सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता

सामाजिकता

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इंसान अल्लाह के संदेश (वही) का भूखा

सही और स्वस्थ जीवन व्यतीत करने और सब के अधिकारों का ध्यान रखने वाला वातावरण बनाने के लिए और पर प्रकार की इच्छाओं , और चाहतों को बराबर पलड़ें में लाने के लिए इंसान को बहुत अधिक आकाशवाणी की आवश्यकता होती है आकाशवाणी , अक़्ल और इल्म एवं ज्ञान से बड़ी शक्ती और ताक़त का नाम है और केवल आकाशवाणी ही वह वास्तविक्ता है जो इंसान को उसकी फ़ितरत और प्रवर्ति के आधार पर अक़ीदती , व्यवहारिक और शौक्षिक पहलू की तरफ़ मार्ग दर्शन कर सकती है ऊपर बताए गए यह तीनों चीज़ें ही दुनिया और आख़ेरत में इंसान के सौभाग्य की गारन्टी हैं।

क़ुरआन शरीफ़ , ख़ुदावंदे आलम की तरफ़ से पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) पर आकाशवाणी , मार्ग दर्शान की सम्पूर्ण पुस्तक , सदैव बाक़ी रहने वाला स्रोत , दुनिया और आख़ेरत के सौभाग्य का रास्ता दिखाने वाला , जीवन का मूल दिद्धांत , इंसान का सच्चा प्रशिक्षण करने वाला और पूर्ण वास्तविक्ताओं को बयान करने वाला है , क़ुरआन शरीफ़ इंसान को अपने अंदर झांकने का निमंत्रण देता है और उसको अपनी रूह के सामने फैसला करने वाला बनाता है ताकि वह अपनी फ़ितरत को समझ सके और उसकी अंदरूनी समझ उसको नींद से जगा सके।

अंदरूनी हिस बहुत कम ग़ल्ती करती है और अंतरआत्मा का फ़ैसला शत प्रतिशत सही होता है , जिस इंसान पर किसी की फ़ितरत हुकूमत करती है वह गुमराही से बहुत दूर रहता है और कामियाबी उसकी प्रतीक्षा करती है।

इंसान के जीवन में फ़ितरत की हुकूमत , अक़्ल की हुकूमत से आगे है , पागल और छोटे बच्चे का भी फ़ितरत मार्ग दर्शन करती है और यह दोनों ज़ुल्म एवं अत्याचार को बुरा समझते हैं , झूठ को पसंद नही करते हैं , सत्य , इन्साफ़ और एहसान को अच्छा समझते हैं , बुराईयों की बुराई और नेकियों की अच्छाई का फ़ैसला फ़ितरत करती है क्योंकि पागलों और बच्चों में अक़्ल नही होती है।

अगर फ़ितरत के मार्ग दर्शन से रोकने वाले हालात का माहौल (जो कि वासना में लिप्त रहने और जानदार एवं ग़ैर जानदार बुतों की पूजा का नतीजा है) ना होता तो सारे इंसान नेक होते और बरबादी एवं अत्याचार का दूर दूर तक निशान ना होता और यह दुनिया अद्ल औऱ इन्साफ़ से भर जाती।

पवित्र क़ुरआन का मार्ग दर्शन

क़ुरआन शरीफ़ अपने मार्ग दर्शन में ऐसा काम करता है कि इंसान होश में आ जाता है और अपने आप से पूछता है कि यह काम जो कर रहे हो सही है या ग़लत ? यह विचार जो व्यक्ति कर रहे हो यह जिस चीज़ से यह निश्कर्ष निकाल रहे हो यह सही है या ग़लत ?

कौन है जो यह प्रश्न करता है ? और किससे पूछता है ? जब्कि प्रश्न करने वाल और उत्तर देने वाला एक ही हैं दो नही हैं , क़ुरआन शरीफ़ इंसान की फ़ितरत को शिर्क से दूरी और ख़ुदा के एक और अकेले होने का निमंत्रण देता है।

ज़रा यह तो बताओ कि विभिन्न प्रकार के ख़ुदा बेहतर होते हैं या एक और क़ह्हार ख़ुदा

ख़ुदावंदे आलम की शक्ति को प्रदर्शित करने के लिए इस प्रकार प्रश्न होता हैः

(क्या वह शरीक बेहतर हैं जिनको तुमने चुना है) या वह परेशान हाल की फ़रयाद और पुकार को सुनता है जब वह उसको आवाज़ देता है और उसकी परेशानी को दूर कर देता है और तुम लोगों को ज़मीन का वारिस बनाता है क्या ख़ुदा के साथ कोई और ख़ुदा है (जो उसकी क़ुदरत और रब होने में उसका साथी हो ?) नहीं , बल्कि यह लोग बहुत कम सीख लेते हैं।

(क्या वह शरीक बेहतर हैं जिनको तुमने चुना है) या वह जो सूखे (ख़ुश्की) और पानी (तरी) के अंधेरों में (सितारों और दूसरी चीज़ों के माध्यम से) तुम्हारा मार्ग दर्शन करता है ? और वह कौन है जो बारिश से पहले बशारत (शुभ समाचार) के तौर पर हवाएं चलाता है ? क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है(जो उसकी क़ुदरत और रब होने में उसका साथी हो ?) निःसंदेह वह ख़ुदा सारी सृष्टि से कही अधिक महान और बड़ा है जिन्हे यह लोग उसका साथी मान रहे हैं।

(क्या वह शरीक बेहतर हैं जिनको तुमने चुना है) या वह जो हर चीज़ को पैदा करता है और फिर (मरने के बाद) दोबारा भी वही पैदा करेगा ?! और कौन है जो आसमान और ज़मीन से तुमको रोज़ी देता है ?

क़ुरआन शरीफ़ ने बुतों की शक्तिहीनता और हक़ की शक्ति को इस प्रकार बयान किया हैः

क्या ऐसा पैदा करने वाला उनके जैसा हो सकता है जो कुछ नही पैदा कर सकते

“إِنَّ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ لَن يَخْلُقُوا ذُبَابًا ”

यह जिनको तुम ख़ुदा को छोड़कर आवाज़ देते हो यह सब मिल भी जाएं तो एक मक्खी नही पैदा कर सकते हैं।

क़ुरआन करीम इनके मार्द दर्शन के लिए एक दूसरा क़दम उठाता है और इंसान को उसकी अक़्ल की तरफ़ पलटने का निमंत्रण देता है।

क़ुरआन मजीद अक़लमंदों के साथ बात करता है और उनसे कहता है कि अपनी अक़्लों से काम लेकर सौभाग्य और कामियाबी को पाप्त कर लो , क़ुरआन शरीफ़ सूरा आले इमरान में इस प्रकार फ़रमाता हैः

निःसंदेह ज़मीन और आसमान का पैदा होना और रात एवं दिन का आना और जाना अक़्लमंदों के लिए क़ुदरत (ख़ुदा) की निशानियां है

सूरा बक़रा में इस प्रकार फ़रमाता हैः

अपने लिए यात्रा का सामान तैयार करो कि बेहतरीन और सबसे अच्छा यात्रा का सामान तक़वा है और हे अक़्ल वालों! हमसे डरो।

सोच विचार पर उभारना

सूरा यूसुफ़ में इस प्रकार फ़रमाता हैः

निःसंदेह उनकी कहानियों में अक़्लमंदों के लिए सीख (इबरत) का सामान है।

दुनिया की रचना , इंसान औऱ ज़मीन एवं आसमान का पैदा होने के बारे में चिंतन पर उभारना , क़ुरआन मजीद के मार्द दर्शन का एक नमूना है।

क़ुरआन शरीफ़ सूरा ग़ाशिया में फ़रमाता हैः

क्या यह लोग ऊँट की तरफ़ नही देखते हैं कि उसके किस प्रकार पैदा किया गया है ? और आसमान को किस प्रकार ऊँचा किया गया है ? और पहाड़ को किस प्रकार बिठाया गया है ? और ज़मीन को किस प्रकार बिछाया गया है ?

क़ुरआन करीम इंसान को अध्ययन और तलाश का निमंत्रण देता है ताकि वह दुनिया और उसकी रचना के राज़ों में चितंन करे और सृष्टि की वास्तविक्ताओं को जानकारी पैदा करे।

ग़लत धर्म अपने अनुयायियों को बहस और चितंन से मना करते हैं लेकिन क़ुरआन शरीफ़ अपने मानने वालों को बहस और तलाश का निमंत्रण देता है

ईसाई धर्म आज अक़्ल से काम नही लेता और इंसानों को सही सोच एवं चितंन से दूर करता है।

अगर एक ईसाई से कहोः तीन किस प्रकार एक हो सकते हैं ? (उनका मानना है कि ईश्वर तीन हैं लेकिन एक है) तो वह कहता है कि यह अक़्ल की पहुँच से ऊँची बात है , बाप , बेटा और रूहुल क़ुद्स अगरचे यह तीन हैं लेकिन वास्तव में एक हैं , और इस प्रकार अक़्ल और गणित के मूल भूत क़ानून को तोड़ देते हैं।

पवित्र क़ुरआन का इतिहास लेखन

क़ुरआन शरीफ़ इतिहासिक पुस्तक नही है लेकिन नबियों और नेक लोगों के इतिहास को बयान करता है , इसी प्रकार बुरे अत्याचारियों और ज़ामिलों की कहानियों को भी अपने दामन से जगह देता है।

कहानिया सुनने और पढ़ने वाले को ग़फ़लत की नींद से जगाती है , मस्त लोगों को होशियार करती है।

क़ुरआन शरीफ़ वास्तविक इतिहास और सच्ची कहानियों को बयान करता है ताकि पढ़ने वाला उसको समझकर सीख पाप्त कर सके और सही काम करके ग़ल्ती और बुराईयों से दूर रहे।

क़ुरआन मदीज हज़रत मूसा (अलैहिस सलाम) और फ़िरऔन के इतिहास को बयान करता है , हज़रत इब्राहीम (अलैहिस सलाम) और नमरूद के कहानी को बयान करता है , हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस सलाम) के तक़वे और ज़ुलैख़ा के इश्क़ की दास्तान को बयान करता है , मिस्र के बादशाह की सच्चाई की तलाश को बयान करता है और नबियों के साथ अरब क़ौमों की जंगों को बयान करता है।

क़ुरआनी कहानिया ख़ुदा की महान लिपियों में शुमार होते हैं जिनकी मिसाल दुनिया की किसी भाषा में आज कर दिखाई नही देती और अगर ऐसा होता तो वह दिखाई देतीं।

क़ुरआन का लक्ष्य कहानियों को बयान करना नही है बल्कि यह इंसानों के मार्ग दर्शन का साधन हैं , इंसान फ़ितरत के अनुसार कहानियों और क़िस्सों को पसंद करता है और चाहता है कि ग़ुज़रे हुए लोगों को इतिहास को जाने , क़ुरआन शरीफ़ ने इंसान की इसी चाहत को इंसान के लाभ में प्रयोग किया है और इसको मार्ग दर्शन का माध्यम बनाया है और यह काम क़ुरआन शरीफ़ इंसान की गहरी परख की सूचना देता है।

पवित्र क़ुरआन में अच्छे लोग

इंसान अपने मिज़ाज के अनुसार नेकी को पसंद करता है औऱ चाहता है कि अच्छे काम करे , लोग उसको नेकी से याद करें , इस चाहत की जड़ इंसान की फ़ितरत और उसकी पृक्रति में है , इंसान अच्छाईयों को पसंद करता है और बुराईयों से दूर रहता है औऱ चूँकि स्वंय दोस्ती भी प्रकृतिक है इसलिए अगर यह दोनों एक साथ मिलकर काम करें तो उसका नतीजा यह होगा कि हर इंसान अच्छाई और नेकी से पहचाना जाएगा , क़ुरआन मजीद नेक काम करने वालों को पहचनवाता हैः

नेकी यह नही है कि अपना चेहरा पूरब और पश्चिम की तरफ़ कर लो बल्कि नेकी (वास्विक और पूर्ण नेकी जो तुम्हारे सारे कामों में मापदंड बने वह उन लोगों का आचरण एवं व्यवहार है) उस व्यक्ति का हिस्सा जो अल्लाह , क़यामत , फ़रिश्तों , किताब (क़ुरआन) और नबियों पर ईमान ले आए और ख़ुदा की मोहब्बत में रिश्तेदारों , यतीमों , फ़क़ीरों , ग़रीबों , यात्रियों , सवाल करने वालों और ग़ुलामों की आज़ादी के लिए माल दे और नमाज़ क़ाएम करे और ज़कात अदा करे और जो भी वादा करे उसे पूरा करे और ग़रीबी एवं फ़ाक़े में और परेशानियों एवं बीमारियों में और जंग के मैदान में धैर्य रखने वाले हो तो यही लोग अपने ईमान और एहसान के दावे में सच्चे हैं और यही तक़वा वाले और परहेज़गार हैं।

इस आयत के दो भाग हैः रोकना और मना करना , कहना और इस्बात करना , रोकने के भाग में ख़याली नेकी को बातिल बताया है और इस्बात के भाग में नेकी की प्रशंसा की है।

आरम्भ में इस प्रकार कहा हैः यह ना समझो कि पूरब और पश्चिम की तरफ़ चेहरा करके खड़े होना नेक काम है और स्वंय को इससे प्रसन्न कर लो और अपने आपको नेक काम करने वाला समझ बैठो।

ईसाई , चर्च में जाकर पश्चिम की तरफ़ चेहरा करके खड़े होकर विर्द और ज़िक्र पढ़ने को नेक काम समझते हैं , उनके यहा दीन के सारे कार्य केवल यही हैं।

यहूदी अपने अराधना स्थलों पर जा कर पश्चिम की तरफ़ चेहरा करके अराधना करने को नेक काम समझते हैं और धार्मिक दायित्वों को पूरा करने में केवन यही करते हैं , क़ुरआन शरीफ़ ने दोनों गुटों का ध्यान इस बात की तरफ़ दिलाया है और उनकी ग़ल्ती को बयान किया है।

मुसलमानों में भी यही रस्म और रिवाज पाए जाते हैं।

कुछ लोग धार्मिक वाजिबात को पूरा करने से रोकते हैं और कहते हैः दिल को पवित्र होना चाहिए , हमारा दिल पवित्र है और धर्म का स्थान दिल है।

कुछ लोग धार्मिक कार्यों को करने से भागते हैं और यह लोग पहले गुट का साथ देते हैं , यह लोग एक घंटा बैठकर सौ बार ज़िक्र पढ़ने को नेक काम कहते हैं!

यह चारो गुट ग़लत सोच के चलते अपनी इच्छाओं का पालन करते हैं और जो कुछ उनका दिल कहता है उसकी को करते हैं और अपने आप को अच्छा और नेक इंसान समझते हैं , यह लोग अपने आपको धोखा दे रहे हैं और इसके माध्यम से तक़वा और परहेज़गारी को स्वीकार नही करते हैं और दुनिया में ज़ुल्म एवं अत्याचार पैदा करते हैं।

क़ुरआन शरीफ़ इस सोच को समाप्त कर देता है , इस तरीक़े को नेक काम नही समझता , इंसान की ग़ल्ती को सामने ला कर उसका मार्ग दर्शन करता है।

फिर इस्बात के भाग में नेक कामों को गिनता है क्योंकि बुरे काम करना क़ुरआन मजीद का तरीक़ा नही है , क़ुरआन शरीफ़ बहुत बड़े राज़ रे पर्दा उठाता है , ऐसा राज़ जो सबके लिए छिपा हुआ है और वह राज़ यह हैः नेक काम , दिल और शरीर के अंगों से मिला हुआ है और जो भी इन दोनों को मानता है वह नेक काम करेगा।

केवल दिल से अच्छे काम नही किए जाते , ज़बानी ज़िक्र से कोई नेक नही होता , कुछ देर पूरब या पश्चिम की तरफ़ चेहरा करके खड़े होने से कोई सौभाग्य प्राप्त नही करता और समाजिक इन्साफ़ नही पैदा होता।

नेक काम दो चीज़ों से बनते हैः एक दिल और अंदर से और दूसरे शरीर एवं बाहर से

ख़ुदा , क़यामत , फ़रिश्ते , नबियों और आसमानी किताबों पर ईमान रखना दिल का दायित्व है , जिसका दिल ईमान से भरा होगा उसकी बोलचाल ईमानी और नूरानी होगी।

ज़ालिमों को सज़ा और नेकों को पुन्य

क़यामत और महाप्रलय का वुजूद अत्याचारियों और पापियों की इच्छा के अनुसार नही है। उन लोगों को यह अच्छा लगता है कि उन्हे किसी तरह की सज़ा न मिले , यह लोग प्रयत्न करते हैं कि अपने आपको और दूसरे को यक़ीन दिलायें कि आख़िरत का कोई अस्तित्व नही है।

जो कुछ है बस सही दुनिया है अगर पुन्य व दंड है तो वह इसी दुनिया में है और चूंकि इस दुनिया में उन्हे कोई दंड नही मिला लिहाज़ा यह सज़ा व दंड के पात्र नही है न ही ज़ालिम व पापी है।

निसंदेह यह दुनिया के बड़े ज़ालिमों को सज़ा देने की शक्ति नही रखते , जिन्होने लोगों के सरों से ऊंचे मीनार बनाये हों , उनको इस संसार में किस तरह से सज़ा दी जा सकती है ?

कल्पना करें कि अगर ज़ुल्म के कारण सज़ा में उनको मार दिया तो यह सज़ा तो बस एक क़त्ल की हुई बाक़ी क़त्लों का क्या होगा ?

इसके अलावा दंड और सज़ा देने वाले के पास ज़ालिम से अधिक शक्ति और ताक़त होनी चाहिये ताकि वह उनको सज़ा दे सके और ऐसी शक्ति इस संसार में किसी के पास नही पाई जाती।

क्या चंगेज़ , तैमूर , बटलर , नरोन , यज़ीद और हुज्जाज जैसे अत्याचारियों को इस संसार में सज़ा मिली है ? क्या जिन लोगों ने आम नागरिकों के क़त्ल का ऐलान किया था उनको सज़ा मिली है ?

यह बात उन लोगों के लिये भी है जिन्होने बड़े महान नेक काम अंजाम दिये हैं , जिस नेक इंसान ने हज़ारों परेशान लोगों की परेशानियों को दूर किया हो और उनको कमाल तक पहुचाया हो , किस तरह यह दुनिया उसको इन कामों का बदला दे सकती है ?

जिस पवित्र हस्ती ने इंसानों की भलाई और प्रगति के लिये अपनी जान को फ़िदा कर दिया है , यह दुनिया उसको क्या ईनाम दे सकती है ?

यह संसार अव्यवस्थित अथवा जंगलियों का संसार नही है बल्कि यह इंसानों का संसार है।

इंसान , ज़ुल्म व अत्याचार करने वाले को दंड का पात्र समझते हैं और नेक काम करने वालों को पुन्य का पात्र समझते हैं और लोग ऐसे ही संसार की कामना करते हैं। अत: संसार ऐसा ही होना चाहिये क्यों कि इंसान की प्राकृतिक और बुद्धिपूर्वक इच्छाएं ग़लत नही है। यही कारण हैं कि एक ऐसा संसार होना चाहिये जहां दंड और पुन्य दिया जा सके।

इस संसार पर एक समझदार और शक्तिशाली हस्ती शासन और राज करती हैं जो पापियों के पापों और नेक लोगों की नेकियों को देख रही हैं और निसंदेह वह उन्हे दंड और पुन्य भी देगी।

क़ुरआने करीम ने महाप्रलय को साबित और इंसान का क़यामत को ओर मार्गदर्शन करने के लिये बडे महान क़दम उठायें हैं , क्योंकि क़ुरआने करीम इंसानों की भलाई के लिये उनके पास भेजा गया है और लोगों का दूसरी दुनिया (क़यामत) पर श्रद्धा रखने में फ़ायदा है और इसी में इंसान और समाज का भी फ़ायदा है , क़ुरआने करीम का अस्तित्व आख़िरत के वुजूद के साथ जुड़ा हुआ है।

पवित्र क़ुरआन में महाप्रलय

क़ुरआने करीम मार्गदर्शन और हिदायत की किताब है जो इस संसार में न्याय व इंसाफ़ की स्थापना के लिये ईश्वर की ओर से भेजी गई है। न्याय की स्थापना के लिये एक ज़िम्मेदार इंसान का होना आवश्यक है। जो इस किताब के क़ानून को लागू कर सके वरना इस किताब के मार्गदर्शन को कोई लाभ नही पहुचेगा और क़यामत व महाप्रलय पर दृढ़ श्रद्धा का होना ही इसकी ज़मानत का सूचक है।

जो अत्याचारी , पवित्र क़ुरआन की चेतावनी से डरते हैं वह ज़ुल्म व अन्याय करने से दूर रहते हैं। ऐसे पापी भी पाप से दूर रहने का प्रयत्न करते हैं। पवित्र क़ुरआन उम्मीद देने वाली किताब है , ज़ुल्म व अत्याचार के शिकार लोगों के लिये और इसी तरह नेकी करने और पवित्र लोगों के लिये आशा की किरण है।

महाप्रलत पर श्रद्धा की बुनियाद ईश्वर पर आस्था है , पवित्र क़ुरआन में क़यामत का वर्णन ईश्वर के मानने वालो से किया गया है। ईश्वर न्याय प्रिय , शक्तिशाली , आध्यात्मी और बुद्धिमान है और उसने इंसान को बेकार जन्म नही दिया है , उसने इंसान को इस संसार का शासक बनाया है , उसको सत्य व वास्तविकता को ओर बुलाया है , अपनी तरफ़ से उसके मार्ग दर्शन के लिये नबियों को भेजा और इस पवित्र किताब को अपना संदेश बना कर भेजा है।

एक व्यक्ति ने एक मरे हुए इंसान की गल चुकी हड्डी को हाथ में उठाया और उसको इस तरह से दबाया कि वह राख बन गई उसके बाद उसने उस राख को हवा में उड़ा दिया फिर उसके बाद पूछा: कौन है जो इस राख बन कर हवा में उड़ चुकी इस हड्डी को दोबारा जीवित करे ताकि उसे उसके पापों की सज़ा दे सके ? पवित्र क़ुरआन ने उसका जवाब इस तरह से दिया है:

उसका ज़िन्दा करने वाला वही ईश्वर है जिसने उसे सबसे पहली बार अस्तित्व दिया था जबकि उस समय वह कुछ भी नही है , पहली बार ज़िन्दा करना ज़्यादा मुश्किल है या दोबारा जिन्दा करना ? कहां कुछ न होने को अस्तित्व देना और कहां मार कर दोबारा ज़िन्दा करना , ज़ाहिर है और सब इस बात को जानते हैं कि इंसान नही था फिर ईश्वर ने उसे पैदा किया है। पवित्र क़ुरआन ने इस बात को साबित करने के लिये जो दलील दी है उसकी बुनियाद जग ज़ाहिर है कि इंसान को कुछ न होने के बाद अस्तित्व देने वाला ईश्वर है।

इंसान के जीवन की समस्त निजी , घरेलू और समाजी परेशानियां उसके आध्यात्म की बीमारियों के कारण होती है जिनमें से कुछ यह हैं: घमंड , लालसा , कंजूसी , हसद व जलन , घृणा , नेफ़ाक़ , ख़ुदग़र्ज़ी , ख़ुद परस्ती और वास्तविकता से लापरवाही। इंसान को आध्यात्म की इन सारी बीमारियों से जो उसकी परेशानियों का कारण बनती है , केवल पवित्र क़ुरआन ही निजात दिला सकता है।

इस बुनियाद पर समस्त संसार , विशेष कर मुसलमान अगर चाहते हैं कि इस बुरी हालत से निजात पायें तो पवित्र क़ुरआन और उसकी आयतों को समझ कर पढ़े और उस पर सोच विचार करें।

क़ुरआन पढ़ने से अपने आध्यात्म के दर्द का इलाज करें , बिना समझे और बिना अमल के पढ़ने का कोई लाभ नही है और इस तरह किसी बीमार का इलाज संभव नही है।

पवित्र क़ुरआन के पाले हुए

आवश्यक है कि इस भाग में उन लोगों के जीवन के कुछ उदाहरण का वर्णन किया जाये जिन्होने पवित्र क़ुरआन के अख़लाक़ी , ऐतेक़ादी और अमली मंसूबे की सहायता से ख़ुद को संवारा और क़ुरआन के प्रशिक्षण से प्रगति करके सही , सदाचारिक , नेक आचरण , परहेज़गार , सच्चे , शरीफ़ , चमत्कारिक व दाता बन गये। ऐसे लोगों का उल्लेख , शायद अध्धयन करने वालों के लिये मार्गदर्शन और कमाल तक पहुचने का अमली उदाहरण और दुनिया व आख़िरत की सफ़लता का कारण हो और उन महान इंसानों की जीवनियों के पढ़ने से यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि पवित्र क़ुरआन एक ऐसी रचनात्मक किताब है जो इस संसार को उन सारी समस्याओं से निजात दिला सकती है।

ईश्वर के लिये , ईश्वर के कारण और केवल ईश्वर की राह में क़दम उठाना , एक ऐसी वास्तविकता है जिसे अगर इंसान अपने अंदर पैदा कर ले तो निसंदेह वह अपनी श्रेष्ठता , नूरानीयत और कोमलता के अलावा अपने जीवन के समस्त कार्यों में जैसे आमाल , आचरण और सदाचार में नबियों , इमामों और ईश्वर के विशेष वलियों में से हो जायेगा।

वह अपने अंदर ऐसी हालत पैदा कर ले कि ईश्वर के अलावा किसी चीज़ को न देखे , ईश्वर के अलावा किसी वस्तु की इच्छा न करे और ईश्वर के अलावा किसी के लिये कोई क़दम न उठाये। उसके विचार , उसका दुख , क्रोध केवल जनता को लाभ पहुचाने के लिये हो और वह ईश्वर के सामने अपनी शान व शौकत को न देखे। ख़ुलासा यह है कि अपने इख़लास व शुद्धता को ईश्वर की उपासना से दूर गुमराही और आश्चर्य के दलदल में पड़े लोगों के लिये मार्गदर्शन और ख़ैर व भलाई का कारण बना दे।

ऐसा इंसान अपने ख़ुलूस व शुद्धता की रौशनी में सिर्फ़ और सिर्फ़ ऐसा वास्तविकता के बारे में सोचता है कि मेरा इंसानी और ईश्वरीय दायित्व अपने और दूसरों के साथ क्या है ? और जिस समय उसकी ज़िम्मेदारी और उसका दायित्व सामने आता है तो वह बहुत ही शौक़ और दिलचस्बी के साथ उसको अंजाम देता है और इस सिलसिले में किसी बुराई करने वाले की परवाह नही करता बल्कि अपनी ज़िम्मेदारी को निभाता है।

इस सिलसिले में उस्ताद शहीद मुतहहरी लिखते हैं:

मुझ़े स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़मा बुरुजर्दी रहमतुल्लाह अलैह का वाक़ेया याद है:

आरम्भ में जब आप बुरुजर्द से तेहरान और तेहरान से क़ुम आये और हौज़ ए इल्मिय ए क़ुम (पवित्र शहर क़ुम स्थित शीया जगत का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण धार्मिक शिक्षा केन्द्र) के निवेदन पर क़ुम में रहने की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। अगरचे आप तेहरान एक बीमारी के इलाज के कारणवश आये थे , जहां आपका आपरेशन होना था।

क़ुम में कई महीने तक रहने के बाद जब गर्मियों में शिक्षा केन्द्र में छुट्टी हो गई तो आपने आठवे इमाम हज़रत अली रज़ा अलैहिस सलाम की ज़ियारत के लिये इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूसरे पवित्र शहर मशहद जाने का संकल्प किया क्यों कि आपने बीमारी के ज़माने में मन्नत मानी थी कि अगर अल्लाह तआला ने मुझे स्वास्थ प्रदान किया तो मैं इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम की ज़ियारत के लिये जाऊंगा।

मुझसे एक मरज ए तक़लीद ने बयान किया कि आयतुल्लाह बुरुजर्दी ने एक विशेष बैठक में मुझसे मशहद जाने के बारे में अपना इरादा व्यक्त किया और उस बैठक में मौजूद अपने दोस्तों से फ़रमाया: आप लोगों में से कौन मेरे साथ इस सफ़र पर आना चाहेगा ? सबने कहा कि हम विचार करने के बाद आपको उत्तर देंगे। बाद में हम सबने आपस में राय मशवरा किया और यह तय हुआ कि इस समय उन्हे क़ुम से मशहद नही जाना चाहिये। इस लिये कि हमारा यह मानना था कि चूंकि आप नये नये क़ुम आये हैं और ईरान के लोग विशेष कर तेहरान और मशहद के लोग आपको अच्छी तरह से नही पहचानते है और आप को जो प्रतिष्ठा व सम्मान व सत्कार मिलना चाहिये वह नही मिल सकेगा इस लिये हम सबने यह चाहा कि आपको इस सफ़र पर जाने से रोकें , जबकि हम यह भी जानते थे कि यह बात हम उनसे कह नही पायेंगे इसलिये हमें कोई ऐसी बहाना बनाना पड़ेगा जिससे वह ख़ुद ही अपने इस मंसूबे को स्थागित कर दें जैसे यह कि हम उनसे कहें कि आप बीमार हैं , अभी आपका आपरेशन हुआ है मुम्किन है कि इस लंबे सफ़र में (चूंकि उस समय मशहद के लिये हवाई जहाज़ और रेलगाड़ी आदि नही थे) आपको कोई नुक़सान पहुच जाये।

दूसरी बैठक में जब आप यह बात फिर से रखी तो हम सबने प्रयत्न किया कि आपको इस सफ़र से रोक सकें मगर हम में से एक ने हमारे दिल की बात बयान कर दी और आप समझ गये कि इस बात का अस्ली कारण क्या है और अचानक आपका लहजा बदल गया , आपने बहुत ही गंभीरता पूर्वक कहा कि अल्लाह तआला ने मुझे सत्तर वर्ष की आयु प्रदान की है , इस अरसे में उसने मुझे बहुत सी नेमतों से नवाज़ा है जिन में से एक भी मेरी तदबीर की वजह से नही मिली , मैंने हमेशा कोशिश की कि मैं अपनी ज़िम्मेदारी पर अमल करूं , अब सत्तर साल की उम्र साल के बाद उचित नही है कि मैं अपने बारे मे सोचूं , अपने जीवन के कार्यों में सोच विचार करूं , मुझ से यह सब नही हो सकता लिहाज़ा मैं जाऊंगा।

जी हां , एक इंसान अगर अपनी अमली ज़िन्दगी में कोशिश और इख़लास से काम ले तो ख़ुदावंदे आलम उसकी ऐसे रास्तों से उसी मदद करता है जिसकी उसको ख़ुद भी ख़बर नही होती।

अहले बैत अलैहिमुस सलाम के साथ सामाजिकता

बेहतरीन दोस्त

अगर फ़र्ज़ करें कि इंसान इस संसार में अध्यात्म रखने वाले , ईश्वर की राह में क़दम बढ़ाने वाले , और सम्मान व सत्कार रखने वाले दोस्त व साथी का साथ न पा सके जिनके ज़रिये वह प्रगति व अध्यात्म , पवित्र कार्यों के तौर तरीक़े और इंसानी सम्मान से पूर्ण आदतें व तरीक़े न सीख सके और ख़ुद को इंसानियत के उच्च सत्कार और कमाल तक पहुच सके तब भी अध्यात्मिक दुनिया और परलोक के दरवाज़े उस के लिये बंद नही हुए हैं। यह ऐसा संसार है जिस में पवित्र क़ुरआन की आयतें और हदीसों के ज़रिये से इस में प्रवेश किया जा सकता है। अंबिया , सिद्दीक़ीन , शोहदा और सालेहीन के मार्ग से मित्रता के ज़रिये आत्मा व दिल से संबंध स्थापित किया जा सकता है। उनके अध्यात्मिक मार्गदर्शन और भलाई व जनहित वाले सिद्धातों से फ़ायदा उठाया जा सकता है।

यह लोग (जैसा कि पवित्र क़ुरआन की आयतें और मासूमान अलैहिमुस सलाम की हदीसें बयान करती हैं) क़यामत तक के लिये तमाम कार्यों में इंसान के लिये आईडियल हैं।

यही वह लोग हैं जिनके ज़रिये इंसान को (आयतों , हदीसों या हमदर्द व जानकार शिक्षकों की सहायता) अपने अस्तित्व में उनके नेक कामों , अक़ीदों और सदाचार से मारेफ़त हासिल करना चाहिये और आहिस्ता आहिस्ता उनकी राह व मार्ग से फ़ायदा उठाना चाहिये ताकि अपने अंदर मौजूद योग्यता के ऐतेबार से उनके जैसे हो जायें और इंसान में अध्यात्मिक स्थान और ईश्वरीय सत्कार का इज़ाफ़ हो जाये और आख़िर में नतीजे के तौर पर जिस प्रकार से संसार में मारेफ़त , दिल से ईमान और आत्मिक संबंध के ज़रिये उनके साथ विचार आधारित मित्रता बनाई है , परलोक में भी स्वर्ग में उनके साथ हो , इस लिये यह लोग इंसान के लिये बेहतरीन और नेक दोस्त व साथी हैं जैसा कि पवित्र क़ुरआन में आया है कि

وَ مَنْ یُطِعِ اللَّہَ وَ الرَّسُولَ فَاٴُولئِکَ مَعَ الَّذینَ اٴَنْعَمَ اللَّہُ عَلَیْہِمْ مِنَ النَّبِیِّینَ وَ الصِّدِّیقینَ وَ الشُّہَداء ِ وَ الصَّالِحینَ وَ حَسُنَ اٴُولئِکَ رَفیقاً ۔

और जो भी अल्लाह और रसूल की इताअत और पैरवी करेगा वह उन लोगों अंबिया , सिद्दक़ीन , शोहदा और सालेहीन के साथ रहेगा जिन पर अल्लाह ने ईमान , अख़लाक़ और अमले सालेह की नेमतें नाज़िल की हैं और यही बेहतरीन साथी और दोस्त हैं।

एक हदीस में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलिहि वसल्लम फ़रमाते हैं:

अंबिया से मैं , सिद्दीक़ीन से अली बिन अबी तालिब , शोहदा से हसन व हुसैन और सालेहीन से मुराद हमज़ा और इमाम हुसैन अलैहिस सलाम के वंश से आने वाले इमाम हैं।

और चूंकि पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और अइम्मा अलैहिमुस सलाम , पवित्र क़ुरआन और हदीसों के माध्यम से इंसानी समाज के मार्गदर्शन के लिये सदैव मौजूद हैं और इंसान उन के साथ हमराज़ हो सकता है अत: यह कहना चाहिये कि यह हज़रात बेहतरीन दोस्त , बेहतरीन सामाजिक और हमदर्द साथी हैं जिनके अस्तित्व और मार्गदर्शन से इंसान ईश्वरीय आदाब से ख़ुद को बना संवार सकता है।

यह बेहतरीन दोस्त मज़बूत अक़ीदे , नेक आमाल , अच्छे सदाचार , न्याय व इंसाफ़ , सच्चाई व ईमानदारी , वफ़ा , पवित्रता , पाकदामनी , इजतेहाद , शराफ़त , विद्धत्ता , प्यार और भलाई के पात्र हैं और अगर इंसान अध्यात्म की दुनिया पवित्र क़ुरआन और हदीसों के मार्गदर्शन के ज़रिये उनके साथ हो जाये और उनके चमत्कारों की ओर ध्यान लगाये तो उनका प्रभाव स्वीकार करने के कारण उनके जैसा हो जाये और क़यामत में उनकी संगत का पात्र हो जायेगा। जैसा कि पवित्र क़ुरआन ने फ़रमाया है:

وَ حَسُنَ اٴُولئِکَ رَفیقاً “ और यह लोग बेहतरीन दोस्त है।

मैं ख़ुद अल्लाह का इच्छुक एक धर्म गुरु हूं और अब इस समय जब कि मैं इस किताब को लिख रहा हूं लगभग पैंतीस वर्षों से ईरान और दूसरे युरोपीय व अरबी देशों में ईश्वर के धर्म के प्रचार की तौफ़ीक़ हासिल कर चुका हूं , मैंने अब तक बहुत से पथभ्रष्ट लोगों को पवित्र क़ुरआन की आयतों अथवा हदीसों के ज़रिये ख़ुदा वंदे आलम , अंबिया और अइम्म ए मासूमीन अलैहिमुस सलाम से अवगत कराया है और उनके जीवन की डोर को अल्लाह , अंबिया और अइम्मा अलैहिमुस सलाम से मिला दिया है और उसके ज़रिये से मैंने लोगों के अख़लाक़ व आमाल में बहुत ज़्यादा बदलाव होते हुए देखा है। दूसरे शब्दों में यह कहा जाये कि मैं ख़ुद इस बात का अनुभव किया है कि बहुत से ऐसे लोग जो धर्म को छोड़ चुके थे वह अल्लाह , अंबिया और अइम्म ए मासूमीन अलैहिमुस सलाम से अवगत व परिचित होने के बाद हिदायत पा गये हैं।

इस सिलसिले में अब तक कई हज़ार पत्र लोगों ने मुझे लिखे हैं उन में से बहुत से लोग यहूदी व ईसाई व नास्तिक हैं जो धार्मिक वास्तविकता , ईश्वरीय शिक्षा को सुनने के बाद ग़लत रास्ते को छोड़ कर वापस धर्म की तरफ़ आ गये है और ख़ुदा वंदे आलम की कृपा व रहमत के पात्र बन चुके हैं। इसी तरह से उन्होने नबी ए इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम और अइम्म ए मासूमीन अलैहिमुस सलाम से मदद मांग कर उनको अपने जीवन का आईडियल बना लिया है और उनकी पवित्र संस्कृति से प्रगति व कमाल तक पहुच गये हैं और दुनिया व आख़िरत में सम्मान व सत्कार हासिल कर लिया है।