क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान लेखक:
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 20016
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान
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क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) साहेबुज़्ज़मान

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

शेख़ मोहम्मद बिन मोहम्मद के नाम इमामे ज़माना (अ.स.) का मकतूबे गिरामी

डलमा का बयान है कि हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) ने जनाबे शेख़ मुफ़ीद अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन मोहम्मद बिन नेमान के नाम एक मकतूब इरसाल फ़रमाया है जिसमें उन्होंने शेख़ मुफ़ीद की मदह फ़रमाई है और बहुत से वाक़ेयात से मौसूफ़ को आगाह फ़रमाया है। उनके मकतूबे गिरामी का तरजुमा यह है:-

मेरे नेक बरादर और लाएक़ मोहिब , तुम पर मेरा सलाम हो। तुम्हें दीनी मामले में ख़ुलूस हासिल है और तुम मेरे बारे में यक़ीने कामिल रखते हो। हम उस ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। हम दुरूद भेजते हैं हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) और उनकी पाक आल पर। हमारी दुआ है कि ख़ुदा तुम्हारी तौफ़ीक़ाते दीनी हमेशा क़ाएम रखे और तुम्हें नुसरते हक़ की तरफ़ हमेशा मुतावज्जा रहे। तुम जो हमारे बारे में सिदक़ बयानी करते रहतें हो , ख़ुदा तुमको इसका अज्र अता फ़रमाए। तुम ने जो हम से ख़त व किताबत का सिलसिला जारी रखा और दोस्तों को फ़ायदा पहुँचाया , वह का़बिले मदह व सताईश है। हमारी दोआ है कि ख़ुदा तुम को दुश्मनों के मुक़ाबले में कामयाब रखे। अब ज़रा ठहर जाओ , और जैसा हम कहते हैं उस पर अमल करो। अगरचे हम ज़ालिमों के इमकानात से दूर हैं जब तब दौलते दुनियां फ़ासिक़ों के हाथ में रहेगी। हम उन लग़ज़ीशों को जानते हैं जो लोगों से अपने नेक असलाफ़ के खि़लाफ़ जा़हिर हो रही हैं। (शायद इससे अपने चचा जाफ़र की तरफ़ इरशाद फ़रमाया है) उन्होंने अपने अहदों को पसे पुश्त डाल दिया गोया वह कुछ जानते ही नहीं। ताहम हम उनकी रिवायतों को छोड़ने वाले नहीं और न उनके ज़िक्र भूलने वालें हैं अगर ऐसा होता तो इन पर मुसीबतें नाज़िल होतीं और दुश्मनों का ग़लबा हासिल हो जाता , पस उनसे कहो कि ख़ुदा से डरो और हमारे अमर नहीं मुनकर की हिफ़ाज़त करो और अल्लाह अपने नूर का कामिल करने वाला है चाहे मुश्रिक कैसी ही कराहीय्यत करें तक़य्या को पकड़े रहो। मैं उसकी निजात का ज़ामिन हूँ जो ख़ुदा की मरज़ी का रास्ता चलेगा। इस साल जमादील अव्वल का महीना आयेगा तो इसके वाक़ियात से इबरत हासिल करना तुम्हारे लिए आसमान व ज़मीन से रौशन आएतें ज़ाहिर होगीं। मुसलमानों के गिरोह हुज़न व क़लक़ में बामुक़ाम एराक़ फंस जाएगें और उनकी बद आमालियों की वजह से रिज़्क़ में तगीं हो जाऐगी। फिर यह ज़िल्लत व मुसीबत शरीरों की हलाकत के बाद दूर हो जायेगी। उनकी हलाकत से नेक और मुत्तक़ी लोग ख़ुश होंगे। लोगों को चाहिये कि वह ऐसे काम करें जिनसे उनमें हमारी मोहब्बत ज़्यादा हो। यह मालूम होना चाहिए कि जब मौत यकायक आएगी तो बाबे तौबा बन्द हो जाऐगा और ख़ुदाई कहर से नजात न मिलेगी। ख़ुदा तुम को नेकी पर क़ाएम रखे और तुम पर रहमत नाज़िल करे। ’’

मेरे ख़्याल में यह ख़त अहदे ग़ैबते कुबरा का है , क्योंकि शेख़ मुफ़िद की विलादत 11 ज़ीक़ाद 326 हिजरी और वफ़ात 3 रमज़ान 413 हिजरी में हुई और ग़ैबते सुग़रा का ऐख़्तेतामम 15 शाबान 329 हिजरी में हुआ है। अल्लामा कबीर हज़रत शहीदे सालिस अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी मजालिस अल मोमेनीन के पृष्ठ 206 में लिखते हैं कि शेख़ मुफ़ीद के मरने के बाद हज़रत इमामे इस्र (अ.स.) ने तीन शेर इरसाल फ़रमाए थे जो मरहूम की क़ब्र पर कन्दा हैं।

उन हज़रात के नाम जिन्होंने ज़मानए ग़ैबते सुग़रा में इमाम को देखा है।

चारों वकलये ख़ुसूसी और सात वकलाए उमूमी के अलावा वह जिन लोगों ने हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) को देखा है उनके इसमाए बाज़ के नाम यह हैं:-

बग़दाद के रहने वालों में से , 1. अबू अल क़ासिम बिन रईस , 2. अबू अब्दुल्लाह इब्ने फ़राख़ , 3. मसरूर अल तबाख़ , 4. , 5. अहमद व मोहम्मद पिसराने हसन , 6. इसहाक़ कातिब अज़नू बख़्त , 7. साहेगे अल फ़राए , 8. साहेबे असरतह अल मख़तूमा , 9. अबू अल क़ासिम बिन अबी जलैसा , 10. अबू अब्दुल्लाह अल कन्दी , 11. अबू अब्दुल्लाह अल जन्दी , 12. हारून अल फ़राज़ , 13. अल नैला , (हमदान के बाशिन्दों में से) 16. हसन बिन हरवान , 17. अहमद बिन हरवान(अज़ असफ़हान) 18. इब्ने बाज़शाला ,(अज़ जै़मर) 19. ज़ैदान अज़ क़ुम , 20. हसन बिन नसर , 21. मोहम्मद बिन मोहम्मद , 22. अली बिन मोहम्मद बिन इसहाक़ , 23. मोहम्मद बिन इसहाक़ , 24. हसन बिन याक़ूब , (अज़ रै) 25. क़सम बिन मूसा , 26. फ़रज़न्द क़सीम बिन मूसा , 27. इब्ने मोहम्मद बिन हारून , 28. साहेबे अल अस साका़ , 29. अली बिन मोहम्मद , 30. मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी , 31. अबू जाफ़र अरक़ा , (अज़ कज़वीन) 32. मरवास , 33. अली बिन अहमद , (अज़ फ़ारस) 34. अकमज़रूह (शेहज़ोर) 35. इब्ने अल जमाल , (अज़ क़ुद्स) 36. मजरूह (अज़मरो) 37. साहेबे अलफ़ दीनार , 38. साहेबे अल माल व अरक़ता अल बैज़ा , 39. अबू साबित (अज़ नेशापूर) 40. मोहम्मद बिन शोऐब बिन सालेह (अज़ यमन) 41. फ़ज़ल बिन यज़ीद , 42. हसन बिन फ़ज़ल , 43. जाफ़री , 44. इब्ने अल अजमी , 45. शमशाती (अज़ मिस्र) 46. साहेबे अल मौलूदैन , 47. साहेबे अल माल , 48. अबू रहाए , (अज़ नसीबैन) 50. अल हुसैनी(ग़ायतल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 121 )

ज़्यारते नाहिया और उसूले काफ़ी

कहते हैं कि इसी ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में नाहिया मुक़द्देसा से एक ऐसी ज़्यारत बरामद हुई है जिसमे तमाम शोहदाए करबला के नाम और उनके क़ातिलों के असमा हैं इसे ‘‘ ज़्यारते नाहिया ’’ के नाम से मौसूम किया जाता है।

इसी तरह यह भी कहा जाता है कि उसूले काफ़ी जो कि हज़रत सुक़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी अल मतूफ़ी 328 हिजरी की 20 साला तसनीफ़ है। वह जब इमामे अस्र (अ.स.) की खि़दमत में पेश हुई तो आपने फ़रमाया ‘‘ हाज़ क़ाफ़े लाशैतना ’’ यह हमारे शियो के लिये काफ़ी है।

ज़्यारते नाहिया की तौसीक़ बहुत से उलमा ने की है जिनमें अल्लामा तबरसी और मजलिसी भी हैं। दोआए सबासब आप ही से मरवी है।

ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) का मरक़जी़ मुक़ाम

इमाम मेहदी (अ.स.) चुंकि उसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , हज़रत खि़ज्ऱ (अ.स.) हज़रत इलयास नीज़ दज्जाल , बताल , याजूज माजूज और इब्लीस लईन ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उन सब का मरक़ज़ी मुक़ाम मौजूद है। जहां यह रहते हैं मसलन हज़रत ईसा चौथे आसमान पर(क़ुरान मजीद) हज़रत इदरीस जन्नत में(क़ुरान मजीद) हज़रत खि़ज़्र और इलयास मजमउल बहरैन यानी दरियाए फ़ारस व रोम के दरमियान पानी के क़सर में(अजाएब अल क़स अल्लामा अब्दुल वाहिद पृष्ठ 176 ) और दज्जाल व बताल तबरस्तान जज़ीराए मग़रिब में(किताब ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 102 ) और याजूज माजूज बहरे रोम के अक़ब में दो पहाड़ों के दरमियान(ग़ायतल मक़सूद जिल्द 2 पृष्ठ 74 ) और इबलीस लईन , इस्तेमारे अरज़ी के वक़्त वाले पाएतख़्त मुल्तान में(किताब इरशाद उत तालेबीन अल्लामा अख़ून्द दरवीज़ा पृष्ठ 243 ) तो ला मुहाला हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का भी कोई मरकज़ी मुक़ाम होना ज़रूरी है जहां आप तशरीफ़ फ़रमा हों और वहां से सारी काएनात में अपने फ़राएज़ अंजाम देते हों।

इसी लिये कहा जाता है कि ज़मानाए ग़ैबत में हज़रत मेहदी (अ.स.)(जज़ीराए खि़ज़रा और बहरे अबयज़) में अपनी औलाद अपने असहाब समेत क़याम फ़रमा हैं और वहीं से ब एजाज़ तमाम काम किया करते और जगह पहुँचा करते हैं। यह जज़ीराए खि़ज़रा सरज़मीने विलायत बरबर में दरमियान दरिया उन्दलिस वाक़े है यह जज़ीरह मामूर व आबाद है। इस दरिया के साहिल में एक मौज़ा भी है जो ब शक्ले जज़ीरा है उसे उन्दलिस वाले(जज़ीराए रफ़ज़ा) कहते हैं क्यों कि उसमें सारी आबादी शियों की है। इस तमाम आबादी की ख़ुराक वग़ैरा जज़ीराए खि़ज़रा से बराह बहरे अबयज़ साल में दो बार इरसाल की जाती है।

मुलाहेज़ा हो (तारीख़ जहाँ आरा , रेआज़ उल उलमा कफ़ाएतुल मेहदी , कशफ़ुल के़नाअ , रेआज़ अल मोमेनीन , ग़ाएतल मक़सूद , रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा , बहरे अबयज़ और मजालिस अल मोमेनीन , अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी व बेहारूल अनवार , अल्लामा मजलिसी किताब रौज़तुल शौहदा अल्लामा हुसैन वाज़ेए काशफ़ी पृष्ठ 439 में इमाम मेहदी (अ.स.) के अक़साए बिलादे मग़रिब में होने और उनके शहरों पर तसर्रूफ़ रखने और साहबे औलाद वग़ैरा होने का हवाला है।

इमाम शिब्लन्जी अल्लामा अब्दुल अल मोमिन ने भी अपनी किताब नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 में इसकी तरफ़ ब हवाला किताब जामेए अल फ़नून इशारा किया है ग़यास अल ग़ास के पृष्ठ 72 में है कि यह वह दरिया है जिसके जानिबे मशरिक़ चीन , जानिबे ग़रबी यमन , जानिबे शुमाली हिन्द , जानिबे जुनूबी दरियाए मोहीत वाक़े हैं। इस बहरे अबयज़ व अख़ज़र का तूल 2 हज़ार फ़रसख़ और अर्ज़ पाँच सौ फ़रसख़ है। इसमें बहुत से जज़ीरे आबाद हैं जिनमें एक सरान्दीब भी है इस किताब के पृष्ठ 295 में है कि आप कि ‘‘ साहेबुज़्ज़मान ’’ हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का लक़ब है। अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आप जिस मकान में रहते हैं उसे ‘‘ बैतुल हम्द ’’ कहते हैं।(आलामुल वुरा पृष्ठ 263 )

जज़ीराए खि़ज़रा में इमाम (अ.स.) से मुलाक़ात

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की क़याम गाह जज़ीराए खि़ज़रा में जो लोग पहुँचे हैं उनमें से शेख़ सालेह , शेख़ ज़ैनुल आब्दीन अली बिन फ़ाज़िल माज़न्देरानी का नाम नुमाया तौर पर नज़र आता है। आपकी मुलाक़ात की तस्दीक़ , फ़ज़ल बिन यहिया बिन अली ताबई कुफ़ी व शेख़ आलिम आलिम शेख़ शम्सुद्दीन नजी अली व शेख़ जलालुद्दीन , अब्दुल्लाह इब्ने अवाम हिल्ली ने फ़रमाई है।

अल्लामा मजलिसी ने आपके सफ़र की सारी रूदाद एक रिसाले की सूरत में ज़ब्त किया है जिसका मुसलसल ज़िक्र बेहारूल अनवार में मौजूद है। रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा के पृष्ठ 1 में है कि शेख़ अजल सईद शहीद बिन मोहम्मद मक्की और मीर शम्सुद्दीन मोहम्मद असद उल्लाह शुस्तरी ने भी तसदीक़ की है।

मोअल्लिफ़ किताबे रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा कहता है कि हज़रत की विलादत हज़रत की ग़ैबत , हज़रत का ज़ुहूर वग़ैरा जिस तरह रमज़े ख़ुदावन्दी और राज़े इलाही है उसी तरह आपकी जाए क़याम भी एक राज़ है जिसकी इत्तेला आम ज़रूरी नहीं है। वाज़े हो कि कोलम्बस के इदराक से भी क़ब्ल अमरीका का वजूद था।

इमामे ग़ायब का हर जगह हाज़िर होना

अहादीस से साबित है कि इमाम मेहदी (अ.स.) जो कि मज़हरूल अजाएब हज़रत अली (अ.स.) के पोते हैं , हर मक़ाम पर पहुँचते और हर जगह अपने मानने वालों के काम आते हैं। उलमा ने लिखा है कि आप ब वक़्ते ज़रूरी मज़हबी लोगों से मिलते हैं उन्हें देखते हैं यह और बात है कि उन्हें पहचान न सकें।(गा़एतुल मक़सूद)

इमाम मेहदी (अ.स.) और हज्जे काबा

यह मुसल्लेमात से है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) हर साल काबा के लिये मक्का मोअज़्ज़मा इसी तरह तशरीफ़ ले जाते हैं जिस तरह हज़रते खि़ज़र व इलयास (अ.स.) जाते हैं।(सिराज अल क़ुलूब पृष्ठ 77 )

अहमद कूफ़ी का बयान है कि मैं तवाफ़े काबा में मसरूफ़ व मशग़ूल था कि मेरी नज़र एक निहायत ख़ूब सूरत नवजवान पर पड़ी मैंने पूछा आप कौन हैं और कहां से तशरीफ़ लाए हैं ? आपने फ़रमाया ‘‘ अनल मेहदी व अनल क़ाएम ’’ मैं मेहदी आख़रूज़ ज़मा और क़ाएमे आले मोहम्मद (स अ व व ) हूँ।

ग़ानम हिन्दी का बयान है कि मैं इमाम मेहदी (अ.स.) की तलाश में एक मरतबा बग़दाद गया , एक पुल से गुज़रते हुए मुझे एक साहब मिले वह मुझे एक बाग़ में ले गए और उन्होंने मुझ से हिन्दी ज़बान में कलाम किया और फ़रमाया कि तुम इस साल हज के लिये ना जाओ वरना नुक़सान पहुँच जाऐगा। मोहम्मद बिन शाज़ान का कहना है कि मैं एक दफ़ा मदीने में दाखि़ल हुआ तो हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात हुई , उन्होंने मेरा पूरा नाम ले कर मुझे पुकारा , चुंकि पूरे नाम से कोई वाक़िफ़ न था इस लिये मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने पूछा आप कौन हैं ? फ़रमाया इमामे ज़मान हूँ।

अल्लामा शेख़ सुलेमान क़न्दूज़ी बलख़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने सालेह ने कहा मैंने ग़ैबते कुबरा के बाद इमाम मेहदी (अ.स.) को हजरे असवद के नज़दीक इस हाल में खड़े हुए देखा कि उन्हें लोग चारों तरफ़ से घेरे हुए हैं।(यनाबिउल मोवद्दता)

ज़मानाए ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) की बैअत

हज़रत शेख़ अब्दुल लतीफ़ हलबी हनफ़ी का कहना है कि मेरे वालिद शेख़ इब्राहीम हुसैन का शुमार हलब के मशएख़ अज़ाम में था। वह फ़रमाते हैं कि मेरे मिस्री उस्ताद ने बयान किया है कि मैंने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के हाथ पर बैअत की है।(नियाबुल मोवद्दता बाब 85 पृष्ठ 392 )

इमाम मेहदी (अ.स.) की मोमेनीन से मुलाक़ात

रिसालए जज़ीरए खि़ज़रा के पृष्ठ 16 में ब हवाला अहादीसे आले मोहम्मद (स अ व व ) मरक़ूम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से हर मोमिन की मुलाक़ात होती है यह और बात है कि मोमेनीन उन्हें मसलहते ख़ुदा वन्दी की बिना पर इस तरह न पहचान सकें जिस तरह पहचान्ना चाहिये। मुनासिब मालूम होता है कि इस मुक़ाम पर मैं अपना ख़्वाब लिख दूँ। वाक़िया है कि आज कल जब कि मैं इमामे ज़माना (अ.स.) के हालात लिख रहा हूँ हदिसे मज़कूर पर नज़र डालने के बाद फ़ौरन ज़हन में यह ख़्याल पैदा हुआ कि मौला सब को दिखाई देते हैं लेकिन मुझे आज तक नज़र नहीं आये। इसके बाद मैं बिस्तरे इस्तेराहत पर गया और सोने के इरादे से लेटा। अभी नींद ना आई थी और क़तई तौर पर नीम बेदारी(ग़ुनूदगी) की हालत थी कि नागाह मैंने देखा कि मेरे मकान से मशरिक़ की जानिब ता बा हद्दे नज़र एक क़ौसी ख़त पड़ा हुआ है यानी शुमाल की जानिब का सारा हिस्सा आलमे पहाड़ है और उस पर इमाम मेहदी (अ.स.) तलवार लिये ख़ड़े हैं और यह कहते हुए कि ‘‘ निस्फ़ दुनिया आज ही फ़तह कर लूंगा ’’ शुमाल की जानिब एक पांव बढ़ा रहे हैं। आपका क़द आम इंसानों के क़द से डेयोढ़ा और जिस्म दोहरा है। बड़ी बड़ी सुरगमीं आंखें और चेहरा इन्तेहाई रौशन है। आपके पट्टे कटे हुए हैं और सारा लिबास सफ़ैद है और वक़्त अस्र का है। यह वाक़िया 30 नवम्बर 1958 ई0 शबे यक शम्बा(रवीवार की रात) ब वक़्त 4.30 बजे शब का है।

मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद का इमामे अस्र (अ.स.) से इस्तेफ़ादा करना

हमारे अकसर उलेमा इल्मी मसाएल और मज़हबी व मआशरती मराहिल हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) ही से तय करते आये हैं। मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद जो हमारे अज़ीमुल क़द्र मुजतहिद थे उनके मुताअल्लिक़ है कि एक शब आपने ज़रीह नजफ़े अशरफ़ में एक मसला लिख कर डाला , उसके जवाब में तहरीरन कहा गया कि तुम्हारा इमामे ज़माना इस वक़्त मस्जिदे कूफ़ा में नमाज़ गुज़ार है , तुम वहां जाओ। वह वहा जा पहुँचे। खुद ब खुद मस्जिद का दरवाज़ा खुद गया और आप अन्दर दाखि़ल हो गये। आप ने मसले का जवाब हासिल किया और आप मुतमइन हो कर बरामद हुए।

जनाब बहरूल उलूम का इमामे ज़माना (अ.स.) से मुलाका़त करना

किताब क़सासुल उलेमा मोअल्लेफ़ा अल्लामा तन्काबनी पृष्ठ 55 में मुजतहिदे आज़म करबलाए मोअल्ला जनाब आक़ा सय्यद मोहम्मद मेहदी बहरे उलूम के तज़किरे में मरक़ूम है कि एक शब आप नमाज़ में अन्दूरूने हरम मशग़ूल थे कि इतने में इमामे अस्र (अ.स.) अपने अबो जद की ज़्यारत के लिये तशरीफ़ लाये जिसकी वजह से उनकी ज़बान में लुकनत हुई और बदन में एक क़िस्म का राशा पैदा हो गया फिर जब वह वापस तशरीफ़ ले गये तो उन पर जो एक ख़ास क़िस्म की कैफ़ियत तारी थी वह जाती रही। इसके अलावा आपके इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताब मज़कूरा में लिखे हैं।

इमाम मेहदी (अ.स.) का हिमायते मज़हब फ़रमाना

वाक़िए‘‘ अनार ’’

किताब कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 में है कि सय्यद बाक़ी बिन अतूवाह इमामिया मज़हब के थे और उनके वालिद ज़ैद यह ख़्याल रखते थे। एक दिन उनके वालिद अतूवाह ने कहा कि मैं सख़्त अलील हो गया हूँ और अब बचने की कोई उम्मीद नहीं। हर क़िस्म के हकीमों का इलाज कर चुका हूँ। ऐ नूरे नज़र मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि अगर मुझे तुम्हारे इमाम ने शिफ़ा दे दी तो मैं मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लूंगा। यह कहने के बाद जब यह रात को बिस्तर पर गये तो इमामे ज़माना का उन पर ज़हूर हुआ , इमाम ने मक़ामे मर्ज़ को अपने हाथ से मस कर दिया और वह मर्ज़ जाता रहा , अतूवाह ने उसी वक़्त मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लिया और रात ही में जा कर अपने फ़रज़न्द बाक़ी अतूवाह को ख़ुश ख़बरी दे दी।

इसी तरह किताब जवाहरूल बयान में है कि बहरैन का वाली नसरानी और उसका वज़ीर ख़वारजी था। वज़ीर ने बादशाह के सामने चन्द ताज़ा अनार पेश किये जिन पर ख़ुल्फ़ा के नाम अल्ल तरतीब कन्दा थे और बादशाह को यक़ीन दिलाया कि हमारा मज़हब हक़ है और तरतीबे खि़लाफ़त मन्शाए क़ुदरत के मुताबिक़ दुरूस्त है। बादशाह के दिल में यह बात कुछ इस तरह बैठ गई िकवह यह समझने पर मजबूर हो गया कि वज़ीर का मज़हब हक़ है और इमामिया राहे बातिल पर गामज़न है। चुनान्चे उसने अपने ख़्याल की तकमील के लिये जुमला उलेमाए इमामिया को जो उसके अहदे हुकूमत में थे बुला भेजा और उन्हें अनार दिखा कर उन से कहा कि इसकी रद्द में कोई माक़ूल दलील लाओ वरना हम तुम्हें क़त्ल कर के तमाम मज़हब को जड़ से उखा़ड़ देंगे। इस वाक़िए ने उलेमाए कराम में एक अजीब क़िस्म का हैज़ान पैदा कर दिया। बिला आखि़र सब उलेमा आपस में मशवरे के बाद ऐसे दस उलेमा पर मुत्तफ़िक़ हो गये जो उन में निसबतन मुक़द्दस थे और प्रोग्राम यह बना कि जंगल में एक एक आलिम शब में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से इस्तेआनत करे , चूंकि एक शब की मोहलत व मुद्दत मिली थी इस लिये परेशानी ज़्यादा थी। ग़रज़ कि उलेमा ने जंगल में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से फ़रियाद का सिलसिला शुरू किया। दो आलिम अपनी अपनी मुद्दते फ़रयादो फ़ुगां ख़त्म होने पर जब वापस आये और तीसरे आलिम हज़रत मोहम्मद बिन अली की बारी आई तो आपने बदस्तूर सहरा में जाकर मुसल्ला बिछा दिया और नमाज़ के बाद इमामे ज़माना (अ.स.) को अपनी तरफ़ मुतवज्जे करने की कोशिश की लेकिन नाकाम हो कर वापस आते हुए उन्हें एक शख़्स रास्ते में मिला , उसने पूछा क्या बात है क्यों परेशान हो ? आपने अर्ज़ की इमामे ज़माना की तलाश है और वह तशरीफ़ ला नहीं रहे हैं। उस शख़्स ने कहा ‘‘ अना साहेबुल अस्र फ़ा ज़िक्र हाजतेका ’’ मैं ही तुम्हारा इमामे ज़माना हूँ। कहो क्या कहते हो। मोहम्मद बिन अली ने कहा कि अगर साहेबुल अस्र हैं तो आपसे हाजत बयान करने की ज़रूरत क्या ? आपको ख़ुद ही इल्म होगा।

इसके जवाब में उन्होंने फ़रमाया कि सुनो ! वज़ीर के कमरे में एक लकड़ी का सन्दूक़ है उसमें मिट्टी के कुछ सांचे रखे हुए हैं। जब अनार छोटा होता है वज़ीर उस पर सांचा चढ़ा देता है और जब वह बढ़ता है तो उस पर नाम कन्दा हो जाते हैं। जो सांचे में कन्दा हैं। मोहम्मद बिन अली ! तुम बादशाह को अपने हमराह ले जाकर वज़ीर के दजल व फ़रेब को वाज़े कर दो। वह अपने इरादे से बाज़ आ जायेगा और वज़ीर को सज़ा देगा। चुनान्चे ऐसा ही किया गया और वज़ीर बरख़ास्त कर दिया गया।(किताब बदाए उल अख़बार मुल्ला इस्माईल सबज़वारी , पृष्ठ 150 व सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 536 मुद्रित नजफ़े अशरफ़)

इमामे अस्र (अ.स.) का वाक़िए करबला बयान करना

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से पूछा गया कि ‘‘كهيعص ’’ का क्या मतलब है। तो फ़रमाया कि इसमें काफ़ से करबला है , हे से हलाकते इतरत , ये से यज़ीद मलऊन , ऐन से अतशे हुसैनी , सुवाद से सब्रे आले मोहम्मद मुराद है। आपने फ़रमाया कि आयत में जनाबे ज़करिया का ज़िक्र किया गया है। जब ज़करिया को वाक़िए करबला की इत्तेला हुई तो वह तीन रोज़ तक मुसलसल रोते रहे।(तफ़सीरे सानी पृष्ठ 279 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के तूले उम्र की बहस

बाज़ मुशतशरक़ीन व माहेरीन आमार का कहना है कि ‘‘ जिनके आमाल व किरदार अच्छे होते हैं और जिनका पेज न.ए बातिन कामिल होता है उनकी उमरें तवील होती हैं। यही वजह है कि उलमा फ़ुक़हा और सुलहा की उमरें अकसर तवील देखी गई हैं और हो सकता है कि तवील उमर इमाम मेहदी (अ.स.) की यह भी वजह हो , इन से क़ब्ल जो आइम्मा (अ.स.) गुज़रे वह शहीद कर दिये गए और इन पर दुशमन का दस्तरस न हुआ तो यह ज़िन्दा रह गए और अब तक बाक़ी हैं। लेकिन मेरे नज़दीक़ उम्र का तक़र्रूर व तअय्युन दस्त एज़िदी में है उसे इख़्तेयार है कि किसी की उम्र कम रखे किसी की ज़्यादा। उसकी मोअय्यन करदा मुद्दत उम्र में एक पल का भी तफ़रेक़ा नहीं हो सकता।

तवारीख़ व अहादीस से मालूम होता है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने बाज़ लोगों को काफ़ी तवील उमरे अता की हैं। उम्र की तवालत मसलहते ख़ुदा वन्दी पर मब्नी है। इससे उसने अपने दोस्दों और दुश्मनों को नवाज़ा है। दोस्तों में हज़रत ईसा (अ स ) , हज़रत इदरीस (अ स ) , हज़रत खि़ज़्र (अ स ) , हज़रत इलयास (अ.स.) और दुश्मनों में से इबलीस लईन , दज्जाल व बताल , याजूज माजूज वग़ैरा हैं और हो सकता है कि चुंकि क़यामत उसूले दीने इस्लाम से है और इसकी आमद में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर ख़ास हैसियत रखता है लेहाज़ा उनका ज़िन्दा व बाक़ी रहना मक़सद रहा हो और उनके तवीले उम्र के ऐतिराज़ को रद और रफ़ा दफ़ा करने के लिये उसने बहुत से अफ़राद की उम्रें तवील कर दी हों। मज़कूरा अफ़राद को जाने दीजिए। आम इंसानों की उम्रों को देखिए बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जिनकी उम्रे काफ़ी तवील रही है। मिसाल के लिये मुलाहेज़ा हों:-

1. लुक़मान की उम्र 3500 साल , 2. औज बिन अनक़ की उम्र 3300 साल और बक़ौले 3600 साल , 3. ज़ुलक़रनैन की उम्र 3000 साल , 4. हज़रत नूह (अ.स.) की उम्र 900 साल , 5. ज़हाक़ व 6. तमहूरस की उम्रें 1000 साल , 7. क़ैनान की उम्र 900 साल , 8. महलाइल की उम्र 800 साल , 9. नफ़ीस बिन अब्दुल्लाह की उम्र 700 साल , 10. रबी बिन उम्र उर्फ़ सतीह काहिन की उम्र 600 साल , 11. हाकिमे अरब आमिर बिन ज़रब की उम्र 500 साल , 12. साम बिन नूह 500 साल , 13. हरस बिन मजाज़ ज़र हमी की उम्र 400 साल , 14. अरमख़्शद की उम्र 400 साल , 15. दरीद बिन ज़ैद की उम्र 456 साल , 16. सलमान फ़ारसी की उम्र 400 साल , 17. उमर बिन दूसी की उम्र 400 साल , 18. ज़ुहैर बिन जनाब बिन अब्दुल्लाह की उम्र 430 साल , 19. हरस बिन ज़यास की उम्र 400 साल , 20. काब बिन जमजा की उम्र 390 साल , 21. नसर बिन धमान बिन सलमान की उम्र 390 साल , 22. क़ैस बिन साद की उम्र 380 साल , 23. उमर बिन रबी की उम्र 333 साल , 24. अक्सम बिन ज़ैफ़ी की उम्र 336 साल , 25. उमर बिन तफ़ील अदवानी की उम्र 200 साल थी।(ग़ाएतलम क़सूद पृष्ठ 103 आलामुल वुरा पृष्ठ 270 )

इन लोगों की तवील उम्रों को देखने के बाद यह हरगिज़ नहीं कहा जा सकता कि ‘‘ चुंकि इतनी उम्र का इंसान नहीं होता , इस लिये इमाम मेहदी (अ.स.) का वजूद हम तसलीम नहीं करते। क्यों कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इस वक़्त (किताब लिखते वक्त) 1393 हिजरी में सिर्फ़ ग्यारह सौ अड़तालिस साल की होती है जो मज़कूरा उम्रों में है लुक़मान हकीम और ज़ुलक़रनैन जैसे मुक़द्दस लोगों की उम्रों से बहुत कम है।

अलग़रज़ कु़रआने मजीद , अक़वाले उलमाए इस्लाम और अहादीस से यह साबित होता है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं और क़यामत के क़रीब ज़हूर करेंगे और आप उसी तरह ज़मानाए ग़ैबत में भी हुज्जते ख़ुदा हैं जिस तरह बाज़ अम्बिया अपने अहदे नबूवत में ग़ायब होने के दौरान में भी हुज्जत थे।(अजाएब अल क़सस पृष्ठ 191 ) और अक़ल भी यही कहती है कि आप ज़िन्दा और बाक़ी मौजूद हैं , क्यों कि जिस के पैदा होने पर उलमाए इस्लाम का इत्तेफ़ाक़ हुआ और वफ़ात का कोई एक भी ग़ैर मुतअसिब आलिम क़ाएल न हुआ और तवील उल उम्र इन्सानों के होने की मिसालें भी मौजूद हों तो ला मुहाला उसका मौजूद और बाक़ी होना मानना पड़ेगा। दलील मन्तक़ी से भी यही साबित होता है लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

इन तमाम शवाहिद और दलाएल की मौजूदगी में जिनका हम ने इस किताब में ज़िक्र किया है मौलवी मोहम्मद अमीन मिस्री का रिसाला ‘‘ तूले इस्लाम ’’ कराची जिल्द 14 पृष्ठ 45 व पृष्ठ 94 में यह कहना कि , ‘‘ शियों को इब्तेदाअन रूए ज़मीन पर कोई ज़ाहेरी ममलेकत का़एम करने में कामयाबी न हो सकी इनको तकलीफ़ें दी गईं और परागन्दा और मुन्तशिर कर दिया गया तो उन्होंने हमारे ख़्याल के मुताबिक़ इमामे मुन्तज़िर और इमाम मेहदी (अ.स.) वग़ैरा के पुर उम्मीद अक़ाएद ईजाद कर लिये ताकि अवाम की ढारस बन्धी रहे।

और मुल्ला अख़ून्द दरवेज़ा का किताब इरशाद अल तालेबीत पृष्ठ 396 मे यह फ़रमाना कि , ‘‘ हिन्दुस्तान में एक शख़्स अब्दुल्लाह नामी पैदा होगा जिसकी बीवी अमीना(आमना) होगी। उसके एक लड़का पैदा होगा जिसका नाम मोहम्मद होगा , वही कूफ़े जा कर हुकूमत करेगा। लोगों का यह कहना दुरूस्त नहीं कि इमाम मेहदी (अ.स.) वही हैं जो इमाम हसन असकरी (अ.स.) के फ़रज़न्द हैं। ’’ हद दरजा मज़हक़ा ख़ेज़ , अफ़सोसनाक और हैरत अंगेज़ है क्यों कि उलेमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि ‘‘ अल मेहदी मन वलद अल इमाम अल हसन अल असकरी ’’ इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के बेटे हैं और 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हो चुके हैं।

मुलाहेज़ा हो , असआफ़ अल राग़बैन , दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़े इब्नुल वरदी , नेयाबुल मोअद्दता , तारीख़े कामिल , तारीख़े तबरी , नुरूल अबसार , उसूले काफ़ी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिलाउल उयून , इरशाद मुफ़ीद , आलामुल वरा , जामाए अब्बासी , सवाएक़े मोहर्रेक़ा , मतालेबुस सूऊल , शवाहेदुन नबूवत , अर हज्जुल मतालिब , बेहारूल अनवार , मनाक़िब वग़ैरा।

हदीसे नअसल और इमामे अस्र(अ स . )

नअसल एक यहूदी था जिससे हज़रत आयशा हज़रत उस्मान को तशबीह दिया करती थीं और रसूले इस्लाम (स अ व व ) के बाद फ़रमाया करती थीं इस नअसले इस्लामी उस्मान को क़त्ल कर दो। मुलाहेज़ा हो ,(निहायत अल लुग़ता अल्लामा इब्ने असीर जज़री पृष्ठ 321 ) यही नअसल एक दिन हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ , मुझे अपने ख़ुदा , अपने दीन , अपने ख़ुलफ़ा का ताअर्रूफ़ कराईये अगर मैं आपके जवाब से मुतमईन हो गया तो मुसलमान हो जाऊंगा। हज़रत ने निहायत बलीग़ और बेहतरीन अंदाज़ में ख़ल्लाके आलम का ताअर्रूफ़ कराया। उसके बाद दीने इस्लाम की वज़ाहत की , ‘‘ का़ला सदक़त ’’ नअसल ने कहा आपने बिल्कुल दुरूस्त फ़रमाया फिर उसने अर्ज़ कि मुझे अपने वसी से आगाह कीजिए और बताइये की वह कौन हैं ? आपने फ़रमाया मेरे वसी अली बिन अबी तालिब (अ.स.) और उनके फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) के सुल्ब से नौ (9) बेटे क़यामत तक होंगे। उसने कहा सब के नाम बताइये। आपने बारह इमामों के नाम बताए। नामों को सुनने के बाद वह मुसलमान हो गया और कहने लगा कि मैंने कुतुबे आसमानी में इन बारह नामों को इसी ज़बान के अलफ़ाज़ में देखा है। फिर उसने हर वसी के हालात बयान किये। करबला का होने वाला वाक़िया बताया। इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की ख़बर दी और कहा कि हमारे बारह इस्बात में से लादी बिन बरखि़या ग़ायब हो गये थे। फिर मुद्दतों के बाद ज़ाहिर हुये और अज़ सरे नौ दीन की बुनियादें इस्तेवार (मज़बूत) कीं।

हज़रत ने फ़रमाया इसी तरह हमारा बारहवां जानशीन इमाम मेहदी मोहम्मद बिन हसन (अ.स.) तवील मुद्दत तक ग़ायब रह कर ज़हूर करेगा और दुनियां को अदलो इन्साफ़ से भर देगा।

(ग़ायतुल मक़सूद पृष्ठ 134 बहवाला फ़राएद अल सिमतैन हमवीनी)