हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

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हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जुलूसे मदहे सहाबा में तबर्रा

22 जनवरी सन् 1997 का हिन्दी स्वतंत्र भारत शुमारा नम्बर 159 सफ़ा नम्बर चार पर लिखता है।

आज दोपहर लगभग डेढ़ बजे तक सुन्नियों का जुलूस चारयारी मस्जिद के पास पहुंचा तो पुलिस ने इसे वहीं रोक दिया और आगे जाने वाले रास्ते को सील कर दिया क्योंकि सुन्नियों के जुलूस को यहीं पर ख़त्म होना था। इसके बाद सुन्नियों ने अपने झण्डों को लपेटना शुरू ही किया ही था कि जुलूस में मौजूद तीन लोगों ने तबर्रा पढ़ना शुरू कर दिया जिससे भीड़ भड़क उठी और उन लोगों ने उन नौ जवानों की पिटाई शुरू कर दी पिलाई कर रहे सुन्नियों की गिरफ़्त से भागे मज़कूरा तीनों नौजवान चारयारी मस्जिद में जा छिपे जिस से मुशतअल भीड़ भी इन लोगों के पीछे मस्जिद में जाने लगी। इस अफ़रा तफ़री के माहौल में एक शख़्स ने मस्जिद के पास ही खड़े अपर ज़िला अधिकारी (नगर) , को हादसे की इत्तेला दी हादसे की इत्तेला मिलते ही अपर ज़िला अधिकारी नगर ऐ 0 के 0 चतुर्वेदी और अपर पुलिस अधीक्षक (पश्चिम) सतेन्द्र वीर सिंह तीन पुलिस वालों के साथ मस्जिद में घुस गये इन के पीछे और पुलिस वालों ने जाना चाहा पर इन्हें वहां मौजूद लोगों ने मस्जिद में जाने से रोक दिया। कुछ लम्हों के बाद जब अपर ज़िला अधिकारी (नगर) व पुलिस अधीक्षक (पश्चिम) मस्जिद के बाहर आये तो उन्होंने बताया कि भीड़ के ज़रिये पीटे गये शख़्स तीन नहीं सिर्फ़ एक ही है और वह भी शिया नहीं सुन्नी है जो अब भी ऊपर ही बैठा हुआ है जब कि जुलूस में मौजूद लोगों का कहना है कि जुलूस में शामिल तीन लोगों ने तबर्रा पढ़ा था और वही पीटे गये। भीड़ में मौजूद लोगों ने ज़िला इंतिज़ामिया पर इल्ज़ाम आयद किया कि उसने तीनों नौ जवानों को मस्जिद के पिछले रास्ते से भगा दिया।

इस एकतेबास से साफ़ तौर पर वाज़ेह है कि सुन्नियों में एक फ़िरक़ा ऐसा भी है जो न सिर्फ़ जुलूसे मदहे सहाबा का मुख़ालिफ़ है बल्कि शिया सुन्नी झगड़े का शाक़िसाना खड़ा कर के शहर में फ़ितना व फ़साद की आग भड़काना चाहता है नेज़ गुज़िशता वाक़ेआत का सरसरी तौर पर जायज़ा लेने से यह बात खुल कर सामने आती है कि अकसर व बेशतर बारह वफ़ात के मौक़े पर मदहे सहाबा के बलमुक़ाबिल तबर्रा का होना शियों का फेल नहीं था बल्कि इसी फ़िरक़े के लोगों का कारनामा था और मुरीदे इलज़ाम शियों को क़रार दिया जाता था जैसा कि इसी अलामती जुलूस के दौरान हुआ।

अख़बारी इक़्तेबासात

1.इन टोकन जुलूसों के ज़ैल में हिन्दी अख़बार राष्ट्रीय सहाबा का बयान है कि –

ज़िला इंतिज़ामियां के साथ हुए एक समझौते के मुताबिक़ शियों को इक्कीसवीं रमज़ान ( 21 जनवरी) कार्यवाही जुलूस आज सुबह पुत्तन साहिबा की करबला से निकाला गया। जुलूस बुलाकी अड्डा से होता हुआ ताल कटोरा पहुंचा जहां मातमी अंजुमनों ने नौहा ख़्वानी कर के हज़रत अली (अ.स.) को ख़ेराजे अक़ीदत पेश किया जुलूस का सिलसिला सुहब 11 बजे से शाम 4 बेज तक जारी रहा। रवायती जुलूस निकाले जाने से पहले पुत्तन साहिबा की करबला में एक बड़ी मजलिस का एहतेमाम किया गया जिसे धर्म गुरू मौलाना कल्बे जव्वाद साहब ने ख़िताब किया मौलाना ने शियों के इमाम हज़रत अली (अ.स.) की शहादत पर रौशनी डालते हुए बताया कि हज़रत अली (अ.स.) की निगाह में नमाज़ की क्या अहमियत थी। मौलाना ने कहा जिस तरह हज़रत अली (अ.स.) ने नमाज़ के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की इसी तरह सभी मुसलमानों को नमाज़ की अहमियत समझनी चाहिए।

मजलिम के बाद तमाम अंजुमनों के दस्तों की या हुसैन , या अली की सदायें गूंजने लगीं मातमी अंजुमनों का यह सिलसिला पुत्तन साहिबा की करबला से लेकर तक़रीबन एक किलो मीटर की दूरी तक फ़ैलता चला गया।

जुलूस में अलम व ताबूत भी निकाले गये लोगों ने इन की ज़ियारत की बाद में करबलाये तालकटोरा पहुंच कर अलम व ताबूत को ठंडा कर दिया गया। ताल कटोरा पहुंचने पर भी लोगों ने अलग अलग मजलिस व नौहा ख़्वानी की पूरा ताल कटोरा सहन मातमी अंजुमनों व जुलूस में शामिल लोगों से खचाखच भरा हुआ था।

इधर तहफ़्फ़ुज़े नामूसे सहाबा और आल इण्डिया सुन्नी यूथ फेडरेशन के बैनर तले बड़ी तादाद में सुन्नी मुसलमानों ने आज भोला नाथ कुंआ से पुल ग़ुलाम हुसैन तक तारीख़ी व मज़हबी जुलूस निकाला। जुलूस अगरचे बग़ैर नाम ही के निकाले गये लेकिन सैकड़ौं झण्डों और बैनर के साथ लोगों ने अपने मदहे सहाबा के जुलूसों की याद ताज़ा की।

जुलूस के दौरान अफ़रा तफ़री मच गयी जब जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने अब्दुल अज़ीज़ रोड़ अकबरी गेट से पुल ग़ुलाम हुसैन की तरफ़ मुड़ने के बजाय विक्टोरिया स्ट्रीट की तरफ़ बढ़ने की कोशिश की वहां मौक़े पर मौजूद अफ़सरान व सुन्नी लीडरान ने मुदाख़ेलत कर के हालात को बिगड़ने से बचा लिया।

सुन्नियों की तरफ़ से 21 रमज़ान को निकाला गया यह पहला जुलूस था। जुलूस निकलने पर हर चेहरे पर खुशी झलक रही थी और जुलूस में शामिल होने के लिए शहर की तमाम अंजुमनें आज सुबह ही से भोला नाथ कुंआ की तरफ़ पहुंचना शुरू हो गयी थीं। 11 बजते ही मुक़र्रर वक़्त पर सुन्नी मुसलमानों ने जुलूस निकालना शुरू किया। दो घण्टे तक चले इस जुलूस के प्रोग्राम की सदारत तहफ़्फ़ुज़े नामूसे सहाबा और सुन्नी यूथ फेडरेशन की तरफ़ से शेख़ सग़ीर हुसैन , हाजी ग़ुलाम हुसैन , हसन अहमद सिद्दीक़ी , रईस अंसारी , मुशर्रफ़ हुसैन , मौलाना अब्दुल रहमान फ़ारूक़ी , मौलाना अब्दुल बारी , और फ़ज़्ले आलम एडवोकेट ने की इस मौक़े पर अंजुमन माविया , अन्जुमन 786, अंजुमन मदहे सहाबा , अंजुमन कयामे सलाल , अंजुमन क़दीमी , अंजुमन निजामुल मुसलेमीन , अंजुमन आज़ाद 313, अंजुमन आज़ाद 62, अंजुमन तलहा , अंजुमन ख़ुद्दामे उस्मानी , और अंजुमन उसमानियां ने दुरूद व सलाम पेश की उस दौरान अंजुमनी दस्तों ने कुछ यादगार अशआर पढ़ कर सहाबा का नाम बलंद किया।

सहाबा का परचम उठाये चला चल।

क़दम आगे आगे बढ़ाऐ चला चल।।

मेरे सहाबा सितारों की मानिंद हैं।

इन की पैरवी करोगे तो निजात पाओगे।।

हमें ऐ जज़्बाए इस्लाम तुझ से काम लेना है।

अबू बकर व उमर उस्मान अली का नाम लेना है।।

जुलूस पुल ग़ुलाम हुसैन की चारयारी मस्जिद में दोपहर की नमाज़ और दुआयी प्रोग्राम के बाद ख़त्म हुआ।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

2. उर्दू रोज़नामा इन दिनों का बयान है।

आज लखनऊ के शहरियों ने हज़रत अली करम अल्लाह वजहू की शहादत की याद में शिया मसलक के मानने वालों को लाखों की तादाद में पुत्तन साहिबा की करबला से ताल कटोरा तक मातम करते हुए देखा। इस मातम में बड़ी तादाद में पुरजोश नौ जवानों ने छुरियों और ज़ंजीरों का मातम कर के मौला अली (अ.स.) के प्यारों के साथ नज़राना ए अक़ीदत पेश किया। हमारे नुमाइंदे के मुताबिक़ विक्टोरियां स्ट्रीट से ताल कटोरा तक स्याह लिबास में इंसानों का ठांठे मारता हुआ समन्दर , या पुलिस की ख़ाकी वरदियों का मंज़र नज़र आ रहा था। ताल कटोरा पहुंचने पर अंदाज़ा हुआ कि इतना बड़ा मजमा करबला में समा नहीं सकता इस लिए किसी मजलिम का इंतज़ाम नहीं किया गया। इस लिए कि मजमें को कोई ताक़त या शख़्सियत कंट्रोल नहीं कर सकती थी। जुलूस की क़यादत मौलाना कल्बे जव्वाद साहब , मौलाना हमीदुल हसन साहब , मौलाना अली नासिर सईद अबाक़ाती आग़ा रूही साहब और मौलाना ज़हीर अहमद इफ़्तेख़ारी ने की और लाख़ो के मजमे ने कहीं भी वक़ार और सुकून को हाथ से जाने नहीं दिया। हर चन्द कि यह जुलूस हैदर गंज क़दीम से भी ग़ुज़रा जहां सुन्नियों की ख़ासी आबादी है लेकिन वह तमाम अहले मोहल्ला इत्मीनान के साथ जुलूस को गुज़रता हुआ और मातम का नज़ारा देखते रहे। शिया सोगवारों ने वापसी के लिए विक्टोरिया स्ट्रीट को ही इस्तेमाल नहीं किया बल्कि राजाजी पुरम की तरफ़ से कश्मीरी मोहल्ला काज़मैन और सआदतगंज की सड़कों से भी मजमा वापस हुआ। हमारे नुमाइन्दे कि इत्तेला के मुताबिक़ पुत्तन साहिबा की करबला से ताल कटोरा तक शिया हज़रात का जो हुजूम मातम करता हुआ गुज़रा उसके साथ दो ताबूत और पांच अलम थे। जुलूस में शामिल लोगों ने या अली मौला और हैदर मौला के ही नारे लगाये और बड़े नज़्म व ज़ब्त के साथ यह जुलूस करबला ए ताल कटोरा पर बख़ैर व ख़ूबी तमाम हुआ।

हिफ़ाज़ती बन्दोबस्त का यह आलम था कि छतों पर पुलिस लगी हुई थी और जुलूस के आगे आगे दरजनो घोड़े सवार पुलिस और काफ़ी तादाद में पी 0 ए 0 सी 0 और इन्तिज़ामियां और पुलिस के अफ़सरान भी थे और यही हाल जुलूस के पीछे था। जुलूस जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा था लोग अपनी अपनी छतो पर खड़े हो कर इस तारीख़ी मंज़र को देख रहे थे।

सुन्नियों का जुलूस भोला नाथ कुंआ पर वाक़ेया हकीम अब्दुलवली पार्क से शुरू हो कर मस्जिद चारयारी पुल ग़ुलाम हुसैन पर तमाम हुआ। इसमें भी हज़ारों की तादाद में सुन्नियों ने शिरकत की। इस जुलूस में मुख़तलिफ़ अंजुमनों के चालीस झण्डे शामिल थे। जिन पर चारों ख़ुल्फ़ा ए राशदीन के नाम लिखे हुए थे। जुलूस में शामिल मिख़तलिफ़ अंजुमने मदहे सहाबा पढ़ रही थीं जब यह जुलूस अकबरी गेट की चढ़ायी से मस्जिद चारयारी की तरफ़ मुड़ने वाला था कि तभी कुछ पुरजोश नौजवानों ने एक मीनारा मस्जिद की तरफ़ बढ़ना शुरू किया मगर कुछ बदनज़मी न हो सकी। जुलूस शुरू होने से पहले क़ारी वसीम साहब ने तिलावत की , जुलूस में सब से आगे सुन्नी यूथ फ़ेडरेशन औत तहफ़्फ़ुज़े नामूसे सहाबा के बैनर थे। जुलूस की क़यादत मिस्टर शमीम सग़ीर , मिस्टर हसन अहमद सिद्दीक़ी , हाजी ग़ुलाम हसनैन , मिस्टर अब्दुल्ला , मिस्टर क़मर याब जिलानी और सुन्नी यूथ फेडरेशन की तरफ़ से मिस्टर मुशर्रफ़ हुसैन , मिस्टर सलाउद्दीन अबूबकर , मिस्टर ग़ुफ़रान नसीम , मिस्टर शाह नवाज़ , मिस्टर मोहम्मद उमर और मिस्टर ख़ालिद हलीम ने क़यादत की इस के अलावा मौलाना अब्दुल अलीम के तीनों बेटे भी शामिल थे। जुलूस जिधर जिधर से गुज़रा उस पर फूलों की बारिश हुई और जगह जगह इस्तेक़बाल किया गया।

अमन व अमान क़ायम रखने के लिए इन अलामती जुलूसों में 19 मजिस्ट्रेट 140 अफ़सरों की ड्यूटी लगायी गयी थी। 38 कम्पनी पी 0 ए 0 सी 0 व सरीउल हरकत फ़ोर्स लगायी गयी थी। जुलूस के तमाम इलाक़ों को चौदह सेक्टरों में बांटा गया था और इन तमाम जगहों पर मजिस्ट्रेटों और बाहर से आये तमाम अफ़सरों की ड्यूटी लगायी गयी थी।

3. रोज़नामा सहाफ़त लिखता है –

शहादत अमीरूल मोमेनीन के मौक़े पर आज शहर में 20 साल से ज़्यादा अरसे के बाद अलामती जुलूस निकाले गये ज़िला इंतिज़ामियां और दोनों फ़िरक़ों के रहनुमाओं के माबैन मुहायदे के बाद यह जुलूस निकलने की इजाज़त दी गयी और इस दौरान कोई नाख़ुशगवार वाक़ेया रूनुमा नहीं हुआ। दोनों फ़िर्क़ें के रहनुमाओं ने पुरअमन तौर पर इन जुलूसों के निकल जाने पर अवाम और ज़िला इंतिज़ामियां का शुक्रिया अदा किया है और उम्मीद ज़ाहिर की है कि इस से मसले के मुसतक़िल हल निकल आने की राह हमवार हो गयी है।

करबला ए पुत्तन साहब जहां से इस आरज़ी मुहायदे के तहत शिया मुसलमानों का जुलूस निकलना था मोमेनीन सुबह हसन मिर्ज़ा का ताबूत उठने के बाद से ही जमा होने लगे थे जुलूस से क़ब्ल मजलिस को ख़िताब करते हुए मौलाना कल्बे जव्वाद साहब ने शहादते अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) का ज़िक्र किया और अवाम को हिदायत दी कि आप लोग जुलूस में सिर्फ़ मातम करें और कोई ऐसी हरकत न करें जिस से दूसरे फ़िर्क़े को कोई तकलीफ़ पहुंचे और हम पर कोई इल्ज़ाम लग सके। बादे ख़त्मे मजलिस ठीक ग्यारह बजे दिन में शिया उलमा मौलाना हमीदुल हसन , मौलाना कल्बे जव्वाद , और मौलाना आग़ा रूही की क़यादत में जुलूस निकाला गया जो बुलाकी अड्डा होता हुआ ताल कटोरा पहुंचा जुलूस में हज़ारों की तादाद में लोग शरीक थे जिस में ख़ासी तादाद में नौजवान और ख़्वातीन भी मातम करते हुए आख़िर तक शामिल रहीं। जुलूस में नौजवान पूरे नज़्म व ज़ब्त के साथ मातम करते हुए चल रहे थे जोश व वलवले के बावजूद इस मौक़े पर नौजवानों ने जिस डिसिप्लिन का मुज़ाहेरा किया वह क़ाबिले दीद था। सिर्फ़ या अली मौला हैदर मौला के नारों और सीना ज़नी के अलावा कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़िला इंतिज़ामियां की तरफ़ से भी इस मौक़े पर सख़्त हिफ़ाज़ती इंतिज़ाम किये गये थे जो बराबर निगरानी कर रहे थे।

डेढ़ बजे दिन में यह जुलूस ताल कटोरा पहुंचा जहां जुलूस में शामिल अंजुमन हाय मातमी ने नौहा ख़्वानी का सिलसिला शुरू कर दिया और मोमेनीन की जानिब से मजलिस का एहतेमाम किया गया करबला में हर तरफ़ गिरया व बुका का सिलसिला भी नमाज़ मग़रिब तक जारी रहा जो बाद नमाज़ इफ़तार पर ख़त्म हुआ।

दूसरी जानिब अंजुमने तहफ़्फ़ुज़े नामूसे सहाबा और सुन्नी यूथ फेडरेशन की क़यादत में सुन्नियों का जुलूस भोला नाथ कुआं से निकल कर अकबरी गेट होता हुआ पुल ग़ुलाम हुसैन की चारयारी मस्जिद तक गया जुलूस में शोरका अपने हाथों में झण्डे और बैनर लिये हुए थे और नौजवान जोशो ख़रोश के साथ नारे तकबीर बुलन्द कर रहे थे और अन्जुमन हाय मदहे सहाबा अपना कलाम सुना रहीं थी।

4. रोज़नामा कुबेर टाईम्स का बयान है कि –

शिया फ़िरक़े की तरफ़ से इक्कीसवीं रमज़ान को अज़ादारी का जुलूस निकालने के एलान के बाद ज़िला इंतिज़ामियां ने दोनों फ़िरक़ों की मीटिंग तलब कर के बग़ैर किसी नाम के अलामती जुलूस निकालने के लिए राज़ी कर लिया। 17/18 जनवरी को हुए इस तारीख़ी समझौते के लिए कई रज़ामंदी के बाद दोनों फ़िरक़ों के उलमा ने अपने अपने फ़िर्क़ों का जलसा तलब कर के मुहायदा और रज़ामंदी के नुक़ात से उन्हें आगाह किया और जुलूस के ख़दो ख़ाल को आख़िरी शक्ल दी।

पुरअमन तरीक़े से आज निकाले गये अलामती जुलूसों को लेकर पुराना लखनऊ पिछले तीन दिनों से कुछ ज़्यादा गरमाया हुआ था। हर पर किसी न किसी तरह की अफ़वाह फैल रही थी लेकिन जुलूसों के दौरान लड़ायी झगड़े और तशद्दुद का कोई हादसा नहीं हुआ। दोनों फ़िर्क़ों के दरमियान हुए समझौते में साफ़ तरीक़े से लिखा गया था कि दोनों फ़िरक़ों की तरफ़ से ऐसी कोई बात नहीं कही जायेगी न की जायेगी जिस से दूसरे फ़िरक़े को तकलीफ़ व एतेराज़ हो।

सुन्नियों का जुलूस झंवाई टोला के भोला नाथ कुएं से निकाला गया। हसन अहमद मुशर्रफ़ हुसैन , शेख़ सग़ीर हुसैन , हाजी गुलाम हुसैन , क़मरयाब जिलानी , फ़ज़ले आलम एडवोकेट और सलाउद्दीन अबूबकर की क़यादत में जुलूस निकालने से क़ब्ल क़ुरआन ख़्वानी की गयी। जुलूस में बहत्तर झण्डे और बैनर थे। सब से आगे सुन्नी यूथ फेडरेशन और तहफ़्फ़ुज़े नामूसे सहाबा का बैनर था जुलूस में शामिल सभी अन्जुमन मदहे सहाबा पढ़ रही थीं और अंजुमन माविया अकबरी गेट के बैनर पर चारो सहाबा के नाम थे।

अख़बारी ख़ुलासा

मुंदरजा बाला चारों अख़बारों के एकतेबासात की रोशनी में मुंदरजा ज़ैल बातें उभर कर सामने आती हैं –

1. शियों ने इक्कीसवी रमज़ान (शहादत अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) ) के मौक़े पर अज़ादारी के रूके हुए जुलूसों के निकालने का एलान कर दिया था इस लिए ज़िला इंतिज़ामियां ने दोनों फ़िरक़ों के लीडरों की मीटिंग तलब कर के बग़ैर किसी नाम के अलामती जुलूस निकालने पर राज़ी कर लिया जैसा कि कुबेर टाइम्स का बयान है। यह रज़ामंदी फ़रीक़ैन के दरमियान किन वजहों या किन मजबूरियों की बिना पर अमल में लायीं गयी । यह ज़िला इंतिज़ामिया और हुकूमत की तरफ़ से तशक़ील शुदा दो रूकनी कमेटी जानती है। दोनों फ़िरक़ों में लीडर जानते हैं या ख़ुदा जानता है।

2. शिया फ़िरक़े की तरफ़ से निकाले गये अलामती जुलूस में नज़्म व ज़ब्त पूरी तरह बरक़रार रहा कोई ऐसी बात न कही गयी न की गयी जिस से दूसरे फ़िरक़े को कोई तकलीफ़ पहुंचे या उसकी दिल आज़ारी होती।

3. शिया फ़िर्क़ें ने अपने चार पांच लाख मजमें वाले अज़ीम तरीन जुलूस में सिर्फ़ दो ताबूतों और रोज़ानामा इन दिनों की सराहत के मुताबिक़ पांच अलमों की अलामत के तौर पर इस्तेमाल किया जब कि सुन्नी फ़िरक़े ने अपने चार पांच हज़ार के मजमें में मुतादिद अख़बारों की सराहत के मुताबिक़ चालीस झण्डों से लेकर बहत्तर झण्डों तक निज़ इसके अलावा बैनरों की अलामत क़रार दे कर अपना जुलूस निकाला और मदहे सहाबा पढ़ा हालांकि समझौते में किसी फ़िरक़े के लिए अलामत का कोई तज़किरा नहीं है।

4. सुन्नी फ़िरक़े के लोगों ने अपने हुदूद मोअय्यना से आगे बढ़ने और जुलूस के अख़तताम पर तबर्रा पढ़ कर शहर में फ़ितना व फ़साद बरपा करने और शियों पर इलज़ाम आयद करने की कोशिश की जब कि शिया अपने हुदूदे मोअय्यन में पुर अमन व पुर सुकून रहे।

5. सुन्नियों के जुलूसों में शियों के दरमियान इशतआल पैदा करने के लिए दिल आज़ार और अज़ीयत रसां अशार पढ़े गये जब कि शियों के जुलूस में या अली मौला हैदर मौला और मातम की सदाओं के अलावा कोई दूसरी आवाज़ नहीं सुनाई दी।

6. सुन्नियों के झण्डों और बैनरों पर ख़ुलफ़ा ए सलासा के अलावा दीगर ऐसी शख़्सियतों के नाम भी थे जो हज़रत अली (अ.स.) के बदतरीन दुशमन थे जब कि शियों के अलमों पर कोई नाम नहीं था।

7. सुन्नियों के जुलूसों में मुख़तलिफ़ अंदाज़ से ख़ुशियों के मुज़ाहिरे हो रहे थे जब कि शिया फ़िरक़ा सिर्फ़ हज़रत अली (अ.स.) का ग़म मनाने और नौहा मातम में मसरूफ़ था अर्ज़ की लखनऊ की तारीख़ इस आरज़ी व ग़बूरी समझौते से क़ब्ल ऐसी कोई मिसाल पेश करने से क़ासिर नज़र आती है।

मौजूदा सूरते हाल

लखनऊ का शिया सुन्नी कज़िया जितना पेंचीदा पहले था उस से ज़्यादा पेंचीदा इस अरज़ी व गबूरी समझौते के निफ़ाज़ और सुन्नी फ़िरक़े के जुलूस के दौरान इन के तर्ज़े अमल के बाद हो गया है क्योंकि यह झगड़ा दर हक़ीक़त शियों और ख़ुश अक़ीदा व अमन पंसद सुन्नियों के दरमियान नहीं है बल्कि शियों और इस्लाम दुश्मन उन नासबियों और ख़ारजियों के दरमियान है जिनका नसबुलऐन ही जुलूसे मदहे सहाबा की आड़ में उन इस्लामी रवायात व मामूलात और मरासिम को यज़ीदियत मावियत , अबू सुफ़यानियत और ख़ारजियत से टकरा कर ख़त्म करना है जो हुक्में खुदा और सुन्नते रसूल स 0 के मुताबिक़ उम्मते मुसलेमा में चौदह सौ बरस से राएज हैं।

ख़ुश अक़ीदा सुन्नी मुसलमान इस झगड़े में शियों के साथ हैं इस लिए कि इस्लामी मालूमात व मरासिम के मामले में दोनों के नज़रियात एक दूसरे मे हम अंहग हैं और दोनों ही रसूल स 0 व आले रसूल (अ.स.) से मुहब्बत व अक़ीदत रखते हैं नेज़ नवासे रसूल की अज़ादारी को अपना मज़हबी फ़रीज़ा समझते हैं।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

इस के बरअक्स नासबी और ख़ारजी मुसलमानों का फ़िरक़ा मोहम्मद व आले मोहम्मद (अ.स.) पर दुरूद सलाम और बुज़ुर्गीने दीन की क़बरों के अहतेराम व ज़ियारत को बिदअत और शिर्क से ताबीर करता है नेज़ अपने अलावा चौदह सौ बरस की सारी उम्मत मुसलेमां को काफ़िर क़रार देता है जिस की वज़ाहत हम इस किताब में कर चुके हैं। यह फ़िरक़ा चूंकि अबू सुफ़यान , माविया और माविया के फ़ासिख़ व फ़ाजिर और बदकिरदार बेटे यज़ीद को अपना रहनुमा और पेशवा तसलीम करता है। इस लिए फ़रज़न्दे रसूल हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की अज़ादारी का सख़्त तरीन मुख़ालिफ़ है ताकि मुख़ालिफ़त की आड़ में इन नाम नेहाद सहाबा के जराइम और मज़ालिम पर परदा डाला जा सके जो 61 में इमाम हुसैन (अ.स.) और इन के बहत्तर साथियों की शहादत का सबब बने –

सहाबा की क़बरों को खोदने वाले इस फ़िरक़े के शर पसन्द अफ़राद तक़रीबन सौ साल से मदहे सहाबा के नाम पर लखनऊ में फ़ितना फ़साद की आग भड़काने शियों और सुन्नियों के दरमियान बदगुमानी , नफ़रत और अदावत की दीवार खड़ी करने , इत्तेहाद को पारा पारा करने शहर के सुकून और ख़ुशगवार माहौल को परागंदा करने और सादा लोह मुसलमान को गुमराह कर के उन्हें ज़िल्लत व तबाही के ग़ार में ढ़केलने का काम अंजाम देते रहे और जब भी इन्हें मौक़ा मिला इन्होंने शहर में ख़ूनी फ़साद बरपा कर दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मसले का पाएदार हल तलाश करने के लिए जो दो रूकनी कमेटी तशकील दी है इसका यह फ़र्ज़ था कि कोई बाहमी समझौता कराने से पहले वह जुलूसे मदहे सहाबा और जुलूस हाय अज़ा दोनों की तारीख़ और शिया सुन्नी फ़िर्क़े की रौशनी में देखती कि किस का मुतालबा जाएज़ और दुरूस्त है ताकि हक़ व बातिल का फ़र्क़ नुमायां हो जाता मगर ऐसा नहीं किया गया बल्कि सियासी और साज़िशी मसलहत परवरी के तहत दोनों फ़िर्क़ों के मुतालबात को मंज़ूर कर के और इक्कीसवीं रमज़ान को आरज़ी तौर पर मदहे सहाबा का जुलूस निकलवा कर बाहमी फ़ितना व फ़साद का एक नया रास्ता खोल दिया गया है।

ऐसी सूरत में मौजूदा शिया क़यादत को भी चाहिए कि वह आइंदा इस क़िस्म के हरबों से मुहतात रहे और मुस्तक़बिल में कोई ऐसा फ़ैसला न करें जिस से कि तबर्रा की तलवारें फिर चमकने लगें और यह मसला फिर इसी मंज़िल पर पहुंच जाये जहां से इसकी इब्तेदा हुई थी।

21 अप्रैल 1998 ई 0 के समझौते पर एक नज़र

इस आरज़ी समझौते की पहली ख़ुसूसियत यह है कि लखनऊ की ज़िला इंतिज़ामियां ने शिया व सुन्नी दोनों फ़िरक़ों क मज़हबी आज़ादी को सल्ब करते हुए उनके जुलूसों की नक़लो हरकत को अपने ही दायरा ए इख़तेयार में रखा है जो उसूली तौर पर नामुनासिब है जैसा कि मुहायदे के पैरा नम्बर 1, 2 और 5 से ज़ाहिर है।

दूसरी ख़ुसूसियत यह है कि शिया क़यादत ने अपनी मसलहत आमेज़ पालिसी के तहत यह तसलीम कर के कि सुन्नी फ़िरक़े के लोग अपने जुलूस का नाम ख़ुद तजवीज़ करेंगे , जुलूसे मदहे सहाबा का वह रास्ता हमवार कर दिया है जो सौ बरस से मसदूद था , और उन्होंने शिया आवाम के सामने तावील की गुंजाइश भी रखी है ताकि मुसतक़बिल में उन पर किसी क़िस्म की अन्गुश्त नुमाई न हो सके।

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

तीसरी अहम बात यह है कि 2 मई 1998 ई 0 को मौलाना सै 0 हमीदुल हसन साहब क़िब्ला और मौलाना सै 0 कल्बे जव्वाद साहब क़िब्ला ने अपनी तहरीर के ज़रिये जनाब जावेद मुर्तुज़ा साहब एडवोकेट और जनाब एम 0 एम 0 ताहिर साहब को इस बात का मजाज़ किया था कि वह इन्तिज़ामियां के साथ गुफ़्तुगू कर के आशूर ए मोहर्रम को उठने वाले जुलूस हाय अज़ा के रास्तों का तअय्युन करें। चुनान्चें इन दोनों हज़रात ने ज़िला इन्तिज़ामियां के सामने अपना यह मवक़्क़िफ़ रखा कि शियों को इमामबाड़ा आसफ़ी से तालकटोरा तक जुलूस ले जाने की इजाज़त दी जाये। मोहतरम जावेद मुर्तुज़ा साहब का यह बयान है कि उनकी गुफ़्तुगू इमामबाड़ा आसफ़ी और गुफ़रानमात से गुज़र कर इमामबाड़ा नाज़िम साहब से करबला तालकटोरा तक जुलूस ले जाने पर ठहर गयी थी। ज़िला इन्तिज़ामियां के अफ़सरान इस पर ग़ौर कर ही रहे थे कि एक मीटिंग में कुछ बरगुज़ीदा शिया उलमा ने यह कह कर उनकी सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया कि सरकार का हुक्म जहां से होगा वहां से हम अपना जुलूस उठा लेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि आशूर को भी पुत्तन साहिबा की करबला शियों के जुलूस का मरकज़ क़रार पायी। जनाब जावेद मुर्तुज़ा साहब के इस बयान की रौशनी में अगर ग़ौर किया जाये तो शिया उलमा का यह नारवा एक़दाम शिया आवाम की मज़हबी आज़ादी की पामाली के मुतारादिफ़ है उन्हें चाहिये कि हुकुमत व ज़िला इन्तिज़ामिया की बैयत तोड़ कर आइंदा अपने हुक़ूक़ की बाज़याबी के लिए मुख़लेसाना जद्दो जेहद करें वरना मज़लूमें करबला से ग़द्दारी के जुर्म में मासूमा ए कौनैन उन्हें कभी माफ़ नहीं करेंगी।

(तमाम शुद)

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब हिन्दुस्तान में फ़ितना ए वहाबियत पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.) फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।

सैय्यद मौहम्मद उवैस नक़वी]]

(0 5/0 1/2016)