अनवार

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अनवार लेखक:
कैटिगिरी: हदीस

अनवार

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना अदीबुल हिन्दी साहब
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अनवार
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अनवार

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लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

मुक़द्दमा

क़ुरान क्या है यह ख़ुद क़ुरान बता रहा है। अहादीस के लिये पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि जिसने चालीस अहादीस रजा-ए- ख़ुदा और आक़बत (यमलोक) सँवारने के लिये याद कर लीं वह अम्बिया के साथ महशूर होगा।

मैंने क़ुरान करीम की चालीस चालीस आयतें और तमाम मासूमीन (अ.स.) के चालीस चालीस अक़वाल (कथन) जमा करके पेश करने की कोशीश की है। आइये देखें कि हमारी ज़िन्दगी में इन अनवार की झलक पाई जाती है या नहीं अगर नहीं तो आज ही अहद (वचन) करें कि इन अहादिस को मशअले राह बनाते हुए जेहालत (अज्ञानता) व गुमराही के अंधेरों में चिराग़ां करेंगें।

क्योंकि आज जबकि हर तरफ़ ज़ुल्म व जौर (अन्याय व दमन) का बाज़ार गर्म है मुआशरे (समाज) में हद दरजा इन्हेतात (गिरावट) और पस्ती आ गयी है। ग़ैर तो ग़ैर अपने भी तालीमाते आले मोहम्मद (अ.स.) भूल गये हैं। ऐसे पुर आशोब दौर में हमारे सामने क़ुरान और मासूमीन (अ.स.) की अहादीस के वह शह पारे हैं के अगर उनको ग़ौर से पढ़ा जाये और उन पर अमल (कार्य) करने की कोशीश की जाये तो बड़ी आसानी से हम उन मुश्किलात पर क़ाबू पा सकते हैं और बिगड़े मुआशरे (समाज) की इस्लाह (शुध्दि, दुरूस्तगी) कर सकते हैं।

आइये आज अहद (प्रतिज्ञा) करें के हम अपने आइम्मा (अ.स.) के इन अहकामात (आज्ञाओं) पर अमल पैरा (कार्यान्वित) होने की कोशिश करेंगे।

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

क़ुराने करीम

हमने इसे शबे क़द्र में नाज़िल (उतारा) किया। (1- सूरह.97)

यह क़ुरान आलेमीन (सम्पूर्ण जगत) के लिये हिदायत (निर्देश) है। (1- सूरह. 25)

इसमें हर ख़ुश्क व तर का ज़िक्र (बयान) है। (6- सूरह. 59)

यह माज़ी (भूतकाल) की दास्ताने तुम्हें इबरत के लिये सुनाता है।

यह हमेशा राहे रास्त (सीधा रास्ता) की हिदायत (निर्देश) करता है।

हमने इसमें वह बातें बयान की हैं जो मोमेनीन के लिये शफ़ा व रहमत हैं और ज़ालिमों (अन्यायी) के लिये सिवाय नुक़सान के और कुछ नहीं। (82- सूरह. 17)

हम ही ने इसको नाज़ील किया हम ही इसके मुहाफ़िज़ (रक्षक) है।

तुम इसके मतलब पर ग़ौर क्यों नहीं करते!!! क्या तुम्हारी अक़्लों पर ताले पड़ें हैं। (24- सूरह. 47)

हदीस

जिन बातों का रसूल तुम्हें हुक्म (आदेश) दें उन पर अमल करो (आदेशानुपालन) और जिन चीज़ों से मना फ़रमायें तो उनके क़रीब न जाओ। (7- सूरह. 59)

हज़रत रिसालत मआब ने फ़रमायाः- ऐ अली मेरी उम्मत (क़ौम) के जिस शख़्स ने चालीस हदीसें रज़ा-ए ख़ुदा (ईशवर की ख़ुशी) और आक़बत सँवारने के लिये याद की – तो ख़ुदावन्दे आलम उसे क़यामत के दिन अम्बिया, शोहदा, सिद्दीक़ीन और सालेहीन के साथ महशूर करेगा। (ख़ेसाल सफ़ा 509)

जिसने हमारी चालीस हदीस हराम व हलाल के सिलसिले में याद की – क़यामत (महाप्रलय) के दिन वह फ़क़ीह (धर्म निधी का ज्ञाता) और आलीम (ज्ञानी) महशूर होगा और उस पर अज़ाब नहीं किया जायेगा। (सफ़ा 508)

मेरी उम्मत (क़ौम) के जिस शख़्स ने ऐसी चालीस हदीसें हिफ़्ज़ (कंठ) कीं जिसकी उसे रोज़ मर्राह (प्रतिदिन) की ज़िन्दगी में ज़रूरत हो तो ख़ुदावन्दे आलम क़यामत (महाप्रलय) के रोज़ उसको फ़क़ीह (धर्म निधी का ज्ञाता) और आलीम महशूर करेगा।

अनवारे क़ुरआन

यह मुत्तक़ीन (ईशवर से भय रखने वाला) के लिये हिदायत (निर्देश) है।

क़ुराने करीम

१. हमेशा सही बात करो। (7- सूरह.33)

२. जब तुम पर कोई मुसीबत पड़े तो यक़ीन जानो के उसका बायस (कारण) तुम ख़ुद हो। (79- सूरह. 4)

३. ज़ालिमों की नुसरत (सहायता) करने वाला कोई नहीं। (192- सूरह. 3)

४. कभी माँगने वाले को झिड़को नहीं। (10- सूरह. 3)

५. वह बात क्यों कहते हो जो कर नहीं सकते। (2- सूरह. 61)

६. कभी किसी की टोह में मत रहा करो। (14- सूरह. 49)

७. जिस चीज़ का तुमको इल्म (ज्ञान) नहीं उसके बारे में कुछ न कहो क्योंकि कान, आँख और सब के सब क़यामत के दिन जवाब देह (उत्तरदायी) होगें। (36- सूरह. 49)

८. फ़साद (झगड़े) करते न फिरो। (56- सूरह. 7)

९. तुम उन लोगों से दूर रहो जिन्होंने दीन को खेल तमाशा बना रखा है। (69- सूरह. 7)

१०. ख़्वाहेशात नफ़सानी (आत्मइच्छाओं) की पैरवी मत करो वरना राहे ख़ुदा से हट जाओगे। (26- सूरह. 83)

११. लग़ो (व्यर्थ) बातों से बचो। (4- सूरह. 44)

१२. मुनाफ़क़ीन (जिनका बाहरी व आंनतरिक एक न हो) की एक अलामत (चिन्ह) यह है के जब वह नमाज़ के लिये ख़ड़े होते हैं तो बे-दिली के साथ। (142- सूरह. 3)

१३. तुम अल्लाह के बाज़ अहकामात (आज्ञाओं) पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार कर देते हो – उसकी सज़ा दुनिया में तुम्हारी रूस्वाई है और आख़रत (परलोक) में शदीद अज़ाब (सज़ा) हैं। (85- सूरह. 4)

१४. अपने ओमूर (कार्य) में लोगों से मशविरा करो और जब कोई बात तय कर लो तो फिर अल्लाह पर भरोसा रखो क्योंकि अल्लाह इस बात को पसन्द करता है। (159- सूरह. 3)

१५. क़ाबिले मुबारकबाद हैं वो लोग जो ग़ौर से बाते सुनते हैं और उनमें से अच्छी बातों को अपनातें हैं। (18- सूरह. 39)

१६. अहकामे इलाही (ईशवरीय आज्ञाओं) के नेफ़ाज़ (लागू) में किसी क़िस्म की रू- रेआयत नहीं बर्तनी चाहिये। (2- सूरह. 24)

१७. अपनी ख़ैरात को एहसान जता कर और साएल को कबिदा ख़ातिर (रंजीदा) करके बर्बाद न करो। (264- सूरह. 2)

१८. ग़ैरों को भी अपना राज़दार न बनाओ। (76- सूरह.3)

१९. मोमिन ख़ुदा की राह में जेहाद करता है -- काफ़िर माद्दी (दुनियावी) ताक़तों की बहीली के लिये अपनी जान देता है -- तुम शैतान के साथियों से मुक़ाबला करो -- और शैतान के हरबे तो यक़ीनन कमज़ोर हैं। (76- सूरह.4)

२०. सुस्ती न करो और परेशान ख़ातिर न हो -- अगर तुम मोमिन हो तो तुम्हीं सरबलन्द रहोगे। (139- सूरह.3)

२१. किसी नाफ़रमान की बात पर बग़ैर तहक़ीक़ किये ऐतेबार न करो वरना हो सकता है कि बाद में तुम्हें नादिम (पछतावा) होना पड़े। (6- सूरह.49)

२२. एक दूसरे को बूरे अल्क़ाब (अपशब्द) से मत नवाज़ो। (11- सूरह.49)

२३. जो इलाही अहकामात (ईशवरीय आज्ञाओं) के मुताबिक़ अमल (कार्य) नहीं करते – वही काफ़िर हैं वही ज़ालिम हैं – वही फ़ासिक़ हैं। (45- सूरह.5)

२४. आपस में झगड़ा न करो वरना तुम्हारी हिम्मतें पस्त हो जायेगीं और रोब व दबदबा ख़त्म हो जाएगा। (46- सूरह.8)

२५. अगर तुम शुक्र बजा लाओगे तो हम तुम्हारी नेमतों में इज़ाफ़ा कर देंगे. (7- सूरह.14)

२६. नमाज़े शब पढ़ा करो यह तुम्हारे लिये फ़ज़ीलत है ताकि ख़ुदा तुम्हें मक़ामे महमूद (पुनीत कक्ष) अता करे। (79- सूरह.17)

२७. हर शख़्स अपने फ़ेल (कार्य) का ज़िम्मेदार है -- और रोज़े हिसाब (क़यामत) कोई किसी का बार (बोझ) नहीं उठायेगा। (165- सूरह.6)

२८. जो लोग हमारी राह में जेहाद (संघर्ष) करते हैं उनको हम दीनी राह ख़ुद बताते हैं। (69- सूरह.29)

२९. तुम अपने अहद व पैमान (वचन) की हमेशा वफ़ा (पूरा) करो। (1- सूरह.5)

३०. दरगुज़र से काम लो, अच्छी बातों का हुक्म दो और जाहिलों से किनारा कश (दूर) रहो। (199- सूरह.7)

३१. नेकियों और अच्छाईयों में एक दूसरे का हाथ बटाओ लेकिन गुनाह व सरकशी में किसी का साथ न दो। (2- सूरह.5)

३२. ख़ुदा तुम्हें हुक्म देता है के अमानतें उनके मालिकों तक पहुँचाओ और जब लोगों के दरमियान फ़ैसला करो तो इन्साफ़ से काम लो। (58- सूरह.4)

३३. ख़ुदा किसी भी ख़यानतकार को दोस्त नहीं रखता है। (38- सूरह.22)

३४. लोग क़ुरआन के मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर क्यों नहीं करते, क्या उनके दिलों पर ताले पड़े होते हैं। (24- सूरह.47)

३५. तुम अपने माँ, बाप और अपने भाई बहनों को अपना ख़ैर ख़ा (अच्छाई करने वाला) न समझो अगर वह ईमान पर ग़लत बातों को तरजीह (प्राथमिकता) देते हैं। (23- सूरह.9)

३६. अगर तुम्हें अपने अज़ीज़, अपना ख़ानदान, अपना माल व मता अपनी तेजारत (व्यवसाय) अपने पसन्दीदा मकानात -- अल्लाह और उसके रसूल और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ (प्यारे) हैं -- तो अल्लाह के अज़ाब का इन्तेज़ार (प्रतिक्षा) करो। (24- सूरह.9)

३७. जो लोग माल व दौलत जमा करते हैं और अल्लाह की राह (मार्ग) में सर्फ़ (ख़र्च) नहीं करते तो उन्हें दर्दनाक अज़ाब से बा-ख़बर कर दो। (34- सूरह.9)

३८. शराब, जुआ, बुत, पाँसे नजिस और शैतानी खेल हैं अगर आख़ेरत (परलोक) की कामयाबी चाहते हो तो इन चीज़ों से बचो। (90- सूरह.5)

३९. जो शख़्स ईमान के साथ नेक आमाल (कार्य) भी अन्जाम देगा हम उसकी दुनिया व आख़ेरत (परलोक) दोनो सँवार देंगे। (88- सूरह.18)

४०. तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स (जिन्नात और मनुष्य)) तुम दोने अपने परवरदिगार (ईश्वर) की कौन कौन सी नेमत को ना मानोगे। (13- सूरह. 97)

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

अनवारे हदीस

पैग़म्बरे इस्लाम

(सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम)

"आपका कलाम नूर है" (ज़ियारते जामेआ)

हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.)

इस्मे मुबारक (नाम) -- -- -- मोहम्मद (स.)

लक़ब -- -- -- मुस्तफ़ा

कुन्नियत -- -- -- अबुल क़ासिम

पदरे बुज़र्गवार -- -- -- अब्दुल्लाह इब्ने अब्दुल मुत्तलिब

वालदा-ए माजिदा -- -- -- आमना बिन्ते वहब

विलादत -- -- -- 17 रबी-उल अव्वल 570 ई0

शहादत -- -- -- 28 सफ़र 11 हिजरी 632 ई0

मदफ़न -- -- -- मदीना-ए मुनव्वरा

उम्र ------------ 62 वर्ष

हज़रत रिसालतमॉब ने इरशाद फ़रमायाः-

१. तुममें सबसे बेहतर वह शख़्स है जो अल्लाह की मासियत (गुनाह) से इज्तेनाब (बचे) करे।

२. अगर तुम से कोई गुनाह सरज़द हो जाए तो उसके बाद नेक काम फ़ौरन करो ताकि (शायद) कुछ तलाफ़ी हो जाये।

३. आपस में मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो क्योंकि उससे कीना (मन में शत्रुता) ख़त्म होता हैं।

४. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को नेक काम की तरफ़ मुतावज्जेह करे।

५. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को तुम्हारी ग़लतियों की तरफ़ तुमको मुतावज्जेह करे।

६. सरवतमन्द वह शख़्स नहीं है जिसके पास माल की फ़रावानी हो बल्कि सरवतमन्द वह है जो लालच में मुबतला न हो।

७. जो शख़्स किसी बेकस व परेशान मेमिन को पनाह दे क़यामत के दिन ख़ुदावन्दा करीम उसे अपनी पनाह में ले लेगा।

८. लोगों से इस तरह मिलो के जब तक ज़िन्दा रहो लोग तुम्हारे पास आना पसन्द करें और जब मर जाओ तो तुम्को याद करके आँसू बहायें।

९. सिल्हे रहम (लोगों से भलाई) तूले उम्र (दीर्घायु) और सरवत का बायस (कारण) है।

१०. ख़ुद पसन्दी (अपने को ऊँचा समझना) से बचो वरना तुम्हारा कोई दोस्त न रह जायेगा।

११. तुम में सबसे नेक शख़्स वह है जो अपने ग़ुस्से को पी जाये और क़ुदरत के बावजूद बुर्दबारी (गंभीरता) से काम ले।

१२. क्या कहना उस शख़्स का जो ऐब (त्रुटियों) की जुस्तजू (ख़ोज) में रहता है और दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) से ग़ाफ़िल है।

१३. अपने बदन को काम और कोशिश (प्रयत्न) पर आमादा करो और हर्गिज़ काहिली और सुस्ती की तरफ़ न जाओ।

१४. आपस में एक दूसरे को तोहफ़े (उपहार) भेजो ताकि आपस में मुहब्बत बढ़े।

१५. जब तुमसे कोई मुलाक़ात के लिये आए तो उसका एहतेराम (आदर) करो।

१६. बुरे से भी नेकी करो ताकि उनकी बुराई से महफ़ूज़ (बचो) रहो।

१७. जो शख़्स दूसरों की ख़ताओं से दरगुज़र करता है ख़ुदावन्दे आलम उसकी ख़ताओ से दरगुज़र करता है।

१८. भाई वह है जो बुरे वक़्त (समय) में काम आये।

१९. ताक़तवर वह है जो अपने नफ़्स पर मुसल्लत (हावी) रहे।

२०. बदतरीन शख़्स वह है जो अपने घर वालों पर बेजा सख़्ती करे।

२१. कोई हसब व नसब ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से बेहतर नहीं।

२२. जो शख़्स लोगों पर रहम नहीं करता ख़ुदा उस पर रहम न करेगा।

२३. हमेशा अच्छी बातें करो ताकि नेकी से याद किये जाओ।

२४. बेहतरीन नेकी लोगों से इत्तेहाद (एकता) क़ायम (स्थापित) करना है।

२५. जो शख़्स ना-मशरू (ग़लत) तरीक़े से किसी चीज़ को हासिल करना चाहता है तो ज़्यादा तर नाकामयाब रहता है और अक्सर परेशानी में मुबतला ही रहता है।

२६. तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे बे बज़ाअत (ग़रीब) रिश्तेदारों और बे-चारे लोगों की मेहमान सरा हो।

२७. लोगों में ज़लील शख़्स वह है जो मख़्लूक़े ख़ूदा (ईशवर के बन्दों) को ज़लील समझे।

२८. अपने बच्चों का एहतेराम (आदर) करो और उनकी अच्छी तरबियत करो।

२९. सच हमेशा आसूदगी का बायस और झूठ हमेशा तशवीश (परेशानी) का मोजिब (कारण)।

३०. ज़रूरतमन्दों की मदद करने से बुरी मौत से निजात मिलती है।

३१. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसकी मदह व सना (तारीफ़, प्रशंसा) सिर्फ़ उसके शर से महफ़ूज़ रहने के लिए की जाती है।

३२. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसके सितम के ख़ौफ़ से लोग उसकी इताअत (आदेशानुपालन) करते हों।

३३. ख़ुदा की लानत हो उन माँ बाप पर जो अपने बच्चों की सही तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) न करें और अपने आक़ किये जाने के बायस (कारण) बनें।

३४. जो शख़्स अपने अहद व पैमान (वचन) को पूरा न करे वह मुसलमान नहीं।

३५. ख़ुदा की लानत हो उस शख़्स पर जो ज़िन्दगी का बार (बोझ) दूसरों पर डाले रहे।

३६. जो शख़्स चाहे के लोगों में महबूब रहे उसे गुनाह से इज्तेनाब (बचना) चाहिये।

३७. छोटे बच्चों के साथ बच्चों की तरह बर्ताव (व्यवहार) करो।

३८. नेकी और अच्छाई यह है कि अयादत (बीमार को पूछना) के वक़्त मरीज़ से हाथ मिलाओ मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो।

३९. बच्चों के जो हक़ूक़ (हक़ का बहु) माँ बाप पर हैं उनमें यह भी है कि उनका ख़ूबसूरत नाम रखें और उनकी नेक तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) करें।

४०. इमान वह दरख़्त (पेड़) है जिसके रेशे यक़ीन, जिसका तना तक़वा, जिसके शिगोफ़े हया और जिसका फल सख़ावत है।

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हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलवातुल्लाह अलैयहा

इस्मे मुबारक --------- फ़ातिमा (अ.स.)

लक़ब ---------- ज़हरा

कुन्नियत ------- उम्मुल आइम्मा

वालिदे बुज़ुर्गवार -------- हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स0)

वालदा-ए माजिदा ---------- ख़दीजतुल कुबरा

विलादत --------- 20 जमादिउस्सानीया 614 ई.

शहादत ---------- 3 जमादिउस्सानिया 11 हिजरी

मदफन ---------- जन्नतुल बक़ीअ

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा ने इरशाद फ़रमायाः-

१. जिसने अपनी ज़िन्दगी उन कामों में गुज़ारी जो ख़ुदावन्दे आलम से दूरी का बायस हों तो उसने अपना नुक़सान किया।

२. कपड़े धोना ग़म व ग़ुस्से को ज़ाएल (मिटा देना) कर देता है।

३. क़नाअत (सन्तोष) और इताअते ख़ुदा बेनियाज़ी और इज़्ज़त का बायस (कारण) और गुनाह (पाप) और लालच बदबख़्ती की अलामत (निशानी) है।

४. ईमान और हया का चोली दामन का साथ है अगर इनमें से कोई एक चला जाए तो दूसरे का वुजूद (अस्त्वि) बरक़रार (स्थिर) न रह सकेगा।

५. जो औरत अपने शौहर (पति) को सख़्त और मुश्किल कामों के लिये मजबूर न करे वह जन्नती है और ख़ुदा उससे राज़ी है।

६. जो औरत बिला वजह अपने शौहर (पति) से तलाक़ चाहे बेहिश्त (स्वर्ग) की ख़ुश्बू भी उस पर हराम है।

७. कितने बदबख़्त हैं वह लोग जिसमें अज़्म व पुख़्तगी (द्रढ़ता) न हो और वह अहम (ख़ास) कामों को मेज़ाह (मज़ाक़) में टाल जायें।

८. ज़ौजा (पत्नि) जब अपने शौहर (पति) का हक़ अदा न करे गोया उसने ख़ुदा के हक़ को अदा नहीं किया।

९. वह मर्द जो हवा व हवस (इच्छाओं) के बन्दे (ग़ुलाम) हों वह समाज के लिये बायसे ज़िल्लत हैं।

१०. वह औरत जो अपने शौहर को अज़ीयत (तकलीफ़) दे ख़ुदावन्दे आलम उसके नेक कामों को भी क़ुबूल (स्वीकार) नहीं करे गा।

११. जो औरत पाबन्दे नमाज़ हो और बग़ैर शौहर की इजाज़त के घर से क़दम न निकाले और उसकी फ़रमाबरदार (आज्ञाकारी) रहे ख़ुदावन्दे आलम उसके गुनाहों (पापों) को माफ़ (क्षमा) कर देगा।

१२. तुम्हें क्या हो गया है? तुम किधर जा रहे हो जबकि क़रानी अहकामात (आज्ञायें) बहुत साफ़ और वाज़ेह (खुली हुई) हैं।

१३. बर्तनों की सफाई और पाकीज़गी ग़िना (मालदारी) और नेमत में इज़ाफ़े का बायस (कारण) है ।

१४. ख़ुदावन्दे आलम ने ईमान को शिर्क (ख़ुदा का शरीक बनाने की प्रक्रिया) से पाकिज़गी का बायस (कारण) और नमाज़ को दिलों से किब्र व निख़्वत (गर्व व घमण्ड) के अज़ाले (दूर होने) का बायस बनाया है।

१५. तज़किया-ए नफ़्स (आत्मा की शुध्दता) के लिये ज़कात वाजिब की और इख़्लास की पुख़्तगी (मज़बूती) के लिए रोज़ा।

१६. हमारी इताअत (आदेशानुपालन) क़ौम की तनज़ीम की बायस (कारण) है और हमारी इमामत क़ौम के इत्तेहाद (एकता) की ज़ामिन है।

१७. इस्लाम की इज़्ज़त जेहाद (इस्लामी संघर्ष) है।

१८. अवाम की मसलैहत अम्रे मारूफ़ (अच्छाई की दावत) में है।

१९. इताअते वालदैन (पिर्त भक्ति) अज़ाबे इलाही (ईशवरीय प्रकोप) से महफ़ूज़ रखती है।

२०. सिल्हे रहम (अच्छा बर्ताव) उम्र (आयु) में इज़ाफ़े का सबब (कारण) है।

२१. क़सास (बदला) ख़ूंरेज़ी (ख़ूनी संघर्ष) को रोक देता है।

२२. नज़्र (वचन) को पूरा करना मग़्फ़रत (बख़्शिश) का सबब है।

२३. शराब इन्सान का आलूदा (ख़राब) कर देती है।

२४. तोहमत (आरोप) लगाने वाला लानत का सज़ावार है।

२५. चोरी बदअम्नी (अशान्ति) फैलाती है।

२६. जो सब्र (सहनशीलता) करता है उसे पूरा पूरा सवाब मिलता है।

२७. ऐ बन्देगाने ख़ुदा तुम अपने नफ़्स (आत्मा) पर अल्लाह के अमीन हो और दूसरी उम्मतों तक उसके पैग़ाम रसां (पहुँचाने वाले) हो।

२८. हज दीन की तक़वियत (ताक़त) का बायस (कारण) है।

२९. अदल व इन्साफ़ (न्याय) दिलों की तन्ज़ीम का ज़रिया (कारण) है।

३०. क़ुराने करीम को तुमने पसे पुश्त (पीछे) डाल दिया है क्या तुम उससे इन्हेराफ़ (मुँह फेरना) के ख़्वाहाँ (इच्छुक) हो।

३१. क़यामत के दिन निदामत (शर्मिन्दगी, पछतावा) काम आने वाली नहीं।

३२. कल्मे की अस्ल (जड़) इख़लास है उसका मफ़हूम (मतलब) फ़िक्र को रौशनी देता है।

३३. जब मख़लूक़ात परदा-ए ग़ैब में और हिजाबे अदम में थीं उस वक़्त भी मेरे पदरे बुज़ुर्गवार हवादिसे ज़माना और मुक़द्देरात की मुकम्मल मार्फ़त रखते थे।

३४. क्या तुम ज़ालिम से डरते हो जबकि ख़ौफ़ (डर) सिर्फ़ ख़ुदा का होना चाहिये।

३५. बन्दों को दावत दी गई है के शुक्र के ज़रिये नेमतों में इज़ाफ़ा करायें।

३६. ख़ुदा वह है जिसकी आँखों से रोयत (देखना), ज़बान से तारीफ़ और ख़्याल से कैफ़ियत का समझ लेना मोहाल (दुशवार) है।

३७. क़ुरान का इत्तेबा (पैरवी) निजात (मुक्ति) का ज़रिया है।

३८. पैग़म्बरे इस्लाम के इस दुनिया से उठते ही तुममें निफ़ाक़ (शत्रुता) ज़ाहिर हो गया और दीन की चादर कोहना (पुरानी) हो गयी।

३९. हज मोमेनीन की सफ़ों को आरास्ता करने का ज़रिया है।

४०. अगर बुख़ार से बचना चाहते हो तो रोज़ाना (प्रतिदिन) दुआए नूर पढ़ो।

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(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

हज़रत अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.)

इस्मे मुबारक --------- अली (अ.स.)

लक़ब --------- मुर्तज़ा

कुन्नियत ------ अबुल हसन

वालिदे बुज़ुर्गवार -------- अबुतालिब बिन अब्दुल मुत्तलिब

वालदा-ए माजिदा-------- फ़ातिमा बिन्ते असद

विलादत -------- 13 रजब 599 ई0

शहादत --------- 21 रमज़ान 40 हिजरी 661 ई0

मदफ़न --------- नजफ़े अशरफ़

हज़रत अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने इरशाद फ़रमायाः-

१. जिस चीज़ की काश्त करोगे वही महसूल (हासिल) हासिल होगा और जो अमल करोगे उसकी जज़ा (इनाम) पाओगे।

२. अमानत (धरोहर) की हिफ़ाज़त (रक्षा) में तसाहुली (काहिली) न करो। अमानत में ख़यानत फ़क़्र और तहीदस्ती (ग़रीबी) का बायस (कारण) है।

३. जिसने क़ुरान को अपना रहनुमा (मार्गदर्शक) बनाया उसकी हिदायत जन्नत की तरफ़ होगी।

४. जो क़ुरान के हराम को हलाल जाने उसका ईमान क़ुरान पर नहीं।

५. मुसलमान मुसलमान का भाई है न उसपर ज़ुल्म करें न उसको सतायें।

६. क्या कहना उस शख़्स का जो अपनी ख़ामियों (कमियों) की तलाश में रहे और दूसरों की कमज़ोरी पर नज़र न करे और जो माल मयस्सर (पास) हो, उसको गुनाह (पाप) में सर्फ़ (ख़र्च) न करे।

७. जहाँ भी रहो ख़ुदा से डरो हमेशा हक़ बात कहो अगरचे तल्ख़ (कड़वी) हो।

८. हर काम को पहले अन्दाज़ा करके और उसकी तदबीर करके शुरू करो ताकि नफ़रत से महफ़ूज़ (बचे) रहो।

९. अपने वाजेबात (जिसका न करना पाप हो) को पूरा करो ताकि परहेज़गार (बुराइयों से बचने वाले) रहो और मुक़द्देरात इलाही पर राज़ी रहो ताकि सबसे बेनियाज़ रहो।

१०. जो कोई अपने बरादरे मोमिन की हाजत पूरी करेगा ख़ुदावन्दे आलम उसकी बहुत सी हाजतें पूरी करेगा।

११. कितनी बुरी बात है के आदमी मतलब के वक़्त (समय) ख़ाकसार बना रहे और मतलब निकल जाने पर जफ़ाकार (ज़ुल्म करने वाला)।

१२. जितना हक़ तुम दूसरों पर रखते हो उतना ही हक़ वह तुम पर भी रखते हैं।

१३. जब दुश्मन पर फ़त्ह (विजय) पाओ तो कामयाबी (सफ़लता) का शुक्राना यह है के उसे माफ़ (क्षमा) कर दो।

१४. पोशीदा सदक़ा (गुप्तदान) इन्सान के गुनाहों (पापों) की तलाफ़ी (बदल) करता है।

१५. बदतरीन दोस्त (ख़राब दोस्त) वह है जो तुम्हें मासियत (गुनाहों) की तरफ़ मायल (सुझाव) करे।

१६. अपने को उन आमाल के लिये तैयान करो जिसकी ज़रूरत क़यामत (महाप्रलय) के दिन होगी।

१७. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह शख़्स (मनुष्य) है जो दूसरों की मालूमात (ज्ञान) से अपनी मालूमात (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करे।

१८. हद से ज़्यादा मेज़ाह (मज़ाक़) आबरू (इज़्ज़त) को ख़त्म कर देता है और झूठ शख़्सियत की इज़्ज़त को ज़लील कर देता है।

१९. अजीब बात है कि हासिद (ईष्य्रालु) अपनी तन्दरूस्ती की फ़िक्र नहीं करते।

२०. हमेशा ख़ुदा की याद रखो के वह दिल की नूरानी का बायस (कारण) और इबादत (तपस्या) है।

२१. अपने ईमान को एहसान और बख़्शिश के ज़रिये महफ़ूज़ (बचाये) रखो।

२२. किसी की बुराई को फ़ाश करने वाला (प्रकट करने वाला) बुराई करने वाले की मिस्ल (समान) है और ग़ीबत का सुनने वाला ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करना) करने वाले के मानिन्द (समान) है।

२३. वह लोग जो बुरे और बदकार हैं वह दूसरों के उयूब (ऐब का बहु) को फ़ाश (प्रकट) किया करते हैं ताकि अपनी ख़ामियों (कमियों) के लिये बहाना मिल जाए।

२४. तीन चीज़ों में कोई शर्मिन्दगी नहीं। मेहमान की ख़िदमत करना, उस्ताद और बाप के लिये अपनी जगह से उठना और अपने हक़ को तलब करना।

२५. तीन चीज़ें ही ज़िन्दगी को मुसीबत में डाल देती हैं कीना (मन में शत्रुता), रश्क (किसी को हानि पहुँचाये बिना उस जैसा बनने की भावना), बदमेजाज़ी।

२६. इल्म (ज्ञान) का पूरा फ़ायदा (लाभ) उस वक़्त (समय) हासिल (प्राप्त) होता है जब उसे काम में लायें (प्रयोग में लायें)

२७. जो शख़्स तुम्हारी ख़ामियों (कमियों) पर तुम को मुतावज्जेह करे तुम्हारा दोस्त और जो ख़ामियों को छिपाये वह तुम्हारा दुश्मन (शत्रु)।

२८. हर शख़्स के माल के दो शरीक हैं एक वारिस दूसरे हवादिस (हादिसे का बहु)।

२९. तुम जिसके मरकज़े उम्मीद हो उसका दिल (मन) मत तोड़ो।

३०. जो यतीम (जिनके पिता न हों) बच्चों पर मेहरबानी करता है उसके बच्चों पर मेहरबानी की जाती है।

३१. सब्र (सहनशीलता) व ज़ब्त (बर्दाश्त) ज़माने की सख़्तियों को आसान कर देता है।

३२. किसी के गिरफ़्तारे बला हो जाने से ख़ुश न हो क्योंकि ख़ुदा जाने फ़लक कज रफ़्तार तुम्हारे साथ क्या करे।

३३. दीनदार वह है जो दूसरों के सितम् तो सह ले मगर कोई उससे सितम न उठाये।

३४. उस शख़्स पर ज़ुल्म करने से ख़बरदार जिसका ख़ुदा के अलावा कोई हमनवा (साथी) नहीं।

३५. दुश्मन पर हमला करने से पहले सोच लो।

३६. बुरों की तारीफ़ करना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है।

३७. जानने के लिये सवाल करो फ़ित्ना बर्पा करने के लिये नहीं।

३८. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह है जो तुम्को ताअते इलाही (ईशवरीय भक्ति) पर मजबूर करे।

३९. अपनी बीमारी का इलाज बेकसों की दस्तगीरी (गिरते को थामना) और मदद (सहायता) से करो।

४०. बला के तूफ़ान को इबादत (तपस्या) व दुआ के ज़रिये (द्वारा) दूर करो।

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हज़रत इमाम हसन ए मुजतबा (अ.स.)

इस्मे मुबारक --------- हसन (अ.स.)

लक़ब ---------- मुजतबा

कुन्नियत -------- अबु मोहम्मद

वालिदे बुज़ुर्ग ---------- हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ.स.)

वालिदा ए माजिदा ------ हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स0)

विलादत ---------- 15 रमज़ान 3 हिजरी 625 ई0

शहादत -------- 28 सफ़र 50 हिजरी 670 ई0

मदफ़न --------- जन्नतुल बक़ी, मदीना

हज़रत इमामे हसन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमायाः-

१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।

२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।

३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।

४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।

५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।

६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।

७. तक़वा (सँयम, ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास, क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल, मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।

८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।

९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।

१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।

११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।

१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।

१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।

१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।

१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।

१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।

१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।

१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।

१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।

२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।

२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।

२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।

२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।

२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।

२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।

२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।

२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।

२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।

२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।

३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।

३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।

३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।

३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।

३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त, बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।

३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।

३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।

३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।

३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।

३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।

४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।

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