सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इंसानी और ईश्वरीय मित्र की बुलंदी

इमाम मूसा बिन जाफ़र , इमाम अली बिन मूसा और इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिमुस सलाम के एक सहाबी थे जिनका नाम सफ़वान बिन यहया था। इमाम अली रज़ा के नज़दीक उनका मरतबा बहुत बुलंद था। दीन व दुनिया के उमूर में वह इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम और इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस सलाम के वकील थे।

वह अपनी ज़िन्दगी के तमाम मराहिल में मुतमईन थे। लोगों के दरमियान सबसे ज़्यादा इबादत करने वाले इंसान थे वह रोज़ाना एक सौ पचास रकअत नमाज़ पढ़ करते थे। इबादत और ज़ोहत में उनका मरतबा बहुत बुलंद था। धर्म में दृढ़ता और सब्र में अपनी मिसाल आप थे। वाक़ेफ़ीया सम्प्रदाय ने आपको बहुत सारा माल देने का प्रयत्न किया ता कि वह अपना फ़िरक़ा छोड़ कर उनके सम्प्रदाय को स्वीकार कर लें। लेकिन उन्होने क़बूल नही किया और अपने धर्म पर बाक़ी रहे।

आप व्यापार और कारोबार में अब्दुल्लाब बिन जुन्दब व अली बिन नोमान के साझी थे। किताबों में बयान हुआ है कि तीनों दोस्तों ने ख़ान ए काबा के पास वादा किया था कि हम में से किसी एक के स्वर्गवास के बाद ज़िन्दा रहने वाला दोस्त , मरने वाले तरफ़ से उसकी सारी नमाज़ें पढ़ेगा , उसके क़ज़ा रोज़े रखेगा और उसके माल की ज़कात देगा। उन दोनो दोस्तों का देहांत हो गया और सफ़वान दिन व रात में एक सौ पचास रकअत नमाज़ अपने लिये और तीन सौ रकअत नमाज़ अपने दोनो दोस्तों के लिये पढ़ते थे और तीन महीने रोज़े रखते थे , माहे मुबारक रमज़ान में अपने लिये और दूसरे दो माह में अपने दोनो दोस्तों के लिये और अपने पास से उनकी तरफ़ से ज़कात देते और जो भी अल्लाह की राह में ख़र्च करते उसमें से एक हिस्सा अपनी तरफ़ से और दो हिस्से अपने दोस्तों की तरफ़ से ख़र्च करते।

इश्क़ की राह में पाकदामनी

एक जवान जो इश्क़ की आग में जल रहा था लेकिन अपने आचरण और पाकदामनी को सुरक्षित रखने के कारणवश बहुत परेशान था। इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिये हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम की ख़िदमत में आया , वह युवक अपने पड़ोसी की सुन्दर दासी पर मोहित हो गया था। उसके प्यार की कहानी यह है कि वह पहली नज़र में उसका दीवाना हो गया था , उसकी आंखों से नींद उड़ चुकी थी। उसने इमाम अलैहिस सलाम से अनुरोध किया कि उसको इस सख़्त मुश्किल से निजात दिलायें और कोई रास्ता इसे हल करने के लिये बतायें। आपने फ़रमाया: अब जब भी तुम्हारी नज़र उस दासी पर पड़े तो यह वाक्य कहना:

جملہ ” اسئل اللہ من فضلہ

ऐ अल्लाह मैं तेरा फ़ज़्ल चाहता हूं।

और हमेशा इसे दोहराते रहो और ईश्वर से इसके हल होने की प्रार्थना करते रहो।

उस जवान ने आपके आदेश पर अमल किया , अभी कुछ ही दिन हुए थे उस दासी का मालिक उस जवान से मिलने आया और कहा कि मुझे एक बहुत ही आवश्यक काम के लिये सफ़र पर जाना है मगर मैं इस दासी के कारण उस सफ़र को लेकर परेशान हूं। मैं उसे अपने साथ भी नही ले जा सकता हूं न ही उसे यहां अकेला छोड़ सकता हूं। अगर तुम उसे अपने घर में रख लो तो शान्ती से उस सफ़र पर जा सकता हूं क्यों कि मुझे तुम्हारे अलावा किसी दूसरे पर भरोसा नही है।

उस पाकदामन और नेक जवान की इच्छा भी यही थी कि वह उस दासी के मिलन तक पहुच जाये इसलिये उसे फ़ौरन पूरे मन व मर्ज़ी के साथ स्वीकार कर लेना चाहिये था मगर उसने इस बात को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और कहा कि मेरे घर में कोई नही है जो तुम्हारी दासी की रक्षा कर सके और यह भी उचित नही है कि वह और मैं एक घर में अकेले रहें क्यों कि संभव है कि मेरे मन में पाप आ जाये और मैं ख़ुद पर क़ाबू न रख सकूं लिहाज़ा मैं तुमसे क्षमा चाहता हूं।

उस दासी के मालिक ने कहा: मैं उसे उचित क़ीमत पर तुम्हारे हाथ बेच देता हूं ता कि तुम हर तरह से उसके मालिक हो जाओ , इस शर्त के साथ कि तुम इस पैसे को अपने ऊपर ज़मानत के तौर पर रखो और जब मैं वापस आऊंगा तो दासी को इस पैसे के बदले मुझे वापस कर दोगे।

जवान ने इस सुझाव को स्वीकार कर लिया और वह उस दासी का साथ पा कर प्रसन्न जीवन व्यतीत करने लगा।

दासी के मालिक के वापस आने से कुछ दिन पहले उस काल के शासक को उस सुन्दर दासी के बारे में मालूम हो गया और उसने कहा कि जैसे भी जितने भी पैसे में संभव हो उसे ख़रीद लो। उन्होने कई गुना पैसे उस जवान को दे कर उसे ख़रीद लिया और अपने साथ ले गये।

जब मालिक वापस आया तो उसने पूरी कहानी उसे सुना दी और सारा पैसा उसके सामने रख दिया। उसने कहा: अब जबकि ऐसा वाक़ेया पेश आया है तो मैं सिर्फ़ उतना ही पैसा लूंगा जिसकी तुम ने ज़मानत ली थी और सारा पैसा उसको वापस कर दिया।

इस कथा में दीनदारी , पवित्रता और संयम की रक्षा के कारण , वह जवान ईश्वर की कृपा का पात्र बना और न सिर्फ़ यह कि वह उस दासी को जिससे वह प्रेम करता था , प्राप्त करने में सफ़ल रहा बल्कि बहुत सारा पैसा भी उसके हाथ लगा। जिससे उसका भविष्य अच्छा हो गया।

अच्छाईयों से इश्क़ की महानता

दारमिया एक बुद्धिमान , अध्यात्म व इस्लाम का ज्ञान रखने वाली नारी थी और अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस सलाम पर बहुत ज़्यादा ईमान रखती थी।

आपका घर जहून नामक जगह पर था , आप बहुत ज़्यादा दिलेर और निडर औरत थीं। अली अलैहिस सलाम की मुहब्बत आपके दिल में भरी हुई थी। वह हमेशा अली अलैहिस सलाम के न्याय और अल्लाह के रसूल के वास्तविक उत्तराधिकारी होने की बातें किया करती थीं। सिफ़्फ़ीन की जंग में अली अलैहिस सलाम के सिपाहियों को मुआविया , जो कि हक़ व सत्य का दुश्मन था , के ख़िलाफ़ बढ़काती थीं और जंग के लिये जोश दिलाने वाला भाषण दिया करती थीं।

मुआविया सिंहासन की गद्दी पर बैठने के बाद एक बार मक्का आया हुआ था। उसने दारमिया के बारे में पूछा कि वह ज़िन्दा है या मर गई। किसी ने कहा: ज़िन्दा है और सही व सालिम है। मुआविया ने कहा: दारमिया को हाज़िर किया जाये। दारमिया आयीं जैसे ही मुआविया की नज़र उन पर पड़ी कहने कहा: ऐ हाम की बेटी , (हाम हबशियों का पूर्वज है) तुम यहां किस लिये आई हो ?

दारमिया: तू मेरी बे इज़्ज़ती करना चाहता है। मैं बनी कनाना के क़बीले की हूं , हाम की औलाद नही। और मेरा नाम दारमिय ए जहूनिया है।

मुआविया: सच कहती हो , क्या तुम जानती हो कि मैंने तुम्हे क्यों बुलाया है ?

दारमिया: सुबहान अल्लाह मैं ग़ैब का ज्ञान नही रखती।

मुआविया: मैंने तूझे इस लिये बुलाया है ता कि तुझ से सवाल करूं कि तू अली को क्यों दोस्त रखती है और मुझ से दुश्मनी क्यों रखती है ? वह क्यों तुम्हे पसंद हैं और मैं क्यों नापसंद ? दारमिया ने कहा: मुझ से यह सवाल न करो।

मुआविया: यह संभव नही है तुम्हे इस का उत्तर देना ही पड़ेगा।

दारमिया: अब जबकि मैं मजबूर हूं तो इसकी वजब बयान करती हूं:

मैं अली अलैहिस सलाम को इस लिये दोस्त रखती हूं कि उन्होने जनता में न्याय व इंसाफ़ की बुनियाद डाली।

मैं अली अलैहिस सलाम को इस लिये दोस्त रखती हूं कि वह जनता को उसका हक़ देते थे और जनता का हक़ बाटने में न्याय और बराबरी से काम लेते थे।

लेकिन तुझसे इस लिये नफ़रत करती हूं कि तूने ऐसे इंसान से जंग की जो तुझ से बहुत ज़्यादा बुलंद और बेहतर था। वह ख़िलाफ़त व शासन के लिये तुझ से ज़्यादा बेहतर और लायक़ था। तूने उससे ना हक़ जंग की , तूने उनकी मुख़ालेफ़त की और उनके हक़ पर क़ब्ज़ा जमा लिया।

अली अलैहिस सलाम को इस लिये दोस्त रखती हूं कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने उनको विलायत व ख़िलाफ़त के लिये चुना था और सब उनको पसंद करते थे और समस्त मुसलमान उनका आदर करते थे।

तुझसे इस लिये घृणा करती हूं कि तूने ना हक़ लोगों का ख़ून बहाया और तूने ज़ुल्म व अत्याचार से फ़ैसला किया , अक़्ल से फ़ैसला नही किया , तूने अल्लाह के रसूल (स) के तरीक़े से न्याय नही किया बल्कि अपने हवा व हवस से फ़ैसले किये।

मैं अली अलैहिस सलाम को दोस्त रखती हूं और मरते दम तक उनके साथ हूं लेकिन तुझसे और तेरे कामों से बेज़ार हूं और जब तक ज़िन्दा हूं , तुझसे नफ़रत करती रहूंगी।

मुआविया: इसी वजह से तेरा पेट और छातियां मोटी हो गई है और कूल्हे फैल गये हैं ?

दारमिया: तूने जो सिफ़ते बयान की हैं वह सब तेरी मां में पाई जाती थीं क्यों कि मैंने ख़ुद सुना है कि तेरी मां हिन्द इन्ही सिफ़तों से अजनबी लोगों को लुभाती थी।

मुआविया ने जब यह देखा कि यह औरत वास्तविकता को बयान करने से नही डरती तो उनके साथ राजनितिक तरीक़े से पेश आने लगा और उनसे माफ़ी मागते हुए कहना लगा: मैं इन जुमलों से तुम्हारी बे इज़्ज़ती नही नही करना चाह रहा था बल्कि मैं तुम्हारी तारीफ़ कर रहा था। तारीफ़ करने के बाद सवाल किया कि क्या तूने ख़ुद अली को देखा है ?

दारमिया: हां ख़ुदा की क़सम मैंने उनको अपनी आंखों से देखा है।

मुआविया: तो उनको तूने कैसा पाया ?

दारमिया: मैंने उनको इस हालत में देखा है कि न तो शासन ने उनको धोखा दिया था और न ही उन नेमतों ने उनको ख़ुदा से ग़ाफ़िल किया था जिन पर तू तकिया किये हुए है।

मुआविया ने इशारा किया कि बस इतना काफ़ी है।

वह डर गया कि अगर इस शेर दिल ख़ातून से अली अलैहिस सलाम की अच्छाईयों और बड़ाईयों के बारे में कुछ देर तक और बयान किया तो जो कुछ सम्मान बचा है वह भी ख़त्म हो जायेगा और वह सबकी नज़रों में गिर जायेगा। इसी वजह से उनको ख़ामोश होने को कहा।

जब मुआविया ने उनको ख़ामोश होने का आदेश दिया तो दारमिया ने कहा:

ख़ुदा की सौगंध यह वह बातें हैं जो मेरे मरे हुए दिल को ज़िन्दा कर देती हैं और उनके ख़िलाफ़ होने वाले झूठे प्रचार को भंग कर देती हैं। यह बातें दिलों को इस तरह से रौशन और साफ़ कर देती हैं जैसे ज़ैतून का तेल बरतनो के ज़न्ग को साफ़ कर देता है।

मुआविया: तुम सच कहती हो और मैं तुम्हारी बातों को प्रमाणित करता हूं। अब यह बताओ कि क्या तुम्हे किसी चीज़ की आवश्यकता है ?

दारमिया: अगर मैं तुझ से कोई चीज़ मांगूं तो क्या तू मुझेगा अता करेगा ?

मुआविया: हां ,

दारमिया: मुझे लाल बालों वाले सौ ऊंट सारबान के साथ चाहिये।

मुआविया: सौ ऊंट का क्या करोगी ?

मैं चाहती हूं कि उनके दूध से छोटे बच्चों का पालन पोषण करूं और ख़ुद उनके ज़रिये बूढ़े और कमज़ोर लोगों की देख भाल कर सकूं।

मुआविया: अगर यह सब मैं तुम्हे दे दूं तो फिर अली बिन अबी तालिब की तरह मुझे दोस्त रखोगी ?

दारमिया ने कहा: नहीं , ख़ुदा की सौगंध , बल्कि उनसे कम भी नही तुम्हे दोस्त नही रख सकती।

मुआविया ने एक शेर पढ़ा और कहा कि देख यह मेरी बड़ाई है कि मैं तेरे गुनाहों को नज़र अंदाज़ करता हूं और तूझे बख़्शता हूं। अगर अली बिन अबी तालिब होते तो तुझे एक खोटा सिक्का भी न देते।

दारमिया ने कहा: बेशक अली अलैहिस सलाम यह काम न करते , यहां तक कि उन ऊटों को एक बाल भी न देते क्यों कि वह जनता के ख़ज़ाने को तेरी तरह से बर्बाद नही करते थे।

इस ख़ातून के इश्क़ को जो ऐसे बुलंद मरतबा इंसान से इश्क़ करती है जिस में तमाम कमालात व फ़ज़ाइल जमा हो गये हैं। पश्चिमी नारियों के इश्क़ से , जो बेहद ख़राब व घटिया रासस्ता चलते लोगों से इश्क़ करती हैं , तुलना करें ताकि आपको मालूम हो सके कि धर्म पालन और क़ुरआन के साथ संबंध और अधर्मी व हवा व हवस के संबंध रखने में कितना ज़्यादा अंतर पाया जाता है।

ज़ालिमों को मुंहतोड़ जवाब

अरवा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब बहुत बूढ़ी हो गई थीं इतनी कि कमर ख़म हो चुकी थी और लाठी के बिना आपके लिये संभव नही था। एक दिन मुआविया के दरबार में दाख़िल हुई और जैसे ही मुआविया ने आपको देखा कहा: स्वागत है आपका ऐ ख़ाला जान। कैसी हैं आप ?

अरवा ने कहा: अल्हम्दुलिल्लाह , मैं अच्छी हूं। लेकिन चूंकि तूने मेरे चचाज़ाद भाईयों को विरोध किया है और उनके हक़ को छीन लिया है और नाहक़ ख़ुद को मुसलमानों का ख़लीफ़ा कहता है इस बात का मुझे बहुत ग़ुस्सा है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के स्वर्गवास के पश्चात क़बील ए बनी तैम , अदी और बनी उमय्या ने हमारे हक़ को हमसे छीन लिया है और हमें हमारे हक़ से वंचित कर दिया है। जबसे तुम शासन की गद्दी पर बैठे हो , हम जिसके ज़्यादा पात्र थे। हमें अलग थलक कर दिया है , मुझे इन सब का बहुत दुख है।

हमारी और तुम्हारी मिसाल क़िबतीयों और फ़िरऔन के मानने वालों की तरह है और अली बिन अबी तालिब अलैहिस सलाम की मिसाल हज़रत मूसा के बाद हारून की तरह है।

इस बीच अम्र बिन आस , जो अपने ज़माने का प्रसिद्ध धुर्त व्यक्ति था , ने अरवा पर ऐतेराज़ किया और कहा: ऐ बूढ़ी औरत , चुप हो जा। मंद बुद्धि , भोली और वेवक़ूफ़ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जो सब के सब उसके अत्यधिक क्रोध और अरवा की बुराई के सूचक थे।

लेकिन अरवा न सिर्फ़ यह कि चुप नही हुई और डरी नहीं बल्कि पहले से ज़्यादा दृढ़ता और निडरता के साथ बोलते हुए उस धुर्त का जवाब इस तरह से दिया:

ऐ हराम की औलाद , तू क्या कहता है ? इन बातों का तुझ से क्या संबंध है ? तेरी मां मक्के की नाज़ायज़ संबंध रखने वाली औरतों में से थी , सबसे इश्क़ और मुहब्बत के पैंग लड़ाती थीं और बहुत ही कम पैसे में उनके साथ शारीरिक संबंध बनाती थी और उन्हे ख़ुश करती थी। तू उसकी औलाद हो कर मुझ पर आपत्ति जता रहा है ?

तू वह है कि जब पैदा हुआ तो छ: लोग तेरा बाप होने के दावेदार थे और जब तेरी मां से पूछा गया तो उसने कहा कि इन सब ने मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाये हैं लिहाज़ा यह जिस से सबसे ज़्यादा मिलता हो उसी का होगा। तेरी मां को मैने ख़ुद देखा है कि मेना के मैदान में उपस्तिथी के दिनों में हर घृणित और बुरे जवान के साथ मिलती थी और चूंकि तू आस बिन वायल से सबसे ज़्यादा मिलता था इस लिये तू उसकी औलाद हो गया और तूझे अम्र बिन आस कहा जाने लगा।

अभी अरवा अम्र बिन आस की असलियत बता ही रही थीं कि इतने में मरवान उनकी बात काट कर बीच में बोल पड़ा:

ऐ बुढ़िया , बेकार की बातें न कर , चुप हो जा। मंद बुद्धि , कैसी बातें कर रही है , अपने काम की बात कर। अरवा या बेहतर तरह से कहा जाये कि क़ुरआन की पाठशाला की शिष्य और इस्लाम के तालीमात की रौशनी में परवरिश पाने वाली , इस स्वतंत्र नारी , इस्लाम की गर्वता का प्रतीक , शक्तिशाली व पाक दामन औरत ने अपनी तलवार से ज़्यादा काटदार ज़बान का रुख उसकी तरफ़ मोड़ा और कहा: तू भी आस के इस बेटे की तरह बातें कर रह हैं , ऐ नीली आंखों वाले , ऐ लाल बालों वाले , ऐ नाटे क़द वाले बद शक्ल इंसान , ऐ बेढंगा शरीर और अनुचित अंगों वाले , तू हर लिहाज़ से हारिस बिन कंदा के ग़ुलाम ज़्यादा मिलता है न कि अपने बाप हकम से। इसलिये कि उसकी भी आंखें नीली थी , बाल लाल थे , क़द नाटा और शक्ल बुरी थी , तुझ से क्या मतलब है तू दूसरों के काम दख़ालत करता है और बेकार के काम करता है ?

मैंने तूझे पहचानती हूं तू अपने बाप से बिल्कुल भी नही मिलता जबकि तेरा बाप दावा करता है कि तू उसी की औलाद है , मैं तेरे बाप को भी पहचानती हूं जिसमें जिस जिस तरह की बातें पाई जाती थी वह तुझ में नही पाई जाती हैं या यह कि जो सिफ़ते उस में पाई जाती थी तुझ में नही पाई जाती हैं। लिहाज़ा मुझ पर ऐतेराज़ करने से पहले अपनी मां के पास जा और उससे जा कर पूछ के तेरा बाप कौन है ? तुझे मुझ से क्या मतलब है ?

फिर मुआविया की तरफ़ रुख़ किया और कहा: ऐ मुआविया , ईश्वर की सौगंध , तू कारण बना कि यह सब जनता के कामों के ठेकेदार बन जायें और इन में यह जुरअत पैदा हो गई है , तू और सिर्फ़ है जिसने इन के हाथ में बागडोर दी है जिससे इन में इतना साहस पैदा हो गया है कि यह मुझ से इस तरह से बातें कर रहे हैं।

मुआविया ने आदर पूर्वक उन्हे दिलासा दिया और कहा: ख़ुदा ने पहले के कामों को माफ़ कर दिया है अब अगर आपको किसी चीज़ की आवश्यकता है तो कहिये।

अरवा ने कहा: मुझे तेरी किसी चीज़ की आवश्यकता नही है। उसके बाद वहां से उठीं और दरबार से बाहर निकल गयीं।

मुआविया ने अम्र बिन आस और मरवान बिन हकम को संबोधित करते हुए कहा कि लानत हो तुम पर , तुम्हारी वजह से आज मुझे यह सारी बातें सुननी पड़ी। फिर उसने किसी को उनके पीछे भेजा ता कि उन्हे बुला कर लाये , उनके आने के बाद मुआविया ने कहा: अपनी आवश्यकता को मुझ से बयान करिये मैं उसे पूरा करना चाहता हूं।

अरवा ने कहा: मुझे छ: हज़ार दीनार की ज़रुरत है। मुआविया ने कहा: उन पैसों का क्या करना चाहती हो ?

अरवा ने कहा: दो हज़ार दीनार से एक नाला बनवाऊंगी जिससे क़बील ए बनी हारिस के ग़रीबों के लिये रोज़ी का ज़रीया पैदा हो सके। दो हज़ार दीनार से बनी हारिस के ग़रीब जवानों की शादियां करूंगी और बाक़ी दो हज़ार से दूसरे आवश्यक कार्यों को पूरा करूंगी।

मुआविया ने कहा: इन्हे छ: हज़ार दीनार दे दिया जाये। जिस समय अरवा दरबार से बाहर निकलना चाहती थीं , मुआविया ने कहा:

यह मैं था जिसने आपको छ: हज़ार दीनार देने का आदेश दे दिया। अगर मेरी जगह अली बिन अबी तालिब होते तो इसके बावुजूद कि वह आपके चचा के बेटे थे , आपको कुछ नही देते।

यह बात सुनते ही उनका चेहरा ग़ुस्से से लाल हो और रंग उड़ गया। बेहद ग़ुस्से की हालत में आपको रोना आ गया फिर मुआविया से कहा:

अली की बात करके तुमने अली की याद ताज़ा कर दी। तुमने मुझे अली उनके न्याय , उनकी बहादुरी..... की याद दिला दी।

उसके बाद अली अलैहिस सलाम की शान में एक तफ़्सीली क़सीदा पढ़ा , उन्हे सब पर फ़ज़ीलत दी और मुआविया को और ज़्यादा ज़लील व रुसवा करके वापस हो गयीं।

जन्नती आचरण और जन्नती घराना

नसीबा बिन्ते कअब उर्फ़ उम्मे अमारा ने अपने शौहर और अपने दो बच्चों के साथ जंगे ओहद में शिरकत की थी और उन्होंने खुद भी तलवार उठा कर पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की राह में जेहाद किया था। कुरआने करीम , इस्लाम और मुसलमानों से दिफ़ा करती थी और कभी कभी तीर कमान उठा कर दुश्मन का मुकाबला करती थी और उनको पीछे हटने पर मजबूर करती थीं , इसी महान जँग में आप के कंधों और बदन पर बारह ज़ख्म लगे थे।

जवान लड़कियां और औरतें जब आपके बदन और सीने पर ज़ख्म देखती थीं तो मालूम करती थीं कि यह ज़ख्म कैसे लगे। उन्हीं में से एक ख़ातून उम्मे सअद बिन्ते सअद बिन रबीअ थी जो कहती हैः जंगे ओहद का अपना वाक़ेया मुझे सुनाओ:

उम्मे अमाराः उस दिन ज़ोहर के नज़दीक पानी की एक मश्क और ज़ख्मों पर बाँधने वाली पटटी उठा कर मैं मैदाने जँग में गई ता की ज़ख़्मियों को पानी पिलाऊँ और उनके ज़ख्मों पर पटटी बांधूँ , मुझे इस बात का ख्याल भी नहीं था की मैं अपने शौहर और अपने दो बेटों के साथ कंधे से कंधा मिला कर दुश्मन से जँग करूँगी , जैसे ही मैदान में दाख़िल हुई तो देखा की घमासान की जँग हो रही है और मुसलमान शिकस्त खा रहे हैं हर आदमी भाग रहा है , मैं तलवार चलाती हुई पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के नज़दीक पहुँच गई। उस दिन मैं तलवार भी चला रही थी और तीर कमान से तीर अंदाज़ी भी कर रही थी , और मैं ने इस क़दर जँग की कि मेरे कांधों पर यह ज़ख्म लगे हैं।

उम्मे सअदः मैंने खुद उन ज़ख्मों को देखा है जिन पर वरम मौजूद था , मैंने उनसे पूछा यह ज़ख्म किसने लगाये हैं तो उन्होंने कहाः जिस समय लोग पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को छोड़ कर भाग गये तो इब्ने कमीया चिल्ला रहा थाः

मुहम्मद कहाँ हैं ? मुहम्मद कहाँ हैं ? वाय हो मुझ पर अगर मैं उनको कत्ल न करूँ।

मुसअब बिन उमैर और दूसरा गिरोह जिसके दरमियान मैं भी मौजूद थी। उसके सामने खडे हो गए और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का देफा करने लगे , इसी हमले में यह ज़ख्म मेरे बदन पर लगे हैं , मैंने भी उस पर कई वार किये लेकिन चूंकी वह खुदा का दुश्मन दो ज़िरह पहने हुऐ था मेरी तलवार का वार उस पर कोई असर नहीं करता था।

मैंने उससे पूछा तुम्हारे इस हाथ पर क्या हुआ है। उन्होंने कहाः जिस दिन यमामा में मुसलमानों ने काफ़िर अरबों से शिकस्त खाई , अंसार ने मुसलमानों से मदद माँगी , उनकी मदद के लिए जो अफ़राद गये उनमें से एक मैं भी थी , हज़ीकतुल मौत नामी जगह पर जँग हो रही थी और लगभग एक घन्टे तक जँग जारी रही। यहाँ तक की अबू दुजाना की वहीं पर शहादत हो गई और आख़िर कार मुसलमान कामयाब हो गये। इसी जगह जब मैं खुदा के दुश्मन मुसैयलमा का पीछा कर रही थी तो एक शख्स ने अचानक मुझ पर वार किया और मेरा हाथ कट गया।

उम्मे अमारा के बेटे अब्दुल्लाह बिन ज़ैद बिन आसीम ने बयान किया हैः मैं जंगे ओहद में जँग कर रहा था। जिस वक्त लोग पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के पास से फ़रार कर रहे थे। मैं खुद आपके पास पहुँचा , मेरी वालेदा भी पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की तरफ़ से जँग कर रही थीं। जैसे ही पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नज़र मुझ पर पड़ी फरमायाः उम्मे अमारा के बेटे हो। मैंने कहा जी हाँ या रसूलल्लाह , आँ हज़रत ने कहाः फिर जँग क्यों नहीं करते। तीर अन्दाज़ी करो। मैंने एक तीर उठाया और पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के सामने एक मुशरिक को मारा जो उसके घोड़े की आख में लगा जिससे उसका घोड़ा बिदक गया और उसके साथ ज़मीन पर गिर गया। मैं फिर से उस पर हमला कर रहा था यहाँ तक की मैं ने पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की तरफ़ देखा तो देखा कि आप मुस्कुरा रहे थे , जिससे ज़ाहिर था कि आप मेरी हिम्मत बढ़ा रहे थे , उसी वक्त दुश्मन के एक सिपाही ने मेरी मां के कंधों पर एक ज़र्ब लगाई जिससे वह ज़ख्मी हो गईं , पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः

तुम्हारी मां , तुम्हारी मां , उन्हे बचाओ , उनके ज़ख्म को बाँधो , तुम उस बा बरकत ख़ानदान के अफ़राद हो , तुम्हारी माँ का मरतबा फलाँ फलाँ से ज़्यादा है और तुम्हारे बाप का रुतबा फलाँ फलाँ के मक़ाम से ज़्यादा है खुदा वन्दे आलम तुम्हारे खानदान पर रहमत नाज़िल करे।

मेरी माँ ने कहाः या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम , खुदा से दुआ करें कि वह हमें स्वर्ग में आपके साथ जगह इनायत करे। पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उसी वक्त दुआ की और कहाः

अल्लाहुम्म अजअल हुम रफकाई फिल जन्नः

اللھم اجعلھم رفقائی فی الجنة “ ۔

जैसे ही मेरी माँ ने पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की यह दुआ सुनी तो इस क़दर खुशहाल हुई जिसका अंदाज़ा नहीं किया जा सकता और कहाः

मुझ पर जो रन्जो मुसीबत नाज़िल हुई है अब मुझे उसकी कोई फिक्र और ग़म नहीं है।

पैग़म्बरे अकरम (स) उवैसे क़रनी का अध्यात्मिक जुड़ाव

ओवैस क़रनी ने पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम को नहीं देखा था लेकिन आपकी विशेषताएं और आपकी दावत को सुन कर फ़िदा हो गए थे और हिदायत को क़बूल करके जामे ईमान , कामिल इबादत और आरेफ़ाना अध्यात्म से जुड़ गये थे।

पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उनके लिए जन्नत की गवाही दी और अपने असहाब से फरमायाः

तुम्हें अपनी उम्मत के ओवैस नामी शख़्स की बशारत देता हू यकीनन वह क़यामत में क़बील ए रबीया और मुज़िर के बराबर अफ़राद की शिफ़ाअत करेंगे:

पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फरमायाः

” تفوح روائح الجنة من قبل القرون و اشوقاہ الیک یا اویس القرن “ ۔

तफुहो रवाऐहुल जन्नह मिन कब्लील करून व अशोकाहो इलैक या ओवैसे करन

यमन की तरफ़ से जन्नत की हवा चल रही है। ऐ ओवैस करनी मैं तुम्हारी ज़्यारत का कितना मुश्ताक हूं। पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने उनको नफ़सुर्रहमान और ख़ैरुत्ता बैईन के नाम से याद किया और कभी कभी यमन की तरफ़ उनकी खुशबू को सुँघते थे और फरमाते थेः

” انی لاشم روح الرحمن من طرف الیمن “ ۔

इन्नी ला अशुम्म रुहुर्रहमान मिन तरफल यमन.

मैं यमन की तरफ़ से नसीमे रहमानी सुँघ रहा हूँ।

ओवैसे क़रनी पैगम्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़्यारत के शौक़ में परेशान थे। अपनी मां से मदीने जाकर पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़्यारत की आज्ञा मांगी , उन्होने कहाः इस शर्त पर इजाज़त देती हूँ की आधे दिन से ज़्यादा मदीने में न रुकना , औवेस अपनी वालेदा की इजाज़त से मदीने आ गये। जब आँ हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के घर पहुँचे तो आप घर पर तशरीफ नहीं रखते थे। आधे दिन वहाँ रुकने के बाद अपने महबूब की ज़्यारत किए बगैर यमन वापस आ गए। जिस वक़्त पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम घर तशरीफ लाऐ तो फ़रमायाः ये किस का नूर है जिसको मैं यहाँ देख रहा हूँ। सब ने कहाः एक ऊँट चराने वाला , जिसका नाम ओवैस था , यहाँ आया था और वापस चला गया , आपने फरमायाः वह इस नूर को हमारे घर में बतौरे हदिया छोड़ कर चले गये हैं।

ये क़िस्सा मशहूर है की जब जँगे ओहद में पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की पेशानी ज़ख्मी हुई और दाँत शहीद हुए तो ओवैस क़रनी सहरा में ऊँटों को चरा रहे थे। वह भी पेशानी और दाँत के दर्द से आहो ज़ारी कर रहे थे।

जी हाँ मानवी मुआशेरत करने वालों और नूरानी चेहरे वालों की ज़िन्दगी में ज़ाहिरी तौर पर मौजूद होना ज़रुरी नहीं है। इंसान कोशिश और मुस्बत कार कर्दगी के ज़रीये औलिया ए हक़ की मानवी ख़िदमत में पहुँच सकता है और जब औवैसे क़रनी ने आं हज़रत सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्ल्म से अपना अध्यात्मिक संबंध बना लिया तो आपके वुजुद में बहुत ज़्यादा फ़ुयुज़ व बरकात जमा हो गये , कहा गया हैः

من جَدَّ وَجَدَ “ ۔

मन जद्दा वजद।

जो भी जिस चीज़ के लिए कोशिश करता है उसको हासिल कर लेता है।

पाठकों , ख़ुसूसन जवानों को जिनकी दुनिया भावनाओं और जज़्बात की दुनिया है। इस वाक्य की हक़ीक़त से आगाह करने के लिए तारीख़ में कोशिश करने वालों के कुछ वाक़ेयात की तरफ इशारा करेंगे।