52 सूरए अल तूर
सूरए अल तूर मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी उन्चास (49) आयते हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
(कोहे) तूर की क़सम (1)
और उसकी किताब (लौहे महफूज़) की (2)
जो क़ुशादा औराक़ में लिखी हुयी है (3)
और बैतुल मामूर की (जो काबा के सामने फरिश्तो का क़िब्ला है) (4)
और ऊँची छत (आसमान) की (5)
और जोश व ख़रोश वाले समुन्द्र की (6)
कि तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब बेशक वाके़ए होकर रहेगा (7)
(और) इसका कोई रोकने वाला नहीं (8)
जिस दिन आसमान चक्कर खाने लगेगा (9)
और पहाड़ उड़ने लगेगे (10)
तो उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (11)
जो लोग बातिल में पड़े खेल रहे हैं (12)
जिस दिन जहन्नुम की आग की तरफ उनको ढकेल ढकेल ले जाएँगे (13)
(और उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे तुम झुठलाया करते थे (14)
तो क्या ये जादू है या तुमको नज़र ही नहीं आता (15)
इसी में घुसो फिर सब्र करो या बेसब्री करो (दोनों) तुम्हारे लिए यकसाँ हैं तुम्हें तो बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुम किया करते थे (16)
बेशक परहेज़गार लोग बाग़ों और नेअमतों में होंगे (17)
जो (जो नेअमतें) उनके परवरदिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवरदिगार उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचाएगा (18)
जो जो कारगुज़ारियाँ तुम कर चुके हो उनके सिले में (आराम से) तख़्तों पर जो बराबर बिछे हुए हैं (19)
तकिए लगाकर ख़ूब मज़े से खाओ पियो और हम बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उनका ब्याह रचाएँगे (20)
और जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी औलाद को भी उनके दर्जे पहुँचा देंगे और हम उनकी कारगुज़ारियों में से कुछ भी कम न करेंगे हर शख़्स अपने आमाल के बदले में गिरवी है (21)
और जिस क़िस्म के मेवे और गोष्त को उनका जी चाहेगा हम उन्हें बढ़ाकर अता करेंगे (22)
वहाँ एक दूसरे से शराब का जाम ले लिया करेंगे जिसमें न कोई बेहूदगी है और न गुनाह (23)
(और ख़िदमत के लिए) नौजवान लड़के उनके आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (हुस्न व जमाल में) गोया एहतियात से रखे हुए मोती हैं (24)
और एक दूसरे की तरफ रूख़ करके (लुत्फ की) बातें करेंगे (25)
(उनमें से कुछ) कहेंगे कि हम इससे पहले अपने घर में (ख़ुदा से बहुत) डरा करते थे (26)
तो ख़ुदा ने हम पर बड़ा एहसान किया और हमको (जहन्नुम की) लौ के अज़ाब से बचा लिया (27)
इससे क़ब्ल हम उनसे दुआएँ किया करते थे बेशक वह एहसान करने वाला मेहरबान है (28)
तो (ऐ रसूल) तुम नसीहत किए जाओ तो तुम अपने परवरदिगार के फज़ल से न काहिन हो और न मजनून किया (29)
क्या (तुमको) ये लोग कहते हैं कि (ये) शायर हैं (और) हम तो उसके बारे में ज़माने के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं (30)
तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी इन्तेज़ार करता हूँ (31)
क्या उनकी अक़्लें उन्हें ये (बातें) बताती हैं या ये लोग हैं ही सरकश (32)
क्या ये लोग कहते हैं कि इसने क़ुरान ख़ुद गढ़ लिया है बात ये है कि ये लोग ईमान ही नहीं रखते (33)
तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लाएँ (34)
क्या ये लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या यही लोग (मख्लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं (35)
या इन्होने ही ने सारे आसमान व ज़मीन पैदा किए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग यक़ीन ही नहीं रखते (36)
क्या तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने इन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम हैं (37)
या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ कर आसमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई सरीही दलील पेश करे (38)
क्या ख़ुदा के लिए बेटियाँ हैं और तुम लोगों के लिए बेटे (39)
या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत की) उजरत माँगते हो कि ये लोग कर्ज़ के बोझ से दबे जाते हैं (40)
या इन लोगों के पास ग़ैब (का इल्म) है कि वह लिख लेते हैं (41)
या ये लोग कुछ दाँव चलाना चाहते हैं तो जो लोग काफ़िर हैं वह ख़ुद अपने दांव में फँसे हैं (42)
या ख़ुदा के सिवा इनका कोई (दूसरा) माबूद है जिन चीज़ों को ये लोग (ख़ुदा का) शरीक बनाते हैं वह उससे पाक और पाक़ीज़ा है (43)
और अगर ये लोग आसमान से कोई अज़ाब (अज़ाब का) टुकड़ा गिरते हुए देखें तो बोल उठेंगे ये तो दलदार बादल है (44)
तो (ऐ रसूल) तुम इनको इनकी हालत पर छोड़ दो यहाँ तक कि वह जिसमें ये बेहोश हो जाएँगे (45)
इनके सामने आ जाए जिस दिन न इनकी मक्कारी ही कुछ काम आएगी और न इनकी मदद ही की जाएगी (46)
और इसमें शक नहीं कि ज़ालिमों के लिए इसके अलावा और भी अज़ाब है मगर उनमें बहुतेरे नहीं जानते हैं (47)
और (ऐ रसूल) तुम अपने परवरदिगार के हुक्म से इन्तेज़ार में सब्र किए रहो तो तुम बिल्कुल हमारी निगेहदाष्त में हो तो जब तुम उठा करो तो अपने परवरदिगार की हम्द की तस्बीह किया करो (48)
और कुछ रात को भी और सितारों के ग़़ुरूब होने के बाद तस्बीह किया करो (49)
53 सूरए अल नज़्म (तारा)
सूरए नज़्म मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी बासठ (62) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
तारे की क़सम जब टूटा (1)
कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके (2)
और वह तो अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते (3)
ये तो बस वही है जो भेजी जाती है (4)
इनको निहायत ताक़तवर (फरीश्ते जिबरील) ने तालीम दी है (5)
जो बड़ा ज़बरदस्त है और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मुशरक़ो) किनारे पर था तो वह अपनी (असली सूरत में) सीधा खड़ा हुआ (6)
फिर करीब हो (और आगे) बढ़ा (7)
(फिर जिबरील व मोहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया (8)
बल्कि इससे भी क़रीब था (9)
ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ जो
‘वही
’
भेजी सो भेजी (10)
तो जो कुछ उन्होने देखा उनके दिल ने झूठ न जाना (11)
तो क्या वह (रसूल) जो कुछ देखता है तुम लोग उसमें झगड़ते हो (12)
और उन्होने तो उस (जिबरील) को एक बार (शबे मेराज) और देखा है (13)
सिदरतुल मुनतहा के नज़दीक (14)
उसी के पास तो रहने की बहिश्त है (15)
जब छा रहा था सिदरा पर जो छा रहा था (16)
(उस वक़्त भी) उनकी आँख न तो और तरफ़ माएल हुयी और न हद से आगे बढ़ी (17)
और उन्होने यक़ीनन अपने परवरदिगार (की क़ुदरत) की बड़ी बड़ी निशानियाँ देखीं (18)
तो भला तुम लोगों ने लात व उज़्ज़ा और तीसरे पिछले मनात को देखा (19)
(भला ये ख़ुदा हो सकते हैं) (20)
क्या तुम्हारे तो बेटे हैं और उसके लिए बेटियाँ (21)
ये तो बहुत बेइन्साफ़ी की तक़सीम है (22)
ये तो बस सिर्फ नाम ही नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिए हैं
,ख़ुदा ने तो इसकी कोई सनद नाज़िल नहीं की ये लोग तो बस अटकल और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश के पीछे चल रहे हैं हालॉकि उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ से हिदायत भी आ चुकी है (23)
क्या जिस चीज़ की इन्सान तमन्ना करे वह उसे ज़रूर मिलती है (24)
आख़ेरत और दुनिया तो ख़ास ख़ुदा ही के एख़्तेयार में हैं (25)
और आसमानों में बहुत से फरिष्ते हैं जिनकी सिफ़ारिश कुछ भी काम न आती
,मगर ख़ुदा जिसके लिए चाहे इजाज़त दे दे और पसन्द करे उसके बाद (सिफ़ारिश कर सकते हैं) (26)
जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते वह फरिश्तों के नाम रखते हैं औरतों के से नाम हालॉकि उन्हें इसकी कुछ ख़बर नहीं (27)
वह लोग तो बस गुमान (ख़्याल) के पीछे चल रहे हैं
,हालॉकि गुमान यक़ीन के बदले में कुछ भी काम नहीं आया करता
, (28)
तो जो हमारी याद से रदगिरदानी करे ओर सिर्फ दुनिया की ज़िन्दगी ही का तालिब हो तुम भी उससे मुँह फेर लो (29)
उनके इल्म की यही इन्तिहा है तुम्हारा परवरदिगार
,जो उसके रास्ते से भटक गया उसको भी ख़ूब जानता है
,और जो राहे रास्त पर है उनसे भी ख़ूब वाक़िफ है (30)
और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है
,ताकि जिन लोगों ने बुराई की हो उनको उनकी कारस्तानियों की सज़ा दे और जिन लोगों ने नेकी की है (उनकी नेकी की जज़ा दे) (31)
जो सग़ीरा गुनाहों के सिवा कबीरा गुनाहों से और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ी बख्शिश वाला है वही तुमको ख़ूब जानता है जब उसने तुमको मिटटी से पैदा किया और जब तुम अपनी माँ के पेट में बच्चे थे तो (तकब्बुर) से अपने नफ़्स की पाकीज़गी न जताया करो जो परहेज़गार है उसको वह ख़ूब जानता है (32)
भला (ऐ रसूल) तुमने उस शख़्स को भी देखा जिसने रदगिरदानी की (33)
और थोड़ा सा (ख़ुदा की राह में) दिया और फिर बन्द कर दिया (34)
क्या उसके पास इल्मे ग़ैब है कि वह देख रहा है (35)
क्या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची जो मूसा के सहीफ़ों में है (36)
और इबराहीम के (सहीफ़ों में) (37)
जिन्होने (अपना हक़) (पूरा अदा) किया इन सहीफ़ों में ये है
,कि कोई शख़्स दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा (38)
और ये कि इन्सान को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है (39)
और ये कि उनकी कोशिश अनक़रीब ही (क़यामत में) देखी जाएगी (40)
फिर उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा (41)
और ये कि (सबको आख़िर) तुम्हारे परवरदिगार ही के पास पहुँचना है (42)
और ये कि वही हँसाता और रूलाता है (43)
और ये कि वही मारता और जिलाता है (44)
और ये कि वही नर और मादा दो किस्म (के हैवान) नुत्फे से जब (रहम में) डाला जाता है (45)
पैदा करता है (46)
और ये कि उसी पर (कयामत में) दोबारा उठाना लाज़िम है (47)
और ये कि वही मालदार बनाता है और सरमाया अता करता है
, (48)
और ये कि वही शोअराए का मालिक है (49)
और ये कि उसी ने पहले (क़ौमे) आद को हलाक किया (50)
और समूद को भी ग़रज़ किसी को बाक़ी न छोड़ा (51)
और (उसके) पहले नूह की क़ौम को बेशक ये लोग बड़े ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे (52)
और उसी ने (क़ौमे लूत की) उलटी हुयी बस्तियों को दे पटका (53)
(फिर उन पर) जो छाया सो छाया (54)
तो तू (ऐ इन्सान आख़िर) अपने परवरदिगार की कौन सी नेअमत पर शक किया करेगा (55)
ये (मोहम्मद भी अगले डराने वाले पैग़म्बरों में से एक डरने वाला) पैग़म्बर है (56)
कयामत क़रीब आ गयी (57)
ख़ुदा के सिवा उसे कोई टाल नहीं सकता (58)
तो क्या तुम लोग इस बात से ताज्जुब करते हो और हँसते हो (59)
और रोते नहीं हो (60)
और तुम इस क़दर ग़ाफ़िल हो तो ख़ुदा के आगे सजदे किया करो (61)
और (उसी की) इबादत किया करो (62) सजदा
54 सूरए क़मर (चाँद)
सूरए क़मर मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी पचपन (55) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
क़यामत क़रीब आ गयी और चाँद दो टुकड़े हो गया (1)
और अगर ये कुफ़्फ़ार कोई मौजिज़ा देखते हैं
,तो मुँह फेर लेते हैं
,और कहते हैं कि ये तो बड़ा ज़बरदस्त जादू है (2)
और उन लोगों ने झुठलाया और अपनी नफ़सियानी ख़ाहिशो की पैरवी की
,और हर काम का वक़्त मुक़र्रर है (3)
और उनके पास तो वह हालात पहुँच चुके हैं जिनमें काफी तम्बीह थीं (4)
और इन्तेहा दर्जे की दानाई मगर (उनको तो) डराना कुछ फ़ायदा नहीं देता (5)
तो (ऐ रसूल) तुम भी उनसे किनाराकश रहो
,जिस दिन एक बुलाने वाला (इसराफ़ील) एक अजनबी और नागवार चीज़ की तरफ़ बुलाएगा (6)
तो (निदामत से) आँखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुयी टिड्डियाँ हैं (7)
(और) बुलाने वाले की तरफ गर्दनें बढ़ाए दौड़ते जाते होंगे
,कुफ़्फ़ार कहेंगे ये तो बड़ा सख़्त दिन है (8)
इनसे पहले नूह की क़ौम ने भी झुठलाया था
,तो उन्होने हमारे (ख़ास) बन्दे (नूह) को झुठलाया
,और कहने लगे ये तो दीवाना है (9)
और उनको झिड़कियाँ भी दी गयीं
,तो उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (बारे इलाहा मैं) इनके मुक़ाबले में कमज़ोर हूँ (10)
तो अब तू ही (इनसे) बदला ले तो हमने मूसलाधार पानी से आसमान के दरवाज़े खोल दिए (11)
और ज़मीन से चष्में जारी कर दिए
,तो एक काम के लिए जो मुक़र्रर हो चुका था (दोनों) पानी मिलकर एक हो गया (12)
और हमने एक कष्ती पर जो तख़्तों और कीलों से तैयार की गयी थी सवार किया (13)
और वह हमारी निगरानी में चल रही थी (ये) उस शख़्स (नूह) का बदला लेने के लिए जिसको लोग न मानते थे (14)
और हमने उसको एक इबरत बना कर छोड़ा तो कोई है जो इबरत हासिल करे (15)
तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (16)
और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (17)
आद (की क़ौम ने) (अपने पैग़म्बर) को झुठलाया तो (उनका) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था
, (18)
हमने उन पर बहुत सख़्त मनहूस दिन में बड़े ज़न्नाटे की आँधी चलायी (19)
जो लोगों को (अपनी जगह से) इस तरह उखाड़ फेकती थी गोया वह उखड़े हुए खजूर के तने हैं (20)
तो (उनको) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (21)
और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया
,तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (22)
(क़ौम) समूद ने डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया (23)
तो कहने लगे कि भला एक आदमी की जो हम ही में से हो उसकी पैरवीं करें ऐसा करें तो गुमराही और दीवानगी में पड़ गए (24)
क्या हम सबमें बस उसी पर वही नाज़िल हुयी है (नहीं) बल्कि ये तो बड़ा झूठा तअल्ली करने वाला है (25)
उनको अनक़रीब कल ही मालूम हो जाएगा कि कौन बड़ा झूठा तकब्बुर करने वाला है (26)
(ऐ सालेह) हम उनकी आज़माइश के लिए ऊँटनी भेजने वाले हैं तो तुम उनको देखते रहो और (थोड़ा) सब्र करो (27)
और उनको ख़बर कर दो कि उनमें पानी की बारी मुक़र्रर कर दी गयी है हर (बारी वाले को अपनी) बारी पर हाज़िर होना चाहिए (28)
तो उन लोगों ने अपने रफीक़ (क़ेदार) को बुलाया तो उसने पकड़ कर (ऊँटनी की) कूॅचे काट डालीं (29)
तो (देखो) मेरा अज़ाब और डराना कैसा था (30)
हमने उन पर एक सख़्त चिंघाड़ (का अज़ाब) भेज दिया तो वह बाड़े वालो के सूखे हुए चूर चूर भूसे की तरह हो गए (31)
और हमने क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया है तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (32)
लूत की क़ौम ने भी डराने वाले (पैग़म्बरों) को झुठलाया (33)
तो हमने उन पर कंकर भरी हवा चलाई मगर लूत के लड़के बाले को हमने उनको अपने फज़ल व करम से पिछले ही को बचा लिया (34)
हम शुक्र करने वालों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (35)
और लूत ने उनको हमारी पकड़ से भी डराया था मगर उन लोगों ने डराते ही में शक किया (36)
और उनसे उनके मेहमान (फरीश्ते) के बारे में नाजायज़ मतलब की ख़्वाहिश की तो हमने उनकी आँखें अन्धी कर दीं तो मेरे अज़ाब और डराने का मज़ा चखो (37)
और सुबह सवेरे ही उन पर अज़ाब आ गया जो किसी तरह टल ही नहीं सकता था (38)
तो मेरे अज़ाब और डराने के (पड़े) मज़े चखो (39)
और हमने तो क़ुरान को नसीहत हासिल करने के वास्ते आसान कर दिया तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (40)
और फिरऔन के पास भी डराने वाले (पैग़म्बर) आए (41)
तो उन लोगों ने हमारी कुल निशानियों को झुठलाया तो हमने उनको इस तरह सख़्त पकड़ा जिस तरह एक ज़बरदस्त साहिबे क़ुदरत पकड़ा करता है (42)
(ऐ एहले मक्का) क्या उन लोगों से भी तुम्हारे कुफ्फार बढ़ कर हैं या तुम्हारे वास्ते (पहली) किताबों में माफी (लिखी हुयी) है (43)
क्या ये लोग कहते हैं कि हम बहुत क़वी जमाअत हैं (44)
अनक़रीब ही ये जमाअत शिकस्त खाएगी और ये लोग पीठ फेर कर भाग जाएँगे (45)
बात ये है कि इनके वायदे का वक़्त क़यामत है और क़यामत बड़ी सख़्त और बड़ी तल्ख़ (चीज़) है (46)
बेशक गुनाहगार लोग गुमराही और दीवानगी में (मुब्तिला) हैं (47)
उस रोज़ ये लोग अपने अपने मुँह के बल (जहन्नुम की) आग में घसीटे जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा) अब जहन्नुम की आग का मज़ा चखो (48)
बेशक हमने हर चीज़ एक मुक़र्रर अन्दाज़ से पैदा की है (49)
और हमारा हुक्म तो बस आँख के झपकने की तरह एक बात होती है (50)
और हम तुम्हारे हम मशरबो को हलाक कर चुके हैं तो कोई है जो नसीहत हासिल करे (51)
और अगर चे ये लोग जो कुछ कर चुके हैं (इनके) आमाल नामों में (दर्ज) है (52)
(यानि) हर छोटा और बड़ा काम लिख दिया गया है (53)
बेशक परहेज़गार लोग (बहिश्त के) बाग़ों और नहरों में (54)
(यानि) पसन्दीदा मक़ाम में हर तरह की कुदरत रखने वाले बादशाह की बारगाह में (मुक़र्रिब) होंगे (55)
55 सूरए रहमान
सूरए रहमान मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें अठहातर (78) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
बड़ा मेहरबान (ख़ुदा) (1)
उसी ने क़ुरान की तालीम फरमाई (2)
उसी ने इन्सान को पैदा किया (3)
उसी ने उनको (अपना मतलब) ब्यान करना सिखाया (4)
सूरज और चाँद एक मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं (5)
और बूटियाँ बेलें
,और दरख़्त (उसी को) सजदा करते हैं (6)
और उसी ने आसमान बुलन्द किया और तराजू (इन्साफ) को क़ायम किया (7)
ताकि तुम लोग तराज़ू (से तौलने) में हद से तजाउज़ न करो (8)
और ईन्साफ के साथ ठीक तौलो और तौल कम न करो (9)
और उसी ने लोगों के नफे़ के लिए ज़मीन बनायी (10)
कि उसमें मेवे और खजूर के दरख़्त हैं जिसके ख़ोषों में ग़िलाफ़ होते हैं (11)
और अनाज जिसके साथ भुस होता है और ख़ुशबूदार फूल (12)
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों को न मानोगे (13)
उसी ने इन्सान को ठीकरे की तरह खन खनाती हुयी मिटटी से पैदा किया (14)
और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया (15)
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों से मुकरोगे (16)
वही जाड़े गर्मी के दोनों मष्रिकों का मालिक है और दोनों मग़रिबों का (भी) मालिक है (17)
तो (ऐ जिनों) और (आदमियों) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (18)
उसी ने दरिया बहाए जो बाहम मिल जाते हैं (19)
दो के दरम्यिान एक हद्दे फ़ासिल (आड़) है जिससे तजाउज़ नहीं कर सकते (20)
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (21)
इन दोनों दरियाओं से मोती और मूँगे निकलते हैं (22)
(तो जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत को न मानोगे (23)
और जहाज़ जो दरिया में पहाड़ों की तरह ऊँचे खड़े रहते हैं उसी के हैं (24)
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (25)
जो (मख़लूक) ज़मीन पर है सब फ़ना होने वाली है (26)
और सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी (27)
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (28)
और जितने लोग सारे आसमान व ज़मीन में हैं (सब) उसी से माँगते हैं वह हर रोज़ (हर वक़्त) मख़लूक के एक न एक काम में है (29)
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की कौन कौन सी नेअमत से मुकरोगे (30)
(ऐ दोनों गिरोहों) हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ मुतावज्जे होंगे (31)
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत को न मानोगे (32)
ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बग़ैर क़ूवत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते (हालॉ कि तुममें न क़ूवत है और न ही ग़लबा) (33)
तो तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (34)
(गुनाहगार जिनों और आदमियों जहन्नुम में) तुम दोनो पर आग का सब्ज़ शोला और सियाह धुआँ छोड़ दिया जाएगा तो तुम दोनों (किस तरह) रोक नहीं सकोगे (35)
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (36)
फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जाऐगा (37)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (38)
तो उस दिन न तो किसी इन्सान से उसके गुनाह के बारे में पूछा जाएगा न किसी जिन से (39)
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे (40)
गुनाहगार लोग तो अपने चेहरों ही से पहचान लिए जाएँगे तो पेशानी के पटटे और पाँव पकड़े (जहन्नुम में डाल दिये जाएँगे) (41)
आख़िर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (42)
(फिर उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे गुनाहगार लोग झुठलाया करते थे (43)
ये लोग दोज़ख़ और हद दरजा खौलते हुए पानी के दरमियान (बेक़रार दौड़ते) चक्कर लगाते फिरेंगे (44)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को न मानोगे (45)
और जो शख़्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता रहा उसके लिए दो दो बाग़ हैं (46)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे (47)
दोनों बाग़ (दरख़्तों की) टहनियों से हरे भरे (मेवों से लदे) हुए (48)
फिर दोनों अपने सरपरस्त की किस किस नेअमतों को झुठलाओगे (49)
इन दोनों में दो चष्में जारी हांगे (50)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (51)
इन दोनों बाग़ों में सब मेवे दो दो किस्म के होंगे (52)
तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (53)
यह लोग उन फ़र्षो पर जिनके असतर अतलस के होंगे तकिये लगाकर बैठे होंगे तो दोनों बाग़ों के मेवे (इस क़दर) क़रीब होंगे (कि अगर चाहे तो लगे हुए खालें) (54)
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे (55)
इसमें (पाक दामन ग़ैर की तरफ आँख उठा कर न देखने वाली औरतें होंगी जिनको उन से पहले न किसी इन्सान ने हाथ लगाया होगा) और जिन ने (56)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (57)
(ऐसी हसीन) गोया वह (मुजस्सिम) याक़ूत व मूँगे हैं (58)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से मुकरोगे (59)
भला नेकी का बदला नेकी के सिवा कुछ और भी है (60)
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को झुठलाओगे (61)
उन दोनों बाग़ों के अलावा दो बाग़ और हैं (62)
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे (63)
दोनों निहायत गहरे सब्ज़ व शादाब (64)
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की किन किन नेअमतों को न मानोगे (65)
उन दोनों बाग़ों में दो चष्में जोश मारते होंगे (66)
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे (67)
उन दोनों में मेवें हैं खुरमें और अनार (68)
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (69)
उन बाग़ों में ख़ुश ख़ुल्क और ख़ूबसूरत औरतें होंगी (70)
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे (71)
वह हूरें हैं जो ख़ेमों में छुपी बैठी हैं (72)
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे (73)
उनसे पहले उनको किसी इन्सान ने उनको छुआ तक नहीं और न जिन ने (74)
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से मुकरोगे (75)
ये लोग सब्ज़ कालीनों और नफीस व हसीन मसनदों पर तकिए लगाए (बैठे) होंगे (76)
फिर तुम अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से इन्कार करोगे (77)
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार जो साहिबे जलाल व करामत है उसी का नाम बड़ा बाबरकत है (78)
56 सूरए वाके़आ
सूरए वाके़आ मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी 96 आयते हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
जब क़यामत बरपा होगी (1)
और उसके वाक़िया होने में ज़रा झूट नहीं (2)
(उस वक़्त लोगों में फ़र्क ज़ाहिर होगा) कि किसी को पस्त करेगी किसी को बुलन्द (3)
जब ज़मीन बड़े ज़ोरों में हिलने लगेगी (4)
और पहाड़ (टकरा कर) बिल्कुल चूर चूर हो जाएँगे (5)
फिर ज़र्रे बन कर उड़ने लगेंगे (6)
और तुम लोग तीन किस्म हो जाओगे (7)
तो दाहिने हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (वाह) दाहिने हाथ वाले क्या (चैन में) हैं (8)
और बाएं हाथ (में आमाल नामा लेने) वाले (अफ़सोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (9)
और जो आगे बढ़ जाने वाले हैं (वाह क्या कहना) वह आगे ही बढ़ने वाले थे (10)
यही लोग (ख़ुदा के) मुक़र्रिब हैं (11)
आराम व आसाइश के बाग़ों में बहुत से (12)
तो अगले लोगों में से होंगे (13)
और कुछ थोडे से पिछले लोगों में से मोती (14)
और याक़ूत से जड़े हुए सोने के तारों से बने हुए (15)
तख़्ते पर एक दूसरे के सामने तकिए लगाए (बैठे) होंगे (16)
नौजवान लड़के जो (बहिश्त में) हमेशा (लड़के ही बने) रहेंगे (17)
(शरबत वग़ैरह के) सागर और चमकदार टांटीदार कंटर और शफ़्फ़ाफ़ शराब के जाम लिए हुए उनके पास चक्कर लगाते होंगे (18)
जिसके (पीने) से न तो उनको (ख़ुमार से) दर्दसर होगा और न वह बदहवास मदहोश होंगे (19)
और जिस क़िस्म के मेवे पसन्द करें (20)
और जिस क़िस्म के परिन्दे का गोष्त उनका जी चाहे (सब मौजूद है) (21)
और बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें (22)
जैसे एहतेयात से रखे हुए मोती (23)
ये बदला है उनके (नेक) आमाल का (24)
वहाँ न तो बेहूदा बात सुनेंगे और न गुनाह की बात (25)
(फहश) बस उनका कलाम सलाम ही सलाम होगा (26)
और दाहिने हाथ वाले (वाह) दाहिने हाथ वालों का क्या कहना है (27)
बे काँटे की बेरो (28)
और लदे गुथे हुए केलों (29)
और लम्बी लम्बी छाँव (30)
और पानी के झरनो में (31)
और अनारों मेवो में हांगे (32)
जो न कभी खत्म होंगे और न उनकी कोई रोक टोक (33)
और ऊँचे ऊँचे (नरम गद्दो के) फ़र्षों में (मज़े करते) होंगे (34)
(उनको) वह हूरें मिलेंगी जिसको हमने नित नया पैदा किया है (35)
तो हमने उन्हें कु़ँवारियाँ बनाया (36)
प्यारी प्यारी हमजोलियाँ बनाया (37)
(ये सब सामान) दाहिने हाथ (में नामए आमाल लेने) वालों के वास्ते है (38)
(इनमें) बहुत से तो अगले लोगों में से (39)
और बहुत से पिछले लोगों में से (40)
और बाएं हाथ (में नामए आमाल लेने) वाले (अफसोस) बाएं हाथ वाले क्या (मुसीबत में) हैं (41)
(दोज़ख़ की) लौ और खौलते हुए पानी (42)
और काले सियाह धुएँ के साये में होंगे (43)
जो न ठन्डा और न ख़ुश आइन्द (44)
ये लोग इससे पहले (दुनिया में) ख़ूब ऐश उड़ा चुके थे (45)
और बड़े गुनाह (शिर्क) पर अड़े रहते थे (46)
और कहा करते थे कि भला जब हम मर जाएँगे और (सड़ गल कर) मिटटी और हडिडयाँ (ही हडिडयाँ) रह जाएँगे (47)
तो क्या हमें या हमारे अगले बाप दादाओं को फिर उठना है (48)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगले और पिछले (49)
सब के सब रोजे़ मुअय्यन की मियाद पर ज़रूर इकट्ठे किए जाएँगे (50)
फिर तुमको बेशक ऐ गुमराहों झुठलाने वालों (51)
यक़ीनन (जहन्नुम में) थोहड़ के दरख़्तों में से खाना होगा (52)
तो तुम लोगों को उसी से (अपना) पेट भरना होगा (53)
फिर उसके ऊपर खौलता हुआ पानी पीना होगा (54)
और पियोगे भी तो प्यासे ऊँट का सा (डग डगा के) पीना (55)
क़यामत के दिन यही उनकी मेहमानी होगी (56)
तुम लोगों को (पहली बार भी) हम ही ने पैदा किया है (57)
फिर तुम लोग (दोबार की) क्यों नहीं तस्दीक़ करते (58)
तो जिस नुत्फे़ को तुम (औरतों के रहम में डालते हो) क्या तुमने देख भाल लिया है क्या तुम उससे आदमी बनाते हो या हम बनाते हैं (59)
हमने तुम लोगों में मौत को मुक़र्रर कर दिया है और हम उससे आजिज़ नहीं हैं (60)
कि तुम्हारे ऐसे और लोग बदल डालें और तुम लोगों को इस (सूरत) में पैदा करें जिसे तुम मुत्तलक़ नहीं जानते (61)
और तुमने पैहली पैदाइश तो समझ ही ली है (कि हमने की) फिर तुम ग़ौर क्यों नहीं करते (62)
भला देखो तो कि जो कुछ तुम लोग बोते हो क्या (63)
तुम लोग उसे उगाते हो या हम उगाते हैं अगर हम चाहते (64)
तो उसे चूर चूर कर देते तो तुम बातें ही बनाते रह जाते (65)
कि (हाए) हम तो (मुफ्त) तावान में फॅसे (नहीं) (66)
हम तो बदनसीब हैं (67)
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जो (दिन रात) पीते हो (68)
क्या उसको बादल से तुमने बरसाया है या हम बरसाते हैं (69)
अगर हम चाहें तो उसे खारी बना दें तो तुम लोग शक्र क्यों नहीं करते (70)
तो क्या तुमने आग पर भी ग़ौर किया जिसे तुम लोग लकड़ी से निकालते हो (71)
क्या उसके दरख़्त को तुमने पैदा किया या हम पैदा करते हैं (72)
हमने आग को (जहन्नुम की) याद देहानी और मुसाफिरों के नफे के (वास्ते पैदा किया) (73)
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो (74)
तो मैं तारों के मनाज़िल की क़सम खाता हूँ (75)
और अगर तुम समझो तो ये बड़ी क़सम है (76)
कि बेशक ये बड़े रूतबे का क़ुरान है (77)
जो किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है (78)
इसको बस वही लोग छूते हैं जो पाक हैं (79)
सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से (मोहम्मद पर) नाज़िल हुआ है (80)
तो क्या तुम लोग इस कलाम से इन्कार रखते हो (81)
और तुमने अपनी रोज़ी ये करार दे ली है कि (उसको) झुठलाते हो (82)
तो क्या जब जान गले तक पहुँचती है (83)
और तुम उस वक़्त (की हालत) पड़े देखा करते हो (84)
और हम इस (मरने वाले) से तुमसे भी ज़्यादा नज़दीक होते हैं लेकिन तुमको दिखाई नहीं देता (85)
तो अगर तुम किसी के दबाव में नहीं हो (86)
तो अगर (अपने दावे में) तुम सच्चे हो तो रूह को फेर क्यों नहीं देते (87)
पस अगर वह (मरने वाला ख़ुदा के) मुक़र्रेबीन से है (88)
तो (उस के लिए) आराम व आसाइश है और ख़ुष्बूदार फूल और नेअमत के बाग़ (89)
और अगर वह दाहिने हाथ वालों में से है (90)
तो (उससे कहा जाएगा कि) तुम पर दाहिने हाथ वालों की तरफ़ से सलाम हो (91)
और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है (92)
तो (उसकी) मेहमानी खौलता हुआ पानी है (93)
और जहन्नुम में दाखिल कर देना (94)
बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है (95)
तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो (96)
57 सूरए हदीद (लोहा)
सूरए हदीद मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी उन्तीस (29) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
जो जो चीज़ सारे आसमान व ज़मीन मे है सब ख़ुदा की तसबीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है (1)
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है वही जिलाता है वही मारता है और वही हर चीज़ पर कादिर है (2)
वही सबसे पहले और सबसे आख़िर है और (अपनी क़ूवतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) पोशीदा है और वही सब चीज़ों को जानता (3)
वह वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छहः दिन में पैदा किए फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाज़िल होती है और जो उसकी तरफ चढ़ती है (सब) उसको मालूम है और तुम (चाहे) जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है (4)
सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और ख़ुदा ही की तरफ कुल उमूर की रूजू होती है (5)
वही रात को (घटा कर) दिन में दाखिल करता है तो दिन बढ़ जाता है और दिन (घटाकर) रात में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से ख़ूब वाक़िफ है (6)
(लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और जिस (माल) में उसने तुमको अपना नायब बनाया है उसमें से से कुछ (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते रहें उनके लिए बड़ा अज्र है (7)
और तुम्हें क्या हो गया है कि ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते हो हालॉकि रसूल तुम्हें बुला रहें हैं कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ और अगर तुमको बावर हो तो (यक़ीन करो कि) ख़ुदा तुम से (इसका) इक़रार ले चुका (8)
वही तो है जो अपने बन्दे (मोहम्मद) पर वाज़ेए व रौशन आयतें नाज़िल करता है ताकि तुम लोगों को (कुफ्ऱ की) तारिक़ीयों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और बेशक ख़ुदा तुम पर बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है (9)
और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) ख़ुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालॉकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्स ने फतेह (मक्का) से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूँ तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वायदा तो सबसे किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाक़िफ़ है (10)
कौन ऐसा है जो ख़ुदा को ख़ालिस नियत से कजेऱ् हसना दे तो ख़ुदा उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे और उसके लिए बहुत मुअज़्ज़िज़ सिला (जन्नत) तो है ही (11)
जिस दिन तुम मोमिन मर्द और मोमिन औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ चल रहा होगा तो उनसे कहा (जाएगा) तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है (12)
उस दिन मुनाफ़िक मर्द और मुनाफ़िक औरतें ईमानदारों से कहेंगे एक नज़र (शफ़क़्क़त) हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाश करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत है और बाहर की तरफ अज़ाब तो मुनाफ़िक़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे (13)
(क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे तो मोमिनीन कहेंगे थे तो ज़रूर मगर तुम ने तो ख़ुद अपने आपको बला में डाला और (हमारे हक़ में गर्दिषों के) मुन्तज़िर हैं और (दीन में) शक किया किए और तुम्हें (तुम्हारी) तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहाँ तक कि ख़ुदा का हुक्म आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुमको फ़रेब दिया (14)
तो आज न तो तुमसे कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफ़िरों से तुम सबका ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है (15)
क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक़्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरान के लिए जो (ख़ुदा की तरफ से) नाज़िल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत
,इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख़्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं (16)
जान रखो कि ख़ुदा ही ज़मीन को उसके मरने (उफ़तादा होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) करता है हमने तुमसे अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ खोल खोल कर बयान कर दी हैं ताकि तुम समझो (17)
बेशक ख़ैरात देने वाले मर्द और ख़ैरात देने वाली औरतें और (जो लोग) ख़ुदा की नीयत से ख़ालिस कर्ज़ देते हैं उनको दोगुना (अज्र) दिया जाएगा और उनका बहुत मुअज़िज़ सिला (जन्नत) तो है ही (18)
और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ों और शहीदों के दरजे में होंगे उनके लिए उन्ही (सिद्दीकों और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा और जिन लोगों ने कुफ्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया वही लोग जहन्नुमी हैं (19)
जान रखो कि दुनियावी ज़िन्दगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत (व आसाइश) और आपस में एक दूसरे पर फ़ख्ऱ करना और माल और औलाद की एक दूसरे से ज़्यादा ख़्वाहिश है (दुनयावी ज़िन्दगी की मिसाल तो) बारिश की सी मिसाल है जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको ख़ुश कर देती थी फिर सूख जाती है तो तू उसको देखता है कि ज़र्द हो जाती है फिर चूर चूर हो जाती है और आख़िरत में (कुफ्फार के लिए) सख़्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) ख़ुदा की तरफ से बख्शिश और ख़ुशनूदी और दुनयावी ज़िन्दगी तो बस फ़रेब का साज़ो सामान है (20)
तुम अपने परवरदिगार के (सबब) बख्शिश की और बहिश्त की तरफ लपक के आगे बढ़ जाओ जिसका अर्ज़ आसमान और ज़मीन के अर्ज़ के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो ख़ुदा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फज़ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फज़ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है (21)
जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर नाज़िल होती हैं (वह सब) क़ब्ल इसके कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुयी) हैं बेशक ये ख़ुदा पर आसान है (22)
ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज़ (नेअमत) ख़ुदा तुमको दे तो उस पर न इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले शेख़ी बाज़ को दोस्त नहीं रखता (23)
जो ख़ुद भी बुख़्ल करते हैं और दूसरे लोगों को भी बुख़्ल करना सिखाते हैं और जो शख़्स (इन बातों से) रूगरदानी करे तो ख़ुदा भी बेपरवा सज़ावारे हम्दोसना है (24)
हमने यक़ीनन अपने पैग़म्बरों को वाज़े व रौशन मोजिज़े देकर भेजा और उनके साथ किताब और (इन्साफ़ की) तराज़ू नाज़िल किया ताकि लोग इन्साफ़ पर क़ायम रहे और हम ही ने लोहे को नाज़िल किया जिसके ज़रिए से सख़्त लड़ाई और लोगों के बहुत से नफे (की बातें) हैं और ताकि ख़ुदा देख ले कि बेदेखे भाले ख़ुदा और उसके रसूलों की कौन मदद करता है बेशक ख़ुदा बहुत ज़बरदस्त ग़ालिब है (25)
और बेशक हम ही ने नूह और इबराहीम को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा और उनही दोनों की औलाद में नबूवत और किताब मुक़र्रर की तो उनमें के बाज़ हिदायत याफ़्ता हैं और उन के बहुतेरे बदकार हैं (26)
फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उनके दिलों में शफ़क़्क़त और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज़्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक़्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से ईमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही हैं (27)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और उसके रसूल (मोहम्मद) पर ईमान लाओ तो ख़ुदा तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से अज्र अता फरमाएगा और तुमको ऐसा नूर इनायत फ़रमाएगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे और तुमको बख़्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (28)
(ये इसलिए कहा जाता है) ताकि एहले किताब ये न समझें कि ये मोमिनीन ख़ुदा के फज़ल (व क़रम) पर कुछ भी कुदरत नहीं रखते और ये तो यक़ीनी बात है कि फज़ल ख़ुदा ही के कब्ज़े में है वह जिसको चाहे अता फरमाए और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व क़रम) का मालिक है (29)
58 सूरए मुजादेला
सूरए मुजादेला मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी (22) बाईस आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
ऐ रसूल जो औरत (ख़ुला) तुमसे अपने शौहर (उस) के बारे में तुमसे झगड़ती और ख़ुदा से गिले शिकवे करती है ख़ुदा ने उसकी बात सुन ली और ख़ुदा तुम दोनों की ग़ुफ्तगू सुन रहा है बेशक ख़ुदा बड़ा सुनने वाला देखने वाला है (1)
तुम में से जो लोग अपनी बीवियों के साथ ज़हार करते हैं अपनी बीवी को माँ कहते हैं वह कुछ उनकी माएँ नहीं (हो जातीं) उनकी माएँ तो बस वही हैं जो उनको जनती हैं और वह बेशक एक नामाक़ूल और झूठी बात कहते हैं और ख़ुदा बेशक माफ करने वाला और बड़ा बख़्शने वाला है (2)
और जो लोग अपनी बीवियों से ज़हार कर बैठे फिर अपनी बात वापस लें तो दोनों के हमबिस्तर होने से पहले (कफ़्फ़ारे में) एक ग़ुलाम का आज़ाद करना (ज़रूरी) है उसकी तुमको नसीहत की जाती है और तुम जो कुछ भी करते हो (ख़ुदा) उससे आगाह है (3)
फिर जिसको ग़ुलाम न मिले तो दोनों की मुक़ारबत के क़ब्ल दो महीने के पै दर पै रोज़े रखें और जिसको इसकी भी क़ुदरत न हो साठ मोहताजों को खाना खिलाना फर्ज़ है ये (हुक़्म इसलिए है) ताकि तुम ख़ुदा और उसके रसूल की (पैरवी) तसदीक़ करो और ये ख़ुदा की मुक़र्रर हदें हैं और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है (4)
बेशक जो लोग ख़ुदा की और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त करते हैं वह (उसी तरह) ज़लील किए जाएँगे जिस तरह उनके पहले लोग किए जा चुके हैं और हम तो अपनी साफ़ और सरीही आयते नाज़िल कर चुके और काफिरों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है (5)
जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबारा उठाएगा तो उनके आमाल से उनको आगाह कर देगा ये लोग (अगरचे) उनको भूल गये हैं मगर ख़ुदा ने उनको याद रखा है और ख़ुदा तो हर चीज़ का गवाह है (6)
क्या तुमको मालूम नहीं कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा जानता है जब तीन (आदमियों) का ख़ुफिया मशवेरा होता है तो वह (ख़ुद) उनका ज़रूर चौथा है और जब पाँच का मशवेरा होता है तो वह उनका छठा है और उससे कम हो या ज़्यादा और चाहे जहाँ कहीं हो वह उनके साथ ज़रूर होता है फिर जो कुछ वह (दुनिया में) करते रहे क़यामत के दिन उनको उससे आगाह कर देगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है (7)
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनको सरगोशियाँ करने से मना किया गया ग़रज़ जिस काम की उनको मुमानिअत की गयी थी उसी को फिर करते हैं और (लुत्फ़ तो ये है कि) गुनाह और (बेजा) ज़्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशियाँ करते हैं और जब तुम्हारे पास आते हैं तो जिन लफ़्ज़ों से ख़ुदा ने भी तुम को सलाम नहीं किया उन लफ़्ज़ों से सलाम करते हैं और अपने जी में कहते हैं कि (अगर ये वाक़ई पैग़म्बर हैं तो) जो कुछ हम कहते हैं ख़ुदा हमें उसकी सज़ा क्यों नहीं देता (ऐ रसूल) उनको दोज़ख़ ही (की सज़ा) काफी है जिसमें ये दाख़िल होंगे तो वह (क्या) बुरी जगह है (8)
ऐ ईमानदारों जब तुम आपस में सरगोशी करो तो गुनाह और ज़्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशी न करो बल्कि नेकीकारी और परहेज़गारी की सरगोशी करो और ख़ुदा से डरते रहो जिसके सामने (एक दिन) जमा किए जाओगे (9)
(बरी बातों की) सरगोशी तो बस एक शैतानी काम है (और इसलिए करते हैं) ताकि ईमानदारों को उससे रंज पहुँचे हालॉकि ख़ुदा की तरफ से आज़ादी दिए बग़ैर सरगोशी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती और मोमिनीन को तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए (10)
ऐ ईमानदारों जब तुमसे कहा जाए कि मजलिस में जगह कुशादा करो वह तो कुशादा कर दिया करो ख़ुदा तुमको कुशादगी अता करेगा और जब तुमसे कहा जाए कि उठ खड़े हो तो उठ खड़े हुआ करो जो लोग तुमसे ईमानदार हैं और जिनको इल्म अता हुआ है ख़ुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा और ख़ुदा तुम्हारे सब कामों से बेख़बर है (11)
ऐ ईमानदारों जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो यही तुम्हारे वास्ते बेहतर और पाकीज़ा बात है पस अगर तुमको इसका मुक़दूर न हो तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (12)
(मुसलमानों) क्या तुम इस बात से डर गए कि (रसूल के) कान में बात कहने से पहले ख़ैरात कर लो तो जब तुम लोग (इतना सा काम) न कर सके और ख़ुदा ने तुम्हें माफ़ कर दिया तो पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा उसके रसूल की इताअत करो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है (13)
क्या तुमने उन लोगों की हालत पर ग़ौर नहीं किया जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर ख़ुदा ने ग़ज़ब ढाया है तो अब वह न तुम मे हैं और न उनमें ये लोग जानबूझ कर झूठी बातो पर क़समें खाते हैं और वह जानते हैं (14)
ख़ुदा ने उनके लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है इसमें शक नहीं कि ये लोग जो कुछ करते हैं बहुत ही बुरा है (15)
उन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोक दिया तो उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है (16)
ख़ुदा सामने हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएँगे और न उनकी औलाद ही काम आएगी यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे (17)
जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबार उठा खड़ा करेगा तो ये लोग जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं उसी तरह उसके सामने भी क़समें खाएँगे और ख़्याल करते हैं कि वह राहे सवाब पर हैं आगाह रहो ये लोग यक़ीनन झूठे हैं (18)
शैतान ने इन पर क़ाबू पा लिया है और ख़ुदा की याद उनसे भुला दी है ये लोग शैतान के गिरोह है सुन रखो कि शैतान का गिरोह घाटा उठाने वाला है (19)
जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से मुख़ालेफ़त करते हैं वह सब ज़लील लोगों में हैं (20)
ख़ुदा ने हुक़्म नातिक दे दिया है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रूर ग़ालिब रहेंगे बेशक ख़ुदा बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है (21)
जो लोग ख़ुदा और रोज़े आखेरत पर ईमान रखते हैं तुम उनको ख़ुदा और उसके रसूल के दुष्मनों से दोस्ती करते हुए न देखोगे अगरचे वह उनके बाप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न हों) यही वह लोग हैं जिनके दिलों में ख़ुदा ने ईमान को साबित कर दिया है और ख़ास अपने नूर से उनकी ताईद की है और उनको (बहिश्त में) उन (हरे भरे) बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरे जारी है (और वह) हमेश उसमें रहेंगे ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से ख़ुश यही ख़ुदा का गिरोह है सुन रखो कि ख़ुदा के गिरोग के लोग दिली मुरादें पाएँगे (22)
59 सूरए हशर्
सूरए हशर् मक्का में नाज़िल हुआ
,और उसकी चौबीस (24) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा की तस्बीह करती हैं और वही ग़ालिब हिकमत वाला है (1)
वही तो है जिसने कुफ़्फ़ार एहले किताब (बनी नुजै़र) को पहले हशर् (ज़िलाए वतन) में उनके घरों से निकाल बाहर किया (मुसलमानों) तुमको तो ये वहम भी न था कि वह निकल जाएँगे और वह लोग ये समझे हुये थे कि उनके क़िले उनको ख़ुदा (के अज़ाब) से बचा लेंगे मगर जहाँ से उनको ख़्याल भी न था ख़ुदा ने उनको आ लिया और उनके दिलों मे (मुसलमानों) को रौब डाल दिया कि वह लोग ख़ुद अपने हाथों से और मोमिनीन के हाथों से अपने घरों को उजाड़ने लगे तो ऐ आँख वालों इबरत हासिल करो (2)
और ख़ुदा ने उनकी किसमत में ज़िला वतनी न लिखा होता तो उन पर दुनिया में भी (दूसरी तरह) अज़ाब करता और आख़ेरत में तो उन पर जहन्नुम का अज़ाब है ही (3)
ये इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त की और जिसने ख़ुदा की मुख़ालेफ़त की तो (याद रहे कि) ख़ुदा बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है (4)
(मोमिनों) खजूर का दरख़्त जो तुमने काट डाला या जूँ का तँू से उनकी जड़ों पर खड़ा रहने दिया तो ख़ुदा ही के हुक़्म से और मतलब ये था कि वह नाफरमानों को रूसवा करे (5)
(तो) जो माल ख़ुदा ने अपने रसूल को उन लोगों से बे लड़े दिलवा दिया उसमें तुम्हार हक़ नहीं क्योंकि तुमने उसके लिए कुछ दौड़ धूप तो की ही नहीं
,न घोड़ों से न ऊँटों से
,मगर ख़ुदा अपने पैग़म्बरों को जिस पर चाहता है ग़लबा अता फरमाता है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (6)
तो जो माल ख़ुदा ने अपने रसूल को देहात वालों से बे लड़े दिलवाया है वह ख़ास ख़ुदा और उसके रसूल और (रसूल के) क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों और परदेसियों का है ताकि जो लोग तुममें से दौलतमन्द हैं हिर फिर कर दौलत उन्हीं में न रहे
,हाँ जो तुमको रसूल दें दें वह ले लिया करो और जिससे मना करें उससे बाज़ रहो और ख़ुदा से डरते रहो बेशक ख़ुदा सख़्त अज़ाब देने वाला है (7)
(इस माल में) उन मुफलिस मुहाजिरों का हिस्सा भी है जो अपने घरों से और मालों से निकाले (और अलग किए) गए (और) ख़ुदा के फ़ज़ल व ख़ुशनूदी के तलबगार हैं और ख़ुदा की और उसके रसूल की मदद करते हैं यही लोग सच्चे ईमानदार हैं और (उनका भी हिस्सा है) (8)
जो लोग मोहाजेरीन से पहले (हिजरत के) घर (मदीना) में मुक़ीम हैं और ईमान में (मुसतक़िल) रहे और जो लोग हिजरत करके उनके पास आए उनसे मोहब्बत करते हैं और जो कुछ उनको मिला उसके लिए अपने दिलों में कुछ ग़रज़ नहीं पाते और अगरचे अपने ऊपर तंगी ही क्यों न हो दूसरों को अपने नफ़्स पर तरजीह देते हैं और जो शख़्स अपने नफ्स की हिर्स से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे (9)
और उनका भी हिस्सा है और जो लोग उन (मोहाजेरीन) के बाद आए (और) दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हमारी और उन लोगों की जो हमसे पहले ईमान ला चुके मग़फे़रत कर और मोमिनों की तरफ से हमारे दिलों में किसी तरह का कीना न आने दे परवरदिगार बेशक तू बड़ा शफीक़ निहायत रहम वाला है (10)
क्या तुमने उन मुनाफ़िकों की हालत पर नज़र नहीं की जो अपने काफ़िर भाइयों एहले किताब से कहा करते हैं कि अगर कहीं तुम (घरों से) निकाले गए तो यक़ीन जानों कि हम भी तुम्हारे साथ (ज़रूर) निकल खड़े होंगे और तुम्हारे बारे में कभी किसी की इताअत न करेगे और अगर तुमसे लड़ाई होगी तो ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे
,मगर ख़ुदा बयान किए देता है कि ये लोग यक़ीनन झूठे हैं (11)
अगर कुफ़्फ़ार निकाले भी जाएँ तो ये मुनाफे़क़ीन उनके साथ न निकलेंगे और अगर उनसे लड़ाई हुयी तो उनकी मदद भी न करेंगे और यक़ीनन करेंगे भी तो पीठ फेर कर भाग जाएँगे (12)
फिर उनको कहीं से कुमक भी न मिलेगी (मोमिनों) तुम्हारी हैबत उनके दिलों में ख़ुदा से भी बढ़कर है
,ये इस वजह से कि ये लोग समझ नहीं रखते (13)
ये सब के सब मिलकर भी तुमसे नहीं लड़ सकते
,मगर हर तरफ से महफूज़ बस्तियों में या (शहर पनाह की) दीवारों की आड़ में इनकी आपस में तो बड़ी धाक है कि तुम ख़्याल करोगे कि सब के सब (एक जान) हैं मगर उनके दिल एक दूसरे से फटे हुए हैं ये इस वजह से कि ये लोग बेअक़्ल हैं (14)
उनका हाल उन लोगों का सा है जो उनसे कुछ ही पेशतर अपने कामों की सज़ा का मज़ा चख चुके हैं और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (15)
(मुनाफ़िकों) की मिसाल शैतान की सी है कि इन्सान से कहता रहा कि काफ़िर हो जाओ
,फिर जब वह काफ़िर हो गया तो कहने लगा मैं तुमसे बेज़ार हूँ मैं सारे जहाँ के परवरदिगार से डरता हूँ (16)
तो दोनों का नतीजा ये हुआ कि दोनों दोज़ख़ में (डाले) जाएँगे और उसमें हमेशा रहेंगे और यही तमाम ज़ालिमों की सज़ा है (17)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो
,और हर शख़्स को ग़ौर करना चाहिए कि कल क़यामत के वास्ते उसने पहले से क्या भेजा है और ख़ुदा ही से डरते रहो बेशक जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है (18)
और उन लोगों के जैसे न हो जाओ जो ख़ुदा को भुला बैठे तो ख़ुदा ने उन्हें ऐसा कर दिया कि वह अपने आपको भूल गए यही लोग तो बद किरदार हैं (19)
जहन्नुमी और जन्नती किसी तरह बराबर नहीं हो सकते जन्नती लोग ही तो कामयाबी हासिल करने वाले हैं (20)
अगर हम इस क़ुरान को किसी पहाड़ पर (भी) नाज़िल करते तो तुम उसको देखते कि ख़ुदा के डर से झुका और फटा जाता है ये मिसालें हम लोगों (के समझाने) के लिए बयान करते हैं ताकि वह ग़ौर करें (21)
वही ख़ुदा है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं
,पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला वही बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है (22)
वही वह ख़ुदा है जिसके सिवा कोई क़ाबिले इबादत नहीं (हक़ीक़ी) बादशाह
,पाक ज़ात (हर ऐब से) बरी अमन देने वाला निगेहबान
,ग़ालिब ज़बरदस्त बड़ाई वाला ये लोग जिसको (उसका) शरीक ठहराते हैं (23)
उससे पाक है वही ख़ुदा (तमाम चीज़ों का ख़ालिक) मुजिद सूरतों का बनाने वाला उसी के अच्छे अच्छे नाम हैं जो चीज़े सारे आसमान व ज़मीन में हैं सब उसी की तसबीह करती हैं
,और वही ग़ालिब हिकमत वाला है (24)
60 सूरए मुम्तहेना
ये सूरा मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी तेरह (13) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा रहम वाला है
ऐ ईमानदारों अगर तुम मेरी राह में जेहाद करने और मेरी ख़ुशनूदी की तमन्ना में (घर से) निकलते हो तो मेरे और अपने दुशमनों को दोस्त न बनाओ तुम उनके पास दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो और जो दीन हक़ तुम्हारे पास आया है उससे वह लोग इनकार करते हैं वह लोग रसूल को और तुमको इस बात पर (घर से) निकालते हैं कि तुम अपने परवरदिगार ख़ुदा पर ईमान ले आए हो (और) तुम हो कि उनके पास छुप छुप के दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो हालॉकि तुम कुछ भी छुपा कर या बिल एलान करते हो मैं उससे ख़ूब वाक़िफ़ हूँ और तुममे से जो शख़्स ऐसा करे तो वह सीधी राह से यक़ीनन भटक गया (1)
अगर ये लोग तुम पर क़ाबू पा जाएँ तो तुम्हारे दुश्मन हो जाएँ और ईज़ा के लिए तुम्हारी तरफ अपने हाथ भी बढ़ाएँगे और अपनी ज़बाने भी और चाहते हैं कि काश तुम भी काफिर हो जाओ (2)
क़यामत के दिन न तुम्हारे रिष्ते नाते ही कुछ काम आएँगे न तुम्हारी औलाद (उस दिन) तो वही फ़ैसला कर देगा और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है (3)
(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो इबराहीम और उनके साथियों (के क़ौल व फेल का अच्छा नमूना मौजूद है) कि जब उन्होने अपनी क़ौम से कहा कि हम तुमसे और उन (बुतों) से जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा पूजते हो बेज़ार हैं हम तो तुम्हारे (दीन के) मुनकिर हैं और जब तक तुम यकता ख़ुदा पर ईमान न लाओ हमारे तुम्हारे दरमियान खुल्लम खुल्ला अदावत व दुशमनी क़ायम हो गयी मगर (हाँ) इबराहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप से ये (अलबत्ता) कहा कि मैं आपके लिए मग़फ़िरत की दुआ ज़रूर करूँगा और ख़ुदा के सामने तो मैं आपके वास्ते कुछ एख़्तेयार नहीं रखता ऐ हमारे पालने वाले (ख़ुदा) हमने तुझी पर भरोसा कर लिया है और तेरी ही तरफ हम रूजू करते हैं (4)
और तेरी तरफ हमें लौट कर जाना है ऐ हमारे पालने वाले तू हम लोगों को काफ़िरों की आज़माइश (का ज़रिया) न क़रार दे और परवरदिगार तू हमें बख़्श दे बेशक तू ग़ालिब (और) हिकमत वाला है (5)
(मुसलमानों) उन लोगों के (अफ़आल) का तुम्हारे वास्ते जो ख़ुदा और रोज़े आख़्ारत की उम्मीद रखता हो अच्छा नमूना है और जो (इससे) मुँह मोड़े तो ख़ुदा भी यक़ीनन बेपरवा (और) सज़ावारे हम्द है (6)
करीब है कि ख़ुदा तुम्हारे और उनमें से तुम्हारे दुष्मनों के दरमियान दोस्ती पैदा कर दे और ख़ुदा तो क़ादिर है और ख़ुदा बड़ा बख्षने वाला मेहरबान है (7)
जो लोग तुमसे तुम्हारे दीन के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से ख़ुदा तुम्हें मना नहीं करता बेशक ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है (8)
ख़ुदा तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे दीन के बारे में लड़ाई की और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया
,और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग ज़ालिम हैं (9)
ऐ ईमानदारों जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें वतन छोड़ कर आएँ तो तुम उनको आज़मा लो
,ख़ुदा तो उनके ईमान से वाकिफ़ है ही
,पस अगर तुम भी उनको ईमानदार समझो तो उन्ही काफ़िरों के पास वापस न फेरो न ये औरतें उनके लिए हलाल हैं और न वह कुफ़्फ़ार उन औरतों के लिए हलाल हैं और उन कुफ्फार ने जो कुछ (उन औरतों के मेहर में) ख़र्च किया हो उनको दे दो
,और जब उनका महर उन्हें दे दिया करो तो इसका तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि तुम उससे निकाह कर लो और काफिर औरतों की आबरू (जो तुम्हारी बीवियाँ हों) अपने कब्ज़े में न रखो (छोड़ दो कि कुफ़्फ़ार से जा मिलें) और तुमने जो कुछ (उन पर) ख़र्च किया हो (कुफ़्फ़ार से) लो
,और उन्होने भी जो कुछ ख़र्च किया हो तुम से माँग लें यही ख़ुदा का हुक्म है जो तुम्हारे दरमियान सादिर करता है और ख़ुदा वाक़िफ़कार हकीम है (10)
और अगर तुम्हारी बीवियों में से कोई औरत तुम्हारे हाथ से निकल कर काफिरों के पास चली जाए और (ख़र्च न मिले) और तुम (उन काफ़िरों से लड़ो और लूटो तो (माले ग़नीमत से) जिनकी औरतें चली गयीं हैं उनको इतना दे दो जितना उनका ख़र्च हुआ है) और जिस ख़ुदा पर तुम लोग ईमान लाए हो उससे डरते रहो (11)
(ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें तुमसे इस बात पर बैयत करने आएँ कि वह न किसी को ख़ुदा का शरीक बनाएँगी और न चोरी करेंगी और न जे़ना करेंगी और न अपनी औलाद को मार डालेंगी और न अपने हाथ पाँव के सामने कोई बोहतान (लड़के का शौहर पर) गढ़ के लाएँगी
,और न किसी नेक काम में तुम्हारी नाफ़रमानी करेंगी तो तुम उनसे बैयत ले लो और ख़ुदा से उनके मग़फ़िरत की दुआ माँगो बेशक बड़ा ख़ुदा बख़्शने वाला मेहरबान है (12)
ऐ ईमानदारों जिन लोगों पर ख़ुदा ने अपना ग़ज़ब ढाया उनसे दोस्ती न करो (क्योंकि) जिस तरह काफ़िरों को मुर्दों (के दोबारा ज़िन्दा होने) की उम्मीद नहीं उसी तरह आख़ेरत से भी ये लोग न उम्मीद हैं (13)
61 सूरए अल सफ़
सूरए अल सफ़ मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी चौदह आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
जो चीज़े आसमानों में है और जो चीज़े ज़मीन में हैं (सब) ख़ुदा की तस्बीह करती हैं और वह ग़ालिब हिकमत वाला है (1)
ऐ ईमानदारों तुम ऐसी बातें क्यों कहा करते हो जो किया नहीं करते (2)
ख़ुदा के नज़दीक ये ग़ज़ब की बात है कि तुम ऐसी बात को जो करो नहीं (3)
ख़ुदा तो उन लोगों से उलफ़त रखता है जो उसकी राह में इस तरह परा बाँध के लड़ते हैं कि गोया वह सीसा पिलाई हुयी दीवारें हैं (4)
और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि भाइयों तुम मुझे क्यों अज़ीयत देते हो हालॉकि तुम तो जानते हो कि मैं तुम्हारे पास ख़ुदा का (भेजा हुआ) रसूल हूँ तो जब वह टेढ़े हुए तो ख़ुदा ने भी उनके दिलों को टेढ़ा ही रहने दिया और ख़ुदा बदकार लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (5)
और (याद करो) जब मरियम के बेटे ईसा ने कहा ऐ बनी इसराइल मैं तुम्हारे पास ख़ुदा का भेजा हुआ (आया) हूँ (और जो किताब तौरेत मेरे सामने मौजूद है उसकी तसदीक़ करता हूँ और एक पैग़म्बर जिनका नाम अहमद होगा (और) मेरे बाद आएँगे उनकी ख़ुषख़बरी सुनाता हूँ जो जब वह (पैग़म्बर अहमद) उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आया तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है (6)
और जो शख़्स इस्लाम की तरफ बुलाया जाए (और) वह कु़बूल के बदले उलटा ख़ुदा पर झूठ (तूफान) जोड़े उससे बढ़ कर ज़ालिम और कौन होगा और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (7)
ये लोग अपने मुँह से (फूँक मारकर) ख़ुदा के नूर को बुझाना चाहते हैं हालॉकि ख़ुदा अपने नूर को पूरा करके रहेगा अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा ही (क्यों न) मानें (8)
वह वही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा ताकि उसे और तमाम दीनों पर ग़ालिब करे अगरचे मुशरेकीन बुरा ही (क्यों न) माने (9)
ऐ ईमानदारों क्या मैं नहीं ऐसी तिजारत बता दूँ जो तुमको (आख़ेरत के) दर्दनाक अज़ाब से निजात दे (10)
(वह ये है कि) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और अपने माल व जान से ख़ुदा की राह में जेहाद करो अगर तुम समझो तो यही तुम्हारे हक़ मे बेहतर है (11)
(ऐसा करोगे) तो वह भी इसके ऐवज़ में तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें उन बाग़ों में दाखि़ल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और पाकीजा़ मकानात में (जगह देगा) जो जावेदानी बेहिष्त में हैं यही तो बड़ी कामयाबी है (12)
और एक चीज़ जिसके तुम दिल दादा हो (यानि तुमको) ख़ुदा की तरफ से मदद (मिलेगी और अनक़रीब फतेह (होगी) और (ऐ रसूल) मोमिनीन को ख़ुषख़बरी (इसकी) दे दो (13)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा के मददगार बन जाओ जिस तरह मरियम के बेटे ईसा ने हवारियों से कहा था कि (भला) ख़ुदा की तरफ (बुलाने में) मेरे मददगार कौन लोग हैं तो हवारीन बोल उठे थे कि हम ख़ुदा के अनसार हैं तो बनी इसराईल में से एक गिरोह (उन पर) ईमान लाया और एक गिरोह काफिर रहा
,तो जो लोग ईमान लाए हमने उनको उनके दुश्मनों के मुक़ाबले में मदद दी तो आख़िर वही ग़ालिब रहे (14)