तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

2. सलाम के बाद शक करना

1188. अगर नमाज़ी सलामे नमाज़ के बाद शक करे कि उसने नमाज़ सहीह तौर पर पढ़ी है या नहीं मसलन शक करे कि रूकू अदा किया है या नहीं या चार रक्अती नमाज़ के सलाम के बाद शक करे कि चार रक्अती नमाज़ पढ़ी है या पांच तो वह अपने शक की परवाह न करे लेकिन अगर उसे दोनों तरफ़ नमाज़ के बातिल होने का शक हो मसलन चार रक्अती नमाज़ के सलाम के बाद शक करे कि तीन रक्अती पढ़ी है या पांच रक्अत तो उसकी नमाज़ बातिल है।

3. वक़्त के बाद शक करना

1189. अगर कोई शख़्स नमाज़ का वक़्त गुज़रने के बाद शक करे कि उसने नमाज़ पढ़ी है या नहीं या गुमान करे कि नहीं पढ़ी तो उस नमाज़ का पढ़ना लाज़िम नहीं लेकिन अगर वक़्त गुज़रने से पहले शक करे कि नमाज़ पढ़ी है या नहीं तो ख़्वाह गुमान करे कि पढ़ी है फिर भी ज़रूरी है कि वह नमाज़ पढ़े।

1190. अगर कोई शख़्स वक़्त गुज़रने के बाद शक करे कि उसने नमाज़ दुरूस्त पढ़ी है या नहीं तो अपने शक की परवाह न करे।

1191. अगर नमाज़े ज़ोहर और अस्र का वक़्त गुज़र जाने के बाद नमाज़ी जान ले कि चार रक्अत नमाज़ पढ़ी है लेकिन यह मालूम न हो कि ज़ोहर की नीयत से पढ़ी है या अस्र की नीयत से तो ज़रूरी है कि चार रकअत नमाज़े क़ज़ा उस नमाज़ की नीयत से पढ़े जो उस पर वाजिब है।

1192. अगर मग़्रिब और इशा की नमाज़ का वक़्त गुज़रने के बाद नमाज़ी को पता चले कि उसने एक नमाज़ पढ़ी है लेकिन यह इल्म न हो कि तीन रक्अती नमाज़ पढ़ी है या चार रक्अती तो ज़रूरी है कि मग़्रिब और इशा दोनों नमाज़ो की क़ज़ा करे।

4. कसीरुश्शक का शक करना

1193. ससीरुश्शक वह शख़्स है जो बहुत ज़्यादा शक करे इस मअनी में कि वह लोग जो उसकी मानिन्द हैं उनकी निस्बत वह हवासे फ़रेब अस्बाब के होने या न होने के बारे में ज़्यादा शक करे। पस जहां हवास को फ़रेब देने वाला सबब न हो और हर तीन नमाज़ों में एक दफ़्अ शक करे तो ऐसा शख़्स अपने शक की परवाह न करे।

1194. अगर कसीरुश्शक नमाज़ के अज्ज़ा में से किसी जुज़्व के अंजाम देने के बारे में शक करे तो उसे यूं समझना चाहिये कि उस जुज़्व को अंजाम दे दिया है। मसलन अगर शक करे कि रूकू किया है या नहीं तो उसे समझना चाहिये कि रूकू कर लिया है और अगर किसी ऐसी चीज़ के बारे में शक करे जो मुब्तिले नमाज़ है मसलन शक करे कि सुब्ह की नमाज़ दो रक्अत पढ़ी है या तीन रक्अत तो यहीं समझे नमाज़ ठीक पढ़ी है।

1195. जिस शख़्स को नमाज़ के किसी जुज़्व के बारे में ज़्यादा शक होता हो, इस तरह कि वह किसी मख़्सूस जुज़्व के बारे में कुछ ज़्यादा (ही) शक करता रहता हो, अगर वह नमाज़ के किसी जुज़्व के बारे में शक करे तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे। मसलन किसी को ज़्यादा शक इस बात में होता हो कि सज्दा किया है या नहीं, अगर उसे रूकू करने के बाद शक हो तो ज़रूरी है कि शक के हुक्म पर अमल करे यानी अगर भी सज्दे में न गया हो तो रूकू करे और सज्दे में चला गया हो तो शक की परवाह न करे।

1196. जो शख़्स किसी मख़्सूस नमाज़ मसलन ज़ोहर की नमाज़ में ज़्यादा शक करता हो अगर वह किसी दूसरी नमाज़ मसलन अस्र की नमाज़ में शक करे तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे।

1197. जो शख़्स किसी मख़्सूस जगह पर नमाज़ पढ़ते वक़्त ज़्यादा शक करता हो अगर वह किसी दूसरी जगह नमाज़ पढ़े और उसे शक पैदा हो तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे।

1198. अगर किसी शख़्स को इस बारे में शक हो कि कसीरुश्शक हो गया है या नहीं तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे और कसीरुश्शक शख़्स को जब तक यक़ीन न हो जाए कि वह लोगों की आम हालत पर लौट आया है। अपने शक की परवाह न करे।

1199. अगर कसीरुश्शक शख़्स शक करे कि एक रुक्न बजा लाया है या नहीं और वह इस शक की परवाह भी न करे और फिर उसे याद आए कि वह रुक्न बजा नहीं लाया और उसके बाद के रुक्न में मशग़ूल न हुआ हो तो ज़रूरी है कि उस रुक्न को बजा लाए और अगर बाद के रुक्न में मशग़ूल हो गया हो तो उसकी नमाज़ एहतियात की बिना पर बातिल है मसलन अगर शक करे कि रूकू किया है या नहीं और इस शक की परवाह न करे और दूसरे सज्दे से पहले उसे याद आए कि रूकू नहीं किया था तो ज़रूरी है कि रूकू करे और अगर दूसरे सज्दे के दौरान उसे याद आए तो उसकी नमाज़ एहतियात की बिना पर बातिल है।

1200. जो शख़्स ज़्यादा शक करता हो अगर वह शक करे कि कोई ऐसा अमल जो रुक्न न हो अंजाम दिया है या नहीं और इस शक की परवाह न करे और बाद में उसे याद आए कि वह अमल अंजाम नहीं दिया तो अगर अंजाम देने के मक़ाम से अभी न गुज़रा हो तो ज़रूरी है कि उसे अंजाम दे और अगर उसके मक़ाम से गुज़र गया हो तो उसकी नमाज़ सहीह है। मसलन अगर शक करे कि अलहम्द पढ़ी है या नहीं और अलहम्द पढ़े और रूकू में याद आए तो उसकी नमाज़ सहीह है।

5. इमाम और मुक्तदी का शक

1201. अगर इमामे जमाअत नमाज़ की रक्अतों की तादाद में शक करे। मसलन शक करे कि तीन रक्अतें पढ़ी है या चार रक्अतें और मुक्तदी को यक़ीन या गुमान हो कि चार रक्अतें पढ़ी हैं और वह यह बात इमामे जमाअत के इल्म में ले आए कि चार रक्अतें पढ़ी हैं तो इमाम को चाहिये कि नमाज़ को तमाम करे और नमाज़े एहतियात का पढ़ना ज़रूरी नहीं और अगर इमाम को यक़ीन या गुमान हो कि कितनी रक्अतें पढ़ी हैं और मुक्तदी नमाज़ की रक्अतों के बारे में शक करे तो उसे चाहिये कि अपने शक की परवाह न करे।

6. मुस्तहब नमाज़ में शक

1202. अगर कोई शख़्स मुस्तहब नमाज़ की रक्अतों में शक करे और शक अदद की ज़्यादती की तरफ़ हो जो नमाज़ को बातिल करती है तो उसे चाहिये कि यह समझ ले कि कम रक्अतें पढ़ी हैं मसलन अगर सुब्ह की नफ़्लों में शक करे कि दो रक्अतें पढ़ी हैं या तीन तो यह समझे कि दो पढ़ीं हैं। और अगर तादाद की ज़्यादती वाला शक नमाज़ को बातिल न करे मसलन अगर नमाज़ी शक करे कि दो रक्अतें पढ़ीं तो शक की जिस तरफ़ पर भी अमल करे उसकी नमाज़ सहीह है।

1203. रुक्न का कम होना नफ़ल नमाज़ को बातिल कर देता है लेकिन रुक्न का ज़्यादा होना उसे बातिल नहीं करता। पस अगर नमाज़ी नफ़ल के अफ़्आल में से कोई फ़ेल भूल जाए और यह बात उसे उस वक़्त याद आए जब वह उसके बाद वाले रुक्न में मशग़ूल हो चुका हो तो ज़रूरी है कि उस फ़ेल को अंजाम दे और दोबारा उस रुक्न को अंजाम दे मसलन अगर रूकू के दौरान उसे याद आए कि सूरतुल हम्द नहीं पढ़ी तो ज़रूरी है कि वापस लौटे और अलहम्द पढ़े और दोबारा रूकू में जाए।

1204. अगर कोई शख़्स नफ़ल के अफ़्आल में से किसी फ़ेल के मुतअल्लिक़ शक करे ख़्वाह वह फ़ेल रुक्नी हो या ग़ैर रुक्नी और इसका मौक़ा न गुज़रा हो तो ज़रूरी है कि उसे अंजाम दे और अगर मौक़ा गुज़र गया हो तो अपने शक की परवाह न करे।

1205. अगर किसी शख़्स को दो रक्अत मुस्तहब नमाज़ में तीन या ज़्यादा रक्अतों के पढ़ लेने का गुमान हो तो चाहिये कि उस गुमान की परवाह न करे और उसकी नमाज़ सहीह है लेकिन अगर उसका गुमान दो रक्अतों का या उससे कम का हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसी गुमान पर अमल करे मसलन अगर उसे गुमान हो कि एक रक्अत पढ़ी है तो ज़रूरी है कि एहतियात के तौर पर एक रक्अत और पढ़े।

1206. अगर कोई शख़्स नफ़ल नमाज़ में कोई ऐसा काम करे जिसके लिये वाजिब नमाज़ में सज्दा ए सहव वाजिब हो जाता हो या एक सज्दा भूल जाए तो उसके लिये ज़रूरी है नहीं कि नमाज़ के बाद सज्दा ए सहव या सज्दे की क़ज़ा बजा लाए।

1207. अगर कोई शख़्स शक करे कि मुस्तहब नमाज़ पढ़ी है या नहीं और उसका नमाज़े जाफ़रे तय्यार की तरह कोई मुक़र्रर वक़्त न हो तो उसे समझ लेना चाहिये कि नहीं पढ़ी। और अगर उस मुस्तहब नमाज़ का गौमीया नवाफ़िल की तरह वक़्त मुक़र्रर हो और उस वक़्त के गुज़रने से पहले मुतअल्लिक़ा शख़्स शक करे कि उसे अंजाम दिया है या नहीं तो उसके लिये भी यही हुक्म है। लेकिन अगर वक़्त गुज़रने के बाद शक करे कि वह नमाज़ पढ़ी है या नहीं तो अपने शक की परवाह न करे।

सहीह शुकूक

1208. अगर किसी को नौ सूरतों में चार रक्अती नमाज़ की रक्अतों की तादाद के बारे में शक हो तो उसे चाहिये की फ़ौरन ग़ौरो फ़िक्र करे और अगर यक़ीन या गुमान शक की किसी एक तरफ़ हो जाए तो उसी को इख़्तियार करे और नमाज़ को तमाम करे वर्ना उन अहकाम के मुताबिक़ अमल करे जो ज़ैल में बताए जा रहे हैं।

वह नौ सूरतें यह हैः-

1.दूसरे सज्दे के दौरान दो रक्अतें पढ़ीं हैं या तीन। इस सूरत में उसे यूं समझ लेना चाहिये कि तीन रक्अतें पढ़ी हैं और एक और रक्अत पढ़े फिर नमाज़ को तमाम करे और एहतियाते वाजिब की बिना पर नमाज़ के बाद एक रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर बजा लाए।

2.दूसरे सज्दे के दौरान अगर शक करे कि दो रक्अतें पढ़ी हैं या चार तो यह समझ ले कि चार पढ़ी हैं और नमाज़ को तमाम करे और बाद में दो रक्अते नमाज़े एहतियात खड़े होकर बजा लाए।

3.अगर किसी को दूसरे सज्दे के दौरान शक हो जाए कि दो रक्अते पढ़ीं हैं या तीन या चार तो उसे यह समझ लेना चाहिये कि चार पढी हैं और वह नमाज़ ख़त्म होने के बाद दो रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर और बाद में दो रक्अत बैठकर बजा लाए।

4. अगर किसी शख़्स को दूसरे सज्दे के दौरान शक हो कि उसने चार रक्अतें पढ़ी हैं या पांच तो वह यह समझे कि चार पढ़ी हैं और इस बुनियाद पर नमाज़ पूरी करे और नमाज़ के बाद दो सज्दा ए सहव बजा लाए। और बईद नहीं कि यही हुक्म हर उस सूरत में हो जहां चार रक्अत और उससे कम और उससे ज़्यादा रक्अतों में दूसरे सज्दे के दौरान शक हो तो चार रक्अतें क़रार दे कर दोनों शक के अअमाल अंजाम दे। यानी इस एहतिमाल की बिना पर कि चार रक्अत से ज़्यादा पढ़ी हैं बाद में दो सज्दा ए सहव भी करे। और तमाम सूरतों में अगर पहले सज्दे के बाद और दूसरे सज्दे में दाखिल होने से पहले साबिक़ा चार शक में से एक उसे पेश आए तो उसकी नमाज़ बातिल है।

5. नमाज़ के दौरान जिस वक़्त भी किसी को तीन रक्अत और चार रक्अत के दरमियान शक हो ज़रूरी है कि यह समझ ले कि चार रक्अतें पढी हैं और नमाज़ को तमाम करे और बाद में एक रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर या दो रक्अत बैठ कर पढ़े।

6. अगर क़ियाम के दौरान किसी को चार रक्अतों और पांच रक्अतों के बारे में शक हो जाए तो ज़रूरी है कि बैठ जाए और तशह्हुद और नमाज़ का सलाम पढ़े और एक रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर या दो रक्अत बैठ कर पढ़े।

7. अगर क़ियाम के दौरान किसी को तीन और पांच रक्अतों के बारे में शक हो जाए तो ज़रूरी है कि बैठ जाए और तशह्हुद और नमाज़ का सलाम पढ़े और दो रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़े।

8. अगर क़ियाम के दौरान किसी को तीन, चार और पांच रक्अतों के बारे में शक हो जाए तो ज़रूरी है कि बैठ जाए और तशह्हुद पढ़े और सलामे नमाज़ के बाद दो रक्अते नमाज़े एहतियात खड़े होकर और बाद में दो रक्अत बैठ कर पढ़े।

9. अगर क़ियाम के दौरान किसी को पांच और छः रक्अतों के बारे में शक हो जाए तो ज़रूरी है कि बैठ जाए और तशह्हुद और नमाज़ का सलाम पढ़े और दो सज्दा ए सहव बजा लाए और एहतियाते मुस्तहब की बिना पर इन चार सरतों में बेजा क़ियाम के लिये दो सज्दा ए सहव भी बजा लाए।

1209. अगर किसी को सहीह शुकूक में से कोई शक हो जाए और नमाज़ का वक़्त इतना तंग हो कि नमाज़ अज़ सरे नव न पढ़ सके तो नमाज़ नहीं तोड़नी चाहिये और ज़रूरी है कि जो मसअला बयान किया गया है उसके मुताबिक़ अमल करे। बल्कि अगर नमाज़ का वक़्त वसी हो तब भी एहतियाते मुस्तहब यह है कि नमाज़ न तोड़े और जो मसअला पहले बयान किया गया है उस पर अमल करे।

1210. अगर नमाज़ के दौरान इंसान को उन शुकूक में से कोई शक लाहिक़ हो जाए जिनके लिये नमाज़े एहतियात वाजिब है और वह नमाज़ को तमाम करे तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि नमाज़े एहतियात पढ़े और नमाज़े एहतियात पढ़े बग़ैर अज़ सरे नव नमाज़ न पढ़े और अगर वह कोई ऐसा फ़ेल अंजाम देने से पहले जो नमाज़ को बातिल करता हो अज़ सरे नव नमाज़ पढ़े तो एहतियात की बिना पर उसकी दूसरी नमाज़ भी बातिल है लेकिन अगर कोई ऐसा फ़ेल अंजाम देने के बाद जो नमाज़ को बातिल करता हो नमाज़ में मशग़ूल हो जाए तो उसकी दूसरी नमाज़ सहीह है।

1211. जब नमाज़ को बातिल करने वाले शुकूक में से कोई शक इंसान को लाहिक़ हो जाए और वह जानता हो कि बाद की हालत में मुन्तक़िल हो जाने पर उसके लिये यक़ीन या गुमान पैदा हो जायेगा तो उस सूरत में जबकि उसका बातिल शक शूरू की दो रक्अत में हो उसके लिये शक की हालत में नमाज़ जारी रखना जाइज़ नहीं है। मसलन अगर क़ियाम की हालत में उसे शक हो कि एक रक्अत पढ़ी है या ज़्यादा पढ़ी है और वह जानता हो कि अगर रूकू में जाए तो किसी एक तरफ़ यक़ीन या गुमान पैदा करेगा तो इस हालत में उसके लिये रूकू करना जाइज़ नहीं है और बाक़ि बातिल शुकूक में बज़ाहिर अपनी नमाज़ जारी रख सकता है ताकि उसे यक़ीन या गुमान हासिल हो जाए। 1212. अगर किसी शख़्स को गुमान पहले एक तरफ़ ज़्यादा हो और बाद में उसकी नज़र में दोनों अतराफ़ बराबर हो जायें तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे और अगर पहले ही दोनों अतराफ़ उसकी नज़र में बराबर हों और अहकाम के मुताबिक़ जो कुछ उसका वज़ीफ़ा है उस पर अमल की बुनियाद रखे और बाद में उसका गुमान दूसरी तरफ़ चला जाए तो ज़रूरी है कि उसी तरफ़ को इख़्तियार करे और नमाज़ को तमाम करे।

1213. जो शख़्स यह न जानता हो कि उसका गुमान एक तरफ़ ज़्यादा है या दोनों अतराफ़ उसकी नज़र में बराबर हैं तो ज़रूरी है कि शक के अहकाम पर अमल करे।

1214. अगर किसी शख़्स को नमाज़ के बाद मालूम हो कि नमाज़ के दौरान वह शक की हालत में था मसलन उसे शक था कि उसने दो रक्अतें पढ़ी हैं या तीन रक्अतें पढ़ी हैं और उसके अपने अफ़्आल की बुनियाद तीन रक्अतों पर रखी हो लेकिन उसे यह इल्म न हो कि उसके गुमान में यह था कि उसने तीन रक्अतें पढीं हैं या दोनों अतराफ़ उसकी नज़र में बराबर थीं तो नमाज़े एहतियात पढ़ना ज़रूरी है।

1215. अगर क़ियाम के बाद शक करे कि दो सज्दे किये थे या नहीं और उसी वक़्त उसे उन शुकूक में से कोई शक हो जाए जो दो सज्दे तमाम होने के बाद लाहिक़ होता है तो सहीह होता है मसलन वह शक करे कि मैंने दो रक्अतें पढ़ी हैं या तीन और वह उस शक के मुताबिक़ अमल करे तो उसकी नमाज़ सहीह है लेकिन अगर उसे तशह्हुद पढ़ते वक़्त उन शुकूक में से कोई शक लाहिक़ हो जाए तो बिल फ़र्ज़ उसे यह इल्म हो कि दो सज्दे अदा किये हैं तो ज़रूरी है कि यह समझे कि यह ऐसी दो रक्अत में से है जिसमें तशह्हुद नहीं होता तो उसकी नमाज़ बातिल है। उस मिसाल की तरह जो गुज़र चुकी है वर्ना उसकी नमाज़ सहीह है जैसे कोई शक करे कि दो रक्अत पढ़ी हैं या चार रक्अत।

1216. अगर कोई शख़्स तशह्हुद में मशग़ूल होने से पहले या उन रक्अतों में जिनमें तशह्हुद नहीं है क़ियाम से पहले शक करे कि एक या दो सज्दे बजा लाया है या नहीं और उसी वक़्त उसे उन शुकूक में से कोई शक लाहिक़ हो जाए जो दो सज्दे तमाम होने के बाद सहीह हो तो उसकी नमाज़ बातिल है।

1217. अगर कोई शख़्स क़ियाम की हालत में तीन और चार रक्अतों के बारे में या तीन और चार और पांच रक्अतों के बारे में शक करे और उसे यह भी याद आ जाए कि उसने उससे पहली रक्अत का एक सज्दा या दोनों सज्दे अदा नहीं किये तो उसकी नमाज़ बातिल है।

1218. अगर किसी का शक ज़ाइल हो जाए और कोई दूसरा शक उसे लाहिक़ हो जाए मसलन पहले शक करे कि दो रक्अतें पढ़ी हैं या तीन रक्अतें और बाद में शक करे कि तीन रक्अतें पढ़ी हैं या चार रक्अतें तो ज़रूरी है कि दूसरे शक के मुताबिक़ अहकाम पर अमल करे।

1219. जो शख़्स नमाज़ के बाद शक करे कि नमाज़ की हालत में मिसाल के तौर पर उसने दो और चार रक्अतों के बारे में शक किया था या तीन और चार रक्अतों के बारे में शक किया था तो वह हर दो शक के हुक्म पर अमल कर सकता है। और नमाज़ को भी तोड़ सकता है। और जो काम नमाज़ को बातिल कर सकता है उसे करने के बाद दोबारा नमाज़ पढ़े।

1220. अगर किसी शख़्स को नमाज़ के बाद पता चले कि नमाज़ की हालत में उसे ऐसा शक लाहिक़ हो गया था लेकिन यह न जानता हो कि वह शक नमाज़ को बातिल करने वाले शुकूक में से था या सहीह शुकूक में से था और अगर सहीह शुकूक में से था तो उसका तअल्लुक़ सहीह शुकूक की कौन सी क़िस्म से था तो उसके लिये जाइज़ है कि नमाज़ को क़लअदम क़रार दे और दोबारा पढ़े।

1221. जो शख़्स बैठ कर नमाज़ पढ़ रहा हो अगर उसे ऐसा शक लाहिक़ हो जाए जिसके लिये उसे एक रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर या दो रक्अत बैठ कर पढ़नी चाहिये तो ज़रूरी है कि एक रक्अत बैठ कर पढ़े और अगर वह ऐसा शक करे जिसके लिये उसे दो रक्अत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़नी चाहिये तो ज़रूरी है कि दो रक्अत बैठ कर पढ़े।

1222. जो शख़्स खड़ा होकर नमाज़ पढ़ता हो अगर वह नमाज़े एतियात पढ़ने के वक़्त खड़ा होने से आजिज़ हो तो ज़रूरी है कि नमाज़े एहतियात उस शख़्स की तरह पढ़े जो बैठ कर नमाज़ पढ़ता है और जिसका हुक्म साबिक़ा मसअले में बयान हो चुका है।

1223. जो शख़्स बैठ कर नमाज़ पढ़ता हो अगर नमाज़े एहतियात पढ़ने के वक़्त खड़ा हो सके तो ज़रूरी है कि उस शख़्स के वज़ीफ़े के मुताबिक़ अमल करे जो खड़ा होकर नमाज़ पढ़ता है।