक़िफ है (70)

    और जो लोग काफिर थे उनके ग़ोल के ग़ोल जहन्नुम की तरफ हॅकाए जाएँगे और यहाँ तक की जब जहन्नुम के पास पहुँचेगें तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएगें और उसके दरोग़ा उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में के पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ (बद) के पेश आने से डराते वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और अज़ाब का हुक्म काफिरों के बारे में पूरा हो कर रहेगा (71)

    (तब उनसे) कहा जाएगा कि जहन्नुम के दरवाज़ों में धँसो और हमेशा इसी में रहो ग़रज़ तकब्बुर करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है (72)

    और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते थे वह गिर्दो गिर्दा (गिरोह गिरोह) बहिश्त की तरफ़ (एजाज़ व इकराम से) बुलाए जाएगें यहाँ तक कि जब उसके पास पहुँचेगें और बहिश्त के दरवाज़े खोल दिये जाएँगें और उसके निगेहबान उन से कहेंगें सलाम अलै कुम तुम अच्छे रहे ,तुम बहिश्त में हमेशा के लिए दाखि़ल हो जाओ (73)

    और ये लोग कहेंगें ख़ुदा का शुक्र जिसने अपना वायदा हमसे सच्चा कर दिखाया और हमें (बहिश्त की) सरज़मीन का मालिक बनाया कि हम बहिश्त में जहाँ चाहें रहें तो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब (खरी) मज़दूरी है (74)

    और (उस दिन) फरिश्तो को देखोगे कि अर्श के गिर्दा गिर्द घेरे हुए डटे होंगे और अपने परवरदिगार की तारीफ की (तसबीह) कर रहे होंगे और लोगों के दरम्यिान ठीक फैसला कर दिया जाएगा और (हर तरफ से यही) सदा बुलन्द होगी अल्हमदो लिल्लाहे रब्बिल आलेमीन (75) 

 

40 सूरए मोमिन (ग़ाफ़ीर)

सूरए मोमिन मक्का में नाज़िल हुआ मगर ‘‘अल लज़ीना यूजादेलूना ’ आयत के सिवा और इसकी (85) पिच्चासी आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरु करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

    हा मीम (1)

    (इस) किताब (कुरान) का नाज़िल करना (ख़ास बारगाहे) ख़़ुदा से है जो (सबसे) ग़ालिब बड़ा वाक़िफ़कार है (2)

    गुनाहों का बख़्शने वाला और तौबा का क़ुबूल करने वाला सख़्त अज़ाब देने वाला साहिबे फज़्ाल व करम है उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ (सबको) लौट कर जाना है (3)

    ख़ुदा की आयतों में बस वही लोग झगड़े पैदा करते हैं जो काफिर हैं तो (ऐ रसूल) उन लोगों का शहरों (शहरों) घूमना फिरना और माल हासिल करना (4)

    तुम्हें इस धोखे में न डाले (कि उन पर आज़ाब न होगा) इन के पहले नूह की क़ौम ने और उन के बाद और उम्मतों ने (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बरों के बारे में यही ठान लिया कि उन्हें गिरफ़्तार कर (के क़त्ल कर डालें) और बेहूदा बातों की आड़ पकड़ कर लड़ने लगें - ताकि उसके ज़रिए से हक़ बात को उखाड़ फेंकें तो मैंने ,उन्हें गिरफ्तार कर लिया फिर देखा कि उन पर (मेरा अज़ाब कैसा (सख़्त हुआ) (5)

    और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म (उन) काफ़िरों पर पूरा हो चुका है कि यह लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं (6)

    जो (फरीश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दा गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं ,तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख़्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले (7)

    ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाखि़ल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख़्श दें) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है (8)

    और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख और जिसको तूने उस दिन ( कयामत ) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है (9)

    (हाँ) जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया उनसे पुकार कर कह दिया जाएगा कि जितना तुम (आज) अपनी जान से बेज़ार हो उससे बढ़कर ख़ुदा तुमसे बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे (10)

    वह लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार तू हमको दो बार मार चुका और दो बार ज़िन्दा कर चुका तो अब हम अपने गुनाहों का एक़रार करते हैं तो क्या (यहाँ से) निकलने की भी कोई सबील है (11)

    ये इसलिए कि जब तन्हा ख़ुदा पुकारा जाता था तो तुम ईन्कार करते थे और अगर उसके साथ शिर्क किया जाता था तो तुम मान लेते थे तो (आज) ख़ुदा की हुकूमत है जो आलीशान (और) बुर्ज़ुग है (12)

    वही तो है जो तुमको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रोज़ी नाज़िल करता है और नसीहत तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी तरफ) रूज़ू करता है (13)

    पस तुम लोग ख़़ुदा की इबादत को ख़ालिस करके उसी को पुकारो अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा मानें (14)

    ख़़ुदा तो बड़ा आली मरतबा अर्श का मालिक है ,वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से ‘वही ’ नाज़िल करता है ताकि (लोगों को) मुलाकात (क़यामत) के दिन से डराएं (15)

    जिस दिन वह लोग (क़ब्रों) से निकल पड़ेंगे (और) उनको कोई चीज़ ख़़ुुदा से पोशीदा नहीं रहेगी (और निदा आएगी) आज किसकी बादशाहत है ( फिर ख़़ुदा ख़़ुद कहेगा ) ख़ास ख़ुदा की जो अकेला (और) ग़ालिब है (16)

    आज हर शख़्स को उसके किए का बदला दिया जाएगा ,आज किसी पर कुछ भी ज़़ुल्म न किया जाएगा बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (17)

    (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उस दिन से डराओ जो अनक़रीब आने वाला है जब लोगों के कलेजे घुट घुट के (मारे डर के) मुँह को आ जाएंगें (उस वक़्त) न तो सरकषों का कोई सच्चा दोस्त होगा और न कोई ऐसा सिफारिशी जिसकी बात मान ली जाए (18)

    ख़़ुदा तो आँखों की दुज़दीदा निगाह को भी जानता है और उन बातों को भी जो (लोगों के) सीनों में पोशीदा है (19)

    और ख़़ुदा ठीक ठीक हुक्म देता है ,और उसके सिवा जिनकी ये लोग इबादत करते हैं वह तो कुछ भी हुक्म नहीं दे सकते ,इसमें शक नहीं कि ख़़ुदा सुनने वाला देखने वाला है (20)

    क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या हुआ (हालाँकि) वह लोग कुवत (शान और उम्र सब) में और ज़मीन पर अपनी निशानियाँ (यादगारें इमारतें) वग़ैरह छोड़ जाने में भी उनसे कहीं बढ़ चढ़ के थे तो ख़़ुदा ने उनके गुनाहों की वजह से उनकी ले दे की ,और ख़़ुदा (के ग़ज़ब से) उनका कोई बचाने वाला भी न था (21)

    ये इस सबब से कि उनके पैग़म्बरान उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए इस पर भी उन लोगों ने न माना तो ख़ुदा ने उन्हें ले डाला इसमें तो शक ही नहीं कि वह क़वी (और) सख़्त अज़ाब वाला है (22)

    और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और रौशन दलीलें देकर (23)

    फिरऔन और हामान और क़ारून के पास भेजा तो वह लोग कहने लगे कि (ये तो) एक बड़ा झूठा (और) जादूगर है (24)

    ग़रज़ जब मूसा उन लोगों के पास हमारी तरफ से सच्चा दीन ले कर आये तो वह बोले कि जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उनके बेटों को तो मार डालों और उनकी औरतों को (लौन्डिया बनाने के लिए) ज़िन्दा रहने दो और काफ़िरों की तद्बीरें तो बे ठिकाना होती हैं (25)

    और फिरऔन कहने लगा मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा को तो क़त्ल कर डालूँ ,और ( मैं देखूँ ) अपने परवरदिगार को तो अपनी मदद के लिए बुलालें (भाईयों) मुझे अन्देशा है कि (मुबादा) तुम्हारे दीन को उलट पुलट कर डाले या मुल्क में फसाद पैदा कर दें (26)

    और मूसा ने कहा कि मैं तो हर मुताकब्बिर से जो हिसाब के दिन (क़यामत पर ईमान नहीं लाता) अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह ले चुका हूॅ(27)

    और फिरऔन के लोगों में एक ईमानदार शख़्स (हिज़कील) ने जो अपने ईमान को छिपाए रहता था (लोगों से कहा) कि क्या तुम लोग ऐसे शख़्स के क़त्ल के दरपै हो जो (सिर्फ) ये कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है) हालाँकि वह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आया और अगर (बिल ग़रज़) ये शख़्स झूठा है तो इसके झूठ का बवाल इसी पर पड़ेगा और अगर यह कहीं सच्चा हुआ तो जिस (अज़ाब की) तुम्हें ये धमकी देता है उसमें से कुछ तो तुम लोगों पर ज़रूर वाके़ए होकर रहेगा बेशक ख़ुदा उस शख़्स की हिदायत नहीं करता जो हद से गुज़रने वाला (और) झूठा हो (28)

    ऐ मेरी क़ौम आज तो (बेशक) तुम्हारी बादशाहत है (और) मुल्क में तुम्हारा ही बोल बाला है लेकिन (कल) अगर ख़़ुदा का अज़ाब हम पर आ जाए तो हमारी कौन मदद करेगा फिरऔन ने कहा मैं तो वही बात समझाता हूँ जो मैं ख़़ुद समझता हूँ और वही राह दिखाता हूँ जिसमें भलाई है (29)

    तो जो शख़्स (दर पर्दा) ईमान ला चुका था कहने लगा ,भाईयों मुझे तो तुम्हारी निस्बत भी और उम्मतों की तरह रोज़ (बद) का अन्देशा है (30)

    (कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ और ख़ुदा तो बन्दों पर ज़़ुल्म करना चाहता ही नहीं (31)

    और ऐ हमारी क़ौम मुझे तो तुम्हारी निस्बत कयामत के दिन का अन्देशा है (32)

    जिस दिन तुम पीठ फेर कर (जहन्नुम) की तरफ चल खड़े होगे तो ख़ुदा के (अज़ाब) से तुम्हारा बचाने वाला न होगा ,और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई रूबराह करने वाला नहीं (33)

    और (इससे) पहले यूसुफ़ भी तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आए थे तो जो जो लाए थे तुम लोग उसमें बराबर शक ही करते रहे यहाँ तक कि जब उन्होने वफात पायी तो तुम कहने लगे कि अब उनके बाद ख़ुदा हरगिज़ कोई रसूल नहीं भेजेगा जो हद से गुज़रने वाला और शक करने वाला है ख़़ुदा उसे यू हीं गुमराही में छोड़ देता है (34)

    जो लोग बगै़र इसके कि उनके पास कोई दलील आई हो ख़़ुदा की आयतों में (ख़्वाह मा ख़्वाह) झगड़े किया करते हैं वह ख़़ुदा के नज़दीक और ईमानदारों के नज़दीक सख़्त नफरत खेज़ हैं ,यूँ ख़ुदा हर मुतकब्बिर सरकश के दिल पर अलामत मुक़र्रर कर देता है (35)

    और फिरऔन ने कहा ऐ हामान हमारे लिए एक महल बनवा दे ताकि (उस पर चढ़ कर) रसतों पर पहुँच जाऊ (36)

    (यानि) आसमानों के रसतों पर फिर मूसा के ख़़ुदा को झांक कर (देख) लूँ और मैं तो उसे यक़ीनी झूठा समझता हूँ ,और इसी तरह फिरऔन की बदकिरदारयाँ उसको भली करके दिखा दी गयीं थीं और वह राहे रास्ता से रोक दिया गया था ,और फिरऔन की तद्बीर तो बस बिल्कुल ग़ारत गुल ही थीं (37)

    और जो शख़्स (दर पर्दा) ईमानदार था कहने लगा भाईयों मेरा कहना मानों मैं तुम्हें हिदायत के रास्ते दिख दूंगा (38)

    भाईयों ये दुनियावी ज़िन्दगी तो बस (चन्द रोज़ा) फ़ायदा है और आखे़रत ही हमेशा रहने का घर है (39)

    जो बुरा काम करेगा तो उसे बदला भी वैसा ही मिलेगा ,और जो नेक काम करेगा मर्द हो या औरत मगर ईमानदार हो तो ऐसे लोग बहिश्त में दाख़िल होंगे वहाँ उन्हें बेहिसाब रोज़ी मिलेगी (40)

    और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ है कि मैं तुमको नजाद की तरफ बुलाता हूँ और तुम मुझे दोज़ख़ की तरफ बुलाते हो (41)

    तुम मुझे बुलाते हो कि मै ख़ुदा के साथ कुफ्र करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊ जिसका मुझे इल्म में भी नहीं ,और मैं तुम्हें ग़ालिब (और) बड़े बख़्शने वाले ख़़ुदा की तरफ बुलाता हूँ (42)

    बेशक तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो वह न तो दुनिया ही में पुकारे जाने के क़ाबिल है और न आखि़रत में और आखि़र में हम सबको ख़़ुदा ही की तरफ लौट कर जाना है और इसमें तो शक ही नहीं कि हद से बढ़ जाने वाले जहन्नुमी हैं (43)

    तो जो मैं तुमसे कहता हूँ अनक़रीब ही उसे याद करोगे और मैं तो अपना काम ख़़ुदा ही को सौंपे देता हूँ कुछ शक नहीं की ख़ुदा बन्दों ( के हाल ) को ख़ूब देख रहा है (44)

    तो ख़़ुदा ने उसे उनकी तद्बीरों की बुराई से महफूज़ रखा और फिरऔनियों को बड़े अज़ाब ने ( हर तरफ ) से घेर लिया (45)

    और अब तो कब्र में दोज़ख़ की आग है कि वह लोग (हर) सुबह व शाम उसके सामने ला खड़े किए जाते हैं और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (हुक्म होगा) फिरऔन के लोगों को सख़्त से सख़्त अज़ाब में झोंक दो (46)

    और ये लोग जिस वक़्त जहन्नुम में बाहम झगड़ेंगें तो कम हैसियत लोग बड़े आदमियों से कहेंगे कि हम तुम्हारे ताबे थे तो क्या तुम इस वक़्त (दोज़ख़ की) आग का कुछ हिस्सा हमसे हटा सकते हो (47)

    तो बड़े लोग कहेंगं (अब तो) हम (तुम) सबके सब आग में पड़े हैं ख़़ुदा (को) तो बन्दों के बारे में (जो कुछ) फैसला (करना था) कर चुका (48)

    और जो लोग आग में (जल रहे) होंगे जहन्नुम के दरोग़ाओं से दरख़्वास्त करेंगे कि अपने परवरदिगार से अर्ज़ करो कि एक दिन तो हमारे अज़ाब में तख़फ़ीफ़ कर दें (49)

    वह जवाब देंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पैग़म्बर साफ व रौशन मौजिज़े लेकर नहीं आए थे वह कहेंगे (हाँ) आए तो थे ,तब फरिष्ते तो कहेंगे फिर तुम ख़़ुद (क्यों) न दुआ करो ,हालाँकि काफ़िरों की दुआ तो बस बेकार ही है (50)

    हम अपने पैग़म्बरों की और ईमान वालों की दुनिया की ज़िन्दगी में भी ज़रूर मदद करेंगे और जिस दिन गवाह (पैग़म्बर फरिष्ते गवाही को) उठ खड़े होंगे (51)

    (उस दिन भी) जिस दिन ज़ालिमों को उनकी माज़ेरत कुछ भी फायदे न देगी और उन पर फिटकार (बरसती) होगी और उनके लिए बहुत बुरा घर (जहन्नुम) है (52)

    और हम ही ने मूसा को हिदायत (की किताब तौरेत) दी और बनी इसराईल को (उस) किताब का वारिस बनाया (53)

    जो अक़्लमन्दों के लिए (सरतापा) हिदायत व नसीहत है (54)

    (ऐ रसूल) तुम (उनकी शरारत) पर सब्र करो बेशक ख़़ुदा का वायदा सच्चा है ,और अपने (उम्मत की) गुनाहों की माफी माँगो और सुबह व शाम अपने परवरदिगार की हम्द व सना के साथ तसबीह करते रहो (55)

    जिन लोगों के पास (ख़़ुदा की तरफ से) कोई दलील तो आयी नहीं और (फिर) वह ख़़ुदा की आयतों में (ख़्वाह मा ख़्वाह) झगड़े निकालते हैं ,उनके दिल में बुराई (की बेजां हवस) के सिवा कुछ नहीं हालाँकि वह लोग उस तक कभी पहुँचने वाले नहीं तो तुम बस ख़़ुदा की पनाह माँगते रहो बेशक वह बड़ा सुनने वाला (और) देखने वाला है (56)

    सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करना लोगों के पैदा करने की ये निस्बत यक़ीनी बड़ा (काम) है मगर अक्सर लोग (इतना भी) नहीं जानते (57)

    और अँधा और आँख वाला (दोनों) बराबर नहीं हो सकते और न मोमिनीन जिन्होने अच्छे काम किए और न बदकार (ही) बराबर हो सकते हैं बात ये है कि तुम लोग बहुत कम ग़ौर करते हो ,कयामत तो ज़रूर आने वाली है (58)

    इसमें किसी तरह का शक नहीं मगर अक्सर लोग (इस पर भी) ईमान नहीं रखते (59)

    और तुम्हारा परवरदिगार इरशाद फ़रमाता है कि तुम मुझसे दुआएं माँगों मैं तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूँगा जो लोग हमारी इबादत से अकड़ते हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख़्वार हो कर यक़ीनन जहन्नुम वासिल होंगे (60)

    ख़़ुदा ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते रात बनाई ताकि तुम उसमें आराम करो और दिन को रौशन (बनाया) तकि काम करो बेशक ख़़ुदा लोगों परा बड़ा फज़ल व करम वाला है ,मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं अदा करते (61)

    यही ख़ुदा तुम्हारा परवरदिगार है जो हर चीज़ का ख़ालिक़ है ,और उसके सिवा कोई माबूद नहीं ,फिर तुम कहाँ बहके जा रहे हो (62)

    जो लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार रखते थे वह इसी तरह भटक रहे थे (63)

    अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते ज़मीन को ठहरने की जगह और आसमान को छत बनाया और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायीं तो अच्छी सूरतें बनायीं और उसी ने तुम्हें साफ सुथरी चीज़ें खाने को दीं यही अल्लाह तो तुम्हारा परवरदिगार है तो ख़़ुदा बहुत ही मुतबर्रिक है जो सारे जहाँन का पालने वाला है (64)

    वही (हमेशा) ज़िन्दा है और उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो निरी खरी उसी की इबादत करके उसी से ये दुआ माँगो ,सब तारीफ ख़़ुदा ही को सज़ावार है और जो सारे जहाँन का पालने वाला है (65)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जब मेरे पास मेरे परवरदिगार की बारगाह से खुले हुए मौजिज़े आ चुके तो मुझे इस बात की मनाही कर दी गयी है कि ख़़ुदा को छोड़ कर जिनको तुम पूजते हो मैं उनकी परसतिश करूँ और मुझे तो यह हुक्म हो चुका है कि मैं सारे जहाँन के पालने वाले का फरमाबरदार बनु (66)

    वही वह ख़ुदा है जिसने तुमको पहले (पहल) मिटटी से पैदा किया फिर नुत्फे से ,फिर जमे हुए ख़ून फिर तुमको बच्चा बनाकर (माँ के पेट) से निकलता है (ताकि बढ़ों) फिर (ज़िन्दा रखता है) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो फिर (और ज़िन्दा रखता है ताकि तुम बूढ़े हो जाओ और तुममें से कोई ऐसा भी है जो (इससे) पहले मर जाता है ग़रज़ (तुमको उस वक़्त तक ज़िन्दा रखता है) की तुम (मौत के) मुकर्रर वक़्त तक पहुँच जाओ (67)

    और ताकि तुम (उसकी क़ुदरत को समझो) वह वही (ख़़ुदा) है जो जिलाता और मारता है ,फिर जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उससे कह देता है कि ‘हो जा ’ तो वह फ़ौरन हो जाता है (68)

    (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (की हालत) पर ग़ौर नहीं किया जो ख़़ुदा की आयतों में झगड़े निकाला करते हैं (69)

    ये कहाँ भटके चले जा रहे हैं ,जिन लोगों ने किताबे (ख़़ुदा) और उन बातों को जो हमने पैग़म्बरों को देकर भेजा था झुठलाया तो बहुत जल्द उसका नतीजा उन्हें मालूम हो जाएगा (70)

    जब (भारी भारी) तौक़ और ज़ंजीरें उनकी गर्दनों में होंगी (और पहले) खौलते हुए पानी में घसीटे जाएँगे (71)

    फिर (जहन्नुम की) आग में झोंक दिए जाएँगे (72)

    फिर उनसे पूछा जाएगा कि ख़ुदा के सिवा जिनको (उसका) शरीक बनाते थे (73)

    (इस वक़्त) कहाँ हैं वह कहेंगे अब तो वह हमसे जाते रहे बल्कि (सच यूँ है कि) हम तो पहले ही से (ख़ुदा के सिवा) किसी चीज़ की परसतिश न करते थे यूँ ख़़ुदा काफिरों को बौखला देगा (74)

    (कि कुछ समझ में न आएगा) ये उसकी सज़ा है कि तुम दुनिया में नाहक (बात पर) निहाल थे और इसकी सज़ा है कि तुम इतराया करते थे (75)

    अब जहन्नुम के दरवाज़े में दाखि़ल हो जाओ (और) हमेशा उसी में (पड़े) रहो ,ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का भी (क्या) बुरा ठिकाना है (76)

    तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो ख़़ुदा का वायदा यक़ीनी सच्चा है तो जिस (अज़ाब) की हम उन्हें धमकी देते हैं अगर हम तुमको उसमें कुछ दिखा दें या तुम ही को (इसके क़ब्ल) दुनिया से उठा लें तो (आखि़र फिर) उनको हमारी तरफ लौट कर आना है , (77)

    और तुमसे पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके हालात हमने तुमसे बयान कर दिए ,और कुछ ऐसे हैं जिनके हालात तुमसे नहीं दोहराए और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि ख़़ुदा के ऐख़्तेयार दिए बग़ैर कोई मौजिज़ा दिखा सकें फिर जब ख़़ुदा का हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा तो ठीक ठीक फैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही इस घाटे में रहे , (78)

    ख़ुदा ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए चारपाए पैदा किए ताकि तुम उनमें से किसी पर सवार होते हो और किसी को खाते हो (79)

    और तुम्हारे लिए उनमें (और भी) फायदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर) अपनी दिली मक़सद तक पहुँचो और उन पर और (नीज़) कश्तीयो पर सवार फिरते हो (80)

    और वह तुमको अपनी (कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है तो तुम ख़ुदा की किन किन निशानियों को न मानोगे (81)

    तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं ,तो देखते कि जो लोग इनसे पहले थे उनका क्या अंजाम हुआ ,जो उनसे (तादाद में) कहीं ज़्यादा थे और क़ूवत और ज़मीन पर (अपनी) निशानियाँ (यादगारें) छोड़ने में भी कहीं बढ़ चढ़ कर थे तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया था उनके कुछ भी काम न आया (82)

    फिर जब उनके पैग़म्बर उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए तो जो इल्म (अपने ख़्याल में) उनके पास था उस पर नाज़िल हुए और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाते थे उसी ने उनको चारों तरफ से घेर लिया (83)

    तो जब इन लोगों ने हमारे अज़ाब को देख लिया तो कहने लगे ,हम यकता ख़़ुदा पर ईमान लाए और जिस चीज़ को हम उसका शरीक बनाते थे हम उनको नहीं मानते (84)

    तो जब उन लोगों ने हमारा (अज़ाब) आते देख लिया तो अब उनका ईमान लाना कुछ भी फायदेमन्द नहीं हो सकता (ये) ख़़ुदा की आदत (है) जो अपने बन्दों के बारे में (सदा से) चली आती है और काफ़िर लोग इस वक़्त घाटे मे रहे (85)

 

41 सूरए हा मीम सजदा (फुस्सिलत)

सूरए हा मीम सजदा मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें चव्वन (54) आयतें और (6) रूकूउ हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    हा मीम (1)

    (ये किताब) रहमान व रहीम ख़़ुदा की तरफ से नाज़िल हुयी है ये (वह) किताब अरबी क़ुरान है (2)

    जिसकी आयतें समझदार लोगें के वास्ते तफ़सील से बयान कर दी गयीं हैं (3)

    (नेको कारों को) ख़़ुशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली है इस पर भी उनमें से अक्सर ने मुँह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं (4)

    और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरम्यिान एक पर्दा (हायल) है तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं (5)

    (ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर ‘वही ’ आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़़ुदा है तो सीधे उसकी तरफ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो ,और मुशरेकों पर अफसोस है (6)

    जो ज़कात नहीं देते और आखे़रत के भी क़ायल नहीं (7)

    बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे और उनके लिए वह सवाब है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं (8)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम उस (ख़़ुदा) से इन्कार करते हो जिसने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उसका हमसर बनाते हो ,यही तो सारे जहाँ का सरपरस्त है (9)

    और उसी ने ज़मीन में उसके ऊपर से पहाड़ पैदा किए और उसी ने इसमें बरकत अता की और उसी ने एक मुनासिब अन्दाज़ पर इसमें सामाने माईशत का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन में और तमाम तलबगारों के लिए बराबर है (10)

    फिर आसमान की तरफ मुतावज्जे हुआ और (उस वक़्त) धुएँ (का सा) था उसने उससे और ज़मीन से फरमाया कि तुम दोनों आओ ख़़ुशी से ख़्वाह कराहत से ,दोनों ने अर्ज़ की हम ख़़ुशी ख़़ुशी हाज़िर हैं (11)

    (और हुक्म के पाबन्द हैं) फिर उसने दोनों में उस (धुएँ) के सात आसमान बनाए और हर आसमान में उसके (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया और हमने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चिराग़ों से मज़य्यन किया और (शैतानों से महफूज़) रखा ये वाक़िफ़कार ग़ालिब ख़ुदा के (मुक़र्रर किए हुए) अन्दाज़ हैं (12)

    फिर अगर हम पर भी ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क (13)

    जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि ख़़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फरीश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते (14)

    तो आद नाहक़ रूए ज़मीन में ग़़ुरूर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के क़ूवत में कौन है ,क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे क़ूवत में कहीं बढ़ के है ,ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे (15)

    तो हमने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की आँधी चलाई ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उनको रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आखे़रत का अज़ाब तो और ज़्यादा रूसवा करने वाला ही होगा और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी (16)

    और रहे समूद तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया ,मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया तो उन की करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला (17)

    और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया (18)

    और जिस दिन ख़़ुदा के दुशमन दोज़ख़ की तरफ हकाए जाएँगे तो ये लोग तरतीब वार खड़े किए जाएँगे (19)

    यहाँ तक की जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएँगे तो उनके कान और उनकी आँखें और उनके (गोष्त पोस्त) उनके खि़लाफ उनके मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें (20)

    और ये लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुमने हमारे खि़लाफ क्यों गवाही दी तो वह जवाब देंगे कि जिस ख़़ुदा ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी क़ुदरत से) गोया किया और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आखि़र) उसी की तरफ लौट कर जाओगे (21)

    और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख़्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरखि़लाफ गवाही देंगे बल्कि तुम इस ख़्याल मे (भूले हुए) थे कि ख़़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं (22)

    और तुम्हारी इस बदख़्याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे तुम्हें तबाह कर छोड़ा आखि़र तुम घाटे में रहे (23)

    फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़़ुबूल न की जाएगी (24)

    और हमने (गोया ख़ुद शैतान को) उनका हमनशीन मुक़र्रर कर दिया था तो उन्होने उनके अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके शुमूल {साथ }में (अज़ाब का) वायदा उनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपै थे (25)

    और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि इस क़़ुरान को सुनो ही नहीं और जब पढ़ें (तो) इसके (बीच) में ग़ुल मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ (26)

    तो हम भी काफ़िरों को सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ है (27)

    ख़़ुदा के दुशमनों का बदला है कि वह जो हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है , (28)

    और (क़यामत के दिन) कुफ़्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हमको गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखा दे कि हम उनको पाँव तले (रौन्द) डालें ताकि वह ख़ूब ज़लील हों (29)

    और जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है ,फिर वह उसी पर भी क़ायम भी रहे उन पर मौत के वक़्त (रहमत के) फरीश्ते नाज़िल होंगे (और कहेंगे) कि कुछ ख़ौफ न करो और न ग़म खाओ और जिस बहिश्त का तुमसे वायदा किया गया था उसकी ख़़ुशियाँ मनाओ (30)

    हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आखे़रत में भी तुम्हारे (रफ़ीक़) हैं और जिस चीज़ का भी तुम्हार जी चाहे बहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहाँ तुम्हारे लिए (हाज़िर) होगी (31)

    (ये) बख़्शने वाले मेहरबान (ख़़ुदा) की तरफ़ से (तुम्हारी मेहमानी है) (32)

    और इस से बेहतर किसकी बात हो सकती है जो (लोगों को) ख़़ुदा की तरफ बुलाए और अच्छे अच्छे काम करे और कहे कि मैं भी यक़ीनन (ख़ुदा के) फरमाबरदार बन्दों में हूँं (33)

    और भलाई बुराई (कभी) बराबर नहीं हो सकती तो (सख़्त कलामी का) ऐसे तरीके से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो (ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिस में और तुममें दुशमनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है (34)

    ये बात बस उन्हीं लोगों को हासिल हुई है जो सब्र करने वाले हैं और उन्हीं लोगों को हासिल होती है जो बड़े नसीबवर हैं (35)

    और अगर तुम्हें शैतान की तरफ से वसवसा पैदा हो तो ख़ुदा की पनाह माँग लिया करो बेशक वह (सबकी) सुनता जानता है (36)

    और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को ,और अगर तुम ख़़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है (37)

    पस अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं) वो लोग (फरीश्ते) तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वह रात दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं और वह लोग उकताते भी नहीं (38)

    उसकी क़ुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को ख़़ुष्क और बेगयाह देखते हो फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है जिस ख़ुदा ने (मुर्दा) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी जिलाएगा बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है (39)

    जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर पैदा करते हैं वह हरगिज़ हमसे पोशीदा नहीं हैं भला जो शख़्स दोज़ख़ में डाला जाएगा वह बेहतर है या वह शख़्स जो क़यामत के दिन बेख़ौफ व ख़तर आएगा (ख़ैर) जो चाहो सो करो (मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़़ुदा) उसको देख रहा है (40) 

    जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़़ुरान तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है (41)

    कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुयी है (42)

    (ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख़्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है (43)

    और अगर हम इस क़ु़रान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खू़ब क़़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कु़़रान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कु़रान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है (44)

    (और नहीं सुनते) और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख़्तेलाफ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता ,और ये लोग ऐसे शक में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है (45)

    जिसने अच्छे अच्छे काम किये तो अपने नफे़ के लिए और जो बुरा काम करे उसका वबाल भी उसी पर है और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं (46)

    क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ है (यानि वही जानता है) और बगै़र उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है और जिस दिन (ख़़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं (47)

    और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं (48)

    इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है (49)

    और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख़्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें (50)

    (वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएँ करने लगता है (51)

    (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़़ुरान) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफत में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है (52)

    हम अनक़रीब ही अपनी (क़ु़दरत) की निशानियाँ अतराफ (आलम) में और ख़़ुद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है (53)

    देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाज़िर होने से शक में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है (54)