तरजुमा कुरआने करीम

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तरजुमा कुरआने करीम कैटिगिरी: तरजुमा

तरजुमा कुरआने करीम

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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तरजुमा कुरआने करीम

तरजुमा कुरआने करीम

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

62 सूरए जुमुआ

सूरए जुमुआ मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी ग्यारह (11) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा की तस्बीह करती हैं जो (हक़ीक़ी) बादशाह पाक ज़ात ग़ालिब हिकमत वाला है (1)

    वही तो जिसने जाहिलों में उन्हीं में का एक रसूल (मोहम्मद) भेजा जो उनके सामने उसकी आयतें पढ़ते और उनको पाक करते और उनको किताब और अक़्ल की बातें सिखाते हैं अगरचे इसके पहले तो ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े हुए) थे (2)

    और उनमें से उन लोगों की तरफ़ (भेजा) जो अभी तक उनसे मुलहिक़ नहीं हुए और वह तो ग़ालिब हिकमत वाला है (3)

    ख़ुदा का फज़ल है जिसको चाहता है अता फरमाता है और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व करम) का मालिक है (4)

    जिन लोगों (के सरों) पर तौरेत लदवायी गयी है उन्होने उस (के बार) को न उठाया उनकी मिसाल गधे की सी है जिस पर बड़ी बड़ी किताबें लदी हों जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया उनकी भी क्या बुरी मिसाल है और ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मंज़िल मकसूद तक नहीं पहुँचाया करता (5)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ यहूदियों अगर तुम ये ख़्याल करते हो कि तुम ही ख़ुदा के दोस्त हो और लोग नहीं तो अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो मौत की तमन्ना करो (6)

    और ये लोग उन आमाल के सबब जो ये पहले कर चुके हैं कभी उसकी आरज़ू न करेंगे और ख़ुदा तो ज़ालिमों को जानता है (7)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मौत जिससे तुम लोग भागते हो वह तो ज़रूर तुम्हारे सामने आएगी फिर तुम पोशीदा और ज़ाहिर के जानने वाले (ख़ुदा) की तरफ लौटा दिए जाओगे फिर जो कुछ भी तुम करते थे वह तुम्हें बता देगा (8)

    ऐ ईमानदारों जब जुमा का दिन नमाज़ (जुमा) के लिए अज़ान दी जाए तो ख़ुदा की याद (नमाज़) की तरफ दौड़ पड़ो और (ख़रीद) व फरोख़्त छोड़ दो अगर तुम समझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है (9)

    फिर जब नमाज़ हो चुके तो ज़मीन में (जहाँ चाहो) जाओ और ख़ुदा के फज़ल (अपनी रोज़ी) की तलाश करो और ख़ुदा को बहुत याद करते रहो ताकि तुम दिली मुरादें पाओ (10)

    और (उनकी हालत तो ये है कि) जब ये लोग सौदा बिकता या तमाशा होता देखें तो उसकी तरफ टूट पड़े और तुमको खड़ा हुआ छोड़ दें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि जो चीज़ ख़ुदा के यहाँ है वह तमाशे और सौदे से कहीं बेहतर है और ख़ुदा सबसे बेहतर रिज़्क़ देने वाला है (11)

 

63 सूरए मुनाफे़क़ून

सूरए मुनाफे़क़ून मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी ग्यारह (11) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    (ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास मुनाफे़क़ीन आते हैं तो कहते हैं कि हम तो इक़रार करते हैं कि आप यक़नीन ख़ुदा के रसूल हैं और ख़ुदा भी जानता है तुम यक़ीनी उसके रसूल हो मगर ख़ुदा ज़ाहिर किए देता है कि ये लोग अपने (एतक़ाद के लिहाज़ से) ज़रूर झूठे हैं (1)

    इन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना रखा है तो (इसी के ज़रिए से) लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं बेशक ये लोग जो काम करते हैं बुरे हैं (2)

    इस सबब से कि (ज़ाहिर में) ईमान लाए फिर काफ़िर हो गए ,तो उनके दिलों पर (गोया) मोहर लगा दी गयी है तो अब ये समझते ही नहीं (3)

    और जब तुम उनको देखोगे तो तनासुबे आज़ा की वजह से उनका क़द व क़ामत तुम्हें बहुत अच्छा मालूम होगा और गुफ़्तगू करेंगे तो ऐसी कि तुम तवज्जो से सुनो (मगर अक़्ल से ख़ाली) गोया दीवारों से लगायी हुयीं बेकार लकड़ियाँ हैं हर चीख़ की आवाज़ को समझते हैं कि उन्हीं पर आ पड़ी ये लोग तुम्हारे दुश्मन हैं तुम उनसे बचे रहो ख़ुदा इन्हें मार डाले ये कहाँ बहके फिरते हैं (4)

    और जब उनसे कहा जाता है कि आओ रसूलअल्लाह तुम्हारे वास्ते मग़फेरत की दुआ करें तो वह लोग अपने सर फेर लेते हैं और तुम उनको देखोगे कि तकब्बुर करते हुए मुँह फेर लेते हैं (5)

    तो तुम उनकी मग़फेरत की दुआ माँगो या न माँगो उनके हक़ में बराबर है (क्यों कि) ख़ुदा तो उन्हें हरगिज़ बख़्षेगा नहीं ख़ुदा तो हरगिज़ बदकारों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (6)

    ये वही लोग तो हैं जो (अन्सार से) कहते हैं कि जो (मुहाजिरीन) रसूले ख़ुदा के पास रहते हैं उन पर ख़र्च न करो यहाँ तक कि ये लोग ख़ुद तितर बितर हो जाएँ हालॉकि सारे आसमान और ज़मीन के ख़ज़ाने ख़ुदा ही के पास हैं मगर मुनाफेक़ीन नहीं समझते (7)

    ये लोग तो कहते हैं कि अगर हम लौट कर मदीने पहुँचे तो इज़्ज़दार लोग (ख़ुद) ज़लील (रसूल) को ज़रूर निकाल बाहर कर देंगे हालॉकि इज़्ज़त तो ख़ास ख़ुदा और उसके रसूल और मोमिनीन के लिए है मगर मुनाफे़कीन नहीं जानते (8)

    ऐ ईमानदारों तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुमको ख़ुदा की याद से ग़ाफिल न करे और जो ऐसा करेगा तो वही लोग घाटे में रहेंगे (9)

    और हमने जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें से क़ब्ल इसके (ख़ुदा की राह में) ख़र्च कर डालो कि तुममें से किसी की मौत आ जाए तो (इसकी नौबत न आए कि) कहने लगे कि परवरदिगार तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों न दी ताकि ख़ैरात करता और नेकीकारों से हो जाता (10)

    और जब किसी की मौत आ जाती है तो ख़ुदा उसको हरगिज़ मोहलत नहीं देता और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (11)

 

64 सूरए अल तग़ाबुन

सूरए अल तग़ाबुन इसमें एख़्तेलाफ है कि मक्का में नाज़िल हुआ या मदीने में और इसकी अठारह (18) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    जो चीज़ आसमानों में है और जो चीज़ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही की तस्बीह करती है उसी की बादशाहत है और तारीफ़ उसी के लिए सज़ावार है और वही हर चीज़ पर कादिर है (1)

    वही तो है जिसने तुम लोगों को पैदा किया कोई तुममें काफ़िर है और कोई मोमिन और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसको देख रहा है (2)

    उसी ने सारे आसमान व ज़मीन को हिकमत व मसलेहत से पैदा किया और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायीं तो सबसे अच्छी सूरतें बनायीं और उसी की तरफ लौटकर जाना हैं (3)

    जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है वह (सब) जानता है और जो कुछ तुम छुपा कर या खुल्लम खुल्ला करते हो उससे (भी) वाकिफ़ है और ख़ुदा तो दिल के भेद तक से आगाह है (4)

    क्या तुम्हें उनकी ख़बर नहीं पहुँची जिन्होंने (तुम से) पहले कुफ्ऱ किया तो उन्होने अपने काम की सज़ा का (दुनिया में) मज़ा चखा और (आख़िरत में तो) उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (5)

    ये इस वजह से कि उनके पास पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ चुके थे तो कहने लगे कि क्या आदमी हमारे हादी बनेंगें ग़रज़ ये लोग काफ़िर हो बैठे और मुँह फेर बैठे और ख़ुदा ने भी (उनकी) परवाह न की और ख़ुदा तो बे परवा सज़ावारे हम्द है (6)

    काफ़िरों का ख़्याल ये है कि ये लोग दोबारा न उठाए जाएँगे (ऐ रसूल) तुम कह दो वहाँ अपने परवरदिगार की क़सम तुम ज़रूर उठाए जाओगे फिर जो जो काम तुम करते रहे वह तुम्हें बता देगा और ये तो ख़ुदा पर आसान है (7)

    तो तुम ख़ुदा और उसके रसूल पर उसी नूर पर ईमान लाओ जिसको हमने नाज़िल किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (8)

    जब वह क़यामत के दिन तुम सबको जमा करेगा फिर यही हार जीत का दिन होगा और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाए और अच्छा काम करे वह उससे उसकी बुराइयाँ दूर कर देगा और उसको (बहिश्त में) उन बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं वह उनमें अबादुल आबाद हमेशा रहेगा ,यही तो बड़ी कामयाबी है (9)

    और जो लोग काफ़िर हैं और हमारी आयतों को झुठलाते रहे यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसी में रहेंगे और वह क्या बुरा ठिकाना है (10)

    जब कोई मुसीबत आती है तो ख़ुदा के इज़न से और जो शख़्स ख़ुदा पर ईमान लाता है तो ख़ुदा उसके कल्ब की हिदायत करता है और ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब आगाह है (11)

    और ख़ुदा की इताअत करो और रसूल की इताअत करो फिर अगर तुमने मुँह फेरा तो हमारे रसूल पर सिर्फ़ पैग़ाम का वाज़ेए करके पहुँचा देना फर्ज़ है (12)

    ख़ुदा (वह है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं और मोमिनो को ख़ुदा ही पर भरोसा करना चाहिए (13)

    ऐ ईमानदारों तुम्हारी बीवियों और तुम्हारी औलाद में से बाज़ तुम्हारे दुशमन हैं तो तुम उनसे बचे रहो और अगर तुम माफ कर दो दरगुज़र करो और बख़्श दो तो ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (14)

    तुम्हारे माल और तुम्हारी औलादे बस आज़माइश है और ख़ुदा के यहाँ तो बड़ा अज्र (मौजूद) है (15)

    तो जहाँ तक तुम से हो सके ख़ुदा से डरते रहो और (उसके एहकाम) सुनो और मानों और अपनी बेहतरी के वास्ते (उसकी राह में) ख़र्च करो और जो शख़्स अपने नफ़्स की हिरस से बचा लिया गया तो ऐसे ही लोग मुरादें पाने वाले हैं (16)

    अगर तुम ख़ुदा को कजेऱ् हसना दोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते दूना कर देगा और तुमको बख़्श देगा और ख़ुदा तो बड़ा क़द्रदान व बुर्दबार है (17)

    पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला ग़ालिब हिकमत वाला है (18)

 

65 सूरए तलाक़

सूरए तलाक़ मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी बारह (12) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    ऐ रसूल (मुसलमानों से कह दो) जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो तो उनकी इद्दत (पाकी) के वक़्त तलाक़ दो और इद्दा का शुमार रखो और अपने परवरदिगार ख़ुदा से डरो और (इद्दे के अन्दर) उनके घर से उन्हें न निकालो और वह ख़ुद भी घर से न निकलें मगर जब वह कोई सरीही बेहयाई का काम कर बैठें (तो निकाल देने में मुज़ायका नहीं) और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुयी) हदें हैं और जो ख़ुदा की हदों से तजाउज़ करेगा तो उसने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया तो तू नहीं जानता शायद ख़ुदा उसके बाद कोई बात पैदा करे (जिससे मर्द पछताए और मेल हो जाए) (1)

    तो जब ये अपना इद्दा पूरा करने के करीब पहुँचे तो या तुम उन्हें उनवाने शाइस्ता से रोक लो या अच्छी तरह रूख़सत ही कर दो और (तलाक़ के वक़्त) अपने लोगों में से दो आदिलों को गवाह क़रार दे लो और गवाहों तुम ख़ुदा के वास्ते ठीक ठीक गवाही देना इन बातों से उस शख़्स को नसीहत की जाती है जो ख़ुदा और रोजे़ आख़ेरत पर ईमान रखता हो और जो ख़ुदा से डरेगा तो ख़ुदा उसके लिए नजात की सूरत निकाल देगा (2)

    और उसको ऐसी जगह से रिज़्क़ देगा जहाँ से वहम भी न हो और जिसने ख़ुदा पर भरोसा किया तो वह उसके लिए काफी है बेशक ख़ुदा अपने काम को पूरा करके रहता है ख़ुदा ने हर चीज़ का एक अन्दाज़ा मुक़र्रर कर रखा है (3)

    और जो औरतें हैज़ से मायूस हो चुकी अगर तुम को उनके इद्दे में शक होवे तो उनका इद्दा तीन महीने है और (अला हाज़ल क़यास) वह औरतें जिनको हैज़ हुआ ही नहीं और हामेला औरतों का इद्दा उनका बच्चा जनना है और जो ख़ुदा से डरता है ख़ुदा उसके काम मे सहूलित पैदा करेगा (4)

    ये ख़ुदा का हुक़्म है जो ख़ुदा ने तुम पर नाज़िल किया है और जो ख़ुदा डरता रहेगा तो वह उसके गुनाह उससे दूर कर देगा और उसे बड़ा दरजा देगा (5)

    मुतलक़ा औरतों को (इद्दे तक) अपने मक़दूर मुताबिक दे रखो जहाँ तुम ख़ुद रहते हो और उनको तंग करने के लिए उनको तकलीफ न पहुँचाओ और अगर वह हामेला हो तो बच्चा जनने तक उनका खर्च देते रहो फिर (जनने के बाद) अगर वह बच्चे को तुम्हारी ख़ातिर दूध पिलाए तो उन्हें उनकी (मुनासिब) उजरत दे दो और बाहम सलाहियत से दस्तूर के मुताबिक बात चीत करो और अगर तुम बाहम कश म कश करो तो बच्चे को उसके (बाप की) ख़ातिर से कोई और औरत दूध पिला देगी (6)

    गुन्जाइश वाले को अपनी गुन्जाइश के मुताबिक़ ख़र्च करना चाहिए और जिसकी रोज़ी तंग हो वह जितना ख़ुदा ने उसे दिया है उसमें से खर्च करे ख़ुदा ने जिसको जितना दिया है बस उसी के मुताबिक़ तकलीफ़ दिया करता है ख़ुदा अनकरीब ही तंगी के बाद फ़राख़ी अता करेगा (7)

    और बहुत सी बस्तियों (वाले) ने अपने परवरदिगार और उसके रसूलों के हुक़्म से सरकशी की तो हमने उनका बड़ी सख़्ती से हिसाब लिया और उन्हें बुरे अज़ाब की सज़ा दी (8)

    तो उन्होने अपने काम की सज़ा का मज़ा चख लिया और उनके काम का अन्जाम घाटा ही था (9)

    ख़ुदा ने उनके लिए सख़्त अज़ाब तैयार कर रखा है तो ऐ अक़्लमन्दों जो ईमान ला चुके हो ख़ुदा से डरते रहो ख़ुदा ने तुम्हारे पास (अपनी) याद क़ुरान और अपना रसूल भेज दिया है (10)

    जो तुम्हारे सामने वाज़ेए आयतें पढ़ता है ताकि जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उनको (कुफ्ऱ की) तारिक़ियों से ईमान की रौशनी की तरफ़ निकाल लाए और जो ख़ुदा पर ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करे तो ख़ुदा उसको (बहिश्त के) उन बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और वह उसमें अबादुल आबाद तक रहेंगे ख़ुदा ने उनको अच्छी अच्छी रोज़ी दी है (11)

    ख़ुदा ही तो है जिसने सात आसमान पैदा किए और उन्हीं के बराबर ज़मीन को भी उनमें ख़ुदा का हुक़्म नाज़िल होता रहता है - ताकि तुम लोग जान लो कि ख़ुदा हर चीज़ पर कादिर है और बेशक ख़ुदा अपने इल्म से हर चीज़ पर हावी है (12)

 

66 सूरए तहरीम   

सूरए तहरीम मदीना में नाज़िल हुआ और इसकी बारह (12) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    ऐ रसूल जो चीज़ ख़ुदा ने तुम्हारे लिए हलाल की है तुम उससे अपनी बीवियों की ख़ुशनूदी के लिए क्यों किनारा कशी करो और ख़ुदा तो बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (1)

    ख़ुदा ने तुम लोगों के लिए क़समों को तोड़ डालने का कफ़्फ़ार मुक़र्रर कर दिया है और ख़ुदा ही तुम्हारा कारसाज़ है और वही वाक़िफ़कार हिकमत वाला है (2)

    और जब पैग़म्बर ने अपनी बाज़ बीवी (हफ़सा) से चुपके से कोई बात कही फिर जब उसने (बावजूद मुमानियत) उस बात की (आयशा को) ख़बर दे दी और ख़ुदा ने इस अम्र को रसूल पर ज़ाहिर कर दिया तो रसूल ने (आयशा को) बाज़ बात (किस्सा मारिया) जता दी और बाज़ बात (किस्साए शहद) टाल दी ग़रज़ जब रसूल ने इस वाक़िये (हफ़सा के आयशाए राज़) कि उस (आयशा) को ख़बर दी तो हैरत से बोल उठीं आपको इस बात (आयशाए राज़) की किसने ख़बर दी रसूल ने कहा मुझे बड़े वाक़िफ़कार ख़बरदार (ख़ुदा) ने बता दिया (3)

    (तो ऐ हफ़सा व आयशा) अगर तुम दोनों (इस हरकत से) तौबा करो तो ख़ैर क्योंकि तुम दोनों के दिल टेढ़े हैं और अगर तुम दोनों रसूल की मुख़ालेफ़त में एक दूसरे की अयानत करती रहोगी तो कुछ परवा नहीं (क्यों कि) ख़ुदा और जिबरील और तमाम ईमानदारों में नेक शख़्स उनके मददगार हैं और उनके अलावा कुल फरिष्ते मददगार हैं (4)

    अगर रसूल तुम लोगों को तलाक़ दे दे तो अनक़रीब ही उनका परवरदिगार तुम्हारे बदले उनको तुमसे अच्छी बीवियाँ अता करे जो फ़रमाबरदार ईमानदार ख़ुदा रसूल की मुतीय (गुनाहों से) तौबा करने वालियाँ इबादत गुज़ार रोज़ा रखने वालियाँ ब्याही हुयी (5)

    और बिन ब्याही कुंवारियाँ हो ऐ ईमानदारों अपने आपको और अपने लड़के बालों को (जहन्नुम की) आग से बचाओ जिसर्के इंधन आदमी और पत्थर होंगे उन पर वह तन्दख़ू सख़्त मिजाज़ फरीश्ते (मुक़र्रर) हैं कि ख़ुदा जिस बात का हुक़्म देता है उसकी नाफरमानी नहीं करते और जो हुक़्म उन्हें मिलता है उसे बजा लाते हैं (6)

    (जब कुफ़्फ़ार दोज़ख़ के सामने आएँगे तो कहा जाएगा) काफ़िरों आज बहाने न ढूँढो जो कुछ तुम करते थे तुम्हें उसकी सज़ा दी जाएगी (7)

    ऐ ईमानदारों ख़ुदा की बारगाह में साफ़ ख़ालिस दिल से तौबा करो तो (उसकी वजह से) उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुमसे तुम्हारे गुनाह दूर कर दे और तुमको (बहिश्त के) उन बाग़ों में दाखिल करे जिनके नीचे नहरें जारी हैं उस दिन जब ख़ुदा रसूल को और उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए हैं रूसवा नहीं करेगा (बल्कि) उनका नूर उनके आगे आगे और उनके दाहिने तरफ़ (रौशनी करता) चल रहा होगा और ये लोग ये दुआ करते होंगे परवरदिगार हमारे लिए हमारा नूर पूरा कर और हमे बख़्श दे बेशक तू हर चीज़ पर कादिर है (8)

    ऐ रसूल काफ़िरों और मुनाफ़िकों से जेहाद करो और उन पर सख़्ती करो और उनका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है (9)

    ख़ुदा ने काफिरों (की इबरत) के वास्ते नूह की बीवी (वाएला) और लूत की बीवी (वाहेला) की मसल बयान की है कि ये दोनो हमारे बन्दों के तसर्रुफ़ थीं तो दोनों ने अपने शौहरों से दगा की तो उनके शौहर ख़ुदा के मुक़ाबले में उनके कुछ भी काम न आए और उनको हुक़्म दिया गया कि और जाने वालों के साथ जहन्नुम में तुम दोनों भी दाखिल हो जाओ (10)

    और ख़ुदा ने मोमिनीन (की तसल्ली) के लिए फिरऔन की बीवी (आसिया) की मिसाल बयान फ़रमायी है कि जब उसने दुआ की परवरदिगार मेरे लिए अपने यहाँ बहिश्त में एक घर बना और मुझे फिरऔन और उसकी कारस्तानी से नजात दे और मुझे ज़ालिम लोगो (के हाथ) से छुटकारा अता फ़रमा (11)

    और (दूसरी मिसाल) इमरान की बेटी मरियम जिसने अपनी शर्मगाह को महफूज़ रखा तो हमने उसमें रूह फूंक दी और उसने अपने परवरदिगार की बातों और उसकी किताबों की तस्दीक़ की और फरमाबरदारों में थी (12)

67  सूरए मुल्क

सूरए मुल्क मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी तीस (30) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    जिस (ख़ुदा) के कब्ज़े में (सारे जहाँन की) बादशाहत है वह बड़ी बरकत वाला है और वह हर चीज़ पर कादिर है (1)

    जिसने मौत और ज़िन्दगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुममें से काम में सबसे अच्छा कौन है और वह ग़ालिब (और) बड़ा बख़्शने वाला है (2)

    जिसने सात आसमान तले ऊपर बना डाले भला तुझे ख़ुदा की आफ़रिनश में कोई कसर नज़र आती है तो फिर आँख उठाकर देख भला तुझे कोई शिग़ाफ़ नज़र आता है (3)

    फिर दुबारा आँख उठा कर देखो तो (हर बार तेरी) नज़र नाकाम और थक कर तेरी तरफ पलट आएगी (4)

    और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुयी आग का अज़ाब तैयार कर रखा है (5)

    और जो लोग अपने परवरदिगार के मुनकिर हैं उनके लिए जहन्नुम का अज़ाब है और वह (बहुत) बुरा ठिकाना है (6)

    जब ये लोग इसमें डाले जाएँगे तो उसकी बड़ी चीख़ सुनेंगे और वह जोश मार रही होगी (7)

    बल्कि गोया मारे जोश के फट पड़ेगी जब उसमें (उनका) कोई गिरोह डाला जाएगा तो उनसे दारोग़ए जहन्नुम पूछेगा क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं आया था (8)

    वह कहेंगे हॉ हमारे पास डराने वाला तो ज़रूर आया था मगर हमने उसको झुठला दिया और कहा कि ख़ुदा ने तो कुछ नाज़िल ही नहीं किया तुम तो बड़ी (गहरी) गुमराही में (पड़े) हो (9)

    और (ये भी) कहेंगे कि अगर (उनकी बात) सुनते या समझते तब तो (आज) दोज़ख़ियों में न होते (10)

    ग़रज़ वह अपने गुनाह का इक़रार कर लेंगे तो दोज़खि़यों को ख़ुदा की रहमत से दूरी है (11)

    बेशक जो लोग अपने परवरदिगार से बेदेखे भाले डरते हैं उनके लिए मग़फेरत और बड़ा भारी अज्र है (12)

    और तुम अपनी बात छिपकर कहो या खुल्लम खुल्ला वह तो दिल के भेदों तक से ख़ूब वाक़िफ़ है (13)

    भला जिसने पैदा किया वह तो बेख़बर और वह तो बड़ा बारीकबीन वाक़िफ़कार है (14)

    वही तो है जिसने ज़मीन को तुम्हारे लिए नरम (व हमवार) कर दिया तो उसके अतराफ़ व जवानिब में चलो फिरो और उसकी (दी हुयी) रोज़ी खाओ (15)

    और फिर उसी की तरफ क़ब्र से उठ कर जाना है क्या तुम उस शख़्स से जो आसमान में (हुकूमत करता है) इस बात से बेख़ौफ़ हो कि तुमको ज़मीन में धॅसा दे फिर वह एकबारगी उलट पुलट करने लगे (16)

    या तुम इस बात से बेख़ौफ हो कि जो आसमान में (सल्तनत करता) है कि तुम पर पत्थर भरी आँधी चलाए तो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा कि मेरा डराना कैसा है (17)

    और जो लोग उनसे पहले थे उन्होने झुठलाया था तो (देखो) कि मेरी नाख़ुशी कैसी थी (18)

    क्या उन लोगों ने अपने सरों पर चिड़ियों को उड़ते नहीं देखा जो परों को फैलाए रहती हैं और समेट लेती हैं कि ख़ुदा के सिवा उन्हें कोई रोके नहीं रह सकता बेशक वह हर चीज़ को देख रहा है (19)

    भला ख़ुदा के सिवा ऐसा कौन है जो तुम्हारी फ़ौज बनकर तुम्हारी मदद करे काफ़िर लोग तो धोखे ही (धोखे) में हैं भला ख़ुदा अगर अपनी (दी हुयी) रोज़ी रोक ले तो कौन ऐसा है जो तुम्हें रिज़क़ दे (20)

    मगर ये कुफ़्फ़ार तो सरकशी और नफ़रत (के भँवर) में फँसे हुए हैं भला जो शख़्स औंधे मुँह के बाल चले वह ज़्यादा हिदायत याफ्ता होगा (21)

    या वह शख़्स जो सीधा बराबर राहे रास्त पर चल रहा हो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ख़ुदा तो वही है जिसने तुमको नित नया पैदा किया (22)

    और तुम्हारे वास्ते कान और आँख और दिल बनाए (मगर) तुम तो बहुत कम शुक्र अदा करते हो (23)

    कह दो कि वही तो है जिसने तुमको ज़मीन में फैला दिया और उसी के सामने जमा किए जाओगे (24)

    और कुफ़्फ़ार कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये वायदा कब (पूरा) होगा (25)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (इसका) इल्म तो बस ख़ुदा ही को है और मैं तो सिर्फ साफ़ साफ़ (अज़ाब से) डराने वाला हूँ (26)

    तो जब ये लोग उसे करीब से देख लेंगे (ख़ौफ के मारे) काफिरों के चेहरे बिगड़ जाएँगे और उनसे कहा जाएगा ये वही है जिसके तुम ख़वास्तग़ार थे (27)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो भला देखो तो कि अगर ख़ुदा मुझको और मेरे साथियों को हलाक कर दे या हम पर रहम फरमाए तो काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से कौन पनाह देगा (28)

    तुम कह दो कि वही (ख़ुदा) बड़ा रहम करने वाला है जिस पर हम ईमान लाए हैं और हमने तो उसी पर भरोसा कर लिया है तो अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि कौन सरीही गुमराही में (पड़ा) है (29)

    ऐ रसूल तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर तुम्हारा पानी ज़मीन के अन्दर चला जाए कौन ऐसा है जो तुम्हारे लिए पानी का चष्मा बहा लाए (30)

68 सूरए क़लम

सूरए क़लम मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी बावन (52) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है (1)

    कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल (व करम) से दीवाने नहीं हो (2)

    और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म ही न होगा (3)

    और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (4)

    तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये कुफ़्फ़ार भी देख लेंगे (5)

    कि तुममें दीवाना कौन है (6)

    बेशक तुम्हारा परवरदिगार इनसे ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं और वही हिदायत याफ़्ता लोगों को भी ख़ूब जानता है (7)

    तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना (8)

    वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख़्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ (9)

    और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता ज़लील औक़ात ऐबजू (10)

    जो आला दर्जे का चुग़लख़ोर माल का बहुत बख़ील (11)

    हद से बढ़ने वाला गुनेहगार तुन्द मिजाज़ (12)

    और उसके अलावा बदज़ात (हरमज़ादा) भी है (13)

    चूँकि माल बहुत से बेटे रखता है (14)

    जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं (15)

    हम अनक़रीब इसकी नाक पर दाग़ लगाएँगे (16)

    जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे (17)

    और इन्षाअल्लाह न कहा (18)

    तो ये लोग पड़े सो ही रहे थे कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (रातों रात) एक बला चक्कर लगा गयी (19)

    तो वह (सारा बाग़ जलकर) ऐसा हो गया जैसे बहुत काली रात (20)

    फिर ये लोग नूर के तड़के लगे बाहम गुल मचाने (21)

    कि अगर तुमको फल तोड़ना है तो अपने बाग़ में सवेरे से चलो (22)

    ग़रज़ वह लोग चले और आपस में चुपके चुपके कहते जाते थे (23)

    कि आज यहाँ तुम्हारे पास कोई फ़क़ीर न आने पाए (24)

    तो वह लोग रोक थाम के एहतमाम के साथ फल तोड़ने की ठाने हुए सवेरे ही जा पहुँचे (25)

    फिर जब उसे (जला हुआ सियाह) देखा तो कहने लगे हम लोग भटक गए (26)

    (ये हमारा बाग़ नहीं फिर ये सोचकर बोले) बात ये है कि हम लोग बड़े बदनसीब हैं (27)

    जो उनमें से मुनसिफ़ मिजाज़ था कहने लगा क्यों मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम लोग (ख़ुदा की) तसबीह क्यों नहीं करते (28)

    वह बोले हमारा परवरदिगार पाक है बेशक हमीं ही कुसूरवार हैं (29)

    फिर लगे एक दूसरे के मुँह दर मुँह मलामत करने (30)

    (आख़िर) सबने इक़रार किया कि हाए अफसोस बेशक हम ही ख़ुद सरकश थे (31)

    उम्मीद है कि हमारा परवरदिगार हमें इससे बेहतर बाग़ इनायत फ़रमाए हम अपने परवरदिगार की तरफ रूजू करते हैं (32)

    (देखो) यूँ अज़ाब होता है और आख़्ारत का अज़ाब तो इससे कहीं बढ़ कर है अगर ये लोग समझते हों (33)

    बेशक परहेज़गार लोग अपने परवरदिगार के यहाँ ऐशो आराम के बाग़ों में होंगे (34)

    तो क्या हम फरमाबरदारों को नाफ़रमानो के बराबर कर देंगे (35)

    (हरगिज़ नहीं) तुम्हें क्या हो गया है तुम तुम कैसा हुक़्म लगाते हो (36)

    या तुम्हारे पास कोई ईमानी किताब है जिसमें तुम पढ़ लेते हो (37)

    कि जो चीज़ पसन्द करोगे तुम को वहाँ ज़रूर मिलेगी (38)

    या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो रोज़े क़यामत तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाज़िर होगा (39)

    उनसे पूछो तो कि उनमें इसका कौन ज़िम्मेदार है (40)

    या (इस बाब में) उनके और लोग भी शरीक हैं तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो अपने शरीकों को सामने लाएँ (41)

    जिस दिन पिंडली खोल दी जाए और (काफ़िर) लोग सजदे के लिए बुलाए जाएँगे तो (सजदा) न कर सकेंगे (42)

    उनकी आँखें झुकी हुयी होंगी रूसवाई उन पर छाई होगी और (दुनिया में) ये लोग सजदे के लिए बुलाए जाते और हटटे कटटे तन्दरूस्त थे (43)

    तो मुझे उस कलाम के झुठलाने वाले से समझ लेने दो हम उनको आहिस्ता आहिस्ता इस तरह पकड़ लेंगे कि उनको ख़बर भी न होगी (44)

    और मैं उनको मोहलत दिये जाता हूँ बेशक मेरी तदबीर मज़बूत है (45)

    (ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत का) कुछ सिला माँगते हो कि उन पर तावान का बोझ पड़ रहा है (46)

    या उनके इस ग़ैब (की ख़बर) है कि ये लोग लिख लिया करते हैं (47)

    तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तेज़ार में सब्र करो और मछली (का निवाला होने) वाले (यूनुस) के ऐसे न हो जाओ कि जब वह ग़ुस्से में भरे हुए थे और अपने परवरदिगार को पुकारा (48)

    अगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी उनकी यावरी न करती तो चटियल मैदान में डाल दिए जाते और उनका बुरा हाल होता (49)

    तो उनके परवरदिगार ने उनको बरगुज़ीदा करके नेकोकारों से बना दिया (50)

    और कुफ़्फ़ार जब क़ुरान को सुनते हैं तो मालूम होता है कि ये लोग तुम्हें घूर घूर कर (राह रास्त से) ज़रूर फिसला देंगे (51)

    और कहते हैं कि ये तो सिड़ी हैं और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन की नसीहत है (52)

 

69 सूरए अल हाक़्क़ा

सूरए अल हाक़्क़ा मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी बावन (52) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    सच मुच होने वाली (क़यामत) (1)

    और सच मुच होने वाली क्या चीज़ है (2)

    और तुम्हें क्या मालूम कि वह सच मुच होने वाली क्या है (3)

    (वही) खड़ खड़ाने वाली (जिस) को आद व समूद ने झुठलाया (4)

    ग़रज़ समूद तो चिंघाड़ से हलाक कर दिए गए (5)

    रहे आद तो वह बहुत शदीद तेज़ आँधी से हलाक कर दिए गए (6)

    ख़ुदा ने उसे सात रात और आठ दिन लगाकर उन पर चलाया तो लोगों को इस तरह ढहे (मुर्दे) पड़े देखता कि गोया वह खजूरों के खोखले तने हैं (7)

    तू क्या इनमें से किसी को भी बचा खुचा देखता है (8)

    और फिरऔन और जो लोग उससे पहले थे और वह लोग (क़ौमे लूत) जो उलटी हुयी बस्तियों के रहने वाले थे सब गुनाह के काम करते थे (9)

    तो उन लोगों ने अपने परवरदिगार के रसूल की नाफ़रमानी की तो ख़ुदा ने भी उनकी बड़ी सख़्ती से ले दे कर डाली (10)

    जब पानी चढ़ने लगा तो हमने तुमको कशती पर सवार किया (11)

    ताकि हम उसे तुम्हारे लिए यादगार बनाएं और उसे याद रखने वाले कान सुनकर याद रखें (12)

    फिर जब सूर में एक (बार) फूँक मार दी जाएगी (13)

    और ज़मीन और पहाड़ उठाकर एक बारगी (टकरा कर) रेज़ा रेज़ा कर दिए जाएँगे तो उस रोज़ क़यामत आ ही जाएगी (14)

    और आसमान फट जाएगा (15)

    तो वह उस दिन बहुत फुस फुसा होगा और फरीश्ते उनके किनारे पर होंगे (16)

    और तुम्हारे परवरदिगार के अर्श को उस दिन आठ फरीश्ते अपने सरों पर उठाए होंगे (17)

    उस दिन तुम सब के सब (ख़ुदा के सामने) पेश किए जाओगे और तुम्हारी कोई पोशीदा बात छुपी न रहेगी (18)

    तो जिसको (उसका नामए आमाल) दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह (लोगो से) कहेगा लीजिए मेरा नामए आमाल पढ़िए (19)

    तो मैं तो जानता था कि मुझे मेरा हिसाब (किताब) ज़रूर मिलेगा (20)

    फिर वह दिल पसन्द ऐश में होगा (21)

    बड़े आलीशान बाग़ में (22)

    जिनके फल बहुत झुके हुए क़रीब होंगे (23)

    जो कारगुज़ारियाँ तुम गुज़िशता अय्याम मे करके आगे भेज चुके हो उसके सिले में मज़े से खाओ पियो (24)

    और जिसका नामए आमाल उनके बाएँ हाथ में दिया जाएगा तो वह कहेगा ऐ काश मुझे मेरा नामए अमल न दिया जाता (25)

    और मुझे न मालूल होता कि मेरा हिसाब क्या है (26)

    ऐ काश मौत ने (हमेशा के लिए मेरा) काम तमाम कर दिया होता (27)

    (अफ़सोस) मेरा माल मेरे कुछ भी काम न आया (28)

    (हाए) मेरी सल्तनत ख़ाक में मिल गयी (फिर हुक़्म होगा) (29)

    इसे गिरफ़्तार करके तौक़ पहना दो (30)

    फिर इसे जहन्नुम में झोंक दो , (31)

    फिर एक ज़ंजीर में जिसकी नाप सत्तर गज़ की है उसे ख़ूब जकड़ दो (32)

    (क्यों कि) ये न तो बुर्ज़ुग ख़ुदा ही पर ईमान लाता था और न मोहताज के खिलाने पर आमादा (लोगों को) करता था (33)

    तो आज न उसका कोई ग़मख़्वार है (34)

    और न पीप के सिवा (उसके लिए) कुछ खाना है (35)

    जिसको गुनेहगारों के सिवा कोई नहीं खाएगा (36)

    तो मुझे उन चीज़ों की क़सम है (37)

    जो तुम्हें दिखाई देती हैं (38)

    और जो तुम्हें नहीं सुझाई देती कि बेशक ये (क़ुरान) (39)

    एक मोअज़िज़ फरिष्ते का लाया हुआ पैग़ाम है (40)

    और ये किसी शायर की तुक बन्दी नहीं तुम लोग तो बहुत कम ईमान लाते हो (41)

    और न किसी काहिन की (ख़्याली) बात है तुम लोग तो बहुत कम ग़ौर करते हो (42)

    सारे जहाँन के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ (क़लाम) है (43)

    अगर रसूल हमारी निस्बत कोई झूठ बात बना लाते (44)

    तो हम उनका दाहिना हाथ पकड़ लेते (45)

    फिर हम ज़रूर उनकी गर्दन उड़ा देते (46)

    तो तुममें से कोई उनसे (मुझे रोक न सकता) (47)

    ये तो परहेज़गारों के लिए नसीहत है (48)

    और हम ख़ूब जानते हैं कि तुम में से कुछ लोग (इसके) झुठलाने वाले हैं (49)

    और इसमें शक नहीं कि ये काफ़िरों की हसरत का बाएस है (50)

    और इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनन बरहक़ है (51)

    तो तुम अपने परवरदिगार की तसबीह करो (52)

 

70 सूरए अल मआरिज

सूरए अल मआरिज मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी चौवालीस (44) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    एक माँगने वाले ने काफिरों के लिए होकर रहने वाले अज़ाब को माँगा (1)

    जिसको कोई टाल नहीं सकता (2)

    जो दर्जे वाले ख़ुदा की तरफ से (होने वाला) था (3)

    जिसकी तरफ फरीश्ते और रूहुल अमीन चढ़ते हैं (और ये) एक दिन में इतनी मुसाफ़त तय करते हैं जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा (4)

    तो तुम अच्छी तरह इन तक़लीफों को बरदाष्त करते रहो (5)

    वह (क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है (6)

    और हमारी नज़र में नज़दीक है (7)

    जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे का सा हो जाएगा (8)

    और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा (9)

    बावजूद कि एक दूसरे को देखते होंगे (10)

    कोई किसी दोस्त को न पूछेगा गुनेहगार तो आरज़ू करेगा कि काश उस दिन के अज़ाब के बदले उसके बेटों (11)

    और उसकी बीवी और उसके भाई (12)

    और उसके कुनबे को जिसमें वह रहता था (13)

    और जितने आदमी ज़मीन पर हैं सब को ले ले और उसको छुटकारा दे दें (14)

    (मगर) ये हरगिज़ न होगा (15)

    जहन्नुम की वह भड़कती आग है कि खाल उधेड़ कर रख देगी (16)

    (और) उन लोगों को अपनी तरफ बुलाती होगी (17)

    जिन्होंने (दीन से) पीठ फेरी और मुँह मोड़ा और (माल जमा किया) (18)

    और बन्द कर रखा बेशक इन्सान बड़ा लालची पैदा हुआ है (19)

    जब उसे तक़लीफ छू भी गयी तो घबरा गया (20)

    और जब उसे ज़रा फराग़ी हासिल हुयी तो बख़ील बन बैठा (21)

    मगर जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं (22)

    जो अपनी नमाज़ का इल्तज़ाम रखते हैं (23)

    और जिनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले के (24)

    लिए एक मुक़र्रर हिस्सा है (25)

    और जो लोग रोज़े जज़ा की तस्दीक़ करते हैं (26)

    और जो लोग अपने परवरदिगार के अज़ाब से डरते रहते हैं (27)

    बेशक उनको परवरदिगार के अज़ाब से बेख़ौफ न होना चाहिए (28)

    और जो लोग अपनी शर्मगाहों को अपनी बीवियों और अपनी लौन्डियों के सिवा से हिफाज़त करते हैं (29)

    तो इन लोगों की हरगिज़ मलामत न की जाएगी (30)

    तो जो लोग उनके सिवा और के ख़ास्तगार हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं (31)

    और जो लोग अपनी अमानतों और अहदों का लेहाज़ रखते हैं (32)

    और जो लोग अपनी शहादतों पर क़ायम रहते हैं (33)

    और जो लोग अपनी नमाज़ो का ख़्याल रखते हैं (34)

    यही लोग बहिश्त के बाग़ों में इज़्ज़त से रहेंगे (35)

    तो (ऐ रसूल) काफिरों को क्या हो गया है (36)

    कि तुम्हारे पास गिरोह गिरोह दाहिने से बाएँ से दौड़े चले आ रहे हैं (37)

    क्या इनमें से हर शख़्स इस का मुतमइनी है कि चैन के बाग़ (बहिश्त) में दाख़िल होगा (38)

    हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस (गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं (39)

    तो मैं मशरिकों और मग़रिबों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि हम ज़रूर इस बात की कु़दरत रखते हैं (40)

    कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं (41)

    तो तुम उनको छोड़ दो कि बातिल में पड़े खेलते रहें यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो (42)

    उसी दिन ये लोग कब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ दौड़े चले जाते हैं (43)

    (निदामत से) उनकी आँखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुयी होगी ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था (44)

 

71 सूरए नूह

सूरए नूह मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी उन्तीस (29) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आए उनको उससे डराओ (1)

    तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ डराता (और समझाता) हूँ (2)

    कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो (3)

    ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक़्त तक बाक़ी रखेगा ,बेशक जब ख़ुदा का मुक़र्रर किया हुआ वक़्त आ जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते (4)

    (जब लोगों ने न माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ) बुलाता रहा (5)

    लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज़्यादा गुरेज़ ही करते रहे (6)

    और मैने जब उनको बुलाया कि (ये तौबा करें और) तू उन्हें माफ कर दे तो उन्होने अपने कानों में उॅगलियाँ दे लीं और मुझसे छिपने को कपड़े ओढ़ लिए और अड़ गए और बहुत शिद्दत से अकड़ बैठे (7)

    फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया (8)

    और उनकी पोशीदा भी फ़हमाईश की कि मैंने उनसे कहा (9)

    अपने परवरदिगार से मग़फे़रत की दुआ माँगो बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (10)

    (और) तुम पर आसमान से मूसलाधार पानी बरसाएगा (11)

    और माल और औलाद में तरक़्क़ी देगा ,और तुम्हारे लिए बाग़ बनाएगा ,और तुम्हारे लिए नहरें जारी करेगा (12)

    तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा की अज़मत का ज़रा भी ख़्याल नहीं करते (13)

    हालॉकि उसी ने तुमको तरह तरह का पैदा किया (14)

    क्या तुमने ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सात आसमान ऊपर तलें क्यों कर बनाए (15)

    और उसी ने उसमें चाँद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बना दिया (16)

    और ख़ुदा ही तुमको ज़मीन से पैदा किया (17)

    फिर तुमको उसी में दोबारा ले जाएगा और (क़यामत में उसी से) निकाल कर खड़ा करेगा (18)

    और ख़ुदा ही ने ज़मीन को तुम्हारे लिए फ़र्ष बनाया (19)

    ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चलो फिरो (20)

    (फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्स के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुक़सान के सिवा फ़ायदा न पहुँचाया (21)

    और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारियाँ की (22)

    और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना (23)

    और उन्होंने बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा (24)

    और तू (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढ़ा दे (25)

    (आख़िर) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाए गए फिर जहन्नुम में झोंके गए तो उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया (26)

    और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (इन) काफ़िरों में रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहने दे (27)

    क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो ये (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफिर ही होगी (28)

    परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख़्श दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज़्यादा कर (29)

 

72 सूरए जिन

सूरए जिन मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी अठाइस (28) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    (ऐ रसूल लोगों से) कह दो कि मेरे पास ‘वही ’ आयी है कि जिनों की एक जमाअत ने (क़ुरान को) जी लगाकर सुना तो कहने लगे कि हमने एक अजीब क़ुरान सुना है (1)

    जो भलाई की राह दिखाता है तो हम उस पर ईमान ले आए और अब तो हम किसी को अपने परवरदिगार का शरीक न बनाएँगे (2)

    और ये कि हमारे परवरदिगार की शान बहुत बड़ी है उसने न (किसी को) बीवी बनाया और न बेटा बेटी (3)

    और ये कि हममें से बाज़ बेवकूफ ख़ुदा के बारे में हद से ज़्यादा लग़ो बातें निकाला करते थे (4)

    और ये कि हमारा तो ख़्याल था कि आदमी और जिन ख़ुदा की निस्बत झूठी बात नहीं बोल सकते (5)

    और ये कि आदमियों में से कुछ लोग जिन्नात में से बाज़ लोगों की पनाह पकड़ा करते थे तो (इससे) उनकी सरकषी और बढ़ गयी (6)

    और ये कि जैसा तुम्हारा ख़्याल है वैसा उनका भी एतक़ाद था कि ख़ुदा हरगिज़ किसी को दोबारा नहीं ज़िन्दा करेगा (7)

    और ये कि हमने आसमान को टटोला तो उसको भी बहुत क़वी निगेहबानों और शोलो से भरा हुआ पाया (8)

    और ये कि पहले हम वहाँ बहुत से मक़ामात में (बातें) सुनने के लिए बैठा करते थे मगर अब कोई सुनना चाहे तो अपने लिए शोले तैयार पाएगा (9)

    और ये कि हम नहीं समझते कि उससे अहले ज़मीन के हक़ में बुराई मक़सूद है या उनके परवरदिगार ने उनकी भलाई का इरादा किया है (10)

    और ये कि हममें से कुछ लोग तो नेकोकार हैं और कुछ लोग और तरह के हम लोगों के भी तो कई तरह के फिरकें हैं (11)

    और ये कि हम समझते थे कि हम ज़मीन में (रह कर) ख़ुदा को हरगिज़ हरा नहीं सकते हैं और न भाग कर उसको आजिज़ कर सकते हैं (12)

    और ये कि जब हमने हिदायत (की किताब) सुनी तो उन पर ईमान लाए तो जो शख़्स अपने परवरदिगार पर ईमान लाएगा तो उसको न नुक़सान का ख़ौफ़ है और न ज़़ुल्म का (13)

    और ये कि हम में से कुछ लोग तो फ़रमाबरदार हैं और कुछ लोग नाफ़रमान तो जो लोग फ़रमाबरदार हैं तो वह सीधे रास्ते पर चलें और रहें (14)

    नाफरमान तो वह जहन्नुम के कुन्दे बने (15)

    और (ऐ रसूल तुम कह दो) कि अगर ये लोग सीधी राह पर क़ायम रहते तो हम ज़रूर उनको अलग़ारों पानी से सेराब करते (16)

    ताकि उससे उनकी आज़माईष करें और जो शख़्स अपने परवरदिगार की याद से मुँह मोड़ेगा तो वह उसको सख़्त अज़ाब में झोंक देगा (17)

    और ये कि मस्जिदें ख़ास ख़ुदा की हैं तो लोगों ख़ुदा के साथ किसी की इबादन न करना (18)

    और ये कि जब उसका बन्दा (मोहम्मद) उसकी इबादत को खड़ा होता है तो लोग उसके गिर्द हुजूम करके गिर पड़ते हैं (19)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो अपने परवरदिगार की इबादत करता हूँ और उसका किसी को शरीक नहीं बनाता (20)

    (ये भी) कह दो कि मैं तुम्हारे हक़ में न बुराई ही का एख़्तेयार रखता हूँ और न भलाई का (21)

    (ये भी) कह दो कि मुझे ख़ुदा (के अज़ाब) से कोई भी पनाह नहीं दे सकता और न मैं उसके सिवा कहीं पनाह की जगह देखता हूँ (22)

    ख़ुदा की तरफ से (एहकाम के) पहुँचा देने और उसके पैग़ामों के सिवा (कुछ नहीं कर सकता) और जिसने ख़ुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम की आग है जिसमें वह हमेषा और अबादुल आबाद तक रहेगा (23)

    यहाँ तक कि जब ये लोग उन चीज़ों को देख लेंगे जिनका उनसे वायदा किया जाता है तो उनको मालूम हो जाएगा कि किसके मददगार कमज़ोर और किसका शुमार कम है (24)

    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं नहीं जानता कि जिस दिन का तुमसे वायदा किया जाता है क़रीब है या मेरे परवरदिगार ने उसकी मुद्दत दराज़ कर दी है (25)

    (वही) ग़ैबवॉ है और अपनी ग़ैब की बाते किसी पर ज़ाहिर नहीं करता (26)

    मगर जिस पैग़म्बर को पसन्द फरमाए तो उसके आगे और पीछे निगेहबान फरिष्ते मुक़र्रर कर देता है (27)

    ताकि देख ले कि उन्होंने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचा दिए और (यूँ तो) जो कुछ उनके पास है वह सब पर हावी है और उसने तो एक एक चीज़ गिन रखी हैं (28)

73 सूरए मुज़म्मिल

सूरए मुज़म्मिल मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी बीस (20) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल (1)

    रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं) (2)

    थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो (3)

    और क़ुरान को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो (4)

    हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक़्म नाज़िल करेंगे इसमें शक नहीं कि रात को उठना (5)

    ख़ूब (नफ़्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से ज़िक्र का वक़्त है (6)

    दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं (7)

    तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का ज़िक्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो (8)

    (वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ (9)

    और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो (10)

    और मुझे उन झुठलाने वालों से जो दौलतमन्द हैं समझ लेने दो और उनको थोड़ी सी मोहलत दे दो (11)

    बेशक हमारे पास बेड़ियाँ (भी) हैं और जलाने वाली आग (भी) (12)

    और गले में फँसने वाला खाना (भी) और दुख देने वाला अज़ाब (भी) (13)

    जिस दिन ज़मीन और पहाड़ लरज़ने लगेंगे और पहाड़ रेत के टीले से भुर भुरे हो जाएँगे (14)

    (ऐ मक्का वालों) हमने तुम्हारे पास (उसी तरह) एक रसूल (मोहम्मद) को भेजा जो तुम्हारे मामले में गवाही दे जिस तरह फिरऔन के पास एक रसूल (मूसा) को भेजा था (15)

    तो फिरऔन ने उस रसूल की नाफ़रमानी की तो हमने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख़्त पकड़ा (16)

    तो अगर तुम भी न मानोगे तो उस दिन (के अज़ाब) से क्यों कर बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा बना देगा (17)

    जिस दिन आसमान फट पड़ेगा (ये) उसका वायदा पूरा होकर रहेगा (18)

    बेशक ये नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की राह एख़्तेयार करे (19)

    (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के करीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरान पढ़ लिया करो और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफर एख़्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को कर्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुर्ज़ुग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फे़रत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (20)

74 सूरए मुद्दस्सिर

सूरए मुद्दस्सिर मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी छप्पन (56) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    ऐ (मेरे) कपड़ा ओढ़ने वाले (रसूल) उठो (1)

    और लोगों को (अज़ाब से) डराओ (2)

    और अपने परवरदिगार की बड़ाई करो (3)

    और अपने कपड़े पाक रखो (4)

    और गन्दगी से अलग रहो (5)

    और इसी तरह एहसान न करो कि ज़्यादा के ख़ास्तगार बनो (6)

    और अपने परवरदिगार के लिए सब्र करो (7)

    फिर जब सूर फूँका जाएगा (8)

    तो वह दिन काफ़िरों पर सख़्त दिन होगा (9)

    आसान नहीं होगा (10)

    (ऐ रसूल) मुझे और उस शख़्स को छोड़ दो जिसे मैने अकेला पैदा किया (11)

    और उसे बहुत सा माल दिया (12)

    और नज़र के सामने रहने वाले बेटे (दिए) (13)

    और उसे हर तरह के सामान से वुसअत दी (14)

    फिर उस पर भी वह तमाअ रखता है कि मैं और बढ़ाऊँ (15)

    ये हरगिज़ न होगा ये तो मेरी आयतों का दुश्मन था (16)

    तो मैं अनक़रीब उस सख़्त अज़ाब में मुब्तिला करूँगा (17)

    उसने फिक्र की और ये तजवीज़ की (18)

    तो ये (कम्बख़्त) मार डाला जाए (19)

    उसने क्यों कर तजवीज़ की (20)

    फिर ग़ौर किया (21)

    फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बना लिया (22)

    फिर पीठ फेर कर चला गया और अकड़ बैठा (23)

    फिर कहने लगा ये बस जादू है जो (अगलों से) चला आता है (24)

    ये तो बस आदमी का कलाम है (25)

    (ख़ुदा का नहीं) मैं उसे अनक़रीब जहन्नुम में झोंक दूँगा (26)

    और तुम क्या जानों कि जहन्नुम क्या है (27)

    वह न बाक़ी रखेगी न छोड़ देगी (28)

    और बदन को जला कर सियाह कर देगी (29)

    उस पर उन्नीस (फरीश्ते मुअय्यन) हैं (30)

    और हमने जहन्नुम का निगेहबान तो बस फरिश्तो को बनाया है और उनका ये शुमार भी काफिरों की आज़माइश के लिए मुक़र्रर किया ताकि एहले किताब (फौरन) यक़ीन कर लें और मोमिनो का ईमान और ज़्यादा हो और अहले किताब और मोमिनीन (किसी तरह) शक न करें और जिन लोगों के दिल में (निफ़ाक का) मर्ज़ है (वह) और काफिर लोग कह बैठे कि इस मसल (के बयान करने) से ख़ुदा का क्या मतलब है यूँ ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है हिदायत करता है और तुम्हारे परवरदिगार के लशकरों को उसके सिवा कोई नहीं जानता और ये तो आदमियों के लिए बस नसीहत है (31)

    सुन रखो (हमें) चाँद की क़सम (32)

    और रात की जब जाने लगे (33)

    और सुबह की जब रौशन हो जाए (34)

    कि वह (जहन्नुम) भी एक बहुत बड़ी (आफ़त) है (35)

    (और) लोगों के डराने वाली है (36)

    (सबके लिए नहीं बल्कि) तुममें से वह जो शख़्स (नेकी की तरफ़) आगे बढ़ना (37)

    और (बुराई से) पीछे हटना चाहे हर शख़्स अपने आमाल के बदले गिर्द है (38)

    मगर दाहिने हाथ (में नामए अमल लेने) वाले (39)

    (बहिश्त के) बाग़ों में गुनेहगारों से बाहम पूछ रहे होंगे (40)

    कि आख़िर तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी (41)

    वह लोग कहेंगे (42)

    कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे (43)

    और न मोहताजों को खाना खिलाते थे (44)

    और एहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे (45)

    और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे) (46)

    यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी (47)

    तो (उस वक़्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी (48)

    और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं (49)

    गोया वह वहशी गधे हैं (50)

    कि शेर से (दुम दबा कर) भागते हैं (51)

    असल ये है कि उनमें से हर शख़्स इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुयी (आसमानी) किताबें अता की जाएँ (52)

    ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते (53)

    हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरान सरा सर) नसीहत है (54)

    तो जो चाहे उसे याद रखे (55)

    और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बख़्शिश का मालिक है (56)

 

75 सूरए क़यामत

सूरए क़यामत मक्के में नाज़िल हुआ और इसकी चालीस (40) आयतें है

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    मैं रोजे़ क़यामत की क़सम खाता हूँ (1)

    (और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा) ज़रूर ज़िन्दा किए जाओगे (2)

    क्या इन्सान ये ख़्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे हाँ (ज़रूर करेंगें) (3)

    हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें (4)

    मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए (5)

    पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा (6)

    तो जब आँखे चकाचौन्ध में आ जाएँगी (7)

    और चाँद गहन में लग जाएगा (8)

    और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे (9)

    तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ (10)

    यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं (11)

    उस रोज़ तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है (12)

    उस दिन आदमी को जो कुछ उसके आगे पीछे किया है बता दिया जाएगा (13)

    बल्कि इन्सान तो अपने ऊपर आप गवाह है (14)

    अगरचे वह अपने गुनाहों की उज्र व ज़रूर माज़ेरत पढ़ा करता रहे (15)

    (ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो (16)

    उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे ज़िम्मे है (17)

    तो जब हम उसको (जिबरील की ज़बानी) पढ़ें तो तुम भी (पूरा) सुनने के बाद इसी तरह पढ़ा करो (18)

    फिर उस (के मुष्किलात का समझा देना भी हमारे ज़िम्में है) (19)

    मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो (20)

    और आख़ेरत को छोड़े बैठे हो (21)

    उस रोज़ बहुत से चेहरे तो तरो ताज़ा बशशाश होंगे (22)

    (और) अपने परवरदिगार (की नेअमत) को देख रहे होंगे (23)

    और बहुतेरे मुँह उस दिन उदास होंगे (24)

    समझ रहें हैं कि उन पर मुसीबत पड़ने वाली है कि कमर तोड़ देगी (25)

    सुन लो जब जान (बदन से खिंच के) हँसली तक आ पहुँचेगी (26)

    और कहा जाएगा कि (इस वक़्त) कोई झाड़ फूँक करने वाला है (27)

    और मरने वाले ने समझा कि अब (सबसे) जुदाई है (28)

    और (मौत की तकलीफ़ से) पिन्डली से पिन्डली लिपट जाएगी (29)

    उस दिन तुमको अपने परवरदिगार की बारगाह में चलना है (30)

    तो उसने (ग़फलत में) न (कलामे ख़ुदा की) तसदीक़ की न नमाज़ पढ़ी (31)

    मगर झुठलाया और (ईमान से) मुँह फेरा (32)

    अपने घर की तरफ इतराता हुआ चला (33)

    अफसोस है तुझ पर फिर अफसोस है फिर तुफ़ है (34)

    तुझ पर फिर तुफ़ है (35)

    क्या इन्सान ये समझता है कि वह यूँ ही छोड़ दिया जाएगा (36)

    क्या वह (इब्तेदन) मनी का एक क़तरा न था जो रहम में डाली जाती है (37)

    फिर लोथड़ा हुआ फिर ख़ुदा ने उसे बनाया (38)

    फिर उसे दुरूस्त किया फिर उसकी दो किस्में बनायीं (एक) मर्द और (एक) औरत (39)

    क्या इस पर क़ादिर नहीं कि (क़यामत में) मुर्दों को ज़िन्दा कर दे (40)

 

76 सूरए दहर (इन्सान)

सूरए दहर मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी इकतीस (31) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    बेशक इन्सान पर एक ऐसा वक़्त आ चुका है कि वह कोई चीज़ क़ाबिले ज़िक्र न था (1)

    हमने इन्सान को मख़लूत नुत्फे़ से पैदा किया कि उसे आज़माये तो हमने उसे सुनता देखता बनाया (2)

    और उसको रास्ता भी दिखा दिया (अब वह) ख़्वाह शुक्र गुज़ार हो ख़्वाह न शुक्रा (3)

    हमने काफ़िरों के ज़ंजीरे ,तौक और दहकती हुयी आग तैयार कर रखी है (4)

    बेशक नेकोकार लोग शराब के वह सागर पियेंगे जिसमें काफू़र की आमेज़िश होगी ये एक चष्मा है जिसमें से ख़ुदा के (ख़ास) बन्दे पियेंगे (5)

    और जहाँ चाहेंगे बहा ले जाएँगे (6)

    ये वह लोग हैं जो नज़रें पूरी करते हैं और उस दिन से जिनकी सख़्ती हर तरह फैली होगी डरते हैं (7)

    और उसकी मोहब्बत में मोहताज और यतीम और असीर को खाना खिलाते हैं (8)

    (और कहते हैं कि) हम तो तुमको बस ख़ालिस ख़ुदा के लिए खिलाते हैं हम न तुम से बदले के ख़ास्तगार हैं और न शुक्र गुज़ारी के (9)

    हमको तो अपने परवरदिगार से उस दिन का डर है जिसमें मुँह बन जाएँगे (और) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती होंगी (10)

    तो ख़ुदा उन्हें उस दिन की तकलीफ़ से बचा लेगा और उनको ताज़गी और ख़ुशदिली अता फरमाएगा (11)

    और उनके सब्र के बदले (बहिश्त के) बाग़ और रेशम (की पोशाक) अता फ़रमाएगा (12)

    वहाँ वह तख़्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होंगे न वहाँ (सूरज की) धूप देखेंगे और न शिद्दत की सर्दी (13)

    और घने दरख़्तों के साए उन पर झुके हुए होंगे और मेवों के गुच्छे उनके बहुत क़रीब हर तरह उनके एख़्तेयार में (14)

    और उनके सामने चाँदी के साग़र और शीशे के निहायत शफ़्फ़ाफ़ गिलास का दौर चल रहा होगा (15)

    और शीशे भी (काँच के नहीं) चाँदी के जो ठीक अन्दाज़े के मुताबिक बनाए गए हैं (16)

    और वहाँ उन्हें ऐसी शराब पिलाई जाएगी जिसमें जनजबील (के पानी) की आमेज़िश होगी (17)

    ये बहिश्त में एक चष्मा है जिसका नाम सलसबील है (18)

    और उनके सामने हमेशा एक हालत पर रहने वाले नौजवाल लड़के चक्कर लगाते होंगे कि जब तुम उनको देखो तो समझो कि बिखरे हुए मोती हैं (19)

    और जब तुम वहाँ निगाह उठाओगे तो हर तरह की नेअमत और अज़ीमुश शान सल्तनत देखोगे (20)

    उनके ऊपर सब्ज़ क्रेब और अतलस की पोशाक होगी और उन्हें चाँदी के कंगन पहनाए जाएँगे और उनका परवरदिगार उन्हें निहायत पाकीज़ा शराब पिलाएगा (21)

    ये यक़ीनी तुम्हारे लिए होगा और तुम्हारी (कारगुज़ारियों के) सिले में और तुम्हारी कोशिश क़ाबिले शुक्र गुज़ारी है (22)

    (ऐ रसूल) हमने तुम पर क़ुरान को रफ़्ता रफ़्ता करके नाज़िल किया (23)

    तो तुम अपने परवरदिगार के हुक्म के इन्तज़ार में सब्र किए रहो और उन लोगों में से गुनाहगार और नाशुक्रे की पैरवी न करना (24)

    सुबह शाम अपने परवरदिगार का नाम लेते रहो (25)

    और कुछ रात गए उसका सजदा करो और बड़ी रात तक उसकी तस्बीह करते रहो (26)

    ये लोग यक़ीनन दुनिया को पसन्द करते हैं और बड़े भारी दिन को अपने पसे पुष्त छोड़ बैठे हैं (27)

    हमने उनको पैदा किया और उनके आज़ा को मज़बूत बनाया और अगर हम चाहें तो उनके बदले उन्हीं के जैसे लोग ले आएँ (28)

    बेशक ये कु़रान सरासर नसीहत है तो जो शख़्स चाहे अपने परवरदिगार की राह ले (29)

    और जब तक ख़ुदा को मंज़ूर न हो तुम लोग कुछ भी चाह नहीं सकते बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफकार दाना है (30)

    जिसको चाहे अपनी रहमत में दाख़िल कर ले और ज़ालिमों के वास्ते उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है (31)

 

77 सूरए मुरसलात

सूरए मुरसलात मक्का में नाज़िल हुआ और इसकी पचास (50) आयतें हैं

ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

    हवाओं की क़सम जो (पहले) धीमी चलती हैं (1)

    फिर ज़ोर पकड़ के आँधी हो जाती हैं (2)

    और (बादलों को) उभार कर फैला देती हैं (3)

    फिर (उनको) फाड़ कर जुदा कर देती हैं (4)

    फिर फरिश्तो की क़सम जो वही लाते हैं (5)

    ताकि हुज्जत तमाम हो और डरा दिया जाए (6)

    कि जिस बात का तुमसे वायदा किया जाता है वह ज़रूर होकर रहेगा (7)

    फिर जब तारों की चमक जाती रहेगी (8)

    और जब आसमान फट जाएगा (9)

    और जब पहाड़ (रूई की तरह) उड़े उड़े फिरेंगे (10)

    और जब पैग़म्बर लोग एक मुअय्यन वक़्त पर जमा किए जाएँगे (11)

    (फिर) भला इन (बातों) में किस दिन के लिए ताख़ीर की गयी है (12)

    फ़ैसले के दिन के लिए (13)

    और तुमको क्या मालूम की फ़ैसले का दिन क्या है (14)

    उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (15)

    क्या हमने अगलों को हलाक नहीं किया (16)

    फिर उनके पीछे पीछे पिछलों को भी चलता करेंगे (17)

    हम गुनेहगारों के साथ ऐसा ही किया करते हैं (18)

    उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (19)

    क्या हमने तुमको ज़लील पानी (मनी) से पैदा नहीं किया (20)

    फिर हमने उसको एक मुअय्यन वक़्त तक (21)

    एक महफूज़ मक़ाम (रहम) में रखा (22)

    फिर (उसका) एक अन्दाज़ा मुक़र्रर किया तो हम कैसा अच्छा अन्दाज़ा मुक़र्रर करने वाले हैं (23)

    उन दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (24)

    क्या हमने ज़मीन को ज़िन्दों और मुर्दों को समेटने वाली नहीं बनाया (25)

    और उसमें ऊँचे ऊँचे अटल पहाड़ रख दिए (26)

    और तुम लोगों को मीठा पानी पिलाया (27)

    उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (28)

    जिस चीज़ को तुम झुठलाया करते थे अब उसकी तरफ़ चलो (29)

    (धुएँ के) साये की तरफ़ चलो जिसके तीन हिस्से हैं (30)

    जिसमें न ठन्डक है और न जहन्नुम की लपक से बचाएगा (31)

    उससे इतने बड़े बड़े अँगारे बरसते होंगे जैसे महल (32)

    गोया ज़र्द रंग के ऊँट हैं (33)

    उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (34)

    ये वह दिन होगा कि लोग लब तक न हिला सकेंगे (35)

    और उनको इजाज़त दी जाएगी कि कुछ उज्र माअज़ेरत कर सकें (36)

    उस दिन झुठलाने वालों की तबाही है (37)

    यही फैसले का दिन है (जिस में) हमने तुमको और अगलों को इकट्ठा किया है (38)

    तो अगर तुम्हें कोई दाँव करना हो तो आओ चल चुको (39)

    उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (40)

    बेशक परहेज़गार लोग (दरख़्तों की) घनी छाँव में होंगे (41)

    और चश्मों और आदमियों में जो उन्हें मरग़ूब हो (42)

    (दुनिया में) जो अमल करते थे उसके बदले में मज़े से खाओ पियो (43)

    मुबारक हम नेकोकारों को ऐसा ही बदला दिया करते हैं (44)

    उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (45)

    (झुठलाने वालों) चन्द दिन चैन से खा पी लो तुम बेशक गुनेहगार हो (46)

    उस दिन झुठलाने वालों की मिट्टी ख़राब है (47)

    और जब उनसे कहा जाता है कि रूकूउ करों तो रूकूउ नहीं करते (48)

    उस दिन झुठलाने वालों की ख़राबी है (49)

    अब इसके बाद ये किस बात पर ईमान लाएँगे (50)