क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान लेखक:
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 20015
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

है यही ख़ालिक़ की अदालत का तक़ाज़ा दम ब दम

जान लेवा है अगर कोई , तो जां परवर भी हो

छुप के जब जब परदे में बहकाता है इबलीसे लईं

है तक़ाज़ा अद्ल का , परदे में एक रहबर भी हो।।

साबिर थरयानी ‘‘कराची ’’

या इलाही मेहदियम , अज़ ग़ैब आर

त बगरदुद , दर जहाँ अदल आशकार

इमामे ज़माना हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) सिलसिलए अस्मते मोहम्मदिया की चौदहवीं और सिल्के इमामते अलविया की बारहवीं कड़ीं हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) और वालेदा माजेदा नरजिस ख़ातून 1 थीं।

आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस , मासूम , आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात हैं। आप बचपन ही में इल्मों हिकमत से भर पूर थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 )

आपको पांच साल की उम्र में वैसी ही हिकमत दे दी गई थी जैसी हज़रते यहिया को मिली थी , और आप बतने मादर में उसी तरह इमाम क़रार दिये गये थे जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) नबी क़रार पाये थे।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 130 )

आप अम्बिया से बेहतर हैं।(एसआफ़ुल राग़ेबीन पेज न 128 ) आपके मुताअल्लिक़ हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) ने बेशुमार पेशीन गोईयां फ़रमाई हैं और इसकी वज़ाहत की है कि आप हुज़ूर की इतरत और हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) की औलाद से होंगे। मुलाहेज़ा हों(जामए सग़ीर सियूती पृष्ठ 160 प्रकाशित मिस्र व मसनद अहमद बिन हम्बल जिल्द 1 पृष्ठ 84 प्रकाशित मिस्र व कन्ज़ुल हक़ाएक़ पृष्ठ 122 व मुस्तदरिक जिल्द 4 पृष्ठ 520 व मिशकात शरीफ़)

आपने यह भी फ़रमाया कि इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़ुहूर आखि़र ज़माने में होगा और हज़रते ईसा (अ.स.) उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे। मुलाहेजा़ हो सही बुख़ारी पारा 1 4 पृष्ठ 399 व सही मुस्लिम जिल्द 2 पृष्ठ 95 सही तिर्मिज़ी पृष्ठ 270 व सही अबू दाऊद जिल्द 2 पृष्ठ 210 व सही इब्ने माजा पृष्ठ 204 व पृष्ठ 209 व जामए सग़ीर पृष्ठ 134 व अनवारूल हक़ाएक़ पृष्ठ 90) आपने यह भी कहा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) मेरे ख़लीफ़ा की हैसियत से ज़हूर करेंगे और यख़तमुद्दीन बेही कमा फ़तेह बना जिस तरह मेरे ज़रिये से दीने इस्लाम का आग़ाज़ हुआ उसी तरह उनके ज़रिये से मुहरे एख़तेताम लगा दी जायेगी। मुलाहेज़ा हो कन्ज़ुल हक़ाएक़ पृष्ठ 209 ।

आपने इसकी भी वज़ाहत फ़रमाई है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का असल नाम मेरे नाम की तरह मोहम्मद और कुन्नियत मेरी कुन्नियत की तरह अबुल का़सिम होगी। वह जब ज़हूर करेंगे तो सारी दुनिया को अदल व इन्साफ़ से उसी तरह पुर कर देंगे जिस तरह वह उस वक़्त ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। मुलाहेज़ा हो , जामए सग़ीर पृष्ठ 104 व मुस्तदरिक इमाम हाकिम पृष्ठ 422 व 495 । ज़हूर के बाद उनकी फ़ौरन बैअत करनी चाहिये क्यों कि वह ख़ुदा के ख़लीफ़ा होंगे।(सनन इब्ने माजा उर्दू पृष्ठ 261 प्रकाशित किराची 1377 हिजरी)

हाशिया : 1. नरजिस एक यमनी बूटी को कहते हैं जिसके फूल की शोअरा आंखों से तशबीह देते हैं।(अल मुंजद पृष्ठ 835 ) मुन्तहुल अदब जिल्द 4 पृष्ठ 2227 में है कि यह जुमला दख़ील और मआरब यानी किसी दूसरी ज़बान से लाया गया है। सराह पृष्ठ 425 और अल मआत सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 47 में है कि यह लफ़्ज़ नरजिस , नरगिस से मआरब है जो कि फ़ारसी है। रिसाला आजकल लखनऊ के सालनामा 1947 ई. के पृष्ठ 118 में है कि यह लफ़्ज़ यूनानी नरकोस से मआरब है। जिसे लातीनी में नरकसस और अंग्रेज़ी में नरसेसिस कहते हैं।

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत ब सआदत

मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत ब सअदत 15 शाबान 225 हिजरी यौमे जुमा बवक़्ते तुलूए फ़जर वाक़े हुई है। जैसा कि दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़ इब्नुल वरदी , नियाबुल मोवद्दता ,, तारीख़े कामिल , तबरी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिलाउल उयून , उसूले काफ़ी ,, नूरूल अबसार , इरशाद , जामए अब्बासी , आलामु वुरा और अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा में मौजूद है।

बाज़ उलेमा का कहना है कि विलादत का सन् 256 हिजरी और माद्दए तारीख़ नूर है। यानी आप शबे बराअत के एख़तेताम पर बवक़्ते सुबहे सादिक़ आलमे ज़हूर व शहूद में तशरीफ़ लाये हैं।

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़ मैं हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के पास गई तो आपने फ़रमाया कि ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये , क्यों कि ख़ुदा वन्दे आलम मुझे आज एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैंने कहा यह फ़रज़न्द किस के बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि बतने नरजिस से मुतावल्लिद हो गा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मैं तो नरजिस में कुछ भी हमल के आसार नहीं पाती , इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है , जिस तरह हज़रते मूसा का हमल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नहीं हुआ उसी तरह मेरे फ़रज़न्द का हमल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम के फ़रमाने से उस वक़्त वहीं रही। जब आधी रात गुज़र गई तो मैं उठी और नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल हो गई , और नरजिस उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल में यह ख़्याल गुज़रा कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने जो कहा था वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम (अ.स.) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी , ऐ फुफी ! जल्दी न किजिये , हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिलकुल क़रीब है। यह सुन कर मैं नरजिस के हुजरे की तरफ़ पलटी , नरजिस मुझे रास्ते में ही मिलीं , मगर उनकी हालत उस वक़्त मुताग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं और उनका सारा जिस्म कांप रहा था।(अल बशरा , शराह मोअद्दतुल क़ुरबा पृष्ठ 139 )

मैंने यह देख कर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और सूरा ए क़ुल हो वल्लाह , इन्ना अनज़लना व आयतल कुरसी पढ़ कर उन पर दम किया। बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी , यानी मैं जो कुछ पढ़ती थी वह बच्चा भी बतने मादर में वही कुछ पढ़ता था। उसके बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। अब जो मैं देखती हूं तो एक मौलूद मसऊद ज़मीन पर सजदे में पड़ा हुआ है। मैंने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़न्द को मेरे पास लाईये। मैं ले गई , आपने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और ज़बान दर दहाने वै क़रद और अपनी ज़बान बच्चे के मूँह में दे दी और कहा कि ऐ फ़रज़न्द , ख़ुदा के हुक्म से बात करो , बच्चे ने इस आयत बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम व नर यदान नमन अल्ल लज़ीना असतज़अफ़रा फ़िल अर्ज़ व नजअल हुम अल वारीसैन की तिलावत की जिसक तरजुमा यह है , कि हम चाहते हैं कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गए हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रूए ज़मीन का वारिस क़रार दें।

इसके बाद कुछ सब्ज़ तारों ने आकर हमें घेर लिया , इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उन मे से एक तारे को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा ख़दह फ़ा हिफ़ज़हू इसको ले जा कर इसकी हिफ़ाज़त करो यहां तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्यो कि ख़ुदा अपने हुक्म को पूरा कर के रहेगा। मैंने इमाम हसन असकरी (अ.स.) से पूछा कि यह तारा कौन था और दूसरे तारे कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्राईल थे और वह दूसरे फ़रिश्तगाने रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी इस फ़रज़न्द को उसकी माँ के पास ले आओ ताकि उसकी आंखें खुनुक हों और महजून व मग़मूम न हो और यह जान ले कि ख़ुदा का वादा हक़ है। व अकसरहुम ला यालमून लेकिन अकसर लोग इसे नहीं जानते इसके बाद इस मौलूदे मसऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 212 प्रकाशित लखनऊ 1905 0 )

अल्लामा हायरी लिखते हैं कि विलादत के बाद आपको जिब्राईल परवरिश के लिये उड़ा ले गये।(ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 75 )

किताब शवाहेदुन नबूवत और वफ़यातुल अयान व रौज़ातुल अहबाब में है कि जब आप पैदा हुए तो मख़्तून और नाफ़ बुरीदा थे और आपके दाहिने बाज़ू पर यह आयत मन्कूश थी। जाअल अक़्क़ो वा ज़ाहाक़ल बातिल इन्नल बातेला काना ज़हूक़ा यानी हक़ आया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही के का़बिल था। यह क़ुदरती तौर पर बहरे मुताक़ारिब के दो मिसरे बन गये हैं। हज़रत नसीम अमरोहवी ने इस पर क्या ख़ूब तज़मीन की है। वह लिखते हैं

चश्मो , चराग़ दीदए नरजिस

ऐने ख़ुदा की आँख का तारा

बदरे कमाल , नीमए शाबान

चौदहवां अख़्तर औज बक़ा का

हामिए मिल्लत माहिए बिदअत

कुफ्र मिटाने ख़ल्क़ में आया

वक़्ते विलादत माशा अल्लाह

कु़रआन सूरत देख के बोला

जाअल अक़्क़ो वल हक़्क़ुल बातिल

इन्नल बातेला काना ज़हुक़ा

मोहद्दिस देहलवी शेख़ अब्दुल हक़ अपनी किताब मनाक़िबे आइम्मा अतहार में लिखते हैं कि हकीमा ख़ातून जब नरजिस के पास आईं तो देखा कि एक मौलूद पैदा हुआ है। जो मख़तून और मफ़रूग़ मुंह है यानी जिसका ख़तना किया हुआ है और नहलाने धुलाने के कामों से जो मौलूद के साथ होते हैं बिलकुल मुसतग़नी है। हकीमा ख़ातून बच्चे को इमाम हसन असकरी (अ.स.) के पास लाईं , इमाम ने बच्चे को लिया और उसकी पुश्ते अक़दस और चश्मे मुबारक पर हाथ फेरा। अपनी ज़बाने मुतहत उनके मुंह में डाली और दाहिने कान में अज़ान और बाएं में अक़ामत कही। यही मज़मून फ़सल अल ख़त्ताब और बेहारूल अनवार में भी है। किताब रौज़तुल अहबाब और नियाबुल मोवद्दता में है कि आपकी विलादत बमुक़ाम सरमन राय ‘‘सामरह मे हुई है।

किताब कशफ़ल ग़म्मा पृष्ठ 120 में है कि आपकी विलादत छिपाई गई और पूरी सई की गई कि आपकी पैदाईश किसी को मालूम न हो सके। किताब दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 194 में है कि आपकी विलादत इस लिये छिपाई गई कि बादशाहे वक़्त पूरी ताक़त के साथ आपकी तलाश में था। इस किताब के पृष्ठ 192 में है कि इसका मक़सद यह था कि हज़रते हुज्जत को क़त्ल कर के नस्ले रिसालत का ख़ात्मा कर दे।

तारीख़े अबूल फ़िदा में है कि बादशाहे वक़्त मोतज़ बिल्लाह था। तज़किरए ख़वासुल उम्मता में है कि उसी के अहद में इमाम अली नकी़ (अ.स.) को ज़हर दिया गया था। मोतज़ के बारे में मुवर्रेख़ीन की राय कुछ अच्छी नहीं है। तरजुमा तारीख़ अल खुलफ़ा अल्लामा सियूती के पृष्ठ 363 में है कि उसने अपनी खि़लाफ़त में अपने भाई को वली अहदी से माज़ूल करने के बाद कोड़े लगवाये थे और ता हयात क़ैद में रखा था। अकसर तवारीख़ में है कि बादशाहे वक़्त मोतमिद बिन मुतावक्किल था जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर से शहीद किया। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 67 में है कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल कमज़ोर मतलून मिज़ाज और ऐश पसन्द था। यह अय्याशी और शराब नोशी में बसर करता था। इसी किताब के पृष्ठ 29 में है कि मोतमिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर से शहीद करने के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करने के दरपए हो गया था।

आपका नसब नामा

आपका पदरी नसब नामा यह है। मोहम्मद बिन हसन बिन अली बिन मोहम्मद बिन अली इब्ने मूसा इब्ने जाफ़र बिन मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली व फ़ात्मा बिन्ते रसूल अल्लाह (स अ व व ) यानी आप फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) , दिल बन्दे अली (अ.स.) और नूरे नज़र बुतूल (स अ व व ) हैं। इमाम अहमद बिन हम्बल का कहना है कि इस सिलसिलाए नसब के असमा को अगर किसी मजनून पर दम कर दिया जाए तो उसे यक़ीनन शिफ़ा हासिल होगी।(मसनद इमाम रज़ा पृष्ठ 7 ) आपका सिलसिलाए नसब मां की तरफ़ से हज़रत शमऊन बिन हमून अल सफ़आ वसी हज़रत ईसा तक पहुँचता है।

अल्लामा मजलिसी और अल्लामा तबरी लिखते हैं कि आपकी वालेदा जनाब नरजिस ख़ातून थीं। जिनका नाम मलीका भी था। नरजिस ख़ातून यशूआ की बेटी थीं जो राम के बादशाह क़ैसर के फ़रज़न्द थे सिनका सिलसिलाए नसब वसीए हज़रते ईसा (अ.स.) जनाब शमऊन तक पहुँचता है। 13 साल की उम्र मे क़ैसरे रोम ने चाहा था कि नरजिस का अक़्द अपने भतीजे से कर दे लेकिन बाज़ क़ुदरती कु़दरती हालात की वजह से वह इस मक़सद में कामयाब न हो सका। बिल आखि़र एक ऐसा वक़्त आ गया कि आलमे अरवाह में हज़रते ईसा (अ.स.) , जनाबे शमऊन हज़रते मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) और जनाबे फ़ात्मा (स अ व व ) बमक़ाम क़सरे क़ैसर जमा हुए। जनाबे सय्यदा(स. अ.) ने नरजिस ख़ातून को इस्लाम की तलक़ीन की और आं हज़रत (स अ व व ) बतवस्सुत हज़रत ईसा (अ.स.) जनाबे शमऊन से इमाम हसन असकरी (अ.स.) के लिये नरजिस ख़ातून की ख़्वास्गारी की , निस्बत की तकमील के बाद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने एक नूरी मिम्बर पर बैठ कर अक़्द पढ़ा और कमाले मसर्रत के साथ यह महफ़िले निशात बरख़्वास्त हो गई। जिसकी इत्तेला जनाबे नरजिस को ख़्वाब के तौर पर हुई। बिल आखि़र वह वक़्त आया कि जनाबे नरजिस ख़ातून हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में आ पहुँची और आपके बतने मुबारक से नूरे ख़ुदा का ज़हूर हुआ।(किताब जिलाउल उयून पृष्ठ 298 व ग़ाएतुल मक़सूद पृष्ठ 175 )

आपका इस्मे गिरामी

आपका नामे नामी व इस्मे गिरामी मोहम्मद और मशहूर लक़ब मेहदी है। उलेमा का कहना है कि आपका नाम ज़बान पर जारी करने की मुमानिअत है।

अल्लामा मजलिसी इसकी ताईद करते हुए फ़रमाते हैं कि हिकमत आन मख़्फ़ी अस्त इसकी वजह पोशीदा और ग़ैर मालूम है।(जिलाउल उयून)

उलेमा का बयान है कि आपका यह नाम खुद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने रखा था। मुलाहेज़ा हो रोज़ातुल अहबाब व नियाबुल मोअद्दता।

मुवर्रिख़े आज़म मिस्टर जा़किर हुसैन तारीखे़ इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कि मेरे बाद बारह 12 ख़लीफ़ा क़ुरैश से होंगे। आपने फ़रमाया कि आखि़री ज़माने में जब दुनिया ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी , तो मेरी औलाद में से मेहदी का ज़हूर होगा जो ज़ुल्मो जौर को दूर कर के दुनिया को अदलो इन्साफ़ से भर देगा। शिर्क व कुफ़्र को दुनिया से नाबूद कर देगा। नाम मोहम्मद और लक़ब मेहदी होगा। हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान से उतर कर उसकी नुसरत करेंगे और उसके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे।

आपकी कुन्नियत

इस पर उलमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी कुन्नियत अबुल का़सिम और अबू अब्दुल्लाह थी और इस पर भी उलेमा मुत्तफ़िक़ हैं कि अबुल क़ासिम कुन्नियत ख़ुद सरवरे कायनात की तजवीज़ करदा है। हुलाहेजा़ हां(जामेए सग़ीर पृष्ठ 104, तज़किराए ख़वास अल उम्मता , पृष्ठ 204, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 439, सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 134, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 312, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 130, जिलाउल उयून पृष्ठ 298 )

यह मुसल्लेमात से है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मेहदी का नाम मेरा नाम और उनकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत होगी। लेकिन इस रवायत में बाज़ अहले इस्लाम ने यह इज़ाफ़ा किया है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह भी फ़रमाया है कि मेहदी के बाप का नाम मेरे वालिदे मोहतरम का नाम होगा। मगर हमारे रावियों ने इसकी रवायत नहीं की और ख़ुद तिरमिज़ी शरीफ़ में भी इस्मे अबीहा इस्मे अबी नहीं है। ताहम बक़ौल साहेबुल मनाक़िब अल्लामा कन्जी शाफ़ेई यह कहा जा सकता है कि रवायत में लफ़्ज़ अबीहा से मुराद अबू अब्दुल्लाह अल हुसैन हैं यानी इससे इस अम्र की तरफ़ इशारा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की औलाद से हैं।

आपके अलक़ाब

आपके अलक़ाब मेहदी , हुज्जत उल्लाह , ख़लफ़े अलसालेह , साहेबुल असर व साहेबुल अमर वल ज़मान , अल क़ायम , अल बाक़ी और अल मुन्तज़र हैं। मुलाहेज़ा हो तज़किराए ख़वासुलमता पृष्ठ 204 , रौज़ातुल शोहदा पृष्ठ 439 , कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 131 सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 , मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 294 , आलामु वुरा पृष्ठ 24 हज़रत दानियाल नबी ने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत से 1420 साल पहले आप का लक़ब मुन्तज़िर क़रार दिया है। मुलाहेज़ा हो किताब व दानियाल बाब 12 आएत 12 । अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल मुन्तज़िर की शरह करते हुए लिखते हैं कि उन्हें मुन्तज़िर यानी जिसका इन्तेज़ार किया जाए इस लिये कहते हैं कि वह सरदाब में गा़एब हो गए हैं और यह मालूम नहीं होता कि कहां चले गए। मतलब यह है कि लोग उनका इन्तेज़ार कर रहे हैं। शैख़ अल ऐराक़ैन अल्लामा शैख़ अब्दुल रसा तहरीर फ़रमाते हैं कि आपको मुन्तज़र इस लिये कहते हैं कि आप की ग़ैबत की वजह से आपके मुख़लिस आपका इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुलाहेज़ा हो।(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 पृष्ठ 57 प्रकाशित बम्बई)

आपका हुलिया मुबारक

किताब अक्मालुद्दीन में शेख़ सदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि सरवरे काएनात (स अ व व ) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) शक्ल व शबाहत ख़ल्क़ व ख़लक़ ख़साएल , अक़वाल व अफ़आल में मेरे मुशाबे होंगे। आपके हुलिये के मुताअल्लिक़ उलमा ने लिखा है कि आपका रंग गन्दुम गून , क़द मियाना है। आपकी पेशानी खुली हुई और आपके अबरू घने और बाहम पेवस्ता हैं , आपकी नाक बारीक और बुलन्द है आपकी आंखें बड़ी और आपका चेहरा नेहायत नूरानी है। आपके दाहिने रूख़सार पर एक तिल है कानहू कौकब दुर जो सितारे की मानिन्द चमकता है। आपके दांत चमकदार खुले हुए हैं आपकी ज़ुल्फ़ें कन्धों तक बड़ी रहती हैं। आपका सीना चौड़ा और आपके कन्धे खुले हुए हैं। आपकी पुश्त पर इसी तरह की मुहरे इमामत सब्त है जिस तरह पुश्ते रिसालत माब (स अ व व ) पर मुहरे नबूअत सबत थी।(अलाम अल वरा पृष्ठ 265, व ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 64, नूरूल अबसार पृष्ठ 152 )

तीन साल की उम्र में हुज्जतुल्लाह होने का दावा

किताब तवारीख़ व सैर से मालूम होता है कि आप की परवरिश का काम जनाबे जिब्राईल (अ.स.) के सिपुर्द था और वही आपकी परवरिश व परदाख्त करते थे। ज़ाहिर है कि जो बच्चा विलादत के वक़्त कलाम कर चुका हो और जिसकी परवरिश जिब्राईल जैसे मुक़र्रब फ़रिश्ते के सिपुर्द हो वह यक़ीनन दुनियां में चन्द दिन गुज़ारने के बाद बहरे सूरत इस सलाहियत का मालिक हो सकता है कि वह अपनी ज़बान से हुज्जतुल्लाह होने का दावा कर सके।

अल्लामा अरबली लिखते हैं अहमद इब्ने इसहाक़ और साद अल अशकरी एक दिन हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और उन्होंने ख़्याल किया कि आज इमाम (अ.स.) से यह दरयाफ़्त करेंगे कि आप के बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ कौन होगा। जब सामना हुआ तो इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ अहमद ! तुम जो दिल में ले कर आये हो मैं उसका जवाब तुम्हे देता हूँ , यह फ़रमा कर आप अपने मक़ाम से उठे और अन्दर जा कर यूं वापस आये कि आप के कंधे पर एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा था जिसकी उम्र तीन साल की थी। आपने फ़रमाया ऐ अहमद ! मेरे बाद हुज्जते ख़ुदा यह होगा। इसका नाम मोहम्मद और इसकी कुन्नियत अबुल क़ासिम है यह खि़ज़्र की तरह ज़िन्दा रहेगा और ज़ुलक़रनैन की तरह सारी दुनियां पर हुकूमत करेगा। अहमद इब्ने इसहाक़ ने कहा मौला ! कोई ऐसी अलामत बता दीजिए कि जिससे दिल को इत्मीनाने कामिल हो जाए। आपने इमाम मेहदी (अ.स.) की तरफ़ मुतावज्जा हो कर फ़रमाया , बेटा इसको तुम जवाब दो। इमाम मेहदी (अ.स.) ने कमसिनी के बवजूद बज़बाने फ़सीह फ़रमाया अना हुज्जतुल्लाह व अना बक़ीयतुल्लाह मैं ही ख़ुदा की हुज्जत और हुक्मे ख़ुदा से बाक़ी रहने वाला हूँ। एक वह दिन आयेगा जिसमे मैं दुश्मनाने ख़ुदा से बदला लूंगा , यह सुन कर अहमद ख़ुश व मसरूय व मुतमईन हो गए।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 138 )

पांच साल की उम्र मे ख़ासुल ख़ास असहाब से आपकी मुलाक़ात

याक़ूब बिन मनक़ूस व मोहम्मद बिन उस्मान उमरी व अबी हाशिम जाफ़री और मूसा बिन जाफ़र बिन वहब बग़दादी का बयान है कि हम हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और हम ने अर्ज़ कि मौला ! आपके बाद अमरे इमामत किस के सुपुर्द होगा और कौन हुज्जते ख़ुदा क़रार पाऐगा। आपने फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मोहम्मद मेरे बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ होगा। हम ने अर्ज़ कि मौला हमे उनकी ज़ियारत करा दीजीए। आपने फ़रमाया वह पर्दा जो सामने आवेख़्ता है उसे उठाओ। हम ने पर्दा उठाया तो उस से एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा जिसकी उमर पाँच साल थी बरामद हुआ और वह आ कर इमाम हसन असकरी (अ.स.) की आग़ोश में बैठ गया। यही मेरा फ़रज़न्द मेरे बाद हुज्जतुल्लाह होगा। मोहम्मद बिन उस्मान का कहना है कि हम इस वक़्त चालीस अफ़राद थे और हम सब ने उनकी ज़ियारत की। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने फ़रज़न्द इमाम मेहदी (अ.स.) को हुक्म दिया कि वह अन्दर चले जाएं और हम से फ़रमाया शुमा ऊरा नख़्वही दीद ग़ैर अज़ इमरोज़ कि अब तुम आज के बाद फिर उसे न देख सकोगे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ फिर ग़ैबत शुरू हो गई।।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 139 व शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 213 )

अल्लामा तबरसी किताब आलामुल वुरा के पृष्ठ 243 में तहरीर फ़रमाते हैं कि आइम्मा के नज़दीक मोहम्मद और उसमान उमरी दोनों सुक़ह हैं। फिर इसी सफ़ह पर तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू हारून का कहना है कि मैंने बचपन में साहेबुज़्ज़मान को देखा है। ‘‘कानहू अलक़मर लैलता अलबदर इनका चेहरा चौदवीं रात के चांद की तरह चमकता था।

इमाम मेहदी (अ.स.) नबूवत के आईने में

अल्लामा तबरसी बहवाला हज़रात मासूमीन (अ.स.) तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) में बहुत से अम्बिया के हालात व कैफ़ियात नज़र आते हैं और जिन वाक़ेयात से मुख़तलिफ़ अम्बिया को दो चार होना पड़ा वह तमाम वाक़ियात आपकी ज़ात सतूदा पेज न.त में दिखाई देते हैं। मिसाल के लिए हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) हज़रत मूसा (अ.स.) हज़रत ईसा (अ.स.) हज़रत अय्यूब (अ.स.) हज़रत युनूस (अ.स.) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) को ले लीजिए और उनके हालात पर ग़ौर कीजिए। आपको हज़रत नूह (अ.स.) की तवील ज़िन्दगी नसीब होगी। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की तरह आपकी विलादत छिपाई गई और लोगों से किनारा कश हो कर रूपोश होना पड़ा। हज़रत मूसा (अ.स.) की तरफ हुज्जत के ज़मीन से उठ जाने का ख़ौफ़ ला हक़ हुआ और उन्ही कि विलादत की तरह आपकी विलादत भी पोशीदा रखी गई और उन्हीं के मानने वालों की तरह आपके मानने वालों को आपकी ग़ैबत के बाद सताया गया। हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह आपके बारे में लोगों ने इख़्तेलाफ़ किया। हज़रत अय्यूब (अ.स.) की तरह तमाम इम्तेहानात के बाद आपकी फ़र्ज़ व कशाइश नसीब होगी। हज़रत युसुफ़ (अ.स.) की तरह अवाम व ख़वास से आपकी ग़ैबत होगी। हज़रत यूनुस (अ.स.) की तरह ग़ैबत के बाद आपका ज़हूर होगा। यानी जिस तरह वह अपनी क़ौम से ग़ाएब हो कर बुढ़ापे के बावजूद नौजवान थे उसी तरह आपका जब ज़हूर होगा तो आप चालीस साल के जवान होंगे और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की तरह आप साहेबुल सैफ़ होंगे।(आलामु वुरा पृष्ठ 264 प्रकाशित बम्बई 1312 हिजरी)

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत

इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र अभी सिर्फ़ पाँच साल की हुई थी कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी ने मुद्दतों क़ैद रखने के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर दे दिया जिसकी वजह से आप बतारीख़ 8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी मुताबिक़ 873 ब उम्र 28 साल रेहलत फ़रमा गए। वख़ल मन अलविदा बनहूमोहम्मदन और आपने औलाद में सिर्फ़ इमाम मेहदी (अ.स.) को छोड़ा।(नुरूल अबसार पृष्ठ 53, दमए साकेबा पृष्ठ 191 )

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि जब आपकी शहादत की ख़बर मशहूर हुई तो सारे शहर सामरा में हलचल मच गई। फ़रयादो फ़ुग़ां की आवाज़ बुलन्द हो गई , सारे शहर में हड़ताल कर दी गई यानी सारी दुकाने बन्द हो गईं लोगों ने अपने करोबार छोड़ दिये। तमाम बनी हाशिम हुक्कामे दौलत , मुन्शी काज़ी अरकान अदालत , अयान हुकूमत और आम ख़लाएक़ हज़रत के जनाज़े के लिये दौड़ पड़े। हालत यह थी कि शहर सामरा क़यामत का मन्ज़र पेश कर रहा था। तजहीज़ और नमाज़ से फ़राग़त के बाद आपको इसी मकान में दफ़्न कर दिया गया जिस में इमाम अली नक़ी (अ.स.) मदफ़ून थे।(नुरूल अबसार पृष्ठ 152 व तारीख़े कामिल सवाएक़े मोहर्रेक़ा व फ़सूल महमा , जिला अल उयून पृष्ठ 296 )

अल्लामा मोहम्मद बाक़िर तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के बाद नमाज़े जनाज़ा हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) ने पढ़ाई। मुलाहेज़ा हो ,(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 192 व जिला अल उयून पृष्ठ 297 )

अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि नमाज़ के बाद आप को बहुत से लोगों ने देखा और आपके हाथों का बोसा दिया।(आलामुल वुरा पृष्ठ 242 ) अल्लामा इब्ने ताऊस का इरशाद है कि 8 रबीउल अव्वल को इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात वाक़ेए हुई और 9 रबीउल अव्वल से हज़रत हुज्जत (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। हम 9 रबीउल अव्वल को जो ख़ुशी मनाते हैं इसकी एक वजह यह भी है।(किताब इक़बाल) अल्लामा मजलिसी लिखते हैं 9 रबीउल अव्वल को उमर बिन साद ब दस्ते मुख़्तार आले मोहम्मद का क़त्ल हुआ।(ज़ाद अल माद पृष्ठ 585 ) जो उबैदुल्लहा इब्ने ज़्याद का सिपह सालार था , जिसके क़त्ल के बाद आले मोहम्मद (स अ व व ) ने पूरे तौर पर ख़ुशी मनाई।(बेहारूल अनवार मुख़तार आले मोहम्मद) किताब दमए साकेबा के पृष्ठ 192 में है कि हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने 259 में अपनी वालेदा को हज के लिये भेज दिया था और फ़रमा दिया था कि 260 हिजरी में मेरी शहादत हो जायेगी। इसी सिन में आपने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को जुमला तबरूकात दे दिये थे और इस्में आज़म वग़ैरा तालीम कर दिया था।(दमए साकेबा व जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) उन्हीं तबरूकात में हज़रत अली (अ.स.) का जमा किया हुआ वह क़ुरान भी था जो तरतीब नुज़ूल पर सरवरे काएनात की ज़िन्दगी में मुरत्तब किया गया था।(तारीख़ अल ख़ुलफ़ा व अनफ़ान) और जिसे हज़रत अली (अ.स.) ने अपने अहदे खि़लाफ़त में भी इस लिये राएज न किया था कि इस्लाम में दो क़ुरआन रवाज पा जायेंगे और इस्लाम में तफ़रेक़ा पड़ जायेगा।(अज़ाता अल ख़फ़ा पृष्ठ 273 ) मेरे नज़दीक इस सन् में हज़रत नरजिस ख़ातून का इन्तेक़ाल हुआ है और इसी सन् में हज़रत ने ग़ैबत इख़्तेयार फ़रमाई है।

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और उसकी ज़रूरत

बादशाहे वक़्त ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी जो अपने आबाव अजदाद की तरह ज़ुल्म का ख़ूगर और आले मोहम्मद (अ.स.) का जानी दुश्मन था उसके कानों में मेहदी (अ.स.) की विलादत की भनक पड़ चुकी थी। उसने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद तकफ़ीन व तदफ़ीन से पहले बक़ौल अल्लामा मजलिसी हज़रत के घर पर पुलिस का छापा डलवाया और चाहा कि इमाम मेहदी (अ.स.) को गिरफ़्तार करा ले लेकिन चुकि वह बहुक्मे ख़ुदा 23 रमज़ानुल मुबारक 259 हिजरी को सरदाब में जा कर ग़ायब हो चुके थे। जैसा कि शवाहेदुन नबूवत , नुरूल अबसार , दमए साकेबा , रौज़तुस शोहदा , मनाक़िब अल आइम्मा , अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा से मुुस्तफ़ाद मुस्तबज़ होता है इसी लिये वह उसे दस्तयाब न हो सके। उसने उसके रद्दे अमल में हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की तमाम बीबीयों को गिरफ़्तार करा लिया और हुक्म दिया कि इस अमर की तहक़ीक़ की जाये कि आया कोई उनमें से हामेला तो नहीं है , अगर कोई हामेला हो तो उसका हमल ज़ाया कर दिया जाए। क्यों कि वह हज़रते सरवरे कायनात (स अ व व ) की पेशीन गोई से ख़ाएफ़ था कि आख़री ज़माने में मेरा एक फ़रज़न्द जिसका नाम मेहदी होगा। कायनात आलम के इन्क़ेलाब का ज़ामिन होगा और उसे यह मालूम था कि वह फ़रज़न्द इमाम हसन असकरी (अ.स.) की औलाद से ही होगा , लेहाज़ा उसने आपकी तलाश और आपके क़त्ल की पूरी कोशिश की। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में है कि 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद जब मोतमिद ख़लीफ़ए अब्बासी ने आपके क़त्ल करने के लिये आदमी भेजे तो आप(सरदाब) 1 सरमन राय में ग़ायब हो गये। बाज़ अकाबिर उलेमाए अहले सुन्नत भी इस अमर में शियों के हम ज़बान हैं। चुनान्चे मुल्ला जामी ने शवाहेदुन नबूवत में इमाम अब्दुल वहाब शेरानी ने लवाक़ेउल अनवार व अल यूवाक़ेयत वल जवाहर में और शेख़ अहमद मुहिउद्दीन इब्ने अरबी ने फ़तूहाते मक्कीया में और ख़्वाजा पारसा ने फ़सलुल खि़ताब मोहद्दिस देहलवी ने रिसाला आइम्माए ताहेरीन में और जमालुद्दीन मोहद्दिस ने रौज़तुल अहबाब में , अबू अब्दुल्लाह शामी साहब किफ़ातुल तालिब ने किताब अल तिबयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान में और सिब्ते इब्ने जौज़ी ने तज़किराए ख़्वास अल मता , और इब्ने सबाग़ नुरूद्दीन अली मालकी ने फ़सूल अल महमा में और कमालुद्दीन इब्ने तलहा शाफ़ेई ने मतालेबुस सूऊल में और शाह वली उल्लाह फ़ज़ल अल मुबीन में और शेख़ सुलेमान हनफ़ी ने नियाबुल मोवद्दता में और बाज़ दीगर उलेमा ने भी ऐसा ही लिखा है और जो लोग इन हज़रत के तवील उम्र में ताअज्जुब कर के इन्कार करते हैं उनको यह जवाब देते हैं कि ख़ुदा की क़ुदरत से कुछ बईद नहीं है जिसने आदम (अ.स.) को बग़ैर माँ बाप के और ईसा (अ.स.) बग़ैर बाप के पैदा किया , तमाम अहले इस्लाम ने हज़रत खि़ज़्र (अ.स.) को अब तक ज़िन्दा माना हुआ है। इदरीस (अ.स.) बेहिशत में और हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान पर अब तक ज़िन्दा माने जाते हैं और अगर ख़ुदाए ताअला ने आले मोहम्मद (स अ व व ) में से एक शख़्स को तुले उम्र इनायत किया तो ताअज्जुब क्या है ? हालां कि अहले इस्लाम को दज्जाल के मौजूद होने के क़रीबे क़यामत ज़हूर करने से इन्कार नहीं है। किताब शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 68 में है कि ख़ानदाने नबूवत के ग्यारवे इमाम हसन असकरी (अ.स.) 260 हिजरी में ज़हर से शहीद कर दिये गये थे उनकी वफ़ात पर इनके साहब ज़ादे मोहम्मद लक़ब व मेहदी शियों के आख़री इमाम हुए।

मौलवी अमीर लिखते हैं कि ख़ानदाने रिसालत के इन इमामों के हालात निहायत दर्द नाक हैं। ज़ालिम मुतावक्किल ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे माजिद इमाम अली नकी़ (अ.स.) को मदीने से सामरा पकड़ बुलाया था और वहां उनकी वफ़ात तक उनको नज़र बन्द रखा था फिर ज़हर से हलाक कर दिया था इसी तरह मुतावक्किल के जां नशीनों ने बदगुमानी और हसद के मारे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़ैद रखा था। उनके कमसिन साहब ज़ादे मोहम्मद अल मेहदी (अ.स.) जिनकी उम्र अपने वालिद की वफ़ात के वक़्त पांच साल की थी ख़ौफ़ के मारे अपने घर के क़रीब ही एक ग़ार में छुप गये और ग़ायब हो गये। इब्ने बतूता ने अपने सफ़र नामे में लिखा है कि जिस ग़ार में इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबर बताई जाती है उसे मैंने अपनी आंखों से देखा है।(नूरूल अबसार जिल्द 1 पृष्ठ 152 ) अल्लामा हजरे मक्की का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सरदाब में ग़ायब हुये थे। फ़ल्म यारफ़ ईं ज़हब फिर मालूम नहीं कहां तशरीफ़ ले गये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 )

हाशिया : 1. यह सरदाब मक़ाम सरमन राय में वाक़े है जिसे असल में सामेरा कहते हैं। सामरा की आबादी बहुत ही क़दीमी है और दुनियां के क़दीम तरीन शहरों में से एक शहर है। इसे साम बिन नूह ने आबाद किया था और इसी को दारूल सलतनत भी बनाया था। इसकी आबादी सात फ़रसख़ लम्बी थी। इसने इसे निहायत ख़ूब सूरत शहर बना दिया था इस लिये इसका नाम सरमन राय रख दिया था यानी वह शहर जिसे जो भी देखे ख़ुश हो जाए , असकरी इसी का एक मोहल्ला है जिसमें इमाम अली नक़ी (अ.स.) नज़र बन्द थे बाद में उन्होंने दलील बिन याक़ूब नसरानी से एक मकान ख़रीद लिया था जिसमें अब भी आपका मज़ार मुक़द्दस वाक़े है।

सामरा में हमेशा ग़ैर शिया आबादी रही इसी लिये अब तक वहां शिया आबाद नहीं हैं वहां के जुमला ख़ुद्दाम भी ग़ैर शिया हैं।

हज़रत हुज्जत (अ.स.) के ग़ाएब होने का सरदाब वहीं एक मस्जिद के किनारे वाक़े है जो हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मज़ारे अक़दस के क़रीब है।