रमज़ानुल मुबारक की दुआऐ

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रमज़ानुल मुबारक की दुआऐ कैटिगिरी: दुआ व ज़ियारात

रमज़ानुल मुबारक की दुआऐ
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रमज़ानुल मुबारक की दुआऐ

रमज़ानुल मुबारक की दुआऐ

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


1

दुआ ऐ कुमैल

दुआऐ कुमैल

तरजुमा

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ بِرَحْمَتِكَ الَّتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْ‏ءٍ وَبِقُوَّتِكَ الَّتِي قَهَرْتَ بِهَا كُلَّ شَيْ‏ءٍ وَخَضَعَ لَهَا كُلُّ شَيْ‏ءٍ وَذَلَّ لَهَا كُلُّ شَيْ‏ءٍ

ऐ अल्लाह मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ , तुझे तेरी उस रहमत का वास्ता जो हर चीज़ को घेरे हुए है , तेरी उस कुदरत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर ग़ालिब है , जिस के सबब हर चीज़ तेरे आगे झुकी है

وَبِجَبَرُوتِكَ الَّتِي غَلَبْتَ بِهَا كُلَّ شَيْ‏ءٍ وَبِعِزَّتِكَ الَّتِي لاَ يَقُومُ لَهَاشَيْ‏ءٌ وَبِعَظَمَتِكَ الَّتِي مَلَأَتْ كُلَّ شَيْ‏ءٍ وَبِسُلْطَانِكَ الَّذِي عَلاَ كُلَّ شَيْ‏ءٍ

और जिस के सामने हर चीज़ आजिज़ है , तेरी इस जब्र्रुत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर हावी है , तेरी इस इज्ज़त का वास्ता जिस के आगे कोई चीज़ ठहर नहीं पाती , तेरी उस अजमत का वास्ता जो हर चीज़ से नुमाया है , तेरी उस सल्तनत का वास्ता जो हर चीज़ पर कायम है

وَبِوَجْهِكَ الْبَاقِي بَعْدَ فَنَاءِ كُلِّ شَيْ‏ءٍ وَبِأَسْمَائِكَ الَّتِي مَلَأَتْ أَرْكَانَ كُلِّ شَيْ‏ءٍ وَبِعِلْمِكَ الَّذِي أَحَاطَ بِكُلِّ شَيْ‏ءٍ وَبِنُورِ وَجْهِكَ الَّذِي أَضَاءَ لَهُ كُلُّ شَيْ‏ءٍ

तेरी उस ज़ात का वास्ता जो हर चीज़ के फ़ना हो जाने के बाद भी बाकी रहेगी , तेरे उन नामो का वासता जिन के असरात ज़र्रे ज़र्रे में तारी व सारी हैं , तेरे उस इल्म का वास्ता जो हर चीज़ का अहाता किये हुए हैं , तेरी ज़ात के उस नूर का वास्ता जिस से हर चीज़ रोशन है!

يَا نُورُ يَا قُدُّوسُ يَا أَوَّلَ الْأَوَّلِينَ وَيَا آخِرَ الْآخِرِينَ‏ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تَهْتِكُ الْعِصَمَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُنْزِلُ النِّقَمَ‏ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُغَيِّرُ النِّعَمَ

ऐ हकीकी नूर! ऐ पाक व पाकीज़ा! ए सब पहलों से पहले , ऐ सब पिछलो से पिछले (ए अल्लाह मेरे सब गुनाह माफ़ कर दे जो अताब का मुस्तहक बनाते हैं! ऐ अल्लाह! मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जिन की वजह से बालाएं आती हैं! ऐ अल्लाह मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो तेरी नेमतों से महरूमी का सबब बनते हैं!

اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تَحْبِسُ الدُّعَاءَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُنْزِلُ الْبَلاَءَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي كُلَّ ذَنْبٍ أَذْنَبْتُهُ وَكُلَّ خَطِيئَةٍ أَخْطَأْتُهَا

ऐ अल्लाह , मेरे वो सब गुनाह बख्श दे जो दुआएं कबूल नहीं होने देते! ए अल्लाह , मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो मुसीबत लाते हैं! ऐ अल्लाह , मेरी इन सारी खाताओं से दर गुज़र कर जो मैंने जान बूझ कर या भूले से की हैं!

اللَّهُمَّ إِنِّي أَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِذِكْرِكَ وَأَسْتَشْفِعُ بِكَ إِلَى نَفْسِكَ‏ وَأَسْأَلُكَ بِجُودِكَ أَنْ تُدْنِيَنِي مِنْ قُرْبِكَ وَأَنْ تُوزِعَنِي شُكْرَكَ وَأَنْ تُلْهِمَنِي ذِكْرَكَ

ऐ अल्लाह , मैं तुझे याद करके तेरे करीब आना चाहता हूँ ! तेरी जनाब में तुझी को अपना सिफारशी ठहराता हूँ , और तेरे करम का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे अपना कुर्ब अता कर ) मुझे अदाए शुक्र की तौफीक दे और अपनी याद मेरे दिल में डाल दे !

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ سُؤَالَ خَاضِعٍ مُتَذَلِّلٍ خَاشِعٍ‏ أَنْ تُسَامِحَنِي وَتَرْحَمَنِي وَتَجْعَلَنِي بِقِسْمِكَ رَاضِياً قَانِعاً وَفِي جَمِيعِ الْأَحْوَالِ مُتَوَاضِعاً

ऐ अल्लाह , मैं तुझ से खोज़ू व खुशू और गिरया व ज़ारी से अर्ज़ करता हूँ के तू मेरी भूल चूक माफ़ कर , मुझ पर रहम फार्म और तू में मेरा जो हिस्सा मुक़र्रर किया है , मुझे इस पर राज़ी , काने और हर हाल में मुतमईन रख!

اللهم وأسألك سؤال من اشتدّت فاقته ، وأنزل بك عند الشدائد حاجته ، وعظم فيما عندك رغبته

ऐ अल्लाह , मै तेरे हजूर में इस शख्स की मानिंद सवाल करता हूँ जिस पर सख्त फाके गुज़र रहे हों , जो मुसीबतों से तंग आकर अपनी ज़रुरत तेरे सामने पेश करे , जो तेरे लुत्फो करम का ज्यादा से ज्यादा खाहिश्मंद हो!

اللهم عظم سلطانك وعلا مكانك ، وخفي مكرك ، وظهر أمرك ، وغلب قهرك ، وجرت قدرتك ، ولا يمكن الفرار من حكومتك

ऐ अल्लाह , तेरी सल्तनत बहुत बड़ी है , तेरा रुतबा बहुत बुलंद है , तेरी तदबीर पोशीदा है , तेरा हुकुम साफ़ ज़ाहिर है , तेरा कहर ग़ालिब है , तेरी कुदरत कार फरमा है , और तेरी हुकूमत से निकल जाना मुमकिन नहीं है!

اللهم لا أجد لذنوبي غافراًوَ لاَ لِقَبَائِحِي سَاتِراً وَلاَ لِشَيْ‏ءٍ مِنْ عَمَلِيَ الْقَبِيحِ بِالْحَسَنِ مُبَدِّلاً غَيْرَكَ‏ لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ سُبْحَانَكَ وَبِحَمْدِكَ ظَلَمْتُ نَفْسِي وَتَجَرَّأْتُ بِجَهْلِي‏ وَسَكَنْتُ إِلَى قَدِيمِ ذِكْرِكَ لِي وَمَنِّكَ عَلَيَ

ऐ अल्लाह , मेरे गुनाह बख्शने , मेरे ऐब ढाँकने और मेरे किसी बुरे अमल को अच्छे अमल से बदलने वाला तेरे सिवा कोई नहीं है! तेरे इलावा और कोई माबूद नहीं है! तू पाक है , और मै तेरी ही हम्दो सना करता हूँ! मैं ने अपनी ज़ात पर ज़ुल्म किया और अपनी नादानी के बाएस बेग़ैरत बन गया! मै यह सोच कर मुतमईन हो गया के तू ने मुझे पहले भी याद रखा और अपनी नेमतों से नवाज़ा है!

اللَّهُمَّ مَوْلاَيَ كَمْ مِنْ قَبِيحٍ سَتَرْتَهُ‏وَكَمْ مِنْ فَادِحٍ مِنَ الْبَلاَءِ أَقَلْتَهُ وَكَمْ مِنْ عِثَارٍ وَقَيْتَهُ‏ وَكَمْ مِنْ مَكْرُوهٍ دَفَعْتَهُ وَكَمْ مِنْ ثَنَاءٍ جَمِيلٍ لَسْتُ أَهْلاً لَهُ نَشَرْتَهُ‏

اللَّهُمَّ عَظُمَ بَلاَئِي وَأَفْرَطَ بِي سُوءُ حَالِي وَقَصُرَتْ بِي أَعْمَالِي‏ وَقَعَدَتْ بِي أَغْلاَلِي وَحَبَسَنِي عَنْ نَفْعِي بُعْدُ أَمَلِي وَخَدَعَتْنِي الدُّنْيَا بِغُرُورِهَا وَنَفْسِي بِجِنَايَتِهَا

ऐ अल्लाह , ऐ मेरे मालिक , तू ने मेरी कितनी ही बुराईयों की परदापोशी की , कितनी ही सख्त बालाओं को मुझ से टाला , कितनी ही नाज़िशों से मुझ को बचाया , कितनी ही आफतों को रोका! और मेरी कितनी ही ऐसी खूबियाँ लोगो में मशहूर कर दीं जिन का मै अहल भी ना था!

وَمِطَالِي‏ يَا سَيِّدِي فَأَسْأَلُكَ بِعِزَّتِكَ أَنْ لاَ يَحْجُبَ عَنْكَ دُعَائِي سُوءُ عَمَلِي وَفِعَالِي‏ وَلاَ تَفْضَحْنِي بِخَفِيِّ مَا اطَّلَعْتَ عَلَيْهِ مِنْ سِرِّي وَلاَ تُعَاجِلْنِي بِالْعُقُوبَةِ عَلَى مَا عَمِلْتُهُ فِي خَلَوَاتِي‏ مِنْ سُوءِ فِعْلِي وَإِسَاءَتِي وَدَوَامِ تَفْرِيطِي وَجَهَالَتِي وَكَثْرَةِ شَهَوَاتِي وَغَفْلَتِي

ग़लतकारियां मेरी दुआ के कबूल होने में रुकावट ना बने! मेरे जिन भेदों से तू वाकिफ है इन की वजह से मुझे रुसवा ना करना , मै ने अपनी तन्हाईयों में जो बदी , बुराई और मुसलसल कोताही की है और नादानी , बढ़ी हुई खाहिशाते नफस और गफलत के सबब जो काम किये हैं मुझे उनकी सजा देने में जल्दी ना करना!

وَكُنِ اللَّهُمَّ بِعِزَّتِكَ لِي فِي كُلِّ الْأَحْوَالِ رَءُوفاً وَعَلَيَّ فِي جَمِيعِ الْأُمُورِ عَطُوفاً

ऐ अल्लाह , अपनी इज्ज़त के तुफैल हर हाल में मुझ पर मेहरबान रहना , और मेरे तमाम मामलात में मुझ पर करम करते रहना!

إِلَهِي وَرَبِّي مَنْ لِي غَيْرُكَ أَسْأَلُهُ كَشْفَ ضُرِّي وَالنَّظَرَ فِي أَمْرِي‏ إِلَهِي وَمَوْلاَيَ أَجْرَيْتَ عَلَيَّ حُكْماً اتَّبَعْتُ فِيهِ هَوَى نَفْسِي‏ وَلَمْ أَحْتَرِسْ فِيهِ مِنْ تَزْيِينِ عَدُوِّي فَغَرَّنِي بِمَا أَهْوَى وَأَسْعَدَهُ عَلَى ذَلِكَ الْقَضَاءُ

ऐ मेरे अल्लाह , ऐ मेरे परवरदिगार , तेरे सिवा मेरा कौन है जिस से मै अपनी मुसीबत को दूर करने और अपने बारे में नज़रे करम करने का सवाल करूँ! ऐ मेरे माबूद और मेरे मालिक , मै ने खुद अपने खिलाफ फैसला दे दिया क्योंके मै हवाए नफ़्स के पीछे चलता रहा और मेरे दुश्मन ने जो मुझे सुनहरे खाव्ब दिखाए मै ने इन से अपना बचाओ नहीं किया , चुनान्चेह इस ने मुझे खाहिशात के जाल में फंसा दिया , इस में मेरी तकदीर ने भी इस की मदद की! इस तरह मै ने तेरी मुक़र्रर की हुई बाज़ हदें तोड़ दीं और तेरे बाज़ अहकाम की नाफ़रमानी की!

فَتَجَاوَزْتُ بِمَا جَرَى عَلَيَّ مِنْ ذَلِكَ بَعْضَ حُدُودِكَ وَخَالَفْتُ بَعْضَ أَوَامِرِكَ‏ فَلَكَ الْحُجَّةُ عَلَيَّ فِي جَمِيعِ ذَلِكَ وَلاَ حُجَّةَ لِي فِيمَا جَرَى عَلَيَّ فِيهِ قَضَاؤُكَ وَأَلْزَمَنِي حُكْمُكَ وَبَلاَؤُكَ‏

बहरहाल तू हर तारीफ़ का मुस्तहक है और जो कुछ पेश आया इस में खता मेरी ही है! इस बारे में तुने जो फैसला किया , तेरा जो हुक्म जारी हुआ और तेरी तरफ से मेरी जो आजमाईश हुई इस के खिलाफ मेरे पास कोई उज्र नहीं है!

وَقَدْ أَتَيْتُكَ يَا إِلَهِي بَعْدَ تَقْصِيرِي وَإِسْرَافِي عَلَى نَفْسِي مُعْتَذِراً نَادِماً مُنْكَسِراً مُسْتَقِيلاً مُسْتَغْفِراً مُنِيباً مُقِرّاً مُذْعِناً مُعْتَرِفاً لاَ أَجِدُ مَفَرّاً مِمَّا كَانَ مِنِّي وَلاَ مَفْزَعاً أَتَوَجَّهُ إِلَيْهِ فِي أَمْرِي‏ غَيْرَ قَبُولِكَ عُذْرِي وَإِدْخَالِكَ إِيَّايَ فِي سَعَةِ مِنْ رَحْمَتِكَ‏

ऐ मेरे माबूद , मै ने अपनी इस कोताही और अपने नफस पर ज़ुल्म के बाद माफ़ी मांगने के लिए हाज़िर हुआ हूँ! मै अपने किये पर शर्मसार हूँ , दिल शिकस्ता हूँ , मै अपने करतूतों से बाज़ आया , बक्शीश का तलबगार हूँ , पशेमानी के साथ तेरी जनाब में हाज़िर हूँ , जो कुछ मुझ से सरज़द हो चूका , उस के बाद मेरे लिए ना कोई भागने की जगह है और ना कोई ऐसा मददगार जिस के पास मै अपना मामला ले जाऊं! सिर्फ यही है के तू मेरी माज़रत कबूल कर ले , मुझे अपने दामने रहमत में जगह देदे!

اللَّهُمَّ فَاقْبَلْ عُذْرِي وَارْحَمْ شِدَّةَ ضُرِّي وَفُكَّنِي مِنْ شَدِّ وَثَاقِي‏ يَا رَبِّ ارْحَمْ ضَعْفَ بَدَنِي وَرِقَّةَ جِلْدِي وَدِقَّةَ عَظْمِي‏

ऐ मेरे माबूद , मेरी माफ़ी की दरखास्त मंज़ूर कर ले , मेरी सख्त बदहाली पर रहम कर और मेरी गिरह कुशाई फर्मा दे! ऐ मेरे परवरदिगार , मेरे जिस्म की नातवानी , मेरी जिल्द की कमजोरी और मेरी हड्डियों की नाताक़ती पर रहम कर!

يَا مَنْ بَدَأَ خَلْقِي وَذِكْرِي وَتَرْبِيَتِي وَبِرِّي وَتَغْذِيَتِي هَبْنِي لاِبْتِدَاءِ كَرَمِكَ وَسَالِفِ بِرِّكَ بِي‏ يَا إِلَهِي وَسَيِّدِي وَرَبِّي أَتُرَاكَ مُعَذِّبِي بِنَارِكَ بَعْدَ تَوْحِيدِكَ‏ وَبَعْدَ مَا انْطَوَى عَلَيْهِ قَلْبِي مِنْ مَعْرِفَتِكَ‏ وَلَهِجَ بِهِ لِسَانِي مِنْ ذِكْرِكَ وَاعْتَقَدَهُ ضَمِيرِي مِنْ حُبِّكَ‏ وَبَعْدَ صِدْقِ اعْتِرَافِي وَدُعَائِي خَاضِعاً لِرُبُوبِيَّتِكَ‏

ऐ वो ज़ात जिस ने मुझे वजूद बख्शा , मेरा ख्याल रखा , मेरी परवरिश का सामान किया , मेरे हक में बेहतर की और मेरे लिए ग़ज़ा के असबाब फराहम किये! बस जिस तरह तू ने इस से पहले मुझ पर करम किया और मेरे लिए बेहतरी के सामन किये , अब भी मुझ पर वो पहला सा फज़ल व करम जारी रख! ऐ मेरे माबूद , मेरे मालिक , ऐ मेरे परवरदिगार , मै हैरान हूँ के क्या तू मुझे अपनी आतिशे जहन्नम का अज़ाब देगा हालांकि मै तेरी तौहीद का इकरार करता हूँ , मेरा दिल तेरी मार्फ़त से सरशार है , मेरी ज़बान पर तेरा ज़िक्र जारी है , मेरे दिल में तेरी मुहब्बत बस चुकी है और मै तुझे अपना परवरदिगार मान कर सच्चे दिल से अपने गुनाहों का एतेराफ करता हूँ , और गिडगिडा कर तुझ से दुआ मांगता हूँ!

هَيْهَاتَ أَنْتَ أَكْرَمُ مِنْ أَنْ تُضَيِّعَ مَنْ رَبَّيْتَهُ أَوْ تُبْعِدَ مَنْ أَدْنَيْتَهُ‏ أَوْ تُشَرِّدَ مَنْ آوَيْتَهُ أَوْ تُسَلِّمَ إِلَى الْبَلاَءِ مَنْ كَفَيْتَهُ وَرَحِمْتَهُ‏

नहीं ऐसा नहीं हो सकता , क्योंकि तेरा करम इस से कहीं बढ़ कर है के तू इस शख्स को बेसहारा छोड़ दे जिसे तुने खुद पाला हो या उसे अपने से दूर कर दे जिसे तू ने खुद अपना कुर्ब बख्शा हो या उसे अपने यहाँ से निकाल दे जिसे तुने खुद पनाह दी हो , या उसे बालाओं के हवाले कर दे जिस का तुने खुद ज़िम्मा लिया हो और जिस पर रहम किया हो , यह बात मेरी समझ में नहीं आती!

وَلَيْتَ شِعْرِي يَا سَيِّدِي وَإِلَهِي وَمَوْلاَيَ أَتُسَلِّطُ النَّارَ عَلَى وُجُوهٍ خَرَّتْ لِعَظَمَتِكَ سَاجِدَةً وَعَلَى أَلْسُنٍ نَطَقَتْ بِتَوْحِيدِكَ صَادِقَةً وَبِشُكْرِكَ مَادِحَةً وَعَلَى قُلُوبٍ اعْتَرَفَتْ بِإِلَهِيَّتِكَ مُحَقِّقَةً وَعَلَى ضَمَائِرَ حَوَتْ مِنَ الْعِلْمِ بِكَ حَتَّى صَارَتْ خَاشِعَةً وَعَلَى جَوَارِحَ سَعَتْ إِلَى أَوْطَانِ تَعَبُّدِكَ طَائِعَةً وَأَشَارَتْ بِاسْتِغْفَارِكَ مُذْعِنَةً

ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे मौला , क्या तू आतिशे जहन्नम को मुसल्लत कर देगा इन चेहरों पर जो तेरी अजमत के बायेस तेरे हजूर में सज्दारेज़ हो चुके हैं , इन ज़बानों पर जो सिद्क़ दिल से तेरी तौहीद का इकरार करके शुक्रगुजारी के साथ तेरी मधा कर चुकी हैं , इन दिलों पर जो वाकई तेरे माबूद होने का ऐतेराफ कर चुके हैं , इन दिमागों पर जो तेरे इल्म से इस कद्र बहरावर हुए के तेरे हुज़ूर में झुके हुए हैं या इन हाथ पाँव पर जो इताअत के जज्बे के साथ तेरी इबादतगाहों की तरफ दौड़ते रहे और गुनाहों के इकरार करके मग्फेरत तलब करते रहे ?

مَا هَكَذَا الظَّنُّ بِكَ وَلاَ أُخْبِرْنَا بِفَضْلِكَ عَنْكَ يَا كَرِيمُ يَا رَبِ‏ وَأَنْتَ تَعْلَمُ ضَعْفِي عَنْ قَلِيلٍ مِنْ بَلاَءِ الدُّنْيَا وَعُقُوبَاتِهَا وَمَا يَجْرِي فِيهَا مِنَ الْمَكَارِهِ عَلَى أَهْلِهَا عَلَى أَنَّ ذَلِكَ بَلاَءٌ وَمَكْرُوهٌ قَلِيلٌ مَكْثُهُ يَسِيرٌ بَقَاؤُهُ قَصِيرٌ مُدَّتُهُ‏

ऐ रब्बे करीम , ना तो तेरी निस्बत ऐसा गुमान ही किया जा सकता है और ना ही तेरी तरफ से हमें ऐसी कोई खबर दी गयी है! ऐ मेरे पालने वाले तू मेरी कमजोरी से वाकिफ है , मुझ में इस दुनिया की मामूली आज्मायीशों , छोटी छोटी तकलीफों और इन सख्तियों को बर्दाश्त करने की ताब नहीं जो अहले दुनिया पर गुज़रती हैं हालांकि वोह आजमाईश , तकलीफ और सख्ती मामूली होती है और इस की मुद्द्त भी थोड़ी होती है ,

فَكَيْفَ احْتِمَالِي لِبَلاَءِ الْآخِرَةِ وَجَلِيلِ وُقُوعِ الْمَكَارِهِ فِيهَا وَهُوَ بَلاَءٌ تَطُولُ مُدَّتُهُ وَيَدُومُ مَقَامُهُ وَلاَ يُخَفَّفُ عَنْ أَهْلِهِ‏ لِأَنَّهُ لاَ يَكُونُ إِلاَّ عَنْ غَضَبِكَ وَانْتِقَامِكَ وَسَخَطِكَ‏

फिर भला मुझ से आखेरत की ज़बरदस्त मुसीबत क्योंकर बर्दाश्त हो सकेगी , जब की वहां की मुसीबत तूलानी होगी और इस में हमेशा हमेशा के लिए रहना होगा और जो लोग इस में एक मर्तबा फँस जायेंगे इन के अज़ाब में कभी कमी नहीं होगी क्योंकि वो अज़ाब तेरे गुस्से , इंतकाम और नाराजगी के सबब होगा

وَهَذَا مَا لاَ تَقُومُ لَهُ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ‏ يَا سَيِّدِي فَكَيْفَ لِي وَأَنَا عَبْدُكَ الضَّعِيفُ الذَّلِيلُ الْحَقِيرُ الْمِسْكِينُ الْمُسْتَكِينُ‏

जिसे ना आसमान बर्दाश्त कर सकता है ना ज़मीन! ऐ मेरे मालिक , फिर ऐसी सूरत में मेरा क्या हाल होगा जबकि मै तेरा एक कमज़ोर , अदना , लाचार , और आजिज़ बंदा हूँ

يَا إِلَهِي وَرَبِّي وَسَيِّدِي وَمَوْلاَيَ لِأَيِّ الْأُمُورِ إِلَيْكَ أَشْكُو وَلِمَا مِنْهَا أَضِجُّ وَأَبْكِي‏لِأَلِيمِ الْعَذَابِ وَشِدَّهِ أَمْ لِطُولِ الْبَلاَءِ وَمُدَّتِهِ

ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे मौला , मै तुझ से किस किस बात पर नाला व फरयाद और आहोबुका करूँ ? दर्दनाक अज़ाब और इसकी सख्ती पर या मुसीबत और इस की तवील मीयाद पर!

فَلَئِنْ صَيَّرْتَنِي لِلْعُقُوبَاتِ مَعَ أَعْدَائِكَ وَجَمَعْتَ بَيْنِي وَبَيْنَ أَهْلِ بَلاَئِكَ وَفَرَّقْتَ بَيْنِي وَبَيْنَ أَحِبَّائِكَ وَأَوْلِيَائِكَ

बस अगर तू ने मुझे अपने दुश्मनों के साथ अज़ाब में झोंक दिया और मुझे इन लोगों में शामिल कर दिया जो तेरी बालाओं के सज़ावार हैं और अपने अहिब्बा और औलिया के और मेरे दरम्यान जुदाई डाल दी तो ,

فَهَبْنِي يَا إِلَهِي وَسَيِّدِي وَمَوْلاَيَ وَرَبِّي صَبَرْتُ عَلَىعَذَابِكَ فَكَيْفَ أَصْبِرُ عَلَى فِرَاقِكَ‏ وَهَبْنِي صَبَرْتُ عَلَى حَرِّ نَارِكَ فَكَيْفَ أَصْبِرُ عَنِ النَّظَرِ إِلَى كَرَامَتِكَ‏ أَمْ كَيْفَ أَسْكُنُ فِي النَّارِ وَرَجَائِي عَفْوُكَ‏

ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे मौला , ऐ मेरे परवरदिगार , मै तेरे दिया हुए अज़ाब पर अगर सब्र भी कर लूं तो तेरी रहमत से जुदाई पर क्यों कर सब्र कर सकूंगा ? इस तरह अगर मै तेरे आग की तपिश बर्दाश्त भी कर लूं तो तेरी नज़रे करम से अपनी महरूमी को कैसे बर्दाश्त कर सकूंगा और इस के इलावा मै आतिशे जहन्नुम में क्योंकर रह सकूंगा जबके मुझे तो तुझ से माफ़ी की तवक्क़ो है.

فَبِعِزَّتِكَ يَا سَيِّدِي وَمَوْلاَيَ أُقْسِمُ صَادِقاً لَئِنْ تَرَكْتَنِي نَاطِقاً لَأَضِجَّنَّ إِلَيْكَ بَيْنَ أَهْلِهَا ضَجِيجَ الْآمِلِينَ وَلَأَصْرُخَنَّ إِلَيْكَ صُرَاخَ الْمُسْتَصْرِخِينَ‏ وَلَأَبْكِيَنَّ عَلَيْكَ بُكَاءَ الْفَاقِدِينَ وَلَأُنَادِيَنَّكَ أَيْنَ كُنْتَ يَا وَلِيَّ الْمُؤْمِنِينَ‏ يَا غَايَةَ آمَالِ الْعَارِفِينَ يَا غِيَاثَ الْمُسْتَغِيثِينَ‏ يَا حَبِيبَ قُلُوبِ الصَّادِقِينَ وَيَا إِلَهَ الْعَالَمِينَ‏

बस ऐ मेरे आका , ऐ मेरे मौला , मै तेरी इज्ज़त की सच्ची क़सम खा कर कहता हूँ के अगर तू ने वहां मेरी गोयाई सलामत रखी तो मै अहले जहन्नम के दरमियान तेरा नाम लेकर तुझे इस तरह पुकारूँगा जैसे करम के उम्मेदवार पुकारा करते हैं , मै तेरे हुज़ूर में इस तरह आहोबुका करूंगा जैसे फरयाद किया करते हैं और तेरी रहमत के फ़िराक में इस तरह रोवूँगा जैसे बिछुड़ने वाले रोया करते हैं! मैं तुझे वहां बराबर पुकारूंगा के तू कहाँ है ऐ मोमिनो के मालिक , ऐ आरिफों की उम्मीदगाह , ऐ फर्यादीयों के फरयादरस , ऐ सादिकों के दिलों के महबूब , ऐ इलाहिल आलमीन ,

أَفَتُرَاكَ سُبْحَانَكَ يَا إِلَهِي وَبِحَمْدِكَ تَسْمَعُ فِيهَا صَوْتَ عَبْدٍ مُسْلِمٍ سُجِنَ فِيهَا بِمُخَالَفَتِهِ‏ وَذَاقَ طَعْمَ عَذَابِهَا بِمَعْصِيَتِهِ وَحُبِسَ بَيْنَ أَطْبَاقِهَابِجُرْمِهِ وَجَرِيرَتِهِ‏ وَهُوَ يَضِجُّ إِلَيْكَ ضَجِيجَ مُؤَمِّلٍ لِرَحْمَتِكَ وَيُنَادِيكَ بِلِسَانِ أَهْلِ تَوْحِيدِكَ وَيَتَوَسَّلُ إِلَيْكَ بِرُبُوبِيَّتِكَ

तेरी ज़ात पाक है , ऐ मेरे माबूद , मै तेरी हम्द करता हूँ! मैं हैरान हूँ की यह क्योंकर होगा की तू इस आग में से एक मुस्लिम की आवाज़ सुने जो अपनी नाफ़रमानी की पादाश में इस के अंदर क़ैद कर दिया गया हो , अपनी मुसीबत की सजा में इस अज़ाब में गिरफ्तार हो और जुर्मो खता के बदले में जहन्नुम के तबकात में बंद कर दिया गया हो मगर वो तेरी रहमत के उम्मीदवार की तरह तेरे हुज़ूर में फरयाद करता हो , तेरी तौहीद को मानने वालों की सी जुबान से तुझे पुकारता हो और तेरी जनाब में तेरी रबूबियत का वास्ता देता हो!

يَا مَوْلاَيَ فَكَيْفَ يَبْقَى فِي الْعَذَابِ وَهُوَ يَرْجُو مَا سَلَفَ مِنْ حِلْمِكَ‏ أَمْ كَيْفَ تُؤْلِمُهُ النَّارُ وَهُوَ يَأْمُلُ فَضْلَكَ وَرَحْمَتَكَ‏ أَمْ كَيْفَ يُحْرِقُهُ لَهِيبُهَا وَأَنْتَ تَسْمَعُ صَوْتَهُ وَتَرَى مَكَانَهُ‏ أَمْ كَيْفَ يَشْتَمِلُ عَلَيْهِ زَفِيرُهَا وَأَنْتَ تَعْلَمُ ضَعْفَهُ‏ أَمْ كَيْفَ يَتَقَلْقَلُ بَيْنَ أَطْبَاقِهَا وَأَنْتَ تَعْلَمُ صِدْقَهُ‏ أَمْ كَيْفَ تَزْجُرُهُ زَبَانِيَتُهَا وَهُوَ يُنَادِيكَ يَا رَبَّهْ‏ أَمْ كَيْفَ يَرْجُو فَضْلَكَ فِي عِتْقِهِ مِنْهَا فَتَتْرُكُهُ فِيهَا

ऐ मेरे मालिक , फिर वो इस अज़ाब में कैसे रह सकेगा जबके इसे तेरी गुज़िश्ता राफ्त ओ रहमत की आस बंधी होगी या आतिशे जहन्नम उसे कैसे तकलीफ पहुंचा सकेगा जबके उसे तेरी फज़ल और तेरी रहमत का आसरा होगा या इस को जहन्नम का शोला कैसे जला सकेगा जबकि तू खुद इस की आवाज़ सुन रहा होगा और जहाँ वो है तू इस जगह को देख रहा होगा या जहन्नुम का शोर उसे क्योंकर परेशान कर सकेगा , जबकि तू इस बन्दे की कमजोरी से वाकिफ होगा या फिर वो जहन्नुम के तबकात में क्योंकर तड़पता रहेगा जबकि तू इस की सच्चाई से वाकिफ होगा या जहन्नुम की लपटें इस को क्योंकर परेशान कर सकेंगी जबकि वो तुझे पुकार रहा होगा ! ऐ मेरे परवरदिगार , ऐसे क्योंकर मुमकिन है के तू वो तो जहन्नुम के निजात के लिए तेरे फज्लो करम की आस लगाये हुए हो और तू उसे जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे !

هَيْهَاتَ مَا ذَلِكَ الظَّنُّ بِكَ وَلاَ الْمَعْرُوفُ مِنْ فَضْلِكَ‏ وَلاَ مُشْبِهٌ لِمَا عَامَلْتَ بِهِ الْمُوَحِّدِينَ مِنْ بِرِّكَ وَإِحْسَانِكَ‏

जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे ! नहीं , तेरी निस्बत ऐसा गुमान नहीं किया जा सकता , ना तेरे फज़्ल से पहले कभी ऐसी सूरत पेश आयी और ना ही यह बात इस लुत्फो करम के साथ मेल खाती है जो तू तौहीद परस्तों के साथ रवा रखता रहा है ,

فَبِالْيَقِينِ أَقْطَعُ لَوْ لاَ مَا حَكَمْتَ بِهِ مِنْ تَعْذِيبِ جَاحِدِيكَ وَقَضَيْتَ بِهِ مِنْ إِخْلاَدِ مُعَانِدِيكَ‏ لَجَعَلْتَ النَّارَ كُلَّهَا بَرْداً وَسَلاَماً وَمَا كَانَ لِأَحَدٍ فِيهَا مَقَرّاً وَلاَ مُقَاماً

इस लिए मै पुरे यकीन के साथ कहता हूँ के अगर तुने अपने मुन्कीरों को अज़ाब देने का हुक्म ना दे दिया होता और इनको हमेशा जहन्नुम में रखने का फैसला ना कर लिया होता तो तू ज़रूर आतिशे जहन्नुम को ऐसा सर्द कर देता के वो आरामदेह बन जाती और फिर किसी भी शख्स का ठिकाना जहन्नुम ना होता

لَكِنَّكَ تَقَدَّسَتْ أَسْمَاؤُكَ أَقْسَمْتَ أَنْ تَمْلَأَهَا مِنَ الْكَافِرِينَ‏ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ وَأَنْ تُخَلِّدَ فِيهَا الْمُعَانِدِينَ

लेकिन खुद तू ने अपने पाक नामो की क़सम खाई है के तू तमाम काफिर जिन्नों और इंसान से जहन्नुम भर देगा और अपने दुश्मनों को हमेशा के लिए इसमें रखेगा !

وَأَنْتَ جَلَّ ثَنَاؤُكَ قُلْتَ مُبْتَدِئاً وَتَطَوَّلْتَ بِالْإِنْعَامِ مُتَكَرِّماً : اَفَمَنْ كانَ مُؤْمِناً كَمَنْ كانَ فاسِقاً لا يَسْتَوُونَ

तू जो बहुत ज्यादा तारीफ के लायक़ है और अपने बन्दों पर एहसान करते हुए अपनी किताब में पहले ही फरमा चुका है : "क्या मोमिन , फ़ासिक़ के बराबर हो सकता है ? नहीं , यह कभी बाहम बराबर नहीं हो सकते "!

اِلهى وَسَيِّدى فَاَسْئَلُكَ بِالْقُدْرَةِ الَّتى قَدَّرْتَها وَبِالْقَضِيَّةِ الَّتى حَتَمْتَها وَحَكَمْتَها وَغَلَبْتَ مَنْ عَلَيْهِ اَجْرَيْتَها اَنْ تَهَبَ لى فى هذِهِ اللَّيْلَةِ وَفى هذِهِ السّاعَةِ كُلَّ جُرْمٍ اَجْرَمْتُهُ وَكُلَّ ذَنْبٍ اَذْنَبْتُهُ وَكُلَّ قَبِيحٍ اَسْرَرْتُهُ وَكُلَّ جَهْلٍ عَمِلْتُهُ كَتَمْتُهُ اَوْ اَعْلَنْتُهُ اَخْفَيْتُهُ اَوْ اَظْهَرْتُهُ وَكُلَّ سَيِّئَةٍ اَمَرْتَ بِاِثْباتِهَا الْكِرامَ الْكاتِبينَ الَّذينَ وَكَّلْتَهُمْ بِحِفْظِ ما يَكُونُ مِنّى وَجَعَلْتَهُمْ شُهُوداً عَلَىَّ مَعَ جَوارِحى

ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे मालिक , मै तेरी इस कुदरत का जिस से तुने मौजूदात की तक़दीर बनाई , तेरे इस हतमी फैसले का जो तू ने सादिर किये हैं और जिन पर तू ने इन को नाफ़िज़ किया है इन पर तुझे क़ाबू हासिल है ! वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के हर वो जुर्म जिस का मै मुर्तकिब हुआ हूँ और हर वो गुनाह जो मैंने किया हो , हर वो बुराई जो मैंने छुपा कर की हो और हर वो नादानी जो मुझ से सरज़द हुई हो , चाहे मैंने उसे छुपाया हो या ज़ाहिर किया हो , पोशीदा रखा हो या अफशा किया हो इस रात और ख़ास कर इस साअत में बख्श दे मेरी हर ऐसी बदअमली को माफ़ कर दे जिस को लिखने का हुक्म तुने किरामन कातेबीन को दिया हो , जिन को तुने मेरे हर अमल की निगरानी पर मामूर किया है और जिन को मेरे आज़ा व जवारेह के साथ साथ मेरे अमाल का गवाह मुक़र्रर किया है ,

وَكُنْتَ اَنْتَ الرَّقيبَ عَلَىَّ مِنْ وَراَّئِهِمْ وَالشّاهِدَ لِما خَفِىَ عَنْهُمْ وَبِرَحْمَتِكَ اَخْفَيْتَهُ وَبِفَضْلِكَسَتَرْتَهُ وَاَنْ تُوَفِّرَ حَظّى مِنْ كُلِّ خَيْرٍ اَنْزَلْتَهُ اَوْ اِحْسانٍ فَضَّلْتَهُ اَوْ بِرٍّ نَشَرْتَهُ اَوْ رِزْقٍ بَسَطْتَهُ اَوْ ذَنْبٍ تَغْفِرُهُ اَوْ خَطَاءٍ تَسْتُرُهُ

फिर इन से बढ़ कर तू खुद मेरे अमाल के निगरान रहा है और इन बातों को भी जानता है जो इन की नज़र से मख्फी रह गयीं और जिन्हें तुने अपनी रहमत से छुपा लिया और जिन पर तुने अपने करम से पर्दा डाल दिया ! ऐ अल्लाह , मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे ज्यादा से ज्यादा हिस्सा दे हर इस भलाई से जो तेरी तरफ से नाज़िल हो , हर उस एहसान से जो तू अपने फज़ल से करे , हर उस नेकी से जिसे तू फैलाये , हर उस रिज़्क से जिस में तू वुसअत दे , हर उस गुनाह से जिसे तू माफ़ कर दे , हर उस ग़लती से जिसे तू छुपा ले !

يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ يا اِلهى وَسَيِّدى وَمَوْلاىَ وَمالِكَ رِقّى يا مَنْ بِيَدِهِ ناصِيَتى يا عَليماً بِضُرّى وَمَسْكَنَتى يا خَبيراً بِفَقْرى وَفاقَتى

ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे आका , ऐ मेरे मौला , ऐ मेरे जिस्मो जान के मालिक , ऐ वो ज़ात जिसे मुझ पर क़ाबू हासिल है , ऐ मेरी बदहाली और बेचारगी को जानने वाले , ऐ मेरे फ़क़रो फ़ाक़ा से आगाही रखने वाले ,

يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ اَسْئَلُكَ بِحَقِّكَ وَقُدْسِكَ وَاَعْظَمِ صِفاتِكَ وَاَسْماَّئِكَ اَنْ تَجْعَلَ اَوْقاتى مِنَ اللَّيْلِ وَالنَّهارِ بِذِكْرِكَ مَعْمُورَةً وَبِخِدْمَتِكَ مَوْصُولَةً وَاَعْمالى عِنْدَكَ مَقْبُولَةً حَتّى تَكُونَ اَعْمالى وَاَوْرادى كُلُّها وِرْداً واحِداً وَحالى فى خِدْمَتِكَ سَرْمَداً يا سَيِّدى يا مَنْ عَلَيْهِ مُعَوَّلى يا مَنْ اِلَيْهِ شَكَوْتُ اَحْوالى

, ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , मै तुझे तेरी सच्चाई और तेरी पाकीज़गी , तेरी आला सेफात और तेरे मुबारक नामो का वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरे दिन रात के औक़ात को अपनी याद से मामूर कर दे के हर लम्हा तेरी फ़रमाबरदारी में बसर हो , मेरे अमाल को क़बूल फ़रमा , यहाँ तक के मेरे सारे आमाल और अज्कार की एक ही लए हो जाए और मुझे तेरी फरमाबरदारी करने में दवाम हासिल हो जाए ! ऐ मेरे आका , ऐ वो ज़ात जिस का मुझे आसरा है और जिस की सरकार में , मै अपनी हर उलझन पेश करता हूँ !

يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ قَوِّ عَلى خِدْمَتِكَ جَوارِحى وَاشْدُدْ عَلَى الْعَزيمَةِ جَوانِحى وَهَبْ لِىَ الْجِدَّ فى خَشْيَتِكَ وَالدَّوامَ فِى الاِْتِّصالِ بِخِدْمَتِكَ حَتّى اَسْرَحَ اِلَيْكَ فى مَيادينِ السّابِقينَ ، وَاُسْرِعَ اِلَيْكَ فِى الْبارِزينَ ( ١ ) وَاَشْتاقَ اِلى قُرْبِكَ فِى الْمُشْتاقينَ وَاَدْنُوَ مِنْكَ دُنُوَّ الْمُخْلِصينَ وَاَخافَكَ مَخافَةَ الْمُوقِنينَ وَاَجْتَمِعَ فى جِوارِكَ مَعَ الْمُؤْمِنينَ

ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , मेरे हाथ पाँव में अपनी इताअत के लिए क़ुवत दे , मेरे दिल को नेक इरादों पर क़ायेम रहने की ताक़त बख्श , और मुझे तौफीक़ दे के मै तुझ से क़रार , वाक़ई डरता रहूँ और हमेशा तेरी इताअत में सरगर्म रहूँ ताकि मै तेरी तरफ सबक़त करने वालों के साथ चलता रहूँ , तेरी सिम्त बढ़ने वालों के हमराह तेज़ी से क़दम बढाऊँ , तेरी मुलाक़ात का शौक़ रखने वालो की तरह तेरा मुश्ताक रहूँ , तेरे मुख़लिस बन्दों की तरह तुझ से नज़दीक हो जाऊं , तुझ पर यक़ीन रखने वालों की तरह तुझ से डरता रहूँ , और तेरे हुज़ूर में जब मोमिन जमा हों मै उन के साथ रहूँ !

اَللّهُمَّ وَمَنْ اَرادَنى بِسُوَّءٍ فَاَرِدْهُ وَمَنْ كادَنى فَكِدْهُ وَاجْعَلْنى مِنْ اَحْسَنِ عَبيدِكَ نَصيباً عِنْدَكَ وَاَقْرَبِهِمْ مَنْزِلَةً مِنْكَ وَاَخَصِّهِمْ زُلْفَةً لَدَيْكَ فَاِنَّهُ لا يُنالُ ذلِكَاِلاّ بِفَضْلِكَ

ऐ अल्लाह , जो शख्स मुझ से कोई बदी करने का इरादा करे , तू उसे वैसी ही सज़ा दे और जो मुझ से फ़रेब करे तू उस को वैसी ही पादाश दे ! मुझे अपने उन बन्दों में क़रार दे जो तेरे यहाँ से सबसे अच्छा हिस्सा पाते हैं जिन्हें तेरी जनाब में सबसे ज्यादा तक़र्रुब हासिल है और जो ख़ास तौर से तुझ से ज्यादा नज़दीक हैं क्योंकि यह रूतबा तेरे फज़्ल के बग़ैर नहीं मिल सकता !

وَجُدْلى بِجُودِكَ وَاعْطِفْ عَلَىَّ بِمَجْدِكَ وَاحْفَظْنى بِرَحْمَتِكَ وَاجْعَلْ لِسانى بِذِكْرِكَ لَهِجاً وَقَلْبى بِحُبِّكَ مُتَيَّماً وَمُنَّ عَلَىَّ بِحُسْنِ اِجابَتِكَ وَاَقِلْنى عَثْرَتى وَاغْفِرْ زَلَّتى

मुझ पर अपना ख़ास करम कर और अपनी शान के मुताबिक मेहरबानी फ़रमा ! अपनी रहमत से मेरी हिफाज़त कर , मेरी ज़बान को अपने ज़िक्र में मशग़ूल रख , मेरे दिल को अपनी मुहब्बत की चाशनी अता कर , मेरी दुआएं क़बूल करके मुझ पर एहसान कर , मेरी ख़ताएं माफ़ कर दे और मेरी लग़ज़िशें बख्श दे !

فَاِنَّكَ قَضَيْتَ عَلى عِبادِكَ بِعِبادَتِكَ وَاَمَرْتَهُمْ بِدُعاَّئِكَ وَضَمِنْتَ لَهُمُ الإِجابَةَ فَاِلَيْكَ يا رَبِّ نَصَبْتُ وَجْهى وَاِلَيْكَ يا رَبِّ مَدَدْتُ يَدى

चूंके तूने अपने बन्दों पर अपनी इबादत वाजिब की है , इन्हें दुआ मांगने का हुक्म दिया है और इनकी दुआएं क़बूल करने की ज़िम्मेदारी ली है , इसलिए ऐ परवरदिगार , मै ने तेरी ही तरफ रुख़ किया है और तेरे ही सामने अपना हाथ फैलाया है !

فَبِعِزَّتِكَ اسْتَجِبْ لى دُعاَّئى وَبَلِّغْنى مُناىَ وَلا تَقْطَعْ مِنْ فَضْلِكَ رَجاَّئى وَاكْفِنى شَرَّ الْجِنِّ وَالإِنْسِ مِنْ اَعْدآئى ،

बस अपनी इज्ज़त के सदक़े में मेरी दुआ क़बूल फ़रमा और मुझे मेरी मुराद को पहुंचा ! मुझे अपने फ़ज़्ल व करम से मायूस ना कर , और जिन्नों और इंसानों में से जो भी मेरे दुश्मन हों मुझ को इन के शर से बचा !

يا سَريعَ الرِّضا اِغْفِرْ لِمَنْ لا يَمْلِكُ اِلا الدُّعاَّءَ فَاِنَّكَ فَعّالٌ لِما تَشاَّءُ يا مَنِ اسْمُهُ دَوآءٌ وَذِكْرُهُ شِفاَّءٌ وَطاعَتُهُ غِنىً اِرْحَمْ مَنْ رَأسُ مالِهِ الرَّجاَّءُ وَسِلاحُهُ الْبُكاَّءُ

ऐ अपने बन्दों से जल्दी राज़ी हो जाने वाले , इस बन्दे को बख्श दे जिस के पास दुआ के सिवा कुछ नहीं , क्योंकि तू जो चाहे कर सकता है , तू ऐसा है जिस का नाम हर मर्ज़ की दवा है , जिस का ज़िक्र हर बीमारी से शिफा है , और जिस की इताअत सबे बेनेयाज़ कर देने वाली है , इस पर रहम कर जिस की पूंजी तेरा आसरा और जिस का हथियार रोना है !

يا سابِغَ النِّعَمِ يا دافِعَ النِّقَمِ يا نُورَ الْمُسْتَوْحِشينَ فِى الظُّلَمِ يا عالِماً لا يُعَلَّمُ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَافْعَلْ بى ما اَنْتَ اَهْلُهُ وَصَلَّى اللّهُ عَلى رَسُولِهِ وَالاْئِمَّةِ الْمَيامينَ مِنْ الِهِ وَسَلَّمَ تَسْليماً كَثيراً

ऐ नेमतें अता करने वाले , ऐ बलाएँ टालने वाले , ऐ अंधेरों से घबराये हुओं के लिए रौशनी , ऐ वो आलिम जिसे किसी ने तालीम नहीं दी , मुहम्मद ( स ) और आले मुहम्मद ( स ) पर दुरूद व सलाम भेज और मेरे साथ वो सुलूक कर जो तेरे शायाने शान हो !

दुआऐ हज

दुआऐ हज

तरजुमा

तलफ्फुज़

اللهُمَّ ارْزُقْنِي حَجَّ بَيْتِك الحَرامِ فِي عامِي هذا وَفِي كُلِّ عامٍ ما أَبْقَيْتَنِي فِي يُسْرٍ مِنْكَ وَعافِيَةٍ وَسَعَةِ رِزْقِ ،

हे ईश्वर मुझे अपने पवित्र घर के हज की तौफ़ीक़ अता फ़रमा , इस साल और हर साल जब तक तू मुझ को बाक़ी रखे सुख व शांति व रोज़ी की वुसअत में ,

अल्लाहुम्मर ज़ुक़नी हज्जा बैतिकल हराम फ़ी आमी हाज़ा व फ़ी कुल्ले आम मा अबक़ैतनी फ़ी युसरिन मिनका व आफ़ियतिन व सअते रिज़्क़ ,

وَلا تُخْلِنِي مِنْ تِلْكَ المَواقِفِ الكَرِيِمَةِ وَالمَشاهِدِ الشَّرِيفَةِ ، وَزِيارَةِ قَبْرِ نَبِيِّكَ صَلَواتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ ، وَفِي جَمِيعِ حَوائِجِ الدُّنْيا وَالآخرةِ فَكُنْ لِي

और मुझको दूर न रख इस पवित्र मौक़िफ़ व मशाहिद से और अपने नबी ( स ) की क़ब्र की ज़ियारत से , और दुनिया व आख़िरत की तमाम हाजतों में मदद कर ,

वला तिख़लिनि मिन तिलकल मवाक़िफ़िल करीमा वल मशाहिदिल शरीफ़ा , व ज़ियारते क़बरे यबीयेका सलवातुका अलैहे आलेह , व फ़ी जमीए हवाइजिद दुनिया वल आख़ेरा फ़कुन ली ,

اللّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ فِيما تَقْضِي وَتُقَدِّرُ مِنَ الاَمْرِ المَحْتُومِ فِي لَيْلَةِ القَدْرِ مِنَ القَضاء الَّذِي لايُرَدُّ وَلايُبَدَّلُ

ख़ुदाया मैं तुझ से सवाल करता हूं उस के बारे में जो अपनी क़ज़ा व क़द्र से हतमी उमूर को शबे क़द्र में क़रार दिया है जो न रद्द होता है न तब्दील होता है ,

अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका फ़ीमा तक़ज़ी व तुक़द्दिरो मिनल अमरिल महतूम फ़ी लैलतिल क़द्र मिनल क़ज़ाइल लज़ी ला युरद्दो वला युबद्दल ,

أَنْ تَكْتُبَنِي مِنْ حُجَّاجِ بَيْتِكَ الحَرامِ المَبْرُورِ حُجُّهُم ، المَشْكُورِ سَعُيُهُم ، المَغْفُورِ ذُنُوبُهُم ، المُكَفَّرِ عَنْهُمْ سَيِّئاتُهُمْ ،

तू मुझे बैतुल हराम के हाजियों में लिख दे जिन का हज मक़बूल हो , जिनकी कोशिशें क़ाबिले शुक्रिया हो , जिनका गुनाह बख़्शा हुआ हो , जिनकी बुराइयां बख़्शी हुई हों ,

अन तकतुबनी मिन हुज्जाजे बैतिकल हराम अबमबरुरे हज्जोहुम , अलमशकूरे सअयोहुम , अलमग़फ़ूरे ज़ुनुबोहुम , अलमुकफ़्फ़िरे अन्हुम सय्येआतोहुम ,

وَاجْعَلْ فِيما تَقْضِي وَتُقَدِّرُ أَنْ تُطِيلَ عُمْرِي وَتُوَسِّعَ عَلَيَّ رِزْقِي ، وَتؤَدِّيَ عَنِّي أَمانَتِي وَدَيْنِي ، آمِينَ رَبَّ العالَمِينَ

और अपनी क़ज़ा व क़द्र से मेरी उम्र को इताअत में तूलानी बना दे और मेरे रिज़्क़ में वुसअत अता कर और मेरी अमानत और क़र्ज़ को अदा करे दे ऐ आलमीन के रब दुआ को क़बूल कर

वजअल फ़ीमा तक़ज़ी व तुक़द्दिरो अन तुतीला उमरी व तुवस्सेआ अलैय्या रिज़क़ी , व तुवद्दी अन्नी अमानती व दैनी , आमीना रब्बल आलमीन

आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क पर पढ़ रहे है।

दुआ ऐ इफ्तेताह

दुआ ऐ इफ्तेताह

तलफ्फुज़

اللّهُمَّ إِنِّي أَفْتَتِحُ الثَّناءَ بِحَمْدِكَ وَأَنْتَ مُسَدِّدٌ لِلصَّوابِ بِمَنِّكَ وَأَيْقَنْتُ أَنَّكَ أَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ فِي مَوْضِعِ العَفْوِ وَالرَّحْمَةِ ،

अल्लाहुम्मा इन्नी अफ्तातेहुस सना 'अ बे हम्देका व अन्ता मुसददिडून लीलस सवाबे बे मन्नेका व अय्क़नतो अन्नका अन्ता अर्हमुर रहेमीना फी मौज़े 'ईल अफ् वे वर रहमह ,

وَأَشَدُّ المُعاقِبِينَ فِي مَوْضِعِ النِّكالِ وَالنَّقِمَةِ ، وَأَعْظَمُ المُتَجَبِّرِينَ فِي مَوْضِعِ الكِبْرِياءِ وَالعَظَمَةِ

व अशद - दुल मुआकेबीना फी मौज़े 'इन नकाले वन नाकेमाते व अ 'ज़मुफ़ मुता जब्बारीना फी मौज़े 'ईल किब्रिया ए वफ़ अज़मह ,

اللّهُمَّ أَذِنْتَ لِي فِي دُعائِكَ وَمَسْأَلَتِكَ فأَسْمَعْ يا سَمِيعُ مِدْحَتِي وَأَجِبْ يا رَحِيمُ دَعْوَتِي وَأَقِلْ يا غَفُورُ عَثْرَتِي ،

अल्लाहुम्मा अज़िनता ली फी दुआए 'का व मस 'अलातेका फस्मा ' या समी 'ओ मी - धती व अजीब या रहीमो दा 'वती व अक़ील या ग़फूरो असरती ,

فَكَمْ يا إِلهِي مِنْ كُرْبَةٍ قَدْ فَرَّجْتَها وَهُمُومٍ قَدْ كَشَفْتَها وَعَثْرَةٍ قَدْ أَقَلْتَها وَرَحْمَةٍ قَدْ نَشَرْتَها وَحَلْقَةِ بَلاٍ قَدْ فَكَكْتَها ،

फाकाम या इफाही मं कुर्बतींन क़द फर्रज्ताहू व होंया मूमिन क़द कशाफ्तहा व असरतींन क़द अक़ल्तहा व रहमतींन क़द नाशर्तहा व हब्क़ते बला 'इन क़द फकक्तहा ,

الحَمْدُ للهِ الَّذي لَمْ يَتَّخِذْ صاحِبَةً وَلا وَلَداً وَلَمْ يَكُنْ لَهُ شَرِيكٌ فِي المُلْكِ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌ مِنَ الذُّلِ وَكَبِّرْهُ تَكْبِيراً ،

अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी लम यात्ताखिज़ साहिबतन व ला वालादन वलंन यकून लहू शारीकुन फीत मुल्के व लम यकुन - ल लहू वालिय्युं मिनज़ ज़ुल्ले व कब्बिर्हू तक्बीरह ,

الحَمْدُ للهِ بِجَمِيِعِ مَحامِدِهِ كُلِّها عَلى جَمِيعِ نِعَمِهِ كُلِّها ، الحَمْدُ للهِ الَّذِي لا مُضادَّ لَهُ فِي مُلْكِهِ وَلامُنازِعَ لَهُ فِي أَمْرِهِ ،

; अलहम्दो उल्लाहे बे जमी 'ए हामिदेही कुल्लेहा अला जमी 'ए ने 'अमेही कुल ' एहा ; अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी ला मुज़ददा लहू फी मुल्केही व ला मुनाज़े 'अ लहू फी अम्रेह ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي لا شَرِيكَ لَهُ فِي خَلْقِهِ وَلاشَبِيهَ لَهُ فِي عَظَمَتِهِ ، الحَمْدُ للهِ الفاشِي فِي الخَلْقِ أَمْرُهُ وَحَمْدُهُ الظاهِرِ بالكَرَمِ مَجْدُهُ الباسِطِ بالجُودِ يَدَهُ ،

अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी ला शरीका लहू फी खल्केही व ला शबीहा लहू फी अज़मतेही ; अलहम्दो लिल्लाहिल फाशी फिल खल्के अम्रोहू व उंदोहुज़ जाहिरे बिल करमे मज्दोहुल बसिते बिल जूदे यदह ,

الَّذِي لاتَنْقُصُ خَزائِنُهُ وَلايَزِيدُهُ كَثرَةُ العَطاءِ إِلاّ جُوداً وَكَرَما إِنَّهُ هُوَ العَزِيزُ الوَهَّابُ ،

लज़ी ला तन्कुसो खज़ा 'एनोहू व ला ताज़ेदोहू कस्रतुल अता 'ए इलिया जुडन व करमन इन्नाहू होवल अजीजुल वह्हाब ,

اللّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ قَلِيلا مِنْ كَثِيرٍ مَعَ حَاجَةٍ بِي إِلَيْهِ عَظِيمَةٍ وِغِناكَ عَنْهُ قَدْيمٌ وَهُوَ عِنْدِي كَثِيرٌ وَهُوَ عَلَيْكَ سَهْلٌ يَسِيرٌ

अल्लाहुम्मा इन्नी असा ' लोका क़लीलन मिन कसीरिन मा 'अ हजातिन बी इलैहे अजीमतीं व गिनाका अन्हू क़दीमुंन व होवा इंदी कसीरून व होवा अलैका सहलूंन यसीर

اللّهُمَّ إِنَّ عَفْوَكَ عَنْ ذَنْبِي وَتَجاوُزَكَ عَنْ خَطِيئَتِي وَصَفْحَكَ عَنْ ظُلْمِي وَستْرَكَ عَلَى قَبِيحِ عَمَلِي وَحِلْمَكَ عَنْ كَثِيرِ جُرْمِي ،

अल्लाहुम्मा इन्ना अफ्वाका अन ज़न्बी व ताजवुज़का अन खती ' अती व सफ्हाक अन जुल्मी व सतरका अला क़बीहे अमली व हिल्माका अन कसीरे जुरमी ,

عِنْدَما كانَ مِنْ خَطَأي وَعَمْدِي أَطْمَعَنِي فِي أَنْ أَسْأَلُكَ مالا اسْتَوْجِبُهُ مِنْكَ الَّذِي رَزَقْتَنِي مِنْ رَحْمَتِكَ وَأَرَيْتَنِي مِنْ قَدْرَتِكَ وَعَرَّفْتَنِي مِنْ إِجابَتِكَ ،

इन्दामा काना मिन खता 'ई व अमदी अत्मा 'अणि फी अन अस 'अलोका मा ला अस्तौजिबोहू मिन्कल लज़ी राज़कतानी मिन रहमतेका व आरैतनी मिन कुदरतेका व अर्रफ्तानी मिन इजाबातिक ,

فَصِرْتُ أَدْعُوكَ آمِناً وَأَسْأَلُكَ مُسْتَأْنِساً لاخائِفاً وَلا وَجِلاً مُدِلاً عَلَيْكَ فِيما قَصَدْتُ فِيهِ إِلَيْكَ ،

फसिरतो अद 'उका आमिनन व अस 'अलोका मुस्ता 'निसर ला खा 'एफन व ला वाजेलन मुद्देलीन अलैका फीमा क़सद्तो फीहे इलैक ,

فَإنْ أَبْطاء عَنِّي عَتِبْتُ بِجَهْلِي عَلَيْكَ وَلَعَلَّ الَّذِي أَبْطَاءَ عَنِّي هُوَ خَيْرٌ لِي لِعِلْمِكَ بِعاقِبَةِ الاُمُورِ، فَلَمْ أَرَ مَوْلىً كَرِيماً أَصْبَرَ عَلى عبْدٍ لَئِيمٍ مِنْكَ عَلَيَّ يا رَبِّ

फ इन अबता ' 'अन् नी अताब्तो बेजहली अलैका व ला 'अल्ला लज़ी अबता 'अ अन्ल्ली होवा खैरुन ली ले इल्मेका बे आकेबतिल उमूरे फलं आना मौलन करीमन अस्बारा अला अब्दीन लईमिन मिनका अलय्या या रब्बे ,

إِنَّكَ تَدْعُونِي فَأُوَلِّي عَنْكَ وَتَتَحَبَّبُ إلى فَأَتَبَغَّضُ إِلَيْكَ وَتَتَوَدَّدُ إلى فَلا أَقْبَلُ مِنْكَ كَأَنَ لِيَ التَّطَوُّلَ عَلَيْكَ ،

इन्नका तद 'ऊनी फ उवल्ली अनका व ताताहब्बबो इल्या फा अत्बघ्घजो इलैका व तातावाद्दो इल्या फला अक्बलो मिनका का अन्ना लेयत ताताव्वुला अलैक ,

فَلَمْ يَمْنَعْكَ ذلِكَ مِنَ الرَّحْمَةِ لِي وَالاِحْسانِ إلى وَالتَّفَضُّلِ عَلَيَّ بِجُودِكَ وَكَرَمِكَ فَأرْحَمْ عَبْدَكَ الجاهِلَ وَجُدْ عَلَيْهِ بِفَضْلِ إِحْسانِكَ إِنَّكَ جَوادٌ كَرِيمٌ

फलां युमना 'का ज़लेका मिनर रहमते बी वल एहसाने इलाय्वा वत तफज्ज़ुले अलयवा बे जूदेका व करामेका फ़रहम अब्दाकल जाहिला व जुड़ अलैहे बे फजले एह्सानेका इन्नका जव्वादुन करीम ,

الحَمْدُ للهِ مالِكِ المُلْكِ مُجْرِي الفُلْكِ مُسَخِّرِ الرِّياحِ فالِقِ الاِصْباحِ دَيّانِ الدَّينِ رَبِّ العالَمِينَ ،

अलहम्दो लिल्लाहे मलिकिल मुल्के मुज्रियल फुल्के मुसक्खिरीर रियाहे फलिकाल इस्बाहे दय्वानिद देने रब्बिल आलामीन ,

الحَمْدُ للهِ عَلى حِلْمِهِ بَعْدَ عِلْمِهِ وَالحَمْدُ للهِ عَلى عَفْوِهِ بَعْدَ قُدْرَتِهِ وَالحَمْدُ للهِ عَلى طُولِ أَناتِهِ فِي غَضَبِهِ وَهُوَ قادِرٌ عَلى ما يُرِيدُ ،

अलहम्दो लिल्लाहे अला तूले अनातेही फी घज़बेही व होवा क़दीरून अला मा युरीद ,

الحَمْدُ للهِ خالِقِ الخَلْقِ باسِطِ الرِّزْقِ فالِقِ الاِصْباحِ ذِي الجَلالِ وَالاِكْرامِ وَالفَضْلِ وَالاِنْعامِ الَّذِي بَعُدَ فَلا يُرى وَقَرُبَ فَشَهِدَ النَّجْوى تَبارَكَ وَتَعالى ،

अलहम्दो लिल्लाहे खालिकिल खल्के बसितिर रिज्के फालिकाल इस्बाहे जिल जलाले वल इक्रामे वल फजले वल आना ' अमिल लज़ी बा 'दा फला युरा व क़रुबा फशाहेदन नजवा तबारका व ता 'अला ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي لَيْسَ لَهُ مُنازِعٌ يُعادِلُهُ وَلا شَبِيهٌ يُشاكِلُهُ وَلاظَهِيرٌ يُعاضِدُهُ ، قَهَرَ بِعِزَّتِهِ الاَعِزَّاءَ وَتَواضَعَ لِعَظَمَتِهِ العُظَماءُ فَبَلَغَ بِقُدْرَتِهِ مايَشاءُ ،

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी लिसा लहू मोनाज़े 'उन यु 'अदेलोहू व ला शाबीउन युशाकेलोहू व ला ज़हीरून यु 'अज़िदोहू कहरा बे इज्ज़तेहिल अ 'इज्जा 'ओ वा तवाजा अ ले अज़मथिल उज़मा 'ओ फा बलागा बे औदरातेही मा यशा ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي يُجِيبُنِي حِينَ أُنادِيهِ وَيَسْتُرُ عَلَيَّ كُلَّ عَوْرَةٍ وأَنا أَعْصِيهِ وَيُعَظِّمُ النِّعْمَةَ عَلَيَّ فَلا اُجازِيهِ ،

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी लिसा लहू मोनाज़े 'उन यु 'अदेलोहू व ला शाबीउन युशाकेलोहू व ला ज़हीरून यु 'अज़िदोहू कहरा बे इज्ज़तेहिल अ 'इज्जा 'ओ वा तवाजा अ ले अज़मथिल उज़मा 'ओ फा बलागा बे औदरातेही मा यशा ,

فَكَمْ مِنْ مَوْهِبَةٍ هَنِيئَةٍ قَدْ أَعْطانِي وَعَظِيمَةٍ مَخُوفَة قَدْ كَفانِي وَبَهْجَةٍ مونِقَةٍ قَدْ أَرانِي ، فأُثْنِي عَلَيْهِ حامِداً وَأَذْكُرُهُ مُسَبِّحاً

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी युजीबोनी हीना उनदीहा वा यस्तोरो अलय्या कुल्ला औरतिन वा अना अ 'सीहे वा युअज़्ज़िमुन ने 'मता अलय्या फला उजाज़ीहे ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي لا يُهْتَكُ حِجابُهُ وَلا يُغْلَقُ بابُهُ وَلا يُرَدُّ سائِلُهُ وَلا يُخَيَّبُ آمِلُهُ ، الحَمْدُ للهِ الَّذِي يُؤْمِنُ الخائِفِينَ وَيُنَجِّي الصَّالِحِينَ وَيَرْفَعُ المُسْتَضْعَفِينَ وَيَضَعُ المُسْتَكْبِرِينَ وَيُهْلِكُ مُلُوكا وَيَسْتَخْلِفُ آخَرِينَ ،

फा कम मिन मौहिबतिन हनी 'अतिन क़द अ 'तनी वा अजीमतिन मखूफतींन क़द कफनी वा बह्जतिन मूनेक़तिन क़द अरनी फा उसनी अलैहे हमेदन वा अज़्कुरोहू मुसब्बेहा ,

الحَمْدُ للهِ قاصِمِ الجَبَّارينَ مُبِيرِ الظَّالِمِينَ مُدْرِكِ الهارِبِينَ نَكالِ الظَّالِمِينَ صَرِيخِ المُسْتصرِخِينَ مَوْضِعِ حاجاتِ الطَّالِبِينَ مُعْتَمَدِ المُؤْمِنِينَ ،

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी ला युह्ताको हिजबोहू वा ला युग्लको बबोहू वा ला युरददो सा 'एलोहू वा ला युखाय्याबो अमेलोहू ; अल हम्दोलिल्लाहिल लज़ी यु 'मिनुल खा 'एफीना वा युनाजी सलेहीना वा यर्फा 'उल मुस्तज़ 'अफीना वा यज़ा 'उल मुस्तक्बेरीना वा यूहलेको मुलूकन वा यस्ताख्लिफो आख़रीन ,

الحَمْدُ للهِ قاصِمِ الجَبَّارينَ مُبِيرِ الظَّالِمِينَ مُدْرِكِ الهارِبِينَ نَكالِ الظَّالِمِينَ صَرِيخِ المُسْتصرِخِينَ مَوْضِعِ حاجاتِ الطَّالِبِينَ مُعْتَمَدِ المُؤْمِنِينَ ،

वल हम्दो लिल्लाहे क़सिमिल जब्बरीना मुबीरिज़ ज़लेमीना मुद्रेकिल हरेबीना नकालिज़ ज़ालेमीना सरीखिल मुस्तसरेखीना मौज़े 'इ हजतित तलेबीना मो 'तमादिल मो 'मिनीन ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي مِنْ خَشْيَتِهِ تَرْعَدُ السَّماء وَسُكَّانُها وَتَرْجُفُ الأَرْضُ وَعُمَّارُها وَتَمُوجُ البِحارُ وَمَنْ يَسْبَحُ فِي غَمَراتِها ،

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी मिन खश्यातेही तरदुस समा 'ओ वा स्लिक्कानोहा वा तर्जुफुल अरज़ो वा उम्मारोहा वा तमूजुल बिह 'अरो वा मन यस्बहो फ़ी ग़मरातेहा ,

الحَمْدُ للهِ الَّذِي هَدانا لِهذا وَما كُنا لِنَهْتَدِيَ لَوْلا أَنْ هَدانَا اللهُ ، الحَمْدُ للهِ الَّذِي يَخْلُقُ وَلَمْ يُخْلَقْ وَيَرْزُقُ وَلا يُرْزَقُ وَيُطْعِمُ وَلايُطْعَمُ وَيُمِيتُ الاَحْياءَ وَيُحْييَ المَوْتى وَهُوَ حَيٌ لايَمُوتُ بِيَدِهِ الخَيْرُ وَهُوَ عَلى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी हदाना ले हाजा वा मा कुन्ना ले नह्तदी या लौ ला अन हदानल ' ला अहो ; अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी यखलोको वा लम युखलाक वा यार्ज़ोको वा ला युर्ज़ाको वा उत 'एमो वा ला युत 'अमो वा युमीतुल अहया 'अ वा युहयिल मौता वा होवा हय्युन ला यमूतो बे यदेहिल खैरो वा होवा अला कु 'ले शै 'इन क़दीर

اللّهُمَّ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَرَسُولِكَ وَأَمِينِكَ وَصَفِيِّكَ وَحَبِيبِكَ وَخِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ وَحافِظِ سِرِّكَ وَمُبَلِّغِ رِسالاتِكِ أَفْضَلَ وَأَحْسَنَ وَأَجْمَلَ وَأَكْمَلَ وَأَزْكى وَأَنْمى وَأَطْيَبَ وَأَطْهَرَ وَأَسْنى وَأَكْثَرَ ماصَلَّيْتَ وَبارَكْتَ وَتَرَحَّمْتَ وَتَحَنَّنْتَ وَسَلَّمْتَ عَلى أَحَدٍ مِنْ عِبادِكَ وَأَنْبِيائِكَ وَرُسُلِكَ وَصَفْوَتِكَ وَأَهْلِ الكَرامَةِ عَلَيْكَ مِنْ خَلْقِكَ ،

अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन अब्देका वा रसूलेका वा अमीनेका वा सफिय्येका वा हबीबेका वा खियारातेका मिन खल्केका वा हाफ़िज़े सिर्रेका वा मुबल्लिगे रिसलातेका अफ्ज़ला वा अहसान वा अज्मला वा अक्मला वा आजका वा अन्मा वा अत्याबा वा अतहरा वा अस्ना वा अक्सरा मा सल्लैता वा बरकता वा तरह - हमता वा तहन - नन्ता वा सल्लामता अला अहदीन मिन इ बादेका वा अंबिया 'एका वा रुसुलेका वा सिफ्वातेका वा अह 'ईल करामाते अलैका मिन खल्केका

اللّهُمَّ وَصَلِّ عَلى عَلِيٍّ أَمِيرَ المُؤْمِنِينَ وَوَصِيِّ رَسُولِ رَبِّ العالَمِينَ عَبْدِكَ وَوَلِيِّكَ وَأَخِي رَسُولِكَ وَحُجَّتِكَ عَلى خَلْقِكَ وَآيَتِكَ الكُبْرى وَالنَّبَأ العَظِيمِ ،

अल्लाहुम्मा वा सल्ले अलिया अली - इन अमीरिल मो 'मिनीना वा वसिय्ये रसूले रब्बिल आलामीना अब्देका वा वलिय्येका वा अखी रसूलेका वा हुज्जतेका अला खल्केका वा अयातेकल कुबरा वान्नाबा 'ईल अजीम ,

وَصَلِّ عَلى الصِّدِّيقَةِ الطَّاهِرَةِ فِاطِمَةَ سَيِّدَةِ نِساءِ العالَمِينَ ، وَصَلِّ عَلى سِبْطَي الرَّحْمَةِ وَإِمامَي الهُدى الحَسَنِ وَالحُسَيْنِ سَيِّدَيْ شَبابِ أَهْلِ الجَنَّةِ،

वा सल्ले अलस सिद्दिक़तित तहिराते फतिमताज़ ज़हरा 'इ सैय्यिदते निसा 'ईल आलामीना वा सल्ले अला सिब्तर रहमते वा इमामयिल हदल अल ह 'सने वल हुसैने सैय्यिदै शाबाबे अहलिल जन्नह ,

وَصَلِّ عَلى أَئِمَّةِ المُسْلِمِينَ عَلِيِّ بْنِ الحُسَيْنِ وَمُحَمَّدٍ بْنِ عَلِيٍّ وَجَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ وَمُوسى بْنِ جَعْفَرٍ وَعَلِيٍّ بْنِ مُوسى وَمُحَمَّدٍ بْنِ عَلِيٍّ وَعَليٍّ بْنِ مُحَمَّدٍ وَالحَسَنِ بْنِ عَلِيٍّ وَالخَلَفِ الهادِي المَهْدِي ، حُجَجِكَ عَلى عِبادِكَ وَاُمَنائِكَ فِي بِلادِكِ صَلاةً كَثِيرَةً دائِمَةً

वा सल्ले अला अ 'इम्मतिल मुस्फिमीना अलिय्यिब्निल हुसैने वा मोहम्मद इब्ने अली - इन वा जाफर - इब्ने मोहम्मदीन वा मूसा - इब्ने जाफरिन वा अली - इब्ने मूसा वा मोहम्मद - इब्ने अली - इन वा अली - इब्ने मोहम्मदीन वल हसन - इब्ने अली - इन वल खालाफिल होदियिल मह्देय्ये हुज - अतेका अला इबादेका वा उमाना 'एका फी बिलादेका सलातन कसीरतन दाएमह ,

اللّهُمَّ وَصَلِّ عَلى وَلِيِّ أَمْرِكِ القائِمِ المُؤَمَّلِ وَالعَدْلِ المُنْتَظَرِ وَحُفَّهُ بِمَلائِكَتِكَ المُقَرَّبِينَ وَأَيِّدْهُ بِرُوحِ القُدُسِ يا رَبَّ العالَمِينَ ،

अल्लाहुम्मा वा सल्ले अला वालिय्ये अम्रेकल क़ा एमिल मो 'अम्माले वा अद्लिल मुन्ताज़ारे वा हुफफाहो बे मला 'एकत्कल मुक़र्रबीना वा आइदोहू बे रूहिल औदोसे या रब्बल आलामीन ,

اللّهُمَّ اجْعَلْهُ الدَّاعِيَ إِلى كِتابِكَ وَالقائِمَ بِدِينِكَ اسْتَخْلِفْهُ فِي الأَرْضِ كَما اسْتَخْلَفْتَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِ مَكِّنْ لَهُ دِينَهُ الَّذِي ارْتَضَيْتَهُ لَهُ أَبْدِلْهُ مِنْ بَعْدِ خَوْفِهِ أَمْنا يَعْبُدُكَ لايُشْرِكُ بِكَ شَيْئاً ،

अल्लाहुम्माज अलहुद दा 'इया इला किताबेका वल आएमा बे दीने कस्ताख्लिफ्हो फिल अर्जे कमास्ताख्लाफ्तल लज़ीना मिन आब्लेही मक्किन लहू दीनाहुल लाज़िअर ताजैताहू लहू अब्दिल्हू मिन बा 'दे खौफ़ेही अमनन या 'बोदोका युशिको बेका शैआ ,

اللّهُمَّ أَعِزَّهُ وَأَعْزِزْ بِهِ وَانْصُرْهُ وَانْتَصِرْ بِهِ وَانْصُرْهُ نَصْراً عَزِيزاً وَافْتَحْ لَهُ فَتْحاً يَسِيراً وَاجْعَلْ لَهُ مِنْ لَدُنْكَ سُلْطاناً نَصِيراً ،

अल्लाहुम्मा अ 'इज्ज़ाहू वा अ 'जीज़ बही वान्सुर्हू वा अन्तासिर बही वान्सुर्हो नस्रण अजीजान वाफ्ताह लहू फतहन यसीरण वज्लाल लहू मिन लादुनका सुल्तानन नसीरा ,

اللّهُمَّ أَظْهِرْ بِهِ دِينَكَ وَسُنَّةَ نَبِيِّكَ حَتَّى لا يَسْتَخْفِي بِشَيْءٍ مِنَ الحَقِّ مَخافَةَ أَحَدٍ مِنَ الخَلْقِ

अल्लाहुमा अज़्हिर बही दीनाका वा सुन्नता नाबिय्येका हत्ता ला यस्ताख्फ़ी बे शै 'इन मिनल हक्के मखाफता अहादीन मिनल खल्क़ ,

اللّهُمَّ إِنا نَرْغَبُ إِلَيْكَ فِي دَوْلَةٍ كَرِيمَةٍ تُعِزُّ بِها الاِسْلامَ وَأَهْلَهُ وَتُذِلُّ بِها النِّفاقَ وَأَهْلَهُ ، وَتَجْعَلُنا فِيها مِنَ الدُّعاةِ إِلى طاعَتِكَ وَالقادَةِ إِلى سَبِيلِكَ وَتَرْزُقُنا بِها كَرامَةَ الدُّنْيا وَالآخِرَةِ

अल्लाहुम्मा इन्ना नर्गबो इलैका फी दौलातिन करीमतीं तो 'इज्जो बेहाल इसलामा वा अहलहू वा तोज़िल्लो बहिन नीफाक़ा वा अहलहू वा तज 'अलोना फीहा मिनद दोया अते इला ता 'अतेका वल क़दाते इला सबी 'लका वा तर्ज़ोकोना बेहा करामतेद दुन्वा वल आखिरह ,

اللّهُمَّ ما عَرَّفْتَنا مِنَ الحَقِّ فَحَمِّلْناهُ وَما قَصُرْنا عَنْهُ فَبَلِّغْناهُ ،

अल्लाहुम्मा मा अर्रफ्तना मिनल हक्के फा हम्मिल्नाहो वा मा क़सुरना अंहो फा बल्लिग़नाह ,

اللّهُمَّ أَلْمُمْ بِهِ شَعْثَنا وَأَشْعَبْ بِهِ صَدْعَنا وَأَرْتِقْ بِهِ فَتْقَنا وَكَثِّرْ بِهِ قِلَّتَنا وَأَعْزِزْ بِهِ ذِلَّتَنا وَأَغْنِ بِهِ عائِلَنا وَأَقْضِ بِهِ عَنْ مُغْرَمِنا وَاجْبُرْ بِهِ فَقْرَنا وَسُدَّ بِهِ خَلَّتَنا وَيَسِّرْ بِهِ عُسْرَنا وَبَيِّضْ بِهِ وُجُوهَنا وَفُكَّ بِهِ أَسْرَنا وَانْجِحْ بِهِ طَلَبَتِنَا وَأَنْجِزْ بِهِ مَواعِيدَنا وَاسْتَجِبْ بِهِ دَعْوَتَنا وَاعْطِنا بِهِ سُؤْلَنا وَبَلِّغْنا بِهِ مِنَ الدُّنْيا وَالآخرةِ آمالَنا وَاعْطِنا بِهِ فَوْقَ رَغْبَتِنا ،

अल्लाहुम्मल मुम बही श 'सना वश 'अब बही सद 'अना वर्तुक बेहि फत्क़ना वा कस्सिर बेहि किल्लातना वा अ 'जीज़ बेहि ज़िल्लाताना , व - अगने बेहि आ 'इलाना वक्ज़े बेहि अन मग्रा - मिंना वज्बुर बेहि फक्रना व सुददा बेहि खाल्लाताना व यस्सिर बेहि उसराना व बययिज़ बेहि वुजूहना व फुक्का बेहि असराना व अन्जिः बेहि तलेबतना व - अह्जिज़ बेहि मावा 'इदना व अस्ताजिब बेहि दा 'वतना व अ 'तिना बेहि सु 'ऊलना व बलिघ्ना बेहि मिनद दुन्या वल आखिरते अमलना व अ 'तिना बेहि फुका रग़बतेना ,

يا خَيْرَ المَسْؤُولِينَ وَأَوْسَعَ المُعْطِينَ اشْفِ بِهِ صُدُورَنا وَأَذْهِبْ بِهِ غَيْظَ قُلُوبِنا وَاهْدِنا بِهِ لِما اخْتُلِفَ فِيهِ مِنَ الحَقِّ بِإِذْنِكَ إِنَّكَ تَهْدِي مَنْ تَشاءُ إِلى صِراطٍ مُسْتَقِيمٍ ، وَانْصُرْنا بِهِ عَلى عَدُوِّكَ وَعَدُوِّنا إِلهَ الحَقِّ آمِينَ

या खैरल मसो 'लीना व औसा ' अल मो 'तीनाश्फे बही सुदूरना व अज्हिब बेहि घिज़ा कुलूबेना वहदिना बेहि लेमाख्तुलेफा फीहे मिनल हक्के बे इज्नेका इन्नका तहदी मन तशाओ इला सिरातीं मुस्ताकीमिन वंसुरना बेहि अलिया अदुव्वेका व अदुव्वेना इलाहिल हक्क़े आमीन ,

اللّهُمَّ إِنَّا نَشْكُو إِلَيْكَ فَقْدَ نَبِيِّنا صَلَواتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَغَيْبَةَ وَلِيِّنا وَكَثْرَةَ عَدُوِّنا وَقِلَّةَ عَدَدِنا وَشِدَّةَ الفِتَنِ بِنا وَتَظاهُرَ الزَّمانِ عَلَيْنا ،

अल्लाहुम्मा इन्ना नश्कू इलैका फ़क़द नबिएना सलावातोका अलैहे व आलेही व गैबतन वलिएना व कस्रता अदुव्वेना व किल्लता अदादेना व शिददतल फिराने बिना वा तज़होराज़ ज़माने अलैना ,

فَصَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَأَعِنّا عَلى ذلِكَ بِفَتْحٍ مِنْكَ تُعَجِّلُهُ وَبِضُرٍ تَكْشِفُهُ وَنَصْرٍ تُعِزُّهُ وَسُلْطانِ حَقٍّ تُظْهِرُهُ وَرَحْمَةٍ مِنْكَ تُجَلِّلُناها وَعافِيَةٍ مِنْكَ تُلْبِسُناها بِرَحْمَتِكَ يا أرْحَمَ الرَّاحِمِينَ

फासलिए अ 'आ मोहम्मदीन व आलेही वा अ 'इन्ना अला ज़लेका बे फातहिन् मिनका तो 'अज्जिलोहो व बे ज़ुर्रे तक्शिफोहू वा नसरीन तो 'इज्ज़ोहू व सुल्ताने हक्कींन तोज्हिरोहू वा रहमतींन मिनका तोजल्लिल्नाहा वा आफियातिन मिनका तुल्बिसोनाहा बे रहमतेका या अर्हमर राहेमीन

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा

जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ.स.) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।

1. अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुस सूऊल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।

2. अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।

3. अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।

4. अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे।

5. अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।

6. अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।

7. अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ.स.) बचपने में थे।

8. अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।

9. अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।

10. अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।

11. अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।

12. अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ.स.) के दुश्मन हैं।

13. अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ.स.) औलादे फ़ात्मा (स अ व व ) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।

14. अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

15. अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

16. अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।

17. अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।

18. अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।

19. अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ.स.)(अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।

20. अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।

21. अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।

23. अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।

24. अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।

25. अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ.स.) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।

26. अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पृष्ठ 451 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।

27. अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पृष्ठ 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।

28. अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पृष्ठ 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

29. अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 393 में।

30. अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।

31. अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 प्रकाशित मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) और हज़रत इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।

32. अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पृष्ठ 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।

33. अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पृष्ठ 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।

34. अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 23 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ.स.) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे।(नेयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 370 प्रकाशित बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ.स.) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स अ व व ) में बाक़ी हैं।(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पृष्ठ 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ.स.) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 प्रकाशित मिस्र)

इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में

हज़रत दाऊद (अ.स.) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।

तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ.स.) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ.स.) और ईसा (अ.स.) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) और ज़हूरे मेहदी (अ.स.) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है।(किताब अल वसाएल पृष्ठ 129 प्रकाशित बम्बई 1339 हिजरी)

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की वजह

मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1. ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे 1,23,999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ.स.) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ.स.) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ.स.) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2. ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ.स.) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ.स.) और दूसरे इस्माईल (अ.स.)। इस्हाक़ (अ.स.) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ.स.) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ.स.) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) को जो नस्ले इस्माईल (अ.स.) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) को महफ़ूज़ किया था। 3. यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती।(उसूले काफ़ी 103 प्रकाशित नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है।(बेहार) 4. यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5. क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6. सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7. हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन) 9. चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है।(अल मुतुर्जा़) 10. आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स अ व व ) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे।(कमालुद्दीन)

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) जफ़र जामए की रौशनी में

अल्लामा शेख़ क़न्दूज़ी बलख़ी हनफ़ी रक़मतराज़ हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफ़ज़ल बिन उमर , अबू बसीर , अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हुए रो रहे हैं और कहते हैं कि ऐ मोहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत की ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर , ख़ुदा की आंखों को कभी न रूलाए , बात क्या है , किस लिए हुज़ूर गिरया कुना हैं ? फ़रमाया , ऐ सुदीर ! मैंने आज किताब जाफ़र जामे में बवक़्ते सुबह इमाम मेहदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमे आमा माकाना वमायकून का इन्दराज है और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है सब इसमें लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैंने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम मेहदी होगें। फिर वह ग़ायब हो जाएगें और उनकी ग़ैबत नीज़ उमर बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसाएब में मुबतिला होगें और उनके इम्तेहानात होते रहेंगे और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते होंगे , फिर फ़रमाया ऐ सुदीर ! सुनो इनकी विलादत हज़रत मूसा (अ.स.) की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा (अ.स.) की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह (अ.स.) के मानिन्द होगा और उनकी उम्र हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) की उम्र जैसी होगी।(नेयाबुल मोवद्दत) इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है कि :

1. तारीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूद बनी इस्राईल के ज़रिए होगा तो उसने हुक्म जारी कर दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाए और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाए। चुनान्चे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाया किये गए लेकिन खुदा ने हज़रत मूसा (अ.स.) को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बवजूद पैदा किया , बाक़ी रखा और उन्हीं के हाथों से उसकी सलतनत का तख़्ता उलट दिया। इसी तरह इमाम मेहदी (अ.स.) के लिये हुआ कि तमाम बनी उमय्या और बनी अब्बास की सई बलीग़ के बावजूद आप बतने नरजीस ख़ातून से पैदा हुए और आपको कोई देख तक न सका।

2. हज़रत ईसा (अ.स.) के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ हैं कि आपको सूली दे दी गई और आप क़त्ल किये जा चुके , लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने उसकी रद्द फ़रमा दी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर अमन व अमाने ख़ुदा में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नहीं हुए , हालां कि पैदा हो कर हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह ग़ाएब हो चुके हैं।

3. हज़रत नूह (अ.स.) ने लोगों की नाफ़रमानी से आजिज़ आ कर ख़ुदा के अज़ाब के नज़ूल की दरख़्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ वह फल लाएगा , तब अज़ाब करूगां। इसी तरह नूह (अ.स.) ने सात मरतबा किया बिल आखि़र इस ताख़ीर के वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और इमानदार काफ़िर हो गए और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) और ताख़ीरे ज़हूर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा (अ.स.) की तकज़ीब कर रहे हैं और अवामे मुस्लिम बिला वजह ऐतिराज़ात कर के अपनी आक़बत ख़राब कर रहे हैं और शायद इसी वजह से मशहूर है कि जब दुनियां में चालीस मोमिन कामिल रह जाएगें तब आपका ज़हूर होगा।

4. हज़रते खि़ज्र (अ.स.) जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेगें। उन्हीं की तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगे और जब कि हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं है , हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नहीं हैं।

ग़ैबते सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा

आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं , एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 75 या 73 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नाएबे ख़ास होता था जिसके ज़ेरे एहतेमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब , ख़ुम्स व ज़कात और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्रर किये जाते थे।

सब से पहले जिन्हें नाएबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई उनका नामे नामी व इस्मे गेरामी हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी था। आप हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मोतमिदे ख़ास और असहाबे ख़ल्लस में से थे। आप क़बीलाए बनी असद से थे। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी। आप सामरा के क़रीए असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आप बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किये गये हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) आपके फ़रज़न्द हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िलत पर फ़ाएज़ हुए , आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने अपनी वफ़ात से दो माह क़ब्ल अपनी क़ब्र खुदवा दी थी। आपका कहना था कि मैं यह इस लिये कर रहा हूँ कि मुझे इमाम (अ.स.) ने बता दिया है और अपनी तारीख़े वफ़ात से वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीबब बमक़ाम दरवाज़ा कूफ़ा सिरे राह दफ़्न हुये।

फिर आपकी वफ़ात के बाद बा वास्ता मरहूम हज़रत इमाम (अ.स.) के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रौह इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाएज़ हुए।

जाफ़र बिन मोहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने हज़रत हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम (अ.स.) का पैग़ाम पहुँचाया था। हज़रत हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिब थी। आप महल्ले नव बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर जुमला मुमालिके इस्लामिया का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िरक़ों के नज़दीक मोतमिद , सुक़्क़ा , सालेह और अमीन क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326 हिजरी में हुई और आप महल्ले नव बख़्त कूफ़े में मदफ़ून हुए हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) हज़रत अली बिन मोहम्मद अल समरी इस ओहदाए जलीला पर फ़ाएज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राएज़ अंजाम दे रहे थे , जब वक़्त क़रीब आया तो आप से कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इंतेज़ाम करेंगे ? आपने फ़रमाया कि अब आइन्दा यह सिलसिला क़ाएम न रहेगा।(मजालेसुल मोमेनीन , पृष्ठ 89 व जज़ीरए खि़ज़रा पृष्ठ 6 व अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 55 ) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नबूवत के पृष्ठ 214 में लिखते हैं कि मोहम्मद अल समरी के इन्तेक़ाल से 6 यौम क़ब्ल इमाम (अ.स.) का एक फ़रमाने नाहिया मुक़द्देसा से बरामद हुआ जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिलाए सिफ़ारत के ख़त्म होने का सिलसिला था। इमाम मेहदी (अ.स.) के ख़त के उयून अल्फ़ाज़ यह हैं।

बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम

या अली बिन मोहम्मद अज़म अल्लाह अजरा ख़वाएनेका फ़ीक़ा फ़ाअनका मयता मा बैनका व बैने सुन्नता अय्याम फ़ा अज़मा अमरेका वला तरज़ इला अहद याकौ़म मक़ामेका बाअद वफ़ातेका फ़क़त वक़अत अल ग़ैबता अल तामता फ़ला ज़हूर इला बआद इज़न अल्लाह ताआला व ज़ालेका बआद तूल अल आमद। ’’

तरजुमा:- ऐ अली बिन मोहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम 6 यौम में वफ़ात पाने वाले हो , तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये अपना कोई क़ाएम मुक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिये कि ग़ैबते कुबरा वाक़े हो गई है और इज़ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर न मुम्किन होगा। यह ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।

ग़रज़ कि 6 दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मोहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गए और फिर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्रर नहीं हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।

सुफ़राए उमूमी के नाम

मुनासिब मालूम होता है कि उन सुफ़रा के इस्मा भी दरजे ज़ैल कर दिये जायें जो उन्हें नब्वाबे ख़ास के ज़रिए और सिफ़ारिश से बहुक्मे इमाम (अ.स.) मुमालिके महरूसा मख़सूसिया में इमाम (अ.स.) का काम करते और हज़रत की खि़दमत में हाज़िर होने रहते थे।

1.बग़दाद से हाजिज़ , बिलाली , अत्तार 2. कूफ़े से आसमी , 3. अहवाना से मोहम्मद बिन इब्राहीम बिन मेहरयार , 4. हमदान से मोहम्मद इब्ने सालेह , 5. रै से बसामी व असदी 6. आज़र बैजान से क़सम बिन अला , 7. नैशापूर से मोहम्मद बिन शादान , 8. क़सम से अहमद बिन इस्हाक़।(ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 120 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत के बाद

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत चूंकि ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से बतौरे लुत्फ़े ख़ास अमल में आई थी। इस लिये आप ख़ुदाई खि़दमत में हमतन मुनहमिक हो गये और ग़ायब होने के बाद आपने दीने इस्लाम की खि़दमत शुरू फ़रमा दी। मुसलमानों , मोमिनों के ख़ुतूत के जवाबात देने उनकी बवक़्ते ज़रूरत रहबरी करने और उन्हें राहे रास्त दिखाने का फ़रीज़ा अदा करना शुरू कर दिया। ज़रूरी खि़दमात आप ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में ब वास्ता सुफ़रा या बिला वास्ता और ज़मानए कुबरा में बिला वास्ता अन्जाम देते रहे और क़यामत तक अन्जाम देते रहेंगे।

307 हिजरी में आपका हजरे असवद नसब करना

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ज़मानाए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह , अबूल क़ासिम , जाफ़र बिन मोहम्मद , कौलिया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त अलील हो गये। इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कुछ दुरूस्त कर के अय्यामे हज में फिर नसब करेंगे। किताबों में चूंकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ इमामे ज़माना ही नसब कर सकता है जैसा कि पहले हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) ने नसब किया था। फिर ज़मानाए हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने नसब किया था। इसी बिना पर उन्होंने अपने एक करम फ़रमा ‘‘ इब्ने हश्शाम ’’ के ज़रिए से एक ख़त इरसाल किया और उसे कह दिया कि जो हजरे असवद नसब करे उसे यह ख़त दे देना। नसबे हजर की लोग सई कर रहे थे लेकिन वह अपनी जगह पर क़रार नहीं लेता था कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौ जवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे नसब कर दिया और वह अपनी जगह पर मुसतक़र हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम , तू जाफ़र बिन मोहम्मद का ख़त मुझे दे दे। देख उस में उसने मुझ से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए। इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर जाफ़र बिन क़ौलिया से बयान कर दिया। ग़रज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये।(कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 )

इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताबे मज़कूरा में मौजूद हैं। अल्लामा अब्दुल रहमान मुल्ला जामी रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स इस्माईल बिन हसन हर कुली जो नवाही हिल्ला में मुक़ीम था उसकी रान पर एक ज़ख़्म नमूदार हो गया था जो हर ज़मानए बहार में उबल आता था। जिसके इलाज से तमाम दुनिया के हकीम आजिज़ और क़ासिर हो गये थे। वह एक दिन अपने बेटे शम्सुद्दीन को हमराह ले कर सय्यद रज़ी उद्दीन अली बिन ताऊस की खि़दमत में गया। उन्होंने पहले तो बड़ी सई की लेकिन कोई चारा कार न हुआ। हर तबीब यह कहता था कि यह फोड़ा ‘‘ रगे एकहल ’’ पर है अगर इसे नशतर दिया तो जान का ख़तरा है इस लिये इसका इलाज न मुम्किन है। इस्माईल का बयान है कि ‘‘ चून अज़ अत्तबा मायूस शुदम अज़ी मत मशहद शरीफ़ सरमन राए करदम ’’ जब मैं तमाम एतबार से मायूस हो गया तो सामरा के सरदाब के क़रीब गया और वहां पर हज़रते साहेबे अम्र को मुतावज्जे किया। एक शब दरयाए दजला से ग़ुस्ल कर के वापस आ रहा था कि चार सवार नज़र आए , उनमें से एक ने मेरे ज़ख़्म के क़रीब हाथ फेरा और मैं बिल्कुल अच्छा हो गया। मैं अभी अपनी सेहत पर ताअज्जुब ही कर रहा था कि इनमें से एक सवार ने जो सफ़ेद रीश (सफ़ैद दाढ़ी) थे कहा कि ताअज्जुब क्या है। तुझे शिफ़ा देने वाले इमाम मेहदी (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैंने उनके क़दमों का बोसा दिया और वह लोग नज़रों से ग़ायब हो गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 214 व कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 132 )

इस्हाक़ बिन याक़ूब के नाम इमामे अस्र (अ.स.) का ख़त

अल्लामा तबरिसी बहवाला मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मोहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़त इरसाल किया जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़ुद खत़ का जवाब तहरीर फ़रमाया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फ़रमा दिये जिसके अजज़ा यह हैं:

1. जो हमारा मुनकिर है , वह हम से नहीं।

2. मेरे अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं , उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने युसुफ़ की हैं।

3. फुक्का़ह यानी जौ की शराब का पीना हराम है।

4. हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिये(बतौरे ख़ुम्स) क़ुबूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और अज़ाब से निजात हासिल कर सको।

5. मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ सिर्फ़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्रर करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते है।

6. जो लोग यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूठे और गुमराह हैं।

7. तमाम वाके़ए होने वाले हवादिस में मेरे सुफ़रा पर एतिमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ।

8. मोहम्मद बिन उस्मान ’’ अमीन और सुक़्क़ह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है।

9. मोहम्मद बिन अली महरयार अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जायेगा और उन्हें कोई शक न रहेगा।

10. गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है।

11. मोहम्मद बिन शादान बिन नईम हमारे शियों में से हैं।

12. अबू अल ख़त्ताब मोहम्मद बिन ज़ैनब अजद मलऊन है और इनके मानने वाले भी मलऊन हैं मैं और मेरे बाप दादा इस से और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं।

13. जो हमारा माल खाते हैं वह अपने पेटों में आग भरते हैं।

14. ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिये हलाल है।

15. जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने खुद ज़िम्मेदार हैं।

16. मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ेए हुई है यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताअल्लिक़ है इसके मुताअल्लिक़ सवाल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियां वालों के शिकन्जें में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है जब मैं ज़हूर करूगां बिल्कुल आज़ाद हूंगा।

17. ज़मानाए ग़ैबत में मुझ से फ़ायदा क्या है इसके मुताअल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है , जैसे अब्र में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिये अमान हूँ। तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताअल्लिक़ सवालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दोआ करो औ वह जल्द मेरे ज़हूर का हुक्म दे दे। ऐ इस्हाक़ ! तुम पर और उन लोगों पर मेरा सलाम जो हिदायत की इब्तेदा करते हैं।

(आलामुल वुरा पृष्ठ 258, मजालिसुल मोमेनीन पृष्ठ 190, कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 140 )

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा

जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ.स.) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।

1. अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुस सूऊल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।

2. अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।

3. अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।

4. अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे।

5. अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।

6. अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।

7. अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ.स.) बचपने में थे।

8. अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।

9. अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।

10. अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।

11. अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।

12. अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ.स.) के दुश्मन हैं।

13. अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ.स.) औलादे फ़ात्मा (स अ व व ) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।

14. अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

15. अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

16. अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।

17. अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।

18. अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।

19. अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ.स.)(अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।

20. अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।

21. अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।

23. अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।

24. अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।

25. अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ.स.) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।

26. अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पृष्ठ 451 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।

27. अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पृष्ठ 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।

28. अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पृष्ठ 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

29. अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 393 में।

30. अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।

31. अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 प्रकाशित मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) और हज़रत इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।

32. अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पृष्ठ 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।

33. अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पृष्ठ 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।

34. अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 23 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ.स.) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे।(नेयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 370 प्रकाशित बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ.स.) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स अ व व ) में बाक़ी हैं।(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पृष्ठ 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ.स.) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 प्रकाशित मिस्र)

इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में

हज़रत दाऊद (अ.स.) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।

तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ.स.) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ.स.) और ईसा (अ.स.) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) और ज़हूरे मेहदी (अ.स.) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है।(किताब अल वसाएल पृष्ठ 129 प्रकाशित बम्बई 1339 हिजरी)

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की वजह

मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1. ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे 1,23,999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ.स.) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ.स.) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ.स.) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2. ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ.स.) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ.स.) और दूसरे इस्माईल (अ.स.)। इस्हाक़ (अ.स.) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ.स.) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ.स.) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) को जो नस्ले इस्माईल (अ.स.) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) को महफ़ूज़ किया था। 3. यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती।(उसूले काफ़ी 103 प्रकाशित नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है।(बेहार) 4. यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5. क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6. सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7. हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन) 9. चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है।(अल मुतुर्जा़) 10. आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स अ व व ) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे।(कमालुद्दीन)

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) जफ़र जामए की रौशनी में

अल्लामा शेख़ क़न्दूज़ी बलख़ी हनफ़ी रक़मतराज़ हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफ़ज़ल बिन उमर , अबू बसीर , अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हुए रो रहे हैं और कहते हैं कि ऐ मोहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत की ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर , ख़ुदा की आंखों को कभी न रूलाए , बात क्या है , किस लिए हुज़ूर गिरया कुना हैं ? फ़रमाया , ऐ सुदीर ! मैंने आज किताब जाफ़र जामे में बवक़्ते सुबह इमाम मेहदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमे आमा माकाना वमायकून का इन्दराज है और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है सब इसमें लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैंने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम मेहदी होगें। फिर वह ग़ायब हो जाएगें और उनकी ग़ैबत नीज़ उमर बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसाएब में मुबतिला होगें और उनके इम्तेहानात होते रहेंगे और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते होंगे , फिर फ़रमाया ऐ सुदीर ! सुनो इनकी विलादत हज़रत मूसा (अ.स.) की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा (अ.स.) की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह (अ.स.) के मानिन्द होगा और उनकी उम्र हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) की उम्र जैसी होगी।(नेयाबुल मोवद्दत) इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है कि :

1. तारीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूद बनी इस्राईल के ज़रिए होगा तो उसने हुक्म जारी कर दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाए और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाए। चुनान्चे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाया किये गए लेकिन खुदा ने हज़रत मूसा (अ.स.) को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बवजूद पैदा किया , बाक़ी रखा और उन्हीं के हाथों से उसकी सलतनत का तख़्ता उलट दिया। इसी तरह इमाम मेहदी (अ.स.) के लिये हुआ कि तमाम बनी उमय्या और बनी अब्बास की सई बलीग़ के बावजूद आप बतने नरजीस ख़ातून से पैदा हुए और आपको कोई देख तक न सका।

2. हज़रत ईसा (अ.स.) के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ हैं कि आपको सूली दे दी गई और आप क़त्ल किये जा चुके , लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने उसकी रद्द फ़रमा दी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर अमन व अमाने ख़ुदा में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नहीं हुए , हालां कि पैदा हो कर हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह ग़ाएब हो चुके हैं।

3. हज़रत नूह (अ.स.) ने लोगों की नाफ़रमानी से आजिज़ आ कर ख़ुदा के अज़ाब के नज़ूल की दरख़्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ वह फल लाएगा , तब अज़ाब करूगां। इसी तरह नूह (अ.स.) ने सात मरतबा किया बिल आखि़र इस ताख़ीर के वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और इमानदार काफ़िर हो गए और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) और ताख़ीरे ज़हूर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा (अ.स.) की तकज़ीब कर रहे हैं और अवामे मुस्लिम बिला वजह ऐतिराज़ात कर के अपनी आक़बत ख़राब कर रहे हैं और शायद इसी वजह से मशहूर है कि जब दुनियां में चालीस मोमिन कामिल रह जाएगें तब आपका ज़हूर होगा।

4. हज़रते खि़ज्र (अ.स.) जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेगें। उन्हीं की तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगे और जब कि हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं है , हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नहीं हैं।

ग़ैबते सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा

आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं , एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 75 या 73 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नाएबे ख़ास होता था जिसके ज़ेरे एहतेमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब , ख़ुम्स व ज़कात और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्रर किये जाते थे।

सब से पहले जिन्हें नाएबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई उनका नामे नामी व इस्मे गेरामी हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी था। आप हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मोतमिदे ख़ास और असहाबे ख़ल्लस में से थे। आप क़बीलाए बनी असद से थे। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी। आप सामरा के क़रीए असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आप बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किये गये हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) आपके फ़रज़न्द हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िलत पर फ़ाएज़ हुए , आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने अपनी वफ़ात से दो माह क़ब्ल अपनी क़ब्र खुदवा दी थी। आपका कहना था कि मैं यह इस लिये कर रहा हूँ कि मुझे इमाम (अ.स.) ने बता दिया है और अपनी तारीख़े वफ़ात से वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीबब बमक़ाम दरवाज़ा कूफ़ा सिरे राह दफ़्न हुये।

फिर आपकी वफ़ात के बाद बा वास्ता मरहूम हज़रत इमाम (अ.स.) के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रौह इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाएज़ हुए।

जाफ़र बिन मोहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने हज़रत हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम (अ.स.) का पैग़ाम पहुँचाया था। हज़रत हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिब थी। आप महल्ले नव बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर जुमला मुमालिके इस्लामिया का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िरक़ों के नज़दीक मोतमिद , सुक़्क़ा , सालेह और अमीन क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326 हिजरी में हुई और आप महल्ले नव बख़्त कूफ़े में मदफ़ून हुए हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) हज़रत अली बिन मोहम्मद अल समरी इस ओहदाए जलीला पर फ़ाएज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राएज़ अंजाम दे रहे थे , जब वक़्त क़रीब आया तो आप से कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इंतेज़ाम करेंगे ? आपने फ़रमाया कि अब आइन्दा यह सिलसिला क़ाएम न रहेगा।(मजालेसुल मोमेनीन , पृष्ठ 89 व जज़ीरए खि़ज़रा पृष्ठ 6 व अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 55 ) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नबूवत के पृष्ठ 214 में लिखते हैं कि मोहम्मद अल समरी के इन्तेक़ाल से 6 यौम क़ब्ल इमाम (अ.स.) का एक फ़रमाने नाहिया मुक़द्देसा से बरामद हुआ जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिलाए सिफ़ारत के ख़त्म होने का सिलसिला था। इमाम मेहदी (अ.स.) के ख़त के उयून अल्फ़ाज़ यह हैं।

बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम

या अली बिन मोहम्मद अज़म अल्लाह अजरा ख़वाएनेका फ़ीक़ा फ़ाअनका मयता मा बैनका व बैने सुन्नता अय्याम फ़ा अज़मा अमरेका वला तरज़ इला अहद याकौ़म मक़ामेका बाअद वफ़ातेका फ़क़त वक़अत अल ग़ैबता अल तामता फ़ला ज़हूर इला बआद इज़न अल्लाह ताआला व ज़ालेका बआद तूल अल आमद। ’’

तरजुमा:- ऐ अली बिन मोहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम 6 यौम में वफ़ात पाने वाले हो , तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये अपना कोई क़ाएम मुक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिये कि ग़ैबते कुबरा वाक़े हो गई है और इज़ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर न मुम्किन होगा। यह ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।

ग़रज़ कि 6 दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मोहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गए और फिर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्रर नहीं हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।

सुफ़राए उमूमी के नाम

मुनासिब मालूम होता है कि उन सुफ़रा के इस्मा भी दरजे ज़ैल कर दिये जायें जो उन्हें नब्वाबे ख़ास के ज़रिए और सिफ़ारिश से बहुक्मे इमाम (अ.स.) मुमालिके महरूसा मख़सूसिया में इमाम (अ.स.) का काम करते और हज़रत की खि़दमत में हाज़िर होने रहते थे।

1.बग़दाद से हाजिज़ , बिलाली , अत्तार 2. कूफ़े से आसमी , 3. अहवाना से मोहम्मद बिन इब्राहीम बिन मेहरयार , 4. हमदान से मोहम्मद इब्ने सालेह , 5. रै से बसामी व असदी 6. आज़र बैजान से क़सम बिन अला , 7. नैशापूर से मोहम्मद बिन शादान , 8. क़सम से अहमद बिन इस्हाक़।(ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 120 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत के बाद

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत चूंकि ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से बतौरे लुत्फ़े ख़ास अमल में आई थी। इस लिये आप ख़ुदाई खि़दमत में हमतन मुनहमिक हो गये और ग़ायब होने के बाद आपने दीने इस्लाम की खि़दमत शुरू फ़रमा दी। मुसलमानों , मोमिनों के ख़ुतूत के जवाबात देने उनकी बवक़्ते ज़रूरत रहबरी करने और उन्हें राहे रास्त दिखाने का फ़रीज़ा अदा करना शुरू कर दिया। ज़रूरी खि़दमात आप ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में ब वास्ता सुफ़रा या बिला वास्ता और ज़मानए कुबरा में बिला वास्ता अन्जाम देते रहे और क़यामत तक अन्जाम देते रहेंगे।

307 हिजरी में आपका हजरे असवद नसब करना

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ज़मानाए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह , अबूल क़ासिम , जाफ़र बिन मोहम्मद , कौलिया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त अलील हो गये। इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कुछ दुरूस्त कर के अय्यामे हज में फिर नसब करेंगे। किताबों में चूंकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ इमामे ज़माना ही नसब कर सकता है जैसा कि पहले हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) ने नसब किया था। फिर ज़मानाए हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने नसब किया था। इसी बिना पर उन्होंने अपने एक करम फ़रमा ‘‘ इब्ने हश्शाम ’’ के ज़रिए से एक ख़त इरसाल किया और उसे कह दिया कि जो हजरे असवद नसब करे उसे यह ख़त दे देना। नसबे हजर की लोग सई कर रहे थे लेकिन वह अपनी जगह पर क़रार नहीं लेता था कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौ जवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे नसब कर दिया और वह अपनी जगह पर मुसतक़र हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम , तू जाफ़र बिन मोहम्मद का ख़त मुझे दे दे। देख उस में उसने मुझ से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए। इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर जाफ़र बिन क़ौलिया से बयान कर दिया। ग़रज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये।(कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 )

इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताबे मज़कूरा में मौजूद हैं। अल्लामा अब्दुल रहमान मुल्ला जामी रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स इस्माईल बिन हसन हर कुली जो नवाही हिल्ला में मुक़ीम था उसकी रान पर एक ज़ख़्म नमूदार हो गया था जो हर ज़मानए बहार में उबल आता था। जिसके इलाज से तमाम दुनिया के हकीम आजिज़ और क़ासिर हो गये थे। वह एक दिन अपने बेटे शम्सुद्दीन को हमराह ले कर सय्यद रज़ी उद्दीन अली बिन ताऊस की खि़दमत में गया। उन्होंने पहले तो बड़ी सई की लेकिन कोई चारा कार न हुआ। हर तबीब यह कहता था कि यह फोड़ा ‘‘ रगे एकहल ’’ पर है अगर इसे नशतर दिया तो जान का ख़तरा है इस लिये इसका इलाज न मुम्किन है। इस्माईल का बयान है कि ‘‘ चून अज़ अत्तबा मायूस शुदम अज़ी मत मशहद शरीफ़ सरमन राए करदम ’’ जब मैं तमाम एतबार से मायूस हो गया तो सामरा के सरदाब के क़रीब गया और वहां पर हज़रते साहेबे अम्र को मुतावज्जे किया। एक शब दरयाए दजला से ग़ुस्ल कर के वापस आ रहा था कि चार सवार नज़र आए , उनमें से एक ने मेरे ज़ख़्म के क़रीब हाथ फेरा और मैं बिल्कुल अच्छा हो गया। मैं अभी अपनी सेहत पर ताअज्जुब ही कर रहा था कि इनमें से एक सवार ने जो सफ़ेद रीश (सफ़ैद दाढ़ी) थे कहा कि ताअज्जुब क्या है। तुझे शिफ़ा देने वाले इमाम मेहदी (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैंने उनके क़दमों का बोसा दिया और वह लोग नज़रों से ग़ायब हो गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 214 व कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 132 )

इस्हाक़ बिन याक़ूब के नाम इमामे अस्र (अ.स.) का ख़त

अल्लामा तबरिसी बहवाला मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मोहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़त इरसाल किया जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़ुद खत़ का जवाब तहरीर फ़रमाया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फ़रमा दिये जिसके अजज़ा यह हैं:

1. जो हमारा मुनकिर है , वह हम से नहीं।

2. मेरे अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं , उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने युसुफ़ की हैं।

3. फुक्का़ह यानी जौ की शराब का पीना हराम है।

4. हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिये(बतौरे ख़ुम्स) क़ुबूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और अज़ाब से निजात हासिल कर सको।

5. मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ सिर्फ़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्रर करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते है।

6. जो लोग यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूठे और गुमराह हैं।

7. तमाम वाके़ए होने वाले हवादिस में मेरे सुफ़रा पर एतिमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ।

8. मोहम्मद बिन उस्मान ’’ अमीन और सुक़्क़ह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है।

9. मोहम्मद बिन अली महरयार अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जायेगा और उन्हें कोई शक न रहेगा।

10. गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है।

11. मोहम्मद बिन शादान बिन नईम हमारे शियों में से हैं।

12. अबू अल ख़त्ताब मोहम्मद बिन ज़ैनब अजद मलऊन है और इनके मानने वाले भी मलऊन हैं मैं और मेरे बाप दादा इस से और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं।

13. जो हमारा माल खाते हैं वह अपने पेटों में आग भरते हैं।

14. ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिये हलाल है।

15. जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने खुद ज़िम्मेदार हैं।

16. मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ेए हुई है यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताअल्लिक़ है इसके मुताअल्लिक़ सवाल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियां वालों के शिकन्जें में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है जब मैं ज़हूर करूगां बिल्कुल आज़ाद हूंगा।

17. ज़मानाए ग़ैबत में मुझ से फ़ायदा क्या है इसके मुताअल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है , जैसे अब्र में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिये अमान हूँ। तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताअल्लिक़ सवालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दोआ करो औ वह जल्द मेरे ज़हूर का हुक्म दे दे। ऐ इस्हाक़ ! तुम पर और उन लोगों पर मेरा सलाम जो हिदायत की इब्तेदा करते हैं।

(आलामुल वुरा पृष्ठ 258, मजालिसुल मोमेनीन पृष्ठ 190, कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 140 )


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