सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता

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लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हबीबे नज्जार (बढ़ई)

आप बहुत महान और सम्मानिय व्यक्ति थे , आपने तीन नबियों को अपने दोस्त और मार्ग दर्शक के तौर पर स्वीकार किया जिसके कारण आप तरक़्क़ी और सम्मान के इस मरतबे पर पहुँचे कि क़ुरआन शरीफ़ ने आपकी प्रशंसा की है।

अंताकिया क्षेत्र में जब ख़ुदा के भेजे हुए तीन नबियों को लोगों ने परेशान किया और उनके साथ दुश्मनी और शत्रुता से काम लेते हुए उनके निमंत्रण को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया तो बहुत दूर से नबियों की सहायता करने के लिए आप वहां आए और बहुत ही मेहरबानी के साथ लोगों से कहाः

“ और शहर के एक कोने से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और उसने कहा कि मेरी क़ौम वालो! नबियों का अनुसरण करो , उनका पालन करो कि जो तुमसे किसी प्रकार का श्रमिक नही माँगते हैं और प्रशिक्षित (हिदायत याफ़्ता) हैं , और मुझे क्या हो गया है कि मैं उसकी इबादत ना करूँ जिसने मुझे पैदा किया है और तुम सब उसी की बारगाह में पलटाए जाओगे ,? क्या मैं उसके अतिरिक्त किसी दूसरे ख़ुदा को मान लूँ जब्कि वह मुझे हानि पहुँचाना चाहे तो किसी की सिफ़ारिश काम आने वाली नही है और ना ही कोई बचा सकता है , मैं तो उस समय खुली हुई गुमराही में हो जाऊँगा मैं तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान लाया हूँ इसलिए तुम मेरी बात सुनो ”

अंताकिया के जाहिल और नफ़रत रखने वाले लोगों ने हबीब नज्जार की बातों का कोई भी प्रभाव नही लिए बल्कि उनसे हसद और शत्रुता करते हुए मोमिन होने और नबियों की सहायता करने के जुर्म में हमला किया और आपको इतना मारा कि आपकी शहादत हो गई।

जब इस दुनिया से बरज़ख़ की दुनिया में प्रवेश किया तो इस बंदे से कहा गया कि जन्नत में प्रवेश कर जाओ , जिस समय ख़ुदा की विशेष रहमत के दस्तरख़ान और विशेष नेमतें प्राप्त हुईं तो मेहरबानी भला चाहते हुए कहाः

काश मेरी क़ौम को भी पता होता कि मेरे ख़ुदा ने मुझे किस प्रकार क्षमा कर दिया है और मुझे सम्मानित लोगों में रखा है।

अमीरुल मोमिनीन (अ) की नबियों के साथ सामाजिकता

अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अलैहिस सलाम) जो सबसे अधिक अक़्ल वाले बेमिसाल मारेफ़त और सबसे अधिक दुद्धिमान थे , आपने अपने जीवन के आरम्भ से ही रसूले इस्लाम (स) को ज़ाहिर में और दूसरे सारे नबियों को अपनी आत्मा में अपना हमराज़ , साथी , दोस्त बल्कि जान से भी अधिक प्यारे भाई के तौर पर चुना और इनके सारे गुणों को अपने पवित्र वुजूद में समाने के बाद सारे नबियों से महान और पैग़म्बरे अकरम (स) के बाद क़रार पाए।

सारे नबियों से बड़ा और पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के बाद आपका मरतबा एक ऐसी वास्तविक्ता है जिसको बहुत ही आसानी के साथ क़ुरआन शरीफ़ की आयतों विशेषकर आयते मुबाहेला और उन रिवायतों से जिनको शिया और सुन्नी ने लिखा है , सिद्ध किया जा सकता है , प्रसिद्ध हदीस है कि आपने फ़रमायाः

کنت مع الانبیاء سرا و مع محمد جھرا

मैं रूहानी दुनिया में सारे नबियों (स) का हमराज़ और साथी था और ज़ाहिर में हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) का हमराज़ , दोस्त और साथी हूँ।

आपने अपने बेटे हज़रत इमाम हसन (अलैहिस सलाम) को मोहब्बत से भरा हुआ और नसीहत से परिपूर्ण वसीयत नामा लिखा है (हर बाप पर ज़रूरी है कि वह इस पत्र की अपनी औलाद को शिक्षा दे और इस ख़त के आधार पर उसकी पालें) इसमें इस वास्तविक्ता को उजागर किया है कि आपने रुहानी तरीक़े और अक़्ली यात्रा के माध्यम से पूर्वजों से ऐसा संबंध बनाया था जैसे उन सबका एक ही वुजूद हो आप लिखते हैः

أَيْ‏ بُنَيَ‏ إِنِّي‏ وَ إِنْ‏ لَمْ‏ أَكُنْ عُمِّرْتُ عُمُرَ مَنْ كَانَ قَبْلِي فَقَدْ نَظَرْتُ فِي أَعْمَالِهِمْ وَ فَكَّرْتُ فِي أَخْبَارِهِمْ وَ سِرْتُ فِي آثَارِهِمْ حَتَّى عُدْتُ كَأَحَدِهِمْ بَلْ كَأَنِّي بِمَا انْتَهَى إِلَيَّ مِنْ أُمُورِهِمْ قَدْ عُمِّرْتُ مَعَ أَوَّلِهِمْ إِلَى آخِرِهِم‏

मेरे बेटे! अगरचे मेरी आयू मुझसे पहले जीने वालों के बराबर नही हुई लेकिन मैंने उनके आचरण और उनके हाल और सूचनाओं के बारे में ग़ौर एवं चितंन किया और उनके शिल्प को देखा ताकि मैं भी उनके जैसा हो जाऊँ , बल्कि उनके संबंध में जो कुछ भी मुझे पता चल सका मैंने अपना जीवन उनके उसी आचरण के अनुरूप जिया है।

जी हां! आपने रूहानी दुनिया में अक़्ल और दिल के रास्ते से क़ुरआन शरीफ़ की आयतों , और पैग़म्बरे इस्लाम (ससल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के मार्ग दर्शन के माध्यम से नबियों से ऐसा आत्मिक संबंध बनाया कि ख़ुद आपके कथन अनुसार उनके साथ एक हो गए थे।

इस बारे में पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के ख़ुदाई और रूहानी कथन को हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) के संबंध मे ध्यान पूर्वक पढ़ें कि वह इंसान के साथ साथी की रूहानियत को किस प्रकार बयान करते हैं और इंसान को बुलंदी के किस स्थान तक पहुँचाते हैं।

पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) अपने सहाबियों के बीच बैठे हुए थे कि अचानक अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अलैहिस सलाम) आपके (स) तरफ़ आते हुए दिखाई दिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः

مَنْ‏ أَرَادَ أَنْ‏ يَنْظُرَ إِلَى‏ آدَمَ‏ فِي خُلُقِهِ وَ إِلَى نُوحٍ فِي حِكْمَتِهِ وَ إِلَى إِبْرَاهِيمَ فِي حِلْمِهِ فَلْيَنْظُرْ إِلَى عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِب‏

जो भी आदम को उनके व्यवहार में , नूह को उनकी हिकमत में , और इब्राहीम को उनके हिलम में देखना चाहता है वह अली इब्ने अबी तालिब (अ) की तरफ़ देखे। और आपने फ़रमायाः

مَنْ‏ أَرَادَ أَنْ‏ يَنْظُرَ إِلَى‏ آدَمَ‏ فِي عِلْمِهِ وَ إِلَى نُوحٍ فِي فَهْمِهِ، وَ إِلَى يَحْيَى بْنِ زَكَرِيَّا فِي زُهْدِهِ، وَ إِلَى مُوسَى بْنِ عِمْرَانَ فِي بَطْشِهِ، فَلْيَنْظُرْ إِلَى عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ عَلَيْهِ السَّلَام‏

जो भी आदम को उनके इल्म में , नूह को उनके चिंतन में यहया बिन ज़करिया को उनके ज़ोहद (दुनिया को त्याग देना) में , और मूसा बिन इमरान को उनके काम की तेज़ी और सख़्ती में देखना चाहे वह अली इब्ने तालिब (अ) को देखे।

ज़े राहे निस्बत बर रूह बा रूह

दरी अज़ आशनामी हस्त मफ़तूह

मियान आन दो दिल क इन दर बूद बाज़

दर आवुरदन तवान अला दर दिल

इमाम हुसैन (अ) नबियों की सिफ़तों का आईना

हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) अपने पवित्र वुजूद को क़ुरआन शरीफ़ , पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के आइने में देख रहे थे और अपनी फ़िक्र और मारेफ़त को नबियों (अ) के वुजूद में देख रहे थे इसलिए आप पूरे अस्तित्व से उनके आशिक़ हो गए और अपनी रूह की दुनिया में उनसे साथी और हमराज़ बन गए।

और उनके वुजूद के सारे गुणों को अपने अंदर बसा लिया जिसके कारण आप उनके वारिस और अत्तराधिकारी हो गए।

जब हम यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) नबियों का वारिस हैं , उसका अर्थ यह नही है कि आपने उनसे दुनियावी सम्पत्ति में मीरास प्राप्त की है बल्कि इसका अर्थ यह है कि इस पवित्र वुजूद ने उनके ख़ुदाई और रुहानी सारे गुणों और किरदारों को मीरास में प्राप्त किया है।

ख़ुदा के नबी (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) अगरचे हर नबी अपने जीवन यापन और जिन्दगी के ख़र्च के लिए दुनिया के कार्यों में से किसी एक कार्य में लगा हुआ था लेकिन उन्होंने अपने दुनियावी जीवन में खाने , पीने और गुज़र बसर करने में बहुत ही मामूली चीज़ों पर जीवित रहे , उन्होंने ज़ोहद और तक़वा से काम लिया है और उनके ख़र्च से जो कुछ बचता था उसको वह ख़ुदा की राह में ख़र्च कर दिया करते थे , उनके मरने के बाद दुनियावी सम्पत्ति में से बहुत ही कम माल बचता था।

नबियों (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के बाद उनकी सबसे बड़ी मीरास जो बचती थी वह उनके ख़ुदाई और इंसानी गुण होते थे , कि जिनका वारिस हर वह इंसान बन सकता है जो रूहानी हसब नसब में उनकी मीरास पाने की योग्यता रखता है , इमाम हुसैन (अ) अपने रूहानी संबंधों के कारण उनके गुणों को सबसे अधिक हक़दार और वासिर एवं उत्तराधिकारी हुए।

इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) ने हज़रत आदम (अलैहिस सलाम) से ख़िलाफ़त , सारे नामों का ज्ञान , मार्ग दर्शन और करामत का पद मीरास में प्राप्त किया था और हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) से धर्म प्रचार , धैर्य , दृण्ता और ख़ुदा के बंदो से मोहब्बत का मक़ाम प्राप्त किया था , इसी प्रकार हज़रत इब्राहीम (अलैहिस सलाम) से दोस्ती , दुआ , स्वीकृति और इमामत का मरतबा प्राप्त किया और हज़रत मूसा (अलैहिस सलाम) से सब्र , दृण्ता , अत्याचारियों के विरुद्ध जंग और हज़रत ईसा (अ) से रूहानी और आत्मिक पद औऱ पैग़म्बरे अकरम (स) से सारे ख़ुदाई गुण और अमीरुल मोमिनीन (अ) से सारी वास्तविक्ताओं को मीरास में प्राप्त किया था और इसी मीरस और रुहानी साथ के कारण आप ऐसे बुलंद स्थान पर पहुँच गए कि ज़ियारते वारिसा में आपसे कहा जाता हैः

اشھد انک الامام البر التقی الرضی الزکی الھادی المھدی

पवित्र क़ुरआन का साथ

पवित्र क़ुरआन के साथी
पवित्र क़ुरआन , आत्मा का आहार

ख़ुदावंदे आलम का पवित्र वुजूद आपनी सारी मेहरबानियों और रहमत के साथ जो सारी सृष्टि विशेषकर इंसान से जो इश्क़ और मोहब्बत करता है , इस बात का तक़ाज़ा करता है कि वह इंसान के शरीर के खाने के प्रबंध करने के अतिरिक्त उसकी रूह और आत्मा के खाने का भी प्रबंध करे , दूसरे शब्दों में यूँ कहा जाए कि दुनिया और आख़ेरत को आबाद करने के लिए उसकी सारी रूहानी आवश्यकताओं को पूरा करे , ख़ुदावंदे आलम ने इस सिलसिले में इंसान की दुनिया और उसकी आख़ेरत को सवांरने के स्रोत क़ुरआने मजीद को नाज़िल करके अपने इश्क़ और मोहब्बत को इज़हार किया है।

अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) के कथन अनुसार क़ुरआन शरीफ़ दो लक्ष्यों को बयान करता हैः

एक हर प्रकार की नेकी और भलाई को बयान करता है और दूसरे हर प्रकार की बुराई और बदी को बयान करता है और उससे संबंधित किसी चीज़ को उसकी हालत पर नही छोड़ा है।

दोस्ती और समाजिकता इंसान के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है चाहे वह सही और सही तरीक़े से हो या बुरी और बुरे तरीक़े से हो , इसी कारण क़ुरआन शरीफ़ के मार्द दर्शन के कुछ भागों ने इस महत्व पूर्ण मसअले की तरफ़ बहुत आधिक ध्यान दिया है।

दुनिया और आख़ेरत की भलाई से लाभ उठाना

अगर इंसान , ख़ुदा कि किताब को इलाज करने वाले नुस्ख़े के तौर पर देखे और उसे अपने जीवन के हर भाग में प्रयोग करे तो निःसंदेह उसका पूरा जीवन नेकियों और गुणों से भर जाएगा और वह हर प्रकार की बुराई और आफ़तों से सुरक्षित हो जाएगा।

हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) फ़रमाते हैः

أَنَ‏ اللَّهَ‏ تَعَالَى‏ أَنْزَلَ‏ كِتَاباً هَادِياً بَيَّنَ فِيهِ الْخَيْرَ وَ الشَّرَّ فَخُذُوا نَهْجَ الْخَيْرِ تَهْتَدُوا وَ اصْدِفُوا عَنْ سَمْتِ الشَّرِّ تَقْصِدُوا

निःसंदेह अल्लाह ने ऐसी महान और मार्ग दर्शन करने वाली किताब नाज़िल की है जिससमे अच्छाईयों और बुराईयों को (खोल कर) बयान किया है , तो तुम भलाई के रास्ते को शरीर और दिल की ताक़त से स्वीकार करो ताकि हिदायत पा सको और बुराई की तरफ़ से मुँह मोड़ लो ताकि सीधे रास्ते पर चल सको।

अगर इंसान क़ुरआन शरीफ़ से सही संबंध स्थापित कर ले तो वह इंसान के जीवन के हर पड़ाव पर उसको तरक़्क़ी और बुलंदी पर पहुँचा देता है और उसको दुनिया एवं आख़ेरत की भलाई दे देता है , उसकी दुनिया और आख़ेरत की सलामत को पूरा करता है , ख़ुदा की मर्ज़ी और जन्नत एवं रिज़वान तक पहुँचा देता है।

पवित्र क़ुरआन पढ़ने वालों के तीन समूह

इमाम बाक़िर (अलैहिस सलाम) ने क़ुरआन पढ़ने वालों को तीन गुटों में बांटा है जिनमें से दो गुटों को नाकाम जाना है और एक गुट को क़ुरान वाले गुट के तौर पर पहचनवाया है। आप फ़रमाते हैः

قُرَّاءُ الْقُرْآنِ ثَلَاثَةٌ رَجُلٌ قَرَأَ الْقُرْآنَ فَاتَّخَذَهُ‏ بِضَاعَةً وَ اسْتَدَرَّ بِهِ‏ الْمُلُوكَ وَ اسْتَطَالَ بِهِ عَلَى النَّاسِ وَ رَجُلٌ قَرَأَ الْقُرْآنَ فَحَفِظَ حُرُوفَهُ وَ ضَيَّعَ حُدُودَهُ وَ أَقَامَهُ إِقَامَةَ الْقِدْحِ - فَلَا كَثَّرَ اللَّهُ هَؤُلَاءِ مِنْ حَمَلَةِ الْقُرْآنِ وَ رَجُلٌ قَرَأَ الْقُرْآنَ فَوَضَعَ دَوَاءَ الْقُرْآنِ عَلَى دَاءِ قَلْبِهِ فَأَسْهَرَ بِهِ لَيْلَهُ وَ أَظْمَأَ بِهِ نَهَارَهُ وَ قَامَ بِهِ فِي مَسَاجِدِهِ وَ تَجَافَى بِهِ عَنْ فِرَاشِهِ فَبِأُولَئِكَ يَدْفَعُ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْجَبَّارُ الْبَلَاءَ وَ بِأُولَئِكَ يُدِيلُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ مِنَ الْأَعْدَاءِ وَ بِأُولَئِكَ يُنَزِّلُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ الْغَيْثَ مِنَ السَّمَاءِ فَوَ اللَّهِ لَهَؤُلَاءِ فِي قُرَّاءِ الْقُرْآنِ أَعَزُّ مِنَ الْكِبْرِيتِ الْأَحْمَر

क़ुरआने करीम के पढ़ने वाले तीन प्रकार के लोग हैः एक वह व्यक्ति है जो क़ुरआन को पढ़ता है लेकिन क़ुरआन करीम को एक सामान समझते हुए अपनी जेब को भरने के लिए चुनता है और क़ुरआने के माध्यम से दौलतमंद लोगों से जो चाहता है लूट लेता है और ख़ुदा की वजह से दूसरों पर फ़ख़्र करता है।

दूसरा वह व्यक्ति है जो क़ुरआन शरीफ़ को पढ़ता है , उसके शब्दों को याद करता है और उसकी हदो को तोड़ देता है , वह उसको बिना कमान की तीर की तरह उठाता है (उसके हलाल और हराम और वाजिब चीज़ं का पालन नही करता है) ख़ुदावंद क़ुरआन को उठाने करने वालों में इन जैसै लोगों का इज़ाफ़ा ना करे।

तीसरा वह व्यक्ति है जो क़ुरआन को पढ़ता है और अपने दिल एवं आत्मा की बीमारियों का इलाज़ के लिए क़ुरआन शरीफ़ के फ़ैसलों का पालन करता है , क़ुरआने करीम के माध्यम से इबादत के लिए रातों को जागता रहता है , दिन में रोज़े रखता है और क़ुरआन शरीफ़ के साये में मस्जिदों और ईबादत में लगा रहता है , आराम और चैन के बिस्तर से दूर रहता है , इन्ही के कारण ख़ुदावंदे आलम लोगों से बलाओं को दूर करता है औऱ इन्हीं की बरकतों से ख़ुदा दुश्मनों से इन्तेक़ाम लेता है और इन्ही के कारण ख़ुदा आसमान से बारिश बरसाता है , ख़ुदा की क़सम यह लोग क़ुरआन करीम को पढ़ने में किबरीते अहमर (लाल माचिस) से भी अधिक कामियाब हैं।

जी हां , क़ुरआन शरीफ़ के वास्तविक पढ़ने वाले अपने दिल को ख़ुदा की किताब की आयतों पर रखते हैं , क्योंकि आयातों के ज्ञान से अपने दिल की बीमारियों जैसै हसद (जलन) कीना , कंजूसी , लालच और दिखावा आदि को पहचानते हैं , क़ुराआन करीम की आयते , ख़ुदा की याद , क़यामत और इमाम बाक़िर (अलैहिस सलाम) के कथन अनुसार अपने दिल पर क़ुरआन के फ़ैसलों की मोहर लगाकर अपने दिल की बीमारियों का इलाज करते हैं और इसको तौहीद एवं आख़ेरत के निकलने का क्षितिज बनाते हैं और बुराईयों दूर करके अच्छाईयों को अपनाते हैं , जिस समय इंसान के दिल का इस प्रकार इलाज हो जाता है तो इंसान की रातें , ख़ुदाई लोगों की रातें हो जाती हैं।

शबे मर्दाने ख़ुदा रोज़े जहान अफ़रोज़ अस्त

रोशिनान रा बे हक़ीक़त शबे ज़ुलमानी नीस्त

अनुवाद

ख़ुदाई लोगों की रातें , दुनिया को प्रकाशमयी कर देने वाले दिन की तरह प्रकाशमयी होती है , नूरानी लोगों की रात भी वास्तव में अंधेरे वाली नही होती।

ख़ुदाई लोगों की रातें , इबादत , दुआ , इस्तिग़फ़ार , ख़ुदा की सृष्टि में चिंतन , क़ुरआन शरीफ़ को पढ़ने में बीतती है यह लोग अपने को पहचनवाए बिना मोहताजों , मजबूरों और ज़रूरतमंदों की सहायता करते हैं , दिल का इलाज होने के बाद इंसान के दिन हलाल रोज़ी कमाने , लोगों की समस्याओं का समाधान करने और ख़ुदा के वलियों से मुलाक़ात में बीतते हैं।

क़ुरआने करीम से प्रभावित होने की बरकर में दिल नूरानी हो जाते हैं , उसके बाद मस्जिदें इंसानों से आबाद हो जाती हैं और शिक्षा एवं धर्म प्रचार और हक़ की तालीम की क्लासों में बदल जाती है।

जब क़ुरआन से इंसान का दिल , ख़ुदा का हरम हो जाता है तो इंसान का आरामदायक बिस्तर ख़ाली हो जाता है , और इंसान , इबादत के रास्ते और लोगों की सहायता के लिए हर समय तैयार रहता है , अपनी उम्र के हर क्षण को ख़ुदा की मर्ज़ी प्राप्त करने के लिए प्रयोग करता है और नेकी एवं भलाई की चोटी पर पहुँच जाता है जिसके माध्यम से ख़ुदावंदे आसम दुश्मनों की साज़िशों एवं मंसूबों को मुसलमान क़ौम से दूर करता है और उसकी के कारण बलाओं को समाज से दूर करता है और लोगों की दुनिया को आबाद करने के लिए आसमान से बारिश बरसाता है।

इंसान , क़ुरआन शरीफ़ की आयतों , उसकी सच्चाई , इशारे और किनायों को देखते हुए अक़्ल , जान , रूह , आत्मा की शक्ति , रुहानी जीवन की सुरक्षा और संभावित ख़तरों को दूर करने के कारण नबियों और इमामों (अलैहिमुस सलाम) की तरफ़ जाता है और दुनिया में ख़ुदा के वलियों के दामन को पकड़कर उनकी दोस्ती और साथ के लिए तैयार हो जाता है और इस सिलसिले में अपने सारे वुजूद को उन ख़ुदाई चेहरों के रूहानी चश्में से सेराब करता है और धीरे धीरे ख़ुदा पर ईमान , क़यामत पर विश्वास , क़ुरआन शरीफ़ में बयान किए गए वजिबात का पालन करते हुए इस्लाम , ईमान , इबादत और ख़िदमत की राह में मज़बूत पहाड़ की तरह खड़ा हो जाता है। फ़ितनों के हमले और शैतानों की संस्कृति के आक्रमण के ख़तरों को कारण अमन और अमान के साये में में चला जाता है जैसा कि हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) की शान में बयान हुआ हैः

كُنْتَ‏ كَالْجَبَلِ‏ لَا تُحَرِّكُک الْعَوَاصِف‏

पवित्र क़ुरआन का इंसानसाज़ मंसूबा

क़ुरआन शरीफ़ , इंसान को सीधे रास्ते की तरफ़ मार्ग दर्शन करने के लिए नाज़िल हुआ है और उसमें वह सारे क़ानून और अहकाम पाए जाते हैं जो इंसान की फ़ितरत और उसकी प्रकृति से मेल खाते हैं , इस क़ानून का पालन करने से दुनिया और आख़ेरत का सौभाग्य प्राप्त होता है।

क़ुरआन करीम ने निम्म लिखित तीन प्रस्तावनाओं का ख़याल रखते हुए इंसान के जीवन के लक्ष्यों को इस प्रकार पेश किया हैः

1) हर इंसान के अपने जीवन में कुछ लक्ष्य होते हैं (अच्छा जीवन) जिन को प्राप्त करने के लिए वह प्रयत्न करता है।

2) यह प्रयत्न प्रोग्राम और मंसूबों के बिना लाभदायक नही हो सकता।

3) इस मंसूबे को सृष्टि और प्रकृति कि पुस्तकों में अध्ययन करना चाहिए , दूसरे शब्दों में यूँ कहा जाए कि ख़ुदाई संबंधों के माध्यम से प्राप्त करे , इंसान के जीवन के मंसूबों को इस प्रकार क्रमांतित करना चाहिएः

अपने मंसूबे का आधार , ख़ुदा की मारेफ़त और उसकी शिनाख़्त को बनाए , एकेश्वरवाद पर विश्वास को धर्म को पहचानने की पहली सीढ़ी बनाए और ख़ुदा को पहचानने के बाद क़यामत की पहचान क़यामत पर विश्वास (कि जिसमें इंसान को उसके अच्छे और बुरे कार्यों का फल मिलेगा) को दूसरा ज़ीना बनाए , उसके बाद पैग़म्बर की पहचान को क़यामत की जानकारी से प्राप्त करे क्योंकि अच्छे और बुरे कार्यों का अच्छा या बुरा फल बिना बताए (जो कि आकाशवाणी और नबूवत के माध्यम से होता है) नही दिया जा सकता और उसको भी एक ज़ीना बनाए। इस आधार पर ख़ुदा के अकेले होने , नबूवत और क़यामत पर विश्वास को इस्लाम धर्म के सिद्धांत बनाए।

उसके बाद अच्छे व्यवहार और नेक गुणों के तीनों मुनासिब सिद्धांतों को जो कि एक वास्तविक्ता को तलाश करने वाले और इमानदार व्यक्ति में होना चाहिएं , बयान करे।

उसके बाद जीवन के लिए वह क़ानून बनाए जो वास्तव में वास्तविक सौभाग्य की सुरक्षा करने वाले , अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देने वाले , सही अक़ीदों और सही उसूलों को तरक़्क़ी और बढ़ावा देने वाले हैं।

जो व्यक्ति वासना एवं शारीरिक इच्छाओं , चोरी , धोख़ा धड़ी , माल में मिलावट और लोगों को धोख़ा देने में लगा रहता हो और इसमें किसी क़ानून का ख़याल ना करता हो उसमें आत्मा की पवित्रता की तिफ़त पाई जाए यह संभव नही है या जो व्यक्ति माल जमा करने के चक्कर में पड़ा रहता हो , लोगों की ज़िम्मेदारियों और वाजिब हक़ को पूरा ना करता हो उसमें सख़ावत की सिफ़त पैदा हो जाए संभव नही है या जो व्यक्ति ख़ुदा की आराधना ना करता हो और हफ़्तों या महीनों ख़ुदा को याद ना करता हो वह ख़ुदा और क़यामत के विश्वास और बंदगी के मरतबे पर पहुँच जाए संभव नही है।

सारांश यह है कि क़ुरआन मजीद इस्लाम के वास्तविक आधार (जो कि तीन हिस्सों से बनती है) निम्न लिखित क्रम अनुसार हैः

1. इस्लामी अक़ीदों के उसूल कि जिसके एक भाग में धर्म के तीनों उसूल पाए जाते हैं यानी तौहीद (एकेश्वरवाद) नबूवत , और क़यामत और दूसरे भाग में इनसे संबंधित अक़ीदे जैसे लौह , क़लम , क़ज़ा एवं क़द्र , फ़रिश्ते , अर्श और कुर्सी , ज़मीन और आसमान का अस्तित्व में आना आदि।

2. अच्छा अख़्लाक़।

3. धार्मिक अहकाम और व्यवहारिक कानून जिनके कुल्लियात को क़ुरआन करीम ने बयान किया है और उसको विवरण एवं विस्तार से पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने बयान किया है और पैग़म्बरे अकरम (स) ने भी (हदीसे सक़लैन के अनुसार जिसको इस्लाम की सभी सम्प्रदायों ने तवातुर के साथ लिखा है) अले बैत (अलैहिमुस सलाम) के कथन को अपने कथन का स्थान दिया है।

क़ुरआन के रास्ते को जो कि फ़ितरत और प्रक़ति का रास्ता है , अपनाने से इंसान का सौभाग्य सुरक्षित जो जाता है और क़ुरआन शरीफ़ से मुँह मोड़ लेने से या दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि सीधे रास्ते से हट जाने से ना केवल सभ्यता एवं संस्क्रति को उसके वास्तविक अर्थ में प्राप्त नही किया जा सकता बल्कि ऐसा वातावारण बनाया जा सकता है जिसमें गुंडागर्दी , ज़ुल्म एवं अत्याचार , इंसानों के अधिकारों को बरबाद किया जाता है और जिसमें पीड़ितों की फ़रयाद कोई नही सुन पाता।

वास्तविक सभ्यता और झूठी संस्कृति

किसी भी सभ्यता और संस्कृति में दो पहलू पाए जाते हैः एक दुनियावी पहलू , और दूसरा रूहानी पहलू।

दुनियावी पहलू शरीर की शक्ति और वह सारी चीज़ें हैं जो हिस का अनुसरण या उसकी सहायता करती हैं , जैसे भाप , और बिजली की शक्ति से प्राप्त होने वाले अविश्कार और बनाई जाने वाली चीज़ें जैसे , एटम , गाड़ियां , हवाई जहाज़ , रॉकिट , पानी के जहाज़ , और पन डुब्बी आदि , बिलकुल सामने की बात है कि यह सारी शक्तिया दुनियावी है , और इसी प्रकार वह सारी चीज़ें जो इंसान के रोज़ाना के जीवन में आराश और ऐश के लिए प्रयोग की जाती है , जैसे पेन आदि , यहां तक कि वह सारी चीज़ें जिनको इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रयोग करते हैं जैसे गणित , और दूसरे इल्म , यह सारे के सारे दुनियावी हैं , क्योंकि इंसान के जीवन के लिए इनका नतीजा केवल यही अविश्कार और बनाई जाने वाली चीज़ें हैं जिनसे इंसान को दुनिया में आराम और सुकून प्राप्त होता है , बल्कि हर स्कूल और यूनिवरसिटी जो इन चीज़ों का ज्ञान देती है उन सबका शुमार दुनियावी और माद्दी शक्तियों में होता है।

लेकिन रूहानी पहलू या किसी सभ्यता की रूहानी शक्ति यह है कि इंसानी आचरण और नेक व्यवहार को अंजाम दिया जाए और उन तक पहुँचने का प्रयत्न किया जाए।

इंसानों के संबंधों को सही करने का प्रयत्न , समाजी सोच को तरक़्क़ी देने की कोशिश , राजनीतिक पहलू पर लोगों की जानकारी और इल्म बढ़ाने का प्रयत्न को रूहानी शक्ति कहते हैं , इसी प्रकार इंसानों में यह आदत डाली जाए कि वह सदैव इंसानों की भलाई के लिए काम करें , सदैव नेकी और अच्छाई के बारे में सोचें , लोगों की कामियाबी की दुआ करें और उनका दिल अपने भाईयों की मोहब्बत में धड़कता रहे , इसी प्रकार लोगों की सही शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए सही क़ानून बनाएं , इंसानों की रूह के आहार के लिए बेहतरीन केन्द्र बनाना और इंसानों के साथ नेकी करने में रूहानी सभ्यता और संस्क्रति के पहलू पाए जाते हैं यही रूहानी सभ्यता की जान हैं।

किसी भी संस्क्रति या सभ्यता को उस समय तक वास्तविक सभ्यता या संस्क्रति नही कहते जब तक उसमें यह दोनों पहलू ना पाए जाएं और उसमें यह दोनों पहलू बराबर और समान रूप से ना पाए जाएं।

आज की सभ्यता

यहां पर इस ज़माने की सभ्यता (जो कि अपनी सारी विशेषताओं में हक़ और सही रास्ते से दूर है) पर एक संक्षिप्त निगाह डालते हैं ता कि मालूम हो जाए कि जिसको आज कहा जाता है कि हम सभ्यता और संस्क्रति वाले हैं क्या वह सही सभ्यता है या ख़राब , तरक़्क़ी करने वाला है या अपने स्थान पर ठहरा हुआ है , इंसानों के लिए आशा कि किरण है या निराशा लाने वाला ?

आज की दुनिया ने दुनियावी शक्ति के एतेबार से बहुत अधिक तरक़्क़ी कर ली है लेकिन रूहानी शक्ति के एतेबार से बहुत बड़ी हार हुई है और उस गर्त की तरफ़ चली गई है जिसके बारे में ना कोई आशा थी और ना ही अनुमान।

जो लोग दुनियावी चका चौंध , चेहरों के श्रंगार , दुनियावी ऐश और शारीरिक आराम को पसंद करते हैं उन्होंने दुनियावी सभ्यता के लिए बहुत तालिया बजाई हैं और इतने अधिक नारे लगाए हैं कि उनकी आवाज़ें बैठ गई और उनके हाथों ने काम करना छोड़ दिया। लेकिन जो लोग इंसानों में उनकी रूह की बुलंदी को चाहते हैं और चेहरे के सौन्दर्य को चरित्र के सौन्दर्य के बिना स्वीकार नही करतें और सदैव इंसान की कामयाबी को चाहने वाले हैं , वह आज की सभ्यता पर आँसू बहाते हैं , और एक गुट तो बिलकुल इस सभ्यता से दूर हो कर अपने सपनों की दुनिया में उड़ रहा है , उसने अपने सपनों में एक अलग शहर बना लिया है वह ख़ाब और सपनों के अतिरिक्त कुछ भी नही जानता।

हवाई जहाज़ों ने सम्पूर्ण आसमान को अपने सामने छुका दिया , रॉकिटों ने इंसान को चाँद पर पहुँचा दिया और दूसरे ग्रहों पर पहुँचने के लिए तैयार हैं , पन डुब्बियां समन्दर की तहों में जाती हैं , बिजली है एटम की शक्ति ने इस सपने की वास्तविक्ता में बदल दिया। प्रकाश , गर्मी , सर्दी , आहार और वस्त्र , पानी , हवा और दुनियावी जीवन के लिए जो चाहों एक बटन दबाकर प्राप्त कर लो , आश्चर्य जनक उपकरणों के माध्यम से दुनिया के इस कोने से उस कोने तक आडियों और वीडियों संबंध बना सकते हो।

आज की सभ्यता के अविश्कारों को गिनना संभव नही है , मानो दुनिया ने अपने अस्तित्व के दिन से ही सारे राज़ अपने सीने में छिपा रखे थे ताकि आज के अविश्कारियों के माध्यम से इन सारे राज़ों को बयान करे और यह कहे कि आज के ज़माने में शक्ति और प्रकृति अपने सारे राज़ का हिसाब देने के लिए तैयार हो गई है।

लेकिन इन ज़ाहिरी बातों से धोखा नही खाना चाहिए , एक तुर्की मुहावरे में कहा गया है “घर और उसकी सुन्दरता तुमको धोखा ना दे जिसने भी उसमें जीवन व्यतीत किया उसको चैन और सुकून नही मिला है ” घरों और उनमें रहने वालों की तरफ़ देखो ताकि पता चल जाए कि बेकार लोगों की समस्याएं , जवानों की परेशानी , पागल ख़ानों में रहने वालों की संख्या में बढ़ोतरी , निराश और बेघर लोग , दुनिया के कोने कोने में विशेषकर एशिया , अफ़्रीक़ा , अमरीका में ख़ूनी जंगें , गुडांगर्दी , तनाव , अत्याचार , हुकूमतों का विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस होना , लोगों को क़त्ल करना , धोखा देना , चोरी , ज़मीनी , दरियाई , और हवाई डकैतियां , व्यवहारिक बुराईयां , सेक्स एस्केन्डलस , और इसी प्रकार की दूसरी बुराईया और तबाहियां इन सुन्दर महलों और आज की सभ्यता में हो रही हैं।

इस सजे हुए महलों में अच्छी क़िस्मत वाले लोग कहां हैं ?! यह यात्रा के साधनों से लदी और सामान से भरी हुई सुन्दर कश्ति अमन और अमान के किस किनारे पर रुकेगी ?

बर्टोल ब्रच “Bertolt Brecht” ने अपनी पुस्तक में लिखा हैः जिस समाज में पैसे की सत्ता हो और पैसा प्राप्त करने के लिए बुराई के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता ना हो तो ऐसे समाज में नेकियां भी झूठी हो जाती है!!

थामस मान “Thomas Mann” अपनी पुस्तक “शहीदों के अंतिम पत्र ” की प्रस्तावना में लिखा हैः

जिस दुनिया में उलटे पांव लौटने का ख़तरनाक रिवाज हो , जिसमें हसद और जलन की ख़ुराफ़ान और सार्वजनिक डर और ख़ौफ़ एक साथ जमा हो गए हों जिस दुनिया की अपूर्ण संस्क्रति और आचरण ने आदमी के जीवन की क़ीमत को ख़तरनाक हधियार के हवाले कर दिया हो जिसमें हथियार के गोदाम कि जिसे केवल बरबादी के लिए एकत्र किया जाए कि अगर आवश्यकता पड़े तो दुनिया को एक वीराने में बदल दे (कितनी बेवक़ूफ़ी भरी धमकी है!) जिस दुनिया के ऊपर ज़हरीले बादल छाए हुए हों , सभ्यता और संस्क्रति का गर्त में चले जाना हो , नाक कान कटी शिक्षा हो , बेहयाई और बेग़ैरती , राजनीतिक अदालत में पूर्ण धोखाधड़ी के कार्य स्वीकार्य हों , लाभ के चक्कर में लगे रहना , ईमान और वफ़ादारी का नाम ना हो जो दुनिया दो विश्व युद्धों के नतीजों या कम से कम इन दो जंगों से प्रभावित होने से अप्रत्याशित हालतों की तरफ़ चली गई हो , वह इंसान और उसके जीवन को तीसरे विश्व युद्ध की बरबादी से बचाने के लिए क्या सुरक्षा दे सकती है ?!

“ होमान लूमर ” ने अपनी पुस्तक “रास्ते और भविश्य की बेनवाई ” (राहहा व आयनदए बे नवाई) में कहा हैः

मशीनें और उपकरण जितना अधिक अपने आप कार्य करने लगेंगे और जितना भी ज्ञान और टेक्निक का रास्ता खुला होगा उतना ही फ़क़ीरों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

“ रूमी फ़्लासिफ़र सिनका ” कहता हैः फ़क़ीर वह नही है जिसके पास माल और दौलत कम है बल्कि फ़क़ीर वह है जो आधिक चाहता है।

इन सारे बद नसीबिंयों का राज़ यह है कि सभ्यता का दुनियावी पहलू , रूहानी पहलू से अधिक शक्तिशाली हो गया है , इसी कारण आज की सभ्यता इंसान को विश्वास की निगाह से नही देख सका अगरचे सभ्यता ने दूरियां कम कर दीं , फ़ासलों को मिटा दिया , इस विशाल दुनिया को वास्तव में छोटा कर दिया , मानों दुनिया के सारे लोगों को एक घर में बिठा दिया है लेकिन लोगों के बीच से रूहानी दूरियां और आत्मा के फ़ासलों और दिलों की जुदाईयों को नही मिटा सका , मकानों को एक दूसरे से क़रीब कर दिया लेकिन उनके रहने वालों को एक दूसरे से दूर कर दिया , भौगोलिक शिक्षा में तरक़्क़ी प्राप्त कर लिया , समाजिक , इंसानों को पहचानने और अच्छे इंसानों को पैदा करने की शिक्षा में किसी भी स्थान तक नही पहुँच सका।

आज की सभ्यता ने पहाड़ों , जंगलों , ज़मीन की गहराईयों , अंतरिक्ष और समन्दरों को खंगाल डाला यहां तक कि एक कण के अंदर भी रास्ता बना लिया , लेकिन इंसान के दिल को अपने बस में नही कर सका वह इंसानों के दिलों में रास्ता नही बना सका , भौगोलिक आधार पर इंसानों की एकता में सहायता करता रहा लेकिन समाजिक स्तर पर आदमियों के बीच विरोध एवं इख़्तिलाफ़ डालने का प्रयत्न कर रहा है , आज की सभ्यता बहुत ही आश्चर्य जनक और शक्तिशाली है लेकिन बहुत आधिक अज्ञानी , अंधा और धैर्य ना रखने वाला है।

आज की सभ्यता ने यह तो पता लगा लिया है कि किस प्रकार जीवन व्यतीत करें ? और किस प्रकार जीवन को अच्छा बनाएं , लेकिन यह पता नही लगा सका कि किस लिए जियें , किस लिए जीवन जीना चाहिए , और जीवन का लक्ष्य क्या है ?

आज की सभ्यता इस प्रश्न का उत्तर नही दे पा रही है , हां साइंस जीवन के तरीक़े और सलीक़े को अच्छा बना सकती है लेकिन जीवन के लक्ष्य को निर्धारित नही कर सकती , साइंस जीवन की मात्रा में तो सहायता कर सकती है लेकिन जीवन की कैफ़ियत को निर्धारित नही कर सकती।

नई सभ्यता ने नेशनलिज़्म को शक्ति दी लेकिन यही सोच जब अपनी हदों से आगे बढ़ी तो लोगों की जान के लिए वबाल बन गया , और इसके कारण दुर्भाग्य आ गया है , भूत में ख़ानदान एक ही था लेकिन फिर सब क़बीलों में बट गए , उसके बाद शहरों के आधार पर बटे , उसके बाद एक धर्म और दीन के नाम पर बटे , नई सभ्यता में सम्पत्ति की सोच बनी लेकिन इन सारी राहों और शैलियों में रोज़ीं का मुँह नही देखा , इस अवस्था के बावुजूद दुनिया को इन मुसीबतों और समस्याओं से छुटकारा नही मिलेगा मगर यह कि ऐसी सभ्यता आ जाए जो इन्सानियत ही को अपना लक्ष्य , वास्तविक आधार और अंतिम लक्ष्य बनाए।

आज की सभ्यता वाले आचरण को भी दुनियावी दृष्टि से देखते हैं , शिक्षा और प्रशिक्षण के मंसूबों को वतन परस्ती की सोच और ऐसे कार्यों के आधार पर तैयार करते हैं जिसमें अधिक पैसा कमाया जा सके।

पूरी दुनिया की हुकूमतों की अधिकतर सम्पत्ति शारीरिक इच्छाओं या ग़र्ज़ों में ख़र्च होता है , बड़े कारख़ाने और बड़ी बड़ी मशीने कारण बनीं कि इनके मालिक इंसानों को भी मशीनों के कल पुर्ज़ों की भाति अपनी सम्पत्ति समझें। इस प्रकार माद्दा और माद्दा परस्ती ने आज की सभ्यता बनाने वाले लोगों के दिमाग़ों पर अधिकार कर लिया है , जिस दुनिया के सारे राजनितिज्ञय , ज्ञानी और आर्थशास्त्री इस दुनिया परस्ती में पड़े हैं।

इस समस्याओं में अगर कोई रूही सुधार या व्यवहारिक सुधार के बारे में बात करता है तो मानों उसने बेसुरा गाना आरम्भ कर दिया है या उसने बेकार की बात कह दी और बहुत ही पुरानी सोंच को प्रकट कर दिया है , जीवन खीर इतनी टेढ़ी हो गई कि इस सभ्यता के लीडर यानी यूएनओ के सदर को मध्य पूर्व के अकाल के ज़माने में यू एन ओ में कहना पड़ाः

“ इंसानी इतिहास में राजनीतिक और इंसानी आचरण इतना कभी नही गिरा था। “

यह कहने के बाद खेदपूर्ण गर्त को रोकने के लिए उन्होंने क्या किया है ? क्या कारवाईयां की हैं ? इतने बड़े विश्वव्यापी संस्था के प्रमुख की यह बात क्या आज की सभ्यता की रूहानी हार का ऐलान नही है ?।

आज की सभ्यता अक़्ल की तारीफ़ और उसकी बुलंदी के आधार में बहुत आगे बढ़कर देखा है , इस सभ्यता के संस्थापकों ने अपनी बदहवासी के कारण केवन अक़्ल को अच्छे जीवन का आधार माना है , अक़्ल की तारीफ़ का नतीजा , साइंस की तरक़्क़ी और आश्चर्य जनक हथियारों और उपकरणों की पैदाइश है जिसने इंसान को आसमानों की ऊँचाई पर तो पहुँचा दिया लेकिन अफ़सोस की इस अजीब यात्रा के बाद उसको अब वास्तविक्ता का अंदाज़ा हुआ कि केवल अक़्ल और साइंस सौभाग्य और कामियाबी का रास्ता नही हैं , अगर इसे ऐब कहना सही हो तो इस ऐब एवं बुराई को अरसतू और उसकी शिक्षा ने जनम दिया है जिसने अक़्ल को हाकिम और इन्साफ़ करने वाला बना दिया

उन्नीसवीं शताब्दी ने महान आर्थिक बदलाव और बीसवी शताब्दी ने महान समाजिक बदलावों के माध्यम से इंसान को समझाया कि इस सभ्यता में किसी चीज़ की कमी है और यह कमी , बग़ावत का कारण बनती है और इसी कमी ही ने आज की पीढ़ी को वुजूद और अदम का मुनकिर बना दिया है इस सभ्यता की कमी क्या है ? वही रुही पहलू जिसकी तरफ़ इस बहस के आरम्भ में इशारा किया था , इस बात का ध्यान रहे कि इल्म की बड़ाई और उसके सम्मान से इनकार नही किया जा सकता लेकिन अकेला ज्ञान औऱ इल्म काफ़ी नही है।