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उलूमे क़ुरआन का परिचय

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क़ुरआने करीम ज्ञान पर आधारित एक आदर्श किताब है।परन्तु इसके भाव हर इंसान नही समझ सकता। जब कि क़ुरआन अपने आश्य को समझाने के लिए बार बार एलान कर रहा है कि बुद्धि से काम क्यों नही लेते ? चिंतन क्यों नही करते ? हम किस तरह समझें और किस तरह चिंतन करें क्यों कि क़ुरआन के आशय को समझना क़ुरआन के उलूम पर आधारित है। तो आइये पहले क़ुरान के उलूम से परिचित होते हैं।

उलूमे क़ुरआन की परिभाषा

वह सब उलूम जो क़ुरआन को समझने के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किये जाते हैं उनको उलूमे क़ुरआन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में उलूमे क़ुरआन उलूम का एक ऐसा समूह है जिसका ज्ञान हर मुफ़स्सिर और मुहक़्क़िक़ के लिए अनिवार्य है। वैसे तो उलूमे क़ुरआन स्वयं एक ज्ञान है जिसके लिए शिया व सुन्नी सम्प्रदायों में बहुत सी किताबें मौजूद हैं।

उलूमे क़रआन कोई एक इल्म नही है बल्कि कई उलूम का एक समूह है। और यह ऐसे उलूम हैं जिनका आपस में एक दूसरे के साथ कोई विशेष सम्बन्ध भी नही है। बल्कि प्रत्येक इल्म अलग अलग है।

उलूमे क़ुरआन कुछ ऐसे उप विषयों पर आधारित है जिनका जानना बहुत ज़रूरी है और इनमे से मुख्य उप विषय इस प्रकार हैं।

(1)उलूमे क़ुरआन का इतिहास (2) क़ुरआन के नाम और क़ुरआन की विषेशताऐं (3) क़ुरआन का अर्बी भाषा में होना (4) वही की वास्तविकता और वही के प्रकार (5)क़ुरआन का उतरना (6) क़ुरआन का एकत्रित होना (7) क़ुरआन की विभिन्न क़िराअत (8) क़ुरआन की तहरीफ़= फेर बदल (9) क़ुरआन का दअवा (10) क़ुरआन का मोअजज़ा (11) नासिख व मनसूख (12)मोहकम व मुतशाबेह।

इन में से कुछ उप विषय ज्ञानियो व चिंतकों की दृष्टि में आधार भूत हैं इसी लिए कुछ उप विषयों को आधार बना कर इन पर अलग से किताबे लिखी गई हैं। जैसे उस्ताद शहीद मुतह्हरी ने वही और नबूवत पर एक विस्तृत किताब लिखी है।
उलूमे क़ुरआन का इतिहास

मानवता के इतिहास में कोई ऐसी किताब नही मिलती जिसकी रक्षा और व्याख्या के लिए क़ुरआन के समान अत्याधिक प्रबन्ध किये गये होँ।

क़ुरआन और उलूमे क़ुरआन के परिचय के लिए इस्लाम के प्रथम चरण में ही असहाबे रसूल, (वह लोग जो रसूल के जीवन में मुस्लमान हुए तथा रसूल के साथ रहे) ताबेईन (वह लोग जो रसूल स.के स्वर्गवास के बाद मुस्लमान हुए या पैदा हुए और रसूल के असहाब के सम्मुख जीवन यापन किया) और ज्ञानियों ने बहुत काम किया।कुछ लोगों ने क़ुरआन को हिफ़्ज़ किया तो कुछ ने इसकी तफ़सीर की।क़ुरआन की विभिन्न दृष्टिकोणो से तफ़सीर की गयी। क़ुरआन विशेषज्ञों के अनुसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम वह प्रथम व्यक्ति है जिन्होने क़ुरआने करीम की तफ़सीर की और उलूमे क़ुरआनी की आधार शिला रखी।

सुन्नी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ज्ञानी व मुफ़स्सिर जलालुद्दीन सयूती लिखते हैं कि वह खलीफा जिन्होने उलूमे क़ुरआन के सम्बन्ध में सबसे अधिक जानकारी प्रदान की हज़रत अली अलैहिस्सलाम हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अलावा दूसरे असहाब ने भी उलूमे क़ुरआन पर काम किया है। जैसे अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास, अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद, उबाई इब्ने कअब इत्यादि परन्तु इन सब ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से ही यह ज्ञान प्राप्त किया।
उलूमे क़ुरआन का संकलन

उलूमे क़ुरआन को एकत्रित करने का कार्य दूसरी शताब्दी हिजरी मे ही आरम्भ हो गया था। सबसे पहले हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शिष्य अबुल असवद दौइली ने क़ुरआन पर ऐराब(मात्राऐं) लगाये। और फिर इनके एक शिष्य याहया बिन यअमर ने इल्मे तजवीद पर एक किताब लिखी।

हसन बसरी ने क़ुरआन के नज़ूल और क़ुरआन की आयात की संख्या के सम्बन्ध में एक किताब लिखी।

अब्दुल्लाह बिन आमिर ने क़ुरआन के मक़तूअ व मूसूल को ब्यान किया।

अता बिन इबी मुस्लिम खुरासानी ने नासिख और मनसूख पर एक किताब लिखी।

अबान बिन तग़लब ने उलूमे क़िराअत और मअनी आदि के सम्बन्ध में पहली किताब लिखी।

खलील बिन अहमद फ़राहीदी ने क़ुरआन में नुक्ते लगाये।

तीसरी शाताब्दी हिजरी में याहया बिन ज़यादफ़रा ने क़ुरआन के मअनी पर एक किताब लिखी।

चौथी शताब्दी हिजरी में अबु अली कूफ़ी ने फ़ज़ाईलुल क़ुरआन पर एक किताब लिखी।

सैय्यद शरीफ़ रज़ी ने तलखीसुल क़ुरआन फ़ी मजाज़ातुल क़ुरआन पर एक किताब लिखी।

पाँचवी शताब्दी हिजरी में उलूमे क़ुरान विषय का क्षेत्र विस्तृत हुआ और इस विषय पर बहुत सी किताबें लिखी गयीं। इस शताब्दी में इब्राहीम बिन सईद जूफ़ी ने उलूमे क़ुरआन पर अलबुरहान फ़ी उलूमिल क़ुरआन नामक किताब लिखी।

छटी और सातवी शताब्दी हिजरी में इब्ने जूज़ी और सखावी ने इस विषय पर काम किया।

आठवी शताब्दी हिजरी में बदरूद्दीन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह ज़र कशी ने अलबुरहान फ़ी उलूमिल क़ुरआन नामक एक महत्वपूर्ण किताब लिखी।

नवी शताब्दी हिजरी में जलालुद्दीन सयूती ने उलूमे क़ुरआन पर आश्चर्य जनक काम किया और एक ऐसी किताब लिखी जो उलूमे क़ुरआन की आधारिक किताब मानी जाती है। इसके बाद इस विषय पर कार्य की गति धीमी पड़ गई । वर्तमान समय में कुछ विद्वानों ने फिर से इस इल्म की तरफ़ ध्यान दिया और कुछ किताबें लिखी जो इस प्रकार हैं।

1- अलबयान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन- आयतुल्लाह अबुल क़ासिम खूई

2- अत्तमहीद फ़ी उलूमिल क़ुरआन- आयतुल्लाह मारफ़त

3- हक़ाइक़- सैय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमुली

4- पज़ोहिशी दर तारीखे क़ुरआने करीम- डा. सैय्यद मुहम्मद बाक़िर हुज्जती

5- मबाहिस फ़ी उलूमिल क़ुरआन- डा. मजी सालेह

 

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Sayed Suhail Zaidi:bohot khub
2017-03-11 22:47:10
Excellent work i really appreciate you and your work may Allah will blessed you forever.
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