क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान लेखक:
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा

जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ.स.) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।

1. अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुस सूऊल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।

2. अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।

3. अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।

4. अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे।

5. अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।

6. अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।

7. अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ.स.) बचपने में थे।

8. अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।

9. अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।

10. अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।

11. अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।

12. अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ.स.) के दुश्मन हैं।

13. अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ.स.) औलादे फ़ात्मा (स अ व व ) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।

14. अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

15. अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

16. अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।

17. अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।

18. अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।

19. अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ.स.)(अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।

20. अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।

21. अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।

23. अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।

24. अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।

25. अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ.स.) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।

26. अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पृष्ठ 451 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।

27. अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पृष्ठ 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।

28. अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पृष्ठ 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

29. अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 393 में।

30. अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।

31. अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 प्रकाशित मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) और हज़रत इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।

32. अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पृष्ठ 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।

33. अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पृष्ठ 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।

34. अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 23 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ.स.) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे।(नेयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 370 प्रकाशित बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ.स.) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स अ व व ) में बाक़ी हैं।(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पृष्ठ 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ.स.) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 प्रकाशित मिस्र)

इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में

हज़रत दाऊद (अ.स.) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।

तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ.स.) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ.स.) और ईसा (अ.स.) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) और ज़हूरे मेहदी (अ.स.) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है।(किताब अल वसाएल पृष्ठ 129 प्रकाशित बम्बई 1339 हिजरी)

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की वजह

मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1. ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे 1,23,999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ.स.) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ.स.) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ.स.) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2. ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ.स.) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ.स.) और दूसरे इस्माईल (अ.स.)। इस्हाक़ (अ.स.) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ.स.) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ.स.) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) को जो नस्ले इस्माईल (अ.स.) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) को महफ़ूज़ किया था। 3. यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती।(उसूले काफ़ी 103 प्रकाशित नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है।(बेहार) 4. यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5. क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6. सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7. हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन) 9. चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है।(अल मुतुर्जा़) 10. आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स अ व व ) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे।(कमालुद्दीन)

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) जफ़र जामए की रौशनी में

अल्लामा शेख़ क़न्दूज़ी बलख़ी हनफ़ी रक़मतराज़ हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफ़ज़ल बिन उमर , अबू बसीर , अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हुए रो रहे हैं और कहते हैं कि ऐ मोहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत की ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर , ख़ुदा की आंखों को कभी न रूलाए , बात क्या है , किस लिए हुज़ूर गिरया कुना हैं ? फ़रमाया , ऐ सुदीर ! मैंने आज किताब जाफ़र जामे में बवक़्ते सुबह इमाम मेहदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमे आमा माकाना वमायकून का इन्दराज है और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है सब इसमें लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैंने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम मेहदी होगें। फिर वह ग़ायब हो जाएगें और उनकी ग़ैबत नीज़ उमर बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसाएब में मुबतिला होगें और उनके इम्तेहानात होते रहेंगे और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते होंगे , फिर फ़रमाया ऐ सुदीर ! सुनो इनकी विलादत हज़रत मूसा (अ.स.) की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा (अ.स.) की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह (अ.स.) के मानिन्द होगा और उनकी उम्र हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) की उम्र जैसी होगी।(नेयाबुल मोवद्दत) इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है कि :

1. तारीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूद बनी इस्राईल के ज़रिए होगा तो उसने हुक्म जारी कर दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाए और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाए। चुनान्चे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाया किये गए लेकिन खुदा ने हज़रत मूसा (अ.स.) को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बवजूद पैदा किया , बाक़ी रखा और उन्हीं के हाथों से उसकी सलतनत का तख़्ता उलट दिया। इसी तरह इमाम मेहदी (अ.स.) के लिये हुआ कि तमाम बनी उमय्या और बनी अब्बास की सई बलीग़ के बावजूद आप बतने नरजीस ख़ातून से पैदा हुए और आपको कोई देख तक न सका।

2. हज़रत ईसा (अ.स.) के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ हैं कि आपको सूली दे दी गई और आप क़त्ल किये जा चुके , लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने उसकी रद्द फ़रमा दी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर अमन व अमाने ख़ुदा में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नहीं हुए , हालां कि पैदा हो कर हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह ग़ाएब हो चुके हैं।

3. हज़रत नूह (अ.स.) ने लोगों की नाफ़रमानी से आजिज़ आ कर ख़ुदा के अज़ाब के नज़ूल की दरख़्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ वह फल लाएगा , तब अज़ाब करूगां। इसी तरह नूह (अ.स.) ने सात मरतबा किया बिल आखि़र इस ताख़ीर के वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और इमानदार काफ़िर हो गए और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) और ताख़ीरे ज़हूर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा (अ.स.) की तकज़ीब कर रहे हैं और अवामे मुस्लिम बिला वजह ऐतिराज़ात कर के अपनी आक़बत ख़राब कर रहे हैं और शायद इसी वजह से मशहूर है कि जब दुनियां में चालीस मोमिन कामिल रह जाएगें तब आपका ज़हूर होगा।

4. हज़रते खि़ज्र (अ.स.) जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेगें। उन्हीं की तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगे और जब कि हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं है , हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नहीं हैं।

ग़ैबते सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा

आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं , एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 75 या 73 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नाएबे ख़ास होता था जिसके ज़ेरे एहतेमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब , ख़ुम्स व ज़कात और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्रर किये जाते थे।

सब से पहले जिन्हें नाएबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई उनका नामे नामी व इस्मे गेरामी हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी था। आप हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मोतमिदे ख़ास और असहाबे ख़ल्लस में से थे। आप क़बीलाए बनी असद से थे। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी। आप सामरा के क़रीए असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आप बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किये गये हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) आपके फ़रज़न्द हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िलत पर फ़ाएज़ हुए , आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने अपनी वफ़ात से दो माह क़ब्ल अपनी क़ब्र खुदवा दी थी। आपका कहना था कि मैं यह इस लिये कर रहा हूँ कि मुझे इमाम (अ.स.) ने बता दिया है और अपनी तारीख़े वफ़ात से वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीबब बमक़ाम दरवाज़ा कूफ़ा सिरे राह दफ़्न हुये।

फिर आपकी वफ़ात के बाद बा वास्ता मरहूम हज़रत इमाम (अ.स.) के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रौह इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाएज़ हुए।

जाफ़र बिन मोहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने हज़रत हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम (अ.स.) का पैग़ाम पहुँचाया था। हज़रत हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिब थी। आप महल्ले नव बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर जुमला मुमालिके इस्लामिया का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िरक़ों के नज़दीक मोतमिद , सुक़्क़ा , सालेह और अमीन क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326 हिजरी में हुई और आप महल्ले नव बख़्त कूफ़े में मदफ़ून हुए हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) हज़रत अली बिन मोहम्मद अल समरी इस ओहदाए जलीला पर फ़ाएज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राएज़ अंजाम दे रहे थे , जब वक़्त क़रीब आया तो आप से कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इंतेज़ाम करेंगे ? आपने फ़रमाया कि अब आइन्दा यह सिलसिला क़ाएम न रहेगा।(मजालेसुल मोमेनीन , पृष्ठ 89 व जज़ीरए खि़ज़रा पृष्ठ 6 व अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 55 ) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नबूवत के पृष्ठ 214 में लिखते हैं कि मोहम्मद अल समरी के इन्तेक़ाल से 6 यौम क़ब्ल इमाम (अ.स.) का एक फ़रमाने नाहिया मुक़द्देसा से बरामद हुआ जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिलाए सिफ़ारत के ख़त्म होने का सिलसिला था। इमाम मेहदी (अ.स.) के ख़त के उयून अल्फ़ाज़ यह हैं।

बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम

या अली बिन मोहम्मद अज़म अल्लाह अजरा ख़वाएनेका फ़ीक़ा फ़ाअनका मयता मा बैनका व बैने सुन्नता अय्याम फ़ा अज़मा अमरेका वला तरज़ इला अहद याकौ़म मक़ामेका बाअद वफ़ातेका फ़क़त वक़अत अल ग़ैबता अल तामता फ़ला ज़हूर इला बआद इज़न अल्लाह ताआला व ज़ालेका बआद तूल अल आमद। ’’

तरजुमा:- ऐ अली बिन मोहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम 6 यौम में वफ़ात पाने वाले हो , तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये अपना कोई क़ाएम मुक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिये कि ग़ैबते कुबरा वाक़े हो गई है और इज़ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर न मुम्किन होगा। यह ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।

ग़रज़ कि 6 दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मोहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गए और फिर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्रर नहीं हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।

सुफ़राए उमूमी के नाम

मुनासिब मालूम होता है कि उन सुफ़रा के इस्मा भी दरजे ज़ैल कर दिये जायें जो उन्हें नब्वाबे ख़ास के ज़रिए और सिफ़ारिश से बहुक्मे इमाम (अ.स.) मुमालिके महरूसा मख़सूसिया में इमाम (अ.स.) का काम करते और हज़रत की खि़दमत में हाज़िर होने रहते थे।

1.बग़दाद से हाजिज़ , बिलाली , अत्तार 2. कूफ़े से आसमी , 3. अहवाना से मोहम्मद बिन इब्राहीम बिन मेहरयार , 4. हमदान से मोहम्मद इब्ने सालेह , 5. रै से बसामी व असदी 6. आज़र बैजान से क़सम बिन अला , 7. नैशापूर से मोहम्मद बिन शादान , 8. क़सम से अहमद बिन इस्हाक़।(ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 120 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत के बाद

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत चूंकि ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से बतौरे लुत्फ़े ख़ास अमल में आई थी। इस लिये आप ख़ुदाई खि़दमत में हमतन मुनहमिक हो गये और ग़ायब होने के बाद आपने दीने इस्लाम की खि़दमत शुरू फ़रमा दी। मुसलमानों , मोमिनों के ख़ुतूत के जवाबात देने उनकी बवक़्ते ज़रूरत रहबरी करने और उन्हें राहे रास्त दिखाने का फ़रीज़ा अदा करना शुरू कर दिया। ज़रूरी खि़दमात आप ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में ब वास्ता सुफ़रा या बिला वास्ता और ज़मानए कुबरा में बिला वास्ता अन्जाम देते रहे और क़यामत तक अन्जाम देते रहेंगे।

307 हिजरी में आपका हजरे असवद नसब करना

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ज़मानाए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह , अबूल क़ासिम , जाफ़र बिन मोहम्मद , कौलिया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त अलील हो गये। इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कुछ दुरूस्त कर के अय्यामे हज में फिर नसब करेंगे। किताबों में चूंकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ इमामे ज़माना ही नसब कर सकता है जैसा कि पहले हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) ने नसब किया था। फिर ज़मानाए हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने नसब किया था। इसी बिना पर उन्होंने अपने एक करम फ़रमा ‘‘ इब्ने हश्शाम ’’ के ज़रिए से एक ख़त इरसाल किया और उसे कह दिया कि जो हजरे असवद नसब करे उसे यह ख़त दे देना। नसबे हजर की लोग सई कर रहे थे लेकिन वह अपनी जगह पर क़रार नहीं लेता था कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौ जवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे नसब कर दिया और वह अपनी जगह पर मुसतक़र हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम , तू जाफ़र बिन मोहम्मद का ख़त मुझे दे दे। देख उस में उसने मुझ से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए। इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर जाफ़र बिन क़ौलिया से बयान कर दिया। ग़रज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये।(कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 )

इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताबे मज़कूरा में मौजूद हैं। अल्लामा अब्दुल रहमान मुल्ला जामी रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स इस्माईल बिन हसन हर कुली जो नवाही हिल्ला में मुक़ीम था उसकी रान पर एक ज़ख़्म नमूदार हो गया था जो हर ज़मानए बहार में उबल आता था। जिसके इलाज से तमाम दुनिया के हकीम आजिज़ और क़ासिर हो गये थे। वह एक दिन अपने बेटे शम्सुद्दीन को हमराह ले कर सय्यद रज़ी उद्दीन अली बिन ताऊस की खि़दमत में गया। उन्होंने पहले तो बड़ी सई की लेकिन कोई चारा कार न हुआ। हर तबीब यह कहता था कि यह फोड़ा ‘‘ रगे एकहल ’’ पर है अगर इसे नशतर दिया तो जान का ख़तरा है इस लिये इसका इलाज न मुम्किन है। इस्माईल का बयान है कि ‘‘ चून अज़ अत्तबा मायूस शुदम अज़ी मत मशहद शरीफ़ सरमन राए करदम ’’ जब मैं तमाम एतबार से मायूस हो गया तो सामरा के सरदाब के क़रीब गया और वहां पर हज़रते साहेबे अम्र को मुतावज्जे किया। एक शब दरयाए दजला से ग़ुस्ल कर के वापस आ रहा था कि चार सवार नज़र आए , उनमें से एक ने मेरे ज़ख़्म के क़रीब हाथ फेरा और मैं बिल्कुल अच्छा हो गया। मैं अभी अपनी सेहत पर ताअज्जुब ही कर रहा था कि इनमें से एक सवार ने जो सफ़ेद रीश (सफ़ैद दाढ़ी) थे कहा कि ताअज्जुब क्या है। तुझे शिफ़ा देने वाले इमाम मेहदी (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैंने उनके क़दमों का बोसा दिया और वह लोग नज़रों से ग़ायब हो गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 214 व कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 132 )

इस्हाक़ बिन याक़ूब के नाम इमामे अस्र (अ.स.) का ख़त

अल्लामा तबरिसी बहवाला मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मोहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़त इरसाल किया जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़ुद खत़ का जवाब तहरीर फ़रमाया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फ़रमा दिये जिसके अजज़ा यह हैं:

1. जो हमारा मुनकिर है , वह हम से नहीं।

2. मेरे अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं , उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने युसुफ़ की हैं।

3. फुक्का़ह यानी जौ की शराब का पीना हराम है।

4. हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिये(बतौरे ख़ुम्स) क़ुबूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और अज़ाब से निजात हासिल कर सको।

5. मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ सिर्फ़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्रर करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते है।

6. जो लोग यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूठे और गुमराह हैं।

7. तमाम वाके़ए होने वाले हवादिस में मेरे सुफ़रा पर एतिमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ।

8. मोहम्मद बिन उस्मान ’’ अमीन और सुक़्क़ह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है।

9. मोहम्मद बिन अली महरयार अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जायेगा और उन्हें कोई शक न रहेगा।

10. गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है।

11. मोहम्मद बिन शादान बिन नईम हमारे शियों में से हैं।

12. अबू अल ख़त्ताब मोहम्मद बिन ज़ैनब अजद मलऊन है और इनके मानने वाले भी मलऊन हैं मैं और मेरे बाप दादा इस से और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं।

13. जो हमारा माल खाते हैं वह अपने पेटों में आग भरते हैं।

14. ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिये हलाल है।

15. जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने खुद ज़िम्मेदार हैं।

16. मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ेए हुई है यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताअल्लिक़ है इसके मुताअल्लिक़ सवाल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियां वालों के शिकन्जें में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है जब मैं ज़हूर करूगां बिल्कुल आज़ाद हूंगा।

17. ज़मानाए ग़ैबत में मुझ से फ़ायदा क्या है इसके मुताअल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है , जैसे अब्र में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिये अमान हूँ। तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताअल्लिक़ सवालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दोआ करो औ वह जल्द मेरे ज़हूर का हुक्म दे दे। ऐ इस्हाक़ ! तुम पर और उन लोगों पर मेरा सलाम जो हिदायत की इब्तेदा करते हैं।

(आलामुल वुरा पृष्ठ 258, मजालिसुल मोमेनीन पृष्ठ 190, कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 140 )