सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता

सामाजिकता

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

तैमूर लंग का नसीहत लेना

एशिया में तैमूर बादशाह की कुदरत , बहादुरी और हुकूमत प्रसिद्ध थी। जब उससे किसी ने पुछा की तुम किस तरह इस हुकूमत और कुदरत पर पहुँचे तो उसने कहाः एक जंग में मुझे बहुत बड़ी हार हुई मैंने जंग में दुश्मन के खेलाफ़ बहुत ज़्यादा कोशिश की थी। लश्कर का शिराज़ा बिखरने के बाद , चूंकि मैं मशहूर था इसलिए मैंने बंदी बनाये जाने के डर से फ़रार का रास्ता इख्तेयार किया , जंगल में फ़रार करते हुए एक बुढ़ी औरत के ख़ैमे में पहुँचा जो सूत काता करती थी। मैंने एक रात वहाँ रहने की इजाज़त मांगी , उस बुढ़िया ने कबूल कर लिया। कुछ देर के बाद दुश्मन के सिपाही भी फ़रार करने वालों को तलाश करते हुए वहाँ पहुँच गये। मैं रुई के नीचे छिप गया ताकी दुश्मन मुझे न देख सकें , दुश्मन ने सब जगह तलाश किया और रुई में भी मारा जो मेरे पैर में लग गया लेकिन मैंने हिम्मत से काम लिया और खामोशी से बैठा रहा , दुश्मन के जाने के बाद मैं भी बुढ़ी औरत को खुदा हाफ़िज़ कह कर लँगड़ाता हुआ अपने मक़सद की तरफ रवाना हो गया।

एक वीराने में पहुँचा , आराम करने और दुश्मन की नज़रों से ओझल होने के उद्देश्य से वहाँ छुप गया , हर तरफ सन्नाटा था , मैं सोच रहा था की आख़िर अब क्या होगा कि अचानक मेरी नज़र एक चूँटी पर पडी जो गेहूँ का दाना अपने (बिल) घर में ले जा रही थी , मैंने देखा कि वह इस तरफ़ से दीवार के उस तरफ़ जाना चाहती है और गेहूँ के दाने को भी अपने घर में ले जाना चाहती है।

कमज़ोर चूँटी जो अपने वज़्न से ज़्यादा वज़्न को उठाए हुए थी। जब दिवार पर पहुँची और चाहती थी कि दीवार पर बैठे तो गेहूँ का दाना उसके मुँह से छूट कर ज़मीन पर गिर गया। वह दोबारा फिर उसी रास्ते से वापस आई और गेहूँ का दाना उठा कर दोबारा दीवार पर चढ़ने लगी लेकिन दीवार पर चढ़ते वक्त दोबारा गेहूँ का दाना ज़मीन पर गिर गया सड़सठ (67) मर्तबा उसने या सख्त काम अन्जाम दिया , लेकिन वह चूँटी आख़िरकार गेहूँ के उस दाने को दीवार पर लेकर चली गई और फिर दीवार से अपने घर में प्रवेश कर गई।

चूँटी का प्रयत्न और जिद्दो जेहद को देख कर मैंने उससे सबक हासिल किया और अपने आप से कहाः तू उस चूँटी से कम नहीं है , कोशिश कर ता की बुलन्द ओहदे व मुक़ाम हासिल कर सके। मैं ने कोशिश की और एक सिपाही से अमीरी और सल्तनत तक पहुँच गया और आगे अगर खुदा वन्दे आलम ने मौका दिया तो पूरी दुनिया पर हुकूमत करुँगा।

अमीर अब्दुल्लाह ख़लजिस्तानी

वह खुरासान (ईरान का एक राज्य) में नाल बन्दी का काम करता था लेकिन अपने प्रयत्न और जिद्दो जहद के ज़रीए खुरासान का शासक बन गया।

एक दिन उसका दोस्त उससे मुलाकात करने के लिए गया और उससे पुछाः तुम किस तरह नाल बन्दी से ख़ुरासान की हुकूमत तक पहुँचे।

उसने कहाः एक दिन मैं आराम करने के लिए अपने घर गया , घर में मेरी नज़र हन्ज़ला बाद गैसी नामक ईरानी कवी की पुस्तक पर पड़ी , मैं ने अध्धयन के लिए उसको खोला तो एक रोबाई पर मेरी नज़र पडी।

मेहतरी गर्बे कामे शीर दर अस्त

रो खतर कुन ज़ेकामे शिर बेजुई

या बुज़ुर्गी व इज़्ज़ो नेमतो जाह

या चु मर्दानत मर्ग रो या रुई.

अगर किसी महत्वपूर्ण चीज़ को शेर के मुँह में देखो तो उसके मुँह से निकालने की कोशिश करो या तो उस काम में सफ़लता के नतीजे में तुम्हें मुक़ाम व मन्सब और नेमत मिलेगी या जवान मर्दों की मौत नसीब होगी , जो खुद एक अज़मत है।

इस रोबाई ने मेरे दिल व दिमाग़ में एक गति उत्पन्न कर दी और उसको हासिल करने के लिए मैं मन्सब व मुकाम की कोशिश में लग गया और आख़िरकार नाल बन्दी के काम से ख़ुरासान की हुकूमत तक पहुँच गया।

पवित्र जीवन का परिलेख

सातवें इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इंसान की उम्र को इलाही और मलकूती सरमाया शुमार करते हैं और आप चाहते थे कि तमाम लोग अपनी उम्र को ऐसी तिजारत में बसर करें जिसके ज़रीये वह दुनिया व आख़ेरत में फायदा उठायें। इसी वजह से लोगों को चार हक़ीक़तों की तरफ हिदायत फरमाते हैं

اجتھدوا فی ان یکون زمانکم اربع ساعات : ساعة لمناجاة اللہ، و ساعة لامر المعاش، و ساعة لمعاشرة الاخوان والثقات الذین یعرفونکم عیوبکم و یخلصون لکم فی الباطن، و ساعة تخلون فیھا للذاتکم فی غیر محرم و بھذہ الساعة تقدرون علی الثلاث ساعات “ ( ۱ ) ۔

अपने आयु को चार भागों में बाटने की कोशिश करो , एक हिस्सा आराधना व इबादत और खुदा से मुनाजात के लिए , एक हिस्सा कारोबार और ज़िन्दगी का ख़र्च हासिल करने के लिए , एक हिस्सा दीनी भाईयों से सामाजिक व्यवहार और नशिस्तो बर्खास्त के लिए , ताकी वह तुम्हारी बुराइयों को वह तुम्हें बताऐं और बातिन में वह तुम से ख़ुलूस से पेश आयें और यह हिस्सा जायज़ खुशियों और लज़्ज़तों के लिए मख़्सूस करो और ये आख़िरी हिस्सा थकन और सुस्ती को दूर करता है इसके ज़रीये पहले तीन भागों की रक्षा करो।

इस हदीस का ध्यानपूर्वक अध्धयन करो और उस पर विचार करो कि सही सामाजिक व्यवहार कितना महत्व रखता है। हज़रत इमाम मूसा बिन जाफ़र अलैहिस्सलाम ने हुक्म दिया कि अपनी उम्र का एक हिस्सा ऐसे दोस्तों की सोहबत व संगत में गुज़ारो जो तुम्हारी प्रगति व तरक़्क़ी और तुम्हे तुम्हारी बुराइयों को पाक करने में असरदायक साबित होँ।

इमाम अलैहिस्सलाम फरमाते हैः

दो चीज़ों के बारे में अपने नफ्स से बहस व गुफ्तग़ू न करो। ग़रीब व तँग दस्ती और लंबी आयु के लिए , इस लिये कि जो भी अपनी सोच को उन दोनो बातों के लिए मख्सूस कर देता है वह ग़रीबी और तँगहाली से दो चार हो जाता है और कंजूसी करना शुरु कर देता है और जो भी लंबी आयु के बारे में सोचने लगता है वह लालच का शिकार हो जाता है। दुनिया से अपने फायदों को हलाल और ऐसे कामों में क़रार दो जिससे मुरव्वत बाक़ी रहे और फ़ुज़ूलख़र्ची न हो , इस प्रकार जीवन यापन करना पाको पाकीज़ा ज़िन्दगी बसर करना है , दीनी कामों के लिए खुदा से मदद तलब करो , क्यों की इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से हदीस नक़्ल हुई है कि

” لیس منا من ترک دنیاہ لدینہ او ترک دینہ لدنیاہ “ ( ۱ ) ۔

लईसा मिन्ना मन तर्का द्दुनिया लेदीनेही अव तरक दीनोहु लेदुनियाहु.

जो अपनी दुनिया और कारोबार के लिए दीन को छोड़ दे , या अपने दीन की वजह से दुनिया को छोड़ दे , वह हम में से नहीं है।

नेक बंदों के साथ सामाजिकता

सम्पूर्ण भलाई एवं सम्पूर्ण बुराई

इस्लाम भी ऐसा धर्म है जो सम्पूर्ण सभ्यता व सक़ाफ़त और सौभाग्य व सआदत प्रदान करता है , इस्लाम , सही सामाजिक व्यवहार , वास्तविक मित्रता और ज़िन्दा दिल लोगों के साथ रहने में भलाई समझता है। इसी तरह पवित्र आत्माओं , ईमान वालों और ऐसे लोगों के साथ सोहबत व संगत को , जो मसीहाई का दम रखते हैं और इंसान की इस्लाह , अदब , तरबीयत , रुश्द और करामत के अलावा कुछ और नहीं चाहते , को मुकम्मल सआदत जानता है।

इस्लाम , ग़लत सामाजिकता , बेकार दोस्त और मुर्दा दिल वालों के साथ रहने को मुकम्मल शर से ताबीर करता है। इसी तरह बुरी आत्मा वाले , बुरे , कमीने और बेदीन लोगों के साथ सामाजिक व्यवहार करने को मुआशरे व समाज की बुराई मानता है।

पवित्र व भले लोगों के साथ सामाजिक व्यवहार करना , मोमिन और फरीश्तों जैसे नेक लोगों के साथ उठना बैठना , वफ़ादार या ज़िन्दा ज़मीर दोस्तों के साथ दोस्ती करना ऐसे शरबत की तरह है जो इंसान की विचारधारा और आत्मिक बीमारीयों का ऐलाज करता है और इंसान को एक अच्छा और बेहतरीन ज़िन्दगी गुज़ारने की दावत देता है।

नापाक और बीमार दिल लोगो के साथ सामाजिक व्यवहार बनाना , बेईमान और शैतान नुमा लोगों की संगत में रहना , मुनाफ़िक़ लोगों के साथ दोस्ती व सामजिकता इख़्तेयार करना , ऐसे खतरनाक ज़हर की तरह हे जो इंसान की ज़िन्दगी में दाख़िल होकर उस के तमाम कामों और पहलुओं में ज़हर धोल देता है और इंसानों को हलाकत , ज़लालत , बदहाली , परेशानी और मुसीबतों में गिरफ्तार कर देता है।

बुरे और कमीने लोगों की संगत और सोहबत से जो ज़िल्लत व रुस्वाई इंसान को नसीब होती है उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती , बल्की ज़िन्दगी की लज़्ज़त और मिठास ख़त्म हो जाती है।

अमीरुल मोमनीन अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैः

عار الفضیحة یکدر حلاوة اللذة “ ( ۱ )

आरुल फज़ीहत यकदिरो हलावतुल लज़्ज़त.

बुरे साथी व दोस्त और ग़लत तौर तरीक़े से जो रुस्वाई मिलती है वह ज़िन्दगी की लिज़्ज़तों को खत्म कर देती है।

لا یقوم حلاوة اللذة بمرارة الآفات “ ( ۲ ) ۔

ला यपुमो हलावतुल लिज़्ज़त बेमरारतुल आफात.

उन लज़्ज़तों की कोई महत्व नहीं है जो आफ़तों की तल्ख़ियों के लाथ हों।

निसंदेह जो भी बुरे और अपवित्र दोस्त की संगत में एक मुद्दत तक ज़िन्दगी बसर करता है वह ग़लत सामजिकता के कारण ज्ञान , अध्यात्म , आराधना व इबादत , ख़िदमत और करामत , से वंचित हो जाता है। वह अपनी क़ीमती उम्र को शैतानी रास्ते में बर्बाद कर देता है और जब आँखें खोलता है तो जवानी की उमंगें , इच्छा शक्ति और इंसानी करामत खत्म हो चुकी होती है , इसके मुर्दा वुजूद से ख़ानदान और दूसरे लोगों को पीड़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता , जल्दी गुज़र जाने वाली लज़्ज़तों की मिठास के मुकाबले में आज गले पड़ने वाले नुक़सान और आफतें घाटे का सौदा मालूम होने लगते हैं।

सच्चे दोस्त के बारे में सुन्दर मिसाल

इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रसिद्ध कवी जलालुद्दीन रुमी ने अपनी प्रसिद्ध किताब (मसनवी) में पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की एक हदीस को बयान किया है और ख़ास अंदाज़ और हुनर के साथ उसे नज़्म किया है जिसको यहाँ पर नक़्ल करना फायेदे से ख़ाली नहीं है।

बहार की हवा को ग़नीमत समझो क्यों कि वह तुम्हारे बदन में उसी तरह असर करती है जिस तरह पेड़ों पर असर करती है और पतझड़ की हवा से दूरी इख्तेयार करो क्यों कि वह तुम्हारे बदन पर उसी तरह असर करती है जिस तरह पेड़ों पर असर करती है।

जलालुद्दीन रुमी कहते हैः पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम सबसे फ़सीह इंसान हैं और उनका कथन तमाम इंसानों के कलाम से बुलन्द व बाला है और खुदा के कलाम से कम है , बेशक इस हदीस से बुलन्द हकीक़त और बहुत अहम कलाम मुराद है।

शायद पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नज़र में सुबह की ठंडी और ख़ुशगवार हवा और बादे सबा से मुराद अहले दिल और अवलिया ए इलाही का दम भरने वालों के मोजिज़ नुमा और मलकूती कलाम हैं क्यों कि जिस तरह बहारी हवा दरख्तों को ज़िन्दा करती है। उसी तरह ये भी मरे हुऐ दिलों को हयात अता करते हैं। पजमुर्दा जानों को हरकत देते हैं और पजमुर्दा नुफ़ूस को अख़लाक़ी और ईरफ़ानी हालात की बुनियाद पर ज़िन्दा करते हैं।

आ हज़रत पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की नज़र में बादे खेज़ाँ से मुराद अहले बातिल और शैतान सिफ़त लोगों का मुर्दा कलाम है कि जिस तरह तूफ़ाने खेज़ाँ दरख्तों के पत्तों को पीला करके ज़मीन पर गिरा देता है उसी तरह यह भी नीम जाँ दिलों को मार देते हैं और कम ताकत जानों को क़त्ल कर देते हैं और मुर्दा दिलों को तहरीक करके अजगर की तरह बे महार शहवत की तरफ़ ले जाते हैं।

आ हज़रत पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के कलाम की मुराद यह है कि अगर इंसान इलाही मुआशेरत मलकूती रफ़ीक़ और अर्श नशीं दोस्त जिस की ज़बान ईमान में ग़र्क़ उसके हालात हक़ायक़ से नज़दीक और उसका अख़लाक बाग़े करामत का फल है , के साथ दोस्ती और हम नशीनी करो तो इंसानी इस्तेदाद और उसके मानवी हालात ईसवी फूँक से ज़िन्दा हो जाऐंगे और उसके वुजूद का पौधा शजरे तय्यबा जिसकी जड़ें ज़मीन में साबित हैं और उसकी शाखें आसमान में और उसका फल हमेशा बाक़ी रहने वाला है , में तब्दिल हो जायेगा।

अगर शरीर मुआशिर , शैतान सिफ़त साथी और माद्दी व बेदीन दोस्त जिसकी ज़बान कुफ्रो शिर्क में ग़र्क हो और उसके हालात बुतपरस्ती के सक़ाफ़त और उसका अख्लाक़ अबू जहल के तरबूज़ की तरह से हो। (जिसके बारे में कहा जाता है कि तल्ख़ और कड़वा होता है) रेफाक़त और हम नशीनी इख्तेयार करेगा तो उसकी इंसानी इस्तेदाद और बातिनी हालात बादे खेज़ाँ की तरह उसकी गर्म साँसों से नाबूद हो जाऐंगे और उसके वुजूद को पौधा शजरे ख़बीसा जिसकी ज़मीन में कोई जड़ नहीं है , में तब्दील हो जाऐगी।

इंसान को हकीकी दोस्त और पाको पाकीज़ा रफीक़ का फायेदा उसी तरह होता है जिस तरह फूल पौधों और दरख्तों को नसीमे बहारी से होता है और इंसानों को बुरे दोस्त से उसी तरह नुक्सान होता है जिस तरह आग घास फूंस में पड़ने के बाद उसको स्याह राख में तब्दील कर देती है और हवा उसके हर ज़र्रे को अपने साथ ले जाती है।

गुफ़्त पैग़म्बर ज़ सर्मा ए बहार

तन म पुशानीद यारान ज़ीनहार

ज़ान के बा जाने शुमा आन मी कुनद

कान बहारन बा दरख्तान मी कुनद

लैक बीग्रीज़न्द अज़ सर्दे खज़ान

कॉन कुन्द कु कर्द बा बागो वज़ान

रावीयान इनरा बे ज़ाहीर बुर्दे अन्द

हम बर आन सुरत कनाअत करदे अन्द

बी ख़बर बुदन्द अज़ जाई आन गिरोह

कुह रा दिदे न दिदे कान बे कूह

अन खज़ान नज़्दे खुदा नफ्सो हवास्त

अक्लो जान बहारस्तो बकास्त

मर तु रा अक्लीस्त जुज़्वऐ दर नेहान

कामीलुल अक्ली बेजो अन्दर जहान

जुज़्वे तु अज़्कुल्ले तु कुल्ली शवद

अक्ले कुल बर नफ्से चुन गुल्ली शवद

पस बे ताविल इन बुवद कॉन फा सेपाक

चुन बहारस्तो हयाते बर्गो ताक

गुफ्तहाऐ अवलिया नर्मो दुरुश्त

तन म पुशान ज़ान की दिनत रास्त पुश्त

गर म गोयद सर्द गोयद खुश बेगीर

ज़ानज़े गर्मो सर्द बेज्ही वस्सईद

गर्मो सर्देशनौ बहारे ज़िन्दगीस्त

माऐ सिदको यकीनो बन्दगीस्त

ज़ान के ज़ु बिस्ताने जान्हा ज़िन्दे अस्त

ज़िन ज्वाहीर बहरे दिल आतन्दे अस्त

बर दिले आकील हज़ारान गम बुवद

गर ज़बाग दिल खेलाली कम बुद

परवीन ऐतेसामी ने अपने क़सीदे में ना मुनासीब साथी के आख़िर में उस पानी की ज़ुबानी बयान किया है जो देग़ में हम नशीनी के असर में आग में जल कर बुखार में तब्दील हो जाता है और उसकी अस्लीयत ख़त्म हो जाती है और वह इंसान को फायदा नहीं पहँचा पाता , कहता हैः

मन के बूदम पिज़िश्के बीमारान

आख़िर कार खुद शुदम बीमार

मन के बर

तुतीयान रा चे कार बा मुर्दार.

अनुवाद

ग़लत मुआशिर और बद सीरत दोस्त इंसानियत के शजरे तय्यबा की जड़ को खुश्क कर देता है और दरख्ते फितरत की शाख़ और पत्तों को गिरा देता है और सआदत के तमाम रास्ते इंसान पर बन्द कर देता है। मोतहर्रीक अमल और पाक फिक्र को बे हरकत और मोतवक्किफ़ कर देता है ज़मीर की फरियाद को ख़ामोश और उसकी रुही ताकत को ख़त्म कर देता है और इंसानों को खुश्क काँटों में तब्दील कर देता है।

पहाड़ की बुलंदी पर झरना

नेक मित्र , वफ़ादार दोस्त और शाइस् रफीक वजूदे इंसान की सरज़मीन के लिए बुलन्द पहाड़ पर एक चश्मे की तरह है जो पहाज़ के अतराफ की सर्ज़मीन पर मुसल्लत है और खुश्गवार पानी को तमाम जगहों पर पहुँचाता है और मौसमे बहार में उस ज़मीन से सब्ज़ घास खुश रँग फुल खुश्बुदार घास और पत्तों से भरे हुए दरख्त उगते हैं जो हर देखने वाले को तअज्जुब में डाल देते हैं.

इंसान जब पाको पाकीज़ा सही दिल सोज़ और आगाह दोस्त के पास बैठता है और उससे अच्छी कद्रों को लेने के लिए अपनी लियाक़त व सलाहियत को ज़ाहिर करता है और अपने इरादे से उन अक़दार को इन्तेखाब कर लेता है तो वह तमाम अक़दार इस तरह से इंसान के पास आ जाती हैं जिस तरह बादल ज़मीन पर अपने पुरे वुजूद के साथ बरसते हैं और इनसानों के वुजूद के दरख्त को इस सही सामाजिक की बरकत से माला माल कर देता है।

अपने आप को सालेह और नेक दोस्त से महरुम रखने का मानवी नुक़सान ऐसा है जैसे इंसान अपने आप के तरो ताज़ा हवा सुरज के नूर और सही गज़ा से महरुम कर ले।

शहरे मक्का में अबू लहब लगभग पचास साल तक पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का हम अस्र रहा लेकिन एक लम्हे के लिए भी वह अपने मानवी कमालात से फायदा उठाने और आपके साथ रेफाक़त व मुआशेरत करने के लिए तैयार नहीं हुआ बल्की उसने अपनी आख़िरी साँसों तक अपने आपको पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की मुआशेरत से महरुम रखा और अपनी पेशानी पर हमेशा का दाग़ और हमेशा की ज़िल्लत लेकर इस दुनिया से चल बसा , कुरआने करीम ने उसको एक क़ाबिले नफ़रत शख्स के उन्वान से ब्यान किया हैः तब्बत यदा अबी लहब।

अबू लहब की ताकत व कुदरत खत्म हो जाऐ और वह नाबूद हो जाए।

जी हाँ कामयाब दोस्त और लायक़ साथी से महरुम होना। इंसान के वुजूद से इन्सानियत के लिबास को उतारना और हैवानीयत के लेबास को अपने बातिन पर पहना है और वह इंसान को (कलअनाम) (कमस लुल कल्ब). और (कमसलुल हिमार) का मिस्दाक बना देता है।

इंसान को अपने से ज़्यादा इल्मो दानिश मारेफ़त और अखलाक़ व तरबीयत वाले इंसान से ग़फ़लत नहीं बरतनी चाहिए। ऐसी शख्सीयत से जुडने में हरगिज़ कंजूसी और ग़फ़लत से काम नहीं लेना चाहिए।

कंजूसी और गफलत करना दुनिया व आखेरत के खराब होने का सबब है।

आज भी पाको पाकीज़ा लोगों की दावत की सदा कानों में आती है और क्यामत तक ये आवाज़ आती रहेगी कि ऐ इंसानों आओ और अपने वुजूद के पौधे को दिलो जान से हमारे साथ मुत्तसील कर दो तुम भी उस कामिल रिज़्क और मानवी रोज़ी से फायदा उठाओ। जिसको हमारे परवरदिगार ने हमें अता किया है , ताकी तुम्हारी अक्ल कामिल हो जाए और तुम्हारी अक्ल गुले बहार की तरह शगुफ्ता हो जाऐ , तुम्हारे वुजूद पर मानवीयत का नूर चमकने लगे और तुम्हारे वुजूद के उफक़ से मलकूती समरात ज़ाहिर होने लगें और इस नेज़ामे हस्ती की ज़मीन पर शजरे तइयबा की तरह जिसकी तरफ कुरआने करीम ने इशारा किया है। रुश्द करने लगो और तुम्हारी जड़ें साबित हो जायें और तुम्हारी अक्लो ख़ेरद और जान व रुह की शाखें और पत्ते उस मलकूती फिज़ा में पहुँच जाऐं जिसका फल हमेशा जारी व सारी रहता है और तुम खुद और दूसरे लोग उस हमेशा बाक़ी रहने वाले फल से हमेशा फाऐदा उठाते रहो।

वह लोग और उनके तरबीयत याफ्ता अफ़राद तुम्हें दावत देते हैं की आओ , हमारी मस्जिद की फूँक के ज़रीऐ गुनाहों से पाक हो जाओ , फिक्री और रुही बिमारियों से शिफा हासिल करो , हमारी हकीमाना हिक्मत से तुम्हारे मानवी व बातिनी दर्दों का ऐलाज हो जाऐ और हर तरह से सलामत व आफीयत के ज़ेवर से आरास्ता हो जाओ ताकी रहमते हक़ , इनायते परवरदिगार और अवलिया ए खुदा की विलायत में क़रार पाओ। क्योंकि उन हकायक़ तक पहुँचने के लिए पाको पाकीज़ा और नेक अफ़राद से दोस्ती और सामाजिकता के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसलिए की उनकी इताअत दर हकीक़त खुदा की इताअत है।

इस सिलसिले में इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम से बहुत ही अहम रिवायत इस मज़मून के साथ नक्ल हुई है कि आपने फ़रमायाः

मैं अपने वालिद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के साथ रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की क़ब्र और मिम्बर तक गया। अचानक मेरे वालिद अपने अस्हाब के एक गिरोह के पास पहुँचे उनके नज़्दीत खड़े होकर उनको सलाम किया और फरमायाः

खुदा की क़सम मैं तुम्हारा आशिक़ , तुम्हारी खुश्बू और तुम्हारी रुह हूँ , तुम मुझे उस इश्को मुहब्बत को महफूज़ रखने के लिए परहेज़गारी , हर गुनाह से दूर रहने , राहे खुदा में सई व कोशिश और मुस्बत काम अन्जाम देने के ज़रीये मदद करो , क्यों कि तुम पाक दामनी , अपने आप को गुनाहों से महफूज़ रखने और मुस्बत सई व कोशिश के बगैर हमारी वेलायत तक नहीं पहुँच सकते हो।

आदाबुन नफ्स के महान लेखक कहते हैः

बेहतरीन दोस्त , मेहरबान साथी और कामयाब मददगार की चार सिफतें हैं।

इफ्फ़ते नफ्स , तक़वा , दुनिया के साज़ो सामान में ज़ोहद , वरअ और पाक दामनी और ये चार चीज़ें ऐसे हकायक़ हैं। जो पाको पाकीज़ा इंसानों के साथ सामाजिकता में इंसानों को हासिल होते हैं।

हम्नशीने तु अज़ तु बेह बायद.

ता तू रा अक्लो दिन बेयफ्ज़ायद.

ज़रुरी है कि ऐसे अफ़राद के साथ दोस्ती और हम नशीनी करें। ताकी क्यामत के दिन उनके साये में परवरदेगारे आलम का लुत्फो करम हमारे शामिले हाल हो सकें और उनकी शिफाअत के ज़रीये बहिश्त और रिज़वाने इलाही में दाख़िल हो सकें। ऐसे दोस्तों के हाथ में अपना हाथ न दें जिनके लिए क्यामत के रोज़ ज़िल्लत हो। व अम्ताज़ुल यौम अइयोहल मुजरेमून. आवाज़ आयेगी ऐ मुजरिमों आज तुम ज़रा उन नेक अफ़राद की सफ़ से अलग तो हो जाओ।

और आख़िर हम भी उनके साथ उठने बैठने और उनकी आदात इख्तेयार करने की वजह से उनके साथ हो जायें और पाको पाकीज़ा लोगों और सालेहीन की सफ़ से जुदा हो जायें।

बुद्धिमान लुक़मान और अदुभुत सामाजिक

लुक़मान हकीम सुडान के रहने वाले स्याह फाम थे और बहुत सालों तक ग़ुलाम के तौर पर अमीर लोगों की ख़िदमत करते थे और उनके लिए ज़हमत व मशक्क़त वाले काम अंजाम देते थे। लेकिन ऐसे हालात में भी वह इलाही तालीमात और हकीमों की हिक्मत से ग़ाफिल नहीं थे।

क़ैदो बन्द की ज़िन्दगी से आज़ाद होने के बाद उलमा , उक़ला और पाको पाकीज़ा अफ़राद के साथ नशिस्त व बरख़ास्त की , यहाँ तक की उस मलकूती और मोवद्दब शख़्सियत ने अपने बेटे से फरमायाः

मैंने जिन पाको पाकीज़ा और बुलन्द मरतबा इंसानों के साथ मुआशेरत और हम नशीनी की है उनकी तादाद तक़रीबन चार हज़ार है।

उन मुआशेरत करने वालों के पाक नफ़्स उन नेक सीरत दोस्तों के इंसानी तौर तरीक़े और उन मलकूती आदात हम नशीनों की आदत व इतवार ने उनके दिल में ऐसा असर किया कि उन्होंने अपने पाको पाकीज़ा दिल के ज़रीए हिक्मते इलाही को ख़ुदा वन्दे आलम से हासिल किया।

” ولقد آتینا لقمان الحکمة “

(वलकद आतैना लुक़मान अल हिक्मत) यकीनन हम ने लुक़मान को हिक्मत अता की।

हकीम लुक़मान की हिक्मत के उसूल कुरआने करीम ने नक्ल किए हैं , उसी तरह अहले बैत अलैहिमुस्सलाम ने भी आपकी हिक्मत के बेहतरीन उसूलों को बयान किया है जैसेः

मेरे बेटेः दुनिया से वअज़ो नसीहत हासिल करो ता की लोगों के टुकड़ों के मुहताज न रहो , और दुनिया में इस क़द्र दाख़िल हो कि तुम्हारी आख़ेरत को कोई नुक़सान न पहुँचे।

मेरे बेटेः दुनिया एक अमीक़ समन्दर है बहुत से उलमा उसमें गर्क़ हो गए। इस समन्दर में तुम्हारी कश्ती तक़वा और परहेज़गारी होना चाहिए और उस कश्ती में जो तेजारत का माल रखो वह ईमान हो और उसका बादबान तवक्कुल , नाखुदा अक़्ल , कुतुब नुमा , इल्म व बसीरत और इतमीनान व तसकीन का सरमाया सब्र होना चाहिए।

मेरे बेटेः शबो रोज़ में से दस घन्टे अपने लिए मख्सूस करो ताकी उन दस घन्टों में इल्मो दानिश हासिल कर सको।

मेरे बेटे ज़ालिम व सितमगर के साथ सफ़र न करो , उसके साथ दोस्ती और मुआशेरत न करो , फासिक़ और बदकार के साथ भी दोस्ती बरक़रार न करो।

मेरे बेटेः दिन एक दरख़्त की तरह है ईमान उसका पानी है जो उसको उगाता है , नमाज़ उसकी जड़ है , ज़कात उसकी तना है खुदा के लिए दोस्ती , उसकी शाखें हैं , नेक अखलाक़ उसके पत्ते हैं , हराम से दूरी उसका फल है , जिस तरह दरख्त अच्छे फलों से कामिल होता है उसी तरह दीन भी हराम कामों से दूरी करने से कामिल होता है।

इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने उनके मोतअल्लिक़ फ़रमायाः

लुक़मान ऐसी शख़्सियत थी जो खुदा के लिए फ़ेअल व अमल में ताकत , हक के रास्ते में परहेज़गार ख़ामोशी में ग़र्क़ , वक़ार से आरास्ता , दक़ीक़ , तेज़बीन , नसीहत क़बूल करने वाले थे , आपको ग़ुस्सा नहीं आता था और किसी से मज़ाक भी नहीं करते थे , लोगों के इख्तेलाफ़ को दूर करते थे।

मुक़द्दसे अरदबेली से अध्यात्मिक जुड़ाव

इंसान , तक़वा व इबादत , ख़िदमत और क़वी ईमान के ज़रीए ऐसे मुक़ाम पर पहुँच सकता है कि अपने आपको अवलिया ए इलाही के मअनवी हुज़ूर में हाज़िर कर सके और उनके क़ुदसिया अन्फ़ास से फायदा उठा सके।

इंसान की ज़िन्दगी में उन मलकूती चेहरों का अपने वुजूद के साथ हाज़िर होना ज़रुरी नहीं है बल्की अपने दिल में उन बुज़ुर्गों और नूरानी चेहरों की शिनाख़्त और मारेफ़त काफी है और इंसान के रुश्दो तकामुल में उनके तौर तरीक़े और तहज़ीब व सक़ाफ़त को अपना लेना ही काफी है।

मुकद्दसे अर्दबेली बहुत ही मशहूर और मारुफ़ शख़्सियत हैं। आपने पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और अइम्मा अलैहिमुस्सलाम की मारेफ़त का रास्ता तय किया और उनके नूर की हकीक़त को अपने पाक क़ल्ब में जलवा गर किया और उनके अख़्लाक़ को हासिल करके बहुत बुलन्द दर्जे पर फायज़ हुए।

आपका एक मुत्तक़ी शागिर्द बयान करता हैः मैंने आधी रात को देखा की उस्ताद ने अपने सर पर अबा डाली और मौला ए मोवहहेदीन अमीरुल मोमिनीन अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम के रौज़े की तरफ़ रवाना हुए।

रौज़े के तमाम दरवाज़े रात को बंद होते थे लेहाज़ा मुझे तअज्जुब हुआ कि उस्ताद रात को रौज़े की तरफ़ क्यों जा रहे हैं लेहाज़ा मैं भी उस्ताद के पीछे चल दिया ताकी ये देख सकूँ कि उस्ताद किस तरह रात को रौज़े जाते हैं।

उस्ताद रौज़े के सहन के बंद दरवाज़े की तरफ़ बढ़े तो दरवाज़ा खुल गया। उसके बाद रौज़े के दरवाज़े की तरफ़ बढ़े तो वह भी खुल गया और आप रौजे में दाख़िल हो गये। उन्होंने अपने मौला से मुख़ातब होकर कहाः फलाँ फिक्ही मसले में इस तरह की मुश्केलात पाई जाती है , ऐ हल्लाले मुश्किलात मेरी मुश्किल को हल किजिए।

ज़रीह से बहुत ही मुहब्बत आमेज़ आवाज़ आईः मस्जिदे कूफा जाओ और वहाँ मेरे बेटे मेहदी (अ) से मुलाक़ात करो और अपनी फिक्ही मुश्किल को उनसे बयान करो , वह तुम्हारे लिए उसको आसान कर देंगे।

वहीदे बहबहानी से अध्यात्मिक जुड़ाव

वहीद बहबहानी शियों के बहुत ही मशहूर व मारुफ़ आलीमे दीन हैं। जिन्होंने अख़बारी मकतब फैल जाने के बाद शियों की मज़बूत फ़िक़्ह की फ़रियाद सुनी और उसको उस मकतब के तूफ़ानों से नेजात दिलाई।

आप फतेह अली शाह क़ाचार की बादशाहत के ज़माने में ज़िन्दगी बसर करते थे और बादशाह आपका बहुत ज़्यादा ऐहतेराम करता था।

ईरान का बादशाह हर चीज़ और हर दस्तावेज़ से अपनी ताईद के लिए फ़ायदा उठाता था लिहाज़ा तीन बार उसने आपको ख़त लिखा की आप इराक़ से ईरान मुन्तक़िल हो जायें और हर मरतबा वहीद बहबहानी ने इंकार कर दिया।

जब बादशाह का इसरार ज़्यादा बढ़ा तो आपने अपने शागिर्दों के ज़ेरे दस्त शागिर्दों जिनमें से एक साहेबे कश्फ व करामत अल्लामा बहरुल उलूम सय्यद मेहदी तबातबाई थे , का इन्तेख़ाब किया और उनको गवाह के तौर पर अपने साथ अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के रौज़े की तरफ़ ले गए और उन सबके सामने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम से अर्ज़ कियाः शाहे ईरान ने इसरार के साथ दरख़्वास्त की है कि मैं हौज़े को छोड़ कर ईरान चला जाऊं और वहां पर दर्सो तदरीस में मशग़ूल हो जाऊं। मैं उसके इसरार की वजह से परेशान हूँ और इंतेख़ाब नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या करुँ , मैं आपसे दरख़्वास्त करता हूँ कि इस मसले में मेरी रहनुमाई किजीये।

उन शागिर्दों ने अपने कानों से सुना कि ज़रीहे मोतह्हर से आवाज़ आईः ला तखरुज मिन बलादेना ,

वहीद हमारे शहर से बाहर न जाओ और यहीं पर हमारे पास रहो।

दोस्ती और सामजिकता के अधिकार

इंसान जब किसी नेक दोस्त से दोस्ती या सामाजिक व्यवहार करता है तो इस्लाम के अनुसार उन दोनो पर एक दूसरे के लिये कुछ हुक़ूक बन जाते हैं। कभी उन हुकूक का अदा करना वाजिब होता है तो कभी मुस्तहब होता है , मगर यह कि उन दोस्तों में से कोई एक दोस्त अपने इख़्तेयार से दूसरे को हुक़ूक़ अदा करने से आज़ाद कर दे।

इस्लाम ने दोस्ती और सामाजिक व्यवहार के हुक़ूक़ के सिलसिले में ऐसी वास्तविकता को पेश किया है कि इंसान इस धर्म के फैले हुए क़ानूनों विशेष कर सामजिकता के अधिकार को देख कर हैरत में पड़ जाता है।

निसंदेह समस्त अधिकारों की व्याख्या और तफसील बयान करने की इस मुख्तसर किताब में गुँजाईश नहीं है , अत: मजबूरन हम उन हुक़ूक़ के कुछ भागों की तरफ इशारा करेंगें।

सामाजिकता अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिससलाम की दृष्टि में

अमीरुल मोमनीन अली अलैहिस सलाम ने पैग़म्बरे अकरम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से रिवायत की है की आपने फरमायाः

मुसलमान के ऊपर अपने दीनी भाई के तीस हक़ हैं , जिनसे वह उस वक़्त तक आज़ाद नहीं हो सकता जब तक उनको अदा न करे या वह उसे उसके अदा करने या न करने में स्वतंत्र न कर दे।

उसकी भूल और ग़ल्तियों को क्षमा कर दे , उसके रोने गिड़गिड़ाने पर उस पर दया करे , उसकी बुराईयों को छुपाये , उसके बहाने और क्षमायाचिका को स्वीकार करे , उसकी ग़ीबत (बुराई) न करे और न ही उसकी ग़ीबत (बुराई) सुने , उसकी भलाई चाहता रहे , उसकी दोस्ती की रक्षा करे , उससे किये गये वादों को पूरा करे , बीमारी में उसे देखने जाये , उसके मरने पर उसके ज़नाज़े में शिरकत करे , उसकी दअवत को स्वीकार करे , उसके तोहफ़े को स्वीकार करे , उसकी नेकियों का अच्छा बदला दे , उसकी नेअमतों का शुक्रिया अदा करे , अच्छे तरीके से उसकी मदद करे , इफ़्फ़त और पाकदामनी का ख़्याल करते हुऐ उसकी बीवी की रक्षा करे , उसकी आवश्यकताओं और ज़रुरतों को पुरा करे , उसकी इच्छा और ख़्वाहीशात को पूरा करने में उसकी मदद करे , छिँकते वक्त उसके लिये दुआ करे , उसकी खोई हुई चीज़ को तलाश करे , उसके सलाम का जवाब दे , उसकी बात को गौर से सुने , उसके दिये हुए को कबूल करे , उसकी क़स्मों की पुष्टि करे , उसके दोस्तों से दोस्ती और उसके दुश्मनों से दुश्मनी करे , चाहे वह ज़ालीम हों या मज़लूम उनकी सहायता करे।

ज़ालिम की इस तरह मदद करे कि उसको किसी पर ज़ुल्म न करने दे , और मज़लूमियत में इस तरह मदद करे कि उसका हक़ वापस मिल जाये , उसको बला व मुसीबत में गिरफ्तार न करे , जिस अच्छाई को अपने लिये पसन्द करता हो उसके लिये भी उसी अच्छाई को पसन्द करो , और जिस बुरी चीज़ को खुद पसन्द नही करता , उसके लिये भी पसन्द न करे।

उसके बाद फरमाते हैः

मैंने रसूले ख़ुदा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम से सुना है कि तुम में से जो कोई भी अपने दीनी भाई के हुक़ूक़ को छोड़ देगा क़यामत में उससे उसका मुतालेबा किया जायेगा और उस बुनियाद पर साहिबे हक़ के फायदे में हुक़्म दिया जायेगा और हक़ छोड़ने वाले के ख़िलाफ फैसला होगा।