तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

ग़स्ब के अहकाम

ग़स्ब के मअनी यह हैं कि कोई शख़्स किसी के माल पर या हक़ पर ज़ुल्म (और धौंस या धांधली) के ज़रीए क़ाबिज़ हो जाए और यह बहुत बड़े गुनाहों में से एक गुनाह है जिसका मुर्तकिब क़ियामत के दिन सख़्त अज़ाब में गिरफ़्तार होगा। जनाबे रसूले अकरम स्वल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से रिवायत है, जो शख़्स किसी दूसरे की एक बालिश्त ज़मीन पर ग़स्ब करे क़ियामत के दिन उस ज़मीन को उसके सात तबक़ों समेत तौक़ की तरह उसकी गर्दन में डाल दिया जायेगा।

2554. अगर कोई शख़्स लोगों को मस्जिद या मदरसे या पुल या दूसरी ऐसी जगहों से जो रिफ़ाहे आम्मा के लिए बनाई गई हों इस्तिफ़ादा न करने दे तो उसने उनका हक़ ग़स्ब किया है। इसी तरह अगर कोई शख़्स मस्जिद में अपने (बैठने के) लिए जगह मुख़्तस करे और दूसरा कोई शख़्स उसे उस जगह से निकाल दे और उसे उस जगह से इस्तिफ़ादा न करने दे तो वह गुनाहगार है।

2555. अगर गिरवी रखवाने वाला और गिरवी रखने वाला यह तय करे कि जो चीज़ गिरवी रखी जा रही हो वह गिरवी रखने वाले या किसी तीसरे शख़्स के पास रखी जाए तो गिरवी रखवाने वाला उसका क़र्ज़ अदा करने से पहले उस चीज़ को वापस नहीं ले सकता और अगर वह चीज़ वापस ली हो तो ज़रूरी है कि फ़ौरन लौटा दे।

2556. जो माल किसी के पास गिरवी रखा गया हो अगर कोई और शख़्स उसे ग़स्ब कर ले तो माल का मालिक और गिरवी रखने वाला दोनों ग़ासिब से ग़स्ब की हुई चीज़ का मुतालबा कर सकते हैं और अगर वह चीज़ ग़ासिब से वापस ले लें तो वह गिरवी ही रहेगी और अगर वह चीज़ तलफ़ हो जाए और वह उस का एवज़ हासिल करें तो वह एवज़ भी अस्ली चीज़ की गिरवी रहेगा।

2557. अगर इंसान कोई चीज़ ग़स्ब करे तो ज़रूरी है कि उसके मालिक को लौटा दे और अगर वह चीज़ ज़ाए हो जाए और उसकी कोई क़ीमत हो तो ज़रूरी है कि उस का एवज़ मालिक को दे।

2558. जो चीज़ ग़स्ब की गई हो अगर उससे कोई नफ़्अ हो मसलन ग़स्ब की हुई भेड़ का बच्चा पैदा हो तो वह उसके मालिक का माल है नीज़ मिसाल के तौर पर अगर किसी ने कोई मकान ग़स्ब कर लिया हो तो ख़्वाह ग़ासिब उस मकान में न रहे ज़रूरी है कि उसका किराया मालिक को दे।

2559. अगर कोई शख़्स बच्चे या दीवाने से कोई चीज़ जो उस (बच्चे या दीवाने) का माल हो ग़स्ब करे तो ज़रूरी है कि वह चीज़ उसके सरपरस्त को दे दे और अगर वह चीज़ तलफ़ हो जाए तो ज़रूरी है कि उसका एवज़ दे।

2560. अगर दो आदमी मिलकर किसी चीज़ को ग़स्ब करें चुनांचे वह दोनों उस चीज़ पर तसल्लुत रखते हों तो उनमें से हर एक उस पूरी चीज़ का ज़ामिन है अगरचे उन में से हर एक जुदागाना तौर पर उसे ग़स्ब न कर सकता हो।

2561. अगर कोई शख़्स ग़स्ब की हुई चीज़ को किसी दूसरी चीज़ से मिला दे मसलन जो गेहूं ग़स्ब की हो उसे जौ से मिला दे तो अगर उसका जुदा करना मुम्किन हो तो ख़्वाह उस में ज़हमत ही क्यों न हो ज़रूरी है कि उन्हें एक दूसरे से अलायहदा करे और (ग़स्ब की हुई चीज़) उसके मालिक को वापस कर दे।

2562. अगर कोई शख़्स तिलाई चीज़ मसलन सोने की बालियों को ग़स्ब करे और उसके बाद उसे पिघला दे तो पिघलाने से पहले और पिघलाने के बाद की क़ीमत में जो फ़र्क़ हो ज़रूरी है कि वह मालिक को अदा करे चुनांचे अगर क़ीमत में जो फ़र्क़ पड़ा हो वह न देना चाहे और कहे कि मैं उसे पहले की तरह बना दूंगा तो मालिक मजबूर नहीं कि उस की बात क़बूल करे और मालिक भी उसे मजबूर नहीं कर सकता कि उसे पहले की तरह बना दे।

2563. जिस शख़्स ने कोई चीज़ ग़स्ब की हो अगर वह उसमें ऐसी तब्दीली करे कि उस चीज़ की हालत पहले से बेहतर हो जाए मसलन जो सोना ग़स्ब किया हो उस के बुन्दे बना दे तो अगर माल का मालिक उसे कहे कि मुझे माल इसी हालत में (यअनी बुन्दे की शक्ल में) दो तो ज़रूरी है कि उसे दे दे और जो ज़हमत उसने उठाई हो (यअनी बुन्दे बनाने पर जो महनत की हो) उसकी मज़दूरी नहीं ले सकता और इसी तरह वह यह हक़ नहीं रखता कि मालिक की इजाज़त के बग़ैर उस चीज़ को उसकी पहली हालत में ले आए लेकिन अगर उसकी इजाज़त के बग़ैर उस चीज़ को पहले जैसा कर दे या और किसी शक्ल में तब्दील करे तो मअलूम नहीं है कि दोनों सूरतों में क़ीमत का जो फ़र्क़ है उस का ज़ामिन है या (नहीं)।

2564. जिस शख़्स ने कोई चीज़ ग़स्ब की हो अगर वह उसमें कोई ऐसी तब्दीली करे कि उसकी हालत पहले से बेहतर हो जाए और साहबे माल उसे उस चीज़ की पहली हालत में वापस करने को कहे तो उसके वाजिब है कि उसे पहली हालत में ले आए और अगर तब्दीली करने की वजह से उस चीज़ की क़ीमत पहली हालत से कम हो जाए तो ज़रूरी है कि उसका फ़र्क़ मालिक को दे लिहाज़ा अगर कोई शख़्स ग़स्ब किए हुए सोने का हार बना ले और उस सोने का मालिक कहे कि तुम्हारे लिए लाज़िम है कि उसे पहली शक्ल में ले आओ तो अगर पिघलाने के बाद सोने की क़ीमत उससे कम हो जाए जितनी हार बनाने से पहले थी तो ग़ासिब के लिए ज़रूरी है कि क़ीमतों मे जितना फ़र्क़ हो उसके मालिक को दे।

2565. अगर कोई शख़्स उस ज़मीन में जो उसने ग़स्ब की हो खेती बाड़ी करे या दरख़्त लगाए तो ज़िराअत, दरख़्त और फल खुद उसका माल है और ज़मीन का मालिक इस बात पर राज़ी न हो कि दरख़्त उस ज़मीन में रहे तो जिसने वह ज़मीन ग़स्ब की हो ज़रूरी है कि ख़्वाह ऐसा करना उसके लिए नुक़्सानदेह ही क्यों न हो वह फ़ौरन अपनी ज़िराअत या दरख़्तों को ज़मीन से उखेड़ ले नीज़ ज़रूरी है कि जितना मुद्दत ज़िराअत और दरख़्त उस ज़मीन में रहे हों उतनी मुद्दत का किराया ज़मीन के मालिक को दे और जो ख़राबियां ज़मीन में पैदा हुई हों उन्हें दुरूस्त करे मसलन जहां दरख़्तों को उखेड़ने से ज़मीन में गढ़े पड़ गए हों उस जगह को हमवार करे और अगर उन ख़ारबियों की वजह से ज़मीन की क़ीमत पहले से कम हो जाए तो ज़रूरी है कि क़ीमत में जो फ़र्क़ पड़े वह भी अदा करे और वह ज़मीन के मालिक को इस बात पर मजबूर नहीं कर सकता कि ज़मीन उसके हाथ बेच दे या किराये पर दे दे नीज़ ज़मीन का मालिक भी उसे मजबूर नहीं कर सकता कि दरख़्त या ज़िराअत उसके हाथ बेच दे।

2566. अगर ज़मीन का मालिक इस बात पर राज़ी हो जाए कि ज़िराअत और दरख़्त उसकी ज़मीन में रहे तो जिस शख़्स ने ज़मीन ग़स्ब की हो उसके लिए लाज़िम नहीं कि ज़िराअत और दरख़्तों को उखेड़े लेकिन ज़रूरी है कि जब ज़मीन ग़स्ब की हो उस वक़्त से लेकर मालिक के राज़ी होने तक की मुद्दत का ज़मीन का किराया दे।

2567. जो चीज़ किसी ने ग़स्ब की हो अगर वह तलफ़ हो जाए तो अगर वह चीज़ गाय और भेड़ की तरह की हो जिनकी क़ीमत उनकी ज़ाती ख़सूसीयात की बिना पर उक़ला की नज़र में फ़र्दन फ़र्दन मुख़्तलिफ़ होती है तो ज़रूरी है कि ग़ासिब उस चीज़ की क़ीमत अदा करे और अगर उस वक़्त और ज़रूरत मुख़्तलिफ़ होने की वजह से उस की बाज़ार की क़ीमत बदल गई हो तो ज़रूरी है कि वह क़ीमत दे जो तलफ़ होने के वक़्त थी और एहतियाते मुस्तहब यह है कि ग़स्ब करने के वक़्त से लेकर तलफ़ होने तक उस चीज़ की जो ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत रही हो वह दे।

2568. जो चीज़ किसी ने ग़स्ब की हो अगर वह तलफ़ हो जाए तो अगर वह गेहूं और जौ की मानिन्द हो जिनकी फ़र्दन फ़र्दन क़ीमत का ज़ाती ख़ुसूसीयात की बिना पर बाहम फ़र्क़ नहीं होता हो ज़रूरी है कि (ग़ासिब ने) जो चीज़ ग़स्ब की हो उसी जैसी चीज़ मालिक को दे लेकिन जो चीज़ दे ज़रूरी है कि उसकी क़िस्म अपनी ख़ुसूसीयात में उस ग़स्ब की हुई चीज़ की क़िस्म के मानिन्द हो जो कि तलफ़ हो गई है मसलन अगर बढ़िया क़िस्म का चावल ग़स्ब किया था तो घटिया क़िस्म का नहीं दे सकता।

2569. अगर एक शख़्स भेड़ जैसी कोई चीज़ ग़स्ब करे और वह तलफ़ हो जाए तो अगर उसकी बाज़ार की क़ीमत में फ़र्क़ न पड़ा हो लेकिन जितनी मुद्दत में मसलन फ़र्बेह हो गई हो और फिर तलफ़ हो जाए तो ज़रूरी है कि फ़र्बेह होने के वक़्त की क़ीमत अदा करे।

2570. जो चीज़ किसी ने ग़स्ब की हो अगर कोई और शख़्स वही चीज़ उससे ग़स्ब करे और फिर वह तलफ़ हो जाए तो माल का मालिक उन दोनों में से हर एक से उसका एवज़ ले सकता है या उन दोनों में से हर एक से उसके एवज़ की कुछ मिक़्दार का मुतालबा कर सकता है लिहाज़ा अगर माल का मालिक उस का एवज़ पहले ग़ासिब से ले ले तो पहले ग़ासिब ने जो कुछ दिया हो वह दूसरे ग़ासिब से ले सकता है। लेकिन अगर माल का मालिक उसका एवज़ दूसरे ग़ासिब से ले ले तो उसने जो कुछ दिया है उसका मुतालबा दूसरा ग़ासिब पहले ग़ासिब से नहीं कर सकता।

2571. जिस चीज़ को बेचा जाए अगर उसमें मुआमले की शर्तों में से कोई एक मौजूद न हो मसलन जिस चीज़ की ख़रीद व फ़रोख़्त वज़्न कर के करनी ज़रूरी हो अगर उस का मुआमला बग़ैर वज़्न किये किया जाए तो मुआमला बातिल है और अगर बेचने वाला और ख़रीदार मुआमले से क़ता ए नज़र इस बात पर रज़ामन्द हों कि एक दूसरे के माल में तसर्रूफ़ करें तो कोई इश्काल नहीं वर्ना जो चीज़ उन्होंने एक दूसरे से ली हो वह ग़स्बी माल की मानिन्द है और उनके लिए ज़रूरी है कि एक दूसरे की चीज़ें वापस कर दें और अगर दोनों में से जिस के भी हाथों दूसरे का माल तलफ़ हो जाए तो ख़्वाह उसे मअलूम हो या न हो कि मुआमला बातिल था ज़रूरी है कि उस का एवज़ दे।

2572. जब एक शख़्स कोई माल किसी बेचने वाले से इस मक़्सद से ले कि उसे देखे या कुछ मुद्दत अपने पास रखे ताकि अगर पसन्द आए तो खरीद ले तो अगर वह माल तलफ़ हो जाए तो मश्हूर क़ौल की बिना पर ज़रूरी है कि उसका एवज़ उसके मालिक को दे।

गुमशुदा माल पाने के अहकाम

2573. अगर किसी शख़्स को किसी दूसरे का गुमशुदा ऐसा माल मिले जो हैवानात में से न हो और जिसकी कोई ऐसी निशानी भी न हो जिसके ज़रीए उसके मालिक का पता चल सके तो ख़्वाह उसकी क़ीमत एक दिरहम 12 चने सिक्केदार चांदी से कम हो या न हो वह अपने लिये ले सकता है लेकिन एहतियाते मुस्तहब है कि वह शख़्स उस माल को उसके मालिक की तरफ़ से फ़क़ीरों को सदक़ा कर दे।

2574. अगर कोई इंसान कहीं गिरी हुई चीज़ पाए जिसकी क़ीमत एक दिरहम से कम हो तो अगर उसका मालकि मअलूम हो लेकिन इंसान को यह इल्म न हो कि वह उसके उठाने पर राज़ी है या नहीं तो वह उसकी इजाज़त के बग़ैर उस चीज़ को नहीं उठा सकता और अगर उसके मालिक का इल्म न हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसके मालिक की तरफ़ से सदक़ा कर दे और जब भी उसका मालिक मिले और सदक़ा देने पर राज़ी न हो तो उसे उसका एवज़ दे दे।

2575. अगर कोई शख़्स एक ऐसी चीज़ पाए जिस पर कोई ऐसी निशानी हो जिस के ज़रीए उसके मालिक का पता चलाया जा सके तो अगरचे उसे मअलूम हो कि उसका मालिक एक ऐसा काफ़िर है जिसका माल मोहतरम है तो उस सूरत में कि उस चीज़ की क़ीमत एक दिरहम तक पहुंच जाए तो ज़रूरी है कि जिस दिन वह चीज़ मिली हो उससे एक साल तक लोगों की बैठकों (या मजलिसों) में उसका ऐलान करे।

2576. अगर इंसान खुद ऐलान न करना चाहे तो ऐसे आदमी को अपनी तरफ़ से ऐलान करने के लिए कह सकता है जिसके मुतअल्लिक़ उसे इत्मीनान हो कि वह ऐलान कर देगा।

2577. अगर मज़कूरा शख़्स एक साल तक ऐलान करे और माल का मालिक न मिले तो उस सूरत में जब कि वह माल हरमे पाक (मक्का) के अलावा किसी जगह से मिला हो वह उसे उसके मालिक के लिए अपने पास रख सकता है ताकि जब भी वह मिले उसे दे दे या माल के मालिक की तरफ़ से फ़क़ीरों को सदक़ा कर दे। और एहतियाते लाज़िम यह है कि वह खुद न ले और अगर वह माल उसे हरमे पाक में मिला हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसे सदक़ा कर दे।

2578. अगर एक साल तक ऐलान कर ने के बाद भी माल का मालिक न मिले और जिसे वह माल मिला हो वह उसके मालिक के लिए उसे अपने पास रख ले (यअनी जब मालिक मिलेगा उसे दे दूंगा) और वह माल तलफ़ हो जाए तो अगर उसने माल की निगहदाश्त में कोताही न बरती हो और तअद्दी भी न की हो तो फिर वह ज़िम्मेदार नहीं है लेकिन अगर वह माल उस के मालिक की तरफ़ से सदक़ा कर चुका हो तो माल के मालिक को इख़्तियार है कि उस सदक़े पर राज़ी हो जाए या अपने माल के एवज़ का मुतालबा करे और सदक़े का सवाब सदक़ा करने वाले को मिलेगा।

2579. जिस शख़्स को कोई माल मिला हो अगर वह उस तरीक़े के मुताबिक़ जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है अमदन ऐलान न करे तो पहले (ऐलान न कर के अगरचे) उसने गुनाह किया है लेकिन अब उसे एहतिमाल हो कि (ऐलान करना) मुफ़ीद होगा तो फिर भी उस पर वाजिब है कि ऐलान करे।

2580. अगर दीवाने या नाबालिग़ बच्चे को कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जिसमें अलामत मौजूद हो और उसकी क़ीमत एक दिरहम के बराबर हो तो उसका सरपरस्त ऐलान कर सकता है। बल्कि अगर वह चीज़ सरपरस्त ने बच्चे या दीवाने से ले ली हो तो उस पर वाजिब है कि ऐलान करे। और अगर एक साल तक ऐलान करे फिर भी माल का मालिक न मिले तो ज़रूरी है कि जो कुछ मस्अला 2577 में बताया गया है उसके मुताबिक़ अमल करे।

2581. अगर इंसान उस साल के दौरान जिसमें वह (मिलने वाले माल के बारे में) ऐलान कर रहा हो माल के मालिक के मिलने से ना उम्मीद हो जाए तो – एहतियात की बिना पर – ज़रूरी है कि हाकिमे शर्अ की इजाज़त से उस माल को सदक़ा कर दे।

2582. अगर उस साल के दौरान जिसमें (इंसान मिलने वाले माल के बारे में) ऐलान कर रहा हो वह माल तलफ़ हो जाए तो अगर उस शख़्स ने उस माल की निगहदाश्त में कोताही की हो या तअद्दी यअनी बेजा इस्तेमाल करे तो वह ज़ामिन है कि उसका एवज़ उसके मालिक को दे और ज़रूरी है कि ऐलान करता रहे और अगर कोताही या तअद्दी न की हो तो फिर उस पर कुछ वाजिब नहीं है।

2583. अगर कोई माल जिस पर को निशानी (या मारका) हो और उसकी क़ीमत एक दिरहम तक पहुंचती हो ऐसी जगह मिले जिसके बारे में मअलूम हो कि ऐलान के ज़रीए उसका मालिक नहीं मिलेगा तो ज़रूरी है कि (जिस शख़्स को वह माल मिला हो) वह पहले दिन ही उसे – एहतियाते लाज़िम की बिना पर हाकिमे शर्अ की इजाज़त से उसके मालिक की तरफ़ से फ़क़ीरों को सदक़ा कर दे और ज़रूरी नहीं कि वह साल ख़त्म होने तक इन्तिज़ार करे।

2584. अगर किसी शख़्स को कोई ऐसी चीज़ मिले और वह उसे अपना माल समझते हुए उठा ले और बाद में उसे पता चले कि वह उस का माल नहीं है तो जो अहकाम इससे पहले वाले मसाइल में बयान किये गए हैं उन्हीं के मुताबिक़ अमल करे।

2585. जो चीज़ मिली हो ज़रूरी है कि उसका इस तरह ऐलान किया जाए कि अगर उस का मालिक सुने तो उसे ग़ालिब गुमान हो कि वह चीज़ उसका माल है और ऐलान करने में मुख़्तलिफ़ मवाक़े के लिहाज़ से फ़र्क़ होता है मसलन बाज़ औक़ात इतना ही काफ़ी है कि, मुझे कोई चीज़ मिली है, लेकिन बाज़ दीगर सूरतों में ज़रूरी है कि उस चीज़ की जिन्स का तअय्युन करे मसलन यह कहे कि, सोने का एक टुकड़ा मुझे मिला है, और बाज़ सूरतों में उस चीज़ की बाज़ ख़ुसूसीयात का भी इज़ाफ़ा ज़रूरी है मसलन कहे, सोने की बालियां, मुझे मिली हैं, लेकिन बहरहाल ज़रूरी है कि उस चीज़ की तमाम ख़ुसूसीयात का ज़िक्र न करे त कि वह चीज़ मुअय्यन हो जाए।

2586. अगर किसी को कोई चीज़ मिल जाए और दूसरा शख़्स कहे कि यह मेरा माल है और उसकी निशानियां भी बता दे तो वह चीज़ उस दूसरे शख़्स को उस वक़्त देना ज़रूरी है जब उसे इत्मीनान हो जाए कि यह उसी का माल है। और यह ज़रूरी नहीं कि वह शख़्स ऐसी निशानियां बताए जिनकी तरफ़ उमूमन माल का मालिक भी तवज्जोह नहीं देता।

2587. किसी शख़्स को जो चीज़ मिली हो उसकी क़ीमत एक दिरहम तक पहुंचे तो अगर वह ऐलान न करे और उस चीज़ को मस्जिद या किसी दूसरी जगह जहां लोग जमा होते हों रख दे और वह चीज़ तलफ़ हो जाए या कोई दूसरा शख़्स उठा ले तो जिस शख़्स को वह चीज़ पड़ी हुई मिली हो वह ज़िम्मेदार है।

2588. अगर किसी शख़्स को कोई चीज़ मिल जाए जो एक साल तक बाक़ी न रहती हो तो ज़रूरी है कि उन तमाम ख़ुसूसीयात के साथ जब तक की वह बाक़ी रहे उस चीज़ की हिफ़ाज़त करे जो उसकी क़ीमत बाक़ी रखने में अहम्मीयत रखती हो और एहतियाते लाज़िम यह है कि उस मुद्दत के दौरान इसका ऐलान भी करता रहे और अगर उसका मालिक न मिले तो एहतियात की बिना पर – हाकिमे शर्अ या उसके वकील की इजाज़त से उसकी क़ीमत का तअय्युन करे और उसे बेच दे और उन पैसों को अपने पास रखे और उसके साथ साथ ऐलान भी जारी रखे और अगर एक साल तक उसका मालिक न मिले तो ज़रूरी है कि जो कुछ मस्अला 2577 में बताया गया है उसके मुताबिक़ अमल करे।

2589. जो चीज़ किसी को पड़ी हुई मिली हो अगर वुज़ू करते वक़्त या नमाज़ पढ़ते वक़्त वह उसके पास हो और अगर वह मालिक के मिलने की सूरत में उसे न लौटाना चाहता हो तो उसका वूज़ू और नमाज़ बातिल नहीं होगी।

2590. अगर किसी शख़्स का जूता उठा लिया जाए और उसकी जगह किसी और का जूता रख दिया जाए और अगर वह शख़्स जानता हो कि जो जूता रखा है वह उस शख़्स का माल है जो उसका जूता ले गया है और वह इस बात पर राज़ी हो कि जो जूता वह ले गया है उसके एवज़ उसका जूता रख ले तो वह अपने जूते के बजाए वह जूता रख सकता है और इसी तरह अगर वह शख़्स जानता हो कि वह शख़्स उसका जूता नाहक़ और ज़ुल्मन ले गया है तब भी यही हुक्म है लेकिन इस सूरत में ज़रूरी है कि उस जूते की क़ीमत उसके अपने जूते की क़ीमत से ज़्यादा न हो वर्ना ज़्यादा क़ीमत के मुतअल्लिक़ मज़्हूलुल मालिक का हुक्म जारी होगा और इन दो सूरतों के अलावा उस जूते पर मज़्हूलुल मालिक का हुक्म जारी होगा।

2591. अगर इंसान के पास मज्हूलुल मालिक का माल हो और उस माल पर लफ़्ज़े गुमशुदा का इत्लाक़ न होता हो तो उस सूरत में जब उसे इत्मीनान हो जाए कि उसके माल पर तसर्रूफ़ करने पर उसका मालिक राज़ी होगा तो जिस तरह भी वह उस माल में तसर्रूफ़ करना चाहे उसके लिए जाइज़ है। और अगर इत्मीनान न हो तो इंसान के लिए लाज़िम है कि उसके मालिक को तलाश करे और उसके मालिक के मिलने से मायूस होने के बाद उस माल को बतौर सदक़ा फ़क़ीर को देना ज़रूरी है। और एहतियाते लाज़िम यह है कि हाकिमे शर्अ की इजाज़त से सदक़ा दे और अगर बाद में माल का मालिक मिल जाए और सदक़ा देने पर राज़ी न हो तो एहतियात की बिना पर उसे उसका एवज़ देना ज़रूरी है।