तौज़ीहुल मसाइल

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तौज़ीहुल मसाइल लेखक:
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तौज़ीहुल मसाइल

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली हुसैनी सीस्तानी साहब
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दीनियात और नमाज़ तौज़ीहुल मसाइल
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तौज़ीहुल मसाइल

तौज़ीहुल मसाइल

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

3. सूरज

192. सूरज- ज़मीन इमारत और दीवार को पांच शर्तों के साथ पाक करता हैः-

अव्वल- नजिस चीज़ इस तरह तर हो कि अगर दूसरी चीज़ उससे लगे तो तर हो जाए लिहाज़ा अगर वह चीज़ ख़ुश्क हो तो उसे किसी तरह तर कर लेना चाहिये ताकि धूप से ख़ुश्क हो।

दोव्वुम- अगर किसी चीज़ में ऐने नजासत हो तो धूप से ख़ुश्क करने से पहले उस चीज़ से नजासत को दूर कर लिया जाए।

सोव्वुम- कोई चीज़ धूप में रूकावट न डाले। पस अगर धूप पर्दे, बादल या ऐसी ही किसी चीज़ के पीछे से उस चीज़ पर पड़े और उसे ख़ुश्क कर दे तो वह चीज़ पाक नहीं होगी। अलबत्ता अगर बादल इतना पतला हो कि धूप को न रोके तो कोई हरज नहीं।

चहारूम- फ़क़त सूरज नजिस चीज़ को ख़ुश्क करे। लिहाज़ा मिसाल के तौर पर अगर नजिस चीज़ हवा और धूप से ख़ुश्क हो तो पाक नहीं होती। हां अगर हवा इतनी हल्कि हो कि यह न कहा जा सके कि नजिस चीज़ को ख़ुश्क करने में उसने भी कोई मदद की है तो फिर कोई हरज नहीं।

पंजुम- बुनियाद और इमारत के जिस हिस्से में नजासत सरायत कर गई है धूप से एक ही मर्तबा ख़ुश्क हो जाए। पस अगर एक दफ़्आ धूप नजिस ज़मीन और इमारत पर पड़े और उसका सामना वाला हिस्सा ख़ुश्क करे और दूसरी दफ़्आ निचले हिस्से को ख़ुश्क करे तो उसका सामने वाला हिस्सा पाक होगा और निचला हिस्सा नजिस रहेगा।

193. सूरज नजिस चटाई को पाक कर देता है लेकिन अगर चटाई धागे से बुनी हुई हो तो धागे के पाक होने में इश्काल है। इसी तरह दरख़्त घास और दरवाज़े, खिड़कियां, सूरज से पाक होने में इश्काल है।

194. अगर धूप नजिस ज़मीन पर पड़े और इस में शक पैदा हो कि धूप पड़ने के वक़्त ज़मीन तर थी कि नहीं या तरी धूप के ज़रिये ख़ुश्क हुई है या नहीं तो वह ज़मीन नजिस होगी। और अगर शक पैदा हो कि धूप पड़ने से पहले ऐने नजासत ज़मीन पर से हटा दी गई थी या नहीं या यह कि कोई चीज़ धूप को माने थी या नहीं तो फिर भी वही सूरत होगी। (यानी ज़मीन नजिस रहेगी ।)

195. अगर धूप नजिस दीवार की एक तरफ़ पड़े और उसके ज़रिये दीवार की वह जानिब भी ख़ुश्क हो जाए कि जिस पर धूप नहीं पड़ी तो बईद (दूर) नहीं की दीवार दोनों तरफ़ से पाक हो जाए।

4. इसतिहाला

196. अगर किसी चीज़ की जिंस यूं बदल जाए कि एक पाक चीज़ की शक्ल इख़्तियार कर ले तो वह पाक हो जाती है। मिसाल के तौर पर नजिस लकड़ी जल कर राख हो जाए या कुत्ता नमक की खान में गिरकर नमक बन जाए। लेकिन अगर उसकी जिंस न बदले मसलन नजिस गेहूं को पीस कर आटा बना लिया जाए या (नजिस आटे की) रोटी पका ली जाए तो वह पाक नहीं होगी।

197. मिट्टी का लोटा और दूसरी ऐसी चीज़ें जो नजिस मिट्टी से बनाईं जायें नजिस हैं लेकिन वह कोयला जो नजिस लकड़ी से तैयार किया जाए अगर उसमें लकड़ी की कोई ख़ासीयत बाक़ी न रहे तो वह कोयला पाक है।

198. ऐसी नजिस चीज़े जिसके मुतअल्लिक़ इल्म न हो कि आया इसका इसतिहाला हुआ है या नहीं (यानी जिंस बदली है या नहीं) नजिस है।

5. इंक़िलाब

199. अगर शराब खुद ब खुद या कोई चीज़ मिलाने से मसलन सिर्का और नमक मिलाने से सिर्का बन जाए तो पाक हो जाती है।

200. वह शराब जो नजिस अंगूर या उस जैसी किसी दूसरी चीज़ से तैय्यार की गई हो या कोई नजिस चीज़ शराब में गिर जाए तो सिर्का बन जाने से पाक नहीं होती।

201. नजिस अंगूर, नजिस किशमिश और नजिस ख़जूर से जो सिर्का तैयार किया जाए वह नजिस है।

202. अगर अगूंर या खजूर के डंठल भी उनके साथ हों और उनसे सिर्का तैयार किया जाए तो कोई हरज नहीं बल्कि उसी बर्तन में खीरे और बैंगन वग़ैरा डालने में भी कोई ख़राबी नहीं ख़्वाह अंगूर या ख़जूर के सिर्का बनने से पहले ही डालें जाएं बशर्ते कि सिर्का बनने से पहले उनमें नशा न पैदा हुआ हो।

203. अगर अंगूर के रस में आंच पर रखने से या ख़ुद ब ख़ुद जोश आ जाये तो वह हराम हो जाता है और अगर वह इतना उबल जाए कि उसका दो तिहाई हिस्सा ख़त्म हो जाए और एक तिहाई बाक़ी रह जाए तो हलाल हो जाता है और मस्अला (नं0 114) में बताया जा चुका है कि अगूंर का रस जोश देने से नजिस नहीं होता (मगर खाना पीनी हराम है) ।

204. अगर अंगूर के रस का दो तिहाई बग़ैर जोश में आए कम हो जाए और जो बाक़ी बचे उसमें जोश आ जाए तो अगर लोग उसे अंगूर का रस कहें, शीरा न कहें तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर वो हराम है।

205. अगर अंगूर के रस के मुतअल्लिक़ यह मालूम न हो कि जोश में आया है या नहीं तो वह हलाल है लेकिन अगर जोश में आ जाए और यह यक़ीन न हो कि उसका दो तिहाई कम हुआ है या नहीं तो वह हलाल नहीं होता।

206. अगर कच्चे अंगूर के खोशे मे कुछ पक्के अंगूर भी हों और जो रस उस खोशे से लिया जाए उसे लोग अंगूर का रस न कहें और उसमें जोश आ जाए तो उसका पीना हलाल है।

207. अगर अंगूर का एक दाना किसी ऐसी चीज़ में गिर जाए जो आग पर जोश खा रही हो और वह भी जोश खाने लगे लेकिन वह उस चीज़ में हल न हो तो फ़क़त उस दाने का खाना हराम है।

208. अगर चन्द देग़ो में शीरा पकाया जाये तो जो चमचा जोश में आई हुई देग़ में डाला जा चुका हो उसका ऐसी देग़ में भी डालना जायज़ है जिसमें जोश न आया हो।

209. जिस चीज़ के बारे में यह मालूम न हो कि वह कच्चे अंगूरों का रस है या पक्के अंगूरों का, अगर उसमें जोश आ जाए तो हलाल है।

6- इंतिक़ाल

210. अगर इंसान का ख़ून या उछलने वाला ख़ून रखने वाले हैवान का ख़ून कोई ऐसा हैवान जिसमें उर्फ़न ख़ून नहीं होता इस तरह चूस ले कि वह ख़ून उस हैवान के बदन का जुज़्व हो जाए। मसलन मच्छर, इंसान या हैवान के बदन से इस तरह ख़ून चूसे तो वह ख़ून पाक हो जाता है और उसे इन्तिक़ाल कहते हैं। लेकिन इलाज की ग़रज़ से इन्सान का जो ख़ून जोंक चूसती है वह जोंक के बदन का जुज़्व नहीं बनता बल्कि इंसानी ख़ून ही रहता है इसलिये वह नजिस है।

211. अगर कोई शख़्स अपने बदन पर बैठे हुए मच्छर को मार दे और वह ख़ून जो मच्छर ने चूसा हो उसके बदन से निकले तो ज़ाहिर यह है कि वह ख़ून पाक है क्योंकि वह ख़ून इस क़ाबिल था कि मच्छर की ग़िज़ा बन जाए, अगर मच्छर के ख़ून चूसने और मारे जाने के दरमियान वक़्फ़ा बहुत कम हो, लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस ख़ून से इस हालत में परहेज़ करें।

7- इसलाम

212. अगर कोई काफ़िर "शहादतैन" पढ़ ले यानी किसी भी ज़बान (भाषा) में अल्लाह की वहदानीयत और ख़ातमुलअंबिया हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलेहै व आलेही वसल्लम की नुबुव्वत की गवाही दे दे तो मुसलमान हो जाता है। और अगरचे वह मुसलमान होने से पहले नजिस के हुक्म में था लेकिन मुसलमान हो जाने के बाद उसका बदन, थूक, नाक का पानी और पसीना पाक हो जाता है। लेकिन मुसलमान होने के वक़्त अगर उसके बदन पर कोई ऐने नजासत हो तो उसे दूर करना और उस मक़ाम को पानी से धोना ज़रूरी है बल्कि अगर मुसलमान होने से पहले ही ऐने नजासत दूर हो चुकी हो तब भी एहतियाते वाजिब यह है कि उस मक़ाम को पानी से धों डाले।

213. एक काफ़िर के मुसलमान होने से पहले अगर उसका गिला लिबास उसके बदन से छू गया हो तो उसके मुसलमान होने के वक़्त वह लिबास उसके बदन पर हो या न हो एहतियाते वाजबि की बिना पर उससे इज्तिनाब करना ज़रूरी है।

214. अगर काफ़िर "शहादतैन" पढ़ ले और यह न मालूम हो कि वह दिल से मुसलमान हुआ है या नहीं तो वह पाक है। और अगर यह इल्म हो कि वह दिल से मुसलमान नहीं हुआ लेकिन ऐसी कोई बात उससे ज़ाहिर न हुई हो जो तौहीद और रिसालत की शहादत के मनाफ़ी हो तो सूरत वही है (यानी वह पाक है) ।

8- तबईय्यत

215. तबईय्यत का मतलब है कोई नजिस चीज़ किसी दूसरी चीज़ के पाक होने की वजह से पाक हो जाए।

216. अगर शराब सिर्का हो जाए तो उसका बर्तन भी उस जगह तक पाक हो जाता है जहां तक शराब जोश खाकर पहुंची हो और अगर कोई कपड़ा या कोई दूसरी चीज़ उमूमन उस (शराब के बर्तन) पर रखी जाती है और उस से नजिस हो गई हो तो वह भी पाक हो जाती है लेकिन अगर बर्तन की बैरूनी सत्ह उस शराब से आलूद हो जाए तो एहतियाते वाजिब यह है कि शराब के सिर्का हो जाने के बाद उस सत्ह से परहेज़ किया जाए।

217. काफ़िर का बच्चा बज़रीयाए तबईय्यत दो सूरतों में पाक हो जाता हैः-

1. जो काफ़िर मर्द मुसलमान हो जाए उसका बच्चा तहारत में उसके ताबे है और इसी तरह बच्चे की मां या दादी या दादा मुसलमान हो जाएं तब भी यही हुक्म है। लेकिन इस सूरत में बच्चे की तहारत का हुक्म इससे मशरूत है कि बच्चा उस नवमुस्लिम के साथ और उसके ज़ेरे कफ़ालत हो नीज़ बच्चे का कोई काफ़िर रिश्तेदार उस बच्चे के हमराह न हो।

2. एक काफ़िर बच्चे को किसी मुसलमान ने क़ैद कर लिया हो और उस बच्चे के बाप या बुज़ुर्ग (दादा या नाना वग़ैरह) में से कोई एक भी उसके हमराह न हों। इन दोनों सूरतों में बच्चे की तबईय्यत की बिना पर पाक होने की शर्त यह है कि वह जब बाशऊर हो जाए तो कुफ़्र इख़्तियार न करे।

218. वह तख़्ता या सिल जिस पर मैयित को ग़ुस्ल दिया जाए और वह कपड़ा जिससे मैयित की शर्मगाह ढांपी जाए नीज़ ग़स्साल के हाथ ग़ुस्ल मुकम्मल होने के बाद पाक हो जाते हैं।

219. अगर कोई शख़्स किसी चीज़ को पानी से धोए तो उस चीज़ के पाक होने पर उस शख़्स का वह हाथ भी पाक हो जाता है जिस से वह उस चीज़ को धोता है।

220. अगर लिबास या उस ज़ैसी किसी चीज़ को क़लील पानी से धोया जाए और इतना निचौड़ दिया जाए जितना आम तौर पर निचोड़ा जाता हो ताकि जिस पानी से धोया गया है उसका धोवन निकल जाए तो जो पानी उसमें रह जाए वो पाक है।

221. जब नजिस बर्तन को क़लील पानी से धोया जाए तो जो पानी बर्तन को पाक करने के लिये उस पर डाला जाए उसके बह जाने के बाद जो मअमूली पानी उसमें बाक़ी रह जाए वह पाक है।

9- ऐने नजासत का दूर होना

222. अगर किसी हैवान का बदन ऐने नजासत मसलन ख़ून या नजिसशुदा चीज़ मसलन नजिस पानी से आलूदा हो जाए तो जब वह नजासत दूर हो जाए हैवान का बदन पाक हो जाता है और यही सूरत इन्सानी बदन के अन्दरूनी हिस्सों मिसाल के तौर पर मुहं या नाक और कान के अन्दर वाले हिस्सों की है कि वह बाहर से नजासत लगने से नजिस हो जायेंगे और जब नजासत दूर हो जाए तो पाक हो जायेंगे लेकिन नजासते दाख़िली मसलन दांतों के रेख़ों से ख़ून निकलने से बदन का अन्दरूनी हिस्सा नजिस नहीं होता, और यही हुक्म है कि जब किसी ख़ारिजी चीज़ को बदन के अन्दरूनी हिस्से में नजासते दाख़िली लग जाए तो वह चीज़ नहीं होती। इस बिना पर अगर मसनूई दांत मुंह के अन्दर दूसरे दांतों के रेख़ों से निकले हुए ख़ून से आलूदा हो जायें तो उन दांतों को धोना लाज़िम नहीं है लेकिन अगर उन मसनूई दांतों को नजिस ग़िज़ा लग जाए तो उनको धोना लाज़िम है।

223. अगर दांतों की रेख़ों में ग़िज़ा लगी रह जाए और फिर मुंह के अन्दर ख़ून निकल आए तो वह ग़िज़ा ख़ून मिलने से नजिस नहीं होगी।

224. होंठों और आँख की पलकों के वह हिस्से जो बन्द करते वक़्त एक दूसरे से मिल जाते हैं वह अन्दरूनी हिस्से का हुक्म रखते हैं। अगर इस अन्दरूनी हिस्से में ख़ारिज से कोई नजासत लग जाए तो इस अन्दरूनी हिस्से को धोना ज़रूरी नहीं है। लेकिन वह मक़ामात जिनके बारे में इन्सान को यह इल्म न हो कि आया उन्हें अन्दरूनी हिस्सा समझा जाए या बेरूनी, अगर ख़ारिज से नजासत उन मक़ामात पर लग जाए तो उन्हें धोना चाहिये।

225. अगर नजिस मिट्टी कपड़े या ख़ुश्क क़ालीन, दरी या ऐसी ही किसी और चीज़ को लग जाए और कपड़े वग़ैरा को यूं झाड़ा जाए कि नजिस मिट्टी उससे अलग हो जाए तो उसके बाद तर चीज़ कपड़े वग़ैरा को छू जाए तो वह नजिस नहीं होगी।

10- नजासत खाने वाले हैवान का इसतिबरा

226. जिस हैवान को इन्सानी नजासत खाने की आदत पड़ गई हो उसका पेशाब और पख़ाना नजिस है और अगर उसे पाक करना मक़्सूद हो तो उसका इसतिबरा करना ज़रूरी है यानी एक अर्से तक उसे नजासत न खाने दें और पाक ग़िज़ा दें हत्ता कि इतनी मुद्दत गुज़र जाए कि फिर उसे नजासत खाने वाला न कहा जा सके। और एहतियाते मुस्तहब की बिना पर नजासत खाने वाले ऊंट को सालीस दिन तक, भेड़ को दस दिन तक, मुर्ग़ाबी को सात या पांच दिन तक और पालतू मुर्ग़ी को तीन दिन तक नजासत खाने से बाज़ रखा जाए। अगर यह मुक़र्ररः मुद्दत गुज़रने से पहले ही उन्हें नजासत खाने वाला हैवान न कहा जा सके (तब भी उस मुद्दत तक उन्हें नजासत खाने से बाज़ रखना चाहिये) ।

11- मुसलमान का ग़ायब हो जाना

अगर बालिग़ और पाकी नापाकी समझने वाले मुसलमान का बदन या लिबास या दूसरी अश्या मसलन बर्तन और दरी वग़ैरह जो उसके इस्तेमाल में हों नजिस हो जायें और फिर वह वहां से चला जाए तो अगर कोई इन्सान यह समझे कि उसने यह चीज़ें धोईं थीं तो वह पाक होंगी लेकिन एहतियाते मुस्तहब है कि उनको पाक न समझे मगर दर्जे ज़ैल चन्द शरायत के साथः

अव्वल – जिस चीज़ ने उस मुसलमान के लिबास को नजिस किया है उसे वह नजिस समझता हो। लिहाज़ा अगर मिसाल के तौर पर उसका लिबास तर हो और काफ़िर के बदन से छू गया हो और वह उसे नजिस न समझता हो तो उसके चले जाने के बाद उसके लिबास को पाक नहीं समझना चाहिये।

दोव्वुम – उसे इल्म हो कि उसका बदन या लिबास नजिस चीज़ से लग गया है।

सोव्वुम – कोई शख़्स उसे उस चीज़ को ऐसे काम में इस्तेमाल करते हुए देखे जिसमें उसका पाक होना ज़रूरी हो, मसलन उसे उस लिबास के साथ नमाज़ पढ़ते हुए देखे।

चहारूम – इस बात का एहतिमाल हो कि वह मुसलमान जो काम इस चीज़ के साथ कर रहा है इसके बारे में उसे इल्म है कि उस चीज़ का पाक होना ज़रूरी है। लिहाज़ा मिसाल के तौर पर अगर वह मुसलमान यह नहीं जानता कि नमाज़ पढ़ने वाले का लिबास पाक होना चाहिये और नजिस लिबास के साथ ही नमाज़ पढ़ रहा है तो ज़रूरी है कि इन्सान उस लिबास को पाक न समझे।

पंजुम - वह मुसलमान नजिस और पाक चीज़ में फ़र्क करता हो- पस अगर वह मुसलमान नजिस और पाक चीज़ में लापरवाई करता हो तो ज़रूरी है कि इन्सान उस चीज़ को पाक न समझे।

228. अगर किसी शख़्स को यक़ीनन या इत्मीनान हो कि जो चीज़ पहले नजिस थी अब पाक हो गई है या दो आदिल अश्ख़ास उसके पाक होनें की ख़बर दें और उनकी शहादत उस चीज़ की पाकी का जवाज़ बनें तो वह चीज़ पाक है। इसी तरह वह शख़्स जिसके पास कोई नजिस चीज़ हो कहे कि वह चीज़ पाक हो गई है और वह ग़लत बयान न हो या किसी मुसलमान ने एक नजिस चीज़ को धोया हो गोया यह मआलूम न हो कि उसने उसे ठीक तरह से धोया है या नहीं तो वह चीज़ भी पाक है।

229. अगर किसी ने एक शख़्स का लिबास धोने की ज़िम्मेदारी ली हो और कहे कि मैंने उसे धो दिया है और उस शख़्स को उसके यह कहने से तसल्ली हो जाए तो वह लिबास पाक है।

230. अगर किसी शख़्स की यह हालत हो जाए कि उसे किसी नजिस चीज़ के धोए जाने का यक़ीन ही न आए अगर वह उस चीज़ को जिस तरह लोग आमतौर पर धोते हैं धो ले तो काफ़ी है।

12 –मअमूल के मुताबिक़ (ज़बीहा के) ख़ून का बह जाना

231. जैसा कि मस्अला 98 में बताया गया है कि किसी जानवर को शरई तरीक़े से ज़िब्हा करने के बाद उसके बदन से मअमूल के मुताबिक़ (ज़रूरी मिक़दार में) ख़ून निकल जाए तो जो ख़ून उसके बदन के अन्दर बाक़ी रह जाए वह पाक है।

232. मज़कूरा बाला हुक्म जिसका बयान मस्अला 231 में हुआ है एहतियात की बिना पर उस जानवर से मख़्सूस है जिसका गोश्त हलाल हो। जिस जानवर का गोश्त हराम हो उस पर यह हुक्म जारि नहीं हो सकता बल्कि एहतियाते मुस्तहब की बिना पर उसका इत्लाक़ हलाल गोश्त वाले जानवर के उन अअज़ा पर भी नहीं हो सकता जो हराम है।

बर्तनों के अहकाम

233. जो बर्तन, कुत्ते, सुव्वर या मुर्दार के चमड़े से बनाया जाए उसमें किसी चीज़ का खाना, पीना जाबकि तरी उसकी नजासत का मूजीब बनी हो, हराम है। और उस बर्तन को वुज़ू और ग़ुस्ल और ऐसे दूसरे कामों में इस्तेमाल नहीं करना चाहिये जिन्हें पाक चीज़ से अन्जाम देना ज़रूरी हो और एहतियाते मुस्तहब यह है कि कुत्ते, सुव्वर और मुर्दार के चमड़े को ख़्वाह वह बर्तन की शक्ल में न भी हो इस्तेमाल न किया जाए।

234. सोने और चांदी के बर्तनों में खाना पीना बल्कि एहतियाते वाजिब की बिना पर उनको किसी तरह भी इस्तेमाल करना हराम है लेकिन उनसे कमरा वग़ैरा सजाने या उन्हें अपने पास रखने में कोई हरज नहीं गो उनका तर्क कर देना अहवत है। और सजावट या क़ब्ज़े में रखने के लिये सोने और चांदी के बर्तन बनाने और उनकी ख़रीद व फ़रोख़्त करने का भी यही हुक्म है।

235. इस्तिकान (शीशे का छोटा सा गिलास जिसमें कहवा पीते हैं) का होल्डल जो सोने या चांदी से बना हुआ हो अगर उसे बर्तन कहा जाए तो वह सोने और चांदी के बर्तन का हुक्म रखता है और अगर उसे बर्तन न कहा जाए तो उसके इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं।

236. ऐसे बर्तनों के इस्तेमाल में कोई हरज नहीं जिन पर सोने या चांदी का पानी चढ़ाया गया हो।

237. अगर जस्त को सोने या चांदी में मख़लूत (मिश्रित) करके बर्तन बनाये जायें और जस्त इतनी ज़्यादा मिक़दार में हो कि उस बर्तन को सोने या चांदी का बर्तन न कहा जाए तो उसके इस्तेमाल में कोई हर्ज नहीं।

238. अगर ग़िज़ा सोने या चांदी के बर्तन में रखी हो और कोई शख़्स उसे दूसरे बर्तन में उंडेल ले तो अगर दूसरा बर्तन आमतौर पर पहले बर्तन में खाने का ज़रीआ शुमार न हो तो ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं है।

239. हुक्के के चिल्लम का सुराख़ वाला ढकना (सरपोश), तलवार या छुरी, चाकू का म्यान और क़ुरआन रखने का डिब्बा अगर सोने या चांदी से बने हों तो कोई हरज नहीं ताहम एहतियाते मुस्तहब यह है कि सोने या चांदी की बनी हुई इत्रदानी, सुर्मादानी और अफ़ीम दानी इस्तेमाल न की जाये।

240. मजबूरी की हालत में सोने चांदी के बर्तनों में इतना खाने पीने में कोई हरज नहीं जिससे भूक मिट जाए लेकिन इससे ज़्यादा खाना पीना जायज़ नहीं।

241. ऐसा बर्तन इस्तेमाल करने में कोई हरज नहीं जिसके बारे में मालूम न हो कि यह सोने या चांदी का है या किसी और चीज़ से बना हुआ है।