तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

फ़लों की ख़रीद व फ़रोख़्त

2107. जिन फ़लों के फूल गिर चुके हों और उनमें दाने पड़ चुके हों अगर उनके आफ़त (मसलन बीमारीयों और कीड़ों के हमलों) से महफ़ूज़ होने या न होने के बारे में इस तरह इल्म हो कि उस दरख़्त की पैदावार का अन्दाज़ा लगा सकें तो उसके तोड़ने से पहले उसका बेचना सहीह है बल्कि अगर मअलूम न भी हो कि आफ़त से महफ़ूज़ है या नहीं तब भी अगर दो साल या उससे ज़्यादा अर्से की पैदावार या फलों की सिर्फ़ उतनी मिक़्दार जो उस वक़्त की हो बेची जाए बशर्ते कि उस की किसी हद तक मालियत हो तो मुआमला सहीह है।

इसी तरह अगर ज़मीन की पैदावार या किसी दूसरी चीज़ को उसके साथ बेचा जाए तो मुआमला सहीह है लेकिन इस सूरत में एहतियाते लाज़िम यह है कि दूसरी चीज़ (जो जिम्नन बेच रहा हो वह) ऐसी हो कि अगर बीज समरआवर न हों सकें तो खरीदार के सरमाए को डूबने से बचाए।

2108. जिस दरख़्त पर फल लगा हो, दाने बनने और फूल गिरने से पहले उसका बेचना जायज़ है लेकिन ज़रूरी है कि उसके साथ कोई और चीज़ भी बेचे जैसा कि इससे पहले वाले मस्अले में बयान किया गया है या एक साल से ज़्यादा मुद्दत का फल बेचे।

2109. दरख्त पर लगी हुई वह खजूरें जो ज़र्द या सुर्ख हो चुकी हों उनको बेचने में कोई हरज नहीं लेकिन उनके एवज़ में ख्वाह उसी दरख़्त की खजूरें हों या किसी और दरख़्त की खजूरें न दी जायें अलबत्ता अगर एक शख़्स का खजूर का दरख़्त किसी दूसरे शख़्स के घर में हो तो अगर उस दरख़्त की खजूरों को तखमीना लगा लिया जाए और दरख्त का मालिक उन्हें घर के मालिक को बेच दे और खजूरों को उसका एवज़ाना क़रार दिया जाए तो कोई हरज नहीं।

2110. खीरे, बैगन, सब्ज़ियां और उन जैसी (दूसरी) चीज़ें जो साल में कई दफ़्आ उतरती हों अगर वह उग आई हों और यह तय कर लिया जाए कि खरीदार उन्हें साल में कितनी दफ़्आ तोड़ेगा तो उन्हें बेचने में कोई हरज नहीं है लेकिन अगर उगी न हों तो उन्हें बेचने में इश्काल है।

2111. अगर दाना आने के बाद गंदुम के खोशे को गंदुम से जो खुद उससे हासिल होती है या किसी दूसरे खोशे के एवज़ बेच दिया जाए तो सौदा सहीह नहीं है।

नक़्द और उधार के अहकाम

2112. अगर किसी जिन्स को नक़्द बेचा जाए तो सौदा तय पा जाने के बाद खरीदार और बेचने वाला एक दूसरे से जिन्स और रक़म का मुतालबा कर सकते हैं और उसे अपने क़ब्ज़े में ले सकते हैं। मंक़ूल चीज़ों मसलन क़ालीन और लिबास को क़ब्ज़े में देने और ग़ैर मंक़ूला चीज़ों मसलन घर और ज़मीन को क़ब्ज़े में देने से मुराद यह है कि उन चीज़ों से दस्त बरदार हो जाए और उन्हें फ़रीक़ सानी की तहवील में इस तरह दे दे कि जब वाह चाहे उसमें तसर्रुफ़ कर सके और (वाज़ेह रहे) मुख़्तलिफ़ चीज़ों में तसर्रुफ़ मुख़्तलिफ़ तरीक़े से होती है।

2113. उधार के मुआमले में ज़रूरी है कि मुद्दत ठीक ठीक मअलूम हो। लिहाज़ा अगर चीज़ इस वअदे पर बेचे कि वह उसकी क़ीमत फ़स्ल उठने पर लेगा तो चूंकि उस की मुद्दत ठीक ठीक मुअय्यन नहीं हुई इस लिए सौदा बातिल है।

2114. अगर कोई शख़्स अपना माल उधार बेचे तो जो मुद्दत तय हुई हो उसकी मीआद पूरी होने से पहले वह खरीदार से उसके एवज़ का मुतालबा नहीं कर सकता लेकिन अगर खरीदार मर जाए और उसका अपना कोई माल हो तो बेचने वाला तय शुदा मीआद पूरी होने से पहले ही जो रक़म लेनी हो उसका मुतालबा मरने वाले के वरसा से कर सकता है।

2115. अगर कोई शख़्स एक चीज़ उधार बेचे तो तय शुदा मुद्दत गुज़रने के बाद वह खरीदार से उसके एवज़ का मुतालबा कर सकता है लेकिन अगर खरीदार अदायगी न कर सकता हो तो ज़रूरी है कि बेचने वाला उसे मोहलत दे या सौदा खत्म कर दे और अगर वह चीज़ जो बेची है मौजूद हो तो वापस ले ले।

2116. अगर कोई शख़्स एक ऐसे फ़र्द को जिस किसी चीज़ की क़ीमत मअलूम न हो उसकी कुछ मिक़्दार उधार दे और उसकी क़ीमत उसे न बताए तो सौदा बातिल है। लेकिन अगर ऐसे शख़्स को जिसे जिन्स की नक़्द क़ीमत मअलूम हो उधार पर मंहगे दामों पर बेचे मसलन कहे कि जो जिन्स मैं तुम्हें उधार दे रहा हूं उसकी क़ीमत से जिस पर मैं नक़्द बेचता हूं एक पैसा फ़ी रुपया ज़्यादा लूंगा और खरीदार उस शर्त को क़बूल कर ले तो ऐसे सौदे में कोई हरज नहीं है।

2117. अगर एक शख़्स ने कोई जिन्स उधार फ़रोख़्त की हो और उसकी क़ीमत की अदायगी के लिए मुद्दत मुक़र्रर की गई हो तो अगर मिसाल के तौर पर आधी मुद्दत गुज़रने के बाद (फ़रोख़्त करने वाला) वाजिबुल अगा रक़म में कटौती कर दे और बाक़ीमांदा रक़म नक़्द ले ले तो इसमें कोई हरज नहीं है।

मुआमला ए सलफ़ की शराइत

2118. मुआमला ए सलफ़ (पेशगी सौदा) से मुराद यह है कि कोई शख़्स नक़्द रक़म लेकर पूरा माल जो वह मुक़र्ररा मुद्दत के बाद तहवील में देगा, बेच दे लिहाज़ा अगर खरीदार कहे कि मैं यह रक़म दे रहा हूं ताकि मसलन छः महीने बाद फ़लां चीज़ ले लूं और बेचने वाला कहे कि मैंने क़बूल किया या बेचने वाला रक़म ले ले और कहे कि मैंने फ़लां चीज़ बेची और उसका क़ब्ज़ा छः महीने बाद दूंगा तो सौदा सहीह है।

2119. अगर कोई शख़्स सोने या चांदी के सिक्के बतौरे सलफ़ बेचे और उसके एवज़ चांदी या सोने के सिक्के ले तो सौदा बातिल है। लेकिन अगर कोई ऐसी चीज़ या सिक्के जो सोने या चांदी के न हों बेचे और उनके एवज़ कोई दूसरी चीज़ या सोने या चांदी के सिक्के ले तो सौदा उस तफ़्सील के मुताबिक़ सहीह है जो आइन्दा मस्अले की सातवीं शर्त में बताई जायेगी और एहतियाते मुस्तहब यह है कि जो माल बेचे उसके एवज़ रक़म ले, कोई दूसरा माल न ले।

2120. मुआमला ए सलफ़ में सात शर्तें हैं –

1. उन ख़ुसूसीयात को जिनकी वजह से किसी चीज़ की क़ीमत में फ़र्क़ पड़ता हो मुअय्यन कर दिया जाए लेकिन ज़्यादा तफ़्सीलात में जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि इसी क़दर काफ़ी है कि लोग कहें के उसकी ख़ुसूसीयात मअलूम हो गई हैं।

2. इससे पहले कि खरीदार और बेचने वाला एक दूसरे से जुदा हो जायें खरीदार पूरी क़ीमत बेचने वाले को दे या अगर बेचने वाला खरीदार का उतनी ही रक़म का मक़रूज़ हो और खरीदार को उससे जो कुछ लेना हो उसे माल की क़ीमत में हिसाब कर ले और बेचने वाला उसे क़बूल करे और अगर खरीदार उस माल की क़ीमत की कुछ मिक्दार बेचने वाले को दे दे तो अगरचे उस मिक़्दार की निस्बत से सौदा सहीह है लेकिन बेचने वाला सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

3. मुद्दत को ठीक ठीक मुअय्यन किया जाए मसलन बेचने वाला कहे कि फ़स्ल का क़ब्ज़ा कटाई पर दूंगा तो चूंकि इससे मुद्दत का ठीक ठीक तअय्युन नहीं होता इस लिए सौदा बातिल है।

4. जिन्स का क़ब्ज़ा देने के लिए ऐसा वक़्त मुअय्यन किया जाए जिसमें बेचने वाला जिन्स का क़ब्ज़ा दे सके ख़्वाह वह जिन्स कामयाब हो या न हो।

5. जिन्स का क़ब्ज़ा देने की जगह का तअय्युन एहतियात की बिना पर मुकम्मल तौर पर किया जाए। लेकिन अगर तरफ़ैन की बातों से जगह का पता चल जाए तो उसका नाम लेना ज़रूरी नहीं है।

6. उस जिन्स का तोल या नाप मुअय्यन किया जाए और जिस चीज़ का सौदा उमूमन देख कर किया जाता है अगर उसे बतौरे सलफ़ बेचा जाए तो इसमें कोई हरज नहीं है। लेकिन मिसाल के तौर पर अखरोट और अण्डों की बअज़ क़िस्मों में तअदाद का फ़र्क़ ज़रूरी है कि इतना हो कि लोग उसे अहमियत न दें।

7. जिस चीज़ को बतौरे सलफ़ बेचा जाए अगर वह ऐसी हों जिन्हें तोलकर या नाप कर बेचा जाता है तो उसका एवज़ उसी जिन्स से न हो बल्कि एहतियाते लाज़िम की बिना पर दूसरी जिन्स में से भी ऐसी चीज़ न हो जिसे तोलकर या नाप कर बेचा जाता है और अगर वह चीज़ जिसे बेचा जा रहा है उन चीज़ों में से हो जिन्हें गिनकर बेचा जाता हो तो एहतियात की बिना पर जाइज़ नहीं है कि उसका एवज़ खुद उसी की जिन्स से ज़्यादा मिक़्दार में मुक़र्रर करे।

मुआमला ए सलफ़ के अहकाम

2121. जो जिन्स किसी ने बतौरे सलफ़ खरीदी हो उसे वह मुद्दत ख़त्म होने से पहले बेचने वाले के सिवा किसी और के हाथ नहीं बेच सकता और मुद्दत ख़त्म होने के बाद अगरचे खरीदार ने उसका क़ब्ज़ा न भी लिया हो उसे बेचने में कोई हरज नहीं। अलबत्ता फलों के अलावा जिन ग़ल्लों मसलन गेहूं और जौ वग़ैरा को तोल कर या नाप कर फ़रोख़्त किया जाता है उन्हें अपने क़ब्ज़े में लेने से पहले उनका बेचना जायज़ नहीं है मासिवा इसके कि ग्राहक ने जिस क़ीमत पर खरीदी हों उसी क़ीमत पर या उससे कम क़ीमत पर बेचे।

2122. सलफ़ के लेन देन में अगर बेचने वाला मुद्दत ख़त्म होने पर उस चीज़ का क़ब्ज़ा दे जिसका सौदा हुआ है तो खरीदार के लिए ज़रूरी है कि उसे क़बूल करे अगरचे जिस चीज़ का सौदा हुआ है उससे बेहतर चीज़ दे रहा हो जबकि उस चीज़ को उसी जिन्स में शुमार किया जाए।

2123. अगर बेचने वाला जो जिन्स दे वह उस जिन्स से घटिया हो जिसका सौदा हुआ है तो खरीदार उसे क़बूल करने से इंकार कर सकता है।

2124. अगर बेचने वाला उस जिन्स की बजाय जिस का सौदा हुआ है कोई दूसरी जिन्स दे और खरीदार उसे लेने पर राज़ी हो जाए तो कोई इश्काल नहीं है।

2125. जो चीज़ बतौरे सलफ़ बेची गई हो अगर वह खरीदार के हवाले करने के लिए तय शुदा वक़्त पर दस्तयाब न हो सके तो खरीदार को इख़्तियार है कि इन्तिज़ार करे ताकि बेचने वाला उसे मुहैया कर दे या सौदा फ़स्ख़ कर दे और जो चीज़ बेचने वाले को दी हो उसे वापस ले ले और एहतियात की बिना पर वह चीज़ बेचने वाले को ज़्यादा क़ीमत पर नहीं बेच सकता।

2126. अगर एक शख़्स कोई चीज़ बेचे और मुआहदा करे कि कुछ मुद्दत बाद वह चीज़ खरीदार के हवाले कर देगा और उसकी क़ीमत भी कुछ मुद्दत बाद लेगा तो ऐसा सौदा बातिल है।

सोने चांदी को सोने चांदी के एवज़ बेचना

2127. अगर सोने को सोने से या चांदी को चांदी से बेचा जाए तो वह सिक्कादार हो या न हो अगर उनमें से एक का वज़न दूसरे से ज़्यादा हो तो ऐसा सौदा हराम और बातिल है।

2128. अगर सोने को चांदी से या चांदी को सोने से नक़्द बेचा जाए तो सौदा सहीह है और ज़रूरी नहीं कि दोनों का वज़न बराबर हो। लेकिन अगर मुआमले में मुद्दत मुअय्यन हो तो बातिल है।

2129. अगर सोने या चांदी को सोने या चांदी के एवज़ बेचा जाए तो ज़रूरी है कि बेचने वाला और खरीदार एक दूसरे से जुदा होने से पहले जिन्स और उसका एवज़ एक दूसरे के हवाले कर दें और अगर जिस चीज़ के बारे में मुआमला तय हुआ है उसकी कुछ मिक़्दार भी एक दूसरे के हवाले न की जाए तो मुआमला बातिल है।

2130. अगर बेचने वाले या खरीदार में से कोई एक तय शुदा माल पूरा पूरा दूसरे के हवाले कर दे लेकिन दूसरा (माल की सिर्फ़) कुछ मिक़्दार हवाले करे और फिर वह एक दूसरे जुदा हो जायें तो अगरचे इतनी मिक़्दार के मुताअल्लिक़ मुआमला सहीह है लेकिन जिसको पूरा माल न मिला हो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

2131. अगर चांदी की कान की मिट्टी को ख़ालिस चांदी से और सोने की कान की सोने की मिट्टी को खालिस सोने से बेचा जाए तो सौदा बातिल है। मगर यह कि जब जानते हों कि मसलन चांदी की मिट्टी की मिक़्दार खालिस चांदी की मिक़्दार के बराबर है। लेकिन जैसा कि पहले कहा जा चुका है चांदी की मिट्टी को सोने के एवज़ और सोने की मिट्टी को चांदी के एवज़ बेचने में कोई इश्काल नहीं है।

मुआमला फ़स्ख़ किये जाने की सूरतें

2132. मुआमला फ़स्ख़ करने के हक़ को ख़ियार कहते हैं और खरीदार और बेचने वाला ग्यारा सूरतों में मुआमला फ़स्ख़ कर सकते हैं –

1. जिस मजलिस में मुआमला हुआ है वह बरख़ास्त न हुई हो अगरचे सौदा हो चुका हो उसे खियारे मजलिस कहते हैं।

2. ख़रीद व फ़रोख़्त के मुआमले में खरीदार या बेचने वाला नीज़ दूसरे मुआमलात में तरफ़ैन में से कोई एक मग़्बून हो जाए इसे ख़ियारे ग़बन कहते हैं (मग़्बून से मुराद वह शख़्स है जिस के साथ फ़्राड किया गया हो) ख़ियार की इस क़िस्म का मंशा उर्फ़े आम में शर्ते इरतिकाज़ी होता है यअनी हर मुआमले में फ़रीक़ैन के ज़िह्न में यह शर्त मौजूद होती है कि जो माल हासिल कर रहा है उसकी क़ीमत माल से बहुत ज़्यादा कम नहीं जो वह अदा कर रहा है और अगर उसकी क़ीमत कम हो तो वह मुआमले को ख़त्म करने का हक़ रखता है। लेकिन उर्फ़े ख़ास की चन्द सूरतों में इरतिकाज़ी शर्त दूसरी तरह हो मसलन यह शर्त हो कि अगर जो माल लिया हो वह बहिलाज़े क़ीमत उस माल से कम हो जो उसने दिया है तो दोंनो (माल) के दरमियान जो कमी बेशी होगी उस का मुतालबा कर सकता है और अगर मुम्किन न हो सके तो मुआमले को ख़त्म कर दे और ज़रूरी है कि इस क़िस्म की सूरतों में उर्फ़े ख़ास का ख़्याल रखा जाए।

3. सौदा करते वक़्त यह तय किया जाए कि मुक़र्ररा मुद्दत तक फ़रीक़ैन को या किसी एक फ़रीक़ को सौदा फ़स्ख़ करने का इख़्तियार होगा उसे ख़ियारे शर्त कहते हैं।

4. फ़रीक़ैन में से एक फ़रीक़ अपने माल को उसकी अस्लियत से बेहतर बना कर पेश करे जिसकी वजह से दूसरा फ़रीक़ उस में दिलचस्पी ले या उसकी दिलचस्पी उसमें बढ़ जाए उसे ख़ियार तद्लीस कहते हैं।

5. फ़रीक़ैन में से एक फ़रीक़ दूसरे के साथ शर्त करे कि वह फ़लां काम अन्जाम देगा और इस शर्त पर अमल न हो या शर्त की जाए कि एक फ़रीक़ दूसरे फ़रीक़ को एक मख़्सूस क़िस्म का मुअय्यन माल देगा और जो माल दिया जाए उसमें वह ख़ुसूसीयत न हों, उस सूरत में वह शर्त लगाने वाला फ़रीक़ मुआमले को फ़स्ख़ कर सकता है। उसे ख़ियारे तख़ल्लुफ़े शर्त कहते हैं।

6. दी जाने वाली जिन्स या उसके एवज़ में कोई ऐब हो उसे ख़ियारे ऐब कहते हैं।

7. यह पता चले कि फ़रीक़ैन ने जिस जिन्स का सौदा किया है उसकी कुछ मिक़्दार किसी और शख़्स का माल है। इस सूरत में अगर उस मिक़्दार का मालिक सौदे पर राज़ी न हो तो ख़रीदने वाला सौदा फ़स्ख़ कर सकता है या अगर उतनी मिक़्दार की अदायगी कर चुका हो तो उसे वापस ले सकता है। उसे ख़ियारे शिर्कत कहते हैं।

8. जिस मुअय्यन जिन्स को दूसरे फ़रीक़ ने न देखा हो अगर उस जिन्स का मालिक उसे उसकी ख़ुसूसीयात बताए और बाद में मअलूम हो कि जो ख़ुसूसीयात उसने बताई थीं वह उसमें नहीं हैं या दूसरे फ़रीक़ ने पहले उस जिन्स को देखा था और उसका ख़्याल था कि वह ख़ुसूसीयात अब उसमें बाक़ी नहीं है तो इस सूरत में दूसरा फ़रीक़ मुआमला फ़स्ख़ कर सकता है। इसे ख़ियारे रूयत कहते हैं।

9. ख़रीदार ने जो जिन्स खरीदी हो अगर उसकी क़ीमत तीन दिन तक न दे और वह बेचने वाले ने भी वह जिन्स खरीदार के हवाले न की हो तो बेचने वाला सौदे को ख़त्म कर सकता है लेकिन ऐसा उस सूरत में हो सकता है जब बेचने वाले ने ख़रीदार को क़ीमत अदा करने की मोहलत दी हो लेकिन मुद्दत मुअय्यन न की हो। और अगर उसको मोहलत बिल्कुल न दी हो तो बेचने वाला क़ीमत की अदायगी में मअमूली सी ताख़ीर से भी सौदा ख़त्म कर सकता है और अगर उसे तीन दिन से ज़्यादा मोहलत दी हो तो मुद्दत पूरी होने से पहले सौदा ख़त्म नहीं कर सकता। इससे यह मअलूम हो जाता है कि जो जिन्स बेची है अगर वह बअज़ ऐसे फलों की तरह हो जो एक दिन बाक़ी रहने से ज़ाए हो जाते हैं चुनाचे ख़रीदार रात तक उसकी क़ीमत न दे और यह शर्त भी न करे कि क़ीमत देने में ताख़ीर करेगा तो बेचने वाला सौदा ख़त्म कर सकता है। इसे ख़ियार ताख़ीर कहते हैं।

10. जिस शख़्स ने कोई जानवर ख़रीदा हो वह तीन दिन तक सौदा फ़स्ख़ कर सकता है और जो चीज़ उसने बेची हो अगर उसके एवज़ में ख़रीदार ने जानवर दिया हो तो जानवर बेचने वाला भी तीन दिन तक सौदा फ़स्ख़ कर सकता है। इसे ख़ियारे हैवान कहते हैं।

11. बेचने वाले ने जो चीज़ बेची हो अगर उसका क़ब्ज़ा न दे सके मसलन जो घोड़ा उसने बेचा हो वह भाग गया हो तो उस सूरत में ख़रीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है। इसे ख़ियारे तअज़्ज़ुरे तसलीम कहते हैं।

(ख़ियारत की) इन तमाम अक़्साम के (तफ़्सीली) अहकाम आइन्दा मसाइल में बयान किये जायेंगे।

2133. अगर ख़रीदार को जिन्स की क़ीमत का इल्म न हो या वह सौदा करते वक़्त ग़फ़लत बरते और उस चीज़ को आम क़ीमत से महंगा ख़रीदे और यह क़ीमते ख़रीद बड़ी हद तक महंगी हो तो वह सौदा ख़त्म कर सकता है बशर्ते की सौदा ख़त्म करते वक़्त जिस क़दर फ़र्क़ हो वह भी मौजूद हो और अगर फ़र्क़ मौजूद न हो तो उसके बारे में मअलूम नहीं कि वह सौदा ख़त्म कर सकता है। नीज़ अगर बेचने वाले को जिन्स की क़ीमत का इल्म न हो या सौदा करते वक़्त ग़फ़लत बरते और उस जिन्स को उसकी क़ीमत से सस्ता बेचे और बड़ी हद तक सस्ता बेचे तो साबिक़ा शर्त के मुताबिक़ सौदा ख़त्म कर सकता है।

2134. मशरूत ख़रीद व फ़रोख़्त में जबकि मिसाल के तौर पर एक लाख रूपये का मकान पचास हज़ार रूपये में बेच दिया जाए और तय किया जाए कि अगर बेचने वाला मुक़र्ररा मुद्दत तक रक़म वापस तक दे तो सौदा फ़स्ख़ कर सकता है तो अगर ख़रीदार और बेचने वाला ख़रीद व फ़रोख़्त की नीयत रखते हों तो सौदा सहीह है।

2135. मशरूत ख़रीद व फ़ोरख़्त में अगर बेचने वाले को इत्मीनान हो कि ख़रीदार मुक़र्ररा वक़्त में रक़म अदा न कर सकने की सूरत में माल उसे वापस कर देगा तो सौदा सहीह है लेकिन अगर वह मुद्दत ख़त्म होने तक रक़म अदा न कर सके तो वह ख़रीदार से माल की वापसी का मुतालबा करने का हक़ नहीं रखता और अगर खरीदार मर जाए तो उसके वरसा से माल की वापसी का मुतालबा नहीं कर सकता।

2136. अगर कोई शख़्स उम्दा चाय में घटिया चाय की मिलावट कर के उम्दा चाय के तौर पर बेचे तो ख़रीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

2137. अगर ख़रीदार को पता चले कि जो मुअय्यन माल उसने ख़रीदा है वह ऐबदार है मसलन एक जानवर खरीदे और (खरीदने के बाद) उसे पता चले कि उसकी एक आंख नहीं है लिहाज़ा अगर यह ऐब माल में सौदे से पहले था और उसे इल्म नहीं था तो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है और माल बेचने वाले को वापस कर सकता है और अगर वापस करना मुम्किन न हो मसलन उस माल में कोई तब्दीली हो गई हो या ऐसा तसर्रूफ़ कर लिया गया हो जो वापसी में रूकावट बन रहा हो तो उस सूरत में वह बे ऐब और ऐबदार माल की क़ीमत के फ़र्क़ का हिसाब करके बेचने वाले से (फ़र्क़) की रक़म वापस ले ले मसलन अगर उसने कोई माल चार रूपये में ख़रीदा हो और उसे उसके ऐबदार होने का इल्म हो जाए तो अगर ऐसा ही बे ऐब माल (बाज़ार में) आठ रूपये का और ऐबदार छः रूपये का हो तो चूंकि बे ऐब और ऐबदार की क़ीमत का फ़र्क़ एक चौथाई है इसलिये उसने जितनी रक़म दी है उसका चौथाई यअनी एक रूपया बेचने वाले से वापस ले सकता है।

2138. अगर बेचने वाले को पता चले कि उसने जिस मुअय्यन ऐवज़ के बदले अपना माल बेचा है उसमें ऐब है तो अगर वह ऐब उस एवज़ में सौदे से पहले मौजूद था और उसे इल्म न हुआ हो तो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है और वह एवज़ उसके मालिक को वापस कर सकता है लेकिन अगर तब्दीली या तसर्रूफ़ की वजह से वापस न कर सके तो बे ऐब और ऐबदार की क़ीमत का फ़र्क़ उस क़ाइदे के मुताबिक़ ले सकता है जिसका ज़िक्र साबिक़ा मसअले में किया गया है।

2139. अगर सौदा करने के बाद और क़ब्ज़ा देने से पहले माल कोई ऐब पैदा हो जाए तो ख़रीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है। नीज़ जो चीज़ माल के एवज़ दी जाए अगर उसमें सौदा करने के बाद और क़ब्ज़ा देने से पहले कोई ऐब पैदा हो जाए तो बेचने वाला सौदा फ़स्ख़ कर सकता है और अगर फ़रीक़ैन क़ीमत का फ़र्क़ लेना चाहें तो सौदा तय न होने की सूरत में चीज़ को लौटाना जायज़ है।

2140. अगर किसी शख़्स को माल के ऐब का इल्म सौदा करने के बाद हो तो अगर वह (सौदा ख़त्म करना) चाहे तो ज़रूरी है कि फ़ौरन सौदे को ख़त्म कर दे और – इख़तिलाफ़ की सूरतों को पेशे नज़र रखते हुए अगर मअलूम से ज़्यादा ताख़ीर तो वह सौदे को ख़त्म नहीं कर सकता।

2141. जब किसी शख़्स को कोई जिन्स ख़रीदने के बाद उसके ऐब का पता चले तो ख़्वाह बेचने वाला उस पर तैयार न भी हो खरीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है और दूसरे ख़ियारत के लिए भी यही हुक्म है।

2142. चार सूरतों में ख़रीदार माल में ऐब होने की बिना पर सौदा फ़स्ख़ नहीं कर सकता है और न ही क़ीमत का फ़र्क़ ले सकता है।

1. ख़रीदते वक़्त माल के ऐब से वाक़िफ़ हो।

2. माल के ऐब को क़बूल करे।

3. सौदा करते वक़्त कहे, अगर माल में ऐब हुआ तब भी वापस नहीं करूगां और क़ीमत का फ़र्क़ भी नहीं लूगां।

4. सौदे के वक़्त बेचने वाला कहे – मैं इस माल को जो ऐब भी इसमें है उसके साथ बेचता हूं। लेकिन अगर वह ऐब का तअय्युन कर दे और कहे – मैं इस माल को फ़लां ऐब के साथ बेच रहा हूं। और बाद में मअलूम हो कि माल में कोई दूसरा ऐब भी है तो जो ऐब बेचने वाले ने मुअय्यन न किया हो उसकी बिना पर ख़रीदार वह माल वापस कर सकता है और अगर वापस न कर सके तो क़ीमत का फ़र्क़ ले सकता है।

2143. अगर ख़रीदार को मअलूम हो कि माल में एक ऐब है और उसे वसूल करने के बाद उसमें कोई और ऐब निकल आए तो वह सौदा फ़स्ख़ नहीं कर सकता लेकिन बे ऐब और ऐबदार माल का फ़र्क़ ले सकता है लेकिन अगर वह ऐबदार हैवान (जानवर) ख़रीदे और ख़ियार की मुद्दत जो कि तीन दिन है गुज़रने से पहले उस हैवान में किसी और ऐब का पता चल जाए तो गो ख़रीदार ने उसे अपनी तहवील में ले लिया हो फिर भी वह उसे वापस कर सकता है। नीज़ अगर फ़क़त ख़रीदार को कुछ मुद्दत तक सौदा फ़स्ख़ करने का हक़ हासिल हो और उस मुद्दत के दौरान माल में कोई दूसरा ऐब निकल जाए तो अगरचे ख़रीदार ने वह माल अपनी तहवील में ले लिया हो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

2144. अगर किसी शख़्स के पास ऐसा माल हो जिसे उसने ख़ुद अपनी आंख से न देखा हो और किसी दूसरे शख़्स ने माल की ख़ुसूसीयात उसे बताई हों और वही ख़ुसूसीयात ख़रीदार को बताए और वह माल उस के हाथ बेच दे और बाद में उसे (यअनी मालिक को) पता चले कि वह माल उससे बेहतर ख़ुसूसीयात का हामिल है तो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

मुतफ़र्रिक़ मसाइल

2145. अगर बेचने वाला ख़रीदार को किसी जिन्स की क़ीमते ख़रीद बताए तो ज़रूरी है कि वह तमाम चीज़ें भी उसे बताए जिनकी वजह से माल की क़ीमत घटती बढ़ती है अगरचे उसी क़ीमत पर (जिस पर ख़रीदा है) या उससे भी कम क़ीमत पर बेचे। मसलन उसे बताना ज़रूरी है कि माल नक़्द ख़रीदा है या उधार लिहाज़ा अगर माल की कुछ ख़ुसूसीयात न बताए और ख़रीदार को बाद में मअलूम हो तो वह सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

2146. अगर इंसान कोई जिन्स किसी को दे और उसकी क़ीमत मुअय्यन कर दे और कहे – यह जिन्स इस क़ीमत पर बेचो और इससे ज़्यादा जितनी क़ीमत वसूल करोगे वह तुम्हारी मेहनत की उजरत होगी, तो उस सूरत में वह शख़्स उस क़ीमत से ज़्यादा जितनी क़ीमत भी वसूल करे वह जिन्स के मालिक का माल होगा और बेचने वाला मालिक से फ़क़त मेहनताना ले सकता है लेकिन अगर मुआहदा बतौरे जुआला हो और माल का मालिक कहे कि अगर तूने यह जिन्स इस क़ीमत से ज़्यादा पर बेची तो फ़ाज़िल आमदनी तेरा माल है तो इसमें कोई हरज नहीं।

2147. अगर क़स्साब नर जानवर का गोश्त कह कर मादा का गोश्त बेचे तो वह गुनाहगार होगा लिहाज़ा अगर वह उस गोश्त को मुअय्यन कर दे और कहे कि मैं यह नर जानवर का गोश्त बेच रहा हूं तो ख़रीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है। और अगर कस्साब उस गोश्त को मुअय्यन न करे और ख़ीरदार को जो गोश्त मिला हो (यअनी मादा का गोश्त) वह उस पर राज़ी न हो तो ज़रूरी है कि क़स्साब उसे नर जानवर का गोश्त दे।

2148. अगर ख़रीदार बज़्ज़ाज़ से कहे कि मुझे ऐसा कपड़ा चाहिये जिसका रंग कच्चा न हो और बज़्ज़ाज़ एक ऐसा कपड़ा उसके हाथ फ़रोख़्त करे जिसका रंग कच्चा हो तो ख़रीदार सौदा फ़स्ख़ कर सकता है।

2149. लेन देन में क़सम खाना अगर सच्ची हो तो मकरूह है और अगर झूठी हो तो हराम है।

शिराकत के अहकाम

2150. दो आदमी अगर बाहम तय करें कि अपने मुश्तरक माल से ब्योपार कर के जो कुछ नफ़्अ कमायेंगे उसे आपस में तक़्सीम कर लेगें और वह अरबी या किसी और ज़बान में शिराकत का सिग़ा पढ़ें या कोई ऐसा काम करें जिससे ज़ाहिर होता हो कि वह एक दूसरे के शरीक बनना चाहते हैं तो उनकी शिराकत सहीह है।

2151. अगर चन्द अश्ख़ास उस मज़दूरी में जो वह अपनी मेहनत से हासिल करते हों एक दूसरे के साथ शिराकत करें मसलन चन्द हज्जाम आपस में तय करें कि जो उजरत हासिल होगी उसे आपस में तक़्सीम कर लेगें तो उनकी शिराकत सहीह नहीं है। लेकिन अगर बाहम तय कर लें कि मसलन हर एक की आधी मज़दूरी मुअय्यन मुद्दत तक के लिए दूसरे की आधी मज़दूरी के बदले में होगी तो मुआमला सहीह है और उन में से हर एक दूसरे की मज़दूरी में शरीक होगा।

2152. अगर दो अश्ख़ास आपस में इस तरह शिराकत करें कि उन में से हर एक अपनी ज़िम्मेदारी पर जिन्स खरीदे और उसकी क़ीमत की अदायगी का खुद भी ज़िम्मेदार हो लेकिन जो जिन्स उन्होंने खरीदी हो उसके नफ़्अ में एक दूसरे के साथ शरीक हों तो ऐसी शिराकत सहीह नहीं। अलबत्ता अगर उनमें से हर एक दूसरे को अपना वकील बनायें कि जो कुछ वह उधार ले रहा है उसमें उसे शरीक कर के यअनी जिसको अपने और अपने हिस्सादार के लिए खरीदे जिसकी बिना पर दोनों मक़रूज़ हो जायें तो दोनो में से हर एक जिन्स में शरीक हो जायेगा।

2153. जो अशख़ास शिराकत के ज़रीए एक दूसरे के शरीकेकार बन जायें उनके लिए ज़रूरी है कि बालिग़ और आक़िल हों नीज़ यह कि इरादे और इख़तियार के साथ शिराकत करें और यह भी ज़रूरी है कि वह अपने माल में तसर्रूफ़ कर सकते हों लिहाज़ा चूंकि सफ़ीह – जो अपना माल अहमक़ाना और फ़ुज़ूल कामों पर खर्च करता है अपने माल में तसर्रूफ़ का हक़ नहीं रखता अगर वह किसी के साथ शिराकत करे तो सहीह नहीं है।

2154. अगर शिराकत के मुआहदे में यह शर्त लगाई जाए कि जो शख़्स काम करेगा या जो दूसरे शरीक से ज़्यादा काम करेगा या जिस के काम की दूसरे के काम के मुक़ाबिले में ज़्यादा अहम्मीयत है उसे मुनाफ़ा में ज़्यादा हिस्सा मिलेगा तो ज़रूरी है कि जैसा तय किया गया हो मुअल्लिक़ा शख़्स को उस के मुताबिक़ दें। और इसी तरह अगर शर्त लगाई जाए कि जो शख़्स काम नहीं करेगा या ज़्यादा काम नहीं करेगा या जिसके काम की दूसरे के काम के मुक़ाबिले में ज़्यादा अहम्मीयत नहीं है उसे मुनाफ़ा का ज़्यादा हिस्सा मिलेगा तब भी शर्त सहीह है। और जैसा तय किया गया हो मुतअल्लिक़ा शख़्स को उस के मुताबिक़ दें।

2155. अगर शुरका तय करे कि सारा मुनाफ़ा किसी एक शख़्स का होगा या सारा नुक़्सान किसी एक को बर्दाश्त करना होगा तो शिराकत सहीह होने में इश्काल है।

2156. अगर शुरका यह तय न करें कि किसी एक शरीक को ज़्यादा मुनाफ़ा मिलेगा तो अगर उन में से हर का सरमाया एक जितना हो तो नफ़्अ नुक़्सान भी उन के माबैन बराबर तक़्सीम होगा और उन का सरमाया बराबर बराबर न हो तो ज़रूरी है कि नफ़्अ नुक़्सान सरमाये की निस्बत से तक़्सीम करें। मसलन अगर दे अफ़राद शिराकत करें और एक का सरमाया दूसरे के सरमाये से दुगना हो तो नफ़्अ नुक़्सान में भी उस का हिस्सा दूसरे से दुगना होगा ख़्वाह दोनों एक जितना काम करें या एक थोड़ा काम करे या बिल्कुल काम न करे।

2157. अगर शिरकत के मुआहदे में यह तय किया जाए कि दोनों शरीक मिल कर ख़रीद व फ़रोख़्त करेंगे या हर एक इनफ़िरादी तौर पर लेन देन करने का मजाज़ होगा या उन में से फ़क़त एक शख़्स लेन देन करेगा या तीसरा शख़्स उजरत पर लेन देन करेगा तो ज़रुरी है कि उस मुआहदे पर अमल करें।

2158. अगर शुरका यह मुअय्यन न करें कि उन में से कौन सरमाये के साथ ख़रीद व फ़रोख़्त करेगा तो उन में से कोई भी दूसरे की इजाज़त के बग़ैर उस सरमाये से लेन देन नहीं कर सकता।

2159. जो शरीक शिराकत के सरमाये पर इख़तियार रखता हो उसके लिए ज़रूरी है कि शिराकत के मुआहदे पर अमल करे मसलन अगर उससे तय किया गया हो कि उधार ख़रीदेगा या नक़्द बेचेगा या किसी खास जगह से खरीदेगा तो जो मुआहदा तय पाया है उसके मुताबिक़ अमल करना ज़रूरी है और अगर उसके साथ कुछ तय न हुआ हो तो ज़रूरी है कि मअमूल के मुताबिक़ लेन देन करे ताकि शिराकत को नुक़्सान न हो। नीज़ अगर आम रविश के अलर्रग़्म हो तो सफ़र में शिराकत का माल अपने हमराह न ले जाए।

2160. जो शरीक शिराकत के सरमाए से सौदे करता हो अगर जो कुछ उसके साथ तय किया गया हो उसके बर ख़िलाफ़ खरीद व फ़रोख़्त करे या अगर कुछ तय न किया गया हो और मअमूल के खिलाफ़ सौदा करे तो उन दोनों सूरतों में अगरचे अक़्वा क़ौल की बिना पर मुआमला सहीह है लेकिन अगर मुआमला नुक़्सान देह हो या शिराकत के माल में से कुछ माल ज़ाए हो जाए तो जिस शरीक ने मुआहदे या आम रविश के अलर्रग़्म अमल लिया हो वह ज़िम्मेदार है।

2161. जो शरीक शिराकत के सरमाए से कारोबार करता हो अगर वह फ़ुज़ूल ख़र्ची न करे और सरमाए की निगाहदाश्त में भी कोताही न करे और फिर इत्तिफ़ाक़न उस सरमाए की कुछ मिक़्दार या सारे का सारा सरमाया तलफ़ हो जाए तो वह ज़िम्मेदार नहीं है।

2162. जो शरीक शिराकत के सरमाये से कारोबार करता हो अगर वह कहे कि सरमाया तलफ़ हो गया है तो अगर दूसरे शुरका के नज़्दीक़ मोतबर शख़्स हो तो ज़रूरी है कि उसका कहना मान ले। और अगर दूसरे शुरका के नज़्दीक वह मोतबर शख़्स न हो तो शुरका हाकिमे शर्अ के पास उसके खिलाफ़ दावा कर सकते हैं ताकि हाकिमे शर्अ क़ज़ावत के उसूलों के मुताबिक़ तनाज़ों का फ़ैसला करे।

2163. अगर तमाम शरीक उस इजाज़त से जो उन्होंने एक दूसरे को माल में तसर्रूफ़ के लिए दे रखी हो फिर जायें तो उन में से कोई भी शिराकत के माल में तसर्रूफ़ नहीं कर सकता और अगर उन में से एक अपनी दी हुई इजाज़त से फिर जाए तो दूसरे शुरका को तसर्रूफ़ का कोई हक़ नहीं लेकिन जो शख़्स अपनी दी हुई इजाज़त से फिर गया हो वह शिराकत के माल में तसर्रूफ़ कर सकता है।

2164. जब शुरका में से कोई एक तक़ाज़ा करे कि शिराकत का सरमाया तक़्सीम कर दिया जाए तो अगरचे शिराकत की मुअय्यना मुद्दत में अभी कुछ वक़्त बाक़ी हो दूसरों को उसका कहना मान लेना ज़रूरी है मगर यह कि उन्होंने पहले ही (मुआहदा करते वक़्त) सरमाए की तक़्सीम को रद कर दिया हो (यअनी क़बूल न किया हो) या माल की तक़्सीम शुरका के लिए क़ाबिले ज़िक्र नुक़्सान का मूजिब हो (तो उसकी बात क़बूल नहीं करनी चाहिए)।

2165. अगर शुरका में से कोई मर जाए या दीवाना या बेहवास हो जाए तो दूसरे शुरका शिराकत के माल में तसर्रूफ़ नहीं कर सकते और अगर उनमें से कोई सफ़ीह हो जाए यअनी अपना माल अहमक़ाना और फ़ुज़ूल कामों में ख़र्च करे तो दोनों शरीक होंगे।

2166. अगर शरीक अपने लिए कोई चीज़ उधार खरीदे तो उस नफ़्अ नुक़्सान का वह खुद ज़िम्मेदार है लेकिन अगर शिराकत के लिए खरीदे और शिराकत के मुआहदे में उधार मुआमला करना भी शामिल हो तो फिर नफ़्अ नुक़्सान में दोनों शरीक होंगे।

2167. अगर शिराकत के सरमाए से कोई मुआमला किया जाए और बाद में मअलूम हो कि शिराकत बातिल थी तो अगर सूरत यह हो कि मुआमला करने की इजाज़त में शिराकत के सहीह होने की क़ैद न थी यअनी अगर शुरका जानते होते कि शिराकत दुरुस्त नहीं है तब भी वह एक दूसरे के माल में तसर्रूफ़ पर राज़ी होते तो मुआमला सहीह है और जो कुछ इस मुआमले से हासिल हो वह उन सबका माल है और अगर सूरत यह न हो तो जो लोग दूसरों के तसर्रूफ़ पर राज़ी न हों अगर वह यह कह दें कि हम इस मुआमले पर राज़ी हैं तो मुआमला सहीह है वर्ना बातिल है। दोनों सूरतों में उनमें से जिसने भी शिराकत के लिए काम किया हो अगर उसने बिला मुआवज़ा काम करने के इरादे से न किया हो तो वह अपनी मेहनत का मुआवज़ा मअमूल के मुताबिक़ दूसरे शुरका से उनके मफ़ाद का ख़याल रखते हुए ले सकता है। लेकिन अगर काम करने का मुआवज़ा उस फ़ाइदे की मिक़्दार से ज़्यादा हो जो वह शिराकत सहीह होने की सूरत में लेता तो बस उसी क़द्र फ़ाइदा ले सकता है।