तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

नजासात

84. दस चीज़े नजिस हैः-

(1) पेशाब,(2). पाख़ाना, (3). मनी, (4). मुर्दार, (5). ख़ून, (6-7). कुत्ता और सुव्वर, (8). काफ़िर, (9). शराब, (10). नजासतख़ोर हैवान का पसीना ।

1, 2 पेशाब और पाख़ानाः-

85. इन्सान का और हर उस हैवान का जिसका गोश्त हराम है और जिसका ख़ून जहिन्दा है यानी अगर उसकी रग काटी जाए तो ख़ून उछल कर निकलता है, पेशाब और पाख़ाना नजिस है। लेकिन उन हैवानों का पाख़ाना पाक है जिनका गोश्त हराम है मगर उनका ख़ून उछल कर नहीं निकलता। मसलन वह मछली जिसका गोश्त हराम है और इस तरह गोश्त न रखने वाले छोटे हैवानों मसलन मक्खी मच्छर (खटमल पिस्सू) का फ़ुज़ला या आलाइश भी पाक है लेकिन हराम गोश्त हैवान की जो उछलने वाला ख़ून न रखता हो एहतियाते लाज़िम की बिना पर उसके पेशाब से भी परहेज़ करना ज़रूरी है।

86. जिन परिन्दों का गोश्त हराम है उनका पेशाब और फ़ज़्ला पाक है लेकिन उससे परहेज़ बेहतर है।

87. नजासत ख़ौर हैवान का पेशाब और पख़ाना नजिस है। और इसी तरह उस भेड़ के बच्चे का पेशाब और पाख़ाना जिसने सुव्वरनी का दूध पिया हो नजिस है जिसकी तफ़्सील बाद में आयेगी। इसी तरह उस हैवान का पेशाब और पाख़ाना भी नजिस है जिससे किसी इन्सान ने बदफ़ेली की हो।

3. मनी (वीर्य)

88. इन्सान की और हर उस जानवर की मनी नजिस है जिस का ख़ून (ज़िब्ह होते वक़्त उसकी शहरग से) उछल कर निकले। अगरचे एहतियाते लाज़िम की बिना पर वह हैवान हलाल गोश्त ही क्यों न हो।

4. मुर्दार

89. इन्सान की और उछलने वाला ख़ून रखने वाले हर हैवान की लाश नजिस है ख़्वाह वह (कुदरती तौर पर) ख़ुद मरा हो या शरई तरीक़े के अलावा किसी और तरीक़े से ज़िब्ह किया गया हो ।

मछली चूंकि उछलने वाला ख़ून नहीं रखती इस लिये पानी में मर जाए तो भी पाक है।

90. लाश के वह अज्ज़ा जिन में जान नहीं होती पाक हैं मसलन पश्म, बाल, हड्डियां और दांत।

91. जब किसी इन्सान या जहिन्दा ख़ून वाले हैवान के बदन से उसकी ज़िन्दगी के दौरान में गोश्त या कोई दूसरा ऐसा हिस्सा जिसमें जान हो जुदा कर लिया जाए तो वह नजिस है।

92. अगर होठों या बदन की किसी और जगह से बारीक सी तह (पपड़ी0 उखेड़ ली जाए तो वह पाक है।

93. मुर्दा मुर्ग़ी के पेट से जो अण्डा निकले वो पाक है लेकिन उसका छिलका धो लेना ज़रूरी है।

94. अगर भेड़ या बकरी का बच्चा (मेमना) घास खाने के क़ाबिल होने से पहले मर जाए तो वह पनीरमा या जो उसके शीरदान में होता है पाक है लेकिन शीरदान बाहर से धो लेना ज़रूरी है।

95. बहने वाली तरल दवाइयां, इत्र, रौग़न (तेल, घी), जूतों की पालिश और साबुन जिन्हें बाहर से दरआमद (आयात) किया जाता है अगर उनकी नजासत के बारे में यक़ीन न हों तो पाक हैं ।

96. गोश्त, चर्बी और चमड़ा जिसके बारे में एहतिमाल हो कि किसी ऐसे जानवर का है जिसे शरई तरीक़े से ज़िब्हा किया गया है पाक है। लेकिन अगर यह चीज़ें किसी काफ़िर से लीं गईं हों या किसी ऐसे मुसलमान से ली गईं हों जिसने काफ़िर से लीं हों और यह तहक़ीक न की हो कि आया यह किसी ऐसे जानवर की है जिसे शरई तरीक़े से ज़िब्हा किया गया है या नहीं तो ऐसे गोश्त और चर्बी का ख़ाना हराम है अलबत्ता ऐसे चमड़े पर नमाज़ जाईज़ है। लेकिन अगर यह चीज़ों मुसलमानों के बाज़ार से या किसी मुसलमान से ख़रीदीं जाएं और यह न मालूम हो कि इससे पहले यह किसी काफ़िर से ख़रीदीं गईं थीं या एहतिमाल इस बात का हो कि तहक़ीक़ कर ली गई है तो ख़्वाह काफ़िर ही से ख़रीदी जाए इस चमढ़े पर नमाज़ पढ़ना और उस गोश्त और चर्बी का खाना जाइज़ है।

5. ख़ून

97. इन्सान और ख़ूने जहिन्दा रखने वाले हर हैवान का ख़ून नजिस है। पस ऐसे जानवरों मसलन मछली, मच्छर का ख़ून जो उछल कर नहीं निकलता पाक है।

98. जिन जानवरों का गोश्त हलाल है अगर उन्हें शरई तरीक़े से ज़िब्हा किया जाए और ज़रूरी मिक़्दार में उसका ख़ून ख़ारिज हो जाए तो जो ख़ून बदन में बाक़ी रह जाए वह पाक है लेकिन अगर (निकलने वाला) ख़ून जानवर के मांस ख़ींचने से या उसका सर बलन्द जगह पर होने की वजह से बदन में पलट जाए तो वह नजिस होगा।

99. मुर्ग़ी के जिस अण्डे में ख़ून का ज़र्रा हो उससे एहतियाते मुस्तहब की बिना पर परहेज़ करना चाहिये। लेकिन अगर ख़ून ज़र्दी में हो तो जब तक उसका नाज़ूक पर्दा फ़ट न जाए सफ़ैदा बग़ैर इशकाल के पाक है।

100. वह ख़ून जो बाज़ औक़ात चुवाई करते हुए नज़र आता है नजिस है और दूध को भी नजिस कर देता है।

101. अगर दांतो की रेख़ो से निकलने वाला ख़ून लुआबे दहन से मख़लूत हो जाने पर ख़त्म हो जाए तो उस लुआब से परहेज़ लाज़िम नहीं है।

102. जो ख़ून चोट लगने की वजह से नाख़ुन या खाल के नीचे जम जाए अगर उसकी शक्ल ऐसी होकि लोग उसे ख़ून न कहें तो वह पाक और अगर ख़ून कहें और वह ज़ाहिर हो जाए तो वह नजिस होगा। ऐसी सूरत में जबकि नाख़ुन या खाल में सुराख़ हो जाए अगर ख़ून का निकलना और वुज़ू या ग़ुस्ल के लिये उस मक़ाम का पाक करना बहुत ज़्यादा तकलीफ़ का बाइस हो तो तयम्मुम कर लेना चाहिये।

103. अगर किसी शख़्स को यह पता न चले कि खाल के नीचे ख़ून जम गया है या चोट लगने की वजह से गोश्त ने ऐसी शक्ल इख़्तियार कर ली है तो वह पाक है।

104. अगर खाना पकाते हुए ख़ून का एक ज़र्रा भी उसमें गिर जाए तो सारे का सारा खाना और बर्तन एहतियाते लाज़िम की बिना पर नजिस हो जाएगा। उबाल हरारत और आग उन्हें पाक नहीं कर सकते।

105. रेम यानी वह ज़र्द मवाद जो ज़ख़्म की हालत बेहतर होने पर उसके चारों तरफ़ पैदा हो जाता है उसके मुतअल्लिक़ अगर यह न मालूम हो कि उसमें ख़ून मिला हुआ है तो वह पाक होगा।

6, 7- कुत्ता और सुवर

106. कुत्ता और सुवर जो ज़मीन पर रहते हैं हत्ता कि उनके बाल, हड्डियां, पंजे, नाख़ून और रूतूबतें भी नजिस हैं अलबत्ता समुन्दरी कुत्ता और सुवर पाक हैं।

8. काफ़िर

107. काफ़िर यानी वह शख़्स जो बारी तआला के वुजूद या उसकी वह्दानियत का मुन्किर हो नजिस है। और इसी तरह ग़ुलात (यानी वह लोग जो आइम्मा (अ0) में से किसी को ख़ुदा कहें या यह कहें कि ख़ुदा इमाम में समा गया है) और ख़ारिजी व नासिबी (वह लोग जो आइम्मा (अ0) से बैर और बुग़्ज़ का इज़हार करें) भी नजिस हैं।

इसी तरह वह शख़्स जो किसी भी नुबुव्वत या ज़ुरूरतें दीन (यानी वह चीज़ें जिन्हें मुसलमान दीन का जुज़ समझते हैं मसलन नमाज़ और रोज़े) में से किसी एक का यह जानते हुए कि यह ज़रूरियाते दीन हैं, मुन्किर हो। नीज़ अहले किताब (यहूदी, ईसाई और मजूसी) भी जो ख़ातेमुल अंबिया हज़रत मोहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की रिसालत का इक़रार नहीं करते मशहूर रिवायत की बिना पर नजिस हैं अगरचे उनकी तहारत का हुक्म बईद नहीं लेकिन उनसे भी परहेज़ बेहतर है।

108. काफ़िर का तमाम बदन हत्ता कि उसके बाल, नाख़ुन और रूतूबतें भी नजिस हैं।

109. अगर किसी नाबालिग़ बच्चे के मां बाप या दादी दादा काफ़िर हों तो वह बच्चा भी नजिस है। अलबत्ता अगर वह सूझ बूझ रखता हो, इस्लाम का इज़्हार करता हो और अगर उनमें से (यानी सां बाप, या दादा दादी में से) एक भी मुसलमान हो तो उस तफ़्सील के मुताबिक़ जो मस्अला नं0 217 में आयेगी बच्चा पाक है।

110. अगर किसी शख़्स के मुतअल्लिक़ यह इल्म न हो कि मुसलमान है या नहीं और अगर कोई अलामत उसके मुसलमान होने की न हो तो वह पाक समझा जायेगा लेकिन उस पर इस्लाम के दूसरे अहकाम का इत्लाक़ नहीं होगा मसलन न ही वह मुसलमान औरत से शादी कर सकता है और न ही उसे मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफ़्न किया जा सकता है।

111. जो शख़्स (ख़ानवादाए रिसालत के) बारह इमामों में से किसी एक को भी दुश्मनी की बिना पर गाली दे वह नजिस है।

9. शराब

112. शराब नजिस है। और एहतियाते मुस्तहब कि बिना पर हर वह चीज़ भी जो इन्सान को मस्त कर दे और माए हो नजिस है। और अगर माए न हो जैसे भंग और चरस तो वह पाक है ख़्वाह उसमें ऐसी चीज़े डाल दें जो माए हों।

113. सन्अती अलकुहल, जो दरवाज़े, खिड़की, मेज़ या कुर्सी वग़ैरा रंगने के लिये इस्तेमाल होती है उसकी तमाम क़िस्मे पाक हैं।

114. अगर अगूंर और अगूंर का रस ख़ुद ब ख़ुद या पकाने पर खमीर हो जाए तो पाक है लेकिन उसका खाना पीना हराम है।

115. खजूर, मुनक़्क़ा, किशमिश और उनका शीरा ख़्वाह ख़मीर हो जायें तो भी पाक हैं और उनका खाना हलाल है।

116. "फ़ुक़्क़ाअ" जो कि जौ से तैय्यार होती है और उसे आबे जौ कहते हैं हराम है लेकिन उसका नजिस होना इश्काल से ख़ाली नहीं है। और ग़ैर फ़ुक़्क़ाअ यानी तिब्बी क़वायद के मुताबिक़ हासिल कर्दा, "आबे जौ" जिसे, "माउश्शईर" कहते हैं, पाक है।

10. नजासत खाने वाले हैवान का पसीना

117. नजासत खाने वाले ऊंट का पसीना, और हर उस हैवान का पसीना जिसे इंसानी नजासत खाने की आदत हो, नजिस है।

118. जो शख़्स फ़ेले हराम से जुनुब हुआ हो उसका पसीना पाक है लेकिन एहतियाते मुस्तहब की बिना पर उसके (पसीने के) साथ नमाज़ न पढ़ी जाए और हालते हैज़ में बीवी से जिमाअ करना, जबकि इस हालत का इल्म हो, हराम से जुनुब होने का हुक्म रखता है।

119. अगर कोई शख़्स उन औक़ात में बीवी से जिमाअ करे जिनमें जिमाअ हराम है (मसलन रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त) तो उसका पसीना हराम से जुनुब होने वाले पसीने का हुक्म नही रखता।

120. अगर हराम से जुनुब होने वाला ग़ुस्ल के बजाए तयम्मुम करे और तयम्मुम के बाद उसे पसीना आ जाए तो उस पसीने का वही हुक्म है जो तयम्मुम से पहले वाले पसीने का था।

121. अगर कोई शख़्स हराम से जुनुब हो जाए और फिर उस औरत से जिमाअ करे जो उसके लिये हलाल है तो उसके लिये एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस पसीने के साथ नमाज़ न पढ़े और अगर पहले उस औरत से जिमाअ करे जो हलाल हो और बाद में हराम का मुर्तकिब हो तो उसका पसीना हराम से जुनुब होने वाले पसीने का हुक्म नहीं रखता।

नजासत साबित होने के तरीक़े

122. हर चीज़ की नजासत तीन तरीक़ों से साबित होती हैः-

(अव्वल) ख़ुद इन्सान को यक़ीन या इत्मीनान हो कि फ़लां चीज़ नजिस है। अगर किसी चीज़ के मुतअल्लिक़ महज़ गुमान हो कि नजिस है तो उससे परहेज़ करना लाज़िम नहीं। लिहाज़ा क़हवा ख़ानों और होटलों में जहां लापरवाह लोग और ऐसे लोग खाते पीते हैं जो नजासत और तहारत का लिहाज़ नहीं करते खाना खाने की सूरत यह है कि जब तक इन्सान को इत्मीनान न हो कि जो खाना उसके लिये लाया गया है वह नजिस नहीं है, उसके खाने में कोई हरज नहीं।

(दोव्वुम) किसी के पास कोई चीज़ हो और वह उस चीज़ के बारे में कहे कि नजिस है और वह शख़्स ग़लत बयानी न करता हो मसलन किसी शख़्स की बीवी या नौकर या मुलाज़िम कहे कि बर्तन या कोई दूसरी चीज़ जो उसके पास है नजिस है तो वह नजिस शुमार होगी।

(सोव्वुम) अगर दो आदिम आदमी कहें कि एक चीज़ नजिस है तो वह नजिस शुमार होगी बशर्ते की वह उसके नजिस होने की वजह बयान करें।

123. अगर कोई शख़्स मसअले से अदम वाक़िफ़ीयत की बिना पर यह न जान सके कि वह चीज़ नजिस है या पाक, मसलन उसे यह इल्म न हो कि चूंहे की मेंगनी पाक है या नहीं तो उसे चाहिये कि मसअला पूछ ले। लेकिन अगर मसअला जानता हो और किसी चीज़ के बारे में उसे शक हो कि पाक है या नहीं मसलन उसे शक हो कि वह चीज़ ख़ून है या नहीं या यह न जानता हो कि मच्छर का ख़ून है या इन्सान का तो वह चीज़ पाक शुमार होगी और उसके बारे में छान बीन करना या पूछना लाज़िम नहीं।

124. अगर किसी नजिस चीज़ के बारे में शक हो कि (बाद में) पाक हुई है या नहीं तो वह नजिस है। अगर किसी पाक चीज़ के बारे में शक हो कि (बाद में) नजिस हो गई है या नहीं तो वह पाक है। अगर कोई शख़्स उन चीज़ें के नजिस या पाक होने के मुतअल्लिक़ पता चला भी सकता हो तो भी तहक़ीक़ ज़रूरी नहीं है।

125. अगर कोई शख़्स जानता हो कि जो दो बर्तन या दो कपड़े वह इस्तेमाल करता है उन में से एक नजिस हो गया है लेकिन उसे यह इल्म न हो कि उनमें से कौन सा नजिस हुआ है तो दोनों से इज्तिनाब करना ज़रूरी है और मिसाल के तौर पर अगर यह जानता हो कि ख़ुद उसका कपड़ा नजिस हुआ है या वह कपड़े जो उसके ज़ेरे इस्तेमाल नहीं है और किसी दूसरे शख़्स की मिल्कीयत है तो ज़रूरी नहीं कि अपने कपड़े से इज्तिनाब करे।

पाक चीज़ नजिस कैसे होती हैः-

126. अगर कोई पाक चीज़ किसी नजिस चीज़ से लग जाए और दोनों या उनमें से एक इस क़दर तर हो कि एक कि तरी दूसरे तक पहुँच जाए तो पाक चीज़ भी नजिस हो जाएगी और अगर वह उसी तरी के साथ किसी तीसरी चीज़ के साथ लग जाए तो उसे भी नजिस कर देती है और मशहूर क़ौल है कि जो चीज़ नजिस हो गई हो वह दूसरी चीज़ को भी नजिस कर देती है लेकिन यके बाद दीगरे कई चीज़ों पर नजासत का हुक्म लगाना मुश्किल है बल्कि तहारत का हुक्म लगाना क़ुव्वत से ख़ाली नहीं है। मसलन अगर दायां हाथ पेशाब से नजिस हो जाए और फिर यह तर हाथ बायें हाथ को छू जाए तो बायां हाथ नजिस हो जाएगा। अब अगर बायां हाथ ख़ुश्क होने के बाद मसलन तर लिबास से छू जाए तो वह लिबास भी नजिस हो जाएगा लेकिन अगर वह तर लिबास किसी दूसरी तर चीज़ को लग जाए तो वह चीज़ नजिस नहीं होगी और अगर तरी इतनी कम हो कि दूसरी चीज़ को न लगे तो पाक चीज़ नजिस नहीं होगी ख़्वाह वह ऐने नजिस को ही क्यों न लगी हों।

127. अगर कोई पाक चीज़ नजिस चीज़ को लग जाए और उन दोनों या किसी एक के तर होने के मुतअल्लिक़ किसी को शक हो तो पाक चीज़ नजिस नहीं होती।

128. ऐसी दो चीज़ें जिनके बारे में इन्सान को इल्म न हो कि उनमें से कौन सी पाक है और कौन सी नजिस अगर एक पाक और तर चीज़ उनमें से किसी एक चीज़ को छू जाए तो उससे परहेज़ करना ज़रूरी नहीं है लेकिन बाज़ सूरतों में मसलन दोनों चीज़ें पहले नजिस थीं या यह कि कोई पाक चीज़ तरी की हालत में उनमें से किसी एक को छू जाए (तो उससे इज्तिनाब ज़रूरी है) ।

129. अगर ज़मीन, कपड़ा या ऐसी दूसरी चीज़ें तर हों तो उनके जिस हिस्से को नजासत लगेगी वह नजिस हो जाएगा। और बाक़ी हिस्सा पाक रहेगा। यही हुक्म खीरे और ख़रबूज़े वग़ैरा के बारे में है।

130. जब शीरे, तेल (घी) या ऐसी ही किसी और चीज़ की सूरत ऐसी हो कि अगर उसकी कुछ मिक़्दार (मात्रा) निकाल ली जाए तो उसकी जगह खाली न रहे तो जूं ही वह ज़र्रा भर भी नजिस होगा सारे का सारा नजिस हो जाएगा लेकिन अगर उसकी सूरत ऐसी हो कि निकालने के मक़ाम पर जगह ख़ाली रहे अगरचे बाद में पुरी हो जाए तो सिर्फ़ वही हिस्सा नजिस होगा जिसे नजासत लगी है। लिहाज़ा अगर चूहें की मेंगनी उसमें गिर जाए तो जहां वह मेंगनी गिरी है वह जगह नजिस और बाक़ि पाक होगी।

131. अगर मक्ख़ी या ऐसा ही कोई जानदार एक ऐसी तर चीज़ पर बैठे जो नजिस हो और बाद अज़ां एक तर पाक चीज़ पर जा बैठे और यह इल्म हो जाए कि इस जानदार के साथ नजासत थी तो पाक चीज़ नजिस हो जाए गी और अगर इल्म न हो तो पाक रहेगी।

132. अगर बदन के किसी हिस्से पर पसीना हो और वह हिस्सा नजिस हो जाए और फिर पसीना बह कर बदन के दूसरे हिस्सों तक चला जाए तो जहां जहां पसीना बहेगा बदन के वह हिस्से नजिस हो जाए गे, लेकिन अगर पसीना आगे न बढ़े तो बाक़ी बदन पाक रहेगा।

133. जो बलग़म नाक या गले से ख़ारिज हो अगर उसमें ख़ून हो तो बलग़म में जहां ख़ून होगा नजिस और बाक़ी हिस्सा पाक होगा लिहाज़ा अगर यह बलग़म मुहं या नाक के बाहर लग जाए तो बदन के जिस मुक़ाम के बारे में यक़ीन हो कि नजिस बलग़म इस पर लगा है और जिस जगह के बारे में शक हो कि वहां बलग़म का नजासत वाला हिस्सा पहुँचा है या नहीं तो वह पाक होगा।

134. अगर एक ऐसा लोटा सिजके पेंदें में सुराख़ हो नजिस ज़मीन पर रख दिया जाए और उससे पानी बहना बंद हो जाए तो जो पानी उसके नीचे जमा होगा, वह उसके अन्दर वाले पानी से मिलकर यकज हो जाए तो लोटे का पानी नजिस हो जाएगा लेकिन अगर लोटे का पानी तेज़ी के साथ बहता रहे तो नजिस नहीं होगा।

135. अगर कोई चीज़ बदन में दाख़िल होकर नजासत से जा मिले लेकिन बदन से बाहर आने पर नजासत से आलूदा न हो तो वह चीज़ पाक है। चुनांचे अगर एनिमा का सामान या उसका पानी मक़्अद में दाखिल किया जाए या सुईं, चाक़ू या कोई और ऐसी चीज़ बदन में चुभ जाए और बाहर निकलने पर नजासत आलूदा न हो तो नजिस नहीं है। अगर थूक और नाक का पानी जिस्म के अन्दर ख़ून से जा मिलें लेकिन बाहर निकलने पर ख़ून आलूदा न हो तो उसका भी यही हुक्म है।

अहकामे नजासात

136. क़ुरआने मजीद की तहरीर और वरक़ को नजिस करना जबकि यह फ़ेल बेहुर्मती में शुमार होता हो बिला शुब्हा हराम है और अगर नजिस हो जाए तो फ़ौरन पानी से धोना ज़रूरी है बल्कि अगर बेहुर्मती का पहलू न भी निकले तब भी एहतियाते वाजिब की बिना पर कलामे पाक को नजिस करना हराम और पानी से धोना वाजिब है।

137. अगर कुरआने मजीद की जिल्द नजिस हो जाए और उससे क़ुरआने मजीद की बेहुर्मती होती हो तो जिल्द को पानी से धो देना ज़रूरी है।

138. क़ुरआने मजीद को किसी ऐने नजासत मसलन ख़ून या मुर्दार पर रखना ख़्वाह वह ऐने नजासत ख़ुश्क ही क्यों न हो अगर क़ुरआने मजीद की बेहुर्मती का बायस हो तो हराम है।

139. क़ुरआने मजीद को नजिस रौशनाई से लिखना ख़्वाह एक हर्फ़ ही क्यों न हो उसे नजिस करने का हुक्म रखता है। अगर लिखा जा चुका हो तो उसे पानी से धो कर या छील कर किसी और तरीक़े से मिटा देना ज़रूरी है।

140. अगर काफ़िर को क़ुरआने मजीद देना बेहुर्मती का मूजिब हो तो हराम है और उससे क़ुरआने मजीद ले लेनना वाजिब है।

141. अगर क़ुरआने मजीद का एक वरक़ या कोई ऐसी चीज़ जिसका एहतिराम ज़रूरी हो मसलन ऐसा कागज़ जिस पर अल्लाह तआला का या नबीये करीम सलल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम या किसी इमाम (अ0) का नाम लिखा हो बैतुलख़ला में गिर जाए तो उसका बाहर निकालना और उसे धोना वाजिब है ख़्वाह उस पर कुछ रक़म ही क्यों न ख़र्च करनी पड़े। और अगर उसका बाहर निकालना मुमकिन न हो तो ज़रूरी है कि उस वक़्त तक उस बैतुलख़ुला को इस्तेमाल न किया जाए जब तक यह यक़ीन ना हो जाए कि वह गलकर ख़त्म हो गया है। इसी तरह अगर ख़ाके शिफ़ा बैतुलख़ला में गिर जाए और उसका निकालना मुमकिन न हो तो जब तक यह यक़ीन न हो जाए कि वह बिल्कुल ख़त्म हो चुकी है, उस बैतुलख़ला को इस्तेमान नहीं करना चाहिये।

142. नजिस चीज़ का खाना पीना या किसी दूसरे को खिलाना पिलाना हराम है लेकिन बच्चे या दीवाने को खिलाना पिलाना बज़ाहिर जाइज़ है और अगर बच्चा या दीवाना नजिस ग़िज़ा खाए या पिये या नजिस हाथ से ग़िज़ा को नजिस करके खाए तो उसे रोकना ज़रूरी नहीं।

143. जो नजिस चीज़ धोईं जा सकती हों उसे बेचने या उधार देने में कोई हर्ज नहीं लेकिन उसके नजिस होने के बारे में जब यह दो शर्तें मौजूद हों तो ख़रीद ने और उधार लेने वाले को बताना ज़रूरी हैः-

(पहली शर्त) जब अन्देशा हो कि दूसरा फ़रीक़ किसी वाजिब हुक्म की मुख़ालिफ़त का मुर्तकिब होगा यानी उस (नजिस चीज़) को खाने या पीने में इस्तेमाल करेगा। अगर ऐसा न हो तो बताना ज़रूरी नहीं है मसलन लिबास के नजिस होने के बारे में बताना ज़रूरी नहीं जिसे पहन कर वह दूसरा फ़रीक़ नमाज़ पढ़े क्योंकि लिबास का पाक होना शर्ते वाक़ई नहीं है.

(दूसरी शर्त) जब बेचने या उधार देने वाले को यह तवक़्क़ो हो कि दूसरा फ़रीक़ उसकी बात पर अमल करेगा और अगर वह जानता हो कि दूसरा फ़रीक़ उसकी बात पर अमल नहीं करेगा तो उसे बताना ज़रूरी नहीं है।

144. अगर एक शख़्स किसी दूसरे को नजिस चीज़ खाते या नजिस लिबास से नमाज़ पढ़ते हुए देखे तो उसे इस बारे में कुछ कहना ज़रूरी नहीं।

145. अगर घर का कोई हिस्सा या क़ालीन (या दरी) नजिस हो और वह देखे कि उसके घर आने वाले का बदन, लिबास या कोई और चीज़ तरी के साथ नजिस जगह से जा लगी है और साहबे ख़ाना उसका बाइस हुआ तो दो शर्तों के साथ जो मसअला नं0 143 में बयान हुई हैं उन लोगों को इस बारे में आगाह कर देना ज़रूरी है।

146. अगर मेज़बान को खाने खाने के दौरान पता चले कि ग़िज़ा नजिस है तो दोंनो शर्तों के मुताबिक़ जो (मसअला नं0 143 में) बयान हुईं हैं ज़रूरी है कि मेहमानों को उसके मुतअल्लिक़ आगाह कर दे। लेकिन अगर मेहमानों में से किसी को इस बात का इल्म हो जाए तो उसके लिये दूसरों को बताना ज़रूरी नहीं। अलबत्ता अगर वह उन लोगों के साथ यूं घुल मिल कर रहता हो कि उनके नजिस होने की वजह से वह खुद भी नजासत में मुब्तिला होकर वाजिब अहकाम की मुख़ालिफ़त का मुर्तकिब होगा त उनको बताना ज़रूरी है।

147. अगर कोई उधार ली हुइ चीज़ नजिस हो जाए तो उसके मालिक को दो शर्तों के साथ जो मस्अला 143 में बयान हुई हैं आगाह करे।

148. अगर बच्चा कहे कि कोई चीज़ नजिस है या कहे कि उसने किसी चीज़ को धो लिया है तो उसकी बात पर एतिबार नहीं करना चाहिये लेकिन अगर बच्चे की उम्र मुकल्लफ़ होने के क़रीब हो और वह कहे कि उसने एक चीज़ पानी से धोई है जबकि वह चीज़ उसके इस्तेमाल में हो या बच्चे का क़ौल एतिमाद के क़ाबिल हो तो उसकी बात क़ुबूल कर लेनी चाहिये और यही हुक्म है जबकि बच्चा कहे कि वह चीज़ नजि है।

मुतह्हिरात

149. बारह चीज़े ऐसी हैं जो नजासत को पाक करती हैं और उन्हें मुतह्हिरात कहा जाता हैः-

1- पानी, 2- ज़मीन, 3-सूरज, 4-इसतिहाला, 5-इंक़िलाब, 6- इन्तिक़ाल, 7- इसलाम, 8-तबईयत, 9-ऐने नजासत का ज़ाइल हो जाना, 10- नजासत खाने वाले हैवान का इसतिबरा 11-मुसलमान का ग़ायब हो जाना, 12-ज़िब्हे किये गये जानवर के बदन से ख़ून का निकल जाना।

1-पानी

140. पानी चार शर्तों के साथ नजिस चीज़ को पाक करता हैः-

1. पानी मुत्लक़ हो। मुज़ाफ़ पानी मसलन अरक़े गुलाब या अरक़े बेदे मुश्क से नजिस चीज़ पाक नहीं होती।

2. पानी पाक हो।

3. नजिस चीज़ को धोने के दौरान पानी मुज़ाफ़ न बन जाए। जब किसी चीज़ को पाक करने के लिये पानी से धोया जाए और उसके बाद मज़ीद धोना ज़रूरी न हो तो वह भी लाज़ीम है कि उस पानी में नजासत की बू, रंग या ज़ाइक़ा मौजूद न हो लेकिन अगर धोने की सूरत उससे मुख़्तलिफ़ हो (यानी वह आख़िरी धोना न हो) और पानी की बू, रंग या ज़इक़ा बदल जाए तो उसमें कोई हरज नहीं। मसलन अगर कोई चीज़ कुर पानी या क़लील पानी से धोई जाए और उसे दो मर्तबा धोना ज़रूरी हो तो ख़्वाह पानी की बू, रंग या ज़ाइक़ा पहली दफ़्आ धोने के वक़्त बदल जाए लेकिन दूसरी दफ़्आ इस्तेमाल किये जाने वाले पानी में ऐसी कोई तब्दीली रूनुमा न हो तो वह चीज़ पाक हो जाऐगी।

4. नजिस चीज़ को पानी से धोने के बाद उसमें ऐने नजासत के ज़र्रात बाक़ी न रहें। नजिस चीज़ को क़लील पानी यानी एक कुर से कम पानी से पाक करने की कुछ और शराइत भी हैं जिनका ज़िक्र किया जा रहा हैः-

151. नजिस बर्तन के अन्दरूनी हिस्से को क़लील पानी से तीन दफ़्आ धोना ज़रूरी है। कुर या जारी पानी का भी एहतियाते वाजिब की बिना पर यही हुक्म है लेकिन जिस बर्तन में कुत्ते ने पानी या कोई माए चीज़ पी हो उसे पहले पाक मिट्टी से मांझना चाहिये फिर उस बर्तन से मिट्टी को दूर करना चाहिये, उसके बाद क़लील या कुर या जारी पानी से दो दफ़्आ धोना चाहिये। इसी तरह अगर कुत्ते ने किसी बर्तन को चाटा हो और कोई चीज़ उसमें बाक़ी रह जाए तो उसे धोने से पहले मिट्टी से मांझ लेना ज़रूरी है अलबत्ता अगर कुत्ते का लुआब किसी बर्तन में गिर जाए तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर उसे मिट्टी से मांझने के बाद तीन दफ़्आ पानी से धोना ज़रूरी है।

152. जिस बर्तन में कुत्ते ने मुहं डाला है अगर उसका मुहं तंग हो तो उसमें मिट्टी डाल कर ख़ूब हिलायें ताकि मिट्टी बर्तन के तमाम एतराफ़ में पहुँच जाए। उसके बाद उसे उसी तरतीब के मुताबिक़ धोयें जिसका ज़िक्र साबिक़ः मस्अले में हो चुका है।

153. अगर किसी बर्तन को सुव्वर चाटे या उसमें से कोई बहने वाली चीज़ पी ले या उस बर्तन में जंगली चूहां मर गया हो तो उसे क़लील या कुर या जारी पानी से सात मर्तबा धोना ज़रूरी है लेकिन मिट्टी से मांझना ज़रूरी नहीं।

154. जो बर्तन शराब से नजिस हो गया हो उसे तीन मर्तबा धोना ज़रूरी है इस बारे में क़लील या कुर या जारी पानी की कोई तख़्सीस नहीं ।

155. अगर ऐसे बर्तन को जो नजिस मिट्टी से तैयार हुआ हो या जिसमें नजिस पानी सरायत कर गया हो कुर या जारी पानी में डाल दिया जाए तो जहां जहां वह पानी पहुँचे गा बर्तन पाक हो जायेगा और अगर उस बर्तन के अन्दरूनी अज्ज़ा को भी पाक करना मक़सूद हो तो उसे कुर या जारी पानी में उतनी देर तक पड़े रहने देना चाहिये कि पानी तमाम बर्तन में सरायत कर जाए। और अगर उस बर्तन में कोई ऐसी नमी हो जो पानी के अन्दरूनी हिस्सों तक पहुँच नें में माने हो तो पहले उसे ख़ुश्क कर लेना ज़रूरी है और फिर बर्तन को कुर या जारी पानी में डाल देना चाहिये।

156. नजिस बर्तन को क़लील पानी से दो तरीक़े से धोया जा सकता हैः-

(पहला तरीक़ा) बर्तन को तीन दफ़्आ भरा जाए और हर दफ़्आ ख़ाली कर दिया जाए।

(दूसरा तरीक़ा) बर्तन में तीन दफ़्आ मुनासिब मिक़दार में पानी डालें और हर दफ़्आ पानी को यूं घुमायें कि वह तमाम नजिस मक़ामात तक पहुंच जाए और फिर उसे गिरा दें।

157. अगर एक बड़ा बर्तन मसलन देग़ या मटका नजिस हो जाएं तो तीन दफ़्आ पानी से भरने और हर दफ़्आ ख़ाली करने के बाद पाक हो जाता है। इसी तरह अगर उसमें तीन दफ़्आ ऊपर से इस तरह पानी उंडेलें कि उसकी तमाम अतराफ़ तक पहुँच जाए और हर दफ़्आ उसकी तह में जो पानी जमआ हो जाए उसको निकाल दें तो बर्तन पाक हो जाएगा। और एहतियाते मुस्तहब यह है कि दूसरी और तीसरी बार जिस बर्तन के ज़रिये पानी बाहर निकाला जाए उसे भी धो लिया जाए।

158. अगर नजिस तांबे वग़ैरा को पिघला कर पानी से धो लिया जाए तो उसका ज़ाहिरी हिस्सा पाक हो जाएगा।

159. अगर तन्नूर (तंदूर) पेशाब से नजिस हो जाए और उसमें ऊपर से एक मर्तबा यूं पानी डाला जाए कि उसकी तमाम अतराफ़ तक पहुंच जाए तो तन्नूर पाक हो जाएगा और एहतियाते मुस्तहब यह है कि यह अमल दो दफ़्आ किया जाए और अगर तन्नूर पेशाब के अलावा किसी और चीज़ से नजिस हुआ हो तो नजासत दूर करने के बाद मज़कूरा तरीक़े के मुताबिक़ उसमें एक दफ्आ पानी डालना काफ़ी है और बेहतर यह है कि तन्नूर की तह में एक गढ़ा खोद लिया जाए जिसमें पानी जम्आ हो सके फिर उस पानी को निकाल लिया जाए और गढ़े को पाक मिट्टी से पुर कर दिया जाए।

160. अगर किसी नजिस चीज़ को कुर या जारी पानी में एक दफ़्आ यूं डुबो दिया जाए कि पानी उसके तमाम नजिस मक़ामत तक पहुंच जाए तो वह चीज़ पाक हो जायेगी और क़ालीन या दरी या लिबास वग़ैरा को पाक करने के लिये उसे निचोड़ना और इसी तरह से मलना या पांव से रगड़ना ज़रूरी नहीं है और अगर बदन या लिबास पेशाब से नजिस हो गया हो तो उसे कुर पानी में दो दफ़्आ धोना भी लाज़िम है।

161. अगर किसी ऐसी चीज़ को जो पेशाब से नजिस हो गई हो क़लील पानी से धोना मक़सूद हो तो उस पर एक दफ़्आ यूं पानी बहा दें कि पेशाब उस चीज़ में बाक़ी न रहे तो वह चीज़ पाक हो जायेगी। अलबत्ता लिबास और बदन पर दो दफ़्आ पानी बहाना ज़रूरी है ताकि पाक हो जाए। लेकिन जहां तक लिबास, क़ालीन, दरी और उससे मिलती जुलती चीज़ों का तअल्लुक़ है उन्हें हर दफ़्आ पानी में डाल ने के बाद निचोड़ना चाहिये ताकि ग़ुसाला उन में से निकल जाए (ग़ुसाला या धोवन उस पानी को कहते हैं जो किसी धोई जाने वाली चीज़ से धुलने के दौरान या धुल जाने के बाद खुद ब खुद निचोड़ने से निकलता है।)

162. जो चीज़ ऐसे शीरख़्वार लड़के या लड़की के पेशाब से जिसने दूध के अलावा कोई ग़िज़ा खाना शुरू न की हो और एहतियात की बिना पर दो साल का न हो, नजिस हो जाए तो उस पर एक दफ़्आ इस तरह पानी डाला जाए कि तमाम नजिस मक़ामात पर पहुंच जाए तो वह चीज़ पाक हो जायेगी लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि मज़ीद एक बार उस पर पानी डाला जाए लिबास, क़ालीन और दरी वग़ैरा को निचोड़ना ज़रूरी नहीं।

163. अगर कोई चीज़ पेशाब के अलावा किसी नजासत से नजिस हो जाए तो वह नजासत दूर करने के बाद एक दफ़्आ क़लील पानी उस पर डाला जाए। जब वह पानी बह जाए तो वह चीज़ पाक हो जाती है अलबत्ता लिबास और उससे मिलती जुलती चीज़ों को निचोड़ लेना चाहिये ताकि उनका धोवन निकल जाए।

164. अगर किसी नजिस चटाई को जो धागों से बुनी हुई हो कुर या जारी पानी में डुबो दिया जाए तो ऐने नजासत दूर होने के बाद वो पाक हो जायेगी लेकिन अगर उसे क़लील पानी से धोया जाए तो जिस तरह भी मुम्किन हो उसका निचोड़ना भी ज़रूरी है (ख़्वाह उसमे पांव ही क्यों न चलाने पड़ें) ताकि उसका धोवन अलग हो जाए।

165. अगर गंदुम (गेहूं, चावल, साबुन वग़ैरा का ऊपर वाला हिस्सा नजिस हो जाए तो वह कुर या जारी पानी में डुबोने से पाक हो जायेगा लेकिन अगर उनका अन्दरूनी हिस्सा नजिस हो जाए तो कुर या जारी पानी उन चीज़ों के अन्दर तक पहुंच जाए और पानी मुतलक़ ही रहे तो यह चीज़े पाक हो जायेगीं लेकिन ज़ाहिर यह है कि साबुन और उससे मिलती जुलती चीज़ों के अन्दर आबे मुतलक़ बिल्कुल नहीं पहुंचता।

166. अगर किसी शख़्स को इस बारे में शक हो कि नजिस पानी साबुन के अन्दरूनी हिस्से तक सरायत कर गया है या नहीं तो वह हिस्सा पाक होगा।

167. अगर चावल या गोश्त या ऐसी ही किसी चीज़ का ज़ाहिरी हिस्सा नजिस हो जाए तो किसी पाक प्याले या उसके मिस्ल किसी चीज़ में रख कर एक दफ़्आ उस पर पानी डालने और फिर फेंक देने के बाद वह चीज़ पाक हो जाती है और अगर किसी नजिस बर्तन में रखें तो यह काम तीन दफ़्आ अनजाम देना ज़रूरी है और इस सूरत में वह बर्तन भी पाक हो जायेगा लेकिन अगर लिबास या किसी ऐसी चीज़ को बर्तन में डाल कर पाक करना मक़सूद हो जिसका निचोड़ना लाज़िम है तो जितनी बार उस पर पानी डाला जाए उसे निचोड़ना ज़रूरी है और बर्तन को उलट देना चाहिये ताकि जो धोवन उसमें जमा हो गया हो वह बह जाए।

168. अगर किसी नजिस लिबास को जो तेल या उस जैसी चीज़ से रंगा गया हो कुर या जारी पानी में डुबोया जाए और कपड़े के रंग की वजह से पानी मुज़ाफ़ होने से क़ब्ल तमाम जगह पहुंच जाए तो वह लिबास पाक हो जायेगा और अगर उसे क़लील पानी से धोया जाए और निचोड़ने पर उसमें से मुज़ाफ़ पानी न निकले तो वह लिबास पाक हो जाता है।

169. अगर कपड़े को कुर या जारी पानी में धोया जाए और मिसाल के तौर पर बाद में काई वग़ैरा कपड़े में नज़र आए और यह अहतिमाल न हो कि यह कपड़े के अन्दर पानी के पहुंचने में माने (बाधक) हुई है तो वह कपड़ा पाक है।

170. अगर लिबास या उससे मिलती जुलती चीज़ के धोने के बाद मिट्टी का ज़र्रा या साबुन उसमें नज़र आए और एहतिमाल हो कि यह कपड़े के अन्दर पानी के पहुंचने में माने हुआ है तो वह पाक है लेकिन अगर नजिस पानी मिट्टी या साबुन में सरायत कर गया हो तो मिट्टी और साबुन का ऊपर वाला हिस्सा पाक और उसका अन्दरूनी हिस्स नजिस होगा।

171. जब तक ऐने नजासत किसी नजिस चीज़ से अलग न हो वह पाक नहीं होगी लेकिन अगर बू या नजासत का रंग उसमें बाक़ी रह जाए तो कोई हरज नहीं। लिहाज़ा अगर ख़ून लिबास पर से हटा दिया जाए और लिबास धो लिया जाए और ख़ून का रंग लिबास पर बाक़ी भी रह जाए तो लिबास पाक होगा लेकिन अगर बू या रंग की वजह से यह यक़ीन या एहतिमाल पैदा हो कि नजासत के ज़र्रात इसमें बाक़ी रह गये हैं तो वह नजिस होगी।

172. अगर कुर या जारी पानी में बदन की नजासत दूर कर ली जाए तो बदन पाक हो जाता है लेकिन अगर बदन पेशाब से नजिस हुआ हो तो उस सूरत में एक दफ़्आ से पाक नहीं होगा लेकिन पानी से निकल आने के बाद दोबारा उसमें दाख़िल होना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर पानी के अंदर ही बदन पर हाथ फेर लें कि पानी दो दफ़्आ बदन तक पहुंच जाए तो काफ़ी है।

173. अगर नजिस ग़िज़ा दांतों की रेखों में रह जाए और पानी मुहं में भर कर यूं घुमाया जाए कि तमाम नजिस ग़िज़ा तक पहुंच जाए तो वह ग़िज़ा पाक हो जाती है।

174. अगर सर या चेहरे के बालों को क़लील पानी से धोया जाए और वह बाल घने न हों तो उनसे धोवन जुदा करने के लिये उन्हें निचोड़ना ज़रूरी नहीं क्योंकि मअमूली पानी ख़ुद ब ख़ुद जुदा हो जाता है।

175. अगर बदन या लिबास का कोई हिस्सा क़लील पानी से धोया जाए तो नजिस मक़ाम के पाक होने से उस मक़ाम से मुत्तसिल वह जगहें भी पाक हो जायेंगी जिन तक धोते वक़्त उमूमन पानी पहुंच जाता है। मतलब यह है कि नजिस मक़ाम तक अतराफ़ को अलायहदा धोना ज़रूरी नहीं बल्कि वह नजिस मक़ाम को धोने के साथ ही पाक हो जाते हैं। और एक पाक चीज़ एक नजिस चीज़ के बराबर रख दें और दोनों पर पानी डालें तो उसका भी यही हुक्म है। लिहाज़ा अगर एक नजिस उंगली को पाक करने के लिये सब उंगलियों पर पानी डालें और नजिस पानी या पाक पानी सब उंगलियों तक पहुंच जाए तो नजिस उंगली के पाक होने पर तमाम उंगलिया पाक हो जायेंगी।

176. जो गोश्त या चर्बी नजिस हो जाए दूसरी चीज़ों की तरह पानी से धोई जा सकती है। यही सूरत उस बदन या लिबास की है जिस पर थोड़ी बहुत चिकनाई हो जो पानी को बदन या लिबास तक पहुंचने से न रोके।

177. अगर बर्तन या बदन नजिस हो जाए और बाद में इतन चिकना हो जाए कि पानी उस तक न पहुंच सके और बर्तन या बदन को पाक करना मक़्सूद हो तो पहले चिकनाई दूर करनी चाहिये ताकि पानी उन तक (यानी बर्तन या बदन तक) पहुंच सके।

178. जो नल कुर पानी से मुत्तसिल हो वह कुर पानी हुक्म रखता है।

179. अगर किसी चीज़ को धोया जाए और यक़ीन हो जाए कि पाक हो गई है लेकिन बाद में शक गुज़रे कि ऐने नजासत उससे दूर हुई है या नहीं तो ज़रूरी है कि उसे दोबारा पानी से धो लिया जाए और यक़ीन कर लिया जाए कि ऐने नजासत दूर हो गई है।

180. वह ज़मीन जिसमें पानी जज़्ब हो जाता हो ममलन ऐसी ज़मीन जिसकी सत्ह रेत या बजरी पर मुशतमिल हो अगर नजिस हो जाए तो क़लील पानी से पाक हो जाती है।

181. अगर वह ज़मीन जिसका फ़र्स पत्थर या ईटों का हो या दूसरी सख़्त ज़मीन जिसमें पानी जज़्ब न होता हो नजिस हो जाए तो क़लील पानी से पाक हो सकती है लेकिन ज़रूरी है कि उस पर इतना पानी गिराया जाए कि बहने लगे। जो पानी इस पर डाला जाए अगर वह किसी गढ़े से बाहर न निकल सके और किसी जगह जमआ हो जाए तो उस जगह को पाक करने का तरीक़ा यह है कि जमाअशुदा पानी को कपड़े या बर्तन से बाहर निकाल दिया जाए।

182. अगर मअदिनी नमक का डला या उस जैसी कोई और चीज़ ऊपर से नजिस हो जाए तो क़लील पानी से पाक हो सकती है।

183. अगर पिघली हुई नजिस शकर से कंद बना लें और उसे कुर या जारी पानी में डाल दें तो वह पाक नहीं होगी।

2. ज़मीन

184. ज़मीन पांव के तलवे और जूते के निचले हिस्से को चार शर्तों से पाक करती हैः-

(अव्वल) यह कि ज़मीन पाक हो।

(दोव्वुम) एहतियात की बिना पर ख़ुश्क हो।

(सोव्वुम) एहतियाते लाज़िम की बिना पर नजासत ज़मीन पर चलने से लगी हो।

(चाहरूम) ऐने नजासत मसलन ख़ून और पेशाब या मुतनज्जिस चीज़ मसलन मुतनज्जिम मिट्टी पांव के तलवे या जूते के निचले हिस्से में लगी हो वह रास्ता चलने या पांव ज़मीन पर रगड़ने से दूर हो जाए लेकिन अगर ऐने नजासत ज़मीन पर चलने या ज़मीन पर रगड़ने से पहले ही दूर हो गई हो तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर पाक नहीं होगी। अलबत्ता यह ज़रूरी है कि ज़मीन मिट्टी या पत्थर या ईंटों के फ़र्श या उनसे मिलती जुलती चीज़ पर मुश्तमिल हो। क़ालीन या दरी वग़ैरा या चटाई या घास पर चलने से पांव का नजिस तलवा या जूते का नजिस हिस्सा पाक नहीं होता।

185. पांव का तलवा या जूते के निचला हिस्सा नजिस हो तो डामर या लकड़ी के बने फ़र्श पर चलने से पाक होना महल्ले इश्क़ाल है।

186. पांव के तलवे या जूते के निचले हिस्से को पाक करने के लिये बेहतर है कि पन्द्रह हाथ या उससे ज़्यादा फ़ासला ज़मीन पर चलें ख़्वाह पन्द्रह हाथ से कम चलने या पांव ज़मीन पर रगड़ने से नजासत दूर हो गई हो।

187. पाक होने के लिये पांव या जूते के नजिस तलवे का तर होना ज़रूरी नहीं बल्कि ख़ुश्क भी हो तो ज़मीन पर चलने से पाक हो जाता है।

188. जब पांव या जूते का नजिस तलवा ज़मीन पर चलने से पाक हो जाए तो उसकी अहतराफ़ के वह हिस्से भी जिन्हें उमूमन कीचड़ वग़ैरा लग जाती है पाक हो जाते हैं।

189. अगर किसी ऐसे शख़्स की हाथ की हथेली या घुटना नजिस हो जाए जो हाथों और घुटनों के बल चलता हो तो उसके रास्ता चलने में उसकी हथेली या घुटने का पाक हो जाना महल्ले इश्क़ाल है। यही सूरत लाठी और मसनूई टांग के निचले हिस्से, चौपाए के नाल, मोटर गाड़ियों और गाड़ियों के पहियों की है।

190. अगर ज़मीन पर चलने के बाद नजासत की बू या रंग या बारीक ज़र्रे जो नज़र न आयें, पांव या जूते के तलवे से लगे रह जाए तो कोई हरज नहीं। अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि ज़मीन पर इस क़दर चला जाए कि वह भी ज़ाएल हो जाएं।

191. जूते का अन्दरूनी हिस्सा ज़मीन पर चलने से पाक नहीं होता और ज़मीन पर चलने से मोज़े के निचले हिस्से का पाक होना भी महल्ले इश्क़ाल है लेकिन अगर मोज़े का निचला हिस्सा चमड़े से मिलती जुलती चीज़ का बना हो (तो वह ज़मीन पर चलने से पाक हो जायेगा।)