सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अहले बैत अलैहिमुस सलाम के साथ दोस्ती व सामाजिकता के लक्षण

पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के पाक व पाकीज़ा अहले बैत अलैहिमुस सलाम ऐसे मार्गदर्शक हैं कि उनका इल्मी व आध्यात्मिक व्यय बहुत ज़्यादा है। वह ऐसे दरिया हैं जो अपने ज्ञान और आध्यात्म के मुंगे व मोतियों से इच्छुक लोगों को बेनियाज़ कर सकते हैं और उनके ख़ज़ाने में कोई कमी नही आयेगी।

अंधकारमय मौत से निजात

ख़ुदा वंदे आलम ने आध्यात्मिक व्यय के फ़ायदे को इंसान के बस में इस लिये दिया है कि वह इस ईश्वरीय ख़ज़ाने से अपनी आध्यात्मिक व आत्मिक विचार के ख़ालीपन को पूर्ण कर सकें और अंधकार पूर्वक मौत से जो कि बुद्धि व आत्मा व दिल की मौत है , सुरक्षित रहें और हलाक कर देने वाले तूफ़ानों से अपने अस्तित्व की नाव को सही सलामत निजात के साहिल पर ले जाये और यही दुनिया व आख़िरत के सम्मान और ईश्वर की प्रसन्नता का कारण है। जी हां इसी वजह से ख़ुदा वंदे करीम ने सूर ए इब्राहीम की पहली आयत में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के धरती पर भेजने के फ़लसफ़े को पवित्र क़ुरआन हाथ में ले कर इंसानों को अंधेरों से निजात दिलाना बयान किया है:

کِتابٌ اٴَنْزَلْناہُ إِلَیْکَ لِتُخْرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُماتِ إِلَی النُّورِ بِإِذْنِ رَبِّہِمْ إِلی صِراطِ الْعَزیزِ الْحَمید “( ۱ ) ۔

यह किताब है जिसे हमने आप के ऊपर नाज़िल किया है ता कि आप लोगों को ख़ुदा के आदेश से अंधेरों , जिहालत , गुमराही और सरकशी से निकाल कर , नूर , मारेफ़त , न्याय व ईमान की तरफ़ ले आयें और अज़ीज़ व हमीद ईश्वर के रास्ते पर लगा दें।

इस संसार में आध्यात्म के मैदान में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से अच्छा मित्र और साथी कौन हो सकता है ? ऐसी दोस्ती जो इच्छा व लालच और इश्क़ व मुहब्बत के साथ इंसान को अंदरुनी ग़रीबी से निजात दिलाती है औप आपकी ख़्वाहिश ही इंसान को दुनिया व आख़िरत के ख़ैर और कमाल तक पहुचाना है।

لَقَدْ جاء َکُمْ رَسُولٌ مِنْ اٴَنْفُسِکُمْ عَزیزٌ عَلَیْہِ ما عَنِتُّمْ حَریصٌ عَلَیْکُمْ بِالْمُؤْمِنینَ رَؤُفٌ رَحیمٌ “( ۱ ) ۔

सूर ए तौबा , सूरह संख़्या 9 , आयत 128

निसंदेह तुम्हारे पास वह नबी (दूत) आया है जो तुम ही में से है और उस पर तुम्हारी मुसीबत सख़्त होती है वह तुम्हारी हिदायत के बारे में आरज़ू रखता है और मोमिनीन के हाल पर दयालु व मेहरबान है।

पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम तुम्हारी गुमराही से हिदायत और निजात के लिये बहुत ज़्यादा शौक़ व उम्मीद रखते हैं।

पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के बाद आपके अहलेबैत अलैहुमुस सलाम मअनवी सरमाये के महान स्रोत है। यह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) की तरह लोगों को वास्तविकता की तरफ़ हिदायत करते हैं और उनको ख़तरों और बुराईयों से निजता दिलाते हैं।

कश्ति ए निजात के ज़रिये निजात

जो लोग अपने अस्तित्व और अपनी दुनिया व आख़िरत की इस्लाह के लिये उन हज़रात की दरबार में भीख मांगते हैं और अपनी ज़िन्दगी के तमाम कामों में उनकी पैरवी और उनकी अनुसरण करते हैं। यक़ीनन वह हलाक कर देने वाली चीज़ों से निजात हासिल कर लेते हैं और अपनी दुनिया व आख़िरत के ख़ैर व भले को सुरक्षित कर लेते हैं। क्यों कि यह ईश्वर के सच्चे भक्त इस भौतिक संसार में उस ईश्वर की ओर से निजात की कश्ती के तौर पर मौजूद हैं लिहाज़ा जो भी उन्हे याद करता है यह उसको निजात दिलाते हैं और जो भी उनको छोड़ देता है वह विभिन्न प्रकार के ख़तरों में घिर जाता है और उसकी दुनिया व आख़िरत ख़राब हो जाती है।

हज़रत अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी इस्लामी दुनिया की एक प्रसिद्ध हस्ती हैं जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि अबूज़र सच्चाई के कमाल पर पहुचे हुए हैं लिहाज़ा अबूज़र कहते हैं कि मैंने ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम (स) को फ़रमाते हुए सुना है , आपने फ़रमाया:

انما مثل اھل بیتی فیکم کمثل سفینة نوح من رکبھا نجا و من تخلف عنھا غرق “ ( ۱ ) ۔

बेशक तुम्हारे दरमियान मेरे अहले बैत अलैहुमुस सलाम की मिसाल , नूह की कश्ती की तरह है कि जो भी इस आध्यात्मिक नाव में सवार हो गया वह निजात पा गया और जो भी इस में सवार नही हुआ वह डूब गया।

(अलअमाली , शेख़ तूसी , पेज 60 , मजलिस 2 हदीस 88 , बेहारुल अनवार जिल्द 33 पेज 105 अध्याय 7 हदीस 3)

अहले सुन्नत के बुज़ुर्ग उलामा ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलिहि वसल्लम से हदीस नक़्ल की है कि आपने फ़रमाया:

فاطمة بھجة قلبی و ابناھا ثمرة فوادی و بعلھا نور بصری والائمة من ولدھا امناء ربی و حبل ممدود بینہ و بین خلقہ من اعتصم بھم نجا ومن تخلف عنھم ھوی “( ۲ ) ۔

फ़ातेमा मेरे दिल का सुकून है , उसके दोनो बेटे हसन व हुसैन मेरे दिल का चैन हैं , उसका शौहर मेरी आंखों की रौशनी है , और उसकी नस्ल से आने वाले इमाम , अल्लाह के अमीन हैं। वह अल्लाह और लोगों के दरमियान एक रस्सी की तरह हैं। जो भी उनकी पनाह में आ जायेगा वह निजात हासिल कर लेगा और जो उन से दूर होगा वह गुमराह हो जायेगा।

फ़रायइदुस समतैन जिल्द 2 पेज 66 , इसी तरह शिया स्रोत में भी बयान हुआ है जैसे अत तरीफ़ जिल्द 1 पेज 117 , हदीस 180 , बेहारुल अनवार जिल्द 33 पेज 110 अध्याय 7 हदीस 16।

हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम ने अपने आबा व अजदाद से , उन्होने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से नक़्ल किया है कि आपने फ़रमाया:

مثل اھل بتی فیکم، مثل سفینةنوح من رکبھا نجی و من تخلف عنھا زخ فی النار “ ( ۱ ) ۔

तुम्हारे दरमियान मेरे अहले बैत की मिसाल , कश्ती ए नूह की तरह है जो भी इस में सवार हुआ वह निजात पा गया और जो भी उससे दूर हुआ वह नर्क की आग में चला गया।

(सहीफ़तुल इमामिर रिज़ा पेज 57 हदीस 76 , बेहारुल अनवार जिल्द 33 पेज 122 अध्याय 7 हदीस 45)

यक़ीनन अहलेबैत अलैहुमुस सलाम के साथ दोस्ती और उनके साथ मअनवी सामजिकता के लक्षण इतने ज़्यादा हैं कि लिखने वाला क़लम और बेहतरीन वक्ता भी उसका अंदाज़ा नही लगा सकता।

इंसानियत के कमाल तक पहुचना

वास्तविकता का ज्ञान और जानकारी हासिल करना , दिल व विचार में तौहीद (एक ईश्वर) के जलवों को प्रकट होना , धर्म के सीधे रास्ते पर खड़े रहना , इंसान के अस्तित्व से अच्छे सदाचार का बाहर आना , इंसान के शरीर के अंगों से अच्छे कामों का ज़ाहिर होना आदि यह सब उस बरकत वाली दोस्ती और आध्यात्मिक सामजिकता के लक्षण हैं। इस सिलसिले में अगर बहुत ही महत्वपूर्ण हदीस की तरफ़ तवज्जो की जाये जिसे शेख़ तबरसी ने अपनी प्रसिद्ध किताब अल ऐहतेजाज में नक़्ल किया है तो यह वास्तविकता स्पष्ट हो जायेगी कि अहले बैत अलैहुमुस सलाम की दोस्ती व सामजिकता इंसान को सम्मान व प्रतिष्ठा के आसमान पर पहुचा देती है।

इब्ने कव्वा ने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम से रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के सहाबियों के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया कि तुम मुझ से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कौन से सहाबी के बारे में पूछना चाहते हो ? उन्होने कहा मुझे अबूज़र के बारे में बताएं , आपने फ़रमाया: मैंने पैग़म्बरे अकरम (स) को फ़रमाते हुए सुना है:

مااظلت الخضراء و لا اقلت الغبراء ذالھجة اصدق من ابی ذر “ ۔

आसमान ने किसी ऐसे इंसान पर साया नही किया और ज़मीन ने किसी ऐसे शख़्स के वुजूद को बर्दाश्त नही किया जो अबूज़र से ज़्यादा सच्चा हो।

उन्होने कहा: या अमीरल मोमिनीन , मुझे सलमान के बारे में बताइये। आपने फ़रमाया: ख़ुशा बहाल सलमान , सलमान हम में से हैं और तुम्हारे लिये हकीम लुक़मान की तरह हैं , सलमान इब्तिदा व इंतेहा का इल्म रखते थे।

उन्होने कहा , मुझे हुज़ैफ़ ए यमान के बारे में बताइये , आपने फ़रमाया: हुज़ैफ़ा वह हैं जो मुनाफ़ेक़ीन के नामों को जानते हैं और अगर उनसे हुदूदे इलाही के बारे में पूछते तो उनको हुदूदे इलाही का आलिम व आरिफ़ पाते।

उन्होने कहा: मुझे अम्मारे यासिर के बारे में बताइये , आपने फ़रमाया:

अम्मार वह हैं जिसके गोश्त व ख़ून पर आग हराम है और नर्क की आग अम्मार के गोश्त व ख़ून तक नही पहुच सकती।

उन्होने कहा , या अमीरल मोमिनीन , मुझे अपने बारे में बताइये , आपने फ़रमाया:

जब भी तुम मेरे बारे में तमाम हक़ीक़त के मुतअल्लिक़ सवाल करोगे तो मैं तुम्हे जवाब दूंगा और अगर ख़ामोश हो जाओगे तो मैं ख़ुद बयान करूंगा।

۱۔ ” عن الاصبغ بن نباتہ قال : خطبنا امیر المومنین ( علیہ السلام ) علی منبر الکوفة فحمداللہ و اثنی علیہ ثم قال : ” ایھا الناس سلونی قبل ان تفقدونی، فان بین جوانحی علما جما، فقام الیہ ابن الکواء فقال یا امیرالمومنین اخبرنی عن اصحاب رسول اللہ ( صلی الله علیه و آله وسلم ) (

हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस सलाम फ़रमाते हैं कि एक गिरोह हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम के पास आया और आपसे कहा: हम अली अलैहिस सलाम के शिया हैं। इमाम रज़ा अलैहिस सलाम ने एक मुद्दत तक तो उन्हे अपनी ज़ियारत नही कराई फिर जब मिलने और मुलाक़ात करने की इजाज़त दी तो फ़रमाया:

वाय हो तुम पर , अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम के शिया हसन , हुसैन , सलमान , अबूज़र , मिक़दाद , अम्मार और मुहम्मद बिन अबी बक्र थे जो किसी भी तरह से आपके हुक्म और क़वानीन की मुख़ालेफ़त नही करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम ने अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम से फ़रमाया:

ان الجنة تشتاق الیک والی عمار وسلمان و ابی ذر والمقداد “ ( ۲ )

) قال عن ای اصحاب رسول اللہ؟ تسالنی ، قال : یا امیر المومنین اخبرنی عن ابی ذر الغفاری ، قال ( علیہ السلام ): سمعت رسول اللہ ( صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم ) یقول : ما اظلت الخضراء و لا اقلت الغبراء ذا لھجة اصدق من ابی ذر، قال : یا امیر المومنین اخبرنی عن سلمان الفارسی قال : بخ بخ سلمان منا اھل البیت و من لکم بمثل لقمان الحکیم علم علم الاول وعلم الآخر، قال : یا امیر المومنین فاخبرنی عن حذیفة بن الیمان، قال : ذلک امروا علم اسماء المنافقین ان تسالوہ عن حدود اللہ تجدوہ بھا عارفا عالما،قال : یا امیرالمومنین اخبرنی عمار بن یاسر، قال : ذاک امرو حرم اللہ لحمہ و دمہ علی النار و ان تمس شیئا منھما قال یا امیر المومنین فاخبرنی عن نفسک، قال : کنت اذا سالت اعطیت و اذا سکت ابتدیت “ ۔ الاحتجاج، ج ۱، ص ۲۶۰۔بحار الانوار، ج ۱۰، ص ۱۲۳، باب ۸، حدیث ۲۔

۱۔ ” ابی محمد العسکری ( علیہ السلام ) قال : قدم جماعة فاستاذنوا علی الرضا ( علیہ السلام ) وقالوا : نحن من شیعة علی فمنھم ایاما ثم لما دخلوا قال لھم : ویحکم انما شیعة امیرالمومنین الحسن والحسین و سلمان وابوذروالمقداد و عمار و محمد بن ابی بکر الذین لم یخالفوا شیئا من اوامرہ “ ۔ الاحتجاج ، ج ۲، ص ۴۴۰۔ بحارالانوار، ج۲۲، ص ۳۳۰، باب ۱۰، حدیث ۳۹۔

2. रौज़तुल वायेज़ीन जिल्द 2 पेज 280 , अल ख़ेसाल जिल्द 1 पेज 303 हदीस 80 , बेहारुल अनवार जिल्द 22 पेज 341 अध्याय 10 हदीस 52

यक़ीनन जन्नत तुम्हारी , अम्मार , सलमान , अबूज़र और मिक़दाद की मुश्ताक़ और मुन्तज़िर है।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम से नक़्ल किया है कि आपने फ़रमाया:

ख़ुदावंदे आलम ने मुझे चार लोगों से मुहब्बत का हुक्म दिया है , सबने कहा , ऐ अल्लाह के रसूल वह कौन लोग हैं ? आपने फ़रमाया: अली बिन अबी तालिब , उसके बाद ख़ामोश हो गये , फिर फ़रमाया: बेशक ख़ुदावंदे आलम ने मुझे चार लोगों से मुहब्बत का हुक्म दिया है , सबने कहा वह कौन लोग हैं ? फ़रमाया अली बिन अबी तालिब। उसके बाद ख़ामोश हो गये , फिर फ़रमाया: बेशक ख़ुदावंदे आलम ने मुझे चार लोगों से मुहब्बत का हुक्म दिया है , सबने कहा वह कौन लोग हैं ? फ़रमाया अली बिन अबी तालिब , मिक़दाद बिन असवद , अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी , सलमाने फ़ारेसी।

ज़ोरारा बिन अअयन , जो कि इल्म व अख़लाक़ में प्रसिद्ध हैं , ने हज़रत इमाम मुहम्मह बाक़िर अलैहिस सलाम से हदीस नक़्ल की है कि उन्होने अपने वालिदे माजिद से उन्होने अपने वालिदे मोहतरम से और उन्होने हज़रत अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम से रिवायत नक़्ल की है कि आपने फ़रमाया:

ضاقت الارض بسبعة بھم یرزقون و بھم ینصرون و بھم یمطرون منھم سلمان الفارسی، والمقداد، و ابوذر و عمار و حذیفہ رحمة اللہ علیہم و کان علی ( ع ) یقول : و انا امامھم وھم الذین صلوا علی فاطمة ( علیہ السلام )( ۲ ) ۔

۱۔ جعفر بن الحسین المومن، عن ابن الولید ، عن الصفار، عن ابن عیسی عن ابن ابی نجران، عن صفوان الجمال، عن ابی عبداللہ ( علیہ السلام ) قال : قال رسو ل اللہ ( صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم ): ان اللہ امرنی بحب اربعة، قالوا : ومن ھم یا رسول اللہ ( صلی اللہ علیہ و آلہ وسلم ) ؟ قال : علی بن ابی طالب، ثم سکت، قال : ان اللہ امرنی بحب اربعة، قالوا : ومن ھم یارسول اللہ؟ قال : علی بن ابی طالب،ثم ثکت، ثم قال : ان اللہ تعالی ا مرنی بحب اربعة ، قالوا : ومن ھم یا رسول اللہ؟ قال : علی بن ابی طالب والمقداد بن الاسود، وابوذر الغفاری و سلمان الفارسی “ ۔الاختصاص، ص ۹۔ روضة الواعظین، ج۲، ص ۲۸۳۔ بحارالانوار، ج۲۲ص ۳۴۵، باب ۱۰، حدیث ۵۸۔

۲۔ رجال الکشی، ص ۶۔ بحارالانوار، ج ۲۲، ص ۳۵۱، باب ۱۰، حدیث۷۷۔

सात लोगों की अज़मत और महानता के मुक़ाबले में ज़मीन तंग है , लोगों को उनके ज़रिये से रोज़ी मिलती है , उन ही के वसीले से अल्लाह की मदद और बारिशें बरसती हैं। वह सात लोग सलमाने फ़ारेसी , मिक़दाद , अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी , अम्मार व हुज़ैफ़ा हैं , उन पर अल्लाह की रहमत हो और हज़रत अली अलैहिस सलाम हमेशा फ़रमाते थे कि मैं उन सब का इमाम हूं और यह वह लोग हैं जिन्होने फ़ातेमा सलामुल्लाहे अलेहा के जनाज़े पर नमाज़ पढ़ी है।

इंसान से ख़ुदा का इश्क़ , धार्मिक आध्यात्म , हिदायत व मार्ग दर्शन की पैरवी व अनुसरण आदि ऐसे लक्षण हैं जो अहलेबैत अलैहिमुस सलाम के साथ दिली संबंध , उनके साथ मुहब्बत और आध्यात्मिक सामजिकता व समाजी व्यवहार से वुजूद में आते हैं।

दो सच्चे व वास्तविक मित्र

सईद बिन मुसय्यब में ईश्वर भक्ति , ज़ोहद व तक़वा और फ़िक़ह व हदीस जैसे तमाम कमालात जमा हो गये हैं।

हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम ने उनके वास्तविक शिया होने की गवाही दी है और हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम उनके बारे में फ़रमाते हैं:

सईद बिन मुसय्यब अपने ज़माने में धर्मशास्त्र के सबसे बड़े विद्धान थे।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम उनके सिलसिले में फ़रमाते हैं: आप इमाम अली बिन हुसैन अलैहिस सलाम के भरोसेमंद थे।

सईद की एक बेटी बहुत ही सुन्दर अध्यात्म और आकर्षक व्यक्तित्व की मालिक थी। अब्दुल मलिक बिन मरवान ने अपने बेटे हुशाम के लिये उसका रिश्ता मांगा तो उन्होने मदीने के गवर्नर , जिसके ज़रिये से यह रिश्ता आया था , उसे जवाब दिया कि मैं कभी भी यह रिश्ता स्वीकार नही कर सकता , मैं अपनी बेटी की शादी बादशाह के बेटे से हरगिज़ नही करूंगा।

एक दिन उन्होने अपने एक शिष्य से जिसको आप धर्म शास्त्र पढ़ाते थे , कहा: कई दिन से तुम क्लास में क्यों नही आ रहे हो ? उसने कहा: उस्ताद मेरी जवान बीवी का स्वर्गवास हो गया है उसी सिलसिले में मैं कई दिन से दुनिया के कामों में फंसा हुआ हूं जिसके कारण क्लास में नही आ पा रहा हूं। आपने उससे कहा: बिना बीवी के ज़िन्दगी न गुज़ारो और शादी करने में जल्दी करो। उसने कहा: उस्ताद मेरे पास माले दुनिया में से सिर्फ़ दो दिरहम है और शादी के लिये पैसों की आवश्यकता पड़ती है। उस्ताद ने कहा: दुनिया और पैसे की परवाह मत करो। उसके बाद अपनी बेटी की शादी उससे कर दी और उसको तंहाई की परेशानी से निजात दिला कर उसकी ज़िन्दगी को अच्छा बना दिया।

वह शागिर्द कहता है कि चालीस साल से उस्ताद किसी के घर नही गये थे , लेकिन जिस दिन उन्होने अपने बेटी की निकाह मुझसे पढ़ा , मग़रिब के समय दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई , मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि उस्ताद खड़े हैं , अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दिया और चले गये।

मैंने उनकी बेटी से पूछा: तुम्हारे पास ज़ेवर व माल वग़ैरह में से क्या है ? उसने कहा: पूरे क़ुरआन की हाफ़िज़ हूं। मैंने पूछा: तुम्हारा मेहर क्या है ? उसने कहा: मुझे हदीस याद कराओ। मैंने कहा:

جھاد المراة حسن التبعل “ ۔ ।

औरत का जिहाद , शौहर के साथ अच्छा सुलूक करना है।

सईद बिन मुसय्यब जिन्होने अहलेबैत अलैहिमुस सलाम की पाठशाला में प्रशिक्षण प्राप्त किया था और इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम के आशिक़ थे , कहते हैं कि एक बार मदीने में सूखा पड़ गया और बहुत दिन तक बारिश नही हुई , सारे लोग नमाज़े इसतिसक़ा और दुआ के लिये सहरा में गये। मैं भी उनके साथ नमाज़ और दुआ की जगह पर गया लेकिन मैंने उस भीड़ की दुआ को स्वीकार्य योग्य और बारिश होने के लायक़ नही पाया।

इसी दौरान एक काले ग़ुलाम को देखा जो एक टीले के पास ज़मीन पर सर को रख कर ख़ुज़ू व खुशू और पाक नीयत के साथ बारिश होने की दुआ कर रहा था , उसकी दुआ स्वीकार हो गई , पूरे इलाक़े में बादल छा गये और आसमान से मूसलाधार बारिश होने लगी।

दुआ के बाद वह शहर की ओर जाने लगा मैं उसके पीछे चल दिया ता कि उसके घर को देखूं और उसका शुक्रिया अदा करूं , वह पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम के घर के पास इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम के घर में दाख़िल हो गया।

मैं इमाम सेवा में गया और मैंने उनसे प्रार्थना की कि वह उस ग़ुलाम को मुझे दे दें ताकि मैं उसे अपने घर ले जा कर उसकी सेवा करूं। आपने आदेश दिया कि तमाम ग़ुलामों को हाज़िर किया जाये लेकिन वह उन ग़ुलामों के दरमियान नही था , मैंने कहा मुझे इन में से किसी की आवश्यकता नही है क्यों कि जिस की तलाश है वह इन में नही है। आपसे कहा गया केवल एक ग़ुलाम बाक़ी रह गया है जो इस्तबल में काम करता है। फ़रमाया: उसको भी बुलाओं। मैंने इमाम अलैहिस सलाम से कहा: मुझे उस ग़ुलाम की ज़रुरत है आपने ग़ुलाम से फ़रमाया: मैंने तुम्हे सईद को बख़्श दिया है वह ग़ुलाम रोते हुए कहना लगा , सईद मुझे इमाम से जुदा न करो , मैं एक मिनट भी अपने इमाम से दूर होने की ताक़त नही रखता।

मैंने उसको छोड़ दिया और चला गया , मेरे जाने के बाद उसने अपना भेद खुल जाने की वजह से ख़ुदा की बारगाह में दुआ की कि उसको अपने पास बुला ले। इस बात की अभी कुछ ही देर गुज़री थी कि इमाम सज्जाद अलैहिस सलाम ने मुझे उस ग़ुलाम के जनाज़े में शिरकत करने के लिये बुलवाया।

अहले बैत अलैहिमुस सलाम के चाहने और मानने वाले इंसानो की हिदायत के लिये अल्लाह की तरफ़ से नियुक्त हुए हैं। उनका अस्तित्व नूरी और मलकूती है और उनका वुजूद और उनका अमल चूंकि हक़ के दायरे में होता है लिहाज़ा वह इस संसार की आंतरिक अर्थव्यवस्था से संतुलित रहता है और यह संतुलन उनकी प्रसिद्धी का कारण बनता है और इसी वजह से यह आसमान और ज़मीन वालों में पसंद किये जाते हैं।

ज़ियारते अमीनुल्लाह में बयान हुआ है:

محبة لصفوة اولیائک محبوبة فی ارضک و سمائک مشتاقة الی فرحة لقائک “ ۔

ऐ ईश्वर , मुझे अपने औलिया का आशिक़ और चाहने वाला बना दे और ज़मीन व आसमान वालों के दरमियान महबूब व पसंदीदा बना दे........ अपनी ज़ियारत की ख़ुशहाली का मुश्ताक़ क़रार दे।

ابواب الاجابة لھم مفتحة “ ۔

दुआ के स्वीकार होने के दरवाज़े को उनके लिये खोल दे।

यह आध्यात्मिक व ज़ाहिरी संबंध उनकी प्रगति , धर्म में दृढ़ता और कमाल तक पहुचने और दुनिया व आख़िरत में उन की दुआ के क़बूल होने का सबब है।

जो इंसान ख़ुदा से दूर अंबिया और अइम्मा अलैहिमुस सलाम की जानकारी न होने की वजह से गुमराही की वादी में क़दम रखता है। उसका अंदरुन विभिन्न प्रकार की बुराईयों से भर जाता है और उसका ज़ाहिर विभिन्न प्रकार के पापों में डूब जाता है और इस संसार की अर्थव्यवस्था से उसकी संबंध ख़त्म हो जाता है।

वह नीचे की ओर गिरने लगता है और अगर फिर भी न जागे और तौबा न करे तो उनको कुछ भी नसीब नही होगा।

वह पाक व पवित्र दिलों को महबूब नही हो सकता। मुश्किलों में उसकी कोई सहायक नही है और उसकी दुआ स्वीकार नही होगी।

चौहदवीं का चांद किसी के लिये दो टुकड़े हो जाता है , सूख़ा कूंवा किसी के पवित्र मुंह से निकलने वाले से थूक से पानी से भर जाता है , किसी के सूखे पेड़ से टेक लगाने से वह हरा भरा हो जाता है , क्यों कि उनका वुजूद सदाचार व आचरण , ज़ाहिर व बातिन , ईमान व नेक अख़लाक़ और नेक कामों की वजह से इस संसार की आंतरिक अर्थव्यवस्था से संतुलित है।

हज़रत इमाम अली अलैहिस सलाम और निर्धन व्यक्ति

एक दिन एक निर्धन व्यक्ति अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम के दरवाज़े पर आया , आपने अपने बेटे इमाम हसन अलैहिस सलाम से कहा कि बेटा हसन अपनी अम्मी से कुछ पैसे लाकर इस ग़रीब को दे दो। इमाम हसन अलैहिस सलाम ने कहा: बाबा जान हमारे पास कुछ छ: दिरहम हैं जिससे हमें आटा ख़रीदना है , किस तरह से हम इस पैसे को उस ग़रीब आदमी को दे दें ? अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम ने फ़रमाया: मेरे बेटे यह जान लो कि सच्चा मोमिन वह है जो अपने पास मौजूद हर चीज़ से ज़्यादा उस पर ईमान रखता हो जो ख़ुदा के पास है , उसके बाद फ़रमाया: यह सारे दिरहम उस ग़रीब को दे दे।

इमाम अली अलैहिस सलाम अभी कुछ ही दूर गये थे कि आपकी मुलाक़ात एक आदमी से हुई जो अपने ऊंट को बेचना चाहता था , आपने ऊंट के मालिक से फ़रमाया: तुम्हारे ऊंट की क़ीमत कितनी है ? उसने कहा एक सौ चालीस दिरहम , आपने फ़रमाया: मैं इस ऊंट को ख़रीदना चाहता हूं लेकिन इसकी क़ीमत आठ दिन में अदा करूंगा , ऊंट के मालिक ने स्वीकार कर लिया और मामला तय हो गया।

अभी कुछ ही देर गुज़री थी कि एक राहगीर ने ऊंट को बंधे हुए देखा तो उसको ख़रीदने का दिल चाहने लगा। उसने आपसे कहा: इस ऊंट की कितनी क़ीमत है। आपने फ़रमाया: दो सौ दिरहम , उस राहगीर ने उस ऊंट को ख़रीद लिया और क़ीमत आपके हवाले कर दी , आपने एक सौ चालीस दिरहम ऊंट के पहले मालिक को दिये और साठ दिरहम घर ले कर आ गये। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्ला अलैहा ने पूछा यह पैसे कहां से आये ? आपने फ़रमाया: यह ख़ुदा के कलाम पर गवाह है जो आपके वालिद पर नाज़िल हुआ है।

من جاء بالحسنة فلہ عشر امثالھا ۔ ।

जो भी नेक काम करेगा उसको दस बराबर जज़ा मिलेगी।

हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम की कृपा

एक बार मैं एक ऐसे आबिद व ज़ाहिर इंसान से मिला जो अपनी बूढ़ी मां की सेवा करते थे , कभी कभी मैं इस आध्यात्मिक फ़ायदे के लिये उनके पास जाता था और उनके आध्यात्मिक कमाल से फ़ायदा उठाने के अलावा उनके ज्ञान और इल्म से भी लाभ उठाता था। एक दिन जब वह अपने अध्यात्म की बुलंदी और प्रकाशमय इरफ़ान में झूम रहे थे तो उन्होने मुझ से एक वाक़ेया नक़्ल किया और कहा:

एक आरिफ़ , बसीर , मुत्तक़ी व परहेज़गार विद्धान से मेरी जान पहचान हुई और मुझे उनके पास जाने की तौफ़ीक़ नसीब हुई। वह विद्धान , गर्मियों के दिनों में हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहि सलाम की ज़ियारत के लिये पवित्र शहर मशहद गये। वहा से वापसी पर मैं उनसे मिलने के लिये गया ता कि वह ज़ियारत के अध्यात्मिक फ़ायदों की मुझ से चर्चा करें।

उन्होने सफ़र का वर्णन इस तरह से शुरु किया कि कई साल से मैं हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम की ज़ियारत के लिये नही जा सका था और मेरा दिल बहुत परेशान था। मेरे घर वाले भी पवित्र शहर मशहद की ज़ियारत के लिये बहुत ज़्यादा ज़ोर देने लगे थे और चूंकि मैं फलों में आड़ू को ज़्यादा पसंद करता था और मशहद के फलों में आड़ू बहुत ज़्यादा मशहूर हैं लिहाज़ा मैंने अपने घरवालों से वादा किया कि जब आड़ू की फ़स्ल आयेगी तो तुम सबको मशहद ले कर जाऊंगा।

फिर जब आड़ू की फ़स्ल आई तो मैं सबको लेकर मशहद गया और एक घर में ठहर गया , ज़ियारत पर जाने से पहले आराम करने के लिये बिस्तर पर लेट गया ताकि कुछ देर आराम करके ज़ियारत के लिये जाऊं।

जब मुझे नींद आ गई तो मैंने ख़्वाब में देखा कि मस्जिदे गौहर शाद के सहन में दाख़िल हुआ और ज़ियारत के इरादे से उस तरफ़ बढ़ा जहां अंदर जाने से पहले जूते जमा किये जाते हैं। मैं उधर गया और अपने जूते रखवा कर रौज़े में अंदर दाख़िल होने के लिये आगे बढ़ा तो मुझे एक बड़ा सा दरवाज़ा नज़र आया जिसके पास एक नूरानी चेहरे वाले बुज़ुर्ग बहुत ही सभ्य अंदाज़ में ख़ड़े हुए थे। मैंने उनसे कहा: यह दरवाज़ा कहां पर खुलता है ? उन्होने कहा कि यह उस हाल में खुलता है जहा अध्यात्मिक मजलिस हो रही है और इंसान के बातिन , आत्मा और नफ़्स के बारे में तक़रीरें हो रही हैं और इस समय जो मजलिस हो रही है उसमें हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम भी मौजूद हैं। मैंने उस सुरक्षा कर्मी से कहा कि मैं भी इस ज्ञान को प्राप्त करना चाहता हूं लिहाज़ा मेरे लिये अंदर जाने की आज्ञा ले आओ , वह सुरक्षाकर्मी बड़े ही अदब के साथ अंदर गया और कुछ देर बाद वापस आकर कहने लगा कि इमाम अली रज़ा ने फ़रमाया है कि पहले अपने पेट को आड़ू से सेर कर लो , उसके बाद हमारी ज़ियारत के लिये आओ।

जी , हां , मेरी ज़ियारत का इरादा आड़ू खाने से मिल गया था और मेरे मौला ने मेरी हिदायत फ़रमाई कि आज के बाद ज़ियारत की नीयत हवा व हवस से पाक होना चाहिये।

ज़ुहैर बिन क़ैन बजली

ज़ुहैर बिन क़ैन बजली , अरब जगत के एक बहुत बहादुर और प्रसिद्ध इंसान और अपने क़बीले के सरदार थे। वह अक़ीदे व अमल के ऐतेबार से उस्मान बिन अफ़्फ़ान के अनुयाई थे और उसी वातावरण में जीवन यापन कर रहे थे।

वह हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस सलाम को नही पहचानते थे और आपके वुजूद की मारेफ़त नही रखते थे। इसी वजह से उन्होने उस्मानी समुदाय को अपना रखा था। मक्के से कूफ़े के रास्ते में वह इमाम हुसैन अलैहिस सलाम के सामने नही आना चाह रहे थे इसी लिये जब इमाम हुसैन अलैहिस सलाम का क़ाफ़िला आराम करने के लिये रुकता था तो वह नही रुकते थे और जब इमाम अलैहिस सलाम का क़ाफ़िला चलने के लिये तैयार होता तो वह अपना क़ाफ़िलो रोक लेते। एक बार इत्तेफ़ाक़ से दोनो क़ाफ़िले एक साथ एक ही जगह पर ठहर गये। ज़ोहर के समय ज़ुहैर खाना खाने के लिये दस्तर ख़्वान पर बैठे तो इमाम हुसैन अलैहिस सलाम का दूत ख़ैमे में दाख़िल हुआ और कहा: हुसैन की दावत को स्वीकार कर लो। ज़ुहैर ने कहा: मुझे हुसैन से कोई काम नही है। उनकी बीवी ने पर्द के पीछे से आवाज़ दी तुम्हे शर्म नही आती कि हुसैन की दावत को क़बूल नही कर रहे हो ?

नेक और सालेह बीवी के कहने पर ज़ुहैर इमाम हुसैन अलैहिस सलाम के ख़ैमे में गये , कुछ देर तक इमाम की नूरानी महफ़िल में बैठे और उन्ही चंद लम्हों में इमाम हुसैन अलैहिस सलाम की मारेफ़त की तौफ़ीक़ नसीब हो गई और उन्होने इमाम हुसैन अलैहिस सलाम के वास्तविक वुजूद को पहचान लिया और आपके आशिक़ हो गये और जब उन्होने इमाम हुसैन अलैहिस सलाम के मअनवी और इलाही सुन्दरता को देखा तो फिर एक लम्हे के लिये भी आपसे अलग नही हुए। यहां तक कि आशूर के दिन जब इमाम अलैहिस सलाम ज़ोहर की नमाज़ के लिये खड़े हुए तो वह आपके सामने ढाल की तरह खड़े हो गये और इमाम अलैहिस सलाम को दुश्मनों के तीरों से बचाये रखा लेकिन ख़ुद जामे शहादत नोश कर लिया और हक़ व हक़ीक़त के आशिक़ों के दरमियान अपना नाम हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में लिखवा लिया।

آن دل کہ ز عشق چو غنچہ شکفت ہر نکتہ کہ گفت ز حسن تو گفت

بیدار غمت از صبح ازل تا شام ابد ، یک لحظہ نخفت

گوش دل ہر ہشیار دلی ہر نغمہ شنفت ہم از توشنفت

مژگان من دل رفتہ ز دست جز خاک رہ کوی تو نرفت

از اشک و سر شک روان دلم پیداست حقیقت راز نھفت

آن دل کہ نگشتہ ز طاقت طاق حاشا کہ بود با عشق تو جفت

این غم کہ نصیب مفتقر است ہرگز ندھد از دست بہ مفت ( ۱ ) ।

वह दिल जो इश्क़ में कलियों की तरह खिल जाता है ,

और जो ज़िक्र भी होता है तेरे हुस्न का होता है।

तेरे ग़म का मारा यह दिल सुबहे अज़ल से शामे अबद तक

जाग रहा है और एक लम्हे को भी नही सोता।

इंसान , औलिया ए इलाही की संगत में रह कर इंसानी हालात की पस्ती से निकल कर भक्ति व बंदगी के कमाल पर पहुच जाता है। सिफ़ाते नासूतिया से निकल कर सिफ़ाते लाहूतिया से आरास्ता हो जाता है। यही बात दुआ की वास्तविकता में छुपी हुई बयान हुई है:

” وفقنا اللہ و ایاکم للترقی من حضیض البشریة الی ذروة العبودیة،و رزقنا اللہ و ایاکم للتخلی عن صفات الناسوتیة والتجلی بالصفات اللاھوتیة “ ۔ ।

बहादुरी की मेराज

मुहम्मद बिन अबी उमैर का शुमार हज़रत इमाम मूसा बिन जाफ़र अलैहिमस सलाम के सहाबियों में होता है। बनी अब्बास के शासक ने आपका सारा माल सिर्फ़ इस लिये छीन लिया कि आप सारे शियों के नाम जानते थे और आपने वह नाम उसको नही बताये थे और सिर्फ़ इसी जुर्म में चार साल तक आपको जेल में डाले रखा।

जब आपकी क़ैद का समय पूरा हो गया तो आपको बुलाया गया और दोबारा से सारे शियों के नाम और पते पूछे गये मगर आपने फिर भी उन्हे नही बताया।

बनी अब्बास के शासक के आदेश पर आपको इतने कोड़े मारे गये कि आपके बदन से ख़ून बहने लगा और आप बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर पड़े और उसके बाद एक ज़माने तक आपका जिस्म ज़ख़्मी रहा। उसके अलावा आपके पास एक भी पैसा बाक़ी नही रहा जिससे रोज़ी का कोई ज़रिया बनता और आप अपने घर वालों के लिये जीवन यापन के लिये कुछ उपाय करते।

एक दिन किसी ने आपके घर का दरवाज़ा खटखटाया जब आपने दरवाज़ा खोला तो एक आदमी दस हज़ार दिरहम का एक थैला लिये खड़ा था , उसने मुहम्मद बिन उमैर से कहा कि इस पैसे को मुझ से स्वीकार करो। पैसा लेकर आने वाला एक व्यापारी था जिसका दिवालिया निकल चुका था वह व्यापारी मुहम्मद बिन उमैर के साथ व्यापार में साझी था और उस पर मुहम्मद बिन उमैर के दस हज़ार दिरहम बाक़ी थे। आपने उससे कहा कि तुम्हे तो व्यापार में नुक़सान हो गया था। यह पैसा कहां से आया क्या तुम्हे कोई मीरास मिली है ? उसने कहा , नही। मुहम्मद ने कहा तो क्या तुम्हे यह पैसा किसी ने तोहफ़े में दिया है ? उसने कहा , नही। मुहम्मद ने कहा तो क्या तुम्हारे पास कोई बाग़ या ज़मीन थी जिसको बेच कर तुमने यह पैसा हासिल किया है ? उसने कहा , नही। तो आपने पूछा फिर यह पैसा कहां ले लाये हो ? उसने कहा कि अगरचे मुझे व्यापार में घाटा हुआ और मैं दिवालिया हो गया लेकिन मैंने सोचा कि तुम कई साल तक जेल में रहे हो और तुम्हारा सारा पैसा हुकूमत ने ले लिया है और अब जब तुम आज़ाद हुए हो तो तुम्हारे पास न कोई माल है न ताक़त कि अपने बच्चों के लिये रोज़ी का कोई बंदोबस्त कर सको। इसी वजह से मुझे तुम्हारे हाल पर रहम आया लिहाज़ा जिस घर में मैं और मेरे बच्चे रहते थे मैंने उसको बेच कर तुम्हारा उधार चुकाने का हौसला किया है और यह पैसा लाया हूं।

मुहम्मद बिन उमैर ने कहा: मेरा हालत यही है जो तुमने बयान की है और इस समय भी मुझे पैसों की आवश्यकता है लेकिन ईश्वर की सौगंध मैं तुम्हारा यह एक दिरहम भी स्वीकार नही कर सकता क्यों कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम से रिवायत है कि आपने फ़रमाया: क़र्ज़ की वजह से इंसान को अपने घर और पैदा होने की जगह को नही बेचना चाहिये लिहाज़ा अब तुम वापस जाओ और इस पैसे को वापस करके अपने घर को वापस ले लो।