अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

ज़ुहूर कब

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जिस वक़्त ज़ुहूर की बातें होती हैं तो इंसान के दिल में एक बहुत सुन्दर एहसास पैदा होता है जैसे वह नहर के किनारे किसी हरे भरे बाग में बैठा हुआ है और मधुर स्वर बुलबुलों की आवाज़ सुन रहा है। जी हाँ ! अच्छाइयों का प्रकट होना और अच्छाइयों का फैलना, थकी हारी रुहों व आत्माओं को ख़ुशिया प्रदान करता है, और इससे उम्मीदवारों की आँखों में बिजली सी चमक उठती है।
हम इस हिस्से में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर और उनके हुज़ूर के मौक़े पर घटने वाली घटनाओं का वर्णन करेंगे। और उस बेमिसाल जमाल को ग़ैबत का पर्दा उठाते हुए देखेंगे।


ज़हूर का ज़माना
हमेशा से लोगों के ज़ेहनों में यह सवाल पैदा होता है कि इमामे ज़माना (अ. स.) कब ज़हूर फरमायेंगे ? और क्या ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित है ?
इस सवाल का जवाब मासूमीन (अ. स.) वर्णित रिवायत के आधार यह है कि ज़हूर का ज़माना निश्चित नहीं है।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि
“हमने न तो कभी पहले ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित किया है और न ही इसके लिए भविष्य में कोई वक़्त निश्चित करेंगे...।”
इस आधार पर ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित करने वाले लोग झूठे व धोखेबाज़ हैं और विभिन्न रिवायतों में इस बात की पुष्टी भी की गई है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) के एक सहाबी ने उनसे ज़हूर के बारे में सवाल किया तो उन्होंने फरमाया :
जो लोग ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करें वह झूटे हैं।
अतः इस तरह की रिवायतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हमेशा ही कुछ लोग शैतानी वसवसों के कारण इमाम (अ. स.) के ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करते रहे हैं और ऐसे लोग भविष्य में भी पाये जायेंगे। इसी वजह से अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) ने अपने शियों को यह पैगाम दिया है कि वह कभी भी ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने वालों के सामने खामोश न रहें बल्कि उनके झूट को उजागर करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) इस बारे में अपने एक सहाबी से फरमाते हैं कि
 “ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने वालों को झुठलाने में किसी भी तरह की पर्वा न करो, क्योंकि हम ने किसी के सामने ज़हूर का वक़्त निश्चित नहीं किया है।”


ज़हूर के वक़्त को छुपाने का राज़
जैसा कि ऊपर उल्लेख हो चुका है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने किसी ख़ास वजह से हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त को हम से छुपा कर रखा है। बेशक इस मसले कुछ हिकमतें पाई जाती हैं, जिनमें  से कुछ की तरफ़ हम यहाँ इशारा कर रहे हैं।


उम्मीद के बाक़ी रखना
जब ज़हूर का ज़माना मालूम नहीं होता तो इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में हर वक़्त उम्मीद की किरणे मौजूद रहती हैं और वह उस उम्मीद के साथ ग़ैबत के ज़माने में हमेशा परेशानियों के मुक़ाबले में सब्र व दृढ़ता से काम लेते हैं। वास्तव में अगर पिछली शताब्दियों के शियों से कहा जाता कि तुम्हारे ज़माने में इमाम (अ. स.) का ज़हूर नहीं होगा, बल्कि कुछ शताब्दियों बाद ज़हूर होगा तो फिर वह किस उम्मीद के साथ अपने ज़माने की मुशकिलों का मुक़ाबला करते और किस तरह ग़ैबत के ज़माने के तंग व अँधेरे रास्ते को सही तरह से तय करते ?


ज़हूर के रास्तों को हमवार करना
बेशक इन्तेज़ार उसी सूरत में बेहतरीन कामों का कारण बन सकता है जब ज़हूर का ज़माना मालूम न हो, क्यों कि अगर ज़हूर का ज़माना निश्चित हो जाये तो फिर जिन लोगों को मालूम है कि हम ज़हूर के ज़माने तक नहीं रहेंगे तो फिर उनके अन्दर रास्ता हमवार करने का शौक पैदा नहीं होगा और वह बुराइयों के सामने हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे।
जबकि अगर ज़हूर का ज़माना मालूम न हो तो इंसान हर वक़्त इस उम्मीद में रहता है कि न जाने कब ज़हूर हो जाये और वह ज़हूर के ज़माने को प्राप्त कर ले। अतः वह इसी कारण ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिशें करता है और अपने समाज को नेक समाज में परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत रहता है।
इसके अलावा ज़हूर का वक़्त निश्चित होने की सूरत में अगर कुछ कारणों से निश्चित समय पर ज़हूर न हो सका तो फिर कुछ लोग हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के अक़ीदे में शक करने लगेंगे।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) से सवाल किया गया कि क्या ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित है ? तो उन्होंने फरमाया :
जो लोग ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं। इमाम ( अ. स.) ने इस जुमले को दो बार कहा जिस वक़्त जनाबे मूसा (अ. स.) ख़ुदा के बुलाने से तीस दीन के लिए अपनी क़ौम के बीच से चले गए और ख़ुदा वन्दे आलम ने उन तीस दिनों में दस दिन और बढ़ा दिये तो उस वक़्त  जनाबे मूसा (अ. स.) की क़ौम ने कहा : मूसा ने अपने वादे को वफ़ा नहीं किया है। अतः वह उन कामों को करने लगे जो उनको नहीं करने चाहिए थे। वह दीन से फिर गए और गाय की पूजा शुरु कर दी।

इन्केलाब का आरम्भ
सब लोग ये जानना चाहते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के इस विश्वव्यापी इंकेलाब में क्या क्या घटनाएं घटित होंगी ? इमाम का यह आन्दोलन कहाँ से और कैसे शुरु होग ? हज़रत इमाम महदी (अ. स.) अपने मुखालिफ़ों से कैसा व्यवहार करेंग ? वह  किस तरह पूरी दुनिया पर क़ब्ज़ा करेंगे ? और तमाम महत्वपूर्ण कामों की बाग ड़ोर अपने हाथों में कैसे संभालेंगे ? यह सवाल और इन्हीँ से मिलते जुलते अन्य सवाल ज़हूर का इन्तेज़ार करने वाले इंसानों के ज़हन में आते रहते हैं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इंसानों की आखरी उम्मीद के ज़हूर के घटनाओं के बारे में बात करना बहुत मुशकिल काम है। क्योंकि भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में साधारण रूप से गहरी जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती है।
अतः हम इस हिस्से में जो कुछ उल्लेख करेंगे वह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के ज़माने की वह घटनाएं हैं जिनका वर्णन अनेकों किताबों में हुआ हैं और जिन में इमाम (अ. स.) के ज़हूर के ज़माने की घटनाओं की एक झक मिलती है।


क़ियाम की स्थिति
जब ज़ुल्म, सितम, अत्याचार व तबाही दुनिया की शक्ल को काला कर देगी, जब ज़ालिम व अत्याचारी लोग इस ज़मीन को एक बुरे मैदान में परिवर्तित कर देंगे, और पूरी दुनिया के लोग ज़ुल्म व सितम से परेशान होकर मदद के लिए हाथों को आसमान की तरफ़ उठायेंगे तो आचानक आसमान से आने वाली एक आवाज़ रात के अंधेरों को काफ़ूर कर देगी और रमज़ान के महीने में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की खुश ख़बरी देगी।  तब दिल घड़कने लगेंगे और आँखें चौधियाँ जायेंगी, रात भर अय्याशी करने वाले सुबह को ईमान के ज़ाहिर होने की वजह से परेशान होकर भागने का रास्ता ढूँढने की फ़िक्र में होंगे और हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार करने वाले अपने महबूब इमाम को तलाश करने और उनके मददगारों में शामिल होने के लिए बेचैन होंगे।
उस मौक़े पर सुफ़यानी जो कई देशों पर क़ब्ज़ा किये हुए होगा जैसे सीरिया, उर्दन, फ़िलिस्तीन, वह इमाम से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज तैयार करेगा और उसे इमाम के मुक़ाबले के लिए मक्के की ओर  भेजेगा लोकिन सुफ़यानी की यह फ़ौज जैसे ही बैदा नामक जगह पर पहुँचेगी, ज़मीन में धँस कर भस्म हो जायेगी।
नफ्से ज़किया की शहादत के कुछ ही समय के बाद इमाम महदी (अ. स.) एक जवान मर्द की सूरत में मस्जिदुल हराम में ज़हूर फरमायेंगे। उनकी हालत यह होगी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की क़मीज़ पहने होंगे और रसूले ख़ुदा (स.) का अलम अपने हाथ में लिए होंगे। वह खाना ए काबा की दीवार से टेक लगाये हुए रुक्न व मक़ाम के बीच ज़हूर का तराना गुनगुनायेंगे। वह ख़ुदा वन्दे आलम की हम्द व सना और मुहम्मद व आले मुहम्मद पर दुरुद व सलाम के बाद यह फरमायेंगे :
ऐ लोगों ! हम ख़ुदा वन्दे आलम से मदद माँगते हैं और जो इंसान दुनिया के किसी भी कोने से हमारी आवाज़ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हो उसे मदद के लिए पुकारते हैं।
इसके बाद वह अपनी और अपने खानदान की पहचान कराते हुए फरमायेंगे :
” فَالله الله فِینَا لاٰتَخْذُلوْنا وَ انصرُوْنا یَنْصُرْکمُ الله تعالیٰ
हमारे हक़ की रिआयत के बारे में ख़ुदा को नज़र में रखो और न्याय फैलाने व ज़ुल्म का मुक़ाबेला करने की प्रक़िया में हमें तन्हा न छोड़ो, तुम हमारी मदद करो, ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारी मदद करेगा।
इमाम (अ. स.) की बात पूरी होने के बाद आसमान वाले ज़मीन वालों  से आगे बढ़ जायेंगे और गिरोह - गिरोह आकर इमाम (अ. स.) की बैअत करेंगे। लेकिन उन सब से पहले वही लाने वाला महान फरिशता जिब्रईल इमाम की खिदमत में हाज़िर हो जायेगा और उसके बाद ज़मीन के 313 सितारे विभिन्न स्थानों से वही की ज़मीन अर्थात मक्का ए मोज़्ज़मा में इकठ्ठा हो कर उस इमामत के सूरज के चारों तरफ़ घेरा बना लेंगे और उनसे वफ़ादारी का वादा करेंगे। इमाम के पास आने वाले लोगों का सिलसिला जारी रहेगा यहाँ तक कि दस हज़ार सिपाहियों पर आधारित एक फ़ौज इमाम (अ. स.) के पास पहुँच जायेगी और पैग़म्बर (स.)  के इस महान बेटे की बैअत करेगी।
इमाम (अ. स.) अपने मददगारों के इस महान लशकर के साथ क़ियाम का परचम लहराते हुए बहुत तेज़ी से मक्का और आस पास के इलाक़ों पर क़ाबिज हो जायेंगे ताकि उनके बीच न्याय, समानता व मुहब्बत स्थापित करें और उन शहरों के सिरफिरे लोगों का सर नीचा करें। उस के बाद वह इराक़ का रुख करेंगे और वहाँ के शहर कूफ़े को अपनी विश्वव्यापी हुकूमत का केन्द्र बना कर वहाँ से उस महान इन्क़ेलाब की देख रेख करेंगे। वह दुनिया वालों को इस्लाम और कुरआन के क़ानूनों  के अनुसार काम करने और ज़ुल्म व सितम खत्म करने का निमन्त्रण देंगे और अपने नूरानी सिपाहियों को दुनिया के विभिन्न इलाक़ों की तरफ़ रवाना करेंगे।
इमाम (अ. स.) एक एक कर के दुनिया के बड़े बड़े मोर्चों को जीत लेंगे क्योंकि मोमिनों और वफ़ादार साथियों के अलावा फ़रिश्ते भी उनकी मदद करेंगे और वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की तरह अपने लशकर के रोब व दबदबे से फायदा उठायेंगे। ख़ुदा वन्दे आलम इमाम (अ. स.) और उनके लशकर का इतना डर दुशमनों के दिलों में डाल देगा कि बड़ी से बड़ी ताक़त भी उनका मुकाबेला करने की हिम्मत नहीं करेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद (अ. स.) की मदद दुशमनों के दिल में दहशत व रोब पैदा करके की जायेगी।
उल्लेखनीय है कि इमाम (अ. स.) के लशकर के ज़रिये फतह होने वाले इलाकों में से बैतुल मुकद्दस भी है।  इस के बाद एक बहुत ही मुबारक घटना घटित होगी, जिस से इमाम महदी (अ. स.) का इंकेलाब एक अहम मोड़ पर पहुँच जायेगा और इससे उनके मोर्चे को और दृढ़ता मिलेगी। वह महान व मुबारक घटना हज़रत ईसा (अ. स.) का आसमान से ज़मीन पर तशरीफ़ लाना है। कुरआने करीम की आयतों के अनुसार हज़रत ईसा मसीह ज़िन्दा हैं और आसमान में रहते हैं, लेकिन उस मौक़े पर वह ज़मीन पर तशरीफ़ लायेंगे और हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पीछे नमाज़ पढेंगे। वह अपने इस काम से सबके सामने अपने ऊपर शियों के बारहवें इमाम हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की फज़ीलत, श्रेष्ठता, वरीयता और उनकी पैरवी का एलान करेंगे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
उस अल्लाह की क़सम जिस ने मुझे नबी बनाया और समस्त संसार  के लिए रहमत बनाकर भेजा। अगर दुनिया की उम्र का एक दिन भी बाक़ी रह जायेगा तो ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा कर देगा कि उस में मेरा बेटा महदी (अ. स.) क़ियाम कर सके, उस के बाद ईसा पुत्र मरियम (अ. स.) आयेंगे और हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पीछे नमाज़ पढेंगे।
इस काम के द्वारा हज़रत ईसा (अ. स.) ईसाइयों को (जिन की संख्या उस समय दुनिया में बहुत होगी) अल्लाह की इस आख़िरी हुज्जत और शियों के इमाम पर ईमान लाने का संदेश देंगे। ऐसा लगता है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने हज़रत ईसा (अ. स.) को इसी दिन के लिए ज़िन्दा रखा हुआ है ताकि हक़ चाहने वाले लोगों के लिए हिदायत का चिराग़ बन जायें।
वैसे हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के द्वारा मोजज़ों (चमत्कारों) को दिखाना, इंसानों की रहनुमाई व मार्गदर्शन के लिए फिक्र को खोलने वाले उच्च विचारों को प्रकट करना आदि इस महान इन्क़ेलाब की योजनाओं में सम्मिलित है ताकि लोगों की हिदायत का रास्ता हमवार हो जाये।
उसके बाद इमाम (अ. स.) यहूदियों की मुकद्दस व पवित्र किताब तौरैत की असली (जिनमें परिवर्न नही हुआ है) तख्तियों को ज़मीन से निकालेंगे।  यहूदी उन तख्तियों में उनकी इमामत की निशानियों को देखने, उनके महान इंकेलाब को समझने, इमाम (अ. स.) के सच्चे पैग़ाम को सुन्ने और उनके मोजज़ों को देखने के बाद गिरोह - गिरोह कर के उनके साथ मिल जायेंगे। इस तरह ख़ुदा वन्दे आलम का वादा पूरा हो जायेगा और इस्लाम पूरी दुनिया को अपने परचम के नीचे जमा कर लेगा।
ھُوَ الَّذِی اٴَرْسَلَ رَسُولَہُ بِالْہُدَی وَدِینِ الْحَقِّ لِیُظْہِرَہُ عَلَی الدِّینِ کُلِّہِ وَلَوْ کَرِہَ الْمُشْرِکُونَ
वह अल्लाह, वह है, जिसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चे दीन के साथ भेजा ताकि अपने दीन को तमाम धर्मों पर ग़ालिब बनाये चाहे मुशरिकों को कितना ही नागवार क्यों न हो।
प्रियः पाठकों ! इमाम ज़माना (अ. स.) के ज़हूर की इस मनज़र कशी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिर्फ ज़ालिम व हठधर्म लोग ही हक़ व हकीकत के सामने नहीं झुकेंगे, लेकिन यह लोग भी मोमिनों और इंकेलाब के मुकाबले की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे और हज़रत महदी की न्याय व समानता फैलाने वाली तलवार से अपने शर्मनाक कामों की सज़ा भुगतेंगे इसके बाद ज़मीन और उस पर रहने वाले हमेशा के लिए बुराईयों व उपद्रवों से सुरक्षित हो जायेंगे।

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