ग़दीर और वहदते इस्लामी

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ग़दीर और वहदते इस्लामी लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

ग़दीर और वहदते इस्लामी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना इक़बाल हैदर हैदरी
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ग़दीर और वहदते इस्लामी
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ग़दीर और वहदते इस्लामी

ग़दीर और वहदते इस्लामी

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हदीसे ग़दीर का तवातुर

हर वह अहम तारिख़ी वाक़ेया जिस में उम्मत के रहबर की बात हो और बहुत सी जमाअत के दरमियान वह वाक़ेया पेश आया हो , इस बात का तक़ाज़ा करता है कि वह मुतवातिर हो , मख़्सूसन अगर इस वाक़ेया में अज़ीमुश शान रहबराने इलाही ने ऐहतेमाम भी किया हो और हर मुल्क व हर शहर के लोग इस वाक़ेया के शाहिद व नाज़िर हों , नीज़ उस रहबर की तरफ़ से इस वाक़ेया को नश्र करने की मज़ीद ताकीद भी हो तो ऐसे हालात के पेशे नज़र क्या यह दावा किया जा सकता है कि ऐसे वाक़ेया को एक या दो या चंद लोग बयान करेंगें ? या यक़ीनी तौर पर इस वाक़ेया की नक़्ल मुतावातिर होगी ? हदीसे ग़दीर इसी क़िस्म का वाक़ेया है , क्यो कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने इस हदीस को मुख़तलिफ़ इस्लामी मुमालिक और मुख़्तलिफ़ इस्लामी शहरों के दसियों हज़ार लोगों के मजमे में बयान किया है और ताकीद फ़रमाई कि इस वाक़ेया के दरमियान बयान किया जाये।

हदीसे ग़दीर के तवातुर का इक़रार करने वाले उलामा

1. जलालुद्दीन सुयूती

2. अल्लामा मनावी

3. अल्लामा अज़ीज़ी

4. मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी

(अल फ़वायदुल मुताकासिरा फ़ी अख़बारिल मुतावातिरा)

(अत तयसीर फ़ी शरहे जामेइस सग़ीर जिल्द 2 पेज 442)

(शरहे जामेइस सग़ीर जिल्द 3 पेज 360)

(अलमिरक़ात फी शरहिल मिशकात जिल्द 5 पेज 568)

5. मीरज़ा मख़दूम बिन मीर अब्दुल बाक़ी

6. मुहम्मद बिन इस्माईले यमानी

7. मुहम्मद सद्र आलिम

8. शेख़ अब्दुल्लाह शाफ़ेई

9. शेख़ ज़ियाऊद्दीन मुक़बेली

10. इब्ने कसीरे दमिश्क़ी

11. अबी अब्दिल्लाह हाफ़िज़ ज़हबी

12. इब्ने जज़री

13. शेख़ हुसामुद्दीन मुत्तक़ी

14. जमालुद्दीन हुसैनी शीराज़ी

15. हाफ़िज़ शहाबुद्दीन अबुल फ़ैज़ अहमद बिन मुहम्मद बिन सदीक़ ग़मारी मग़रबी

मौसूफ़ कहते हैं: हदीसे पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मुतावातिर तरीक़ों से बयान हुई है और अगर सबकी सनद बयान करें तो बहुत तूलानी फ़ेहरिस्त हो जायेगी , लेकिन बहस कामिल होने की वजह सिर्फ़ नक़्ल करने वालों की तरफ़ इशारा करते हैं और जो शख़्स इन सब को सनदों के बारे में मज़ीद मालूमात हासिल करना चाहे वह हमारी किताब अल मुतावातिर का मुतालआ करे।

(नफ़हातुल अज़हार जिल्द 6 पेज 121)

(नफ़हातुल अज़हार जिल्द 6 पेज 126)

(नफ़हातुल अज़हार जिल्द 6 पेज 127)

(अल अल अरबईन)

(नफ़हातुल अज़हार जिल्द 6 पेज 125)

(अल बिदायह वन निहायह)

(तुरुक़े हदीसे मन कुन्ता मौला)

(असनल मतालिब)

(अल अरबईन)

(तशनीफ़िल आज़ान पेज 77)

हदीसे ग़दीर की सेहत को इक़रार करने वाले उलामा

बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने हदीसे गदीर की सेहत का इक़रार किया है जैसे:

1. इब्ने हजरे हैतमी

मौसूफ़ कहते हैं: हदीसे ग़दीर सही है और उसमें किसी तरह कोई शक व शुब्हा नही है , एक जमाअत जैसे तिरमिज़ी , निसाई और अहमद ने इसको नक़्ल किया है और वाक़ेयन इसके तरीक़े ज़्यादा हैं।

नीज़ वह कहते हैं: इस हदीस की बहुत सी सनद सही और हसन हैं और जो शख्स इस हदीस को ज़ईफ़ क़रार देना चाहे , उसके लिये कोई दलील नही है , नीज़ अगर कोई शख़्स यह कहे कि अली (अ) उस वक़्त यमन में थे तो उस पर तवज्जो नही की जायेगी , क्यो कि यह बात साबित हो चुकी है कि वह यमन से वापस आ गये थे और हुज़्जतुल वेदा में पैग़म्बरे अकरम (स) के साथ थे और बाज़ लोगों का यह कहना कि जाली है तो उसका क़ौल भी बातिल है क्योकि यह जुमला ऐसे तरीक़ों से वारिद हुआ है कि ज़हबी ने इसके बहुत से तरीक़ो को सही माना है।

(अस सवाएक़े मोहरेक़ा पेज 42, 43)

2. हाकिम नैशा पुरी

मौसूफ़ ने ज़ैद बिन अरक़म से हदीस नक़्ल करने के बाद उसको सही माना है और वह इस बात की वज़ाहत करते हैं कि इस हदीस में शैख़ैन के नज़दीक सेहत के सारे शरायत पाये जाते हैं।

(मुसतदरके हाकिम जिल्द 3 पेज 109)

3. हलबी

मौसूफ़ ने हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने के बाद कहा: यह एक ऐसी हदीस है जो सही है और सही व हसन सनदों के साथ नक़्ल हुई है और जो शख्स इस हदीस को शक व शुबहे की नज़र से देखे तो उसकी तरफ़ तवज्जो नही की जायेगी।

(अस सीरतुल हलबीया जिल्द 3 पेज 274)

4. इब्ने कसीरे दमिश्क़ी

वह अपने उस्ताद ज़हबी से हदीस नक़्ल करने के बाद इसकी सेहत के क़ायल हुए हैं।

(अल बिदायह वन निहायह जिल्द 5 पेज 288)

5. तिरमिज़ी

वह हज़रत अली (अ) के मनाक़िब में इस हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने के बाद कहते हैं कि यह हदीस हसन और सही है।

(सही तिरमिज़ी जिल्द 2 पेज 298)

6. अबू जाफ़रे तहावी

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने के बाद कहते हैं कि यह हदीस सनद के लिहाज़ से सही है और किसी ने भी इस हदीस के रावियों पर ऐतेराज़ नही किया है।

7. इब्ने अब्दुल बर्र क़ुरतुबी

मौसूफ़ अक़्दे उख़ूवत , ऐताये इल्म और ग़दीर की हदीस के बारे में कहते हैं: यह तमाम रिवायात साबित शुदा अहादिस में से हैं।

(मुश्किलुल आसार जिल्द 2 पेज 308)

(अल इस्तिआब जिल्द 2 पेज 373)

8. सिब्ते बिन जौज़ी

मौसूफ़ तहरीर करते हैं: अगर कोई शख्स यह ऐतेराज़ करे कि यह रिवायत कि उमर ने हज़रत अली (अ) से कहा जईफ़ है तो हम उसके जवाब में कहेगें , यह रिवायत सही है।

(तज़किरतुल ख़वास पेज 18)

9. आसेमी

वह अपनी किताब ज़ैनुल फ़ता फ़ी तफ़सीरे सूरते हल अता में इस हदीस के सिलसिले से कहते हैं: यह ऐसी हदीस है जिसको उम्मत ने क़बूल किया है और उसूल के मुवाफ़िक़ है।

(ज़ैनुल फ़ता)

10. आलूसी

आलूसी अपनी तफ़सीर में इस हदीस को नक़्ल करने के बाद कहते हैं: हमारे नज़दीक यह साबित है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अली बिन अबी तालिब (अ) के हक़ में रोज़े ग़दीर फ़रमाया: ……

(रुहुल मआनी जिल्द 6 पेज 61)

11. इब्ने हजरे असक़लानी

मौसूफ़ कहते हैं: लेकिन हदीसे को तिरमिज़ी और निसाई ने नक़्ल किया है और उसके बहुत से तरीक़े हैं और इब्ने उक़दा ने तमाम तरीक़ों को एक मुसतक़िल किताब में बयान किया है और उसकी बहुत सी सनद सही और हसन है।

(फ़तहुल बारी जिल्द 7 पेज 61)

12. इब्ने मग़ाज़ेली शाफ़ेई

उन्होने अबुल क़ासिम फ़ज़्ल बिन मुहम्मद से हदीसे ग़दीर के बारे में नक़्ल किया है वह कहते हैं: यह हदीस सही है जिस को तक़रीबन 100 असहाब मिन जुमला अशर ए मुबश्शेरा ने पैग़म्बरे अकरम (स) से नक़्ल किया है और यह हदीस इतनी मुसल्लम है कि जिसमें किसी तरह का कोई ऐब नही दिखाई देता , सिर्फ़ सिर्फ़ हज़रत अली (अ) की यह फ़ज़ीलत है , एक ऐसी फ़ज़ीलत जिसमे कोई दूसरा शरीक नही है।

(मनाक़िबे अली बिन अबी तालिब (अ) पेज 26)

13. फ़क़ीहे अबू अब्दुल्लाह बग़दादी ( 330)

उन्होने ने भी अपनी किताब अल अमाली में हदीसे ग़दीर को सही माना है।

14. अबू हामिद ग़ज़ाली

मौसूफ़ कहते हैं: (इस हदीस की) हुज्जत और दलील वाज़ेह है और सभी मुसलमानों ने इस हदीस की तहरीर पर इजमा किया है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने रोज़े ग़दीरे ख़ुम तमाम हाजियों के दरमियान फ़रमाया: उस मौक़े पर उमर ने कहा , मुबारक हो मुबारक...।

(सिर्रुल आलमीन पेज 21)

15. हाफ़िज़ इब्ने अबिल हदीद मोतज़ेली

मौसूफ़ ने अपनी किताब शरहे नहजुल बलाग़ा में हदीसे ग़दीर को हज़रत अली (अ) के फ़ज़ायल में मशहूर व मारूफ़ हदीस शुमार की है।

(शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 9 पेज 166 ख़ुतबा 154)

16. हाफ़िज़ अबू अब्दुल्लाह गंजी शाफ़ेई

वह कहते हैं कि यह हदीस मशहूर और हसन है , इसके तमाम ही रावी सिक़ह हैं और बाज़ सनद को दूसरी सनद के साथ ज़मीमा करने से इस हदीस की सेहत पर दलील बन जाती है।

(किफ़ायतुत तालिब पेज 61)

17. शेख अबुल मकारिम अलाऊद्दीन समनानी ( 736)

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर के ज़ैल में कहते हैं: यह हदीस उन अहादिस में से है जिसकी सेहत पर उलामा का इत्तेफ़ाक़ है लिहाज़ा आपको सैयदुल औवलिया में शुमार किया जाता है।अल उरवा ले अहलिल ख़ुलवा पेज 422)

18. शमसुद्दीन ज़हबी शाफ़ेई ( 748)

मौसूफ़ ने हदीसे ग़दीर के मुतअल्लिक़ एक मुसतक़िल किताब लिखी है , चुनाँचे उन्होने इस हदीस की सनद की छान बीन करने के बाद इस हदीस की बहुत सी सनदों को सही क़रार दिया है , नीज़ मुसतदरके हाकिम के ख़ुलासा इस हदीस के सही होने का इक़रार किया है।

(तुरुक़े मन कुन्तो मौला)

(तलख़ीसुल मुसतदरक जिल्द 3 पेज 613 हदीस 6272)

इसी तरह मौसूफ़ अपनी किताब रिसालतुन फ़ी तुरुक़े हदीसे मन कुन्तो मौला में कहते हैं कि हदीस मन कुन्तो मौला फ़ अलीयुन मौला उन मुतवातिर हदीसों में से है कि जिसको पैग़म्बरे अकरम (स) ने कतई तौर पर बयान किया है और उनमें से बहुत से सही और हसन तरीक़े पाये जाते हैं।

(तुरुक़े हदीसे मन कुन्तो मौला पेज 11)

उसके बाद मौसूफ़ इस हदीस के तरीक़ो को नक़्ल करते हैं और दसियों तरीक़ो के बारे में सेहत या क़ुव्वत या विसाक़त का इक़रार करते हैं।

19. हाफ़िज़ नूरुद्दीन हैसमी ( 807)

मौसूफ़ ने इस हदीस को मुख़्तलिफ़ तरीक़ो से बयान किया है और हदीसे ग़दीर की बहुत सी सनदों को रेजाल को रेजाले सही माना है।

(मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104 से 109)

20. शहाबुद्दीन क़सतानी ( 923)

मौसूफ़ भी हदीसे ग़दीर के ज़ैल में कहते हैं: इस हदीस के बहुत से तरीक़े हैं , इब्ने उक़दा ने उसको तरीक़ों को एक मुसतक़िल किताब में बयान किया है और इस हदीस की बहुत सी सनदें सही और हसन हैं।

(अल मवाहिवुल लदुन्निया जिल्द पेज 365)

21. शेख़ नूरुद्दीन हरवी हनफ़ी ( 1014)

मौसूफ़ इस हदीस के बारे में कहते हैं: यह एक ऐसी हदीस है जिसके बारे में ज़रा भी शक व शुब्हा नही किया जा सकता , बल्कि बहुत से हुफ़्फ़ाज़े हदीस ने इस हदीस को मुतावातिर शुमार किया है।

(अल मिरक़ात फ़ी शरहिल मिशकात जिल्द 10 पेज 464 हदीस 6091)

22. शेख़ अहमद बिन बाकसीर मक्की ( 1047)

वह इस हदीस के बारे में कहते हैं: इस रिवायत को बज़रा ने सही रेजाल के ज़रिये फ़ित्र बिन ख़लीफ़ा से नक़्ल किया है जो सिक़ह है।

(वसीलतुल मआल फ़ी मनाक़िबिल आल पेज 117, 118)

23. मीरज़ा मुहम्मद बदख़शी

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर के बारे में कहते हैं: यह हदीस सही और मशहूर है और सिवाए मुतअस्सिब और मुन्किर के जिसके क़ौल का कोई ऐतेबार नही होता , किसी ने इसमें शक व शुब्हे नही किया है , क्यो कि हदीसे ग़दीर के बहुत से तरीक़े हैं।

(नज़लुल अबरार पेज 54)

24. अबुल इरफ़ान सब्बान शाफ़ेई ( 1206)

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने बाद कहते हैं: इस हदीस को 30 असहाबे पैग़म्बर (स) ने रिवायत किया है , जिसके बहुत से तरीक़े सही या हसन हैं।

(असआफ़ुर राग़ेबीन दर हाशिय ए नूरूल अबसार पेज 153)

25. नासिरूद्दीन अलबानी

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर के बारे में कहते हैं: यह हदीस सही है जिसको सहाबा की एक जमाअत ने नक़्ल किया है।

(अल सुन्नह इब्ने अबी आसिम बा तहक़ीक़े अलबानी जिल्द 2 पेज 566)

अलबानी और हदीसे ग़दीर की सनद

अलबानी ने अपनी मोजम अहादीस सिलसिलतुल अहादिसिस सहीहा जिसमें सहीहुस सनद अहादीस को नक़्ल किया है और उनको सही माना है , इस हदीस (ग़दीर) को भी नक़्ल करने के बाद कहा है: हदीसे ग़दीर ज़ैद बिन अरक़म , साद बिन अबी वक़ास , बुरैदा बिन हसीब , अली बिन अबी तालिब , अबू अय्यूब अंसारी , बरा बिन आज़िब , अब्दुल्लाह बिन अब्बास , अनस बिन मालिक , अबी सईद और अबू हुरैरा से नक़्ल हुई है।

अ. हदीसे जै़द बिन अरक़म , पाँच सनदों के साथ नक़्ल हुई है तो सबकी सब सहीहुस सनद हैं:

1. अबुल तुफ़ैल ने ज़ैद बिन अरक़म से

2. मैमून अबी अब्दिल्लाह ने ज़ैद बिन अरक़म से

3. अबी सुलेमान मुवज़्ज़िन ने ज़ैद बिन अरक़म से

4. यहया बिन जोअदा ने ज़ैद बिन अरक़म से

5. अतिय ए औफ़ी ने ज़ैद बिन अरकम से

हदीसे साद बिन अबी वक़ास तीन तरीक़ों से बयान हुई है जिनमें सभी सहीहुस सनद हैं:

1. अब्दुर्रहमान बिन साबित से साद ने

2. अब्दुल वाहिद बिन ऐमन से साद ने

3. ख़ुसैमा अब्दुर्रहमान से साद ने

ब. हदीस बुरैद भी तीन तरीक़ों से बयान हुई है जिनमे सभी सहीहुस सनद हैं:

1. इब्ने अब्बास ने बुरैद से

2. फ़रजंदे बुरीदा ने बुरैद से

3. ताऊस ने बरीद से

स. हज़रत अली (अ) से हदीसे ग़दीर 9 तरीक़ों से बयान हुई है जिनमें सभी सहीहुस सनद हैं:

1. अम्र बिन सईद ने इमाम अली (अ) से

2. ज़ाज़ान बिन उमर ने इमाम अली (अ) से

3. सईद बिन वहब ने इमाम अली (अ) से

4. ज़ैद बिन यसी ने इमाम अली (अ) से

5. शरीक ने इमाम अली (अ) से

6. अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला ने इमाम अली (अ) से

7. अबू मरियम ने इमाम अली (अ) से

8. इमाम अली (अ) के एक सहाबी ने ने इमाम अली (अ) से

9. तलबा बिन मसरफ़ ने इमाम अली (अ) से

ह. हदीसे अबू अय्यूब अँसारी , रियाह बिन हारिस से नक़्ल हुई है जिसकी सनद के सभी रेजाल सिक़ह हैं।

व. हदीसे बरा बिन आज़िब , अदी बिन साबित से नक़्ल हुई है जिसके सभी रेजाल सिक़ह हैं।

ल. हदीसे इब्ने अब्बास , उमर बिन मैमून से रिवायत हुई है जिसकी सनद भी सही है।

ष. हदीसे अनस बिन मालिक , हदीसे अबू सईद और हदीसे अबू हुरैरा , उमैरा बिन साद से नक़्ल हुई है जिनमें सभी सही और मुवस्सक़ सनद मौजूद हैं।

इस हदीस की मुख़्तलिफ़ सनद को नक़्ल करने और उनकी तसहीह के बाद अलबानी साहब कहते हैं: अब जबकि यह मतलब मालूम हो गया तो हम कहते हैं कि इस हदीस की तफ़सील और उसकी सेहत को बयान करने का मक़सद यह है कि शैख़ुश इस्लाम इब्ने तैमिया ने इस हदीस के पहले हिस्से को जईफ़ क़रार दिया है और दूसरे हिस्से को बातिल होने का गुमान किया है लेकिन मेरी नज़र में यह इब्ने तैमीया साहब ने मुबालेग़ा और हदीस को ज़ईफ़ क़रार देने में जल्दी बाज़ी से काम लिया है और इस हदीस के तरीक़ों को जमा करने और उनमें ग़ौर व फ़िक्र करने से पहले ही फ़तवा दे दिया है।

(सिलसिलतुल अहादिसिस सहीहा हदीस 1750)

हदीसे तहनीयत

अहले सुन्नत के मशहूर व मारूफ़ मुवर्रिख़ मीर ख़्वान्द अपनी किताब रौज़तुस सफ़ा में हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने के बाद कहते हैं: उस वक़्त रसूले इस्लाम (स) अपने मख़्सूस खै़मे में तशरीफ़ रखते थे , उस वक़्त आपने हज़रत अली (अ) को एक दूसरे ख़ैमे में बैठने का हु्क्म दिया और फिर तमाम लोगों से फ़रमाया: हज़रत अली (अ) के ख़ैमे में जाकर उनको तैहनियत और मुबारकबाद पेश करो।

जब तमाम मर्दों ने हज़रत अमीर (अ) को मुबारक बाद पेश कर दी तो रसूले अकरम (स) ने अपनी अज़वाज को हुक्म दिया कि वह भी हज़रत अली (अ) के पास जाकर उनको मुबारकबाद पेश करें , चुनाँचे उन्होने ने भी मुबारक बाद पेश की , तहनीयत पेश करने वालों में उमर बिन ख़त्ताब भी थे जिन्होने इस तरह से मुबारक बाद पेश की: मुबारक हो मुबारक , ऐ फ़रज़ंदे अबी तालिब , आप मेरे और तमाम मोमिनीन व मोमिनात के मौला (आक़ा) बन गये।

(तारिख़े रौज़तुस सफ़ा जिल्द 2 पेज 541

हदीसे तहनीयत के अहले सुन्नत रावी

इस मज़मून को अहले सुन्नत के उलामा ए हदीस , तफ़सीर और तारीख़ ने नक़्ल किया है जिनमें से बाज़ ने इस (हदीसे तहनियत) को मुसल्लेमात में माना है और बाज़ दूसरे उलामा ने इसको सही सनदों के साथ बाज़ सहाबा से नक़्ल किया है जैसे , इब्ने अब्बास , अबू हुरैरा , बरा बिन आज़िब और ज़ैद बिन अरक़म।

हदीसे तहनीयत को नक़्ल करने वाले हज़रात कुछ इस तरह हैं:

1. हाफ़िज़ अबू बक्र अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन अबी शैबा ( 235)

2. अहमद बिन हंबल ( 241)

3. हाफ़िज़ शैबानी नसबी ( 303)

4. हाफ़िज़ अबू यअली मूसली ( 307)

(अल मुसन्नफ़ जिल्द 12 पेज 78 हदीस 12167)

(अल मुसनद जिल्द 5 पेज 355 हदीस 18011)

(मुसनदे शैबानी नसवी)

(मुसनदे अबी यएली)

5. हाफ़िज़ अबू जाफ़र मुहम्मद बिन जरीरे तबरी ( 310)

6. हाफ़िज़ अली बिन उमर दारक़ुतनी बग़दादी ( 358)

7. क़ाज़ी अबू बक्र बाक़लानी ( 403)

8. अबू इस्हाक़ सालबी ( 427)

9. हाफ़िज़ अबू बक्र बैहक़ी ( 458)

10. हाफ़िज़ अबू बक्र ख़तीब बग़दादी ( 463)

11. फ़क़ीहे शाफ़ेई अबुल हसन बिन मग़ाज़ेली ( 483)

12. अबू हामिद ग़ज़ाली ( 505)

13. शहरिसतानी ( 548)

14. ख़तीब ख़ाऱज़मी ( 568)

15. फ़ख़रे राज़ी ( 606)

16. अबू सादात इब्ने असीर शैबानी ( 606)

17. इज़्ज़ुद्दीन अबुल हसन इब्ने असीरे शैबानी ( 630)

18. हाफ़िज़ अबू अब्दिल्लाह गंजी शाफ़ेई ( 658)

(जामेउल बयान जिल्द 3 पेज 428)

(अससवाएक़े मोहरेक़ा पेज 44)

(अत तमहीद पेज 171)

(अल कश्फ़ वल बयान सूरये मायदा आयत 67 के ज़ैल में)

(अल फ़ुसुलुल मुहिम्मा पेज 40)

(तारीख़े बग़दाद जिल्द 8 पेज 290)

(मनाक़िबे अली (अ) पेज 18 हदीस 24)

(सिर्रुल आलमीन पेज 21)

(अल मेलल वन नेहल जिल्द 1 पेज 145)

(अल मनाक़िब पेज 94 फ़स्ल 14)

(अत तफ़सीरिल कबीर जिल्द 12 पेज 49)

(अन निहायह जिल्द 5 पेज 228)

(उसदुल ग़ाबा जिल्द 4 पेज 108)

(किफ़ायतुत तालिब पेज 62)

19. सिब्ते इब्ने जौज़ी हनफ़ी ( 654)

20. मुहिब्बुद्दीन तबरी ( 694)

21. शेख़ुल इस्लाम हमूई ( 722)

22. निज़ामुद्दीन नैशा पुरी

23. वलीयुद्दीन ख़तीब

24. जमालुद्दीन ज़रनदी

25. इब्ने कसीरे दमिश्क़ी

26. तक़ीयुद्दीन मक़रीज़ी

27. नूरुद्दीन इब्ने सबाग़े मालिकी

28. मुत्तक़ी हिन्दी

29. अबुल अब्बास शहाबुद्दीन क़सतानी

30. इब्ने हजर हैसमी

31. शमसुद्दीन मनावी शाफ़ेई

32. अबू अब्दिल्लाह ज़रक़ावी मालिकी

(तज़किरतुल ख़वास पेज 29)

(अर रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 113)

(फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 77 हदीस 44)

(ग़रायबुल क़ुरआन जिल्द 6 पेज 194)

(मिशकातुल मिसबाह जिल्द 3 पेज 360 हदीस 6103)

(नज़्म दुर्रुस समतैन पेज 109)

(अल बिदायह वन निहायब जिल्द 5 पेज 229)

(अल ख़ुतत जिल्द 1 पेज 388)

(अल फ़ुसुलुल मुहिम्मा पेज 40)

(कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 133 हदीस 36420)

(अल मवाहिवुल लदुन्निया जिल्द 3 पेज 365)

(अस सवाएक़े मोहरेक़ा पेज 44)

(फ़ैज़ुल क़दीर जिल्द 6 पेज 218)

(शरहुल मवाहिब जिल्द 7 पेज 13)

33. सैयद अहमद ज़ैनी दहलान मक्की शाफ़ेई (वग़ैरह

(अल फ़ुतूहातुल इस्लामी जिल्द 2 पेज 306)

मुवल्लेफ़ीने हदीसे ग़दीर

क़दीम ज़माने से आज तक बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने हदीसे ग़दीर के सिलसिले में बहुत सी किताबें लिखी हैं और उनमें हदीस की सनद को ज़िक्र किया है जैसे:

1. मुहम्मद बिन जरीरे तबरी

मौसूफ़ ने अपनी किताब अल विलायह फ़ी तुरुक़े हदीसिल ग़दीर तालिफ़ की है।

इब्ने कसीर कहते हैं: अबू जाफ़र मुहम्मद बिन जरीरे तबरी (साहिबे तफ़सीर व तारीख़) ने इस हदीस पर मख़्सूस तवज्जो की है और इस सिलसिल में दो जिल्द किताबें तालीफ़ की हैं , नीज़ इस हदीस के तरीक़ों और अल्फ़ाज़ को जमा किया है।

ज़हबी कहते हैं: हदीसे ग़दीर के तरीक़ों के बारे में दो जिल्द किताबें इब्ने जरीर की देखीं , जिनमें तरीकों की कसीर तादाद ने मुझे हैरान कर दिया।अल बिदायह वन निहायह जिल्द 5 पेज 183

(तबक़ातुल हुफ़्फ़ाज़ जिल्द 2 पेज 54)

2. हाफ़िज़ बिन उक़दा

मौसूफ़ ने अल विलायह फ़ी तुरुक़े हदीसिल ग़दीर तालीफ़ की , जिसमें इस हदीस के 150 तरीक़े नक़्ल किये हैं।

इब्ने हजर हदीसे ग़दीर के बारे में कहते हैं: इस हदीस को इब्ने उक़दा ने सही क़रार दिया है और उसके तरीक़ों को जमा करने में ख़ास तवज्जो दी है और उसको 70 या उससे ज़्यादा सहाबा से नक़्ल किया है।

(तहज़ीबुत तहज़ीब जिल्द 7 पेज 337)

3. अबू बक्र जुआली

मौसूफ़ ने इस बारे में किताब मन रवा हदीसे ग़दीरे ख़ुम तालीफ़ की है और हदीसे ग़दीर को 125 तरीक़ों से नक़्ल किया है।

4. अली बिन उमर दारक़ुतनी

गंजी शाफ़ेई कहते हैं: हाफ़िज़ दार क़ुतनी ने इस हदीस के तरीक़ो को एक जिल्द किताब में जमा किया है।

(अल ग़दीर जिल्द 1 पेज 145)

(अल ग़दीर जिल्द 1 पेज 145)

5. शमसुद्दीन ज़हबी

उन्होने भी एक किताब बनाम तुरुक़े हदीसे मन कुन्तो मौला तालीफ़ की है , जिसमें इस हदीस की दसियों सही , हसन और मुवस्सक़ सनदों को नक़्ल किया है , उन्होने ख़ुद इस किताब की तरफ़ इशारा किया है , चुनाँचे मौसूफ़ कहते हैं: लेकिन हदीसे मन कुन्तो मौला की बहुत अच्छी अच्छी सनदें हैं जिनको मैंने एक मुसतक़िल किताब में जमा किया है।

(तज़किरतुल हुफ़्फ़ाज़ जिल्द 3 पेज 231)

6. जज़री शाफ़ेई

मौसूफ़ ने हदीसे ग़दीर के तवातुर को साबित करने के लिये एक मुसतक़िल रिसाला लिखा है जिसका नाम असनल मतालिब फ़ी मनाक़िबे सैयदेना अली बिन अबी तालिब क़रार दिया है और उस किताब में हदीसे ग़दीर के 80 तरीक़े नक़्ल किये हैं।

(अल ग़दीर जिल्द 1)

7. अबू सईद सजिसतानी़

मौसूफ़ ने भी हदीसे ग़दीर के सिलसिले में अद दिरायह फ़ी हदीसिल विलायह नामी किताब लिखी है।

(नफ़हातुल अज़हार)

8. अबुल क़ासिम उबैदुल्लाह हसकानी

मौसूफ़ ने इस हदीस के सिलसिले में एक किताब बनाम दुआतुल हुदात इला अदा ए हक़्क़िल मवालात तालीफ़ की है , जिसकी तरफ़ शवाहिदुत तंज़ील में इशारा हुआ है।

(शवाहिदुत तंज़ील जिल्द 1 पेज 190 हदीस 246)

9. इमामुल हरमैन जवीनी

कंदूज़ी हनफ़ी ने किताब यनाबीउल मवद्दत में हदीसे ग़दीर के सिलसिले में जवीनी की तरफ़ एक मुसतक़िल किताब की निस्बत दी है।

(यनाबीउल मवद्दत पेज 36

हदीसे ग़दीर की दलादत

हदीसे ग़दीर में लफ़्ज़े मौला सर परस्त , इमाम और औला बित तसर्रुफ़ के मायने में हैं , इस मतलब को मुख़्तलिफ़ तरीक़ों से साबित किया जा सकता है:

1. ख़ुद लफ़्ज़ से इसी मायना का तबादुर होना

लफ़्ज़े वली और मौला लुग़ते अरब में अगरचे मुख़्तलिफ़ मायना के लिये इस्तेमाल होता है लेकिन जब किसी क़रीने से ख़ाली हो तो अरब उसको सर परस्त और औला बित तसर्रुफ़ के मायना में लेते हैं (और यही मायना इमामत के हैं) जबकि तबादुर , हक़ीक़त की निशानी होता है।

2. किसी इंसान की तरफ़ इज़ाफ़े की सूरत में तबादुर

अगर फ़र्ज़ करें कि ख़ुद लफ़्ज़ से इस मायना का तबादुर न होता हो तो भी यह दावा किया जा सकता है कि जब इस लफ़्ज़ को किसी इंसान की तरफ़ इज़ाफ़ा किया जाये जैसे अरब कहते हैं: वली ए ज़ौजा तो इसके मआनी यानी ज़ौजा का सर परस्त होते हैं या कहा जाता है: वली व मौला ए तिफ़्ल , तो इससे बच्चे के सर परस्त मुराद होता है।

3. क़ुरआनी इस्तेमाल

क़ुरआने करीम की आयात के मुतालआ के बाद यह नतीजा हासिल होता है कि लफ़्ज़े मौला औवलवियत के मअना में इस्तेमाल हुआ है जैसा कि खुदा वंदे आलम का इरशाद है: فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنكُمْ فِدْيَةٌ وَلَا مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مَأْوَاكُمُ النَّارُ هِيَ مَوْلَاكُمْ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ

(सूरये हदीद आयत 15)

तो न आज तुम से कोई फ़िदया लिया जायेगा और न कुफ़्फ़ार से , तुम सब का ठिकाना जहन्नम है , वही तुम सबका साहिबे इख़्तियार (और मौला) है औ तुम्हारा बदतरीन अंजाम है।

इस आयत में लफ़्ज़े मौला औवलवियत के मअना में इस्तेमाल हुआ है।

4. फ़हमें सहाबा

तारीख़े के मुतालआ से यह नतीज़ा हासिल होता है कि ग़दीरे ख़ुम में मौजूद सहाबा ने पैग़म्बरे अकरम (स) के कलाम को सुना तो सबने इस हदीस से सर परस्ती , औला बित तसर्रुफ़ और इमामत के मअना समझे और जो लोग आँ हज़रत (स) के ज़माने में ज़िन्दगी बसर करते थे और आँ हज़रत (स) के मक़सूद और मंज़ूर के ख़ूब समझते थे , उनके यह मअना समझना हमारे लिये हुज्जत व दलील बन सकते हैं , सहाबा ए केराम की इस समझ पर किसी ने मुख़ालेफ़त नही की बल्कि बाद वाली नस्लों ने भी यही मअना मुराद लिये हैं और अपने अशआर व नज़्म में इसी मअना को इस्तेमाल किया है।

बहुत सी अज़ीम शख़्सियतों ने इस हदीस से सर परस्ती के मअना समझे हैं और उसी मअना को अपने अशआर में बयान किया है जैसे मुआविया के जवाब में हज़रत अली (अ) ने जो ख़त लिखा और हस्सान बिन साबित , क़ैस बिन साद बिन उबाद ए अंसारी , मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह हिमयरी , अब्द कूफ़ी , अबी तमाम , देबले ख़ुज़ाई , हम्मानी कूफ़ी , अमीर अबी फ़रास , अलमुल हुदा वग़ैरह।

क्या ऐसा नही है कि उमर व अबू बक्र ने पैग़म्बरे अकरम (स) से ख़ुतब ए ग़दीर और हदीसे ग़दीर सुनने के बाद हज़रत अली (अ) की ख़िदमत में तहनीयत और मुबारकबाद दी , क्यो उन्होने इमामात व ख़िलाफ़त के मअना नही समझे थे ?।

क्यो हारिस बिन नोमान फ़हरी ने हज़रत अली (अ) की विलायत को बर्दाश्त न किया और ख़ुदा वंदे आलम से अज़ाब की दरख़्वास्त कर डाली ? क्या वह पैग़म्बरे अकरम (स) के बाद हज़रत अली (अ) की विलायत व ख़िलाफ़त को नही समझ रहा था ?

कूफ़ा में कुछ लोग हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की ख़िदमत मे पहुच कर अर्ज़ करते थे: इमाम अली (अ) ने उनसे फ़रमाया: मैं किस तरह तुम लोगों का मौला हूँ जबकि तुम अरब के एक ख़ास क़बीले से ताअल्लुक़ रखते हो ? उन्होने जवाब में कहा: क्यो कि हमने रसूरे अकरम (स) से रोज़े ग़दीर सुना है कि आपने फ़रमाया: .........।

(इरशादुस सारी जिल्द 7 पेज 280)

5. इशतेराके मअनवी

इब्ने तरीक़े कहते हैं: जो शख़्स लुग़त की किताबों को देखे तो वह इस नतीजे पर पहुचता है कि लफ़्ज़े मौला के मुख़्तलिफ़ मअना हैं , नमूने के तौर पर फ़िरोज़ाबादी कहते हैं: मौला के मअना मालिक , अब्द , आज़ाद करने वाला , आज़ाद शुदा , क़रीबी साथी , जैसे चचा ज़ाद भाई वग़ैरह , पड़ोसी क़सम में शरीक फ़रज़ंद , चचा , नाज़िल होने वाला , शरीक , भाँजा , सर परस्त , तरबीयत करने वाला , यावर , नेमत अता करने वाला , जिसको नेमत दी गई हो , दोस्त , पीर व दामाद के हैं।

(क़ामूसुल मुहीत जिल्द 4 पेज 410)

इसके बाद इब्ने तरीक़ कहते हैं: हक़ यह है कि लफ़्ज़े मौला के एक से ज़्यादा मअना नही हैं और वह मअना किसी चीज़ पर औला और ज़्यादा हक़दार के हैं , लेकिन यह औवलवियत इस्तेमाल के लिहाज़ से हर जगह बदल जाती है , पस नतीजा यह हुआ कि लफ़्ज़े मौला उन मुख़्तलिफ़ मअना में शरीके मअनवी है , और मुशतरके मअनवी , मुशतरके लफ़्ज़ी से ज़्यादा मुनासिब होता है।

(इब्ने तरीक़ , अल उमदा पेज 114, 115)

क़ारेईने मोहतरम , हम इब्ने तरीक़ के कलाम की वज़ाहत के लिये अर्ज़ करते हैं:

हम थोड़ी ग़ौर व फ़िक्र के बाद इस नतीजे पर पहुचते हैं कि किसी चीज़ में औवलवियत के मअना , एक लिहाज़ से लफ़्ज़े मौला के हर मअना में पाये जाते हैं और उन तमाम मअना में इस लफ़्ज़ का इतलाक़ औवलवियत के मअना की वजह से होता है।

1. मौला के एक मअना मालिक के थे , लेकिन मालिक को मौला इस वजह से कहा जाता है कि वह अपने माल में तसर्रुफ़ करने में औला होता है।

2. एक मअना अब्द के थे , अब्द भी अपने मौला की इताअत करने में दूसरे की निस्बत औला होता है।

3. आज़ाद करने वाला अपने ग़ुलाम पर फ़ज़्ल व करम करने में दूसरों की निस्बत औला होता है।

4. आज़ाद होने वाला , दूसरों की निस्बत अपने मौला के शुक्रिया का ज़्यादा हक़दार होता है।

5. साथी , अपने साथी के हुक़ूक़ की मारेफ़त का ज़्यादा हक़दार होता है।

6. नज़दीक , अपनी क़ौम के देफ़ाअ का ज़्यादा हक़दार होता है।

7. पड़ोसी , अपने पड़ोसियों के हुक़ूक़ की रियाअत करने का ज़्यादा हक़दार होता है।

8. क़सम में शरीक़ , अपने हम क़सम के देफ़ाअ और उसकी हिमायत का ज़्यादा हक़दार होता है।

9. औलाद अपने बाप की इताअत करने की ज़्यादा हक़दार होती है।

10. चचा , अपने भतीजे की देखभाल का ज़्यादा हक़दार होता है वग़ैरह।

नतीजा यह हुआ कि लफ़्ज़े मौला लुग़ते अरब में ज़्यादा हक़दार के मअना में इस्तेमाल होता है , हदीसे ग़दीर में लफ़्ज़े मौला ..की तरफ़ इज़ाफ़ा होने (यानी मौलाहु) की वजह से चूँकि लोगों की तरफ़ इज़ाफ़ा हुआ है लिहाज़ा इसके मअना वही सर परस्ती के है जो इमामत की ही रदीफ़ में है।

6. सद्रे हदीस में मौजूद क़रीना

पैग़म्बरे अकरम (स) ने हदीस से पहले फ़रमाया: ....क्या मैं तुम लोगों पर ख़ुद तुम से ज़्यादा हक़दार नही हूँ ? तो सब लोगों ने एक जवाब होकर कहा: जी हाँ , उस वक़्त रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया: और फ़मन में फ़ा तफ़रीई है यानी यह जुमला पहले वाले जुमले की एक फ़रअ है , दर हक़ीक़त पहले वाला जुमला हदीसे ग़दीर की तफ़सीर करने वाला है , इस मअना में कि (रसूले ख़ुदा (स) फ़रमाते हैं कि) ख़ुदा वंदे आलम ने जो मक़ाम मेरे लिये क़रार है और मुझे तुम लोगों का सर परस्त क़रार दिया है , वही मक़ाम और ओहदा मेरे बाद हज़रत अली (अ) के भी है और यहा मअना क़ुरआने करीम से भी हासिल होते हैं जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम ने फ़रमाया

: النَّبِيُّ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ

(यह जुमला हदीसे ग़दीर की बहुत सी अहादिस में बयान हुआ है।)

(सूरये अहज़ाब आयत 6)

बेशक नबी तमाम मोमिनीन से उनके नफ़्स की वनिस्बत ज़्यादा औला है।

क़सतानी मज़कूरा आयत की तफ़सीर में कहते हैं: पैग़म्बरे अकरम (स) मुसलमानों के तमाम उमूर में हुक्म नाफ़िज़ करने और इताअत के लिहाज़ से ज़्यादा हक़दार हैं। इब्ने अब्बास और आता कहते हैं: जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) लोगों को किसी काम के लिये हुक्म दें , जबकि उनका नफ़्स उनको किसी दूसरे काम का हुक्म देता हो तो वह पैग़म्बरे अकरम (स) की इताअत के ज़्यादा हक़दार हैं , क्योकि पैग़म्बरे अकरम (स) उनको सिर्फ़ उन्ही चीज़ों का हुक्म देते हैं और उसी काम से राज़ी होते हैं जिसमें उनकी ख़ैर व भलाई हो , बरख़िलाफ़ उनके नफ़्सों के।

बैज़ावी कहते हैं: पैग़म्बरे अकरम (स) तमाम उमूर में मोमिनीन की निस्बत ख़ुद उनके नफ़्सों का ज़्यादा हक़दार हैं , क्योकि आँ हज़पत (स) दूसरों के बर ख़िलाफ़ उस काम का हुक्म नही करेगें जिसमें उनकी मसलहत न हो और न उस काम पर राज़ी होगें।

(इरशादुस सारी जिल्द 7 पेज 280)

(अनवारूत तंज़ील बैज़ावी सूरये अहज़ाब आयत 6 के ज़ैल में)

ज़मख़्शरी कहते है: पैग़म्बरे अकरन (स) मोमिनीन की निस्बत दीन व दुनिया की हर चीज़ में ख़ुद उनसे औला हैं , इसी वजह से आयते शरीफ़ा में मुतलक़ तौर पर हुक्म हुआ है और किसी चीज़ की क़ैद नही है , लिहाज़ा मोमिनीन पर वाजिब है कि उनके नज़दीक आँ हज़रत (स) की शख़्सीयत सबसे ज़्यादा महबूब क़रार पाये और उनका हुक्म अपने हुक्म से भी ज़्यादा नाफ़िज़ मानें , नीज़ आँ हज़रत (स) का हुक्म ख़ुद उनके हुक्म पर भी मुक़द्दम है।

यही तफ़सीर नसफ़ी और सुयूती ने भी की है।

(अलकाशिफ़ जिल्द 3 पेज 523)

(मदारिकुत तंज़ील नसफ़ी , जिल्द 3 पेज 294, तफ़सीरे जलालैन , मज़कूरा आयत के ज़ैल में)

क़ाबिले ज़िक्र है कि का फ़िक़रा बहुत से उलामा अहले सुन्नत ने नक़्ल किया है जैसे अहमद बिन हंबल , इब्नेम माजा , निसाई , शैबानी , ज़हबी , हाकिम , सअलबी , अबू नईम , बैहक़ी , ख़तीबे बग़दादी , इब्ने मग़ाज़ेली , ख़ारज़मी , बैज़ावी , इब्ने असाकर , इब्ने असीर , गंजी शाफ़ेई , तफ़ताज़ानी , क़ाज़ी ऐजी , मुहिब्बुद्दीन तबरी , इब्ने कसीर , हमूई , ज़रन्दी , क़सतानी , जज़री , मक़रीज़ी , बान सब्बाग़ हैसमी , इब्ने हजर , समहूदी , सुयूती , हलबी , इब्ने हजरे मक्की , बदख़शी वग़ैरह।

7. ज़ैले हदीस

बहुत सी हदीसे ग़दीर के ज़ैल में यह जुमला नक़्ल हुआ है ..........(ख़ुदा वंदा , जो अली (अ) की विलायत को कबूल करे , उसको दोस्त रख और जो उनकी विलायत को कबूल न करे और उनसे दुश्मनी करे , उनको तू भी दुश्मन रख।

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 118, मुसतदरके हाकिम जिल्द 3 पेज 109)

यह जुमला जिसको चंद उलामा ए अहले सुन्नत जैसे इब्ने कसीर और अलबानी ने सही माना है , सिर्फ़ सर परस्ती और इमामत से हम आहंग है न कि मुहब्बत व दोस्ती के मअना से , जैसा कि बाज़ अहले सुन्नत ने कहा है क्योकि हज़रत अली (अ) को दोस्त रखने वालों के लिये आँ हज़रत (स) का दुआ करना कोई मअना नही रखता।

8. मुसलमानों को गवाह बनाना

हुज़ैफ़ा बिन उसैद सही सनद के साथ नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) ने रोज़े ग़दीरे ख़ुम फ़रमाया: क्या तुम लोग ख़ुदा वंदे आलम की वहदानियत और मेरी नबूव्वत की गवाही देते हो ? तो सब लोगों ने एक ज़बान हो कर कहा: जी हाँ या रसूलल्लाह , हम उन चीज़ों की गवाही देते हैं , उस वक़्त पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया , ऐ लोगों , ख़ुदा वंदे आलम मेरा सर परस्त है और मैं मोमिनीन का सर परस्त और तुम पर तुम्हारे नफ़्सों से ज़्यादा औला हूँ , लिहाज़ा जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली भी (अ) मौला हैं।

(उसदुल ग़ाबा जिल्द 6 पेज 136 हदीस 5940, तारीख़े दमिश्क़ जिल्द 12 पेज 226, सीरये हलबी जिल्द 3 पेज 374)

क़ारेईने केराम , आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ) की विलायत को तौहीद व रिसालत की गवाही की रदीफ़ में क़रार दिया , यह ख़ुद इस बात की दलील है कि हज़रत अली (अ) की विलायत इसी इमामत और उम्मत की सर परस्ती के मअना में है।

9. इमाम अली (अ) की विलायत पर दीन की मुकम्मल होना

सूरए मायदा आयत 3 आयते इकमाल को ज़ैल में सहीहुसस सनद रिवायतों के मुताबिक़ ख़ुदा वंदे आलम ने वाक़ेया ए ग़दीर में रसूल अकरम (स) के ख़ुतबे के बाद यह आय ए शरीफ़ नाज़िल हुई:

الْيَوْمَ يَئِسَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن دِينِكُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِ ۚ الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ فِي مَخْمَصَةٍ غَيْرَ مُتَجَانِفٍ لِّإِثْمٍ ۙ فَإِنَّ اللَّـهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ (सूरए मायदा आयत 3)

आज मैंने तुम्हारे दीन को कामिल कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और तुम्हारे इस दीन इस्लाम को पसंद किया।

इस आयत से यह नतीजा निकलता है कि ख़ुदावंदें आलम इस इस्लाम से राज़ी है जिसमें हज़रत अली (अ) की विलायत पाई जाती हो , क्यो कि दीन आप की विलायत से कामिल हुआ है और नेमतें भी आपकी विलायत का वजह से तमाम हुई हैं और यह हज़रत अली (अ) की इमामत और सर परस्ती से हम आहंन्ग है , लिहाज़ा बाज़ रिवायात के मुताबिक़ आय ए इकमाल के नाज़िल होने के बाद और ग़दीर ख़ुम से लोगों के अलग अलग होने से पहले रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस

(अल बिदाया वन निहायह जिल्द 5 पेज 214, शवाहिदुत तंज़ील जिल्द 1 पेज 157)

अल्लाहो अकबर , दीन के कामिल होने , नेमतें तमाम करने , मेरी रिसालत और मेरे बाद अली (अ) की विलायत पर राज़ी होने पर।

10.पैग़म्बरे अकरम (स) की वफ़ात की ख़बर

पैग़म्बरे अकरम (स) ने ख़ुतब ए ग़दीर के पहले हिस्से में लोगों के सामने यह ऐलान फ़रमा दिया था: ……. गोया मुझे ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से दावत दी गई है और मैं उसको क़बूल करने वाला हूँ और बाज़ रिवायात की बेना पर आँ हजरत (स) ने फ़रमाया: नज़दीक है कि मुझे ख़ुदा वंदे आलम की तरफ से दावत दी जाये और मैं भी उसको क़बूल कर लूँ।

हदीस में इस्तेमाल होने वाले अल्फ़ाज़ से यह नतीजा हासिल होता है कि पैग़म्बरे अकरम (स) एक बहुत अहम ख़बर देना चाहते हैं जिससे पहले चंद चीज़ें मुक़द्दमें के तौर पर बयान फ़रमाई और बाद में अपनी रेहलत की खबर सुनाई और यह बात सिर्फ़ इमामत , ख़िलाफ़त , सर परस्ती और जानशीनी के अलावा किसी दूसरे मअना से हम आहंग नही है।

11.पैग़म्बरे अकरम (स) की ख़िदमत में मुबारकबाद पेश करना

बाज़ रिवायात के मुताबिक़ पैग़म्बरे अकरम (स) ने वाक़ेया ए ग़दीर और ख़ुतबे के तमाम होने के बाद असहाब को हुक्म दिया कि हमें तहनीयत और मुबारक बाद पेश करो। किताब शरफ़ुल मुसतफ़ा में हाफ़िज़ अबू सईद नैशा पुरी ( 407) की नक़्ल के मुताबिक़ मौसूफ़ अपनी सनद के साथ बरा बिन आज़िब और अबू सईद ख़िदरी से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया:

हदीस.....

मुझे मुबारक बाद पेश करो , मुझे मुबारक बाद पेश करो , क्योकि ख़ुदावंदे आलम ने मुझे नबूव्वत और मेरे अहले बैत को इमामत से मख़्सूस फ़रमाया है।

उमर बिन ख़त्ताब इस मौक़े पर आगे बढ़े और हज़रत अली (अ) की ख़िदमत में मुबारक बाद पेश की।

12.रसूले अकरम (स) का ख़ौफ़

अल्लामा सुयूती ने नक़्ल किया है कि पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया: बेशक ख़ुदावंदे आलम ने मुझे मबऊस बरिसालत फ़रमाया और यह बात मेरे लिये संगीन थी , मैं जानता था कि जब मैं लोगों के सामने इस अम्र को पेश करूँगा तो वह मुझे झुटलायेगें , उस मौक़े पर ख़ुदावंदे आलम ने मुझे डराया कि इस अम्र को आप ज़रूर पहुचायें वर्ना आप के लिये अज़ाब होगा। चुनाँचे इस मौक़े पर यह आयत नाज़िल हुई: واللہ یعصمک من الناس

(दुर्रे मंसूर जिल्द 2 पेज 298)

क़ारेईने केराम , पैग़म्बरे अकरम (स) ख़ौफ़ ज़दा थे लेकिन किस चीज़ से ख़ौफ़ ज़दा थे ? क्या इस बात को पहुचाने से ख़ौफ़ ज़दा थे कि हज़रत अली (अ) तुम्हारे दोस्त और मददगार हैं ? हरगिज़ ऐसा नही है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत अली (अ) की ख़िलाफ़त व विलायत और सर परस्ती को पहुचाने में लोगों से ख़ौफ़ ज़दा थे , क्यो कि आप जानते थै कि कु़रैश हज़रत अली (अ) से ख़ुसूमत और दुश्मनी रखते हैं , क्योकि यह वही शख़्सीयत हैं जिन्होने उनके आबा व अजदाद को मुख़्तलिफ़ जंगों में क़त्ल किया था।

النَّبِيُّ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ چ 13 .हारिस बिन नोमान का इंकार

बाज़ रिवायात के मुताबिक़ हारिस बिन नोमान फ़हरी ग़दीर की ख़बर सुन कर रसूले अकरम (स) की ख़िदमत में आया और अर्ज़ की: ऐ मुहम्मद , तुमने ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से हमें हुक्म दिया कि ख़ुदा की वहदानियत और तुम्हारी रिसालत की गवाही दें , तो हमने क़बूल किया , तुमने हमें पाँच वक़्त की नमाज़ का हुक्म दिया , हमने उसको भी क़बूल किया , तुमने रोज़ा , ज़कात और हज का हुक्म दिया , हमने मान लिया , लेकिन इस पर राज़ी नही हुए और अपने चचाज़ाद भाई को हाथ पकड़ कर बुलंद किया और उसको हम पर फ़ज़ीलत दी और कहा क्या यह हुक्म अपनी तरफ़ से था या ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से ? रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया: क़सम उस ख़ुदा की जिसके अलावा कोई माबूद नही है , मैंने इस हुक्म को भी ख़ुदा वंदे आलम की तरफ़ से पहुचाया है। उस मौक़े पर हारिस बिन नोमान मुँह मोड़ कर चल पड़ा और अपनी सवारी की तरफ़ यह कहता हुआ चला कि पालने वाले , अगर जो मुहम्मद कह रहे हैं हक़ है तो मुझ पर आसमान से पत्थर भेज दे या मुझे दर्दनाक अज़ाब में मुब्तला कर दे , चुनाँचे वह अभी अपनी सवारी तक नही पहुच पाया था कि ख़ुदा वंदे आलम ने आसमान से उस पर एक पत्थर नाज़िल फ़रमाया जो उसके सर पर आ कर लगा और उसकी पुश्त से बाहर निकल गया और वहीं वासिले जहन्नम हो गया , उस मौक़े पर यह आय ए शरीफ़ा नाज़िल हुई:

(سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ ﴿﴾ لِّلْكَافِرِينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ ) (सूरए मआरिज आयत 1,2)

एक माँगने वाले ने वाक़े होने वाले अज़ाब का सवाल किया।

इस हदीस को सअलबी ने अपनी तफ़सीर में मज़कूरा आयत के ज़ैल में और दीगर उलामा ने भी नक़्ल किया है।

अगर हदीसे ग़दीर सिर्फ़ हज़रत अली (अ) की मुहब्बत और आपकी नुसरत की ख़बर थी तो हारिस को ख़ुदा वंदे आलम से अज़ाब माँगने की क्या ज़रूरत थी ? यह तो सिर्फ़ सर परस्ती की सूरत में मुमकिन है जिसको बाज़ लोग कबूल नही करना चाहते हैं।

14.मंसूब करने के लफ़्ज़ का इस्तेमाल

बाज़ रिवायाते ग़दीरे ख़ुम में लफ़्ज़े नस्ब बयान हुआ है।

शहाबुद्दीन हमदानी उमर बिन ख़त्ताब से नक़्ल करते हैं कि उन्होने कहा: रसूले अकरम (स) ने हज़रत अली (अ) को अलम के उनवान से नस्ब किया और फ़रमाया: ………….

(मवद्दतुस क़ुरबा , मवद्दते पंजुम)

हमविनी अपनी सनद के साथ हज़रत अली (अ) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमाया: ख़ुदा वंदे आलम ने अपने पैग़म्बर को हुक्म दिया कि मुझे लोगों पर मंसूब करें।जबकि हम जानते हैं कि लफ़्ज़ किसी को नस्ब या मंसूब करना , इमामत और सर परस्ती से मुताबेक़त रखता है।

(फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेद 312)

15. ताजे शराफ़त

बाज़ रिवायात के मुताबिक़ पैग़म्बरे अकरम (स) ने वाक़ेय ए ग़दीरे के बाद अपने मारूफ़ अम्मामा बनामे शहाब को हज़रत अली (अ) के सरे मुबारक पर रखा।

इब्ने क़ैयिम कहते है: रसूले ख़ुदा का एक अम्मामा बनामे शहाब था जिसको हज़रत अली (अ) के सर पर रखा।

(ज़ादुल मआद जिल्द 1 पेज 121)

मुस्लिम भी नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) इस अम्मामे को मख़्सूस दिनों में जैसे रोज़े फ़तहे मक्का सर पर रखते थे।

मुहिबुद्दीन तबरी , अब्दुल आला बिन अदी बहरानी से रिवायत करते हैं कि उन्होने कहा: रोज़े ग़दीरे ख़ुम रसूले अकरम (स) ने हज़रत अली (अ) को बुलाया और उनके सर पर अम्मामा रखा और उसके एक सिरे को आपकी कमर पर डाल दिया।

(सही मुस्लिम किताबुल हज हदीस 451, सोनने अबी दाऊद जिल्द 4 पेज 54)

(अर रेयाज़ुन नज़रा जिल्द 2 पेज 289, उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 114)

बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने हज़रत अली (अ) की ताज पोशी की हदीस को रिवायत की है जैसे:

• अबू दाऊदे तयालसी

• इब्ने अबी शैबा

• अहमद बिन हसन बिन अली बैहक़ी

• मुहम्मद बिन युसुफ़ ज़रन्दी

• अली बिन हम्द मारूफ़ बे इब्ने सब्बाग़े मालिकी

• जलालुद्दीने सुयूती वग़ैरह

16.औलवियत की लफ़्ज़

सिब्ते बिन जौज़ी ने हदीसे ग़दीर में औलवियत व सर परस्ती के अलावा दूसरे मअना को रदद् करते हुए कहा: पस दसवे मअना मुअय्यन हो गये , लिहाज़ा हदीसे के मअना यह हैं। मैं जिसकी निस्बत ख़ुद उसके नफ़्स से औला हूँ , पस अली भी उसकी निस्बत औला हैं। उसके बाद कहते हैं कि इसी मअना की तरफ़ हाफ़िज़ अबुल फ़रज यहया बिन सईद सक़फ़ी इस्फ़हानी ने अपनी किताब मरजुल बहरैन में वज़ाहत की है , क्योकि इस हदीस को अपने असातिद से नक़्ल किया है , जिसमें यह बयान हुआ है कि रसूले अकरम (स) ने हज़रत अली (अ) के हाथ को बुलंद करके फ़रमाया:

हदीस

(तज़किरतुल ख़वास पेज 32)

जिस शख़्स का मैं वली और उसके नफ़्स से औला (बित तसर्रुफ़) हूँ पस अली भी उसके वली और सर परस्त हैं।

विलायत पर हदीसे ग़दीर की दलालत का इक़रार करने वाले हज़रात

अहले सुन्नत के मुतअद्दिद उलामा ने काफ़ी हद तक इंसाफ़ से काम लिया है और हदीसे ग़दीर में इस हदीस को क़बूल किया है कि यह हदीस हज़रत अली (अ) की इमामत और सर परस्ती पर दलालत करती है , अगरचे दूसरी तरफ़ से इसकी तौजीह और तावील भी की है , अब हम यहाँ पर उनमें से बाज़ की तरफ़ इशारा करते हैं।

1.मुहम्मद बिन मुहम्मद ग़ज़ाली

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर को नक़्ल करने के बाद कहते हैं: यह तसलीनॉम , रज़ा और तहकीम है , लेकिन इस वाक़ेया के बाद मक़ामे ख़िलाफ़त तक पहुचने और रियासत तलबी की मुहब्बत ने उन पर ग़लबा कर लिया..लिहाज़ा अपने बुज़ुर्गों के दीन की तरफ़ वापस पलट गये और इस्लाम से मुँह मोड़ लिया और अपने इस्लाम को कम क़ीमत पर बेच डाला , वाक़ेयन कितना बुरा मुआमला है।

इसी मतलब को सिब्ते बिन जौज़ी ने भी ग़ज़ाली से नक़्ल किया है।

(सिर्रुल आलमीन पेज 39, 40 तबअ दारुल आफ़ाक़िल अरबिया मिस्र)

(तज़किरतुल ख़वास पेज 62)

2.अबुल मज्द मजदूद बिन आदम , मारूफ़ बे हकीम निसाई

मौसूफ़ हज़रत अमीर की मदह में कहते हैं:

शेयर

रोज़े ग़दीर मुझे रसूले अकरम (स) ने अपनी शरीयत का हाकिम क़रार दिया।

(हदीक़तुल हक़ीक़ा , हकीम नेसाई)

3.फ़रीदुद्दीन अत्तार नैशा पुरी

मौसूफ़ भी हदीसे ग़दीर के मअना के पेशे नज़र कहते हैं:

शेर

(मसनवी मज़हरे हक़)

तर्जुमा ए अशआर

जब ख़ुदा वंदे आलम ने ग़दीरे ख़ुम में हुक्म नाज़िल किया कि ऐ मेरे रसूल , मेरे पैग़ाम को पहुचा दो और मुसलमानों के सामने इस पैग़ाम को आम कर दो क्योकि इस वक़्त यह रिसालत का सबसे अहम पैग़ाम है , लिहाज़ा रसूले इस्लाम (स) ने कहा: मैं इस पैग़ाम को पहुचा कर ही रहूँगा और असरारे हक़ को आसान कर दूँगा , जब जिबरईले अमीन नाज़िल हुए और असरारे इलाही को लेकर आये कि ख़ुदा वंदे क़ह्हार कहता है वह खुदा जो हय व क़य्यूम और आलिमुल ग़ैब है , मुर्तज़ा मेरे दीन पर वाली और हाकिम हैं और जो इस हुक्म को क़बूल न करे वह मुसलमान नही है।

4.मुहम्मद बिन तलहा शाफ़ेई

मौसूफ़ कहते है:

मालूम होना चाहिये कि हदीस (ग़दीर) आयए मुबाहेला में क़ौले ख़ुदे वंदे आलम के असरार में से है जहाँ इरशाद होता है:

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّـهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

(सूरए आले इमरान आयत 61)

आयत में लफ़्ज़े (अनफ़ुसना) से मुराद हज़रत अली (अ) कू जान है जैसा कि गुज़र चुका है , क्योकि ख़ुदा वंदे आलम ने रसूले अकरम (स) की जान और हज़रत अली (अ) को एक साथ क़रार दिया है और दोनो को एक साथ जमा किया है , लिहाज़ा हदीसे ग़दीर में जो कुछ मोमिनीन की निस्बत रसूले अकरम (स) के लिये साबित है वही हज़रत अली (अ) के लिये भी साबित है। पैग़म्बरे अकरम (स) की निस्बत औला , नासिर और मोमिनीन के आक़ा है , लफ़्ज़े मौला से जो मअना भी रसूले अकरम (स) के लिये हो सकते हैं , वही मअना हज़रत अली (अ) के लिये साबित हैं और यह एक अज़ीम व बुलंद मर्तबा है जिसको रसूले अकरम (स) ने सिर्फ़ हज़रत अली (अ) से मख़्सूस किया है , इसी वजह से रोज़े ग़दीरे ख़ुम , रोज़े ईद और औलियाए खु़दा के लिये ख़ुशी का दिन है।

तर्जुमा , तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलायें , तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलायें) और तुम अपनी औरतों को , और हम अपनी जानों को (बुलायें) और तुम अपनी जानों को उसके बाद हम सब मिल कर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठो पर ख़ुदा की लानत करें।

(मतालबुस सुउल पेज 44, 45)

5.सिबते बिन जौज़ी

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर के बारे में कहते है: इस हदीस के मअना यह है: जिसका मैं मौला और उस की निस्बत औला हूँ , पस अली भी उसकी निस्बत औला (बित्तसर्रुफ़) हैं।

6.मुहम्मद युसुफ़ शाफ़ेई गंजी

वह कहते हैं: लेकिन हदीसे ग़दीरे ख़ुम , औला (बित्तसर्रुफ़) और आपकी ख़िलाफ़त पर दलालत करती है।

(तज़किरतुल ख़वास पेज 30 से 34)

(किफ़ायतुत तालिब पेज 166 से 167)

7.सईदुद्दीन फ़रग़ानी

मौसूफ़ इब्ने फ़ारिज़ के एक शेयर की तशरीह करते हुए कहते हैं , चुनाँचे इब्ने फ़ारिज़ का शेयर यह है:

शेर

फरग़ानी साहब कहते हैं: इस शेयर में इस मतलब की तरफ़ इशारा हुआ है कि हज़रत अली (अ) वह शख्सियत हैं जिन्होने क़ुरआने व सुन्नत की मुश्किल चीज़ों को बयान किया और अपने इल्म के ज़रिये किताब व सुन्नत के मुश्किल व पेचीदा मसायल को वाज़ेह किया है। क्योकि पैग़म्बरे अकरम (स) ने उनको अपना वसी और क़ायम मक़ाम क़रार दिया है जिस वक़्त आपने फ़रमाया:

(शरहे ताइया ए इब्ने फ़ारिज़ , फ़रग़ानी)

8.तक़ीउद्दीन मक़रेज़ी

मौसूफ़ ने इब्ने ज़ूलाक़ से नक़्ल किया है: 18 ज़िल हिज्जा रोज़े ग़दीरे ख़ुम सन् 363 हिजरी को मिस्र और मग़रिब की जमाअत आपस में जमा होकर दुआ पढ़ने में मशग़ूल थी , क्योकि उस रोज़ हज़रते रसूले अकरम (स) ने हज़रत अली (अ) से अहद किया और उनको अपना ख़लीफ़ा बनाया।

9.सअदुद्दीन तफ़ताज़ानी

मौसूफ़ हदीसे ग़दीर की दलालत के बारे में कहते हैं: (मौला) कभी आज़ाद करने वाले , कभी आज़ाद होने वाले , कभी हम क़सम , पड़ोसी , चचाज़ाद भाई , यावर और सर परस्त के मअना में इस्तेमाल होता है जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है: (....) यानी नारे जहन्नम तुम्हारे लिये सज़ावार तर है , इस मअना को अबू उबैदा ने नक़्ल किया है और पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया: ...................(यानी वह औरत जो अपने मौला की इजाज़त के बग़ैर किसी से निकाह कर ले) इस हदीस लफ़्ज़े मौला के मअना वली और सर परस्त के हैं , इस मअना की मिसाल अशआर में बहुत ज़्यादा पाई जाती हैं और तौर पर लफ़्ज़ मौला के के मअना कलामे अरब में मुतवल्ली , मालिक और औला बित तसर्रुफ़ के मशहूर हैं। जिनको बहुत से उलामा ए अहले लुग़त ने बयान किये हैं और इस लफ़्ज़ का मक़सूद यह होता है कि इस लफ़्ज़े मौला इस मअना के लिये इस्म है न कि सिफ़त और औला बित तसर्रुफ़ का क़ायम मक़ाम , जिससे यह ऐतेराज़ हो सके कि यह लफ़्ज़ इस्मे तफ़ज़ील का सिग़ा नही है और इस मअना में इस्तेमाल नही होता , जरूरी है कि हदीसे ग़दीर में लफ़्ज़े मौला से यही मुराद लिये जायें , ताकि सद्रे हदीस से मुताबेक़त हासिल हो जाये और यह मअना यानी नासिर से भी मेल नही खाता , क्योकि ऐसा नही हो सकता कि पैग़म्बरे अकरम (स) इस गर्मी के माहौल और तपती हुई ज़मीन पर इतने बड़े मजमे को जमा करें और इस मअना को पहुचायें लिहाज़ा यह मतलब भी वाज़ेह है।

मौसूफ़ आख़िर में कहते हैं: यह बात मख़्फ़ी न रहे कि लोगों पर विलायत , उनकी सरपरस्ती , लोगों के उमूर में तदबीर करना और उनके कामों में दख़्ल अँदाज़ी करना पैग़म्बर अकरम (स) की मंज़िलत की तरह इमामत के मअना के मुताबिक़ है।

(अल मवायज़ वल ऐतेबार बेज़िक्रिल ख़ुतत वल आसार जिल्द 2 पेज 220)

(शरहे मक़ासिद जिल्द 2 पेज 290)

हदीसे ग़दीर को छिपाने वाले

बाज़ रिवायात के मुताबिक़ हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) ने एक मजमे असहाब से कहा कि जो लोग ग़दीर में मौजूद थे और उन्होने हदीसे ग़दीर को सुना है वह खड़े हों और इस मजमे के सामने गवाही दें , असहाब के एक गिरोह ने खड़े होकर इस चीज़ की गवाही दी लेकिन बाज़ असहाब ने मख़्सूस वुजूहात की बेना पर गवाही नही दी और मुख़्तलिफ़ बहाने पेश किये , जिसके नतीजे में वह ऐसी सख़्त बीमारों में मुब्तला हो गये जिनका इलाज न हो सका , जिनमें से दर्ज ज़ैल का असहाब का नाम लिया जा सकता है:

1. अनस बिन मालिक , उन्होने हदीसे ग़दीर को छुपाया और बरस (सफ़ेद कोढ़) के मरज़ में मुब्तला हो गये।(

2. बरा बिन आज़िब , यह हदीस छिपाने की वजह से अंधे हो गये।

3. ज़ैद बिन अरक़म , यह भी हदीसे ग़दीर को छिपाने की वजह से नाबीना हो गये।(

4. जरीर बिन अब्दुल्लाह बजली , यह हदीसे ग़दीर को छुपाने और अमीरुल मोमिनीन (अ) की लानत की वजह से जाहिलीयत की तरफ़ से पलट गये।

(अल मआरिफ़ , इब्ने क़तीबा पेज 194, शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 1 पेज पेज 362)

(अहक़ाक़ुल हक़ जिल्द 6 पेज 560, अरजहुल मतालिब पेज 580)

(शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 1 पेज 362, सीरय ए हलबिया जिल्द 3 पेज 337)

(अन साबुल अशराफ़ जिल्द 2 पेज 156)

रोज़े ग़दीर की फ़ज़ीलत

ख़तीब बग़दादी सही सनद के साथ अबू हुरैरा से नक़्ल करते हैं: जो शख्स 18 हिज़हिज्जा को रोज़ा रखे , उसको 60 महीनों के रोज़ों का सवाब मिलेगा और रोज़े ग़दीर ख़ुम है , जिस वक़्त पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ) के हाथ बुलंद करके फ़रमाया: क्या मैं मोमिनीन का वली और सरपरस्त नही हूँ ? सबने कहा: जी हाँ या रसूल्लाह (स) उस वक़्त रसूले अकरम (स) ने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली भी मौला हूँ , उमर बिन ख़त्ताब ने कहा: मुबारक हो मुबारक ऐ अबू तालिब के बेटे , तुम मेरे और हर मोमिन व मोमिना के आक़ा व मौला बन गये , उस मौक़े पर ख़ुदा वंदे आलम ने यह आयए शरीफ़ा नाज़िल फ़रमाई:

الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الْإِسْلَامَ دِينًا

(तारीख़े बग़दाद जिल्द 8 पेज 290, मनाक़िबे इब्ने मग़ाज़ेली पेज 18, हदीस 24, तज़किरतुल ख़वास पेज 30, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 77 हदीस 44)

इस हदीस को खतीबे बग़दादी ने अब्दुल्लाह बिन अली बिन मुहम्मद बिन बशरान से , उन्होने हाफ़िज़ अली बिन उमर दारक़ुतनी से , उन्होने अबी नस्र हबीशून ख़ल्लाल , उन्होने अली बिन सईद रमली से , उन्होने ज़मरा बिन रबीआ से , उन्होने अब्दुल्लाह बिन शौज़ब से , उन्होने मतर वर्राक़ से , उन्होने शहरर बिन हौशब से उन्होने अबू हुरैरा से नक़्ल किया है।

• अबू हुरैरा , उन रावियों में से हैं जिसकी विसाक़त और अदालत पर सभी अहले सुन्नत ने इजमा किया है।

• शरहे हौशब अशअरी , अबू नईम (इसफ़हानी) ने उनको औलिया में शुमार किया है।और उनके बारे में ज़हबी कहते हैं: बुख़ारी ने उनकी मदह व सना की है और अहमद बिन अब्दुल्लाह अजली व यहया बिन अबी शैबा व अहमद वनसवी ने उनकी तौसीक़ की है।और इब्ने असाकर नक़्ल करते हैं कि उनके बारे में अहमद बिन हंबल से सवाल हुआ तो उन्होने उनकी हदीस की तारीफ़ की और ख़ुद भी उनकी तौसीक़ की और उनकी मदह व सना की।

(हिलयतुल औवलिया जिल्द 6 पेज 67 से 69)

(मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 2 पेज 283 हदीस 3756)

(तारीख़े मदीना दमिश्क़ जिल्द 8 पेज 137 से 148)

• मतर बिन तहमान वर्राक़ , अबू रजा ए ख़ुरासानी , उनको अबू नईम ने औवलिया में शुमार किया है।

• (और इब्ने हब्बान ने उनको सेक़ात का जुज़ क़रार दिया है और अजली से नक़्ल किया है कि वह बहुत ज़्यादा सच बोलने वाले थे।(बुख़ारी व मुस्लिम और दीगर सेहाह ने उनसे रिवायात नक़्ल की हैं।

• अबू अब्दुर्रहमान (अब्दुल्लाह) बिन शौज़ब , उनको भी हाफ़िज़े ने औवलिया में शुमार किया है।(नीज़ ख़ज़रजी ने अहमद और इब्ने मुईन से नक़्ल किया है कि वह सिक़ह थे।(

(हिलयतुल औवलिया जिल्द 3 पेज 75)

(अस सिक़ात जिल्द 5 पेज 435)

(हिलयतुल औवलिया जिल्द 6 पेज 125 से 135)

(ख़ुलासतुल ख़ज़रजी जिल्द 2 पेज 66 हदीस 3566)

इब्ने हजर ने उनको सिक़ात में से माना है और सुफ़याने सौरी से नक़्ल किया है कि वह हमारे सिक़ात असातीज़ में शुमार होते हैं और इब्ने हलफ़ून ने उनकी तौसीक़ को इब्ने नमीर , अबू तालिब , अजली , इब्ने अम्मार , इब्ने मुईन और निसाई से नक़्ल किया है।

• ज़मरा बिन रबीआ करशी अबू अब्दिल्लाह दमिश्क़ी , इब्ने असाकरने अहमद बिन हंबल से नक़्ल किया है कि वह सिक़ह , अमीन , नेकमर्द और मलीहुल हदीस थे , और इब्ने मुईन से नक़्ल हुआ है कि वह सिक़ह थे।(नीज़ इब्ने साद को उनको भी , अमीन और अहले ख़ैर शुमार करते हैं , जो अपने ज़माने में सबसे अफ़ज़ल थे।

(तहज़ीबुत तहज़ीब जिल्द 5 पेज 225)

(तारीख़े दमिश्क़ जिल्द 8 पेज 475)

(अत तबक़ातुल कुबरा जिल्द 7 पेज 471)

• अबू नस्र अली बिन सईद हमल ए रमली , ज़हबी ने उनकी तौसीक़ की है और कहते हैं कि मैंने आज तक उनके बारे में कोई गुफ़गुतू नही सुनी , (इब्ने हजर ने किताब लेसानुल मीज़ान , में उनकी तौसीक़ को इख़्तियार किया है।

• अबू नस्रे हबशून बिन मूसा बिन अय्यूब ख़ल्लाल , ख़तीबे बग़दादी ने उनकी तौसीक़ की है और दारकु़तनी से हिकायत हुई है कि वह सदूक़ यानी बहुत ज़्यादा सच बोलने वाले थे।

• हाफ़िज़ अली बिन उमर , अबुल हसन बग़दादी , जो साहिबे सोनन हैं और दार क़ुतनी के नाम से मशहूर हैं , बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने उनकी तारीफ़ की है , ख़तीबे बग़दादी ने उनको वहीदुल अस्र क़रार दिया है।(और इब्ने ख़लक़ान (व हाकिमे नैशापुरी ने उनकी बहुत ज़्यादा तारीफ़ की है।

(मीज़ानुल ऐतेदाल , जिल्द 3 पेज 125 हदीस 5833, पेज 131 हदीस 5851)

(लेसानुल मीज़ान जिल्द 4 पेज 260 हदीस 5806)

(तारीख़े बग़दाद जिल्द 8 पेज 284 हदीस 4392)

(वफ़ायातुल आयान जिल्द 3 पेज 279 हदीस 434)

(तज़किरतुल हुफ़्फ़ाज़ जिल्द 3 पेज 991 हदीस 925)

ऐहतेजाजात बे हदीसे ग़दीर

1. ऐहतेजाजे इमाम अली (अ)

ऐहतेजाज यानी किसके सामने दलील क़ायम करना।(मुतर्जिम)

हज़रत अली (अ) ने पैग़म्बरे अकरम (स) की वफ़ात के बाद जहा भी मुनासिब मौक़ा देखा हर मौक़ा तरीक़े से अपनी हक़्क़ानियत साबित की , जिनमें से हदीसे ग़दीर के ज़रिये अपनी विलायत को साबित करना है हम यहाँ पर चंद मकामात की तरफ़ इशारा करते हैं:

अ. रोज़े शूरा

ख़तीबे बग़दादी हनफ़ी और हमूई शाफ़ेई ने अपनी सनद के साथ अबित तफ़ील आमिर बिन वासेला से नक़्ल किया है कि उन्होने कहा: मैं शूरा (सक़ीफ़ ए बनी सायदा) के दिन एक कमरा के दरवाज़े के पास था जिसमें हज़रत अली (अ) और पाच दूसरे अफ़राद भी थे , मैंने ख़ुद सुना कि हज़रत अली (अ) ने उन लोगों से फ़रमाया: बेशक तुम लोगों के सामने ऐसी चीज़ से दलील पेश करूँगा जिसमें अरब व अजम कोई भी तग़य्युर व तबद्दुल नही कर सकता।

और फिर फ़रमाया: ऐ जमाअत , तुम्हे ख़ुदा की क़सम , क्या तुम्हारे दरमियान कोई ऐसा शख्स है जिस ने मुझ से पहले वहदानियत का इक़रार किया हो ? सबने कहा: नही , उसके बाद इमाम अली (अ) ने फ़रमाया: तुम्हे ख़ुदा की क़सम , क्यो तुम्हारे दरमियान कोई ऐसा शख्स है जिसके बारे में पैग़म्बरे अकरम (स) ने फ़रमाया हो: من کنت مولا فھذا علی مولی

जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली भी मौला हैं , पालने वाले , तू उसको दोस्त रख जो अली को दोस्त रखे और दुश्मन रख उसको जो अली को दुश्मन रखे , उसके नासिरों की मदद फ़रमा , और उन को ज़लील करने वालों को ज़लील व ख़्वार फ़रमा , हाज़ेरीने मजलीस इस वाक़ेया की ख़बर ग़ायब लोगों तक पहुचायें।

सब लोगों ने कहा: ख़ुदा की क़सम , हरगिज़ नही।(

इस रिवायत के मज़मून को अहले सुन्नत के बहुत से उलामा ने अपनी किताबों में बयान किया है मिनजुमला:

• इब्ने हजरे शामी

• इब्ने हजरे हैसमी

• इब्ने उक़दा

• हाफ़िज़ अक़ीली

• इब्ने अब्दुल बर

• बुख़ारी

• इब्ने असाकर

(मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 313 हदीस 314, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 319 हदीस 251)

(अद्दुरुन नज़ीम जिल्द 1 पेज 116)

(अस सवायक़े मोहरेक़ा पेज 126 ब नक़्ल अज़ दारक़ुतनी)

(अमाली , तूसी पेज 332 हदीस 667)

(मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 1 पेज 431 हदीस 1643, लेसानुल मीज़ान जिल्द 2 पेज 198 हदीस 2212)

(अल इसतीआब क़िस्में सिव्वुम 1098 हदीस 1855)

(तारीख़ुल कबीर जिल्द 2 पेज 382)

(तारीख़े दमिश्क़ हदीस 1140, 1141, 1142)

• क़ाज़ी अबू अब्दिल्लाहिल हुसैन बिन हारून ज़ब्बी ( 398)

• गंजी शाफ़ेई

• इब्ने मग़ाज़ेली शाफ़ेई

• सुयूती शाफ़ेई

• मुत्तक़ी हिन्दी

(इमाम ज़ब्बी मजलिस 61)

(किफ़ायतुत तालिब पेज 386)

(अलमनाक़िब हदीस 155)

(जमउल जवामेअ जिल्द 2 पेज 165, 166, मुसनदे फ़ातेमा सलामुल्लाह पेज 21)

(कंज़ुल उम्माल जिल्द 5 पेज 717 से 726, हदीस 14241 से 14243 )

ब. ख़िलाफ़ते उस्मान के ज़माने में

हमूई शाफ़ेई अपनी सनद के साथ ताबेईन की अज़ीम शख़्सीयत सुलैम बिन क़ैस हेलाली से रिवायत करते हैं कि उन्होने फ़रमाया: मैंने ख़िलाफ़ते उस्मान के ज़माने में हज़रत अली (अ) को मस्जिदे नबी में देखा कि और देखा कि कुछ लोग आपस में बैठे हुए एक दूसरे से इल्म व फ़िक्ह के सिलसिले में गुफ़तगू कर रहे हैं। जिसके दरमियान क़ुरैश की फ़ज़ीलत और सवाबिक़ का ज़िक्र हुआ और जो कुछ रसूलल्लाह (स) ने उनके बारे में फ़रमाया था , उनको बयान किया जाने लगा और उस मजमें 200 से ज़्यादा अफ़राद थे जिनमें हज़रत अली (अ) , साद बिन अबी वक़ास , अब्दुर्रहमान बिन औफ़ , तलहा , ज़ुबैर , मिक़दाद , हाशिम बिन उबैया , इब्ने उमर , हसन (अ) , हुसैन (अ) , इब्ने अब्बास , मुहम्मद बिन अबी बक्र और अब्दुल्लाह बिन जाफ़र थे।

और अंसार में से उबैय बिन कअब , ज़ैद बिन साबित , अबू अय्यूब अंसारी , अबुल हैसम बिन तीहान , मुहम्मद बिन सलमा , क़ैस बिन साद , जाबिर बिन अब्दुल्लाह , अनस बिन मालिक वग़ैरह थे , हज़रत अली (अ) और आपके अहले बैत ख़ामोश बैठे हुए थे , एक जमाअत ने हज़रत अली (अ) की तरफ़ रुख करके अर्ज़ किया या अबुल हसन आप क्यो कुछ नही कहते ?

हज़रत अली (अ) ने फ़रमाया: हर क़बीले ने अपनी अपनी फ़ज़ीलत बयान कर दी है और अपना हक़ ज़िक्र कर दिया है , लेकिन मैं तुम जमाअते क़ुरैश और अंसार से सवाल करता हूँ कि ख़ुदा वंदे आलम ने किसके ज़रिये तुम्हे यह फ़ज़ीलत अता की है ? क्या यह फ़ज़ीलत ख़ुद तुम ने हासिल की है या तुम्हारी कौ़म व क़बीले ने अता की है या तुम्हारे अलावा किसी और ने यह फ़ज़ीलत तुम्हे दी है ? सबने अर्ज़ किया यक़ीनन यह फ़ज़ीलतें हमको हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा (स) और उनके ख़ानदान के ज़रिये अता हुई है और यह फ़ज़ीलतें न हमने ख़ुद हासिल की हैं न हमारी क़ौम व क़बीले ने अता की है। उस मौक़े पर हज़रत अली (अ) ने अपने फ़ज़ायल व मनाक़िब बयान करना शुरु किये और एक के बाद एक फ़ज़ीलत शुमार करने लगे , यहाँ तक कि फ़रमाया: तुम लोगों को ख़ुदा की क़सम , क्या तुम जानते हो कि यह आयए शरीफ़ा कहाँ नाज़िल हुई:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَطِيعُوا اللَّـهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ وَأُولِي الْأَمْرِ مِنكُمْ ۖ

(सूरए निसा आयत 59)

तर्जुमा , ऐ ईमान वालो , अल्लाह की इताअत करो , रसूल और साहिबाने अम्र की इताअत करो जो तुम ही में से हैं।

और यह आयत कहाँ नाज़िल हुई:

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّـهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ

(सूरए मायदा आयत 55)

तर्जुमा , ईमान वालो , बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल और वह साहिबाने ईमान जो नमाज़ क़ायम करते हैं और हालते रूकू में ज़कात देते हैं।

नीज़ यह आयत कहाँ नाज़िल हुई:

أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تُتْرَكُوا وَلَمَّا يَعْلَمِ اللَّـهُ الَّذِينَ جَاهَدُوا مِنكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُوا مِن دُونِ اللَّـهِ وَلَا رَسُولِهِ وَلَا الْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةً ۚ وَاللَّـهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ

(सूरए तौबा आयत 16)

तर्जुमा

, जिन्होने ख़ुदा , रसूल और साहिबाने ईमान को छोड़ कर किसी को दोस्त नही बनाया है।

उस मौक़े पर उन्होने कहा या अमीरल मोमिनीन , क्या यह आयत बाज़ मोमिनीन से मख़सूस है या तमाम मोमिनीन को शामिल है ? आपने फ़रमाया कि ख़ुदा वंदे आलम ने अपने पैग़म्बर (स 0 को हुक्म दिया कि अपने की पहचान करा दो , और जैसा कि आँ हज़रत (स) ने तुम लोगों के लिये नमाज़ , ज़कात और हज की तफ़सीर की है , उसी तरह विलायत की भी तफ़सीर व वज़ाहत की है और मुझे ग़दीरे ख़ुम के मैदाने में ख़िलाफ़त के लिये मंसूब किया। उस वक़्त पैग़म्बर (स) ने अपने ख़ुतबे में फ़रमाया: ऐ लोगों , ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे ऐसे फ़रमान का हुक्म दिया है जिसकी वजह से मैं परेशान हूँ कि अगर मैंने उस हुक्म को पहुचाया तो लोग मुझे झुटलायेगें लेकिन (ख़ुदा वंदे आलम) ने मुझे डराया है कि इस अम्र को ज़रूर पहुचायें , वर्ना आपका रिसालत को ख़तरा है। उस मौक़े पर रसूले अकरम (स 0 ने हुक्म दिया कि अज़ान कही जाये , (नमाज़ के बाद) आं हज़रत (स) ने ख़ुतबे में फ़रमाया: ऐ लोगों क्या तुम जानते हो कि ख़ुदा वंदे आलम मेरा आक़ा व मौला है और क्या मैं मोमिनीन का मौला व आक़ा और उनके नफ़्सों से औला हूँ ? तो सबने कहा , जी हा या रसूलल्लाह , उस वक़्त पैग़म्बरे अकरम (स 0 ने मुझ से फ़रमाया: ऐ अली खड़े हो जाओ , मैं खड़ा हुआ तो आपने फ़रमाया: जिसका मैं मौला पस उसके यह अली मौला हैं।

पालने वाले , जिसने उनकी विलायत को क़बूल किया और उनको दोस्त रखा तू भी उनको अपनी विलायत के ज़ेरे साया क़रार दे और जो शख्स उनसे दुश्मनी रखे और उनकी विलायत का इंकार करे तू भी उसको दुश्मन रख।

(फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 312 हदीस 350)

(स) कूफ़े के मजमे में)

जब हज़रत अली (अ) को कूफ़े में यह ख़बर दी गई कि कुछ लोग ख़िलाफ़त के सिलसिले में आपकी हक़्क़ानीयत पर ऐतेराज़ करते हैं तो आप रहबा कूफ़े के मजमे के दरमियान हाज़िर हुए और उन लोगों के सामने हदीसे ग़दीर को दलील के तौर पर बयान किया जो आपकी विलायत को क़बूल नही करते थे।

यह ऐहतेजाज इतना मशहूर और अलल ऐलान था कि बहुत से ताबेईन ने इस वाक़ेया को नक़्ल किया है और बहुत से उलामा ए अहले सुन्नत ने मुख़्तलिफ़ सनदों के साथ काफ़ी मिक़दार में अपनी अपनी किताबों में नक़्ल किया है , अब हम यहाँ पर इस वाक़ेया के बाज़ रावियों की तरफ़ इशारा करते हैं:

1. असबग़ बिन नबाता

2. हत्ता बिन जवीन उरफ़ी ,

3. अबू क़ुदामा ए बजली ( 76, 79 हिजरी)

4. ज़ाज़ान बिन उमर

5. ज़र्रीन बिन जबीश असदी

6. ज़ियाद बिन अबी ज़ियाद

(शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 4 पेज 74 ख़ुतबा 56)

(उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 479 हदीस 3341)

(मनाक़िब अली बिन अबी तालिब (अ) , इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 20 हदीस 27)

(मुसनद अहमद जिल्द 1 पेज 135 हदीस 642, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 109, सिफ़तुस सिफ़ात जिल्द 1 पेज 121, मतालिबुस सुउल पेज 54, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 210 जिल्द 7 पेज 348, तज़किरतुल ख़वास पेज 17, क़ज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 170 हदीस 36514, तारिख़े दमिश्क़ ऱक्म 524 , मुसनदे अली (अ) , सुयूती हदीस 144)

(शरहुल मवाहिब जिल्द 7 पेज 113, उसदुल ग़ाबा जिल्द 1 पेज 441, अल इसाबा जिल्द 1 पेज 305, क़ुतनुल अज़हारुल मुतनाज़िरा , सुयूती पेज 278)

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 142 हदीस 672, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 106, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 7 पेज 384 हवादिस साल 40 हिजरी , रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 114, ज़खायरुल उक़बा पेज 67, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 532, अल मुख़्तारा हाफ़िज़ ज़िया जिल्द 2 पैज 80 हदीस 458, दुर्रुल सहाबा शौकानी पेज 211)

7. ज़ैद बिन अरक़म

8. ज़ैद बिन यूसीअ

9. सईज बिन अबी हद्दान

10. सईद बिन वहब

11. अबुत तुफ़ैल आमिर बिन वासेला

12. अबू अमारा , अब्द ख़ैर बिन यज़ीद

13. अब्दुर्रहमान बिन अबी लैला

(मुसनदे अहमद जिल्द 6 पेज 510 हदीस 22633, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 116, अलमोजमुल कबीर जिल्द 5 पेज 175 हदीस 4996, मनाक़िब अली बिन अबी तालिब (अ) इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 23 हदीस 33, ज़खायरुल उक़बा पेज 667, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 7 पेज 383 हवादिस साल 40 हिजरी)

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 189 हदीस 953, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 229, किफ़ायतुत तालिब पेज 63, असनल मतालिब पेज 49, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन (अ) , निसाई पेज 101 हदीस 87 पेज 102 हदीस 88, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 131 हदीस 8472, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 105, जामेउल अहादीस सुयूती जिल्द 16 पेज 263 हदीस 7899, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 158 हदीस 36487 व ...)

(फ़राउदुल समतैन जिल्द 1 पेज 68 हदीस 34)

(मुसनदे जिल्द 1 पेज 189 हदीस 953 जिल्द 6 पेज 506 हदीस 22597, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन निसाई जिल्द 117 हदीस 98, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 136 हदीस 8483, उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 492 रक़्म 3382, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104, अव बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 229 जिल्द 7 पेज 383, मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 156 हदीस 185, अल मोजमुल कबीर जिल्द हदीस 5056, मोजमुल औसत हदीस 1987, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 517 से 522, अल मुख़्तारा ज़िया मुक़द्दसी रक़्म 479, 480, 481)

(मुसनदे अहमद जिल्द 5 पेज 498 हदीस 18815, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104, ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन (अ) निसाई पेज 112 हदीस 193, अस सोननुल कुबरा जिल्द 5 पेज 134 हदीस 8478, किफ़ायतुत तालिब पेज 55, अर रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 114, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 231, नज़लुल अबरार पेज 52, उसदुल ग़ाबा जिल्द 6 पेज 252 रक़्म 6169, यनाबीउल मवद्दत जिल्द 1 पेज 36 बाब 4)

(अल मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 156 हदीस 185, अल मनाक़िबे इब्नुल मग़ाज़ेली रक़्म 27, तारिख़े दमिश्क़ रक़्म 520)

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 191 हदीस 964, तारिख़े बग़दाद जिल्द 14 पेज 236, मुश्किलुल आसार जिल्द 2 पेज 308, उसदुल ग़ाबा जिल्द 4 पेज 108 रक़्म 3783, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 69 हदीस 36, असनल मतालिब पेज 47, 48, अल बियादा वन निहाया जिल्द 5 पेज 230, नज़लुल अबरार जिल्द 131 हदीस 36417, मुसनदे बज़्ज़ाज़ रक़्म 632, मुसनदे अली (अ) सुयूती पेज 46, मुसनदे अबू यअली रक़्म 567, जमउज़ जवामेअ जिल्द 2 पेज 155, तारिख़े अमीरुल मोमिनीन इब्ने असाकर रक़्म 510, अल मुख़्तारा ज़िया मुक़द्देसी जिल्द 2 पेज 273 रक़्म 654)

14. उमर बिन ज़िल मर

15. उमैरा बिन साद

16. यअली बिन मर्रा

17. हानी बिन हानी

18. हारिसा बिन मुज़र्रब

19. हुबैरा बिन मरियत

20. अबू रमला अब्दुल्लाह बिन अबी अमामा

21. अबू वायल शक़ीक़े बिन सलमा

22. हारिस आवर

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 189 हदीस 954, ख़सायसे निसाई पेज 117 हदीस 99, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 136 हदीस 8484, फ़रायदुस समतैन जिल्द 1 पेज 68 हदीस 36, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 105, किफ़ायतुत तालिब पेज 63, अल मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 3 पेज 294 रक़्म 6481, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 230, तारिख़ुल ख़ुलाफ़ा पेज 168, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 158 हदीस 3648, मुसमदे बज़्ज़ाज़ जिल्द 3 पेज 35 रक़्म 766, असनल मतालिब पेज 49, अल मोजमुल कबीर हदीस 5059, अल मोजमुल औसत हदीस 2130, 5301, तारिख़े अमीरुल मोमिनीन (अ) इब्ने असाकर रक़्म 515, 516, जमउल जवामेअ जिल्द 2 पेज 72, दुर्रुस सहाबा पेज 209)

(हिलयतुल औलिया जिल्द 5 पेज 26, ख़सायसे निसाई पेज 100 हदीस 85, सोनने निसाई जिल्द 5 पेज 131 हदीस 8470, अल मनाक़िब इब्नुल मग़ाज़ेली पेज 26 हदीस 38, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 230 जिल्द 7 पेज 384, कंज़ुल उम्माल जिल्द 13 पेज 154 हदीस 36480 पेज 157 हदीस 36486)

(उसदुल ग़ाबा जिल्द 5 पेज 297 हदीस 5162)

(उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 492 रक़्म 3382)

(ख़सायसे निसाई पेज 167 हदीस 58, अस सोननुल कुबरा जिल्द 5 पेज 154 हदीस 8542, शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज 228 ख़ुतबा 37, अस सीरतुल हलबीया जिल्द 3 पेज 274 )

(अल मोजमुल कबीर हदीस 8058)

(किताबुल मवातात , तबरी)

(अनसाबुल अशराफ़ तर्जुम ए अमीरूल मोमिनीन (अ) रक़्म 169)

लिसानुल मीज़ान जिल्द 2 पेज 379

गवाही देने वाले हज़रात

दर्ज ज़ैल हज़रात ने रोज़े रहबा हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के लिये हदीसे ग़दीर की गवाही दी है:

1. अबू ज़ैनब बिन औफ़ अंसारी

2. अबू अमरा बिन अम्र बिन महसन अंसारी

3. अबू फ़ज़ाल ए अँसारी

4. अबू क़ुदाम ए अँसारी

5. अबू लैला अंसारी

6. अबू हुरैरा दूसी

7. अबुल हैसम बिन तीहान

8. साबित बिन वदीअ ए अँसारी

9. हैश बिन जुनाद ए अंसारी

10. अबू अय्यूब ख़ालिद अंसारी

11. ख़ुज़ैमा बिन साबित अँसारी

12. बू शरीह ख़ुवैलद बिन अम्र ख़ुज़ाई

13. जै़द या यज़ीद बिन शराहिले अंसारी

14. सहल बिन हनीफ़ बिन अंसारी वासी

15. अबू सईद साद बिन मालिक ख़ुदरी अँसारी

16. अबुल अब्बास सहल बिन साद अँसारी

17. आमिर बिन लैला ग़फ़्फ़ारी

18. अब्दुर्रहमान बिन अब्दे रब अँसारी

19. अब्दुल्लाह बिन साबित अँसारी , ख़ादिमे रसूले अकरम (स)

20. उबैद बिन आज़िब अँसारी

21. अबू तुरैफ़ अदी बिन हातिम

22. उक़बा बिन अम्र बिन जहनी

23. नाजिया बिन अम्र ख़ुज़ाई

24. नोमान बिन अजलान अंसारी

25. हाफ़िज़ हैसमी ने सही सनद के साथ नक़्ल किया है कि जब हज़रत अली (अ) ने हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज किया तो उस मौक़े पर 30 लोग मौजूद थे।

(मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 104)

चूँकि यह ऐहतेजाज सन् 35 हिजरी में हुआ और हदीसे ग़दीर को बयान किये हुए 25 साल का अरसा गुज़र गया , ज़ाहिर सी बात है कि बहुत से वह असहाब जिन्होने हदीसे ग़दीर को सुना होगा लेकिन वह इस ऐहतेजाज के वक़्त दुनिया में नही होगें और बहुत असहाब जंगों में शहीद हो चुके थे औप बहुत से दीगर मुल्कों में मुतफ़र्रिक़ हो गये होगें और यह 30 अफ़राद वह थे जो कि कूफ़े के अलावा में और वह भी रहबा नामी मक़ाम पर हाज़िर थे हज़रत अली (अ) की ख़िलाफ़त व विलायत के लिये हदीसे ग़दीर की गवाही दी।

ल. जंगे जमल में ऐहतेजाज

जिन मक़ामात पर हज़रत अली (अ) ने हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज किया है उनमें से जंगे जमल में तलहा के सामने ऐहतेजाज भी है।

हाफ़िज़ नैशा पुरी अपनी सनद के साथ नज़ीर ज़ब्बी कूफ़ी ताबेई से नक़्ल करते हैं कि उन्होने कहा कि हम हज़रत अली (अ) के साथ जंगे जमल में थे , इमाम अली (अ) ने किसी को तलहा बिन उबैदुल्लाह के पास भेज कर उसको मुलाक़ात के बुलवाया , चुनाचे तलहा आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ , आपने तलहा से फ़रमाया: तुम्हे ख़ुदा की क़मस , क्या तुमने रसूलल्लाह (स) से नही सुना

तो उसने कहा , जी हाँ सुना है , इमाम अली (अ) ने फ़रमाया: तो फिर क्यो हमसे जंग करता है ? उसने कहा: मेरे याद नही है और यह कहते ही वहाँ उठ खड़ा हुआ।

(अल मुसतदरक अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 419 हदीस 5594, अल मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 182, तारिख़े दमिश्क़ जिल्द 8 पेज 568, तज़किरतुल ख़वास पेज 72, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 107, क़ंज़ुल उम्माल जिल्द 11 पेज 332 हदीस 31662 )

ह. कूफ़े में हदीसे सवारान

अहमद बिन हंबल ने अपनी सनद के साथ रियाह बिन हारिस से नक़्ल किया है कि कूफ़े में कुछ लोग हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की ख़िदमत में पहुच कर अर्ज़ करते हैं इमाम (अ) ने उनसे फ़रमाया: मैं किस तरह से तुम लोगों का मौला हूण जबकि तुम अरब के (ख़ास) कबीले से ताअल्लुक़ रखते हो ? उन्होने जवाब में कहा: क्योकि हमने रसूलल्लाह (स) से रोज़े ग़दीर सुना है कि आपने फ़रमाया:

(मुसनदे अहमद बिन हंबल जिल्द 6 पेज 583 हदीस 23051 से 23052, उसदुल ग़ाबा जिल्द 1 पेज 441 रक़्म 1038, रियाज़ुन नज़रा जिल्द 3 पेज 113, अल बिदाया वन निहाया जिल्द 5 पेज 231 जिल्द 7 पेद 384 से 385, अल मोजमुल कबीर जिल्द 4 पेज 173 हदीस 4053, मुख़्तसरे तारीख़ जिल्द 17 पेज 354)

ल. जंगे सिफ़्फ़ीन में ऐहतेजाज

सुलैम बिन क़ैस हेलाली , बुज़ुर्गे ताबेई अपनी किताब में नक़्ल करते हैं कि हज़रत अमीर मोमिनीन जंगे सिफ़्फ़ीन में अपने लश्कर के दरमियान मिम्बर पर गये और लोगों को अपने पास जमा किया , जो मुख़्तलिफ़ इलाक़ों से आये हुए थे जिनमें मुहाजिर व अंसार भी थे , सब के सामने ख़ुदावंदे आलम की हम्द व सना करने के बाद आपने फ़रमाया: ऐ जमाअत , बेशक मेरे मनाक़िब व फ़ज़ायल उससे कहीं ज़्यादा हैं जिनका शुमार किया जा सके।

इस हदीस में हज़रत अली (अ) ने तफ़सीली तौर पर अपने फज़ायल बयान किये जिनमें हदीस ग़दीर का भी ज़िक्र किया।

(किताबे सुलैम बिन क़ैस जिल्द 2 पेज 757 हदीस 25)

2. हदीसे ग़दीर के ज़रिये हज़रते ज़हरा (स) का ऐहतेजाज

शमसुद्दीन अबुल ख़ैरी जज़री दमिश्क़ी शाफ़ेई ने अपनी सनद के साथ उम्मे कुलसूम बिन्ते अली (अ) से नक़्ल किया कि उन्होने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से नक़्ल किया कि (बीबी ए दो आलम) ने फ़रमाया:

हदीस

(असनल मतालिब पेज 49)

क्या तुमने ग़दीरे ख़ुम में हज़रत रसूले ख़ुदा (स) के इस क़ौल को भुला दिया कि आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया: जिसका मैं मौला हूँ उसके यह अली भी मौला हैं , इसी तरह आँ हज़रत (स) का यह क़ौल कि या अली , तुम मेरे नज़दीक वही निस्बत रखते हो जो हारून को मूसा से थी।

हज़रत इमाम हसन (अ) और हज़रत इमाम हुसैन (अ) ने भी हदीस ग़दीर से ऐहतेजाज किया है।

(यनाबीउल मवद्दत जिल्द 3 पेज 150 बाब 90, किताब सुलैम जिल्द 2 पेज 788 हदीस 26)

3. हदीसे ग़दीरे ज़रिये दीगर हज़रात का ऐहतेजाज

अहले बैत (अ) के अलावा बाज़ मक़मात पर दीगर हज़रात ने भी हदीसे ग़दीर से ऐहतेजाज किया है जो ख़ुद इस बात पर दलील करता है कि मुसलमानों के दरमियान हदीस ग़दीर एक मख़सूस अहमियत रखती थे , अब यहाँ हम उन लोगों के असमाए गिरामी को बयान करते हैं:

1. अब्दुल्लाह बिन जाफ़र का हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की शहादत के बाद मुआविया पर हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज किया।

2. बुरद का अम्र बिन आस पर हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

3. अम्र बिन आस का मुआविया पर हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

4. अम्मारे यासिर का जंगे सिफ़्फ़ीन में अम्र बिन आस पर हदीस ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

5. असबग़ बिन नबाता का हदीसे ग़दीर के ज़रिये मुआविया के जलसे में सन् 37 हिजरी में ऐहतेजाज।

6. अबू हुरैरा से एक जवान का मस्जिदे कूफ़ा में हदीसे ग़दीर के बारे में मुनाज़िरा:

इस मुनाज़िरा को अबू बक्र हैसमी ने अपनी किताब मजमउज़ ज़वायद में अबी यअली , तबरानी और बज़्ज़ाज़ से दो तरीक़ों से नक़्ल किया है जिनमें एक तरीक़े को सही माना है लेकिन दूसरे तरीक़े की तौसीक़ नही की है।(

7. एक शख्स का जै़द बिन अरक़म पर हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

8. एक इराक़ी शख्स का जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी से हदीसे ग़दीर के ज़रिये मुनाज़िरा।

9. क़ैस बिन साद का मुआविया से सन् 50, 56 में हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

10. दारमिया ए हजूनिया का मुआविया के सन् 50, 56 में हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

(किताब सुलैम जिल्द 2 पेज 834 हदीस 42)

(अल इमामह वस सियासह जिल्द 1 पेज 97)

(मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 199 हदीस 240)

(शरहे इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पेज 206 हदीस 240 ख़ुतबा 35 वक़ ए सिफ़्फ़ीन पेज 338)

(मनाक़िबे ख़ारज़मी पेज 205 हदीस 240, तज़किरतुल ख़वास पेज 85)

(मुसमदे अबी यअली मूसली जिल्द 11 पेज 307 हदीस 6423, मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 105)

(यनाबीउल मवद्दत जिल्द 2 पेज 73 बाब 56)

(किफ़ायतुत तालिब पेज 61)

(किताबे सुलैम जिल्द 2 पेज 777 हदीस 26)

(रबीउल अबरार जिल्द 2 पेज 599)

11. उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ख़लीफ़ ए बनी उमय्या का हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

12. ख़लीफ़ ए अब्बासी मामून का फ़ुक़हा व उलामा के सामने हदीसे ग़दीर के ज़रिये ऐहतेजाज।

(हिलयतुल औवलिया जिल्द 5 पेज 364)

(अक़दुल फ़रीद जिल्द 5 पेज 56 से 61)