जन्म के समय से हज़रत इमाम अस्करी (अ. स.) की शहादत तक

हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) की ज़न्दगी का यह ज़माना बहुत से महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर आधारित है जिन में से कुछ की तरफ यहाँ पर इशारा किया जाता है

इमाम महदी (अ. स.) से शिओं का परिचय

चूँकि हज़रत इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) का जन्म बहुत ही गुप्त रूप से हुआ था, इस वजह से यह डर था कि शिया आखरी इमाम की पहचान में ग़लत फ़हमी या भटकाव का शिकार हो सकतें हैं। इस लिए हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की यह ज़िम्मेदारी थी कि वह बुज़ुर्ग और भरोसेमंद शिया लोगों को अपने बेटे के जन्म के बारे में बतायें और उनकी पहचान करायें ताकि वह इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ) के जन्म की खबर को अहलेबैत (अ. स.) के शियों तक पहुँचा दें। इस सूरत में इमाम की शिनाख्त और पहचान भी हो जायेगी और उनके सामने कोई खतरा भी नहीं आयेगा।

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के एक खास शिया, अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि :

मैं एक बार हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के पास गया। मैं उन से यह सवाल पूछना चाहता था कि आपके बाद इमाम कौन होगा ? लेकिन मेरे कहने से पहले ही इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ अहमद ! बेशक ख़ुदा वन्दे आलम ने जिस वक़्त से हज़रत आदम (अ. स.) को पैदा किया उस वक़्त से आज तक ज़मीन को कभी भी अपनी हुज्जत से खाली नहीं रखा और यह सिलसिला कयामत तक जारी रहेगा। अल्लाह अपनी हुज्जत के ज़रिये ज़मीन से बलाओं को दूर करता है और उसी के वजूद की बरकत से)रहमत की बारिश करता रहता है।

मैं ने अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल के बेटे आपके बाद आपका जानशीन व इमाम कौन है ?

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) फौरन अपने घर के अन्दर तशरीफ़ ले गए और एक तीन साल के बच्चे को अपनी गोद में ले कर वापस आये। उस बच्चे की सूरत चौदहवीं रात के चाँद की तरह चमक रही थी। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ अहमद बिन इस्हाक़ ! अगर तुम ख़ुदा वन्दे आलम और उसकी हुज्जतों के नज़दीक़ मोहतरम व आदरनीय न होते तो मैं अपको अपने इस बेटे को कभी न दिखाता। बेशक इस का नाम और कुन्नियत, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है और यह वही है जो ज़मीन को अदल व इन्साफ़ से भर देगा जिस तरह वह इस से पहले ज़ुल्म व सितम से भरी होगी।

मैं ने अर्ज़ किया : ऐ मेरे मौला व आक़ा क्या कोई ऐसी निशानी है जिस से मेरे दिल को सकून हो जाये ?

इस मौक़े पर उस बच्चे ने अपनी ज़बान को खोला और बेहतरीन अरबी में इस तरह बात की:

”اٴنَا بَقِیَّةُ اللهِ فِی اٴرْضِہِ وَ المُنتَقِمُ مِنْ اٴعْدَائِہِ۔۔۔“

मैं ज़मीन पर बक़ीयतुल्लाह हूँ और अल्लाह के दुश्मनों से बदला लेने वाला हूँ। ऐ अहमद इब्ने इस्हाक़ ! तुम ने अपनी आँखों से सब कुछ देख लिया है अतः अब किसी निशानी की ज़रुरत नहीं है।

अहमद इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि : मैं (यह बात सुनने के बाद) खुशी खुशी हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के मकान से बाहर आ गया...

इसी तरह मोहम्द इब्ने उस्मान और कुछ बुज़ुर्ग शिया नक्ल करते हैं कि :

हम चालीस लोग मिल कर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की खिदमत में गये। हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने बेटे की ज़ियारत कराई और फरमाया : मेरे बाद यही बच्चा, मेरा जानशीन और तुम्हारा इमाम होगा। तुम लोग इसकी इताअत (आज्ञा पालन) करना, और मेरे बाद अपने दीन में बिखर न जाना वर्ना हलाक़ हो जाओगे और (जान लो कि) आज के बाद तुम इन को नहीं देख पाओगे...।

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जन्म के बाद बच्चे का अक़ीका सुन्नत है और इसकी बहुत ताकीद भी की गई है। दीन के इस हुक्म के बारे में कहा गया है कि भेड़ बकरी ज़िब्ह कर के कुछ मोमेनीन को खाना खिलाये, इस की बरकत से बच्चे की उम्र लंबी होती है। अतः हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने इस बेटे ( हज़रत इमाम महदी (अ. स).) के लिए अक़ीक़ा किया.. ताकि नबी (स.) की इस इबेहतरीन सुन्नत पर अमल करते हुए बहुत से शियों को बारहवें इमाम के जन्म से अवगत करायें।
मुहम्मद इब्ने इब्राहीम कहते हैं कि :

हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अक़ीक़े में ज़िब्ह की गई भेड़ अपने एक शिया के पास भेजी और फरमाया : यह मेरे बेटे (मुहम्मद) के अक़ीक़े का गोश्त है....
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कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 38, पेज न. 80,
. मोहम्मद इब्ने उसमान इमाम मेहदी (अ0 स.) की ग़ैबते सोगरा के दूसरे नाएबे खास थे, ग़ैबत की बहस में उन की ज़िन्दगी के हालात बयान किये जायेंगे।
. कमालुद्दीन जिल्द न. 2, बाब 43, हदीस 2, पेज न. 162
. कमालुद्दीन जिल्द न. 2, बाब 42
कमालुद्दीन जिल्द न. 2, बाब 43, हदीस 2 पेज न. 158