हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत लेखक:
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत
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हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

हज़रत आयशा की तारीख़ी हैसियत

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जंगे जमल की रौशनी में हज़रत अली का मिसाली किरदार

इस जंग में हज़रत अली (अ.स) ने शुरू से आख़िर तक जिस किरदार का मुज़ाहिरा किया वो अम्न पसन्दी , सुल्ह जूई और करीमुन नफ़सी की ज़िन्दा मिसाल है। हालां कि आपको आयशा के मोहलिक और ख़तरनाक फ़ितने को दबाने के लिये एक ख़ूरेज़ जंग का उस वक़्त सामना करना पड़ा जब हालात आपके लिए क़तई साज़गार नहीं थे इसके बावजूद आपने उस वक़्त तक हाथ नहीं उठाया और न हीं अपने हमनवाओं में से किसी को उठाने दिया जब तक कि फ़रीक़े मुख़ालिफ़ की तरफ़ से बाक़ायदा जंग की इबतिदा नहीं हो गयी।

अमीरूल मोमिनीन के वारिदे बसरा होने से क़ब्ल ही मुख़ालिफ़ीन ने आपके सैंकड़ों दोस्तों और हमनवाओं को क़त्ल कर दिया था। वहां के गवर्नर उस्मान बिन हुनैफ़ पर जब ख़ून मारकर अहदशिकनी के मुर्तक़िब हो चुके थे , बैतुल माल पर क़ब्ला कर लिया था और क़त्लों ग़ारतगरी व दहशतगर्दी के ज़रिये हर तरफ़ ख़ौफ़ो हिरास पैदा कर दिया था इन नारवा बातों से हज़रत अली के लिए जंग का जवाज़ पैदा हो चुका था मगर इस के बावजूद आपकी कोशिश यही रही कि जंग के शोले भड़क ने न पायें और बाहमी गुफ़्तुगू के ज़रिये आयशा की इस ग़लत फ़हमी की इस्लाह हो जाये। चुनान्चे आपने आयशा , तल्हा और ज़ुबैर को इन्तिहाई नर्म लहजे में समझाया और उन्हें जंग के हौलनाक नताइज से आगाह किया। मुस्लिम मजाशेई के हाथों क़ुर्आन भेज कर उन्हें क़ुर्आनी अहकाम पर अलम पैरा होने की तरग़ीब दी और जब ये तमाम चीज़े बेअसर और तमाम कोशिशें बेकार हो गयीं और जवाब तीरों सेनान की सूरत में दिया जाने लगा तो बहुत ही मजबूर हो कर आपने जंग की इजाज़त दी और सफ़ों के मुक़ाबले में सफ़ें जमा कर इस तरह लड़े कि दुनिया पर साबित कर दिया कि जंग से बचने की ये तमाम कोशिशें बुज़दिली , कामचोरी और ख़ौफ़ो हिरास की बिना पर नहीं था बल्कि इन्तिहाई , यकजहती और अम्न को बरक़रार रखने नीज़ सुल्हो आशती की फिज़ा पैदा करने के लिए था।

अमीरूल मोमिनीन ने अपने फ़ौजियों को जिन बातों पर कारबन्द रहने का हुक्म दिया था वो हस्बे ज़ैल हैं।

1. जंग में पहल न की जाए।

2. किसी ज़ख्मी पर हाथ न उठाया जाए।

और किसी ने क़दम नहीं बढ़ाया। और जब मैदान में ख़ून की मूसलाधार बारिश होने लगी तो किसी ज़ख्मी पर हाथ नहीं डाला और फ़ौजे मुख़ालिफ़ शिकस्त खा कर भाग खड़ी हुई तो किसी ने किसी का ताक़्क़ुब नहीं किया और न ही उसके छोड़े हुए मालों अस्बाब पर नज़र देखा। दीनवरी का कहना है किः-

मैदाने जंग में सोना चांदी और दीगर साज़ो सामान पड़ा हुआ देखते थे मगर उन्हें छूने वाला कोई नहीं था , अलावा फ़रीक़े मुख़ालिफ़ के हथियारों और सवारों के जिन्हें वो जंग के मौक़े पर काम में ला सकते थे। ( 12)

दुनिया की जंगों का दस्तूर है कि जंग का फ़ातेह फ़त्हयाबी व कामरानी के नशे में सरशार होकर हरीफ़ अफ़सरों को बग़ावत के जुर्म में गिरफ़्तार कर लेता था। मौत के घाट उतार देता है मगर अमीरूल मोमिनीन ने इन्तिक़ामी कार्यवाही से बालातर हो कर अहले बसरा में से जिन्होंने उस जंग में नुमाया किरदार अदा किया था। किसी से कोई बाज़ पुर्स नहीं की। यहां तक कि अब्दुल्लाह बिन आमिर जैसे ग़ारतगराने अम्न को माफ़ कर दिया और आयशा को जिन्होंने आपकी मुख़ालिफ़त में कोई दक़ीक़ा उठा नहीं रखा था उनके शायाने शान हिफ़ज़ती इन्तिज़ामात के साथ मदीने भेजा। बैतुल माल को मरक़ज़ में मुन्तक़िल करने के बजाए अपने लशकरियों पर तक़सीम कर के ये साबित कर दिया जंग का मक़सद मालों दौलत की फ़राहमी नहीं है।

1. शरह इब्ने आबिल हदीद मोतज़ेलीः- जिल्द 1 पेज न. 85

2. फ़ारूक़ः- जिल्द 1 पेज न. 35

3. शरह इब्ने आबिलः- जिल्द 1 पेज न. 89

4. तबरीः- जिल्द 5 पेज न. 204

5. अक़दुल फ़रीदः- जिल्द 4 पेज न. 328, तारीख़े याक़ूबी वग़ैरह

6. कन्ज़ुल आमालः- जिल्द 8 पेज न. 215- 217

7. तारीख़े याक़ूबी हालाते जमल

8. अक़दुल फ़रीदः- जिल्द 4 पेज न. 226

9. तबरीः- जिल्द 5 पेज न. 218

10. अक़दुल फ़रीदः- जिल्द 4 पेज न. 320

11. मुल्लो नहल शहरिस्वानीः- जिल्द 1 पेज न. 158

12. अख़्बारूत तौलः- पेज न. 151