तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल0%

तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
कैटिगिरी: तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
कैटिगिरी: विज़िट्स: 97513
डाउनलोड: 7010


कमेन्टस:

दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 30 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 97513 / डाउनलोड: 7010
आकार आकार आकार
तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

वह औरतें जिन से निकाह करना हराम है

2393. उन औरतों के साथ जो इंसान की महरम हों इज़्दिवाज हराम है मसलन मां, बहन, बेटी, फुफी, खाला, भतीजी, भांजी, सास।

2394. अगर कोई शख़्स किसी औरत से निकाह करे चाहे उसके साथ जिमाअ न भी करे तो उस औरत की मां, नानी और दादी और जितना सिलसिला ऊपर चला जाए सब औरतें उस मर्द की महरम हो जाती हैं।

2395. अगर कोई शख़्स किसी औरत से निकाह करे और उसके साथ हमबिस्तरी करे तो फिर उस औरत की लड़की, नवासी, पोती और जितना सिलसिला नीचे चला जाए सब औरतें उस मर्द की महरम हो जाती हैं ख़्वाह वह अक़्द के वक़्त मौजूद हों या बाद में पैदा हों।

2396. अगर किसी मर्द ने एक औरत से निकाह किया हो लेकिन हमबिस्तरी न की हो तो जब तक वह औरत उसके निकाह में रहे एहतियाते वाजिब की बिना पर उस वक़्त तक उस की लड़की से शादी न करे।

2397. इंसान की फुफी और खाला और उसके बाप की फुफी और खाला और दादा की फुफी और ख़ाला, बाप की मां (दादी) और मां की फुफी और खाला और नानी और नाना की फुफी और खाला और जिस क़दर यह सिलसिला ऊपर चला जाए सब उसके महरम हैं।

2398. शौहर का बाप और दादा और जिस क़दर यह सिलसिला ऊपर चला जाए और शौहर का बेटा, पोता और नवासा जिस क़दर भी यह सिलसिला नीचे चला जाए और ख़्वाह वह निकाह के वक़्त दुनिया में मौजूद हों या बाद में पैदा हों सब उसकी बीवी के महरम हैं।

2399. अगर कोई शख़्स किसी औरत से निकाह करे तो ख़्वाह निकाह दाइमी हो या ग़ैर दाइमी जब तक वह औरत उसकी मंकूहा है वह उसकी बहन के साथ निकाह नहीं कर सकता।

2400. अगर कोई शख़्स उस तरतीब के मुताबिक़ जिसका ज़िक्र तलाक़ के मसाइल में किया जायेगा अपनी बीवी को तलाक़े रजई दे दे तो वह इद्दत के दौरान उसकी बहन से निकाह नहीं कर सकता लेकिन तलाक़े बाइन की इद्दत के दौरान उसकी बहन से निकाह कर सकता है और मुतअ की इद्दत के दौरान एहतियाते वाजिब यह है कि औरत की बहन से निकाह न करे।

2401. इंसान अपनी बीवी की इजाज़त के बग़ैर उसकी भतीजी या भांजी से शादी नहीं कर सकता लेकिन अगर वह बीवी की इजाज़त के बग़ैर उन से निकाह कर ले और बाद में बीवी इजाज़त दे दे तो फिर कोई इश्काल नहीं।

2402. अगर बीवी को पता चले कि उसके शौहर ने उसकी भतीजी या भांजी से निकाह कर लिया है और ख़ामोश रहे तो अगर वह बाद में राज़ी हो जाए तो निकाह सहीह है और अगर रज़ामन्दी दे दे तो फिर कोई इश्काल नहीं।

2403. अगर इंसान खाला या फुफी की लड़की से शादी करने से पहले (नऊज़ों बिल्लाह) ख़ाला या फुफी से ज़िना करे तो फिर वह उसकी लड़की से एहतियात की बिना पर शादी नहीं कर सकता।

2404. अगर कोई शख़्स अपनी फुफी की लड़की या ख़ाला की लड़की से शादी करे और उससे हमबिस्तरी करने के बाद उसकी मां से ज़िना करे तो यह बात उनकी जुदाई का मूजिब नहीं बनती और अगर उससे निकाह के बाद लेकिन जिमाअ करने से पहले उसकी मां से ज़िना करे तब भी यही हुक्म है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस सूरत में तलाक़ देकर उससे (यअनी फुफी ज़ाद या खाला ज़ाद बहन से) जुदा हो जाए।

2405. अगर कोई शख़्स अपनी फुफी या खाला के अलावा किसी और औरत से ज़िना करे तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि उसकी बेटी के साथ शादी न करे बल्कि अगर किसी औरत से निकाह करे और उसके साथ जिमाअ करने से पहले उसकी मां के साथ ज़िना करे तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस औरत से जुदा हो जाए लेकिन अगर उसके साथ जिमाअ कर ले और बाद में उसकी मां से ज़िना करे तो बेशक औरत से जुदा होना लाज़िम नहीं।

2406. मुसलमान औरत काफ़िर मर्द से निकाह नहीं कर सकती। मुसलमान मर्द भी अहले किताब के अलावा काफ़िर औरतों से निकाह नहीं कर सकता। लेकिन यहूदी और ईसाई औरतों की मानिन्द अहले किताब औरतों से मुतअ करने में कोई हरज नहीं और एहतियाते लाज़िम की बिना पर उनसे दाइमी अक़्द न किया जाए और बअज़ फ़िरक़े मसलन नासिबी जो अपने आप को मुसलमान समझते हैं कुफ़्फ़ार के हुक्म में हैं और मुसलमान मर्द और औरतें उनके साथ दाइमी या ग़ैरे दाइमी निकाह नहीं कर सकते।

2407. अगर कोई शख़्स एक ऐसी औरत से ज़िना करे जो रजई तलाक़ की इद्दत गुज़ार रही हो तो एहतियात की बिना पर – वह औरत उस पर हराम हो जाती है औगर ऐसी औरत के साथ ज़िना करे जो मुतअ या तलाक़े बाइन या वफ़ात की इद्दत गुज़ार रही हो तो बाद में उसके साथ निकाह कर सकता है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उससे शादी न करे। और रजई तलाक़ और बाइन तलाक़ और मुतअ की इद्दत और वफ़ात की इद्दत के मअनी तलाक़ के अहकाम में बताए जायेंगे।

2408. अगर कोई शख़्स किसी ऐसी औरत से ज़िना करे जो बे शौहर हो मगर इद्दत में न हो तो एहतियात की बिना पर तौबा करने से पहले उससे शादी नहीं कर सकता। लेकिन अगर ज़ानी के अलावा कोई दूसरा शख़्स (उस औरत के) तौबा करने से पहले उसके साथ शादी करना चाहे तो कोई इश्काल नहीं है। मगर उस सूरत में कि वह औरत ज़िनाकार मशहूर हो तो एहतियात की बिना पर उस (औरत) के तौबा करने से पहले उसके साथ शादी करना जाइज़ नहीं है। इसी तरह कोई मर्द ज़िनाकार मशहूर हो तो तौबा करने से पहले उसके साथ शादी करना जाइज़ नहीं है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर कोई शख़्स ज़िनाकार औरत से जिस से खुद उसने या किसी दूसरे ने मुंह काला किया हो शादी करना चाहे तो हैज़ आने तक सब्र करे और हैज़ आने के बाद उसके साथ शादी कर ले।

2409. अगर कोई शख़्स एक ऐसी औरत से निकाह करे जो दूसरे की इद्दत में हो तो अगर मर्द और औरत दोनों या उसमें से कोई एक जानता हो कि औरत की इद्दत ख़त्म नहीं हुई और यह भी जानते हो कि इद्दत के दौरान औरत से निकाह करना हराम है तो अगरचे मर्द ने निकाह के बाद औरत से जिमाअ न भी किया हो वह हमेशा के लिए उस पर हराम हो जायेगी।

2410. अगर कोई शख़्स किसी ऐसी औरत से निकाह करे जो दूसरे की इद्दत में हो और उससे जिमाअ करे तो ख़्वाह उसे यह इल्म न हो कि वह औरत इद्दत में है या यह न जानता हो कि इद्दत के दौरान औरत से निकाह करना हराम है वह औरत हमेशा के लिए उस पर हराम हो जायेगी।

2411. अगर कोई शख़्स यह जानते हुए कि औरत शौहरदार है और (उससे शादी करना हराम है) उससे शादी करे तो ज़रूरी है कि उस औरत से जुदा हो जाए और बाद में उससे निकाह नहीं करना चाहिए। और अगर उस शख़्स को यह इल्म न हो कि औरत शौहरदार है लेकिन शादी के बाद हमबिस्तरी की हो तब भी एहतियात की बिना पर यही हुक्म है।

2412. अगर शौहरदार औरत ज़िना करे – तो एहतियात की बिना पर – वह ज़ानी पर हमेशा के लिए हराम हो जाती है लेकिन शौहर पर हराम नहीं होती और अगर तौबा व इस्तिग़फ़ार न करे और अपने अमल पर बाक़ी रहे (यअनी ज़िनाकारी तर्क न करे) तो बेहतर यह है कि उसका शौहर उसे तलाक़ दे दे लेकिन शौहर को चाहिए कि उसका महर भी दे।

2413. जिस औरत को तलाक़ मिल गई हो और जो औरत मुतअ में रही हो उसके शौहर ने मुतअ की मुद्दत बख़्श दी हो या मुतअ की मुद्दत ख़त्म हो गई हो अगर वह कुछ अर्से के बाद दूसरा शौहर करे और फिर उसे शक हो कि दूसरे शौहर से निकाह के वक़्त पहले शौहर की इद्दत ख़त्म हुई थी या नहीं तो वह अपने शक की पर्वा न करे।

2414. इग़्लाम करवाने वाले लड़के की मां, बहन और बेटी इग़्लाम करने वाले पर – जबकि (इग़्लाम करने वाला) बालिग़ हो – हराम हो जाते हैं। और इग़्लाम करवाने वाला मर्द हो या इग़्लाम करने वाला नाबालिग़ हो तब भी एहतियाते लाज़िम की बिना पर यही हुक्म है। लेकिन अगर उसे गुमान हो कि दुख़ूल हुआ था या शक करे कि दुख़ूल हुआ या नहीं तो फिर वह हराम नहीं होंगे।

2415. अगर कोई शख़्स किसी लड़के की मां या बहन से शादी करे और शादी के बाद उस लड़के से इग़्लाम करे तो एहतियात की बिना पर वह औरतें उस पर हराम हो जाती हैं।

2416. अगर कोई शख़्स एहराम की हालत में जो अअमाले हज में से एक अमल है किसी औरत से शादी करे तो उसका निकाह बातिल है और अगर औरत को मअलूम था कि एहराम की हालत में शादी करना हराम है तो एहतियाते वाजिब यह है कि बाद में उस मर्द से शादी न करे।

2417. जो औरत एहराम की हालत में हो अगर वह एक ऐसे मर्द से शादी करे जो एहराम की हालत में न हो तो उसका निकाह बातिल है और अगर औरत को मअलूम था कि एहराम की हालत में शादी करना हराम है तो एहतियाते वाजिब यह है कि बाद में उस मर्द से शादी न करे।

2418. अगर मर्द तवाफ़ुन्निसा जो हज और उमरा ए मुफ़्रादा के अअमाल में से एक अमल है बजा न लाए तो उसकी बीवी और दूसरी औरतें उस पर हलाल नहीं होतीं और अगर औरत तवाफ़ुन्निसा न करे तो उसका शौहर और दूसरे मर्द उस पर हलाल नहीं होते लेकिन अगर वह बाद में तवाफ़ुन्निसा बजा लायें तो मर्द पर औरतें और औरतों पर मर्द हलाल हो जाते हैं।

2419. अगर कोई शख़्स नाबालिग़ लड़की से निकाह करे तो उसकी लड़की की उम्र नौ साल होने से पहले उसके साथ जिमाअ करना हराम है। लेकिन अगर जिमाअ करे तो अज़हर यह है कि लड़की के बालिग़ होने के बाद उससे जिमाअ करना हराम नहीं है ख़्वाह उसे इफ़्ज़ा ही हो गया हो। इफ़ज़ा के मअनी मस्अला 2389 में बताए जा चुके हैं लेकिन अहवत यह है कि उसे तलाक़ दे दे।

2420. जिस औरत को तीन मर्तबा तलाक़ दी जाए वह शौहर पर हराम हो जाती है। हां अगर उन शराइत के साथ जिन का ज़िक्र तलाक़ के अहकाम में किया जायेगा वह औरत दूसरे मर्द से शादी करे तो दूसरे शौहर की मौत या उससे तलाक़ हो जाने के बाद और इद्दत गुज़र जाने के बाद उसका पहला शौहर दोबारा उसके साथ निकाह कर सकता है।

दाइमी अक़्द के अहकाम

2421. जिस औरत का दाइमी निकाह हो जाए उसके लिए हराम है कि शौहर की इजाज़त के बग़ैर घर से बाहर निकले ख़्वाह उसका निकलना शौहर के हक़ के मनाफ़ी न भी हो। नीज़ उसके लिए ज़रूरी है कि जब भी शौहर जिंसी लज़्ज़तें हासिल करना चाहे तो उसकी ख़्वाहिश पूरी करे और शरई उज़्र के बग़ैर शौहर को हमबिस्तरी से न रोके। और उसकी ग़िज़ा, लिबास, रहाइश और ज़िन्दगी की बाक़ी ज़रूरीयात का इन्तिज़ाम जब तक वह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करे, शौहर पर वाजिब है। और अगर वह यह चीज़ें मुहैया न करे तो ख़्वाह उनके मुहैया करने पर क़ुदरत रखता हो या न रखता हो वह बीवी का मक़रूज़ है।

2422. अगर कोई औरत हमबिस्तरी और जिंसी लज़्ज़तों के सिलसिले में शौहर का साथ देकर उसकी ख़्वाहिश पूरी न करे तो रोटी, कपड़े और मकान का वह ज़िम्मेदार नहीं है, अगरचे वह शौहर के पास ही रहे और अगर वह कभी कभार अपनी इन ज़िम्मेदरियों को पूरा न करे तो मशहूर क़ौल के मुताबिक़ तब भी रोटी, कपड़े और मकान का शौहर पर हक़ नहीं रखती। लेकिन यह हुक्म महल्ले इश्काल है और हर सूरत में बिना इश्काल उसका महर कलअदम नहीं होता।

2423. मर्द को यह हक़ नहीं कि बीवी को घरेलू खितमत पर मजबूर करे।

2424. बीवी को सफ़र के अख़राजात, वतन में रहने के अख़राजात से ज़्यादा हों तो अगर उसने सफ़र शौहर की इजाज़त से किया हो तो शौहर की ज़िम्मेदारी है कि वह उन अख़राजात को पूरा करे। लेकिन अगर वह सफ़र गाड़ी या जहाज़ वग़ैरा के ज़रीए हो तो किराये और सफ़र के दूसरे ज़रूरी अख़राजात की वह खुद ज़िम्मेदार है लेकिन अगर उसका शौहर उसे सफ़र में साथ ले जाना चाहता हो तो उसके लिए ज़रूरी है कि बीवी के सफ़री अख़राजात बर्दाश्त करे।

2425. जिस औरत का ख़र्च उसके शौहर के ज़िम्मे हो और शौहर उसे ख़र्च न दे तो वह अपना ख़र्च शौहर की इजाज़त के बग़ैर उसके माल से ले सकती है और अगर न ले सकती हो और मजबूर हो कि अपनी मआश का खुद बन्दोबस्त करे और शिकायत करने के लिए हाकिमे शर्अ तक उसकी रसाई न हो ताकि वह उसके शौहर को अगरचे क़ैद कर के ही – खर्च देने पर मजबूर करे तो जिस वक़्त वह अपनी मआश का बन्दोबस्त करने में मशग़ूल हो उस वक़्त शौहर की इताअत उस पर वाजिब नहीं है।

2426. अगर किसी मर्द की मसलन दो बीवियाँ हों और वह उनमें से एक के साथ एक रात रहे तो उस पर वाजिब है कि चार रातों में से एक रात दूसरी के पास भी गुज़ारे और उस सूरत के अलावा औरत के पास रहना वाजिब नहीं है। हां यह लाज़िम है कि उसके पास रहना बिल्कुल ही तर्क न कर दे और औला और अहवत यह है कि हर चार रातों में से एक रात मर्द अपनी दाइमी मंकूहा बीवी के पास रहे।

2427. शौहर अपनी जवान बीवी से चार महीने से ज़्यादा मुद्दत के लिए हम बिस्तरी तर्क नहीं कर सकता मगर यह कि हमबिस्तरी उसके लिए नुक़्सान देह या बहुत ज़्यादा तक्लीफ़ का बाइस हो या उस की बीवी ख़ुद चार महीने से ज़्यादा मुद्दत के लिए हमबिस्तरी तर्क करने पर राज़ी हो या शादी करते वक़्त निकाह के ज़िम्न में चार महीने से ज़्यादा मुद्दत के लिए हमबिस्तरी तर्क करने की शर्त रखी गई हो और इस हुक्म में एहतियात की बिना पर शौहर के मौजूद होने या मुसाफ़िर होने या औरत के मंकूहा या मम्तूआ होने में कोई फ़र्क़ नहीं है।

2428. अगर दाइमी निकाह में महर मुअय्यन न किया जाए तो निकाह सहीह है और अगर औरत के साथ जिमाअ करे तो उसे चाहिए कि उसका महर उसी जैसी औरतों के महर के मुताबिक़ दे अलबत्ता अगर मुतअ में महर मुअय्यन न किया जाए तो मुतअ बातिल हो जाता है।

2429. अगर दाइमी निकाह पढ़ते वक़्त महर देने के लिए मुद्दत न मुअय्यन की जाए तो औरत महर लेने से पहले शौहर को जिमाअ करने से रोक सकती है क़तए नज़र इस से कि मर्द महर देने पर क़ादिर हो या न हो लेकिन अगर वह महर देने से पहले जिमाअ पर राज़ी हो और शौहर उस से जिमाअ करे तो बाद में वह शरई उज़्र के बग़ैर शौहर को जिमाअ करने से नहीं रोक सकती।

मुअय्यन मुद्दत का निकाह

2430. औरत के साथ मुतअ करना अगरचे लज़्ज़त हासिल करने के लिए न हो तब भी सही है।

2431. एहतियाते वाजिब यह है कि शौहर ने जिस औरत से मुतअ किया हो उसके साथ चार महीने से ज़्यादा जिमाअ तर्क न करे।

2432. जिस औरत के साथ मुतअ किया जा रहा हो अगर वह निकाह में यह शर्त आयद करे कि शौहर उससे जिमाअ न करे तो निकाह और उसकी आयद कर्दा शर्त सहीह है और शौहर फ़क़त उससे दूसरी लज़्ज़तें हासिल कर सकता है। लेकिन अगर वह बाद में जिमाअ के लिए राज़ी हो जाए तो शौहर उससे जिमाअ कर सकता है। और दाइमी अक़्द में भी यही हुक्म है।

2433. जिस औरत के साथ मुतअ किया गया हो ख़्वाह वह हामिला हो जाए तब भी ख़र्च का हक़ नहीं रखती।

2434. जिस औरत के साथ मुतअ किया गया हो वह हमबिस्तरी का हक़ नहीं रखती और शौहर से मीरास भी नहीं पाती और शौहर भी उससे मीरास नहीं पाता। लेकिन अगर – उन में से किसी फ़रीक़ ने या दोनों ने – मीरास पाने की शर्त रखी हो तो उस शर्त का सहीह होना महल्ले इश्काल है लेकिन एहतियात का खयाल रहे।

2435. जिस औरत से मुतअ किया गया हो अगरचे उसे यह मअलूम हो कि वह ख़र्च और हमबिस्तरी का हक़ नहीं रखती उसका निकाह सहीह है और इस वजह से कि वह इन उमूर से नावाक़िफ़ थी उसका शौहर पर कोई हक़ नहीं बनता।

2436. जिस औरत से मुतअ किया गया हो अगर वह शौहर की इजाज़त के बग़ैर घर से बाहर जाये और उसके बाहर जाने की वजह से शौहर की हक़ तलफ़ी हो तो उसका बाहर जाना हराम है और उस सूरत में जबकि उसके बाहर जाने से शौहर की हक़ तलफ़ी न होती हो तब भी एहतियाते मुस्तहब की बिना पर शौहर की इजाज़त के बग़ैर घर से बाहर न जाए।

2437. अगर कोई औरत किसी मर्द को वकील बनाए कि मुअय्यन मुद्दत के लिए और मुअय्यन रक़म के एवज़ उसका खुद अपने साथ सीग़ा पढ़े और वह शख़्स उसका दाइमी निकाह अपने साथ पढ़ ले या मुद्दत मुक़र्रर किये बग़ैर या रक़म का तअय्युन किये बग़ैर मुतअ का सीग़ा पढ़ दे तो जिस वक़्त औरत को इन उमूर का पता चले – अगर वह इजाज़त दे दे तो निकाह सहीह है वर्ना बातिल है।

2438. अगर महरम होने के लिए – मसलन – बाप या दादा अपनी नाबालिग़ लड़की या लड़के का निकाह मुअय्यन मुद्दत के लिए किसी से पढ़ें तो उस सूरत में अगर उस निकाह की वजह से कोई फ़साद न हो तो निकाह सहीह है लेकिन अगर नाबालिग़ लड़का शादी की उस पूरी मुद्दत में जिंसी लज़्ज़त लेने की बिल्कुल सलाहीयत न रखता हो या लड़की ऐसी हो कि वह उससे बिल्कुल लज़्ज़त न ले सकता हो तो निकाह का सहीह होना महल्ले इशकाल है।

2439. अगर बाप या दादा अपनी बच्ची का जो दूसरी जगह हो और यह मअलूम न हो कि वह ज़िन्दा भी है या नहीं महरम बन जाने की ख़ातिर किसी औरत से निकाह कर दें और ज़ौजियत की मुद्दत इतनी हो कि जिस औरत से निकाह किया गया हो उससे इसतिम्ताअ हो सके तो ज़ाहिरी तौर पर महरम बनने का मक़सद हासिल हो जायेगा और अगर बाद में मअलूम हो कि निकाह के वक़्त वह बच्ची ज़िन्दा न थी तो निकाह बातिल है और वह लोग जो निकाह की वजह से बज़ाहिर महरम बन गए थे ना महरम हैं।

2440. जिस औरत के साथ मुतअ किया गया हो अगर मर्द उसकी निकाह में मुअय्यन की हुई मुद्दत बख़्श दे तो अगर उसने उसके साथ हमबिस्तरी की हो तो मर्द को चाहिए की तमाम चीज़ें जिन का वादा किया गया था उसे दे और अगर हमबिस्तरी न की हो तो आधा महर देना वाजिब है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि सारा महर उसे दे दे।

2441. मर्द यह कर सकता है कि जिस औरत के साथ उसने पहले मुतअ किया हो और अभी उसकी इद्दत ख़त्म न हुई हो उस से दाइमी अक़्द कर ले या दोबारा मुतअ कर ले।

अहकाम

निगाह डालने के अहकाम

2442. मर्द के लिए ना महरम औरत का ज़िस्म देखना और इसी तरह उसके बालों का देखना ख़्वाह लज़्ज़त के इरादे से हो या उसके बग़ैर – हराम में मुब्तला होने का ख़ौफ़ हो या न हो – हराम है। और उसके चहरे पर नज़र डालना और हाथों को कोहनियों तक देखना अगर लज़्ज़त के इरादे से हो या हराम में मुब्तला हो ने का ख़ौफ़ हो तो हराम है। बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि लज़्ज़त के इरादे के बग़ैर और हराम में मुब्तला होने का ख़ौफ़ न हो तब भी न देखे। इसी तरह औरत के लिए ना महरम मर्द के जिस्म पर नज़र डालना हराम है लेकिन अगर औरत मर्द के जिस्म के उन हिस्सों मसलन सर, दोनों हाथों, और दोनों पिंडलियों पर जिन्हें उर्फ़न छिपाना ज़रूरी नहीं है लज़्ज़त के इरादे के बग़ैर नज़र डाले और हराम में मुब्तला होने का ख़ौफ़ न हो तो कोई इश्काल नहीं है।

2443. वह बे पर्दा औरतें जिन्हें अगर कोई पर्दा करने के लिए कहे तो उसको अहम्मीयत न देती हों, उनके बदन की तरफ़ देखने में, अगर लज़्ज़त का क़स्द और हराम में मुब्तला होने का ख़ौफ़ न हो, तो कोई इश्काल नहीं। और इस हुक्म में काफ़िर और ग़ैर काफ़िर औरतों में कोई फ़र्क़ नहीं है। और इसी तरह उन के हाथ, चेहरे और जिस्म के दूसरे हिस्से जिन्हें वह छिपाने की आदी नहीं, कोई फ़र्क़ नहीं है।

2444. औरत को चाहिए कि वह – अलावा हाथ और चेहरे के – सर के बाल और अपना बदन ना महरम मर्द से छिपाए और एहतियाते लाज़िम यह है कि अपना बदन और सर के बाल उस लड़के से भी छिपाए जो अभी बालिग़ तो न हुआ हो लेकिन (इतना समझदार हो कि) अच्छे और बुरे को समझता हो और एहतिमाल हो कि औरत के बदन पर उसकी नज़र पड़ने से उसकी जिंसी ख़्वाहिश बेदार हो जायेगी। लेकिन औरत ना महरम मर्द के सामने चेहरा और कलाइयों तक हाथ खुले रख सकती है लेकिन उस सूरत में कि हराम में मुब्तला होने का ख़ौफ़ हो या किसी मर्द को हाथ और चेहरा दिखाना हराम में मुब्तला करने के इरादे से हो तो उन दोनों सूरतों में उनका खुला रखना जाइज़ नहीं है।

2445. बालिग़ मुसलमान की शर्मगाह देखना हराम है। अगरचे ऐसा करना शीशे के पीछे से या आईने में या साफ़ शफ़्फ़ाफ़ पानी वग़ैरा में ही क्यों न हो। और एहतियाते लाज़िम की बिना पर यही हुक्म है काफ़िर और उस बच्चे की शर्मगाह की तरफ़ देखने का जो अच्छे बुरे को समझता हो, अलबत्ता मियां बीवी एक दूसरे का पूरा बदन देख सकते हैं।

2446. जो मर्द और औरत आपस में महरम हों अगर वह लज़्ज़त की नीयत न रखते हों तो शर्मगाह के अलावा एक दूसरे का पूरा बदन देख सकते हैं।

2447. एक मर्द को दूसरे मर्द का बदन लज़्ज़त की नीयत से नहीं देखना चाहिए और एक औरत का दूसरी औरत के बदन को लज़्ज़त की नीयत से देखना हराम है।

2448. अगर कोई मर्द किसी ना महरम औरत को पहचानता हो अगर वह बेपर्दा औरतों में से न हो तो एहतियात की बिना पर उसे उसकी तस्वीर नहीं देखना चाहिए।

2449. अगर एक औरत किसी दूसरी औरत का या अपने शौहर के अलावा किसी मर्द का एनिमा करना चाहे या उसकी शर्मगाह को धो कर पाक करना चाहे तो ज़रूरी है कि अपने हाथ पर कोई चीज़ लपेट ले ताकि उसका हाथ उस (औरत या मर्द) की शर्मगाह पर न लगे। और अगर एक मर्द किसी दूसरे मर्द या अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी औरत का एनिमा करना चाहे या उसकी शर्मगाह को धोकर पाक करना चाहे तो उसके लिए भी यही हुक्म है।

2450. अगर औरत ना महरम मर्द से अपनी किसी ऐसी बीमारी का इलाज कराने पर मजबूर हो, जिसका इलाज वह बेहतर तौर पर कर सकता हो तो वह औरत उस ना महरम मर्द से अपना इलाज करा सकती है। चुनांचे वह मर्द इलाज के सिलसिले में उसके देखने या उसके बदन को हाथ लगाने पर मजबूर हो तो (ऐसा करने में) कोई इश्काल नहीं लेकिन अगर वह महज़ देख कर इलाज कर सकता हो तो ज़रूरी है कि उस औरत के बदन को हाथ न लगाए और अगर सिर्फ़ हाथ लगाने से इलाज कर सकता हो तो फिर ज़रूरी है कि उस औरत पर निगाह न डाले।

2451. अगर किसी शख़्स का इलाज करने के सिलसिले में उसकी शर्मगाह पर निगाह डालने पर मजबूर हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसे चाहिये कि आईना सामने रखे और उसमें देखे। लेकिन अगर शर्मगाह पर निगाह डालने के अलावा कोई चारा न हो तो (ऐसा करने में) कोई इश्काल नहीं। और अगर शर्मगाह पर निगाह डालने की मुद्दत आईने में देखने की मुद्दत से कम हो तब भी यही हुक्म है।

शादी ब्याह के मुख़्तलिफ़ मसाइल

2452. जो शख़्स शादी न करने की वजह से हराम फ़ेल में मुब्तला होता हो उस पर वाजिब है कि शादी करे।

2453. अगर शौहर निकाह में मसलन यह शर्त आयद करे कि औरत कुंवारी हो और निकाह के बाद मअलूम हो कि वह कुंवारी नहीं, तो शौहर निकाह को फ़स्ख़ कर सकता है अलबत्ता अगर फ़स्ख़ करे तो कुंवारी होने और कुंवारी न होने के माबैन मुक़र्रर कर्दा महर में जो फ़र्क़ हो वह ले सकता है।

2454. ना महरम मर्द और औरत का किसी ऐसी जगह साथ होना जहां और कोई न हो जबकि उस सूरत में बहकने का अंदेशा भी हो – हराम है। चाहे वह जगह ऐसी हो जहां कोई भी आ सकता हो। अलबत्ता अगर बहकने का अंदेशा न हो तो कोई इश्काल नहीं है।

2455. अगर कोई मर्द औरत का महर निकाह में मुअय्यन कर दे और उसका इरादा यह हो कि वह महर नहीं देगा तो (उसका निकाह नहीं टूटता बल्कि) सहीह है। लेकिन ज़रूरी है कि महर अदा करे।

2456. जो मुसलमान इस्लाम से ख़ारिज हो जाए और कुफ़्र इख़तियार करे तो उसे मुर्तद कहते हैं और मुर्तद की दो क़िस्में हैं – 1. मुर्तदे फ़ितरी, 2. मुर्तदे मिल्ली। मुर्तदे फ़ितरी वह शख़्स है जिसकी पैदाइश के वक़्त उसके मां बाप दोनों या उन में से कोई एक मुसलमान हो और वह खुद भी अच्छे बुरे को पहचानने के बाद मुसलमान हुआ हो लेकिन बाद में काफ़िर हो जाए, और मुर्तदे मिल्ली उस के बर अक्स है (यअनी वह शख़्स है जिसकी पैदाइश के वक़्त मां बाप दोनों या उनमें से एक भी मुसलमान न हो)।

2457. अगर औरत शादी के बाद मुर्तद हो जाए तो उसका निकाह टूट जाता है और अगर उसके शौहर ने उसके साथ जिमाअ न किया हो तो उसके लिए इद्दत नहीं है। और अगर जिमाअ के बाद मुर्तद हो जाए लेकिन याइसा हो चुकी हो या बहुत छोटी हो तब भी यही हुक्म है। लेकिन अगर उसकी उम्र हैज़ आने वाली औरतों के बराबर हो तो उसे चाहिये कि उस दस्तूर के मुताबिक़ जिसका ज़िक्र तलाक़ के अहकाम में किया जायेगा इद्दत गुज़ारे। और (उलमा के माबैन) मश्हूर यह है कि अगर इद्दत के दौरान मुसलमान हो जाए तो उसका निकाह (नहीं टूटता यअनी) बाक़ी रहता है और यह हुक्म वजह से ख़ाली नहीं है अगरचे बेहतर यह है कि एहतियात की रिआयत तर्क न हो। और याइसा उस औरत को कहते हैं जिसकी उम्र पचास साल हो गई हो और उम्र रसीदा होने की वजह से उसे हैज़ न आता हो और दोबारा आने की उम्मीद न हो।

2458. अगर कोई मर्द शादी के बाद मुर्तदे फ़ितरी हो जाए तो उसकी बीवी उस पर हराम हो जाती है और उस औरत के लिए ज़रूरी है कि वफ़ात की इद्दत के बराबर जिसका बयान तलाक़ के अहकाम में होगा इद्दत रखे।

2459. अगर कोई मर्द शादी के बाद मुर्तदे मिल्ली हो जाए तो उसका निकाह टूट जाता है। लिहाज़ा अगर उसने अपनी बीवी के साथ जिमाअ किया हो या वह औरत याइसा या बहुत छोटी हो तो उसके लिए इद्दत नहीं है और अगर वह मर्द जिमाअ के बाद मुर्तद हो और उसकी बीवी उन औरतों की हमसिन हो जिन्हें हैज़ आता हो तो ज़रूरी है कि वह औरत तलाक़ की इद्दत के बराबर जिसका ज़िक्र तलाक़ के अहकाम में आयेगा इद्दत रखे और मश्हूर यह है कि अगर उसकी इद्दत ख़त्म होने से पहले उसका शौहर मुसलमान हो जाए तो उसका निकाह क़ाइम रहता है। और यह हुक्म भी वजह से ख़ाली नहीं है। अलबत्ता एहतियात का ख़्याल रखना बेहतर है।

2460. अगर औरत अक़्द में मर्द पर शर्त आइद करे कि उसे (एक मुअय्यन) शहर से बाहर न ले जाए और मर्द भी इस शर्त को क़बूल कर ले तो ज़रूरी है कि उसकी रज़ामन्दी के बग़ैर उस शहर से बाहर न ले जाए।

2461. अगर किसी औरत की पहले शौहर से लड़की हो तो बाद में उसका दूसरा शौहर उस लड़की का निकाह अपने उस लड़के से कर सकता है जो उस बीवी से न हो नीज़ अगर किसी लड़की का निकाह अपने बेटे से करे तो बाद में उस लड़की की मां से खुद भी निकाह कर सकता है।

2462. अगर कोई औरत ज़िना से हामिला हो जाए तो बच्चे को गिराना उसके लिये जाइज़ नहीं है।

2463. अगर कोई मर्द किसी ऐसी औरत से ज़िना करे जो शौहरदार न हो और किसी दूसरे की इद्दत में भी न हो चुनांचे बाद में उस औरत से शादी कर ले और कोई बच्चा पैदा हो जाए तो इस सूरत में कि जब वह यह न जानते हो कि बच्चा हलाल नुतफ़े से है या हराम नुतफ़े से तो वह बच्चा हलाल ज़ादा है।

2464. अगर किसी मर्द को यह मअलूम न हो कि एक औरत इद्दत में है और वह उससे निकाह करे तो अगर औरत को भी इस बारे में इल्म न हो और उनके हां बच्चा पैदा हो तो वह हलाल ज़ादा होगा और शरअन उन दोनों का बच्चा होगा। लेकिन अगर औरत को इल्म था कि वह इद्दत मे है और इद्दत के दौरान निकाह करना हराम है तो शरअन वह बच्चा बाप का होगा और मज़कूरा दोनों सूरतों में उन दोनों का निकाह बातिल है और जैसे कि बयान हो चुका है वह दोनों एक दूसरे पर हराम हैं।

2465. अगर कोई औरत यह कहे कि मैं याइसा हूं तो उसकी यह बात क़बूल नहीं करनी चाहिये लेकिन अगर कहे कि मैं शौहरदार नहीं हूं तो उसकी बात मान लेना चाहिए लेकिन अगर वह ग़लत बयान हो तो उस सूरत में एहतियात यह है कि उसके बारे में तह्क़ीक़ की जाए।

2466. अगर कोई शख़्स किसी ऐसी औरत से शादी करे जिसने कहा हो कि मेरा शौहर नहीं है और बाद में कोई और शख़्स कहे कि वह औरत उसकी बीवी है तो जब तक यह बात साबित न हो जाए कि वह सच कह रहा है उसकी बात को क़बूल नहीं करना चाहिये।।

2467. जब तक लड़का या लड़की दो साल के न हो जायें, बाप, बच्चों को उनकी माँ से जुदा नहीं कर सकता और अहवत और औला यह है कि बच्चे को सात साल तक उसकी माँ से जुदा न करे।

2468. अगर रिश्ता मांगने वाले की दियानतदारी और अख़लाक़ से ख़ुश हो तो बेहतर यह है कि लड़की का हाथ उसके हाथ में देने से इन्कार न करे। पैग़म्बरे अकरम स्वल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से रिवायत है कि, जब भी कोई शख़्स तुम्हारी लड़की का रिश्ता मांगने आए और तुम उस शख़्स के अख़लाक़ और दियानतदारी से ख़ुश हो तो अपनी लड़की की शादी उस से कर दो। अगर ऐसा न करोगे तो गोया ज़मीन पर एक बहुत बड़ा फ़ितना फैल जायेगा।

2469. अगर बीवी शौहर के साथ इस शर्त पर अपने महर की मुसालहत करे (यअनी महर उसे बख़्श दे) कि वह दूसरी शादी नहीं करेगा तो वाजिब है कि वह दूसरी शादी न करे। और बीवी को भी महर लेने का कोई हक़ नहीं है।

2470. जो शख़्स वलदुज़्ज़िना हो अगर वह शादी कर ले और उसके हां बच्चा पैदा हो तो वह हलाल ज़ादा है।

2471. अगर कोई शख़्स माहे रमज़ानुल मुबारक के रोज़ों में या औरत के हाइज़ होने की हालत में उससे जिमाअ करे तो गुनाहगार है लेकिन अगर इस जिमाअ के नतीजे में उनके हां कोई बच्चा पैदा हो तो वह हलालज़ादा है।

2472. जिस औरत को यक़ीन हो कि उसका शौहर सफ़र में फ़ौत हो गया है अगर वह वफ़ात की इद्दत के बाद शादी करे और बाद अज़ां उसका पहला शौहर सफ़र से (ज़िन्दा सलामत) वापस आ जाए तो ज़रूरी है कि दूसरे शौहर से जुदा हो जाए और वह पहले शौहर पर हलाल होगी। लेकिन अगर दूसरे शौहर ने उससे जिमाअ किया हो तो औरत के लिए ज़रूरी है कि इद्दत गुज़ारे और दूसरे शौहर को चाहिये कि उस जैसी औरतों के महर के मुताबिक़ उसे महर अदा करे लेकिन इद्दत (के ज़माने) का ख़र्च (दूसरे शौहर के ज़िम्मे) नहीं है।

दूध पिलाने के अहकाम

2473. अगर कोई औरत एक बच्चे को उन शराइत के साथ दूध पिलाए जो मस्अला 2483 में बयान होंगी तो वह बच्चा मुन्दरिजा ज़ैल लोगों का महरम बन जाता हैः-

1. ख़ुद वह औरत – और उसे रिज़ाई माँ कहते हैं।

2. औरत का शौहर जो दूध का मालिक है – और उसे रिज़ाई बाप कहते हैं।

3. उस औरत का बाप और माँ – और जहां तक यह सिलसिला ऊपर चला जाए अगरचे वह उस औरत के रिज़ाई मां बाप ही क्यों न हों।

4. उस औरत के वह बच्चे जो पैदा हो चुके हों या बाद में पैदा हों।

5. उस औरत की औलाद की औलाद ख़्वाह यह सिलसिला जिस क़दर नीचे चला जाए और औलाद की औलाद ख़्वाह हक़ीक़ी हो ख़्वाह उसकी औलाद ने उन बच्चों को दूध पिलाया हो।

6. उस औरत की बहनें और भाई ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों यअनी दूध पीने की वजह से उस औरत के बहन और भाई बन गए हों।

7. उस औरत का चचा और फुफी ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों।

8. उस औरत का मामूं और खाला ख़्वाह वह रिज़ाई ही क्यों न हों।

9. उस औरत के उस शौहर की औलाद जो दूध का मालिक है। और जहां तक भी यह सिलसिला नीचे चला जाए अगरचे उसकी औलाद रिज़ाई ही क्यों न हों।

10. उस औरत के उस शौहर के मां बाप जो दूध का मालिक है। और जहां तक भी यह सिलसिला ऊपर चलता जाए।

11. उस औरत के उस शौहर के भाई बहन जो दूध का मालिक है ख़्वाह वह उसके रिज़ाई बहन भाई ही क्यों न हों।

12. उस औरत का जो शौहर दूध का मालिक है उसके चचा और फुफियाँ और मामूं और ख़ालायें – और जहां तक यह सिलसिला ऊपर चला जाए और अगरचे वह रिज़ाई ही क्यों न हों। और इनके अलावा कई और वह लोग भी दूध पिलाने की वजह से महरम बन जाते हैं जिनका ज़िक्र आइन्दा मसाइल में किया जायेगा।

2474. अगर कोई औरत किसी बच्चे को उन शराइत के साथ दूध पिलाए जिन का ज़िक्र मस्अला 2483 में किया जायेगा तो उस बच्चे का बाप उन लड़कियों से शादी नहीं कर सकता जिन्हें वह औरत जन्म दे और अगर उन में से कोई एक भी लड़की अभी उसकी बीवी हो तो उसका निकाह टूट जायेगा। अलबत्ता उसका उस औरत की रिज़ाई लड़कीयों से निकाह करना जाइज़ है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उनके साथ भी निकाह न करे नीज़ एहतियात की बिना पर वह उस औरत के उस शौहर की बेटियों से निकाह नहीं कर सकता जो दूध का मालिक है अगरचे वह उस शौहर की रिज़ाई बेटियां हों लिहाज़ा अगर उस वक़्त उनमें से कोई औरत उसकी बीवी हो तो एहतियात की बिना पर उसका निकाह टूट जाता है।

2475. अगर कोई औरत किसी बच्चे को उन शराइत के साथ दूध पिलाए जिनका ज़िक्र मस्अला 2483 में किया जायेगा तो उस औरत का वह शौहर जो दूध का मालिक है उस बच्चे की बहनों का महरम नहीं बन जाता लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि वह उनसे शादी न करे नीज़ शौहर के रिश्तेदार भी उस बच्चे के भाई बहनों के महरम नहीं बन जाते।

2476. अगर कोई औरत एक बच्चे को दूध पिलाए तो वह उसके भाईयों की महरम नहीं बन जाती और उस औरत के रिश्तेदार भी उस बच्चे के भाई बहनों के महरम नहीं बन जाते।

2477. अगर कोई शख़्स उस औरत से जिसने किसी लड़की को पूरा दूध पिलाया हो निकाह कर ले और उससे मुजामअत (संभोग) कर ले तो फिर वह उस लड़की से निकाह नहीं कर सकता।

2478. अगर कोई शख़्स किसी लड़की से निकाह कर ले तो फिर वह उस औरत से निकाह नहीं कर सकता जिसने उस लड़की को दूध पिलाया हो।

2479. कोई शख़्स उस लड़की से निकाह नहीं कर सकता जिसे उस शख़्स की मां या दादी ने दूध पिलाया हो। नीज़ अगर किसी शख़्स के बाप की बीवी ने (यअनी उसकी सौतेली मां ने) उस शख़्स के बाप का मसलूका दूध किसी लड़की को पिलाया हो तो वह उस लड़की से निकाह नहीं कर सकता। और अगर कोई शख़्स किसी दूध पीती बच्ची से निकाह करे और उसके बाद उसकी मां या दादी या उसकी सौतेली मां उस बच्ची को दूध पिला दे तो निकाह टूट जाता है।

2480. जिस लड़की को किसी शख़्स की बहन या भाभी ने भाई के दूध से पूरा दूध पिलाया हो वह शख़्स उस लड़की से निकाह नहीं कर सकता। और जब किसी शख़्स की भांजी, भतीजी या बहन या भाई की पोती या नवासी ने उस बच्ची को दूध पिलाया हो तब भी यही हुक्म है।

2481. अगर कोई औरत अपनी लड़की के बच्चे को (यअनी अपने नवासे या नवासी को) पूरा दूध पिलाए तो वह लड़की अपने शौहर पर हराम हो जायेगी। और अगर कोई औरत उस बच्चे को दूध पिलाए जो उस लड़की के शौहर की दूसरी बीवी से पैदा हुआ हो तब भी यही हुक्म है लेकिन अगर कोई औरत अपने बेटे के बच्चे को (यअनी अपने पोते या पोती को) दूध पिलाए तो उसके बेटे की बीवी (यअनी दूध पिलाई की बहू) जो उस दूध पीते बच्चे की मां है अपने शौहर पर हराम नहीं होगी।

2482. अगर किसी लड़की की सौतेली मां उस लड़की के शौहर के बच्चे को उस लड़की के बाप की मसलूका दूध पिलाए तो उस एहतियात की बिना पर जिसका ज़िक्र मसअला 2474 में किया गया है वह लड़की अपने शौहर पर हराम हो जाती है ख़्वाह वह बच्चा उस लड़की के बत्न से या किसी दूसरी औरत के बत्न से हो।

दूध पिलाने से महरम बनने की शराइत

2483. बच्चे को जो दूध पिलाना महरम बनने का सबब बनता है उसकी आठ शर्तें हैं –

1. बच्चा ज़िन्दा औरत का दूध पिये। पस अगर वह मुर्दा औरत के पिस्तान (छाती) से दूध पिये तो उसका कोई फ़ाइदा नहीं।

2. औरत का दूध फ़ेले हराम का नतीजा न हो। पस अगर ऐसे बच्चे का दूध जो वलदुज़्ज़िना हो किसी दूसरे बच्चे को दिया जाए तो उस दूध के तवस्सुत से वह दूसरा बच्चा किसी का महरम नहीं बनेगा।

3. बच्चा पिस्तान से दूध पिये। पस अगर दूध उसके हल्क़ में उन्डेला जाए तो बेकार है।

4. दूध ख़ालिस हो और किसी दूसरी चीज़ से मिला हुआ न हो।

5. दूध एक ही शौहर का हो। पस जिस औरत को दूध उजरता हो अगर उसे तलाक़ हो जाए और वह अक़्दे सानी कर ले और दूसरे शौहर से हामिला हो जाए और बच्चा जनने तक उसके पहले शौहर का दूध उसमें बाक़ी हो मसलन अगर उस बच्चे को खुद बच्चा जनने के क़ब्ल पहले शौहर का दूध आठ दफ़्आ और वज़ए हम्ल के बाद दूसरे शौहर का दूध सात दफ़्आ पिलाए तो वह बच्चा किसी का भी महरम नहीं बनता।

6. बच्चा किसी बीमारी की वजह से दूध की क़ै न कर दे और अगर क़ै कर दे तो बच्चा महरम नहीं बनता है।

7. बच्चे को इस क़दर दूध पिलाया जाए कि उसकी हड्डियां उस दूध से मज़बूत हों और बदन का गोश्त भी उस से बने और अगर इस बात का इल्म न हो कि इस क़दर दूध पिया है या नहीं तो अगर उसने एक दिन और एक रात या पन्द्रह दफ़्आ पेट भर कर दूध पिया हो तब भी (महरम होने के लिए) काफ़ी है जैसा कि इसका तफ़्सीली ज़िक्र आने वाले मस्अले में किया जायेगा लेकिन अगर इस बात का इल्म हो कि उस की हड्डियां इस दूध से मज़बूत नहीं हुई और उस का गोश्त भी उस से नहीं बना हालांकि बच्चे ने एक दिन और एक रात या पन्द्रह दफ़्आ दूध पिया हो तो उस जैसी सूरत में एहतियात का ख़्याल करना ज़रूरी है।

8. बच्चे की उम्र के दो साल मुकम्मल न हुए हों और अगर उसकी उम्र दो साल होने के बाद उसे दूध पिलाया जाए तो वह किसी का महरम नहीं बनता बल्कि अगर मिसाल के तौर पर वह उम्र के दो साल मुकम्मल होने से पहले आठ दफ़्आ और उसके बाद सात दफ़्आ दूध पिये तब भी वह किसी का महरम नहीं बनता। लेकिन अगर दूध पिलाने वाली औरत को बच्चा जने दो साल से ज़्यादा मुद्दत गुज़र चुकी हो और उसका दूध अभी बाक़ी हो और वह किसी बच्चे को दूध पिलाए तो वह बच्चा उन लोगों का महरम बन जाता है जिन का ज़िक्र ऊपर किया गया है।

2484. दूध पीने की वजह से महरम बनने के लिए ज़रूरी है कि एक दिन रात बच्चा ग़िज़ा न खाए और न किसी दूसरी औरत का दूध पिये लेकिन अगर इतनी थोड़ी ग़िज़ा खाए कि लोग यह न कहें कि उसने बीच में ग़िज़ा खाई है तो फिर कोई इश्काल नहीं। नीज़ यह भी ज़रूरी है कि पन्द्रह मर्तबा एक ही औरत का दूध पिये। हाँ अगर दूध पिते हुए सांस ले या थोड़ा सा सब्र करे गोया कि जब उसने पहली बार पिस्तान मुंह में लिया था उस वक़्त से लेकर उसके सेर हो जाने तक एक दफ़्आ दूध पीना ही शुमार किया जाए तो इस में कोई इश्काल नहीं।

2485. अगर कोई औरत अपने शौहर का दूध किसी बच्चे को पिलाए बाद अज़ां (उसके बाद) अक़्दे सानी कर ले और दूसरे शौहर का दूध किसी और बच्चे को पिलाए तो वह दो बच्चे आपस में महरम नहीं बनते अगरचे बेहतर यह है कि वह आपस में शादी न करें।

2486. अगर कोई औरत एक शौहर का दूध कई बच्चों को पिलाए तो वह सब आपस में नीज़ उस आदमी के और उस औरत के जिस ने उन्हें दूध पिलाया है महरम बन जाते हैं।

2487. अगर किसी शख़्स की कई बीवियां हों और उन में से हर एक उन शराइत के साथ जो बयान की गई हैं एक एक बच्चे को दूध पिला दे तो वह सब बच्चे आपस में और उस आदमी के और उन तमाम औरतों के महरम बन जाते हैं।

2488. अगर किसी शख़्स की दो बीवियों का दूध उतरता हो और उनमें से एक किसी बच्चे को मिसाल के तौर पर आठ मर्तबा और दूसरी सात मर्तबा दूध पिला दे तो वह बच्चा किसी का भी महरम नहीं बनता।

2489. अगर कोई औरत एक शौहर का पूरा दूध एक लड़के और एक लड़की को पिलाए तो उस लड़की के बहन भाई उस लड़के के बहन भाईयों के महरम नहीं बन जाते।

2490. कोई शख़्स अपनी बीवी की इजाज़त के बग़ैर उन औरतों से निकाह नहीं कर सकता जो दूध पीने की वजह से उसकी बीवी की भांजियां या भतीजियां बन गई हों नीज़ अगर कोई शख़्स किसी लड़के से इग़्लाम करे तो वह उस लड़के की रिज़ाई बेटी, बहन, मां और दादी से यअनी उन औरतों से जो दूध पीने की वजह से उसकी बेटी, बहन, मां और दादी बन गई हों निकाह नहीं कर सकता। और एहतियात की बिना पर जब कि लिवातत करने वाला बालिग़ न हो या लिवातत कराने वाला बालिग़ हो तब भी यही हुक्म है।

2491. जिस औरत ने किसी शख़्स के भाई को दूध पिलाया हो वह उस शख़्स की महरम नहीं बन जाती अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस से शादी न करे।

2492. कोई आदमी दो बहनों से (एक ही वक़्त में) निकाह नहीं कर सकता अगरचे वह रिज़ाई बहनें ही हों यअनी दूध पीने की वजह से एक दूसरी की बहनें बन गई हों और अगर वह दो औरतों से शादी करे और बाद में उसे पता चले कि वह आपस में बहनें हैं तो उस सूरत में जब कि उसकी शादी एक ही वक़्त में हुई हो अज़हर यह है कि दोनों निकाह बातिल हैं। और अगर निकाह एक ही वक़्त में न हुआ हो तो पहला निकाह सहीह और दूसरा बातिल है।

2493. अगर कोई औरत अपने शौहर का दूध उन अश्ख़ास को पिलाए जिन का ज़िक्र ज़ैल में किया गया है तो उस औरत का शौहर उस पर हराम नहीं होता अगरचे बेहतर यह है कि एहतियात की जाए।

1. अपने भाई और बहन को।

2. अपने चचा, फुफी, मामूं और ख़ाला को।

3. अपने चचा और मामूं की औलाद को।

4. अपने भतीजे को।

5. अपने जेठ या देवर और नन्द को।

6. अपने भांजे या अपने शौहर के भांजे को।

7. अपने शौहर के चचा, फुफी, मामूं और ख़ाला को।

8. अपने शौहर की दूसरी बीवी के नवासे या नवासी को।

2494. अगर कोई औरत किसी शख़्स की फुफीज़ाद या ख़ालाज़ाद बहन को दूध पिलाए तो वह (औरत) उस शख़्स की महरम नहीं बनती लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि वह शख़्स उस औरत से शादी न करे।

2495. जिस शख़्स की दो बीवियां हों अगर उसकी एक बीवी दूसरी बीवी के चचा के बेटे को दूध पिलाए तो जिस औरत के चचा के बेटे ने दूध पिया है वह अपने शौहर पर हराम नहीं होगी।

दूध पिलाने के आदाब

2496. बच्चे को दूध पिलाने के लिए सब औरतों से बेहतर उसकी माँ है। और मां के लिए मुनासिब है कि बच्चे को दूध पिलाने की उजरत अपने शौहर से न ले और शौहर के लिए अच्छी बात यह है कि उसे उजरत दे और अगर बच्चे की मां, दाया (दूध मां) के मुक़ाबिले में ज़्यादा उजरत लेना चाहे तो शौहर बच्चे को उस से ले कर दाया के सिपुर्द कर सकता है।

2497. मुस्तहब है कि बच्चे की दाया शीआ इसना अशरी होशमन्द, पाक दामन और खुश शक्ल हो। और मकरूह है कि वह ग़बी, ग़ैर शीआ इसना अशरी, बद सूरत, बद अख़लाक़ या हरामज़ादी हो। और यह भी मकरूह है कि उस औरत को बतौर दाया मुन्तख़ब किया जाए, जिसका दूध ऐसे बच्चे से हो जो वलदुज़्ज़िना हो।