महिला जगत-3

एक समाज की सबसे बड़ी पूंजी उसका मानव बल है। और हर देश के मानव का सबसे महत्वपूर्ण भाग उसकी युवा पीढ़ी में पाया जाता है।


युवा ऐसा उत्साहपूर्ण साक्रिय बल है कि जो समाज निर्माण में महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभाता है। इसी कारण इस्लाम ने अपने विशेष कार्यक्रमों के साथ ही युवा पीढ़ी पर विशेष ध्यान दिया है। और युवाओं को मनोवैज्ञानिक, प्रशिक्षण संबंधी, व्यवहारिक और सामाजिक आयामों द्वारा अपने पूर्ण निरिक्षण में रखा है। ईश्वरीय दूतों ने युवाओं को ईश्वर की बड़ी अनुकम्पाओं में से एक बताया है।


उन्होंने जीवन के इस काल की भूमिका का मूल्यौकन किया पैग़म्बरे इस्लाम(स) इस संबंध में कहते हैं -आप लोगों से युवाओं के साथ नेकी करने की सिफ़ारिश करता हूं क्योंकि उनका हृदय नर्म और भलाई स्वीकार करने वाला होता है। ईश्वर ने मुझे पैग़म्बर बनाया ताकि लोगों को ईश्वर की दया की शुभ-सूचना दूं और उसके प्रकोप से डराऊं। युवाओं ने मेरी बात मानी और मेरे साथ प्रेम का संबंध जोड़ा परन्तु वृद्धों ने मेरा निमँत्रण स्वीकार नहीं किया और मेरे विरोध में ३६ खड़े हुए और उनके हृदय कठोर हो गए।

इस्लाम में प्रशिक्षण का एक महत्व समान उत्तरदाइत्वों का उत्पन्न करना है। अर्थात लोग एक दूसरे के उत्तरदायी हैं और एक दूसरे के दाइत्वों में भागीदार हैं। दूसरे शब्दों में हर पीढ़ी दूसरी पीढ़ी की उत्तरदाई है।


समाज की प्रगति व विकास के दाइत्व उठाने के लिए जो पीढ़ी हमारे सामने है वो युवा पीढ़ी है।


वो पीढ़ी कि जिसे स्वाभाविक रूप से विभिन्न आत्मिक सँकटों और स्नेह व संवेदन संबंधी परिवर्तनों का सामना है। इसलिए उसे नेतृत्व व मार्गदर्शन की आवश्यकता है। युवा निरन्तर विकास की हालत में होता है और उसके शरिरिक विकास के साथ सदा आत्मिक तथा प्रेम संबंधी उत्तेजनाएं होती हैं। युवा का शरीर तेज़ी से विकास की ओर अग्रसर रहता है और उसकी आत्मीय तथा मानसिक प्रगति का सीधा संबंध उसके शरीर से होता है। उसकी शरीरिक व मानसिक विकास की धारा उसी समय सही मार्ग पर चलती है कि जब वो वैचारिक तथा आस्था संबंधी दृष्टि से उचित मार्ग पर अग्रसर हो।


इसके लिए उसे मार्ग दर्शन तथा मार्ग दर्शक की आवश्यकता है।

दूसरी और उसे अपने जीवन में अपनी स्थिति पर स्वँय विचार करने की आवश्यकता है। उसे अपने जीवन मार्ग पर सोच समझ कर क़दम उठाना चाहिए ताकि एक उज्जवल भविष्य में पहुंच सके।


एक मनोवैज्ञानिक का कहना है कि मैं अपने अनेक अनुसेंधानों द्वारा लोगों की मानसिक परेशानियों के कारणों का पता लगाते हुए इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि इन लोगों ने बचपन और जवानी में जीवन पद्धति को भली भोंति नहीं सीखा और उन्हें पर्याप्त मार्ग दर्शन भी नहीं मिल सका है। इनमें से अधिकांश इस समय स्वँयमाता या पिता हैं और बच्चों का प्रशिक्षण कर रहे हैं। वे बिना चाहते और जानते हुए अपनी आत्मिक और मानसिक परेशानियों को बच्चों में स्थानान्तरित करते हैं।


युवा पीढ़ी का नेतृत्व और मार्गदर्शन माता- पिता के कार्यक्रमों में प्रथम स्थान पर होना चाहिए।