हज़रत अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम

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हज़रत अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम कैटिगिरी: इमाम रज़ा (अ)

हज़रत अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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हज़रत अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम

हज़रत अली बिन मूसा रज़ा अलैहिस्सलाम

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इमाम रज़ा (अ.) की दर्दनाक शहादत का वाक्या

जैसा कि बयान किया गया है कि मामून लानतुल्लाह अलैही हज़रत इमामे रज़ा (अ.) को अपनी हुकूमत को इसतेहकाम बख़्शने के लिये मरकज़े ख़िलाफ़त लेकर आया और इमामे रज़ा (अ.) के लिये उसका सभी अदब व ऐहतेराम और इज़्ज़त व तकरीम का प्रोगिराम दिखावे के अलावा कुछ और न था लेकिन मामून देख रहा था कि लोगों के दर्मियान इमाम की मक़बुलियत बढ़ती ही जा रही है लिहाज़ा उस को ख़तरे का ऐहसास हुआ और दूसरी तरफ़ बनी अब्बास ने भी इमाम (अ.) की वली ऐहदी को लेकर उस पर दबाओ डाल रखा था , इस के अलावा इमाम (अ.) के हक़ के दिफ़ा में सरिही बयान और लेहजे की सराहत , ताग़ूत और ज़ालिम बादशाह की तवज्जोह आप को शहीद करने की तरफ़ मबज़ूल व मुसतेहकम होती गई लेकिन मामून ने आप की शहादत के लिये बहुत ही शातिराना चाल चली और कोशिश की कि उसकी साज़िश का राज़ फ़ाश न हो वह बेख़बर था कि ज़ुल्म व सितम चाहे जिस हद तक और जिस लिबास और आड़ में हो हमेशा के लिये पोशिदा नहीं रह सकता एक न एक दिन तो बरमला हो कर ही रहता है।

वैयलुल लिलमुफ़तरीनल जाहेदीना इनदन क़ज़ाऐ मुद्दते मूसा अबदी व हबीबी...........

(बन्दा और दौस्त की मंज़िल और मर्हला गुज़र जाने के बाद मूसा का इंतेख़ाब किया अफ़सोस और लानत हो अली बिन मूसा पर छोटी निसबत देने वालों कृपर वह तो मेरे दौस्त व मुनिस व मददगार हैं यह वोह हैं जिन के दौश पर बारहा नबुवत की ज़िम्मेदारी डाल सकता हो और ज़िम्मेदारीयां अंजाम दिलाने के ज़रिये इमतेहान में मुबतिला कर सकता हूं। उसे (मामून) जैसा पलीद व ना बकार आदमी क़त्ल करेगा और तूस जैसे शहर में कि जिसे सालह बन्दे ज़ुलक़रनेन ने बनाया है , बद तरीन ख़ल्क़ (हारून) के बग़ल में दफ़्न किया जायेगा।

(उसूले काफ़ी (मुतरजिम) 2,473 , अनवारुल बहीयत 365)

एक ख़ुरासानी का ख़्वाब

शैख़ सुदूक़ ने इमामे रज़ा (अ.) के हवाले से नक़्ल किया है कि एक ख़ुरासानी आदमी ने हज़रत से अर्ज़ कियाः यबना रसूल अल्लाह मेने रसूले ख़ुदा (स.) को ख़्वाब में देखा गोया वह मुझ से फ़रमा रहे थे केसे रहोगे कि जब मेरे जिस्म का एक टुकड़ा (नवासा) तुम्हारी सरज़मीन में दफ़्न होगा और मेरी अमानत तुम्हारे हवाले की जायेगी और तुम्हारी सरज़मीन में मेरा सितारा डूबेगा ?

फ़क़ाला रज़ा अलैहिस्सलामः अना मदफ़ूनो फ़ी अर्ज़ेकुम व अना बिज़अतुन मिन नबीयेकुम व अनल वदीअतो वन नजमो

(इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमायाः मैं तुम्हारी सरज़मीन में दफ़्न होंगा और मैं तुम्हारे पैग़म्बर के जिस्म का टुकड़ा हूं मैं वह अमानत हूं और मैं ही हूं वह सितारा) इस लिये जान लो कि जो कोई मेरी ज़ियारत करेगा और उस हक़ और पेरवी को जो ख़ुदा ने मेरे लिये वाजिब क़रार दिया है , पहचाने गा , क़यामत के दिन मैं और मेरे वालिदे बुज़ुर्गवार उस की शिफ़ाअत करेंगे और जिन की शिफ़ाअत कर वाने वाले हम होंगे वह क़यामत के दिन निजात पायेगा अगर्चे उस के गुनाह जिन व इन्स के बराबर ही क्यों न हो।

(अमाली सुदूक़े मजलिस 15 , हाशिया 10 , उयूने अख़बारे रज़ा 2,287 , हाशिया 11 , मिनल ऐहज़ारतिल फ़क़ीयत 2,350 , हाशिया 33 , अल बिहार 49,283 हाशिया 1 , जिल्द 102 , 32 , हाशिया 3 , कशफ़ुल ग़िमा 2,329 , आलामुल वरा 333 , रोज़ातुल वाऐज़ीन 1,233-374 ,)

शहादत की कहानी इमाम की ज़बानी

शैख़ सुदूक़ की ज़िक्र करदा तफ़सीली रिवायत के मुताबिक़ः हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने हरसमा बिन आइन को तलब किया और फ़रमायाः ऐ हरसमा मेरी मौत का वक़्त आन पहुंचा है मैं अंक़रीब ही अपने नाना और दादा अली (अ.) से जा मिलुंगा।

व क़द अज़ामा हाज़त्ताग़ी अला सम्मी............

और यह ज़ालिम (मामून) मुझे ज़हर आलूद अंगूर और अनार के ज़रीये मारना चाहता है अंगूरे ज़हरे आलूदा के ज़रीये ज़हरीला बनाया जायेगा और अनार दानों को ग़ुलाम के हाथों में लगे ज़हर से ज़हर आलूद किया जायेगा वह कल के दिन मामून (मामून) मुझे अपने पास बुलायेगा और उस ज़हर आलूद अंगूर और अनार को ज़बरदस्ती मुझे खिलायेगा इब्ने जोज़ी ने भी अंगूर के वाक़ेऐ की तरफ़ इशारा किया है और कहा हैः धागे के ज़रीये अंगूर को ज़हर आलूद किया गया उसके बाद हज़रत को खिलाया गया।

(उयूने अख़बारे रज़ा 2,275 , हाशिया 1 , अल बिहार 49,293 , हाशिया 8 , कशफ़ुल ग़िमा 2,265 व 332 , आलामुल वरा 343 , अल मुनाक़िब 4,373 , इसबातुल हिदायत 3,281 हाशिया 98 , तज़करातुल ख़वास 318)

अबा सलत हरवी की रिवायत

शैख़ दुसूक़ और दूसरों ने अबा सलत हरवी से रिवायत की है कि उन्हों ने कहाः एक दिन मैं हज़रत इमामे रज़ा (अ.) की ख़िदमत में हाज़िर था हज़रत ने मुझ से फ़रमायाः ऐ अबा सलत हारून के मक़बरे में जहां हारून को दफ़्न किया गया है टारों तरफ़ से मट्टी उठा कर लाओ , अबा सलत का कहना है मैं गया और हारून रशीद के मक़बरे में दाख़िल हुआ क़ब्र के चारों तरफ़ की मट्टी उठा कर हज़रत के पास लाया जब मैं हज़रत के पास ख़ड़ा हुआ तो हज़रत ने फ़रमायाः यह मट्टी मुझे दो वह मट्टी जो दरवाज़े के पास और हारून की क़ब्र के पीछे के हिस्से की थी हज़रत ने लिया और सूंगा फिकर उसे ज़मीन पर डालते हुऐ फ़रमायाः अंक़रीब ही इस जगह मेरे लिये क़ुब्र बनाई जाऐगी (और हारून मेरे सामने होगा और मैं इस के पीछे दफ़्न हूंगा लेकिन क़ब्र ख़ोदने के वक़्त एक बहुत ही सख़्त पत्थर ज़ाहिर होगा और ख़ुरासान में जितनी भी कदालें हैं अगर लाकर उस को निकालना चाहेंगे तो भी वह पत्थर नहीं निकलेगा उस के बाद वह मिट्टी जो हारून के क़ब्र के नीचे और ऊपर की सिम्त लाया था हज़रत ने लेकर सूंघा और वही बात दोबारह दोहराई।

फ़िर फ़रमायाः (क़िबले की जानिब की) यह मिट्टी मुझे दो क्यों कि यही मेरी क़ब्र की जगह है अंक़रीब मेरी क़ब्र यहीं बनाई जाऐगी उन्हें कहना कि सात दरजा नीचे तक ख़ोदेंगे और मेरी लहद व ज़राआ और एक बालिश्त बनायेंगे क्यों कि ख़ुदा वन्दे आलम जिस क़दर चाहेगा उस को वसी करेगा।

जब क़ब्र ख़ोदी जाऐगी तो सरहाने से रुतूबत निकलती हुई दिखाई देगी उस वक़्त वोह दुआ पढ़ना जो तुम्हें बताऊंगा उस के बाद पानी उबल कर इस तरह निकलेगा कि उस में छोटी छोटी मछलीयां तैरती हुई नज़र आऐंगी यह रोटी मैं तुम्हें दे रहा हूं इन को टुकड़े कर के उन मछलीयों को ख़िला देना उस के बाद एक बड़ी मछली दिखाई देगी जो उन सारी छोटी मछलीयों को निगल जायेगी उस के बाद वह जाकर छिप जायेगी उस के बाद वह दुआ पढ़ना जो मैं तुम्हें बताऊंगा फिर उसके बाद वह सारा पानी क़ब्र से निकल कर ख़त्म हो जायेगा यह सब कुछ जो तुम्हें बता रहा हूं सिर्फ़ व सिर्फ़ मामून की मौजूदगी में अंजाम देना।

मैं कल मामून के पास जाऊंगा

फ़िर फ़रमायाः ऐ अबा सलत मैं कल उस फ़ाजिर शख़्स के पास जाऊंगा अगर मैं उस के घर से बाहर आया तो मुझ से बात करना और अगर सर को ठका हुआ देखा तो मुझ से बात मत करना अबा सलत ने कहा दूसरे दिन सुब्ह को इमाम अलैहिस्सलाम ने अपना लिबास ज़ैब तन किया और मेहराबे इबादत में बैठ कर इंतेज़ार करने लगे।

इसी मौक़े पर मामून का ग़ुलाम हाज़िर हुआ और बोलाः मामून ने आप को तलब किया है इमाम (अ.) ने अपनी नालैन पहनी और अबा को दौश पर डाला और ग़ुलाम के साथ रवाना हो गये मैं भी हज़रत के पीछे पीछे रवाना हुआ जब हज़रत मामून के पास पहुंचे तो मैंने देखा कि मामून के सामने रंग बरंगे फल मिन जुम्ला अंगूर तबक़ में रखे हुऐ थे और मामून अंगूर के दानों को खा रहा था और वह अंगूर जो ज़हर में डूबे हुऐ थो अलग रखे थे।

जब उस की नज़र इमामे रज़ा (अ.) पर पड़ी तो वह उठ खड़ा हुआ और हज़रत को गले से लगाया पैशानी का बोसा लिया और आप को अपने पास बैठा लिया और फिर ज़हर आलूद अंगूर का गुच्छा हज़रत की तरफ़ बढ़ाते हुऐ बोलाः ऐ फ़रज़न्दे रसूल मैंने इस से अच्छा अंगूर आज तक नहीं देखा हज़रत इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमायाः शायद जन्नत का अंगूर इस से अच्छा हो।

मामून ने कहाः यह अंगूर खायें हज़रत ने फ़रमायाः मुझे इस अंगूर से दूर ही रखो मामून ने कहा कोई फ़ाइदा नहीं इसे खाना ही पड़ेगा क्या आप मुझ पर इलज़ाम लगाना चाहते हैं उस के बाद उस ने एक अंगूर का गुच्छा उठाया और खाने लगा अंदर ज़हर आलूद गुच्छा इमाम की तरफ़ बढ़ाते हुऐ खाने की ज़िद करने लगा।

फ़क़ाला मिनहुर्रज़ा अलैहिस्सलाम सलासा हब्बातिन , सुम्मा रमा बेही व क़ामा................

हज़रत रज़ा (अ.) ने उन अंगूर में से सिर्फ़ तीन दाने खाये और बाक़ी को ज़मीन पर फेंक दिया फिर फ़ौरन उठ ख़ड़े हुऐ मामून बोला कहां जा रहे हो वहीं जहां पर तुम ने भैजना चाहा है।

उस के बाद हज़रत मामून लानतुल्लाह के दरबार से निकले अपने सर को ठक रखा था और मैंने भी हज़रत के हुक्म के मुताबिक़ उन से कोई बात नहीं की फिर वह घर में दाख़िल हुऐ और मुझ से फ़रमाया कि घर का दरवाज़ा बन्द कर दो वह अपने बिसतर पर गये और मैं भी घर के आंगन में ग़मज़दा और मायूस खड़ा रहा।

इमामे जवाद अलैहिस्सलाम की अपने वालिद के सरहाने मौजूदगी

नोजवान को देखा जो इमामे रज़ा (अ.) से शक्ल व सूरत में मुशाबेहत रखता था। वोह जैसी ही अन्दर दाख़िल हुआ मैं उस की तरफ़ बढ़ा और अर्ज़ कियाः तुम कहां से दाखिल हुऐ जब कि मैं ने दरवाज़ा तो बन्द कर रखा था ?

फ़क़ालाः अल्लज़ी जाआ बी मिनल मदीनते फ़ी हाज़ल वक़्ते , होवल लज़ी अदख़लनी अद्दारा वल बाबो मुग़लक़ुन......................................

(फ़रमायाः जो ख़ुदा मुझे शहरे मदीना से शहरे यहां तूस ला सकता है वह इस बन्द दरवाज़े से दाख़िल कराने की भी ताक़त रखता है। तुम कौन हो ? फ़रमायाः मैं तुम पर ख़ुदा की हुज्जत हूं , ऐ अबा सलत! मैं मुहम्मद बिन अली (अ.) हूं)

अबा सलत ने कहाः वोह अपने वालिद के पास गये और अपने साथ मुझे भी आने का इशारा किया मैं भी अन्दर दाख़िल हुआ।

फ़लम्मा नज़ारा एलैहिर्रज़ा अलैहिस्सलाम व सबा एलैहि फ़आनक़ाहु व ज़म्माहु ऐला सदरेही....

(लिहाज़ा जैसे ही अपने वालिदे गिरामी के कमरे में दाख़िल हुऐ और उस मज़लूम व मसमूम की निगाह उन पर पड़ी अपनी जगह से उढ़े और इमामे जवाद अलैहिस्सलाम को अपने कलेजे से लगाया। उन की पैशानी का बोसा लिया और अपने अज़ीज़ फ़रज़न्द को आग़ोश में भीच ज़ोर से लिया , उन की आँखों के बीच का बोसा लिया अपने फ़रज़न्द को अपने बिसतर पर बैठाया , इमामे जवाद अलैहिस्सलाम अपने बाबा के सीने से लिपट कर उन की ख़ुशबू सूंघ रहे थे इमामे रज़ा (अ.) कुछ राज़ की बातें उन के कान में बता रहे थे , जिसको मैं नहीं समझ पाया कि क्या कहा था)

अलबत्ता वोह राज़ की बातें , इमामत व विलायत और वह उलूम थे जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से हज़रत अली (अ.) और उन से होते हुऐ एक के बाद एक सभी इमामों तक मुंतक़िल होते रहे हैं , इस वाक़े के बाद इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की पाकीज़ा रुह अपने अजदाद अलैहिमुस्सलाम की रुह से मुलहक़ हो गई।

इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का ग़ुस्लो कफ़न

फिर इमामे जवाद अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ऐ अबा सलत उस कमरे के अंदर जाओ और ग़ुस्ल के लिये पानी और लकड़ी का तख़ता लेकर आओ , मेने अर्ज़ कियाः इस कमरे में न तो पानी है और न ही लकड़ी का तख़ता। आप ने फ़रमायाः मैं ने जो कुछ कहा उस पर अमल करो , मैं भी कमरे में दाखिल हुआ मैंने देखा कि वहां पानी और तख़ता दोनों मौजूद हैं , उन्हें लेकर आया और अपना लिबास ऊपर उठाया ताकि इमामे रज़ा (अ.) को ग़ुस्ल देने में हज़रत की मदद कर सकूं।

फ़क़ाला लीः तनाहा या अबा सलतिन फ़इन्ना ली मन योईननी ग़ैरोका

(मुझ से फ़रमायाः ऐ अबा सलत तुम हट जाओ , यक़ीनी तौर पर तुम्हारे अलावा कोई और है जो मेरी मदद करेगा) (यानी फ़रिशते और मलाऐका मेरी मदद करेंगे)

ग़ुस्ल देने के बाद मुझ से फ़रमायाः कमरे के अंदर जाओ और हज़रत के लिये जो कफ़न और हुनूत का सामान रखा है मेरे लिये लेकर आओ , मैं जब कमरे में दाखिल हुआ तो देखा एक टोकरी में कफ़न और हुनूत का सामान रखा हुआ है जब कि उस से पहले कमरे में कुछ भी नहीं था , वोह सब सामान लेकर मैं बाहर आ गया , इमामे जवाद अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद को कफ़न और हुनूत दिया और उन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी , फिर फ़रमायाः ताबूत लेकर आओ , मैंने अर्ज़ कियाः बड़हई के पास जाऊं और ताबूत बनवाने के लिये बोलूं ? आप ने फ़रमायाः उठो और जाकर देखो उसी कमरे में ताबूत रखा हुआ है , मैं ने वोह ताबूत उठा कर हज़रत की ख़िदमत में पैश किया। उन्हों ने इमामे रज़ा (अ.) के पाकीज़ा जिस्म को उठा कर ताबूत में रखा , दो रकत नमाज़ पढ़ी अभी नमाज़ पूरी भी नहीं हुई थी कि देखा आप का ताबूत ज़मीन से बुलन्द हुआ और घर की छत को पार करता हुआ आसमान की तरफ़ परवाज़ करने लगा। मैंने अर्ज़ कियाः यबना रसूल अल्लाह (स.) मामून आयेगा और हज़रत इमामे रज़ा (अ.) के बारे में मुझ से पूछेगा तो मैं क्या जवाब दूंगा ? हज़रत ने फ़रमायाः ख़ामौश रहो जल्द ही ताबूत वापस आयेगा , ऐ अबा सलत ! अगर कोई पैग़म्बर दुनिया के मशरिक़ी हिस्से में रेहलत करे और उसका वसी मग़रिबी हिस्से में रहता हो तो ख़ुदा वन्दे आलम उन की रुहों को एक जगह जमा कर के मिलाता है , हज़रत बात कर ही रहे थे कि अचानक छत में शिग़ाफ़ हुआ और ताबूत ज़मीन पर आकर रुक गया , इमामे जवाद (अ.) ने हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को ताबूत से निकाला और उन के बिसतर पर इस तरह लिटा दिया गोया ग़ुस्लो कफ़न न किया हो।

मामून लानतुल्लाह की रिया कारी

फिर इमामे जवाद (अ.) ने फ़रमायाः ऐ अबा सलत उठो और मामून के लिये दरवाज़ा खोलो , मामून को उसके नोकरों के साथ दरवाज़े पर खड़ा देखा।

फ़दख़ाला बाकेयन हज़ीनन क़द शक़्क़ा जैबहु , व लतामा रासोहु

(मामून ग़म व अंदोह की हालत में रोता हुआ दाख़िल हुआ , उस ने गिरेबान चाक कर रखा था और सर पीट रहा था।)

वह कहने लगा , ऐ मेरे मौला , मैं आप के ग़म में निढ़ाल हो गया। फिर हज़रत के सरहाने खड़े होकर बोला ग़ुस्लो कफ़न की कारावाई शुरु की जाये फिर हज़रत की क़ब्र तैयार करने का हुक्म दिया जब क़ब्र तैयार की जाने लगी तो जैसा कि इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमाया था , वैसा ही हुआ और हारून की क़ब्र के तीन कौनों में ज़मीन खोदी न जा सकी मामून के एक हवारी ने उस से कहा क्या आप को यक़ीन नहीं है कि वोह इमाम नहीं ? मामून ने कहाः क्यों नहीं मैं मानता हूं उस ने कहा तो फिर इमाम को चाहे वोह ज़िन्दा हो या मुर्दा दोनों सूरतो में अवाम में सब से मुक़द्दम होता है मामून ने भी हुक्म दिया सिमते क़िबला , हारून के सामने , क़ब्र तैयार की जाये और मैंने भी क़ब्र की सूरते हाल के सिलसिले में इमाम की वसीअत से मामून को बाख़बर किया , उस ने भी वैसा ही करने का हुक्म दिया जब क़ब्र से पानी और मछली का वाक़ेआ मामून ने देखा तो बोलाः हज़रत रज़ा (अ.) अपनी ज़िन्दगी में ही मौजिज़ा और करामतें दिखाया करते थे और उन्हें वफ़ात के बाद भी मेरे लिये उन की करामतें ज़ाहिर हो रही हैं। (जब बड़ी मछली ने छोटी मछलीयों को निगल लिया तो मामून से एक वज़ीर ने जो वहां मौजूद था कहाः क्या आप को मामूल है कि हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम आप को किस बात से आगाह कराना चाहते हैं ? मामून ने कहा नहीं।

उस ने कहा हज़रत ने आप को यह ख़बर दी है कि आप बनी अब्बास की हुकूमत इन छोटी मछलीयों की तरह इस क़दर तवील मुद्दत होने कै बावजूद किसी के ज़रिये मुकम्मल तौर पर ख़त्म कर दी जायेगी , किसी दूसरे के ज़रिये जो आप से ज़्यादा ताक़त वर होगा इस हुकूमत का क़िला क़िमा हो जायेगा ख़ुदा वन्दे आलम , हमारे ही ख़ानदान से एक आदमी को तुम पर मुसल्लत करेगा और तुम सब का एक साथ ख़ातमा हो जायेगा , मामून ने कहाः तुम सही कह रहे हो।

अबा सलत का कहना हैः इमामे रज़ा (अ.) के दफ़्न हो जाने के बाद मामून ने मुझ से कहाः जो दुआऐं तुम ने पढ़ीं वह मुझे भी याद कराओ , मैंने कहाः ख़ुदा की क़सम वह दुआऐं भूल गया , मगर मामून को मेरी बात पर भरोसा नहीं हुआ जब कि मैं सच बोल रहा था , उस ने मुझे कैदी बना कर बन्द कर देने का हुक्म दिया , मैं एक साल तक जैल में रहा , क़ैद ख़ाने में मेरा दिल घबराता था , एक रात जागता रहा और ख़ुदा की मुनाजात और दुआओं में गुज़ारी और मुहम्मद व आले मुहम्मद को याद किया और ख़ुदा वन्दे आलम से दरख़्वास की कि मेरे लिये कोई रास्ता निकल कर सामने आये और निजात हालिस हो अभी मेरी हुआ ख़त्म भी नहीं हुई थी कि देखा हज़रत मुहम्मद बिन अली इमामे जवाद (अ.) क़ैद ख़ाने में दाखिल हुऐ और फ़रमायाः ऐ अबा सलत , परैशान हो गऐ ? मैंने अर्ज़ किया हां ख़ुदा की क़सम!

फ़रमायाः उठो और मेरे साथ बाहर आओ , फिर उन्हों ने मेरी कमर और हाथ पावं में पड़ी बैड़ीयों और ज़ंजीरों को हाथ से मस किया और वह ख़ुल कर ज़मीन पर आ पड़ीं , उन्हों ने मेरा हाथ पकड़ा और क़ैद ख़ाने से निकाल कर बाहर लाये जबकि सिपाही मुझे वहां से निकाल कर जाते हुऐ देख रहे थे , लेकिन इमामत के ऐजाज़ से वह कुछ बोलने पर क़ादिर नहीं थे , जब हम बाहर आये तो इमाम ने फ़रमायाः तुम ख़ुदा की पनाह में हो अब मामून तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता , अबा सलत का कहना हैः मैं चला गया और वोह ही हुआ जैसा कि इमामे अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया था।

(अमाली सुदूक़े मजलिस 94 , हाशिया 17 , उयूने अख़बारे रज़ा 2/271 हाशिया 1 , अल बिहार 49/300 , हाशिया 10 , आलामुल वरा 340 , अल मुनाक़िब 4)

मसऊदी ने भी अब्दुल रेहमान बिन याहया की ज़बानी हज़रत की शहादत का वाक़ेआ नीज़ इमामे जवाद (अ.) के ज़रिये हज़रत को ग़ुस्लो कफ़न देने और नमाज़ पढ़ने का ज़िक्र किया है।

(इसबाते वसीयत 304 , हाशिया 2)

नीज़ याक़ूबी का भी लिखना है कि मामून तीन दिन तक इमाम (अ.) की क़ब्र के पास मौजूद था , रोज़ाना उस के लिये रोटी और नमक लाया जाता और बस उस का खाना यही था , फिर वह चार दिन बाद वहां से रवाना हुआ।

(तारीख़े याक़ूबी 2/471)

ज़हर आलूद अनार का वाक़ेआ

शैख़ मुफ़ीद और दूसरों ने लिखा है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम मामून को अकेले में बहुत ज़्यादा नसीहतें फ़रमाते थे और ख़ुदा से डराया करते थे और अगर इमाम के बरख़िलाफ़ कोई काम करता तो उसको बहुत ज़्यादा बुरा भला कहा करते , मामून भी ज़ाहिरी तौर पर उन की बातों को मानता था यहां तक कि उस को बुरा मानता और पसन्द नहीं करता था।

इक दिन इमामे रज़ा (अ.) मामून के पास तशरीफ़ लाये देखा मामून वुज़ू करने में मसरूफ़ है , इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ऐ मामून के सरबराह ख़ुदा की परसतिश में जूसरों को शरीक क़रार न दो , यह सुन कर मामून ने ग़ुलाम को हटा दिया। ख़ुद पानी डाला और वुज़ू किया। लेकिन हज़रत के सिलसिले में उस के दिल में नफ़रत और कीने ने जड़ पकड़ना शुरु कर दिया दूसरी तरफ़ मामून जब भी फ़ज़ल बिन सहल और उसके भाई हसन की बातें इमाम (अ.) से करता तो हज़रत उन की बुराईयों को उजागर करते थे और हमेशा ही मामून के गौश गुज़ार करते थे कि इन दोनों की बातों को बग़ैर किसी तेहक़ीक़ के मान न लिया करो।

फ़ज़ल और हसन क इस बात की ख़बर हो गई उस के बाद उन दोनों ने इमाम (अ.) के ख़िलाफ़ मामून को वरग़लाना शुरु कर दिया , वह मुख़तलिफ़ बहानों से इमाम अलैहिस्सलाम के कान और उन की बातों पर नुकता चीनी और तंक़ीद किया करते और इस तरह की बातें करते और इस तरह की बातें करते जिस से मामून और इमामे रज़ा (अ.) के दर्मियान दुरीयां बढ़ती जायें , यह दोनों हर वक़्त , अवाम के दर्मियान इमाम अलैहिस्सलाम की बढ़ी मक़बूलियत से मामून को ख़ाएफ़ किया करते थे , नतीजा यह हुआ कि इमाम के सिलसिले में मामून के नज़रिये में तबदीली आ गई और उस ने भी इमाम अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने का मंसूबा बना लिया। चुंनाचे एक दिन हज़रत ने मामून के साथ खाना नौश किया और बीमार हो गऐ यह देख कर मामून ने भी बीमार होने का बहाना बनाया।

इस के बाद अब्दुल्लाह बिन बशीर रिवायत करते है कि उन्हों ने कहाः मामून ने मुझे हुक्म दिया कि अपने नाख़ूनों को बढ़ाओ और अपने इस काम को मामुली काम ज़ाहिर करो , मैंने भी ऐसा ही किया फिर उसने इमली की तरह की कोई चीज़ दी और कहा इस को अपने दोनों हाथों में अच्छी तरह रगड़ लो , मैंने भी हुक्म के मुताबिक़ अमल किया। फिर उसने मुझे अलेका छोड़ दिया और इमाम (अ.) के पास जाकर बोलाः अब आप की तबीअत केसी है ? हज़रत ने फ़रमायाः उम्मीद है कि जल्द ही सेहत याब हो जाऊंगा , मामून ने कहा मैं भी आज अलहमदो लिल्लाह सेहतयाब हूं , क्या आप के ग़ुलामों और नौकरों में से कोई आज आप के पास आया है ? हज़रत ने फ़रमायाः नहीं , मामून यह सुन कर अपने आदमीयों पर ग़ुस्सा कर के चिल्लाने लगा कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में कमी और कोताही क्यों की जा रही है। फिर बोलाः अभी आप थोड़ा अनार का रस नौश फ़रमालें क्यों कि बीमारी से वुजूद में आने वाली कमज़ोरी दूर करने के लिये उसका ख़ाना ज़रूरी है , उसके बाद अब्दुल्लाह बिन बशीर को तलब किया और कहाः हमारे लिये अनार लेकर आओ , उसका कहना है कि मैंने भी हुक्म की तामीर की और अनार लेकर आया , मामून ने कहाः अनार को अपने हाथों से निचोड़ कर उसका रस निकालो। मैंने भी उसी हाथ से जो मामून ने ज़हर आलूद किया था अनार को निचोड़ कर उसका रस निकाला और मामून ने वह रस इमाम अलैहिस्सलाम को ज़बर दसती पिला दिया जिस की वजह से इमाम अलैहिस्सलाम की बीमारी में इज़ाफ़ा हो गया , और सरअंजाम शहादत वाक़े हुई। याक़ूबी ने भी अपनी तारीख़ की दूसरी जिल्द के सफ़्हा नम्बर 471 में इसी बात की तरफ़ इशारा किया है और लिखा है कि हज़रत की बीमारी तीन दिन से ज़्यादा न थी और इस वाक़ेए के बाद दो दिन से ज़्यादा नहीं रहे और इस दारे फ़ानी को विदा किया। और अबा सलत के हवाले से भी नक़्ल किया गया है कि उन्हों ने कहाः जिस वक़्त मामून हज़रत इमामे रज़ा (अ.) के पास से उठ कर गया मैं कमरे में दाखिल हुआ , हज़रत ने मुझ से फ़रमायाः ऐ अबा सलत इन लोगों ने अपना काम कर दिया , ( मुझे ज़हर दे दिया) इस हालत में आप ख़ुदा की हम्द व सना और शुक्र में मशग़ूल थे। शैख़ सुदूक़ ने भी रिवायत नक़्ल की है और कहा है कि उस वक़्त इमाम (अ.) को बुख़ार था और मामून हज़रत की मिज़ाज पुर्सी को आया और अनार भी हज़रत के घर में रखा था , और मुहम्मद बिन जहम से भी रिवायत की गई है कि उन्हों ने कहाः हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को अंगूर बहुत पसन्द था , हज़रत के लिये अंगूर का बन्द व बस्त किया गया जब आप को ज़हर दिया गया तो कुछ अंगूर को सुई के ज़रीये ज़हर आलूद किया गया और हज़रत को खाने के लिये दिया गया। हज़रत ने उस बुख़ार और बीमारी की हालत में वह ज़हर आलूद अंगूर नौश फ़रमाया और उसी से उन की शहादत वाक़े हुई।

बताया जाता है कि इस तरह से ज़हर का दिया जाना बहुत ही होशियारी पर मबरी माहिराना काम है।

(अल अर्शाद 2,260 , से 262 , तक अल बिहार 49,308 , हाशिया 18 मक़ातेलुत्तालेबीन 456 , कशफ़ुल ग़िमा 2,281 , करोज़ातुल वाऐज़ीन 1,232 , आलामुल वरा 339 , अल मुनाक़िब 4,374 , उयूने अख़बारे रज़ा 2,267 , हाशिया 1 , इसबाते वसीयत 401 , (इबारत में फ़र्क़ के साथ है)

लिखा गया है कि इमामे रज़ा (अ.) की ज़बाने मुबारक से आख़री जुमला जो अदा हुआ वह यह आयत थीः क़ुल लौ कुनतुम फ़ी बुयुतेकुम लबाराज़ल्लज़ीना कोतेबा अलैहेमुल क़त्लो ऐला मज़ाजेऐहिम.........

कह दो कि तुम अगर घरो में भी होते अगर उन के नसीब में क़त्ल किया जाना लिखा था तो वह अपने बिसतर में भी इस लिखी तक़दीर से दो चार कर दिये जाते (और उन का क़त्ल कर दिया जाता) (आले इमरान आयत 154)

नौटः इन तमाम रिवायात से यह नतीजा अख़्ज़ होता है कि मामून ने मुसलसल कई मरतबा इमाम को ज़हर दिया , एक मरतबा हज़रत के खाने में ज़हर मिलाया , दूसरी मरतबा अनार को ज़हर आलूद किया और उसके ज़रिये हज़रत को ज़हर दिया फिर तीसरी मरतबा अंगूर में ज़हर डाल कर हज़रत को खिलाया। अला लानतुल्लाहे अलल क़ौमिज़्ज़ालेमीन।

इसी बुनियाद पर अबुल फ़रज इसफ़ेहानी वग़ैरा के हवाले से अबा सलत हरवी के ज़रिये कहा गया है कि उन्हों ने कहाः इमाम अलैहिस्सलाम जब हालते ऐहतेज़ार में थे उस वक़्त मामून हज़रत के सरहाने आया और फूट फूट कर रोने लगा और बोलाः मेरे भाई , मेरे लिये बहुत मुशकिल है कि मैं ज़िन्दा रहूं , मुझे आप के बाहयात होने की तमन्ना थी आप की मौत से ज़्यादा मेरे लिये तकलीफ़ देने वाली यह बात है कि लोग यह कह रहे हैं कि मैंने आप को ज़हर दिया है।(मक़ातेलुत्तालेबीन 460 , अल बिहार 49,309 हाशिया 19)

मज़कूरा दावे का दूसरा गवाह यह है कि जब मामून ने इमामे रज़ा (अ.) को शहीद कर दिया तो इमाम अलैहिस्सलाम की वफ़ात की ख़बर को चौबीस घंटे छुपाये रखा फिर आले मुहम्मद के घराने वालों को जो कि ख़ुरासान में मौजूद थे तलब किया और जब वह लोग आये तो उन्हें ताज़ीयत पैश की और ज़ाहिरी तौर पर उन के सामने इज़हारे रंज व ग़म करता रहा।

वराहुम इय्याहो सहीहल जसादे इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम के जिस्मे मुबारक को उन्हें दिखाया कि बिलकुल सही व सालिम है।

(अल इर्शाद 2,262 , अल बिहार 49,309 , आलामुल वरा 344 , कशफ़ुल ग़िमा 2,282 , व 333 , रोज़ातुल वाऐज़ीन 1,233 , मक़ातेलुत्तालेबीन 458)

जैसा कि ज़िक्र किया गया है , कि हारून रशीद लानतुल्लाह अलैह ने हज़रत इमामे मूसा काज़िम (अ.) को भी इसी तरह शहीद किया था और वह अपने घिनोने काम को एक फ़ितरी और मामूली मौत ज़ाहिर कर रहा था।

मरहूम रवानदी और अल्लामा मजलिसी ने बसाएरुद दरजात में हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने मुसाफ़िर से फ़रमायाः अमा इन्नी राऐतो रसूल अल्लाहे (स.) अल बारेहतो व होवा यक़ूलोः या अलीयो मा इनदना ख़ैरुन लका ।

ऐ मुसाफ़िर , जान लो कि कल रात मैंने अपने नाना रसूले ख़ुदा (स.) को ख़्वाब में देखा कि वोह फ़रमा रहे थे , ऐ अली जो कुछ हमारे पास है वह तुम्हारे लिये बेहतर है , और कुछ दिनों बाद रेहलत फ़रमा गये।

(अल ख़िराज वल जराएह 295 , हाशिया 24 अल बिहार 49,306 , हाशिया 15 , बसाऐरुद दरजात सफ़्हा 483 , जलाऐलुल उयून 498)

इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया बदतरीन ख़ल्क़े ख़ुदा मुझे ज़हर देकर मारेगा

शैख़ सुदूक़ ने अपनी सनद में अबा सलत हरवी के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने कहाः समेतुर्रज़ा अलैहिस्सलाम यक़ूलोः वल्लाहे मा मिन्ना इल्ला मक़तूलुन शहीदुन , फ़क़ीला लहुः फ़मन यक़तोलोका यबना रसूल अल्लाह ? क़ालाः शर्रो ख़लक़िल्लाहे फ़ी ज़मानी , यक़तोलोनी बिस्सिम्मे , यदफ़ोनोनी फ़ी जारिन मुज़ीअतिन व बिलादिन ग़ुरबतिन) हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम को फ़रमाते हुआ सुना कि ख़ुदा की क़सम हम ऐहले बैत में से कोई भी नहीं है जो मक़तूल और शहीद न हो , अर्ज़ा किया गया , ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) आप को कौन मारेगा ? फ़रमायाः मेरे ज़माने में ख़ुदा की बद तरीन मख़लूक़ , मुझे ज़हर देकर मारेगी , फिर मुझे हलाकत के मक़ाम पर (हारून रशीद के मक़बरे में) दयारे ग़ैर में दफ़्न कर देगा। फिर फ़रमायाः जान लो ! जो कोई दयारे ग़ैर में मेरी ज़ियारत करेगा ख़ुदा वन्दे आलम उसके नामा-ए-आमाल में एक लाख शहीद , एक लाख सिद्दीक़ , एक लाख हाजी , और उम्रा करने वाला , और एक लाख मुजाहिद का अज्र व सवाब , मंज़ूर फ़रमायेगा और वह हमारे गिरोह और लोगों में मेहशूर किया जायेगा और जन्नत में भी आला मक़ाम हासिल करेगा जहां हमारे ऐहबाब होंगे।

(अमाली शैख़ सुदूक़े मजलिस 15 , हाशिया 8 , उयूने अख़बारे रज़ा 2,287 , हाशिया 9 , अल बिहार 49,283 , हाशिया 2 व जिल्द 102,32 हाशिया 2 , रोज़ातुल वाऐज़ीन 1,233 , इसबाते हिदायत 3,254 , हाशिया 26)

बहुत सी रिवायतों से यह नतीजा निकलता है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का क़ातिल मामून लानतुल्लाह अलैह था और अल्लामा मजलिसी मरहूम अरबिली के कलाम के नक़्ल के ज़िम्न में लिखते हैः फ़ल हक़्क़ो मा इख़तारहुस सुदूक़ो वल मुफ़ीदो व ग़ैरोहुमा मिन अजिल्लते असहाबेना अन्नहु अलैहिस्सलाम मज़ा शहीदन बेसिम्मिल मामूनिल लईने अलैहिल्लानतो........

हक़ वही है जो दो शिया बुज़ुर्गवारों यानी सुदूक़ और मुफ़ीद और उन के अलावा दूसरों ने माना है कि इमामे रज़ा (अ.) मलऊन मामून के ज़रिये दिये गये ज़हर से शहीद हुऐ , ख़ुदा वन्दे आलम मामून और दीगर ग़ासिबों और सितमगरों पर हमेशा लानत करे। आमीन या रब्बील आलामीन। (अल बिहार 49,313)

यहां मुनासिब मालूम होता है के इमामे रज़ा (अ.) के उन दो अशआर का ज़िक्र किया जाये जो उन्हों ने देबिले ख़ज़ाई के अशआर के जवाब में बयान फ़रमाये थे। उस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि शैख़ सुदूक़ और दूसरों के नक़्ल करने के मुताबिक़ देबिल बिन ख़ज़ाई ने काफ़ी तवील क़सीदा लिखा और इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हुऐ उन की मौजूदगी में उस को पढ़ा , उस क़सीदे का आग़ाज़ इस तरह होता है.

मदारेसो आयातिन ख़ालत अन तिलावतिन

व मंज़ेलो वहीइन मुक़फ़ेरुल अरासातिन

(आयतों के वह मदरसे जो तिलावत और क़राअत से ख़ाली हों और वही की मंज़िलें और जगहें जो ख़ुश्क ज़मीन में तबदील हो गई हों)

देबिल ने अपना क़सीदा पढ़ा और इस शैर पर पहुंचे।

अरा फ़ैअहुम फ़ी ग़ैरेहिम मुताक़स्सेमन

व ऐदीहिम मिन फ़ैएहिम सफ़ेरातुन

(देख रहा हूं कि उन की दौलत दूसरों को बांट दी गई और वही लोग अपनी दौलत से मेहरूम कर दिये गये)

इस मौक़े पर इमाम (अ.) ने गिरया फ़रमाया और इर्शाद फ़रमायाः सद्दक़ता या ख़ुज़ाई , ऐ ख़ुज़ाई तुम ने सच कहा फिर देबिल अपना क़सीदा पढ़ते हुऐ इस शैर पर पहुंचेः

व क़बरुन बेबग़दादे लेनफ़सिन ज़कीयतिन

ताज़म्मनाहा रेहमानो फ़ी ग़ुरोफ़ातिन

(और बग़दाद (मूसा बिन जाफ़र अलैहिस्सलाम) की पाकीज़ा हसती की क़ब्र है जिसको ख़ुदा वन्दे आलम ने जनती कमरों के गिर्द क़रार दिया है)

ख़ुद के लिये इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का मरसियाः

क्या यहां मैं दो अशआर का इज़ाफ़ा कर के तुम्हारा क़सीदा कामिल कर दूं ? अर्ज़ कियाः जी हां ज़रूर ज़रूर इज़ाफ़ा करें ऐ फ़रज़न्दे रसूल ख़ुदा (स.)

इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः

वक़बरिन बेतूसिन या इलाहा मिन मुसीबतिन

तवक़्क़दा बिल अहशाऐ फ़ी हराक़ातिन

ऐलल हशरे हत्ता यबअसल्लाहो क़ाऐमन

योफ़र्रेजो अन्नल हम्मा वल कुरोबातिन

और तूस में भी एक क़ब्र है जिस के मालिक को क्या क्या मुसीबतें और परेशानियां नहीं झैलनी पड़ी हैं वह मुसीबत ऐसी है जो इंसान को अन्दर जला देती है।

उन मुसीबतों के आसार व नताइज उस वक़्त तक बाक़ी रहेंगे जब तक कि ख़ुदा वन्दे आलम क़ायमे आले मुहम्मद का ज़हूर न कर दे , और वह ही आकर हमारे रंज व ग़म को दूर करेंगे।

देबिल ने अर्ज़ कियाः यब्ना रसूल अल्लाहे हाज़ल क़बरिल्लज़ी बेतूसिन क़बरो मन होवा ? क़ालर्रज़ा अलैहिस्सलामः क़बरीः

(ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) , वह क़ब्र जो तूस में होगी वह किस की होगी ? फ़रमायाः मेरी क़ब्र होगी , और ज़्यादा अर्सा नहीं गुज़रेगा कि वहां शियों और ज़ियारत करने वालों का मजमा लग जाऐगा लिहाज़ा जान लो कि जो कोई दयारे ग़ैर तूस में मेरी ज़ियारत करेगा वह क़यामत के दिन मेरे साथ मेरे हम रुतबा होगा। और वह बख़शा जायेगा।

(कमालुद्दीन 1,374 , उयूने अख़बारे रज़ा 2,294 , हाशिया 34 , आलामुल वरा 330 , कशफ़ुल ग़िमा 2,323,327 , अल मुनाक़िब 4,338 , अल बिहार 49,239 हाशिया 9 , शैख़ मुफ़ीद ने भी इख़तेसार के साथ देबिल के वाक़ेऐ का ज़िक्र किया है। अल इर्शाद 2,255 , इसबाते हिदायत 3,284 हाशिया 102)

याद दहानीः दीगर किताबों मिनजुमला मुनाक़िब में पहली बैत का दूसरा मिसरा इस तरह आया हैः अलहत अल्ल अहशाऐ बिज़्ज़फ़ाराते ऐसी मुसीबतें जो नुफ़ूस और दिलों को मजरूह कर दे)

मेहदी मोऊद अज्जल्लाहो ताला फ़राजाहुश्शरीफ़ का नाम सुनकर इमामे रज़ा (अ.) का शदीद गिरया।

अबा सलत का कहना हैः देबिल ने अपने शेर जारी रखते हुऐ कहाः

ख़ुरूजे इमामिन ला महालता ख़ारेजुन

यक़ूमो अलस मिल्लाहे वल बराकाते

योमय्येज़ो फ़ीना कुल्ला हक़्क़ा व बातिले

व यजज़ी अलन नोमाऐ वन्नक़ेमाते

(सर अंजाम ऐसा इमाम ज़हूर करेगा जो ख़ुदा का नाम और इलाही बरकतों के हमराह इंक़ेलाब लाऐगा)

वह हमारे दर्मियान हर हक़ व बातिल को अलग करेगा और अच्छाई और बुराई के बदले मआवेज़ा देगा।

जब इमाम अलैहिस्सलाम ने देबिल से यह दो बैत सुने रावी कहता हैः फ़ाबकर्रज़ा अलैहिस्सलाम बुकाअन शदीदन (इमाम अलैहिस्सलाम शिद्दत के साथ गिरया करने लगे)

देबिल का कहना हैः फिर इमाम अलैहिस्सलाम ने अपना सर उठाया और मुझ से फ़रमायाः ऐ ख़िज़ाई यह दो बैत रूहुल क़ुदुस ने तुम्हारी ज़बान पर जारी किये हैं।

क्या तुम जानते हो यह इमाम (क़ायम) कौन है ? और कब इंक़ेलाब लायेंगे मैंने अर्ज़ किया नहीं मेरे मौला मैंने बस इतना सुना है कि आप लोगों के दर्मियान से एक इमाम का ज़हूर होगा जो ज़मीन को बद उनवानी से पाक और अद्ल व इंसाफ़ से भर देंगे। इमाम (अ.) ने फ़रमायाः ऐ देबिल मेरे बाद इमामत की ज़िम्मेदारी मेरे बैटे मुहम्मद पर होगी और मुहम्मद के बाद उन के बैटे अली इमाम होंगे और अली के बाद उन के फ़रज़न्द हसन और हसन के बाद उन के साहिब ज़ादे इमाम और हुज्जत क़ायमे मुंतज़िर होंगे , जिन की ग़ैबत के दौरान लोग उन का इंतेज़ार करेंगे और ज़हूर के मौक़े पर उन के पैरो कार होंगे और यहां तक कि अगर दुनिया की उम्र एक दिन भी बाक़ी रह जाऐगी तो ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना तूलानी बना देगा कि वह ज़हूर करें और दुनिया को उसी तरह अद्ल व इंसाफ़ से भर देंगे जैसी कि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी मगर यह कब ज़हूर करेंगे इस सिलसिले में मेरे वालिद ने अपने वालिद उन्होंने अपने आबा व अज्दाद अली अलैहिस्सलाम के हवाले से पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ज़बानी सुना कि उन्हों ने फ़रमायाः आप के नवासों में हज़रत क़ायम का ज़हूर कब होगा तो आप ने फ़रमायाः उन की मिसाल क़यामत की मिसाल जैसी है चूंकी सिवा-ए-ख़ुदा के उस का वक़्त कोई नहीं जानता है। अचानक ही तुम तक आयेगी।

(कमालुद्दीन 1,372 , हाशिया 6 , उयूने अख़बारे रज़ा 2,296 , हाशिया 35 , कशफ़ुल ग़िमा 2,328 , आलामुल वरा 331 , अल मुनाक़िब 4,339 , अल बिहार 49,337 , हाशिया 6 , अल फ़ुसूलुल महिम्मा 233)

इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि तिबरी ने अपनी तारीख़ में इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के बारे में ग़ैरे हक़ीक़त पसन्द दाना और नामक़ूल बातें पैश की हैं वह लिखता हैः

सुम्मा इन्ना अली इब्ने मूसा अकाला ऐनाबन फ़कसरा मिनहो फ़माता फ़ोजाअतुन

(फिर अली बिन मूला रज़ा ने हद से ज़ियादा अंगूर खा लिया जिस की वजह से उन की अचानक मौत वाक़े हो गई)

(तारीख़े तिबरी जिल्द 7,150)

अलबत्ता वाज़ेह है कि इस तरह की तारीख़ का लिखना और क़ज़ावत करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है क्योंकि दीगर उमूर मिन जुमला ग़िज़ा और ख़ुराक में ज़्यादा पसन्दी ख़ुदा के औलिया का शैवा नहीं रहा है।

रात मे तदफ़ीन

शैख़ सुदूक़ ख़ादिम यासिर के हवाले अपनी सनद में तहरीर करते हैं कि तूस में हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ गई उन्हों ने अपनी ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में ज़ोहर की नमाज़ अदा करने के बाद मुझ से फ़रमायाः

ऐ यासिर क्या मेरे हमराह लोगों ने खाना खा लिया मैंने अर्ज़ कियाः ऐ मेरे मौला जब आप की यह हालत है तो कौन खाना खा सकता है ?

यासिर का कहना है कि यह सुन कर इमाम अलैहिस्सलाम उठ कर बैठ गऐ और फ़रमायाः दसतरख़्वान पिछाई और सब को दसतरख़्वान पर बुलाओ इस के बाद सब अफ़राद की अलग अलग ख़ेरियत दरयाफ़्त की , उन्हें दिलासा दिया और फ़रमायाः ख़्वातीनों के लिये भी खाना ले जाओ , जब सब ने खाना खा लिया इमाम (अ.) को नकाहत ने घेर लिया और बेहोश हो गऐ और उसके बाद गिरया व ज़ारी की आवाज़ें बुन्द हो गईं और मामून की औरतें और कनीज़ें रोती हुई सर पीटती हुईं नंगे पावं घर से निकलीं और तूस में आहो बुका की आवाज़ें सुनाई देने लगीं मामून भी रोता हुआ सर पीटता नंगे पावं अपनी दाढ़ी पर हाथ रख के निकला और इमाम (अ.) के सरहाने आकर खड़ा हो गया , और जब इमाम अलैहिस्सलाम की हालत में सुधार आया तो अर्ज़ कियाः मेरे मौला व आक़ा ख़ुदा की क़सम मुझे नहीं मालूम कि वह मुसीबतों में से कौन सी मुसीबत मेरे लिये बड़ी है आप की जुदाई या लोगों का यह इलज़ाम मैंने आप को ज़हर देकर मारा है।

इमाम अलैहिस्सलाम ने उस की तरफ़ देखा ऐ मोमिनों के सरदार , ( मेरे बैटे) अबु जाफ़र के साथ अच्छा बरताओ तुम्हारी और उन की उम्र की दो उंगलियों की तरह है। (यानी तुम दोनों की मौत एक साथ और क़रीब ही है)

ख़ादिम यासिर का कहना हैः इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम उसी रात रहलत फ़रमा गऐ जब सुब्ह हुई तो लोग जमा हुऐ और कहने लगे कि मामून ने इमाम (अ.) को धोके और फ़रैब के ज़रिये मारा है यह भी कह रहे थेः

क़ोतेला इब्ने रसूल अल्लाहे (फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) को माकर डाला) यही जुमला हर ज़बान पर था। मामून ने मुहम्मद बिन जाफ़र (इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम के चचा) से जो मामून से इमाम नामा हासिल कर के ख़ुरासान में ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे , कहाः लोगों के पास जायें और उन से कहें आज इमामे रज़ा (अ.) का जनाज़ा दफ़्न नहीं किया जायेगा क्यों कि मामून को यह ख़ौफ़ सता रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का जनाज़ा बाहर जाये और लोग शौर कर बैठें।

उन्हों ने भी लोगों तक पैग़ाम पहुंचा दिया और लोग चले गऐ फिर मामून ने हुक्म दिया कि इमाम अलैहिस्सलाम को रात के अंधेरे में दफ़्न किया जाये रात में ही हज़रत को ग़ुस्ल दिया गया और सुपुर्दे लहद कर दिया गया।

व ग़ुस्सेला अबुल हसने फ़िल्लैले व दोफ़ेना

(उयूने अख़बारे रज़ा 2 , 269 , हाशिया 1 , अल बिहार 49 , 299 हाशिया 9 , जलाएल उयून 498 , अनवारुल बहीयत 370)