इन्तेज़ार- सबसे बड़ी इबादत।

इमाम महदी अज. और उनके ज़ुहूर का विश्वास और अक़ीदा केवल शियों का अक़ीदा नहीं है बल्कि अहले सुन्नत भी इसे मानते हैं। अंतर यह है कि अधिकतर सुन्नी कहते हैं कि अभी उनका जन्म नहीं हुआ है बल्कि उनका जन्म आख़िरी ज़माने में होगा और सभी शिया और कुछ सुन्नी उल्मा इस बात को मानते हैं कि लगभग तेरह सौ साल पहले दुनिया में आ चुके हैं और ख़ुदा की इजाज़त का इन्तेज़ार कर रहे हैं। जिस दिन ख़ुदा की इजाज़त मिलेगी वह सामने आएंगे और ज़ुल्म व अत्याचार का सफ़ाया करेंगे। उनके आने से सारी दुनिया बदल जाएगी और सभी इन्सान चैन व सुकून की साँस लेंगे। केवल मुसलमान ही नहीं दूसरे धर्मों के मानने वाले भी यह बात कहते हैं कि एक दिन एक महान इन्सान आएगा जो अत्याचार और अन्याय का अन्त करेगा वह भी इसी तरह से उस आने वाले का इन्तेज़ार कर रहे हैं जिस तरह हम मुसलमान कर रहे हैं।
इन्तेज़ार क्या है?
इन्तेज़ार एक अजीब चीज़ है जो इन्सान को हमेशा उम्मीद दिलाती है। वह भी एक ऐसे इन्सान का इन्तेज़ार जिसके बारे में सब यह कहते हैं-
’’یَملَأُ اللہُ بِہِ الاَرضَ قِسطاً وَّ عَدلاً‘‘
उसके द्वारा अल्लाह दुनिया को इन्साफ़ और न्याय से भर देगा। वह इन्सानों की इस ज़मीन को इन्साफ़ से भर देंगे। ऐसी दुनिया का इन्तेज़ार सबको करना चाहिये। इस लिये सबको कोशिश करनी चाहिये कि करोड़ों लोगों के दिल में जलने वाला उम्मीद का यह दिया बुझने न पाए, इस लिये कि दुनिया के ज़ालिम और इन्सानियत के दुश्मन उम्मीदों के इस दिये को बुझाना चाहते हैं। यह इन्तेज़ार बहुत कुछ कर सकता है। उसके बहुत से फ़ायदे हैं। यही इन्तेज़ार इन्सानों को सिखाता है कि ज़ुल्म के साथ लड़े और नेकी और अच्छाई का रास्ता जारी रखे। अगर इन्तेज़ार न हो तो किसी को भविष्य पर विश्वास नहीं होगा और इन्सान बुराई से लड़ना छोड़ देगा। इन्तेज़ार इस लिये किया जाता है क्योंकि किसी के आने का विश्वास होता है, अगर किसी के आने का विश्वास न हो तो इन्तेज़ार नहीं हो सकता, अगर फिर भी कोई इन्तेज़ार कर रहा है तो वह सच्चा इन्तेज़ार नहीं होगा। विश्वास की वजह से इन्सान इन्तेज़ार करता है और इन्तेज़ार के कारण उम्मीद का दिया जलता रहता है, आज दुनिया की सभी क़ौमों को और सभी इन्सानों को इस उम्मीद की ज़रूरत है।
इन्तेज़ार का सही मतलब क्या है? इसे समझने के लिये उसके सभी पहलुओं को देखना होगा। इन्तेज़ार का एक मतलब मौजूदा हालात को काफ़ी न समझना और उससे बेहतर सिचुएशन के लिये कोशिश करना है। जैसे हम अच्छे काम करते हैं या समाज में बहुत से अच्छे काम होते हैं लेकिन यह काफ़ी नहीं हैं इस बात का इन्तेज़ार है और इसकी कोशिश करना है कि हर अच्छाई को अन्जाम दिया जाए। इन्तेज़ार का एक मतलब मोमिनीन का अच्छे भविष्य की आशा करना है यानी उन्हें अच्छे भविष्य की आशा है। मोमिनीन को इस बात की आशा और विश्वास है कि एक दिन अल्लाह का दीन और रसूलुल्लाह की शरियत पूरी दुनिया पर राज करेगी। इन्तेज़ार का एक पहलू यह है कि जो इन्तेज़ार कर रहा है वह पूरे चाव और उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा है।
इन्तेज़ार के ग़लत मानी
हमारी हदीसों में इन्तेज़ार के बारे में आया है कि इस उम्मत का सबसे अच्छा अमल इमामे महदी अज. के ज़ुहूर का इन्तेज़ार है, इसका क्या मतलब है? इस इन्तेज़ार में ऐसी क्या बात है?आख़िर इमामे ज़माना अज. के इन्तेज़ार में क्या ख़ास बात है कि उसे इतना ज़्यादा महत्व दिया गया है और उसे सबसे बड़ी इबादत कहा गया है? इन्तेज़ार के बारे में हमारे यहाँ एक ग़लत सोच भी थी जो अब लगभग ख़त्म हो चुकी है। कुछ लोगों का यह मानना था (और आज भी कुछ लोगों का यह ख़्याल है) कि कोई भी अच्छा काम न किया जाए, किसी भी बुरे काम से न रोका जाए, दुनिया में फ़ितना व फ़साद का विरोध न किया जाए, ज़ुल्म और अत्याचार होता है तो होता रहे, हमें बिल्कुल चुप बैठना चाहिये, इमाम ख़ुद आकर सब कुछ ठीक करेंगे और बुराईयों का अन्त करेंगे। यह इन्तेज़ार का एक ग़लत मतलब है। यह इन्तेज़ार नहीं बल्कि इन्तेज़ार के ख़िलाफ़ है। इमाम ज़माना अज.के इन्तेज़ार का मतलब यह नहीं है कि हम चुपके से एक कोने में बैठ जाएं। बहुत से लोग यह कहा करते थे और आज भी कहते हैं कि सब कुछ ख़ुद ठीक हो जाएगा, इमाम आकर सब कुछ ठीक करेंगे। सवाल यह है कि हमें क्या करना है? क्या हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना है? यह बिल्कुल ऐसे ही है जैसे कोई इन्सान अंधेरे में बैठा हो और कोई शमा या दिया न जलाए बल्कि यह कहे कि मुझे क्या ज़रूरत है कुछ करने की रात अपने आप गुज़र जाएगी और कल सवेरा निकल कर पूरी दुनिया को चमका देगा। कल सूरज निकलेगा, इसका यह मतलब नहीं है कि आज हम दिया भी न जलाएं। आज अगर हम देखते हैं कि दुनिया के किसी कोने में ज़ुल्म और अत्याचार हो रहा है, कमज़ोर लोगों के साथ ज़बरदस्ती की जा रही है और उनका हक़ दबाया जा रहा है तो हमें जान लेना चाहिये कि इमामे ज़माना उन्हीं चीज़ों के ख़िलाफ़ जंग करेंगे, अगर हम इमाम के सिपाही हैं तो हमें भी उनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा और इस लड़ाई के लिये ख़ुद को तैयार करना होगा।
आज हमारा काम क्या है? हमारा काम यह है कि हम अपने इमाम के लिये सारी तैयारियां कर के रखें ताकि वह आकर उन बुराइयों का अन्त करें। ऐसा नहीं है कि इमामे ज़माना अज. बिल्कुल ज़ीरो से शुरू करेंगे, हमारे इमाम का ज़माना दूसरे नबियों और इमामों की तरह नहीं है कि वह तैयारियों में लगे रहें, लोगों नें उनका साथ नहीं दिया, और उन्हें ज़ुल्म के विरोध करने का इस तरह मौक़ा नहीं मिल सका। हमें यह ज़मीन अपने इमाम के लिये तैयार करनी चाहिये ताकि वह आगे का काम कर सकें। यह सच्चा इन्तेज़ार है।