तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दूध पिलाने के मुख़्तलिफ़ मसाइल

2498. औरतों के लिए बेहतर है कि वह हर एक के बच्चे कि दूध न पिलाये क्योंकि हो सकता है कि वह यह याद न रख सकें कि उन्होंने किस किस को दूध पिलाया है और (मुम्किन है कि) बाद में दो महरम एक दूसरे से निकाह कर लें।

2499. अगर मुम्किन हो तो मुस्तहब है कि बच्चे को 21 महीने दूध पिलाया जाए। और दो साल से ज़्यादा दूध पिलाना मुनासिब नहीं है।

2500. अगर दूध पिलाने की वजह से शौहर का हक़ तलफ़ न होता हो तो औरत शौहर की इजाज़त के बग़ैर किसी दूसरे शख़्स के बच्चे को दूध पिला सकती है।

2501. अगर किसी औरत का शौहर एक शीर ख़्वार बच्ची से निकाह करे और वह औरत उस बच्ची को दूध पिलाए तो मशहूर क़ौल की बिना पर वह औरत अपने शौहर की सास बन जाती है और उस पर हराम हो जाती है। लेकिन यह हुक्म इशकाल से ख़ाली नहीं है और एहतियात का ख़्याल रखना चाहिए।

2502. अगर कोई शख़्स चाहे की उसकी भाभी उसकी महरम बन जाए तो बअज़ फ़ुक़हा ने फ़रमाया है कि उसे चाहिए कि किसी शीर ख़्वार बच्ची से मिसाल के तौर पर दो दिन के लिए मुतअ कर ले और उन दोनों में उन शराइत के साथ जिनका ज़िक्र मस्अला 2483 में किया गया है उसकी भाभी उस बच्ची को दूध पिलाए ताकि वह उसकी बीवी की मां बन जाए। लेकिन यह हुक्म उस सूरत में जब भाभी भाई के ममलूका दूध से उस बच्ची को पिलाए महल्ले इश्काल है।

2503. अगर कोई मर्द किसी औरत से शादी करने से पहले कहे कि रिज़ाअत की वजह से वह औरत मुझ पर हराम है मसलन कहे कि मैं ने उस औरत की मां का दूध पिया है तो अगर इस बात की तस्दीक़ मुम्किन हो तो वह उस औरत से शादी नहीं कर सकता और अगर यह बात शादी के बाद कहे और खुद औरत भी इस बात को क़बूल करे तो उनका निकाह बातिल है। लिहाज़ा अगर मर्द ने उस औरत से हमबिस्तरी न की हो या की हो लेकिन हमबिस्तरी के वक़्त और को मअलूम हो कि वह उस मर्द पर हराम है तो औरत का कोई महर नहीं और अगर औरत को हमबिस्तरी के बाद पता चले कि वह उस मर्द पर हराम थी तो ज़रूरी है कि शौहर उस जैसी औरतों के महर के मुताबिक़ उसे महर दे।

2504. अगर कोई औरत शादी से पहले कह दे कि रिज़ाअत की वजह से मैं इस मर्द पर हराम हूं और इसकी तस्दीक़ मुम्किन हो तो वह उस मर्द से शादी नहीं कर सकती और अगर वह यह बात शादी के बाद कहे तो उसका कहना ऐसा ही है जैसे कि मर्द शादी के बाद कहे कि वह औरत उस पर हराम है और इसके मुतअल्लिक़ हुक्म साबिक़ा मस्अले में बयान हो चुका है।

2505. दूध पिलाना जो महरम बनने का सबब है दो चीज़ों से साबित होता हैः-

1. एक ऐसी जमाअत का ख़बर देना जिसकी बात पर यक़ीन या इत्मीनान हो जाए।

2. दो आदिल मर्द इसकी गवाही दें लेकिन ज़रूरी है कि वह दूध पिलाने की शराइत के बारे में भी बतायें मसलन कहें कि हम ने फ़लां बच्चे को चौबीस घंटे फ़लां औरत के पिस्तान से दूध पीते देखा है और उसने उस दौरान कोई और चीज़ भी नहीं खाई और इसी तरह उन बाक़ी शराइत को भी वाशिग़ाफ़ लफ़्ज़ों में बयान करें जिनका ज़िक्र मस्अला 2483 में किया गया है। अलबत्ता एक मर्द और दो औरतों या चार औरतों की गवाही से जो सब के सब आदिल हों रिज़ाअत का साबित होना महल्ले इश्काल है।

2506. अगर इस बात में शक हो कि बच्चे ने इतनी मिक़्दार में दूध पिया है जो महरम बनने का सबब है या नहीं पिया है या गुमान हो कि उस ने इतनी मिक़्दार में दूध पिया है तो बच्चा किसी का भी महरम नहीं होता लेकिन बेहतर यह है कि एहतियात की जाए।

तलाक़ के अहकाम

2507. जो मर्द अपनी बीवी को तलाक़ दे उसके लिए ज़रूरी है कि बालिग़ और आक़िल हो लेकिन अगर दस साल का बच्चा अपनी बीवी को तलाक़ दे तो उसके बारे में एहतियात का ख़्याल रखें और इसी तरह ज़रूरी है कि मर्द अपने इख़्तियार से तलाक़ दे और अगर उसे अपनी बीवी को तलाक़ देने पर मजबूर किया जाए तो तलाक़ बातिल है और यह भी ज़रूरी है कि वह शख़्स तलाक़ की नीयत रखता हो लिहाज़ा अगर वह मसलन मज़ाक में तलाक़ का सीग़ा कहे तो तलाक़ सहीह नहीं है।

2508. ज़रूरी है कि औरत तलाक़ के वक़्त हैज़ या निफ़ास से पाक हो और उसके शौहर ने उस पाकी के दौरान उस से हमबिस्तरी न की हो और उन दो शर्तों की तफ़्सील आइन्दा मसाइल में बयान की जायेगी।

2509. औरत को हैज़ या निफ़ास की हालत में तीन सूरतों में तलाक़ देना सहीह हैः-

1. शौहर ने निकाह के बाद उस से हमबिस्तरी न की हो।

2. मअलूम हो कि वह हामिला है। और अगर यह बात मअलूम न हो और शौहर उसे हैज़ की हालत में तलाक़ दे दे और बाद में शौहर को पता चले कि वह हामिला थी तो वह तलाक़ बातिल है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उसे दोबारा तलाक़ दे।

3. मर्द ग़ैर हाज़िरी या ऐसी ही किसी और वजह से अपनी बीवी से जुदा हो और यह मअलूम न हो सकता हो कि औरत हैज़ या निफ़ास से पाक है या नहीं। लेकिन उस सूरत में एहतियाते लाज़िम की बिना पर ज़रूरी है कि मर्द इन्तिज़ार करे ताकि बीवी से जुदा होने के बाद कम अज़ कम एक महीना गुज़र जाए उसके बाद उसे तलाक़ दे।

2510. अगर कोई शख़्स औरत को हैज़ से पाक समझे और उसे तलाक़ दे दे और बाद में पता चले कि वह हैज़ की हालत में थी तो उसकी तलाक़ बातिल है और अगर शौहर उसे हैज़ की हालत में समझे और तलाक़ दे दे और बाद में मअलूम हो कि वह पाक थी तो तलाक़ सहीह है।

2511. जिस शख़्स को इल्म हो कि उसकी बीवी हैज़ या निफ़ास की हालत में है अगर वह बीवी से जुदा हो जाए मसलन सफ़र इख़्तियार करे और उसे तलाक़ देना चाहता हो तो उसे चाहिए कि उतनी मुद्दत सब्र करे जिस में उसे यक़ीन या इत्मीनान हो जाए कि वह औरत हैज़ या निफ़ास से पाक हो गई है और जब वह यह जान ले कि औरत पाक है उसे तलाक़ दे और अगर उसे शक हो तब भी यही हुक्म है लेकिन इस सूरत में ग़ायब शख़्स की तलाक़ के बारे में मस्अला 2509 में जो बयान हुई है उन का ख्याल रखे।

2512. जो शख़्स अपनी बीवी से जुदा हो अगर उसे तलाक़ देना चाहे तो अगर वह मअलूम कर सकता हो कि उसकी बीवी हैज़ या निफ़ास की हालत में है या नहीं तो अगरचे हैज़ की आदत या उन दूसरी निशानियों को जो शरअ में मुअय्यन हैं देखते हुए उसे तलाक़ दे और बाद में मअलूम हो कि वह हैज़ या निफ़ास की हालत में थी तो उसकी तलाक़ सहीह है।

2513. अगर कोई शख़्स अपनी बीवी से जो हैज़ या निफ़ास से पाक हो हम बिस्तरी करे और फिर उसे तलाक़ देना चाहे तो ज़रूरी है कि सब्र करे हत्ता कि उसे दोबारा हैज़ आ जाए और फिर वह पाक हो जाए लेकिन अगर ऐसी औरत को हम बिस्तरी के बाद तलाक़ दी जाए जिसकी उम्र नौ साल से कम हो या मअलूम हो कि वह हामिला है तो उसमें कोई इश्काल नहीं और अगर औरत याइसा हो तब भी यही हुक्म है।

2514. अगर कोई शख़्स ऐसी औरत से हमबिस्तरी करे जो हैज़ या निफ़ास से पाक हो और उसी पाकी की हालत में उसे तलाक़ दे दे और बाद में मअलूम हो कि वह तलाक़ देने के वक़्त हामिला थी तो वह तलाक़ बातिल है और एहतियाते मुस्तहब यह है कि शौहर उसे दोबारा तलाक़ दे।

2515. अगर कोई शख़्स ऐसी औरत से हमबिस्तरी करे जो हैज़ या निफ़ास से पाक हो फिर वह उस से जुदा हो जाए मसलन सफ़र इख़्तियार करे। लिहाज़ा अगर वह चाहे कि सफ़र के दौरान उसे तलाक़ दे और उसकी पाकी या ना पाकी के बारे में जान सकता हो तो ज़रूरी है कि इतनी मुद्दत सब्र करे कि औरत को उसकी पाकी के बाद हैज़ आए और वह दोबारा पाक हो जाए और एहतियाते वाजिब यह है कि वह मुद्दत एक महीने से कम न हो।

2516. अगर कोई मर्द ऐसी औरत को तलाक़ देना चाहता हो जिस पैदायशी तौर पर या किसी बीमारी की वजह से हैज़ न आता हो और उस उम्र की दूसरी औरतों को हैज़ आता हो तो ज़रूरी है कि जब उसने ऐसी औरत से जिमाअ किया हो उस वक़्त से तीन महीने तक उससे जिमाअ न करे और बाद में उसे तलाक़ दे दे।

2517. ज़रूरी है कि तलाक़ का सीग़ा सहीह अरबी में लफ़्ज़े तालिक़ुन के साथ पढ़ा जाए और दो आदिल मर्द उसे सुनें। अगर शौहर खुद तलाक़ का सीग़ा पढ़ना चाहे और मिसाल के तौर पर उसकी बीवी का नाम फ़ातिमा हो तो ज़रूरी है कि कहे – ज़ौजती फ़ातिमतो तालिक़ुन और अगर औरत मुअय्यन हो तो उसका नाम लेना लाज़िम नहीं है। और अगर मर्द अरबी में तलाक़ का सीग़ा न पढ़ सकता हो और वकील भी न बना सके तो वह जिस ज़बान में चाहे हर उस लफ़्ज़ के ज़रिये तलाक़ दे सकता है और जो अरबी लफ़्ज़ के हम मअना हो।

2518. जिस औरत से मुतअ किया गया हो मसलन एक साल या एक महीने के लिए उस से निकाह किया गया हो उसे तलाक़ देने का कोई सवाल नहीं। और उसका आज़ाद होना इस बात पर मुनहसिर है कि या तो मुतअ की मुद्दत ख़त्म हो जाए या मर्द उसे मुद्दत बख़्श दे और वह इस तरह से उससे कहे, मैने मुद्दत तुझे बख़्श दी । और किसी को इस पर गवाह क़रार देना और उस औरत का हैज़ से पाक होना लाज़िम नहीं।

तलाक़ की इद्दत

2519. जिस लड़की की उम्र (पूरे) नौ साल न हुई हो – और जो औरत याइसा हो चुकी हो – उस की कोई इद्दत नहीं होती। यअनी अगरचे शौहर ने उससे मुजामिअत की हो, तलाक़ के बाद वह फ़ौरन दूसरा शौहर कर सकती है।

2520. जिस लड़की की उम्र (पूरे) नौ साल हो चुकी हो और जो औरत याइसा न हो उसका शौहर उस से मुजामिअत करे तो अगर वह उसे तलाक़ दे तो ज़रूरी है कि वह (लड़की या) औरत तलाक़ के बाद इद्दत रखे और आज़ाद औरत की इद्दत यह है कि जब उसका शौहर उसे पाकी की हालत में तलाक़ दे तो उसके बाद वह इतनी मुद्दत सब्र करे कि दो दफ़्आ हैज़ से पाक हो जाए और जूं ही उसे तीसरी दफ़्आ हैज़ आए तो उसकी इद्दत ख़त्म हो जाती है और वह दूसरा निकाह कर सकती है लेकिन अगर शौहर औरत से मुजामिअत करने से पहले उसे तलाक़ दे दे तो उसके लिए कोई इद्दत नहीं यअनी वह तलाक़ के फ़ौरन बाद दूसरा निकाह कर सकती है लेकिन अगर शौहर की मनी जज़्ब या उस जैसी किसी वजह से उसकी शर्मगाह में दाख़िल हुई हो तो उस सूरत में अज़हर की बिना पर ज़रूरी है कि वह इद्दत रखे।

2521. जिस औरत को हैज़ न आता हो लेकिन उस का सिन उन औरतों जैसा हो जिन्हें हैज़ आता हो अगर उसका शौहर मुजामिअत करने के बाद उसे तलाक़ दे दे तो ज़रूरी है कि तलाक़ के बाद तीन महीने की इद्दत रखे।

2522. जिस औरत की इद्दत तीन महीने हो अगर उसे चांद की पहली तारीख़ को तलाक़ दी जाए तो ज़रूरी है कि तीन क़मरी महीने तक यअनी जब चांद देखा जाए उस वक़्त से तीन महीने तक इद्दत रखे और अगर उसे महीने के दौरान (किसी और तारीख़ को) तलाक़ दी जाए तो ज़रूरी है कि उस महीने के बाक़ी दिनों में उस के बाद आने वाले दो महीने और चौथे महीने के उतने दिन जितने दिन पहले महीने से कम हो इद्दत रखे ताकि तीन महीने मुकम्मल हो जायें मसलन अगर उसे महीने की बीसवीं तारीख़ को ग़रुब के वक़्त तलाक़ दी जाए और यह महीना उन्तीस दिन का हो तो ज़रूरी है कि नौ दिन उस महीने के और उसके बाद दो महीने और उसके बाद चौथे महीने के बीस दिन इद्दत रखे बल्कि एहतियाते वाजिब है कि चौथे महीने के एक्कीस दिन इद्दत रखे ताकि पहले महीने के जितने दिन इद्दत रखी है उन्हें मिलाकर दिनों की तअदाद तीस हो जाए।

2523. अगर हामिला औरत को तलाक़ दी जाए तो उसकी इद्दत वज़ए हम्ल या इस्क़ाते हम्ल तक है लिहाज़ा मिसाल के तौर पर अगर तलाक़ के एक घंटे बाद बच्चा पैदा हो जाए तो उस औरत की इद्दत ख़त्म हो जायेगी। लेकिन यह हुक्म उस सूरत में है जब वह बच्चा साहिबए इद्दत का शरई बेटा हो लिहाज़ा अगर औरत ज़िना से हामिला हुई हो और शौहर उसे तलाक़ दे तो उसकी इद्दत बच्चे के पैदा होने से ख़त्म नहीं होती।

2524. जिस लड़की ने उम्र के नौ साल मुकम्मल कर लिये हों और जो औरत याइसा न हो अगर वह मिसाल के तौर पर किसी शख़्स से एक महीने या एक साल के लिए मुतअ करे तो अगर उस का शौहर उस से मुजामिअत करे और उस औरत की मुद्दत तमाम हो जाए या शौहर उसे मुद्दत बख़्श दे तो ज़रूरी है कि वह इद्दत रखे। पस अगर उसे हैज़ आए तो एहतियात की बिना पर ज़रूरी है कि वह हैज़ के बराबर इद्दत रखे और निकाह न करे और अगर हैज़ न आए तो पैंतालिस दिन शौहर करने से इजतिनाब करे और हामिला होने की सूरत में अज़हर की बिना पर उसकी इद्दत बच्चे की पैदाइश या इस्क़ात होने तक है। अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि जो मुद्दते वज़ए हम्ल या पैंतालिस दिन में से ज़्यादा हो उतनी मुद्दत के लिए इद्दत रखे।

2525. तलाक़ की इद्दत उस वक़्त शुरूउ होती है जब सीग़ा का पढ़ना ख़त्म हो जाता है ख़्वाह औरत को पता चले या न चले कि उसे तलाक़ हो गई है पस अगर उसे इद्दत के (के बराबर मुद्दत) गुज़रने के बाद पता चले कि उसे तलाक़ हो गई है तो ज़रूरी नहीं कि वह दोबारा इद्दत रखे।

वफ़ात की इद्दत

2526. अगर कोई औरत बेवा हो जाए तो उस सूरत में जब कि वह आज़ाद हो अगर वह हामिला न हो तो ख़्वाह वह याइसा हो या शौहर ने उस से मुतअ किया हो या शौहर ने उससे मिजामिअत न की हो ज़रूरी है कि चार महीने और दस दिन इद्दत रखे और अगर हामिला हो तो ज़रूरी है कि वज़्ए हम्ल तक इद्दत रखे लेकिन अगर चार महीने और दस दिन गुज़रने से पहले बच्चा पैदा हो जाए तो ज़रूरी है कि शौहर की मौत के बाद चार महीने तक सब्र करे और इस इद्दत को वफ़ात की इद्दत कहते हैं।

2527. जो औरत वफ़ात की इद्दत में हो उस के लिए रंग बिरंगा लिबास पहनना, सुर्मा लगाना और इसी तरह दूसरे ऐसे काम जो ज़ीनत में शुमार होते हों हराम हैं।

2528. अगर औरत को यक़ीन हो जाए कि उस का शौहर मर चुका है और इद्दते वफ़ात तमाम होने के बाद वह दूसरा निकाह करे और फिर उसे मअलूम हो कि उसके शौहर की मौत बाद में वाक़ेअ हुई है तो ज़रूरी है कि दूसरे शौहर से अलायहदगी इख़्तियार करे और एहतियात की बिना पर उस सूरत में जबकि वह हामिला हो वज़ए हम्ल तक दूसरे शौहर के लिए वतीए शुब्हा की इद्दत रखे -- जो कि तलाक़ की इद्दत की तरह है। और उसके बाद पहले शौहर के लिए इद्दते वफ़ात रखे और अगर हामिला न हो तो पहले शौहर के लिए इद्दते वफ़ात और उसके बाद दूसरे शौहर के लिए वतीए शुब्हा की इद्दत रखे।

2529. जिस औरत का शौहर लापता हो या लापता होने के हुक्म में हो उसकी इद्दते वफ़ात शौहर की मौत की इत्तिला मिलने के वक़्त से शुरूउ होती है न कि शौहर की मौत के वक़्त से। लेकिन इस हुक्म का उस औरत के लिए होना जो नाबालिग़ हो या पागल हो इशकाल है।

2530. अगर औरत कहे कि मेरी इद्दत ख़त्म हो गई है तो उसकी बात क़ाबिले क़बूल है मगर यह कि वह ग़लत बयान मश्हूर हो तो उस सूरत में एहतियात की बिना पर उसकी बात क़ाबिले क़बूल नहीं है। मसलन वह कहे कि मुझे एक महीने में तीन दफ़्अ ख़ून आता है तो इस बात की तस्दीक़ नहीं की जायेगी। मगर यह कि उस की सहेलियां और रिश्तेदार औरतें इस बात की तस्दीक़ करें कि उसकी हैज़ की आदत ऐसी ही थी।

तलाक़े बाइन और तलाक़े रज्ई

2531. तलाक़े बाइन वह है कि जिस के बाद मर्द अपनी औरत की तरफ़ रुजूउ करने का हक़ नहीं रखता यअनी कि बग़ैर निकाह के दोबारा उसे अपनी बीवी नहीं बना सकता और इस तलाक़ की छः क़िस्में हैं –

1. उस औरत को दी गई तलाक़ जिसकी उम्र अभी नौ साल न हुई हो।

2. उस औरत को दी गई तलाक़ जो याइसा हो।

3. उस औरत को दी गई तलाक़ जिस के शौहर ने निकाह के बाद उससे जिमाअ न किया हो।

4. जिस औरत को तीन दफ़्आ तलाक़ दी गई हो उसे दी जाने वाली तीसरी तलाक़।

5. ख़ुलअ और मुबारात की तलाक़।

6. हाकिमे शर्अ का उस औरत को तलाक़ देना जिसका शौहर न उसके अख़राजात बर्दाश्त करता हो न उसे तलाक़ देता हो, जिनके अहकाम बाद में बयान किये जायेंगे।

और इन तलाक़ों के अलावा जो तलाक़ें हैं वह रजई हैं जिसका मतलब यह है कि जब तक औरत इद्दत में हो शौहर उस से रुजूउ कर सकता है।

2532. जिस शख़्स ने अपनी औरत को रजई तलाक़ दी हो उसके लिए उस औरत को उस घर से निकाल देना या जिस में वह तलाक़ देने के वक़्त मुक़ीम थी हराम है अलबत्ता बअज़ मौक़ों पर – जिन में से एक यह है कि औरत ज़िना करे तो उसे घर से निकाल देने में कोई इश्काल नहीं। नीज़ यह भी हराम है कि औरत ग़ैर ज़रूरी कामों के लिए शौहर की इजाज़त के बग़ैर उस घर से बाहर जाए।

रुजू करने के अहकाम

2533. रज्ई तलाक़ में मर्द दो तरीक़ों से औरत की तरफ़ रुजूउ कर सकता हैः-

1. ऐसी बातें करे जिस से मुतरश्शेह हो कि उसने उसे दोबारा अपनी बीवी बना लिया है।

2. कोई काम करे और उस काम से रुजूउ का क़स्द करे और ज़ाहिर यह है कि जिमाअ करने से रुजूउ साबित हो जाता है ख़्वाह उसका क़स्द रुजूउ करने का न भी हो। बल्कि बअज़ (फ़ुक़हा) का कहना है कि अगरचे रुकूउ का क़स्द न हो सिर्फ़ लिपटाने और बोसा लेने से रुजूउ साबित हो जाता है अलबत्ता यह क़ौल इश्काल से ख़ाली नहीं है।

2534. रुजूउ करने में मर्द के लिए लाज़िम नहीं कि किसी को गवाह बनाए या अपनी बीवी को (रुजूउ के मुतअल्लिक़) इत्तिलाअ दे बल्कि अगर बग़ैर इस के कि किसी को पता चले वह खुद ही रुजूउ कर ले तो उसका रुजूउ करना सहीह है। लेकिन अगर इद्दत ख़त्म हो जाने के बाद मर्द कहे कि मैंने इद्दत के दौरान ही रुजूउ कर लिया था तो लाज़िम है कि इस बात को साबित करे।

2535. जिस मर्द ने औरत को रज्ई तलाक़ दी हो अगर वह उस से कुछ माल ले ले और उस से मुसालहत कर ले कि अब तुझ से रुजूउ नहीं करूंगा तो अगरचे यह मुसालहत दुरूस्त है और मर्द पर वाजिब है कि रुजूउ न करे लेकिन इस से मर्द के रुजूउ करने का हक़ ख़त्म नहीं होता और अगर वह रुजूउ करे तो जो तलाक़ दे चुका है वह अलायहदगी का मूजिब नहीं बनती।

2536. अगर कोई शख़्स अपनी बीवी को दो दफ़्आ तलाक़ दे कर उसकी तरफ़ रुजूउ कर ले या उसे दो दफ़्आ तलाक़ दे और हर तलाक़ के बाद उस से निकाह करे या एक तलाक़ के बाद रुजूउ करे और दूसरी तलाक़ के बाद निकाह करे तो तीसरी तलाक़ के बाद वह उस मर्द पर हराम हो जायेगी लेकिन अगर औरत तीसरी तलाक़ के बाद किसी दूसरे मर्द से निकाह करे तो वह पांच शर्तों के साथ पहले मर्द पर हलाल होगी यअनी उस औरत से दोबारा निकाह कर सकेगा।

1. दूसरे शौहर का निकाह दाइमी हो। पस अगर मिसाल के तौर पर वह एक महीने या एक साल के लिए उस औरत से मुतअ कर ले तो उस मर्द से अलायहदगी के बाद पहला शौहर उस से निकाह नहीं कर सकता।

2. दूसरा शौहर जिमाअ करे और एहतियाते वाजिब यह है कि जिमाअ फ़ुर्ज़ में करे।

3. दूसरा शौहर उसे तलाक़ दे या मर जाए।

4. दूसरे शौहर की तलाक़ की इद्दत या वफ़ात की इद्दत ख़त्म हो जाए।

5. एहतियाते वाजिब की बिना पर दूसरा शौहर जिमाअ करते वक़्त बालिग़ हो।

तलाक़े ख़ुलअ

2537. उस औरत की तलाक़ को जो अपने शौहर की तरफ़ माइल न हो और उस से नफ़रत करती हो अपना महर या कोई और माल उसे बख़्श दे ताकि वह उसे तलाक़ दे दे तलाक़े ख़ुलअ कहते हैं। और तलाक़े ख़ुलअ में अज़हर की बिना पर मोतबर है कि औरत अपने शौहर से इस क़दर शदीद नफ़रत करती हो कि उसे वज़ीफ़ा ए ज़ौजीयत अदा न करने की धमकी दे।

2538. जब शौहर खुद तलाक़े ख़ुलअ का सीग़ा पढ़ना चाहे तो अगर उसकी बीवी का नाम मसलन फ़ातिमा हो तो एवज़ लेने के बाद कहे, ज़ौजती फ़ातिमतो ख़ालअतुहा अला मा बज़लत और एहतियाते मुस्तहब की बिना पर, हिया तालिक़ुन भी कहे यअनी मैंने अपनी बीवी फ़ातिमा को उस माल के एवज़ जो उसने मुझे दिया है तलाक़े ख़ुलअ दे रहा हूं और वह आज़ाद है। और अगर औरत मुअय्यन हो तो तलाक़े ख़ुलअ में और नीज़ तलाक़े मुबारत में उसका नाम लेना लाज़िम नहीं।

2539. अगर कोई औरत किसी शख़्स को वकील मुक़र्रर करे ताकि वह उस का महर उसके शौहर को बख़्श दे और शौहर भी उसी शख़्स को वकील मुक़र्रर करे ताकि वह उसकी बीवी को तलाक़ दे दे तो अगर मिसाल के तौर पर शौहर का नाम मौहम्मद औऱ बीवी का नाम फ़ातिमा हो तो वकील सीग़ा ए तलाक़ यूं पढ़े, अन मुवक्किलती फ़ातिमता बज़ल्तो महरहा ले मुवक्किली मोहम्मदिन लेयखलअहा अलैहे, और उसके बाद बिला फ़ासिला कहे, ज़ौजतो मुवक्किली ख़ालअतुहा अला मा बज़लत हिया तालिक़ुन,। और अगर औरत किसी को वकील मुक़र्रर करे कि उसके शौहर को महर के अलावा कोई और चीज़ बख़्श दे ताकि उस का शौहर उसे तलाक़ दे दे तो ज़रूरी है कि वकील लफ़्ज़े महरहा की बजाय उस चीज़ का नाम ले मसलन अगर औरत ने सौ रुपये दिये हों तो ज़रूरी है कि कहे, बज़लत मेअता रुपया।

तलाक़े मुबारत

2540. अगर मियां बीवी दोनों एक दूसरे को न चाहते हों और अगर एक दूसरे से नफ़रत करते हों और औरत मर्द को कुछ माल दे ताकि वह उसे तलाक़ दे दे तो उसे तलाक़े मुबारत कहते हैं।

2541. अगर शौहर मुबारत का सीग़ा पढ़ना चाहे तो अगर मसलन औरत का नाम फ़ातिमा हो तो ज़रूरी है कि कहे, बारातो ज़ौजती फ़ातिमता अला मा बज़लत, और एहतियाते लाज़िम की बिना पर, फ़हिया तालिक़ुन भी कहे। यअनी मैं और मेरी बीवी फ़ातिमा उस अता के मुक़ाबिल में जो उसने की है एक दूसरे से जुदा हो गए हैं पस वह आज़ाद है। और अगर वह शख़्स किसी को वकील मुक़र्रर करे तो ज़रूरी है कि वकील कहे, अनक़िबला मुवक्किली बारातो ज़ौजतहू फ़ातिमता अला मा बज़लत फ़हिया तालिक़ुन और दोनों सूरतों में कलिमा अला मा बज़लत की बजाय अगर बेमा बज़लत कहे तो कोई इश्काल नहीं है।

2542. ख़ुलअ और मुबारात की तलाक़ का सीग़ा अगर मुम्किन हो तो सहीह अरबी में पढ़ा जाना चाहिए और अगर मुम्किन न हो तो उसका हुक्म तलाक़ के हुक्म जैसा है जिसका बयान मस्अला 2517 में गुज़र चुका है। लेकिन अगर औरत मुबारात की तलाक़ के लिये शौहर को अपना माल बख़्श दे। मसलन उर्दू में कहे कि – मैंने तलाक़ लेने के लिये फ़लां माल तुम्हें बख़्श दिया, तो कोई इश्काल नहीं।

2543. अगर कोई औरत तलाक़े ख़ुलअ या तलाक़े मुबारात की इद्दत के दौरान अपनी बख़्शिश से फिर जाए तो शौहर उसकी तरफ़ रुजूउ कर सकता है और दोबारा निकाह के बग़ैर उसे अपनी बीवी बना सकता है।

2544. जो माल शौहर तलाक़े मुबारात देने के लिए ले ज़रूरी है कि वह औरत के महर से ज़्यादा न हो लेकिन तलाक़े खुलअ के सिलसिले में लिया जाने वाला माल अगर महर से ज़्यादा भी हो तो कोई इश्काल नहीं।

तलाक़ के मुख़्तलिफ़ अहकाम

2545. अगर कोई आदमी किसी ना महरम औरत से इस गुमान में जिमाअ करे कि वह उसकी बीवी है तो ख़्वाह औरत को इल्म हो कि वह उस का शौहर नहीं है या गुमान करे कि उस का शौहर है ज़रूरी है कि इद्दत रखे।

2546. अगर कोई आदमी किसी औरत से यह जानते हुए ज़िना करे कि वह उसकी बीवी नहीं है तो अगर औरत को इल्म हो कि वह आदमी उसका शौहर नहीं है उसके लिए इद्दत रखना ज़रूर नहीं। लेकिन अगर उसे शौहर होने का गुमान हो तो एहतियाते लाज़िम यह है कि वह औरत इद्दत रखे।

2547. अगर कोई शख़्स किसी औरत को वर्ग़लाए कि वह अपने शौहर से मुतअल्लिक़ इज़दिवाजी ज़िम्मेदारियां पूरी न करे ताकि इस तरह शौहर उसे तलाक़ देने पर मजबूर हो जाए और वह खुद उस औरत के साथ शादी कर सके तो तलाक़ और निकाह सहीह है लेकिन दोनों ने बहुत बड़ा गुनाह किया है।

2548. अगर औरत निकाह के सिलसिले में शौहर से शर्त करे कि अगर उसका शौहर सफ़र इख़्तियार करे या मसलन छः महीने उसे ख़र्च न दे तो तलाक़ का हक़ औरत को हासिल होगा तो यह शर्त बातिल है। लेकिन अगर शर्त करे कि अभी से शौहर की तरफ़ से वकील है कि अगर वह मुसाफ़िरत इख़्तियार करे या छः महीने तक उस के अख़राजात पूरे न करे तो वह अपने आप को तलाक़ देगी तो इसमें कोई इश्काल नहीं है।

2549. जिस औरत का शौहर लापता हो जाए अगर वह दूसरा शौहर करना चाहे तो ज़रूरी है कि मुज्तहिदे आदिल के पास जाए और उसके हुक्म के मुताबिक़ अमल करे।

2550. दीवाने के बाप दादा उसकी बीवी को तलाक़ दे सकते हैं।

2551. अगर बाप या दादा अपने नाबालिग़ लड़के (या पोते) का किसी औरत से मुतअ कर दें और मुतअ की मुद्दत में उस लड़के के मुकल्लफ़ होने की कुछ मुद्दत भी शामिल हो मसलन अपने चौदा साला लड़के का किसी औरत से दो साल के लिए मुतअ कर दे तो अगर उस में लड़के की भलाई हो तो वह (यअनी बाप या दादा) उस औरत की मुद्दत बख़्श सकते हैं लेकिन लड़के की दाइमी बीवी को तलाक़ नहीं दे सकते।

2552. अगर कोई शख़्स दो आदमियों को शरअ की मुक़र्रर कर्दा अलामत की रू से आदिल मसझे और अपनी बीवी को उनके सामने तलाक़ दे दे तो कोई और शख़्स जिसके नज़दीक उन दो आदमियों की अदालत साबित न हो उस औरत की इद्दत ख़त्म होने के बाद उस के साथ खुद निकाह कर सकता है या उसे किसी दूसरे के निकाह में दे सकता है अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस के साथ निकाह से इज्तिनाब करे और दूसरे का निकाह भी उस के साथ न करे।

2553. अगर कोई शख़्स अपनी बीवी के इल्म में लाए बग़ैर उसे तलाक़ दे दे तो अगर वह उसके अख़राजात उसी तरह से जिस तरह उस वक़्त देता था जब वह उसकी बीवी थी और मसलन एक साल के बाद उस से कहे कि, मैं एक साल हुआ तुझे तलाक़ दे चुका हूँ, और इस बात को शरअन साबित भी कर दे तो जो चीज़ें उसने इस मुद्दत में उस औरत को मुहैया की हों और वह उन्हें अपने इस्तेमाल में न लाई हो उससे वापस ले सकता है लेकिन जो चीज़ें उसने इस्तेमाल कर ली हों उनका मुतालबा नहीं कर सकता।