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हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

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नाम व लक़ब (उपाधि)

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का नाम जाफ़र व आपका मुख्य लक़ब सादिक़ है।

 

माता पिता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत उम्मे फ़रवा पुत्री क़ासिम पुत्र मुहम्मद पुत्र अबुबकर हैं।

 

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 83 हिजरी के रबी उल अव्वल मास की 17 वी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।

 

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का शिक्षा अभियान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लामी समाज मे शिक्षा केप्रचार व प्रसार हेतू एक महान अभियान शुरू किया। शिक्षण कार्य के लिए उन्होने पवित्र स्थान मस्जिदे नबवी को चुना तथा वहा पर बैठकर शिक्षा का प्रसार व प्रचार आरम्भ किया। ज्ञान के प्यासे मनुष्य दूर व समीप से आकर उनकी कक्षा मे सम्मिलित होते तथा प्रश्नो उत्तर के रूप मे अपने ज्ञान मे वृद्धि करते थे।

आप के इस अभियान का मुख्य कारण बनी उमैय्या व बनी अब्बास के शासन काल मे इस्लामी समाज मे आये परिवर्तन थे। इनके शासन काल मे यूनानी ,फ़ारसी व हिन्दी भाषा की पुस्तकों का अरबी भाषा मे अनुवाद मे हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप मुसलमानों के आस्था सम्बन्धि विचारो मे विमुख्ता फैल गयी। तथा ग़ुल्लात ,ज़िन्दीक़ान ,जाएलाने हदीस ,अहले राए व मुतासव्वेफ़ा जैसे अनेक संमूह उत्पन्न हुए। इस स्थिति मे हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के लिए अवश्यक था कि इस्लामी समाज मे फैली इस विमुख्ता को दूर किया जाये। अतः हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने ज्ञान के आधार पर समस्त विचार धाराओं को निराधार सिद्ध किया। व समाज मे शिक्षा का प्रसार व प्रचार करके समाज को धार्मिक विघटन से बचा लिया। तथा समाज को आस्था सम्बन्धि विचारों धार्मिक निर्देशों व नवीनतम ज्ञान से व्यापक रूप से परिचित कराया। तथा अपने ज्ञान के आधार पर एक विशाल जन समूह को शिक्षित करके समाज के हवाले किया। ताकि वह समाज को शिक्षा के क्षेत्र मे और उन्नत बना सकें।

आपके मुख्य शिष्यों मे मालिक पुत्र अनस ,अबु हनीफ़ा ,मुहम्द पुत्र हसने शेबानी ,सुफ़याने सूरी ,इबने अयीनेह ,याहिया पुत्र सईद ,अय्यूब सजिस्तानी ,शेबा पुत्र हज्जाज ,अब्दुल मलिक जरीह अत्यादि थे।

जाहिज़ नामक विद्वान हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिक्षा प्रसार के सम्बन्ध मे लिखते है कि-

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने ज्ञान रूपी नदियां पृथ्वी पर बहाई व मानवता को ज्ञान रूपी ऐसा समुन्द्र प्रदान किया जो इससे पहले मानवता को प्राप्त न था। समस्त संसार ने अपके ज्ञान से अपनी प्यास बुझाई।

 

मुनाज़ेरा ए इमाम सादिक़ (अ)

इब्ने अबी लैला से मंक़ूल है कि मुफ़्ती ए वक़्त अबू हनीफ़ा और मैं बज़्मे इल्म व हिकमते सादिक़े आले मुहम्मद हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम में वारिद हुए।

इमाम (अ) ने अबू हनीफ़ा से सवाल किया कि तुम कौन हो ?

अबू हनीफ़ा मैं: अबू हनीफ़ा

इमाम (अ): वही मुफ़्ती ए अहले इराक़

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): लोगों को किस चीज़ से फ़तवा देते हो ?

अबू हनीफ़ा: क़ुरआन से

इमाम (अ): क्या पूरे क़ुरआन ,नासिख़ और मंसूख़ से लेकर मोहकम व मुतशाबेह तक का इल्म है तुम्हारे पास ?

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): क़ुरआने मजीद में सूर ए सबा की 18 वी आयत में कहा गया है कि उन में बग़ैर किसी ख़ौफ़ के रफ़्त व आमद करो।

इस आयत में ख़ुदा वंदे आलम की मुराद कौन सी चीज़ है ?

अबू हनीफ़ा: इस आयत में मक्का और मदीना मुराद है।

इमाम (अ): (इमाम (अ) ने यह जवाब सुन कर अहले मजलिस को मुख़ातब कर के कहा) क्या ऐसा हुआ है कि मक्के और मदीने के दरमियान में तुम ने सैर की हो और अपने जान और माल का कोई ख़ौफ़ न रहा हो ?

अहले मजलिस: बा ख़ुदा ऐसा तो नही है।

इमाम (अ): अफ़सोस ऐ अबू हनीफ़ा ,ख़ुदा हक़ के सिवा कुछ नही कहता ज़रा यह बताओ कि ख़ुदा वंदे आलम सूर ए आले इमरान की 97 वी आयत में किस जगह का ज़िक्र कर रहा है:

व मन दख़लहू काना आमेनन

अबू हनीफ़ा: ख़ुदा इस आयत में बैतल्लाहिल हराम का ज़िक्र कर रहा है।

इमाम (अ) ने अहले मजलिस की तरफ़ रुख़ कर के कहा क्या अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और सईद बिन जुबैर बैतुल्लाह में क़त्ल होने से बच गये ?

अहले मजलिस: आप सही फ़रमाते हैं।

इमाम (अ): अफ़सोस है तुझ पर ऐ अबू हनीफ़ा ,ख़ुदा वंदे आलम हक़ के सिवा कुछ नही कहता।

अबू हनीफ़ा: मैं क़ुरआन का नही क़यास का आलिम हूँ।

इमाम (अ): अपने क़यास के ज़रिये से यह बता कि अल्लाह के नज़दीक क़त्ल बड़ा गुनाह है या ज़ेना ?

अबू हनीफ़ा: क़त्ल

इमाम (अ): फ़िर क्यों ख़ुदा ने क़त्ल में दो गवाहों की शर्त रखी लेकिन ज़ेना में चार गवाहो की शर्त रखी।

इमाम (अ): अच्छा नमाज़ अफ़ज़ल है या रोज़ा ?

अबू हनीफ़ा: नमाज़

इमाम (अ): यानी तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ हायज़ा पर वह नमाज़ें जो उस ने अय्यामे हैज़ में नही पढ़ी हैं वाजिब हैं न कि रोज़ा ,जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने रोज़े की क़ज़ा उस पर वाजिब की है न कि नमाज़ की।

इमाम (अ): ऐ अबू हनीफ़ा पेशाब ज़्यादा नजिस है या मनी ?

अबू हनीफ़ा: पेशाब

इमाम (अ): तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ पेशाब पर ग़ुस्ल वाजिब है न कि मनी पर ,जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने मनी पर ग़ुस्ल को वाजिब किया है न कि पेशाब पर।

अबू हनीफ़ा: मैं साहिबे राय हूँ।

इमाम (अ): अच्छा तो यह बताओ कि तुम्हारी नज़र इस के बारे में क्या है ,आक़ा व ग़ुलाम दोनो एक ही दिन शादी करते हैं और उसी शब में अपनी अपनी बीवी से हम बिस्तर होते हैं ,उस के बाद दोनो सफ़र पर चले जाते हैं और अपनी बीवियों को घर पर छोड़ देते हैं एक मुद्दत के बाद दोनो के यहाँ एक एक बेटा पैदा होता है एक दिन दोनो सोती हैं ,घर की छत गिर जाती है और दोनो औरतें मर जाती हैं ,तुम्हारी राय के मुताबिक़ दोनो लड़कों में से कौन सा ग़ुलाम है ,कौन आक़ा ,कौन वारिस है ,कौन मूरिस ?

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ हुदूद के मसायल में बाहर हूँ।

इमाम (अ): उस इंसान पर कैसे हद जारी करोगे जो अंधा है और उस ने एक ऐसे इंसान की आंख फोड़ी है जिस की आंख सही थी और वह इंसान जिस के हाथ में नही हैं और वह इंसान जिस के हाथ नही है उस ने एक दूसरे इंसान का हाथ काट दिया है।

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ बेसते अंबिया के बारे में जानता हूँ।

इमाम (अ): अच्छा ज़रा देखें यह बताओ कि ख़ुदा ने मूसा और हारून को ख़िताब कर के कहा कि फ़िरऔन के पास जाओ शायद वह तुम्हारी बात क़बूल कर ले या डर जाये। (सूर ए ताहा आयत 44)

यह लअल्ला (शायद) तुम्हारी नज़र में शक के मअना में है ?

इमाम (अ): हाँ

इमाम (अ): ख़ुदा को शक था जो कहा शायद

अबू हनीफ़ा: मुझे नही मालूम

इमाम (अ): तुम्हारा गुमान है कि तुम किताबे ख़ुदा के ज़रिये फ़तवा देते हो जब कि तुम उस के अहल नही हो ,तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे क़यास हो जब कि सब से पहले इबलीस ने क़यास किया था और दीने इस्लाम क़यास की बुनियाद पर नही बना ,तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे राय हो जब कि दीने इस्लाम में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम के अलावा किसी की राय दुरुस्त नही है इस लिये कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:

फ़हकुम बैनहुम बिमा अन्ज़ल्लाह

तू समझता है कि हुदूद में माहिर है जिस पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है तुझ से ज़्यादा हुदुद में इल्म रखता होगा। तू समझता है कि बेसते अंबिया का आलिम है ख़ुदा ख़ातमे अंबिया अंबिया के बारे में ज़्यादा वाक़िफ़ थे और मेरे बारे में तूने ख़ुद ही कहा फ़रजंदे रसूल ने और कोई सवाल नही किया ,अब मैं तुझ से कुछ सवाल पूछूँगा अगर साहिबे क़यास है तो क़यास कर।

अबू हनीफ़ा: यहाँ के बाद अब कभी क़यास नही करूँगा।

इमाम (अ): रियासत की मुहब्बत कभी तुम को इस काम को तर्क नही करने देगी जिस तरह तुम से पहले वालों को हुब्बे रियासत ने नही छोड़ा।

(ऐहतेजाजे तबरसी जिल्द 2 पेज 270 से 272)

 

इमाम सादिक़ और मर्दे शामी

हश्शाम बिन सालिम कहते है कि एक दिन मै कुछ लोगो के साथ इमाम सादिक़ (अ.स) की खिदमत बैठा था कि एक शामी मर्द ने आपके हुज़ुर मे आने की इजाज़त माँगी और इमाम से इजाज़त लेने के बाद आपके सामने हाज़िर हुआ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बैठ जाओ और उस से पूछाः क्या चाहते हो ?

शाम के रहने वाले उस मर्द ने इमाम (अ.स) से कहाः सुना है कि आप लोगो के सवालो के जवाब देते है लेहाज़ा मैं भी आप से बहस और मुनाज़ेरा करना चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः किस मौज़ू (विषय) मे ?

शामी ने कहाः क़ुरआन पढ़ने के तरीक़े के बारे मे।

इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद जमरान की तरफ मुँह करके फरमायाः जमरान इस शख्स का जवाब दो।

शामी ने कहाः मै चाहता हुँ कि आप से बहस करूँ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः अगर जमरान को हरा दिया तो समझो मुझे हरा दिया।

शामी ने न चाहते हुऐ भी जनाबे जमरान से मुनाज़ेरा किया अब शामी जो भी सवाल पूछता गया और जनाबे जमरान ने दलीलो के साथ जवाब दिये और आखिर मे उसने हार मान ली।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः तूने जमरान के इल्म को कैसा पाया ?

शामी ने जवाब दियाः बहुत जबरदस्त ,जो कुछ भी मैने इससे पूछा इसने बहुत अच्छा जवाब दिया।

फिर शामी ने कहा कि मैं चाहता हुँ कि लुग़त (शब्दार्थ) और अरबी अदब (व्याकरण) के बारे मे बहस करुँ।

इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद अबान बिन तग़लब की तरफ मुँह करके फरमायाः अबान इसका जवाब दो।

जनाबे अबान ने भी जनाबे जमरान की तरह उस शख्स के हर सवाल का बेहतरीन जवाब दिया और उस मर्दे शामी को हरा दिया।

शामी ने कहाः मैं अहकामे इस्लामी के बारे मे आप से मुनाज़ेरा करन चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिद जनाबे ज़ुरारा से कहा कि इससे मुनाज़ेरा करो और ज़ुरारा ने भी शामी के दाँत खट्टे कर दिये और उसे मुनाज़ेरे मे मात दी।

शामी ने फिर इमाम (अ.स) से कहा कि मैं इल्मे कलाम (अक़ीदे) के बारे मे आपसे बहस करना चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने मोमीने ताक़ को हुक्म दिया कि उस शामी से मुनाज़ेरा करे।

कुछ ही देर गुज़री थी कि मोमीने ताक़ ने उसे शिकस्त दे दी।

इसी तरह उस शामी शख्स ने इमाम (अ.स) से अलग अलग विषयो पर मुनाज़ेरे की माँग की और इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिदो को उससे मुनाज़ेरे के लिऐ हुक्म दिया और वो मर्दे शामी इमाम (अ.स) के तमाम शार्गिदो से हारता चला गया।

और इस खूबसूरत लम्हे पर इमाम (अ.स) के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ती चली गई।

 

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम विद्वानो की दृष्टि मे

अबुहनीफ़ा की दृष्टि मे

सुन्नी समुदाय के प्रसिद्ध विद्वान अबु हनीफ़ा कहते हैं कि मैं ने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से बड़ा कोई विद्वान नही देखा। वह यह भी कहते हैं कि अगर मैं हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्लाम से दो साल तक ज्ञान प्राप्त न करता तो हलाक हो जाता। अर्थात उन के बिना कुछ भी न जान पाता।

इमाम मालिक की दृष्टि मे

सुन्नी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध विद्वान इमाम मालिक कहते हैं कि मैं जब भी हज़रत इमाम सादिक़ के पास जाता था उनको इन तीन स्थितियों मे से किसी एक मे देखता था। या वह नमाज़ पढ़ते होते थे ,या रोज़े से होते थे ,या फिर कुऑन पढ़ रहे होते थे। वह कभी भी वज़ू के बिना हदीस का वर्णन नही करते थे।

इब्ने हजरे हीतमी की दृष्टि मे

इब्ने हजरे हीतमी कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से ज्ञान के इतने स्रोत फूटे कि आम जनता भी उनके ज्ञान के गुण गान करने लगी। तथा उनके ज्ञान का प्रकाश सब जगह फैल गया। फ़िक्ह व हदीस के बड़े बड़े विद्वानों ने उनसे हदीसें नक्ल की हैं।

अबु बहर जाहिज़ की दृष्टि मे

अबु जाहिज़ कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ वह महान् व्यक्ति हैं जिनके ज्ञान ने समस्त संसार को प्रकाशित किया। कहा जाता है कि अबू हनीफ़ा व सुफ़याने सूरी उनके शिष्यों मे से थे। हज़रत इमाम सादिक़ का इन दो विद्वानो का गुरू होना यह सिद्ध करता है कि वह स्वंय एक महानतम विद्वान थे।

इब्ने ख़लकान की दृष्टि मे

प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने ख़लकान ने लिखा है कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम शियों के इमामिया सम्प्रदाय के बारह इमामो मे से एक हैं। व हज़रत पैगम्बर(स.) के वँश के एक महान व्यक्ति हैं। उनकी सत्यता के कारण उनको सादिक़ कहा जाता है। (सादिक़ अर्थात सत्यवादी) उनकी श्रेष्ठता व महानता किसी परिचय की मोहताज नही है। अबूमूसा जाबिर पुत्र हय्यान तरतूसी उनका ही शिष्य था।

शेख मुफ़ीद की दृष्टि मे

शेख मुफ़ीद कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने ज्ञान को इतना अधिक फैलाया कि वह जनता मे प्रसिद्ध हो गये। व उनके ज्ञान का प्रकाश सभी स्थानों पर पहुँचा।

 

हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के कथन

१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।

२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।

३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।

४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।

५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।

६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।

७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।

८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।

९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।

१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।

११. शराबियों से दोस्ती मत करो।

१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।

१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।

१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।

१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।

१६. हसद ,कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।

१७. सिल्हे रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।

१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।

१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।

२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।

२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।

२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।

२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1.लालच ,2.तकब्बुर (घमण्ड) ,3.हसद।

२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।

२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।

२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।

२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।

२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।

२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स 0)का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।

३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।

३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।

३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।

३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।

३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।

३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।

३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।

३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।

३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।

३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।

४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।

 

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 148 हिजरी क़मरी मे शव्वाल मास की 25 वी तिथि को हुई। अब्बासी शासक मँनसूर दवानक़ी के आदेशानुसार आपको विषपान कराया गया जो आपकी शहादत का कारण बना।

 

समाधि

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नःतुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। यह शहर वर्तमान समय मे सऊदी अरब मे है।

 

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