अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

इमाम महदी रिवायत की रौशनी में

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हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के बारे में हमारे पास बहुत सी रिवायतें मौजूद हैं और इन रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं को मासूम इमामों (अ. स.) ने अलग अलग बयान किया है, जैसे इमाम का जन्म, बच्पन का ज़माना, ग़ैबते सुग़रा, ग़ैबते कुबरा, ज़हूर की निशानियां, ज़हूर का ज़माना, विश्व व्यापी हुकूमत आदि आदि। अतः इमाम महदी (अ. स.) की ज़ाहिरी और अख़लाक़ी विशेषताओं, ग़ैबत के ज़माने और उन के ज़हूर के मुन्तज़िरों (प्रतिक्षा करने वालों) के सवाब के बारे में बहुत महत्वपूर्ण रिवायतें मौजूद हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि उन में से कुछ रिवायतें ऐसी हैं जो शिया और अहले सुन्नत दोनों की क़िताबों में मौजूद हैं। इमाम महदी (अ. स.) के बारे में बहुत ज़्यादा रिवायत मुतावातिर[1] हैं।
यह बात भी उल्लेखनीय है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि सब ही मासूम इमामों (अ. स.) ने उनके बारे में बेहतरीन हदीसें बयान की हैं जो वास्तव में इल्म पर ही आधारित हैं। उन में समानता व न्याय फैलाने वाले इस इमाम के क़ियाम व इंकिलाब (आन्दोलन) का वर्णन है। हम यहाँ पर हर मासूम से एक एक हदीस बयान करना बेहतर समझते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
खुश नसीब हैं वह लोग जो महदी (अ. स.) की ज़ियारत करेंगे और खुश नसीब है वह इंसान जो उन से मुहब्बत करता होगा, और खुश नसीब है वह इंसान जो उन की इमामत को मानता होगा....[2]
हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :
(आले मुहम्मद) के ज़हूर के मुंतज़िर रहो, और ख़ुदा की रहमत से मायूस न होना, बेशक ख़ुदा वन्दे आलम के नज़दीक सब से अच्छा काम ज़हूर का इन्तेज़ार करना है..[3]
हज़रत फातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लोह..[4]: में वर्णन हुआ है
इस के बाद अपनी रहमत की वजह से वसी का सिलसिला इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के बेटे पर पूरा कर दूंगा, जो मूसा का कमाल, ईसा का शिकोह, और जनाबे अय्यूब का सब्र रखाता होगा...[5]
हज़रत इमाम हसन मुजतबा (अ. स.) एक रिवायत में रसूले ख़ुदा (स.) के बाद घटित होने वाली घटनाओं का वर्णन करते हुए फरमाते हैं कि :
ख़ुदा वन्दे आलम अख़िरी ज़माने में एक क़ाइम को भेजेगा...और अपने फ़रिश्तों के ज़रिये उनकी मदद करेगा, और उनके मददगारों की हिफ़ाज़त करेगा...और उनको तमाम ज़मीन पर रहने वालों पर विजयी बनायेगा...वह ज़मीन को अदालत, नूर और स्पष्ट दलीलों से भर देंगे...खुश नसीब हैं वह इंसान जो उस ज़माने में होंगे और उन की इताअत (आज्ञा पालन) करेंगे...[6]
हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम उनके ( हज़रत इमाम महदी अ. स.) ज़रिये मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा और आबाद कर देगा, और उनके ज़रिये दीने हक़ को अन्य सब दीनों पर गालिब कर देगा, चाहे यह बात मुशरिकों को अच्छी न लगे, वह ग़ैबत को अपनायेंगे जिसकी वजह से एक गिरोह दीन से गुमराह हो जायेगा और एक गिरोह दीने हक़ पर क़ायम रहेगा...बेशक जो इंसान उनकी ग़ैबत के ज़माने में परेशानियों और झुटलाये जाने पर सब्र करेगा वह उस इंसान की तरह होगा जिस ने रसूले ख़ुदा (स.) के साथ रह कर तलवार से जिहाद किया हो....[7]
 
हज़रत इमाम सज्जाद (अ. स.) ने फरमाया :
जो इंसान क़ाइमे आले मुहम्मद के ज़माने में हमारी मुहब्बत और दोस्ती पर साबित क़दम रहेगा ख़ुदा वन्दे आलम उसे बदर व ओहद के हज़ार शहीदों के बराबर सवाब देगा...[8]
इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया:
एक ज़माना वह आयेगा कि जब लोगों का इमाम ग़ायब होगा, ख़ुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी दोस्ती पर साबित क़दम रहे...[9]
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया:
काइमे आले मुहम्मद के लिए दो ग़ैबतें होंगी एक ग़ैबते सुग़रा दूसरी ग़ैबते कुबरा होगी...[10]
हज़रत मूसा क़ाज़िम (अ. स.) ने फरमाया :
इमाम महदी अ. स. लोगों की नज़रों से छिपे रहेंगे, लेकिन मोमिनों के दिलों में उन की याद ताज़ा रहेगी...[11]
हज़रत इमामे रिज़ा (अ. स.) ने फरमाया :
जब (इमाम महदी अ. स.) क़ियाम करेंगे उस वक़्त उनके वजूद के नूर से ज़मीन रौशन हो जायेगी और वह लोगों के बीच हक़ व आदालत की तराज़ू स्थापित करेंगे और उस ज़माने में कोई किसी पर ज़ुल्म व सितम नहीं करेगा...[12]
हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ. स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद की ग़ैबत के ज़माने में मोमिनों को उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए और जब उनका ज़हूर हो जाये और वह क़ियाम करें तो उनकी इताअत (आज्ञा पालन) करनी चाहिए...[13]
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ. स.) ने फरमाया :
 मेरे बाद मेरा बेटा हसन (अस्करी) इमाम होगा और उनके बाद उनका बेटा (क़ाइम) इमाम होगा, वह ज़मीन को अदल व इन्साफ़ (न्याय व समानता) से उसी तरह भर देंगे जैसे वह ज़ुल्म व जौर (अत्याचार व भेद भाव) से भरी होगी....[14]
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमाया :
उस अल्लाह का शुक्र है जिसका कोई शरीक नही है, जिस ने मेरी ज़िन्दगी में मुझे जानशीन (उत्तराधिकारी) दे दिया है, वह शक्ल, सूरत और अख़लाक़ में रसूले ख़ुदा (स.) से सब से ज़्यादा मिलता है...[15]

[1] . मोतवातीर उन हदीसों को कहा जाता है जिसके रावी तमाम सिलसिला ए रिवायत में इतने ज़्यादा हों कि उनका किसी झूटी बात पर एक मत होना मुम्किन न हो।
[2] . बिहार उल अनवार जिल्द न. 52, पेज न. 309।
[3] . बिहार उल अनवार जिल्द न. 52, पेज न. 123।
[4] . इस रिवायात में बयान हुआ है कि जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी कहते हैं कि हज़रत मैं रसूले अकरम (स.) के ज़माने में, हज़रत इमाम हसन (अ0 स.) के जन्म के मौक़े पर हज़रत फातिमा (अ0 स.) के पास मुबारक बाद पेश करने के लिये गया। मैनें वहाँ बीबी ए दोआलम के हाथों में एक हरे रंग का लोह (पेज) देखा और उस में सूरज की तरह चमकता हुआ एक लेख देखा। मैं ने पूछा कि यह लोह कैसा है ? बीबी ने जवाब दिया : इस लोह को खुदा वन्दे आलम ने अपने रसूल को तोहफ़ा में दिया है, इस में मेरे पिता मेरे पति और दोनों बेटों और उन के बाद होने वाले इमामों के नाम लिखे हुए हैं। रसूले खुदा (स.) ने यह लोह मुझे भेंट किया है ताकि इस के द्वारा मेरा दिल खुश रहे।
[5] . कमालुद्दीन जिल्द न. 1, बाब 28, हदीस 1, पेज न. 569
[6]   एहतेजाज जिल्द न. 2, पेज न. 70
[7]   कमालुद्दीन जिल्द न. 1 बाब 30, हदीस 3, पेज न. 584
[8] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब 31, पेज न. 592, ।
[9] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 1, बाब 32, हदीस 15, पेज न. 602 ।
[10] . ग़ैबते नोमानी बाब 10, फसल 4, पेज न. 176 ।
[11] . ग़ैबते नोमानी, बाब 34, हदीस 6, पेज न. 57 ।
[12] . ग़ैबते नोमानी, बाब 35, हदीस 65, पेज न. 60 ।
[13] . ग़ैबते नोमानी, बाब 36, हदीस 1, पेज न. 70
[14] . ग़ैबते नोमानी बाब 37, हदीस 10, पेज न. 79
[15] . ग़ैबते नोमानी, बाब 37, हदीस 7, पेज न. 118

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