अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में

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अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: इमामत

अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में

अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अबूबक्र का प्रतिनिधित्व समीक्षा के तराज़ू में

आयतुल्लाह सैय्यद अली हुसैनी मीलानी (दामत बरकातुहु)

हिन्दी अनुवाद: सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसवी

अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

प्राक्कथन

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

.... ईश्वर का अंतिम व सम्पूर्ण धर्म , आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के भेजे जाने बाद संसार वासियों के लिये पेश किया गया और ईश्वर का विधान व दूतों के आने और संदेश पहुचाने का सिलसिला आपकी नबूवत के साथ ही हमेशा के लिये बंद हो गया।

इस्लाम धर्म मक्का शहर में फला फूला और ईश्वर के संदेश वाहक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और उनके कुछ वफ़ादार साथियों की तेइस वर्षों की कड़ी मेहनत और अंथक प्रयत्नों के साथ पूरे अरब जगत में फैल गया।

ईश्वर के इस पथ को आगे बढ़ाने के लिये ज़िल हिज्जा की अठ्ठारह तारीख़ को , ग़दीरे ख़ुम के मैदान में मुसलमानों की आम सभा में ईश्वर के संदेशानुसार , उसके दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने इस्लाम पर सबसे पहले ईमान लाने वाले हज़रत अली अलैहिस सलाम के हवाले किया गया।

उस दिन हज़रत अली अलैहिस सलाम की इमामत के ऐलान व उत्तराधिकारी बनाये जाने के साथ ही ईश्वर की उसके भक्तों पर नेमत तमाम और धर्म सम्पूर्ण हो गया और इस्लाम धर्म को ईश्वर ने अपना पसंदीदा घर्म घोषित कर दिया। जिसके कारण काफ़िर व मुशरिक इस्लाम धर्म के मिट जाने से मायूस हो गये।

अभी ज़्यादा समय नही गुज़रा था कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के आसपास रहने वालों में से कुछ लोगों ने पहले से किये गये प्लान व साज़िश के तहत उनकी वफ़ात के बाद , मार्गदर्शन व हिदायत के रास्ते से मुंह मोड़ लिया , मदीने के ज्ञान के दरवाज़े को बंद कर दिया और मुसलमानों को अनिश्चिता व अचंभे में डाल दिया। उन लोगों ने अपनी हुकूमत के पहले ही दिन से पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की हदीसों को लिखने से मना कर दिया , हदीसें गढ़ी जाने लगीं , जनता के दिलों में शंकाएं उत्पन्न की जाने लगीं , धोखाधड़ी , शैतानी चोला पहना जाने लगा , इस्लामी वास्तविकताओं को , जो चमकते हुए सूरज की तरह चमक रही थीं , उन्हे शक व शंका के काले बादलों के पीछे छुपा दिया गया।

स्पष्ट है कि सारी साज़िशों के बावजूद इस्लामी वास्तविकताएं व पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की अमुल्य हदीसें उनके उत्तराधिकारी हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम और उनके बाद उनके उत्तराधिकारियों मासूम इमामों अलैहिमुस सलाम और नबी (स) के वफ़ादार साथियों और सहाबियों के ज़रिये इतिहास में बाक़ी रह गई और हर ज़माने में किसी न किसी सूरत में प्रकट होती रहीं। उन हज़रात ने वास्तविकता के वर्णन , दो दिली मुनाफ़ेक़त , शैतानी बहकावों और इस्लाम विरोधियों का जवाब देकर हक़ीक़त को सबके सामने पेश कर दिया।

इस राह में कुछ नूरानी चेहरा लोग जिन में शैख़ मुफ़ीद , सैयद मुर्तज़ा , शैख़ तूसी , ख़्वाजा नसीरुद्दीन तूसी , अल्लामा हिल्ली , क़ाज़ी नूरूल्लाह शूसतरी , मीर हामिद हुसैन हिन्दी , सैयद शरफ़ुद्दीन आमुली , अल्लामा अमीनी आदि के नाम सितारों की तरह चमकते हैं। इस लिये कि इन लोगों ने इस्लामी व शिया समुदाय की वास्तविकता की रक्षा की राह में अपनी ज़बान और क़लम के साथ उस पर शोध किया और उन पर होने वाले ऐतेराज़ों व आपत्तियों का उत्तर दिया।

हमारे ज़माने में भी एक बुद्धिजीवि व विचारक जिन्होने अपने सरल क़लम और अच्छे बयान के साथ पवित्र धर्म इस्लाम की वास्तविकता के वर्णन किया है और हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत व विलायत की रक्षा आलिमाना अंदाज़ से की है और वह महान अनुसंधानकर्ता हज़रत आयतुल्लाह सैयद अली हुसैनी मीलानी हैं।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र को इस बात पर गर्व है कि उसने इस महान शोधकर्ता के क़ीमती आसार को अपने प्रोग्राम का हिस्सा बनाया है और उनकी किताबों को शोध , अनुवाद व प्रसार के साथ छात्रों , पढ़े लिखे लोगों और इस्लामी वास्तविकता के बारे में जानने वालों के हाथों तक पहुचाया जा सके।

यह जो किताब आप के हाथ में है वह इन ही लेखक की एक किताब का हिन्दी अनुवाद है ताकि हिन्दी भाषी लोग इसके अध्धयन से इस्लामी वास्तविकता को जान सकें।

हमे आशा है कि हमारी यह किताब इमामे ज़माना हज़रत बक़ीय्यतुल्लाहिल आज़म (अज्जल्लाहो तआला फ़रजहुश शरीफ़) की प्रसन्नता और पसंद का कारण बनेगी।

इस्लामी वास्तविकता केन्द्र

प्रस्तावना

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन वस सलातु वस सलामु अला मुहम्मदिन व आलिहित ताहिरीन व लानतुल्लाहि अला आदाइहिम अजमईन मिनल अव्वालीना वल आख़िरीन।

शोध के सिलसिले की जो कड़ियां पिछली किताबों में प्रस्तुत की गई उन को ध्यान मे रखते हुए , हमने इमाम अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की प्रतिनिधित्व व इमामत की चुनिन्दा दलीलों को पवित्र क़ुरआन व पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की सुन्नत व अक़्ल की रौशनी में बयान किया। इन सारी बहसों में अहले सुन्नत के बुद्धिजीवियों के बहस के तरीक़ों को ध्यान में रखते हुए हमने उन तमाम शर्तों की , जो वह इमामत व ख़िलाफ़त के लिये मोतबर व अनिवार्य मानते हैं , रिआयत की है।

अहले सुन्नत मानते हैं कि इमामत व ख़िलाफ़त का चुनाव व इख़्तेयार जनता के हाथ में होना चाहिये और इसी बुनियाद पर वह इमाम व ख़लीफ़ा के लिये कुछ शर्तों को अनिवार्य समझतें हैं जिन के पाये जाने के कारण इंसान के अंदर प्रतिनिधित्व की सलाहियत पैदा हो जाती है।

हमने अपनी इस किताब में उन ही मोतबर व अनिवार्य शर्तों के अनुसार व अहले सुन्नत के बड़े बुद्धिजीवियों के कथन की बुनियाद पर शोध व रिसर्च की है और हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत को साबित किया है।

यहां पर उन ही बहसों को सम्पूर्ण करने के लिये , अबू बक्र के प्रतिनिधित्व पर अहले सुन्नत की दलीलों को पर बहस करेंगे। इस लिये कि जिस तरह से हमारे पास अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत व प्रतिनिधित्व पर बहुत सी दलीलें हैं उसी तरह से अहले सुन्नत के पास भी उनकी दृष्टि के अनुसार दलीलें हैं , अत: उन की छानबीन व पड़ताल करेंगे ता कि उनकी क़ीमत इल्मी मेयारों के अनुसार स्पष्ट हो सके।

हम इस किताब में अदब व सभ्यता और बहस व मुनाज़रे के तरीक़ों की अनिवार्यता का भी ख़्याल रखेंगे और ज़ाहिर है कि मुनाज़रे की बुनियाद यह होती है कि ऐसी दलीलें पेश की जायें जिसे दोनो स्वीकार करते हों , या यह कि एक गिरोह की दलील दूसरा गिरोह स्वीकार करे , ता कि इसकी बुनियाद पर मुनाज़ेरा किया जा सके और उसे स्वीकारने के लिये मजबूर किया जा सके।

इस मौज़ू पर हम अहले सुन्नत के उलामा की किताब व उनके कथनों को बुनियाद बना कर बहस व मुनाज़ेरा करेंगे और बहस व मुनाज़ेरे के आदाब , कथन व कलाम की संजीदगी व पक्षपात व बेबुनियाद तअस्सुब से परहेज़ को अपने ऊपर अनिवार्य करेंगें ता कि यह साफ़ हो सके कि अबू बक्र के प्रतिनिधित्व के बारे में उनकी दलीलें , ख़ुद उनके उलामा व बुद्धिजीवियों के कथनुसार पूर्ण व सम्पूर्ण नही हैं और अगर ऐसा हुआ तो फिर वह हमें किस तरह से मजबूर कर सकतें हैं कि जो दलीलें ख़ुद उनके बड़े उलामा स्वीकार नही करते , उनके ज़रिये से हमारे लिये दलील पेश करें ?

इन बहसों में हम अहले सुन्नत की जिन सबसे प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण ऐतेक़ादी किताबों से दलील पेश करेंगे वह निम्नलिखित हैं:

धर्म शास्त्र (दीनीयात) की किताब मवाक़िफ़ , शरहे मवाक़िफ़ व शरहे मक़ासिद।

यह किताबें आठवी व नवीं शताब्दी हिजरी क़मरी में लिखी गई हैं और मदरसों में पढ़ाई जाती हैं। अहले सुन्नत के माहिरे फ़न उस्तादों ने इन किताबों पर बहुत सी शरहें और हाशिये लिखे हैं।

अगर किताब कशफ़ुज़ ज़ुनून का अध्धयन करें तो पता चलेगा कि इस के लेखक ने ऊपर लिखी गई इन तीनों किताबों के बारे में क्या टिप्पणियां की है और इन किताबों पर कितनी बहुत सी शरहें और हाशिये लिखे गये हैं।

और एक लिहाज़ से यह किताबें मोतबर होने के मामले में बुनियादी हैसियत रखती है और दूसरी सारी किताबें इन्हे स्रोत बना कर लिखी गई हैं और इन्हे सारे उलामा स्वीकार करते हैं और अहले सुन्नत इन से दलीलें पेश करतें हैं और इन्हे मोतबर मानते हैं।

आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क पर पढ़ रहे है।

पहला भाग

अबू बक्र के प्रतिनिधित्व पर सबसे महत्वपूर्ण दलीलें

अबू बक्र के प्रतिनिधित्व पर अहले सुन्नत की ओर से पेश की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण दलीलें

अब हम अबू बक्र के प्रतिनिधित्व पर अहले सुन्नत की ओर से पेश की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण दलीलों की जांच पड़ताल करेंगे। किताब शरहे मवाक़िफ़ का मत्न इस तरह से हैं:

चौथा हिस्सा: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहो अलैहि व आलिहि वसल्लम) के बाद उनके उत्तराधिकारी के बारे में हैं। प्रतिनिधित्व व इमामत हमारे अक़ीदे के अनुसार अबू बक्र से मख़सूस है जबकि शियों का मानना है कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहि व आलिहि वसल्लम) के बाद बर हक़ इमाम अली हैं।

इस मौज़ू के बारे में हम दो बातों का वर्णन करना चाहते हैं:

1. इमाम का चुनाव पैग़म्बर (सल्लल्लाहो अलैहि व आलिहि वसल्लम) के स्पष्ट कथनुसार होता है।

2. इमाम का चुनाव पर जनता के मतों पर आधारित होता है।

अलबत्ता नबी के बाद उनके प्रतिनिधित्व के बारे में ईश्वर और उसके दूत की ओर से कोई इशारा नही किया गया है और जहां तक इजमा (किसी बात पर सबका सम्मत होना) का सवाल है वह लिखते हैं कि अबू बक्र के अलावा किसी के लिये इजमा ज़िक्र नही हुआ है।

केवल तीन लोगों के प्रतिनिधित्व की सत्यता पर इजमा का गठन हुआ है: अबू बक्र , अली और अब्बास।

उन में से इन दो लोगों (अली व अब्बास) ने चूंकि अबू बक्र का कोई विरोध नही किया है लिहाज़ा अगर अबू बक्र सत्य पर न होते तो वह दोनो लोग उन पर आपत्ति अवश्य करते।

अत: अबू बक्र के प्रतिनिधित्व की दलील इजमा (किसी बात पर सबका सम्मत होना) के ज़रिये सम्पूर्ण व पूर्ण हो गई है।

ऊपर बयान होने वाले तर्क में इस बात को स्वीकार किया गया है कि अबू बक्र के प्रतिनिधित्व के बारे में पैग़म्बर इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से एक भी हदीस का वर्णन नही हुआ है। अत: अबू बक्र की ख़िलाफ़त के बारे में पहली दलील इजमा (किसी बात पर सबका सम्मत होना) और नबी (स) के किसी कथन का न होना है।

किताब शरहे मक़ासिद के लेखक प्रतिनिधित्व व ख़िलाफ़त को साबित करने तरीक़े की तीसरी बहस में इस तरह से लिखते हैं:

इमाम या ख़लीफ़ा को दो रास्ते से चुना जा सकता है , या पैग़म्बर (स) के स्पष्ट कथन से या फिर जनता की सर्व सम्मति से। अब पैग़म्बर (स) का स्पष्ठ कथन उनके बारे में नही है , लिहाज़ा वह जनता की सर्व सम्मति से ख़लीफ़ा चुने गये हैं।

स्पष्ठ हो गया कि अबू बक्र के प्रतिनिधित्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से एक भी हदीस बयान नही हुई है और उनकी ख़िलाफ़त पर दलील केवल इजमा (किसी बात पर सबका सम्मत होना) और जनता की राय है।

तीसरी बात जो इस सिलसिले में अहले सुन्नत बयान करते हैं वह अबू बक्र को सर्वश्रेष्ठ (अफ़ज़ल) साबित करने का रास्ता है। अत: जिस तरह से हम हज़रत अली अलैहिस सलाम के बेहतरीन होने पर बहस करते हैं उसी तरह से वह भी बहस करते हैं हालांकि इस बारे में उनके दृष्टिकोणों मे आपस में इख़्तेलाफ़ है , उन में से कुछ लोग सर्वश्रेष्ठ होने को प्रतिनिधित्व के लिये शर्त मानते हैं जबकि कुछ लोग शर्त नही मानते।

अत: जो लोग सर्वश्रेष्ठ होने को प्रतिनिधित्व के लिये शर्त नही मानते हैं वह अबू बक्र के अफ़ज़ल व सर्वोच्च होने पर ज़ोर नही देते। जैसे फ़ज़्ल बिन रोज़बहान , लेकिन जो लोग सर्वश्रेष्ठ होने को प्रतिनिधित्व के लिये शर्त मानते हैं आवश्यक है कि वह अबू बक्र के बेहतरीन होने पर ज़ोर दें , क्यों कि वह अबू बक्र की ख़िलाफ़त में आस्था रखते हैं।

जो लोग सर्वश्रेष्ठ होने को प्रतिनिधित्व के लिये शर्त मानते हैं , उन में से एक इब्ने तैमीया हैं वह इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अबू बक्र सारे सहाबा से अफ़ज़ल हैं और जो कुछ शिया इसना अशरी हज़रत अली अलैहिस सलाम के सर्वश्रेष्ठ होने के बारे में दलील देते हैं वह उन सब को झुटला देते हैं।

दूसरा भाग

अबू बक्र के सर्वश्रेष्ठ होने पर अहले सुन्नत की दलीलें

किताब मवाक़िफ़ और उसकी व्याख्या में इस तरह से वर्णन हुआ है:

पाचवां हिस्सा: पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के बाद सर्वोच्च इंसान के बारे में है। हम और पहले के ज़्यादातर मोतज़ेली बुद्धिजीवि अबू बक्र को सर्वश्रेष्ठ इंसान मानते हैं जबकि शिया इसना अशरी और बाद के मोतज़ेली उलमा की आस्था के अनुसार अली बिन अबी तालिब अलैहिस सलाम अल्लाह के अवतार के बाद सबसे श्रेष्ठ इंसान हैं।

जो कुछ इससे पहले बयान किया गया है उससे यह स्पष्ट हो चुका है कि अहले सुन्नत की दलील अबू बक्र के प्रतिनिधित्व के बारे मे इजमा (सर्व सम्मति) और सर्वश्रेष्ठ होना है। अलबत्ता अगर उनके सर्वोच्च होने को विश्वस्त मान लिया जाये और यह भी मान लिया जाये कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) से अबू बक्र की ख़िलाफ़त के बारे में एक भी हदीस या कोई प्रतिक्रिया बयान नही हुई है।

हम अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम की इमामत को इन तीनों रास्तों (नबी के स्पष्ठ कथन , इजमा और सर्वश्रेष्ठता) से साबित कर सकते हैं और परिणाम तक पहुच सकते हैं मगर यहां पर हम उनका वर्णन नही करना चाहते हैं।

वह लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से अबू बक्र की ख़िलाफ़त के बारे में एक भी हदीस या स्पष्ठ कथन का ज़िक्र नही हुआ है।

अत: अबू बक्र के प्रतिनिधित्व को साबित करने का दावा करने वालों के लिये केवल दो रास्ते बाक़ी रह जाते हैं। एक सर्वश्रेष्ठता , दूसरे इजमा (सर्वसम्मति)

अब हम यहां पर उन दलीलों की समीक्षा व जांच पड़ताल करेंगे जो अबू बक्र की सर्वोच्चता के लिये पेश की जाती हैं:

पहली दलील

सबसे पहली दलील जो अबू बक्र की सर्वश्रेष्ठता के लिये पेश की जाती है वह पवित्र क़ुरआन की एक आयत है जिस में परवरदिगारे आलम का इरशाद हो रहा है:

و سیجنبھا الاتقی ۔ الذی یوتی مالہ یتزکہ ۔ و ما لاحد عندہ من نعمہ تجزی ۔

जल्दी ही लोगों में सबसे ज़्यादा तक़वे वाला इंसान (नर्क की आग) से दूर कर दिया जायेगा। निसंदेह जो भी अपने माल को लोगों में बांटता है ता कि उसका माल पवित्र हो जाये और किसी का हक़ उसके ऊपर बाक़ी न हो जिसका का वह पुन्य देना चाहे।

शरहे मवाक़िफ़ के लेखक लिखते हैं:

अकसर मुफ़स्सेरीन कहते हैं और बहुत से बुद्धिजीवि भी इस बात को मानते हैं कि यह आयत अबू बक्र की शान में नाज़िल हुई है। वह लोगों में सबसे ज़्यादा तक़वे वाले इंसान हैं और ऐसा इंसान जो तक़वे के मामले में सबसे आगे हो। अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा महबूब और पसंदीदा है। इस लिये कि पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला का इरशाद हुआ है:

ان اکرمکم عند اللہ اتقاکم

निसंदेह अल्लाह के नज़दीक तुम में से सबसे ज़्यादा क़रीब और पसंदीदा वह इंसान है जो सबसे ज़्यादा तक़वे वाला है।

अत: अबू बक्र अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा सम्मानित और सर्वश्रेष्ठ इंसान हैं।

दूसरी ओर इस बात में कोई शंका नही है कि जो भी अल्लाह के नज़दीक सम्मानित और सर्वोच्च स्थान रखता होगा। ऐसे इंसान को अल्लाह के अवतार के बाद इमाम और ख़लीफ़ा होना चाहिये और यह बात ऐसी है जिस में किसी शक व शुबहे की गुंजाइश नही है। लिहाज़ा अबू बक्र सारे सहाबियों से बेहतर हैं और ऐसा इंसान जो सारी उम्मत से अफ़ज़ल व बेहतर हो , वही अल्लाह के नबी के बाद प्रतिनिधित्व व ख़िलाफ़त के लिये चुना जा सकता है।

दूसरी दलील

अबू बक्र के सर्वश्रेष्ठ व सर्वोच्च होने की दूसरी दलील पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की हदीस है जिस में आपने फ़रमाया:

اقتدوا باللذین من بعدی ابو بکر و عمر ।

मेरे बाद तुम सब इन दो लोगों की पैरवी करना , एक अबू बक्र दूसरे उमर।

इक़्तदौ शब्द अम्र (आदेश) का सीग़ा है और पैग़म्बरे इस्लाम (स) का यह संबोधन और आदेश सारे मुसलमानों के लिये हैं इसलिये यह अली बिन अबी तालिब अलैहिस सलाम के लिये भी है। लिहाज़ा उन्हे भी यह बात माननी और अबू बक्र व उमर की पैरवी करनी पड़ेगी। अब अली बिन अबी तालिब के लिये अनिवार्य है कि वह इन दोनो लोगों के आदेश पर अपना सर झुकाएं और जिस इंसान की पैरवी दूसरे लोग करते हैं वह लोगों का इमाम और मार्गदर्शक होता है।

अहले सुन्नत ने पैग़म्बर इस्लाम (स) की इस हदीस को अपनी किताबों में नक़्ल किया है। अत: नबी का यह कथन अबू बक्र के प्रतिनिधित्व पर दलील बन सकता है और उमर की ख़िलाफ़त इसी अबू बक्र की ख़िलाफ़त का हिस्सा बनेगी। अगर अबू बक्र की ख़िलाफ़त साबित हो जाये तो उमर की ख़िलाफ़त भी साबित हो जायेगी। हालांकि अभी हम उमर की ख़िलाफ़त के बारे में समीक्षा व जांच पड़ताल नही कर रहे हैं।

तीसरी दलील

अबूबक्र के सर्वश्रेष्ठ होने पर तीसरी दलील वह हदीस है जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से नक़्ल हुई है , आपने अपने सहाबी अबी दरदा से फ़रमाया:

واللہ ما طلعت شمس ولا غربت بعد النبیین والمرسلین علی رجل افضل من ابی بکر

ईश्वर की सौगंध नबियों के बाद सूरज अबू बक्र से बेहतर इंसान पर न ही उदय हुआ है और न ही डूबा है।

वास्तव में इस हदीस में यह योग्यता पाई जाती है कि यह अबू बक्र के प्रतिनिधित्व को स्पष्ट रूप से वर्णित करे और इस हदीस की रौशनी में अबू बक्र अली अलैहिस सलाम से सर्वश्रेष्ठ साबित हो जायेगें और बुद्धि भी आम इंसान पर प्रतिष्ठित इंसान को वरीयता देती है और या विद्धता रखने वाले इंसान पर बहुत ज़्यादा फ़ज़ीलत रखने वाले इंसान को आगे बढ़ाने को पसंद नही करती और उचित नही मानती है। अत: अल्लाह की नबी (स) के बाद जिस इंसान को उत्तराधिकारी होना चाहिये वह अबू बक्र हैं।

चौथी दलील

चौथी दलील पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की वह हदीस है जिस में आपने अबू बक्र व उमर के बारे में फ़रमाया:

ھما سیدا کھول اھل الجنۃ ما خلا البنیین والمرسلین ۔

अबू बक्र व उमर नबियों और रसूलों को छोड़ कर स्वर्ग के सारे बूढ़ों के सरदार हैं।

जो कोई भी किसी जाति का सरदार हो वह उसका मार्गदर्शक व नेता होता है यानी दूसरे सारे लोगों को चाहिये क वह उसकी बात मानें और उसकी पैरवी करें और चूंकि अली अलैहिस सलाम भी उसी क़ौम का हिस्सा हैं अत: उनका दायित्व अबू बक्र व उमर की पैरवी करना है क्यों कि वह दोनो लोग स्वर्ग के बूढ़ों के सरदार व नेता हैं।

पांचवी दलील

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम की एक दूसरी हदीस पांचवी दलील के तौर पर पेश की गई है , जिस में आपने फ़रमाया:

ما ینبغی لقوم فیھم ابو بکر ان یتقدم علیہ غیرہ ۔

जिस जन समूह में अबू बक्र मौजूद हों , उस में किसी के लिये उन से आगे बढ़ना उचित नही है।

अत: किसी के लिये जायज़ नही है कि वह अबू बक्र से आगे बढ़े और सब में अली (अ( भी सम्मिलित हैं।

लिहाज़ा अली (अ) के लिये जायज़ नही है कि वह अबू बक्र से आगे बढ़े और किसी को यह हक़ नही है कि दावा करे कि अली (अ) अबू बक्र से सर्वश्रेष्ठ हैं। इस लिये कि उसका यह कथन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के कथन का विरोधी है।

छठी दलील

इस सिलसिले की छठी दलील अल्लाह के दूत सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम का वह कार्य है जो आपने अबू बक्र के बारे में अंजाम दिया है। आपने जमाअत की नमाज़ में जो कि सर्वोत्तम अराधना है , अबू बक्र को नमाज़ पढ़ाने के लिये आगे बढ़ाया। इसी कारण आपकी बीमारी के ज़माने में अबू बक्र ने आपकी जगह पर नमाज़ पढ़ाई और जो नमाज़ उस वातावरण में अबू बक्र ने पढ़ाई , हदीसों के अनुसार वह अल्लाह के नबी (स) के आदेशानुसार थी।

अत: अगर कोई नबी (स) की जगह नमाज़ पढ़ाये और उनके आदेशानुसार मुसलमानों के जन समूह का इमाम बने तो इस में यह योग्यता पाई जाती है कि वह अल्लाह के अवतार सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के बाद मुसलमानों का मार्गदर्शक व नेता हो सके।

सातवीं दलील

सातवी दलील अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम का वह कथन और हदीस है जिस में आपने अबू बक्र व उमर के बारे में फ़रमाया:

خیر امتی ابوبکر ثم عمر ۔

मेरी उम्मत में सर्वोत्तम अबू बक्र और उनके बाद उमर हैं।

यह वह हदीस है जिसका वर्णन अहले सुन्नत ने अपनी किताबों में किया है।

आठवीं दलील

आठवीं दलील अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम का वह कथन और हदीस है जिसमें आपने अबू बक्र की दोस्ती के बारे में फ़रमाया:

لو کنت متخذا خلیلا دون ربی لاتخذت ابو بکر خلیلا ۔

अगर ईश्वर के बाद मुझे अपने लिये मित्र का चुनाव करना होता तो निसंदेह मैं अबू बक्र को अपना मित्र बनाता।

नवीं दलील

नवीं दलील अल्लाह के दूत सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम का वह कथन और हदीस हैं जिस में आपने अबू बक्र के सामने फ़रमाया:

و این مثل ابی بکر کذبنی الناس و صدقنی و آمن و زوجنی ابنتہ و جھزنی بمالہ و واسانی بنفسہ و جاھد معی ساعۃ الخوف ۔

कहां है अबू बक्र जैसे लोग , जब लोग मुझे झुठला रहे थे उस समय उन्होने मेरी पुष्टि की और मुझ पर ईमान लाये , अपनी बेटी का मुझ से विवाह किया , अपनी जान और माल से मेरी सहायता की और जंग और जिहाद के मैदान में अकेलेपन और डर के वातावरण में मेरा साथ दिया।

आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क पर पढ़ रहे है।

दसवीं दलील

दसवी दलील हज़रत अली अलैहिस सलाम का वह कथन व हदीस है जिस में आपने फ़रमाया:

خیر الناس بعد النبیین ابو بکر ثم عمر ثم اللہ اعلم ۔

नबियों के बाद अबू बक्र और उनके बाद उमर सर्वश्रेष्ठ इंसान हैं और उन दोनों लोगों के बाद का ज्ञान केवल ईश्वर के पास है।

जो कुछ बयान किया गया वह ऐसी दलीलें हैं जो अहले सुन्नत अबू बक्र की सर्वश्रेष्ठता व सर्वोच्चता पर लाते हैं। यह दलीलें उनके मोतबर व विश्वस्त स्रोतों जैसे फ़ख़रे राज़ी की किताबें , किताब सवाएक़े मोहरेक़ा , किताब शरहे मवाक़िफ़ , शरहे मक़ासिद आदि में ज़िक्र हुई हैं।

अलबत्ता बयान की गई दलीलें , अहले सुन्नत की ज़्यादा तर किताबों में चाहे गुज़रे ज़माने की किताबें हो या इस ज़माने की , मौजूद हैं। मोतज़ेला ने भी इन दलीलों से फ़ायदा उठाते हुए अशायरा का साथ दिया है। लेकिन हमारे युग से नज़दीक के मोतज़ेला उलमा अबू बक्र को सर्वश्रेष्ठ व सर्वोच्च नही मानते हैं , वह हज़रत अली अलैहिस सलाम को सारे सहाबियों में सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और कहते हैं कि इस्लाम के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधित्व के मसले में अबू बक्र को अली (अलैहिस सलाम) से आगे बढ़ाना चाहिये।