आलमे बरज़ख

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आलमे बरज़ख लेखक:
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आलमे बरज़ख
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आलमे बरज़ख

आलमे बरज़ख

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

आलमे बरज़ख़

(लेखकः शहीदे मेहराब आयतुल्लाह सैय्यद दस्तग़ैब शीराज़ी)

अनुवादकःमुहम्मद बाक़िरूल बाक़िरी जौरासी

अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क


अर्ज़े मुजारज्जिम (उर्दू)

इस्लामी जम्हूरिये ईरान से जिन किताबों की इशाअत का सिलसिला जारी है उनमें में बेशतर अपनी इफ़ादियत के लिहाज़ से पूरा हक़ रखती हैं कि उनके तरजुमे हज़राते मोमिनीन और अफ़रादे मिल्लत के सामने पेश किये जाऐं लेकिन मेरे लिये बायसे हसरत है ये बात कि अपनी रोज़ ब रोज़ गिरती हुई सेहत ,बढ़ती हुई ज़ईफ़ी और घटती हुई बीनाई की वजह से अब किसी ज़ख़ीम किताब का तरजुमा हाथ में लेने की हिम्मत नहीं होती। फ़िलहाल शहीदे मेहराब आयतुल्लाह सैय्यद अब्दुलहुसैन दस्तग़ैब की एक निस्बतन मुख़्तसर किताब बरज़ख़ का तरजुमा हदियाऐ नाज़िरीन करता हूँ। मुझे पूरा यक़ीन है कि अगर तवज्जोह के साथ इसका मुतालिआ किया जाये तो हम जैसे गुनाहगारों की दुनिया और दीन दोनों की इस्लाह में इससे पूरी मदद मिलेगी और हम अपनी मुजरिमाना ग़फ़लतों से आलूदा ज़िन्दगी को भयानक बरज़ख़ी अन्जाम से बचा सकते हैं ,अगर ज़िन्दगी और सेहत ने कुछ दिनों का मौक़ा और दिया तो इन्शाल्लाह बाज़ दूसरी किताबों के तरजुमे भी पेश करने की सआदत हासिल करूँगा ,वरना दुआऐ मग़फ़िरत का उम्मीदवार हूँगा।

इन्शाल्लाह.

वस्सलाम

आसी मुहम्मद बाक़िरूल बाक़िरी जौरासी

अर्ज़े नाशिर

अल्लाह के फ़ज़्ल ,रसूल और आले रसूल के करम से हमारी जानिब से अब तक बेशुमार किताबें उर्दू और हिन्दी में शाया की जा चुकी हैं जिनसे हज़ारों मोमिनीन इस्लाह और इल्म हासिल कर रहे हैं। वक़्त की ज़रूरत ,मोमिनीन के इसरार और नौजवानों की दिलचस्पी को देखते हुए बाज़ उर्दू किताबों का हिन्दी में तर्जुमा किया गया जो बेहद पसन्द किया गया ये किताब बरज़ख़  जो निहायत अहम मौज़ू से ताल्लुक़ रखती है आयतुल्लाह दस्तग़ैब की किताब बरज़ख़ के उर्दू तरजुमे का हिन्दी तरजुमा है कोशिश की गई है कि आसान से आसान ज़बान में किताब के पैग़ाम को अवाम के ज़ेहनों तक पहुँचा दिया जाये। उम्मीद है कि मोमिनीन पिछली किताबों की तरह इसको भी पसन्द फ़रमाऐंगें और बारगाहे इलाही में दुआ करके हमारी मेहनत को क़ुबूल फ़रमाऐंगें।

 वस्सलाम

सैय्यद अली अब्बास तबातबाई

पाँचवीं फ़स्ल

मौसमे लानत ,अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी

शिया तारीख़ की बिना पर ख़ुदा और रसूल का बदतरीन दुश्मन और हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) का क़ातिल (उमर) 9वीं रबी-उल-अव्वल को वासिले जहन्नुम हुआ।

9वीं रबीउल-अव्वल

यह दिन अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी का दिन है ,यह दिन फ़िरऔन दौरे अहलेबैत और उनके हक़ को ग़ज़्ब करने वालो का रोज़े मर्ग (मौत) है ,यह दिन मुशकिलात से रिहाई का दिन है ,यह दिन दूसरी ग़दीर है ,यह रोज़ गुनाहों की बख़्शिश ,रोज़े बरकत ,रोज़े खॉ- ख़्वाही (मज़लूमी) और ख़ुदा की ईदे अकबर है ,यह दिन शियों की ख़ुशी और आमाल के क़ुबूल होने का दिन है ,यह दिन सदक़ा देने ,क़त्ले मुनाफ़िक़ और गुमराही व ज़लाल की नाबूदी का दिन है ,यह दिन मोमिनीन से दरगुज़र करने ,मज़लूम की हिमायत करने ,गुनाहे कबीरा से परहेज़ करने और मोएज़ा व नसीहत और इबादत का दिन है। ( बिहारूल- अनवार ,जिः- 31,सः- 120 )।

लिहाज़ा अहलेबैत (अ.स.) के दोस्तदारों पर लाज़िम है कि 9रबीउल- अव्वल से 12रबीउल- अव्वल तक ईद मनाऐं।

(बिहारूल-अनवार जिः- 31,सः- 120 )

और ख़ुसूसी महफ़िलें (तर्बराई महफ़िलें) मुन्अक़िद की जाऐं ,ख़ुशी का इज़हार किया जाये और मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ.स.) पर ज़ुल्मों सितम करने वालों पर लानत और नफ़रीन की जाये।

गुनाहों से इज्तेनाब करते हुए अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो के ज़ुल्म और सितम को बयान करके उनसे बराअत (तबर्रे) का इज़हार किया जाये ,और ख़ुदा व रसूल और औलिया अल्लाह (अहलेबैत) के दिलों को शाद किया जायें।

दुशमनाने ख़ुदा व रसूल से बराअत सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है

आख़िर में हज़रते ज़हरा (स.अ.) की यादगार हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) को याद करते हैं और ख़ुदा वन्दे मन्नान और मेहरबान की बारगाह में आजिज़ाना तौर पर दस्ते-दुआ बुलन्द करते हैं किः-

"बारे-इलाहा मज़लूमीन ख़ुसूसन हरीमे इमामत व विलायत ,हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) के ख़ूने नाहक़ का बदला लेने वाले ,इमामे ज़माना (अ.स.) के ज़ुहूर में ताजील फ़रमा" (आमीन सुम्मा आमीन)

हम उम्मदी की किरन दिल में रखते हुए इन्तेज़ार के आँसू बहाते हुऐ उस दिन का इन्तेज़ार करते हैं कि जब आने वाला आऐ और उसके ज़ुहूर से दुनिया में उजाला होऐ और मदीना-ए-रसूल में उस मज़लूमा बीबी के क़ातिलों (अबूबक्र व उमर) को क़ब्रों से निकाल कर उनके ग़ुन्चा-ए- नाशग़ुफ़्ता का इन्तेक़ाम ले ,और यही बराअत और बेज़ारी का ऐलान हम इन्तेज़ार करने वालों के लिऐ सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है और हम नज़रों से ग़ायब उस इमाम के चश्मबराह हैं।

अल्ला हुम्मा लाअन कातिली फ़ातिमा ज़हरा (स 0)

चन्द मुजर्रब अमल

अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो पर लानत करना परवरदिगार से क़ुरबत का बेहतरीन तरीक़ा और दुआ के क़ुबूल होने का बहतरीन ज़रिया है ,लिहाज़ा हम यहाँ पर चन्द मुजर्रब अमल का ज़िक्र करते हैं।

अमलः- 1-सत्तर ( 70)या सात ( 7)मरतबा अल्ला हुम्मा लाअन उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर , कहे इसके बाद अर्ज़ करे या मौताती या फ़ातिमा इग़सनी।

अमलः- 2-एक गढ़ा खोदे और इकत्तर ( 71)कंकरियाँ जमा करे और हर संगरेज़े पर यह लानत पढ़ कर गढ़े में डाल देः- लाअनल्लाहो उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,लाअनल्लाहो उमर  इसके बाद गढ़े को बन्द कर दें।

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

इब्ने अब्बास बयान करते हैं कि एक रात मैं मस्जिदे रसूल में गया ताकि नमाज़े शब वहीं अदा करू ,चुनॉचे मैंने हज़रते अमीरूलमोमिनीन (अ.स.) को नमाज़ में मशग़ूल देखा ,एक गोशे में बैठकर हुस्ने इबादत देखने और क़ुरआन की आवाज़ सुनने लगा। हज़रत नवाफ़िले शब से फ़ारिग़ हुए और शफ़्अ व बित्र पढ़ी फिर कुछ इस क़िस्म की दुआऐं पढ़ीं जो मैंने कभी नहीं सुनी थीं ,जब हज़रत नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो मैने अर्ज़ की कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो! यह क्या दुआ थी ?फरमाया कि यह दुआ-ए-सनमी क़ुरैश थी। और फ़रमाया क़सम है उस ख़ुदा की जिसके क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मुहम्मद (स.अ.) और अली (अ.स.) की जान है ,जो शख़्स इस दुआ को पढ़गा उसको ऐसा अज्र नसीब होगा कि गोया उसने ऑहज़रत सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ जंगे ओहद और जंगे तबूक में जिहाद किया हो और हज़रत के सामने शहीद हुआ हो ,नीज़ उसको ऐसो 100हज व उमरे का सवाब मिलेगा जो हज़रत के साथ बजा लाये गये हों और हज़ार महीनों के रोज़ों का सवाब भी हासिल होगा और क़यामत के दिन उसका हश्र जनाबे रिसालतमआब (स.अ.) और आईम्मा-ए-मासूमीन (अ.स.) के साथ होगा और ख़ुदा वन्दे आलम उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देगा चाहे वह आसमान के सितारों ,सहरा की रेत के ज़र्रों और तमाम दरख़्तों के पत्तो के बराबर ही क्यों न हों ! नीज़ वह शख़्स क़ब्र के अज़ाब से अमान में होगा ,उसकी क़ब्र में बहिश्त का एक दरवाज़ा ख़ोल दिया जायेगा।

जिस हाजत के लिये वह यह दुआ पढ़ेगा इन्शाअल्लाह पूरी होगी। ऐ इब्ने अब्बास ! अगर हमारे किसी दोस्त पर बला व मुसीबत आये तो इस दुआ को पढ़े निजात होगी।

क़ारईने किराम! दुआऐ सनमी-ए-क़ुरैश बहुत सी दुआओं की किताबों में मौजूद हे ,ख़ासकर वज़ाफ़ुल-अबरार में भी मौजूद है। अरबी इबादत के लिये दुआओं की किताबों को देखें यहाँ पर तर्जुमा पेश किया जा रहा हैः-

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

बिस्मिल्लाहिर्र-रहमानिर्र-रहीम , "ऐ ख़ुदा वन्दे आलम तू मुहम्मद वा आले मुहम्मु पर रहमत नाज़िल फ़रमा! ख़ुदा वन्दा! तू क़ुरैश के दोनों (ज़ालिम) बातिल माबूदों और दोनों शैतानों और दोनों शरीक़ो (अबूबक्र व उमर) और उनकी दोनो बेटियों (आयशा और हफ़्सा) पर लानत कर जिन्होंने तेरे हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी की ,तेरी वही को पीठ दिखाई ,तेरे इन्आम के मुन्किर हुए ,तेरे रसूल की बात नहीं मानी ,तेरे दीन को पलट कर रख दिया ,तेरी किताब के तक़ाज़ो को पूरा नहीं होने दिया ,तेरे दुश्मनो से दोस्ती की ,तेरी नेमतों को ठुकराया ,और तेरे अहकाम को मुअत्तल किया ,और तेरे फ़राएज़ को बातिल किया और तेरी आयतों से इलहाद किया और दोस्तों से अदावत की और तेरे दुश्मनो से मुहब्बत की और तेरे शहरों को ख़राब किया और तेरे बन्दों में फ़साद फैलाया। ख़ुदा वन्दा ! तू उन दोनों (उमर व अबूबक्र) और उनकी मुताबिअत करने वालों पर लानत कर क्योंकि उन्होंने ख़ाना-ए-नबूवत को तबाह किया और उसका दरवाज़ा बन्द किया और उसकी छत को तोड़ डाला और उसके आसमान को उसकी ज़मीन से और उसकी बलन्दी को उसकी पस्ती से और उसके ज़ाहिर को उसके बातिन से मिला दिया और उस घर के मकीनों का इस्तेसाल किया और उसके मददगारों को शहीद किया और उसके बच्चों को क़त्ल किया और उसके मेम्बर को उसके वसी और उसके इल्म के वारिस से ख़ाली किया और उसकी इमामत से इन्कार किया और दोनों (अबूबक्र व उमर) ने अपने परवरदिगार का शरीक बना लिया लिहाज़ा तू उनके अज़ाब को सख़्त कर और उन दोनों (अबूबक्र व उमर) को हमेशा दोज़ख़ में रख और तू ख़ूब जानता है कि दोज़ख़ क्या है वह किसी को बाक़ी नहीं रखता और न छोड़ता है। ख़ुदा वन्दा ! तू इन पर लानत कर हर बूरी बात के बदले जो इनसे सरज़द हुई हो यानी इन्होंने हक़ को पोशीदा किया ,और मेम्बर पर चढ़े और मोमिन को तकलीफ़ दी और मुनाफ़िक़ से दोस्ती की और ख़ुदा के दोस्त को तकलीफ़ दी और रसूल के धुतकारे हुए (मरवान) को वापस ले आये और ख़ुदा के सच्चे और मुख़लिस बन्दों (अबूज़र) को जिला वतन किया और काफ़िर की मदद की और इमाम की बेहुरमती की और वाजिब में फ़ेर-बदल की और आसार के मुन्किर हुऐ और शर को इख़्तियार किया और (मासूम) का ख़ून बहाया ,और ख़ैर को तब्दील किया और कुफ़्र को क़ायम किया और झूठ और बातिल पर अड़े रहे और मिरास पर नाहक़ क़ाबिज़ हुऐ और ख़िराज को मुन्क़ता किया और हराम से अपना पेट भरा और ख़ुम्स को अपने लिये हलाल किया और बातिल की बुनियाद क़ायम की और ज़ुल्म व जौर को राएज किया और दिल में निफ़ाक़ पोशीदा रक्खा और मक्र को क़ल्ब में छुपाऐ रक्खा और ज़ुल्मों सितम की इशाअत की और वादों के ख़िलाफ़ अमल किया और अमानत में ख़यानत की और अपने अहद को तोड़ा और ख़ुदा व रसूल के हलाल को हराम किया और ख़ुदा व रसूल के हराम को हलाल किया और मासूमा-ए-आलम के शिकम पर दरवाज़ा गिराकर शिग़ाफ़ता किया और हज़रते मोहसिन मासूम का हम्ल साक़ित किया और मासूमा-ए-आलम के पहलू को ज़ख़्मी किया और वह कागज़ जो बाग़े फ़िदक दे देने के लिये लिखा गया था फ़ाड़ डाला और जमीयत को परागन्दा किया और इज़्ज़दारों की बेइज़्ज़ती की और ज़लील को अज़ीज़ किया हक़दार को हक़ से महरूम किया और झूठ को फ़रेब के साथ अमल में लाये और ख़ुदा और रसूल के अमल को बदल दिया और इमाम की मुख़ालिफ़त की।

परवरदिगार ! जिन-जिन आयतों की आईनी हैसियत को उन्होंने बदला है उनके आदाद और शुमार (गिनती) के मुताबिक़ उन पर लानत कर और जितने फ़राएज़ छोड़े हैं ,जितनी सुन्नतों को तब्दील किया है ,जो-जो अहकाम मुअत्तल किये हैं ,जिन-जिन रस्मों को मिटाया है ,जिन-जिन वसीयतों को कुछ से कुछ कर दिया और वह ऊमूर जो इनके हाथों ज़ाया हुऐ ,वह बैयत जिसके पड़ाख़च्चे उड़ाये ,वह गवाहियाँ जो छुपाई ,और वह दावे जिन्हे इन्साफ़ से महरूम रक्खा गया ,वह सुबूत जिन्हें क़ुबूल करने से इन्कार किया और वह हीले बहाने जो तराशे गये ,वह ख़यानत जो बरती गई और फिर वह पहाड़ी जिस पर यह जान बचाने के लिये चढ़ गये ,वह मुअय्यन राहे जो इन्होने बदलीं और वह खोटे रास्ते जो इन्होंने इख़्तियार किये ,उन सब के बराबर इन पर लानत भेज ! ऐ अल्लाह ! पोशीदा तौर पर ,ज़ाहिर ब-ज़ाहिर और ऐलानिया तरीक़े से इन पर लानत कर ,बेशुमार लानत ,अब्दी ( हमेशा रहने वाली ) लानत ,लगातार लानत ,और हमेशा बाक़ी रहने वाले लानत ,लानत जिसकी तादाद में कभी कमी न हो और इन पर इस लानत की मुद्दत कभी ख़त्म न हो ,ऐसी लानत जो अव्वल से शुरू हो और आख़िर तक मुन्क़ता न हो और दोस्तों और इनके हवाख़्वाहों पर लानत ,और इनके फ़रमाबरदारों और फिर इनकी तरफ़ रग़बत करने वालों पर लानत ,और इनके ऐहतेजाज पर हम-आवाज़ होने वालों पर लानत और इनकी पैरवी करने वालों के साथ ख़ड़े होने वालो पर लानत ,और इनके अक़वाल मानने वालों पर लानत और इनके अहकाम की तस्दीक़ करने वालों पर लानत भेज।

(इस जुमले को चार मर्तबा कहना है)

"ख़ुदा- वन्दा तू इन पर ऐसा अज़ाब नाज़िल कर की जिससे अहले दोज़ख़ फ़रियाद करने लगें ,ऐ तमाम आलमीन के परवरदिगार ! मेरी यही दुआ क़ुबूल कर।

(फिर चार मर्तबा कहा जाऐ)

"पस ऐ ख़ुदा तू इन सब पर लानत कर और रहमत नाज़िल कर मुहम्मद (स.अ.) और आले मुहम्मद (स.अ.) पर" और फिर मुझको अपने हलाल के साथ अपने हराम से बेनियाज़ करदे और मोहताजी से मुझको पनाह दे ,परवरदिगार! यक़ीनन मैंने बुरा किया और अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया ,मै अपने गुनाहों का इक़रार करता हूँ ,अब मैं तेरे सामने हूँ! तू अपने लिये मेरे नफ़्स की रिज़ामन्दी क़ुबूल कर क्योंकि मेरी बाज़गश्त तेरी तरफ़ है और मैं तेरी तरफ़ पलटूँ तो तू मुझ पर रहम फ़रमा ,इनायत फ़रमा जो ख़ास तेरा हिस्सा है ,अपने फ़ज़्ल और बख़्शिश और मग़फ़िरत और करम के साथ। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम ,और रहमत फ़रमा ऐ अल्लाह तमाम नबीयों के सरदार ख़ातिमुल नबीईन पर और उन जनाब की पाको पाकीज़ा और ताहिर औलाद पर ,अपनी रहमत से ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम।

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब "ज़ुलमत से निजात" पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी]]

फेहरीस्त

ज़ुल्मत से निजात 1

अर्ज़े नाशिर 2

मुक़दमा 7

पहली फ़स्ल 10

दोस्त कौन है और दुश्मन कौन ? 11

एक दिल और एक दोस्त 12

दूसरी फ़स्ल 16

क़ुरआन में किन लोगों पर लानत की गई है 16

ख़ुदा व रसूल को अज़ीयत देने वाले 16

इलाही हक़ाएक़ को छुपाने वाले 19

ज़ालेमीन 21

तीसरी फ़स्ल 23

दुश्मनाने दीन के बारे में अहलेबैत (अलैहिस्सलाम ) की सीरत 23

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने की फ़ज़ीलत 29

चौथी फ़स्ल 30

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने वालों पर ख़ास इनायतें 30

हज़रते ज़हरा (स.अ.) के क़ातिलों पर लानत करने वालों पर इमामें सादिक़ (अ.स.) की ख़ास इनायत 30

अबूराजेह पर इमामे ज़माना (अ.स.) की ख़ास इनायत 33

अल्लामा अमीनी पर अहलेबैत अलैहुम्मुस्सलाम की करम-फ़रमाई 35

शैख़े काज़िम अज़री पर जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की इनायत 37

पाँचवीं फ़स्ल 40

मौसमे लानत , अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी 40

9 वीं रबीउल-अव्वल 40

(बिहारूल-अनवार जिः- 31, सः- 120 ) 41

चन्द मुजर्रब अमल 42

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 43

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 44

फेहरीस्त .. 50

पाँचवीं फ़स्ल

मौसमे लानत ,अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी

शिया तारीख़ की बिना पर ख़ुदा और रसूल का बदतरीन दुश्मन और हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) का क़ातिल (उमर) 9वीं रबी-उल-अव्वल को वासिले जहन्नुम हुआ।

9वीं रबीउल-अव्वल

यह दिन अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी का दिन है ,यह दिन फ़िरऔन दौरे अहलेबैत और उनके हक़ को ग़ज़्ब करने वालो का रोज़े मर्ग (मौत) है ,यह दिन मुशकिलात से रिहाई का दिन है ,यह दिन दूसरी ग़दीर है ,यह रोज़ गुनाहों की बख़्शिश ,रोज़े बरकत ,रोज़े खॉ- ख़्वाही (मज़लूमी) और ख़ुदा की ईदे अकबर है ,यह दिन शियों की ख़ुशी और आमाल के क़ुबूल होने का दिन है ,यह दिन सदक़ा देने ,क़त्ले मुनाफ़िक़ और गुमराही व ज़लाल की नाबूदी का दिन है ,यह दिन मोमिनीन से दरगुज़र करने ,मज़लूम की हिमायत करने ,गुनाहे कबीरा से परहेज़ करने और मोएज़ा व नसीहत और इबादत का दिन है। ( बिहारूल- अनवार ,जिः- 31,सः- 120 )।

लिहाज़ा अहलेबैत (अ.स.) के दोस्तदारों पर लाज़िम है कि 9रबीउल- अव्वल से 12रबीउल- अव्वल तक ईद मनाऐं।

(बिहारूल-अनवार जिः- 31,सः- 120 )

और ख़ुसूसी महफ़िलें (तर्बराई महफ़िलें) मुन्अक़िद की जाऐं ,ख़ुशी का इज़हार किया जाये और मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ.स.) पर ज़ुल्मों सितम करने वालों पर लानत और नफ़रीन की जाये।

गुनाहों से इज्तेनाब करते हुए अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो के ज़ुल्म और सितम को बयान करके उनसे बराअत (तबर्रे) का इज़हार किया जाये ,और ख़ुदा व रसूल और औलिया अल्लाह (अहलेबैत) के दिलों को शाद किया जायें।

दुशमनाने ख़ुदा व रसूल से बराअत सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है

आख़िर में हज़रते ज़हरा (स.अ.) की यादगार हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) को याद करते हैं और ख़ुदा वन्दे मन्नान और मेहरबान की बारगाह में आजिज़ाना तौर पर दस्ते-दुआ बुलन्द करते हैं किः-

"बारे-इलाहा मज़लूमीन ख़ुसूसन हरीमे इमामत व विलायत ,हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) के ख़ूने नाहक़ का बदला लेने वाले ,इमामे ज़माना (अ.स.) के ज़ुहूर में ताजील फ़रमा" (आमीन सुम्मा आमीन)

हम उम्मदी की किरन दिल में रखते हुए इन्तेज़ार के आँसू बहाते हुऐ उस दिन का इन्तेज़ार करते हैं कि जब आने वाला आऐ और उसके ज़ुहूर से दुनिया में उजाला होऐ और मदीना-ए-रसूल में उस मज़लूमा बीबी के क़ातिलों (अबूबक्र व उमर) को क़ब्रों से निकाल कर उनके ग़ुन्चा-ए- नाशग़ुफ़्ता का इन्तेक़ाम ले ,और यही बराअत और बेज़ारी का ऐलान हम इन्तेज़ार करने वालों के लिऐ सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है और हम नज़रों से ग़ायब उस इमाम के चश्मबराह हैं।

अल्ला हुम्मा लाअन कातिली फ़ातिमा ज़हरा (स 0)

चन्द मुजर्रब अमल

अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो पर लानत करना परवरदिगार से क़ुरबत का बेहतरीन तरीक़ा और दुआ के क़ुबूल होने का बहतरीन ज़रिया है ,लिहाज़ा हम यहाँ पर चन्द मुजर्रब अमल का ज़िक्र करते हैं।

अमलः- 1-सत्तर ( 70)या सात ( 7)मरतबा अल्ला हुम्मा लाअन उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर , कहे इसके बाद अर्ज़ करे या मौताती या फ़ातिमा इग़सनी।

अमलः- 2-एक गढ़ा खोदे और इकत्तर ( 71)कंकरियाँ जमा करे और हर संगरेज़े पर यह लानत पढ़ कर गढ़े में डाल देः- लाअनल्लाहो उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,लाअनल्लाहो उमर  इसके बाद गढ़े को बन्द कर दें।

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

इब्ने अब्बास बयान करते हैं कि एक रात मैं मस्जिदे रसूल में गया ताकि नमाज़े शब वहीं अदा करू ,चुनॉचे मैंने हज़रते अमीरूलमोमिनीन (अ.स.) को नमाज़ में मशग़ूल देखा ,एक गोशे में बैठकर हुस्ने इबादत देखने और क़ुरआन की आवाज़ सुनने लगा। हज़रत नवाफ़िले शब से फ़ारिग़ हुए और शफ़्अ व बित्र पढ़ी फिर कुछ इस क़िस्म की दुआऐं पढ़ीं जो मैंने कभी नहीं सुनी थीं ,जब हज़रत नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो मैने अर्ज़ की कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो! यह क्या दुआ थी ?फरमाया कि यह दुआ-ए-सनमी क़ुरैश थी। और फ़रमाया क़सम है उस ख़ुदा की जिसके क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मुहम्मद (स.अ.) और अली (अ.स.) की जान है ,जो शख़्स इस दुआ को पढ़गा उसको ऐसा अज्र नसीब होगा कि गोया उसने ऑहज़रत सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ जंगे ओहद और जंगे तबूक में जिहाद किया हो और हज़रत के सामने शहीद हुआ हो ,नीज़ उसको ऐसो 100हज व उमरे का सवाब मिलेगा जो हज़रत के साथ बजा लाये गये हों और हज़ार महीनों के रोज़ों का सवाब भी हासिल होगा और क़यामत के दिन उसका हश्र जनाबे रिसालतमआब (स.अ.) और आईम्मा-ए-मासूमीन (अ.स.) के साथ होगा और ख़ुदा वन्दे आलम उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देगा चाहे वह आसमान के सितारों ,सहरा की रेत के ज़र्रों और तमाम दरख़्तों के पत्तो के बराबर ही क्यों न हों ! नीज़ वह शख़्स क़ब्र के अज़ाब से अमान में होगा ,उसकी क़ब्र में बहिश्त का एक दरवाज़ा ख़ोल दिया जायेगा।

जिस हाजत के लिये वह यह दुआ पढ़ेगा इन्शाअल्लाह पूरी होगी। ऐ इब्ने अब्बास ! अगर हमारे किसी दोस्त पर बला व मुसीबत आये तो इस दुआ को पढ़े निजात होगी।

क़ारईने किराम! दुआऐ सनमी-ए-क़ुरैश बहुत सी दुआओं की किताबों में मौजूद हे ,ख़ासकर वज़ाफ़ुल-अबरार में भी मौजूद है। अरबी इबादत के लिये दुआओं की किताबों को देखें यहाँ पर तर्जुमा पेश किया जा रहा हैः-

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

बिस्मिल्लाहिर्र-रहमानिर्र-रहीम , "ऐ ख़ुदा वन्दे आलम तू मुहम्मद वा आले मुहम्मु पर रहमत नाज़िल फ़रमा! ख़ुदा वन्दा! तू क़ुरैश के दोनों (ज़ालिम) बातिल माबूदों और दोनों शैतानों और दोनों शरीक़ो (अबूबक्र व उमर) और उनकी दोनो बेटियों (आयशा और हफ़्सा) पर लानत कर जिन्होंने तेरे हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी की ,तेरी वही को पीठ दिखाई ,तेरे इन्आम के मुन्किर हुए ,तेरे रसूल की बात नहीं मानी ,तेरे दीन को पलट कर रख दिया ,तेरी किताब के तक़ाज़ो को पूरा नहीं होने दिया ,तेरे दुश्मनो से दोस्ती की ,तेरी नेमतों को ठुकराया ,और तेरे अहकाम को मुअत्तल किया ,और तेरे फ़राएज़ को बातिल किया और तेरी आयतों से इलहाद किया और दोस्तों से अदावत की और तेरे दुश्मनो से मुहब्बत की और तेरे शहरों को ख़राब किया और तेरे बन्दों में फ़साद फैलाया। ख़ुदा वन्दा ! तू उन दोनों (उमर व अबूबक्र) और उनकी मुताबिअत करने वालों पर लानत कर क्योंकि उन्होंने ख़ाना-ए-नबूवत को तबाह किया और उसका दरवाज़ा बन्द किया और उसकी छत को तोड़ डाला और उसके आसमान को उसकी ज़मीन से और उसकी बलन्दी को उसकी पस्ती से और उसके ज़ाहिर को उसके बातिन से मिला दिया और उस घर के मकीनों का इस्तेसाल किया और उसके मददगारों को शहीद किया और उसके बच्चों को क़त्ल किया और उसके मेम्बर को उसके वसी और उसके इल्म के वारिस से ख़ाली किया और उसकी इमामत से इन्कार किया और दोनों (अबूबक्र व उमर) ने अपने परवरदिगार का शरीक बना लिया लिहाज़ा तू उनके अज़ाब को सख़्त कर और उन दोनों (अबूबक्र व उमर) को हमेशा दोज़ख़ में रख और तू ख़ूब जानता है कि दोज़ख़ क्या है वह किसी को बाक़ी नहीं रखता और न छोड़ता है। ख़ुदा वन्दा ! तू इन पर लानत कर हर बूरी बात के बदले जो इनसे सरज़द हुई हो यानी इन्होंने हक़ को पोशीदा किया ,और मेम्बर पर चढ़े और मोमिन को तकलीफ़ दी और मुनाफ़िक़ से दोस्ती की और ख़ुदा के दोस्त को तकलीफ़ दी और रसूल के धुतकारे हुए (मरवान) को वापस ले आये और ख़ुदा के सच्चे और मुख़लिस बन्दों (अबूज़र) को जिला वतन किया और काफ़िर की मदद की और इमाम की बेहुरमती की और वाजिब में फ़ेर-बदल की और आसार के मुन्किर हुऐ और शर को इख़्तियार किया और (मासूम) का ख़ून बहाया ,और ख़ैर को तब्दील किया और कुफ़्र को क़ायम किया और झूठ और बातिल पर अड़े रहे और मिरास पर नाहक़ क़ाबिज़ हुऐ और ख़िराज को मुन्क़ता किया और हराम से अपना पेट भरा और ख़ुम्स को अपने लिये हलाल किया और बातिल की बुनियाद क़ायम की और ज़ुल्म व जौर को राएज किया और दिल में निफ़ाक़ पोशीदा रक्खा और मक्र को क़ल्ब में छुपाऐ रक्खा और ज़ुल्मों सितम की इशाअत की और वादों के ख़िलाफ़ अमल किया और अमानत में ख़यानत की और अपने अहद को तोड़ा और ख़ुदा व रसूल के हलाल को हराम किया और ख़ुदा व रसूल के हराम को हलाल किया और मासूमा-ए-आलम के शिकम पर दरवाज़ा गिराकर शिग़ाफ़ता किया और हज़रते मोहसिन मासूम का हम्ल साक़ित किया और मासूमा-ए-आलम के पहलू को ज़ख़्मी किया और वह कागज़ जो बाग़े फ़िदक दे देने के लिये लिखा गया था फ़ाड़ डाला और जमीयत को परागन्दा किया और इज़्ज़दारों की बेइज़्ज़ती की और ज़लील को अज़ीज़ किया हक़दार को हक़ से महरूम किया और झूठ को फ़रेब के साथ अमल में लाये और ख़ुदा और रसूल के अमल को बदल दिया और इमाम की मुख़ालिफ़त की।

परवरदिगार ! जिन-जिन आयतों की आईनी हैसियत को उन्होंने बदला है उनके आदाद और शुमार (गिनती) के मुताबिक़ उन पर लानत कर और जितने फ़राएज़ छोड़े हैं ,जितनी सुन्नतों को तब्दील किया है ,जो-जो अहकाम मुअत्तल किये हैं ,जिन-जिन रस्मों को मिटाया है ,जिन-जिन वसीयतों को कुछ से कुछ कर दिया और वह ऊमूर जो इनके हाथों ज़ाया हुऐ ,वह बैयत जिसके पड़ाख़च्चे उड़ाये ,वह गवाहियाँ जो छुपाई ,और वह दावे जिन्हे इन्साफ़ से महरूम रक्खा गया ,वह सुबूत जिन्हें क़ुबूल करने से इन्कार किया और वह हीले बहाने जो तराशे गये ,वह ख़यानत जो बरती गई और फिर वह पहाड़ी जिस पर यह जान बचाने के लिये चढ़ गये ,वह मुअय्यन राहे जो इन्होने बदलीं और वह खोटे रास्ते जो इन्होंने इख़्तियार किये ,उन सब के बराबर इन पर लानत भेज ! ऐ अल्लाह ! पोशीदा तौर पर ,ज़ाहिर ब-ज़ाहिर और ऐलानिया तरीक़े से इन पर लानत कर ,बेशुमार लानत ,अब्दी ( हमेशा रहने वाली ) लानत ,लगातार लानत ,और हमेशा बाक़ी रहने वाले लानत ,लानत जिसकी तादाद में कभी कमी न हो और इन पर इस लानत की मुद्दत कभी ख़त्म न हो ,ऐसी लानत जो अव्वल से शुरू हो और आख़िर तक मुन्क़ता न हो और दोस्तों और इनके हवाख़्वाहों पर लानत ,और इनके फ़रमाबरदारों और फिर इनकी तरफ़ रग़बत करने वालों पर लानत ,और इनके ऐहतेजाज पर हम-आवाज़ होने वालों पर लानत और इनकी पैरवी करने वालों के साथ ख़ड़े होने वालो पर लानत ,और इनके अक़वाल मानने वालों पर लानत और इनके अहकाम की तस्दीक़ करने वालों पर लानत भेज।

(इस जुमले को चार मर्तबा कहना है)

"ख़ुदा- वन्दा तू इन पर ऐसा अज़ाब नाज़िल कर की जिससे अहले दोज़ख़ फ़रियाद करने लगें ,ऐ तमाम आलमीन के परवरदिगार ! मेरी यही दुआ क़ुबूल कर।

(फिर चार मर्तबा कहा जाऐ)

"पस ऐ ख़ुदा तू इन सब पर लानत कर और रहमत नाज़िल कर मुहम्मद (स.अ.) और आले मुहम्मद (स.अ.) पर" और फिर मुझको अपने हलाल के साथ अपने हराम से बेनियाज़ करदे और मोहताजी से मुझको पनाह दे ,परवरदिगार! यक़ीनन मैंने बुरा किया और अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया ,मै अपने गुनाहों का इक़रार करता हूँ ,अब मैं तेरे सामने हूँ! तू अपने लिये मेरे नफ़्स की रिज़ामन्दी क़ुबूल कर क्योंकि मेरी बाज़गश्त तेरी तरफ़ है और मैं तेरी तरफ़ पलटूँ तो तू मुझ पर रहम फ़रमा ,इनायत फ़रमा जो ख़ास तेरा हिस्सा है ,अपने फ़ज़्ल और बख़्शिश और मग़फ़िरत और करम के साथ। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम ,और रहमत फ़रमा ऐ अल्लाह तमाम नबीयों के सरदार ख़ातिमुल नबीईन पर और उन जनाब की पाको पाकीज़ा और ताहिर औलाद पर ,अपनी रहमत से ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम।

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब "ज़ुलमत से निजात" पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी]]

फेहरीस्त

ज़ुल्मत से निजात 1

अर्ज़े नाशिर 2

मुक़दमा 7

पहली फ़स्ल 10

दोस्त कौन है और दुश्मन कौन ? 11

एक दिल और एक दोस्त 12

दूसरी फ़स्ल 16

क़ुरआन में किन लोगों पर लानत की गई है 16

ख़ुदा व रसूल को अज़ीयत देने वाले 16

इलाही हक़ाएक़ को छुपाने वाले 19

ज़ालेमीन 21

तीसरी फ़स्ल 23

दुश्मनाने दीन के बारे में अहलेबैत (अलैहिस्सलाम ) की सीरत 23

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने की फ़ज़ीलत 29

चौथी फ़स्ल 30

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने वालों पर ख़ास इनायतें 30

हज़रते ज़हरा (स.अ.) के क़ातिलों पर लानत करने वालों पर इमामें सादिक़ (अ.स.) की ख़ास इनायत 30

अबूराजेह पर इमामे ज़माना (अ.स.) की ख़ास इनायत 33

अल्लामा अमीनी पर अहलेबैत अलैहुम्मुस्सलाम की करम-फ़रमाई 35

शैख़े काज़िम अज़री पर जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की इनायत 37

पाँचवीं फ़स्ल 40

मौसमे लानत , अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी 40

9 वीं रबीउल-अव्वल 40

(बिहारूल-अनवार जिः- 31, सः- 120 ) 41

चन्द मुजर्रब अमल 42

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 43

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 44

फेहरीस्त .. 50

पाँचवीं फ़स्ल

मौसमे लानत ,अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी

शिया तारीख़ की बिना पर ख़ुदा और रसूल का बदतरीन दुश्मन और हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) का क़ातिल (उमर) 9वीं रबी-उल-अव्वल को वासिले जहन्नुम हुआ।

9वीं रबीउल-अव्वल

यह दिन अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी का दिन है ,यह दिन फ़िरऔन दौरे अहलेबैत और उनके हक़ को ग़ज़्ब करने वालो का रोज़े मर्ग (मौत) है ,यह दिन मुशकिलात से रिहाई का दिन है ,यह दिन दूसरी ग़दीर है ,यह रोज़ गुनाहों की बख़्शिश ,रोज़े बरकत ,रोज़े खॉ- ख़्वाही (मज़लूमी) और ख़ुदा की ईदे अकबर है ,यह दिन शियों की ख़ुशी और आमाल के क़ुबूल होने का दिन है ,यह दिन सदक़ा देने ,क़त्ले मुनाफ़िक़ और गुमराही व ज़लाल की नाबूदी का दिन है ,यह दिन मोमिनीन से दरगुज़र करने ,मज़लूम की हिमायत करने ,गुनाहे कबीरा से परहेज़ करने और मोएज़ा व नसीहत और इबादत का दिन है। ( बिहारूल- अनवार ,जिः- 31,सः- 120 )।

लिहाज़ा अहलेबैत (अ.स.) के दोस्तदारों पर लाज़िम है कि 9रबीउल- अव्वल से 12रबीउल- अव्वल तक ईद मनाऐं।

(बिहारूल-अनवार जिः- 31,सः- 120 )

और ख़ुसूसी महफ़िलें (तर्बराई महफ़िलें) मुन्अक़िद की जाऐं ,ख़ुशी का इज़हार किया जाये और मुहम्मद व आले मुहम्मद (अ.स.) पर ज़ुल्मों सितम करने वालों पर लानत और नफ़रीन की जाये।

गुनाहों से इज्तेनाब करते हुए अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो के ज़ुल्म और सितम को बयान करके उनसे बराअत (तबर्रे) का इज़हार किया जाये ,और ख़ुदा व रसूल और औलिया अल्लाह (अहलेबैत) के दिलों को शाद किया जायें।

दुशमनाने ख़ुदा व रसूल से बराअत सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है

आख़िर में हज़रते ज़हरा (स.अ.) की यादगार हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) को याद करते हैं और ख़ुदा वन्दे मन्नान और मेहरबान की बारगाह में आजिज़ाना तौर पर दस्ते-दुआ बुलन्द करते हैं किः-

"बारे-इलाहा मज़लूमीन ख़ुसूसन हरीमे इमामत व विलायत ,हज़रते फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) के ख़ूने नाहक़ का बदला लेने वाले ,इमामे ज़माना (अ.स.) के ज़ुहूर में ताजील फ़रमा" (आमीन सुम्मा आमीन)

हम उम्मदी की किरन दिल में रखते हुए इन्तेज़ार के आँसू बहाते हुऐ उस दिन का इन्तेज़ार करते हैं कि जब आने वाला आऐ और उसके ज़ुहूर से दुनिया में उजाला होऐ और मदीना-ए-रसूल में उस मज़लूमा बीबी के क़ातिलों (अबूबक्र व उमर) को क़ब्रों से निकाल कर उनके ग़ुन्चा-ए- नाशग़ुफ़्ता का इन्तेक़ाम ले ,और यही बराअत और बेज़ारी का ऐलान हम इन्तेज़ार करने वालों के लिऐ सरे फ़स्ले इन्तेज़ार है और हम नज़रों से ग़ायब उस इमाम के चश्मबराह हैं।

अल्ला हुम्मा लाअन कातिली फ़ातिमा ज़हरा (स 0)

चन्द मुजर्रब अमल

अहलेबैत (अ.स.) के दुश्मनो पर लानत करना परवरदिगार से क़ुरबत का बेहतरीन तरीक़ा और दुआ के क़ुबूल होने का बहतरीन ज़रिया है ,लिहाज़ा हम यहाँ पर चन्द मुजर्रब अमल का ज़िक्र करते हैं।

अमलः- 1-सत्तर ( 70)या सात ( 7)मरतबा अल्ला हुम्मा लाअन उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर ,सुम्मा उमर , कहे इसके बाद अर्ज़ करे या मौताती या फ़ातिमा इग़सनी।

अमलः- 2-एक गढ़ा खोदे और इकत्तर ( 71)कंकरियाँ जमा करे और हर संगरेज़े पर यह लानत पढ़ कर गढ़े में डाल देः- लाअनल्लाहो उमर ,सुम्मा अबाबक्र व उमर ,सुम्मा उसमान व उमर ,लाअनल्लाहो उमर  इसके बाद गढ़े को बन्द कर दें।

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

इब्ने अब्बास बयान करते हैं कि एक रात मैं मस्जिदे रसूल में गया ताकि नमाज़े शब वहीं अदा करू ,चुनॉचे मैंने हज़रते अमीरूलमोमिनीन (अ.स.) को नमाज़ में मशग़ूल देखा ,एक गोशे में बैठकर हुस्ने इबादत देखने और क़ुरआन की आवाज़ सुनने लगा। हज़रत नवाफ़िले शब से फ़ारिग़ हुए और शफ़्अ व बित्र पढ़ी फिर कुछ इस क़िस्म की दुआऐं पढ़ीं जो मैंने कभी नहीं सुनी थीं ,जब हज़रत नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो मैने अर्ज़ की कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो! यह क्या दुआ थी ?फरमाया कि यह दुआ-ए-सनमी क़ुरैश थी। और फ़रमाया क़सम है उस ख़ुदा की जिसके क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मुहम्मद (स.अ.) और अली (अ.स.) की जान है ,जो शख़्स इस दुआ को पढ़गा उसको ऐसा अज्र नसीब होगा कि गोया उसने ऑहज़रत सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ जंगे ओहद और जंगे तबूक में जिहाद किया हो और हज़रत के सामने शहीद हुआ हो ,नीज़ उसको ऐसो 100हज व उमरे का सवाब मिलेगा जो हज़रत के साथ बजा लाये गये हों और हज़ार महीनों के रोज़ों का सवाब भी हासिल होगा और क़यामत के दिन उसका हश्र जनाबे रिसालतमआब (स.अ.) और आईम्मा-ए-मासूमीन (अ.स.) के साथ होगा और ख़ुदा वन्दे आलम उसके तमाम गुनाह माफ़ कर देगा चाहे वह आसमान के सितारों ,सहरा की रेत के ज़र्रों और तमाम दरख़्तों के पत्तो के बराबर ही क्यों न हों ! नीज़ वह शख़्स क़ब्र के अज़ाब से अमान में होगा ,उसकी क़ब्र में बहिश्त का एक दरवाज़ा ख़ोल दिया जायेगा।

जिस हाजत के लिये वह यह दुआ पढ़ेगा इन्शाअल्लाह पूरी होगी। ऐ इब्ने अब्बास ! अगर हमारे किसी दोस्त पर बला व मुसीबत आये तो इस दुआ को पढ़े निजात होगी।

क़ारईने किराम! दुआऐ सनमी-ए-क़ुरैश बहुत सी दुआओं की किताबों में मौजूद हे ,ख़ासकर वज़ाफ़ुल-अबरार में भी मौजूद है। अरबी इबादत के लिये दुआओं की किताबों को देखें यहाँ पर तर्जुमा पेश किया जा रहा हैः-

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश

बिस्मिल्लाहिर्र-रहमानिर्र-रहीम , "ऐ ख़ुदा वन्दे आलम तू मुहम्मद वा आले मुहम्मु पर रहमत नाज़िल फ़रमा! ख़ुदा वन्दा! तू क़ुरैश के दोनों (ज़ालिम) बातिल माबूदों और दोनों शैतानों और दोनों शरीक़ो (अबूबक्र व उमर) और उनकी दोनो बेटियों (आयशा और हफ़्सा) पर लानत कर जिन्होंने तेरे हुक्म की ख़िलाफ़वर्ज़ी की ,तेरी वही को पीठ दिखाई ,तेरे इन्आम के मुन्किर हुए ,तेरे रसूल की बात नहीं मानी ,तेरे दीन को पलट कर रख दिया ,तेरी किताब के तक़ाज़ो को पूरा नहीं होने दिया ,तेरे दुश्मनो से दोस्ती की ,तेरी नेमतों को ठुकराया ,और तेरे अहकाम को मुअत्तल किया ,और तेरे फ़राएज़ को बातिल किया और तेरी आयतों से इलहाद किया और दोस्तों से अदावत की और तेरे दुश्मनो से मुहब्बत की और तेरे शहरों को ख़राब किया और तेरे बन्दों में फ़साद फैलाया। ख़ुदा वन्दा ! तू उन दोनों (उमर व अबूबक्र) और उनकी मुताबिअत करने वालों पर लानत कर क्योंकि उन्होंने ख़ाना-ए-नबूवत को तबाह किया और उसका दरवाज़ा बन्द किया और उसकी छत को तोड़ डाला और उसके आसमान को उसकी ज़मीन से और उसकी बलन्दी को उसकी पस्ती से और उसके ज़ाहिर को उसके बातिन से मिला दिया और उस घर के मकीनों का इस्तेसाल किया और उसके मददगारों को शहीद किया और उसके बच्चों को क़त्ल किया और उसके मेम्बर को उसके वसी और उसके इल्म के वारिस से ख़ाली किया और उसकी इमामत से इन्कार किया और दोनों (अबूबक्र व उमर) ने अपने परवरदिगार का शरीक बना लिया लिहाज़ा तू उनके अज़ाब को सख़्त कर और उन दोनों (अबूबक्र व उमर) को हमेशा दोज़ख़ में रख और तू ख़ूब जानता है कि दोज़ख़ क्या है वह किसी को बाक़ी नहीं रखता और न छोड़ता है। ख़ुदा वन्दा ! तू इन पर लानत कर हर बूरी बात के बदले जो इनसे सरज़द हुई हो यानी इन्होंने हक़ को पोशीदा किया ,और मेम्बर पर चढ़े और मोमिन को तकलीफ़ दी और मुनाफ़िक़ से दोस्ती की और ख़ुदा के दोस्त को तकलीफ़ दी और रसूल के धुतकारे हुए (मरवान) को वापस ले आये और ख़ुदा के सच्चे और मुख़लिस बन्दों (अबूज़र) को जिला वतन किया और काफ़िर की मदद की और इमाम की बेहुरमती की और वाजिब में फ़ेर-बदल की और आसार के मुन्किर हुऐ और शर को इख़्तियार किया और (मासूम) का ख़ून बहाया ,और ख़ैर को तब्दील किया और कुफ़्र को क़ायम किया और झूठ और बातिल पर अड़े रहे और मिरास पर नाहक़ क़ाबिज़ हुऐ और ख़िराज को मुन्क़ता किया और हराम से अपना पेट भरा और ख़ुम्स को अपने लिये हलाल किया और बातिल की बुनियाद क़ायम की और ज़ुल्म व जौर को राएज किया और दिल में निफ़ाक़ पोशीदा रक्खा और मक्र को क़ल्ब में छुपाऐ रक्खा और ज़ुल्मों सितम की इशाअत की और वादों के ख़िलाफ़ अमल किया और अमानत में ख़यानत की और अपने अहद को तोड़ा और ख़ुदा व रसूल के हलाल को हराम किया और ख़ुदा व रसूल के हराम को हलाल किया और मासूमा-ए-आलम के शिकम पर दरवाज़ा गिराकर शिग़ाफ़ता किया और हज़रते मोहसिन मासूम का हम्ल साक़ित किया और मासूमा-ए-आलम के पहलू को ज़ख़्मी किया और वह कागज़ जो बाग़े फ़िदक दे देने के लिये लिखा गया था फ़ाड़ डाला और जमीयत को परागन्दा किया और इज़्ज़दारों की बेइज़्ज़ती की और ज़लील को अज़ीज़ किया हक़दार को हक़ से महरूम किया और झूठ को फ़रेब के साथ अमल में लाये और ख़ुदा और रसूल के अमल को बदल दिया और इमाम की मुख़ालिफ़त की।

परवरदिगार ! जिन-जिन आयतों की आईनी हैसियत को उन्होंने बदला है उनके आदाद और शुमार (गिनती) के मुताबिक़ उन पर लानत कर और जितने फ़राएज़ छोड़े हैं ,जितनी सुन्नतों को तब्दील किया है ,जो-जो अहकाम मुअत्तल किये हैं ,जिन-जिन रस्मों को मिटाया है ,जिन-जिन वसीयतों को कुछ से कुछ कर दिया और वह ऊमूर जो इनके हाथों ज़ाया हुऐ ,वह बैयत जिसके पड़ाख़च्चे उड़ाये ,वह गवाहियाँ जो छुपाई ,और वह दावे जिन्हे इन्साफ़ से महरूम रक्खा गया ,वह सुबूत जिन्हें क़ुबूल करने से इन्कार किया और वह हीले बहाने जो तराशे गये ,वह ख़यानत जो बरती गई और फिर वह पहाड़ी जिस पर यह जान बचाने के लिये चढ़ गये ,वह मुअय्यन राहे जो इन्होने बदलीं और वह खोटे रास्ते जो इन्होंने इख़्तियार किये ,उन सब के बराबर इन पर लानत भेज ! ऐ अल्लाह ! पोशीदा तौर पर ,ज़ाहिर ब-ज़ाहिर और ऐलानिया तरीक़े से इन पर लानत कर ,बेशुमार लानत ,अब्दी ( हमेशा रहने वाली ) लानत ,लगातार लानत ,और हमेशा बाक़ी रहने वाले लानत ,लानत जिसकी तादाद में कभी कमी न हो और इन पर इस लानत की मुद्दत कभी ख़त्म न हो ,ऐसी लानत जो अव्वल से शुरू हो और आख़िर तक मुन्क़ता न हो और दोस्तों और इनके हवाख़्वाहों पर लानत ,और इनके फ़रमाबरदारों और फिर इनकी तरफ़ रग़बत करने वालों पर लानत ,और इनके ऐहतेजाज पर हम-आवाज़ होने वालों पर लानत और इनकी पैरवी करने वालों के साथ ख़ड़े होने वालो पर लानत ,और इनके अक़वाल मानने वालों पर लानत और इनके अहकाम की तस्दीक़ करने वालों पर लानत भेज।

(इस जुमले को चार मर्तबा कहना है)

"ख़ुदा- वन्दा तू इन पर ऐसा अज़ाब नाज़िल कर की जिससे अहले दोज़ख़ फ़रियाद करने लगें ,ऐ तमाम आलमीन के परवरदिगार ! मेरी यही दुआ क़ुबूल कर।

(फिर चार मर्तबा कहा जाऐ)

"पस ऐ ख़ुदा तू इन सब पर लानत कर और रहमत नाज़िल कर मुहम्मद (स.अ.) और आले मुहम्मद (स.अ.) पर" और फिर मुझको अपने हलाल के साथ अपने हराम से बेनियाज़ करदे और मोहताजी से मुझको पनाह दे ,परवरदिगार! यक़ीनन मैंने बुरा किया और अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया ,मै अपने गुनाहों का इक़रार करता हूँ ,अब मैं तेरे सामने हूँ! तू अपने लिये मेरे नफ़्स की रिज़ामन्दी क़ुबूल कर क्योंकि मेरी बाज़गश्त तेरी तरफ़ है और मैं तेरी तरफ़ पलटूँ तो तू मुझ पर रहम फ़रमा ,इनायत फ़रमा जो ख़ास तेरा हिस्सा है ,अपने फ़ज़्ल और बख़्शिश और मग़फ़िरत और करम के साथ। ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम ,और रहमत फ़रमा ऐ अल्लाह तमाम नबीयों के सरदार ख़ातिमुल नबीईन पर और उन जनाब की पाको पाकीज़ा और ताहिर औलाद पर ,अपनी रहमत से ऐ रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहीम।

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब "ज़ुलमत से निजात" पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी]]

फेहरीस्त

ज़ुल्मत से निजात 1

अर्ज़े नाशिर 2

मुक़दमा 7

पहली फ़स्ल 10

दोस्त कौन है और दुश्मन कौन ? 11

एक दिल और एक दोस्त 12

दूसरी फ़स्ल 16

क़ुरआन में किन लोगों पर लानत की गई है 16

ख़ुदा व रसूल को अज़ीयत देने वाले 16

इलाही हक़ाएक़ को छुपाने वाले 19

ज़ालेमीन 21

तीसरी फ़स्ल 23

दुश्मनाने दीन के बारे में अहलेबैत (अलैहिस्सलाम ) की सीरत 23

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने की फ़ज़ीलत 29

चौथी फ़स्ल 30

अहलेबैत के दुश्मनो पर लानत करने वालों पर ख़ास इनायतें 30

हज़रते ज़हरा (स.अ.) के क़ातिलों पर लानत करने वालों पर इमामें सादिक़ (अ.स.) की ख़ास इनायत 30

अबूराजेह पर इमामे ज़माना (अ.स.) की ख़ास इनायत 33

अल्लामा अमीनी पर अहलेबैत अलैहुम्मुस्सलाम की करम-फ़रमाई 35

शैख़े काज़िम अज़री पर जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) की इनायत 37

पाँचवीं फ़स्ल 40

मौसमे लानत , अहलेबैत (अ.स.) की ख़ुशी 40

9 वीं रबीउल-अव्वल 40

(बिहारूल-अनवार जिः- 31, सः- 120 ) 41

चन्द मुजर्रब अमल 42

दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 43

तर्जुमा दुआ-ए-सनमी क़ुरैश 44

फेहरीस्त .. 50


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